Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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Update -2


किचन में बावर्ची दिन के खाने में परोसे जानें वाले विभिन्न प्रकार के व्यंजनों को बनाने में मग्न थे। सुरभि किचन के दरवाजे पर खडा हों सभी बावर्चियो को काम में मग्न देख मुस्कुराते हुए अंदर गईं। सभी बावर्चिओ में एक बुजुर्ग था। उनके पास जा'कर बोली...दादा भाई दिन के खाने में किन किन व्यंजनों को बनाया जा रहा हैं।

सुरभि को कीचन में देख बुजुर्ग वबर्ची बोला…रानी मां आप को कीचन में आने की क्या जरूरत थीं हम तैयारी कर तो रहे हैं।

सुरभि…दादा भाई मैं कीचन में क्यों नहीं आ सकती यहां घर और कीचन मेरा हैं। मै कहीं भी आ जा सकती हूं। आप से कितनी बार कहा हैं आप मुझे रानी मां न बोले फिर भी सुनते नहीं हों।

"क्यों न बोले रानी मां आप इस जागीर के रानी हों और एक मां की तरह सभी का ख्याल रखते हों। इसलिए हम आप'को रानी मां बोलते हैं।"

सुरभि…दादाभाई आप मुझसे उम्र में बड़े हों। आप'का मां बोलना मुझे अच्छा नहीं लगता। जब राजपाठ थी तब की बात अलग थीं। अब तो राजपाठ नहीं रही और न ही राजा रानी रहे। इसलिए आप मुझे रानी मां न बोले।

बुजुर्ग…राज पाट नहीं हैं फिर भी आप और राजा जी अपने प्रजा का राजा और रानी की तरह ख्याल रखते हों हमारे दुःख सुख में हमारे कंधे से कंधा मिलाए खडे रहते हों। ऐसे में हम आपको रानी मां और राजा जी को राजाजी क्यो न बोले, रानी मां राजा रानी कहलाने के लिए राजपाठ नहीं गुण मायने रखता हैं जो आप में और राजाजी में भरपूर मात्रा में हैं।

बुजुर्ग से खुद की और पति की तारीफ सुन सुरभि मन मोहिनी मुस्कान बिखेरते हुए बोली…जब भी मैं आप'को रानी मां बोलने से मना करती हूं आप प्रत्येक बार मुझे अपने तर्कों से उलझा देते हों फिर भी मैं आप से कहूंगी आप मुझे रानी मां न बोले।

सुरभि को मुस्कुराते हुए देख और तर्को को सुन बुजुर्ग बोला...रानी मां इसे तर्को में उलझना नहीं कहते, जो सच हैं वह बताना कहते हैं। आप ही बता दिजिए हम आप'को क्या कह कर बुलाए।

सुरभि…मैं नहीं जानती आप मुझे क्या कहकर संबोधित करेंगे। आप'का जो मन करे बोले लेकिन रानी मां नहीं!

बुजुर्ग...हमारा मन आप'को रानी मां बोलने को करता हैं। हम आप'को रानी मां ही बोलेंगे इसके लिए आप हमें दण्ड देना चाहें तो दे सकते हैं लेकिन हम आप'को रानी मां बोलना बंद नहीं करने वाले।

सुकन्या किसी काम से किचन में आ रही थीं। वाबर्चियो से सुरभि को बात करते देख किचन के बाहर खड़ी हो'कर सुनाने लग गईं। सुरभि की तारीफ करते सुन सुकन्या अदंर ही अदंर जल भुन गई जब तक सहन कर सका किया जब सहन सीमा टूट गया तब रसोई घर के अंदर जाते हुए बोली...क्यों रे बुढाऊ अब तुझे किया चाहिए जो दीदी को इतना मस्का लगा रहा हैं।

सुरभि…छोटी एक बुजुर्ग से बात करने का ये कैसा तरीका हैं। दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। कम से कम इनके साथ तो सलीके से पेश आओ।

एक नौकर के लिए सुरभि का बोलना सुकन्या से बर्दास्त नहीं हुआ इसलिए सुकन्या तिलमिला उठा और बोला…दीदी आप इस बुड्ढे का पक्ष क्यों ले रहीं हों। ये हमारे घर का एक नौकर हैं, नौकरों से ऐसे ही बात किया जाता हैं।

सुकन्या की बाते सुन सुरभि को गुस्सा आ गया सुरभि गुस्से को नियंत्रित करते हुए बोली...छोटी भले ही ये हमारे घर में काम करने वाले नौकर हैं लेकिन हैं तो एक इंसान ही और दादाभाई तुमसे उम्र में बड़े हैं। तुम्हारे पिताजी के उम्र के हैं तुम अपने पिताजी के लिए भी ऐसे अभद्र भाषा बोलती हों।

एक नौकर का पिता से तुलना करना सुकन्या को हजम नहीं हुआ इसलिए सुकन्या अपने वाणी को ओर तल्ख करते हुए बोली…दीदी आप इस बुड्ढे की तुलना मेरे पिता से कर रहीं हों इसकी तुलना मेरे पिता से नहीं हों सकता। ओ हों अब समझ आया आप इसका पक्ष क्यों ले रहीं हों आप इस बुड्ढे के पक्ष में नहीं रहेंगे तो ये बुड्ढा चिकनी चुपड़ी बातों से आप'की तारीफ नहीं करेगा आप'को तारीफे सुनने में मजा जो आता हैं।

सुकन्या की बातो को सुन वह मौजुद सभी को गुस्सा आ गया। लेकिन नौकर होने के नाते कोई कुछ बोल पाया, मन की बात मन में दावा लिया। सुरभि भी अछूता न रहा सुकन्या की बातो से उसे भी गुस्सा आ गया लेकिन सुरभि बात को बढ़ाना नहीं चह रहीं थी इसलिए चुप रह गईं पर नौकरों में से एक काम उम्र का नौकर एक गिलास पानी ले सुकन्या के पास गया। पानी का गिलास सुकन्या के देते हुए जान बुझ कर पानी सुकन्या के साड़ी पर गिरा दिया। पानी गिरते ही सुकन्या आगबबूला हों गई। नौकर को कस'के एक तमाचा जड़ दिया फिर बोली…ये क्या किया कमबख्त मेरी इतनी महंगी साड़ी खराब कर दिया तेरे बाप की भी औकात नहीं इतनी महंगी साड़ी खरीद सकें।

एक ओर तमाचा लड़के के गाल पर जड़ सुकन्या पैर पटकते हुए कीचन से बहार को चल दिया। तमाचा इतने जोरदार मारा गया था। जिससे गाल पर उंगली के निशान पड़ गया साथ ही लाल टमाटर जैसा हों गया। लड़का खड़े खड़े गाल सहला रहा था। सुरभि पास गई लडके का हाथ हटा खुद गाल सहलाते हुए बोली…धीरा तुने जान बुझ कर छोटी के साड़ी पर पानी क्यों गिराया। तू समझता क्यों नहीं छोटी हमेशा से ऐसी ही हैं। कर दिया न छोटी ने तेरे प्यारे से गाल को लाल।

सुरभि का अपने प्रति स्नेह देख धीरा की आंखे नम हों गया। नम आंखो को पोंछते हुआ धीरा बोला…रानी मां मैं आप को अपमानित होते हुए कैसे देख सकता हूं। छोटी मालकिन ने हमें खरी खोटी सुनाया हमने बर्दास्त कर लिया। उन्होंने आप'का अपमान किया मैं सहन नहीं कर पाया इसलिए उनके महंगी साड़ी पर जान बूझ कर पानी गिरा दिया। इसके एवज में मेरा गाल लाल हुआ तो क्या हुआ बदले में अपका स्नेह भी तो मिल रहा हैं।

सुरभि...अच्छा अच्छा मुझे ज्यादा मस्का मत लगा नहीं तो मैं फिसल जाऊंगी तू जा थोड़ी देर आराम कर ले तेरे हिस्से का काम मैं कर देती हूं।

धीरा सुरभि के कहते ही एक कुर्सी ला'कर सुरभि को बैठा दिया फिर बोला…रानी मां हमारे रहते आप काम करों ये कैसे हों सकता हैं। आप को बैठना हैं तो बैठो नहीं तो जा'कर आराम करों खाना बनते ही अपको सुचना भेज दिया जायेगा।

सुरभि…मुझे कोई काम करने ही नहीं दे रहे हों तो यह बैठकर क्या करूंगी मैं छोटी के पास जा रही हूं।

सुरभि के जाते ही बुजुर्ग जिसका नाम रतन हैं वह बोला…छोटी मालकिन भी अजब प्राणी हैं इंसान हैं कि नागिन समझ नहीं आता। जब देखो फन फैलाए डसने को तैयार रहती हैं।

धीरा...नागीन ही हैं ऐसा वैसा नहीं विष धारी नागिन जिसके विष का काट किसी के पास नहीं हैं।

सुकन्या की बुराई करते हुऐ खाने की तैयारी करने लग गए। सुरभि सुकन्या के रूम में पहुंच, सुकन्या मुंह फुलाए रूम में रखा सोफे पर बैठी थीं, पास जा'कर सुरभि बोली…छोटी तू मुंह फुलाए क्यो बैठी हैं। बता क्या हैं?

सुरभि को देख मुंह भिचकते हुए सुकन्या बोली…आप तो ऐसे कह रही हो जैसे आप कुछ जानती ही नही, नौकरों के सामने मेरी अपमान करने में कुछ कमी रहीं गईं थी जो मेरे पीछे पीछे आ गईं।

सुकन्या की तीखी बाते सुन सुरभि का मन बहुत आहत हुआ फिर भी खुद को नियंत्रण में रख सुरभि बोली…छोटी मेरी बातों का तुझे इतना बुरा लग गया। मैं तेरी बहन जैसी हूं तू कुछ गलत करे तो मैं तुझे टोक भी नहीं सकता।

सुकन्या…मैं सही करू या गलत आप मुझे टोकने वाली होती कौन हों? आप मेरी बहन जैसी हों बहन नहीं इसलिए आप मुझसे कोई रिश्ता जोड़ने की कोशिश न करें।

सुरभि...छोटी ऐसा न कह भला मैं तुझ'से रिश्ता क्यों न जोडू, रिश्ते में तू मेरी देवरानी हैं, देवरानी बहन समान होता हैं इसलिए मैं तूझे अपनी छोटी बहन मानती हूं।

सुकन्या…मैं अपके साथ कोई रिश्ता जोड़ना ही नहीं चाहती तो फिर आप क्यों बार बार मेरे साथ रिश्ता जोड़ना चाहती हों। आप कितनी ढिट हों बार बार अपमानित होते हों फिर भी आ जाते हों अपमानित होने। आप जाओ जाकर अपना काम करों।

सुरभि से ओर सहन नहीं हुआ। आंखे सुकन्या की जली कटी बातों से नम हों गई। अंचल से आंखों को पूछते हुए सुरभि चली गईं सुरभि के जाते ही सुकन्या बोली…कुछ भी कहो सुरभि को कुछ असर ही नहीं होता। चमड़ी ताने सुन सुन कर गेंडे जैसी मोटी हों गईं हैं। कैसे इतना अपमान सह लेती हैं। कर्मजले नौकरों को भी न जानें सुरभि में क्या दिखता हैं? जो रानी मां रानी मां बोलते रहते हैं।

कुछ वक्त ओर सुकन्या अकेले अकेले बड़बड़ाती रहीं फिर बेड पर लेट गई। सुरभि सिसक सिसक कर रोते हुऐ रूम में पहुंचा फिर बेड पर लेट गई। सुरभि को आते हुए एक बुजुर्ग महिला ने देख लिया था। जो सुरभि के पीछे पीछे उसके कमरे तक आ गईं। सुरभि को रोता हुए देख पास जा बैठ गई फ़िर बोली…रानी मां आप ऐसे क्यो लेटी हों? आप रो क्यों रहीं हों?

सुरभि बूढ़ी औरत की बात सुन उठकर बैठ गईं फिर बहते आशु को पोंछते हुए बोली…दाई मां आप कब आएं?

दाई मां...रानी मां अपको छोटी मालकिन के कमरे से निकलते हुए देखा आप रो रहीं थी इसलिए मैं अपके पीछे पीछे आ गई। आज फ़िर छोटी मालकिन ने कुछ कह ।

सुरभि…दाई मां मैं इतनी बूरी हूं जो छोटी मुझे बार बार अपमानित करती हैं।

दाई मां…बुरे आप नहीं बुरे तो वो हैं जो आप'की जैसी नहीं बन पाती तो अपनी भड़ास आप'को अपमानित कर निकल लेते हैं।

सुरभि…दाई मां मुझे तो लगता मैं छोटी को टोककर गलत करती हूं। मैं छोटी को मेरी छोटी बहन मानती हूं इस नाते उसे टोकटी हूं लेकिन छोटी तो इसका गलत मतलब निकाल लेती हैं।

दाई मां...रानी मां छोटी मालकिन ऐसा जान बूझ कर करती हैं। जिससे आप परेशान हो जाओ और महल का भार उन्हे सोफ दो फिर छोटी मालकिन महल पर राज कर सकें।

सुरभि...ऐसा हैं तो छोटी को महल का भार सोफ देती हूं। कम से कम छोटी मुझे अपमान करना तो छोड़ देगी।

दाई मैं…आप ऐसा भुलकर भी न करना नहीं तो छोटी मालकिन अपको ओर ज्यादा अपमानित करने लगे जाएगी फिर महल की शांति जो अपने सूझ बूझ से बना रखा हैं भंग हो जाएगी। आप उठिए मेरे साथ कीचन में चलिए नहीं तो आप ऐसे ही बहकी बहकी बाते करते रहेंगे और रो रो कर सुखी तकिया भिगाते रहेंगे।

सुरभि जाना तो नहीं चहती थी लेकिन दाई मां जबरदस्ती सुरभि को अपने साथ कीचन ले गई। जहां सुरभि वाबर्चियो के साथ खाना बनने में मदद करने लग गई। खाना तैयार होने के बाद सुरभि सभी को बुलाकर खाना खिला दिया और ख़ुद भी खा लिया। खाना खाकर सभी अपने अपने रूम में विश्राम करने चले गए।

कलकत्ता के एक आलीशान बंगलों में एक खुबसूरत लडकी चांडी का रूप धारण किए थोड़ फोड़ करने में लगी हुई थीं आंखें सुर्ख लाल चहरे पे गुस्से की लाली आंखों में काजल इस रूप में बस दो ही कमी थीं। एक हाथ में खड्ग और एक हाथ में मुंड माला थमा दिया जाय तो शख्सत भद्रा काली का रूप लगें। लड़की कांच के सामानों को तोड़ने में लगी हुई थीं। एक औरत रुकने को कह रहीं थीं लेकिन रूक ही नहीं रहीं थीं। लड़की ने हाथ में कुछ उठाया फिर उसे फेकने ही जा रहीं थीं कि रोकते हुए औरत बोली...नहीं कमला इसे नहीं ये बहुत महंगी हैं। तूने सब तो तोड़ दिया इसे छोड़ दे मेरी प्यारी बच्ची।

कमला…मां आप मेरे सामन से हटो मैं आज सब तोड़ दूंगी।

औरत जिनका नाम मनोरमा हैं।

मनोरमा...अरे इतना गुस्सा किस बात की अभी तो कॉलेज से आई है। आते ही तोड़ फोड़ करने लग गई। देख तूने सभी समानों को तोड दिया। अब तो रूक जा मेरी लाडली मां का कहा नहीं मानेगी।

कमला…कॉलेज से आई हूं तभी तो तोड़ फोड़ कर रहीं हूं। आप मुझे कितना भी बहलाने की कोशिश कर लो मैं नहीं रुकने वाली।

मनोरमा...ये किया बात हुईं कॉलेज से आकर विश्राम करते हैं। तू तोड़ फोड़ करने लग गई। ये कोई बात हुई भला।

कमला…मां अपको कितनी बार कहा था अपने सहेलियों को समझा दो उनके बेटे मुझे रह चलते छेड़ा न करें आज भी उन कमीनों ने मुझे छेड़ा उन्हे आप'के कारण ज्यादा कुछ कह नहीं पाई उन पर आई गुस्सा कही न कहीं निकलना ही था।

मनोरमा…मैं समझा दूंगी अब तू तोड़ फोड़ करना छोड़ दे।

घर का दरवजा जो खुला हुआ था। महेश कमला के पापा घर में प्रवेश करते हैं । घर की दशा और कमला को थोड़ फोड़ करते देख बोला…मनोरमा कमला आज चांदी क्यों बनी हुई हैं? क्या हुआ?

मनोरमा...सब आपके लाड प्यार का नतीजा हैं दुसरे का गुस्सा घर के समानों पर निकाल रहीं हैं सब तोड़ दिया फिर भी गुस्सा कम नहीं हों रही।

महेश…ओ तो गुस्सा निकाल रहीं हैं निकल जितना गुस्सा निकलना है निकाल जितना तोड फोड़ करना हैं कर। काम पड़े तो और ला देता हूं।

मनोरमा…आप तो चुप ही करों।

कमला का हाथ पकड़ खिचते हुए सोफे पर बिठाया फिर बोली...तू यहां बैठ हिला तो मुझसे बूरा कोई नहीं होगा।

कमला का मन ओर तोड़ फोड़ करने का कर रहा था। मां के डांटने पर चुप चाप बैठ गई महेश आकर कमला के पास बैठा फ़िर पुछा...कमला बेटी तुम्हें इतना गुस्सा क्यों आया? कुछ तो कारण रहा होगा?

कमला…रस्ते में कालू और बबलू मुझे छेड़ रहे थे। चप्पल से उनका थोबडा बिगड़ दिया फिर भी मेरा गुस्सा कम नहीं हुआ इसलिए घर आ'कर थोड़ फोड़ करने लगी।

मनोरमा…हे भगवन मैं इस लड़की का क्या करूं ? कमला तू गुस्से को काबू कर नहीं तो शादी के बाद किए करेंगी।

महेश…क्या करेगी से क्या मतलब वहीं करेगी जो तुमने किया।

मनोरमा…अब मैंने क्या किया जो कोमल करेगी।

महेश…गुस्से में पति का सिर फोड़ेगी जैसे तुमने कई बार मेरा फोड़ा था।

कमला…ही ही ही मां ने अपका सिर फोड़ा दिया था। मैं नहीं जानती थी आज जान गई।

मनोरमा आगे कुछ नहीं बोली बस दोनों बाप बेटी को आंखे दिखा रहीं थी और दोनों चुप ही नहीं हो रहे थे मनोरमा को छेड़े ही जा रहे थे।

आज के लिया इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद

🙏🙏🙏🙏🙏🙏

aik aur shandar update...

kuch naye kirdar bhi shaamil hue kahani mein....

aik aur badsurat kirdar... Sukanya... insaan jab doosre insaan ko keeda makoda samjhne lage tau wo khud bhi insaan nahi rehta... saat lag raha he ke Sukanya jealous he Surbhj se...

Waise sukanya se ulat surbhi hamesha sab ko ek nazar se dekhti hai.. wo bhed bhav nahi karti... wo apni Umar bade chhote sabhi ko samman deti hai aur shenh bhi....isliye to sabhi aadar aur saamman karte surbhi ko.. yahi to hai achhe sanskar ke lakshan jo ushe apne mata pita se virashat mein mile aur ab bete ko bhi ishi tarah achhe soch vichar rakhne ki sikh de rahi hai aur parwarish bhi...

aik aur kirdar... Kamla... baat baat pe jhagda karne wali...

agla update padhne ke liye utsuk... :yourock: :yourock:
 
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Bahut dukh hota hai jab reader saport ke na hone se koi achchi khasi story ruk jati hai :sigh2:
 
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Bahut dukh hota hai jab reader saport ke na hone se koi achchi khasi story ruk jati hai :sigh2:

Bahut time hua ab to update de do
Ruk diya tha uska karan readers saport nahi apitu meri helth problam ke karan. Story ko ek baar read karunga phir update dena suru karunga lekin haa update roj nahi de paunga, haa hfta das deen ke ek update de dunga
 
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Ruk diya tha uska karan readers saport nahi apitu meri helth problam ke karan. Story ko ek baar read karunga phir update dena suru karunga lekin haa update roj nahi de paunga, haa hfta das deen ke ek update de dunga
Ravan sudhar gaya tha na story me :vhappy:
 
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Ruk diya tha uska karan readers saport nahi apitu meri helth problam ke karan. Story ko ek baar read karunga phir update dena suru karunga lekin haa update roj nahi de paunga, haa hfta das deen ke ek update de dunga
Dost... weekly update bhi chale gaa... no issues... but dont break promise and hearts of your fans!!!

It is indeed a great story... :dil2:
 
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Update - 3


सुबह का वक्त था। महल में सब उठ चुके थे। अपना अपना नित्य कर्म से निवृत्त हों एक एक कर आ रहे थे। नाश्ते के टेबल पर बैठते जा रहे थे। भारतीय रीति रिवाज अनुसार सुबह के समय बड़े बुजुर्ग का चरण स्पर्श करना सभ्य और शालीनता का प्रतीक माना जाता हैं। राजेंद्र के पूर्वजों ने चरण स्पर्श करने के सभ्य और शालीनता के प्रतीक को बखूबी निभाया सिर्फ निभाया ही नहीं आने वाले पीढ़ी को इसका महत्व भी समझाया और पालन भी करवाया। लेकिन महल के एक शख्स को यह परम्परा बेहूदा और असभ्य लगा इसलिए चरण स्पर्श करने में आना कानी करने लगे। समय के साथ काम का बोझ और भागा दौड़ी के चलते सभी परिवार वालों का एक साथ बैठ पाना संभव नहीं था तो जब महल का भागडोर राजेंद्र को सोफा गया तब राजेंद्र ने एक नया नियम बनाया सभी परिवार वालो को सुबह का नाश्ता साथ में करना था बाकी दिन या रात के भोजन में कोई पाबंदी नहीं था। सुबह का नाश्ता साथ में करना मतलब सुबह जल्दी उठना फिर तैयार हो'कर समय से आ'कर नाश्ते के टेबल पर बैठ जाना। इस बात से सुकन्या को चीड़ थी क्योंकि महारानी जी को देर तक सोने की आदत हैं। सिर्फ इतना ही नहीं सुकन्या को पति और मां-बाप के अलावा किसी और का पैर छुना गवारा नहीं, अनमने भाव से रोज सुकन्या सुबह के समय भोर में उठ जाया करतीं फिर तैयार हो'कर नीचे आ जाती और रावण के टोका टाकी करने पर अनमने भाव से बड़ो के पैर छू लेती थी। आज भी सुकन्या अनमने भाव से उठी फिर नित्य कर्म से निवृत्त हो'कर रावण के साथ नाश्ता करने आ रहीं थीं। आते समय सुकन्या बोली….सुनो जी मुझसे रोज रोज जल्दी उठा नहीं जाएगा। आप कुछ भी करके सुबह साथ में नाश्ता करने के नियम और पैर छुने की परम्परा में कुछ परिवर्तन कीजिए।

रावण…पैर छुने में किया हर्ज हैं। घर के बड़े-बुजुर्गो का पैर छुना हमारी संस्कृति हैं फिर भी तुम्हें बुरा लगता हैं तो डार्लिंग जब तक महल का राजपाठ मेरे हाथ नहीं आ जाता तब तक सहन कर लो फिर तुम्हारे मुताबिक बदलाव करवा दुंगा ।

सुकन्या…सुनिए जी आप'के और मेरे मां बाप के आलावा किसी ओर का पैर छुना गवारा नहीं, न जानें वो दिन कब आएगा जब मैं मन मुताबिक काम कर पाऊंगी, सभी पर राज करूंगी। आप कुछ कर तो रहे नहीं सिर्फ़ दिलासा दिए जा रहे हों।


रावण…डार्लिंग सब होगा, हमारे भाग्य में भी परिवर्तन होगा। समय का पहिया ऐसा घूमेगा सभी पत्ते मेरे हाथ में होगा। इक्के की ट्रेल से मैं ऐसी बाजी खेलूंगा, दादाभाई को चल चलने का मौका ही नहीं दुंगा।

सुकन्या…न जानें समय का पहिया कब घूमेगा। आप'की चाल कब सफल होगा। मैं ओर प्रतिक्षा नहीं कर सकता। कब तक मुझे सुरभि के नीचे दब कर रहना पड़ेगा। आप जल्दी से कुछ कीजिए।

रावण…प्रतिक्षा तो मुझसे भी नहीं होता लेकिन मैं प्रतिक्षा कर रहा हूं। तुम भाभी को कुछ दिन ओर सहन कर लो फिर सब कुछ तुम्हारे हाथ में होगा, देखो दादाभाई और भाभी आ गए हैं। उनके सामने कुछ ऊंच नीच न करना न ही बोलना नहीं तो मैं उनका ही पक्ष लूंगा।

सुकन्या सामने देखा, नाश्ते के टेबल पर सुरभि और राजेंद्र बैठे थे। सुरभि को देख मुंह भिचकाते हुए मन में बोली…कर ले जितनी मन मानी करनी हैं तुझे तो इस घर से मैं धक्के मर कर बाहर निकाल कर रहूंगी।

दोनों टेबल के पास पहुंचे, बैठने से पहले रावण भाई-भाभी के पाव छुआ फिर बोला…दादाभाई भाभी कैसे हों?

राजेंद्र&सुरभि…ठीक हूं। तुम कैसे हों?

रावण...आप दोनों के आर्शीवाद और प्रभु की कृपा से स्वस्थ और सलामत हूं।

सुकन्या को सुबह का वृतांत पसन्द नहीं था इसलिए खड़ी रहीं और मुंह भिचकाती रहीं सुकन्या को खडा देख रावण बोला…. सुकन्या तुम खड़ी क्यो हों चलो दादाभाई और भाभी के पांव छू आर्शीवाद लो ये हमारी परम्परा हैं। परम्परा निभाने में शर्म कैसा।

राजेन्द्र…रावण परम्परा मन से निभाया जाता हैं जिसका मन होगा वो निभाएगा मन नहीं होगा नहीं निभाएगा। जोर जबरदस्ती से कोई काम करवाना ठीक नहीं होगा। इसलिए बहु का मन नहीं हैं तो रहने दो।

सुरभि…देवर जी जो काम मन से होता हैं वह ही शुद्ध होता हैं। छोटी का मन नहीं हैं तो रहने दो जब छोटी का मन होगा तब पांव छू लेगी। क्यों छोटी छओगी न पांव…

सुरभि कह कर मंद मंद मुस्कुरा दिया मुस्कुराते देख सुकन्या तिलमिला गई फिर मन में बोली…छुआ ले जितनी पांव छुआनी हैं। कर ले मस्करी जितनी करनी हैं। एक दिन मैं तुझसे मेरा पांव नहीं दवबाया तो सुकन्या मेरा नाम नहीं।

सुकन्या ढिट की तरह खड़ी रहीं। रावण आंखो से इशारा किया तब जा'कर सुकन्या न चाहते हुए दोनों के पांव छुआ फिर अपने जगह बैठ गई। अपश्यु लॉर्ड साहब की तरह मस्त मौला चला आ रहा था। यकायक सामने चल रहे दृश्य पर नज़र पड़ गया जो संभतः रोजाना देखने को मिलता था। अपश्यु को भी सुबह पैर छुना साथ में नाश्ता करना नाटकीय लगता था। इसलिए मन में बोला….साला क्या नाटक हैं एक तो सुबह सुबह जल्दी उठा देते हैं। ऊपर से पांव छुते छुते कमर दुख जाता हैं। कब बंद होगा यह सब, चल अपस्यु जो चल रहा हैं, भाग ले'कर अच्छे होने का ढोंग कर नहीं तो पापा मुझ पर भी चढ़ाई कर देंगे।

अपश्यु सभी के पास पहुंच कर अच्छे और संस्कारी बच्चे का परिचय देते हुए बाप का पैर छूते हुए बोला…पापा शुभरात्रि के बाद शुभ दिन हों ऐसा आशीर्वाद अपने बेटे को दीजिए।

रावण…मेरे बेटे की सभी मनोकामनाएं पूर्ण हों मैं प्रभु से प्रार्थना करुंगा।

मां के पास जा पांव छुआ सुकन्या सिर पर हाथ रख आर्शीवाद दिया लेकिन कुछ बोला नहीं, तब अपश्यु बोला…मां अपने तो आशीर्वाद देते हुए कुछ कहा नहीं। ऐसा क्यों?

सुकन्या…तुमने कुछ मांगा ही नहीं।

अपस्यू…अपने मेरे सिर पर हाथ रख दिया मेरे लिए बहुत हैं।

मां बेटे के वृतांत और बाते सुन सुरभि और राजेन्द्र मंद मंद मुस्कुरा रहे थें। अपस्यु राजेन्द्र के पास गया। पांव छुते हुए मन में बोला…बड़े पापा मुझे आशीर्वाद दीजिए जल्दी ही सभी राजपाठ आपसे छीनकर मैं कब्जा कर लूं।

अपस्यु के सिर पर हाथ रख राजेंद्र बोला…मैं प्रभु से प्रार्थना करुंगा तुम्हारे सभी मनोकामना पूर्ण हों तुम हमेशा नेक रस्ते पर चलो।

अपस्यु मुस्कुराते हुए सुरभि के पास गया पांव छुते हुए मन में बोला…बडी मां मुझे आशीर्वाद करों आपसे रानी मां का खिताब छीनकर मां को दे पाऊं।

सुरभि मन की भोली न जानें अपश्यु ने मन ही मन किया मांगा साफ मन से सिर पर हाथ रखते हुए बोली…. मेरे लाडले को प्रभु सभी बुरी बलाओं से बचाकर रखें साथ ही सभी मनोकामनाएं पूर्ण करें ऐसा दुआ मांगता हूं।

अपस्यु मुस्कुराते हुए अपने जगह जाकर बैठ गया। उसी क्षण रघु आया। मन में न छल न कपट न ही बैर था। इसलिए सबसे आशीर्वाद लेते हुए सफल और सुखद भविष्य की कामना किया। अंत में मां का पैर छुआ तो सुरभि रघु को उठाकर गले से लगा लिया, स्नेह और ममता लुटाते हुए सुकन्या की ओर देखते हुए बोली…मेरा बेटा जल्दी से एक परी सी सुंदर बहु लाए। जो अपनी खूबसूरती से महल की सुंदरता में चार चांद लगा दे।

प्यारा सा खिला हुआ मुस्कान बिखेर रघु अपने जगह जा बैठ गया। सुरभि मुस्कुराते हुए सुकन्या की ओर देखा, सुकन्या को सुरभि का मुस्कुराना पसन्द न आया इसलिए मुंह भिचकाते हुए मन में बोली….सुंदर बहु तू क्या लायेगी सुंदर बहु तो मैं अपने लाडले के लिए लाऊंगी और उससे तुझे इतनी बेइज्जत करवाऊंगी तू खुद ही महल छोड़ कर भाग जायेगी।

सुकन्या को मुंह भिचकाते देख सुरभि मन में बोली….छोटी तू भले ही मेरे बारे में कितना बुरा सोच ले या मेरे साथ कितना बुरा व्यवहार कर ले, मैं चाहकर भी तेरे लिए बुरा नहीं सोच सकती न ही कर सकती हूं, नहीं तो तुझ'में और मुझ'में फर्क क्या रह जायेगा। लेकिन एक दिन कोई ऐसा महल में आएगी जो तेरे ईट का जवाब पत्थर से देगी, मैं बैठे तमाशा देखूंगी।

नौकरों ने सभी को नाश्ता परोस दिया। भर पेट नाश्ता कर एक एक कर अपने अपने रूम में चले गए। रावण और सुकन्या दोनों साथ में रूम पहुंचे, रूम में पहुंचते ही सुकन्या भड़क गई।

सुकन्या…आप जानते हों मुझे ये सब अच्छा नहीं लगता फिर भी आप बार बार मुझे उनके पैर छुने पर मजबुर क्यों करते हों।

रावण...suknyaaaa तुम्हें पहले ही कहा था मेरे किसी भी बात का बुरा न मानना फिर भी तुम बिना करण भड़क रही हों।

सुकन्या…भड़कू न तो ओर किया करूं जान बूझ कर आप मुझे मजबुर करते हों सुनो जी मैं साफ साफ कह देती हूं बहुत हो गया अब ओर नहीं होता।

रावण…मुझे भी कौन सा अच्छा लगता हैं फिर भी मैं उनके नजरों में अच्छे होने का ढोंग कर रहा हु। तुम्हें भी करना पड़ेगा।

सुकन्या…देखो जी मुझसे ये ढोंग बोंग नही होगा। सुरभि के सामने तो बिल्कुल भी नहीं।

रावण…तुम्हें महल की रानी बना हैं, तो यह सब करना ही होगा।

सुकन्या…बनना तो हैं लेकिन इसके लिए मुझे सुरभि के सामने झुकना कतई मंजूर नहीं।

रावण…अभी उनके सामने झुक कर रहेगी तभी तो उन्हें खुद के सामने झुका कर रख पाओगी। इसलिए भाभी के साथ व्यवहार में बदलाव लाओ, सिर्फ भाभी ही नहीं महल में मौजुद सभी नौकर चाकर के साथ तुम्हें अच्छा बरताव करना होगा।

सुकन्या…अब आप मुझे उन कीड़े मकोड़ों के सामने भी झुकने को कह रहें हों। मेरे मन सम्मान की आप'को जरा भी फिक्र नहीं, आप सोच कर देखिए उनके सामने मेरी क्या इज्जत रह जाएगी। मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं करने वाली।

रावण…मैं नहीं चाहता कि हमारे बनाई योजना में कोई भी चूक हों। इसलिए तुम्हें ऐसा करना ही होगा नहीं तो सब कुछ हमारे हाथ से निकल जायेगा।

सुकन्या…( बेमन से) ठीक हैं आप कहते हों तो मैं मान लेती हूं लेकिन मैं ज्यादा दिन तक ऐसा नहीं कर पाऊंगी।

रावण…मैं जैसा जैसा कहता हु तूम करती जाओ फिर देखना जल्दी ही सब कुछ हमारे हाथ में होगा। अब तुम आराम करों मैं ऑफिस जा रहा हूं। आने के बाद तुम्हे ढेर सारा प्यार करूंगा।

सुकन्या मुस्करा दिया फिर रावण चला गया। बाकी बचे लोग भी अपने अपने काम में चले गए।

कलकत्ता में कमला महेश मनोरमा नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करते हुए महेश बोला…कमला बेटी आज कोई थोड़ फोड़ न करना। कल तुमने सभी समानों को तोड़ दिया था। पहले खरीद लू फिर जितना मन करे तोड़ फोड़ कर लेना।

मनोरमा…वाह जी वाह टोकने के जगह आप ओर बड़वा दे रहें हों। कमला तू एक काम कर रोज रोज तोड़ फोड़ करने के जगह घर ही गिरा दे। रोज रोज की तोड़ा फोड़ी से मैं तंग आ गई हूं।

कमला…आप कहती हों तो किसी दिन गिरा दूंगी फिर आप ये न कहना मेरी बेटी ने मेरे सजाए घर को गिरा दिया।

मनोरमा कमला की बात सुन कुछ ढूंढने लग गईं। कुछ नहीं मिला तो एक प्लेट उठा कर बोली…तू तो आज मेरे हाथों बहुत पिटेगी मेरा ही घर तोडने पे तुली हैं।

मां को गुस्से में देख कमला उठा भाग कर महेश के पीछे छिप गई फिर बोली…पापा मुझे बचाओ आज तक मैं ही तोड़ फोड़ करती थी आज मां मुझे तोड़ने पर तुली हैं।

मनोरमा…आज तूझे कोई नहीं बचाएगा बहुत तोड़ फोड़ करने का मन करता हैं। आज तेरी हड्डी पसली टूटेगी तब तू जान पाएगी कैसा लगता हैं।

कमला…पापा आप मम्मी को रोक क्यों नहीं रहें? मम्मी मैं कौन सा अपकी हड्डी पसली तोड़ देती हूं मैं तो सिर्फ घर के समानों को तोडती हूं वो भी गुस्सा होने पर जब मैं गुस्से में नहीं होती हूं। तब कितनी मासूम और प्यारी बच्ची बनकर रहती हूं।

महेश उठकर मनोरमा को पकड़ लिया मनोरमा छूटने के लिए जाद्दो जेहद करने लग गईं, लेकिन महेश के पकड़ से खुद को छुड़ा नहीं पाई तब बोली….देखो जी आप इसके बहकावे में न आना, कमला मासूम और प्यारी बच्ची नहीं चांडी का रूप हैं। इसलिए कह रहीं हूं आप मुझे छोड दो नहीं तो इस प्लेट से आप'का ही सिर फोड़ दूंगी।

कोमल...ही ही ही ही पापा मम्मी तो मुझे छोड़ आप पर भड़क गई अपका सिर फोड़ना चाहती हैं। आप मम्मी को पकड़ कर रखना मैं हैलमेट लेकर आती हूं।

कमला भागकर किचन गई दो भगोना लिया एक सिर पर रखा दूसरा हाथ में लेकर बाहर आई फिर बोली……आओ मम्मी दोनों मां बेटी जामकर मुकाबला करेंगे।। देखते है कौन किसका सिर फोड़ता हैं?

मनोरमा जो गुस्से का दिखावा कर रहीं थीं। कमला को देख पेट पकड़ हॅंसने लग गई। बेटी को देख महेश भी खुद को रोक नहीं पाया इसलिए हंस दिया। मां बाप को बावलो की तरह हंसते देख कमला बोली… वाह जी वाह अभी तो झांसी की राना बानी हुईं थीं। अब देखो पेट पकड़ हॅंस रही हैं। ऐसा क्यों? मैंने कोई जोक सुना दिया?

मनोरमा और महेश हॅंसे ही जा रहें थे। कमल को कुछ समझ ही नहीं आ रही थीं। कभी हाथ वाले भगोना तो कभी सिर वाले भागने को देख रही थीं। कमला के ऐसा करने से दोनों ओर जोर जोर से हॅंसने लग गए फिर मनोरम कमला के पास जा हाथ से फिर सिर से भगोना ले निचे रख दिया फिर बोली…..छोड़ ये सब ओर जल्दी से नाश्ता करके कॉलेज जा।

सभी फिर से नाश्ता करने बैठ गए कमला और महेश नाश्ता करके कॉलेज और ऑफिस को चल दिया। मनोरमा घर के बचे काम करने लग गई।


आज के लिऐ इतना ही आगे की कहानी अगले अपडेट से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
Iss bhaag mein 2 alag alag families dekhne ko milli…

1- Family jahan Rajendra aur Surbhi… jo ke sanskaar ko sab se bada maante hein… waheen… Ravana… Sukanya aur Apasyu… dikhave ki reeti rivaaj nibha rahe hein… andar se kale… chal kapat kaa doosra naam… dekhte hein yeh family kab tak bach paati he in ke vaar se…

2- family jahan Kamla… Mahesh aur Manorma ki beti ne bavaal machaya huaa he… lekin yeh aik hansta khelta parivaar he… zindagi ko bharpoor dhang se jeene vala…

Well shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi... Khas Kar kamla aur uske mom dad ke bich huye pyar bhare nok jhok ..

Aage dekhen kaya hota he… 💕
 
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Bravo!!! dhansu start... pehle bhaag se hi Lekhak ne apni kalaa kaa level bata diya he...

Apasu ke roop mein aik takat ke nashe mein mast... buraa insaan...

Doosri taraf... Raghu ki surat mein.... achhe subhaav ka... apne Mata Pita kaa roop... wo zaroor aage chal kar yeh saabit kare gaa... ke ... yadi mata pita bachpan se hi apne bachho ko sathik soch vichar tatha sathik raah dikhaye, sathik anushaasan mein Koyi kami na aane de to aulad kabhi apne sachhayi aur achhayi ke maarg nahi bhatakega... virashat mein jo achhe soch vichar mile hai ushe apne aage aane wale pidiyo ko bhi sikhaya jayega...

Issi tarah Apasu kaa vayvahaar drshata he ke uss ka pita kessa ho ga...

Shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan.... Kaya bunna he kirdaaro ko start se hi aik badi kahani jis ke kayi pehlu hon ge...

Padhte samay aessa laga jesse ki kirdaar ankhon ke saamne bhumika nibha rahe ho....

aage dekhte hein kaya hone jaa raha he... :yourock: :yourock:

Bahut hi mulybaan shavdo se sajaya hua yaha review mere liye atulniya hai. Mai iske badle sirf thank you hi kah sakta hoon. Bahut bahut dhanyvaad rusty ji
 
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aik aur shandar update...

kuch naye kirdar bhi shaamil hue kahani mein....

aik aur badsurat kirdar... Sukanya... insaan jab doosre insaan ko keeda makoda samjhne lage tau wo khud bhi insaan nahi rehta... saat lag raha he ke Sukanya jealous he Surbhj se...

Waise sukanya se ulat surbhi hamesha sab ko ek nazar se dekhti hai.. wo bhed bhav nahi karti... wo apni Umar bade chhote sabhi ko samman deti hai aur shenh bhi....isliye to sabhi aadar aur saamman karte surbhi ko.. yahi to hai achhe sanskar ke lakshan jo ushe apne mata pita se virashat mein mile aur ab bete ko bhi ishi tarah achhe soch vichar rakhne ki sikh de rahi hai aur parwarish bhi...

aik aur kirdar... Kamla... baat baat pe jhagda karne wali...

agla update padhne ke liye utsuk... :yourock: :yourock:

Ye to vykti ki samjh hai jo uske samne khade vyakti ko kitna mulyvan samjhta hai. Apke review ke liye bahut bahut dhanyawad rusty ji
 

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