Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Shandar update hai bhai...
Raghu or kamla ka in jeevo ke prati prem bahut acha laga....aksar log sirf khubsurati ke liye ye bhul hi jaate hai ki prakriti me rehne wale in bejuban jeevo ko bhi azad rehne ka haq hai.....
Ye rajendra or surbhi to kamla ko surprise dene wale hai.... dekhte hai reactions kya kya milte hai...
Agle bhag ki pratiksha rahegi bhai.
Bahut bahut shukriya Akash ji

Agla bhag jaldi hi post karunga
 
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Update - 51

इस दृश्य को देखकर कमला पहले से ही हद से ज्यादा खुश थीं। बस बोला कुछ नहीं पर पति के पूछते ही कमला बोल पड़ीं... मेरे जीवन में पहली बार ऐसा नजारा देख रहीं हूं मैंने कभी सोचा भी नहीं था की ऐसी जगह बैठकर खुले आसमान के नीचे भोजन करूंगी, मैं बता नहीं सकती मैं कितना खुश हूं, बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मेरे लिए ये सब किया।

रघु... कमला ये मेरा फर्ज था आखिर मैं तुम्हरा पति हूं तुम्हारे खुशियों का ख्याल रखना मेरा परम कर्तव्य हैं। मैंने जो भी किया तुम्हारे खुशी के लिए किया तुम्हारे खुशी से बढ़कर मुझे कुछ और नहीं चाहिए जो तुम्हारे चेहरे से झलक रहा हैं।

"युवराज मैंने कहा था न की आप को बहुत पसन्द आयेगा साथ ही आपके पत्नि को भी अब आप बताइए मेरा दावा सही निकला की नहीं।"

रघु…हां आपने मेरे कहे मुताबिक से ज्यादा कर दिया इसके लिया आपको बक्शिस भी दूंगा।

बक्शीस देने की बात सुनकर भोजनालय का बंदा खुश होते हुए बोला... युवराज ये तो कुछ भी नहीं आप एक बार बीच में रखी मेज तक तो पहुचिए आप और आपकी पत्नी और ज्यादा खुश हों जायेगे।

रघु... ऐसा हैं तो चलो फिर देखते हैं मेज पर कैसा कारीगरी कर रखा हैं पसन्द आया तो तुम्हारी बक्शीश दुगुना कर दूंगा।

बक्शीश दुगुना करने की बात सुनकर भोजनालय का बंदा मन ही मन खुश हों गया और रघु कमला का हाथ थामे मेज की और चल दिया। जैसे जैसे दोनों आगे बढ़ते जा रहें थे। मेज पर शीशे की पिटारी में बंद जगनूओ को टिमटिमाते देखकर दोनों और ज्यादा अचंभित होते जा रहें थे। कमला अचंभित होते हुए बोली... मेज पर क्या रखा हैं जो तारों की तरह टिमटिमा रहा हैं।

"मोहतरमा आप मेज तक तो पहुंचो आप खुद ही जान जाओगे वहा क्या रखा हैं।"

सभी बातों बातों में मेज तक पहुंच गए फ़िर कमला और रघु मेज पर रखे शीशे की पिटारी को ध्यान से देखने लग गए। उन्हे अंदर चलती फिरती जीव दिखाई दिया जिसे देखकर कमला बोली...इसके अंदर तो जिंदा जीव भरा हैं। देखने से ऐसा लग रहा हैं जैसे जुगनू हों।

रघु भी देखकर समझ गया कि शीशे में क्या बंद हैं? बस फिर किया रघु का पारा चढ़ गया और गुर्राते हुए बोला...ये क्या तुमने बेजुबान प्राणी को सिर्फ कुछ पैसे ऐठने के लिए इतनी सजा दे रहें हों। आप ने सब सही किया पर इन बेजुबान प्राणियों को प्रताड़ित करके सब बेकार कर दिया।

रघु को गुस्से में गरजते हुए देखकर भोजनालय का बंदा समझ गया मामला बिगड़ चुका हैं आगर अभी संभाला नहीं गया तो मामला और बिगड़ेगा साथ ही बक्शीश भी हाथ से निकल जायेगा। इसलिए बोला... युवराज यहां आने वाले सभी गणमान्य लोग इसकी मांग रखते हैं हमने सोचा आपको भी पसन्द आयेगा इसलिए बिना आपसे पूछे हमने रख दिया इसके लिए हम आपसे माफी मांगते हैं।

रघु... मिस्टर सभी एक जैसे नहीं होते और मुझे ये कतई पसन्द नहीं कि कोई बेजुबान जीव को इस तरह प्रताड़ित करे इसलिए आप जितनी जल्दी हो सकें इन जीवों को यहां से हटाओ और इन्हें आजाद कर दो।

जहां रघु भोजनालय के बंदे को डटने में लगा हुआ था वहीं कमला एक एक पिटारी को उठकर उनमें मौजूद सभी जगनुओं को आजाद करने में लगीं हुई थी। पिटारी खोलते ही सभी जुगनू एक साथ बाहर को निकलकर आसमान में उड़ जाते एक आद जो रह जाता उन्हें पिटारी उल्टी करके निकल देता। अंतिम पिटारी को जब हाथ में लिया तब भोजनालय के बंदे को डाट लगाकर रघु कमला की और मुड़ा तो कमला को जगनूओं को आजाद करते देखकर रघु मन ही मन खुश हों गया।


अंतिम पिटारी से जगनुओ को आजाद करते समय सभी जुगनू पिटारी से निकल गया बस एक जुगनू पिटारी में रह गया था। उसे निकलने के लिए कमला ने पिटारी को उल्टा किया तो जुगनू पिटारी से निकल कर ऊपर को उड़ा फिर अचानक आकार कमला के गाल पर बैठ गया जिसे कमला को सुरसुरी होने लगीं और कमला खिलखिला कर हंस दिया हंसते हुए कमला बोलीं…अरे मैंने तुम्हें आजाद कर दिया अब तुम जाओ मेरे गाल पर क्यों बैठ रहें हों।

कमला की हरकते देखकर रघु के साथ साथ भोजनालय का बंदा भी मुस्कुरा दिया। दो तीन सेकेंड कमला के गाल पर बैठें रहने के बाद जुगनू उड़ान भरा और दूर आसमान में उड़ता चला गया और कमला देखते हुए बोली... कितना अच्छा लग रहा हैं जैसे टिमटिमाती हुई कोई तारा उड़ता हुआ जा रहा हों।

रघु… ये जुगनू खुले आसमान में उड़ते हुए अच्छा लगाता हैं फिर भी कुछ लोग चांद पैसे कमाने के लिए इन्हें पिटारी में बंद कर देते हैं।

रघु ने अंत की बाते भोजनालय के बंदे की और देखकर तंज कसते हुए बोला तो वो बंदा सिर झुकाकर बोला…युवराज हम शक से ऐसा नहीं करते हैं हमसे मांग किया जाता हैं इसलिए मजबूरन हमे ऐसा करना पड़ता हैं।

पहले से ही रघु गुस्से में था कमला को खिलखिलाते देखकर जीतना कम हुआ था बंदे की बात सुनकर उसका पारा फ़िर से चढ़ गया और पूरे जोर से दहाड़ते हुए रघु बोला…मजबूरी को कारण बताकर अपनी गलातीयो को छुपाने की कोशिश न करें तुम सिर्फ़ और सिर्फ़ चांद पैसे कमाने के लिए ऐसा करते हों आगर तुम्हे पैसे कमाना न होता तो ऐसे वाहियात मांग रखने वाले ग्राहकों को साफ शब्दों में माना कर देते पर तुम ऐसा नहीं करते हो।

रघु की आवाज़ इतनी तेज़ और गर्जना युक्त था की उस बंदे के साथ कमला भी डर गई और कमला ने तुरंत रघु का हाथ कसके थाम लिया। हाथ पर स्पर्श होते ही रघु कमला की ओर मुड़ा कमला का भय से परिपूर्ण चेहरा देखकर रघु समझ गया की उसके तेज आवाज में बोलने से कमला डर गईं हैं इसलिए एक गहरी स्वास लेकर खुद को शांत किया फ़िर नम्र आवाज में बोला... जाओ जल्दी से इस मेज पर रोशनी की व्यवस्था कारो और हमारे भोजन की व्यवस्था भी करो।

रघु का इतना बोलना था की वो बंदा सरपट वहां से दौड़ लगा दिया। बंदे के जाते ही रघु कमला के हाथ पर दूसरा हाथ रख कर बोला... कमला मुझे माफ करना मेरे कारण तुम डर गई पर मैं क्या करूं मैं इन बेजुबान प्राणियों को ऐसे पडताडित होते हुए नहीं देख सकता जब कभी ऐसा कुछ देखता हू तो मुझे इतना गुस्सा आता है की मैं ख़ुद पर से काबू खो देता हूं।

रघु के इतना बोलते ही कमला मंद मंद मुस्कुरा दिया फिर बोला... ऐसी वाहियात कृत्य को देखकर मुझे भी बहुत गुस्सा आता हैं और मैं भी आपा खो देती हू पर आज न जानें कैसे मैंने खुद पर काबू रख लिया। वैसे अच्छा ही हुआ वरना मुझे कैसे पाता चलता की सिर्फ गुस्से वाली मैं नहीं आप भी हों। हमे मिलने वाले ने हमारे एक एक गुणों का मिलान करके ही हमें एक दूसरे से मिलवाया हैं ही ही ही।

इतना बोलकर कमला ही ही ही करके हंसने लग गई तो रघु भी हंसते हुए बोला... हां वो कहते है न जोड़ियां ऊपर से बनकर आता हैं। मेरा तुम्हारा पहले से ही मिलना तय था पर तुम बैठी थीं कोलकात्ता मैं यहां ओर मेरे मां बाप यहां लड़की ढूंढ रहे थे।

कमला... आप मेरी बातों की खिली उड़ा रहें हों ऐसा करके आप बिलकुल ठीक नहीं कर रहें हों।

इतना बोलकर कमला बनावटी गुस्सा दिखाने लग गई तो रघु बोला…. अरे अरे नाराज क्यों होती हों तुम्हारे नाक पर गुस्सा बिल्कुल भी ठीक नहीं लगाता और जो मैंने कहा वो सच ही कहा तुम जानती हो शादी से पहले क्या हुआ था फिर भी हमारी शादी हुआ न अब तुम ही कहो हमारी जोड़ी पहले से न बना होता तो क्या हमारी शादी हों पाता जबकि तुमसे पहले कई लड़की के मां बाप ने उन्हीं कारणों को सच मानकर रिश्ता करने से माना कर दिया।

रघु को कहें पर विचार करने पर कमला को भी रघु का कहा सच लगा। इसलिए कमला चिरपरिचित अंदाज में मुस्कुरा दिया तभी पीछे से एक शक्श आकर बोला... आप का भोजन लगा दिया है आकर भोजन कर लीजिए।

दरअसल रघु और कमला बात करते हुए मेज से थोड़ा दूर निकाल आए थे तो शक्श के कहते ही दोनों मेज की और चल दिया। कुछ कदम चलने से दोनों मेज के पास पहुंच गए। पहल करते हुए रघु ने एक कुर्सी खिसका कर कमला को बैठने के लिए कहा। कमला के बैठते ही रघु सामने के कुर्सी पर बैठ गया। तो कमला बोलीं... आप इतने दूर क्यों बैठ रहें हो मेरे पास आकर बैठो।

इतना सुनते ही रघु कमला के बगल से सटकर बैठ गया और वेटर ने मेज पर रखी खानों पर से ढक्कन हटा दिया। तरह तरह के व्यंजन बहुत अधिक मात्रा में था जिसे देखकर कमला बोलीं... ये तो बहुत ज्यादा हैं इतना सारा भोजन हम नहीं खा पाएंगे।

रघु... हां कमला तुमने सही कहा फिर वेटर से बोला... सुनो भाई हमें जितनी जरूरत हैं उतना खाना यहां रखकर बाकी का भोजन वापस ले जाओ और सुनो इन भोजनों को वापस लेजाकर दूसरे ग्रहाकों को मत दे देना। इन भोजनों को बांधकर जरूरत मंदों को दे देना क्योंकि इन सभी भोजनों का बिल मैं पहले ही भर चुका हूं।

"जी बिलकुल अपने जैसा कहा वैसा ही होगा" इतना बोलकर वेटर दो लोग जीतना खा सकते हैं उतना भोजन रखकर बाकी का भोजन वापस भिजवा दिया फिर रघु को कुछ याद आया तो बगल में खड़े एक और वेटर से बोला... भाई बहार मेरे साथ आए कुछ लोग खड़े हैं जाकर उन्हें भी भोजन करने को कह दो उनसे कहना उनको जो पसन्द आए खां ले उनका बिल मैं जाते वक्त भर दूंगा।

इतना सुनकर वो वेटर चला गया। रघु और कमला बातों में मशगूल होकर भोजन करने लग गए। वेटर बहार जाकर बहार खड़े अंगरक्षकों को रघु का संदेश दिया तो वो भी अंदर आकर एक जगह बैठ गए और मन पसंद भोजन मंगवा कर खाने लग गए।

अब हम महल में वापस चलते हैं। रघु और कमला के महल से आने के कुछ देर बाद ही राजेंद्र और रावण महल लौट आए। दोनों के आते ही सुरभि ने रतन को भोजन लगाने को कहकर कमरे में गई। राजेंद्र इस वक्त बाथरूम में हाथ मुंह धो रहा था। कुछ ही पल में राजेंद्र बाथरूम से बहार आया तब सुरभि बोलीं... आज का दिन आपका कैसा रहा।

राजेंद्र... ओर दिनों की तरह भाग दौड़ वाला रहा इतवार की पार्टी की तैयारी करते करते दिन कब बीत गया पाता ही नहीं चला।

सुरभि... हां ये तो होना ही था इतवार आने में दिन ही कितने बचे है चार दिन बाद महल में पार्टी होना हैं तो तैयारी भी समय से पूरा होना चाहिए। अच्छा सुनो न मुझे आपसे कुछ कहना हैं।

राजेंद्र... हां तो कहो न मैंने तुम्हें बोलने से कब रोका हैं।

सुरभि... मुझे लगाता हैं हम बहू के मां बाप के आने की बात उससे छुपाकर सही नहीं कर रहें हैं क्योंकि आज बहु अपने मां को याद करके रो दिया था।

राजेंद्र... मां बाप से हमेशा के लिए दूर होना कोई आसान बात नहीं हैं। जब बहू रो रहीं थीं तब तुम लोग क्या कर रहें थे मैंने तुमसे कहा था बहु को एक पल भी अकेला मत छोड़ना फिर भी….।

राजेंद्र की बातो को बीच में कटकर सुरभि बोलीं... हम बहू को एक पल भी अकेला नहीं छोड़ते वो तो बातों बातों में मां का जिक्र आया तो बहु रो दिया था।

राजेंद्र... हां ये तो होगा ही इतनी जल्दी मां बाप के साथ बिताए पलों को कैसे भुल सकती हैं। सुरभि मैं सोच रहा था जब समधी समधन जी आएंगे तो उनके साथ बहू को कुछ दिनों के लिए भेज दूं तो कैसा रहेगा।

सुरभि... हां मैं भी ऐसा ही सोच रहीं थीं इसलिए जब बहु रो रहीं थी तब मैंने बोल दिया कि पार्टी के बाद कुछ दिनों के लिए बहू को मायके भेज दूंगी।

राजेंद्र... बातों बातों में कहीं तुमने बता तो नही दिया कि बहू के मां बाप आ रहें हैं।

सुरभि... जी नहीं?

उसी वक्त रतन द्वार पर आकर बोला "रानी मां राजा जी भोजन लगा दिया हैं ठंडा होने से पहले आकर भोजन कर लीजिए"

सुरभि... दादाभाई आप चलिए हम आते हैं। फिर राजेंद्र से बोला... चलिए पहले भोजन कर लीजिए बाकी बाते बाद में करेंगे।

राजेंद्र... जैसा रानी साहिबा हुकम करें ही ही ही।

सुरभि... आप भी न अब चलिए

इतना बोलकर दोनों साथ साथ हाथ में हाथ डाले चल दिया और डायनिंग मेज पर आकर बैठ गया। कोई नहीं आया था तो राजेंद्र तेज आवाज में बोला...अरे भाई सब कहा रह गए। रावण, पुष्प,अपश्यु, सुकन्या, रघु, बहू जल्दी आओ बहुत जोरों की भूख लगा हैं।

राजेंद्र के बुलाने पर भी कोई नहीं आया तो राजेंद्र मन में बोला... अरे ये किया कोई नहीं आया लगाता है शेर वाली दहाड़ लगाना पड़ेगा।

मन में इतना बोलकर राजेंद्र दहाड़ते हुए बोला... रावण, सुकन्या, पुष्पा अपश्यु, रघु और बहू जल्दी आओ देर हुआ तो किसी को भोजन नहीं मिलेगा।



आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत शुक्रिया 🙏🙏
Pure update ko padhkar mujhko bhi bhuk lag gayi hai ishiliye kuch kha leta hun mai bhi waise achcha update hai mujhe bhi jugnuon ko botal ma band karna achcha lagta hai lekin bas kuch der ke liye fir mai unko aajaad kar deta hun
 
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Pure update ko padhkar mujhko bhi bhuk lag gayi hai ishiliye kuch kha leta hun mai bhi waise achcha update hai mujhe bhi jugnuon ko botal ma band karna achcha lagta hai lekin bas kuch der ke liye fir mai unko aajaad kar deta hun

Bahut bahut sukriya mitr

Thoda jaydaa kha lena kyuki ho sakta hai. Agla update padhkar shyad apki bhuk aur bad jaye.jugnu mujhe had se jaydaa pyare hai aaj kal to dekhne ko milta nahi na jane kaha vilupt ho gaye hai
 
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Update - 52

राजेंद्र की दहाड़ महल में मौजूद लोगों की रूह कपाने के लिए काफी था। भले ही राजेंद्र ने बस रौब जमाने के लिए दहाड़ था या यूं कहूं कि बस मसखरी के लिए दहाड़ था। पर उसका असर सब से पहले सुरभि पर हुआ जो राजेंद्र के बगल में खड़ी खड़ी मुस्कुरा रहीं थीं। दहाड़ने की आवाज़ कानों को छूते ही एक पल में चहरे का भाव बदला और झटपट पति के बगल में बैठ गईं। सुरभि को बैठे एक पल बिता ही था कि मानो महल में अचानक कहीं से एक अंधी चला और एक के बाद एक सुकन्या, अपश्यु और रावण उड़कर डायनिंग मेज पर आकर बैठ गए।

रघु और कमला महल में थे नहीं, दोनों कैंडिल लाइट डिनर का मजा ले रहें थे तो उनके आने का सवाल ही पैदा नहीं होता किन्तु पुष्पा मानो उस पर बाप के दहाड़ का कोई असर ही नहीं हुआ, पूरे ठाट बांट और गुसैली रुआब चहरे पर सजाए एक एक कदम सीढ़ी पर ऐसे रख कर आ रहीं थीं मानों कदमों का दवाब थोड़ा भी बढ़ाया तो कहीं सीढ़ी के पायदान के साथ साथ पूरा महल ज़मीं दोज न हों जाएं।

इधर तीनों मां, बाप और बेटे के आकर बैठते ही राजेंद्र एक शेखी वाली मुस्कान देकर सभी पर नज़र फेरा तो उसे तीन लोग काम लगे। उधर पति के चहरे पर शेखी वाली मुस्कान देखकर सुरभि समझ गई उसके पति सिर्फ रूवाब जमाने के लिए दहाड़ था। बस पल भर में चहरे का भाव बदल गया। जहां पहले अचंभा और हल्का डर का भाव था वो गुस्से में बदल गई। अब तक पुष्पा वहां पहुंच चुकी थी तो सुरभि कुछ बोलती उसे पहले पुष्पा बोलीं...पापा आप शायद भूल गए हों इस महल की महारानी मैं हूं। यह सिर्फ मेरा हुक्म चलता हैं फिर भी अपने मुझे तेज़ आवाज़ में बुलाया ये जानते हुए कि कोई मुझे तेज आवाज में बुलाए, मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं!

बेटी की बाते सुनते ही सुरभि पति को डांटने जा रहीं थीं कि चुप कर गई। वो समझ गई अब राजेंद्र को जो भी कहना हैं वो पुष्पा ही कहेंगी क्योंकि राजेंद्र बाबू की बोलती कोई बंद कर सकता हैं तो वो पुष्पा हैं।

राजेंद्र तुरंत उठा और पुष्पा को आदब से लेजाकर उसके निर्धारित कुर्सी पर बैठाया फ़िर बगल में सिर झुकाकर खड़ा हों गया। राजेंद्र का सिर झुका हुआ देखकर वहा बैठे बाकी सब सिर झुका लिया सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उन्हें हंसी हा रहा था परन्तु वे हंसकर किसी का उपहास नही उड़ना चाहते थे। खासकर जब वो व्यक्ति राजेन्द्र हों और राजेंद्र जवाब देते हुए बोला…मैंने पहले आराम से मीठी आवाज़ में सभी को बुलाया था पर कोई आया नहीं इसलिए मैंने सोचा शायद मेरा धक काम हों गया बस उसे सिद्ध करने के लिए दहाड़ कर बुलाया था।

पुष्पा... आपके कारण मैं कितनी डर गई थीं आपको पाता है। मेरा ittuuu सा दिल मुंह में आ गया था और उछल खुद करते हुए कभी भी बहार निकाल सकता था।

पुष्पा ने ittu को इतना लंबा खींचकर बोला कि सभी की दबी हुईं हसीं खिले हुए पुष्प समान बहार निकाल आया और सभी खिलखिलाकर हंसने लग गए। राजेंद्र भी हंसते हुए बोला...सच में मेरी लाडली इतनी डर गई की उसका ittuuuu सा दिल मुंह में आ गई पर ऐसा हुआ तो कैसे हुआ तुम तो महारानी हों और महारानी बहुत बहादुर होती हैं जो किसी से नहीं डरती हैं।

पुष्पा hummmm करके मुंह बिचकते हुए बोलीं... आप मेरी नकल कर रहें हों साथ ही मुझे कमजोर कह रहे हों अब तो आपको सजा मिलकर ही रहेगा।

राजेंद्र डरने का दिखावा करते हुए बोला... नहीं नहीं महारानी जी आज बक्श दो आगे से ऐसी गलती कभी नहीं होगा। मैं इस बात का ध्यान रखूंगा ऐसा वचन देता हैं।

पुष्पा…ध्यान रखना सिर्फ मुझे ही नहीं महल में किसी को भी दहाड़ कर आवाज नही देंगे।

राजेंद्र... ठीक हैं महारानी जी आपके कहे एक एक शब्द का साअक्षर पालन करूंगा।

पुष्पा... ठीक है आज के लिए माफ करती हूं जाओ जाकर बैठो खडे क्यों हों।

राजेंद्र जाकर अपने जगा बैठ गया फिर रतन और धीरा मिलकर सभी को भोजन परोसने लग गए। भोजन की सुगंध कुछ अलग था जिसे सूंघते ही राजेंद्र समझ गया की आज भोजन किसने बनाया। समझ आते ही राजेंद्र नज़रे घुमा कर भोजन बनाने वाली को ढूंढने लग गया पर वो शक्श उसे कहीं दिखा नहीं तो राजेंद्र बोला... भोजन के सुगंध से इतना तो जान गया हूं। आज का भोजन बहू ने बनाया हैं पर बहू कहा है दिख नहीं रही और रघु भी नहीं दिखा रहा। क्या रघु अभी तक ऑफिस से नहीं आया?

सुरभि…रघु, बहू को रात की भोजन पर बहार ले गया हैं। इसलिए दोनों नहीं दिख रहे हैं।

राजेंद्र बहू और बेटे के रात में बहार जानें की बात सुनकर थोड़ा चिंतित भाव से बोला... किसी को भेजा या सिर्फ दोनों ही गए हैं।

सुरभि...अपने मुझे क्या मंद बुद्धि समझ लिया जो बेटे और बहू को रात में बिना किसी को साथ लिए जानें दूंगी ये जानते हुए कि बीते दिनों क्या हुआ था।

राजेंद्र…सुरभि मैंने ऐसा तो नहीं कहा मैंने सिर्फ जानने के लिए पुछा था।

सुरभि... हां हां मैं समझ गई आप क्या कहना चाहते थे।

पुष्पा...ahaaa मां चुप चप भोजन करो नहीं तो महारानी को गुस्सा आ जायेगा।

पुष्पा के इतना बोलते ही राजेंद्र और सुरभि बस मुस्कुरा कर पुष्पा को देखा फिर भोजन करने में डाट गए। इधर जब रघु के बहार जानें की बात चल रहा था। तब सुकन्या, रावण की और देख रही थीं कि रघु के रात में बहार जानें की बात सुनकर रावण क्या प्रतिक्रिया देता हैं पर रावण ने कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दिया बस मुस्कुराकर राजेंद्र की और देखा फिर भोजन करने लग गया। पति का मुस्कुराना भी सुकन्या के मन में शंका का बीज वो दिया जबकि रावण साधारण भाव से मुस्कुराया था। क्योंकि उसे अपने दिन याद आ गया था। वो भी शादी के मात्र एक हफ्ते के भीतर ही सुकन्या को रात्रि भोजन पर बहार ले गया था। किन्तु यह बात सुकन्या को कौन समझाए पर सुकन्या का शंका करना भी जायज हैं क्योंकि बीते दिनों में जो भी रघु के साथ हुआ था। उनमें हाथ रावण का था। तो पति को मुस्कुराते हुए देखकर सुकन्या मन में बोली... मुझे शंका हों रहा हैं इनके मुस्कुराने के पीछे कोई तो कारण होगा। हे प्रभु उन दोनों को सही सलामत घर भेज देना आगर इन्होंने कुछ भी ऊंच नीच किया रघु और बहु को हानि पहुंचने की चेष्टा भी किया तो मैं इनको उचित सबक शिखाऊंगी।

मन में प्रभु से रघु के सुरक्षित घर पहुंचने की विनती करते हुए सुकन्या भोजन करने लग गईं। कुछ ही देर में भोजन खत्म करके एक एक करके सभी उठकर चले गए राजेन्द्र अभी भी भोजन किए जा रहा था। कुछ वक्त में राजेन्द्र का भोजन समाप्त हुआ फ़िर राजेन्द्र बोला…सुरभि मैं सोनो जा रहा हूं । तुम्हें आने में कितना देर लगेगा।

सुरभि… मुझे थोड़ा देर लगेंगी रघु और बहु के आने के बाद आ जाऊंगी।

राजेन्द्र सिर्फ हां में सिर हिलाकर मुस्कुराते हुए सोने चला गया। अब हम चलते है भोजनालय जहां रघु और कमला ने भोजन कर लिया था और अपने अपने कुर्सी से उठकर एक दूसरे का हाथ थामे चल दिया। कुछ कदम चला ही था कि रघु को कुछ याद आया तो रूक कर मेज से झूठे बर्तनों को समेट रहे वेटर से बोला... सुनो भाई जिन भोजनों को हमने वापस किया था उन्हें याद से जरूरत मंदों तक पहुंचा देना।

"जी साहब जरूर पहुंचा देंगे आप निश्चित होकर जाइए"

इतना सुनकर रघु कमला का हाथ थामे चल दिया। दोनों के कुछ दूर जाते ही झूठे बर्तन समेट रहें वेटर ने दूसरे वेटर से बोला...जा जल्दी से जाकर बोलकर आ नहीं तो मालिक वो भोजन किसी ओर को परोस देंगे।

इतना सुनकर दूसरा वेटर रिसेप्शन की और दौड़ लगा दिया। वहां पहुंचकर बोला...मालिक अभी जो भोजन वापिस कर गया था वो किसी ओर को मत परोसना उसे पैक करके जरूरत मंदों तक पहुंचाने का शक्त निर्देश देकर गए हैं।

"तू चुप चाप जाकर अपना काम कर और वापिस किए भोजनों का क्या करना हैं मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता"

"मालिक मैं जानता हूं आप उन भोजनों का क्या करने वाले हों पर ऐसा करना क्या ठीक होगा। उन भोजनों का बिल हमे पहले ही मिल चुका हैं फिर से दुबारा दूसरे ग्राहकों को वो भोजन परोसकर पैसे ऐठना क्या सही होगा।"

"तू मुझे ज्ञान न दे जाकर अपना काम कर। ये भोजनालय मेरा है यहां बन रहे भोजनों से कैसे पैसे कामना है मुझे अच्छे से आता हैं।"

तभी पीछे से एक रूबदार आवाज़ आया... बहुत खूब बर्खूरदार जरा मुझे भी बताएंगे कि आप यहां बन रहे भोजनों को कैसे बेचकर पैसे कमाते हों।

आवाज आई दिशा में देखते ही भोनालय मालिक की सिट्टी पिट्टी गुम हो गया और हकलाते हुए बोला... अरे युवराज आप!

जी हा बोलने वाला रघु ही था। बहार पहुंचते ही रघु को याद आया उसके साथ आए अंगरक्षक के किए भोजन का बिल दिया ही नहीं तो कमला को बहार रुकने को बोलकर अंदर आया। रिसेप्शन पर पहुंचते ही मालिक और वेटर की बाते सुन लिया। उनकी बाते सुनकर रघु का पारा चढ़ गया तब रुआबदार आवाज में बोला था।

रघु... हां मैं आया तो था तुम्हरा बचा हुआ बिल देने पर यहां आकर तो कुछ ओर ही सुनने को मिला तुम्हे शर्म नहीं आता ऐसे एक भोजन को दो बार बेचकर चंद कागज के नोट कमाते हुए।

रघु के बात का कोई जवाब भोजनालय मालिक के पास नहीं था वो आज कालाबाजारी करते हुए पकड़ा गया था। पकड़ा भी किसने रघु ने कोई और होता तो शायद कुछ लेन देन करके रफा दफा कर देता पर रघु के सामने ऐसा कुछ नहीं हो सकता इसलिए माफी मांगते हुए बोला…युवराज माफ कर दीजिए ऐसी गलती दुबारा नहीं होगा।

रघु... माफी शब्द तुम्हारे मुंह से शोभा नहीं देता तुम जैसा चापलूस और लालची इंसान चंद कागज के नोट कमाने के लिऐ कितना नीचे गिर सकता है वो आज मैं देख चुका हूं। तुम्हारी पहली गलती मैंने माफ कर दिया था पर इस बार तुम्हें माफ किया तो तुम मेरे जाते ही फिर से अपने रंग में आ जाओगे।

रघु की बात सुनते ही भोजन मालिक समझ गया आज या तो उसके जीवन का अंतिम दिन होगा या फिर उसके भोजनालय का अंतिम दिन होगा इसलिए तुरंत अपने जगह से हिला और रघु के पैरों में गिरकर बोला...मालिक रहम कीजिए मेरे जीविका का यहीं एक मात्र साधन है इसको कुछ हुआ तो मैं अपने बच्चो का भरण पोषण कैसे करूंगा।

रघु दो कदम पीछे हटकर बोला... अब तुम्हें अपने बच्चो की याद आ रहीं हैं। तब क्यों नहीं सोचा जब तुम एक भोजन की कीमत दो बार ले रहें थे। मैं जानता हूं ये तुम जैसे नीच और गिरे हुए लोग का पैतृक योजना हैं जब पकड़े जाओ तो बच्चो की दुहाई देकर बच निकलने की सोचते हों पर डरो नहीं मैं कुछ नहीं करने वाला करेंगे तो वो लोग जो तुम्हारे भोजनालय में भोजन करने आते हैं और तुम उनके साथ जालसाजी करते हों।

फिर सामने बैठे लोगों की ओर देखकर बोला…प्रिय सजनो जरा मेरी बातों को ध्यान से सुनो जिस भोजनालय में आप इस वक्त भोजन कर रहें हैं वहा का मालिक आपके साथ जालसाजी करता हैं। आपके बिल देने के बावजूद बचे हुए भोजनों को दूसरे ग्राहकों को परोसकर पैसे ऐठता हैं। ऐसे इंसान के साथ आप क्या करना चाहते है ये मैं आप पर छोड़ता हूं।

रघु के इतना बोलते ही वहां मौजूद लोगों में खुसर फुसर होने लग गया। कोई कुछ तो कोई कुछ बोल रहा था और रघु वेटर से बोला... भाई जिन भोजनों को मैंने वापिस लौटाया था उसे पैक करके मुझे दे दो मैं ख़ुद उसे उस तक पहुंचा दूंगा जिसे उसकी जरूरत हैं। हा और एक बात सुनो मुझे लगाता है आज के बाद ये भोजनालय बंद होने वाला है तो यहां काम करने वाले लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं हैं महल आकर मुझसे या फिर पिताजी से मिल लेना तुम्हारे काम की व्यवस्था हों जायेगा।

इतना बोलने के बाद वो वेटर कृतज्ञता से रघु को देखा और जल्दी से सभी भोजन पैक करके एक थैली में रघु को दे दिया। रघु थैला लेकर बहार चल दिया और वहां मौजूद लोग तरह तरह की गली गलोच करते हुए एक एक करके निकलने लग गए और भोजनालय का मालिक सिर पकड़कर बैठ गया। तभी एक बुजुर्ग बंदा उसके पास आया और बोल... मैंने तुझे बोला था की ऐसा न कर पर तूने सुना नहीं आज देख क्या हों गया तेरे लालच के कारण आज ये भोजनलय बंद होने के कगार पर आ गया। तूने मुझे भी ठगा था उस दिन मैंने कहा था। किसी दिन कोई ऐसा आयेगा जो तेरे कालाबाजारी का काला चिट्ठा खोल देगा देख आज हों गया न।

इतना कहकर वो बुजुर्ग भी धीरे धीरे बहार चला गया और भोजनालय मालिक एक एक ग्राहक को बस जाते हुए देखता रहा देखने के अलावा कर भी क्या सकता था। खैर जो हुआ अच्छा हुआ आज के लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिऐ सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
 
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Update - 52

राजेंद्र की दहाड़ महल में मौजूद लोगों की रूह कपाने के लिए काफी था। भले ही राजेंद्र ने बस रौब जमाने के लिए दहाड़ था या यूं कहूं कि बस मसखरी के लिए दहाड़ था। पर उसका असर सब से पहले सुरभि पर हुआ जो राजेंद्र के बगल में खड़ी खड़ी मुस्कुरा रहीं थीं। दहाड़ने की आवाज़ कानों को छूते ही एक पल में चहरे का भाव बदला और झटपट पति के बगल में बैठ गईं। सुरभि को बैठे एक पल बिता ही था कि मानो महल में अचानक कहीं से एक अंधी चला और एक के बाद एक सुकन्या, अपश्यु और रावण उड़कर डायनिंग मेज पर आकर बैठ गए।

रघु और कमला महल में थे नहीं, दोनों कैंडिल लाइट डिनर का मजा ले रहें थे तो उनके आने का सवाल ही पैदा नहीं होता किन्तु पुष्पा मानो उस पर बाप के दहाड़ का कोई असर ही नहीं हुआ, पूरे ठाट बांट और गुसैली रुआब चहरे पर सजाए एक एक कदम सीढ़ी पर ऐसे रख कर आ रहीं थीं मानों कदमों का दवाब थोड़ा भी बढ़ाया तो कहीं सीढ़ी के पायदान के साथ साथ पूरा महल ज़मीं दोज न हों जाएं।

इधर तीनों मां, बाप और बेटे के आकर बैठते ही राजेंद्र एक शेखी वाली मुस्कान देकर सभी पर नज़र फेरा तो उसे तीन लोग काम लगे। उधर पति के चहरे पर शेखी वाली मुस्कान देखकर सुरभि समझ गई उसके पति सिर्फ रूवाब जमाने के लिए दहाड़ था। बस पल भर में चहरे का भाव बदल गया। जहां पहले अचंभा और हल्का डर का भाव था वो गुस्से में बदल गई। अब तक पुष्पा वहां पहुंच चुकी थी तो सुरभि कुछ बोलती उसे पहले पुष्पा बोलीं...पापा आप शायद भूल गए हों इस महल की महारानी मैं हूं। यह सिर्फ मेरा हुक्म चलता हैं फिर भी अपने मुझे तेज़ आवाज़ में बुलाया ये जानते हुए कि कोई मुझे तेज आवाज में बुलाए, मुझे बिल्कुल पसन्द नहीं!

बेटी की बाते सुनते ही सुरभि पति को डांटने जा रहीं थीं कि चुप कर गई। वो समझ गई अब राजेंद्र को जो भी कहना हैं वो पुष्पा ही कहेंगी क्योंकि राजेंद्र बाबू की बोलती कोई बंद कर सकता हैं तो वो पुष्पा हैं।

राजेंद्र तुरंत उठा और पुष्पा को आदब से लेजाकर उसके निर्धारित कुर्सी पर बैठाया फ़िर बगल में सिर झुकाकर खड़ा हों गया। राजेंद्र का सिर झुका हुआ देखकर वहा बैठे बाकी सब सिर झुका लिया सिर्फ़ इसलिए क्योंकि उन्हें हंसी हा रहा था परन्तु वे हंसकर किसी का उपहास नही उड़ना चाहते थे। खासकर जब वो व्यक्ति राजेन्द्र हों और राजेंद्र जवाब देते हुए बोला…मैंने पहले आराम से मीठी आवाज़ में सभी को बुलाया था पर कोई आया नहीं इसलिए मैंने सोचा शायद मेरा धक काम हों गया बस उसे सिद्ध करने के लिए दहाड़ कर बुलाया था।

पुष्पा... आपके कारण मैं कितनी डर गई थीं आपको पाता है। मेरा ittuuu सा दिल मुंह में आ गया था और उछल खुद करते हुए कभी भी बहार निकाल सकता था।

पुष्पा ने ittu को इतना लंबा खींचकर बोला कि सभी की दबी हुईं हसीं खिले हुए पुष्प समान बहार निकाल आया और सभी खिलखिलाकर हंसने लग गए। राजेंद्र भी हंसते हुए बोला...सच में मेरी लाडली इतनी डर गई की उसका ittuuuu सा दिल मुंह में आ गई पर ऐसा हुआ तो कैसे हुआ तुम तो महारानी हों और महारानी बहुत बहादुर होती हैं जो किसी से नहीं डरती हैं।

पुष्पा hummmm करके मुंह बिचकते हुए बोलीं... आप मेरी नकल कर रहें हों साथ ही मुझे कमजोर कह रहे हों अब तो आपको सजा मिलकर ही रहेगा।

राजेंद्र डरने का दिखावा करते हुए बोला... नहीं नहीं महारानी जी आज बक्श दो आगे से ऐसी गलती कभी नहीं होगा। मैं इस बात का ध्यान रखूंगा ऐसा वचन देता हैं।

पुष्पा…ध्यान रखना सिर्फ मुझे ही नहीं महल में किसी को भी दहाड़ कर आवाज नही देंगे।

राजेंद्र... ठीक हैं महारानी जी आपके कहे एक एक शब्द का साअक्षर पालन करूंगा।

पुष्पा... ठीक है आज के लिए माफ करती हूं जाओ जाकर बैठो खडे क्यों हों।

राजेंद्र जाकर अपने जगा बैठ गया फिर रतन और धीरा मिलकर सभी को भोजन परोसने लग गए। भोजन की सुगंध कुछ अलग था जिसे सूंघते ही राजेंद्र समझ गया की आज भोजन किसने बनाया। समझ आते ही राजेंद्र नज़रे घुमा कर भोजन बनाने वाली को ढूंढने लग गया पर वो शक्श उसे कहीं दिखा नहीं तो राजेंद्र बोला... भोजन के सुगंध से इतना तो जान गया हूं। आज का भोजन बहू ने बनाया हैं पर बहू कहा है दिख नहीं रही और रघु भी नहीं दिखा रहा। क्या रघु अभी तक ऑफिस से नहीं आया?

सुरभि…रघु, बहू को रात की भोजन पर बहार ले गया हैं। इसलिए दोनों नहीं दिख रहे हैं।

राजेंद्र बहू और बेटे के रात में बहार जानें की बात सुनकर थोड़ा चिंतित भाव से बोला... किसी को भेजा या सिर्फ दोनों ही गए हैं।

सुरभि...अपने मुझे क्या मंद बुद्धि समझ लिया जो बेटे और बहू को रात में बिना किसी को साथ लिए जानें दूंगी ये जानते हुए कि बीते दिनों क्या हुआ था।

राजेंद्र…सुरभि मैंने ऐसा तो नहीं कहा मैंने सिर्फ जानने के लिए पुछा था।

सुरभि... हां हां मैं समझ गई आप क्या कहना चाहते थे।

पुष्पा...ahaaa मां चुप चप भोजन करो नहीं तो महारानी को गुस्सा आ जायेगा।

पुष्पा के इतना बोलते ही राजेंद्र और सुरभि बस मुस्कुरा कर पुष्पा को देखा फिर भोजन करने में डाट गए। इधर जब रघु के बहार जानें की बात चल रहा था। तब सुकन्या, रावण की और देख रही थीं कि रघु के रात में बहार जानें की बात सुनकर रावण क्या प्रतिक्रिया देता हैं पर रावण ने कोई विशेष प्रतिक्रिया नहीं दिया बस मुस्कुराकर राजेंद्र की और देखा फिर भोजन करने लग गया। पति का मुस्कुराना भी सुकन्या के मन में शंका का बीज वो दिया जबकि रावण साधारण भाव से मुस्कुराया था। क्योंकि उसे अपने दिन याद आ गया था। वो भी शादी के मात्र एक हफ्ते के भीतर ही सुकन्या को रात्रि भोजन पर बहार ले गया था। किन्तु यह बात सुकन्या को कौन समझाए पर सुकन्या का शंका करना भी जायज हैं क्योंकि बीते दिनों में जो भी रघु के साथ हुआ था। उनमें हाथ रावण का था। तो पति को मुस्कुराते हुए देखकर सुकन्या मन में बोली... मुझे शंका हों रहा हैं इनके मुस्कुराने के पीछे कोई तो कारण होगा। हे प्रभु उन दोनों को सही सलामत घर भेज देना आगर इन्होंने कुछ भी ऊंच नीच किया रघु और बहु को हानि पहुंचने की चेष्टा भी किया तो मैं इनको उचित सबक शिखाऊंगी।

मन में प्रभु से रघु के सुरक्षित घर पहुंचने की विनती करते हुए सुकन्या भोजन करने लग गईं। कुछ ही देर में भोजन खत्म करके एक एक करके सभी उठकर चले गए राजेन्द्र अभी भी भोजन किए जा रहा था। कुछ वक्त में राजेन्द्र का भोजन समाप्त हुआ फ़िर राजेन्द्र बोला…सुरभि मैं सोनो जा रहा हूं । तुम्हें आने में कितना देर लगेगा।

सुरभि… मुझे थोड़ा देर लगेंगी रघु और बहु के आने के बाद आ जाऊंगी।

राजेन्द्र सिर्फ हां में सिर हिलाकर मुस्कुराते हुए सोने चला गया। अब हम चलते है भोजनालय जहां रघु और कमला ने भोजन कर लिया था और अपने अपने कुर्सी से उठकर एक दूसरे का हाथ थामे चल दिया। कुछ कदम चला ही था कि रघु को कुछ याद आया तो रूक कर मेज से झूठे बर्तनों को समेट रहे वेटर से बोला... सुनो भाई जिन भोजनों को हमने वापस किया था उन्हें याद से जरूरत मंदों तक पहुंचा देना।

"जी साहब जरूर पहुंचा देंगे आप निश्चित होकर जाइए"

इतना सुनकर रघु कमला का हाथ थामे चल दिया। दोनों के कुछ दूर जाते ही झूठे बर्तन समेट रहें वेटर ने दूसरे वेटर से बोला...जा जल्दी से जाकर बोलकर आ नहीं तो मालिक वो भोजन किसी ओर को परोस देंगे।

इतना सुनकर दूसरा वेटर रिसेप्शन की और दौड़ लगा दिया। वहां पहुंचकर बोला...मालिक अभी जो भोजन वापिस कर गया था वो किसी ओर को मत परोसना उसे पैक करके जरूरत मंदों तक पहुंचाने का शक्त निर्देश देकर गए हैं।

"तू चुप चाप जाकर अपना काम कर और वापिस किए भोजनों का क्या करना हैं मुझसे बेहतर कोई नहीं जानता"

"मालिक मैं जानता हूं आप उन भोजनों का क्या करने वाले हों पर ऐसा करना क्या ठीक होगा। उन भोजनों का बिल हमे पहले ही मिल चुका हैं फिर से दुबारा दूसरे ग्राहकों को वो भोजन परोसकर पैसे ऐठना क्या सही होगा।"

"तू मुझे ज्ञान न दे जाकर अपना काम कर। ये भोजनालय मेरा है यहां बन रहे भोजनों से कैसे पैसे कामना है मुझे अच्छे से आता हैं।"

तभी पीछे से एक रूबदार आवाज़ आया... बहुत खूब बर्खूरदार जरा मुझे भी बताएंगे कि आप यहां बन रहे भोजनों को कैसे बेचकर पैसे कमाते हों।

आवाज आई दिशा में देखते ही भोनालय मालिक की सिट्टी पिट्टी गुम हो गया और हकलाते हुए बोला... अरे युवराज आप!

जी हा बोलने वाला रघु ही था। बहार पहुंचते ही रघु को याद आया उसके साथ आए अंगरक्षक के किए भोजन का बिल दिया ही नहीं तो कमला को बहार रुकने को बोलकर अंदर आया। रिसेप्शन पर पहुंचते ही मालिक और वेटर की बाते सुन लिया। उनकी बाते सुनकर रघु का पारा चढ़ गया तब रुआबदार आवाज में बोला था।

रघु... हां मैं आया तो था तुम्हरा बचा हुआ बिल देने पर यहां आकर तो कुछ ओर ही सुनने को मिला तुम्हे शर्म नहीं आता ऐसे एक भोजन को दो बार बेचकर चंद कागज के नोट कमाते हुए।

रघु के बात का कोई जवाब भोजनालय मालिक के पास नहीं था वो आज कालाबाजारी करते हुए पकड़ा गया था। पकड़ा भी किसने रघु ने कोई और होता तो शायद कुछ लेन देन करके रफा दफा कर देता पर रघु के सामने ऐसा कुछ नहीं हो सकता इसलिए माफी मांगते हुए बोला…युवराज माफ कर दीजिए ऐसी गलती दुबारा नहीं होगा।

रघु... माफी शब्द तुम्हारे मुंह से शोभा नहीं देता तुम जैसा चापलूस और लालची इंसान चंद कागज के नोट कमाने के लिऐ कितना नीचे गिर सकता है वो आज मैं देख चुका हूं। तुम्हारी पहली गलती मैंने माफ कर दिया था पर इस बार तुम्हें माफ किया तो तुम मेरे जाते ही फिर से अपने रंग में आ जाओगे।

रघु की बात सुनते ही भोजन मालिक समझ गया आज या तो उसके जीवन का अंतिम दिन होगा या फिर उसके भोजनालय का अंतिम दिन होगा इसलिए तुरंत अपने जगह से हिला और रघु के पैरों में गिरकर बोला...मालिक रहम कीजिए मेरे जीविका का यहीं एक मात्र साधन है इसको कुछ हुआ तो मैं अपने बच्चो का भरण पोषण कैसे करूंगा।

रघु दो कदम पीछे हटकर बोला... अब तुम्हें अपने बच्चो की याद आ रहीं हैं। तब क्यों नहीं सोचा जब तुम एक भोजन की कीमत दो बार ले रहें थे। मैं जानता हूं ये तुम जैसे नीच और गिरे हुए लोग का पैतृक योजना हैं जब पकड़े जाओ तो बच्चो की दुहाई देकर बच निकलने की सोचते हों पर डरो नहीं मैं कुछ नहीं करने वाला करेंगे तो वो लोग जो तुम्हारे भोजनालय में भोजन करने आते हैं और तुम उनके साथ जालसाजी करते हों।

फिर सामने बैठे लोगों की ओर देखकर बोला…प्रिय सजनो जरा मेरी बातों को ध्यान से सुनो जिस भोजनालय में आप इस वक्त भोजन कर रहें हैं वहा का मालिक आपके साथ जालसाजी करता हैं। आपके बिल देने के बावजूद बचे हुए भोजनों को दूसरे ग्राहकों को परोसकर पैसे ऐठता हैं। ऐसे इंसान के साथ आप क्या करना चाहते है ये मैं आप पर छोड़ता हूं।

रघु के इतना बोलते ही वहां मौजूद लोगों में खुसर फुसर होने लग गया। कोई कुछ तो कोई कुछ बोल रहा था और रघु वेटर से बोला... भाई जिन भोजनों को मैंने वापिस लौटाया था उसे पैक करके मुझे दे दो मैं ख़ुद उसे उस तक पहुंचा दूंगा जिसे उसकी जरूरत हैं। हा और एक बात सुनो मुझे लगाता है आज के बाद ये भोजनालय बंद होने वाला है तो यहां काम करने वाले लोगों को चिंता करने की जरूरत नहीं हैं महल आकर मुझसे या फिर पिताजी से मिल लेना तुम्हारे काम की व्यवस्था हों जायेगा।

इतना बोलने के बाद वो वेटर कृतज्ञता से रघु को देखा और जल्दी से सभी भोजन पैक करके एक थैली में रघु को दे दिया। रघु थैला लेकर बहार चल दिया और वहां मौजूद लोग तरह तरह की गली गलोच करते हुए एक एक करके निकलने लग गए और भोजनालय का मालिक सिर पकड़कर बैठ गया। तभी एक बुजुर्ग बंदा उसके पास आया और बोल... मैंने तुझे बोला था की ऐसा न कर पर तूने सुना नहीं आज देख क्या हों गया तेरे लालच के कारण आज ये भोजनलय बंद होने के कगार पर आ गया। तूने मुझे भी ठगा था उस दिन मैंने कहा था। किसी दिन कोई ऐसा आयेगा जो तेरे कालाबाजारी का काला चिट्ठा खोल देगा देख आज हों गया न।


इतना कहकर वो बुजुर्ग भी धीरे धीरे बहार चला गया और भोजनालय मालिक एक एक ग्राहक को बस जाते हुए देखता रहा देखने के अलावा कर भी क्या सकता था। खैर जो हुआ अच्छा हुआ आज के लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिऐ सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
update achcha hai maharani ji ki shaan yani pushpa ji ka jikar hua maja aaya hotel me hotel malik ko sabak sikhaya lekin uska dhandha chaupat nai karna chahiye usko worning deni chahiye thi Chalo Jo hua Achcha hua Ravan lagta sudhar gawa
 
Will Change With Time
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update achcha hai maharani ji ki shaan yani pushpa ji ka jikar hua maja aaya hotel me hotel malik ko sabak sikhaya lekin uska dhandha chaupat nai karna chahiye usko worning deni chahiye thi Chalo Jo hua Achcha hua Ravan lagta sudhar gawa
Sukriya Rahul ji

Hotal raghu ne band kaha karvaya usne sorf costomaro ke sachai bataya baki to costomar jane unhe kya karna hai.
 

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