Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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शादी में सात दिन बचे थे ऐसे में दोनों ओर से सभी तैयारी को रिचेक किया जा रहा था। किसी भी सामान की कमी तो नहीं रहा गया। कोई ऐसा तो नहीं बचा जिस तक निमंत्रण न पहुंचा हों। महेश दिन भर इसी में ही उलझा हुआ था। शाम के वक्त महेश चाय की चुस्कियां ले रहा था । उसी वक्त घर में रखें टेलिफोन बाबू ने आवाज दिया आकर मुझे चुप कराओ नहीं तो सिर में दर्द कर दुंगा। महेश जी झट पट उठे फिर टेलिफोन के रिसीवर को उठकर टेलीफोन का चीखना चिल्लाना बंद किया। रिसीवर कान से लगाकर बोला…. कौन हों महोदय जो मेरे घर में शान्त बैठे टेलीफोन को खटखटा रहे हो।

"जी आप महेश बाबू बोल रहे हैं"

महेश...जी लोग तो कहते हैं मैं ही महेश बाबू हूं। आप को मुझ'से किया काम था।

"जी काम कुछ खास नहीं सुना था आप अपने लडकी की शादी राजेंद्र प्रताप के लडके के साथ कर रहे हैं। क्या मैं सही सुना था?"

महेश... जी अपने बिलकुल ठीक सुना इससे आप'को कोई आपत्ति हैं।

"जी आपत्ति है तभी तो आप'को फ़ोन किया ।"

आपत्ति की बात सुनकर महेश का माथा ठनका कही फिर से शादी तुड़वाने के लिए फोन तो नहीं किया गया। ये बात दिमाग में आते ही महेश मन ही मन बोला... पहले तो तुम लोग इसलिए कामियाब हों गए थे क्योंकि मुझे सच्चाई पाता नहीं थीं लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। जारा सुनूं तो ये शुभचिंतक कहना किया चाहते हैं। साला जब से बेटी की शादी तय हुआ हैं। तब से मेरा भला चाहने वाले बढ़ चढ़कर आगे आ रहे हैं। आए हों तो आज प्रसाद भी लेते जाना आखिर भंडारे में आए हो, प्रसाद न मिले ऐसा कभी हुआ हैं।

महेश…महाशय आप'को आपत्ति किस बात की हैं। मेरे बेटी की शादी हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं या राजा जी के बेटे से हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं।

"आप की बेटी की शादी हों रहा हैं इससे मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं लेकिन जिससे शादी हों रहा हैं जिस वंश में शादी हों रहा हैं उससे मुझेआपत्ति हैं।"

ये बात सुनते ही महेश का पारा चढ़ गया और भड़कते हुए बोला... मेरी बेटी हैं उसकी शादी जिस भी घर में कारवाऊ तू कौन होता है आपत्ति जताते वाला हरमखोरो पहली चल सफल नहीं हुआ तो अब दूसरा पैंतरा अजमाने लगे अभी सामने होता तो तुझे गोली मर देता। ऐसी जगह मरता तू अफसोस करता मै महेश के सामने क्यों आया।

"महेश तेरी हिम्मत कैसे हुआ मुझे हरमखोर बोलने की तू मुझे गोली मरेगा मुझे तू जनता भी है मैं कौन हूं।

महेश…चल बता तू किस गंदी नाली का कीड़ा हैं बता तू कितने बाप की पैदाइश हैं। बता तू कौन से गटर में पला बडा हुआ।

"महेश तू जुबान को लगाम दे नहीं तो अच्छा नहीं होगा।"

महेश...क्यों रे सुलग गया सुलगनी भी चाहिएं सालो तुम लोग दल बनाकर राजेंद्र बाबू के बेटे की शादी तुड़वाने के लिए न जानें कौन कौन से लांछन उस भले मानुष के बेटे पर लगाया। अब तुम पर लांछन लगा तो तुम्हें बुरा लग गया सोचो तुम गंदे नाली के कीड़ों को कीड़ा बोला तो तुम्हें इतना बुरा लगा। उस भले मानुष को कितना बुरा लगा जब तुम लोगों ने उनके बेदाग बेटे पर इतने लांछन लगाया।

"ओ तो तुझे पता चल गया ये तो अच्छी बात हैं अब कान खोल कर सुन ले शादी तुड़वा दे नहीं तो तेरे साथ अच्छा नहीं होगा।"

महेश…शादी तो अब टूटने से रहीं तुझे जो करना हैं कर ले और एक बात सुन तुझे भी स्पेशली दावत देता हूं आकर झूठे बर्तन चाट कर अपना पेट भर लेना।"

"अजीब बेज्जती हैं मै तुझे धमका रहा हूं डरने के जगह तू मुझे दावत दे रहा हैं। तूने मेरी बहुत बेज्जती कर लिया अब कान खोल कर सुन ले रिश्ता तोड़ दे नहीं तो तू अपना और अपने परिवार वालों के जान से हाथ धो बैठेगा।"

महेश…ओ तो ये बात हैं ठीक हैं तुझे जो करना हैं कर लेना मैं भी जमींदार का बेटा हूं देखू तो तू कितना बडा गुंडा हैं। सुन वे शादी तो टूटने से रही तू आ जाना अपने दल बल के साथ मैं महेश तुम सब की पहले अच्छे से खातिर करूंगा फिर बेटी का कन्या दान करूंगा।

सामने वाला सोचा था धमकी देने से महेश डर जायेगा लेकिन महेश डरने के जगह उसे ही धमका रहा था। अंत में खुद को जमींदार का बेटा बोलने से सामने वाला खुद ही डर गया और फोन काट दिया। फोन काटने के बाद महेश बोला…सालो तुम ने सोए हुए जमींदार धर्मपाल के बेटे को फिर से जगा दिया। आना सामने इतना लठ बजूंगा गिनना भुल जाओगे।

(पाठकों यह एक बात जानने का हैं। जैसा की माने परिचय में बताया था महेश के बाप दादा जमींदार थे। उनके जमींदारी विद्रोहियों और अंग्रेजो ने छीन लिया था। बस महेश के पिता का नाम नहीं बताया था। जो यहां बता रहा हूं। ताकि किसी के मन में कोई शंका न रहें।)

महेश बातो के दौरान ज्यादा तेज आवाज में बात कर रहा था। इसलिए घर में काम करने वाले नौकर , कमला और मनोरमा वहा आ गए। फोन रखते ही मनोरमा बोली…आप किसपे इतना भड़क रहे थें।

कमला... हां पापा कौन था?

महेश...कौन होगा उन्हीं के दल से थे जिन्होंने रघु जी के बारे में गलत सलत बोलकर मेरा बुद्धि भ्रष्ट कर दिया था। अब फोन करके धमका रहे थें।

मनोरमा & कमला..kiyaaa धमका रहें थे।

महेश… हां धमका रहें थे सोचा होगा कोई ऐरा गेरा होगा। धमकाऊंगा तो डर कर फिर से शादी तुड़वा देगा। लेकिन ये लोग भुल गए महेश उनका भी बाप हैं। मैं जमींदार धर्मपाल का बेटा हूं जो कुछ दिनों के लिए सो गया था लेकिन अब जाग चुका हैं।

मनोरमा... सुनिए आप ऐसा वैसा कुछ न करना इसी जमीदारी ने हमसे हमारा पूरा परिवार छीन लिया मुझ'से मेरा बेटा छीन लिया दुबारा ऐसा कुछ हुआ तो मैं फिर से एक ओर सदमा बर्दास्त नहीं कर पाऊंगी।

मनोरमा बीती बातों को भूल चुकी थी। एक बार फिर से याद करते हुए अधीर हों गईं। मनोरमा को अधीर होते देख महेश बोला…मनोरमा संभालो खुद को उन बातों को याद करके मुझे भी पीढ़ा होता हैं। उस वक्त मैं पास नहीं था इसलिए उन्होंने छल से मेरे पूरे परिवार का कत्ल कर दिया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं ऐसा होने नहीं दुंगा।

कमला...पापा किसने किया था हमारे परिवार का कत्ल कौन थे वो लोग।

महेश…. बेटा ये समय सही नहीं हैं उन दुखद पालो को याद करने का अभी खुशी मानने का वक्त हैं तो खुशी मनाते हैं। मनोरमा तुम भी संभालो खुद को ये समय नही है उन पालो को याद करने का, बीती बातों को याद करके रोने से जो बिछड़ गए हैं वो वापस नहीं आ जाएंगे।

मनोरमा…आप का कहना ठीक हैं मै आप'के जैसा मजबूत ह्रदय वाली नहीं हूं। वो पल याद आता है तो मेरा ह्रदय पीड़ा से भरा जाता हैं। मैने एक पल में मां बाप सास ससुर और बेटा सभी को खो दिया। मेरा बसा बसाया संसार पल भार में छिन्न भिन्न हों गया।

ये कहकर मनोरमा सुबक सबका कर रोने लग गई। कमला मां के पास आकार मां को चुप करती हैं। कुछ क्षण सुबकने के बाद मनोरमा चुप हों गई। तब महेश राजेंद्र को फोन कर जल्दी से आने को कहते हैं। फोन करने के कुछ वक्त बाद ही राजेंद्र का कार आकर उनके घर के बहार रुकता हैं। राजेंद्र अंदर आकर बोला….क्या हुआ महेश बाबू अपने मुझे जल्दी जल्दी आने को क्यों कहा।

महेश…आप बैठिए फिर बात करते हैं। कमला बेटा जाओ चाय नाश्ते की व्यवस्था करो।

कमला के साथ साथ मनोरमा भी कीचन की ओर चल दिया फिर महेश फोन पर हुआ किस्सा राजेंद्र को बता देता हैं। सुनकर राजेंद्र बोला…उनकी इतनी मजाल जो फोन पर धमकी दे रहे हैं। अब पानी सिर से ऊपर चला गया उनका कुछ न कुछ बंदोबस्त करना होगा। आप मेरे साथ चलिए थाने में मामला दर्ज करवा कर आते है

महेश...राजा जी थाने जाने की जरूरत नहीं हैं यहां के SSP साहब से मेरा बहुत अच्छा रिश्ता हैं मैं फोन कर उन्हें बुला लेते हूं।

महेश फिर से एक फोन SSP साहब को कर दिया । कुछ वक्त में एक पुलिस की गाड़ी आकार रूका। SSP साहब अपने साथ आए कुछ पुलिस वालो के साथ अंदर आए। राजेंद्र को देखकर नमस्कार किया फिर बैठकर बोला…कहिए महेश बाबू अपने मुझे कैसे याद किया बिटिया की शादी को अभी एक सप्ताह हैं अपने इतनी जल्दी मुझे मेहमान दारी में बुला लिया।

महेश...SSP साहब मेहमन दरी में आप'को बुलाने की आवश्कता कब से पड़ गया हैं। आप तो मेरे अपने है। जब चाहो तब आ जाओ आप'को रोका किसने हैं। आज तो कुछ विशेष काम से आप'को याद किया गया।

SSP…ऐसा कौन सा विशेष काम आ गया जो आप मुझे शीघ्रता से आने को कहा कोई जटिल मसला जान पड़ता हैं नहीं तो आप मुझे इतनी जल्दी नहीं बुलाते।

महेश…SSP साहब आप तो जानते ही हैं कमला की शादी राजा जी के बेटे के साथ तय हुआ हैं। अभी कुछ दिनों पीछे कुछ लोगों ने साजिश के तहत राजी जी के बेटे के खिलाफ अनाप शनाप बोल कर मेरा दिमाग भ्रष्ट कर दिया था। मैं उनके बिछाए जाल में फांस भी गया था फिर रिश्ता थोड़ कर आ गया था। जब घर आया तब कमला और मनोरमा न मुझे समझाया तब जाकर मुझे समझ आया ये किसी की चाल हैं। जैसे तैसे मान मुटाव दूर कर हम फिर से शादी की तैयारी करने लगें थे की आज किसी ने फ़ोन पर मुझे शादी तोडने को कह रहे थे। शादी नहीं टूटा तो वो मेरे परिवार को जान से मर देंगे ऐसा धमकी दे रहें थे।

SSP...जहां तक मैं समझ पा रहा हूं ये कोई साधारण मसला नहीं हैं। साधारण मसला होता तो कोई बार बार शादी तुड़वाने का प्रयास क्यों करता। हों सकता हैं महेश जी आप'का कोई दुश्मन हों या कोई ऐसा जो चाहता हों कमला बिटिया की शादी रघु जी से न हों।

महेश...SSP साहब मेरा किसी के साथ कोई दुश्मनी नहीं हैं जो शादी तुड़वाना चाहते हैं उन्हें कमला की शादी होने से कोई दिक्कत नहीं हैं उन्हें दिक्कत हैं रघु जी की शादी से, राजा जी अब आगे का किस्सा आप बताए तो बेहतर होगा।

SSP...राजा जी जो भी हैं आप खुल कर बताओ तभी मैं इस मसले के तह तक पहुंच सकता हूं। जैसा महेश जी कह रहे हैं इससे तो लगता है जो भी हों रहा सब आप'के बेटे से जुड़ा हैं।

राजेंद्र….SSP साहब आप'का कहना सही हैं जो भी हों रहा है वो रघु से ही जुड़ा हुआ हैं। ये सब तभी से शुरू हुआ है जब से हम रघु के लिए रिश्ता ढूंढना शुरू किया था। हम जो भी लड़की देखते, न जाने कौन लड़की वालो को रघु के बारे में गलत सालात बोलते फिर वे उनका कहना मानकर रिश्ता करने से मना कर देते इस बार भी वैसा ही हुआ मै समझ नहीं पा रहा हूं कौन है जो ऐसा कर रहा हैं।

SSP... राजा जी आप मेरे बातों को गलत न लेना ऐसा भी तो हों सकता हैं रघु जी का किसी लड़की के साथ कोई संबंध हों इसलिए ऐसा किया जा रहा हों। या फिर ऐसा भी कोई हों सकता हैं किसी को आप'के अपर संपति पाने का लालच हों और वो अपने बेटी की शादी आप'के बेटे से कराकर सभी संपत्ति को हड़पना चाहते हों।

राजेंद्र…SSP साहब मेरे बेटे का अन्य किसी लडकी के साथ कोई संबंध नहीं हैं। शायद जो कुछ भी हों रहा हैं सब हमारे संपति को लेकर हों रहा होगा।

SSP…ऐसा कोई हैं जिस पर आप'को शक हों। ऐसा कुछ अगर है तो आप मुझे खुल कर बता सकते हैं।

राजेंद्र…ऐसा तो कोई हैं नहीं लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे खास खास लोग गायब होते जा रहे हैं। आप तो अच्छे से जानते है राज परिवार से हैं और अपर संपति हैं ऐसे में कोई भी मेरे खिलाफ षडियंत्र कर सकते हैं इसलिए मैंने कुछ गुप्तचर रख रखे थे लेकिन एक एक करके सभी गायब हों गए है मैंने अपनी ओर से बहुत खोज बिन किया लेकिन कोई पता नहीं लगा पाया।

SSP... ये तो बहुत गंभीर मसला हैं ऐसा हों रहा था तो आप'को बहुत पहले शिकायत दर्ज करवाना चाहिएं था। लेकिन अपने छुपाया इसका मतलब ऐसा कुछ हैं जो आप छुपना चाहते हों, अगर ऐसा कुछ हैं तो आप मुझे बता सकते हैं। मैं अपने तक ही रखूंगा।

राजेंद्र... जो हैं मैंने आप'को सभी कुछ बता दिया कुछ नहीं छुपाया अब आप ही देखो आप किया कर सकते हों।

SSP... मैं ज्यादा जोर नहीं डालूंगा क्योंकि मैं जनता हूं राज परिवार के बहुत से मसलो को गुप्त रखा जाता हैं फिर भी अपने जितना बताया हैं मै उसी आधार पर छान बीन शुरू करता हैं। महेश जी फिर से दुबारा अगर फ़ोन आता हैं तो आप तुरंत ही मुझसे संपर्क करना और हां कमला बेटी को अकेले कहीं भी जानें मत देना और आप राजा जी रघु जी को भी अकेले जानें मत देना जहां तक मुझे लगता हैं ये लोग बौखला गए हैं। आगे कुछ भी कर सकते हैं।

दोनों ने SSP साहब की बातों पर सहमति जाता दिया फिर SSP साहब के साथ आए हुए पुलिस वालो ने चार्ज शीट दर्ज किया। चार्ज शीट दर्ज करने के बाद मामले के तह तक जल्दी से पहुंचने का आश्वासन देकर SSP साहब चलते बने। SSP साहब के जाने के बाद राजेंद्र और महेश में कुछ क्षण तक ओर बात चीत हुआ। जब राजेंद्र ने जाने की आज्ञा मांग तब महेश जी उन्हें खाना खाकर ही जानें को कहा। क्योंकि वक्त रात के खाने का हों गया था। राजेंद्र माना करने लगें लेकिन महेश के बार बार कहने पर राजेंद्र मान गए। खाना पीना करने के बाद राजेंद्र घर को चल दिया।

इधर सुरभि राजेंद्र के लेट होने के करण चिंतित थीं क्योंकि राजेंद्र जाते वक्त बता कर नहीं गया था जा कहा रहा हैं। सुरभि को चिन्तित देख रघु बोला... मां कुछ चिन्तित दिखाई दे रहे हों बात किया हैं।

पुष्पा... मां बताओ न बात किया हैं।

रमन... रानी मां आप किस बात को लेकर इतने चिंता में हों।

सुरभि...ये बिना बताए कही गए हैं। उनके गए हुए बहुत देर हों गया हैं। इसलिए मै चिन्तित हूं। न जाने कहा रहा गए अभी तक आए नहीं।

सुरभि की बाते सुन पुष्पा को खुराफात सूजा इसलिए बोली... अरे मां कब तक पापा को अपने पल्लू से बन्द कर रखना चाहती हों। उन्हे भी थोडी आजादी दो गए होंगे कहीं आ जाएंगे।

पुष्पा कहकर मुस्कुरा दिया। पुष्पा को मुस्कुराते देख सुरभि भी मुस्कुरा दिया मां को मुस्कुराते देख पुष्पा बोली...अब लग रही हो आप पुष्पा की मां, आप'के खिले चेहरे पर टेंशन अच्छा नहीं लगता ऐसे ही मुस्कुराती रहा करो।

सुरभि उठकर पुष्पा के पास गई पुष्पा का सिर सहलाते हुए बोली... मेरी बेटी कहती है तो मैं ऐसे ही खिलखिलाती रहूंगी। तू भी अपने ये नटखट पान हमेशा बरकरार रखना।

रमन… कर दिया न अपने बेड़ा गर्ग रानी मां इस नटखट ने अपना नटखट पान बरकरार रखा तो इसके नटखट पान का शिखर कोई बने न बने मैं जरूर बनूंगा और सजा भुगतते भुगतते मेरा चाल चलन हमेशा के लिए टेडा हों जाएगा।

रमन के बातों से सभी हंस दिए। कुछ वक्त तक ओर तीनों बातों में मगन रहे फिर डिनर का वक्त हों गया। तो सभी खाना खाकर अपने अपने रूम में चले गए। सुरभि बैठक में राजेंद्र के इंतेजार में बैठी रहती हैं। कुछ क्षण प्रतीक्षा करने के बाद राजेंद्र घर पहुंचता हैं। पहुंचते ही सुरभि का सवाल जवाब शुरू हों गया।

सुरभि...आप बिना बताए कहा चले गए थे। गए तो गए पर इतना देर क्यों लगा दिया? मुझे कितनी चिंता हों रही थीं।

राजेंद्र... माफ करना सुरभि बिना कुछ बताए ही चला गया बात ही कुछ ऐसी थी। महेश बाबू ने बुलाया था।

सुरभि...Oooo आप'को बताकर जाना चाहिए था। जान सकता हूं महेश बाबू ने क्यों बुलाया था।

महेश ने क्यों बुलाया था वहा क्या क्या बाते हुआ। राजेंद्र ने सभी बाते सुरभि को बता दिया। सभी बाते सुनकर सुरभि बोली...आज अपने सही किया जो SSP साहब को बता दिया लेकिन अपने अधूरा क्यों बताया सभी कुछ बता देते किस कारण इतना कुछ हो रहा हैं।

राजेंद्र…कैसी बाते करते हों गुप्त संपति की बाते मैं उन्हें कैसे बताता जिस पर सिर्फ जनता का अधिकार हैं। उन्हे बता देता तो हो सकता हैं यह बात वो अपने आला अधिकारियों को बता देते। उनसे सरकार तक पहुंच जाता फिर सरकार हम पर ही कानूनी कारवाई करते और संपति को जप्त कर लेते फिर होता ये की सभी संपति जिस पर जनता का अधिकार हैं वो जनता तक न पहुंचकर भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं के पास पहुंच जाता। इसलिए मै गुप्त संपति की बात छुपा कर रखा।

सुरभि... मैं समझ रहा हूं लेकिन इस संपति के लिए हमें कितना कुछ झेलना पड़ रहा हैं आप खुद ही सोचो ओर न जाने कौन कौन से दुश्मन पैदा हों गए हैं। मैं तो कहता हूं आप इस गुप्त संपति का राज सरकार को बता दो नहीं तो एक दिन ये गुप्त संपति हमारे परिवार को छिन्न बिन्न कर देगा।

राजेंद्र…मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता मेरे पूर्वज ने हमेशा आम जनता के बारे में सोचा हैं उनके बेहतर भविष्य की कामना किया हैं। उन्होंने यह जिम्मेदारी मुझे दिया हैं। जब तक सभी गुप्त संपत्ति जनता पर खर्च नहीं हों जाता तब तक मुझे संपति की रक्षा करना होगा और जनता की भलाई करने में खर्च करते रहना होगा।

सुरभि... जैसा आप ठीक समझे। आप हाथ मुंह धोकर आइए मैं खाना लगवाती हूं।

राजेंद्र…सुरभि मैं महेश बाबू के घर से खाकर आया हूं। तुम खा लो।

सुरभि के खाना खाने के बाद दोनों अपने अपने कमरे में चले जाते हैं।

इधर दर्जलिंग में सुकन्या और रावण के के बीच मन मुटाव जारी था। रावण ने सुकन्या को मनाने की जी तोड़ प्रयत्न किया लेकिन सुकन्या मानने को तैयार ही न हों रहीं थीं। अगले दिन सुबह रावण सुकन्या और अपश्यु साथ में नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद अपश्यु जाने लगा तब सुकन्या रोकते हुए बोली... अपश्यु कहा जा रहे हों जाओ जाकर तैयार होकर आओ हम कलकत्ता जाएंगे।

अपश्यु…मां आज ही क्यों एक दो दिन बाद चलते हैं शादी में तो अभी कई दिन बचे है।

रावण...हां सुकन्या इतनी जल्दी भी किया है दो तीन दिन ओर रुख जाओ तब चलते है। फिर मान में अभी गया तो मैं अपना काम कैसे अंजाम दे पाऊंगा उन लोगो ने फ़ोन भी तो नहीं किया न जाने किया हुआ वो अपना काम कर पाए या नहीं।

सुकन्या... आप को जाने के लिए कौन कह रहा है मैं तो आप'से कुछ पुछा भी नहीं आप'को जब मान करे तब जाना। फिर अपश्यु से तूझे एक बार में समझ नहीं आता बड़े भाई की शादी हैं मदद करने के जगह दिन भर घूमता रहेगा। तू आज ही मेरे साथ चलेगा मतलब चलेगा।

अपश्यु मन में...मां को कुछ भी करके आज का दिन रोकना पड़ेगा आज ही तो गांव से उस लङकी को उठाना हैं मै चला गया तो फिर ही शायद मौका मिले नहीं नहीं मैं ऐसा होने नहीं दे सकता मुझे कुछ भी करके मां को रोकना ही होगा।

अपश्यु न हिला न डुला वो तो मन में ही बात करने में मस्त था। अपश्यु को सोच में गुम देख सुकन्या बोली... किस सोचे में घूम हैं जा जाकर तैयार होकर आ ।

अपश्यु... मां हम कल चले चलेंगे आज मुझे बहुत जरूरी काम है कल पक्का चलूंगा।

सुकन्या... कौन सा तू अपने बाप का बिजनस देख रहा है जो तूझे जरूरी काम करना हैं जा जाकर तैयार होकर आ।

अपश्यु... मां सुनो तो….

सुकन्या बिना बात पूरी सुने गुस्से में बोली... तू एक बार कहने से सुनता क्यों नहीं जब देखो टाला मटोली करता रहेगा तुझसे अच्छा तो रघु हैं उसे एक बार कहते ही बिना न नुकर के मान लेता हैं जा जाकर तैयार हों जा नहीं तो ऐसे ही चल तैयार होने की जरूरत नहीं हैं।

इतना कहकर सुकन्या रूम को चल दिया रावण भी उसके पीछे पीछे चल दिया। रघु की तारीफ मां के मुंह से सुन अपश्यु बोला...इस श्रवण कुमार के बच्चे ने आज मरवा दिया अच्छा खासा आज एक मस्त फूल को मसलने का प्लान बनया था इस श्रवण कुमार ने मेरे सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। चल बेटा अपश्यु मां की बात मान ले नहीं तो मां पापा की तरह मुझसे भी नाराज हों जाएंगे मां मुझसे नाराज़ हों गया तो मैं उनकी बे रूखी बर्दास्त नहीं कर पाऊंगा। एक लङकी के लिए मां को नाराज करना सही नहीं होगा ऐसी 100 लड़की मां पर कुर्बान हैं।

कुछ वक्त में सुकन्या तैयार होकर आ गई। सुकन्या के साथ साथ रावण भी तैयार होकर आ गया। अपश्यु के आते ही तीनों बहार को चल दिये। ड्राइवर जिसे पहले ही सुकन्या ने कार निकलने को कह दिया था। वो कार में बैठे इनका wait कर रहे थे। रावण आगे जाकर कार में बैठने लगा। रावण को बैठते देख सुकन्या बोली…आप क्यों बैठ रहे हो आप तो दो तीन दिन बाद जाने वाले थे।

रावण... तुम जा रहीं हों तो मैं यह अकेले क्या करूंगा मेरा तुम्हारे बिना मन नहीं लगेगा।

इसके आगे सुकन्या कुछ नही बोली रावण पीछे बैठ रहा था तो सुकन्या ने रावण को आगे की सीट पर बैठने को कहा। बिना न नुकार के रावण आगे बैठ गया। सुकन्या और अपश्यु के बैठते ही ड्राइवर कार को आगे बडा दिया। विंकट जो पल पल अपश्यु के पीछे छाए की तरह लगा रहता था अपश्यु को मां बाप के साथ जाते हुए देख लिया। अपश्यु जा कहा रहा है ये जानें के लिए गेट में खड़े दरबान से पुछ तो दरबान ने बता दिया। सुनते ही विकट चल दिया और जाते हुए बोला...जल्दी से उस्ताद को खबर करना होगा। अपश्यु कलकत्ता गया हैं कुछ दिन बाद वापस आएगा।


आज के लिए इतना ही आगे की कहनी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
 
ᴋɪɴᴋʏ ᴀꜱ ꜰᴜᴄᴋ
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शादी में सात दिन बचे थे ऐसे में दोनों ओर से सभी तैयारी को रिचेक किया जा रहा था। किसी भी सामान की कमी तो नहीं रहा गया। कोई ऐसा तो नहीं बचा जिस तक निमंत्रण न पहुंचा हों। महेश दिन भर इसी में ही उलझा हुआ था। शाम के वक्त महेश चाय की चुस्कियां ले रहा था । उसी वक्त घर में रखें टेलिफोन बाबू ने आवाज दिया आकर मुझे चुप कराओ नहीं तो सिर में दर्द कर दुंगा। महेश जी झट पट उठे फिर टेलिफोन के रिसीवर को उठकर टेलीफोन का चीखना चिल्लाना बंद किया। रिसीवर कान से लगाकर बोला…. कौन हों महोदय जो मेरे घर में शान्त बैठे टेलीफोन को खटखटा रहे हो।

"जी आप महेश बाबू बोल रहे हैं"

महेश...जी लोग तो कहते हैं मैं ही महेश बाबू हूं। आप को मुझ'से किया काम था।

"जी काम कुछ खास नहीं सुना था आप अपने लडकी की शादी राजेंद्र प्रताप के लडके के साथ कर रहे हैं। क्या मैं सही सुना था?"

महेश... जी अपने बिलकुल ठीक सुना इससे आप'को कोई आपत्ति हैं।

"जी आपत्ति है तभी तो आप'को फ़ोन किया ।"

आपत्ति की बात सुनकर महेश का माथा ठनका कही फिर से शादी तुड़वाने के लिए फोन तो नहीं किया गया। ये बात दिमाग में आते ही महेश मन ही मन बोला... पहले तो तुम लोग इसलिए कामियाब हों गए थे क्योंकि मुझे सच्चाई पाता नहीं थीं लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। जारा सुनूं तो ये शुभचिंतक कहना किया चाहते हैं। साला जब से बेटी की शादी तय हुआ हैं। तब से मेरा भला चाहने वाले बढ़ चढ़कर आगे आ रहे हैं। आए हों तो आज प्रसाद भी लेते जाना आखिर भंडारे में आए हो, प्रसाद न मिले ऐसा कभी हुआ हैं।

महेश…महाशय आप'को आपत्ति किस बात की हैं। मेरे बेटी की शादी हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं या राजा जी के बेटे से हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं।

"आप की बेटी की शादी हों रहा हैं इससे मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं लेकिन जिससे शादी हों रहा हैं जिस वंश में शादी हों रहा हैं उससे मुझेआपत्ति हैं।"

ये बात सुनते ही महेश का पारा चढ़ गया और भड़कते हुए बोला... मेरी बेटी हैं उसकी शादी जिस भी घर में कारवाऊ तू कौन होता है आपत्ति जताते वाला हरमखोरो पहली चल सफल नहीं हुआ तो अब दूसरा पैंतरा अजमाने लगे अभी सामने होता तो तुझे गोली मर देता। ऐसी जगह मरता तू अफसोस करता मै महेश के सामने क्यों आया।

"महेश तेरी हिम्मत कैसे हुआ मुझे हरमखोर बोलने की तू मुझे गोली मरेगा मुझे तू जनता भी है मैं कौन हूं।

महेश…चल बता तू किस गंदी नाली का कीड़ा हैं बता तू कितने बाप की पैदाइश हैं। बता तू कौन से गटर में पला बडा हुआ।

"महेश तू जुबान को लगाम दे नहीं तो अच्छा नहीं होगा।"

महेश...क्यों रे सुलग गया सुलगनी भी चाहिएं सालो तुम लोग दल बनाकर राजेंद्र बाबू के बेटे की शादी तुड़वाने के लिए न जानें कौन कौन से लांछन उस भले मानुष के बेटे पर लगाया। अब तुम पर लांछन लगा तो तुम्हें बुरा लग गया सोचो तुम गंदे नाली के कीड़ों को कीड़ा बोला तो तुम्हें इतना बुरा लगा। उस भले मानुष को कितना बुरा लगा जब तुम लोगों ने उनके बेदाग बेटे पर इतने लांछन लगाया।

"ओ तो तुझे पता चल गया ये तो अच्छी बात हैं अब कान खोल कर सुन ले शादी तुड़वा दे नहीं तो तेरे साथ अच्छा नहीं होगा।"

महेश…शादी तो अब टूटने से रहीं तुझे जो करना हैं कर ले और एक बात सुन तुझे भी स्पेशली दावत देता हूं आकर झूठे बर्तन चाट कर अपना पेट भर लेना।"

"अजीब बेज्जती हैं मै तुझे धमका रहा हूं डरने के जगह तू मुझे दावत दे रहा हैं। तूने मेरी बहुत बेज्जती कर लिया अब कान खोल कर सुन ले रिश्ता तोड़ दे नहीं तो तू अपना और अपने परिवार वालों के जान से हाथ धो बैठेगा।"

महेश…ओ तो ये बात हैं ठीक हैं तुझे जो करना हैं कर लेना मैं भी जमींदार का बेटा हूं देखू तो तू कितना बडा गुंडा हैं। सुन वे शादी तो टूटने से रही तू आ जाना अपने दल बल के साथ मैं महेश तुम सब की पहले अच्छे से खातिर करूंगा फिर बेटी का कन्या दान करूंगा।

सामने वाला सोचा था धमकी देने से महेश डर जायेगा लेकिन महेश डरने के जगह उसे ही धमका रहा था। अंत में खुद को जमींदार का बेटा बोलने से सामने वाला खुद ही डर गया और फोन काट दिया। फोन काटने के बाद महेश बोला…सालो तुम ने सोए हुए जमींदार धर्मपाल के बेटे को फिर से जगा दिया। आना सामने इतना लठ बजूंगा गिनना भुल जाओगे।

(पाठकों यह एक बात जानने का हैं। जैसा की माने परिचय में बताया था महेश के बाप दादा जमींदार थे। उनके जमींदारी विद्रोहियों और अंग्रेजो ने छीन लिया था। बस महेश के पिता का नाम नहीं बताया था। जो यहां बता रहा हूं। ताकि किसी के मन में कोई शंका न रहें।)

महेश बातो के दौरान ज्यादा तेज आवाज में बात कर रहा था। इसलिए घर में काम करने वाले नौकर , कमला और मनोरमा वहा आ गए। फोन रखते ही मनोरमा बोली…आप किसपे इतना भड़क रहे थें।

कमला... हां पापा कौन था?

महेश...कौन होगा उन्हीं के दल से थे जिन्होंने रघु जी के बारे में गलत सलत बोलकर मेरा बुद्धि भ्रष्ट कर दिया था। अब फोन करके धमका रहे थें।

मनोरमा & कमला..kiyaaa धमका रहें थे।

महेश… हां धमका रहें थे सोचा होगा कोई ऐरा गेरा होगा। धमकाऊंगा तो डर कर फिर से शादी तुड़वा देगा। लेकिन ये लोग भुल गए महेश उनका भी बाप हैं। मैं जमींदार धर्मपाल का बेटा हूं जो कुछ दिनों के लिए सो गया था लेकिन अब जाग चुका हैं।

मनोरमा... सुनिए आप ऐसा वैसा कुछ न करना इसी जमीदारी ने हमसे हमारा पूरा परिवार छीन लिया मुझ'से मेरा बेटा छीन लिया दुबारा ऐसा कुछ हुआ तो मैं फिर से एक ओर सदमा बर्दास्त नहीं कर पाऊंगी।

मनोरमा बीती बातों को भूल चुकी थी। एक बार फिर से याद करते हुए अधीर हों गईं। मनोरमा को अधीर होते देख महेश बोला…मनोरमा संभालो खुद को उन बातों को याद करके मुझे भी पीढ़ा होता हैं। उस वक्त मैं पास नहीं था इसलिए उन्होंने छल से मेरे पूरे परिवार का कत्ल कर दिया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं ऐसा होने नहीं दुंगा।

कमला...पापा किसने किया था हमारे परिवार का कत्ल कौन थे वो लोग।

महेश…. बेटा ये समय सही नहीं हैं उन दुखद पालो को याद करने का अभी खुशी मानने का वक्त हैं तो खुशी मनाते हैं। मनोरमा तुम भी संभालो खुद को ये समय नही है उन पालो को याद करने का, बीती बातों को याद करके रोने से जो बिछड़ गए हैं वो वापस नहीं आ जाएंगे।

मनोरमा…आप का कहना ठीक हैं मै आप'के जैसा मजबूत ह्रदय वाली नहीं हूं। वो पल याद आता है तो मेरा ह्रदय पीड़ा से भरा जाता हैं। मैने एक पल में मां बाप सास ससुर और बेटा सभी को खो दिया। मेरा बसा बसाया संसार पल भार में छिन्न भिन्न हों गया।

ये कहकर मनोरमा सुबक सबका कर रोने लग गई। कमला मां के पास आकार मां को चुप करती हैं। कुछ क्षण सुबकने के बाद मनोरमा चुप हों गई। तब महेश राजेंद्र को फोन कर जल्दी से आने को कहते हैं। फोन करने के कुछ वक्त बाद ही राजेंद्र का कार आकर उनके घर के बहार रुकता हैं। राजेंद्र अंदर आकर बोला….क्या हुआ महेश बाबू अपने मुझे जल्दी जल्दी आने को क्यों कहा।

महेश…आप बैठिए फिर बात करते हैं। कमला बेटा जाओ चाय नाश्ते की व्यवस्था करो।

कमला के साथ साथ मनोरमा भी कीचन की ओर चल दिया फिर महेश फोन पर हुआ किस्सा राजेंद्र को बता देता हैं। सुनकर राजेंद्र बोला…उनकी इतनी मजाल जो फोन पर धमकी दे रहे हैं। अब पानी सिर से ऊपर चला गया उनका कुछ न कुछ बंदोबस्त करना होगा। आप मेरे साथ चलिए थाने में मामला दर्ज करवा कर आते है

महेश...राजा जी थाने जाने की जरूरत नहीं हैं यहां के SSP साहब से मेरा बहुत अच्छा रिश्ता हैं मैं फोन कर उन्हें बुला लेते हूं।

महेश फिर से एक फोन SSP साहब को कर दिया । कुछ वक्त में एक पुलिस की गाड़ी आकार रूका। SSP साहब अपने साथ आए कुछ पुलिस वालो के साथ अंदर आए। राजेंद्र को देखकर नमस्कार किया फिर बैठकर बोला…कहिए महेश बाबू अपने मुझे कैसे याद किया बिटिया की शादी को अभी एक सप्ताह हैं अपने इतनी जल्दी मुझे मेहमान दारी में बुला लिया।

महेश...SSP साहब मेहमन दरी में आप'को बुलाने की आवश्कता कब से पड़ गया हैं। आप तो मेरे अपने है। जब चाहो तब आ जाओ आप'को रोका किसने हैं। आज तो कुछ विशेष काम से आप'को याद किया गया।

SSP…ऐसा कौन सा विशेष काम आ गया जो आप मुझे शीघ्रता से आने को कहा कोई जटिल मसला जान पड़ता हैं नहीं तो आप मुझे इतनी जल्दी नहीं बुलाते।

महेश…SSP साहब आप तो जानते ही हैं कमला की शादी राजा जी के बेटे के साथ तय हुआ हैं। अभी कुछ दिनों पीछे कुछ लोगों ने साजिश के तहत राजी जी के बेटे के खिलाफ अनाप शनाप बोल कर मेरा दिमाग भ्रष्ट कर दिया था। मैं उनके बिछाए जाल में फांस भी गया था फिर रिश्ता थोड़ कर आ गया था। जब घर आया तब कमला और मनोरमा न मुझे समझाया तब जाकर मुझे समझ आया ये किसी की चाल हैं। जैसे तैसे मान मुटाव दूर कर हम फिर से शादी की तैयारी करने लगें थे की आज किसी ने फ़ोन पर मुझे शादी तोडने को कह रहे थे। शादी नहीं टूटा तो वो मेरे परिवार को जान से मर देंगे ऐसा धमकी दे रहें थे।

SSP...जहां तक मैं समझ पा रहा हूं ये कोई साधारण मसला नहीं हैं। साधारण मसला होता तो कोई बार बार शादी तुड़वाने का प्रयास क्यों करता। हों सकता हैं महेश जी आप'का कोई दुश्मन हों या कोई ऐसा जो चाहता हों कमला बिटिया की शादी रघु जी से न हों।

महेश...SSP साहब मेरा किसी के साथ कोई दुश्मनी नहीं हैं जो शादी तुड़वाना चाहते हैं उन्हें कमला की शादी होने से कोई दिक्कत नहीं हैं उन्हें दिक्कत हैं रघु जी की शादी से, राजा जी अब आगे का किस्सा आप बताए तो बेहतर होगा।

SSP...राजा जी जो भी हैं आप खुल कर बताओ तभी मैं इस मसले के तह तक पहुंच सकता हूं। जैसा महेश जी कह रहे हैं इससे तो लगता है जो भी हों रहा सब आप'के बेटे से जुड़ा हैं।

राजेंद्र….SSP साहब आप'का कहना सही हैं जो भी हों रहा है वो रघु से ही जुड़ा हुआ हैं। ये सब तभी से शुरू हुआ है जब से हम रघु के लिए रिश्ता ढूंढना शुरू किया था। हम जो भी लड़की देखते, न जाने कौन लड़की वालो को रघु के बारे में गलत सालात बोलते फिर वे उनका कहना मानकर रिश्ता करने से मना कर देते इस बार भी वैसा ही हुआ मै समझ नहीं पा रहा हूं कौन है जो ऐसा कर रहा हैं।

SSP... राजा जी आप मेरे बातों को गलत न लेना ऐसा भी तो हों सकता हैं रघु जी का किसी लड़की के साथ कोई संबंध हों इसलिए ऐसा किया जा रहा हों। या फिर ऐसा भी कोई हों सकता हैं किसी को आप'के अपर संपति पाने का लालच हों और वो अपने बेटी की शादी आप'के बेटे से कराकर सभी संपत्ति को हड़पना चाहते हों।

राजेंद्र…SSP साहब मेरे बेटे का अन्य किसी लडकी के साथ कोई संबंध नहीं हैं। शायद जो कुछ भी हों रहा हैं सब हमारे संपति को लेकर हों रहा होगा।

SSP…ऐसा कोई हैं जिस पर आप'को शक हों। ऐसा कुछ अगर है तो आप मुझे खुल कर बता सकते हैं।

राजेंद्र…ऐसा तो कोई हैं नहीं लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे खास खास लोग गायब होते जा रहे हैं। आप तो अच्छे से जानते है राज परिवार से हैं और अपर संपति हैं ऐसे में कोई भी मेरे खिलाफ षडियंत्र कर सकते हैं इसलिए मैंने कुछ गुप्तचर रख रखे थे लेकिन एक एक करके सभी गायब हों गए है मैंने अपनी ओर से बहुत खोज बिन किया लेकिन कोई पता नहीं लगा पाया।

SSP... ये तो बहुत गंभीर मसला हैं ऐसा हों रहा था तो आप'को बहुत पहले शिकायत दर्ज करवाना चाहिएं था। लेकिन अपने छुपाया इसका मतलब ऐसा कुछ हैं जो आप छुपना चाहते हों, अगर ऐसा कुछ हैं तो आप मुझे बता सकते हैं। मैं अपने तक ही रखूंगा।

राजेंद्र... जो हैं मैंने आप'को सभी कुछ बता दिया कुछ नहीं छुपाया अब आप ही देखो आप किया कर सकते हों।

SSP... मैं ज्यादा जोर नहीं डालूंगा क्योंकि मैं जनता हूं राज परिवार के बहुत से मसलो को गुप्त रखा जाता हैं फिर भी अपने जितना बताया हैं मै उसी आधार पर छान बीन शुरू करता हैं। महेश जी फिर से दुबारा अगर फ़ोन आता हैं तो आप तुरंत ही मुझसे संपर्क करना और हां कमला बेटी को अकेले कहीं भी जानें मत देना और आप राजा जी रघु जी को भी अकेले जानें मत देना जहां तक मुझे लगता हैं ये लोग बौखला गए हैं। आगे कुछ भी कर सकते हैं।

दोनों ने SSP साहब की बातों पर सहमति जाता दिया फिर SSP साहब के साथ आए हुए पुलिस वालो ने चार्ज शीट दर्ज किया। चार्ज शीट दर्ज करने के बाद मामले के तह तक जल्दी से पहुंचने का आश्वासन देकर SSP साहब चलते बने। SSP साहब के जाने के बाद राजेंद्र और महेश में कुछ क्षण तक ओर बात चीत हुआ। जब राजेंद्र ने जाने की आज्ञा मांग तब महेश जी उन्हें खाना खाकर ही जानें को कहा। क्योंकि वक्त रात के खाने का हों गया था। राजेंद्र माना करने लगें लेकिन महेश के बार बार कहने पर राजेंद्र मान गए। खाना पीना करने के बाद राजेंद्र घर को चल दिया।

इधर सुरभि राजेंद्र के लेट होने के करण चिंतित थीं क्योंकि राजेंद्र जाते वक्त बता कर नहीं गया था जा कहा रहा हैं। सुरभि को चिन्तित देख रघु बोला... मां कुछ चिन्तित दिखाई दे रहे हों बात किया हैं।

पुष्पा... मां बताओ न बात किया हैं।

रमन... रानी मां आप किस बात को लेकर इतने चिंता में हों।

सुरभि...ये बिना बताए कही गए हैं। उनके गए हुए बहुत देर हों गया हैं। इसलिए मै चिन्तित हूं। न जाने कहा रहा गए अभी तक आए नहीं।

सुरभि की बाते सुन पुष्पा को खुराफात सूजा इसलिए बोली... अरे मां कब तक पापा को अपने पल्लू से बन्द कर रखना चाहती हों। उन्हे भी थोडी आजादी दो गए होंगे कहीं आ जाएंगे।

पुष्पा कहकर मुस्कुरा दिया। पुष्पा को मुस्कुराते देख सुरभि भी मुस्कुरा दिया मां को मुस्कुराते देख पुष्पा बोली...अब लग रही हो आप पुष्पा की मां, आप'के खिले चेहरे पर टेंशन अच्छा नहीं लगता ऐसे ही मुस्कुराती रहा करो।

सुरभि उठकर पुष्पा के पास गई पुष्पा का सिर सहलाते हुए बोली... मेरी बेटी कहती है तो मैं ऐसे ही खिलखिलाती रहूंगी। तू भी अपने ये नटखट पान हमेशा बरकरार रखना।

रमन… कर दिया न अपने बेड़ा गर्ग रानी मां इस नटखट ने अपना नटखट पान बरकरार रखा तो इसके नटखट पान का शिखर कोई बने न बने मैं जरूर बनूंगा और सजा भुगतते भुगतते मेरा चाल चलन हमेशा के लिए टेडा हों जाएगा।

रमन के बातों से सभी हंस दिए। कुछ वक्त तक ओर तीनों बातों में मगन रहे फिर डिनर का वक्त हों गया। तो सभी खाना खाकर अपने अपने रूम में चले गए। सुरभि बैठक में राजेंद्र के इंतेजार में बैठी रहती हैं। कुछ क्षण प्रतीक्षा करने के बाद राजेंद्र घर पहुंचता हैं। पहुंचते ही सुरभि का सवाल जवाब शुरू हों गया।

सुरभि...आप बिना बताए कहा चले गए थे। गए तो गए पर इतना देर क्यों लगा दिया? मुझे कितनी चिंता हों रही थीं।

राजेंद्र... माफ करना सुरभि बिना कुछ बताए ही चला गया बात ही कुछ ऐसी थी। महेश बाबू ने बुलाया था।

सुरभि...Oooo आप'को बताकर जाना चाहिए था। जान सकता हूं महेश बाबू ने क्यों बुलाया था।

महेश ने क्यों बुलाया था वहा क्या क्या बाते हुआ। राजेंद्र ने सभी बाते सुरभि को बता दिया। सभी बाते सुनकर सुरभि बोली...आज अपने सही किया जो SSP साहब को बता दिया लेकिन अपने अधूरा क्यों बताया सभी कुछ बता देते किस कारण इतना कुछ हो रहा हैं।

राजेंद्र…कैसी बाते करते हों गुप्त संपति की बाते मैं उन्हें कैसे बताता जिस पर सिर्फ जनता का अधिकार हैं। उन्हे बता देता तो हो सकता हैं यह बात वो अपने आला अधिकारियों को बता देते। उनसे सरकार तक पहुंच जाता फिर सरकार हम पर ही कानूनी कारवाई करते और संपति को जप्त कर लेते फिर होता ये की सभी संपति जिस पर जनता का अधिकार हैं वो जनता तक न पहुंचकर भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं के पास पहुंच जाता। इसलिए मै गुप्त संपति की बात छुपा कर रखा।

सुरभि... मैं समझ रहा हूं लेकिन इस संपति के लिए हमें कितना कुछ झेलना पड़ रहा हैं आप खुद ही सोचो ओर न जाने कौन कौन से दुश्मन पैदा हों गए हैं। मैं तो कहता हूं आप इस गुप्त संपति का राज सरकार को बता दो नहीं तो एक दिन ये गुप्त संपति हमारे परिवार को छिन्न बिन्न कर देगा।

राजेंद्र…मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता मेरे पूर्वज ने हमेशा आम जनता के बारे में सोचा हैं उनके बेहतर भविष्य की कामना किया हैं। उन्होंने यह जिम्मेदारी मुझे दिया हैं। जब तक सभी गुप्त संपत्ति जनता पर खर्च नहीं हों जाता तब तक मुझे संपति की रक्षा करना होगा और जनता की भलाई करने में खर्च करते रहना होगा।

सुरभि... जैसा आप ठीक समझे। आप हाथ मुंह धोकर आइए मैं खाना लगवाती हूं।

राजेंद्र…सुरभि मैं महेश बाबू के घर से खाकर आया हूं। तुम खा लो।

सुरभि के खाना खाने के बाद दोनों अपने अपने कमरे में चले जाते हैं।

इधर दर्जलिंग में सुकन्या और रावण के के बीच मन मुटाव जारी था। रावण ने सुकन्या को मनाने की जी तोड़ प्रयत्न किया लेकिन सुकन्या मानने को तैयार ही न हों रहीं थीं। अगले दिन सुबह रावण सुकन्या और अपश्यु साथ में नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद अपश्यु जाने लगा तब सुकन्या रोकते हुए बोली... अपश्यु कहा जा रहे हों जाओ जाकर तैयार होकर आओ हम कलकत्ता जाएंगे।

अपश्यु…मां आज ही क्यों एक दो दिन बाद चलते हैं शादी में तो अभी कई दिन बचे है।

रावण...हां सुकन्या इतनी जल्दी भी किया है दो तीन दिन ओर रुख जाओ तब चलते है। फिर मान में अभी गया तो मैं अपना काम कैसे अंजाम दे पाऊंगा उन लोगो ने फ़ोन भी तो नहीं किया न जाने किया हुआ वो अपना काम कर पाए या नहीं।

सुकन्या... आप को जाने के लिए कौन कह रहा है मैं तो आप'से कुछ पुछा भी नहीं आप'को जब मान करे तब जाना। फिर अपश्यु से तूझे एक बार में समझ नहीं आता बड़े भाई की शादी हैं मदद करने के जगह दिन भर घूमता रहेगा। तू आज ही मेरे साथ चलेगा मतलब चलेगा।

अपश्यु मन में...मां को कुछ भी करके आज का दिन रोकना पड़ेगा आज ही तो गांव से उस लङकी को उठाना हैं मै चला गया तो फिर ही शायद मौका मिले नहीं नहीं मैं ऐसा होने नहीं दे सकता मुझे कुछ भी करके मां को रोकना ही होगा।

अपश्यु न हिला न डुला वो तो मन में ही बात करने में मस्त था। अपश्यु को सोच में गुम देख सुकन्या बोली... किस सोचे में घूम हैं जा जाकर तैयार होकर आ ।

अपश्यु... मां हम कल चले चलेंगे आज मुझे बहुत जरूरी काम है कल पक्का चलूंगा।

सुकन्या... कौन सा तू अपने बाप का बिजनस देख रहा है जो तूझे जरूरी काम करना हैं जा जाकर तैयार होकर आ।

अपश्यु... मां सुनो तो….

सुकन्या बिना बात पूरी सुने गुस्से में बोली... तू एक बार कहने से सुनता क्यों नहीं जब देखो टाला मटोली करता रहेगा तुझसे अच्छा तो रघु हैं उसे एक बार कहते ही बिना न नुकर के मान लेता हैं जा जाकर तैयार हों जा नहीं तो ऐसे ही चल तैयार होने की जरूरत नहीं हैं।

इतना कहकर सुकन्या रूम को चल दिया रावण भी उसके पीछे पीछे चल दिया। रघु की तारीफ मां के मुंह से सुन अपश्यु बोला...इस श्रवण कुमार के बच्चे ने आज मरवा दिया अच्छा खासा आज एक मस्त फूल को मसलने का प्लान बनया था इस श्रवण कुमार ने मेरे सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। चल बेटा अपश्यु मां की बात मान ले नहीं तो मां पापा की तरह मुझसे भी नाराज हों जाएंगे मां मुझसे नाराज़ हों गया तो मैं उनकी बे रूखी बर्दास्त नहीं कर पाऊंगा। एक लङकी के लिए मां को नाराज करना सही नहीं होगा ऐसी 100 लड़की मां पर कुर्बान हैं।

कुछ वक्त में सुकन्या तैयार होकर आ गई। सुकन्या के साथ साथ रावण भी तैयार होकर आ गया। अपश्यु के आते ही तीनों बहार को चल दिये। ड्राइवर जिसे पहले ही सुकन्या ने कार निकलने को कह दिया था। वो कार में बैठे इनका wait कर रहे थे। रावण आगे जाकर कार में बैठने लगा। रावण को बैठते देख सुकन्या बोली…आप क्यों बैठ रहे हो आप तो दो तीन दिन बाद जाने वाले थे।

रावण... तुम जा रहीं हों तो मैं यह अकेले क्या करूंगा मेरा तुम्हारे बिना मन नहीं लगेगा।

इसके आगे सुकन्या कुछ नही बोली रावण पीछे बैठ रहा था तो सुकन्या ने रावण को आगे की सीट पर बैठने को कहा। बिना न नुकार के रावण आगे बैठ गया। सुकन्या और अपश्यु के बैठते ही ड्राइवर कार को आगे बडा दिया। विंकट जो पल पल अपश्यु के पीछे छाए की तरह लगा रहता था अपश्यु को मां बाप के साथ जाते हुए देख लिया। अपश्यु जा कहा रहा है ये जानें के लिए गेट में खड़े दरबान से पुछ तो दरबान ने बता दिया। सुनते ही विकट चल दिया और जाते हुए बोला...जल्दी से उस्ताद को खबर करना होगा। अपश्यु कलकत्ता गया हैं कुछ दिन बाद वापस आएगा।


आज के लिए इतना ही आगे की कहनी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
ravan ke admiyo ne galti se aaj mahesh ke andar ke jamidaar ko jaga diya. ganimat hai ki uske samne nahi bol rahe the. Ab police bhi Tahkikaat karne wala hai raghu ke shadi todne wale masle mein . bahut dukh hua mahesh aur manorama ji ke atit ke bare me janke . bahut dukh jhele hai un logo ne bhi aur bahut kuch khoya bhi hai. aapasyu ka character itna bura bhi nahi hai jo insaan apni ma aur bahan ke liye kuch bhi kar gujar jane taiyar rahta ho wo bura kaise ho sakta hai, par is sach ko nakara bhi nahi ja sakta ke wo sirf apni ma aur bahan ke liye hi acha hai, anya logo ke liye wo aaj bhi haivan hi hai.
 
R

Riya

Update - 28


इधर जब रावण को रिश्ता टूटने की सूचना मिला तो खुशी के मारे फुले नहीं समा रहा था। रावण खुशी के मारे वावला हुआ जा रहा था। रावण को खुश देखकर सुकन्या ने पुछा…आज आप ओर दिनों से ज्यादा खुश लग रहे हों। आप'के खुशी का राज क्या हैं?

सुकन्या के पूछते ही रावण मन में बोला इसे सच बता दिया तो फिर से ज्ञान की देवी बनकर ज्ञान की गंगा बहाने लग जाएंगी। इसके प्रवचन से बचना हैं तो कोई मन घड़ंत कहानी सुनाना पड़ेगा।

सुकन्या...क्या हुआ? बोलिए न आप के खुशी का राज क्या हैं?

रावण...मैं खुश इसलिए हूं क्योंकि मैं कहीं पर पैसा लगाया था जो मुझे कही गुना मुनाफे के साथ वापस मिला हैं। इसलिए बहुत खुश हूं।

सुकन्या...ये तो बहुत ख़ुशी की ख़बर हैं। क्या अपने ये ख़बर जेठ जी और दीदी को दिया?

खुशी की ख़बर राजेंद्र और सुरभि को देने की बात सुनकर रावण मन ही मन बोला... ये तो दादाभाई और भाभी की चमची बन गई। लेकिन इसे नहीं पाता इस वक्त उनका जो हाल हो रहा हैं उनको जो जख्म पहुंचा हैं वो किसी भी खुशी की ख़बर से नहीं भरने वाला न कोई दवा काम आने वाला हैं।

मन की बातो को विराम देकर रावण बोला...अभी तो नहीं बताया मैं सोच रहा हूं फोन में बताने से अच्छा जब हम शादी में जाएंगे तब बता दुंगा।

सुकन्या...ये अपने सही सोचा अच्छा ये बताईए हम कब जा रहे हैं। दीदी के बिना मेरा यहां मन नहीं लग रहा हैं।

सुकन्या की बाते सुनकर रावण मन ही मन बोला...ये तो भाभी की दीवानी हों गई पहले भाभी इसको कांटे की तरह चुभा करती थी। अब देखो कैसे आंखो का तारा बन गई हैं। एक पल उन्हे देखें बिना इसे चैन नहीं आ रहीं हैं।

मन ही मन ख़ुद से बात करने के बाद रावण बोला...दो तीन दिन रुक जाओ फिर चलेंगे। फिर मन में बोला...हमे जाने की जरूरत ही नहीं पड़ेगा क्योंकि जो काम मै करना चाहता था वो हो गया हैं एक दो दिन में वो ख़ुद ही शोक विलाप करते हुए आ जाएंगे।

सुकन्या...ठीक है।

रावण ऐसे ही ख़ुशी माना रहा था। लेकिन रावण की खुशी को न जाने किसकी नज़र लग गया शाम होते होते रावण की ख़ुशी मातम में बदल गया। रावण के आदमी जो महेश पर पल पल नजर बनाया हुआ था। जब उन्हें पाता चला कुछ पल का टूटा हुआ रिश्ता फिर से जुड़ गया। ये ख़बर जब रावण को दिया तब रावण ने आपा खो दिया। गुस्से में अपने आदमियों को ही सुनने लग गया। जो मन में आया बकने लग गया। गाली गलौच करने के बाद भी रावण का गुस्सा शान्त नहीं हुआ तो रूम में ही तोड़ फोड़ करने लग गया तोड़ फोड़ की आवाज सुनकर सभी नौकर और सुकन्या भागकर रूम में पहुंचे रावण को तोड़ फोड़ करते देखकर नौकर कुछ नहीं बोला लेकिन सुकन्या रावण को रोकते हुए बोली...ये क्या कर दिया? इतना तोड़ फोड़ क्यों कर रहे हो?

रावण कुछ नहीं बोला बस गुस्से में लाल हुई आंखों से सुकन्या को देखा फिर तोड़ फोड़ करने लग गया। रावण के लाल खून उतरे आंखे को देखकर सुकन्या भयभीत हों गई। सिर्फ सुकन्या ही नहीं सभी नौकर भी भय भीत हों गए। रावण को किसी की कोई परवाह नहीं था वो तो बस गुस्से में तिलमिलाए तोड़ फोड़ करने में मगन रहा। रावण के हाथ जो आया तोड़ता गया। एकाएक रावण ने एक फ्रेम किया हुआ फोटो उठा लिया फोटो में पूरा परिवार एक साथ था। रावण के हाथ में फ़ोटो देखकर सुकन्या रावण के पास गया हाथ से फोटो छीन लिया फिर बोली…इतना भी क्या गुस्सा करना? सभी समान ही तोड़ दो छोड़ों इस फ़ोटो को, आप इसे नहीं तोड़ सकते।

सुकन्या के फ़ोटो लेते ही रावण और ज्यादा तिलमिला गया। बिना सोचे समझे चटक चटक चटक तीन चार चाटे सुकन्या को लगा दिया। चाटा इतना जोरदार मरा गया। सुकन्या के होंठ फट गए, फटे होंठ से खून निकल आया। चाटा लगने से सुकन्या खुद को संभाल नहीं पाई इसलिए निचे गिर गई। सुकन्या गिर कर रोने लगीं लेकिन रावण इतना बौखलाया हुआ था। उसे कुछ फर्क ही नहीं पड़ा, दामदामते हुए रूम से बहार निकल गया। रावण के जाते ही एक नौकर ने जाकर सुकन्या को उठाया। धीरा भाग कर पानी और फास्ट ऐड बॉक्स लेकर आया।

सुकन्या को पानी पिलाकर धीरा होंठ से खून साफ कर दवा लगाने लगा और सुकन्या रोते हुए बोली….मैंने ऐसा किया कर दिया जो इन्होंने मुझे इस तरह मरा आज सुरभि दीदी होती तो वो इन्हें बहुत डांटते।

"छोटी मालकिन आप चुप रहें दावा लगाने दीजिए। अपने देखा न छोटे मलिक कितने गुस्से में थे।"

सुकन्या...किस बात का इतना गुस्सा आज तक इन्होंने कभी मुझ पर हाथ नहीं उठाया आज उठाया तो इतने बुरी तरीके से मरा मेरा होंठ फट गया। उन्होंने पलट कर भी नहीं देखा।

"छोटी मालकिन गुस्से में हों जाता हैं आप शान्त हों जाइए छोटे मलिक का गुस्सा जब शान्त होगा वो आप'से माफ़ी मांग लेंगे।"

सुकन्या...मुझे उनके माफ़ी की जरूरत नहीं हैं। मैं जान गई हूं ये मेरे पाप का दण्ड हैं जो मैंने सुरभि दीदी और आप सभी के साथ किया था।

नौकर आगे किया बोलता उन्हें पता था सुकन्या ने उनके साथ और सुरभि के साथ कैसा व्यवहार किया था। खैर कुछ वक्त तक ओर सभी नौकर सुकन्या के पास रहे फिर सुकन्या के कहने पर सभी नौकर अपने अपने काम करने चले गए। सभी के जाते ही सुकन्या सोफे नुमा कुर्सी पर बैठे बैठे रोने लग गई और मन ही मन ख़ुद को कोशने लग गई।

इधर रावण घर से निकलकर मयखाने में जाकर बैठ गया। शराब मंगवाकर पीते हुए मातम मानने लग गया। आधी रात तक मयखाने में बैठा बैठा शराब पीकर बेसुध होता रहा। मयखाने के बंद होने का समय होने पर रावण को घर जाने को कहा गया तो रावण नशे में लड़खड़ाते हुए घर आ गया। घर आकर रावण रूम में जाकर सोफे पर ही लुड़क गया। उसने जानने की जहमत भी न उठाया सुकन्या किस हाल में हैं।

जब रावण रूम में आया तब सुकन्या जागी हुई थीं। रो रो कर आंखें सूजा लिया था। रावण को देखकर सुकन्या को एक अश जगा शायद रावण उससे हलचाल पूछेगा पर ऐसा हुए नहीं तो सुकन्या का रूदन ओर बढ़ गया। रोते रोते खुद वा खुद सो गई।

अगले दिन सुबह उठते ही रावण को सोफे पर लेटा देख सुकन्या मुंह फेरकर चली गई। नित्य काम से निवृत होकर अपने काम में लग गई। जब रावण उठा तो खुद को सोफे पर लेटा देखकर सोचने लगा वो सोफे पर क्यों लेटा हैं। तब उसे याद आया उसने गुस्से में कल रात को क्या क्या कर दिया। याद आते ही रावण झटपट उठ गया फिर सुकन्या को ढूंढने लग गया। सुकन्या उस वक्त निचे बैठक हॉल में बैठी थीं। रावण सुकन्या के पास गया फिर बोला...सुकन्या कल रात जो मैंने किया उससे मैं बहुत शर्मिंदा हूं। मुझे माफ़ कर दो।

सुकन्या ने कोई जवाब नहीं दिया। उठकर जानें लगीं तब रावण ने सुकन्या का हाथ पकड़ लिया। रावण के हाथ पकड़ने से सुकन्या हाथ को झटका देकर छुड़ाया फिर बोली…माफ़ी मांगकर किया होगा आप'के करण मुझे जो चोट पहुंचा क्या वो भर जाएगा।

रावण की नजर सुकन्या के होंठ पर लगी चोट पर गया चोट देखकर रावण को अपने कृत्य पर पछतावा होने लग गया। इसलिए रावण बोला…सुकन्या मुझे माफ़ कर दो मैं कल बहुत गुस्से में था। गुस्से में न जानें क्या क्या कर गया? मुझे ही होश न रहा।

सुकन्या…जो भी अपने किया अच्छा किया नहीं तो मुझे कैसे पाता चलता आप इंसान के भेष में एक दानव हों जिसे इतना भी पता नहीं होता मै किया कर रहा हूं किसे चोट पहुंचा रहा हूं।

रावण…माना कि मुझसे गलती हुआ है लेकिन तुम तो ऐसा न कहो तुम्हारे कहने से मुझे पीढ़ा पहुंचता हैं।

सुकन्या...मेरे कहने मात्र से आप'को पीढ़ा पहुंच रहा हैं तो आप सोचो मुझे कितनी पीढ़ा पहुंची होगी जब बिना किसी करण, अपने मुझ पर हाथ उठाया।

रावण...मानता हूं तुम पर हाथ उठकर मैंने गलती कर दिया। मैं उस वक्त बहुत गुस्से में था। गुस्से में मै किया कर बैठ मुझे सुध ही न रहा। अब छोड़ो उन बातों को मैं माफ़ी मांग रहा हूं माफ़ कर दो न।

सुकन्या…माफ़ कर दूं ठीक हैं माफ़ कर दूंगी आप मेरे एक सवाल का जवाब दे दीजिए आप'के जगह मै होती और बिना किसी गलती के आप'को मरती तब आप किया करते।

रावण के पास सुकन्या के इस सवाल का जवाब नहीं था। इसलिए चुप खडा रहा। रावण को मुखबधिर देख सुकन्या बोली…मैं जनता हूं मेरे सवाल का आप'के पास कोई जवाब नहीं हैं। जिस दिन आप'को जबाव मिल जाए मुझे बता देना मैं आप'को माफ़ कर दूंगी।

सुकन्या कह कर चली गई रावण रोकता रहा लेकिन सुकन्या रूकी नहीं सुकन्या के पीछे पीछे रावण रूम तक गया। सुकन्या रूम में जाकर दरवाज़ा बंद कर दिया। रावण दरवजा पिटता रहा लेकिन सुकन्या दरवजा नहीं खोली थक हर कर रावण चला गया। सुकन्या रूम में आकर रोने लगीं रोते हुए बोली…सब मेरे पाप कर्मों का फल हैं जो कभी मुझ पर हाथ नहीं उठाते आज उन्होंने मुझ पर हाथ उठा दिया। मन तो कर रहा है कहीं चला जाऊं लेकिन जाऊ कहा कोई अपना भी तो नहीं हैं जिन्हें अपना मानती रहीं वो ही मुझे मेरा घर तोड़ने की सलाह देते रहें। जिन्होंने मुझे पल पोश कर बडा किया आज वो भी मुझसे वास्ता नहीं रखना चाहते। हे ऊपर वाले मेरे भाग्य में ये क्या लिख दिया? क्या तुझे मुझ पर तोड़ी सी भी तरस नहीं आया? क्या तेरा हाथ भी नहीं कंपा ऐसा लिखते हुए?

सुकन्या रोते हुए खुद से बात करने में लगी रहीं। रावण घर से निकलकर सीधा पहुंच गया सलाह मिसविरा करने सलाहकार दलाल के पास। रावण को देख दलाल बोला…क्या हुआ तेरा हाव भाव बदला हुआ क्यों हैं? लगता हैं किसी ने अच्छे से मार ली।

रावण...अरे पूछ मत बहुत बुरा हल हैं। चले थे मिया शेखी बघारने बिल्ली ने ऐसा पंजा मरा औंधे मुंह गिर पडा।

दलाल को कुछ समझ न आया तब सिर खुजते हुए बोला..अरे ओ मिया इलाहाबादी मुशायरा पड़ना छोड़ और सीधे सीधे कविता पढ़के सुना।

रावण...अरे यार रघु की शादी तुड़वाने को इतना तामझाम किया शादी तो टूटा नहीं उल्टा मेरा और सुकन्या का रिश्ता बिगाड़ गया।

रघु की शादी न टूटने की बात सुन दलाल अंदर ही अंदर पॉपकॉर्न की तरह उछल पड़ा। दलाल का हल बेहाल न होता तो वो उछलकर खडा हों जाता लेकिन बंदा इतना बदकिस्मत था कि एक्सप्रेशन देकर काम चलाना पड़ा।

दलाल...kiyaaa बोल रहा हैं शादी नहीं टूटा लेकिन ये हुआ तो हुआ कैसे?

रावण...सही कह रहा हूं। शादी नहीं टूटा ये ख़बर सुनकर मुझे इतना गुस्सा आ गया था। मैं बता नहीं सकता अब गुस्से का खामियाजा मुझे ये मिला सुकन्या मुझसे रूठ गई।

दलाल...क्या कह रहा हैं सुकन्या भाभी तुझसे रूठ गई लेकिन क्यों?

फिर रावण ने शॉर्ट में बता दिया किया हुआ था। सुनकर दलाल बोला…सुकन्या भाभी आज नहीं तो कल मान जायेगी लेकिन बडी बात ये हैं रघु का शादी कैसे नहीं टूटा इससे पहले तो हमारा आजमाया हुआ पैंतरा फेल नहीं हुआ फिर आज कैसे हों गया।

रावण...मैं भी हैरान हूं एक बार टूटने के बाद फ़िर से कैसे शादी करने को लडकी वाले मान कैसे गए।

दलाल...मान गए तो किया हुआ अब दूसरा पैंतरा आजमाते हैं ये वाला पक्का काम करेगा।

रावण...हां दूसरा पैंतरा काम जरुर करेगा। मैं अब चलता हूं समय बहुत कम हैं काम बहुत ज्यादा जल्दी से काम खत्म करना हैं।

रावण फिर से शादी तुड़वाने की तैयारी करने चल दिया। रावण कुछ बंदों को आगे किया करना हैं ये समझकर घर आ गया। जहां सुकन्या को मनाने का बहुत जतन करता रहा लेकिन सुकन्या मानने के जगह रावण को ही खरी खोटी सुना दिया। सुकन्या का उखड़ा मुड़ देखकर रावण कोशिश करना छोड़ दिया। बरहाल रूठने मनाने में दिन बीत गया।

शादी टूटने की बात आई गई हों गई। दोनों ओर से आगे की तैयारी करने में जी जान से लग गए। अगले दिन दोपहर को सभी बैठे थे तभी राजेंद्र बोला.. सुरभि लगभग सभी तैयारी हों गया हैं तो बोलों शॉपिंग करने कब जाना हैं।

सुरभि...कल को चलते है साथ ही महेश जी कमला और मनोरमा जी को बुला लेंगे सभी शॉपिंग साथ में कर लेंगे।

राजेंद्र आगे कुछ बोलती उससे पहले पुष्पा बोली...मां भाभी का लहंगा मैं पसन्द करूंगी।

रमन...तू क्यू करेगी भाभी के लिए लहंगा तो उनका देवर रमन पसन्द करेगा।

पुष्पा...नहीं मैं करूंगी मेरी बात नहीं माने तो देख लेना।

रमन...देख लेना क्या माना की तू महारानी हैं लेकिन मैं तेरी एक भी नहीं सुनने वाला।

पुष्पा...मां देखो रमन भईया मेरी बात नहीं मान रहें हैं जिद्द कर रहें। उनसे कहो महारानी का कहना मान ले नहीं तो कठोर दण्ड मिलेगा।

रमन...मैं जनता हूं महारानी जी कौन सा दण्ड देने वाली हों इसलिए मै अभी दण्ड भुगत लेता हूं।

ये कहकर रमन कान पकड़कर उठक बैठक लगाने लग गया। रमन को उठक बैठक करते देख पुष्पा मुंह बना लिया। ये देख राजेंद्र, सुरभि और रघु ठहाके लगाकर हंसने लग गए। मां बाप भाई को हसता हुआ देखकर पुष्पा समझ गई रमन उसके साथ मजाक कर रहा हैं। इसलिए पुष्पा भी मुस्करा दिया फिर बोली…रमन भईया आप मेरा मजाक उड़ा रहे थें हैं न, तो आप'को सजा मिलेगी। आप'की सजा ये है आप कल शाम तक ऐसे ही उठक बैठक करते रहेगें।

पुष्पा की बात सुनकर रमन रूक गया और मन में बोला...क्या जरूरत थी महारानी को छेड़ने की अब भुक्तो सजा।

रमन को रूका हुआ देखकर पुष्पा बोली...भईया आप रुक क्यों गए? chalooo शुरू हों जाओ।

रमन पुष्पा के पास गया फिर मस्का लगाते हुए बोला...तू मेरी प्यारी बहना हैं इसलिए भाभी के लिए लहंगा और रघु के लिए शेरवानी तू ही पसन्द करना बस मुझे सजा से बक्श दे नहीं तो इतना लंबा चौड़ा सजा भुगतकर मेरा चल चलन बिगाड़ जायेगा।

पुष्पा...भईया आप'का चल चलान बदले मुझे उससे कुछ लेना देना नहीं, मुझे मेरे मान की करने से रोकने की हिम्मत कैसे हुआ रोका तो रोका मजाक भी उड़ाया न न अपने बहुत संगीन जुर्म किया हैं इसलिए आप'को सजा तो मिलकर रहेगा। Chalooo शुरू हों जाओ।

रघु…pushpaaaa...।

रघु की बात बीच में काटकर पुष्पा बोली…चुप बिल्कुल चुप आप एक लफ्ज भी नहीं बोलेंगे।

राजेंद्र...पुष्पा बेटी जाने दो न रमन से गलती हों गया अब माफ़ भी कर दो।

पुष्पा…इतना संगीन जुर्म पर माफ़ी नहीं नहीं कोई माफ़ी नहीं मिलेगा। आप चुप चप बैठे रहों। आप के दिन गए अब महारानी पुष्पा के दिन चल रहे हैं। जो भी गलती करेगा उसे महारानी पुष्पा सजा देकर रहेगी।

सुरभि उठकर पुष्पा के पास गई कान उमेटते हुए बोली...क्यू रे महारानी मेरे बेटे को माफ़ नहीं करेंगी।

पुष्पा..ahaaaa मां कान छोड़ो बहुत दर्द हों रहा हैं

सुरभि कान छोड़ने के जगह थोड़ा और उमेठ देती हैं। जिससे पुष्पा का दर्द थोड़ा और बढ गई। तब पुष्पा राजेंद्र की ओर देखकर बोली…पापा मैं आप'की लाडली हूं न देखो मां मेरे कान उमेठ रहीं हैं। आप'की लाडली को बहुत दर्द हों रहा हैं आप रोको न इन्हें।

राजेंद्र...मेरे तो दिन गए अब तुम महारानी हों तो खुद ही निपटो मैं न कुछ कहने वाला न कुछ करने वाला।

बाप के हाथ खड़े करते ही पुष्पा को दर्द से छुटकारा पाने का एक ही रस्ता दिखा रमन को बक्श दिया जाएं। इसलिए पुष्पा बोली…मां कान छोड़ो मैं रमन भईया को माफ़ करती हूं।

सुरभि कान छोड़ देती हैं। पुष्पा कान सहलाते हुए बोली…कितनी जोर से महारानी की कान उमेठा रमन भईया आज आप बच गए सिर्फ इसलिए क्योंकि आप'का दल भारी था। लेकिन आप ये मात सोचना की मेरा दल कभी भारी नहीं होगा जल्दी ही कमला भाभी मेरे दल का मेंबर बनने वाली हैं।

पुष्पा की बातों से सभी फिर से खिलखिला कर हंस दिया। पुष्पा भी कान सहलाते हुए खिलखिला दिया। ऐसे ही यह हसी ठिठौली चलता रहा शाम को सुरभि फोन कर मनोरमा से बात करती हैं

सुरभि….बहन जी कुछ जरूरी शॉपिंग करना हैं। इसलिए मैं सोच रहीं थीं आप लोग भी हमारे साथ चलते तो अच्छा होता।

मनोरमा…जी मैं भी यही सोच रहीं थीं आप ने अच्छा किया जो पुछ लिया।

सुरभि...ठीक हैं फ़िर काल को मिलते है।

सुरभि फ़ोन रख कर राजेंद्र को बता दिया। अगले दिन दोपहर बाद मनोरमा, कमला और महेश, राजेंद्र के घर आए। कमला के आते ही रघु और कमला की आंख मिचौली शुरू हों गया। रघु कमला को बात करने के लिए पास बुलाने लगा पर कमला आने के जगह मुस्कुराकर माना कर दिया। रघु बार बार इशारे करने लग गया। कमला तो आई नहीं पर दोनों के हरकतों पर पुष्पा की नजर पड़ गई। पुष्पा के खुराफाती दिमाग में न जानें कौन सी खुराफात ने जन्म लिया बस मुस्कुरा कर दोनों को देखती रहीं। बरहाल जब शॉपिंग करने जानें लगें तो पुष्पा बोली...मां मैं भाभी और भईया एक कार में जाएंगे।

सुनते ही रघु का मान उछल कूद करने लग गया। लेकिन उसे डर था कही मां माना न कर दे किंतु मां तो मां होती हैं। सुरभि शायद रघु के मान की बात जान गई इसलिए हां कह दिया। सुरभि के हा कहते ही रमन बोला…वाह पुष्पा वाह तू कितनी मतलबी हैं। मेरा भी तो मान हैं भाभी और दोस्त के साथ शॉपिंग पर जाने का लेकिन तू सिर्फ अपने बारे में सोच रहीं हैं। मैं किसके साथ जाऊ मुझे घर पर ही छोड़ कर जाएगी।

पुष्पा…मुझे क्या पता? आप'को जिसके साथ जाना हैं जाओ मैने थोडी न रोक हैं।

रमन...ठीक हैं फ़िर मैं भी अपने दोस्त के साथ ही जाऊंगा।

कौन किसके साथ जाएगा ये फैसला होने के बाद सभी चल देते हैं। रघु का मन था कमला उसके साथ आगे बैठे लेकिन पुष्पा जिद्द करके कमला को पीछे बैठा लिया। रघु अनमने मन से आगे बैठ गया। ये देख कमला मन ही मन मुस्कुरा देती हैं। रघु कार चलते हुए बैक व्यू मिरर को कमला के चेहरे पर सेट कर बार बार मिरर से ही कमला को देखने लग गया। ऐसे ही देखते देखते दोनों की नज़र आपस में टकरा जाता हैं तब कमला खिली सी मुस्कान बिखेर आंखो की भाषा में एक दूसरे से बाते करने लगीं। बगल में बैठी पुष्पा दोनों को एक दूसरे से आंख मिचौली करते हुए देख लिया। एक शैतानी मुस्कान से मुस्कुराकर पुष्पा बोली…भईया आप शीशे में किया देख रहे हों, सामने देख कर कार चलाओ।

अचानक पुष्पा के बोलने से रघु झेप गया और नज़रे बैक व्यू मिरर से हटा सामने की ओर देखने लगा गया। ये देख कमला मुस्करा देती हैं। थोड़े देर के बाद फिर से दोनों आंख मिचौली करना शुरू कर देते हैं। लेकिन इस बार पुष्पा कुछ और सोच कर कमला को शीशे में देखने ही नहीं देती, कुछ न कुछ बहाना बनाकर बहार की ओर देखने पर मजबूर कर देती हैं।

खैर कुछ क्षण में एक मॉल के सामने कार रुकता हैं सभी उतरकर अंदर चल देते हैं। यह भी पुष्पा कमला का साथ नहीं छोड़ी अपने साथ लिए एक ओर चल दिया। रघु इधर उधर घूमा फ़िर बहाने से पुष्पा के पास पहुंच गया। रघु को डांट कर पुष्पा भगा दिया ये देख कमला मुस्कुराए बिन रह न पाई। रघु एक बार फिर से आया इस बार भी पुष्पा रघु को भगा दिया फिर बोली…भाईया भी न एक बार कहने से मानते नहीं लगता है इनका कुछ ओर इंतेजाम करना पड़ेगा।

कमला... ननदरानी जी क्यों उन्हें बार बार भगा रहीं हों। उन्हे हमारे साथ रहने दो ना।

पुष्पा...ओ हों आग तो दोनों तरफ़ बराबर लगा हुआ हैं। आप सीधे सीधे कहो न सैयां जी से बात करना हैं।

कमला…सीधा टेडा कुछ नहीं रखा मेरे सैयां जी हैं तो बात करने का मान तो करेगा ही।

पुष्पा...ओ हों बड़े आए सैंया वाले अब बिल्कुल भी बात नहीं करने दूंगी।

पुष्पा कह कर मुस्कुरा दिया और कमला पुष्पा को दो तीन चपत लगा दिया। ननद भाभी की हंसी ठिठौली करते हुए रमन दूर खड़े देख रहा था और मुस्कुरा रहा था। तभी रघु मुंह लटकाए रमन के पास पहुंचा। रघु को देख रमन बोला…आओ आओ कमला भाभी के इश्क में पागल हुए पगले आजम।

रमन की बात सुन रघु मुस्कुरा दिया। लेकिन जब रमन के कहीं बातो का मतलब समझा तब रमन को मक्के पे मुक्के मरने लग गया और बोला...बहन राजा शैतान सिंह बने कमला से बात करने नहीं दे रही हैं। तू मदद करने के जगह खिल्ली उड़ा रहा हैं।

रमन...अरे रुक जा नहीं तो सच में कोई मदद नहीं करूंगा।

रघु रुक गया फिर रमन पुष्पा की ओर चल दिया। पुष्पा उस वक्त कमला के लिए लहंगा देख रही थीं। एक लहंगा पुष्पा को बहुत पसन्द आया। उसे दिखाकर कमला से पुछा….भाभी मुझे ये वाला लहंगा बहुत पसंद आया आप बताइए आप'को पसन्द आया।

कमला…ननदरानी जी अपकी पसंद और मेरी पसन्द एक जैसी ही हैं मै भी इसी लहंगे को लेना चाहती थीं।

फिर पुष्पा ने लहंगा को उतरवा कर कमला को ट्राई करने भेज दिया कमला के जाते ही रमन वहा आ पहुंचा। रमन कुछ बोलता उससे पहले पुष्पा बोली...मैं जानती हूं आप दोस्त की पैरवी करने आए हों। आप जाकर भईया से कहो जब तक भईया मेरी इच्छा पूरी नहीं कर देते तब तक भईया को भाभी से बात करने नहीं दूंगी न यहां न ही फोन पर।

रमन…मैं भी तो जानू तेरी इच्छा किया हैं जिसके लिए पहली बार इश्क में पड़े मेरे दोस्त और उसके प्यार के बीच दीवार बन रहीं हैं।

पुष्पा…भईया से पूछो उन्होंने कुछ वादा किया था जब तक वादा पूरा नहीं करते तब तक मैं दीवार बनी खड़ी रहूंगी।

रमन... मैं भी तो जानू रघु ने कौन सा वादा किया था।

पुष्पा... भईया ने कहा था डेट तय होने के बाद मुझे जी भरकर शॉपिंग करवाएंगे पर उन्होंने ऐसा किया नहीं आप जाकर उन्हें थोड़ा डांटो और याद दिलाओ।

रमन...ऐसा है तो आज पक्का रघु शापिंग करवायेगा ये वादा तेरा ये भाई कर रहा है।

इतना कहा रमन चल दिया और पुष्पा मुंह पर हाथ रख हंसने लग गई। रघु के पास जाकर रमन बोला... रघु तूने पुष्पा से वादा किया था उसे शॉपिंग करवायेगा पर तूने करवाया नहीं इसलिए पुष्पा तेरे और भाभी के बीच दीवार बनी खडी हैं। जा पहले शॉपिंग करवा फ़िर जितना मर्जी भाभी से बात कर लेना।

रघु…हां तो कर ले शॉपिंग मैंने कब मना किया। पूरा मॉल खरीद ले पैसे मैं दे दुंगा।

रमन... तो जा न करवा शॉपिंग सुन रघु मैं पुष्पा से वादा कर आया हूं। अब तुझे जाना ही होगा।

रघु…kyaaaa wadaaa मरवा दिया तू जनता है न शॉपिंग के बाद पुष्पा किया हाल करती हैं फिर भी वादा कर आया।

रमन...भाभी से बात करना हैं तो तुझे पुष्पा की बात मान ले नहीं तो फिर भुल जा भाभी से बात कर पाएगा।

रघु...शॉपिंग करवाने में कोई दिक्कत नहीं हैं मेरा इकलौती बहन हैं। लेकिन शॉपिंग करने के बाद जो जुल्म पुष्पा करती हैं मै उससे डरता हूं। तू भी तो कई बार उसके जुल्मों का शिकार हों चूका है।

रमन...haaa हों चूका हूं पर क्या करु दोस्त और उसके होने वाली बीबी दोनों बात करना चाहते हैं पर ये नटखट बात होने ही नहीं दे रहा हैं। तू कहे तो जाकर बोल देता हूं रघु माना कर रहा हैं।

रघु…तू भी न चल करवाता हूं नहीं तो सच में कमला से बात नहीं करने देगी सिर्फ आज ही नहीं शादी के बाद भी, बहुत जिद्दी और नटखट हैं।

रघु जाकर पुष्पा को शॉपिंग करवाने लग गया। शॉपिंग करते हुए रघु बीच बीच में कमला से बात कर रहा था। ये देख पुष्पा मुस्कुरा रहीं थीं। इधर चारो समधी समधन अपने अपने शॉपिंग कर रहे थे। शॉपिंग करते हुए सुरभि को एक शेरवानी पसन्द आता हैं। उसे सभी को दिखाया जाता हैं। जो सभी को पसन्द आता हैं तब रघु को भी बुलाया जाता हैं। रघु का हल बेहाल हुआ पड़ा था। पुष्पा ने इतना सारा शॉपिंग किया था जिसे रघु कुली बने ढो रहा था। रघु को कुली बने देख सुरभि, मनोरमा, राजेंद्र और महेश मुस्कुरा देते हैं फिर सुरभि बोली…पुष्पा आज तो छोड़ देती बहु के सामने ही रघु को कुली बना दिया।

पुष्पा…भाभी को आज नहीं तो कल पता चलना ही था भईया कितना अच्छा कुली हैं। इससे भाभी को ही फायदा होगा जब भी भाभी और भईया शॉपिंग करने आयेंगे तब भाभी को बैग ढोने के लिए अलग से किसी को लाने की जरूरत नहीं पड़ेगा।

पुष्पा के बोलते ही सभी मुस्कुरा देते हैं। फिर रघु, रमन , कमला और पुष्पा को शेरवानी दिखाया जाता हैं। शेरवानी कमला के लहंगे के साथ मैच कर रहा था और डिजाईन भी बहुत अच्छा था। तो शेरवानी सभी को पसन्द आ जाता हैं। सुरभि शेरवानी को पैक करवा लेती हैं फिर कुछ और शॉपिंग करने के बाद सभी घर को चल देते हैं। जाते समय पुष्पा रघु और कमला को एक ही कार में जाने को कहती हैं। रघु खुशी खुशी कमला को साथ लिए चल देता हैं।

रघु और कमला एक साथ थे तों इनके बीच बातों का शिलशिला शुरू हों गया। बरहाल सभी घर पहुंच गए। मनोरमा और महेश को घर भेज दिया जाता हैं कमला को पुष्पा रोक लेती हैं। शाम को रघु ही कमला को घर छोड़ आता हैं।

ऐसे ही शादी की तैयारी में दिन पर दिन बीतने लगता हैं। उधर रावण से सुकन्या अब भी रूठा हुआ था। रावण बहुत मानने की कोशिश करता हैं लेकिन सुकन्या बिलकुल भी ठस ने मस नहीं होती हैं जिऊं की तीऊं बनी रहती हैं।

राजेंद्र ने कहीं बार फोन कर रावण को आने को कह लेकिन रावण कुछ न कुछ बहाना बनाकर टाल देता। क्योंकि उसके दिमाग में शैतानी चल रहा था। रावण के दिमाग की उपज का नतीज़ा ये निकला शादी को अभी एक हफ्ता ओर रहा गया था। तब शाम को महेश जी के घर का फोन बजा महेश जी ने फोन रिसीव किया।


आज के लिए इतना ही फोन पर क्या बात हुआ ये अगले अपडेट में जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏
Wonderful update. ravan sirf bura insaan hi nhi apitu bich bich mei wo vivekhin bhi ho jta hai . thappd marne se pehle ye tak nahi dekha samne kon khadi hai . sukanya ne itna kuch kiya uske liye, badle mei kya mila. Ravan se kayi guna behtar ghar me kam karne wale nakore hai, apne malkin ki halat dekh kaise bhagte huye aake usko sambhala.isse hi insaniyat aur respect dena kehte hai.
abki bar konsi plan bana raha hai ravan.
 
R

Riya

Update - 29


शादी में सात दिन बचे थे ऐसे में दोनों ओर से सभी तैयारी को रिचेक किया जा रहा था। किसी भी सामान की कमी तो नहीं रहा गया। कोई ऐसा तो नहीं बचा जिस तक निमंत्रण न पहुंचा हों। महेश दिन भर इसी में ही उलझा हुआ था। शाम के वक्त महेश चाय की चुस्कियां ले रहा था । उसी वक्त घर में रखें टेलिफोन बाबू ने आवाज दिया आकर मुझे चुप कराओ नहीं तो सिर में दर्द कर दुंगा। महेश जी झट पट उठे फिर टेलिफोन के रिसीवर को उठकर टेलीफोन का चीखना चिल्लाना बंद किया। रिसीवर कान से लगाकर बोला…. कौन हों महोदय जो मेरे घर में शान्त बैठे टेलीफोन को खटखटा रहे हो।

"जी आप महेश बाबू बोल रहे हैं"

महेश...जी लोग तो कहते हैं मैं ही महेश बाबू हूं। आप को मुझ'से किया काम था।

"जी काम कुछ खास नहीं सुना था आप अपने लडकी की शादी राजेंद्र प्रताप के लडके के साथ कर रहे हैं। क्या मैं सही सुना था?"

महेश... जी अपने बिलकुल ठीक सुना इससे आप'को कोई आपत्ति हैं।

"जी आपत्ति है तभी तो आप'को फ़ोन किया ।"

आपत्ति की बात सुनकर महेश का माथा ठनका कही फिर से शादी तुड़वाने के लिए फोन तो नहीं किया गया। ये बात दिमाग में आते ही महेश मन ही मन बोला... पहले तो तुम लोग इसलिए कामियाब हों गए थे क्योंकि मुझे सच्चाई पाता नहीं थीं लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। जारा सुनूं तो ये शुभचिंतक कहना किया चाहते हैं। साला जब से बेटी की शादी तय हुआ हैं। तब से मेरा भला चाहने वाले बढ़ चढ़कर आगे आ रहे हैं। आए हों तो आज प्रसाद भी लेते जाना आखिर भंडारे में आए हो, प्रसाद न मिले ऐसा कभी हुआ हैं।

महेश…महाशय आप'को आपत्ति किस बात की हैं। मेरे बेटी की शादी हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं या राजा जी के बेटे से हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं।

"आप की बेटी की शादी हों रहा हैं इससे मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं लेकिन जिससे शादी हों रहा हैं जिस वंश में शादी हों रहा हैं उससे मुझेआपत्ति हैं।"

ये बात सुनते ही महेश का पारा चढ़ गया और भड़कते हुए बोला... मेरी बेटी हैं उसकी शादी जिस भी घर में कारवाऊ तू कौन होता है आपत्ति जताते वाला हरमखोरो पहली चल सफल नहीं हुआ तो अब दूसरा पैंतरा अजमाने लगे अभी सामने होता तो तुझे गोली मर देता। ऐसी जगह मरता तू अफसोस करता मै महेश के सामने क्यों आया।

"महेश तेरी हिम्मत कैसे हुआ मुझे हरमखोर बोलने की तू मुझे गोली मरेगा मुझे तू जनता भी है मैं कौन हूं।

महेश…चल बता तू किस गंदी नाली का कीड़ा हैं बता तू कितने बाप की पैदाइश हैं। बता तू कौन से गटर में पला बडा हुआ।

"महेश तू जुबान को लगाम दे नहीं तो अच्छा नहीं होगा।"

महेश...क्यों रे सुलग गया सुलगनी भी चाहिएं सालो तुम लोग दल बनाकर राजेंद्र बाबू के बेटे की शादी तुड़वाने के लिए न जानें कौन कौन से लांछन उस भले मानुष के बेटे पर लगाया। अब तुम पर लांछन लगा तो तुम्हें बुरा लग गया सोचो तुम गंदे नाली के कीड़ों को कीड़ा बोला तो तुम्हें इतना बुरा लगा। उस भले मानुष को कितना बुरा लगा जब तुम लोगों ने उनके बेदाग बेटे पर इतने लांछन लगाया।

"ओ तो तुझे पता चल गया ये तो अच्छी बात हैं अब कान खोल कर सुन ले शादी तुड़वा दे नहीं तो तेरे साथ अच्छा नहीं होगा।"

महेश…शादी तो अब टूटने से रहीं तुझे जो करना हैं कर ले और एक बात सुन तुझे भी स्पेशली दावत देता हूं आकर झूठे बर्तन चाट कर अपना पेट भर लेना।"

"अजीब बेज्जती हैं मै तुझे धमका रहा हूं डरने के जगह तू मुझे दावत दे रहा हैं। तूने मेरी बहुत बेज्जती कर लिया अब कान खोल कर सुन ले रिश्ता तोड़ दे नहीं तो तू अपना और अपने परिवार वालों के जान से हाथ धो बैठेगा।"

महेश…ओ तो ये बात हैं ठीक हैं तुझे जो करना हैं कर लेना मैं भी जमींदार का बेटा हूं देखू तो तू कितना बडा गुंडा हैं। सुन वे शादी तो टूटने से रही तू आ जाना अपने दल बल के साथ मैं महेश तुम सब की पहले अच्छे से खातिर करूंगा फिर बेटी का कन्या दान करूंगा।

सामने वाला सोचा था धमकी देने से महेश डर जायेगा लेकिन महेश डरने के जगह उसे ही धमका रहा था। अंत में खुद को जमींदार का बेटा बोलने से सामने वाला खुद ही डर गया और फोन काट दिया। फोन काटने के बाद महेश बोला…सालो तुम ने सोए हुए जमींदार धर्मपाल के बेटे को फिर से जगा दिया। आना सामने इतना लठ बजूंगा गिनना भुल जाओगे।

(पाठकों यह एक बात जानने का हैं। जैसा की माने परिचय में बताया था महेश के बाप दादा जमींदार थे। उनके जमींदारी विद्रोहियों और अंग्रेजो ने छीन लिया था। बस महेश के पिता का नाम नहीं बताया था। जो यहां बता रहा हूं। ताकि किसी के मन में कोई शंका न रहें।)

महेश बातो के दौरान ज्यादा तेज आवाज में बात कर रहा था। इसलिए घर में काम करने वाले नौकर , कमला और मनोरमा वहा आ गए। फोन रखते ही मनोरमा बोली…आप किसपे इतना भड़क रहे थें।

कमला... हां पापा कौन था?

महेश...कौन होगा उन्हीं के दल से थे जिन्होंने रघु जी के बारे में गलत सलत बोलकर मेरा बुद्धि भ्रष्ट कर दिया था। अब फोन करके धमका रहे थें।

मनोरमा & कमला..kiyaaa धमका रहें थे।

महेश… हां धमका रहें थे सोचा होगा कोई ऐरा गेरा होगा। धमकाऊंगा तो डर कर फिर से शादी तुड़वा देगा। लेकिन ये लोग भुल गए महेश उनका भी बाप हैं। मैं जमींदार धर्मपाल का बेटा हूं जो कुछ दिनों के लिए सो गया था लेकिन अब जाग चुका हैं।

मनोरमा... सुनिए आप ऐसा वैसा कुछ न करना इसी जमीदारी ने हमसे हमारा पूरा परिवार छीन लिया मुझ'से मेरा बेटा छीन लिया दुबारा ऐसा कुछ हुआ तो मैं फिर से एक ओर सदमा बर्दास्त नहीं कर पाऊंगी।

मनोरमा बीती बातों को भूल चुकी थी। एक बार फिर से याद करते हुए अधीर हों गईं। मनोरमा को अधीर होते देख महेश बोला…मनोरमा संभालो खुद को उन बातों को याद करके मुझे भी पीढ़ा होता हैं। उस वक्त मैं पास नहीं था इसलिए उन्होंने छल से मेरे पूरे परिवार का कत्ल कर दिया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं ऐसा होने नहीं दुंगा।

कमला...पापा किसने किया था हमारे परिवार का कत्ल कौन थे वो लोग।

महेश…. बेटा ये समय सही नहीं हैं उन दुखद पालो को याद करने का अभी खुशी मानने का वक्त हैं तो खुशी मनाते हैं। मनोरमा तुम भी संभालो खुद को ये समय नही है उन पालो को याद करने का, बीती बातों को याद करके रोने से जो बिछड़ गए हैं वो वापस नहीं आ जाएंगे।

मनोरमा…आप का कहना ठीक हैं मै आप'के जैसा मजबूत ह्रदय वाली नहीं हूं। वो पल याद आता है तो मेरा ह्रदय पीड़ा से भरा जाता हैं। मैने एक पल में मां बाप सास ससुर और बेटा सभी को खो दिया। मेरा बसा बसाया संसार पल भार में छिन्न भिन्न हों गया।

ये कहकर मनोरमा सुबक सबका कर रोने लग गई। कमला मां के पास आकार मां को चुप करती हैं। कुछ क्षण सुबकने के बाद मनोरमा चुप हों गई। तब महेश राजेंद्र को फोन कर जल्दी से आने को कहते हैं। फोन करने के कुछ वक्त बाद ही राजेंद्र का कार आकर उनके घर के बहार रुकता हैं। राजेंद्र अंदर आकर बोला….क्या हुआ महेश बाबू अपने मुझे जल्दी जल्दी आने को क्यों कहा।

महेश…आप बैठिए फिर बात करते हैं। कमला बेटा जाओ चाय नाश्ते की व्यवस्था करो।

कमला के साथ साथ मनोरमा भी कीचन की ओर चल दिया फिर महेश फोन पर हुआ किस्सा राजेंद्र को बता देता हैं। सुनकर राजेंद्र बोला…उनकी इतनी मजाल जो फोन पर धमकी दे रहे हैं। अब पानी सिर से ऊपर चला गया उनका कुछ न कुछ बंदोबस्त करना होगा। आप मेरे साथ चलिए थाने में मामला दर्ज करवा कर आते है

महेश...राजा जी थाने जाने की जरूरत नहीं हैं यहां के SSP साहब से मेरा बहुत अच्छा रिश्ता हैं मैं फोन कर उन्हें बुला लेते हूं।

महेश फिर से एक फोन SSP साहब को कर दिया । कुछ वक्त में एक पुलिस की गाड़ी आकार रूका। SSP साहब अपने साथ आए कुछ पुलिस वालो के साथ अंदर आए। राजेंद्र को देखकर नमस्कार किया फिर बैठकर बोला…कहिए महेश बाबू अपने मुझे कैसे याद किया बिटिया की शादी को अभी एक सप्ताह हैं अपने इतनी जल्दी मुझे मेहमान दारी में बुला लिया।

महेश...SSP साहब मेहमन दरी में आप'को बुलाने की आवश्कता कब से पड़ गया हैं। आप तो मेरे अपने है। जब चाहो तब आ जाओ आप'को रोका किसने हैं। आज तो कुछ विशेष काम से आप'को याद किया गया।

SSP…ऐसा कौन सा विशेष काम आ गया जो आप मुझे शीघ्रता से आने को कहा कोई जटिल मसला जान पड़ता हैं नहीं तो आप मुझे इतनी जल्दी नहीं बुलाते।

महेश…SSP साहब आप तो जानते ही हैं कमला की शादी राजा जी के बेटे के साथ तय हुआ हैं। अभी कुछ दिनों पीछे कुछ लोगों ने साजिश के तहत राजी जी के बेटे के खिलाफ अनाप शनाप बोल कर मेरा दिमाग भ्रष्ट कर दिया था। मैं उनके बिछाए जाल में फांस भी गया था फिर रिश्ता थोड़ कर आ गया था। जब घर आया तब कमला और मनोरमा न मुझे समझाया तब जाकर मुझे समझ आया ये किसी की चाल हैं। जैसे तैसे मान मुटाव दूर कर हम फिर से शादी की तैयारी करने लगें थे की आज किसी ने फ़ोन पर मुझे शादी तोडने को कह रहे थे। शादी नहीं टूटा तो वो मेरे परिवार को जान से मर देंगे ऐसा धमकी दे रहें थे।

SSP...जहां तक मैं समझ पा रहा हूं ये कोई साधारण मसला नहीं हैं। साधारण मसला होता तो कोई बार बार शादी तुड़वाने का प्रयास क्यों करता। हों सकता हैं महेश जी आप'का कोई दुश्मन हों या कोई ऐसा जो चाहता हों कमला बिटिया की शादी रघु जी से न हों।

महेश...SSP साहब मेरा किसी के साथ कोई दुश्मनी नहीं हैं जो शादी तुड़वाना चाहते हैं उन्हें कमला की शादी होने से कोई दिक्कत नहीं हैं उन्हें दिक्कत हैं रघु जी की शादी से, राजा जी अब आगे का किस्सा आप बताए तो बेहतर होगा।

SSP...राजा जी जो भी हैं आप खुल कर बताओ तभी मैं इस मसले के तह तक पहुंच सकता हूं। जैसा महेश जी कह रहे हैं इससे तो लगता है जो भी हों रहा सब आप'के बेटे से जुड़ा हैं।

राजेंद्र….SSP साहब आप'का कहना सही हैं जो भी हों रहा है वो रघु से ही जुड़ा हुआ हैं। ये सब तभी से शुरू हुआ है जब से हम रघु के लिए रिश्ता ढूंढना शुरू किया था। हम जो भी लड़की देखते, न जाने कौन लड़की वालो को रघु के बारे में गलत सालात बोलते फिर वे उनका कहना मानकर रिश्ता करने से मना कर देते इस बार भी वैसा ही हुआ मै समझ नहीं पा रहा हूं कौन है जो ऐसा कर रहा हैं।

SSP... राजा जी आप मेरे बातों को गलत न लेना ऐसा भी तो हों सकता हैं रघु जी का किसी लड़की के साथ कोई संबंध हों इसलिए ऐसा किया जा रहा हों। या फिर ऐसा भी कोई हों सकता हैं किसी को आप'के अपर संपति पाने का लालच हों और वो अपने बेटी की शादी आप'के बेटे से कराकर सभी संपत्ति को हड़पना चाहते हों।

राजेंद्र…SSP साहब मेरे बेटे का अन्य किसी लडकी के साथ कोई संबंध नहीं हैं। शायद जो कुछ भी हों रहा हैं सब हमारे संपति को लेकर हों रहा होगा।

SSP…ऐसा कोई हैं जिस पर आप'को शक हों। ऐसा कुछ अगर है तो आप मुझे खुल कर बता सकते हैं।

राजेंद्र…ऐसा तो कोई हैं नहीं लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे खास खास लोग गायब होते जा रहे हैं। आप तो अच्छे से जानते है राज परिवार से हैं और अपर संपति हैं ऐसे में कोई भी मेरे खिलाफ षडियंत्र कर सकते हैं इसलिए मैंने कुछ गुप्तचर रख रखे थे लेकिन एक एक करके सभी गायब हों गए है मैंने अपनी ओर से बहुत खोज बिन किया लेकिन कोई पता नहीं लगा पाया।

SSP... ये तो बहुत गंभीर मसला हैं ऐसा हों रहा था तो आप'को बहुत पहले शिकायत दर्ज करवाना चाहिएं था। लेकिन अपने छुपाया इसका मतलब ऐसा कुछ हैं जो आप छुपना चाहते हों, अगर ऐसा कुछ हैं तो आप मुझे बता सकते हैं। मैं अपने तक ही रखूंगा।

राजेंद्र... जो हैं मैंने आप'को सभी कुछ बता दिया कुछ नहीं छुपाया अब आप ही देखो आप किया कर सकते हों।

SSP... मैं ज्यादा जोर नहीं डालूंगा क्योंकि मैं जनता हूं राज परिवार के बहुत से मसलो को गुप्त रखा जाता हैं फिर भी अपने जितना बताया हैं मै उसी आधार पर छान बीन शुरू करता हैं। महेश जी फिर से दुबारा अगर फ़ोन आता हैं तो आप तुरंत ही मुझसे संपर्क करना और हां कमला बेटी को अकेले कहीं भी जानें मत देना और आप राजा जी रघु जी को भी अकेले जानें मत देना जहां तक मुझे लगता हैं ये लोग बौखला गए हैं। आगे कुछ भी कर सकते हैं।

दोनों ने SSP साहब की बातों पर सहमति जाता दिया फिर SSP साहब के साथ आए हुए पुलिस वालो ने चार्ज शीट दर्ज किया। चार्ज शीट दर्ज करने के बाद मामले के तह तक जल्दी से पहुंचने का आश्वासन देकर SSP साहब चलते बने। SSP साहब के जाने के बाद राजेंद्र और महेश में कुछ क्षण तक ओर बात चीत हुआ। जब राजेंद्र ने जाने की आज्ञा मांग तब महेश जी उन्हें खाना खाकर ही जानें को कहा। क्योंकि वक्त रात के खाने का हों गया था। राजेंद्र माना करने लगें लेकिन महेश के बार बार कहने पर राजेंद्र मान गए। खाना पीना करने के बाद राजेंद्र घर को चल दिया।

इधर सुरभि राजेंद्र के लेट होने के करण चिंतित थीं क्योंकि राजेंद्र जाते वक्त बता कर नहीं गया था जा कहा रहा हैं। सुरभि को चिन्तित देख रघु बोला... मां कुछ चिन्तित दिखाई दे रहे हों बात किया हैं।

पुष्पा... मां बताओ न बात किया हैं।

रमन... रानी मां आप किस बात को लेकर इतने चिंता में हों।

सुरभि...ये बिना बताए कही गए हैं। उनके गए हुए बहुत देर हों गया हैं। इसलिए मै चिन्तित हूं। न जाने कहा रहा गए अभी तक आए नहीं।

सुरभि की बाते सुन पुष्पा को खुराफात सूजा इसलिए बोली... अरे मां कब तक पापा को अपने पल्लू से बन्द कर रखना चाहती हों। उन्हे भी थोडी आजादी दो गए होंगे कहीं आ जाएंगे।

पुष्पा कहकर मुस्कुरा दिया। पुष्पा को मुस्कुराते देख सुरभि भी मुस्कुरा दिया मां को मुस्कुराते देख पुष्पा बोली...अब लग रही हो आप पुष्पा की मां, आप'के खिले चेहरे पर टेंशन अच्छा नहीं लगता ऐसे ही मुस्कुराती रहा करो।

सुरभि उठकर पुष्पा के पास गई पुष्पा का सिर सहलाते हुए बोली... मेरी बेटी कहती है तो मैं ऐसे ही खिलखिलाती रहूंगी। तू भी अपने ये नटखट पान हमेशा बरकरार रखना।

रमन… कर दिया न अपने बेड़ा गर्ग रानी मां इस नटखट ने अपना नटखट पान बरकरार रखा तो इसके नटखट पान का शिखर कोई बने न बने मैं जरूर बनूंगा और सजा भुगतते भुगतते मेरा चाल चलन हमेशा के लिए टेडा हों जाएगा।

रमन के बातों से सभी हंस दिए। कुछ वक्त तक ओर तीनों बातों में मगन रहे फिर डिनर का वक्त हों गया। तो सभी खाना खाकर अपने अपने रूम में चले गए। सुरभि बैठक में राजेंद्र के इंतेजार में बैठी रहती हैं। कुछ क्षण प्रतीक्षा करने के बाद राजेंद्र घर पहुंचता हैं। पहुंचते ही सुरभि का सवाल जवाब शुरू हों गया।

सुरभि...आप बिना बताए कहा चले गए थे। गए तो गए पर इतना देर क्यों लगा दिया? मुझे कितनी चिंता हों रही थीं।

राजेंद्र... माफ करना सुरभि बिना कुछ बताए ही चला गया बात ही कुछ ऐसी थी। महेश बाबू ने बुलाया था।

सुरभि...Oooo आप'को बताकर जाना चाहिए था। जान सकता हूं महेश बाबू ने क्यों बुलाया था।

महेश ने क्यों बुलाया था वहा क्या क्या बाते हुआ। राजेंद्र ने सभी बाते सुरभि को बता दिया। सभी बाते सुनकर सुरभि बोली...आज अपने सही किया जो SSP साहब को बता दिया लेकिन अपने अधूरा क्यों बताया सभी कुछ बता देते किस कारण इतना कुछ हो रहा हैं।

राजेंद्र…कैसी बाते करते हों गुप्त संपति की बाते मैं उन्हें कैसे बताता जिस पर सिर्फ जनता का अधिकार हैं। उन्हे बता देता तो हो सकता हैं यह बात वो अपने आला अधिकारियों को बता देते। उनसे सरकार तक पहुंच जाता फिर सरकार हम पर ही कानूनी कारवाई करते और संपति को जप्त कर लेते फिर होता ये की सभी संपति जिस पर जनता का अधिकार हैं वो जनता तक न पहुंचकर भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं के पास पहुंच जाता। इसलिए मै गुप्त संपति की बात छुपा कर रखा।

सुरभि... मैं समझ रहा हूं लेकिन इस संपति के लिए हमें कितना कुछ झेलना पड़ रहा हैं आप खुद ही सोचो ओर न जाने कौन कौन से दुश्मन पैदा हों गए हैं। मैं तो कहता हूं आप इस गुप्त संपति का राज सरकार को बता दो नहीं तो एक दिन ये गुप्त संपति हमारे परिवार को छिन्न बिन्न कर देगा।

राजेंद्र…मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता मेरे पूर्वज ने हमेशा आम जनता के बारे में सोचा हैं उनके बेहतर भविष्य की कामना किया हैं। उन्होंने यह जिम्मेदारी मुझे दिया हैं। जब तक सभी गुप्त संपत्ति जनता पर खर्च नहीं हों जाता तब तक मुझे संपति की रक्षा करना होगा और जनता की भलाई करने में खर्च करते रहना होगा।

सुरभि... जैसा आप ठीक समझे। आप हाथ मुंह धोकर आइए मैं खाना लगवाती हूं।

राजेंद्र…सुरभि मैं महेश बाबू के घर से खाकर आया हूं। तुम खा लो।

सुरभि के खाना खाने के बाद दोनों अपने अपने कमरे में चले जाते हैं।

इधर दर्जलिंग में सुकन्या और रावण के के बीच मन मुटाव जारी था। रावण ने सुकन्या को मनाने की जी तोड़ प्रयत्न किया लेकिन सुकन्या मानने को तैयार ही न हों रहीं थीं। अगले दिन सुबह रावण सुकन्या और अपश्यु साथ में नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद अपश्यु जाने लगा तब सुकन्या रोकते हुए बोली... अपश्यु कहा जा रहे हों जाओ जाकर तैयार होकर आओ हम कलकत्ता जाएंगे।

अपश्यु…मां आज ही क्यों एक दो दिन बाद चलते हैं शादी में तो अभी कई दिन बचे है।

रावण...हां सुकन्या इतनी जल्दी भी किया है दो तीन दिन ओर रुख जाओ तब चलते है। फिर मान में अभी गया तो मैं अपना काम कैसे अंजाम दे पाऊंगा उन लोगो ने फ़ोन भी तो नहीं किया न जाने किया हुआ वो अपना काम कर पाए या नहीं।

सुकन्या... आप को जाने के लिए कौन कह रहा है मैं तो आप'से कुछ पुछा भी नहीं आप'को जब मान करे तब जाना। फिर अपश्यु से तूझे एक बार में समझ नहीं आता बड़े भाई की शादी हैं मदद करने के जगह दिन भर घूमता रहेगा। तू आज ही मेरे साथ चलेगा मतलब चलेगा।

अपश्यु मन में...मां को कुछ भी करके आज का दिन रोकना पड़ेगा आज ही तो गांव से उस लङकी को उठाना हैं मै चला गया तो फिर ही शायद मौका मिले नहीं नहीं मैं ऐसा होने नहीं दे सकता मुझे कुछ भी करके मां को रोकना ही होगा।

अपश्यु न हिला न डुला वो तो मन में ही बात करने में मस्त था। अपश्यु को सोच में गुम देख सुकन्या बोली... किस सोचे में घूम हैं जा जाकर तैयार होकर आ ।

अपश्यु... मां हम कल चले चलेंगे आज मुझे बहुत जरूरी काम है कल पक्का चलूंगा।

सुकन्या... कौन सा तू अपने बाप का बिजनस देख रहा है जो तूझे जरूरी काम करना हैं जा जाकर तैयार होकर आ।

अपश्यु... मां सुनो तो….

सुकन्या बिना बात पूरी सुने गुस्से में बोली... तू एक बार कहने से सुनता क्यों नहीं जब देखो टाला मटोली करता रहेगा तुझसे अच्छा तो रघु हैं उसे एक बार कहते ही बिना न नुकर के मान लेता हैं जा जाकर तैयार हों जा नहीं तो ऐसे ही चल तैयार होने की जरूरत नहीं हैं।

इतना कहकर सुकन्या रूम को चल दिया रावण भी उसके पीछे पीछे चल दिया। रघु की तारीफ मां के मुंह से सुन अपश्यु बोला...इस श्रवण कुमार के बच्चे ने आज मरवा दिया अच्छा खासा आज एक मस्त फूल को मसलने का प्लान बनया था इस श्रवण कुमार ने मेरे सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। चल बेटा अपश्यु मां की बात मान ले नहीं तो मां पापा की तरह मुझसे भी नाराज हों जाएंगे मां मुझसे नाराज़ हों गया तो मैं उनकी बे रूखी बर्दास्त नहीं कर पाऊंगा। एक लङकी के लिए मां को नाराज करना सही नहीं होगा ऐसी 100 लड़की मां पर कुर्बान हैं।

कुछ वक्त में सुकन्या तैयार होकर आ गई। सुकन्या के साथ साथ रावण भी तैयार होकर आ गया। अपश्यु के आते ही तीनों बहार को चल दिये। ड्राइवर जिसे पहले ही सुकन्या ने कार निकलने को कह दिया था। वो कार में बैठे इनका wait कर रहे थे। रावण आगे जाकर कार में बैठने लगा। रावण को बैठते देख सुकन्या बोली…आप क्यों बैठ रहे हो आप तो दो तीन दिन बाद जाने वाले थे।

रावण... तुम जा रहीं हों तो मैं यह अकेले क्या करूंगा मेरा तुम्हारे बिना मन नहीं लगेगा।

इसके आगे सुकन्या कुछ नही बोली रावण पीछे बैठ रहा था तो सुकन्या ने रावण को आगे की सीट पर बैठने को कहा। बिना न नुकार के रावण आगे बैठ गया। सुकन्या और अपश्यु के बैठते ही ड्राइवर कार को आगे बडा दिया। विंकट जो पल पल अपश्यु के पीछे छाए की तरह लगा रहता था अपश्यु को मां बाप के साथ जाते हुए देख लिया। अपश्यु जा कहा रहा है ये जानें के लिए गेट में खड़े दरबान से पुछ तो दरबान ने बता दिया। सुनते ही विकट चल दिया और जाते हुए बोला...जल्दी से उस्ताद को खबर करना होगा। अपश्यु कलकत्ता गया हैं कुछ दिन बाद वापस आएगा।


आज के लिए इतना ही आगे की कहनी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
wonderful update. kuch bure log apna kam nikalne ke liye chhal aur bal dono ka prayog karte he. chhal se mahes ek baar fans chuka tha, natija bhi dekh chuka tha, isliye wo satark tha age kisi aisi baaton me na fase. chhal se plan ko kamyaab hota dekh bal ka prayog kiya lekin wo log bhul gaye ki khatte aam ek baar hi bik sakte hei bar bar nahi. mahes ne jamke class laga di dhamki dene wale ko. badhte kahani ke sath apsyu ke kuch ache gun bhi dekhne ko mil rhe hei.. Calcutta wale ghar ho ya darjeeling wali haweli pushpa ki har hukum sar aankho pe lete hai sabhi.
 
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Update - 29


शादी में सात दिन बचे थे ऐसे में दोनों ओर से सभी तैयारी को रिचेक किया जा रहा था। किसी भी सामान की कमी तो नहीं रहा गया। कोई ऐसा तो नहीं बचा जिस तक निमंत्रण न पहुंचा हों। महेश दिन भर इसी में ही उलझा हुआ था। शाम के वक्त महेश चाय की चुस्कियां ले रहा था । उसी वक्त घर में रखें टेलिफोन बाबू ने आवाज दिया आकर मुझे चुप कराओ नहीं तो सिर में दर्द कर दुंगा। महेश जी झट पट उठे फिर टेलिफोन के रिसीवर को उठकर टेलीफोन का चीखना चिल्लाना बंद किया। रिसीवर कान से लगाकर बोला…. कौन हों महोदय जो मेरे घर में शान्त बैठे टेलीफोन को खटखटा रहे हो।

"जी आप महेश बाबू बोल रहे हैं"

महेश...जी लोग तो कहते हैं मैं ही महेश बाबू हूं। आप को मुझ'से किया काम था।

"जी काम कुछ खास नहीं सुना था आप अपने लडकी की शादी राजेंद्र प्रताप के लडके के साथ कर रहे हैं। क्या मैं सही सुना था?"

महेश... जी अपने बिलकुल ठीक सुना इससे आप'को कोई आपत्ति हैं।

"जी आपत्ति है तभी तो आप'को फ़ोन किया ।"

आपत्ति की बात सुनकर महेश का माथा ठनका कही फिर से शादी तुड़वाने के लिए फोन तो नहीं किया गया। ये बात दिमाग में आते ही महेश मन ही मन बोला... पहले तो तुम लोग इसलिए कामियाब हों गए थे क्योंकि मुझे सच्चाई पाता नहीं थीं लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। जारा सुनूं तो ये शुभचिंतक कहना किया चाहते हैं। साला जब से बेटी की शादी तय हुआ हैं। तब से मेरा भला चाहने वाले बढ़ चढ़कर आगे आ रहे हैं। आए हों तो आज प्रसाद भी लेते जाना आखिर भंडारे में आए हो, प्रसाद न मिले ऐसा कभी हुआ हैं।

महेश…महाशय आप'को आपत्ति किस बात की हैं। मेरे बेटी की शादी हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं या राजा जी के बेटे से हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं।

"आप की बेटी की शादी हों रहा हैं इससे मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं लेकिन जिससे शादी हों रहा हैं जिस वंश में शादी हों रहा हैं उससे मुझेआपत्ति हैं।"

ये बात सुनते ही महेश का पारा चढ़ गया और भड़कते हुए बोला... मेरी बेटी हैं उसकी शादी जिस भी घर में कारवाऊ तू कौन होता है आपत्ति जताते वाला हरमखोरो पहली चल सफल नहीं हुआ तो अब दूसरा पैंतरा अजमाने लगे अभी सामने होता तो तुझे गोली मर देता। ऐसी जगह मरता तू अफसोस करता मै महेश के सामने क्यों आया।

"महेश तेरी हिम्मत कैसे हुआ मुझे हरमखोर बोलने की तू मुझे गोली मरेगा मुझे तू जनता भी है मैं कौन हूं।

महेश…चल बता तू किस गंदी नाली का कीड़ा हैं बता तू कितने बाप की पैदाइश हैं। बता तू कौन से गटर में पला बडा हुआ।

"महेश तू जुबान को लगाम दे नहीं तो अच्छा नहीं होगा।"

महेश...क्यों रे सुलग गया सुलगनी भी चाहिएं सालो तुम लोग दल बनाकर राजेंद्र बाबू के बेटे की शादी तुड़वाने के लिए न जानें कौन कौन से लांछन उस भले मानुष के बेटे पर लगाया। अब तुम पर लांछन लगा तो तुम्हें बुरा लग गया सोचो तुम गंदे नाली के कीड़ों को कीड़ा बोला तो तुम्हें इतना बुरा लगा। उस भले मानुष को कितना बुरा लगा जब तुम लोगों ने उनके बेदाग बेटे पर इतने लांछन लगाया।

"ओ तो तुझे पता चल गया ये तो अच्छी बात हैं अब कान खोल कर सुन ले शादी तुड़वा दे नहीं तो तेरे साथ अच्छा नहीं होगा।"

महेश…शादी तो अब टूटने से रहीं तुझे जो करना हैं कर ले और एक बात सुन तुझे भी स्पेशली दावत देता हूं आकर झूठे बर्तन चाट कर अपना पेट भर लेना।"

"अजीब बेज्जती हैं मै तुझे धमका रहा हूं डरने के जगह तू मुझे दावत दे रहा हैं। तूने मेरी बहुत बेज्जती कर लिया अब कान खोल कर सुन ले रिश्ता तोड़ दे नहीं तो तू अपना और अपने परिवार वालों के जान से हाथ धो बैठेगा।"

महेश…ओ तो ये बात हैं ठीक हैं तुझे जो करना हैं कर लेना मैं भी जमींदार का बेटा हूं देखू तो तू कितना बडा गुंडा हैं। सुन वे शादी तो टूटने से रही तू आ जाना अपने दल बल के साथ मैं महेश तुम सब की पहले अच्छे से खातिर करूंगा फिर बेटी का कन्या दान करूंगा।

सामने वाला सोचा था धमकी देने से महेश डर जायेगा लेकिन महेश डरने के जगह उसे ही धमका रहा था। अंत में खुद को जमींदार का बेटा बोलने से सामने वाला खुद ही डर गया और फोन काट दिया। फोन काटने के बाद महेश बोला…सालो तुम ने सोए हुए जमींदार धर्मपाल के बेटे को फिर से जगा दिया। आना सामने इतना लठ बजूंगा गिनना भुल जाओगे।

mahesh jis tarah gande nali ka kida bol raha tha ek pal ke liye laga ke kahi Naina ji ke comments to nhi padh raha hu . mahes ne naina ji ki nakal maar li :lol:

(पाठकों यह एक बात जानने का हैं। जैसा की माने परिचय में बताया था महेश के बाप दादा जमींदार थे। उनके जमींदारी विद्रोहियों और अंग्रेजो ने छीन लिया था। बस महेश के पिता का नाम नहीं बताया था। जो यहां बता रहा हूं। ताकि किसी के मन में कोई शंका न रहें।)

महेश बातो के दौरान ज्यादा तेज आवाज में बात कर रहा था। इसलिए घर में काम करने वाले नौकर , कमला और मनोरमा वहा आ गए। फोन रखते ही मनोरमा बोली…आप किसपे इतना भड़क रहे थें।

कमला... हां पापा कौन था?

महेश...कौन होगा उन्हीं के दल से थे जिन्होंने रघु जी के बारे में गलत सलत बोलकर मेरा बुद्धि भ्रष्ट कर दिया था। अब फोन करके धमका रहे थें।

मनोरमा & कमला..kiyaaa धमका रहें थे।

महेश… हां धमका रहें थे सोचा होगा कोई ऐरा गेरा होगा। धमकाऊंगा तो डर कर फिर से शादी तुड़वा देगा। लेकिन ये लोग भुल गए महेश उनका भी बाप हैं। मैं जमींदार धर्मपाल का बेटा हूं जो कुछ दिनों के लिए सो गया था लेकिन अब जाग चुका हैं।

मनोरमा... सुनिए आप ऐसा वैसा कुछ न करना इसी जमीदारी ने हमसे हमारा पूरा परिवार छीन लिया मुझ'से मेरा बेटा छीन लिया दुबारा ऐसा कुछ हुआ तो मैं फिर से एक ओर सदमा बर्दास्त नहीं कर पाऊंगी।

मनोरमा बीती बातों को भूल चुकी थी। एक बार फिर से याद करते हुए अधीर हों गईं। मनोरमा को अधीर होते देख महेश बोला…मनोरमा संभालो खुद को उन बातों को याद करके मुझे भी पीढ़ा होता हैं। उस वक्त मैं पास नहीं था इसलिए उन्होंने छल से मेरे पूरे परिवार का कत्ल कर दिया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं ऐसा होने नहीं दुंगा।

कमला...पापा किसने किया था हमारे परिवार का कत्ल कौन थे वो लोग।

महेश…. बेटा ये समय सही नहीं हैं उन दुखद पालो को याद करने का अभी खुशी मानने का वक्त हैं तो खुशी मनाते हैं। मनोरमा तुम भी संभालो खुद को ये समय नही है उन पालो को याद करने का, बीती बातों को याद करके रोने से जो बिछड़ गए हैं वो वापस नहीं आ जाएंगे।

मनोरमा…आप का कहना ठीक हैं मै आप'के जैसा मजबूत ह्रदय वाली नहीं हूं। वो पल याद आता है तो मेरा ह्रदय पीड़ा से भरा जाता हैं। मैने एक पल में मां बाप सास ससुर और बेटा सभी को खो दिया। मेरा बसा बसाया संसार पल भार में छिन्न भिन्न हों गया।

ये कहकर मनोरमा सुबक सबका कर रोने लग गई। कमला मां के पास आकार मां को चुप करती हैं। कुछ क्षण सुबकने के बाद मनोरमा चुप हों गई। तब महेश राजेंद्र को फोन कर जल्दी से आने को कहते हैं। फोन करने के कुछ वक्त बाद ही राजेंद्र का कार आकर उनके घर के बहार रुकता हैं। राजेंद्र अंदर आकर बोला….क्या हुआ महेश बाबू अपने मुझे जल्दी जल्दी आने को क्यों कहा।

महेश…आप बैठिए फिर बात करते हैं। कमला बेटा जाओ चाय नाश्ते की व्यवस्था करो।

कमला के साथ साथ मनोरमा भी कीचन की ओर चल दिया फिर महेश फोन पर हुआ किस्सा राजेंद्र को बता देता हैं। सुनकर राजेंद्र बोला…उनकी इतनी मजाल जो फोन पर धमकी दे रहे हैं। अब पानी सिर से ऊपर चला गया उनका कुछ न कुछ बंदोबस्त करना होगा। आप मेरे साथ चलिए थाने में मामला दर्ज करवा कर आते है

महेश...राजा जी थाने जाने की जरूरत नहीं हैं यहां के SSP साहब से मेरा बहुत अच्छा रिश्ता हैं मैं फोन कर उन्हें बुला लेते हूं।

महेश फिर से एक फोन SSP साहब को कर दिया । कुछ वक्त में एक पुलिस की गाड़ी आकार रूका। SSP साहब अपने साथ आए कुछ पुलिस वालो के साथ अंदर आए। राजेंद्र को देखकर नमस्कार किया फिर बैठकर बोला…कहिए महेश बाबू अपने मुझे कैसे याद किया बिटिया की शादी को अभी एक सप्ताह हैं अपने इतनी जल्दी मुझे मेहमान दारी में बुला लिया।

महेश...SSP साहब मेहमन दरी में आप'को बुलाने की आवश्कता कब से पड़ गया हैं। आप तो मेरे अपने है। जब चाहो तब आ जाओ आप'को रोका किसने हैं। आज तो कुछ विशेष काम से आप'को याद किया गया।

SSP…ऐसा कौन सा विशेष काम आ गया जो आप मुझे शीघ्रता से आने को कहा कोई जटिल मसला जान पड़ता हैं नहीं तो आप मुझे इतनी जल्दी नहीं बुलाते।

महेश…SSP साहब आप तो जानते ही हैं कमला की शादी राजा जी के बेटे के साथ तय हुआ हैं। अभी कुछ दिनों पीछे कुछ लोगों ने साजिश के तहत राजी जी के बेटे के खिलाफ अनाप शनाप बोल कर मेरा दिमाग भ्रष्ट कर दिया था। मैं उनके बिछाए जाल में फांस भी गया था फिर रिश्ता थोड़ कर आ गया था। जब घर आया तब कमला और मनोरमा न मुझे समझाया तब जाकर मुझे समझ आया ये किसी की चाल हैं। जैसे तैसे मान मुटाव दूर कर हम फिर से शादी की तैयारी करने लगें थे की आज किसी ने फ़ोन पर मुझे शादी तोडने को कह रहे थे। शादी नहीं टूटा तो वो मेरे परिवार को जान से मर देंगे ऐसा धमकी दे रहें थे।

SSP...जहां तक मैं समझ पा रहा हूं ये कोई साधारण मसला नहीं हैं। साधारण मसला होता तो कोई बार बार शादी तुड़वाने का प्रयास क्यों करता। हों सकता हैं महेश जी आप'का कोई दुश्मन हों या कोई ऐसा जो चाहता हों कमला बिटिया की शादी रघु जी से न हों।

महेश...SSP साहब मेरा किसी के साथ कोई दुश्मनी नहीं हैं जो शादी तुड़वाना चाहते हैं उन्हें कमला की शादी होने से कोई दिक्कत नहीं हैं उन्हें दिक्कत हैं रघु जी की शादी से, राजा जी अब आगे का किस्सा आप बताए तो बेहतर होगा।

SSP...राजा जी जो भी हैं आप खुल कर बताओ तभी मैं इस मसले के तह तक पहुंच सकता हूं। जैसा महेश जी कह रहे हैं इससे तो लगता है जो भी हों रहा सब आप'के बेटे से जुड़ा हैं।

राजेंद्र….SSP साहब आप'का कहना सही हैं जो भी हों रहा है वो रघु से ही जुड़ा हुआ हैं। ये सब तभी से शुरू हुआ है जब से हम रघु के लिए रिश्ता ढूंढना शुरू किया था। हम जो भी लड़की देखते, न जाने कौन लड़की वालो को रघु के बारे में गलत सालात बोलते फिर वे उनका कहना मानकर रिश्ता करने से मना कर देते इस बार भी वैसा ही हुआ मै समझ नहीं पा रहा हूं कौन है जो ऐसा कर रहा हैं।

SSP... राजा जी आप मेरे बातों को गलत न लेना ऐसा भी तो हों सकता हैं रघु जी का किसी लड़की के साथ कोई संबंध हों इसलिए ऐसा किया जा रहा हों। या फिर ऐसा भी कोई हों सकता हैं किसी को आप'के अपर संपति पाने का लालच हों और वो अपने बेटी की शादी आप'के बेटे से कराकर सभी संपत्ति को हड़पना चाहते हों।

राजेंद्र…SSP साहब मेरे बेटे का अन्य किसी लडकी के साथ कोई संबंध नहीं हैं। शायद जो कुछ भी हों रहा हैं सब हमारे संपति को लेकर हों रहा होगा।

SSP…ऐसा कोई हैं जिस पर आप'को शक हों। ऐसा कुछ अगर है तो आप मुझे खुल कर बता सकते हैं।

राजेंद्र…ऐसा तो कोई हैं नहीं लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे खास खास लोग गायब होते जा रहे हैं। आप तो अच्छे से जानते है राज परिवार से हैं और अपर संपति हैं ऐसे में कोई भी मेरे खिलाफ षडियंत्र कर सकते हैं इसलिए मैंने कुछ गुप्तचर रख रखे थे लेकिन एक एक करके सभी गायब हों गए है मैंने अपनी ओर से बहुत खोज बिन किया लेकिन कोई पता नहीं लगा पाया।

SSP... ये तो बहुत गंभीर मसला हैं ऐसा हों रहा था तो आप'को बहुत पहले शिकायत दर्ज करवाना चाहिएं था। लेकिन अपने छुपाया इसका मतलब ऐसा कुछ हैं जो आप छुपना चाहते हों, अगर ऐसा कुछ हैं तो आप मुझे बता सकते हैं। मैं अपने तक ही रखूंगा।

राजेंद्र... जो हैं मैंने आप'को सभी कुछ बता दिया कुछ नहीं छुपाया अब आप ही देखो आप किया कर सकते हों।

SSP... मैं ज्यादा जोर नहीं डालूंगा क्योंकि मैं जनता हूं राज परिवार के बहुत से मसलो को गुप्त रखा जाता हैं फिर भी अपने जितना बताया हैं मै उसी आधार पर छान बीन शुरू करता हैं। महेश जी फिर से दुबारा अगर फ़ोन आता हैं तो आप तुरंत ही मुझसे संपर्क करना और हां कमला बेटी को अकेले कहीं भी जानें मत देना और आप राजा जी रघु जी को भी अकेले जानें मत देना जहां तक मुझे लगता हैं ये लोग बौखला गए हैं। आगे कुछ भी कर सकते हैं।

दोनों ने SSP साहब की बातों पर सहमति जाता दिया फिर SSP साहब के साथ आए हुए पुलिस वालो ने चार्ज शीट दर्ज किया। चार्ज शीट दर्ज करने के बाद मामले के तह तक जल्दी से पहुंचने का आश्वासन देकर SSP साहब चलते बने। SSP साहब के जाने के बाद राजेंद्र और महेश में कुछ क्षण तक ओर बात चीत हुआ। जब राजेंद्र ने जाने की आज्ञा मांग तब महेश जी उन्हें खाना खाकर ही जानें को कहा। क्योंकि वक्त रात के खाने का हों गया था। राजेंद्र माना करने लगें लेकिन महेश के बार बार कहने पर राजेंद्र मान गए। खाना पीना करने के बाद राजेंद्र घर को चल दिया।

इधर सुरभि राजेंद्र के लेट होने के करण चिंतित थीं क्योंकि राजेंद्र जाते वक्त बता कर नहीं गया था जा कहा रहा हैं। सुरभि को चिन्तित देख रघु बोला... मां कुछ चिन्तित दिखाई दे रहे हों बात किया हैं।

पुष्पा... मां बताओ न बात किया हैं।

रमन... रानी मां आप किस बात को लेकर इतने चिंता में हों।

सुरभि...ये बिना बताए कही गए हैं। उनके गए हुए बहुत देर हों गया हैं। इसलिए मै चिन्तित हूं। न जाने कहा रहा गए अभी तक आए नहीं।

सुरभि की बाते सुन पुष्पा को खुराफात सूजा इसलिए बोली... अरे मां कब तक पापा को अपने पल्लू से बन्द कर रखना चाहती हों। उन्हे भी थोडी आजादी दो गए होंगे कहीं आ जाएंगे।

पुष्पा कहकर मुस्कुरा दिया। पुष्पा को मुस्कुराते देख सुरभि भी मुस्कुरा दिया मां को मुस्कुराते देख पुष्पा बोली...अब लग रही हो आप पुष्पा की मां, आप'के खिले चेहरे पर टेंशन अच्छा नहीं लगता ऐसे ही मुस्कुराती रहा करो।

सुरभि उठकर पुष्पा के पास गई पुष्पा का सिर सहलाते हुए बोली... मेरी बेटी कहती है तो मैं ऐसे ही खिलखिलाती रहूंगी। तू भी अपने ये नटखट पान हमेशा बरकरार रखना।

रमन… कर दिया न अपने बेड़ा गर्ग रानी मां इस नटखट ने अपना नटखट पान बरकरार रखा तो इसके नटखट पान का शिखर कोई बने न बने मैं जरूर बनूंगा और सजा भुगतते भुगतते मेरा चाल चलन हमेशा के लिए टेडा हों जाएगा।

रमन के बातों से सभी हंस दिए। कुछ वक्त तक ओर तीनों बातों में मगन रहे फिर डिनर का वक्त हों गया। तो सभी खाना खाकर अपने अपने रूम में चले गए। सुरभि बैठक में राजेंद्र के इंतेजार में बैठी रहती हैं। कुछ क्षण प्रतीक्षा करने के बाद राजेंद्र घर पहुंचता हैं। पहुंचते ही सुरभि का सवाल जवाब शुरू हों गया।

सुरभि...आप बिना बताए कहा चले गए थे। गए तो गए पर इतना देर क्यों लगा दिया? मुझे कितनी चिंता हों रही थीं।

राजेंद्र... माफ करना सुरभि बिना कुछ बताए ही चला गया बात ही कुछ ऐसी थी। महेश बाबू ने बुलाया था।

सुरभि...Oooo आप'को बताकर जाना चाहिए था। जान सकता हूं महेश बाबू ने क्यों बुलाया था।

महेश ने क्यों बुलाया था वहा क्या क्या बाते हुआ। राजेंद्र ने सभी बाते सुरभि को बता दिया। सभी बाते सुनकर सुरभि बोली...आज अपने सही किया जो SSP साहब को बता दिया लेकिन अपने अधूरा क्यों बताया सभी कुछ बता देते किस कारण इतना कुछ हो रहा हैं।

राजेंद्र…कैसी बाते करते हों गुप्त संपति की बाते मैं उन्हें कैसे बताता जिस पर सिर्फ जनता का अधिकार हैं। उन्हे बता देता तो हो सकता हैं यह बात वो अपने आला अधिकारियों को बता देते। उनसे सरकार तक पहुंच जाता फिर सरकार हम पर ही कानूनी कारवाई करते और संपति को जप्त कर लेते फिर होता ये की सभी संपति जिस पर जनता का अधिकार हैं वो जनता तक न पहुंचकर भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं के पास पहुंच जाता। इसलिए मै गुप्त संपति की बात छुपा कर रखा।

सुरभि... मैं समझ रहा हूं लेकिन इस संपति के लिए हमें कितना कुछ झेलना पड़ रहा हैं आप खुद ही सोचो ओर न जाने कौन कौन से दुश्मन पैदा हों गए हैं। मैं तो कहता हूं आप इस गुप्त संपति का राज सरकार को बता दो नहीं तो एक दिन ये गुप्त संपति हमारे परिवार को छिन्न बिन्न कर देगा।

राजेंद्र…मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता मेरे पूर्वज ने हमेशा आम जनता के बारे में सोचा हैं उनके बेहतर भविष्य की कामना किया हैं। उन्होंने यह जिम्मेदारी मुझे दिया हैं। जब तक सभी गुप्त संपत्ति जनता पर खर्च नहीं हों जाता तब तक मुझे संपति की रक्षा करना होगा और जनता की भलाई करने में खर्च करते रहना होगा।

सुरभि... जैसा आप ठीक समझे। आप हाथ मुंह धोकर आइए मैं खाना लगवाती हूं।

राजेंद्र…सुरभि मैं महेश बाबू के घर से खाकर आया हूं। तुम खा लो।

सुरभि के खाना खाने के बाद दोनों अपने अपने कमरे में चले जाते हैं।

इधर दर्जलिंग में सुकन्या और रावण के के बीच मन मुटाव जारी था। रावण ने सुकन्या को मनाने की जी तोड़ प्रयत्न किया लेकिन सुकन्या मानने को तैयार ही न हों रहीं थीं। अगले दिन सुबह रावण सुकन्या और अपश्यु साथ में नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद अपश्यु जाने लगा तब सुकन्या रोकते हुए बोली... अपश्यु कहा जा रहे हों जाओ जाकर तैयार होकर आओ हम कलकत्ता जाएंगे।

अपश्यु…मां आज ही क्यों एक दो दिन बाद चलते हैं शादी में तो अभी कई दिन बचे है।

रावण...हां सुकन्या इतनी जल्दी भी किया है दो तीन दिन ओर रुख जाओ तब चलते है। फिर मान में अभी गया तो मैं अपना काम कैसे अंजाम दे पाऊंगा उन लोगो ने फ़ोन भी तो नहीं किया न जाने किया हुआ वो अपना काम कर पाए या नहीं।

सुकन्या... आप को जाने के लिए कौन कह रहा है मैं तो आप'से कुछ पुछा भी नहीं आप'को जब मान करे तब जाना। फिर अपश्यु से तूझे एक बार में समझ नहीं आता बड़े भाई की शादी हैं मदद करने के जगह दिन भर घूमता रहेगा। तू आज ही मेरे साथ चलेगा मतलब चलेगा।

अपश्यु मन में...मां को कुछ भी करके आज का दिन रोकना पड़ेगा आज ही तो गांव से उस लङकी को उठाना हैं मै चला गया तो फिर ही शायद मौका मिले नहीं नहीं मैं ऐसा होने नहीं दे सकता मुझे कुछ भी करके मां को रोकना ही होगा।

अपश्यु न हिला न डुला वो तो मन में ही बात करने में मस्त था। अपश्यु को सोच में गुम देख सुकन्या बोली... किस सोचे में घूम हैं जा जाकर तैयार होकर आ ।

अपश्यु... मां हम कल चले चलेंगे आज मुझे बहुत जरूरी काम है कल पक्का चलूंगा।

सुकन्या... कौन सा तू अपने बाप का बिजनस देख रहा है जो तूझे जरूरी काम करना हैं जा जाकर तैयार होकर आ।

अपश्यु... मां सुनो तो….

सुकन्या बिना बात पूरी सुने गुस्से में बोली... तू एक बार कहने से सुनता क्यों नहीं जब देखो टाला मटोली करता रहेगा तुझसे अच्छा तो रघु हैं उसे एक बार कहते ही बिना न नुकर के मान लेता हैं जा जाकर तैयार हों जा नहीं तो ऐसे ही चल तैयार होने की जरूरत नहीं हैं।

इतना कहकर सुकन्या रूम को चल दिया रावण भी उसके पीछे पीछे चल दिया। रघु की तारीफ मां के मुंह से सुन अपश्यु बोला...इस श्रवण कुमार के बच्चे ने आज मरवा दिया अच्छा खासा आज एक मस्त फूल को मसलने का प्लान बनया था इस श्रवण कुमार ने मेरे सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। चल बेटा अपश्यु मां की बात मान ले नहीं तो मां पापा की तरह मुझसे भी नाराज हों जाएंगे मां मुझसे नाराज़ हों गया तो मैं उनकी बे रूखी बर्दास्त नहीं कर पाऊंगा। एक लङकी के लिए मां को नाराज करना सही नहीं होगा ऐसी 100 लड़की मां पर कुर्बान हैं।

कुछ वक्त में सुकन्या तैयार होकर आ गई। सुकन्या के साथ साथ रावण भी तैयार होकर आ गया। अपश्यु के आते ही तीनों बहार को चल दिये। ड्राइवर जिसे पहले ही सुकन्या ने कार निकलने को कह दिया था। वो कार में बैठे इनका wait कर रहे थे। रावण आगे जाकर कार में बैठने लगा। रावण को बैठते देख सुकन्या बोली…आप क्यों बैठ रहे हो आप तो दो तीन दिन बाद जाने वाले थे।

रावण... तुम जा रहीं हों तो मैं यह अकेले क्या करूंगा मेरा तुम्हारे बिना मन नहीं लगेगा।

इसके आगे सुकन्या कुछ नही बोली रावण पीछे बैठ रहा था तो सुकन्या ने रावण को आगे की सीट पर बैठने को कहा। बिना न नुकार के रावण आगे बैठ गया। सुकन्या और अपश्यु के बैठते ही ड्राइवर कार को आगे बडा दिया। विंकट जो पल पल अपश्यु के पीछे छाए की तरह लगा रहता था अपश्यु को मां बाप के साथ जाते हुए देख लिया। अपश्यु जा कहा रहा है ये जानें के लिए गेट में खड़े दरबान से पुछ तो दरबान ने बता दिया। सुनते ही विकट चल दिया और जाते हुए बोला...जल्दी से उस्ताद को खबर करना होगा। अपश्यु कलकत्ता गया हैं कुछ दिन बाद वापस आएगा।


आज के लिए इतना ही आगे की कहनी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
to ye shadi todne ki baat police tak pahuch gayi hai. ab aye na maja is khel me bhidu. ab jab phir se dhamki wale call ayega to police call trace karke dhamkiya dene wale ko pakad lega. sayad mahes ka na darne wali khabar ravan tak bhi pahuch jaye. udhar sukanya ke sath apasyu aur ravan bhi aa raha hai kalkatta shadi attend karne.
 
A

Avni

Update - 29


शादी में सात दिन बचे थे ऐसे में दोनों ओर से सभी तैयारी को रिचेक किया जा रहा था। किसी भी सामान की कमी तो नहीं रहा गया। कोई ऐसा तो नहीं बचा जिस तक निमंत्रण न पहुंचा हों। महेश दिन भर इसी में ही उलझा हुआ था। शाम के वक्त महेश चाय की चुस्कियां ले रहा था । उसी वक्त घर में रखें टेलिफोन बाबू ने आवाज दिया आकर मुझे चुप कराओ नहीं तो सिर में दर्द कर दुंगा। महेश जी झट पट उठे फिर टेलिफोन के रिसीवर को उठकर टेलीफोन का चीखना चिल्लाना बंद किया। रिसीवर कान से लगाकर बोला…. कौन हों महोदय जो मेरे घर में शान्त बैठे टेलीफोन को खटखटा रहे हो।

"जी आप महेश बाबू बोल रहे हैं"

महेश...जी लोग तो कहते हैं मैं ही महेश बाबू हूं। आप को मुझ'से किया काम था।

"जी काम कुछ खास नहीं सुना था आप अपने लडकी की शादी राजेंद्र प्रताप के लडके के साथ कर रहे हैं। क्या मैं सही सुना था?"

महेश... जी अपने बिलकुल ठीक सुना इससे आप'को कोई आपत्ति हैं।

"जी आपत्ति है तभी तो आप'को फ़ोन किया ।"

आपत्ति की बात सुनकर महेश का माथा ठनका कही फिर से शादी तुड़वाने के लिए फोन तो नहीं किया गया। ये बात दिमाग में आते ही महेश मन ही मन बोला... पहले तो तुम लोग इसलिए कामियाब हों गए थे क्योंकि मुझे सच्चाई पाता नहीं थीं लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। जारा सुनूं तो ये शुभचिंतक कहना किया चाहते हैं। साला जब से बेटी की शादी तय हुआ हैं। तब से मेरा भला चाहने वाले बढ़ चढ़कर आगे आ रहे हैं। आए हों तो आज प्रसाद भी लेते जाना आखिर भंडारे में आए हो, प्रसाद न मिले ऐसा कभी हुआ हैं।

महेश…महाशय आप'को आपत्ति किस बात की हैं। मेरे बेटी की शादी हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं या राजा जी के बेटे से हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं।

"आप की बेटी की शादी हों रहा हैं इससे मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं लेकिन जिससे शादी हों रहा हैं जिस वंश में शादी हों रहा हैं उससे मुझेआपत्ति हैं।"

ये बात सुनते ही महेश का पारा चढ़ गया और भड़कते हुए बोला... मेरी बेटी हैं उसकी शादी जिस भी घर में कारवाऊ तू कौन होता है आपत्ति जताते वाला हरमखोरो पहली चल सफल नहीं हुआ तो अब दूसरा पैंतरा अजमाने लगे अभी सामने होता तो तुझे गोली मर देता। ऐसी जगह मरता तू अफसोस करता मै महेश के सामने क्यों आया।

"महेश तेरी हिम्मत कैसे हुआ मुझे हरमखोर बोलने की तू मुझे गोली मरेगा मुझे तू जनता भी है मैं कौन हूं।

महेश…चल बता तू किस गंदी नाली का कीड़ा हैं बता तू कितने बाप की पैदाइश हैं। बता तू कौन से गटर में पला बडा हुआ।

"महेश तू जुबान को लगाम दे नहीं तो अच्छा नहीं होगा।"

महेश...क्यों रे सुलग गया सुलगनी भी चाहिएं सालो तुम लोग दल बनाकर राजेंद्र बाबू के बेटे की शादी तुड़वाने के लिए न जानें कौन कौन से लांछन उस भले मानुष के बेटे पर लगाया। अब तुम पर लांछन लगा तो तुम्हें बुरा लग गया सोचो तुम गंदे नाली के कीड़ों को कीड़ा बोला तो तुम्हें इतना बुरा लगा। उस भले मानुष को कितना बुरा लगा जब तुम लोगों ने उनके बेदाग बेटे पर इतने लांछन लगाया।

"ओ तो तुझे पता चल गया ये तो अच्छी बात हैं अब कान खोल कर सुन ले शादी तुड़वा दे नहीं तो तेरे साथ अच्छा नहीं होगा।"

महेश…शादी तो अब टूटने से रहीं तुझे जो करना हैं कर ले और एक बात सुन तुझे भी स्पेशली दावत देता हूं आकर झूठे बर्तन चाट कर अपना पेट भर लेना।"

"अजीब बेज्जती हैं मै तुझे धमका रहा हूं डरने के जगह तू मुझे दावत दे रहा हैं। तूने मेरी बहुत बेज्जती कर लिया अब कान खोल कर सुन ले रिश्ता तोड़ दे नहीं तो तू अपना और अपने परिवार वालों के जान से हाथ धो बैठेगा।"

महेश…ओ तो ये बात हैं ठीक हैं तुझे जो करना हैं कर लेना मैं भी जमींदार का बेटा हूं देखू तो तू कितना बडा गुंडा हैं। सुन वे शादी तो टूटने से रही तू आ जाना अपने दल बल के साथ मैं महेश तुम सब की पहले अच्छे से खातिर करूंगा फिर बेटी का कन्या दान करूंगा।

सामने वाला सोचा था धमकी देने से महेश डर जायेगा लेकिन महेश डरने के जगह उसे ही धमका रहा था। अंत में खुद को जमींदार का बेटा बोलने से सामने वाला खुद ही डर गया और फोन काट दिया। फोन काटने के बाद महेश बोला…सालो तुम ने सोए हुए जमींदार धर्मपाल के बेटे को फिर से जगा दिया। आना सामने इतना लठ बजूंगा गिनना भुल जाओगे।

(पाठकों यह एक बात जानने का हैं। जैसा की माने परिचय में बताया था महेश के बाप दादा जमींदार थे। उनके जमींदारी विद्रोहियों और अंग्रेजो ने छीन लिया था। बस महेश के पिता का नाम नहीं बताया था। जो यहां बता रहा हूं। ताकि किसी के मन में कोई शंका न रहें।)

महेश बातो के दौरान ज्यादा तेज आवाज में बात कर रहा था। इसलिए घर में काम करने वाले नौकर , कमला और मनोरमा वहा आ गए। फोन रखते ही मनोरमा बोली…आप किसपे इतना भड़क रहे थें।

कमला... हां पापा कौन था?

महेश...कौन होगा उन्हीं के दल से थे जिन्होंने रघु जी के बारे में गलत सलत बोलकर मेरा बुद्धि भ्रष्ट कर दिया था। अब फोन करके धमका रहे थें।

मनोरमा & कमला..kiyaaa धमका रहें थे।

महेश… हां धमका रहें थे सोचा होगा कोई ऐरा गेरा होगा। धमकाऊंगा तो डर कर फिर से शादी तुड़वा देगा। लेकिन ये लोग भुल गए महेश उनका भी बाप हैं। मैं जमींदार धर्मपाल का बेटा हूं जो कुछ दिनों के लिए सो गया था लेकिन अब जाग चुका हैं।

मनोरमा... सुनिए आप ऐसा वैसा कुछ न करना इसी जमीदारी ने हमसे हमारा पूरा परिवार छीन लिया मुझ'से मेरा बेटा छीन लिया दुबारा ऐसा कुछ हुआ तो मैं फिर से एक ओर सदमा बर्दास्त नहीं कर पाऊंगी।

मनोरमा बीती बातों को भूल चुकी थी। एक बार फिर से याद करते हुए अधीर हों गईं। मनोरमा को अधीर होते देख महेश बोला…मनोरमा संभालो खुद को उन बातों को याद करके मुझे भी पीढ़ा होता हैं। उस वक्त मैं पास नहीं था इसलिए उन्होंने छल से मेरे पूरे परिवार का कत्ल कर दिया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं ऐसा होने नहीं दुंगा।

कमला...पापा किसने किया था हमारे परिवार का कत्ल कौन थे वो लोग।

महेश…. बेटा ये समय सही नहीं हैं उन दुखद पालो को याद करने का अभी खुशी मानने का वक्त हैं तो खुशी मनाते हैं। मनोरमा तुम भी संभालो खुद को ये समय नही है उन पालो को याद करने का, बीती बातों को याद करके रोने से जो बिछड़ गए हैं वो वापस नहीं आ जाएंगे।

मनोरमा…आप का कहना ठीक हैं मै आप'के जैसा मजबूत ह्रदय वाली नहीं हूं। वो पल याद आता है तो मेरा ह्रदय पीड़ा से भरा जाता हैं। मैने एक पल में मां बाप सास ससुर और बेटा सभी को खो दिया। मेरा बसा बसाया संसार पल भार में छिन्न भिन्न हों गया।

ये कहकर मनोरमा सुबक सबका कर रोने लग गई। कमला मां के पास आकार मां को चुप करती हैं। कुछ क्षण सुबकने के बाद मनोरमा चुप हों गई। तब महेश राजेंद्र को फोन कर जल्दी से आने को कहते हैं। फोन करने के कुछ वक्त बाद ही राजेंद्र का कार आकर उनके घर के बहार रुकता हैं। राजेंद्र अंदर आकर बोला….क्या हुआ महेश बाबू अपने मुझे जल्दी जल्दी आने को क्यों कहा।

महेश…आप बैठिए फिर बात करते हैं। कमला बेटा जाओ चाय नाश्ते की व्यवस्था करो।

कमला के साथ साथ मनोरमा भी कीचन की ओर चल दिया फिर महेश फोन पर हुआ किस्सा राजेंद्र को बता देता हैं। सुनकर राजेंद्र बोला…उनकी इतनी मजाल जो फोन पर धमकी दे रहे हैं। अब पानी सिर से ऊपर चला गया उनका कुछ न कुछ बंदोबस्त करना होगा। आप मेरे साथ चलिए थाने में मामला दर्ज करवा कर आते है

महेश...राजा जी थाने जाने की जरूरत नहीं हैं यहां के SSP साहब से मेरा बहुत अच्छा रिश्ता हैं मैं फोन कर उन्हें बुला लेते हूं।

महेश फिर से एक फोन SSP साहब को कर दिया । कुछ वक्त में एक पुलिस की गाड़ी आकार रूका। SSP साहब अपने साथ आए कुछ पुलिस वालो के साथ अंदर आए। राजेंद्र को देखकर नमस्कार किया फिर बैठकर बोला…कहिए महेश बाबू अपने मुझे कैसे याद किया बिटिया की शादी को अभी एक सप्ताह हैं अपने इतनी जल्दी मुझे मेहमान दारी में बुला लिया।

महेश...SSP साहब मेहमन दरी में आप'को बुलाने की आवश्कता कब से पड़ गया हैं। आप तो मेरे अपने है। जब चाहो तब आ जाओ आप'को रोका किसने हैं। आज तो कुछ विशेष काम से आप'को याद किया गया।

SSP…ऐसा कौन सा विशेष काम आ गया जो आप मुझे शीघ्रता से आने को कहा कोई जटिल मसला जान पड़ता हैं नहीं तो आप मुझे इतनी जल्दी नहीं बुलाते।

महेश…SSP साहब आप तो जानते ही हैं कमला की शादी राजा जी के बेटे के साथ तय हुआ हैं। अभी कुछ दिनों पीछे कुछ लोगों ने साजिश के तहत राजी जी के बेटे के खिलाफ अनाप शनाप बोल कर मेरा दिमाग भ्रष्ट कर दिया था। मैं उनके बिछाए जाल में फांस भी गया था फिर रिश्ता थोड़ कर आ गया था। जब घर आया तब कमला और मनोरमा न मुझे समझाया तब जाकर मुझे समझ आया ये किसी की चाल हैं। जैसे तैसे मान मुटाव दूर कर हम फिर से शादी की तैयारी करने लगें थे की आज किसी ने फ़ोन पर मुझे शादी तोडने को कह रहे थे। शादी नहीं टूटा तो वो मेरे परिवार को जान से मर देंगे ऐसा धमकी दे रहें थे।

SSP...जहां तक मैं समझ पा रहा हूं ये कोई साधारण मसला नहीं हैं। साधारण मसला होता तो कोई बार बार शादी तुड़वाने का प्रयास क्यों करता। हों सकता हैं महेश जी आप'का कोई दुश्मन हों या कोई ऐसा जो चाहता हों कमला बिटिया की शादी रघु जी से न हों।

महेश...SSP साहब मेरा किसी के साथ कोई दुश्मनी नहीं हैं जो शादी तुड़वाना चाहते हैं उन्हें कमला की शादी होने से कोई दिक्कत नहीं हैं उन्हें दिक्कत हैं रघु जी की शादी से, राजा जी अब आगे का किस्सा आप बताए तो बेहतर होगा।

SSP...राजा जी जो भी हैं आप खुल कर बताओ तभी मैं इस मसले के तह तक पहुंच सकता हूं। जैसा महेश जी कह रहे हैं इससे तो लगता है जो भी हों रहा सब आप'के बेटे से जुड़ा हैं।

राजेंद्र….SSP साहब आप'का कहना सही हैं जो भी हों रहा है वो रघु से ही जुड़ा हुआ हैं। ये सब तभी से शुरू हुआ है जब से हम रघु के लिए रिश्ता ढूंढना शुरू किया था। हम जो भी लड़की देखते, न जाने कौन लड़की वालो को रघु के बारे में गलत सालात बोलते फिर वे उनका कहना मानकर रिश्ता करने से मना कर देते इस बार भी वैसा ही हुआ मै समझ नहीं पा रहा हूं कौन है जो ऐसा कर रहा हैं।

SSP... राजा जी आप मेरे बातों को गलत न लेना ऐसा भी तो हों सकता हैं रघु जी का किसी लड़की के साथ कोई संबंध हों इसलिए ऐसा किया जा रहा हों। या फिर ऐसा भी कोई हों सकता हैं किसी को आप'के अपर संपति पाने का लालच हों और वो अपने बेटी की शादी आप'के बेटे से कराकर सभी संपत्ति को हड़पना चाहते हों।

राजेंद्र…SSP साहब मेरे बेटे का अन्य किसी लडकी के साथ कोई संबंध नहीं हैं। शायद जो कुछ भी हों रहा हैं सब हमारे संपति को लेकर हों रहा होगा।

SSP…ऐसा कोई हैं जिस पर आप'को शक हों। ऐसा कुछ अगर है तो आप मुझे खुल कर बता सकते हैं।

राजेंद्र…ऐसा तो कोई हैं नहीं लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे खास खास लोग गायब होते जा रहे हैं। आप तो अच्छे से जानते है राज परिवार से हैं और अपर संपति हैं ऐसे में कोई भी मेरे खिलाफ षडियंत्र कर सकते हैं इसलिए मैंने कुछ गुप्तचर रख रखे थे लेकिन एक एक करके सभी गायब हों गए है मैंने अपनी ओर से बहुत खोज बिन किया लेकिन कोई पता नहीं लगा पाया।

SSP... ये तो बहुत गंभीर मसला हैं ऐसा हों रहा था तो आप'को बहुत पहले शिकायत दर्ज करवाना चाहिएं था। लेकिन अपने छुपाया इसका मतलब ऐसा कुछ हैं जो आप छुपना चाहते हों, अगर ऐसा कुछ हैं तो आप मुझे बता सकते हैं। मैं अपने तक ही रखूंगा।

राजेंद्र... जो हैं मैंने आप'को सभी कुछ बता दिया कुछ नहीं छुपाया अब आप ही देखो आप किया कर सकते हों।

SSP... मैं ज्यादा जोर नहीं डालूंगा क्योंकि मैं जनता हूं राज परिवार के बहुत से मसलो को गुप्त रखा जाता हैं फिर भी अपने जितना बताया हैं मै उसी आधार पर छान बीन शुरू करता हैं। महेश जी फिर से दुबारा अगर फ़ोन आता हैं तो आप तुरंत ही मुझसे संपर्क करना और हां कमला बेटी को अकेले कहीं भी जानें मत देना और आप राजा जी रघु जी को भी अकेले जानें मत देना जहां तक मुझे लगता हैं ये लोग बौखला गए हैं। आगे कुछ भी कर सकते हैं।

दोनों ने SSP साहब की बातों पर सहमति जाता दिया फिर SSP साहब के साथ आए हुए पुलिस वालो ने चार्ज शीट दर्ज किया। चार्ज शीट दर्ज करने के बाद मामले के तह तक जल्दी से पहुंचने का आश्वासन देकर SSP साहब चलते बने। SSP साहब के जाने के बाद राजेंद्र और महेश में कुछ क्षण तक ओर बात चीत हुआ। जब राजेंद्र ने जाने की आज्ञा मांग तब महेश जी उन्हें खाना खाकर ही जानें को कहा। क्योंकि वक्त रात के खाने का हों गया था। राजेंद्र माना करने लगें लेकिन महेश के बार बार कहने पर राजेंद्र मान गए। खाना पीना करने के बाद राजेंद्र घर को चल दिया।

इधर सुरभि राजेंद्र के लेट होने के करण चिंतित थीं क्योंकि राजेंद्र जाते वक्त बता कर नहीं गया था जा कहा रहा हैं। सुरभि को चिन्तित देख रघु बोला... मां कुछ चिन्तित दिखाई दे रहे हों बात किया हैं।

पुष्पा... मां बताओ न बात किया हैं।

रमन... रानी मां आप किस बात को लेकर इतने चिंता में हों।

सुरभि...ये बिना बताए कही गए हैं। उनके गए हुए बहुत देर हों गया हैं। इसलिए मै चिन्तित हूं। न जाने कहा रहा गए अभी तक आए नहीं।

सुरभि की बाते सुन पुष्पा को खुराफात सूजा इसलिए बोली... अरे मां कब तक पापा को अपने पल्लू से बन्द कर रखना चाहती हों। उन्हे भी थोडी आजादी दो गए होंगे कहीं आ जाएंगे।

पुष्पा कहकर मुस्कुरा दिया। पुष्पा को मुस्कुराते देख सुरभि भी मुस्कुरा दिया मां को मुस्कुराते देख पुष्पा बोली...अब लग रही हो आप पुष्पा की मां, आप'के खिले चेहरे पर टेंशन अच्छा नहीं लगता ऐसे ही मुस्कुराती रहा करो।

सुरभि उठकर पुष्पा के पास गई पुष्पा का सिर सहलाते हुए बोली... मेरी बेटी कहती है तो मैं ऐसे ही खिलखिलाती रहूंगी। तू भी अपने ये नटखट पान हमेशा बरकरार रखना।

रमन… कर दिया न अपने बेड़ा गर्ग रानी मां इस नटखट ने अपना नटखट पान बरकरार रखा तो इसके नटखट पान का शिखर कोई बने न बने मैं जरूर बनूंगा और सजा भुगतते भुगतते मेरा चाल चलन हमेशा के लिए टेडा हों जाएगा।

रमन के बातों से सभी हंस दिए। कुछ वक्त तक ओर तीनों बातों में मगन रहे फिर डिनर का वक्त हों गया। तो सभी खाना खाकर अपने अपने रूम में चले गए। सुरभि बैठक में राजेंद्र के इंतेजार में बैठी रहती हैं। कुछ क्षण प्रतीक्षा करने के बाद राजेंद्र घर पहुंचता हैं। पहुंचते ही सुरभि का सवाल जवाब शुरू हों गया।

सुरभि...आप बिना बताए कहा चले गए थे। गए तो गए पर इतना देर क्यों लगा दिया? मुझे कितनी चिंता हों रही थीं।

राजेंद्र... माफ करना सुरभि बिना कुछ बताए ही चला गया बात ही कुछ ऐसी थी। महेश बाबू ने बुलाया था।

सुरभि...Oooo आप'को बताकर जाना चाहिए था। जान सकता हूं महेश बाबू ने क्यों बुलाया था।

महेश ने क्यों बुलाया था वहा क्या क्या बाते हुआ। राजेंद्र ने सभी बाते सुरभि को बता दिया। सभी बाते सुनकर सुरभि बोली...आज अपने सही किया जो SSP साहब को बता दिया लेकिन अपने अधूरा क्यों बताया सभी कुछ बता देते किस कारण इतना कुछ हो रहा हैं।

राजेंद्र…कैसी बाते करते हों गुप्त संपति की बाते मैं उन्हें कैसे बताता जिस पर सिर्फ जनता का अधिकार हैं। उन्हे बता देता तो हो सकता हैं यह बात वो अपने आला अधिकारियों को बता देते। उनसे सरकार तक पहुंच जाता फिर सरकार हम पर ही कानूनी कारवाई करते और संपति को जप्त कर लेते फिर होता ये की सभी संपति जिस पर जनता का अधिकार हैं वो जनता तक न पहुंचकर भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं के पास पहुंच जाता। इसलिए मै गुप्त संपति की बात छुपा कर रखा।

सुरभि... मैं समझ रहा हूं लेकिन इस संपति के लिए हमें कितना कुछ झेलना पड़ रहा हैं आप खुद ही सोचो ओर न जाने कौन कौन से दुश्मन पैदा हों गए हैं। मैं तो कहता हूं आप इस गुप्त संपति का राज सरकार को बता दो नहीं तो एक दिन ये गुप्त संपति हमारे परिवार को छिन्न बिन्न कर देगा।

राजेंद्र…मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता मेरे पूर्वज ने हमेशा आम जनता के बारे में सोचा हैं उनके बेहतर भविष्य की कामना किया हैं। उन्होंने यह जिम्मेदारी मुझे दिया हैं। जब तक सभी गुप्त संपत्ति जनता पर खर्च नहीं हों जाता तब तक मुझे संपति की रक्षा करना होगा और जनता की भलाई करने में खर्च करते रहना होगा।

सुरभि... जैसा आप ठीक समझे। आप हाथ मुंह धोकर आइए मैं खाना लगवाती हूं।

राजेंद्र…सुरभि मैं महेश बाबू के घर से खाकर आया हूं। तुम खा लो।

सुरभि के खाना खाने के बाद दोनों अपने अपने कमरे में चले जाते हैं।

इधर दर्जलिंग में सुकन्या और रावण के के बीच मन मुटाव जारी था। रावण ने सुकन्या को मनाने की जी तोड़ प्रयत्न किया लेकिन सुकन्या मानने को तैयार ही न हों रहीं थीं। अगले दिन सुबह रावण सुकन्या और अपश्यु साथ में नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद अपश्यु जाने लगा तब सुकन्या रोकते हुए बोली... अपश्यु कहा जा रहे हों जाओ जाकर तैयार होकर आओ हम कलकत्ता जाएंगे।

अपश्यु…मां आज ही क्यों एक दो दिन बाद चलते हैं शादी में तो अभी कई दिन बचे है।

रावण...हां सुकन्या इतनी जल्दी भी किया है दो तीन दिन ओर रुख जाओ तब चलते है। फिर मान में अभी गया तो मैं अपना काम कैसे अंजाम दे पाऊंगा उन लोगो ने फ़ोन भी तो नहीं किया न जाने किया हुआ वो अपना काम कर पाए या नहीं।

सुकन्या... आप को जाने के लिए कौन कह रहा है मैं तो आप'से कुछ पुछा भी नहीं आप'को जब मान करे तब जाना। फिर अपश्यु से तूझे एक बार में समझ नहीं आता बड़े भाई की शादी हैं मदद करने के जगह दिन भर घूमता रहेगा। तू आज ही मेरे साथ चलेगा मतलब चलेगा।

अपश्यु मन में...मां को कुछ भी करके आज का दिन रोकना पड़ेगा आज ही तो गांव से उस लङकी को उठाना हैं मै चला गया तो फिर ही शायद मौका मिले नहीं नहीं मैं ऐसा होने नहीं दे सकता मुझे कुछ भी करके मां को रोकना ही होगा।

अपश्यु न हिला न डुला वो तो मन में ही बात करने में मस्त था। अपश्यु को सोच में गुम देख सुकन्या बोली... किस सोचे में घूम हैं जा जाकर तैयार होकर आ ।

अपश्यु... मां हम कल चले चलेंगे आज मुझे बहुत जरूरी काम है कल पक्का चलूंगा।

सुकन्या... कौन सा तू अपने बाप का बिजनस देख रहा है जो तूझे जरूरी काम करना हैं जा जाकर तैयार होकर आ।

अपश्यु... मां सुनो तो….

सुकन्या बिना बात पूरी सुने गुस्से में बोली... तू एक बार कहने से सुनता क्यों नहीं जब देखो टाला मटोली करता रहेगा तुझसे अच्छा तो रघु हैं उसे एक बार कहते ही बिना न नुकर के मान लेता हैं जा जाकर तैयार हों जा नहीं तो ऐसे ही चल तैयार होने की जरूरत नहीं हैं।

इतना कहकर सुकन्या रूम को चल दिया रावण भी उसके पीछे पीछे चल दिया। रघु की तारीफ मां के मुंह से सुन अपश्यु बोला...इस श्रवण कुमार के बच्चे ने आज मरवा दिया अच्छा खासा आज एक मस्त फूल को मसलने का प्लान बनया था इस श्रवण कुमार ने मेरे सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। चल बेटा अपश्यु मां की बात मान ले नहीं तो मां पापा की तरह मुझसे भी नाराज हों जाएंगे मां मुझसे नाराज़ हों गया तो मैं उनकी बे रूखी बर्दास्त नहीं कर पाऊंगा। एक लङकी के लिए मां को नाराज करना सही नहीं होगा ऐसी 100 लड़की मां पर कुर्बान हैं।

कुछ वक्त में सुकन्या तैयार होकर आ गई। सुकन्या के साथ साथ रावण भी तैयार होकर आ गया। अपश्यु के आते ही तीनों बहार को चल दिये। ड्राइवर जिसे पहले ही सुकन्या ने कार निकलने को कह दिया था। वो कार में बैठे इनका wait कर रहे थे। रावण आगे जाकर कार में बैठने लगा। रावण को बैठते देख सुकन्या बोली…आप क्यों बैठ रहे हो आप तो दो तीन दिन बाद जाने वाले थे।

रावण... तुम जा रहीं हों तो मैं यह अकेले क्या करूंगा मेरा तुम्हारे बिना मन नहीं लगेगा।

इसके आगे सुकन्या कुछ नही बोली रावण पीछे बैठ रहा था तो सुकन्या ने रावण को आगे की सीट पर बैठने को कहा। बिना न नुकार के रावण आगे बैठ गया। सुकन्या और अपश्यु के बैठते ही ड्राइवर कार को आगे बडा दिया। विंकट जो पल पल अपश्यु के पीछे छाए की तरह लगा रहता था अपश्यु को मां बाप के साथ जाते हुए देख लिया। अपश्यु जा कहा रहा है ये जानें के लिए गेट में खड़े दरबान से पुछ तो दरबान ने बता दिया। सुनते ही विकट चल दिया और जाते हुए बोला...जल्दी से उस्ताद को खबर करना होगा। अपश्यु कलकत्ता गया हैं कुछ दिन बाद वापस आएगा।


आज के लिए इतना ही आगे की कहनी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।

🙏🙏🙏🙏🙏
ek aur behtrinn update. tit for tat javaab diya hai mahes ji ne. Phone ke dusre taraf wala bhi dar gaya jab use pata chala mahesh jamidaar ka beta hai. Sukanya ke bina reh nahi sakta ravan isliye sukanya ke sath wo bhi car me beth gaya. kya mahesh ab calcutta me rehke plan ko anjam dega? aapsyu apni ma se darta bhi aur pyar bhi karta hai. dusri or rajendra ghar lot ke sab kuch bata diya . jisse sbhi thode paresan ho gye par puspa se apnii natkhatpan se mahol ko halka kar diya.
 

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