Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Update - 62


रघु कमला और रावण हॉस्पिटल पहुंच चुके थे। रिसेप्शन से जानकारी लिया तब उन्हें पता चला संभू को आईसीयू में रखा गया हैं। आईसीयू किस ओर है जानकारी लेकर तीनों उस और चल दिए। आईसीयू के सामने जब पहुंचे तब कमला मुस्कुरा दिया क्योंकि इंस्पेक्टर साहब आईसीयू के बाहर कुर्सी लगाए बैठे थे और नींद की झपकी ले रहें थे।

कमला जल्दी से उसके पास गईं और इंस्पेक्टर के छीने पर लगे बैज में नाम देखकर बोलीं…संभाल जी आप ड्यूटी कर रहें है कि सो रहें हैं।

शायद इंस्पेक्टर साहब अभी अभी मौका देखकर नींद की झपकी ले रहें थे इसलिए आवाज सुनते ही तुंरत जग गए फिर बोला…मैडम जी रात भर से जागे हैं इसलिए अभी अभी नींद की झपकी आ गया था।

कमला…ठीक हैं अब आप जा सकते है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप को छुट्टी मिल गई आपने जगह किसी दूसरे को भेज देना ऐसा नहीं किया तो आप को याद ही होगा मेरी ननद रानी ने क्या कहा था।

"जी बिल्कुल याद हैं।" इतना बोलकर धन्यवाद देता हुए इंस्पेक्टर साहब वहा से चला गया और रघु बोला…कमला तुम दोनों राज परिवार से होने का पूरा पूरा फायदा उठा लिया इंस्पेक्टर को ही धमकी दे दी।

कमला…इंस्पेक्टर साहब को मैंने नहीं ननद रानी ने धमकी दिया था। मैंने तो सिर्फ़ डॉक्टर साहब को हड़का दिया था।

रावण…वाह बहू दोनों ननद भाभी ने मिलकर सफेद और खाकी वर्दी धारियों को ही लपेट लिया।

इस पे कमला सिर्फ मुस्कुरा दिया। अब तीनों को आईसीयू के अन्दर जाना था लेकिन बिना पूछे जा नहीं सकते थे। आईसीयू के बाहर कोई दूसरा खड़ा भी नहीं था जिससे पूछकर अन्दर जाएं। अब करें तो करें किया। उसी वक्त एक डॉक्टर उधर से गुजर रहा था। तभी रघु ने उससे कुछ कहा तब डॉक्टर खुद तीनों को आईसीयू के अन्दर ले गए लेकिन जानें से पहले सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया।

जैसी ही तीनों अन्दर कदम रखा तभी कल वाला डॉक्टर जिसे कमला ने हड़काया था वो दौड़ते हुए आया और बोला…मैडम आपका मरीज अभी खतरे से बाहर हैं क्या मैं घर जा सकता हूं।

कमला…ठीक है चले जाना लेकिन जानें से पहले हमे मरीज से मिलवा दीजिए और उसका कंडीशन कैसा है बता दीजिए।

डॉक्टर…मरीज को कुछ गंभीर चोटे आई हैं एक हाथ और पैर की हड्डी टूट गया हैं। सिर में भी चोटे आई है। सिर की चोट अंदरूनी और खुली चोट है इसलिए कुछ जांचे किया हैं रिपोर्ट आने के बाद पूर्ण जानकारी दे सकता हूं।

कमला…कोई खतरे वाली बात तो नहीं हैं।

डॉक्टर…होश हा चुका है इसका मतलब साफ है कि खतरे वाली कोई बात नहीं हैं बाकी मस्तिष्क में कितना अंदरूनी चोट आया हैं उसकी जानकारी रिपोर्ट आने के बाद बतलाया जा सकता हैं।

बातों के दौरान सभी संभू के पास तक पहुंच चुके थे। पहली नजर में संभू का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था। कारण सिर्फ इतना था चहरे और सिर पे लगे चोट के कारण चेहरा सूजा हुआ था। लेकिन गौर से देखने पर संभू को पहचाना जा सकता था।

पहचान होते ही रावण विचलित सा हों गया। भेद खुलने का भय उसके अंतर मन को झकझोर कर रख दिया और रावण मन ही मन बोला…हे प्रभु रक्षा करना ये तो वहीं संभू हैं जो रावण के घर में काम करता हैं। इसे रघु पहले से ही जानता हैं। अब क्या होगा कहीं रघु को पहले से पाता न चल गया हों कि मैं और दलाल मिलकर कौन कौन से षडयंत्र रच रहे थे। एक मिनट शायद रघु को पता नहीं चला अगर पता चल गया होता तो अब तक महल में उथल पुथल मच चुका होता और रघु मुझे यह लेकर नहीं आता लेकिन कब तक पता नहीं चला तो आज नहीं तो कल पाता चल ही जाएगा फ़िर मेरा क्या होगा। क्या करूं इसको भी ब्रजेश, दरिद्र, बाला, शकील, भानू और भद्रा की तरह रास्ते से हटा दूं। नहीं नहीं ऐसा नहीं कर सकता नहीं तो सुकन्या को पाता चलते ही फिर से मुझसे रूठ जायेगी। क्या करूं उफ्फ ये बेबसी क्यों मैं गलत रास्ते पर चला था। क्यों मैं दलाल की बाते मानकर लोगों का खून बहाया था। मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए था।

किए गए अपराध का भेद खुलने का भय और बेबसी ने रावण को खुद में उलझकर रख दिया। खुद से ही मन ही मन सवाल जबाव का द्वंद छेद रखा था। रघु और कमला इससे अनजान संभू के पास बैठे हुए उसे आवाज दे रहा था मगर संभू उनके आवाज का कोई जवाब नहीं दे रहा था। तब डॉक्टर बोला…सर हमने इन्हें नींद का इंजेक्शन दे रखा हैं । जिस इस कारण संभू सो रहा हैं।अभी आपके किसी भी बात का जवाब नहीं देखेंगे।

कुछ देर और बैठने के बाद डॉक्टर को एक और निर्देश दिया गया कि संभू के इलाज में लापरवाई न बरती जाए साथ ही देख भाल की पूर्ण व्यवस्था किया जाएं। डॉक्टर एक बार आदेश न माने का भुल कर चुका था दुबारा उसी भुल को दौरान नहीं चाहता था इसलिए जवाब में बोला "संभू का केस मेरे निगरानी में हैं और आपकी बातों को नजरंदाज बिल्कुल नहीं किया जायेगा।

"काका क्या ये ही वो संभू हैं जो दलाल के पास काम करता हैं?" रघु ने रावण से यहां सवाल पूछा लेकिन रावण तो कहीं और खोया हुआ था। उसका ध्यान वहा क्या हों रहा हैं उस पे नहीं था। शीघ्र ही जवाब की उम्मीद किया जा रहा था लेकीन रावण तो किसी दूसरे ख्यालों में गुम था। इसलिए न सुना न ही जवाब दिया। तब रघु पलटा और रावण को ख्यालों में खोया देखकर रावण को लगभग झकझोरते हुए रघु बोला…काका आप कहां खोए है मैने कुछ पूछा था।

"क्या हुआ" रावण ख्यालों से बहार आते हुए बोला

रघु- हुआ कुछ नहीं आपसे संभू के बारे में पूछा था लेकिन आपने कोई जवाब ही नहीं दिया। वैसे आप किन ख्यालों में खोए थे जो अपने सुना ही नहीं!

"मैं ( कुछ पल रूका फिर रावण आगे बोला) मैं बस संभू के बारे में सोच रहा था। (फिर मन में बोला) तुम्हें कैसे बताऊं की मैं संभू के बारे में क्या सोच रहा था?

रघु…सोच लिया तो बता दो कि ये दलाल के पास काम करने वाला संभू ही हैं।

इस सवाल ने रावण को एक बार फिर से उलझन में डाल दिया कि संभू को जानता है और ये ही दलाल के पास काम करता हैं। लेकिन उलझन इस बात की थी कि सच बताए कि नहीं, बताया तब भी मुसीबत नही बताया तब भी मुसीबत, क्षणिक समय में रावण ने खुद में ही मंत्रणा कर लिया फिर जवाब में सिर्फ हां बोल दिया।

रघु…ठीक है फिर आप ही उन्हे संदेशा भिजवा दीजिए की संभू हॉस्पिटल में हैं।

एक बार फिर रावण ने हां में जवाब दिया फिर तीनों आईसीयू से बहार को चल दिए। जैसे ही बहर निकले सामने से साजन आता हुआ दिख गया। उससे कुछ बातें करने के बाद रघु कमला को लेकर महल लौट गया और रावण दलाल से मिलने चल दिया।

दलाल से मिलने रावण जा तो रहा था। लेकिन उसके मन में इस वक्त भी कई तरह के विचार चल रहा था। एक पल उसे सुकन्या की कहीं बात याद आ रहा था कि वो दलाल से फिर कभी न मिले अगले ही पल पोल खुलने का भय उसके मन को घेर ले रहा था। रावण अजीब सी कशमकश से जूझ रहा था। उसे ऐसा प्रतीत हों रहा था। वह एक ऐसे टीले पे खड़ा है जिसके चारों ओर गहरी खाई हैं और टीला भी धीरे धीरे टूट कर खाई में गिरता जा रहा हैं।







खीयांयांयां तेज ब्रेक दबने की आवाज और रावण ने कार को एक ऐसे दो रहें पे रोक दिया जहां से उसे एक रास्ता चुनना था। एक रास्ता महल की ओर जाता हैं तो दुसरा रास्ता दलाल के घर की ओर, एक रास्ते में वो थी जिसकी रावण ने कसम खाई थी और उसी ने लगभग टूट चुके भरोसे की एक बार फ़िर से नीव रखी थीं। वहीं दूसरे रास्ते पर वो था जिसके पास रावण को घिर रहे अंधेरे भविष्य से निकलने का रास्ता हों।

एक चुनाव करना था मगर रावण वह भी नहीं कर पा रहा था। उसका अंतरमन दो हिस्सों में बांट चुका था। एक उसे महल की ओर खीच रहा था तो दुसरा दलाल के घर ले जाना चाहता था। खीच तन का यह जंग कुछ लंबा चला और रावण को एक पैसला लेना था।

रावण फैसला ले चुका था बस अमल करना रह गया था। अपने फैसले पर अमल करते हुए रावण उस रास्ते पर चल पड़ा जिस और उसके अंधेरे भविष्य से निकलने का रास्ता था। रावण तो गया लेकिन उसी तिराहे पे एक स्वेत छाया खड़ा रह गया। शायद रावण के अंतर मन का स्वेत हिस्सा रावण के साथ न जाकर वहीं खड़ा रहा गया और रावण को जाता हुआ देखता रहा। दूर और दूर रावण जाता गया और एक वक्त ऐसा भी आया जब स्वेत छाया के निगाहों से रावण ओझल हों गया।

मायूस सा स्वेत छाया वहा खड़ा रहा सहसा उसके चहरे से मायूसी का बादल छटा और एक विजयी मुस्कान लवों पे तैर गया क्योंकि रावण वापस लौट रहा था और तिराहे पे वापस आकर महल की रास्ते पे चल दिया।

कमला को छोड़कर रघु दफ्तर जा चुका था और महिला मंडली अपनी सभा में मस्त थे। सभा में मुख्य मुद्दा एक दिन बाद होने वाले जलसा ही बना हुआ था। कौन किस तरह का वस्त्र पहनेगा कितने प्रकार के आभूषण उनके देह की शोभा बढ़ाएगा ताकि देखने वाले दूर से ही देखकर कह दे कि ये राज परिवार से है। लेकिन पुष्पा का कुछ ओर ही कहना था कि महल में होने वाला जलसा एक नई सदस्य का परिवार से जुड़ने की खुशी में दिया जा रहा है इसलिए उन सभी से ज्यादा कमला आकर्षण का मुख्य बिंदु होना चाहिए।

पुष्पा का कहना भी सही था जिससे सभी सहमत हुए और तय ये हुआ कि तीनों महिलाए कमला को साथ लेकर दोपहर के भोजन के बाद शॉपिंग पर निकलेगी उसके बाद सभा के समापन की घोषणा किया गया। उसी वक्त रावण का पदार्पण हुआ। आते ही सुकन्या को रूम में आने को कहकर सीधा अपने कमरे में चला गया।

"क्या हुआ जी आते ही कमरे में बुला लिया" कमरे में प्रवेश करते ही सुकन्या ने सवाल दाग दिया। रावण चुपचाप जाकर दरवाजा बंद कर दिया। यह देख सुकन्या बोलीं…इस वक्त द्वार क्यों बंद कर रहें हों?

रावण बोल कुछ नही बस सुकन्या का हाथ थामे ले जाकर विस्तार पर बैठा दिया फ़िर बोला…कुछ बात करना था इसलिए तुम्हें कमरे में बुला लिया।

सुकन्या…हां तो बात करना था तो कारो न उसके लिए द्वार क्यों बंद किया।

रावण…संभू को लेकर कुछ जरूरी बाते करनी थीं इसलिए द्वार बंद कर दिया। कल बहू और पुष्पा ने जिसे हॉस्पिटल पहुंचाया। ये वहीं संभू हैं जो दलाल के यहां काम करता हैं और रघु उसे पहले से जानता हैं अब मुझे भय लग रहा हैं की कहीं संभू ठीक होने के बाद रघु को सब बता न दे।

संभू…हां बताएगा तो बताने दो उसमे क्या बड़ी बात हैं?

रावण…बड़ी बात ही हैं। संभू लगभग सभी बाते जानता हैं जो मैंने और दलाल ने उसके घर पर किया था। जितनी भी षडयंत्र रचा था लगभग सभी षडयंत्र के बारे में जानता हैं। दादा भाई के सभी छः विश्वास पात्र जासूसों को कब कैसे और कहा मारा यह भी जानता हैं अगर यह बात संभू ने रघु को बता दी तब दादा भाई के कान तक पहुंचने में वक्त नहीं लगेगा। उसके बाद मेरे साथ किया होगा तुम्हें उसका अंदाजा नहीं हैं।

सुकन्या…क्या होगा इसका संभावित अंदाज मैं लगा चुकी हूं लेकिन आप खुद ही सोचकर देखिए कब तक आप छुपाकर रखेंगे कब तक खुद को बचा पाएंगे आज नहीं तो कल जेठ जी जान ही जायेंगे। संभू नहीं तो किसी दूसरे से जान लेंगे। मैं तो कहती हूं किसी दूसरे से जाने उससे पहले आप खुद ही अपना भांडा फोड़ दीजिए।

रावण…सुकन्या मैने अगर खुद से भांडा फोड़ दिया तब समझ रहीं हों दादा भाई क्या करेंगे मैने रघु की शादी रूकवाने में अंगितन षडयंत्र किया उनके विश्वासपात्र लोगों का खून किया मैं एक कातिल हूं इसका भान होते ही दादा भाई आप खो देंगे और अगर खुद पे नियंत्रण रख भी लिया तो कानून मुझे नहीं छोड़ेगा। कत्ल एक करो चाहें छः सजा तो मौत की मिलेगी।

रावण का इतना बोलना हुआ कि घुप सन्नाटा छा गया। दोनों में से कोई कुछ भी नहीं बोल रहें थे अगर कुछ हों रहा था तो सिर्फ़ विचारों में मंथन किया जा रहा था। सन्नाटे को भंग करते हुए सुकन्या बोलीं…होने को तो कुछ भी हों सकता हैं आप खुद से अपना जुर्म स्वीकार कर लेंगे तो हों सकता हैं कानून आपको बक्श दे मौत न देकर उम्र कैद की सजा दे।

कहने को तो सुकन्या कह दिया लेकिन अन्दर ही अन्दर वो भी जानती थी शायद ऐसा न हों और जो होगा उसके ख्याल मात्र से सुकन्या का अंतर मन रो रहा था पर विडंबना यह थी वो उसे दर्शा नहीं पा रहा था पर कब तक खुद को मजबूत रख पाती अंतः उसके अंशु छलक आए और पति से लिपट कर रो दिया। मन मीत से दूर होने की पीढ़ा रावण भी भाप रहा था। लेकिन वह अब कुछ कर नहीं सकता था इसलिए बोला…सब मेरी गलती हैं अपराध मैंने किया और उसकी सजा अब तुम्हें भी मिलेगा क्यों किया था अगर नहीं करता तो शायद आज मुझे और तुम्हें यह दिन न देखना पढ़ता।

सुकन्या ने कितना सुना कितना नहीं ये तो वहीं जाने मगर उसका रोना बदस्तूर जारी था। खैर कुछ देर रोने के बाद सुकन्या खुद को शांत किया फ़िर बोलीं…आप अभी किसी को कुछ मत कहना जब पाता चलेगा तभी खुद से ही बता देना इसी बहाने शायद कुछ दिन ओर आप के साथ बिताने को मिल जायेगा।

"ठीक हैं तुम जैसा कहो मैं वैसा ही करूंगा अब इन अश्रु मोतियों को समेट लो इसे तब बहाना जब मैं तुमसे दूर चला जाऊं।" सुकन्या के आसूं पोछते हुए रावण ने बोला तब सुकन्या हल्के हाथों से रावण के कन्धे पर दो तीन चपत लगा दिया। इसके बाद दोनों में छेड़खानी शुरू हों गया। जिससे माहौल में बदलाव आ गया।


रावण…सुकन्या रघु ने मुझे दलाल के घर संदेश भेजने को कहा हैं मुझे क्या करना चाहिए।

सुकन्या…करना क्या हैं जाईए और सुना दीजिए कि संभू को रघु जानता हैं। शायद जल्दी ही आप दोनों का भेद भी खुल जाएं।

इतना बोलकर सुकन्या ने मुस्कुरा दिया लेकिन उसकी मुस्कान सामान्य नहीं थी उसमें रहस्य झलक रहीं थीं। शायद रावण उस रहस्य को समझ गया होगा इसलिए बोला…जाऊंगा तो जरूर लेकिन सुनने के बाद जैसा दलाल करने को कहेगा मैं वैसा बिल्कुल नहीं करूंगा। मैं वहीं करूंगा जो तुम कहोगी।


पति की बाते सुनकर सुकन्या सिर्फ मुस्कुरा दिया और रावण चाल गया। कुछ ही वक्त में रावण दलाल के घर के बहर था। गेट पे ही द्वारपाल ने कह दिया दलाल इस वक्त घर पे नहीं हैं। अब उसका वह प्रतीक्षा करना व्यर्थ था इसलिए रावण बाद में आने को कहकर वापस चल दिया।


आगे जारी रहेगा…
Mast update bhai ji
 
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Update - 62


रघु कमला और रावण हॉस्पिटल पहुंच चुके थे। रिसेप्शन से जानकारी लिया तब उन्हें पता चला संभू को आईसीयू में रखा गया हैं। आईसीयू किस ओर है जानकारी लेकर तीनों उस और चल दिए। आईसीयू के सामने जब पहुंचे तब कमला मुस्कुरा दिया क्योंकि इंस्पेक्टर साहब आईसीयू के बाहर कुर्सी लगाए बैठे थे और नींद की झपकी ले रहें थे।

कमला जल्दी से उसके पास गईं और इंस्पेक्टर के छीने पर लगे बैज में नाम देखकर बोलीं…संभाल जी आप ड्यूटी कर रहें है कि सो रहें हैं।

शायद इंस्पेक्टर साहब अभी अभी मौका देखकर नींद की झपकी ले रहें थे इसलिए आवाज सुनते ही तुंरत जग गए फिर बोला…मैडम जी रात भर से जागे हैं इसलिए अभी अभी नींद की झपकी आ गया था।

कमला…ठीक हैं अब आप जा सकते है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप को छुट्टी मिल गई आपने जगह किसी दूसरे को भेज देना ऐसा नहीं किया तो आप को याद ही होगा मेरी ननद रानी ने क्या कहा था।

"जी बिल्कुल याद हैं।" इतना बोलकर धन्यवाद देता हुए इंस्पेक्टर साहब वहा से चला गया और रघु बोला…कमला तुम दोनों राज परिवार से होने का पूरा पूरा फायदा उठा लिया इंस्पेक्टर को ही धमकी दे दी।

कमला…इंस्पेक्टर साहब को मैंने नहीं ननद रानी ने धमकी दिया था। मैंने तो सिर्फ़ डॉक्टर साहब को हड़का दिया था।

रावण…वाह बहू दोनों ननद भाभी ने मिलकर सफेद और खाकी वर्दी धारियों को ही लपेट लिया।

इस पे कमला सिर्फ मुस्कुरा दिया। अब तीनों को आईसीयू के अन्दर जाना था लेकिन बिना पूछे जा नहीं सकते थे। आईसीयू के बाहर कोई दूसरा खड़ा भी नहीं था जिससे पूछकर अन्दर जाएं। अब करें तो करें किया। उसी वक्त एक डॉक्टर उधर से गुजर रहा था। तभी रघु ने उससे कुछ कहा तब डॉक्टर खुद तीनों को आईसीयू के अन्दर ले गए लेकिन जानें से पहले सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया।

जैसी ही तीनों अन्दर कदम रखा तभी कल वाला डॉक्टर जिसे कमला ने हड़काया था वो दौड़ते हुए आया और बोला…मैडम आपका मरीज अभी खतरे से बाहर हैं क्या मैं घर जा सकता हूं।

कमला…ठीक है चले जाना लेकिन जानें से पहले हमे मरीज से मिलवा दीजिए और उसका कंडीशन कैसा है बता दीजिए।

डॉक्टर…मरीज को कुछ गंभीर चोटे आई हैं एक हाथ और पैर की हड्डी टूट गया हैं। सिर में भी चोटे आई है। सिर की चोट अंदरूनी और खुली चोट है इसलिए कुछ जांचे किया हैं रिपोर्ट आने के बाद पूर्ण जानकारी दे सकता हूं।

कमला…कोई खतरे वाली बात तो नहीं हैं।

डॉक्टर…होश हा चुका है इसका मतलब साफ है कि खतरे वाली कोई बात नहीं हैं बाकी मस्तिष्क में कितना अंदरूनी चोट आया हैं उसकी जानकारी रिपोर्ट आने के बाद बतलाया जा सकता हैं।

बातों के दौरान सभी संभू के पास तक पहुंच चुके थे। पहली नजर में संभू का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था। कारण सिर्फ इतना था चहरे और सिर पे लगे चोट के कारण चेहरा सूजा हुआ था। लेकिन गौर से देखने पर संभू को पहचाना जा सकता था।

पहचान होते ही रावण विचलित सा हों गया। भेद खुलने का भय उसके अंतर मन को झकझोर कर रख दिया और रावण मन ही मन बोला…हे प्रभु रक्षा करना ये तो वहीं संभू हैं जो रावण के घर में काम करता हैं। इसे रघु पहले से ही जानता हैं। अब क्या होगा कहीं रघु को पहले से पाता न चल गया हों कि मैं और दलाल मिलकर कौन कौन से षडयंत्र रच रहे थे। एक मिनट शायद रघु को पता नहीं चला अगर पता चल गया होता तो अब तक महल में उथल पुथल मच चुका होता और रघु मुझे यह लेकर नहीं आता लेकिन कब तक पता नहीं चला तो आज नहीं तो कल पाता चल ही जाएगा फ़िर मेरा क्या होगा। क्या करूं इसको भी ब्रजेश, दरिद्र, बाला, शकील, भानू और भद्रा की तरह रास्ते से हटा दूं। नहीं नहीं ऐसा नहीं कर सकता नहीं तो सुकन्या को पाता चलते ही फिर से मुझसे रूठ जायेगी। क्या करूं उफ्फ ये बेबसी क्यों मैं गलत रास्ते पर चला था। क्यों मैं दलाल की बाते मानकर लोगों का खून बहाया था। मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए था।

किए गए अपराध का भेद खुलने का भय और बेबसी ने रावण को खुद में उलझकर रख दिया। खुद से ही मन ही मन सवाल जबाव का द्वंद छेद रखा था। रघु और कमला इससे अनजान संभू के पास बैठे हुए उसे आवाज दे रहा था मगर संभू उनके आवाज का कोई जवाब नहीं दे रहा था। तब डॉक्टर बोला…सर हमने इन्हें नींद का इंजेक्शन दे रखा हैं । जिस इस कारण संभू सो रहा हैं।अभी आपके किसी भी बात का जवाब नहीं देखेंगे।

कुछ देर और बैठने के बाद डॉक्टर को एक और निर्देश दिया गया कि संभू के इलाज में लापरवाई न बरती जाए साथ ही देख भाल की पूर्ण व्यवस्था किया जाएं। डॉक्टर एक बार आदेश न माने का भुल कर चुका था दुबारा उसी भुल को दौरान नहीं चाहता था इसलिए जवाब में बोला "संभू का केस मेरे निगरानी में हैं और आपकी बातों को नजरंदाज बिल्कुल नहीं किया जायेगा।

"काका क्या ये ही वो संभू हैं जो दलाल के पास काम करता हैं?" रघु ने रावण से यहां सवाल पूछा लेकिन रावण तो कहीं और खोया हुआ था। उसका ध्यान वहा क्या हों रहा हैं उस पे नहीं था। शीघ्र ही जवाब की उम्मीद किया जा रहा था लेकीन रावण तो किसी दूसरे ख्यालों में गुम था। इसलिए न सुना न ही जवाब दिया। तब रघु पलटा और रावण को ख्यालों में खोया देखकर रावण को लगभग झकझोरते हुए रघु बोला…काका आप कहां खोए है मैने कुछ पूछा था।

"क्या हुआ" रावण ख्यालों से बहार आते हुए बोला

रघु- हुआ कुछ नहीं आपसे संभू के बारे में पूछा था लेकिन आपने कोई जवाब ही नहीं दिया। वैसे आप किन ख्यालों में खोए थे जो अपने सुना ही नहीं!

"मैं ( कुछ पल रूका फिर रावण आगे बोला) मैं बस संभू के बारे में सोच रहा था। (फिर मन में बोला) तुम्हें कैसे बताऊं की मैं संभू के बारे में क्या सोच रहा था?

रघु…सोच लिया तो बता दो कि ये दलाल के पास काम करने वाला संभू ही हैं।

इस सवाल ने रावण को एक बार फिर से उलझन में डाल दिया कि संभू को जानता है और ये ही दलाल के पास काम करता हैं। लेकिन उलझन इस बात की थी कि सच बताए कि नहीं, बताया तब भी मुसीबत नही बताया तब भी मुसीबत, क्षणिक समय में रावण ने खुद में ही मंत्रणा कर लिया फिर जवाब में सिर्फ हां बोल दिया।

रघु…ठीक है फिर आप ही उन्हे संदेशा भिजवा दीजिए की संभू हॉस्पिटल में हैं।

एक बार फिर रावण ने हां में जवाब दिया फिर तीनों आईसीयू से बहार को चल दिए। जैसे ही बहर निकले सामने से साजन आता हुआ दिख गया। उससे कुछ बातें करने के बाद रघु कमला को लेकर महल लौट गया और रावण दलाल से मिलने चल दिया।

दलाल से मिलने रावण जा तो रहा था। लेकिन उसके मन में इस वक्त भी कई तरह के विचार चल रहा था। एक पल उसे सुकन्या की कहीं बात याद आ रहा था कि वो दलाल से फिर कभी न मिले अगले ही पल पोल खुलने का भय उसके मन को घेर ले रहा था। रावण अजीब सी कशमकश से जूझ रहा था। उसे ऐसा प्रतीत हों रहा था। वह एक ऐसे टीले पे खड़ा है जिसके चारों ओर गहरी खाई हैं और टीला भी धीरे धीरे टूट कर खाई में गिरता जा रहा हैं।







खीयांयांयां तेज ब्रेक दबने की आवाज और रावण ने कार को एक ऐसे दो रहें पे रोक दिया जहां से उसे एक रास्ता चुनना था। एक रास्ता महल की ओर जाता हैं तो दुसरा रास्ता दलाल के घर की ओर, एक रास्ते में वो थी जिसकी रावण ने कसम खाई थी और उसी ने लगभग टूट चुके भरोसे की एक बार फ़िर से नीव रखी थीं। वहीं दूसरे रास्ते पर वो था जिसके पास रावण को घिर रहे अंधेरे भविष्य से निकलने का रास्ता हों।

एक चुनाव करना था मगर रावण वह भी नहीं कर पा रहा था। उसका अंतरमन दो हिस्सों में बांट चुका था। एक उसे महल की ओर खीच रहा था तो दुसरा दलाल के घर ले जाना चाहता था। खीच तन का यह जंग कुछ लंबा चला और रावण को एक पैसला लेना था।

रावण फैसला ले चुका था बस अमल करना रह गया था। अपने फैसले पर अमल करते हुए रावण उस रास्ते पर चल पड़ा जिस और उसके अंधेरे भविष्य से निकलने का रास्ता था। रावण तो गया लेकिन उसी तिराहे पे एक स्वेत छाया खड़ा रह गया। शायद रावण के अंतर मन का स्वेत हिस्सा रावण के साथ न जाकर वहीं खड़ा रहा गया और रावण को जाता हुआ देखता रहा। दूर और दूर रावण जाता गया और एक वक्त ऐसा भी आया जब स्वेत छाया के निगाहों से रावण ओझल हों गया।

मायूस सा स्वेत छाया वहा खड़ा रहा सहसा उसके चहरे से मायूसी का बादल छटा और एक विजयी मुस्कान लवों पे तैर गया क्योंकि रावण वापस लौट रहा था और तिराहे पे वापस आकर महल की रास्ते पे चल दिया।

कमला को छोड़कर रघु दफ्तर जा चुका था और महिला मंडली अपनी सभा में मस्त थे। सभा में मुख्य मुद्दा एक दिन बाद होने वाले जलसा ही बना हुआ था। कौन किस तरह का वस्त्र पहनेगा कितने प्रकार के आभूषण उनके देह की शोभा बढ़ाएगा ताकि देखने वाले दूर से ही देखकर कह दे कि ये राज परिवार से है। लेकिन पुष्पा का कुछ ओर ही कहना था कि महल में होने वाला जलसा एक नई सदस्य का परिवार से जुड़ने की खुशी में दिया जा रहा है इसलिए उन सभी से ज्यादा कमला आकर्षण का मुख्य बिंदु होना चाहिए।

पुष्पा का कहना भी सही था जिससे सभी सहमत हुए और तय ये हुआ कि तीनों महिलाए कमला को साथ लेकर दोपहर के भोजन के बाद शॉपिंग पर निकलेगी उसके बाद सभा के समापन की घोषणा किया गया। उसी वक्त रावण का पदार्पण हुआ। आते ही सुकन्या को रूम में आने को कहकर सीधा अपने कमरे में चला गया।

"क्या हुआ जी आते ही कमरे में बुला लिया" कमरे में प्रवेश करते ही सुकन्या ने सवाल दाग दिया। रावण चुपचाप जाकर दरवाजा बंद कर दिया। यह देख सुकन्या बोलीं…इस वक्त द्वार क्यों बंद कर रहें हों?

रावण बोल कुछ नही बस सुकन्या का हाथ थामे ले जाकर विस्तार पर बैठा दिया फ़िर बोला…कुछ बात करना था इसलिए तुम्हें कमरे में बुला लिया।

सुकन्या…हां तो बात करना था तो कारो न उसके लिए द्वार क्यों बंद किया।

रावण…संभू को लेकर कुछ जरूरी बाते करनी थीं इसलिए द्वार बंद कर दिया। कल बहू और पुष्पा ने जिसे हॉस्पिटल पहुंचाया। ये वहीं संभू हैं जो दलाल के यहां काम करता हैं और रघु उसे पहले से जानता हैं अब मुझे भय लग रहा हैं की कहीं संभू ठीक होने के बाद रघु को सब बता न दे।

संभू…हां बताएगा तो बताने दो उसमे क्या बड़ी बात हैं?

रावण…बड़ी बात ही हैं। संभू लगभग सभी बाते जानता हैं जो मैंने और दलाल ने उसके घर पर किया था। जितनी भी षडयंत्र रचा था लगभग सभी षडयंत्र के बारे में जानता हैं। दादा भाई के सभी छः विश्वास पात्र जासूसों को कब कैसे और कहा मारा यह भी जानता हैं अगर यह बात संभू ने रघु को बता दी तब दादा भाई के कान तक पहुंचने में वक्त नहीं लगेगा। उसके बाद मेरे साथ किया होगा तुम्हें उसका अंदाजा नहीं हैं।

सुकन्या…क्या होगा इसका संभावित अंदाज मैं लगा चुकी हूं लेकिन आप खुद ही सोचकर देखिए कब तक आप छुपाकर रखेंगे कब तक खुद को बचा पाएंगे आज नहीं तो कल जेठ जी जान ही जायेंगे। संभू नहीं तो किसी दूसरे से जान लेंगे। मैं तो कहती हूं किसी दूसरे से जाने उससे पहले आप खुद ही अपना भांडा फोड़ दीजिए।

रावण…सुकन्या मैने अगर खुद से भांडा फोड़ दिया तब समझ रहीं हों दादा भाई क्या करेंगे मैने रघु की शादी रूकवाने में अंगितन षडयंत्र किया उनके विश्वासपात्र लोगों का खून किया मैं एक कातिल हूं इसका भान होते ही दादा भाई आप खो देंगे और अगर खुद पे नियंत्रण रख भी लिया तो कानून मुझे नहीं छोड़ेगा। कत्ल एक करो चाहें छः सजा तो मौत की मिलेगी।

रावण का इतना बोलना हुआ कि घुप सन्नाटा छा गया। दोनों में से कोई कुछ भी नहीं बोल रहें थे अगर कुछ हों रहा था तो सिर्फ़ विचारों में मंथन किया जा रहा था। सन्नाटे को भंग करते हुए सुकन्या बोलीं…होने को तो कुछ भी हों सकता हैं आप खुद से अपना जुर्म स्वीकार कर लेंगे तो हों सकता हैं कानून आपको बक्श दे मौत न देकर उम्र कैद की सजा दे।

कहने को तो सुकन्या कह दिया लेकिन अन्दर ही अन्दर वो भी जानती थी शायद ऐसा न हों और जो होगा उसके ख्याल मात्र से सुकन्या का अंतर मन रो रहा था पर विडंबना यह थी वो उसे दर्शा नहीं पा रहा था पर कब तक खुद को मजबूत रख पाती अंतः उसके अंशु छलक आए और पति से लिपट कर रो दिया। मन मीत से दूर होने की पीढ़ा रावण भी भाप रहा था। लेकिन वह अब कुछ कर नहीं सकता था इसलिए बोला…सब मेरी गलती हैं अपराध मैंने किया और उसकी सजा अब तुम्हें भी मिलेगा क्यों किया था अगर नहीं करता तो शायद आज मुझे और तुम्हें यह दिन न देखना पढ़ता।

सुकन्या ने कितना सुना कितना नहीं ये तो वहीं जाने मगर उसका रोना बदस्तूर जारी था। खैर कुछ देर रोने के बाद सुकन्या खुद को शांत किया फ़िर बोलीं…आप अभी किसी को कुछ मत कहना जब पाता चलेगा तभी खुद से ही बता देना इसी बहाने शायद कुछ दिन ओर आप के साथ बिताने को मिल जायेगा।

"ठीक हैं तुम जैसा कहो मैं वैसा ही करूंगा अब इन अश्रु मोतियों को समेट लो इसे तब बहाना जब मैं तुमसे दूर चला जाऊं।" सुकन्या के आसूं पोछते हुए रावण ने बोला तब सुकन्या हल्के हाथों से रावण के कन्धे पर दो तीन चपत लगा दिया। इसके बाद दोनों में छेड़खानी शुरू हों गया। जिससे माहौल में बदलाव आ गया।


रावण…सुकन्या रघु ने मुझे दलाल के घर संदेश भेजने को कहा हैं मुझे क्या करना चाहिए।

सुकन्या…करना क्या हैं जाईए और सुना दीजिए कि संभू को रघु जानता हैं। शायद जल्दी ही आप दोनों का भेद भी खुल जाएं।

इतना बोलकर सुकन्या ने मुस्कुरा दिया लेकिन उसकी मुस्कान सामान्य नहीं थी उसमें रहस्य झलक रहीं थीं। शायद रावण उस रहस्य को समझ गया होगा इसलिए बोला…जाऊंगा तो जरूर लेकिन सुनने के बाद जैसा दलाल करने को कहेगा मैं वैसा बिल्कुल नहीं करूंगा। मैं वहीं करूंगा जो तुम कहोगी।


पति की बाते सुनकर सुकन्या सिर्फ मुस्कुरा दिया और रावण चाल गया। कुछ ही वक्त में रावण दलाल के घर के बहर था। गेट पे ही द्वारपाल ने कह दिया दलाल इस वक्त घर पे नहीं हैं। अब उसका वह प्रतीक्षा करना व्यर्थ था इसलिए रावण बाद में आने को कहकर वापस चल दिया।


आगे जारी रहेगा…
Mujhe ab ravan ke liye dukh ho raha hai ishiliye bolte hain ki sher ki sawari asaan nahi hoti utrna bahut muskil ho jata Jo jurm ka rasta chuna usne agar ushi par rahta to sambhu ke kuch bolne se pahle hi usko saaf kar deta khair mere sonchne se to wo kuch karne se raha writer sir kuch daya karo uspar achcha banne deo usko :stopdevil:
 
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रघु कमला और रावण हॉस्पिटल पहुंच चुके थे। रिसेप्शन से जानकारी लिया तब उन्हें पता चला संभू को आईसीयू में रखा गया हैं। आईसीयू किस ओर है जानकारी लेकर तीनों उस और चल दिए। आईसीयू के सामने जब पहुंचे तब कमला मुस्कुरा दिया क्योंकि इंस्पेक्टर साहब आईसीयू के बाहर कुर्सी लगाए बैठे थे और नींद की झपकी ले रहें थे।

कमला जल्दी से उसके पास गईं और इंस्पेक्टर के छीने पर लगे बैज में नाम देखकर बोलीं…संभाल जी आप ड्यूटी कर रहें है कि सो रहें हैं।

शायद इंस्पेक्टर साहब अभी अभी मौका देखकर नींद की झपकी ले रहें थे इसलिए आवाज सुनते ही तुंरत जग गए फिर बोला…मैडम जी रात भर से जागे हैं इसलिए अभी अभी नींद की झपकी आ गया था।

कमला…ठीक हैं अब आप जा सकते है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप को छुट्टी मिल गई आपने जगह किसी दूसरे को भेज देना ऐसा नहीं किया तो आप को याद ही होगा मेरी ननद रानी ने क्या कहा था।

"जी बिल्कुल याद हैं।" इतना बोलकर धन्यवाद देता हुए इंस्पेक्टर साहब वहा से चला गया और रघु बोला…कमला तुम दोनों राज परिवार से होने का पूरा पूरा फायदा उठा लिया इंस्पेक्टर को ही धमकी दे दी।

कमला…इंस्पेक्टर साहब को मैंने नहीं ननद रानी ने धमकी दिया था। मैंने तो सिर्फ़ डॉक्टर साहब को हड़का दिया था।

रावण…वाह बहू दोनों ननद भाभी ने मिलकर सफेद और खाकी वर्दी धारियों को ही लपेट लिया।

इस पे कमला सिर्फ मुस्कुरा दिया। अब तीनों को आईसीयू के अन्दर जाना था लेकिन बिना पूछे जा नहीं सकते थे। आईसीयू के बाहर कोई दूसरा खड़ा भी नहीं था जिससे पूछकर अन्दर जाएं। अब करें तो करें किया। उसी वक्त एक डॉक्टर उधर से गुजर रहा था। तभी रघु ने उससे कुछ कहा तब डॉक्टर खुद तीनों को आईसीयू के अन्दर ले गए लेकिन जानें से पहले सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया।

जैसी ही तीनों अन्दर कदम रखा तभी कल वाला डॉक्टर जिसे कमला ने हड़काया था वो दौड़ते हुए आया और बोला…मैडम आपका मरीज अभी खतरे से बाहर हैं क्या मैं घर जा सकता हूं।

कमला…ठीक है चले जाना लेकिन जानें से पहले हमे मरीज से मिलवा दीजिए और उसका कंडीशन कैसा है बता दीजिए।

डॉक्टर…मरीज को कुछ गंभीर चोटे आई हैं एक हाथ और पैर की हड्डी टूट गया हैं। सिर में भी चोटे आई है। सिर की चोट अंदरूनी और खुली चोट है इसलिए कुछ जांचे किया हैं रिपोर्ट आने के बाद पूर्ण जानकारी दे सकता हूं।

कमला…कोई खतरे वाली बात तो नहीं हैं।

डॉक्टर…होश हा चुका है इसका मतलब साफ है कि खतरे वाली कोई बात नहीं हैं बाकी मस्तिष्क में कितना अंदरूनी चोट आया हैं उसकी जानकारी रिपोर्ट आने के बाद बतलाया जा सकता हैं।

बातों के दौरान सभी संभू के पास तक पहुंच चुके थे। पहली नजर में संभू का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था। कारण सिर्फ इतना था चहरे और सिर पे लगे चोट के कारण चेहरा सूजा हुआ था। लेकिन गौर से देखने पर संभू को पहचाना जा सकता था।

पहचान होते ही रावण विचलित सा हों गया। भेद खुलने का भय उसके अंतर मन को झकझोर कर रख दिया और रावण मन ही मन बोला…हे प्रभु रक्षा करना ये तो वहीं संभू हैं जो रावण के घर में काम करता हैं। इसे रघु पहले से ही जानता हैं। अब क्या होगा कहीं रघु को पहले से पाता न चल गया हों कि मैं और दलाल मिलकर कौन कौन से षडयंत्र रच रहे थे। एक मिनट शायद रघु को पता नहीं चला अगर पता चल गया होता तो अब तक महल में उथल पुथल मच चुका होता और रघु मुझे यह लेकर नहीं आता लेकिन कब तक पता नहीं चला तो आज नहीं तो कल पाता चल ही जाएगा फ़िर मेरा क्या होगा। क्या करूं इसको भी ब्रजेश, दरिद्र, बाला, शकील, भानू और भद्रा की तरह रास्ते से हटा दूं। नहीं नहीं ऐसा नहीं कर सकता नहीं तो सुकन्या को पाता चलते ही फिर से मुझसे रूठ जायेगी। क्या करूं उफ्फ ये बेबसी क्यों मैं गलत रास्ते पर चला था। क्यों मैं दलाल की बाते मानकर लोगों का खून बहाया था। मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए था।

किए गए अपराध का भेद खुलने का भय और बेबसी ने रावण को खुद में उलझकर रख दिया। खुद से ही मन ही मन सवाल जबाव का द्वंद छेद रखा था। रघु और कमला इससे अनजान संभू के पास बैठे हुए उसे आवाज दे रहा था मगर संभू उनके आवाज का कोई जवाब नहीं दे रहा था। तब डॉक्टर बोला…सर हमने इन्हें नींद का इंजेक्शन दे रखा हैं । जिस इस कारण संभू सो रहा हैं।अभी आपके किसी भी बात का जवाब नहीं देखेंगे।

कुछ देर और बैठने के बाद डॉक्टर को एक और निर्देश दिया गया कि संभू के इलाज में लापरवाई न बरती जाए साथ ही देख भाल की पूर्ण व्यवस्था किया जाएं। डॉक्टर एक बार आदेश न माने का भुल कर चुका था दुबारा उसी भुल को दौरान नहीं चाहता था इसलिए जवाब में बोला "संभू का केस मेरे निगरानी में हैं और आपकी बातों को नजरंदाज बिल्कुल नहीं किया जायेगा।

"काका क्या ये ही वो संभू हैं जो दलाल के पास काम करता हैं?" रघु ने रावण से यहां सवाल पूछा लेकिन रावण तो कहीं और खोया हुआ था। उसका ध्यान वहा क्या हों रहा हैं उस पे नहीं था। शीघ्र ही जवाब की उम्मीद किया जा रहा था लेकीन रावण तो किसी दूसरे ख्यालों में गुम था। इसलिए न सुना न ही जवाब दिया। तब रघु पलटा और रावण को ख्यालों में खोया देखकर रावण को लगभग झकझोरते हुए रघु बोला…काका आप कहां खोए है मैने कुछ पूछा था।

"क्या हुआ" रावण ख्यालों से बहार आते हुए बोला

रघु- हुआ कुछ नहीं आपसे संभू के बारे में पूछा था लेकिन आपने कोई जवाब ही नहीं दिया। वैसे आप किन ख्यालों में खोए थे जो अपने सुना ही नहीं!

"मैं ( कुछ पल रूका फिर रावण आगे बोला) मैं बस संभू के बारे में सोच रहा था। (फिर मन में बोला) तुम्हें कैसे बताऊं की मैं संभू के बारे में क्या सोच रहा था?

रघु…सोच लिया तो बता दो कि ये दलाल के पास काम करने वाला संभू ही हैं।

इस सवाल ने रावण को एक बार फिर से उलझन में डाल दिया कि संभू को जानता है और ये ही दलाल के पास काम करता हैं। लेकिन उलझन इस बात की थी कि सच बताए कि नहीं, बताया तब भी मुसीबत नही बताया तब भी मुसीबत, क्षणिक समय में रावण ने खुद में ही मंत्रणा कर लिया फिर जवाब में सिर्फ हां बोल दिया।

रघु…ठीक है फिर आप ही उन्हे संदेशा भिजवा दीजिए की संभू हॉस्पिटल में हैं।

एक बार फिर रावण ने हां में जवाब दिया फिर तीनों आईसीयू से बहार को चल दिए। जैसे ही बहर निकले सामने से साजन आता हुआ दिख गया। उससे कुछ बातें करने के बाद रघु कमला को लेकर महल लौट गया और रावण दलाल से मिलने चल दिया।

दलाल से मिलने रावण जा तो रहा था। लेकिन उसके मन में इस वक्त भी कई तरह के विचार चल रहा था। एक पल उसे सुकन्या की कहीं बात याद आ रहा था कि वो दलाल से फिर कभी न मिले अगले ही पल पोल खुलने का भय उसके मन को घेर ले रहा था। रावण अजीब सी कशमकश से जूझ रहा था। उसे ऐसा प्रतीत हों रहा था। वह एक ऐसे टीले पे खड़ा है जिसके चारों ओर गहरी खाई हैं और टीला भी धीरे धीरे टूट कर खाई में गिरता जा रहा हैं।







खीयांयांयां तेज ब्रेक दबने की आवाज और रावण ने कार को एक ऐसे दो रहें पे रोक दिया जहां से उसे एक रास्ता चुनना था। एक रास्ता महल की ओर जाता हैं तो दुसरा रास्ता दलाल के घर की ओर, एक रास्ते में वो थी जिसकी रावण ने कसम खाई थी और उसी ने लगभग टूट चुके भरोसे की एक बार फ़िर से नीव रखी थीं। वहीं दूसरे रास्ते पर वो था जिसके पास रावण को घिर रहे अंधेरे भविष्य से निकलने का रास्ता हों।

एक चुनाव करना था मगर रावण वह भी नहीं कर पा रहा था। उसका अंतरमन दो हिस्सों में बांट चुका था। एक उसे महल की ओर खीच रहा था तो दुसरा दलाल के घर ले जाना चाहता था। खीच तन का यह जंग कुछ लंबा चला और रावण को एक पैसला लेना था।

रावण फैसला ले चुका था बस अमल करना रह गया था। अपने फैसले पर अमल करते हुए रावण उस रास्ते पर चल पड़ा जिस और उसके अंधेरे भविष्य से निकलने का रास्ता था। रावण तो गया लेकिन उसी तिराहे पे एक स्वेत छाया खड़ा रह गया। शायद रावण के अंतर मन का स्वेत हिस्सा रावण के साथ न जाकर वहीं खड़ा रहा गया और रावण को जाता हुआ देखता रहा। दूर और दूर रावण जाता गया और एक वक्त ऐसा भी आया जब स्वेत छाया के निगाहों से रावण ओझल हों गया।

मायूस सा स्वेत छाया वहा खड़ा रहा सहसा उसके चहरे से मायूसी का बादल छटा और एक विजयी मुस्कान लवों पे तैर गया क्योंकि रावण वापस लौट रहा था और तिराहे पे वापस आकर महल की रास्ते पे चल दिया।

कमला को छोड़कर रघु दफ्तर जा चुका था और महिला मंडली अपनी सभा में मस्त थे। सभा में मुख्य मुद्दा एक दिन बाद होने वाले जलसा ही बना हुआ था। कौन किस तरह का वस्त्र पहनेगा कितने प्रकार के आभूषण उनके देह की शोभा बढ़ाएगा ताकि देखने वाले दूर से ही देखकर कह दे कि ये राज परिवार से है। लेकिन पुष्पा का कुछ ओर ही कहना था कि महल में होने वाला जलसा एक नई सदस्य का परिवार से जुड़ने की खुशी में दिया जा रहा है इसलिए उन सभी से ज्यादा कमला आकर्षण का मुख्य बिंदु होना चाहिए।

पुष्पा का कहना भी सही था जिससे सभी सहमत हुए और तय ये हुआ कि तीनों महिलाए कमला को साथ लेकर दोपहर के भोजन के बाद शॉपिंग पर निकलेगी उसके बाद सभा के समापन की घोषणा किया गया। उसी वक्त रावण का पदार्पण हुआ। आते ही सुकन्या को रूम में आने को कहकर सीधा अपने कमरे में चला गया।

"क्या हुआ जी आते ही कमरे में बुला लिया" कमरे में प्रवेश करते ही सुकन्या ने सवाल दाग दिया। रावण चुपचाप जाकर दरवाजा बंद कर दिया। यह देख सुकन्या बोलीं…इस वक्त द्वार क्यों बंद कर रहें हों?

रावण बोल कुछ नही बस सुकन्या का हाथ थामे ले जाकर विस्तार पर बैठा दिया फ़िर बोला…कुछ बात करना था इसलिए तुम्हें कमरे में बुला लिया।

सुकन्या…हां तो बात करना था तो कारो न उसके लिए द्वार क्यों बंद किया।

रावण…संभू को लेकर कुछ जरूरी बाते करनी थीं इसलिए द्वार बंद कर दिया। कल बहू और पुष्पा ने जिसे हॉस्पिटल पहुंचाया। ये वहीं संभू हैं जो दलाल के यहां काम करता हैं और रघु उसे पहले से जानता हैं अब मुझे भय लग रहा हैं की कहीं संभू ठीक होने के बाद रघु को सब बता न दे।

संभू…हां बताएगा तो बताने दो उसमे क्या बड़ी बात हैं?

रावण…बड़ी बात ही हैं। संभू लगभग सभी बाते जानता हैं जो मैंने और दलाल ने उसके घर पर किया था। जितनी भी षडयंत्र रचा था लगभग सभी षडयंत्र के बारे में जानता हैं। दादा भाई के सभी छः विश्वास पात्र जासूसों को कब कैसे और कहा मारा यह भी जानता हैं अगर यह बात संभू ने रघु को बता दी तब दादा भाई के कान तक पहुंचने में वक्त नहीं लगेगा। उसके बाद मेरे साथ किया होगा तुम्हें उसका अंदाजा नहीं हैं।

सुकन्या…क्या होगा इसका संभावित अंदाज मैं लगा चुकी हूं लेकिन आप खुद ही सोचकर देखिए कब तक आप छुपाकर रखेंगे कब तक खुद को बचा पाएंगे आज नहीं तो कल जेठ जी जान ही जायेंगे। संभू नहीं तो किसी दूसरे से जान लेंगे। मैं तो कहती हूं किसी दूसरे से जाने उससे पहले आप खुद ही अपना भांडा फोड़ दीजिए।

रावण…सुकन्या मैने अगर खुद से भांडा फोड़ दिया तब समझ रहीं हों दादा भाई क्या करेंगे मैने रघु की शादी रूकवाने में अंगितन षडयंत्र किया उनके विश्वासपात्र लोगों का खून किया मैं एक कातिल हूं इसका भान होते ही दादा भाई आप खो देंगे और अगर खुद पे नियंत्रण रख भी लिया तो कानून मुझे नहीं छोड़ेगा। कत्ल एक करो चाहें छः सजा तो मौत की मिलेगी।

रावण का इतना बोलना हुआ कि घुप सन्नाटा छा गया। दोनों में से कोई कुछ भी नहीं बोल रहें थे अगर कुछ हों रहा था तो सिर्फ़ विचारों में मंथन किया जा रहा था। सन्नाटे को भंग करते हुए सुकन्या बोलीं…होने को तो कुछ भी हों सकता हैं आप खुद से अपना जुर्म स्वीकार कर लेंगे तो हों सकता हैं कानून आपको बक्श दे मौत न देकर उम्र कैद की सजा दे।

कहने को तो सुकन्या कह दिया लेकिन अन्दर ही अन्दर वो भी जानती थी शायद ऐसा न हों और जो होगा उसके ख्याल मात्र से सुकन्या का अंतर मन रो रहा था पर विडंबना यह थी वो उसे दर्शा नहीं पा रहा था पर कब तक खुद को मजबूत रख पाती अंतः उसके अंशु छलक आए और पति से लिपट कर रो दिया। मन मीत से दूर होने की पीढ़ा रावण भी भाप रहा था। लेकिन वह अब कुछ कर नहीं सकता था इसलिए बोला…सब मेरी गलती हैं अपराध मैंने किया और उसकी सजा अब तुम्हें भी मिलेगा क्यों किया था अगर नहीं करता तो शायद आज मुझे और तुम्हें यह दिन न देखना पढ़ता।

सुकन्या ने कितना सुना कितना नहीं ये तो वहीं जाने मगर उसका रोना बदस्तूर जारी था। खैर कुछ देर रोने के बाद सुकन्या खुद को शांत किया फ़िर बोलीं…आप अभी किसी को कुछ मत कहना जब पाता चलेगा तभी खुद से ही बता देना इसी बहाने शायद कुछ दिन ओर आप के साथ बिताने को मिल जायेगा।

"ठीक हैं तुम जैसा कहो मैं वैसा ही करूंगा अब इन अश्रु मोतियों को समेट लो इसे तब बहाना जब मैं तुमसे दूर चला जाऊं।" सुकन्या के आसूं पोछते हुए रावण ने बोला तब सुकन्या हल्के हाथों से रावण के कन्धे पर दो तीन चपत लगा दिया। इसके बाद दोनों में छेड़खानी शुरू हों गया। जिससे माहौल में बदलाव आ गया।


रावण…सुकन्या रघु ने मुझे दलाल के घर संदेश भेजने को कहा हैं मुझे क्या करना चाहिए।

सुकन्या…करना क्या हैं जाईए और सुना दीजिए कि संभू को रघु जानता हैं। शायद जल्दी ही आप दोनों का भेद भी खुल जाएं।

इतना बोलकर सुकन्या ने मुस्कुरा दिया लेकिन उसकी मुस्कान सामान्य नहीं थी उसमें रहस्य झलक रहीं थीं। शायद रावण उस रहस्य को समझ गया होगा इसलिए बोला…जाऊंगा तो जरूर लेकिन सुनने के बाद जैसा दलाल करने को कहेगा मैं वैसा बिल्कुल नहीं करूंगा। मैं वहीं करूंगा जो तुम कहोगी।


पति की बाते सुनकर सुकन्या सिर्फ मुस्कुरा दिया और रावण चाल गया। कुछ ही वक्त में रावण दलाल के घर के बहर था। गेट पे ही द्वारपाल ने कह दिया दलाल इस वक्त घर पे नहीं हैं। अब उसका वह प्रतीक्षा करना व्यर्थ था इसलिए रावण बाद में आने को कहकर वापस चल दिया।


आगे जारी रहेगा…
Badhiya update
 
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Update - 60


जब पुष्पा और कमला गई उस वक्त कुछ खास नहीं हुआ। एक घंटा, दो घंटा करके घंटा पर घंटा बीतता गया और दोनों की कोई खबर नहीं, यहीं एक बात सुरभि को विचलित किए जा रहा था। दोपहर के भोजन का समय हों गया मगर पुष्पा और कमला लौट कर नहीं आई। भोजन के दौरान सहसा सुरभि बोल पड़ी... कितना वक्त हों गया दोपहर के भोजन का वक्त भी हों चुका है लेकिन दोनों अभी तक लौट कर नहीं आए।

सुकन्या...दीदी आप न खामखा विचलित हों रहीं हों। बिना बताए दोनों गए नहीं, आपने खुद जाने की आज्ञा दिया हैं फिर भी….।

"हां हां (सुकन्या की बातों को बीच में कटकर सुरभि लगभग झिड़कते हुए बोलीं) जानती हूं मुझसे ही पूछकर गए थे लेकिन उन्हें भी तो ख्याल होना चाहिए कि देर हों रहीं हैं तो किसी के हाथों खबर भिजवा दे।

सुरभि की बाते सुनके सुकन्या खी खी कर हंस दिया। मुंह में निवाला था जो लगभग छिटक ही जाता अगर हाथ से न रोका होता। यह दृष्ट देखकर सुरभि को भी हंसी आ गईं। मुंह में निवाला था और उसकी भी दशा सुकन्या जैसा न हों इसलिए आ रही हंसी को दावा गई फिर डपटते हुए सुरभि बोलीं... छोटी तुझे हंसना ही था तो पहले निवाला, निगल लेती फिर हंस लेती। ऐसे अगर निवाले का कुछ अंश स्वास नली में चढ़ जाता यह फिर पूरा निवाला ही गले में अटक जाता तब किया होता?

"होना किया था मुझे कुछ पल की तकलीफ होता खो खो खांसी आती। मिर्ची की धसके से स्वास नली और नाक में कुछ पल के लिए जलन होता। बस इतना ही होता" सुरभि की बातों को अपने ढंग से आगे बढ़ते हुए सुकन्या बोलीं

सुरभि... कितनी सहजता से कह दिया बस इतना ही लेकिन तुझे ख्याल भी नही आया होगा कि उससे तुझे कितनी पीढ़ा होती उसकी आंच मुझ तक पहुंचकर मुझे भी पीढ़ा से ग्रस्त कर देता।

खुद की पीढ़ा से बहन समान जेठानी के पीड़ित होने की बात सुनकर सुकन्या भावुक हों गईं और आंखों में नमी आ गई। जिसे देखकर सुरभि बोलीं... छोटी एक भी बूंद आंसू का बहा तब तुझे, मेरे आसपास भी नहीं आने दूंगी और न ही तुझसे कभी बात करूंगी, अलग थलग महल के एक कोने में कैद कर दूंगी फिर शिकायत न करना कि मेरी जेठानी मुझ पर जुल्म करते हैं।

"जुल्म (आंखों में आई नमी को पोछकर सुकन्या बोलीं) जुल्म तो आप पर मैंने किया था फिर भी आप मेरी कितनी फिक्र करती हों। ऐसा कैसे कर लेती हों?"

सुरभि... छोटी तू फिर से बीती बातों कि जड़े खोद रहीं हैं। पहले भी तुझे चेताया था आज भी कह रहीं हूं जो बीत गया उन यादों को खंगालने से अच्छा हैं अभी जो मिल रहा है उसे समेट ले और कैसे कर लेती हूं तो सुन में तुझे देवरानी नहीं बल्कि मेरी छोटी बहन मानता हूं। दो बहनों में खीटपीट, नोकझोंक होता ही रहता हैं। अब तू मेरी बाते सुनके फिर से भाभुक हो जायेगी और आंखों से नीर बहाने लग जायेगी अगर तूने ऐसा किया तो कह देती हूं तेरे लिए अच्छा नहीं होगा।

सुरभि की बातों से एक बार फिर से सुकन्या के अंतर मन में भावनाओ का बढ़ आ चुका था। जो अश्रु धारा बनकर बहना चाह रहीं थी लेकिन अंत में चेतावनी स्वरूप कहीं गई बातों के कारण सुकन्या अपनी भावनाओ को नियंत्रण में कर लिया और अनिश्छा से मुस्कुराकर "ठीक है" बस इतना ही बोला

सुरभि...सुन छोटी मुस्कुराना है तो सही से खुलकर मुस्कुरा वरना रहने दे।

कुछ पल की जतन और सुरभि की मन लुभावन बातों से आखिर सुकन्या के लवों पर खिला सा मुस्कान ला ही दिया। इस बीच दोनों भोजन कर लिया था। दोपहर बीता भानु (सूर्य) धीरे धीरे अपने गंतव्य की और अग्रसर था। घंटा दर घंटा बीतता गया और भानु खुद के ऊर्जा जिससे समस्त जग जगमगा रहा था। खुद में समेट कर रात्रि को आने का आहवान देने लग गया मगर पुष्पा और कमला अभी भी प्रवासी पक्षियों की भांति विचरण करने में लगी हुई थी। ऐसा सुरभि का मानना था अपितु सच्चाई कुछ ओर थी जिसका भान महल में मौजूद किसी को नही था। भानु लगभग अस्त हों चुका था उसी वक्त पुष्पा और कमला का आगमन हुआ। दोनों को महल के भीतर प्रवेश करते हुए देखकर "दोनों वहीं रुक जाओ और जहां से आए हों वहीं लौट जाओ" सुरभी बोलीं।

इतना सुनते ही कमला और पुष्पा जहां थी वहीं रुक गई और कमला का मन धुक पुक धुक पुक एक अनजान डर से धड़कने लग गया। चहरे की रंगत बदल गई खिला मुस्कुराता हुआ मुखड़े पे मायूसी छा गईं। जबकि मां कि बातों ने पुष्पा पर कोई असर ही नहीं डाला भाभी का हाथ शक्ति से थामे आगे को बढ़ती चली गई।

कमला का आंतरिक भाव उसके ललाट से झलक रहीं थी। जिसे देख सुकन्या हल्का सा मुस्कुराया फिर सुरभि को भी आगाह कर दिया सुरभि उठकर अंचल को कमर में खोचते हुए आगे को बढ़ चली, चलते हुई बोलीं... सुबह के गए सांझ को लौट रहें हों तुम दोनों को बूढ़ी मां इतना अच्छा लगा तो वहीं रुक जाती। महल वापस क्यों आई?

पुष्पा... ठीक हैं हम बूढ़ी मां के पास वापस जा रहे हैं।

इतना बोलकर पुष्पा पीछे को मूढ़ गई और कमला जहां थी वहीं जम गईं। निगाहें जो पहले से झुकी हुई थी। एक पल लिए उठा फिर से झुक गई।

कमला का हाथ थामे पुष्पा पलटी और एक कदम बढ़ाते ही खिंचाव से कमला का हाथ छूट गया "भाभी क्या हुआ आप जम क्यों गई चलो चलते हैं।" इतना बोलकर पुष्पा फिर से कमला का हाथ थाम लिया और अपने साथ चलने के लिए हाथ खींचने लगी मगर कमला अपने जगह से एक कदम भी नहीं हिली बस एक बार सुरभि की ओर देखा फिर पलट कर पुष्पा की और देखा, जाए कि रूके कुछ समझ नहीं पा रहीं थीं। यह देख सुकन्या और सुरभि की हंसी फूट पड़ी और सुरभि हंसते हुई बोलीं...क्या हुआ बहु ऐसे क्यों जम गई। जाओ जहां पुष्पा ले जा रहीं हैं।

पुष्पा...भाभी चलो मेरे साथ पहले तो नाटक कर रहीं थीं लेकिन अब सच में लेकर चलूंगी सोचकर आई थी कि मां से कहूंगी कि बूढ़ी मां आप की कितनी तारीफ कर रहीं थीं कितने सारे ऐसे किस्से सुनाए जिससे मैं अनजान थीं। लेकिन इन्हें तो मजाक सूज रहा था दांते निपोरकर कितने मजे से कह दिया जाओ बहु पुष्पा जहा ले जा रहीं हैं।

इतना कहकर पुष्पा लगभग खींचते हुई कमला को ले जाने लग गई और कमला "रूको तो ननद रानी" बस इतना हो बोलती रह गईं और पीछे पलट कर बार बार सुरभि को देख रहीं थीं और विनती कर रहीं थी मम्मी जी ननद रानी को रोको न यह देख सुरभि बोलीं…महारानी जी तुम्हें जहां जाना है जाओ लेकिन मेरी बहु रानी को यहीं छोड़ जाओ जरा उससे पुछु तो बूढ़ी मां ने उसकी सास की तारीफ में कौन कौन सी बातें कहीं।

पुष्पा…अरे मैं कैसे भुल गई थीं कि मै इस महल की महारानी हूं। चलो भाभी महारानी के होते हुई आपको डरने की जरूरत नहीं हैं।

इतना बोलकर पुष्पा शान से कमला का हाथ थामे खींचते हुई भीतर की ओर बढ़ने लग गई। पल भर में वातावरण मे हंसी और ठहाके गुजने लग गया। जैसे ही पुष्पा सुरभि के नजदीक पहुंचा कान उमेठते हुई सुरभि बोलीं... बड़ी आई महारानी। ऐसी महारानी किस काम की जिसे याद ही न रहें कि महल मे उसकी पदवी क्या हैं?





पुष्पा…कभी कभी भूल हों जाती हैं अब छोड़ भी दो दुख रहीं हैं। अपश्यु भईया कहा हों देखो मां आपकी प्यारी बहन के कान उमेठ रहीं हैं। जल्दी से आकर बचा लो।

सुरभि...आज तुझे कोई नहीं बचाने वाली और अपश्यू वो तो बिलकुल भी नहीं आने वाली अभी थोड़ी देर पहले वो कहीं गया हैं।

पुष्पा...अब क्या करूं याद आया मां कान छोड़ों नहीं तो ये नहीं बताऊंगा कि मैंने और भाभी ने दुर्घटना मे घायल हुऐ एक इंसान की मदद की हैं। जिसके कारण हमे आने में देर हों गईं।

सुरभि... किसी की मदद की वो तो अच्छी बात हैं लेकिन उसका कोई फायदा नहीं है वह तो तूने बता दिया कुछ ओर हों तो बता शायद कान उमेठना छोड़ दूं।

कमला...मम्मी जी छोड़ दीजिए ना, ननद रानी को लग रहीं हैं।

पुष्पा…मां काम से काम भाभी की बात ही मन लो छोड़ दो न बहुत लग रहीं हैं।

"नौटंकी कहीं की" बस इतना बोलकर सुरभि कान छोड़ दिया और पुष्पा कान मलते हुई आगे को बढ़ गई साथ में सुरभि और कमला भी उसके पीछे पीछे चल दिए फिर पहले पुष्पा बैठी उसके बगल मे सुरभि फिर कमला बैठ गईं। "दोपहर मे खाना नहीं खाया होगा" इतना बोलकर सुरभि ने धीरा को आवाज देखकर कुछ हल्का नाश्ता लाने को कहा तब कमला रोकते हुई बोलीं... मम्मी जी हमने बूढ़ी मां के साथ दोपहर का भोजन कर लिया था।

इसके बाद बातों का एक लंबा सिलसिला शुरू हुआ। कमला और पुष्पा को देर क्यों हुआ दुर्घटना मे घायल किस इंसान की सहायता की और हॉस्पिटल मे क्या क्या हुआ। बातों का आगाज उसी घटना से हुआ। पूरी घटना सुनने के बाद सुरभि दोनों के सिर पर हाथ फिरते हुई बोलीं...जरूरत मंदो की सहयता करना अच्छी बात हैं और दुर्घटना मे गंभीर रूप से घायल हुए लोगों की सहायता करना ओर अच्छी बात हैं ऐसे लोगों की समय से उपचार न मिलने पर प्राण भी जा सकता हैं लेकिन एक बात का ध्यान रखना कुछ षड्यंतकारी लोग इस तरह का भ्रम जाल फैला कर सहायता करने वालो को लूट लेते हैं ऐसी घटनाएं यहां पिछले कुछ दिनों से ज्यादा बड़ गईं हैं इसलिए आगे से ध्यान रखना।


दोनों ने सिर्फ हां में मुंडी हिला दिया फिर बातों का सिलसिला आगे बड़ा और बूढ़ी मां के यहां क्या क्या हुआ किस तरह की बाते हुआ एक एक किस्सा पुष्पा और कमला सुनने लग गई। उन्हीं किस्सों को सुनने के दौरान कमला बोलीं... मम्मी जी बूढ़ी मां कहा रहीं थी जब आप वीहाके महल आई थी तब आप को देखने के लिए लोगों का हुजूम उमड़ पड़ा था उन्हीं लगो में से एक शख्स टीले पे से गिरके गंभीर रूप से घायल हों गईं थी अपने खुद गाड़ी रुकवा कर उसे उपचार के लिए भेजा फिर जाके महल मे प्रवेश किया था।

सुरभि ने सिर्फ हां में जब दिया उसके बाद एक बार फ़िर से पुष्पा और कमला मिलकर बूढ़ी मां से सुनी एक एक किस्सा बारी बारी बताने लग गए। शायद उनके बातों का शिलशिला खत्म न होता अगर रघु लौटकर कर न आया होता। रघु पे थकान हावी था जो उसके चहरे से झलक रह था। सामने मां पत्नी और बहन साथ में बैठे हुए थे तो उनके पास बैठने की जगह नहीं बचा था दूसरी और सुकन्या अकेले बैठी थी रघु उनके पास बैठ गए फिर धीरे से सुकन्या के गोद में ढुलाक पड़ा , तुरंत ही सुकन्या का हाथ रघु के सिर पे पहुंच गया और सिर सहलाते हुए सुकन्या बोलीं…लगता हैं मेरा बेटा आज बहुत थक गया हैं।

रघु…हां छोटी मां आज मुंशी काका ने मेरा दम निकल दिया।

आगे कोई कुछ बोलता उसे पहले ही सुकन्या ने मुंह पे उंगली रखकर सभी को चुप रहने का इशारा कर दिया और सुकन्या रघु का सिर सहलाता रहा। कुछ ही वक्त में रघु चुप चाप एक बच्चे की तरह सिकुड़कर सो गया। यहां देख कमला की हसी छूट गई और सुकन्या आंखे बड़ी बड़ी करके डांटा फिर चुप रहने का इशारा कर दिया। एक बार फिर से सन्नाटा छा गया कुछ देर बार कमला की खुशपुशाहट ने लगभग सन्नाटे को भंग कर दिया

कमला…मम्मी जी कैसे बचे की तरह सो रहें हैं।

सुरभि…मां के गोद में सभी ऐसे ही सोते है तुमने अगर गौर नहीं किया तो कभी गौर करके देखना तब तुम जान जाओगी।

एक बार फ़िर से सुकन्या ने सभी को इशारे में डांट दिया और सभी चुप चाप बैठ गए। रघु भोजन के वक्त तक सोता रह जब भोजन लग गए तब सुकन्या ने रघु को जगाया और भोजन करवाने ले गई। भोजन के दौरान हो रघु की उनिंदी भाग गई फिर भोजन से निपटकर कमरे में चला गया।

एक छोटी नींद रघु ले चुका था। जिसका नतीजा रघु को अब नींद नही आ रहा था और कमला को आज दिन का एक एक किस्सा रघु को बताना था। इसलिए बातों का सिलसिला रघु को आज इतनी थकान आने के कारण से हुआ। दिन भर में रघु कहा कह गया कितनी माथापच्ची किया एक एक विवरण सुना डाला जिसे सुनकर कमला बोलीं…पापा जी की जिम्मेदारी आपने अपने कंधे लिया हैं और उन जिम्मेदारियों का वाहन करते हुऐ आज आपको आभास भी हुए होगा कि पापा जी वर्षो से इन्हीं सब कामों को कर रहें थे और उन्हें कितनी थकान होता होगा फिर भी बिना थके लगन से निरंतर काम करते आए हैं।

रघु…सही कह रहीं हो कमला आज मै जान गया हूं पापा कितना परिश्रम करते थे मुझे तो लगता है बहुत पहले ही उनके जिमेदारियो को अपनी कांधे लेकर उन्हें विश्राम दे देना चाहिए था।

कमला…आपको क्या लगता है आप के कहने भर से पापा जी आपको अपना काम सौप देते कभी नहीं उन्हें जब लगा कि आप उनकी जिम्मेदारी उठाने लायक बन गए हैं तभी उन्होंने आपको सभी जिम्मेदारी सौंप दिया हैं।

रघु…कह तो तुम ठीक रहीं हों मेरी बाते बहुत हुआ अब तुम बताओ आज दिन भर तुमने क्या क्या किया?

कमला…मेरा आज का लगभग आधा दिन मम्मी जी की किस्से सुनते हुऐ बीता और बाकी बचा समय हॉस्पिटल में बीता।

रघु…हॉस्पिटल गई थी लेकीन क्यों तुम्हे या किसी को कुछ हुआ था तो मुझे सूचना क्यों नहीं भेजा।

कमला…अरे बाबा मुझे कुछ नहीं हुआ था वो तो कल रात मिले संभू हमे रास्ते में मिला जो दुर्घटना में गंभीर रूप से घायल हों गया था उसे ही हॉस्पिटल छोड़ने गईं थीं।

रघु…संभू इसका भी क्या ही कहना कल बचा और आज दुर्घटना का शिकार हों गया। कैसा हाल है उसका चलो उसे देखकर आते हैं।

कमला…. जब मै आई थी तब वैसे ही गंभीर हाल में थीं अभी का कहा नहीं सकती सजन जी वह है वो जब आयेंगे तब पता चल जाएगा।

रघु…कमला तुम्हे बोला न तुम सिर्फ मुझे ही सजन जी बोलोगे मेरे अलावा किसी और को नहीं!

कमला…उनका नाम ही ऐसा है मैं क्या करूं आप ही बता दीजिए उनको किस नाम से बुलाऊं।

रघु…उसका नामकरण कल सुबह करूंगा अभी तुम मुझे उस हॉस्पिटल का नाम बता दो।

कमला से हॉस्पिटल की जानकारी लेकर टेलीफोन डायरेक्टरी से उसी हॉस्पिटल का फोन नंबर ढूंढ निकाला फिर फोन लगाकर संभू का पूरा विवरण ले लिए उसके बाद रघु बोला…संभू इस वक्त ठीक हैं बस होश नही आया हैं।

कमला…चलो अच्छी खबर है अब क्या करना हैं चलना है की सोना हैं।

रात्रि ज्यादा हों गया था इसलिए कल सुबह दफ्तर जाने से पहले संभू को देखने जाने की सहमति बना उसके बाद रघु दिन भर की थकान कमला के साथ जोर आजमाइश करके थोड़ा ओर बढ़ाया फिर एक दूसरे से लिपटे ही निंद्रा की वादियों में खो गया।


आगे जारी रहेगा….
Very nice story 👌👌👌
 
Will Change With Time
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Mujhe ab ravan ke liye dukh ho raha hai ishiliye bolte hain ki sher ki sawari asaan nahi hoti utrna bahut muskil ho jata Jo jurm ka rasta chuna usne agar ushi par rahta to sambhu ke kuch bolne se pahle hi usko saaf kar deta khair mere sonchne se to wo kuch karne se raha writer sir kuch daya karo uspar achcha banne deo usko :stopdevil:

Thank you so much

Rawan ke saath kya hoga uska phaisla ho chuka hai ab dekhna ye hai ki vah phaisla rawan ke paksh me hota hai ki kisi aur ke paksh me.
 

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