Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Update - 50

कमला जब कमरे में जा रहीं थीं तब उसके चहरे से दुनियां भर की खुशियां जल प्रपात की तरह अविरल बहे जा रहीं थीं। एक एक कदम का फैसला तय करते हुए कमला रूम में पहुंची, रूम में पहुंचते ही "ahhhhh" एक गहरी स्वास छोड़ा, मानो वो मिलो दौड़कर आई हों, किंतु उसके चहरे से ऐसा नहीं लग रहा था। चहरे से तो सिर्फ़ कभी न खत्म होने वाली सुखद अनुभूति झलक रहीं थीं।

अंतर मन में उपज रही सुखद अनुभूति कमला पर इतना हावी थी कि बिना कुछ लिए बाथरूम में चली गईं। जिस्म में मौजूद एक एक वस्त्र इतनी शोखी से उतर रहीं थीं कि कोई पुरुष देख ले तो कमला की अदाओं को देखकर भाव विहीन होकर बस देखता ही रहें।

बाथरूम में एक से बढ़कर एक इत्र युक्त साबुन और शैंपू रखा था किंतु कमला निर्धारित नहीं कर पा रहीं थीं कि नहाने में किस साबुन या शैंपू का इस्तेमाल किया जाए। एक को हाथ में लेती "नहीं नहीं ये नहीं" फिर दूसरे को हाथ में लेती, न न बोलकर उसे भी वापस रख देती। कई बार उठाया रखा, उठाया रखा करने के बाद अंतः एक साबुन और शैंपो उसे पसन्द आया। उसी से नहाने लग गईं।

साबुन की खुशबू बदन के साथ साथ पूरे बाथरूम को भी महका दिया। बरहाल कुछ ही देर में नहाने की क्रिया सम्पन्न हुआ। बदन को पोछने के लिए तौलिया ढूंढा तो तौलिया कहीं मिली नहीं तब याद आया कि तौलिया तो लाई नहीं तो कमला बोलीं... अब क्या करूं तौलिया तो लाया नहीं क्या मैं ऐसे ही बहार चली जाऊं।

उसी वक्त कमरे में किसी के आने का आहट हुआ जिसे सुनकर कमला खुद से बोलीं... लगाता हैं कोई आया हैं कौन आया होगा….।

कमला ने सिर्फ इतना ही बोला था की आने वाले ने बोला... कमला तुम अभी तक बाथरूम में हों। तुम्हें तो अब तक तैयार हों जाना चाहिए था।

कमला…हां! बस मुझे थोडा वक्त दीजिए मैं जल्दी से तैयार हों जाऊंगी। क्या आप मुझे तौलिया लाकर देंगे मैं तौलिया लाना भूल गई।

रघु... तुम दरवाजा खोलो मैं अभी देता हूं।

इतना बोलकर रघु तौलिया लिया फ़िर दरवाजा थपथपाया कमला ने थोडा सा दरवाजा खोला और हाथ बढ़ाकर बोला... लाइए जल्दी से तौलिया दीजिए

बाथरूम का दरवाजा खोलने से साबुन की सुगंध बहार निकल आया। जिसे सूघते ही रघु के मुंह से "ahaaa" की एक ध्वनि निकला फिर तौलिया कमला के हाथ में देते हुए उसका हाथ थाम लिया। जिसका असर ये हुआ की दोनों का बदन झनझना उठा और कमला हाथ खींचते हुए बोली... क्या करते हो जी मेरा हाथ छोड़िए।

रघु मुस्कुराते हुए कमला का हाथ छोड़ दिया फ़िर कुछ पल बिता था की कमला तौलिया लपेट कर बहार निकल आई। बीबी का ऐसा अवतार देखकर रघु बस एक टक देखता रह गया। देखने का नजरिया क्या था कहना मुस्कील हैं हवस था की प्यार था या फ़िर कुछ ओर ये बस रघु ही जानें परंतु रघु के चहरे की मुस्कान बता रहा था कि रघु कमला के इस रूप से बहुत प्रभावित हुआ हैं।

पति का ऐसे भाव विहीन और मन्द्र मुग्ध होकर खुद को देखता देखकर कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…ऐसे क्या देख रहें हो जी मुझे देखना छोड़िए और जाकर जल्दी से नहा कर आइए हमे देर हों रहा हैं।

पत्नी का इतना बोलना था की रघु मंद मंद मुस्कान लवो पर लिए बाथरूम में घुस गया और कमला अलमारी के पास जाकर वस्त्र को उलट पुलट कर देखने लगीं की पहने तो क्या पहनें कमला के कपड़ो का तांता लगा हुआ था उनमें से कौन सा पहनें ये फैसला कमला नहीं कर पा रही थीं। बहरहाल कमला यूं ही वस्त्रों में उलझी रहीं और इतने वक्त में रघु भी बाथरूम से बहार आ गया। पत्नी को यूं वस्त्रों में उलझा देखकर रघु बोला... कमला ये क्या? तुम अभी तक तैयार नहीं हुई अभी तक वस्त्रों में उलझी हुई हों जल्दी करो हमे देर हों रहा हैं।

कमला…क्या करूं जी! पूरा अलमारी वस्त्रों से भरा पड़ा हैं मै फैसला नहीं कर पा रहीं हूं कौन सा पहनु एक हाथ में लेती हूं तो दूसरा पहनें का मन करता हैं दूसरा उठती हूं तो तीसरा पहनें का मन करता हैं। आप ही बता दीजिए न कौन सा पहनू।

रघु…कमला तुम इतनी खूबसूरत हों की जो भी पहनोगी तुम पर अच्छा लगेगा फ़िर भी आगर तुम मेरे पसन्द का पहना चहती हों तो तुम उसी गाउन को पहन लो जो तुमने सगाई वाले दिन पहना था। मैं एक बार फिर से तुम्हें उन्हीं कपड़ों में देखना चाहता हूं।

पति से इतना सुनने ही कमला के चहरे पर मुस्कान आ गई और कमला उस वस्त्र को बहार निकल लिया फ़िर रघु के लिए भी एक जोड़ी वस्त्र निकल कर रघु को दिया और खुद का वस्त्र लेकर बाथरूम में घुस गई। कुछ ही वक्त में दोनों तैयार होकर एक दूसरे का हाथ थामे कमरे से बहार निकलकर आए फ़िर बैठक में जाकर रघु सुरभि से बोला…मां हम लोग जा रहें हैं।

सुरभि... जा लेकिन संभाल कर जाना और बहू का ध्यान रखना ये जगह बहू के लिए नया है ओर हां मैंने कुछ लोगों को तुम्हारे साथ जानें को कह दिया हैं उनको भी साथ लेते जाना।

रघु... मां इसकी क्या जरूरत थीं?

सुरभि…सुरक्षा के लिए किसी का साथ रहना इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी हैं। तू जानता है तेरी शादी से पहले कितना कुछ हुआ था। इतनी अडंगा लगाने के बाद भी तेरी शादी हों गईं तो जाहिर सी बात हैं वो लोग खीसिया गए होंगे और एक खीसियाए हुए लोग कभी भी कुछ भी कर सकते हैं।

सुकन्या.. रघु जब दुश्मन अनजान हों तो हमारा फर्ज बनता हैं कि हम सतर्क रहें क्योंकि ऐसे लोग इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया हैं जो मौका मिलते हैं घात कर देते हैं। तू और बहू रात के वक्त बहार जा रहा हैं इसलिए हम चाहते है की कोई अनहोनी न हों तू बस चुप चाप दीदी ने जिनको तैयार रहने को कहा उन्हें साथ लेकर जा।

इतना कहने के बाद सुकन्या मन में बोली... रघु मैं जानता हूं इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया कौन कौन हैं पर मैं बता नहीं सकती, बताऊं भी तो कैसे बताऊं तेरे अपने ही अपनो की खुशियों को डसने में लगे हुए हैं।

मां और चाची की बाते सुनकर रघु को लगा उनका कहना भी सही है इसलिए न चाहते हुए भी रघु हां में सिर हिलाकर बहार को चल दिया, रघु की मानो दासा से सुरभि और सुकन्या भलीभाती परिचित थी। इन दोनों ने भी उम्र के इस पड़ाव से होकर गुजारे हैं शादी के शुरुवाती दिनों में शादीशुदा जोड़ा अपने एकांत पालो में किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नहीं करते परन्तु इस वक्त परिस्थिति बिल्कुल बदला हुआ हैं।

रघु बहार आकर देखा कुछ अंगरक्षक तैयार खड़े हैं तो रघु ने उन्हें कुछ समझाया फ़िर चल दिया। रघु खुद कार चला रहा था और बगल वाली सीट पर कमला बैठी थीं। उनके पीछे पीछे कुछ दूरी बनाकर अंगरक्षकों का जीप चल रहा था। जो मुस्तैदी से आस पास और सामने चल रहे रघु की कार पर नज़र बनाए हुए थे।

कार को रघु सामान्य रफ्तार से चला रहा था और बार बार कमला के चहरे को देख रहा था। जहां उसे सिर्फ़ कमला का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिख रहा था। बीबी को इतनी खुश देखकर रघु भी अंदर ही अंदर खुश हों रहा था। अचानक कमला रघु से बोला... हम कहा जा रहे हैं।

रघु... घर पर बोला तो था फिर भी पूछ रहीं हों।

कमला…बोला था पर हम जहां जा रहे है वहां का कुछ नाम तो होगा मैं बस नाम जानना चहती हूं।

रघु... नाम तो नहीं बताऊंगा पर इतना जान लो वो जगह यहां का सबसे मशहूर जगह हैं।

कमला….मुझे पसन्द नहीं आया तो पहले ही कह देती हू मै वहां एक पल नहीं रुकने वाली।

रघु...न पसन्द आए ऐसा हों ही नहीं सकता देख लेना तुम ख़ुद ही वाह वाह करने लग जाओगी।

कमला... ऐसा हैं तो देर क्यों कर रहें हों कार को थोडा तेज चलाओ और मुझे वहां जल्दी पहुचाओ मैं भी देखूं ऐसी कौन सी जगह हैं जिसकी तारीफ में मेरे पति कसीदे पढ़े जा रहें हैं।

रघु...जैसी आप की मर्जी मालकिन जी मैं तो आपका गुलाम हूं आपकी हुक्म मानना मेरा परम कर्तव्य हैं ही ही ही।

इतना कहकर रघु कार की रफ्तार थोडी ओर बडा देता हैं और कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…कौन गुलाम यह तो कोई गुलाम नहीं हैं यहां बस मेरा पति हैं। कहीं आपकी इशारा मेरे पति की ओर तो नहीं हैं ही ही ही।

इतना कहकर कमला खिलखिला कर हंस दिय। रघु बस मुस्कुराकर हा में सिर हिला दिया। कुछ ही वक्त में दोनों मसखरी करते हुए। माल रोड पर मौजूद एक भोजनालय के सामने पहुंच गए। हालाकि रात का वक्त था फिर भी लोगों की अजवाही हों रहा था। भोजनालय की भव्यता देखकर ही कहा जा सकता है की ये भोजनालय सिर्फ और सिर्फ रसूक दार लोगों के लिए बना हैं। कार के रूकते ही कुछ लोग दौड़कर आए और कार के पास खड़े हों गए। रघु के साथ आए अंगरक्षक भी तुरंत दौड़कर आए और रघु और कमला को घेरकर खड़े हों गए। उसी वक्त सूट बूट में एक बंदा आया और रघु को प्रणाम करते हुए बोला... प्रणाम युवराज आपका हमारे इस भोजनालय में स्वागत हैं।

रघु रूआव दार आवाज में बोला...जैसा मैंने आपसे कहा था बिल्कुल वैसी व्यवस्था हों गया न कुछ कामी रहीं तो सोच लेना।

"आपने खुद फोन करके कहा था तो कैसे कोई कमी रह सकता हैं। मैं दावे से कह सकता हूं आपने जैसा कहा था उससे बेहतर ही होगा। वैसे आपके साथ ये महिला कौन हैं जान सकता हूं।"

रघु...ये मेरी धर्मपत्नी कमला रघु प्रताप राना हैं। इन्हीं के लिए ही सारी व्यवस्था करवाया था मेरा पसन्द आना न आना व्यर्थ हैं इनको पसन्द आना चाहिए।

इतना बोलकर कमला का हाथ थामे अंदर को चल दिया और कमला बस रघु को देख रहा था साथ ही थोडी हैरान भी थीं। क्योंकि पहली बार रघु को किसी से रुआब दार आवाज में बात करते हुए देखा था और भोजनालय का बंदा चापलूसी करते हुए बोला... हमने इनके भी ख्याल का पूरा पूरा ध्यान रख हैं। मैं दावे से कह सकता हूं इन्हे तो हद से ज्यादा पसन्द आने वाली हैं।

बंदे की बात सुनकर कमला और रघु समझ गया मक्खन पेल के लगाया जा रहा है इसलिए रघु मन में बोला… बेटा जीतना मक्खन लगना है लगा ले आगर कमला को पसन्द नहीं आया तो तेरा ये भोजनालय सुबह होने से पहले धराशाई होकर मिटी में मिल जायेगा।

कमला मन में बोली... कितना चापलूस आदमी हैं खुद की बड़ाई ऐसे कर रहा हैं जैसे मेरी पसन्द की इन्हें पूरी जानकारी हैं।

कुछ कदम चलने के बाद बंदे ने एक और इशारा करते हुए बोला " इस ओर चलिए" बंदे के बताते ही कमला और रघु उस और चल दिया। एक गलियारे से होता हुआ सभी एक खुले मैदान में पहुंच गए वहा की सजावट देखते ही कमला अचंभित रह गई और रघु की और देखकर आंखो की भाषा में शुक्रिया अदा करने लग गईं। रघु के लिए बस इतना ही काफी था इसके आगे कुछ भी कहने की जरूरत ही नहीं पड़ा क्योंकि रघु ने जो भी किया सिर्फ कमला के खुशी के लिए ही किया था।

अब जरा हम भी देखे ऐसा किया था जिसे देखते ही कमला अचंभित हो गई। दरअसल ये एक पचास वर्ग मीटर का खुला मैदान था। जिसके चारों और सजावटी पेड़ और पौधे लगे हुए थे। मैदान में भी कही कही छोटे छोटे देवदार के पेड़ लगे थे जिसे करीने से कटकर कुछ को गोलाकार कुछ को शंकुआकर (conical) रूप दिया गया था। इन्हीं पेड़ों पर मोमबत्ती को जलाकर शीशे के चार दिवारी में बंद करके टंगा हुआ था। शीशे के कारण मोमबत्ती की प्रकाश और निखरकर वातावरण को रोशन कर रहा था। ऊपर खुला आसमान जहां टिमटिमाती तारे और नीचे पेड़ों पर टांगे कृत्रिम जुगनू ये सब मिलकर दृश्य को बडा ही लुभावना और रोमांचित कर देने वाला माहौल बना रहा था। इससे भी ज्यादा रोमांचित कर देने वाला दृश्य था बीच में लगा हुआ टेबल जिस पर जगनुओ को छोटे छोटे शीशे की पिटारी में बंद करके जगह जगह रखा हुआ था। जो टिमटिमा कर आसमान में चमकती तारों का एहसास दिला रहा था।


कमला की आंखों की भाषा पढ़कर रघु समझ गया कमला को ये बहुत पसन्द आया फिर भी वो कमला के मुंह से सुनना चाहता था इसलिए बोला…कमला कैसा लगा पसन्द आया की नहीं


आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
awesome update bhai
 
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कमला जब कमरे में जा रहीं थीं तब उसके चहरे से दुनियां भर की खुशियां जल प्रपात की तरह अविरल बहे जा रहीं थीं। एक एक कदम का फैसला तय करते हुए कमला रूम में पहुंची, रूम में पहुंचते ही "ahhhhh" एक गहरी स्वास छोड़ा, मानो वो मिलो दौड़कर आई हों, किंतु उसके चहरे से ऐसा नहीं लग रहा था। चहरे से तो सिर्फ़ कभी न खत्म होने वाली सुखद अनुभूति झलक रहीं थीं।

अंतर मन में उपज रही सुखद अनुभूति कमला पर इतना हावी थी कि बिना कुछ लिए बाथरूम में चली गईं। जिस्म में मौजूद एक एक वस्त्र इतनी शोखी से उतर रहीं थीं कि कोई पुरुष देख ले तो कमला की अदाओं को देखकर भाव विहीन होकर बस देखता ही रहें।

बाथरूम में एक से बढ़कर एक इत्र युक्त साबुन और शैंपू रखा था किंतु कमला निर्धारित नहीं कर पा रहीं थीं कि नहाने में किस साबुन या शैंपू का इस्तेमाल किया जाए। एक को हाथ में लेती "नहीं नहीं ये नहीं" फिर दूसरे को हाथ में लेती, न न बोलकर उसे भी वापस रख देती। कई बार उठाया रखा, उठाया रखा करने के बाद अंतः एक साबुन और शैंपो उसे पसन्द आया। उसी से नहाने लग गईं।

साबुन की खुशबू बदन के साथ साथ पूरे बाथरूम को भी महका दिया। बरहाल कुछ ही देर में नहाने की क्रिया सम्पन्न हुआ। बदन को पोछने के लिए तौलिया ढूंढा तो तौलिया कहीं मिली नहीं तब याद आया कि तौलिया तो लाई नहीं तो कमला बोलीं... अब क्या करूं तौलिया तो लाया नहीं क्या मैं ऐसे ही बहार चली जाऊं।

उसी वक्त कमरे में किसी के आने का आहट हुआ जिसे सुनकर कमला खुद से बोलीं... लगाता हैं कोई आया हैं कौन आया होगा….।

कमला ने सिर्फ इतना ही बोला था की आने वाले ने बोला... कमला तुम अभी तक बाथरूम में हों। तुम्हें तो अब तक तैयार हों जाना चाहिए था।

कमला…हां! बस मुझे थोडा वक्त दीजिए मैं जल्दी से तैयार हों जाऊंगी। क्या आप मुझे तौलिया लाकर देंगे मैं तौलिया लाना भूल गई।

रघु... तुम दरवाजा खोलो मैं अभी देता हूं।

इतना बोलकर रघु तौलिया लिया फ़िर दरवाजा थपथपाया कमला ने थोडा सा दरवाजा खोला और हाथ बढ़ाकर बोला... लाइए जल्दी से तौलिया दीजिए

बाथरूम का दरवाजा खोलने से साबुन की सुगंध बहार निकल आया। जिसे सूघते ही रघु के मुंह से "ahaaa" की एक ध्वनि निकला फिर तौलिया कमला के हाथ में देते हुए उसका हाथ थाम लिया। जिसका असर ये हुआ की दोनों का बदन झनझना उठा और कमला हाथ खींचते हुए बोली... क्या करते हो जी मेरा हाथ छोड़िए।

रघु मुस्कुराते हुए कमला का हाथ छोड़ दिया फ़िर कुछ पल बिता था की कमला तौलिया लपेट कर बहार निकल आई। बीबी का ऐसा अवतार देखकर रघु बस एक टक देखता रह गया। देखने का नजरिया क्या था कहना मुस्कील हैं हवस था की प्यार था या फ़िर कुछ ओर ये बस रघु ही जानें परंतु रघु के चहरे की मुस्कान बता रहा था कि रघु कमला के इस रूप से बहुत प्रभावित हुआ हैं।

पति का ऐसे भाव विहीन और मन्द्र मुग्ध होकर खुद को देखता देखकर कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…ऐसे क्या देख रहें हो जी मुझे देखना छोड़िए और जाकर जल्दी से नहा कर आइए हमे देर हों रहा हैं।

पत्नी का इतना बोलना था की रघु मंद मंद मुस्कान लवो पर लिए बाथरूम में घुस गया और कमला अलमारी के पास जाकर वस्त्र को उलट पुलट कर देखने लगीं की पहने तो क्या पहनें कमला के कपड़ो का तांता लगा हुआ था उनमें से कौन सा पहनें ये फैसला कमला नहीं कर पा रही थीं। बहरहाल कमला यूं ही वस्त्रों में उलझी रहीं और इतने वक्त में रघु भी बाथरूम से बहार आ गया। पत्नी को यूं वस्त्रों में उलझा देखकर रघु बोला... कमला ये क्या? तुम अभी तक तैयार नहीं हुई अभी तक वस्त्रों में उलझी हुई हों जल्दी करो हमे देर हों रहा हैं।

कमला…क्या करूं जी! पूरा अलमारी वस्त्रों से भरा पड़ा हैं मै फैसला नहीं कर पा रहीं हूं कौन सा पहनु एक हाथ में लेती हूं तो दूसरा पहनें का मन करता हैं दूसरा उठती हूं तो तीसरा पहनें का मन करता हैं। आप ही बता दीजिए न कौन सा पहनू।

रघु…कमला तुम इतनी खूबसूरत हों की जो भी पहनोगी तुम पर अच्छा लगेगा फ़िर भी आगर तुम मेरे पसन्द का पहना चहती हों तो तुम उसी गाउन को पहन लो जो तुमने सगाई वाले दिन पहना था। मैं एक बार फिर से तुम्हें उन्हीं कपड़ों में देखना चाहता हूं।

पति से इतना सुनने ही कमला के चहरे पर मुस्कान आ गई और कमला उस वस्त्र को बहार निकल लिया फ़िर रघु के लिए भी एक जोड़ी वस्त्र निकल कर रघु को दिया और खुद का वस्त्र लेकर बाथरूम में घुस गई। कुछ ही वक्त में दोनों तैयार होकर एक दूसरे का हाथ थामे कमरे से बहार निकलकर आए फ़िर बैठक में जाकर रघु सुरभि से बोला…मां हम लोग जा रहें हैं।

सुरभि... जा लेकिन संभाल कर जाना और बहू का ध्यान रखना ये जगह बहू के लिए नया है ओर हां मैंने कुछ लोगों को तुम्हारे साथ जानें को कह दिया हैं उनको भी साथ लेते जाना।

रघु... मां इसकी क्या जरूरत थीं?

सुरभि…सुरक्षा के लिए किसी का साथ रहना इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी हैं। तू जानता है तेरी शादी से पहले कितना कुछ हुआ था। इतनी अडंगा लगाने के बाद भी तेरी शादी हों गईं तो जाहिर सी बात हैं वो लोग खीसिया गए होंगे और एक खीसियाए हुए लोग कभी भी कुछ भी कर सकते हैं।

सुकन्या.. रघु जब दुश्मन अनजान हों तो हमारा फर्ज बनता हैं कि हम सतर्क रहें क्योंकि ऐसे लोग इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया हैं जो मौका मिलते हैं घात कर देते हैं। तू और बहू रात के वक्त बहार जा रहा हैं इसलिए हम चाहते है की कोई अनहोनी न हों तू बस चुप चाप दीदी ने जिनको तैयार रहने को कहा उन्हें साथ लेकर जा।

इतना कहने के बाद सुकन्या मन में बोली... रघु मैं जानता हूं इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया कौन कौन हैं पर मैं बता नहीं सकती, बताऊं भी तो कैसे बताऊं तेरे अपने ही अपनो की खुशियों को डसने में लगे हुए हैं।

मां और चाची की बाते सुनकर रघु को लगा उनका कहना भी सही है इसलिए न चाहते हुए भी रघु हां में सिर हिलाकर बहार को चल दिया, रघु की मानो दासा से सुरभि और सुकन्या भलीभाती परिचित थी। इन दोनों ने भी उम्र के इस पड़ाव से होकर गुजारे हैं शादी के शुरुवाती दिनों में शादीशुदा जोड़ा अपने एकांत पालो में किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नहीं करते परन्तु इस वक्त परिस्थिति बिल्कुल बदला हुआ हैं।

रघु बहार आकर देखा कुछ अंगरक्षक तैयार खड़े हैं तो रघु ने उन्हें कुछ समझाया फ़िर चल दिया। रघु खुद कार चला रहा था और बगल वाली सीट पर कमला बैठी थीं। उनके पीछे पीछे कुछ दूरी बनाकर अंगरक्षकों का जीप चल रहा था। जो मुस्तैदी से आस पास और सामने चल रहे रघु की कार पर नज़र बनाए हुए थे।

कार को रघु सामान्य रफ्तार से चला रहा था और बार बार कमला के चहरे को देख रहा था। जहां उसे सिर्फ़ कमला का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिख रहा था। बीबी को इतनी खुश देखकर रघु भी अंदर ही अंदर खुश हों रहा था। अचानक कमला रघु से बोला... हम कहा जा रहे हैं।

रघु... घर पर बोला तो था फिर भी पूछ रहीं हों।

कमला…बोला था पर हम जहां जा रहे है वहां का कुछ नाम तो होगा मैं बस नाम जानना चहती हूं।

रघु... नाम तो नहीं बताऊंगा पर इतना जान लो वो जगह यहां का सबसे मशहूर जगह हैं।

कमला….मुझे पसन्द नहीं आया तो पहले ही कह देती हू मै वहां एक पल नहीं रुकने वाली।

रघु...न पसन्द आए ऐसा हों ही नहीं सकता देख लेना तुम ख़ुद ही वाह वाह करने लग जाओगी।

कमला... ऐसा हैं तो देर क्यों कर रहें हों कार को थोडा तेज चलाओ और मुझे वहां जल्दी पहुचाओ मैं भी देखूं ऐसी कौन सी जगह हैं जिसकी तारीफ में मेरे पति कसीदे पढ़े जा रहें हैं।

रघु...जैसी आप की मर्जी मालकिन जी मैं तो आपका गुलाम हूं आपकी हुक्म मानना मेरा परम कर्तव्य हैं ही ही ही।

इतना कहकर रघु कार की रफ्तार थोडी ओर बडा देता हैं और कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…कौन गुलाम यह तो कोई गुलाम नहीं हैं यहां बस मेरा पति हैं। कहीं आपकी इशारा मेरे पति की ओर तो नहीं हैं ही ही ही।

इतना कहकर कमला खिलखिला कर हंस दिय। रघु बस मुस्कुराकर हा में सिर हिला दिया। कुछ ही वक्त में दोनों मसखरी करते हुए। माल रोड पर मौजूद एक भोजनालय के सामने पहुंच गए। हालाकि रात का वक्त था फिर भी लोगों की अजवाही हों रहा था। भोजनालय की भव्यता देखकर ही कहा जा सकता है की ये भोजनालय सिर्फ और सिर्फ रसूक दार लोगों के लिए बना हैं। कार के रूकते ही कुछ लोग दौड़कर आए और कार के पास खड़े हों गए। रघु के साथ आए अंगरक्षक भी तुरंत दौड़कर आए और रघु और कमला को घेरकर खड़े हों गए। उसी वक्त सूट बूट में एक बंदा आया और रघु को प्रणाम करते हुए बोला... प्रणाम युवराज आपका हमारे इस भोजनालय में स्वागत हैं।

रघु रूआव दार आवाज में बोला...जैसा मैंने आपसे कहा था बिल्कुल वैसी व्यवस्था हों गया न कुछ कामी रहीं तो सोच लेना।

"आपने खुद फोन करके कहा था तो कैसे कोई कमी रह सकता हैं। मैं दावे से कह सकता हूं आपने जैसा कहा था उससे बेहतर ही होगा। वैसे आपके साथ ये महिला कौन हैं जान सकता हूं।"

रघु...ये मेरी धर्मपत्नी कमला रघु प्रताप राना हैं। इन्हीं के लिए ही सारी व्यवस्था करवाया था मेरा पसन्द आना न आना व्यर्थ हैं इनको पसन्द आना चाहिए।

इतना बोलकर कमला का हाथ थामे अंदर को चल दिया और कमला बस रघु को देख रहा था साथ ही थोडी हैरान भी थीं। क्योंकि पहली बार रघु को किसी से रुआब दार आवाज में बात करते हुए देखा था और भोजनालय का बंदा चापलूसी करते हुए बोला... हमने इनके भी ख्याल का पूरा पूरा ध्यान रख हैं। मैं दावे से कह सकता हूं इन्हे तो हद से ज्यादा पसन्द आने वाली हैं।

बंदे की बात सुनकर कमला और रघु समझ गया मक्खन पेल के लगाया जा रहा है इसलिए रघु मन में बोला… बेटा जीतना मक्खन लगना है लगा ले आगर कमला को पसन्द नहीं आया तो तेरा ये भोजनालय सुबह होने से पहले धराशाई होकर मिटी में मिल जायेगा।

कमला मन में बोली... कितना चापलूस आदमी हैं खुद की बड़ाई ऐसे कर रहा हैं जैसे मेरी पसन्द की इन्हें पूरी जानकारी हैं।

कुछ कदम चलने के बाद बंदे ने एक और इशारा करते हुए बोला " इस ओर चलिए" बंदे के बताते ही कमला और रघु उस और चल दिया। एक गलियारे से होता हुआ सभी एक खुले मैदान में पहुंच गए वहा की सजावट देखते ही कमला अचंभित रह गई और रघु की और देखकर आंखो की भाषा में शुक्रिया अदा करने लग गईं। रघु के लिए बस इतना ही काफी था इसके आगे कुछ भी कहने की जरूरत ही नहीं पड़ा क्योंकि रघु ने जो भी किया सिर्फ कमला के खुशी के लिए ही किया था।

अब जरा हम भी देखे ऐसा किया था जिसे देखते ही कमला अचंभित हो गई। दरअसल ये एक पचास वर्ग मीटर का खुला मैदान था। जिसके चारों और सजावटी पेड़ और पौधे लगे हुए थे। मैदान में भी कही कही छोटे छोटे देवदार के पेड़ लगे थे जिसे करीने से कटकर कुछ को गोलाकार कुछ को शंकुआकर (conical) रूप दिया गया था। इन्हीं पेड़ों पर मोमबत्ती को जलाकर शीशे के चार दिवारी में बंद करके टंगा हुआ था। शीशे के कारण मोमबत्ती की प्रकाश और निखरकर वातावरण को रोशन कर रहा था। ऊपर खुला आसमान जहां टिमटिमाती तारे और नीचे पेड़ों पर टांगे कृत्रिम जुगनू ये सब मिलकर दृश्य को बडा ही लुभावना और रोमांचित कर देने वाला माहौल बना रहा था। इससे भी ज्यादा रोमांचित कर देने वाला दृश्य था बीच में लगा हुआ टेबल जिस पर जगनुओ को छोटे छोटे शीशे की पिटारी में बंद करके जगह जगह रखा हुआ था। जो टिमटिमा कर आसमान में चमकती तारों का एहसास दिला रहा था।


कमला की आंखों की भाषा पढ़कर रघु समझ गया कमला को ये बहुत पसन्द आया फिर भी वो कमला के मुंह से सुनना चाहता था इसलिए बोला…कमला कैसा लगा पसन्द आया की नहीं


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कमला जब कमरे में जा रहीं थीं तब उसके चहरे से दुनियां भर की खुशियां जल प्रपात की तरह अविरल बहे जा रहीं थीं। एक एक कदम का फैसला तय करते हुए कमला रूम में पहुंची, रूम में पहुंचते ही "ahhhhh" एक गहरी स्वास छोड़ा, मानो वो मिलो दौड़कर आई हों, किंतु उसके चहरे से ऐसा नहीं लग रहा था। चहरे से तो सिर्फ़ कभी न खत्म होने वाली सुखद अनुभूति झलक रहीं थीं।

अंतर मन में उपज रही सुखद अनुभूति कमला पर इतना हावी थी कि बिना कुछ लिए बाथरूम में चली गईं। जिस्म में मौजूद एक एक वस्त्र इतनी शोखी से उतर रहीं थीं कि कोई पुरुष देख ले तो कमला की अदाओं को देखकर भाव विहीन होकर बस देखता ही रहें।

बाथरूम में एक से बढ़कर एक इत्र युक्त साबुन और शैंपू रखा था किंतु कमला निर्धारित नहीं कर पा रहीं थीं कि नहाने में किस साबुन या शैंपू का इस्तेमाल किया जाए। एक को हाथ में लेती "नहीं नहीं ये नहीं" फिर दूसरे को हाथ में लेती, न न बोलकर उसे भी वापस रख देती। कई बार उठाया रखा, उठाया रखा करने के बाद अंतः एक साबुन और शैंपो उसे पसन्द आया। उसी से नहाने लग गईं।

साबुन की खुशबू बदन के साथ साथ पूरे बाथरूम को भी महका दिया। बरहाल कुछ ही देर में नहाने की क्रिया सम्पन्न हुआ। बदन को पोछने के लिए तौलिया ढूंढा तो तौलिया कहीं मिली नहीं तब याद आया कि तौलिया तो लाई नहीं तो कमला बोलीं... अब क्या करूं तौलिया तो लाया नहीं क्या मैं ऐसे ही बहार चली जाऊं।

उसी वक्त कमरे में किसी के आने का आहट हुआ जिसे सुनकर कमला खुद से बोलीं... लगाता हैं कोई आया हैं कौन आया होगा….।

कमला ने सिर्फ इतना ही बोला था की आने वाले ने बोला... कमला तुम अभी तक बाथरूम में हों। तुम्हें तो अब तक तैयार हों जाना चाहिए था।

कमला…हां! बस मुझे थोडा वक्त दीजिए मैं जल्दी से तैयार हों जाऊंगी। क्या आप मुझे तौलिया लाकर देंगे मैं तौलिया लाना भूल गई।

रघु... तुम दरवाजा खोलो मैं अभी देता हूं।

इतना बोलकर रघु तौलिया लिया फ़िर दरवाजा थपथपाया कमला ने थोडा सा दरवाजा खोला और हाथ बढ़ाकर बोला... लाइए जल्दी से तौलिया दीजिए

बाथरूम का दरवाजा खोलने से साबुन की सुगंध बहार निकल आया। जिसे सूघते ही रघु के मुंह से "ahaaa" की एक ध्वनि निकला फिर तौलिया कमला के हाथ में देते हुए उसका हाथ थाम लिया। जिसका असर ये हुआ की दोनों का बदन झनझना उठा और कमला हाथ खींचते हुए बोली... क्या करते हो जी मेरा हाथ छोड़िए।

रघु मुस्कुराते हुए कमला का हाथ छोड़ दिया फ़िर कुछ पल बिता था की कमला तौलिया लपेट कर बहार निकल आई। बीबी का ऐसा अवतार देखकर रघु बस एक टक देखता रह गया। देखने का नजरिया क्या था कहना मुस्कील हैं हवस था की प्यार था या फ़िर कुछ ओर ये बस रघु ही जानें परंतु रघु के चहरे की मुस्कान बता रहा था कि रघु कमला के इस रूप से बहुत प्रभावित हुआ हैं।

पति का ऐसे भाव विहीन और मन्द्र मुग्ध होकर खुद को देखता देखकर कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…ऐसे क्या देख रहें हो जी मुझे देखना छोड़िए और जाकर जल्दी से नहा कर आइए हमे देर हों रहा हैं।

पत्नी का इतना बोलना था की रघु मंद मंद मुस्कान लवो पर लिए बाथरूम में घुस गया और कमला अलमारी के पास जाकर वस्त्र को उलट पुलट कर देखने लगीं की पहने तो क्या पहनें कमला के कपड़ो का तांता लगा हुआ था उनमें से कौन सा पहनें ये फैसला कमला नहीं कर पा रही थीं। बहरहाल कमला यूं ही वस्त्रों में उलझी रहीं और इतने वक्त में रघु भी बाथरूम से बहार आ गया। पत्नी को यूं वस्त्रों में उलझा देखकर रघु बोला... कमला ये क्या? तुम अभी तक तैयार नहीं हुई अभी तक वस्त्रों में उलझी हुई हों जल्दी करो हमे देर हों रहा हैं।

कमला…क्या करूं जी! पूरा अलमारी वस्त्रों से भरा पड़ा हैं मै फैसला नहीं कर पा रहीं हूं कौन सा पहनु एक हाथ में लेती हूं तो दूसरा पहनें का मन करता हैं दूसरा उठती हूं तो तीसरा पहनें का मन करता हैं। आप ही बता दीजिए न कौन सा पहनू।

रघु…कमला तुम इतनी खूबसूरत हों की जो भी पहनोगी तुम पर अच्छा लगेगा फ़िर भी आगर तुम मेरे पसन्द का पहना चहती हों तो तुम उसी गाउन को पहन लो जो तुमने सगाई वाले दिन पहना था। मैं एक बार फिर से तुम्हें उन्हीं कपड़ों में देखना चाहता हूं।

पति से इतना सुनने ही कमला के चहरे पर मुस्कान आ गई और कमला उस वस्त्र को बहार निकल लिया फ़िर रघु के लिए भी एक जोड़ी वस्त्र निकल कर रघु को दिया और खुद का वस्त्र लेकर बाथरूम में घुस गई। कुछ ही वक्त में दोनों तैयार होकर एक दूसरे का हाथ थामे कमरे से बहार निकलकर आए फ़िर बैठक में जाकर रघु सुरभि से बोला…मां हम लोग जा रहें हैं।

सुरभि... जा लेकिन संभाल कर जाना और बहू का ध्यान रखना ये जगह बहू के लिए नया है ओर हां मैंने कुछ लोगों को तुम्हारे साथ जानें को कह दिया हैं उनको भी साथ लेते जाना।

रघु... मां इसकी क्या जरूरत थीं?

सुरभि…सुरक्षा के लिए किसी का साथ रहना इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी हैं। तू जानता है तेरी शादी से पहले कितना कुछ हुआ था। इतनी अडंगा लगाने के बाद भी तेरी शादी हों गईं तो जाहिर सी बात हैं वो लोग खीसिया गए होंगे और एक खीसियाए हुए लोग कभी भी कुछ भी कर सकते हैं।

सुकन्या.. रघु जब दुश्मन अनजान हों तो हमारा फर्ज बनता हैं कि हम सतर्क रहें क्योंकि ऐसे लोग इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया हैं जो मौका मिलते हैं घात कर देते हैं। तू और बहू रात के वक्त बहार जा रहा हैं इसलिए हम चाहते है की कोई अनहोनी न हों तू बस चुप चाप दीदी ने जिनको तैयार रहने को कहा उन्हें साथ लेकर जा।

इतना कहने के बाद सुकन्या मन में बोली... रघु मैं जानता हूं इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया कौन कौन हैं पर मैं बता नहीं सकती, बताऊं भी तो कैसे बताऊं तेरे अपने ही अपनो की खुशियों को डसने में लगे हुए हैं।

मां और चाची की बाते सुनकर रघु को लगा उनका कहना भी सही है इसलिए न चाहते हुए भी रघु हां में सिर हिलाकर बहार को चल दिया, रघु की मानो दासा से सुरभि और सुकन्या भलीभाती परिचित थी। इन दोनों ने भी उम्र के इस पड़ाव से होकर गुजारे हैं शादी के शुरुवाती दिनों में शादीशुदा जोड़ा अपने एकांत पालो में किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नहीं करते परन्तु इस वक्त परिस्थिति बिल्कुल बदला हुआ हैं।

रघु बहार आकर देखा कुछ अंगरक्षक तैयार खड़े हैं तो रघु ने उन्हें कुछ समझाया फ़िर चल दिया। रघु खुद कार चला रहा था और बगल वाली सीट पर कमला बैठी थीं। उनके पीछे पीछे कुछ दूरी बनाकर अंगरक्षकों का जीप चल रहा था। जो मुस्तैदी से आस पास और सामने चल रहे रघु की कार पर नज़र बनाए हुए थे।

कार को रघु सामान्य रफ्तार से चला रहा था और बार बार कमला के चहरे को देख रहा था। जहां उसे सिर्फ़ कमला का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिख रहा था। बीबी को इतनी खुश देखकर रघु भी अंदर ही अंदर खुश हों रहा था। अचानक कमला रघु से बोला... हम कहा जा रहे हैं।

रघु... घर पर बोला तो था फिर भी पूछ रहीं हों।

कमला…बोला था पर हम जहां जा रहे है वहां का कुछ नाम तो होगा मैं बस नाम जानना चहती हूं।

रघु... नाम तो नहीं बताऊंगा पर इतना जान लो वो जगह यहां का सबसे मशहूर जगह हैं।

कमला….मुझे पसन्द नहीं आया तो पहले ही कह देती हू मै वहां एक पल नहीं रुकने वाली।

रघु...न पसन्द आए ऐसा हों ही नहीं सकता देख लेना तुम ख़ुद ही वाह वाह करने लग जाओगी।

कमला... ऐसा हैं तो देर क्यों कर रहें हों कार को थोडा तेज चलाओ और मुझे वहां जल्दी पहुचाओ मैं भी देखूं ऐसी कौन सी जगह हैं जिसकी तारीफ में मेरे पति कसीदे पढ़े जा रहें हैं।

रघु...जैसी आप की मर्जी मालकिन जी मैं तो आपका गुलाम हूं आपकी हुक्म मानना मेरा परम कर्तव्य हैं ही ही ही।

इतना कहकर रघु कार की रफ्तार थोडी ओर बडा देता हैं और कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…कौन गुलाम यह तो कोई गुलाम नहीं हैं यहां बस मेरा पति हैं। कहीं आपकी इशारा मेरे पति की ओर तो नहीं हैं ही ही ही।

इतना कहकर कमला खिलखिला कर हंस दिय। रघु बस मुस्कुराकर हा में सिर हिला दिया। कुछ ही वक्त में दोनों मसखरी करते हुए। माल रोड पर मौजूद एक भोजनालय के सामने पहुंच गए। हालाकि रात का वक्त था फिर भी लोगों की अजवाही हों रहा था। भोजनालय की भव्यता देखकर ही कहा जा सकता है की ये भोजनालय सिर्फ और सिर्फ रसूक दार लोगों के लिए बना हैं। कार के रूकते ही कुछ लोग दौड़कर आए और कार के पास खड़े हों गए। रघु के साथ आए अंगरक्षक भी तुरंत दौड़कर आए और रघु और कमला को घेरकर खड़े हों गए। उसी वक्त सूट बूट में एक बंदा आया और रघु को प्रणाम करते हुए बोला... प्रणाम युवराज आपका हमारे इस भोजनालय में स्वागत हैं।

रघु रूआव दार आवाज में बोला...जैसा मैंने आपसे कहा था बिल्कुल वैसी व्यवस्था हों गया न कुछ कामी रहीं तो सोच लेना।

"आपने खुद फोन करके कहा था तो कैसे कोई कमी रह सकता हैं। मैं दावे से कह सकता हूं आपने जैसा कहा था उससे बेहतर ही होगा। वैसे आपके साथ ये महिला कौन हैं जान सकता हूं।"

रघु...ये मेरी धर्मपत्नी कमला रघु प्रताप राना हैं। इन्हीं के लिए ही सारी व्यवस्था करवाया था मेरा पसन्द आना न आना व्यर्थ हैं इनको पसन्द आना चाहिए।

इतना बोलकर कमला का हाथ थामे अंदर को चल दिया और कमला बस रघु को देख रहा था साथ ही थोडी हैरान भी थीं। क्योंकि पहली बार रघु को किसी से रुआब दार आवाज में बात करते हुए देखा था और भोजनालय का बंदा चापलूसी करते हुए बोला... हमने इनके भी ख्याल का पूरा पूरा ध्यान रख हैं। मैं दावे से कह सकता हूं इन्हे तो हद से ज्यादा पसन्द आने वाली हैं।

बंदे की बात सुनकर कमला और रघु समझ गया मक्खन पेल के लगाया जा रहा है इसलिए रघु मन में बोला… बेटा जीतना मक्खन लगना है लगा ले आगर कमला को पसन्द नहीं आया तो तेरा ये भोजनालय सुबह होने से पहले धराशाई होकर मिटी में मिल जायेगा।

कमला मन में बोली... कितना चापलूस आदमी हैं खुद की बड़ाई ऐसे कर रहा हैं जैसे मेरी पसन्द की इन्हें पूरी जानकारी हैं।

कुछ कदम चलने के बाद बंदे ने एक और इशारा करते हुए बोला " इस ओर चलिए" बंदे के बताते ही कमला और रघु उस और चल दिया। एक गलियारे से होता हुआ सभी एक खुले मैदान में पहुंच गए वहा की सजावट देखते ही कमला अचंभित रह गई और रघु की और देखकर आंखो की भाषा में शुक्रिया अदा करने लग गईं। रघु के लिए बस इतना ही काफी था इसके आगे कुछ भी कहने की जरूरत ही नहीं पड़ा क्योंकि रघु ने जो भी किया सिर्फ कमला के खुशी के लिए ही किया था।

अब जरा हम भी देखे ऐसा किया था जिसे देखते ही कमला अचंभित हो गई। दरअसल ये एक पचास वर्ग मीटर का खुला मैदान था। जिसके चारों और सजावटी पेड़ और पौधे लगे हुए थे। मैदान में भी कही कही छोटे छोटे देवदार के पेड़ लगे थे जिसे करीने से कटकर कुछ को गोलाकार कुछ को शंकुआकर (conical) रूप दिया गया था। इन्हीं पेड़ों पर मोमबत्ती को जलाकर शीशे के चार दिवारी में बंद करके टंगा हुआ था। शीशे के कारण मोमबत्ती की प्रकाश और निखरकर वातावरण को रोशन कर रहा था। ऊपर खुला आसमान जहां टिमटिमाती तारे और नीचे पेड़ों पर टांगे कृत्रिम जुगनू ये सब मिलकर दृश्य को बडा ही लुभावना और रोमांचित कर देने वाला माहौल बना रहा था। इससे भी ज्यादा रोमांचित कर देने वाला दृश्य था बीच में लगा हुआ टेबल जिस पर जगनुओ को छोटे छोटे शीशे की पिटारी में बंद करके जगह जगह रखा हुआ था। जो टिमटिमा कर आसमान में चमकती तारों का एहसास दिला रहा था।


कमला की आंखों की भाषा पढ़कर रघु समझ गया कमला को ये बहुत पसन्द आया फिर भी वो कमला के मुंह से सुनना चाहता था इसलिए बोला…कमला कैसा लगा पसन्द आया की नहीं


आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
अति सुन्दर... :clapclap:
कमला के यौवन से आती मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुशबू का एहसास बहुत ही कमाल का था.....शब्दो में वर्णित उस एहसास ने दिल को छू लिया है...
सुरभि का रघु और कमला के लिए सुरक्षा का इंतज़ाम करना एक दम सही निर्णय है...अक्सर दुश्मन तभी हानि पहुंचाने की कोशिश करते है जब हम अपनी जिंदगी के सबसे अनमोल पल जीने का मजा ले रहे होते है....
तो आखिर रघु और कमला अपने गंतव्य तक पहुंच ही गए.... वैसे मानना पड़ेगा रघु ने इंतजामात बहुत ही बेहतरीन किए है....देखते है इनका शादी के बाद पहला प्राईवेट डिनर केसा रहेगा....
शब्दों का चयन बहुत ही उम्दा तरीके से किया गया है....शब्दो की सुंदरता कहानी के हर सुंदर दृश्य को हमारे सामने जीवित महसूस कराने लगती है....
अगले भाग का इंतजार रहेगा भाई।
 
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इस दृश्य को देखकर कमला पहले से ही हद से ज्यादा खुश थीं। बस बोला कुछ नहीं पर पति के पूछते ही कमला बोल पड़ीं... मेरे जीवन में पहली बार ऐसा नजारा देख रहीं हूं मैंने कभी सोचा भी नहीं था की ऐसी जगह बैठकर खुले आसमान के नीचे भोजन करूंगी, मैं बता नहीं सकती मैं कितना खुश हूं, बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरे लिए ये सब किया।

रघु... कमला ये मेरा फर्ज था आखिर मैं तुम्हरा पति हूं तुम्हारे खुशियों का ख्याल रखना मेरा परम कर्तव्य हैं। मैंने जो भी किया तुम्हारे खुशी के लिए किया तुम्हारे खुशी से बढ़कर मुझे कुछ और नहीं चाहिए जो तुम्हारे चेहरे से झलक रहा हैं।

"युवराज मैंने कहा था न की आप को बहुत पसन्द आयेगा साथ ही आपके पत्नि को भी अब आप बताइए मेरा दावा सही निकला की नहीं।"

रघु…हां आपने मेरे कहे मुताबिक से ज्यादा कर दिया इसके लिया आपको बक्शिस भी दूंगा।

बक्शीस देने की बात सुनकर भोजनालय का बंदा खुश होते हुए बोला... युवराज ये तो कुछ भी नहीं आप एक बार बीच में रखी मेज तक तो पहुचिए आप और आपकी पत्नी और ज्यादा खुश हों जायेगे।

रघु... ऐसा हैं तो चलो फिर देखते हैं मेज पर कैसा कारीगरी कर रखा हैं पसन्द आया तो तुम्हारी बक्शीश दुगुना कर दूंगा।

बक्शीश दुगुना करने की बात सुनकर भोजनालय का बंदा मन ही मन खुश हों गया और रघु कमला का हाथ थामे मेज की और चल दिया। जैसे जैसे दोनों आगे बढ़ते जा रहें थे। मेज पर शीशे की पिटारी में बंद जगनूओ को टिमटिमाते देखकर दोनों और ज्यादा अचंभित होते जा रहें थे। कमला अचंभित होते हुए बोली... मेज पर क्या रखा हैं जो तारों की तरह टिमटिमा रहा हैं।

"मोहतरमा आप मेज तक तो पहुंचो आप खुद ही जान जाओगे वहा क्या रखा हैं।"

सभी बातों बातों में मेज तक पहुंच गए फ़िर कमला और रघु मेज पर रखे शीशे की पिटारी को ध्यान से देखने लग गए। उन्हे अंदर चलती फिरती जीव दिखाई दिया जिसे देखकर कमला बोली...इसके अंदर तो जिंदा जीव भरा हैं। देखने से ऐसा लग रहा हैं जैसे जुगनू हों।

रघु भी देखकर समझ गया कि शीशे में क्या बंद हैं? बस फिर किया रघु का पारा चढ़ गया और गुर्राते हुए बोला...ये क्या तुमने बेजुबान प्राणी को सिर्फ कुछ पैसे ऐठने के लिए इतनी सजा दे रहें हों। आप ने सब सही किया पर इन बेजुबान प्राणियों को प्रताड़ित करके सब बेकार कर दिया।

रघु को गुस्से में गरजते हुए देखकर भोजनालय का बंदा समझ गया मामला बिगड़ चुका हैं आगर अभी संभाला नहीं गया तो मामला और बिगड़ेगा साथ ही बक्शीश भी हाथ से निकल जायेगा। इसलिए बोला... युवराज यहां आने वाले सभी गणमान्य लोग इसकी मांग रखते हैं हमने सोचा आपको भी पसन्द आयेगा इसलिए बिना आपसे पूछे हमने रख दिया इसके लिए हम आपसे माफी मांगते हैं।

रघु... मिस्टर सभी एक जैसे नहीं होते और मुझे ये कतई पसन्द नहीं कि कोई बेजुबान जीव को इस तरह प्रताड़ित करे इसलिए आप जितनी जल्दी हो सकें इन जीवों को यहां से हटाओ और इन्हें आजाद कर दो।

जहां रघु भोजनालय के बंदे को डटने में लगा हुआ था वहीं कमला एक एक पिटारी को उठकर उनमें मौजूद सभी जगनुओं को आजाद करने में लगीं हुई थी। पिटारी खोलते ही सभी जुगनू एक साथ बाहर को निकलकर आसमान में उड़ जाते एक आद जो रह जाता उन्हें पिटारी उल्टी करके निकल देता। अंतिम पिटारी को जब हाथ में लिया तब भोजनालय के बंदे को डाट लगाकर रघु कमला की और मुड़ा तो कमला को जगनूओं को आजाद करते देखकर रघु मन ही मन खुश हों गया।


अंतिम पिटारी से जगनुओ को आजाद करते समय सभी जुगनू पिटारी से निकल गया बस एक जुगनू पिटारी में रह गया था। उसे निकलने के लिए कमला ने पिटारी को उल्टा किया तो जुगनू पिटारी से निकल कर ऊपर को उड़ा फिर अचानक आकार कमला के गाल पर बैठ गया जिसे कमला को सुरसुरी होने लगीं और कमला खिलखिला कर हंस दिया हंसते हुए कमला बोलीं…अरे मैंने तुम्हें आजाद कर दिया अब तुम जाओ मेरे गाल पर क्यों बैठ रहें हों।

कमला की हरकते देखकर रघु के साथ साथ भोजनालय का बंदा भी मुस्कुरा दिया। दो तीन सेकेंड कमला के गाल पर बैठें रहने के बाद जुगनू उड़ान भरा और दूर आसमान में उड़ता चला गया और कमला देखते हुए बोली... कितना अच्छा लग रहा हैं जैसे टिमटिमाती हुई कोई तारा उड़ता हुआ जा रहा हों।

रघु… ये जुगनू खुले आसमान में उड़ते हुए अच्छा लगाता हैं फिर भी कुछ लोग चांद पैसे कमाने के लिए इन्हें पिटारी में बंद कर देते हैं।

रघु ने अंत की बाते भोजनालय के बंदे की और देखकर तंज कसते हुए बोला तो वो बंदा सिर झुकाकर बोला…युवराज हम शक से ऐसा नहीं करते हैं हमसे मांग किया जाता हैं इसलिए मजबूरन हमे ऐसा करना पड़ता हैं।

पहले से ही रघु गुस्से में था कमला को खिलखिलाते देखकर जीतना कम हुआ था बंदे की बात सुनकर उसका पारा फ़िर से चढ़ गया और पूरे जोर से दहाड़ते हुए रघु बोला…मजबूरी को कारण बताकर अपनी गलातीयो को छुपाने की कोशिश न करें तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ चांद पैसे कमाने के लिए ऐसा करते हों आगर तुम्हे पैसे कमाना न होता तो ऐसे वाहियात मांग रखने वाले ग्राहकों को साफ शब्दों में माना कर देते पर तुम ऐसा नहीं करते हो।

रघु की आवाज़ इतनी तेज़ और गर्जना युक्त था की उस बंदे के साथ कमला भी डर गई और कमला ने तुरंत रघु का हाथ कसके थाम लिया। हाथ पर स्पर्श होते ही रघु कमला की ओर मुड़ा कमला का भय से परिपूर्ण चेहरा देखकर रघु समझ गया की उसके तेज आवाज में बोलने से कमला डर गईं हैं इसलिए एक गहरी स्वास लेकर खुद को शांत किया फ़िर नम्र आवाज में बोला... जाओ जल्दी से इस मेज पर रोशनी की व्यवस्था कारो और हमारे भोजन की व्यवस्था भी करो।

रघु का इतना बोलना था की वो बंदा सरपट वहां से दौड़ लगा दिया। बंदे के जाते ही रघु कमला के हाथ पर दूसरा हाथ रख कर बोला... कमला मुझे माफ करना मेरे कारण तुम डर गई पर मैं क्या करूं मैं इन बेजुबान प्राणियों को ऐसे पडताडित होते हुए नहीं देख सकता जब कभी ऐसा कुछ देखता हू तो मुझे इतना गुस्सा आता है की मैं ख़ुद पर से काबू खो देता हूं।

रघु के इतना बोलते ही कमला मंद मंद मुस्कुरा दिया फिर बोला... ऐसी वाहियात कृत्य को देखकर मुझे भी बहुत गुस्सा आता हैं और मैं भी आपा खो देती हू पर आज न जानें कैसे मैंने खुद पर काबू रख लिया। वैसे अच्छा ही हुआ वरना मुझे कैसे पाता चलता की सिर्फ गुस्से वाली मैं नहीं आप भी हों। हमे मिलने वाले ने हमारे एक एक गुणों का मिलान करके ही हमें एक दूसरे से मिलवाया हैं ही ही ही।

इतना बोलकर कमला ही ही ही करके हंसने लग गई तो रघु भी हंसते हुए बोला... हां वो कहते है न जोड़ियां ऊपर से बनकर आता हैं। मेरा तुम्हारा पहले से ही मिलना तय था पर तुम बैठी थीं कोलकात्ता मैं यहां ओर मेरे मां बाप यहां लड़की ढूंढ रहे थे।

कमला... आप मेरी बातों की खिली उड़ा रहें हों ऐसा करके आप बिलकुल ठीक नहीं कर रहें हों।

इतना बोलकर कमला बनावटी गुस्सा दिखाने लग गई तो रघु बोला…. अरे अरे नाराज क्यों होती हों तुम्हारे नाक पर गुस्सा बिल्कुल भी ठीक नहीं लगाता और जो मैंने कहा वो सच ही कहा तुम जानती हो शादी से पहले क्या हुआ था फिर भी हमारी शादी हुआ न अब तुम ही कहो हमारी जोड़ी पहले से न बना होता तो क्या हमारी शादी हों पाता जबकि तुमसे पहले कई लड़की के मां बाप ने उन्हीं कारणों को सच मानकर रिश्ता करने से माना कर दिया।

रघु को कहें पर विचार करने पर कमला को भी रघु का कहा सच लगा। इसलिए कमला चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुरा दिया तभी पीछे से एक शक्श आकर बोला... आप का भोजन लगा दिया है आकर भोजन कर लीजिए।

दरअसल रघु और कमला बात करते हुए मेज से थोड़ा दूर निकाल आए थे तो शक्श के कहते ही दोनों मेज की और चल दिया। कुछ कदम चलने से दोनों मेज के पास पहुंच गए। पहल करते हुए रघु ने एक कुर्सी खिसका कर कमला को बैठने के लिए कहा। कमला के बैठते ही रघु सामने के कुर्सी पर बैठ गया। तो कमला बोलीं... आप इतने दूर क्यों बैठ रहें हो मेरे पास आकर बैठो।

इतना सुनते ही रघु कमला के बगल से सटकर बैठ गया और वेटर ने मेज पर रखी खानों पर से ढक्कन हटा दिया। तरह तरह के व्यंजन बहुत अधिक मात्रा में था जिसे देखकर कमला बोलीं... ये तो बहुत ज्यादा हैं इतना सारा भोजन हम नहीं खा पाएंगे।

रघु... हां कमला तुमने सही कहा फिर वेटर से बोला... सुनो भाई हमें जितनी जरूरत हैं उतना खाना यहां रखकर बाकी का भोजन वापस ले जाओ और सुनो इन भोजनों को वापस लेजाकर दूसरे ग्रहाकों को मत दे देना। इन भोजनों को बांधकर जरूरत मंदों को दे देना क्योंकि इन सभी भोजनों का बिल मैं पहले ही भर चुका हूं।

"जी बिलकुल अपने जैसा कहा वैसा ही होगा" इतना बोलकर वेटर दो लोग जीतना खा सकते हैं उतना भोजन रखकर बाकी का भोजन वापस भिजवा दिया फिर रघु को कुछ याद आया तो बगल में खड़े एक और वेटर से बोला... भाई बहार मेरे साथ आए कुछ लोग खड़े हैं जाकर उन्हें भी भोजन करने को कह दो उनसे कहना उनको जो पसन्द आए खां ले उनका बिल मैं जाते वक्त भर दूंगा।

इतना सुनकर वो वेटर चला गया। रघु और कमला बातों में मशगूल होकर भोजन करने लग गए। वेटर बहार जाकर बहार खड़े अंगरक्षकों को रघु का संदेश दिया तो वो भी अंदर आकर एक जगह बैठ गए और मन पसंद भोजन मंगवा कर खाने लग गए।

अब हम महल में वापस चलते हैं। रघु और कमला के महल से आने के कुछ देर बाद ही राजेंद्र और रावण महल लौट आए। दोनों के आते ही सुरभि ने रतन को भोजन लगाने को कहकर कमरे में गई। राजेंद्र इस वक्त बाथरूम में हाथ मुंह धो रहा था। कुछ ही पल में राजेंद्र बाथरूम से बहार आया तब सुरभि बोलीं... आज का दिन आपका कैसा रहा।

राजेंद्र... ओर दिनों की तरह भाग दौड़ वाला रहा इतवार की पार्टी की तैयारी करते करते दिन कब बीत गया पाता ही नहीं चला।

सुरभि... हां ये तो होना ही था इतवार आने में दिन ही कितने बचे है चार दिन बाद महल में पार्टी होना हैं तो तैयारी भी समय से पूरा होना चाहिए। अच्छा सुनो न मुझे आपसे कुछ कहना हैं।

राजेंद्र... हां तो कहो न मैंने तुम्हें बोलने से कब रोका हैं।

सुरभि... मुझे लगाता हैं हम बहू के मां बाप के आने की बात उससे छुपाकर सही नहीं कर रहें हैं क्योंकि आज बहु अपने मां को याद करके रो दिया था।

राजेंद्र... मां बाप से हमेशा के लिए दूर होना कोई आसान बात नहीं हैं। जब बहू रो रहीं थीं तब तुम लोग क्या कर रहें थे मैंने तुमसे कहा था बहु को एक पल भी अकेला मत छोड़ना फिर भी….।

राजेंद्र की बातो को बीच में कटकर सुरभि बोलीं... हम बहू को एक पल भी अकेला नहीं छोड़ते वो तो बातों बातों में मां का जिक्र आया तो बहु रो दिया था।

राजेंद्र... हां ये तो होगा ही इतनी जल्दी मां बाप के साथ बिताए पलों को कैसे भुल सकती हैं। सुरभि मैं सोच रहा था जब समधी समधन जी आएंगे तो उनके साथ बहू को कुछ दिनों के लिए भेज दूं तो कैसा रहेगा।

सुरभि... हां मैं भी ऐसा ही सोच रहीं थीं इसलिए जब बहु रो रहीं थी तब मैंने बोल दिया कि पार्टी के बाद कुछ दिनों के लिए बहू को मायके भेज दूंगी।

राजेंद्र... बातों बातों में कहीं तुमने बता तो नही दिया कि बहू के मां बाप आ रहें हैं।

सुरभि... जी नहीं?

उसी वक्त रतन द्वार पर आकर बोला "रानी मां राजा जी भोजन लगा दिया हैं ठंडा होने से पहले आकर भोजन कर लीजिए"

सुरभि... दादाभाई आप चलिए हम आते हैं। फिर राजेंद्र से बोला... चलिए पहले भोजन कर लीजिए बाकी बाते बाद में करेंगे।

राजेंद्र... जैसा रानी साहिबा हुकम करें ही ही ही।

सुरभि... आप भी न अब चलिए

इतना बोलकर दोनों साथ साथ हाथ में हाथ डाले चल दिया और डायनिंग मेज पर आकर बैठ गया। कोई नहीं आया था तो राजेंद्र तेज आवाज में बोला...अरे भाई सब कहा रह गए। रावण, पुष्प,अपश्यु, सुकन्या, रघु, बहू जल्दी आओ बहुत जोरों की भूख लगा हैं।

राजेंद्र के बुलाने पर भी कोई नहीं आया तो राजेंद्र मन में बोला... अरे ये किया कोई नहीं आया लगाता है शेर वाली दहाड़ लगाना पड़ेगा।

मन में इतना बोलकर राजेंद्र दहाड़ते हुए बोला... रावण, सुकन्या, पुष्पा अपश्यु, रघु और बहू जल्दी आओ देर हुआ तो किसी को भोजन नहीं मिलेगा।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत शुक्रिया 🙏🙏
 
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कमला के यौवन से आती मंत्रमुग्ध कर देने वाली खुशबू का एहसास बहुत ही कमाल का था.....शब्दो में वर्णित उस एहसास ने दिल को छू लिया है...
सुरभि का रघु और कमला के लिए सुरक्षा का इंतज़ाम करना एक दम सही निर्णय है...अक्सर दुश्मन तभी हानि पहुंचाने की कोशिश करते है जब हम अपनी जिंदगी के सबसे अनमोल पल जीने का मजा ले रहे होते है....
तो आखिर रघु और कमला अपने गंतव्य तक पहुंच ही गए.... वैसे मानना पड़ेगा रघु ने इंतजामात बहुत ही बेहतरीन किए है....देखते है इनका शादी के बाद पहला प्राईवेट डिनर केसा रहेगा....
शब्दों का चयन बहुत ही उम्दा तरीके से किया गया है....शब्दो की सुंदरता कहानी के हर सुंदर दृश्य को हमारे सामने जीवित महसूस कराने लगती है....
अगले भाग का इंतजार रहेगा भाई।
@Akash⚜️ ji is khubsurat revo ke liye bahut bahut shukriya

Raghu ka intezam acha to hona hi tha akhir apni khunsurat bibi ke liye kar raha tha to intezam bhi utna hi khubsurat aur manmohak hona chahiye tha.
 
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इस दृश्य को देखकर कमला पहले से ही हद से ज्यादा खुश थीं। बस बोला कुछ नहीं पर पति के पूछते ही कमला बोल पड़ीं... मेरे जीवन में पहली बार ऐसा नजारा देख रहीं हूं मैंने कभी सोचा भी नहीं था की ऐसी जगह बैठकर खुले आसमान के नीचे भोजन करूंगी, मैं बता नहीं सकती मैं कितना खुश हूं, बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरे लिए ये सब किया।

रघु... कमला ये मेरा फर्ज था आखिर मैं तुम्हरा पति हूं तुम्हारे खुशियों का ख्याल रखना मेरा परम कर्तव्य हैं। मैंने जो भी किया तुम्हारे खुशी के लिए किया तुम्हारे खुशी से बढ़कर मुझे कुछ और नहीं चाहिए जो तुम्हारे चेहरे से झलक रहा हैं।

"युवराज मैंने कहा था न की आप को बहुत पसन्द आयेगा साथ ही आपके पत्नि को भी अब आप बताइए मेरा दावा सही निकला की नहीं।"

रघु…हां आपने मेरे कहे मुताबिक से ज्यादा कर दिया इसके लिया आपको बक्शिस भी दूंगा।

बक्शीस देने की बात सुनकर भोजनालय का बंदा खुश होते हुए बोला... युवराज ये तो कुछ भी नहीं आप एक बार बीच में रखी मेज तक तो पहुचिए आप और आपकी पत्नी और ज्यादा खुश हों जायेगे।

रघु... ऐसा हैं तो चलो फिर देखते हैं मेज पर कैसा कारीगरी कर रखा हैं पसन्द आया तो तुम्हारी बक्शीश दुगुना कर दूंगा।

बक्शीश दुगुना करने की बात सुनकर भोजनालय का बंदा मन ही मन खुश हों गया और रघु कमला का हाथ थामे मेज की और चल दिया। जैसे जैसे दोनों आगे बढ़ते जा रहें थे। मेज पर शीशे की पिटारी में बंद जगनूओ को टिमटिमाते देखकर दोनों और ज्यादा अचंभित होते जा रहें थे। कमला अचंभित होते हुए बोली... मेज पर क्या रखा हैं जो तारों की तरह टिमटिमा रहा हैं।

"मोहतरमा आप मेज तक तो पहुंचो आप खुद ही जान जाओगे वहा क्या रखा हैं।"

सभी बातों बातों में मेज तक पहुंच गए फ़िर कमला और रघु मेज पर रखे शीशे की पिटारी को ध्यान से देखने लग गए। उन्हे अंदर चलती फिरती जीव दिखाई दिया जिसे देखकर कमला बोली...इसके अंदर तो जिंदा जीव भरा हैं। देखने से ऐसा लग रहा हैं जैसे जुगनू हों।

रघु भी देखकर समझ गया कि शीशे में क्या बंद हैं? बस फिर किया रघु का पारा चढ़ गया और गुर्राते हुए बोला...ये क्या तुमने बेजुबान प्राणी को सिर्फ कुछ पैसे ऐठने के लिए इतनी सजा दे रहें हों। आप ने सब सही किया पर इन बेजुबान प्राणियों को प्रताड़ित करके सब बेकार कर दिया।

रघु को गुस्से में गरजते हुए देखकर भोजनालय का बंदा समझ गया मामला बिगड़ चुका हैं आगर अभी संभाला नहीं गया तो मामला और बिगड़ेगा साथ ही बक्शीश भी हाथ से निकल जायेगा। इसलिए बोला... युवराज यहां आने वाले सभी गणमान्य लोग इसकी मांग रखते हैं हमने सोचा आपको भी पसन्द आयेगा इसलिए बिना आपसे पूछे हमने रख दिया इसके लिए हम आपसे माफी मांगते हैं।

रघु... मिस्टर सभी एक जैसे नहीं होते और मुझे ये कतई पसन्द नहीं कि कोई बेजुबान जीव को इस तरह प्रताड़ित करे इसलिए आप जितनी जल्दी हो सकें इन जीवों को यहां से हटाओ और इन्हें आजाद कर दो।

जहां रघु भोजनालय के बंदे को डटने में लगा हुआ था वहीं कमला एक एक पिटारी को उठकर उनमें मौजूद सभी जगनुओं को आजाद करने में लगीं हुई थी। पिटारी खोलते ही सभी जुगनू एक साथ बाहर को निकलकर आसमान में उड़ जाते एक आद जो रह जाता उन्हें पिटारी उल्टी करके निकल देता। अंतिम पिटारी को जब हाथ में लिया तब भोजनालय के बंदे को डाट लगाकर रघु कमला की और मुड़ा तो कमला को जगनूओं को आजाद करते देखकर रघु मन ही मन खुश हों गया।


अंतिम पिटारी से जगनुओ को आजाद करते समय सभी जुगनू पिटारी से निकल गया बस एक जुगनू पिटारी में रह गया था। उसे निकलने के लिए कमला ने पिटारी को उल्टा किया तो जुगनू पिटारी से निकल कर ऊपर को उड़ा फिर अचानक आकार कमला के गाल पर बैठ गया जिसे कमला को सुरसुरी होने लगीं और कमला खिलखिला कर हंस दिया हंसते हुए कमला बोलीं…अरे मैंने तुम्हें आजाद कर दिया अब तुम जाओ मेरे गाल पर क्यों बैठ रहें हों।

कमला की हरकते देखकर रघु के साथ साथ भोजनालय का बंदा भी मुस्कुरा दिया। दो तीन सेकेंड कमला के गाल पर बैठें रहने के बाद जुगनू उड़ान भरा और दूर आसमान में उड़ता चला गया और कमला देखते हुए बोली... कितना अच्छा लग रहा हैं जैसे टिमटिमाती हुई कोई तारा उड़ता हुआ जा रहा हों।

रघु… ये जुगनू खुले आसमान में उड़ते हुए अच्छा लगाता हैं फिर भी कुछ लोग चांद पैसे कमाने के लिए इन्हें पिटारी में बंद कर देते हैं।

रघु ने अंत की बाते भोजनालय के बंदे की और देखकर तंज कसते हुए बोला तो वो बंदा सिर झुकाकर बोला…युवराज हम शक से ऐसा नहीं करते हैं हमसे मांग किया जाता हैं इसलिए मजबूरन हमे ऐसा करना पड़ता हैं।

पहले से ही रघु गुस्से में था कमला को खिलखिलाते देखकर जीतना कम हुआ था बंदे की बात सुनकर उसका पारा फ़िर से चढ़ गया और पूरे जोर से दहाड़ते हुए रघु बोला…मजबूरी को कारण बताकर अपनी गलातीयो को छुपाने की कोशिश न करें तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ चांद पैसे कमाने के लिए ऐसा करते हों आगर तुम्हे पैसे कमाना न होता तो ऐसे वाहियात मांग रखने वाले ग्राहकों को साफ शब्दों में माना कर देते पर तुम ऐसा नहीं करते हो।

रघु की आवाज़ इतनी तेज़ और गर्जना युक्त था की उस बंदे के साथ कमला भी डर गई और कमला ने तुरंत रघु का हाथ कसके थाम लिया। हाथ पर स्पर्श होते ही रघु कमला की ओर मुड़ा कमला का भय से परिपूर्ण चेहरा देखकर रघु समझ गया की उसके तेज आवाज में बोलने से कमला डर गईं हैं इसलिए एक गहरी स्वास लेकर खुद को शांत किया फ़िर नम्र आवाज में बोला... जाओ जल्दी से इस मेज पर रोशनी की व्यवस्था कारो और हमारे भोजन की व्यवस्था भी करो।

रघु का इतना बोलना था की वो बंदा सरपट वहां से दौड़ लगा दिया। बंदे के जाते ही रघु कमला के हाथ पर दूसरा हाथ रख कर बोला... कमला मुझे माफ करना मेरे कारण तुम डर गई पर मैं क्या करूं मैं इन बेजुबान प्राणियों को ऐसे पडताडित होते हुए नहीं देख सकता जब कभी ऐसा कुछ देखता हू तो मुझे इतना गुस्सा आता है की मैं ख़ुद पर से काबू खो देता हूं।

रघु के इतना बोलते ही कमला मंद मंद मुस्कुरा दिया फिर बोला... ऐसी वाहियात कृत्य को देखकर मुझे भी बहुत गुस्सा आता हैं और मैं भी आपा खो देती हू पर आज न जानें कैसे मैंने खुद पर काबू रख लिया। वैसे अच्छा ही हुआ वरना मुझे कैसे पाता चलता की सिर्फ गुस्से वाली मैं नहीं आप भी हों। हमे मिलने वाले ने हमारे एक एक गुणों का मिलान करके ही हमें एक दूसरे से मिलवाया हैं ही ही ही।

इतना बोलकर कमला ही ही ही करके हंसने लग गई तो रघु भी हंसते हुए बोला... हां वो कहते है न जोड़ियां ऊपर से बनकर आता हैं। मेरा तुम्हारा पहले से ही मिलना तय था पर तुम बैठी थीं कोलकात्ता मैं यहां ओर मेरे मां बाप यहां लड़की ढूंढ रहे थे।

कमला... आप मेरी बातों की खिली उड़ा रहें हों ऐसा करके आप बिलकुल ठीक नहीं कर रहें हों।

इतना बोलकर कमला बनावटी गुस्सा दिखाने लग गई तो रघु बोला…. अरे अरे नाराज क्यों होती हों तुम्हारे नाक पर गुस्सा बिल्कुल भी ठीक नहीं लगाता और जो मैंने कहा वो सच ही कहा तुम जानती हो शादी से पहले क्या हुआ था फिर भी हमारी शादी हुआ न अब तुम ही कहो हमारी जोड़ी पहले से न बना होता तो क्या हमारी शादी हों पाता जबकि तुमसे पहले कई लड़की के मां बाप ने उन्हीं कारणों को सच मानकर रिश्ता करने से माना कर दिया।

रघु को कहें पर विचार करने पर कमला को भी रघु का कहा सच लगा। इसलिए कमला चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुरा दिया तभी पीछे से एक शक्श आकर बोला... आप का भोजन लगा दिया है आकर भोजन कर लीजिए।

दरअसल रघु और कमला बात करते हुए मेज से थोड़ा दूर निकाल आए थे तो शक्श के कहते ही दोनों मेज की और चल दिया। कुछ कदम चलने से दोनों मेज के पास पहुंच गए। पहल करते हुए रघु ने एक कुर्सी खिसका कर कमला को बैठने के लिए कहा। कमला के बैठते ही रघु सामने के कुर्सी पर बैठ गया। तो कमला बोलीं... आप इतने दूर क्यों बैठ रहें हो मेरे पास आकर बैठो।

इतना सुनते ही रघु कमला के बगल से सटकर बैठ गया और वेटर ने मेज पर रखी खानों पर से ढक्कन हटा दिया। तरह तरह के व्यंजन बहुत अधिक मात्रा में था जिसे देखकर कमला बोलीं... ये तो बहुत ज्यादा हैं इतना सारा भोजन हम नहीं खा पाएंगे।

रघु... हां कमला तुमने सही कहा फिर वेटर से बोला... सुनो भाई हमें जितनी जरूरत हैं उतना खाना यहां रखकर बाकी का भोजन वापस ले जाओ और सुनो इन भोजनों को वापस लेजाकर दूसरे ग्रहाकों को मत दे देना। इन भोजनों को बांधकर जरूरत मंदों को दे देना क्योंकि इन सभी भोजनों का बिल मैं पहले ही भर चुका हूं।

"जी बिलकुल अपने जैसा कहा वैसा ही होगा" इतना बोलकर वेटर दो लोग जीतना खा सकते हैं उतना भोजन रखकर बाकी का भोजन वापस भिजवा दिया फिर रघु को कुछ याद आया तो बगल में खड़े एक और वेटर से बोला... भाई बहार मेरे साथ आए कुछ लोग खड़े हैं जाकर उन्हें भी भोजन करने को कह दो उनसे कहना उनको जो पसन्द आए खां ले उनका बिल मैं जाते वक्त भर दूंगा।

इतना सुनकर वो वेटर चला गया। रघु और कमला बातों में मशगूल होकर भोजन करने लग गए। वेटर बहार जाकर बहार खड़े अंगरक्षकों को रघु का संदेश दिया तो वो भी अंदर आकर एक जगह बैठ गए और मन पसंद भोजन मंगवा कर खाने लग गए।

अब हम महल में वापस चलते हैं। रघु और कमला के महल से आने के कुछ देर बाद ही राजेंद्र और रावण महल लौट आए। दोनों के आते ही सुरभि ने रतन को भोजन लगाने को कहकर कमरे में गई। राजेंद्र इस वक्त बाथरूम में हाथ मुंह धो रहा था। कुछ ही पल में राजेंद्र बाथरूम से बहार आया तब सुरभि बोलीं... आज का दिन आपका कैसा रहा।

राजेंद्र... ओर दिनों की तरह भाग दौड़ वाला रहा इतवार की पार्टी की तैयारी करते करते दिन कब बीत गया पाता ही नहीं चला।

सुरभि... हां ये तो होना ही था इतवार आने में दिन ही कितने बचे है चार दिन बाद महल में पार्टी होना हैं तो तैयारी भी समय से पूरा होना चाहिए। अच्छा सुनो न मुझे आपसे कुछ कहना हैं।

राजेंद्र... हां तो कहो न मैंने तुम्हें बोलने से कब रोका हैं।

सुरभि... मुझे लगाता हैं हम बहू के मां बाप के आने की बात उससे छुपाकर सही नहीं कर रहें हैं क्योंकि आज बहु अपने मां को याद करके रो दिया था।

राजेंद्र... मां बाप से हमेशा के लिए दूर होना कोई आसान बात नहीं हैं। जब बहू रो रहीं थीं तब तुम लोग क्या कर रहें थे मैंने तुमसे कहा था बहु को एक पल भी अकेला मत छोड़ना फिर भी….।

राजेंद्र की बातो को बीच में कटकर सुरभि बोलीं... हम बहू को एक पल भी अकेला नहीं छोड़ते वो तो बातों बातों में मां का जिक्र आया तो बहु रो दिया था।

राजेंद्र... हां ये तो होगा ही इतनी जल्दी मां बाप के साथ बिताए पलों को कैसे भुल सकती हैं। सुरभि मैं सोच रहा था जब समधी समधन जी आएंगे तो उनके साथ बहू को कुछ दिनों के लिए भेज दूं तो कैसा रहेगा।

सुरभि... हां मैं भी ऐसा ही सोच रहीं थीं इसलिए जब बहु रो रहीं थी तब मैंने बोल दिया कि पार्टी के बाद कुछ दिनों के लिए बहू को मायके भेज दूंगी।

राजेंद्र... बातों बातों में कहीं तुमने बता तो नही दिया कि बहू के मां बाप आ रहें हैं।

सुरभि... जी नहीं?

उसी वक्त रतन द्वार पर आकर बोला "रानी मां राजा जी भोजन लगा दिया हैं ठंडा होने से पहले आकर भोजन कर लीजिए"

सुरभि... दादाभाई आप चलिए हम आते हैं। फिर राजेंद्र से बोला... चलिए पहले भोजन कर लीजिए बाकी बाते बाद में करेंगे।

राजेंद्र... जैसा रानी साहिबा हुकम करें ही ही ही।

सुरभि... आप भी न अब चलिए

इतना बोलकर दोनों साथ साथ हाथ में हाथ डाले चल दिया और डायनिंग मेज पर आकर बैठ गया। कोई नहीं आया था तो राजेंद्र तेज आवाज में बोला...अरे भाई सब कहा रह गए। रावण, पुष्प,अपश्यु, सुकन्या, रघु, बहू जल्दी आओ बहुत जोरों की भूख लगा हैं।

राजेंद्र के बुलाने पर भी कोई नहीं आया तो राजेंद्र मन में बोला... अरे ये किया कोई नहीं आया लगाता है शेर वाली दहाड़ लगाना पड़ेगा।

मन में इतना बोलकर राजेंद्र दहाड़ते हुए बोला... रावण, सुकन्या, पुष्पा अपश्यु, रघु और बहू जल्दी आओ देर हुआ तो किसी को भोजन नहीं मिलेगा।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत शुक्रिया 🙏🙏
Shandar update hai bhai...
Raghu or kamla ka in jeevo ke prati prem bahut acha laga....aksar log sirf khubsurati ke liye ye bhul hi jaate hai ki prakriti me rehne wale in bejuban jeevo ko bhi azad rehne ka haq hai.....
Ye rajendra or surbhi to kamla ko surprise dene wale hai.... dekhte hai reactions kya kya milte hai...
Agle bhag ki pratiksha rahegi bhai.
 

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