Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Update - 62


रघु कमला और रावण हॉस्पिटल पहुंच चुके थे। रिसेप्शन से जानकारी लिया तब उन्हें पता चला संभू को आईसीयू में रखा गया हैं। आईसीयू किस ओर है जानकारी लेकर तीनों उस और चल दिए। आईसीयू के सामने जब पहुंचे तब कमला मुस्कुरा दिया क्योंकि इंस्पेक्टर साहब आईसीयू के बाहर कुर्सी लगाए बैठे थे और नींद की झपकी ले रहें थे।

कमला जल्दी से उसके पास गईं और इंस्पेक्टर के छीने पर लगे बैज में नाम देखकर बोलीं…संभाल जी आप ड्यूटी कर रहें है कि सो रहें हैं।

शायद इंस्पेक्टर साहब अभी अभी मौका देखकर नींद की झपकी ले रहें थे इसलिए आवाज सुनते ही तुंरत जग गए फिर बोला…मैडम जी रात भर से जागे हैं इसलिए अभी अभी नींद की झपकी आ गया था।

कमला…ठीक हैं अब आप जा सकते है लेकिन इसका मतलब ये नहीं कि आप को छुट्टी मिल गई आपने जगह किसी दूसरे को भेज देना ऐसा नहीं किया तो आप को याद ही होगा मेरी ननद रानी ने क्या कहा था।

"जी बिल्कुल याद हैं।" इतना बोलकर धन्यवाद देता हुए इंस्पेक्टर साहब वहा से चला गया और रघु बोला…कमला तुम दोनों राज परिवार से होने का पूरा पूरा फायदा उठा लिया इंस्पेक्टर को ही धमकी दे दी।

कमला…इंस्पेक्टर साहब को मैंने नहीं ननद रानी ने धमकी दिया था। मैंने तो सिर्फ़ डॉक्टर साहब को हड़का दिया था।

रावण…वाह बहू दोनों ननद भाभी ने मिलकर सफेद और खाकी वर्दी धारियों को ही लपेट लिया।

इस पे कमला सिर्फ मुस्कुरा दिया। अब तीनों को आईसीयू के अन्दर जाना था लेकिन बिना पूछे जा नहीं सकते थे। आईसीयू के बाहर कोई दूसरा खड़ा भी नहीं था जिससे पूछकर अन्दर जाएं। अब करें तो करें किया। उसी वक्त एक डॉक्टर उधर से गुजर रहा था। तभी रघु ने उससे कुछ कहा तब डॉक्टर खुद तीनों को आईसीयू के अन्दर ले गए लेकिन जानें से पहले सुरक्षा का पूरा ध्यान रखा गया।

जैसी ही तीनों अन्दर कदम रखा तभी कल वाला डॉक्टर जिसे कमला ने हड़काया था वो दौड़ते हुए आया और बोला…मैडम आपका मरीज अभी खतरे से बाहर हैं क्या मैं घर जा सकता हूं।

कमला…ठीक है चले जाना लेकिन जानें से पहले हमे मरीज से मिलवा दीजिए और उसका कंडीशन कैसा है बता दीजिए।

डॉक्टर…मरीज को कुछ गंभीर चोटे आई हैं एक हाथ और पैर की हड्डी टूट गया हैं। सिर में भी चोटे आई है। सिर की चोट अंदरूनी और खुली चोट है इसलिए कुछ जांचे किया हैं रिपोर्ट आने के बाद पूर्ण जानकारी दे सकता हूं।

कमला…कोई खतरे वाली बात तो नहीं हैं।

डॉक्टर…होश हा चुका है इसका मतलब साफ है कि खतरे वाली कोई बात नहीं हैं बाकी मस्तिष्क में कितना अंदरूनी चोट आया हैं उसकी जानकारी रिपोर्ट आने के बाद बतलाया जा सकता हैं।

बातों के दौरान सभी संभू के पास तक पहुंच चुके थे। पहली नजर में संभू का चेहरा पहचान में नहीं आ रहा था। कारण सिर्फ इतना था चहरे और सिर पे लगे चोट के कारण चेहरा सूजा हुआ था। लेकिन गौर से देखने पर संभू को पहचाना जा सकता था।

पहचान होते ही रावण विचलित सा हों गया। भेद खुलने का भय उसके अंतर मन को झकझोर कर रख दिया और रावण मन ही मन बोला…हे प्रभु रक्षा करना ये तो वहीं संभू हैं जो रावण के घर में काम करता हैं। इसे रघु पहले से ही जानता हैं। अब क्या होगा कहीं रघु को पहले से पाता न चल गया हों कि मैं और दलाल मिलकर कौन कौन से षडयंत्र रच रहे थे। एक मिनट शायद रघु को पता नहीं चला अगर पता चल गया होता तो अब तक महल में उथल पुथल मच चुका होता और रघु मुझे यह लेकर नहीं आता लेकिन कब तक पता नहीं चला तो आज नहीं तो कल पाता चल ही जाएगा फ़िर मेरा क्या होगा। क्या करूं इसको भी ब्रजेश, दरिद्र, बाला, शकील, भानू और भद्रा की तरह रास्ते से हटा दूं। नहीं नहीं ऐसा नहीं कर सकता नहीं तो सुकन्या को पाता चलते ही फिर से मुझसे रूठ जायेगी। क्या करूं उफ्फ ये बेबसी क्यों मैं गलत रास्ते पर चला था। क्यों मैं दलाल की बाते मानकर लोगों का खून बहाया था। मुझे ऐसा बिल्कुल नहीं करना चाहिए था।

किए गए अपराध का भेद खुलने का भय और बेबसी ने रावण को खुद में उलझकर रख दिया। खुद से ही मन ही मन सवाल जबाव का द्वंद छेद रखा था। रघु और कमला इससे अनजान संभू के पास बैठे हुए उसे आवाज दे रहा था मगर संभू उनके आवाज का कोई जवाब नहीं दे रहा था। तब डॉक्टर बोला…सर हमने इन्हें नींद का इंजेक्शन दे रखा हैं । जिस इस कारण संभू सो रहा हैं।अभी आपके किसी भी बात का जवाब नहीं देखेंगे।

कुछ देर और बैठने के बाद डॉक्टर को एक और निर्देश दिया गया कि संभू के इलाज में लापरवाई न बरती जाए साथ ही देख भाल की पूर्ण व्यवस्था किया जाएं। डॉक्टर एक बार आदेश न माने का भुल कर चुका था दुबारा उसी भुल को दौरान नहीं चाहता था इसलिए जवाब में बोला "संभू का केस मेरे निगरानी में हैं और आपकी बातों को नजरंदाज बिल्कुल नहीं किया जायेगा।

"काका क्या ये ही वो संभू हैं जो दलाल के पास काम करता हैं?" रघु ने रावण से यहां सवाल पूछा लेकिन रावण तो कहीं और खोया हुआ था। उसका ध्यान वहा क्या हों रहा हैं उस पे नहीं था। शीघ्र ही जवाब की उम्मीद किया जा रहा था लेकीन रावण तो किसी दूसरे ख्यालों में गुम था। इसलिए न सुना न ही जवाब दिया। तब रघु पलटा और रावण को ख्यालों में खोया देखकर रावण को लगभग झकझोरते हुए रघु बोला…काका आप कहां खोए है मैने कुछ पूछा था।

"क्या हुआ" रावण ख्यालों से बहार आते हुए बोला

रघु- हुआ कुछ नहीं आपसे संभू के बारे में पूछा था लेकिन आपने कोई जवाब ही नहीं दिया। वैसे आप किन ख्यालों में खोए थे जो अपने सुना ही नहीं!

"मैं ( कुछ पल रूका फिर रावण आगे बोला) मैं बस संभू के बारे में सोच रहा था। (फिर मन में बोला) तुम्हें कैसे बताऊं की मैं संभू के बारे में क्या सोच रहा था?

रघु…सोच लिया तो बता दो कि ये दलाल के पास काम करने वाला संभू ही हैं।

इस सवाल ने रावण को एक बार फिर से उलझन में डाल दिया कि संभू को जानता है और ये ही दलाल के पास काम करता हैं। लेकिन उलझन इस बात की थी कि सच बताए कि नहीं, बताया तब भी मुसीबत नही बताया तब भी मुसीबत, क्षणिक समय में रावण ने खुद में ही मंत्रणा कर लिया फिर जवाब में सिर्फ हां बोल दिया।

रघु…ठीक है फिर आप ही उन्हे संदेशा भिजवा दीजिए की संभू हॉस्पिटल में हैं।

एक बार फिर रावण ने हां में जवाब दिया फिर तीनों आईसीयू से बहार को चल दिए। जैसे ही बहर निकले सामने से साजन आता हुआ दिख गया। उससे कुछ बातें करने के बाद रघु कमला को लेकर महल लौट गया और रावण दलाल से मिलने चल दिया।

दलाल से मिलने रावण जा तो रहा था। लेकिन उसके मन में इस वक्त भी कई तरह के विचार चल रहा था। एक पल उसे सुकन्या की कहीं बात याद आ रहा था कि वो दलाल से फिर कभी न मिले अगले ही पल पोल खुलने का भय उसके मन को घेर ले रहा था। रावण अजीब सी कशमकश से जूझ रहा था। उसे ऐसा प्रतीत हों रहा था। वह एक ऐसे टीले पे खड़ा है जिसके चारों ओर गहरी खाई हैं और टीला भी धीरे धीरे टूट कर खाई में गिरता जा रहा हैं।







खीयांयांयां तेज ब्रेक दबने की आवाज और रावण ने कार को एक ऐसे दो रहें पे रोक दिया जहां से उसे एक रास्ता चुनना था। एक रास्ता महल की ओर जाता हैं तो दुसरा रास्ता दलाल के घर की ओर, एक रास्ते में वो थी जिसकी रावण ने कसम खाई थी और उसी ने लगभग टूट चुके भरोसे की एक बार फ़िर से नीव रखी थीं। वहीं दूसरे रास्ते पर वो था जिसके पास रावण को घिर रहे अंधेरे भविष्य से निकलने का रास्ता हों।

एक चुनाव करना था मगर रावण वह भी नहीं कर पा रहा था। उसका अंतरमन दो हिस्सों में बांट चुका था। एक उसे महल की ओर खीच रहा था तो दुसरा दलाल के घर ले जाना चाहता था। खीच तन का यह जंग कुछ लंबा चला और रावण को एक पैसला लेना था।

रावण फैसला ले चुका था बस अमल करना रह गया था। अपने फैसले पर अमल करते हुए रावण उस रास्ते पर चल पड़ा जिस और उसके अंधेरे भविष्य से निकलने का रास्ता था। रावण तो गया लेकिन उसी तिराहे पे एक स्वेत छाया खड़ा रह गया। शायद रावण के अंतर मन का स्वेत हिस्सा रावण के साथ न जाकर वहीं खड़ा रहा गया और रावण को जाता हुआ देखता रहा। दूर और दूर रावण जाता गया और एक वक्त ऐसा भी आया जब स्वेत छाया के निगाहों से रावण ओझल हों गया।

मायूस सा स्वेत छाया वहा खड़ा रहा सहसा उसके चहरे से मायूसी का बादल छटा और एक विजयी मुस्कान लवों पे तैर गया क्योंकि रावण वापस लौट रहा था और तिराहे पे वापस आकर महल की रास्ते पे चल दिया।

कमला को छोड़कर रघु दफ्तर जा चुका था और महिला मंडली अपनी सभा में मस्त थे। सभा में मुख्य मुद्दा एक दिन बाद होने वाले जलसा ही बना हुआ था। कौन किस तरह का वस्त्र पहनेगा कितने प्रकार के आभूषण उनके देह की शोभा बढ़ाएगा ताकि देखने वाले दूर से ही देखकर कह दे कि ये राज परिवार से है। लेकिन पुष्पा का कुछ ओर ही कहना था कि महल में होने वाला जलसा एक नई सदस्य का परिवार से जुड़ने की खुशी में दिया जा रहा है इसलिए उन सभी से ज्यादा कमला आकर्षण का मुख्य बिंदु होना चाहिए।

पुष्पा का कहना भी सही था जिससे सभी सहमत हुए और तय ये हुआ कि तीनों महिलाए कमला को साथ लेकर दोपहर के भोजन के बाद शॉपिंग पर निकलेगी उसके बाद सभा के समापन की घोषणा किया गया। उसी वक्त रावण का पदार्पण हुआ। आते ही सुकन्या को रूम में आने को कहकर सीधा अपने कमरे में चला गया।

"क्या हुआ जी आते ही कमरे में बुला लिया" कमरे में प्रवेश करते ही सुकन्या ने सवाल दाग दिया। रावण चुपचाप जाकर दरवाजा बंद कर दिया। यह देख सुकन्या बोलीं…इस वक्त द्वार क्यों बंद कर रहें हों?

रावण बोल कुछ नही बस सुकन्या का हाथ थामे ले जाकर विस्तार पर बैठा दिया फ़िर बोला…कुछ बात करना था इसलिए तुम्हें कमरे में बुला लिया।

सुकन्या…हां तो बात करना था तो कारो न उसके लिए द्वार क्यों बंद किया।

रावण…संभू को लेकर कुछ जरूरी बाते करनी थीं इसलिए द्वार बंद कर दिया। कल बहू और पुष्पा ने जिसे हॉस्पिटल पहुंचाया। ये वहीं संभू हैं जो दलाल के यहां काम करता हैं और रघु उसे पहले से जानता हैं अब मुझे भय लग रहा हैं की कहीं संभू ठीक होने के बाद रघु को सब बता न दे।

संभू…हां बताएगा तो बताने दो उसमे क्या बड़ी बात हैं?

रावण…बड़ी बात ही हैं। संभू लगभग सभी बाते जानता हैं जो मैंने और दलाल ने उसके घर पर किया था। जितनी भी षडयंत्र रचा था लगभग सभी षडयंत्र के बारे में जानता हैं। दादा भाई के सभी छः विश्वास पात्र जासूसों को कब कैसे और कहा मारा यह भी जानता हैं अगर यह बात संभू ने रघु को बता दी तब दादा भाई के कान तक पहुंचने में वक्त नहीं लगेगा। उसके बाद मेरे साथ किया होगा तुम्हें उसका अंदाजा नहीं हैं।

सुकन्या…क्या होगा इसका संभावित अंदाज मैं लगा चुकी हूं लेकिन आप खुद ही सोचकर देखिए कब तक आप छुपाकर रखेंगे कब तक खुद को बचा पाएंगे आज नहीं तो कल जेठ जी जान ही जायेंगे। संभू नहीं तो किसी दूसरे से जान लेंगे। मैं तो कहती हूं किसी दूसरे से जाने उससे पहले आप खुद ही अपना भांडा फोड़ दीजिए।

रावण…सुकन्या मैने अगर खुद से भांडा फोड़ दिया तब समझ रहीं हों दादा भाई क्या करेंगे मैने रघु की शादी रूकवाने में अंगितन षडयंत्र किया उनके विश्वासपात्र लोगों का खून किया मैं एक कातिल हूं इसका भान होते ही दादा भाई आप खो देंगे और अगर खुद पे नियंत्रण रख भी लिया तो कानून मुझे नहीं छोड़ेगा। कत्ल एक करो चाहें छः सजा तो मौत की मिलेगी।

रावण का इतना बोलना हुआ कि घुप सन्नाटा छा गया। दोनों में से कोई कुछ भी नहीं बोल रहें थे अगर कुछ हों रहा था तो सिर्फ़ विचारों में मंथन किया जा रहा था। सन्नाटे को भंग करते हुए सुकन्या बोलीं…होने को तो कुछ भी हों सकता हैं आप खुद से अपना जुर्म स्वीकार कर लेंगे तो हों सकता हैं कानून आपको बक्श दे मौत न देकर उम्र कैद की सजा दे।

कहने को तो सुकन्या कह दिया लेकिन अन्दर ही अन्दर वो भी जानती थी शायद ऐसा न हों और जो होगा उसके ख्याल मात्र से सुकन्या का अंतर मन रो रहा था पर विडंबना यह थी वो उसे दर्शा नहीं पा रहा था पर कब तक खुद को मजबूत रख पाती अंतः उसके अंशु छलक आए और पति से लिपट कर रो दिया। मन मीत से दूर होने की पीढ़ा रावण भी भाप रहा था। लेकिन वह अब कुछ कर नहीं सकता था इसलिए बोला…सब मेरी गलती हैं अपराध मैंने किया और उसकी सजा अब तुम्हें भी मिलेगा क्यों किया था अगर नहीं करता तो शायद आज मुझे और तुम्हें यह दिन न देखना पढ़ता।

सुकन्या ने कितना सुना कितना नहीं ये तो वहीं जाने मगर उसका रोना बदस्तूर जारी था। खैर कुछ देर रोने के बाद सुकन्या खुद को शांत किया फ़िर बोलीं…आप अभी किसी को कुछ मत कहना जब पाता चलेगा तभी खुद से ही बता देना इसी बहाने शायद कुछ दिन ओर आप के साथ बिताने को मिल जायेगा।

"ठीक हैं तुम जैसा कहो मैं वैसा ही करूंगा अब इन अश्रु मोतियों को समेट लो इसे तब बहाना जब मैं तुमसे दूर चला जाऊं।" सुकन्या के आसूं पोछते हुए रावण ने बोला तब सुकन्या हल्के हाथों से रावण के कन्धे पर दो तीन चपत लगा दिया। इसके बाद दोनों में छेड़खानी शुरू हों गया। जिससे माहौल में बदलाव आ गया।


रावण…सुकन्या रघु ने मुझे दलाल के घर संदेश भेजने को कहा हैं मुझे क्या करना चाहिए।

सुकन्या…करना क्या हैं जाईए और सुना दीजिए कि संभू को रघु जानता हैं। शायद जल्दी ही आप दोनों का भेद भी खुल जाएं।

इतना बोलकर सुकन्या ने मुस्कुरा दिया लेकिन उसकी मुस्कान सामान्य नहीं थी उसमें रहस्य झलक रहीं थीं। शायद रावण उस रहस्य को समझ गया होगा इसलिए बोला…जाऊंगा तो जरूर लेकिन सुनने के बाद जैसा दलाल करने को कहेगा मैं वैसा बिल्कुल नहीं करूंगा। मैं वहीं करूंगा जो तुम कहोगी।


पति की बाते सुनकर सुकन्या सिर्फ मुस्कुरा दिया और रावण चाल गया। कुछ ही वक्त में रावण दलाल के घर के बहर था। गेट पे ही द्वारपाल ने कह दिया दलाल इस वक्त घर पे नहीं हैं। अब उसका वह प्रतीक्षा करना व्यर्थ था इसलिए रावण बाद में आने को कहकर वापस चल दिया।


आगे जारी रहेगा…
Mast update waiting next
 

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