Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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रात्रि भोज पर गए इन हंसो के जोड़े का वापसी का सफ़र खत्म ही नहीं हों रहा था। खैर इन दोनों का सफ़र जारी रहने देते हैं। हम कुछ पल महल में बिताकर वापस आते हैं। महल में इस वक्त कुछ लोगों को छोड़कर, सभी अपने अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रहें थे। उन लोगों में एक सुरभि भी थी जो बैठक में सोफे के पुस्त पर सिर ठिकाए बैठी थीं और कोई विचार मन ही मन करते हुए मंद मंद मुस्कुरा रहीं थीं। उसी वक्त रतन और धीरा किचन के कामों से निजात पाकर विश्राम करने अपने कमरे में जा रहें थे। तब उनकी नज़र बैठक में बैठी सुरभि पर पड़ा, दोनों सुरभि के पास आए और रतन बोला...रानी मां आप अभी तक जग रहीं हों , क्या आपको सोना नहीं हैं?

धीरा... रानी मां आपको नींद नहीं आ रहीं तो क्या मैं आपकी सिर की मालिश करके नींद आने में कुछ मदद कर दूं।

इतना बोलकर धीरा झटपट सुरभि के पीछे पहुंचा और हल्के हाथों से सुरभि के सिर की मालिश करने लग गईं। सिर की मालिश हों ये किसे अच्छा नहीं लगेगा तो सुरभि को भी अच्छा लग रहा था फिर भी सुरभि धीरा को रोकते हुए बोलीं... धीरा रहने दे और जाकर विश्राम कर, दिन भर की काम से थक गया होगा।

धीरा... रानी मां मालिश करने दीजिए न, देखो अपको भी अच्छा लग रहा है। कुछ देर आपके सिर की मालिश कर देता हूं जिससे आपको नींद आने लगेगी फिर आप जाकर सो जाना तब मैं भी जाकर सो जाऊंगा।

सुरभि...अरे बाबा मुझे नींद न आने की बीमारी नहीं हैं। मुझे तो बहुत ही ज्यादा नींद आ रहीं हैं। मैं बस रघु और बहु के लौटने की प्रतीक्षा कर रही हूं। दोनों रात्रि भोज पर बहार जो गए हैं।

धीरा...Oooo ऐसा किया! चलो अच्छा हुआ जो भाभी जी बहार गई नहीं तो भोजन परोसते वक्त फिर से जिद्द करने लग जाती।

धीरा का कमला को भाभी बोलना सुरभि को आश्चर्यचकित कर दिया इसलिए झट से बंद आंखे खोलकर धीरा की ओर आश्चर्य भव से देखते हुए बोलीं... धीरा तू तो कहता था बहु को मालकिन के अलावा कुछ नहीं बोलेगा फ़िर आज ये बदलाव कैसे आया।

धीरा अफसोस जताते हुए बोला... क्या करू रानी मां भाभी जी के जिद्द के आगे झुकना पड़ा, उनका कहना हैं उन्हें भाभी के अलावा कुछ न कहूं इसलिए मजबूरी में भाभी जी कहना पड़ रहा हैं।

सुरभि ने धीरे से हाथ को उठाया और धीरा के गाल सहलाते हुए बोला...मजबूरी कैसा, तू रघु को भाई मानता है उसे भाई बोलता भी हैं फ़िर बहू को भाभी बोलने में झिझक कैसी मैं तो यहीं कहूंगा इस महल में आने वाली प्रत्येक बहू को तू भाभी कहें।

इतना कहकर सुरभि मंद मंद मुस्कुरा दिया साथ में धीरा भी मुस्कुरा दिया। लेकिन रतन शिकयत भरे लहजे में बोला... रानी मां बहू रानी हद से ज्यादा जिद्द करती हैं आज उन्हें किचन में काम करने से रोका तो हमें ही किचन से बाहर निकल दे रहीं थीं।

धीरा भी रतन का साथ देते हुए बोला...हां रानी मां, भाला ऐसा भी कोई करता हैं। आपको उन्हें रोकना चहिए।

सुरभि... मैं तो नहीं रोकने वाली और रोगूंगी भी क्यों जब पुष्पा को महल के अन्दर कुछ भी करने से नहीं रोकती तो भाला बहू को क्यों रोकुंगी, वो भी तो मेरी दूसरी बेटी हैं।

रतन... वहा जी वहा सोचा था आपसे शिकायत करूंगा तो आप बहुरानी को टोंकेंगी पर नहीं आप तो उल्टा बहुरानी का साथ दे रहीं हों।

सुरभि... साथ क्यों न दूं? बहू का साथ देने से मेरा भी फायदा होगा। मेरा भी मन करता है सभी को अपने हाथों से भोजन बनाकर खिलाऊं पर जब से आप दोनों आए हों तब से मुझे किचन में काम करने ही नहीं देती शायद इसलिए प्रभु को मुझ पर दया आ गया होगा। एक ऐसी लडकी को मेरी बहू बनकर भेजा जो पाक कला में निपुण है और उसके जिद्द के आगे आप दोनों नतमस्तक हों ही ही ही।

इतना बोलकर सुरभि ही ही ही कर हंस दिया हसीं तो रतन और धीरा को भी आ गया था इसलिए हंसते हुए रतन बोला... धीरा बेटा लगता है जल्दी ही हमें हमारा बोरिया बिस्तर समेट कर कहीं ओर काम ढूंढना पड़ेगा क्योंकि रानी मां और बहु रानी के करण हमसे हमारा काम जो छीनने वाला है ही ही ही।

रतन ये सभी बाते हंसी के लहजे में कहा था तो सुरभि भी उसी लहजे में बोली... एक काम छीन गया तो क्या हुआ मैं आपके लिऐ दूसरा काम ढूंढ लूंगी पर आपको इस महल से कहीं और जानें नहीं दूंगी। बाते बहुत हों गया अब जाकर निंद्रा लिजिए फिर धीर का हाथ सिर से हटाकर बोला... धीरा, बेटा बहुत मालिश कर लिया अब जा जाकर सो जा।

अंत में सुरभि ने धीरा को हल्की डांटते हुए कहा था तो धीरा हल्का सा मुस्कुराकर शुभ रात्रि बोलकर चल दिया साथ में रतन भी चल दिया। दोनों के जानें के बाद सुरभि सोफे के पुस्त से सिर ठिकाए बैठी बैठी बेटे और बहू के लौटकर आने की प्रतीक्षा करने लग गईं।

महल के दूसरे कमरे में कुछ हलचल हों रहा हैं जरा उनकी भी हालचाल ले लिया जाएं। यहां कमरा रावण और सुकन्या का हैं। रूम में आने के बाद न जानें सुकन्या के मन में क्या चल रही थीं जो अजीब ढंग से मुस्कुराते हुए पति को देखा फिर अलमारी से रात्रि में पहनकर सोने वाले रात्रि वस्त्र निकाला, ये रात्रि वस्त्र हद से ज्यादा झीना था। जिसे हाथ में लेकर बाथरूम की ओर चल दिया जैसे ही रावण के सामने पहुंची न जानें कैसे रात्रि वस्त्र सुकन्या के हाथ से गिर गईं। "Opsss ये कैसे गिर गया" इतना बोलकर अदा दिखाते हुए रात्रि वस्त्र को हाथ में लिया और रावण की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बाथरूम में घुस गई।

अभी अभी जो भी हुआ उसे देखकर रावण हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर अलमारी से खुद के रात्रि वस्त्र निकालकर बैठ गया और सुकन्या के बाथरूम से निकलने की प्रतीक्षा करने लग गया। सुकन्या बाथरूम में घुसकर रात्रि वस्त्र को उसके लंबाई में फैलाकर देखते हुए बोलीं...मन तो नहीं कर रहा हैं की ये वस्त्र पहनकर आपके सामने जाऊं पर (एक गहरी स्वास लेकर आगे बोलना शुरू किया) पर आज आपकी एक हंसी, जिसका मतलब मैं समझ नहीं पाई साथ ही मुझे ये सोचने पर मजबूर किया कि कुछ तो आपके मन मस्तिका में षड्यंत्र चल रहा हैं। जिसका मुझे पता नहीं और ( कुछ देर की चुप्पी साधी रहीं फ़िर आगे बोलना शुरु किया) और आगर मुझे आपके षड्यंत्र का पाता लगाना हैं। तो मुझे आपसे रूठने का नाटक करना छोड़ना पड़ेगा जिसकी शुरुवात आज से ही होगा।( फ़िर कुछ सोचकर एक कामिनी मुस्कान लवों पर सजाकर आगे बोलना शुरु किया) आप कहते हो न मैं आपकी मेनका हूं तो आज से आपकी ये मेनका अपने परिवार की भले के लिऐ सच में मेनका बनेगी और आपके पेट में छुपी बातों को उगलकर रहेगी।

इतना बोलकर झटपट वस्त्र बदली किया और बाथरूम का दरवाजा खोलकर मस्तानी अदा से चलते हुए रावण के सामने से गुजरकर श्रृंगार दान के सामने खड़ी होकर बालों को सवरने लग गई साथ ही खांकिओ से रावण को भी देख रहीं थीं। रावण के तो हाव भव बदले हुए थे। वो तो बस टक टाकी लगाए बीबी को झीनी रात्रि वस्त्र में देख रहा था। खैर कुछ देर बाद सुकन्या श्रृंगार दान के सामने से हटकर बिस्तर पर जाकर लेट गई और कंबल से खुद को ढक लिया। रंग मंच पर पर्दा गिरते ही रावण की तंद्रा टूटा और झटपट बाथरूम में घुस गया फिर उत्साह में वस्त्र बदलते हुए खुद से बोला... आज लगता हैं सुकन्या मुड़ में हैं। चलो अच्छा हुआ इसी बहाने हमारा मनमुटाव दूर हों जायेगा जो बहुत दिनों से चली आ रहीं थीं। तुम नहीं जानती मैं कितना तड़पा हूं एक ही घर में एक ही विस्तार पर अजनबी जैसा बिता रहा था पर ( कुछ देर रुककर एक गहरी स्वास लिया फिर आगे बोलना शुरू किया) पर आज तुम्हें बताऊंगा की मैं कितना तड़पा हूं। साथ ही ये भी बताऊंगा पति के साथ गैरों जैसा व्यवहार करने की क्या सजा मिलता हैं (एक अजीब सी हसीं हंसकर आगे बोला) सजा कहा वो मजा होगा अदभुत मजा, मस्ती होगा।

अब इस उत्साही मानुष को कौन समझाए कि उसकी बीबी जो भी कर रहीं हैं एक षड्यंत्र के तहत कर रही हैं। जी हा षड्यंत्र पर सुकन्या का षड्यंत्र किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं, नहीं कहना गलत होगा क्योंकि नुकसान तो होगा पर सिर्फ रावण को या फ़िर उसके साथ देने वाले लोगों को, खैर रावण झटपट बिस्तर पर पहुंचा, जितनी जल्दी विस्तार तक पंहुचा उससे भी ज्यादा जल्दी कंबल के अन्दर घुस गया। सुकन्या विस्तार के दूसरे कोने में सोई थी तो रावण थोड़ा सा कंबल के अन्दर खिसककर सुकन्या के थोड़ा नजदीक पहुंचा इतना नजदीक की रावण अपने हाथ को आजादी से सुकन्या के जिस्म पर फिरा पाए।

विस्तार पर हलचल और कंबल के अन्दर पति का खिसककर नजदीक आने की आभास पाकर सुकन्या खुले मन से ऐसे मुस्कुराई जैसे उसकी चली चाल सफल हों गईं हों। सुकन्या का चला चाल सफल ही हुआ था तभी तो रावण इतना उतावला हुआ जा रहा हैं। खैर थोड़ा नजदीक खिसककर रावण धीरे से हाथ आगे बढ़कर सुकन्या के कमर पर रख दिया, क्षण बीतने से पहले सुकन्या ने पति का हाथ झटक दिया और चिड़ाने के अंदाज़ में मुस्कुरा दिया हालाकि रावण बीबी के चहरे का भाव नहीं देख पाया क्योंकि सुकन्या का मुंह रावण के विपरीत दिशा में था।

"ओ हों नखरे" इतना बोलकर एक बार ओर हाथ सुकन्या के कमर पर रख दिया। कुछ देर हाथ को रोके रखा सिर्फ़ बीबी की प्रतिक्रिया जानने के लिऐ जब सुकन्या ने कुछ नहीं किया तो धीरे धीरे रावण अपने हाथ को सुकन्या के पेट की ओर बढ़ाने लग गया। कमर की ढलान से हाथ का कुछ हिस्सा उतरा ही था कि सुकन्या ने पति का हाथ थाम लिया और आगे बढ़ने से रोक दिया फिर मंद मंद मुस्कुराते हुए मन ही मन बोलीं... इतनी भी जल्दी क्या हैं अभी तो आपको मेरे कई सवालों के जवाब देना हैं।

रावण भी कम धूर्त नहीं था "अच्छा जी" मन में बोला और धीरे धीरे हाथ को वापस खींचने लग गया। कमर के उठाव तक हाथ पहुंचते ही हल्का सा नकोच लिया, "aauchhh" की एक आवाज सुकन्या के मुंह से निकाला और लंबाई में फैली टांगो को सिकोड़कर पति का हाथ झटक दिया। कमीने मुस्कान से मुस्कुराकर रावण धीरे से बोला... मुझसे ही सियानापंती पर शायद तुम भूल रहीं हों मैं रावण हूं और रावण से ज्यादा धूर्त कोई नहीं हा हा हां।

रावण अटहस करते हुए हंसा तो सही पर अटाहस की ध्वनि मुंह से नहीं निकला सिर्फ मुंह खुला और बंद हुआ सुकन्या को शायद पति का धीरे से बोलना सुनाई दे गया होगा इसलिए सुकन्या बोलीं... पुरुष चाहें कितना भी धूर्त हों, चाहें वो दुनिया का सबसे धूर्त पुरुष रावण ही क्यों न हों। स्त्री आगर चाहें तो किसी भी पुरुष के धूर्तता को चुटकियों में चकना चूर कर सकती हैं।

इसके बाद कमरे में बिल्कुल सन्नाटा छा गया न रावण कुछ कर रहा था न सुकन्या कुछ कर रहीं थीं मतलब सीधा सा हैं दोनों में हिल डोल बिल्कुल बंद था। कमरे का मंजर देकर ऐसा लग रहा था जैसे कमरे में कोई हैं ही नहीं, आगर कोई हैं भी तो वे शांत चित्त मन से निंद्रा लेने में विलीन होंगे पर ऐसा कुछ नहीं दोनों जागे हुए थे बस छुपी साद लिया था कुछ देर की चुप्पी के बाद रावण मन में बोला...यार आज हों क्या रहा हैं सुकन्या ने मेरे पसन्द के रात्रि वस्त्र पहना हैं फिर भी छूते ही ऐसे झटके मार रहीं हैं जैसे बिजली का नंगा तार छू लिया हों, उम्र की इस पड़ाव में आकर भी मेरी सुकन्या में करेंट अभी बाकी हैं ahaaa क्या करेंट मरती हैं (फिर एक गहरी स्वास छोड़कर और कमीने मुस्कान से मुस्कुराकर आगे बोला) इस आगाज को अंजाम तक पंहुचा कर ही रहूंगा उसके लिए चाहें मुझे कितनी भी कोशिशें क्यों न करना पड़े।

इतना बोलकर रावण एक बार फ़िर से कोशिश करना शुरू कर दिया धीरे से हाथ को आगे बढ़ाकर सुकन्या के कमर पर रख दिया कुछ देर रूके रहने के बाद उंगलियों के पोर से धीरे धीरे सहलाने लग गया मानों सुकन्या को गुदगुदा रहा हों। ये एक कारगार तरीका था जिसका असर यूं हुआ कि सुकन्या के जिस्म में झनझनाहट पैदा हुआ जो उसके पुरे बदन में फैलती चली गईं और जिस्म का एक एक रोआ तन गया एक aahaaa सुकन्या के मुंह से निकाला फ़िर हल्का सा मुस्कुराते हुए मन में बोलीं... ओ तो अब ये तरीका अजमाया जा रहा हैं पर आप शायद भूल गए हों अपके साथ रहकर अपके हर पैंतरे का तोड़ मैं जान गई हूं।

इतना बोलकर सुकन्या ने एक गहरी स्वास लिया और अपने मस्तिष्क को दूसरे दिशा में मोड़ लिया पर कब तक ध्यान को कहीं और लगा पाती बार बार लौट कर पति के हाथ और उसके करतब पर आकर टिक जाती जब-जब ध्यान वापस उसी जगह आता तब-तब सुकन्या के जिस्म को एक झटका सा लगता जिसका आभास रावण को हों रहा था। मंद मंद मुस्कुराते हुए रावण अगली करवाई की और बढ़ा उंगलियों के पोर की सहयता से उंगलियों को धीरे धीरे चलाते हुए नीचे जांघों की और बढ़ने लगा, कमर की ढलान से नीचे जांघों की और करीब चार इंच की दूरी तय किया ही था कि सुकन्या थोड़ा सा हिला और एक बार फिर से पति का हाथ झटक दिया और झिड़कते हुए बोलीं… मुझे परेशान क्यों कर रहें हों चुप चाप बिस्तर का दुसरा कोना पकड़ो फिर सो जाओ और मुझे भी सोने दो।

इतना सुनते ही रावण पलक झपकने से पहले सुकन्या के नजदीक खिसक आया और सुकन्या के जिस्म से खुद को सटाकर नाक से धीरे धीरे सुकन्या के गर्दन को सहलाते हुए बोला...suknyaaa ( एक गहरी स्वास छोड़ा और दांत पीसते हुए आगे बोला) क्यों नखरे कर रहीं हों मैं जानता हूं मन तुम्हरा भी है इसलिए मेरे पसन्द का रात्रि वस्त्र पहनें हों।

गर्म स्वांस का छुवान और नाक से सहलाने का असर यूं हुआ की सुकन्या के जिस्म में तरंगे दौड़ गई और सुकन्या बहकने लगीं कुछ वक्त तक बर्दास्त किया जब बर्दास्त से बहार होने लगा तो सुकन्या तुरंत पलटी और पति के छीने पर दोनों हाथ टिकाए पुरे बदन का ताकत इकट्ठा करके एक धक्का दिया जिससे रावण थोड़ा दूर खिसक गया और सुकन्या झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोलीं... बीबी रूठी हुई हैं उसे मानने के जगह आपको मस्ती सूझ रहा हैं। मैं (रोने का अभिनय करते हुए आगे बोली) मैं आज पहल नहीं करती तो आप मेरे नजदीक भी नहीं आते जाओ जी मुझे आपसे बात नहीं करना।

रावण स्वाभाव का भले ही कितना बुरा हों पर बीबी के लिऐ उसके दिल में अथह प्रेम हैं। भले ही सुकन्या ने दिखावे का आंसू बहाया था पर सुकन्या के बहाए दिखावे का आंसू रावण के दिल को खसोट गया इसलिए रावण तुरत सुकन्या के नजदीक आया और लेटे लेटे सुकन्या को अपने छीने से लगा लिया फिर बोला... सुकन्या तुम ये अच्छे से जानती हों मैंने तुम्हें मानने की कितनी कोशिश किया पर तुम मानने के जगह मुझसे और ज्यादा रूठ गई। इतना रूठ गईं की मेरे साथ गैरों जैसा सलूक करने लग गई। तुम्हारा गैरों जैसा सलूक करना मुझे हद से ज्यादा चोट पंहुचा रहा था फ़िर भी मैं तुम्हें मानने का जतन करता रहा।

पति के साथ गैरों जैसा सलूक करना सुकन्या को भी अच्छा नहीं लग रहा था उसको भी तकलीफ हों रहा था फ़िर भी दिल को पत्थर जैसा बनाकर पति के साथ गैरों जैसा सलूक करता रहा सिर्फ़ इसलिए कि उसका पति जुर्म, दरिंदगी और अपनो को चोट पहुंचाने का रास्ता छोड़कर उसके बताए रास्ते पर चलें पर रावण मानने को तैयार नहीं हों रहा था मगर आज पति के बोले शब्दों में दर्द और आखों में तड़प देखकर सुकन्या ख़ुद में ग्लानि अनुभव करने लग गई। परन्तु ग्लानि का भाव चहरे पर न लाकर सपाट भाव से बोलीं... मैं आपसे गैरों जैसा सलूक कर रहीं थीं आप इतना मनाने की कोशिश कर रहें थे फिर भी मैं मानने को राजी नहीं हों रहीं थीं जरा आप सोचो मैंने आपसे क्या मांगा था बस इतना ही कि आप जिस राह पर चल रहे थे उसे छोड़कर मेरे बताए रास्ते पर चलो क्या मैं आपसे इतनी मांग भी नहीं कर सकती।

रावण... तुम मुझसे मांग नहीं रखोगी तो फिर किससे रखोगी मगर अचानक तुमने एक ऐसी मांग रख दिया जिसे छोड़ पाना मेरे लिऐ असंभव सा था फ़िर भी मैं तुमसे उस पर चर्चा करना चाहता था इसलिए मैं तुम्हें मानने की जतन करने लगा मगर तुम तो ठान कर बैठी थी जो तुमने कहा वो नहीं माना तो तुम मुझसे बात भी नहीं करोगी तब मुझे लगा जैसे मेरे लिऐ एक एक कर सभी रास्ते बंद होता जा रहा हैं। लेकिन मुझे कोई न कोई रास्ता खोजना ही था तो मैं सलाह मशविरा करने दलाल के पास पहुंच गया। उसने जो बताया उसे सुनकर मैं और ज्यादा उलझ गया। समझ ही नहीं पा रहा हूं अपने सपने को पाने का रास्ता चुनूं या फिर वो रास्ता जिस पर तुमने चलने को कहा।

पति का खुलासा सुनकर सुकन्या ओर ज्यादा ग्लानि से भर गई कि उसका पति उससे सलाह मशवरा करना चाहता था मगर सुकन्या रूठने का दिखावा करती रहीं उसे ये भी लग रहा था वो कितना गलत कर रहीं थीं जबकि उसके पति को उसके साथ की जरूरत थीं मगर साथ देने के जगह अपनी ही जिद्द पर अड़ी रहीं मगर जब रावण ने दलाल से सलाह मशवरा करने की बात कहीं तो उसके अन्दर उत्सुकता जग गईं कि ऐसा क्या दलाल ने कहा जिससे उसका पति ओर ज्यादा उलझ गया। तब सुकन्या बोलीं... मैं मानती हूं कि जो भी आपके साथ व्यवहार किया ऐसा मुझे नहीं करना चहिए था उसके लिऐ मुझे माफ कर देना मगर मैं ये भी जानना चहती हूं की दलाल ने आपको ऐसा क्या बताया जिससे आप और ज्यादा उलझ गए।

अंत में दलाल से हुई बात जानें की बात कहते वक्त सुकन्या विनती करते हुए कहा था इसलिए रावण मुस्कुराते हुए बोला... ठीक हैं मैं तुम्हें एक एक बात बताता हूं फ़िर तुम बताना मुझे क्या फैसला करना चहिए।

आगे जारी रहेगा….
 
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अपडेट 54 पोस्ट कर दिया हैं। लेकिन टिप्पड़िया उम्मीद से काम आ रहें हैं। पलट तेरा ध्यान किधर हैं।
 
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Maine soncha araam se padhte hain tera kya pata agla update kab dega ishiliye late kar raha lekin baki readers meko kyu follow kar rele samjh na aaya :confuse:
 
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रात्रि भोज पर गए इन हंसो के जोड़े का वापसी का सफ़र खत्म ही नहीं हों रहा था। खैर इन दोनों का सफ़र जारी रहने देते हैं। हम कुछ पल महल में बिताकर वापस आते हैं। महल में इस वक्त कुछ लोगों को छोड़कर, सभी अपने अपने कमरे में सोने की तैयारी कर रहें थे। उन लोगों में एक सुरभि भी थी जो बैठक में सोफे के पुस्त पर सिर ठिकाए बैठी थीं और कोई विचार मन ही मन करते हुए मंद मंद मुस्कुरा रहीं थीं। उसी वक्त रतन और धीरा किचन के कामों से निजात पाकर विश्राम करने अपने कमरे में जा रहें थे। तब उनकी नज़र बैठक में बैठी सुरभि पर पड़ा, दोनों सुरभि के पास आए और रतन बोला...रानी मां आप अभी तक जग रहीं हों , क्या आपको सोना नहीं हैं?

धीरा... रानी मां आपको नींद नहीं आ रहीं तो क्या मैं आपकी सिर की मालिश करके नींद आने में कुछ मदद कर दूं।

इतना बोलकर धीरा झटपट सुरभि के पीछे पहुंचा और हल्के हाथों से सुरभि के सिर की मालिश करने लग गईं। सिर की मालिश हों ये किसे अच्छा नहीं लगेगा तो सुरभि को भी अच्छा लग रहा था फिर भी सुरभि धीरा को रोकते हुए बोलीं... धीरा रहने दे और जाकर विश्राम कर, दिन भर की काम से थक गया होगा।

धीरा... रानी मां मालिश करने दीजिए न, देखो अपको भी अच्छा लग रहा है। कुछ देर आपके सिर की मालिश कर देता हूं जिससे आपको नींद आने लगेगी फिर आप जाकर सो जाना तब मैं भी जाकर सो जाऊंगा।

सुरभि...अरे बाबा मुझे नींद न आने की बीमारी नहीं हैं। मुझे तो बहुत ही ज्यादा नींद आ रहीं हैं। मैं बस रघु और बहु के लौटने की प्रतीक्षा कर रही हूं। दोनों रात्रि भोज पर बहार जो गए हैं।

धीरा...Oooo ऐसा किया! चलो अच्छा हुआ जो भाभी जी बहार गई नहीं तो भोजन परोसते वक्त फिर से जिद्द करने लग जाती।

धीरा का कमला को भाभी बोलना सुरभि को आश्चर्यचकित कर दिया इसलिए झट से बंद आंखे खोलकर धीरा की ओर आश्चर्य भव से देखते हुए बोलीं... धीरा तू तो कहता था बहु को मालकिन के अलावा कुछ नहीं बोलेगा फ़िर आज ये बदलाव कैसे आया।

धीरा अफसोस जताते हुए बोला... क्या करू रानी मां भाभी जी के जिद्द के आगे झुकना पड़ा, उनका कहना हैं उन्हें भाभी के अलावा कुछ न कहूं इसलिए मजबूरी में भाभी जी कहना पड़ रहा हैं।

सुरभि ने धीरे से हाथ को उठाया और धीरा के गाल सहलाते हुए बोला...मजबूरी कैसा, तू रघु को भाई मानता है उसे भाई बोलता भी हैं फ़िर बहू को भाभी बोलने में झिझक कैसी मैं तो यहीं कहूंगा इस महल में आने वाली प्रत्येक बहू को तू भाभी कहें।

इतना कहकर सुरभि मंद मंद मुस्कुरा दिया साथ में धीरा भी मुस्कुरा दिया। लेकिन रतन शिकयत भरे लहजे में बोला... रानी मां बहू रानी हद से ज्यादा जिद्द करती हैं आज उन्हें किचन में काम करने से रोका तो हमें ही किचन से बाहर निकल दे रहीं थीं।

धीरा भी रतन का साथ देते हुए बोला...हां रानी मां, भाला ऐसा भी कोई करता हैं। आपको उन्हें रोकना चहिए।

सुरभि... मैं तो नहीं रोकने वाली और रोगूंगी भी क्यों जब पुष्पा को महल के अन्दर कुछ भी करने से नहीं रोकती तो भाला बहू को क्यों रोकुंगी, वो भी तो मेरी दूसरी बेटी हैं।

रतन... वहा जी वहा सोचा था आपसे शिकायत करूंगा तो आप बहुरानी को टोंकेंगी पर नहीं आप तो उल्टा बहुरानी का साथ दे रहीं हों।

सुरभि... साथ क्यों न दूं? बहू का साथ देने से मेरा भी फायदा होगा। मेरा भी मन करता है सभी को अपने हाथों से भोजन बनाकर खिलाऊं पर जब से आप दोनों आए हों तब से मुझे किचन में काम करने ही नहीं देती शायद इसलिए प्रभु को मुझ पर दया आ गया होगा। एक ऐसी लडकी को मेरी बहू बनकर भेजा जो पाक कला में निपुण है और उसके जिद्द के आगे आप दोनों नतमस्तक हों ही ही ही।

इतना बोलकर सुरभि ही ही ही कर हंस दिया हसीं तो रतन और धीरा को भी आ गया था इसलिए हंसते हुए रतन बोला... धीरा बेटा लगता है जल्दी ही हमें हमारा बोरिया बिस्तर समेट कर कहीं ओर काम ढूंढना पड़ेगा क्योंकि रानी मां और बहु रानी के करण हमसे हमारा काम जो छीनने वाला है ही ही ही।

रतन ये सभी बाते हंसी के लहजे में कहा था तो सुरभि भी उसी लहजे में बोली... एक काम छीन गया तो क्या हुआ मैं आपके लिऐ दूसरा काम ढूंढ लूंगी पर आपको इस महल से कहीं और जानें नहीं दूंगी। बाते बहुत हों गया अब जाकर निंद्रा लिजिए फिर धीर का हाथ सिर से हटाकर बोला... धीरा, बेटा बहुत मालिश कर लिया अब जा जाकर सो जा।

अंत में सुरभि ने धीरा को हल्की डांटते हुए कहा था तो धीरा हल्का सा मुस्कुराकर शुभ रात्रि बोलकर चल दिया साथ में रतन भी चल दिया। दोनों के जानें के बाद सुरभि सोफे के पुस्त से सिर ठिकाए बैठी बैठी बेटे और बहू के लौटकर आने की प्रतीक्षा करने लग गईं।

महल के दूसरे कमरे में कुछ हलचल हों रहा हैं जरा उनकी भी हालचाल ले लिया जाएं। यहां कमरा रावण और सुकन्या का हैं। रूम में आने के बाद न जानें सुकन्या के मन में क्या चल रही थीं जो अजीब ढंग से मुस्कुराते हुए पति को देखा फिर अलमारी से रात्रि में पहनकर सोने वाले रात्रि वस्त्र निकाला, ये रात्रि वस्त्र हद से ज्यादा झीना था। जिसे हाथ में लेकर बाथरूम की ओर चल दिया जैसे ही रावण के सामने पहुंची न जानें कैसे रात्रि वस्त्र सुकन्या के हाथ से गिर गईं। "Opsss ये कैसे गिर गया" इतना बोलकर अदा दिखाते हुए रात्रि वस्त्र को हाथ में लिया और रावण की ओर देखकर मुस्कुराते हुए बाथरूम में घुस गई।

अभी अभी जो भी हुआ उसे देखकर रावण हल्का सा मुस्कुरा दिया फिर अलमारी से खुद के रात्रि वस्त्र निकालकर बैठ गया और सुकन्या के बाथरूम से निकलने की प्रतीक्षा करने लग गया। सुकन्या बाथरूम में घुसकर रात्रि वस्त्र को उसके लंबाई में फैलाकर देखते हुए बोलीं...मन तो नहीं कर रहा हैं की ये वस्त्र पहनकर आपके सामने जाऊं पर (एक गहरी स्वास लेकर आगे बोलना शुरू किया) पर आज आपकी एक हंसी, जिसका मतलब मैं समझ नहीं पाई साथ ही मुझे ये सोचने पर मजबूर किया कि कुछ तो आपके मन मस्तिका में षड्यंत्र चल रहा हैं। जिसका मुझे पता नहीं और ( कुछ देर की चुप्पी साधी रहीं फ़िर आगे बोलना शुरु किया) और आगर मुझे आपके षड्यंत्र का पाता लगाना हैं। तो मुझे आपसे रूठने का नाटक करना छोड़ना पड़ेगा जिसकी शुरुवात आज से ही होगा।( फ़िर कुछ सोचकर एक कामिनी मुस्कान लवों पर सजाकर आगे बोलना शुरु किया) आप कहते हो न मैं आपकी मेनका हूं तो आज से आपकी ये मेनका अपने परिवार की भले के लिऐ सच में मेनका बनेगी और आपके पेट में छुपी बातों को उगलकर रहेगी।

इतना बोलकर झटपट वस्त्र बदली किया और बाथरूम का दरवाजा खोलकर मस्तानी अदा से चलते हुए रावण के सामने से गुजरकर श्रृंगार दान के सामने खड़ी होकर बालों को सवरने लग गई साथ ही खांकिओ से रावण को भी देख रहीं थीं। रावण के तो हाव भव बदले हुए थे। वो तो बस टक टाकी लगाए बीबी को झीनी रात्रि वस्त्र में देख रहा था। खैर कुछ देर बाद सुकन्या श्रृंगार दान के सामने से हटकर बिस्तर पर जाकर लेट गई और कंबल से खुद को ढक लिया। रंग मंच पर पर्दा गिरते ही रावण की तंद्रा टूटा और झटपट बाथरूम में घुस गया फिर उत्साह में वस्त्र बदलते हुए खुद से बोला... आज लगता हैं सुकन्या मुड़ में हैं। चलो अच्छा हुआ इसी बहाने हमारा मनमुटाव दूर हों जायेगा जो बहुत दिनों से चली आ रहीं थीं। तुम नहीं जानती मैं कितना तड़पा हूं एक ही घर में एक ही विस्तार पर अजनबी जैसा बिता रहा था पर ( कुछ देर रुककर एक गहरी स्वास लिया फिर आगे बोलना शुरू किया) पर आज तुम्हें बताऊंगा की मैं कितना तड़पा हूं। साथ ही ये भी बताऊंगा पति के साथ गैरों जैसा व्यवहार करने की क्या सजा मिलता हैं (एक अजीब सी हसीं हंसकर आगे बोला) सजा कहा वो मजा होगा अदभुत मजा, मस्ती होगा।

अब इस उत्साही मानुष को कौन समझाए कि उसकी बीबी जो भी कर रहीं हैं एक षड्यंत्र के तहत कर रही हैं। जी हा षड्यंत्र पर सुकन्या का षड्यंत्र किसी को नुकसान पहुंचाने के लिए नहीं, नहीं कहना गलत होगा क्योंकि नुकसान तो होगा पर सिर्फ रावण को या फ़िर उसके साथ देने वाले लोगों को, खैर रावण झटपट बिस्तर पर पहुंचा, जितनी जल्दी विस्तार तक पंहुचा उससे भी ज्यादा जल्दी कंबल के अन्दर घुस गया। सुकन्या विस्तार के दूसरे कोने में सोई थी तो रावण थोड़ा सा कंबल के अन्दर खिसककर सुकन्या के थोड़ा नजदीक पहुंचा इतना नजदीक की रावण अपने हाथ को आजादी से सुकन्या के जिस्म पर फिरा पाए।

विस्तार पर हलचल और कंबल के अन्दर पति का खिसककर नजदीक आने की आभास पाकर सुकन्या खुले मन से ऐसे मुस्कुराई जैसे उसकी चली चाल सफल हों गईं हों। सुकन्या का चला चाल सफल ही हुआ था तभी तो रावण इतना उतावला हुआ जा रहा हैं। खैर थोड़ा नजदीक खिसककर रावण धीरे से हाथ आगे बढ़कर सुकन्या के कमर पर रख दिया, क्षण बीतने से पहले सुकन्या ने पति का हाथ झटक दिया और चिड़ाने के अंदाज़ में मुस्कुरा दिया हालाकि रावण बीबी के चहरे का भाव नहीं देख पाया क्योंकि सुकन्या का मुंह रावण के विपरीत दिशा में था।

"ओ हों नखरे" इतना बोलकर एक बार ओर हाथ सुकन्या के कमर पर रख दिया। कुछ देर हाथ को रोके रखा सिर्फ़ बीबी की प्रतिक्रिया जानने के लिऐ जब सुकन्या ने कुछ नहीं किया तो धीरे धीरे रावण अपने हाथ को सुकन्या के पेट की ओर बढ़ाने लग गया। कमर की ढलान से हाथ का कुछ हिस्सा उतरा ही था कि सुकन्या ने पति का हाथ थाम लिया और आगे बढ़ने से रोक दिया फिर मंद मंद मुस्कुराते हुए मन ही मन बोलीं... इतनी भी जल्दी क्या हैं अभी तो आपको मेरे कई सवालों के जवाब देना हैं।

रावण भी कम धूर्त नहीं था "अच्छा जी" मन में बोला और धीरे धीरे हाथ को वापस खींचने लग गया। कमर के उठाव तक हाथ पहुंचते ही हल्का सा नकोच लिया, "aauchhh" की एक आवाज सुकन्या के मुंह से निकाला और लंबाई में फैली टांगो को सिकोड़कर पति का हाथ झटक दिया। कमीने मुस्कान से मुस्कुराकर रावण धीरे से बोला... मुझसे ही सियानापंती पर शायद तुम भूल रहीं हों मैं रावण हूं और रावण से ज्यादा धूर्त कोई नहीं हा हा हां।

रावण अटहस करते हुए हंसा तो सही पर अटाहस की ध्वनि मुंह से नहीं निकला सिर्फ मुंह खुला और बंद हुआ सुकन्या को शायद पति का धीरे से बोलना सुनाई दे गया होगा इसलिए सुकन्या बोलीं... पुरुष चाहें कितना भी धूर्त हों, चाहें वो दुनिया का सबसे धूर्त पुरुष रावण ही क्यों न हों। स्त्री आगर चाहें तो किसी भी पुरुष के धूर्तता को चुटकियों में चकना चूर कर सकती हैं।

इसके बाद कमरे में बिल्कुल सन्नाटा छा गया न रावण कुछ कर रहा था न सुकन्या कुछ कर रहीं थीं मतलब सीधा सा हैं दोनों में हिल डोल बिल्कुल बंद था। कमरे का मंजर देकर ऐसा लग रहा था जैसे कमरे में कोई हैं ही नहीं, आगर कोई हैं भी तो वे शांत चित्त मन से निंद्रा लेने में विलीन होंगे पर ऐसा कुछ नहीं दोनों जागे हुए थे बस छुपी साद लिया था कुछ देर की चुप्पी के बाद रावण मन में बोला...यार आज हों क्या रहा हैं सुकन्या ने मेरे पसन्द के रात्रि वस्त्र पहना हैं फिर भी छूते ही ऐसे झटके मार रहीं हैं जैसे बिजली का नंगा तार छू लिया हों, उम्र की इस पड़ाव में आकर भी मेरी सुकन्या में करेंट अभी बाकी हैं ahaaa क्या करेंट मरती हैं (फिर एक गहरी स्वास छोड़कर और कमीने मुस्कान से मुस्कुराकर आगे बोला) इस आगाज को अंजाम तक पंहुचा कर ही रहूंगा उसके लिए चाहें मुझे कितनी भी कोशिशें क्यों न करना पड़े।

इतना बोलकर रावण एक बार फ़िर से कोशिश करना शुरू कर दिया धीरे से हाथ को आगे बढ़ाकर सुकन्या के कमर पर रख दिया कुछ देर रूके रहने के बाद उंगलियों के पोर से धीरे धीरे सहलाने लग गया मानों सुकन्या को गुदगुदा रहा हों। ये एक कारगार तरीका था जिसका असर यूं हुआ कि सुकन्या के जिस्म में झनझनाहट पैदा हुआ जो उसके पुरे बदन में फैलती चली गईं और जिस्म का एक एक रोआ तन गया एक aahaaa सुकन्या के मुंह से निकाला फ़िर हल्का सा मुस्कुराते हुए मन में बोलीं... ओ तो अब ये तरीका अजमाया जा रहा हैं पर आप शायद भूल गए हों अपके साथ रहकर अपके हर पैंतरे का तोड़ मैं जान गई हूं।

इतना बोलकर सुकन्या ने एक गहरी स्वास लिया और अपने मस्तिष्क को दूसरे दिशा में मोड़ लिया पर कब तक ध्यान को कहीं और लगा पाती बार बार लौट कर पति के हाथ और उसके करतब पर आकर टिक जाती जब-जब ध्यान वापस उसी जगह आता तब-तब सुकन्या के जिस्म को एक झटका सा लगता जिसका आभास रावण को हों रहा था। मंद मंद मुस्कुराते हुए रावण अगली करवाई की और बढ़ा उंगलियों के पोर की सहयता से उंगलियों को धीरे धीरे चलाते हुए नीचे जांघों की और बढ़ने लगा, कमर की ढलान से नीचे जांघों की और करीब चार इंच की दूरी तय किया ही था कि सुकन्या थोड़ा सा हिला और एक बार फिर से पति का हाथ झटक दिया और झिड़कते हुए बोलीं… मुझे परेशान क्यों कर रहें हों चुप चाप बिस्तर का दुसरा कोना पकड़ो फिर सो जाओ और मुझे भी सोने दो।

इतना सुनते ही रावण पलक झपकने से पहले सुकन्या के नजदीक खिसक आया और सुकन्या के जिस्म से खुद को सटाकर नाक से धीरे धीरे सुकन्या के गर्दन को सहलाते हुए बोला...suknyaaa ( एक गहरी स्वास छोड़ा और दांत पीसते हुए आगे बोला) क्यों नखरे कर रहीं हों मैं जानता हूं मन तुम्हरा भी है इसलिए मेरे पसन्द का रात्रि वस्त्र पहनें हों।

गर्म स्वांस का छुवान और नाक से सहलाने का असर यूं हुआ की सुकन्या के जिस्म में तरंगे दौड़ गई और सुकन्या बहकने लगीं कुछ वक्त तक बर्दास्त किया जब बर्दास्त से बहार होने लगा तो सुकन्या तुरंत पलटी और पति के छीने पर दोनों हाथ टिकाए पुरे बदन का ताकत इकट्ठा करके एक धक्का दिया जिससे रावण थोड़ा दूर खिसक गया और सुकन्या झूठा गुस्सा दिखाते हुए बोलीं... बीबी रूठी हुई हैं उसे मानने के जगह आपको मस्ती सूझ रहा हैं। मैं (रोने का अभिनय करते हुए आगे बोली) मैं आज पहल नहीं करती तो आप मेरे नजदीक भी नहीं आते जाओ जी मुझे आपसे बात नहीं करना।

रावण स्वाभाव का भले ही कितना बुरा हों पर बीबी के लिऐ उसके दिल में अथह प्रेम हैं। भले ही सुकन्या ने दिखावे का आंसू बहाया था पर सुकन्या के बहाए दिखावे का आंसू रावण के दिल को खसोट गया इसलिए रावण तुरत सुकन्या के नजदीक आया और लेटे लेटे सुकन्या को अपने छीने से लगा लिया फिर बोला... सुकन्या तुम ये अच्छे से जानती हों मैंने तुम्हें मानने की कितनी कोशिश किया पर तुम मानने के जगह मुझसे और ज्यादा रूठ गई। इतना रूठ गईं की मेरे साथ गैरों जैसा सलूक करने लग गई। तुम्हारा गैरों जैसा सलूक करना मुझे हद से ज्यादा चोट पंहुचा रहा था फ़िर भी मैं तुम्हें मानने का जतन करता रहा।

पति के साथ गैरों जैसा सलूक करना सुकन्या को भी अच्छा नहीं लग रहा था उसको भी तकलीफ हों रहा था फ़िर भी दिल को पत्थर जैसा बनाकर पति के साथ गैरों जैसा सलूक करता रहा सिर्फ़ इसलिए कि उसका पति जुर्म, दरिंदगी और अपनो को चोट पहुंचाने का रास्ता छोड़कर उसके बताए रास्ते पर चलें पर रावण मानने को तैयार नहीं हों रहा था मगर आज पति के बोले शब्दों में दर्द और आखों में तड़प देखकर सुकन्या ख़ुद में ग्लानि अनुभव करने लग गई। परन्तु ग्लानि का भाव चहरे पर न लाकर सपाट भाव से बोलीं... मैं आपसे गैरों जैसा सलूक कर रहीं थीं आप इतना मनाने की कोशिश कर रहें थे फिर भी मैं मानने को राजी नहीं हों रहीं थीं जरा आप सोचो मैंने आपसे क्या मांगा था बस इतना ही कि आप जिस राह पर चल रहे थे उसे छोड़कर मेरे बताए रास्ते पर चलो क्या मैं आपसे इतनी मांग भी नहीं कर सकती।

रावण... तुम मुझसे मांग नहीं रखोगी तो फिर किससे रखोगी मगर अचानक तुमने एक ऐसी मांग रख दिया जिसे छोड़ पाना मेरे लिऐ असंभव सा था फ़िर भी मैं तुमसे उस पर चर्चा करना चाहता था इसलिए मैं तुम्हें मानने की जतन करने लगा मगर तुम तो ठान कर बैठी थी जो तुमने कहा वो नहीं माना तो तुम मुझसे बात भी नहीं करोगी तब मुझे लगा जैसे मेरे लिऐ एक एक कर सभी रास्ते बंद होता जा रहा हैं। लेकिन मुझे कोई न कोई रास्ता खोजना ही था तो मैं सलाह मशविरा करने दलाल के पास पहुंच गया। उसने जो बताया उसे सुनकर मैं और ज्यादा उलझ गया। समझ ही नहीं पा रहा हूं अपने सपने को पाने का रास्ता चुनूं या फिर वो रास्ता जिस पर तुमने चलने को कहा।

पति का खुलासा सुनकर सुकन्या ओर ज्यादा ग्लानि से भर गई कि उसका पति उससे सलाह मशवरा करना चाहता था मगर सुकन्या रूठने का दिखावा करती रहीं उसे ये भी लग रहा था वो कितना गलत कर रहीं थीं जबकि उसके पति को उसके साथ की जरूरत थीं मगर साथ देने के जगह अपनी ही जिद्द पर अड़ी रहीं मगर जब रावण ने दलाल से सलाह मशवरा करने की बात कहीं तो उसके अन्दर उत्सुकता जग गईं कि ऐसा क्या दलाल ने कहा जिससे उसका पति ओर ज्यादा उलझ गया। तब सुकन्या बोलीं... मैं मानती हूं कि जो भी आपके साथ व्यवहार किया ऐसा मुझे नहीं करना चहिए था उसके लिऐ मुझे माफ कर देना मगर मैं ये भी जानना चहती हूं की दलाल ने आपको ऐसा क्या बताया जिससे आप और ज्यादा उलझ गए।

अंत में दलाल से हुई बात जानें की बात कहते वक्त सुकन्या विनती करते हुए कहा था इसलिए रावण मुस्कुराते हुए बोला... ठीक हैं मैं तुम्हें एक एक बात बताता हूं फ़िर तुम बताना मुझे क्या फैसला करना चहिए।


आगे जारी रहेगा….
Superb update dost
 

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