Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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बहुत बहुत शुक्रिया इतनी शानदार प्रतिक्रिया देने के लिऐ Akash ⚜️ जी

डर तब और ज्यादा लगता है जब ज्ञात हों की कौन कौन से बुरे कर्म किया है हालाकि करते वक्त ध्यान नहीं देते पर बाद में वोही कर्म डर का छाया बनकर आगे पीछे मडराता फिरता है। अपश्यु ने भी जब बुरा कर्म किया था तब ध्यान नहीं दिया बस आवेश में करता चला गया। जब ज्ञात हुआ तो उसका वहीं कर्म डर बनकर पल पल उसे खाए जा रहा हैं।
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Update - 49

शाम का समय हों रहा था। देवर से किए वादे के मुताबिक कमला रात की भोजन तैयार करने जानें से पहले अपने देवर के रूम में पहुंच गईं। द्वार बंद था तो दरवाजे को थपथपाया।

अपश्यु इस वक्त खाली समय का सद उपयोग एक किताब को पढ़ने में कर रहा था। किताब के ऊपर मोटे मोटे अक्षरों में गरुड़ पुराण लिखा हुआ था। पाप कर्मों में लीन रहने वाले को अचानक गरुड़ पुराण से इतना मोह कैसे हों गया। शायद अपने किए पाप कर्मों का हिसाब किताब देख रहा होगा कि उसने जो जो पाप कर्म किया है उसकी सजा किन किन तरीकों से नरक में दिया जाता हैं। बरहाल द्वार पर हुई हट से अपश्यु किताब से नज़रे हटाकर बोला…कौन हैं?

कमला... देवर जी मैं हूं द्वार खोलिए आपसे कुछ काम था।

अपश्यु... अरे भाभी आप दो पल रुकिए अभी द्वार खोलता हूं।

भाभी को द्वार खोलने की बात कहकर अपश्यु ने गरुड़ पुराण को बंद करके माथे से लगाकर नमन किया फ़िर मेज पर रख दिया फिर जाकर द्वार खोल दिया और बोला... आइए भाभी बैठिए ओर बोलिए क्या काम था?

कमला अंदर आते हुए बोली... काम कुछ खास नहीं बस कुछ पूछने आई थीं। वो बाद में पूछ लूंगी पहले आप ये बताइए आप द्वार बंद करके क्या कर रहें थे? कहीं आप मेरे होने वाली देवरानी जी से बतिया तो नहीं रहें थे।

इतना बोलकर कमला मुस्कुरा दिया। भाभी को मुस्कुराते देखकर अपश्यु समझ गया उसकी भाभी बस उसकी फिरकी ले रहा था। तो अपश्यु सिर खुजते हुए बोला... ऐसा कुछ नहीं हैं भाभी मैं तो बस खली बैठे बैठे बोर हों रहा था तो एक किताब पढ़ते हुए समय काट रहा था। फ़िर धीमी आवाज़ में बोला…क्या खाक आपकी देवरानी से बात करूंगा वो तो नाराज बैठी है मेरा फोन भी नहीं उठा रहीं हैं।

इस बीच दोनों कमरे में रखी सोफे तक पहुंच गए। सोफे पर बैठते समय कमला की नज़र मेज पर रखी गरुड़ पुराण पर पड़ गई। तो कमला सोफे पर बैठने के बाद गरुड़ पुराण को हाथ में उठाकर माथे से लगाकर नमन किया फ़िर गरुड़ पुराण को मेज पर रखकर बोला... तो आप गरुड़ पुराण पढ़ रहे थे। वैसे आपको गरुड़ पुराण पढ़ने की जरूरत क्यों पड़ गई। इसमें तो नर्क में दिए जानें वाले यातनाओं का वर्णन कथा के माध्यम से किया गया हैं।

अपश्यु...भाभी बस मन किया तो पढ़ रहा था। फ़िर मन में बोला... भाभी अब आपको कैसे बताऊं की मैं गरुड़ पुराण क्यों पढ़ रहा था। आप सभी जिससे इतना स्नेह करते हैं उसका सिर्फ एक पहलू देखा हैं आगर मेरा दूसरा पहलू सभी के सामने आ गया तो आप सभी मुझसे स्नेह नहीं घृणा करने लग जायेंगे।

कमला... ये तो अच्छी बात हैं इससे जन पड़ता हैं आप धर्म कर्म में विश्वास रखते हों। चलो छोड़ो इन बातों को आप अपना पसन्द बता दीजिए ताकि मैं आपके पसन्द का भोजन आपके लिए बना दूं।

अपश्यु... जब आप भोजन बना रहीं हों तो पसन्द न पसन्द मायने नहीं रखता हैं। आप जो भी बनाओगी अच्छा ही बनाओगी इसलिए आप अपने पसन्द का भोजन बना लीजिए।

कमला... अच्छा ठीक है फिर मैं चलती हूं। ओर हां मेरे लिए देवरानी पसन्द कर लिया तो मुझे पहले से ही बता देना ही ही ही।

अपश्यु... हां भाभी बता दूंगा पहले पसन्द तो कर लूं।

इसके बाद कमला चली गई और अपश्यु एक बार फिर से गरुड़ पुराण खोलकर पढ़ने बैठ गया। लगाता है अपश्यु के किए पाप कर्मों ने उसके दिमाग में कुछ ज्यादा ही खलबली मचा दिया हैं। जो उसे गरुड़ पुराण जैसे पौराणिक ग्रंथ पढ़ने पर मजबूर कर दिया। खैर अपश्यु को उसके पाप कर्मों का हिसाब किताब लगाने देते है हम चलते है कमला के पीछे वो कहा गई।

देवर के कमरे से निकलकर कमला जा पहुंची किचन जहां इस वक्त रतन ओर धीरा रात के भोजन पकाने की तैयारी में जुटे थे। उसके संग दाई मां भी हाथ बांटा रहीं थीं। दाई मां महल के सबसे पौढं बृहद में से एक हैं शायद ही कोई ऐसा महल में होगा जो उनके उम्र की बराबरी कर पाए, हाथ पांव ज्यादा चलते नहीं हैं फिर भी कभी कभी दोनों वाबर्चियो का हाथ बंटाने आ जाती हैं। अपितु उनके उम्र को देखते हुए उन्हे सिर्फ आराम करने का आदेश दिया गया था। किंतु वे किसी की सुनते कहा हैं। उन्होंने अपने जीवन का एक लंबा समय महल में काम करते हुए बिता दिया और उन्हे महल में रहने वाले प्रत्येक सदस्य ने वो सम्मान दिया जिसकी शायद उन्होंने कभी कल्पना भी नहीं किया होगा। शायद उसकी भरभाई वो इस उम्र में काम करके कर रहीं थीं।

कमला जब किचन में पुछा तो उसकी नज़र सबसे पहली किचन में काम करती हुईं बुजुर्ग महिला दाई मां पर पड़ी उन्हें काम करते हुए देखकर कमला बोली... दाई मां ये कोई उम्र है आपके काम करने की, जिस उम्र में आपको आराम करना चाहिए उस उम्र में आप काम कर रहीं हों। लगाता हैं आपकी शिकायत मेरे उनसे करना पड़ेगा जो आपको सब से प्रिय हैं।

दाई मां धीमे और शालीन आवाज में बोलीं... बहुरानी आप जिससे शिकयत करने की बात कर रहीं हों न, जीतना वो मुझे प्रिय हैं उतना ही मैं उसे प्रिय हूं इसलिए आपके शिकयत करने का कोई फायदा नहीं हैं।

कमला... कितना फायदा होता है की नही होता है वो बाद में देखेंगे। आप इस वक्त मेरे साथ चलो मैं आपको आपके कमरे तक छोड़कर आती हूं।

इतना कहकर दाई मां का हाथ थामे कमला उन्हें धीरे धीरे बहार ले जाने लगीं। एक जवान लड़की के साथ दाई मां जोर आजमाइश करती तो कितना करती इसलिए बिना जोर आजमाए बस मुस्कुराते हुए कमला के साथ चल पड़ी। जाते हुए दाई मां बोली... बहू रानी आप ये ठीक नहीं कर रहीं हों जहां काम करते हुए मैने मेरे जीवन का एक अरसा बीत दिया आज आप मुझे वहां काम करने से रोक रहीं हों।

कमला... दाई मां जीतना अपने काम करना था कर लिया अब आपके आराम करने के दिन आ गए। इसलिए आप से साफ साफ कह देती हू आज के बाद आप ने कोई भी काम किया तो मुझसे बुरा कोई नहीं होगा।

कमला की इस स्नेह वाली डाट सुनकर दाई मां बस मुस्कुरा दिया। अभी अभी विहाके आई लड़की जिसने शायद ही सभी को अच्छे से जान पाई हों। उसका अपने प्रति इतना स्नेह देखकर दाई मां की पलके बोझिल हों गया। धीरे से अंचल को उठकर दाई मां ने अपने आंखो को पोंछ लिया और कमला के साथ चलते हुए उनके कमरे तक पहुंच गई। जहां दाई मां को छोड़कर कमला वापिस किचन में आ गई। आते ही बोला... दादू रात के भोजन में जो भी व्यंजन अपने बनाने का सोचा हैं उसे किनारे रख दीजिए क्योंकि रात के भोजन में कौन कौन से व्यंजन बनाना हैं वो मैं ख़ुद बनाऊंगी।

रतन... सुनिए बहु रानी आप की पसन्द की भोजन बनाने की बात है तो आप अपना पसन्द बता दीजिए हम बना देते हैं। अगर आप खुद बनाना चहती हों तो वो हम कतई नहीं होने देंगें।

धीरा... बिल्कुल मालकिन हम आपको किचन की उमस और ताप में काम करने नहीं दे सकते इसलिए आप अपना पसन्द बता दीजिए हम बना देंगे।

कमला... धीरा तुम्हें कहा था न मुझे मालकिन नहीं कहोगे फिर भी तुम नहीं माने अगली बार मालकिन कहा तो अच्छा नहीं होगा।

धीरा…माफ करना भाभी जी आदत से मजूबुर हूं इस बार माफ कर दीजिए अगली बार से ऐसी गलती नहीं करूंगा।

कमला... ठीक हैं इस बार माफ कर देती हू अगली बार से नहीं करूंगी अब किनारे हटो मुझे काम करने दो।

धीरा... हम क्यों किनारे हों जाना हैं तो आप जाओ भोजन पकाना हमारा काम है आपका नहीं इसलिए हमे हमारा काम करने दो।

कमला...Oooo hooo वैसे तुम्हारे इस हमारे में मैं भी आती हूं। मुझे मेरा काम करने दो क्योंकि मैंने देवर जी से वादा किया हैं रात का भोजन मैं ख़ुद बनाऊंगी, सहयोग करना हैं तो करो नहीं तो बहार जाओ।

रतन... ये क्या बहुरानी आप तो हमें हमारे कार्यालय से ही बहार निकल रहीं हों। नहीं हम ऐसा बिल्कुल नहीं होने देंगे

कमला... अच्छा तो आप नहीं मानेंगे ठीक है जैसी आपकी इच्छा ।

कमला के इतना बोलते ही रतन मन ही मन खुश हों रहा था की चलो बहुरानी ने उनका कहना मन लिया हैं पर रतन का ये मानना कुछ पल में ही धरासाई हों गया। क्योंकि कमला खुद बहार जानें के जगह रतन और धीरा का हाथ थामे उन्हें ही बहार निकलने लग गईं। खुद को बहार निकाला जाते देखकर रतन बोला…ये क्या बहुरानी आप ख़ुद बहार जाने के जगह हमे ही बहार निकल रहीं हों ये आप ठीक नहीं कर रहीं हों।

कमला... आप मुझे मेरे मन की करने से रोक रहीं हों तो मैं क्या करूं आगर बहार नहीं जाना हैं तो चुप चाप भोजन पकाने में मेरा हाथ बंटाओ।

दोनों समझ गए की कमला उनकी एक भी नहीं सुनने वाली इसलिए कमला जो करना चहती है करने देना ही ठीक समझा। इसके बाद कमला जी जन से रात का भोजन बनाने में जुट गई। नाना प्रकार के व्यंजन कमला बनाने लगीं जिसकी खुशबू महल के कोने कोने में फैल गई। चूल्हे में जलती आग की तपन कमला के देह में मौजूद पानी को उसके देह से पसीने के रूप में बहार निकलने पर मजबूर कर दिया। माथे बहा और देह के कई हिस्से से देह में मौजूद पानी पसीने के रूप में बहार निकलकर बहने लगा जिसे कमला अंचल से पोंछ लेता। पसीना पोछते वक्त कमला के हाथ में लगा कला रंग उसके माथे पर लग गया जिसका ध्यान कमला को भी नहीं हुआ। खैर अंतिम व्यंजन चूल्हे पर था जो कुछ ही देर में बनकर तैयार हों जाता, उसी वक्त रघु का आगमन हुआ। रघु कमला कमला की आवाज़ देते हुए महल में प्रवेश किया और बैठक की और चल दिया।

पति की आने की आहट पाकर कमला एक गिलास में पानी लिया ओर " दादू मैं उनको पानी देकर आती हूं तब तक आप चूल्हे पर रखी सब्जी का ध्यान रखना।" इतना बोलकर बहार की ओर चला दिया। इधर रघु बैठक में पहुंच चुका था वहां मां, चाची और बहन को बैठा देखा पर कमला को न देखकर बोला... मां कमला कहा हैं।

तब तक कमला बैठक में पहुंच चुकी थीं, पानी का गिलास लिए रघु के पास जाते हुए बोला... आप आ गए लीजिए पानी पी लीजिए।

कमला की आवाज़ सुनकर सभी की नज़र कमला पर पड़ी कमला का हुलिया देखकर न चाहते हुए भी सभी के मुखड़े पर हंसी का बदल मंडरा गया। परंतु रघु का मुखमंडल कुछ और ही भाव दर्शा रहा था। जेब से रुमाल निकलते हुए रघु बोला... कमला आज फिर से तुम भोजन पकाने गई थी इसकी क्या जरूरत थीं देखो कैसा हुलिया बना रखा हैं।

इतना बोलकर रघु कमला के पास जाकर उसके हाथ से पानी का गिलास लिया फिर मेज पर रखकर रूमाल से कमला के माथे पर लगी काली को पोछने लग गया। तब जाकर कमला को अहसास हुआ शायद उसकी माथे पर कुछ लगा हैं इसलिए कमला बोली... मेरे माथे पर कुछ लगा हैं क्या?

रघु... हां पूरे माथे पर कालिख पोत रखी हैं क्या जरूरत थीं तुम्हें किचन में काम करने की वहां रतन दादू और धीरा हैं न फ़िर सुरभि की और देखकर बोला... मां...।

बस मां बोलते ही सुरभि समझ गई क्या बोलना चाहता हैं इसलिए सुरभि बोलीं... मुझे कुछ भी बोलने की जरूरत नहीं हैं। बहू को किचन में मैंने नहीं भेजा बहू को किचन में भेजने वाला कोई ओर नहीं अपश्यु हैं। उसी की इच्छा थी की बहू के हाथ का भोजन खाएगा।

रघु... ऐसा क्या फ़िर तो ठीक हैं।

पुष्पा... हां हां ठीक तो होना ही था आपके प्यारे भाई ने जो कहा था।

पुष्पा की बाते सुनकर सभी मुस्कुरा दिया रघु भी मुस्कुराते हुए मेज पर से पानी का गिलास उठा लिया और दो तीन घुट में पूरा पानी पी लिया फ़िर गिलास मेज पर रखकर पुष्पा के पास जाकर बैठ गया और बोला... अपश्यु के साथ साथ इस महल की महारानी भी मुझे प्यारी हैं इसलिए महारानी पुष्पा तुम बेबाजय चीड़ रहीं हों।

इतना सुनना था की पुष्पा ही ही ही करके हंस दिया और कमला मेज से गिलास को उठकर वापस जानें लग गईं तो रघु बोला... कमला रूको तुम कहा जा रहीं हों। फ़िर सुरभि की और देखकर बोला... मां मैं कमला को बहार भोजन के लिए ले जाना चाहता हूं। आप क्या कहती हों ले जाऊं।


पति के इतना कहते ही कमला याचक भाव से सास की और देखने लग गईं जैसे कहना चहती हों मम्मी जी हां कर दो न, बहू के चहरे पर याचक भाव देखकर सुरभि मुस्कुराते हुए बोली...हां ले जा पर मेरी बहु का ध्यान रखना। फिर कमला से बोली…. जाओ बहू अच्छे से तैयार होकर आओ

हां सुनते ही कमला का मन खुशी से भर उठा और उसके चहरे पर मासूमियत से भरी मुस्कान और आंखों से कृत्यगता भरसने लग गईं फ़िर कमला झटपट गिलास लेकर किचन गई वहां गिलास को रखकर बिना दाएं बाएं देखे सीधा तैयार होने रूम में चली गई। रघु कुछ देर बैठा रहा फिर वो भी तैयार होने रूम में चला गया।


आज के लिए इतना ही आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे। यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏🙏
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कमला जब कमरे में जा रहीं थीं तब उसके चहरे से दुनियां भर की खुशियां जल प्रपात की तरह अविरल बहे जा रहीं थीं। एक एक कदम का फैसला तय करते हुए कमला रूम में पहुंची, रूम में पहुंचते ही "ahhhhh" एक गहरी स्वास छोड़ा, मानो वो मिलो दौड़कर आई हों, किंतु उसके चहरे से ऐसा नहीं लग रहा था। चहरे से तो सिर्फ़ कभी न खत्म होने वाली सुखद अनुभूति झलक रहीं थीं।

अंतर मन में उपज रही सुखद अनुभूति कमला पर इतना हावी थी कि बिना कुछ लिए बाथरूम में चली गईं। जिस्म में मौजूद एक एक वस्त्र इतनी शोखी से उतर रहीं थीं कि कोई पुरुष देख ले तो कमला की अदाओं को देखकर भाव विहीन होकर बस देखता ही रहें।

बाथरूम में एक से बढ़कर एक इत्र युक्त साबुन और शैंपू रखा था किंतु कमला निर्धारित नहीं कर पा रहीं थीं कि नहाने में किस साबुन या शैंपू का इस्तेमाल किया जाए। एक को हाथ में लेती "नहीं नहीं ये नहीं" फिर दूसरे को हाथ में लेती, न न बोलकर उसे भी वापस रख देती। कई बार उठाया रखा, उठाया रखा करने के बाद अंतः एक साबुन और शैंपो उसे पसन्द आया। उसी से नहाने लग गईं।

साबुन की खुशबू बदन के साथ साथ पूरे बाथरूम को भी महका दिया। बरहाल कुछ ही देर में नहाने की क्रिया सम्पन्न हुआ। बदन को पोछने के लिए तौलिया ढूंढा तो तौलिया कहीं मिली नहीं तब याद आया कि तौलिया तो लाई नहीं तो कमला बोलीं... अब क्या करूं तौलिया तो लाया नहीं क्या मैं ऐसे ही बहार चली जाऊं।

उसी वक्त कमरे में किसी के आने का आहट हुआ जिसे सुनकर कमला खुद से बोलीं... लगाता हैं कोई आया हैं कौन आया होगा….।

कमला ने सिर्फ इतना ही बोला था की आने वाले ने बोला... कमला तुम अभी तक बाथरूम में हों। तुम्हें तो अब तक तैयार हों जाना चाहिए था।

कमला…हां! बस मुझे थोडा वक्त दीजिए मैं जल्दी से तैयार हों जाऊंगी। क्या आप मुझे तौलिया लाकर देंगे मैं तौलिया लाना भूल गई।

रघु... तुम दरवाजा खोलो मैं अभी देता हूं।

इतना बोलकर रघु तौलिया लिया फ़िर दरवाजा थपथपाया कमला ने थोडा सा दरवाजा खोला और हाथ बढ़ाकर बोला... लाइए जल्दी से तौलिया दीजिए

बाथरूम का दरवाजा खोलने से साबुन की सुगंध बहार निकल आया। जिसे सूघते ही रघु के मुंह से "ahaaa" की एक ध्वनि निकला फिर तौलिया कमला के हाथ में देते हुए उसका हाथ थाम लिया। जिसका असर ये हुआ की दोनों का बदन झनझना उठा और कमला हाथ खींचते हुए बोली... क्या करते हो जी मेरा हाथ छोड़िए।

रघु मुस्कुराते हुए कमला का हाथ छोड़ दिया फ़िर कुछ पल बिता था की कमला तौलिया लपेट कर बहार निकल आई। बीबी का ऐसा अवतार देखकर रघु बस एक टक देखता रह गया। देखने का नजरिया क्या था कहना मुस्कील हैं हवस था की प्यार था या फ़िर कुछ ओर ये बस रघु ही जानें परंतु रघु के चहरे की मुस्कान बता रहा था कि रघु कमला के इस रूप से बहुत प्रभावित हुआ हैं।

पति का ऐसे भाव विहीन और मन्द्र मुग्ध होकर खुद को देखता देखकर कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…ऐसे क्या देख रहें हो जी मुझे देखना छोड़िए और जाकर जल्दी से नहा कर आइए हमे देर हों रहा हैं।

पत्नी का इतना बोलना था की रघु मंद मंद मुस्कान लवो पर लिए बाथरूम में घुस गया और कमला अलमारी के पास जाकर वस्त्र को उलट पुलट कर देखने लगीं की पहने तो क्या पहनें कमला के कपड़ो का तांता लगा हुआ था उनमें से कौन सा पहनें ये फैसला कमला नहीं कर पा रही थीं। बहरहाल कमला यूं ही वस्त्रों में उलझी रहीं और इतने वक्त में रघु भी बाथरूम से बहार आ गया। पत्नी को यूं वस्त्रों में उलझा देखकर रघु बोला... कमला ये क्या? तुम अभी तक तैयार नहीं हुई अभी तक वस्त्रों में उलझी हुई हों जल्दी करो हमे देर हों रहा हैं।

कमला…क्या करूं जी! पूरा अलमारी वस्त्रों से भरा पड़ा हैं मै फैसला नहीं कर पा रहीं हूं कौन सा पहनु एक हाथ में लेती हूं तो दूसरा पहनें का मन करता हैं दूसरा उठती हूं तो तीसरा पहनें का मन करता हैं। आप ही बता दीजिए न कौन सा पहनू।

रघु…कमला तुम इतनी खूबसूरत हों की जो भी पहनोगी तुम पर अच्छा लगेगा फ़िर भी आगर तुम मेरे पसन्द का पहना चहती हों तो तुम उसी गाउन को पहन लो जो तुमने सगाई वाले दिन पहना था। मैं एक बार फिर से तुम्हें उन्हीं कपड़ों में देखना चाहता हूं।

पति से इतना सुनने ही कमला के चहरे पर मुस्कान आ गई और कमला उस वस्त्र को बहार निकल लिया फ़िर रघु के लिए भी एक जोड़ी वस्त्र निकल कर रघु को दिया और खुद का वस्त्र लेकर बाथरूम में घुस गई। कुछ ही वक्त में दोनों तैयार होकर एक दूसरे का हाथ थामे कमरे से बहार निकलकर आए फ़िर बैठक में जाकर रघु सुरभि से बोला…मां हम लोग जा रहें हैं।

सुरभि... जा लेकिन संभाल कर जाना और बहू का ध्यान रखना ये जगह बहू के लिए नया है ओर हां मैंने कुछ लोगों को तुम्हारे साथ जानें को कह दिया हैं उनको भी साथ लेते जाना।

रघु... मां इसकी क्या जरूरत थीं?

सुरभि…सुरक्षा के लिए किसी का साथ रहना इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी हैं। तू जानता है तेरी शादी से पहले कितना कुछ हुआ था। इतनी अडंगा लगाने के बाद भी तेरी शादी हों गईं तो जाहिर सी बात हैं वो लोग खीसिया गए होंगे और एक खीसियाए हुए लोग कभी भी कुछ भी कर सकते हैं।

सुकन्या.. रघु जब दुश्मन अनजान हों तो हमारा फर्ज बनता हैं कि हम सतर्क रहें क्योंकि ऐसे लोग इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया हैं जो मौका मिलते हैं घात कर देते हैं। तू और बहू रात के वक्त बहार जा रहा हैं इसलिए हम चाहते है की कोई अनहोनी न हों तू बस चुप चाप दीदी ने जिनको तैयार रहने को कहा उन्हें साथ लेकर जा।

इतना कहने के बाद सुकन्या मन में बोली... रघु मैं जानता हूं इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया कौन कौन हैं पर मैं बता नहीं सकती, बताऊं भी तो कैसे बताऊं तेरे अपने ही अपनो की खुशियों को डसने में लगे हुए हैं।

मां और चाची की बाते सुनकर रघु को लगा उनका कहना भी सही है इसलिए न चाहते हुए भी रघु हां में सिर हिलाकर बहार को चल दिया, रघु की मानो दासा से सुरभि और सुकन्या भलीभाती परिचित थी। इन दोनों ने भी उम्र के इस पड़ाव से होकर गुजारे हैं शादी के शुरुवाती दिनों में शादीशुदा जोड़ा अपने एकांत पालो में किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नहीं करते परन्तु इस वक्त परिस्थिति बिल्कुल बदला हुआ हैं।

रघु बहार आकर देखा कुछ अंगरक्षक तैयार खड़े हैं तो रघु ने उन्हें कुछ समझाया फ़िर चल दिया। रघु खुद कार चला रहा था और बगल वाली सीट पर कमला बैठी थीं। उनके पीछे पीछे कुछ दूरी बनाकर अंगरक्षकों का जीप चल रहा था। जो मुस्तैदी से आस पास और सामने चल रहे रघु की कार पर नज़र बनाए हुए थे।

कार को रघु सामान्य रफ्तार से चला रहा था और बार बार कमला के चहरे को देख रहा था। जहां उसे सिर्फ़ कमला का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिख रहा था। बीबी को इतनी खुश देखकर रघु भी अंदर ही अंदर खुश हों रहा था। अचानक कमला रघु से बोला... हम कहा जा रहे हैं।

रघु... घर पर बोला तो था फिर भी पूछ रहीं हों।

कमला…बोला था पर हम जहां जा रहे है वहां का कुछ नाम तो होगा मैं बस नाम जानना चहती हूं।

रघु... नाम तो नहीं बताऊंगा पर इतना जान लो वो जगह यहां का सबसे मशहूर जगह हैं।

कमला….मुझे पसन्द नहीं आया तो पहले ही कह देती हू मै वहां एक पल नहीं रुकने वाली।

रघु...न पसन्द आए ऐसा हों ही नहीं सकता देख लेना तुम ख़ुद ही वाह वाह करने लग जाओगी।

कमला... ऐसा हैं तो देर क्यों कर रहें हों कार को थोडा तेज चलाओ और मुझे वहां जल्दी पहुचाओ मैं भी देखूं ऐसी कौन सी जगह हैं जिसकी तारीफ में मेरे पति कसीदे पढ़े जा रहें हैं।

रघु...जैसी आप की मर्जी मालकिन जी मैं तो आपका गुलाम हूं आपकी हुक्म मानना मेरा परम कर्तव्य हैं ही ही ही।

इतना कहकर रघु कार की रफ्तार थोडी ओर बडा देता हैं और कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…कौन गुलाम यह तो कोई गुलाम नहीं हैं यहां बस मेरा पति हैं। कहीं आपकी इशारा मेरे पति की ओर तो नहीं हैं ही ही ही।

इतना कहकर कमला खिलखिला कर हंस दिय। रघु बस मुस्कुराकर हा में सिर हिला दिया। कुछ ही वक्त में दोनों मसखरी करते हुए। माल रोड पर मौजूद एक भोजनालय के सामने पहुंच गए। हालाकि रात का वक्त था फिर भी लोगों की अजवाही हों रहा था। भोजनालय की भव्यता देखकर ही कहा जा सकता है की ये भोजनालय सिर्फ और सिर्फ रसूक दार लोगों के लिए बना हैं। कार के रूकते ही कुछ लोग दौड़कर आए और कार के पास खड़े हों गए। रघु के साथ आए अंगरक्षक भी तुरंत दौड़कर आए और रघु और कमला को घेरकर खड़े हों गए। उसी वक्त सूट बूट में एक बंदा आया और रघु को प्रणाम करते हुए बोला... प्रणाम युवराज आपका हमारे इस भोजनालय में स्वागत हैं।

रघु रूआव दार आवाज में बोला...जैसा मैंने आपसे कहा था बिल्कुल वैसी व्यवस्था हों गया न कुछ कामी रहीं तो सोच लेना।

"आपने खुद फोन करके कहा था तो कैसे कोई कमी रह सकता हैं। मैं दावे से कह सकता हूं आपने जैसा कहा था उससे बेहतर ही होगा। वैसे आपके साथ ये महिला कौन हैं जान सकता हूं।"

रघु...ये मेरी धर्मपत्नी कमला रघु प्रताप राना हैं। इन्हीं के लिए ही सारी व्यवस्था करवाया था मेरा पसन्द आना न आना व्यर्थ हैं इनको पसन्द आना चाहिए।

इतना बोलकर कमला का हाथ थामे अंदर को चल दिया और कमला बस रघु को देख रहा था साथ ही थोडी हैरान भी थीं। क्योंकि पहली बार रघु को किसी से रुआब दार आवाज में बात करते हुए देखा था और भोजनालय का बंदा चापलूसी करते हुए बोला... हमने इनके भी ख्याल का पूरा पूरा ध्यान रख हैं। मैं दावे से कह सकता हूं इन्हे तो हद से ज्यादा पसन्द आने वाली हैं।

बंदे की बात सुनकर कमला और रघु समझ गया मक्खन पेल के लगाया जा रहा है इसलिए रघु मन में बोला… बेटा जीतना मक्खन लगना है लगा ले आगर कमला को पसन्द नहीं आया तो तेरा ये भोजनालय सुबह होने से पहले धराशाई होकर मिटी में मिल जायेगा।

कमला मन में बोली... कितना चापलूस आदमी हैं खुद की बड़ाई ऐसे कर रहा हैं जैसे मेरी पसन्द की इन्हें पूरी जानकारी हैं।

कुछ कदम चलने के बाद बंदे ने एक और इशारा करते हुए बोला " इस ओर चलिए" बंदे के बताते ही कमला और रघु उस और चल दिया। एक गलियारे से होता हुआ सभी एक खुले मैदान में पहुंच गए वहा की सजावट देखते ही कमला अचंभित रह गई और रघु की और देखकर आंखो की भाषा में शुक्रिया अदा करने लग गईं। रघु के लिए बस इतना ही काफी था इसके आगे कुछ भी कहने की जरूरत ही नहीं पड़ा क्योंकि रघु ने जो भी किया सिर्फ कमला के खुशी के लिए ही किया था।

अब जरा हम भी देखे ऐसा किया था जिसे देखते ही कमला अचंभित हो गई। दरअसल ये एक पचास वर्ग मीटर का खुला मैदान था। जिसके चारों और सजावटी पेड़ और पौधे लगे हुए थे। मैदान में भी कही कही छोटे छोटे देवदार के पेड़ लगे थे जिसे करीने से कटकर कुछ को गोलाकार कुछ को शंकुआकर (conical) रूप दिया गया था। इन्हीं पेड़ों पर मोमबत्ती को जलाकर शीशे के चार दिवारी में बंद करके टंगा हुआ था। शीशे के कारण मोमबत्ती की प्रकाश और निखरकर वातावरण को रोशन कर रहा था। ऊपर खुला आसमान जहां टिमटिमाती तारे और नीचे पेड़ों पर टांगे कृत्रिम जुगनू ये सब मिलकर दृश्य को बडा ही लुभावना और रोमांचित कर देने वाला माहौल बना रहा था। इससे भी ज्यादा रोमांचित कर देने वाला दृश्य था बीच में लगा हुआ टेबल जिस पर जगनुओ को छोटे छोटे शीशे की पिटारी में बंद करके जगह जगह रखा हुआ था। जो टिमटिमा कर आसमान में चमकती तारों का एहसास दिला रहा था।


कमला की आंखों की भाषा पढ़कर रघु समझ गया कमला को ये बहुत पसन्द आया फिर भी वो कमला के मुंह से सुनना चाहता था इसलिए बोला…कमला कैसा लगा पसन्द आया की नहीं


आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
 
Wake Up To Reality
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Update - 50

कमला जब कमरे में जा रहीं थीं तब उसके चहरे से दुनियां भर की खुशियां जल प्रपात की तरह अविरल बहे जा रहीं थीं। एक एक कदम का फैसला तय करते हुए कमला रूम में पहुंची, रूम में पहुंचते ही "ahhhhh" एक गहरी स्वास छोड़ा, मानो वो मिलो दौड़कर आई हों, किंतु उसके चहरे से ऐसा नहीं लग रहा था। चहरे से तो सिर्फ़ कभी न खत्म होने वाली सुखद अनुभूति झलक रहीं थीं।

अंतर मन में उपज रही सुखद अनुभूति कमला पर इतना हावी थी कि बिना कुछ लिए बाथरूम में चली गईं। जिस्म में मौजूद एक एक वस्त्र इतनी शोखी से उतर रहीं थीं कि कोई पुरुष देख ले तो कमला की अदाओं को देखकर भाव विहीन होकर बस देखता ही रहें।

बाथरूम में एक से बढ़कर एक इत्र युक्त साबुन और शैंपू रखा था किंतु कमला निर्धारित नहीं कर पा रहीं थीं कि नहाने में किस साबुन या शैंपू का इस्तेमाल किया जाए। एक को हाथ में लेती "नहीं नहीं ये नहीं" फिर दूसरे को हाथ में लेती, न न बोलकर उसे भी वापस रख देती। कई बार उठाया रखा, उठाया रखा करने के बाद अंतः एक साबुन और शैंपो उसे पसन्द आया। उसी से नहाने लग गईं।

साबुन की खुशबू बदन के साथ साथ पूरे बाथरूम को भी महका दिया। बरहाल कुछ ही देर में नहाने की क्रिया सम्पन्न हुआ। बदन को पोछने के लिए तौलिया ढूंढा तो तौलिया कहीं मिली नहीं तब याद आया कि तौलिया तो लाई नहीं तो कमला बोलीं... अब क्या करूं तौलिया तो लाया नहीं क्या मैं ऐसे ही बहार चली जाऊं।

उसी वक्त कमरे में किसी के आने का आहट हुआ जिसे सुनकर कमला खुद से बोलीं... लगाता हैं कोई आया हैं कौन आया होगा….।

कमला ने सिर्फ इतना ही बोला था की आने वाले ने बोला... कमला तुम अभी तक बाथरूम में हों। तुम्हें तो अब तक तैयार हों जाना चाहिए था।

कमला…हां! बस मुझे थोडा वक्त दीजिए मैं जल्दी से तैयार हों जाऊंगी। क्या आप मुझे तौलिया लाकर देंगे मैं तौलिया लाना भूल गई।

रघु... तुम दरवाजा खोलो मैं अभी देता हूं।

इतना बोलकर रघु तौलिया लिया फ़िर दरवाजा थपथपाया कमला ने थोडा सा दरवाजा खोला और हाथ बढ़ाकर बोला... लाइए जल्दी से तौलिया दीजिए

बाथरूम का दरवाजा खोलने से साबुन की सुगंध बहार निकल आया। जिसे सूघते ही रघु के मुंह से "ahaaa" की एक ध्वनि निकला फिर तौलिया कमला के हाथ में देते हुए उसका हाथ थाम लिया। जिसका असर ये हुआ की दोनों का बदन झनझना उठा और कमला हाथ खींचते हुए बोली... क्या करते हो जी मेरा हाथ छोड़िए।

रघु मुस्कुराते हुए कमला का हाथ छोड़ दिया फ़िर कुछ पल बिता था की कमला तौलिया लपेट कर बहार निकल आई। बीबी का ऐसा अवतार देखकर रघु बस एक टक देखता रह गया। देखने का नजरिया क्या था कहना मुस्कील हैं हवस था की प्यार था या फ़िर कुछ ओर ये बस रघु ही जानें परंतु रघु के चहरे की मुस्कान बता रहा था कि रघु कमला के इस रूप से बहुत प्रभावित हुआ हैं।

पति का ऐसे भाव विहीन और मन्द्र मुग्ध होकर खुद को देखता देखकर कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…ऐसे क्या देख रहें हो जी मुझे देखना छोड़िए और जाकर जल्दी से नहा कर आइए हमे देर हों रहा हैं।

पत्नी का इतना बोलना था की रघु मंद मंद मुस्कान लवो पर लिए बाथरूम में घुस गया और कमला अलमारी के पास जाकर वस्त्र को उलट पुलट कर देखने लगीं की पहने तो क्या पहनें कमला के कपड़ो का तांता लगा हुआ था उनमें से कौन सा पहनें ये फैसला कमला नहीं कर पा रही थीं। बहरहाल कमला यूं ही वस्त्रों में उलझी रहीं और इतने वक्त में रघु भी बाथरूम से बहार आ गया। पत्नी को यूं वस्त्रों में उलझा देखकर रघु बोला... कमला ये क्या? तुम अभी तक तैयार नहीं हुई अभी तक वस्त्रों में उलझी हुई हों जल्दी करो हमे देर हों रहा हैं।

कमला…क्या करूं जी! पूरा अलमारी वस्त्रों से भरा पड़ा हैं मै फैसला नहीं कर पा रहीं हूं कौन सा पहनु एक हाथ में लेती हूं तो दूसरा पहनें का मन करता हैं दूसरा उठती हूं तो तीसरा पहनें का मन करता हैं। आप ही बता दीजिए न कौन सा पहनू।

रघु…कमला तुम इतनी खूबसूरत हों की जो भी पहनोगी तुम पर अच्छा लगेगा फ़िर भी आगर तुम मेरे पसन्द का पहना चहती हों तो तुम उसी गाउन को पहन लो जो तुमने सगाई वाले दिन पहना था। मैं एक बार फिर से तुम्हें उन्हीं कपड़ों में देखना चाहता हूं।

पति से इतना सुनने ही कमला के चहरे पर मुस्कान आ गई और कमला उस वस्त्र को बहार निकल लिया फ़िर रघु के लिए भी एक जोड़ी वस्त्र निकल कर रघु को दिया और खुद का वस्त्र लेकर बाथरूम में घुस गई। कुछ ही वक्त में दोनों तैयार होकर एक दूसरे का हाथ थामे कमरे से बहार निकलकर आए फ़िर बैठक में जाकर रघु सुरभि से बोला…मां हम लोग जा रहें हैं।

सुरभि... जा लेकिन संभाल कर जाना और बहू का ध्यान रखना ये जगह बहू के लिए नया है ओर हां मैंने कुछ लोगों को तुम्हारे साथ जानें को कह दिया हैं उनको भी साथ लेते जाना।

रघु... मां इसकी क्या जरूरत थीं?

सुरभि…सुरक्षा के लिए किसी का साथ रहना इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी हैं। तू जानता है तेरी शादी से पहले कितना कुछ हुआ था। इतनी अडंगा लगाने के बाद भी तेरी शादी हों गईं तो जाहिर सी बात हैं वो लोग खीसिया गए होंगे और एक खीसियाए हुए लोग कभी भी कुछ भी कर सकते हैं।

सुकन्या.. रघु जब दुश्मन अनजान हों तो हमारा फर्ज बनता हैं कि हम सतर्क रहें क्योंकि ऐसे लोग इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया हैं जो मौका मिलते हैं घात कर देते हैं। तू और बहू रात के वक्त बहार जा रहा हैं इसलिए हम चाहते है की कोई अनहोनी न हों तू बस चुप चाप दीदी ने जिनको तैयार रहने को कहा उन्हें साथ लेकर जा।

इतना कहने के बाद सुकन्या मन में बोली... रघु मैं जानता हूं इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया कौन कौन हैं पर मैं बता नहीं सकती, बताऊं भी तो कैसे बताऊं तेरे अपने ही अपनो की खुशियों को डसने में लगे हुए हैं।

मां और चाची की बाते सुनकर रघु को लगा उनका कहना भी सही है इसलिए न चाहते हुए भी रघु हां में सिर हिलाकर बहार को चल दिया, रघु की मानो दासा से सुरभि और सुकन्या भलीभाती परिचित थी। इन दोनों ने भी उम्र के इस पड़ाव से होकर गुजारे हैं शादी के शुरुवाती दिनों में शादीशुदा जोड़ा अपने एकांत पालो में किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नहीं करते परन्तु इस वक्त परिस्थिति बिल्कुल बदला हुआ हैं।

रघु बहार आकर देखा कुछ अंगरक्षक तैयार खड़े हैं तो रघु ने उन्हें कुछ समझाया फ़िर चल दिया। रघु खुद कार चला रहा था और बगल वाली सीट पर कमला बैठी थीं। उनके पीछे पीछे कुछ दूरी बनाकर अंगरक्षकों का जीप चल रहा था। जो मुस्तैदी से आस पास और सामने चल रहे रघु की कार पर नज़र बनाए हुए थे।

कार को रघु सामान्य रफ्तार से चला रहा था और बार बार कमला के चहरे को देख रहा था। जहां उसे सिर्फ़ कमला का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिख रहा था। बीबी को इतनी खुश देखकर रघु भी अंदर ही अंदर खुश हों रहा था। अचानक कमला रघु से बोला... हम कहा जा रहे हैं।

रघु... घर पर बोला तो था फिर भी पूछ रहीं हों।

कमला…बोला था पर हम जहां जा रहे है वहां का कुछ नाम तो होगा मैं बस नाम जानना चहती हूं।

रघु... नाम तो नहीं बताऊंगा पर इतना जान लो वो जगह यहां का सबसे मशहूर जगह हैं।

कमला….मुझे पसन्द नहीं आया तो पहले ही कह देती हू मै वहां एक पल नहीं रुकने वाली।

रघु...न पसन्द आए ऐसा हों ही नहीं सकता देख लेना तुम ख़ुद ही वाह वाह करने लग जाओगी।

कमला... ऐसा हैं तो देर क्यों कर रहें हों कार को थोडा तेज चलाओ और मुझे वहां जल्दी पहुचाओ मैं भी देखूं ऐसी कौन सी जगह हैं जिसकी तारीफ में मेरे पति कसीदे पढ़े जा रहें हैं।

रघु...जैसी आप की मर्जी मालकिन जी मैं तो आपका गुलाम हूं आपकी हुक्म मानना मेरा परम कर्तव्य हैं ही ही ही।

इतना कहकर रघु कार की रफ्तार थोडी ओर बडा देता हैं और कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…कौन गुलाम यह तो कोई गुलाम नहीं हैं यहां बस मेरा पति हैं। कहीं आपकी इशारा मेरे पति की ओर तो नहीं हैं ही ही ही।

इतना कहकर कमला खिलखिला कर हंस दिय। रघु बस मुस्कुराकर हा में सिर हिला दिया। कुछ ही वक्त में दोनों मसखरी करते हुए। माल रोड पर मौजूद एक भोजनालय के सामने पहुंच गए। हालाकि रात का वक्त था फिर भी लोगों की अजवाही हों रहा था। भोजनालय की भव्यता देखकर ही कहा जा सकता है की ये भोजनालय सिर्फ और सिर्फ रसूक दार लोगों के लिए बना हैं। कार के रूकते ही कुछ लोग दौड़कर आए और कार के पास खड़े हों गए। रघु के साथ आए अंगरक्षक भी तुरंत दौड़कर आए और रघु और कमला को घेरकर खड़े हों गए। उसी वक्त सूट बूट में एक बंदा आया और रघु को प्रणाम करते हुए बोला... प्रणाम युवराज आपका हमारे इस भोजनालय में स्वागत हैं।

रघु रूआव दार आवाज में बोला...जैसा मैंने आपसे कहा था बिल्कुल वैसी व्यवस्था हों गया न कुछ कामी रहीं तो सोच लेना।

"आपने खुद फोन करके कहा था तो कैसे कोई कमी रह सकता हैं। मैं दावे से कह सकता हूं आपने जैसा कहा था उससे बेहतर ही होगा। वैसे आपके साथ ये महिला कौन हैं जान सकता हूं।"

रघु...ये मेरी धर्मपत्नी कमला रघु प्रताप राना हैं। इन्हीं के लिए ही सारी व्यवस्था करवाया था मेरा पसन्द आना न आना व्यर्थ हैं इनको पसन्द आना चाहिए।

इतना बोलकर कमला का हाथ थामे अंदर को चल दिया और कमला बस रघु को देख रहा था साथ ही थोडी हैरान भी थीं। क्योंकि पहली बार रघु को किसी से रुआब दार आवाज में बात करते हुए देखा था और भोजनालय का बंदा चापलूसी करते हुए बोला... हमने इनके भी ख्याल का पूरा पूरा ध्यान रख हैं। मैं दावे से कह सकता हूं इन्हे तो हद से ज्यादा पसन्द आने वाली हैं।

बंदे की बात सुनकर कमला और रघु समझ गया मक्खन पेल के लगाया जा रहा है इसलिए रघु मन में बोला… बेटा जीतना मक्खन लगना है लगा ले आगर कमला को पसन्द नहीं आया तो तेरा ये भोजनालय सुबह होने से पहले धराशाई होकर मिटी में मिल जायेगा।

कमला मन में बोली... कितना चापलूस आदमी हैं खुद की बड़ाई ऐसे कर रहा हैं जैसे मेरी पसन्द की इन्हें पूरी जानकारी हैं।

कुछ कदम चलने के बाद बंदे ने एक और इशारा करते हुए बोला " इस ओर चलिए" बंदे के बताते ही कमला और रघु उस और चल दिया। एक गलियारे से होता हुआ सभी एक खुले मैदान में पहुंच गए वहा की सजावट देखते ही कमला अचंभित रह गई और रघु की और देखकर आंखो की भाषा में शुक्रिया अदा करने लग गईं। रघु के लिए बस इतना ही काफी था इसके आगे कुछ भी कहने की जरूरत ही नहीं पड़ा क्योंकि रघु ने जो भी किया सिर्फ कमला के खुशी के लिए ही किया था।

अब जरा हम भी देखे ऐसा किया था जिसे देखते ही कमला अचंभित हो गई। दरअसल ये एक पचास वर्ग मीटर का खुला मैदान था। जिसके चारों और सजावटी पेड़ और पौधे लगे हुए थे। मैदान में भी कही कही छोटे छोटे देवदार के पेड़ लगे थे जिसे करीने से कटकर कुछ को गोलाकार कुछ को शंकुआकर (conical) रूप दिया गया था। इन्हीं पेड़ों पर मोमबत्ती को जलाकर शीशे के चार दिवारी में बंद करके टंगा हुआ था। शीशे के कारण मोमबत्ती की प्रकाश और निखरकर वातावरण को रोशन कर रहा था। ऊपर खुला आसमान जहां टिमटिमाती तारे और नीचे पेड़ों पर टांगे कृत्रिम जुगनू ये सब मिलकर दृश्य को बडा ही लुभावना और रोमांचित कर देने वाला माहौल बना रहा था। इससे भी ज्यादा रोमांचित कर देने वाला दृश्य था बीच में लगा हुआ टेबल जिस पर जगनुओ को छोटे छोटे शीशे की पिटारी में बंद करके जगह जगह रखा हुआ था। जो टिमटिमा कर आसमान में चमकती तारों का एहसास दिला रहा था।


कमला की आंखों की भाषा पढ़कर रघु समझ गया कमला को ये बहुत पसन्द आया फिर भी वो कमला के मुंह से सुनना चाहता था इसलिए बोला…कमला कैसा लगा पसन्द आया की नहीं


आगे की कहानी अगले भाग से जानेंगे यहां तक साथ बने रहने के लिए सभी पाठकों को बहुत बहुत धन्यवाद 🙏🙏
Update mast hai mera bhai aur sbse badhiya tha view💕
 
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Update - 50

कमला जब कमरे में जा रहीं थीं तब उसके चहरे से दुनियां भर की खुशियां जल प्रपात की तरह अविरल बहे जा रहीं थीं। एक एक कदम का फैसला तय करते हुए कमला रूम में पहुंची, रूम में पहुंचते ही "ahhhhh" एक गहरी स्वास छोड़ा, मानो वो मिलो दौड़कर आई हों, किंतु उसके चहरे से ऐसा नहीं लग रहा था। चहरे से तो सिर्फ़ कभी न खत्म होने वाली सुखद अनुभूति झलक रहीं थीं।

अंतर मन में उपज रही सुखद अनुभूति कमला पर इतना हावी थी कि बिना कुछ लिए बाथरूम में चली गईं। जिस्म में मौजूद एक एक वस्त्र इतनी शोखी से उतर रहीं थीं कि कोई पुरुष देख ले तो कमला की अदाओं को देखकर भाव विहीन होकर बस देखता ही रहें।

बाथरूम में एक से बढ़कर एक इत्र युक्त साबुन और शैंपू रखा था किंतु कमला निर्धारित नहीं कर पा रहीं थीं कि नहाने में किस साबुन या शैंपू का इस्तेमाल किया जाए। एक को हाथ में लेती "नहीं नहीं ये नहीं" फिर दूसरे को हाथ में लेती, न न बोलकर उसे भी वापस रख देती। कई बार उठाया रखा, उठाया रखा करने के बाद अंतः एक साबुन और शैंपो उसे पसन्द आया। उसी से नहाने लग गईं।

साबुन की खुशबू बदन के साथ साथ पूरे बाथरूम को भी महका दिया। बरहाल कुछ ही देर में नहाने की क्रिया सम्पन्न हुआ। बदन को पोछने के लिए तौलिया ढूंढा तो तौलिया कहीं मिली नहीं तब याद आया कि तौलिया तो लाई नहीं तो कमला बोलीं... अब क्या करूं तौलिया तो लाया नहीं क्या मैं ऐसे ही बहार चली जाऊं।

उसी वक्त कमरे में किसी के आने का आहट हुआ जिसे सुनकर कमला खुद से बोलीं... लगाता हैं कोई आया हैं कौन आया होगा….।

कमला ने सिर्फ इतना ही बोला था की आने वाले ने बोला... कमला तुम अभी तक बाथरूम में हों। तुम्हें तो अब तक तैयार हों जाना चाहिए था।

कमला…हां! बस मुझे थोडा वक्त दीजिए मैं जल्दी से तैयार हों जाऊंगी। क्या आप मुझे तौलिया लाकर देंगे मैं तौलिया लाना भूल गई।

रघु... तुम दरवाजा खोलो मैं अभी देता हूं।

इतना बोलकर रघु तौलिया लिया फ़िर दरवाजा थपथपाया कमला ने थोडा सा दरवाजा खोला और हाथ बढ़ाकर बोला... लाइए जल्दी से तौलिया दीजिए

बाथरूम का दरवाजा खोलने से साबुन की सुगंध बहार निकल आया। जिसे सूघते ही रघु के मुंह से "ahaaa" की एक ध्वनि निकला फिर तौलिया कमला के हाथ में देते हुए उसका हाथ थाम लिया। जिसका असर ये हुआ की दोनों का बदन झनझना उठा और कमला हाथ खींचते हुए बोली... क्या करते हो जी मेरा हाथ छोड़िए।

रघु मुस्कुराते हुए कमला का हाथ छोड़ दिया फ़िर कुछ पल बिता था की कमला तौलिया लपेट कर बहार निकल आई। बीबी का ऐसा अवतार देखकर रघु बस एक टक देखता रह गया। देखने का नजरिया क्या था कहना मुस्कील हैं हवस था की प्यार था या फ़िर कुछ ओर ये बस रघु ही जानें परंतु रघु के चहरे की मुस्कान बता रहा था कि रघु कमला के इस रूप से बहुत प्रभावित हुआ हैं।

पति का ऐसे भाव विहीन और मन्द्र मुग्ध होकर खुद को देखता देखकर कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…ऐसे क्या देख रहें हो जी मुझे देखना छोड़िए और जाकर जल्दी से नहा कर आइए हमे देर हों रहा हैं।

पत्नी का इतना बोलना था की रघु मंद मंद मुस्कान लवो पर लिए बाथरूम में घुस गया और कमला अलमारी के पास जाकर वस्त्र को उलट पुलट कर देखने लगीं की पहने तो क्या पहनें कमला के कपड़ो का तांता लगा हुआ था उनमें से कौन सा पहनें ये फैसला कमला नहीं कर पा रही थीं। बहरहाल कमला यूं ही वस्त्रों में उलझी रहीं और इतने वक्त में रघु भी बाथरूम से बहार आ गया। पत्नी को यूं वस्त्रों में उलझा देखकर रघु बोला... कमला ये क्या? तुम अभी तक तैयार नहीं हुई अभी तक वस्त्रों में उलझी हुई हों जल्दी करो हमे देर हों रहा हैं।

कमला…क्या करूं जी! पूरा अलमारी वस्त्रों से भरा पड़ा हैं मै फैसला नहीं कर पा रहीं हूं कौन सा पहनु एक हाथ में लेती हूं तो दूसरा पहनें का मन करता हैं दूसरा उठती हूं तो तीसरा पहनें का मन करता हैं। आप ही बता दीजिए न कौन सा पहनू।

रघु…कमला तुम इतनी खूबसूरत हों की जो भी पहनोगी तुम पर अच्छा लगेगा फ़िर भी आगर तुम मेरे पसन्द का पहना चहती हों तो तुम उसी गाउन को पहन लो जो तुमने सगाई वाले दिन पहना था। मैं एक बार फिर से तुम्हें उन्हीं कपड़ों में देखना चाहता हूं।

पति से इतना सुनने ही कमला के चहरे पर मुस्कान आ गई और कमला उस वस्त्र को बहार निकल लिया फ़िर रघु के लिए भी एक जोड़ी वस्त्र निकल कर रघु को दिया और खुद का वस्त्र लेकर बाथरूम में घुस गई। कुछ ही वक्त में दोनों तैयार होकर एक दूसरे का हाथ थामे कमरे से बहार निकलकर आए फ़िर बैठक में जाकर रघु सुरभि से बोला…मां हम लोग जा रहें हैं।

सुरभि... जा लेकिन संभाल कर जाना और बहू का ध्यान रखना ये जगह बहू के लिए नया है ओर हां मैंने कुछ लोगों को तुम्हारे साथ जानें को कह दिया हैं उनको भी साथ लेते जाना।

रघु... मां इसकी क्या जरूरत थीं?

सुरभि…सुरक्षा के लिए किसी का साथ रहना इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी हैं। तू जानता है तेरी शादी से पहले कितना कुछ हुआ था। इतनी अडंगा लगाने के बाद भी तेरी शादी हों गईं तो जाहिर सी बात हैं वो लोग खीसिया गए होंगे और एक खीसियाए हुए लोग कभी भी कुछ भी कर सकते हैं।

सुकन्या.. रघु जब दुश्मन अनजान हों तो हमारा फर्ज बनता हैं कि हम सतर्क रहें क्योंकि ऐसे लोग इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया हैं जो मौका मिलते हैं घात कर देते हैं। तू और बहू रात के वक्त बहार जा रहा हैं इसलिए हम चाहते है की कोई अनहोनी न हों तू बस चुप चाप दीदी ने जिनको तैयार रहने को कहा उन्हें साथ लेकर जा।

इतना कहने के बाद सुकन्या मन में बोली... रघु मैं जानता हूं इंसान की खाल में छिपा हुआ भेड़िया कौन कौन हैं पर मैं बता नहीं सकती, बताऊं भी तो कैसे बताऊं तेरे अपने ही अपनो की खुशियों को डसने में लगे हुए हैं।

मां और चाची की बाते सुनकर रघु को लगा उनका कहना भी सही है इसलिए न चाहते हुए भी रघु हां में सिर हिलाकर बहार को चल दिया, रघु की मानो दासा से सुरभि और सुकन्या भलीभाती परिचित थी। इन दोनों ने भी उम्र के इस पड़ाव से होकर गुजारे हैं शादी के शुरुवाती दिनों में शादीशुदा जोड़ा अपने एकांत पालो में किसी की दखलंदाजी बर्दास्त नहीं करते परन्तु इस वक्त परिस्थिति बिल्कुल बदला हुआ हैं।

रघु बहार आकर देखा कुछ अंगरक्षक तैयार खड़े हैं तो रघु ने उन्हें कुछ समझाया फ़िर चल दिया। रघु खुद कार चला रहा था और बगल वाली सीट पर कमला बैठी थीं। उनके पीछे पीछे कुछ दूरी बनाकर अंगरक्षकों का जीप चल रहा था। जो मुस्तैदी से आस पास और सामने चल रहे रघु की कार पर नज़र बनाए हुए थे।

कार को रघु सामान्य रफ्तार से चला रहा था और बार बार कमला के चहरे को देख रहा था। जहां उसे सिर्फ़ कमला का मुस्कुराता हुआ चेहरा दिख रहा था। बीबी को इतनी खुश देखकर रघु भी अंदर ही अंदर खुश हों रहा था। अचानक कमला रघु से बोला... हम कहा जा रहे हैं।

रघु... घर पर बोला तो था फिर भी पूछ रहीं हों।

कमला…बोला था पर हम जहां जा रहे है वहां का कुछ नाम तो होगा मैं बस नाम जानना चहती हूं।

रघु... नाम तो नहीं बताऊंगा पर इतना जान लो वो जगह यहां का सबसे मशहूर जगह हैं।

कमला….मुझे पसन्द नहीं आया तो पहले ही कह देती हू मै वहां एक पल नहीं रुकने वाली।

रघु...न पसन्द आए ऐसा हों ही नहीं सकता देख लेना तुम ख़ुद ही वाह वाह करने लग जाओगी।

कमला... ऐसा हैं तो देर क्यों कर रहें हों कार को थोडा तेज चलाओ और मुझे वहां जल्दी पहुचाओ मैं भी देखूं ऐसी कौन सी जगह हैं जिसकी तारीफ में मेरे पति कसीदे पढ़े जा रहें हैं।

रघु...जैसी आप की मर्जी मालकिन जी मैं तो आपका गुलाम हूं आपकी हुक्म मानना मेरा परम कर्तव्य हैं ही ही ही।

इतना कहकर रघु कार की रफ्तार थोडी ओर बडा देता हैं और कमला मुस्कुराते हुए बोलीं…कौन गुलाम यह तो कोई गुलाम नहीं हैं यहां बस मेरा पति हैं। कहीं आपकी इशारा मेरे पति की ओर तो नहीं हैं ही ही ही।

इतना कहकर कमला खिलखिला कर हंस दिय। रघु बस मुस्कुराकर हा में सिर हिला दिया। कुछ ही वक्त में दोनों मसखरी करते हुए। माल रोड पर मौजूद एक भोजनालय के सामने पहुंच गए। हालाकि रात का वक्त था फिर भी लोगों की अजवाही हों रहा था। भोजनालय की भव्यता देखकर ही कहा जा सकता है की ये भोजनालय सिर्फ और सिर्फ रसूक दार लोगों के लिए बना हैं। कार के रूकते ही कुछ लोग दौड़कर आए और कार के पास खड़े हों गए। रघु के साथ आए अंगरक्षक भी तुरंत दौड़कर आए और रघु और कमला को घेरकर खड़े हों गए। उसी वक्त सूट बूट में एक बंदा आया और रघु को प्रणाम करते हुए बोला... प्रणाम युवराज आपका हमारे इस भोजनालय में स्वागत हैं।

रघु रूआव दार आवाज में बोला...जैसा मैंने आपसे कहा था बिल्कुल वैसी व्यवस्था हों गया न कुछ कामी रहीं तो सोच लेना।

"आपने खुद फोन करके कहा था तो कैसे कोई कमी रह सकता हैं। मैं दावे से कह सकता हूं आपने जैसा कहा था उससे बेहतर ही होगा। वैसे आपके साथ ये महिला कौन हैं जान सकता हूं।"

रघु...ये मेरी धर्मपत्नी कमला रघु प्रताप राना हैं। इन्हीं के लिए ही सारी व्यवस्था करवाया था मेरा पसन्द आना न आना व्यर्थ हैं इनको पसन्द आना चाहिए।

इतना बोलकर कमला का हाथ थामे अंदर को चल दिया और कमला बस रघु को देख रहा था साथ ही थोडी हैरान भी थीं। क्योंकि पहली बार रघु को किसी से रुआब दार आवाज में बात करते हुए देखा था और भोजनालय का बंदा चापलूसी करते हुए बोला... हमने इनके भी ख्याल का पूरा पूरा ध्यान रख हैं। मैं दावे से कह सकता हूं इन्हे तो हद से ज्यादा पसन्द आने वाली हैं।

बंदे की बात सुनकर कमला और रघु समझ गया मक्खन पेल के लगाया जा रहा है इसलिए रघु मन में बोला… बेटा जीतना मक्खन लगना है लगा ले आगर कमला को पसन्द नहीं आया तो तेरा ये भोजनालय सुबह होने से पहले धराशाई होकर मिटी में मिल जायेगा।

कमला मन में बोली... कितना चापलूस आदमी हैं खुद की बड़ाई ऐसे कर रहा हैं जैसे मेरी पसन्द की इन्हें पूरी जानकारी हैं।

कुछ कदम चलने के बाद बंदे ने एक और इशारा करते हुए बोला " इस ओर चलिए" बंदे के बताते ही कमला और रघु उस और चल दिया। एक गलियारे से होता हुआ सभी एक खुले मैदान में पहुंच गए वहा की सजावट देखते ही कमला अचंभित रह गई और रघु की और देखकर आंखो की भाषा में शुक्रिया अदा करने लग गईं। रघु के लिए बस इतना ही काफी था इसके आगे कुछ भी कहने की जरूरत ही नहीं पड़ा क्योंकि रघु ने जो भी किया सिर्फ कमला के खुशी के लिए ही किया था।

अब जरा हम भी देखे ऐसा किया था जिसे देखते ही कमला अचंभित हो गई। दरअसल ये एक पचास वर्ग मीटर का खुला मैदान था। जिसके चारों और सजावटी पेड़ और पौधे लगे हुए थे। मैदान में भी कही कही छोटे छोटे देवदार के पेड़ लगे थे जिसे करीने से कटकर कुछ को गोलाकार कुछ को शंकुआकर (conical) रूप दिया गया था। इन्हीं पेड़ों पर मोमबत्ती को जलाकर शीशे के चार दिवारी में बंद करके टंगा हुआ था। शीशे के कारण मोमबत्ती की प्रकाश और निखरकर वातावरण को रोशन कर रहा था। ऊपर खुला आसमान जहां टिमटिमाती तारे और नीचे पेड़ों पर टांगे कृत्रिम जुगनू ये सब मिलकर दृश्य को बडा ही लुभावना और रोमांचित कर देने वाला माहौल बना रहा था। इससे भी ज्यादा रोमांचित कर देने वाला दृश्य था बीच में लगा हुआ टेबल जिस पर जगनुओ को छोटे छोटे शीशे की पिटारी में बंद करके जगह जगह रखा हुआ था। जो टिमटिमा कर आसमान में चमकती तारों का एहसास दिला रहा था।


कमला की आंखों की भाषा पढ़कर रघु समझ गया कमला को ये बहुत पसन्द आया फिर भी वो कमला के मुंह से सुनना चाहता था इसलिए बोला…कमला कैसा लगा पसन्द आया की नहीं


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Inna badhiya update padhkar dil khus ho gaya lagta sab mere sath ho raha hai mast update bhai ji :vhappy:
 
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Inna badhiya update padhkar dil khus ho gaya lagta sab mere sath ho raha hai mast update bhai ji :vhappy:
Jankar achcha laga ki mere likhe shavdo ko apne khud se jodkar dekha aur kuch waqt ke liye khahani me varnit drishy ko jiya bahut bahut shukriya Rahul ji
 

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