Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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पति की बाते सुनकर सुकन्या सिर्फ मुस्कुरा दिया और रावण चाल गया। कुछ ही वक्त में रावण दलाल के घर के बहर था। गेट पे ही द्वारपाल ने कह दिया दलाल इस वक्त घर पे नहीं हैं। अब उसका वह प्रतीक्षा करना व्यर्थ था इसलिए रावण बाद में आने को कहकर वापस चल दिया।

दलाल अभी अभी एक आलीशान महल के सामने पहुंचा था। हां आलीशान महल जिसकी भव्यता में कोई कमी नहीं अगर राज महल से इसकी तुलना कि जाएं तब राज महल की भव्यता के आगे बौना ही सिद्ध होगा अगर राज महल को परे रख दिया जाएं तो इस महल के आगे अन्य सभी आवास लगभग बौना ही लगेगा।

दलाल को देखते ही द्वारपाल ने इतनी तीव्र गति से अपना काम किया जैसे दलाल ही इस महल का स्वामी हों और महल स्वामी को द्वार पर ज्यादा देर प्रतीक्षा करवाना उचित नहीं होगा। मुख्य द्वार खुलते ही दलाल ने भी बिल्कुल वैसा ही प्रतिक्रिया दी।

"द्वार खोलने में इतना वक्त लगता हैं। हरमखोर तू कर क्या रहा था।?" दलाल के इन शब्दों का द्वारपाल ने कोई उत्तर नहीं दिया बस शीश झुकाकर खड़ा हों गया।

आगे का कुछ फैसला तय करके दलाल कार से उतर गया फ़िर शान से चलते हुए महल के भीतर चल दिया। कितना भी छीना ताने शान से चल ले लेकिन दलाल की डगमगाती चाल और बैसाकी के सहारे ने कुछ अंतर ला दिया था।

"आ मेरे भाई मेरे छीने से लगकर थोड़ी टंडक दे दे।" भीतर प्रवेश करते ही इन शब्दों ने दलाल का स्वागत किया और वह शख्स हाथ फैलाए खडा हों गया।

दलाल के चहरे की खुशी देखने लायक थी। ऐसा लग रहा था जैसे वर्षों के बिछड़े आज मिल रहें हों और दौड़कर अपने भाई से लिपट जाना चाहता हों लेकिन बैसाकी ने उसके इच्छाओं पे विराम लगा दिया इसलिए धीमे रफ्तार से चलते हुए आगे बढ़ने लगा।

"क्या हुआ मेरे भाई मुझसे मिलकर तू खुश नहीं हुआ और तेरे हाथ में यह बैसाकी क्यों?"

दलाल…खुश तो दादा भाई इतना हूं की दौड़कर आपसे लिपट जाने का मन कर रहा हैं लेकिन इस बैसाकी और टूटी हड्डियों ने मेरे इच्छाओं पर विराम लगा दिया।

"ओहो मैं तो भुल ही गया था दामिनी बहू ने उपहार में तुझे जीवन भर का जख्म दे दिया हैं। तू नहीं आ सकता तो क्या हुआ मैं तो आ सकता हूं।"

इतना बोलकर वह शख्स जाकर दलाल से लिपट गया। एक नौजवान लड़का, एक उम्रदराज महिला और कुछ नौकर चाकर इस भरत मिलाप के साक्षी बने कुछ पल देखने के बाद वह महिला बोलीं…चलो रे सब अपने अपने काम में लग जाओ इनका भरत मिलाप चलने दो आखिर दोनों भाई पांच साल बाद एक दूसरे से मिल रहें हैं।

"मैं तो इनसे लगभग प्रत्येक दिन मिलता हूं। लेकिन मुझसे तो कभी ऐसे नहीं मिले।" नौजवान लड़का शिकायत करते हुए बोला

दलाल…जो सामने रहते है उनसे मिलने की उत्साह थोड़ी कम होती हैं। इसलिए शिकायत करने से कोई फायदा नहीं हैं। क्यों दादा भाई मैंने सही कहा न?।

"बिल्कुल मेरे भाई चलो रे सभी कोना पकड़ो हम दोनों भाईयों को बहुत सारी बातें करनी हैं।"

सभी को कोना पकड़ने को कहा लेकिन हुआ उसका उल्टा वह शख्स दलाल को साथ लिए एक कमरे में चला गया और जाते जाते चेतावनी भी दे गया कि कोई उन्हें परेशान करने कमरे के आस पास भी न भटके।

"हमारी बहना प्यारी कैसी हैं? हमारा काम ठीक से कर रहीं हैं कि नहीं।" कमरे में आते ही वह शख्स ने सवाल दाग दिया।

दलाल…दादा भाई हमारी बहना अब प्यारी नही रहीं वो बदल गईं हैं। हमारे काम करने से सुकन्या ने साफ साफ इंकार कर दिया हैं।

"सुकन्या ने इंकार कर दिया तो क्या हुआ रावण तो अपने हाथ में है न उसी से ही राजमहल में लक्षा गृह का अग्नि कांड करवाएंगे।"

"अग्नि कांड" सिर्फ़ इतना दलाल ने दोहराया फिर हा हा हा की तीव्र दानवीय हंसी हंसने लग गया साथ में उसका भाई भी बिल्कुल दलाल की ताल से ताल मिलाकर हंसने लग गया। चारों दिशाओं से बंद कमरा जिसकी दीवारों से टकराकर हसीं की गूंज प्रतिध्वनि प्रभाव (echo effect) छोड़ रहा था।

"साला बुड़बक, बड़बोला, मंद बुद्धि कितनी शान से कहता हैं मैं रावण हूं रावण कलियुग का रावण।" दलाल ने लगभग खिल्ली उड़ने के तर्ज से कहा और एक बार फ़िर से दनवीय हसीं से हंसने लग गया।

"रावण हा हा हा रावण महा ज्ञानी था। उनके पांव के धूल बराबर भी नहीं हैं। मंद बुद्धि को इतना भी नहीं पाता कौन दुश्मन कौन दोस्त हैं।"

दलाल…हा हा हा सही कह मंदबुद्धि, नहीं नहीं महा मंदबुद्धि हैं। हमें जिस मौके की तलाश थीं। थाली में सजाकर हमारे हाथ में सौंप दिया मंदबुद्धि को अपना वर्चस्व स्थापित करना था। दुनियां का सबसे धनवान व्यक्ति बनना था। कहता था दलाल मेरे दोस्त मेरे ह्रदय में चिंगारी जल रहा है। मुझे अपना वर्चस्व स्थापित करना हैं दुनियां का सबसे धनवान व्यक्ति बनना हैं बता मैं क्या करूं जिससे मेरा यह सपना पुरा हों।

"हा हा हा उस चिंगारी को तूने इतनी हवा दी कि अब चिंगारी, चिंगारी नहीं रहा दहकती ज्वाला बन गया और उसी ज्वाला में उसी का महल स्वाहा होने वाला हैं।"

"स्वाहा" अग्नि कुंड में आहुति डालने का अभिनय करते हुए दलाल बोला और वैसा ही अभिनय उसके भाई ने किया फ़िर पहले से चल रहीं दानवीय हसीं और तीव्र हों गईं। सहसा दोनों भाईयों में हंसने की प्रतिस्पर्धा छिड़ गया। जितनी तीव्र दलाल हंस रहा था। उसका भाई उससे तीव्र हंस रहा था। कंठ की सहन शक्ति की एक सीमा होती हैं। दोनों भाइयों की दानविय हसीं ने उनके कंठ की मांसपेशियों को थका दिया जिस कारण दोनों भाईयों ने हंसने की तीव्रता में कमी ला दिया। इसका मतलब ये नहीं की हसीं रूक गईं थीं। हंसने का पाला चल रहा था। बस स्वर दानवीय से घटकर सामान्य हों गया था।

दलाल…एक अरसे से हमारे हृदय में जल रहें बदले की ज्वाला को अब शांत कर लेना चाहिए। मौका भी है ओर रावण और राजेन्द्र की ग्रह दशा भी उस ओर इशारा कर रहा हैं।

"दोनों भाईयों की ग्रह दशा ने अभी अभी चाल बदलना शुरू किया हैं। उसे पूरी तरह बदलकर तीतर बितर होने दे फ़िर उपयुक्त समय देखकर अपना बदला ले लेंगे।"

दलाल…उपयुक्त समय क्या देखना? अभी सबसे उपयुक्त समय हैं। हमें बस राजेंद्र के कान में रावण के किए कर्मों की जानकारी पहुंचना हैं और बैठे बैठे दोनों भाईयों के ग्रह दशा के साथ साथ उनके परिवार को तीतर बितर होते हुए देखना है।

"अहा दलाल तू इतना अधीर क्यों हों रहा हैं। वकालत की पेशे में इतना अधीर होना ठीक नहीं हैं।"

दलाल…दादा भाई अधीर नहीं हों रहा हूं मै तो बस संभावना बता रहा हूं। दोनों भाईयों के बीच बारूद लगा दिया हैं। बस एक चिंगारी लगाना हैं फिर एक भीषण धमाका होगा और दोनों भाईयों के बीच दूरियां बनना तय हैं। इसी के लिए हम वर्षों से साजिशें रच रहें हैं।

"अभी अगर कुछ भी किया तो उसकी लपेट में सिर्फ़ रावण आयेगा और रावण के कुकर्मों को जानने के बाद हों सकता हैं राजेंद्र खुद अपने भाई की हत्या कर दे या फ़िर कानून को सौंपकर कानूनन सजा दिलवाए अगर ऐसा हुआ तब मैं जो सोच रखा हैं वैसा बिलकुल नहीं होगा क्योंकि मैं चाहता हूं दोनों भाईयों के बीच ऐसी दुश्मनी की नीव पढ़े जो पीढ़ीदर पीढ़ी चलती रहें।"

दलाल…न जानें आपने क्या क्या सोच रखा हैं लेकिन मैं बस इतना ही कहूंगा कि इस वक्त भी वैसा ही हों सकता हैं जैसा आप चाह रहें हैं।

"होने को तो कुछ भी हों सकता हैं इसलिए अति शीघ्रता करने की आवश्यकता नहीं हैं नहीं तो सभी किए कराए पे पानी फिर जायेगा इसलिए जैसा चल रहा हैं चलने दो क्योंकि मुझे सिर्फ़ बदला ही नहीं चहिए बल्कि कुछ ओर भी चहिए।"

"कुछ ओर (कुछ देर सोचने के बाद दलाल आगे बोला) कुछ ओर से आप का इशारा गुप्त संपत्ति की ओर तो नहीं हैं। लेकिन हमे तो राज परिवार की संपति कभी चाहिए ही नहीं थी। पहले पापा फिर आपने विद्रोही का चोला ओढ़कर इतनी संपति अर्जित कर रखा हैं कि उसके सामने गुप्त संपत्ति भी कुछ नहीं हैं।"

"नहीं रे राज परिवार के गुप्त संपत्ति के आगे हमारी संपति निम्न है। न जानें कितने पुश्तों से राज परिवार गुप्त संपत्ति एकत्र कर रहें हैं फिर भी मैं बस इतना ही कहूंगा मुझे गुप्त संपत्ति नहीं बल्कि कुछ ओर चाहिए।"

दलाल…कुछ ओर कुछ ओर ये कुछ ओर है क्या? मुझे भी बता दीजिए

"ये एक राज है जब मैं उस राज के नजदीक पहुंच जाऊंगा तब सबसे पहले तुझे ही बताऊंगा अभी तू बस इतना जान ले उसके बारे में मुझे पहले जानकारी नहीं था। बस कुछ वर्षों पहले मुझे पता चला फ़िर अधिक जानकारी जुटाने के लिए में देश विदेश भ्रमण पे निकला कुछ विचित्र लोगों से मिला लेकिन उनसे भी भ्रमित करने वाली जानकारी ही मिला कोई कुछ तो कोई कुछ जानकारी दे रहा था मैं तो बस एक शंका के करण राज महल को आधार मानकर चल रहा हूं क्योंकि राज महल का इतिहास बहुत पुराना हैं कितना पुराना इसका भी पुख्ता सबूत मेरे पास नहीं हैं।"

दलाल…जब पुख्ता सबूत नहीं हैं तब उसके पीछे भागने से क्या फायदा बाद में जान पाए की न हम अपना बदला ले पाए और न ही वो राज हाथ लगा जिसको पाने के पीछे आप भाग रहें हों।

"पुख्ता प्रमाण नहीं हैं तो क्या हुआ। कुछ ऐसे तथ्य मिले है जो इशारा करता हैं उस राज की जड़े राजमहल या उसके सदस्य से जुड़ा हुआ हैं और जब तक उस राज की जड़े न खोद लूं मैं चुप नहीं बैठने वाला।"

दलाल…तथ्य क्या हैं? मुझे कुछ बता सकते हों।

"कहा न जब उस राज की पुख्ता सुराग मिल जायेगा तब तुझे भी बता दूंगा अभी अधूरी जानकारी लेकर तू भी मेरी तरह भ्रमित रहेगा।"

दलाल…हम सभी को भ्रमित करते रहते हैं हमे भला कौन सा राज भ्रमित कर सकता हैं।

"गलत अंकलन ही विषय वस्तु की दशा और दिशा दोनों बादल देता हैं। इसलिए अहंकार बस किसी को कमजोर नहीं आंकना चहिए। चाहें वो राजेंद्र,रावण या राजमहल का राज हों।"

दलाल…सत्य वचन भ्राताश्री अब चलो थोड़ा महफिल सजाया जाएं जाम से जाम टकराकर वर्षों बाद दोनों भाई मिले हैं इसकी खुशी मनाई जाएं।

"हां क्यों नहीं दोनों भाई दुनियां के सामने भले ही महफिल न सजा पाए लेकिन विलास महल में हम कुछ भी कर सकते है।"

दोनों भाई एक दूसरे के गले में हाथ डाले गहरे मित्रवत भाव का परिचय देते हुए विलास महल के दूसरे छोर की ओर चल दिया। जाते जाते कुछ चखने की व्यवस्था करने का आदेश भी दे दिया।

महल के दुसरे छोर में अच्छे खासे जगह को एक वार का रूप दिया हुआ था। जहां एक से एक नामी कम्पनियों के महंगी से महंगी नशीली पेय को सुसज्जित तरीके से रखा हुआ था।

"दलाल अपने पसंद का बोतल उठा और पैग बना आज मैं तेरे पसंद का पियूंगा"

दलाल…दादा भाई दो तीन ब्रांड का मिक्स कॉकटेल पीने का मेरा मन हों रहा हैं आप कहो तो आपके लिए भी बना दूं।

"हां बिल्कुल बना, देखे तो सही हमपे जो नशा चढ़ा हुआ हैं उसपे ये कॉकटेल कितना हावी होता हैं।"


"आप दोनों भाइयों ने दिन दोपहरी में ही पीने का मन बना लिया।"

दलाल…बड़े दिनों बाद दोनों भाई मिले हैं तो बस जाम से जाम टकराकर जश्न मना रहें हैं। अब भला जश्न मनाने में किया दिन किया रात देखना।

"बड़े दिनों बाद मिले हों इसलिए दिन में पीने से नहीं रोक रहीं हूं लेकिन ध्यान रखना नशीले पेय का नशा ज्यादा न चढ़े वरना मैं हावी हों जाऊंगी।"

दलाल की भाभी चखना देने आई थीं। चखने के साथ हड़काके चली गई। इसके बाद दलाल कॉकटेल बनता रहा और दोनों भाई पीने लगे। तीन तीन पैग अन्दर जानें के बाद नशा अपना असर दिखने लगा और मन में छुपी बाते बाहर आने लगा।

दलाल… दादा भाई मेरे हृदय में हमेशा एक टीस सी उठती रहती हैं। इतना बडा महल होते हुए मुझे एक छोटे से घर में रहना पड़ता हैं। बडा भाई होते हुए दुनिया के सामने अपना रिश्ता उजागर नहीं कर सकतें ऐसा कितने दिनों तक ओर करना पड़ेगा।

"इस बात की टीस तो मेरे ह्रदय में भी उठता रहता हैं लेकिन क्या करें राज परिवार से बदला जो लेना हैं अगर ऐसा न करना होता तो पिता जी हम दोनों भाईयों को एक दूसरे से दूर रखकर दुनिया से पहचान छुपाकर न पाला होता और हमारी एक मात्र बहन को दूसरे के हाथों सौंप न दिया होता।"

दलाल…सुकन्या हमारी बहन नहीं हैं। भले ही उसके रगों में हमारा ही खून दौड़ रहा हों लेकिन उसकी सोच हमारी जैसी नहीं हैं। जिसने उसे पाला है उसने अपनी सोच उसके मन में डाली हैं।

"इसमें उसकी गलती नहीं है। सुकन्या की तरह तुझे भी कोई दुसरा पालता तब तेरी सोच भी शायद बदला हुआ होता बस पिता जी से इतनी गलती हों गई कि उन्होंने सुकन्या से सानिध्य बनाए नहीं रखा। अब तू ही बता उम्र के एक पड़ाव पे आकर सहसा पाता चले कि जिसने तुझे पाला वास्तव में वे तेरे जन्मदाता मां बाप नहीं हैं फिर तू क्या करता।"

दलाल…अलग तो मैं भी रहा बस फर्क इतना हैं कि मुझे किसी दूसरे ने नहीं पाला ऐसे में मेरी सोच भी बादल सकता था ? इस पे आप क्या कहेंगे?

"हां बदल सकता था लेकिन पिता जी ने तेरी सोच बदलने नहीं दिया। समय रहते तुझे बता दिया कि राज परिवार से हमारी दुश्मनी हैं और कारण भी बता दिया। अगर सुकन्या को भी बता दिया जाता तब वो भी हमारी तरह ही होती। उसे तो आज भी पाता नहीं हैं बस हमने उसे अंधेरे में रखकर अपना काम निकलवाना चाहा।"

दलाल…जो भी हो मैं बस इतना जानता हूं सुकन्या हमारे दुश्मन परिवार से है इसलिए वो भी हमारा दुश्मन हुआ। जब तक सुकन्या हमारा काम करती रहीं तब तक हमारा उससे रिश्ता था अब वो हमारा कोई भी काम नहीं कर रहीं हैं तो हमें उससे कोई रिश्ता रखने की आवश्कता नहीं हैं।

"हां बिल्कुल ऐसा ही होगा दुश्मन परिवार में विहायी हैं तो वो भी हमारा दुश्मन ही हुआ। उसके साथ भी वैसा ही होगा जैसा बाकियों के साथ होगा। अब हमें उससे कोई वास्ता नहीं रखना अगर किसी से वास्ता रखना ही हैं तो वह रावण होगा क्योंकि हम उसकी सहायता से अपना बदला भी लेंगे और राजमहल के छुपे राज का भी पाता लगाएंगे।"

दलाल…राजमहल का राज न जानें कौन सा वो राज हैं? जिसके पीछे आप समय खफा रहें हों। जानना चाहा तब भी नहीं बताया ज्यादा कहा तब आप कहेंगे जिद्द न कर फ़िर भी इतना कहूंगा कि जीतना आप जानते हैं उसका कुछ हिस्सा मुझे बता दीजिए अगर वह राज राजमहल से जुड़ा हैं। तो हों सकता हैं रावण उस बारे में कुछ जानता हों और मैं उससे कुछ अहम जानकारियां निकाल पाऊं।

"मुझे लगता हैं राजेंद्र और रावण में से कोई शायद ही उस राज के बारे में जानता हों क्योंकि दरिद्र, बाला, शकील, भानू और भद्रा इन सभी को मैंने उसी राज की जानकारी निकलने के लिए राजेंद्र के पास भेजा था। चारों ने बहुत सावधानी से बहुत प्रयास किया लेकिन कोई जानकारी नहीं निकाल पाया। अंतः रावण के हाथों उन चारों को मरवाना पड़ा वरना वे सभी कभी न कभी उगल ही देते कि मैं राजमहल के किसी छुपे राज को जानना चाहता हूं।"


दलाल…हा हा हा दादा भाई अपने मुझे भी अंधेरे में रखा और रावण तो शुरू से अंधेरे में हैं। हमने उससे अपना काम निकलवाया खुद का बचाव किया और रावण सोचता हैं उन चारों को मारकर खुद का बचाव किया। क्यों न राजमहल के छुपे राज का पर्दा रावण के हाथों उठवाया जाएं क्योंकि जो राज वर्षों से छुपा कर रखा गया उस पे चर्चा भी खुलेआम नहीं किया जायेगा इसलिए मुझे लगता हैं रावण भी उस राज के बारे में जानता होगा बस खुलेआम कोई चर्चा नहीं करता होगा।

"कह तो तू सही रहा हैं लेकिन इसमें खतरा भी बहुत हैं अगर रावण जानता होगा तब कहीं हमारी ही जान पे न बन आए।,

दलाल…हमारी जान को कोई खतरा नहीं होगा इसका उत्तरदायत्व मैं लेता हूं। आप मुझे बस वो राज क्या हैं और अब तक आपको कितनी जानकारी मिला हैं फिर मैं सोचूंगा की रावण को कौन सा चूरन दिया जाएं जिससे हमारा काम हों जाएं।

"हा हा हा चूरन! तूने महामूर्ख रावण को इतना चूरन दिया ओर अधिक चूरन दिया तो उसका हाजमा ठीक होने के जगह कहीं खराब न हों जाएं।"

दलाल…हा हा हा होता हैं तो होने दो वो महामूर्ख सिर्फ ओर सिर्फ़ मेरा दिया चूरन खाने के लिए पैदा हुआ हैं। चूरन खायेगा ओर कहेगा मैं रावण हूं रावण कलियुग का रावण।

हा हा हा एक बार फिर से दोनों भाई तीव्र स्वर में दानवीय हसीं हंसने लग गए। बीतते पल के साथ हंसी तीव्र ओर तीव्र होता जा रहा था। जो सम्पूर्ण महल में प्रतिध्वनि प्रभाव छोड़ रहा था। जी भर हंसने के बाद अंतः दोनों भाईयों की दानविय हंसी को विराम लगा और दलाल का भाई बोलना शुरू किया।

"दलाल तुझे याद तो होगा आज से लगभग छः, साढ़े छः साल पूर्व रावण और राजेन्द्र के पिताश्री अगेंद्रा राना पे आत्मघाती हमला करवाया था।"

दलाल…हां याद हैं ओर यह भी याद है अगेंद्रा राना उस आत्मघाती हमले में बच गया था लेकिन उसके लगभग दो ढाई साल बाद एक दुर्घटना में मारा गया।

अगेंद्रा राना के एक दुर्घटना में मृत्यु की बात सुनते ही दलाल के भाई के लवों पे रहस्यमई मुस्कान आ गया जो आगाह कर रहा था कि उस दुर्घटना से जुड़ा कोई तो राज है जो दलाल का भाई जानता हैं।

"हां बच तो गया था लेकिन कभी तूने विचार किया कि उस आत्मघाती हमले में अगेंद्रा राना कैसे बचा, क्यों बचा, किसने बचाया था?"

दलाल…अगेंद्रा राना कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। जहां भी आता जाता था अंगरक्षकों का एक पूर्ण जत्था साथ लिए जाता था ऐसे में हमारे भेजे हमलावरों से कोई चूक हुआ होगा।

"चूक नहीं हुआ था बल्कि हमारे भेजे हमलावरो ने अगेंद्रा राना के सभी अंगरक्षकों को मार दिया था बस अगेंद्रा राना ही बचा था उस पे हमला कर पाते तभी कहीं से कुछ स्वेत वस्त्र धारी लोग आए और चुटकियों में सभी हमलावरों का सफाया करके अगेंद्रा राना को बचाकर ले गए। ये बातें हमारे ही एक आदमी ने बताया जो किसी तरह छिपकर अपनी जान बचाने में सफल रहा सिर्फ़ जानकारी ही नहीं बल्कि एक यन्त्र भी मुझे दिया जिस पे प्रशांति निलयम् लिखा था।"

दलाल…स्वेत वस्त्र धारी लोग और प्रशांति निलयम् अब किया बदला लेने के लिए इनसे भी निपटना पड़ेगा।

"शायद हां लेकिन उसके बारे में जानकारी भी तो होना चहिए पर विडंबना ये है कि हमें न स्वेत वस्त्र धारियों के बारे में कुछ पाता हैं न ही उस यन्त्र के बारे में, पिछले पांच साल में न जानें कहा कहा घुमा कितने जानें माने उपकरण विशेषज्ञों से मिला पर फायदा कुछ नहीं हुआ। सभी बस एक ही बात कह रहें थे कि ये कोई यन्त्र नहीं बल्कि किसी संस्था का प्रतीक हैं और उस पे लिखा नाम उस संस्था का नाम हैं।"

दलाल…हां तो वे लोग सही कह रहें होंगे। वो विशेषज्ञ हैं और उनकी सोध गलत कैसे हों सकता हैं।

"मैं भी उनकी सोध को गलत कहा कह रहा हूं लेकिन मैं हार नहीं मानने वाला इसलिए मैंने उस प्रशांति निलयम् नमक यंत्र या फ़िर किसी संस्था की प्रतीक पर सोध के लिए अपना एक गुट लगा रखा हैं। सोध जब तक चलता है चलने दो लेकिन हमें उन स्वेत वस्त्र धारियों के बारे में पाता लगाना हैं। अगर किसी तरह छल बल या कौशल से उन स्वेत वस्त्र धारियों के संस्था को हथिया लिया जाएं तब हमसे शक्तिशाली कोई नहीं होगा।"

दलाल…ठीक हैं फिर रावण के लिए कोई चूरन तैयार करता हूं और उसके पेट में छुपी इस प्रशांति निलयम् नामक राज उगलवा लेता हूं।

एक बार फिर दोनों भाईयों की दानविय हंसी ने सम्पूर्ण महल को दहला दिया पर इस बार उनकी हंसी ज्यादा देर नहीं चली क्योंकि दलाल की भाभी ने आकर दोनों को हड़का दिया। सिर्फ हड़काया ही नहीं अपितु घरेलू वार को ही बंद कर दिया।

आगे जारी रहेगा….
 
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अपडेट 63 पोस्ट कर दिया हैं। बस टिप्पडी की प्रतीक्षा करूंगा जो प्रिय पाठक बंधु देने नहीं रहें हैं।
 
Will Change With Time
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Bahut badi sazis chal rahi hai bhai ravan to bekaar ma fansa hai sasur ab kya hoga aur ye safeed kapde wale soorveer kaun hain

Thank you so much

Sajis to bahut gahri rachi gayi thi isme koyi sak nahi hai lekin beete deeno ki kuch gataye agaha kar rahi hai shayad jaldi hi unki sanjish ka parda phans ho jaye.

Swet phosak wale shoorveer aur prashanti neelayam ka rahasy khulne me abhi samay lagega
 

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