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शादी में सात दिन बचे थे ऐसे में दोनों ओर से सभी तैयारी को रिचेक किया जा रहा था। किसी भी सामान की कमी तो नहीं रहा गया। कोई ऐसा तो नहीं बचा जिस तक निमंत्रण न पहुंचा हों। महेश दिन भर इसी में ही उलझा हुआ था। शाम के वक्त महेश चाय की चुस्कियां ले रहा था । उसी वक्त घर में रखें टेलिफोन बाबू ने आवाज दिया आकर मुझे चुप कराओ नहीं तो सिर में दर्द कर दुंगा। महेश जी झट पट उठे फिर टेलिफोन के रिसीवर को उठकर टेलीफोन का चीखना चिल्लाना बंद किया। रिसीवर कान से लगाकर बोला…. कौन हों महोदय जो मेरे घर में शान्त बैठे टेलीफोन को खटखटा रहे हो।
"जी आप महेश बाबू बोल रहे हैं"
महेश...जी लोग तो कहते हैं मैं ही महेश बाबू हूं। आप को मुझ'से किया काम था।
"जी काम कुछ खास नहीं सुना था आप अपने लडकी की शादी राजेंद्र प्रताप के लडके के साथ कर रहे हैं। क्या मैं सही सुना था?"
महेश... जी अपने बिलकुल ठीक सुना इससे आप'को कोई आपत्ति हैं।
"जी आपत्ति है तभी तो आप'को फ़ोन किया ।"
आपत्ति की बात सुनकर महेश का माथा ठनका कही फिर से शादी तुड़वाने के लिए फोन तो नहीं किया गया। ये बात दिमाग में आते ही महेश मन ही मन बोला... पहले तो तुम लोग इसलिए कामियाब हों गए थे क्योंकि मुझे सच्चाई पाता नहीं थीं लेकिन इस बार ऐसा नहीं होगा। जारा सुनूं तो ये शुभचिंतक कहना किया चाहते हैं। साला जब से बेटी की शादी तय हुआ हैं। तब से मेरा भला चाहने वाले बढ़ चढ़कर आगे आ रहे हैं। आए हों तो आज प्रसाद भी लेते जाना आखिर भंडारे में आए हो, प्रसाद न मिले ऐसा कभी हुआ हैं।
महेश…महाशय आप'को आपत्ति किस बात की हैं। मेरे बेटी की शादी हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं या राजा जी के बेटे से हों रहा हैं इस बात की आपत्ति हैं।
"आप की बेटी की शादी हों रहा हैं इससे मुझे कोई आपत्ति नहीं हैं लेकिन जिससे शादी हों रहा हैं जिस वंश में शादी हों रहा हैं उससे मुझेआपत्ति हैं।"
ये बात सुनते ही महेश का पारा चढ़ गया और भड़कते हुए बोला... मेरी बेटी हैं उसकी शादी जिस भी घर में कारवाऊ तू कौन होता है आपत्ति जताते वाला हरमखोरो पहली चल सफल नहीं हुआ तो अब दूसरा पैंतरा अजमाने लगे अभी सामने होता तो तुझे गोली मर देता। ऐसी जगह मरता तू अफसोस करता मै महेश के सामने क्यों आया।
"महेश तेरी हिम्मत कैसे हुआ मुझे हरमखोर बोलने की तू मुझे गोली मरेगा मुझे तू जनता भी है मैं कौन हूं।
महेश…चल बता तू किस गंदी नाली का कीड़ा हैं बता तू कितने बाप की पैदाइश हैं। बता तू कौन से गटर में पला बडा हुआ।
"महेश तू जुबान को लगाम दे नहीं तो अच्छा नहीं होगा।"
महेश...क्यों रे सुलग गया सुलगनी भी चाहिएं सालो तुम लोग दल बनाकर राजेंद्र बाबू के बेटे की शादी तुड़वाने के लिए न जानें कौन कौन से लांछन उस भले मानुष के बेटे पर लगाया। अब तुम पर लांछन लगा तो तुम्हें बुरा लग गया सोचो तुम गंदे नाली के कीड़ों को कीड़ा बोला तो तुम्हें इतना बुरा लगा। उस भले मानुष को कितना बुरा लगा जब तुम लोगों ने उनके बेदाग बेटे पर इतने लांछन लगाया।
"ओ तो तुझे पता चल गया ये तो अच्छी बात हैं अब कान खोल कर सुन ले शादी तुड़वा दे नहीं तो तेरे साथ अच्छा नहीं होगा।"
महेश…शादी तो अब टूटने से रहीं तुझे जो करना हैं कर ले और एक बात सुन तुझे भी स्पेशली दावत देता हूं आकर झूठे बर्तन चाट कर अपना पेट भर लेना।"
"अजीब बेज्जती हैं मै तुझे धमका रहा हूं डरने के जगह तू मुझे दावत दे रहा हैं। तूने मेरी बहुत बेज्जती कर लिया अब कान खोल कर सुन ले रिश्ता तोड़ दे नहीं तो तू अपना और अपने परिवार वालों के जान से हाथ धो बैठेगा।"
महेश…ओ तो ये बात हैं ठीक हैं तुझे जो करना हैं कर लेना मैं भी जमींदार का बेटा हूं देखू तो तू कितना बडा गुंडा हैं। सुन वे शादी तो टूटने से रही तू आ जाना अपने दल बल के साथ मैं महेश तुम सब की पहले अच्छे से खातिर करूंगा फिर बेटी का कन्या दान करूंगा।
सामने वाला सोचा था धमकी देने से महेश डर जायेगा लेकिन महेश डरने के जगह उसे ही धमका रहा था। अंत में खुद को जमींदार का बेटा बोलने से सामने वाला खुद ही डर गया और फोन काट दिया। फोन काटने के बाद महेश बोला…सालो तुम ने सोए हुए जमींदार धर्मपाल के बेटे को फिर से जगा दिया। आना सामने इतना लठ बजूंगा गिनना भुल जाओगे।
(पाठकों यह एक बात जानने का हैं। जैसा की माने परिचय में बताया था महेश के बाप दादा जमींदार थे। उनके जमींदारी विद्रोहियों और अंग्रेजो ने छीन लिया था। बस महेश के पिता का नाम नहीं बताया था। जो यहां बता रहा हूं। ताकि किसी के मन में कोई शंका न रहें।)
महेश बातो के दौरान ज्यादा तेज आवाज में बात कर रहा था। इसलिए घर में काम करने वाले नौकर , कमला और मनोरमा वहा आ गए। फोन रखते ही मनोरमा बोली…आप किसपे इतना भड़क रहे थें।
कमला... हां पापा कौन था?
महेश...कौन होगा उन्हीं के दल से थे जिन्होंने रघु जी के बारे में गलत सलत बोलकर मेरा बुद्धि भ्रष्ट कर दिया था। अब फोन करके धमका रहे थें।
मनोरमा & कमला..kiyaaa धमका रहें थे।
महेश… हां धमका रहें थे सोचा होगा कोई ऐरा गेरा होगा। धमकाऊंगा तो डर कर फिर से शादी तुड़वा देगा। लेकिन ये लोग भुल गए महेश उनका भी बाप हैं। मैं जमींदार धर्मपाल का बेटा हूं जो कुछ दिनों के लिए सो गया था लेकिन अब जाग चुका हैं।
मनोरमा... सुनिए आप ऐसा वैसा कुछ न करना इसी जमीदारी ने हमसे हमारा पूरा परिवार छीन लिया मुझ'से मेरा बेटा छीन लिया दुबारा ऐसा कुछ हुआ तो मैं फिर से एक ओर सदमा बर्दास्त नहीं कर पाऊंगी।
मनोरमा बीती बातों को भूल चुकी थी। एक बार फिर से याद करते हुए अधीर हों गईं। मनोरमा को अधीर होते देख महेश बोला…मनोरमा संभालो खुद को उन बातों को याद करके मुझे भी पीढ़ा होता हैं। उस वक्त मैं पास नहीं था इसलिए उन्होंने छल से मेरे पूरे परिवार का कत्ल कर दिया लेकिन अब ऐसा नहीं होगा। मैं ऐसा होने नहीं दुंगा।
कमला...पापा किसने किया था हमारे परिवार का कत्ल कौन थे वो लोग।
महेश…. बेटा ये समय सही नहीं हैं उन दुखद पालो को याद करने का अभी खुशी मानने का वक्त हैं तो खुशी मनाते हैं। मनोरमा तुम भी संभालो खुद को ये समय नही है उन पालो को याद करने का, बीती बातों को याद करके रोने से जो बिछड़ गए हैं वो वापस नहीं आ जाएंगे।
मनोरमा…आप का कहना ठीक हैं मै आप'के जैसा मजबूत ह्रदय वाली नहीं हूं। वो पल याद आता है तो मेरा ह्रदय पीड़ा से भरा जाता हैं। मैने एक पल में मां बाप सास ससुर और बेटा सभी को खो दिया। मेरा बसा बसाया संसार पल भार में छिन्न भिन्न हों गया।
ये कहकर मनोरमा सुबक सबका कर रोने लग गई। कमला मां के पास आकार मां को चुप करती हैं। कुछ क्षण सुबकने के बाद मनोरमा चुप हों गई। तब महेश राजेंद्र को फोन कर जल्दी से आने को कहते हैं। फोन करने के कुछ वक्त बाद ही राजेंद्र का कार आकर उनके घर के बहार रुकता हैं। राजेंद्र अंदर आकर बोला….क्या हुआ महेश बाबू अपने मुझे जल्दी जल्दी आने को क्यों कहा।
महेश…आप बैठिए फिर बात करते हैं। कमला बेटा जाओ चाय नाश्ते की व्यवस्था करो।
कमला के साथ साथ मनोरमा भी कीचन की ओर चल दिया फिर महेश फोन पर हुआ किस्सा राजेंद्र को बता देता हैं। सुनकर राजेंद्र बोला…उनकी इतनी मजाल जो फोन पर धमकी दे रहे हैं। अब पानी सिर से ऊपर चला गया उनका कुछ न कुछ बंदोबस्त करना होगा। आप मेरे साथ चलिए थाने में मामला दर्ज करवा कर आते है
महेश...राजा जी थाने जाने की जरूरत नहीं हैं यहां के SSP साहब से मेरा बहुत अच्छा रिश्ता हैं मैं फोन कर उन्हें बुला लेते हूं।
महेश फिर से एक फोन SSP साहब को कर दिया । कुछ वक्त में एक पुलिस की गाड़ी आकार रूका। SSP साहब अपने साथ आए कुछ पुलिस वालो के साथ अंदर आए। राजेंद्र को देखकर नमस्कार किया फिर बैठकर बोला…कहिए महेश बाबू अपने मुझे कैसे याद किया बिटिया की शादी को अभी एक सप्ताह हैं अपने इतनी जल्दी मुझे मेहमान दारी में बुला लिया।
महेश...SSP साहब मेहमन दरी में आप'को बुलाने की आवश्कता कब से पड़ गया हैं। आप तो मेरे अपने है। जब चाहो तब आ जाओ आप'को रोका किसने हैं। आज तो कुछ विशेष काम से आप'को याद किया गया।
SSP…ऐसा कौन सा विशेष काम आ गया जो आप मुझे शीघ्रता से आने को कहा कोई जटिल मसला जान पड़ता हैं नहीं तो आप मुझे इतनी जल्दी नहीं बुलाते।
महेश…SSP साहब आप तो जानते ही हैं कमला की शादी राजा जी के बेटे के साथ तय हुआ हैं। अभी कुछ दिनों पीछे कुछ लोगों ने साजिश के तहत राजी जी के बेटे के खिलाफ अनाप शनाप बोल कर मेरा दिमाग भ्रष्ट कर दिया था। मैं उनके बिछाए जाल में फांस भी गया था फिर रिश्ता थोड़ कर आ गया था। जब घर आया तब कमला और मनोरमा न मुझे समझाया तब जाकर मुझे समझ आया ये किसी की चाल हैं। जैसे तैसे मान मुटाव दूर कर हम फिर से शादी की तैयारी करने लगें थे की आज किसी ने फ़ोन पर मुझे शादी तोडने को कह रहे थे। शादी नहीं टूटा तो वो मेरे परिवार को जान से मर देंगे ऐसा धमकी दे रहें थे।
SSP...जहां तक मैं समझ पा रहा हूं ये कोई साधारण मसला नहीं हैं। साधारण मसला होता तो कोई बार बार शादी तुड़वाने का प्रयास क्यों करता। हों सकता हैं महेश जी आप'का कोई दुश्मन हों या कोई ऐसा जो चाहता हों कमला बिटिया की शादी रघु जी से न हों।
महेश...SSP साहब मेरा किसी के साथ कोई दुश्मनी नहीं हैं जो शादी तुड़वाना चाहते हैं उन्हें कमला की शादी होने से कोई दिक्कत नहीं हैं उन्हें दिक्कत हैं रघु जी की शादी से, राजा जी अब आगे का किस्सा आप बताए तो बेहतर होगा।
SSP...राजा जी जो भी हैं आप खुल कर बताओ तभी मैं इस मसले के तह तक पहुंच सकता हूं। जैसा महेश जी कह रहे हैं इससे तो लगता है जो भी हों रहा सब आप'के बेटे से जुड़ा हैं।
राजेंद्र….SSP साहब आप'का कहना सही हैं जो भी हों रहा है वो रघु से ही जुड़ा हुआ हैं। ये सब तभी से शुरू हुआ है जब से हम रघु के लिए रिश्ता ढूंढना शुरू किया था। हम जो भी लड़की देखते, न जाने कौन लड़की वालो को रघु के बारे में गलत सालात बोलते फिर वे उनका कहना मानकर रिश्ता करने से मना कर देते इस बार भी वैसा ही हुआ मै समझ नहीं पा रहा हूं कौन है जो ऐसा कर रहा हैं।
SSP... राजा जी आप मेरे बातों को गलत न लेना ऐसा भी तो हों सकता हैं रघु जी का किसी लड़की के साथ कोई संबंध हों इसलिए ऐसा किया जा रहा हों। या फिर ऐसा भी कोई हों सकता हैं किसी को आप'के अपर संपति पाने का लालच हों और वो अपने बेटी की शादी आप'के बेटे से कराकर सभी संपत्ति को हड़पना चाहते हों।
राजेंद्र…SSP साहब मेरे बेटे का अन्य किसी लडकी के साथ कोई संबंध नहीं हैं। शायद जो कुछ भी हों रहा हैं सब हमारे संपति को लेकर हों रहा होगा।
SSP…ऐसा कोई हैं जिस पर आप'को शक हों। ऐसा कुछ अगर है तो आप मुझे खुल कर बता सकते हैं।
राजेंद्र…ऐसा तो कोई हैं नहीं लेकिन पिछले कुछ दिनों से मेरे खास खास लोग गायब होते जा रहे हैं। आप तो अच्छे से जानते है राज परिवार से हैं और अपर संपति हैं ऐसे में कोई भी मेरे खिलाफ षडियंत्र कर सकते हैं इसलिए मैंने कुछ गुप्तचर रख रखे थे लेकिन एक एक करके सभी गायब हों गए है मैंने अपनी ओर से बहुत खोज बिन किया लेकिन कोई पता नहीं लगा पाया।
SSP... ये तो बहुत गंभीर मसला हैं ऐसा हों रहा था तो आप'को बहुत पहले शिकायत दर्ज करवाना चाहिएं था। लेकिन अपने छुपाया इसका मतलब ऐसा कुछ हैं जो आप छुपना चाहते हों, अगर ऐसा कुछ हैं तो आप मुझे बता सकते हैं। मैं अपने तक ही रखूंगा।
राजेंद्र... जो हैं मैंने आप'को सभी कुछ बता दिया कुछ नहीं छुपाया अब आप ही देखो आप किया कर सकते हों।
SSP... मैं ज्यादा जोर नहीं डालूंगा क्योंकि मैं जनता हूं राज परिवार के बहुत से मसलो को गुप्त रखा जाता हैं फिर भी अपने जितना बताया हैं मै उसी आधार पर छान बीन शुरू करता हैं। महेश जी फिर से दुबारा अगर फ़ोन आता हैं तो आप तुरंत ही मुझसे संपर्क करना और हां कमला बेटी को अकेले कहीं भी जानें मत देना और आप राजा जी रघु जी को भी अकेले जानें मत देना जहां तक मुझे लगता हैं ये लोग बौखला गए हैं। आगे कुछ भी कर सकते हैं।
दोनों ने SSP साहब की बातों पर सहमति जाता दिया फिर SSP साहब के साथ आए हुए पुलिस वालो ने चार्ज शीट दर्ज किया। चार्ज शीट दर्ज करने के बाद मामले के तह तक जल्दी से पहुंचने का आश्वासन देकर SSP साहब चलते बने। SSP साहब के जाने के बाद राजेंद्र और महेश में कुछ क्षण तक ओर बात चीत हुआ। जब राजेंद्र ने जाने की आज्ञा मांग तब महेश जी उन्हें खाना खाकर ही जानें को कहा। क्योंकि वक्त रात के खाने का हों गया था। राजेंद्र माना करने लगें लेकिन महेश के बार बार कहने पर राजेंद्र मान गए। खाना पीना करने के बाद राजेंद्र घर को चल दिया।
इधर सुरभि राजेंद्र के लेट होने के करण चिंतित थीं क्योंकि राजेंद्र जाते वक्त बता कर नहीं गया था जा कहा रहा हैं। सुरभि को चिन्तित देख रघु बोला... मां कुछ चिन्तित दिखाई दे रहे हों बात किया हैं।
पुष्पा... मां बताओ न बात किया हैं।
रमन... रानी मां आप किस बात को लेकर इतने चिंता में हों।
सुरभि...ये बिना बताए कही गए हैं। उनके गए हुए बहुत देर हों गया हैं। इसलिए मै चिन्तित हूं। न जाने कहा रहा गए अभी तक आए नहीं।
सुरभि की बाते सुन पुष्पा को खुराफात सूजा इसलिए बोली... अरे मां कब तक पापा को अपने पल्लू से बन्द कर रखना चाहती हों। उन्हे भी थोडी आजादी दो गए होंगे कहीं आ जाएंगे।
पुष्पा कहकर मुस्कुरा दिया। पुष्पा को मुस्कुराते देख सुरभि भी मुस्कुरा दिया मां को मुस्कुराते देख पुष्पा बोली...अब लग रही हो आप पुष्पा की मां, आप'के खिले चेहरे पर टेंशन अच्छा नहीं लगता ऐसे ही मुस्कुराती रहा करो।
सुरभि उठकर पुष्पा के पास गई पुष्पा का सिर सहलाते हुए बोली... मेरी बेटी कहती है तो मैं ऐसे ही खिलखिलाती रहूंगी। तू भी अपने ये नटखट पान हमेशा बरकरार रखना।
रमन… कर दिया न अपने बेड़ा गर्ग रानी मां इस नटखट ने अपना नटखट पान बरकरार रखा तो इसके नटखट पान का शिखर कोई बने न बने मैं जरूर बनूंगा और सजा भुगतते भुगतते मेरा चाल चलन हमेशा के लिए टेडा हों जाएगा।
रमन के बातों से सभी हंस दिए। कुछ वक्त तक ओर तीनों बातों में मगन रहे फिर डिनर का वक्त हों गया। तो सभी खाना खाकर अपने अपने रूम में चले गए। सुरभि बैठक में राजेंद्र के इंतेजार में बैठी रहती हैं। कुछ क्षण प्रतीक्षा करने के बाद राजेंद्र घर पहुंचता हैं। पहुंचते ही सुरभि का सवाल जवाब शुरू हों गया।
सुरभि...आप बिना बताए कहा चले गए थे। गए तो गए पर इतना देर क्यों लगा दिया? मुझे कितनी चिंता हों रही थीं।
राजेंद्र... माफ करना सुरभि बिना कुछ बताए ही चला गया बात ही कुछ ऐसी थी। महेश बाबू ने बुलाया था।
सुरभि...Oooo आप'को बताकर जाना चाहिए था। जान सकता हूं महेश बाबू ने क्यों बुलाया था।
महेश ने क्यों बुलाया था वहा क्या क्या बाते हुआ। राजेंद्र ने सभी बाते सुरभि को बता दिया। सभी बाते सुनकर सुरभि बोली...आज अपने सही किया जो SSP साहब को बता दिया लेकिन अपने अधूरा क्यों बताया सभी कुछ बता देते किस कारण इतना कुछ हो रहा हैं।
राजेंद्र…कैसी बाते करते हों गुप्त संपति की बाते मैं उन्हें कैसे बताता जिस पर सिर्फ जनता का अधिकार हैं। उन्हे बता देता तो हो सकता हैं यह बात वो अपने आला अधिकारियों को बता देते। उनसे सरकार तक पहुंच जाता फिर सरकार हम पर ही कानूनी कारवाई करते और संपति को जप्त कर लेते फिर होता ये की सभी संपति जिस पर जनता का अधिकार हैं वो जनता तक न पहुंचकर भ्रष्ट अधिकारियों और नेताओं के पास पहुंच जाता। इसलिए मै गुप्त संपति की बात छुपा कर रखा।
सुरभि... मैं समझ रहा हूं लेकिन इस संपति के लिए हमें कितना कुछ झेलना पड़ रहा हैं आप खुद ही सोचो ओर न जाने कौन कौन से दुश्मन पैदा हों गए हैं। मैं तो कहता हूं आप इस गुप्त संपति का राज सरकार को बता दो नहीं तो एक दिन ये गुप्त संपति हमारे परिवार को छिन्न बिन्न कर देगा।
राजेंद्र…मैं चाहकर भी ऐसा नहीं कर सकता मेरे पूर्वज ने हमेशा आम जनता के बारे में सोचा हैं उनके बेहतर भविष्य की कामना किया हैं। उन्होंने यह जिम्मेदारी मुझे दिया हैं। जब तक सभी गुप्त संपत्ति जनता पर खर्च नहीं हों जाता तब तक मुझे संपति की रक्षा करना होगा और जनता की भलाई करने में खर्च करते रहना होगा।
सुरभि... जैसा आप ठीक समझे। आप हाथ मुंह धोकर आइए मैं खाना लगवाती हूं।
राजेंद्र…सुरभि मैं महेश बाबू के घर से खाकर आया हूं। तुम खा लो।
सुरभि के खाना खाने के बाद दोनों अपने अपने कमरे में चले जाते हैं।
इधर दर्जलिंग में सुकन्या और रावण के के बीच मन मुटाव जारी था। रावण ने सुकन्या को मनाने की जी तोड़ प्रयत्न किया लेकिन सुकन्या मानने को तैयार ही न हों रहीं थीं। अगले दिन सुबह रावण सुकन्या और अपश्यु साथ में नाश्ता कर रहे थे। नाश्ता करने के बाद अपश्यु जाने लगा तब सुकन्या रोकते हुए बोली... अपश्यु कहा जा रहे हों जाओ जाकर तैयार होकर आओ हम कलकत्ता जाएंगे।
अपश्यु…मां आज ही क्यों एक दो दिन बाद चलते हैं शादी में तो अभी कई दिन बचे है।
रावण...हां सुकन्या इतनी जल्दी भी किया है दो तीन दिन ओर रुख जाओ तब चलते है। फिर मान में अभी गया तो मैं अपना काम कैसे अंजाम दे पाऊंगा उन लोगो ने फ़ोन भी तो नहीं किया न जाने किया हुआ वो अपना काम कर पाए या नहीं।
सुकन्या... आप को जाने के लिए कौन कह रहा है मैं तो आप'से कुछ पुछा भी नहीं आप'को जब मान करे तब जाना। फिर अपश्यु से तूझे एक बार में समझ नहीं आता बड़े भाई की शादी हैं मदद करने के जगह दिन भर घूमता रहेगा। तू आज ही मेरे साथ चलेगा मतलब चलेगा।
अपश्यु मन में...मां को कुछ भी करके आज का दिन रोकना पड़ेगा आज ही तो गांव से उस लङकी को उठाना हैं मै चला गया तो फिर ही शायद मौका मिले नहीं नहीं मैं ऐसा होने नहीं दे सकता मुझे कुछ भी करके मां को रोकना ही होगा।
अपश्यु न हिला न डुला वो तो मन में ही बात करने में मस्त था। अपश्यु को सोच में गुम देख सुकन्या बोली... किस सोचे में घूम हैं जा जाकर तैयार होकर आ ।
अपश्यु... मां हम कल चले चलेंगे आज मुझे बहुत जरूरी काम है कल पक्का चलूंगा।
सुकन्या... कौन सा तू अपने बाप का बिजनस देख रहा है जो तूझे जरूरी काम करना हैं जा जाकर तैयार होकर आ।
अपश्यु... मां सुनो तो….
सुकन्या बिना बात पूरी सुने गुस्से में बोली... तू एक बार कहने से सुनता क्यों नहीं जब देखो टाला मटोली करता रहेगा तुझसे अच्छा तो रघु हैं उसे एक बार कहते ही बिना न नुकर के मान लेता हैं जा जाकर तैयार हों जा नहीं तो ऐसे ही चल तैयार होने की जरूरत नहीं हैं।
इतना कहकर सुकन्या रूम को चल दिया रावण भी उसके पीछे पीछे चल दिया। रघु की तारीफ मां के मुंह से सुन अपश्यु बोला...इस श्रवण कुमार के बच्चे ने आज मरवा दिया अच्छा खासा आज एक मस्त फूल को मसलने का प्लान बनया था इस श्रवण कुमार ने मेरे सारे किए कराए पर पानी फेर दिया। चल बेटा अपश्यु मां की बात मान ले नहीं तो मां पापा की तरह मुझसे भी नाराज हों जाएंगे मां मुझसे नाराज़ हों गया तो मैं उनकी बे रूखी बर्दास्त नहीं कर पाऊंगा। एक लङकी के लिए मां को नाराज करना सही नहीं होगा ऐसी 100 लड़की मां पर कुर्बान हैं।
कुछ वक्त में सुकन्या तैयार होकर आ गई। सुकन्या के साथ साथ रावण भी तैयार होकर आ गया। अपश्यु के आते ही तीनों बहार को चल दिये। ड्राइवर जिसे पहले ही सुकन्या ने कार निकलने को कह दिया था। वो कार में बैठे इनका wait कर रहे थे। रावण आगे जाकर कार में बैठने लगा। रावण को बैठते देख सुकन्या बोली…आप क्यों बैठ रहे हो आप तो दो तीन दिन बाद जाने वाले थे।
रावण... तुम जा रहीं हों तो मैं यह अकेले क्या करूंगा मेरा तुम्हारे बिना मन नहीं लगेगा।
इसके आगे सुकन्या कुछ नही बोली रावण पीछे बैठ रहा था तो सुकन्या ने रावण को आगे की सीट पर बैठने को कहा। बिना न नुकार के रावण आगे बैठ गया। सुकन्या और अपश्यु के बैठते ही ड्राइवर कार को आगे बडा दिया। विंकट जो पल पल अपश्यु के पीछे छाए की तरह लगा रहता था अपश्यु को मां बाप के साथ जाते हुए देख लिया। अपश्यु जा कहा रहा है ये जानें के लिए गेट में खड़े दरबान से पुछ तो दरबान ने बता दिया। सुनते ही विकट चल दिया और जाते हुए बोला...जल्दी से उस्ताद को खबर करना होगा। अपश्यु कलकत्ता गया हैं कुछ दिन बाद वापस आएगा।
आज के लिए इतना ही आगे की कहनी अगले अपडेट से जानेंगे यह तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद।




