Romance Ajnabi hamsafar rishton ka gatbandhan

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पति की बाते सुनकर सुकन्या सिर्फ मुस्कुरा दिया और रावण चाल गया। कुछ ही वक्त में रावण दलाल के घर के बहर था। गेट पे ही द्वारपाल ने कह दिया दलाल इस वक्त घर पे नहीं हैं। अब उसका वह प्रतीक्षा करना व्यर्थ था इसलिए रावण बाद में आने को कहकर वापस चल दिया।

दलाल अभी अभी एक आलीशान महल के सामने पहुंचा था। हां आलीशान महल जिसकी भव्यता में कोई कमी नहीं अगर राज महल से इसकी तुलना कि जाएं तब राज महल की भव्यता के आगे बौना ही सिद्ध होगा अगर राज महल को परे रख दिया जाएं तो इस महल के आगे अन्य सभी आवास लगभग बौना ही लगेगा।

दलाल को देखते ही द्वारपाल ने इतनी तीव्र गति से अपना काम किया जैसे दलाल ही इस महल का स्वामी हों और महल स्वामी को द्वार पर ज्यादा देर प्रतीक्षा करवाना उचित नहीं होगा। मुख्य द्वार खुलते ही दलाल ने भी बिल्कुल वैसा ही प्रतिक्रिया दी।

"द्वार खोलने में इतना वक्त लगता हैं। हरमखोर तू कर क्या रहा था।?" दलाल के इन शब्दों का द्वारपाल ने कोई उत्तर नहीं दिया बस शीश झुकाकर खड़ा हों गया।

आगे का कुछ फैसला तय करके दलाल कार से उतर गया फ़िर शान से चलते हुए महल के भीतर चल दिया। कितना भी छीना ताने शान से चल ले लेकिन दलाल की डगमगाती चाल और बैसाकी के सहारे ने कुछ अंतर ला दिया था।

"आ मेरे भाई मेरे छीने से लगकर थोड़ी टंडक दे दे।" भीतर प्रवेश करते ही इन शब्दों ने दलाल का स्वागत किया और वह शख्स हाथ फैलाए खडा हों गया।

दलाल के चहरे की खुशी देखने लायक थी। ऐसा लग रहा था जैसे वर्षों के बिछड़े आज मिल रहें हों और दौड़कर अपने भाई से लिपट जाना चाहता हों लेकिन बैसाकी ने उसके इच्छाओं पे विराम लगा दिया इसलिए धीमे रफ्तार से चलते हुए आगे बढ़ने लगा।

"क्या हुआ मेरे भाई मुझसे मिलकर तू खुश नहीं हुआ और तेरे हाथ में यह बैसाकी क्यों?"

दलाल…खुश तो दादा भाई इतना हूं की दौड़कर आपसे लिपट जाने का मन कर रहा हैं लेकिन इस बैसाकी और टूटी हड्डियों ने मेरे इच्छाओं पर विराम लगा दिया।

"ओहो मैं तो भुल ही गया था दामिनी बहू ने उपहार में तुझे जीवन भर का जख्म दे दिया हैं। तू नहीं आ सकता तो क्या हुआ मैं तो आ सकता हूं।"

इतना बोलकर वह शख्स जाकर दलाल से लिपट गया। एक नौजवान लड़का, एक उम्रदराज महिला और कुछ नौकर चाकर इस भरत मिलाप के साक्षी बने कुछ पल देखने के बाद वह महिला बोलीं…चलो रे सब अपने अपने काम में लग जाओ इनका भरत मिलाप चलने दो आखिर दोनों भाई पांच साल बाद एक दूसरे से मिल रहें हैं।

"मैं तो इनसे लगभग प्रत्येक दिन मिलता हूं। लेकिन मुझसे तो कभी ऐसे नहीं मिले।" नौजवान लड़का शिकायत करते हुए बोला

दलाल…जो सामने रहते है उनसे मिलने की उत्साह थोड़ी कम होती हैं। इसलिए शिकायत करने से कोई फायदा नहीं हैं। क्यों दादा भाई मैंने सही कहा न?।

"बिल्कुल मेरे भाई चलो रे सभी कोना पकड़ो हम दोनों भाईयों को बहुत सारी बातें करनी हैं।"

सभी को कोना पकड़ने को कहा लेकिन हुआ उसका उल्टा वह शख्स दलाल को साथ लिए एक कमरे में चला गया और जाते जाते चेतावनी भी दे गया कि कोई उन्हें परेशान करने कमरे के आस पास भी न भटके।

"हमारी बहना प्यारी कैसी हैं? हमारा काम ठीक से कर रहीं हैं कि नहीं।" कमरे में आते ही वह शख्स ने सवाल दाग दिया।

दलाल…दादा भाई हमारी बहना अब प्यारी नही रहीं वो बदल गईं हैं। हमारे काम करने से सुकन्या ने साफ साफ इंकार कर दिया हैं।

"सुकन्या ने इंकार कर दिया तो क्या हुआ रावण तो अपने हाथ में है न उसी से ही राजमहल में लक्षा गृह का अग्नि कांड करवाएंगे।"

"अग्नि कांड" सिर्फ़ इतना दलाल ने दोहराया फिर हा हा हा की तीव्र दानवीय हंसी हंसने लग गया साथ में उसका भाई भी बिल्कुल दलाल की ताल से ताल मिलाकर हंसने लग गया। चारों दिशाओं से बंद कमरा जिसकी दीवारों से टकराकर हसीं की गूंज प्रतिध्वनि प्रभाव (echo effect) छोड़ रहा था।

"साला बुड़बक, बड़बोला, मंद बुद्धि कितनी शान से कहता हैं मैं रावण हूं रावण कलियुग का रावण।" दलाल ने लगभग खिल्ली उड़ने के तर्ज से कहा और एक बार फ़िर से दनवीय हसीं से हंसने लग गया।

"रावण हा हा हा रावण महा ज्ञानी था। उनके पांव के धूल बराबर भी नहीं हैं। मंद बुद्धि को इतना भी नहीं पाता कौन दुश्मन कौन दोस्त हैं।"

दलाल…हा हा हा सही कह मंदबुद्धि, नहीं नहीं महा मंदबुद्धि हैं। हमें जिस मौके की तलाश थीं। थाली में सजाकर हमारे हाथ में सौंप दिया मंदबुद्धि को अपना वर्चस्व स्थापित करना था। दुनियां का सबसे धनवान व्यक्ति बनना था। कहता था दलाल मेरे दोस्त मेरे ह्रदय में चिंगारी जल रहा है। मुझे अपना वर्चस्व स्थापित करना हैं दुनियां का सबसे धनवान व्यक्ति बनना हैं बता मैं क्या करूं जिससे मेरा यह सपना पुरा हों।

"हा हा हा उस चिंगारी को तूने इतनी हवा दी कि अब चिंगारी, चिंगारी नहीं रहा दहकती ज्वाला बन गया और उसी ज्वाला में उसी का महल स्वाहा होने वाला हैं।"

"स्वाहा" अग्नि कुंड में आहुति डालने का अभिनय करते हुए दलाल बोला और वैसा ही अभिनय उसके भाई ने किया फ़िर पहले से चल रहीं दानवीय हसीं और तीव्र हों गईं। सहसा दोनों भाईयों में हंसने की प्रतिस्पर्धा छिड़ गया। जितनी तीव्र दलाल हंस रहा था। उसका भाई उससे तीव्र हंस रहा था। कंठ की सहन शक्ति की एक सीमा होती हैं। दोनों भाइयों की दानविय हसीं ने उनके कंठ की मांसपेशियों को थका दिया जिस कारण दोनों भाईयों ने हंसने की तीव्रता में कमी ला दिया। इसका मतलब ये नहीं की हसीं रूक गईं थीं। हंसने का पाला चल रहा था। बस स्वर दानवीय से घटकर सामान्य हों गया था।

दलाल…एक अरसे से हमारे हृदय में जल रहें बदले की ज्वाला को अब शांत कर लेना चाहिए। मौका भी है ओर रावण और राजेन्द्र की ग्रह दशा भी उस ओर इशारा कर रहा हैं।

"दोनों भाईयों की ग्रह दशा ने अभी अभी चाल बदलना शुरू किया हैं। उसे पूरी तरह बदलकर तीतर बितर होने दे फ़िर उपयुक्त समय देखकर अपना बदला ले लेंगे।"

दलाल…उपयुक्त समय क्या देखना? अभी सबसे उपयुक्त समय हैं। हमें बस राजेंद्र के कान में रावण के किए कर्मों की जानकारी पहुंचना हैं और बैठे बैठे दोनों भाईयों के ग्रह दशा के साथ साथ उनके परिवार को तीतर बितर होते हुए देखना है।

"अहा दलाल तू इतना अधीर क्यों हों रहा हैं। वकालत की पेशे में इतना अधीर होना ठीक नहीं हैं।"

दलाल…दादा भाई अधीर नहीं हों रहा हूं मै तो बस संभावना बता रहा हूं। दोनों भाईयों के बीच बारूद लगा दिया हैं। बस एक चिंगारी लगाना हैं फिर एक भीषण धमाका होगा और दोनों भाईयों के बीच दूरियां बनना तय हैं। इसी के लिए हम वर्षों से साजिशें रच रहें हैं।

"अभी अगर कुछ भी किया तो उसकी लपेट में सिर्फ़ रावण आयेगा और रावण के कुकर्मों को जानने के बाद हों सकता हैं राजेंद्र खुद अपने भाई की हत्या कर दे या फ़िर कानून को सौंपकर कानूनन सजा दिलवाए अगर ऐसा हुआ तब मैं जो सोच रखा हैं वैसा बिलकुल नहीं होगा क्योंकि मैं चाहता हूं दोनों भाईयों के बीच ऐसी दुश्मनी की नीव पढ़े जो पीढ़ीदर पीढ़ी चलती रहें।"

दलाल…न जानें आपने क्या क्या सोच रखा हैं लेकिन मैं बस इतना ही कहूंगा कि इस वक्त भी वैसा ही हों सकता हैं जैसा आप चाह रहें हैं।

"होने को तो कुछ भी हों सकता हैं इसलिए अति शीघ्रता करने की आवश्यकता नहीं हैं नहीं तो सभी किए कराए पे पानी फिर जायेगा इसलिए जैसा चल रहा हैं चलने दो क्योंकि मुझे सिर्फ़ बदला ही नहीं चहिए बल्कि कुछ ओर भी चहिए।"

"कुछ ओर (कुछ देर सोचने के बाद दलाल आगे बोला) कुछ ओर से आप का इशारा गुप्त संपत्ति की ओर तो नहीं हैं। लेकिन हमे तो राज परिवार की संपति कभी चाहिए ही नहीं थी। पहले पापा फिर आपने विद्रोही का चोला ओढ़कर इतनी संपति अर्जित कर रखा हैं कि उसके सामने गुप्त संपत्ति भी कुछ नहीं हैं।"

"नहीं रे राज परिवार के गुप्त संपत्ति के आगे हमारी संपति निम्न है। न जानें कितने पुश्तों से राज परिवार गुप्त संपत्ति एकत्र कर रहें हैं फिर भी मैं बस इतना ही कहूंगा मुझे गुप्त संपत्ति नहीं बल्कि कुछ ओर चाहिए।"

दलाल…कुछ ओर कुछ ओर ये कुछ ओर है क्या? मुझे भी बता दीजिए

"ये एक राज है जब मैं उस राज के नजदीक पहुंच जाऊंगा तब सबसे पहले तुझे ही बताऊंगा अभी तू बस इतना जान ले उसके बारे में मुझे पहले जानकारी नहीं था। बस कुछ वर्षों पहले मुझे पता चला फ़िर अधिक जानकारी जुटाने के लिए में देश विदेश भ्रमण पे निकला कुछ विचित्र लोगों से मिला लेकिन उनसे भी भ्रमित करने वाली जानकारी ही मिला कोई कुछ तो कोई कुछ जानकारी दे रहा था मैं तो बस एक शंका के करण राज महल को आधार मानकर चल रहा हूं क्योंकि राज महल का इतिहास बहुत पुराना हैं कितना पुराना इसका भी पुख्ता सबूत मेरे पास नहीं हैं।"

दलाल…जब पुख्ता सबूत नहीं हैं तब उसके पीछे भागने से क्या फायदा बाद में जान पाए की न हम अपना बदला ले पाए और न ही वो राज हाथ लगा जिसको पाने के पीछे आप भाग रहें हों।

"पुख्ता प्रमाण नहीं हैं तो क्या हुआ। कुछ ऐसे तथ्य मिले है जो इशारा करता हैं उस राज की जड़े राजमहल या उसके सदस्य से जुड़ा हुआ हैं और जब तक उस राज की जड़े न खोद लूं मैं चुप नहीं बैठने वाला।"

दलाल…तथ्य क्या हैं? मुझे कुछ बता सकते हों।

"कहा न जब उस राज की पुख्ता सुराग मिल जायेगा तब तुझे भी बता दूंगा अभी अधूरी जानकारी लेकर तू भी मेरी तरह भ्रमित रहेगा।"

दलाल…हम सभी को भ्रमित करते रहते हैं हमे भला कौन सा राज भ्रमित कर सकता हैं।

"गलत अंकलन ही विषय वस्तु की दशा और दिशा दोनों बादल देता हैं। इसलिए अहंकार बस किसी को कमजोर नहीं आंकना चहिए। चाहें वो राजेंद्र,रावण या राजमहल का राज हों।"

दलाल…सत्य वचन भ्राताश्री अब चलो थोड़ा महफिल सजाया जाएं जाम से जाम टकराकर वर्षों बाद दोनों भाई मिले हैं इसकी खुशी मनाई जाएं।

"हां क्यों नहीं दोनों भाई दुनियां के सामने भले ही महफिल न सजा पाए लेकिन विलास महल में हम कुछ भी कर सकते है।"

दोनों भाई एक दूसरे के गले में हाथ डाले गहरे मित्रवत भाव का परिचय देते हुए विलास महल के दूसरे छोर की ओर चल दिया। जाते जाते कुछ चखने की व्यवस्था करने का आदेश भी दे दिया।

महल के दुसरे छोर में अच्छे खासे जगह को एक वार का रूप दिया हुआ था। जहां एक से एक नामी कम्पनियों के महंगी से महंगी नशीली पेय को सुसज्जित तरीके से रखा हुआ था।

"दलाल अपने पसंद का बोतल उठा और पैग बना आज मैं तेरे पसंद का पियूंगा"

दलाल…दादा भाई दो तीन ब्रांड का मिक्स कॉकटेल पीने का मेरा मन हों रहा हैं आप कहो तो आपके लिए भी बना दूं।

"हां बिल्कुल बना, देखे तो सही हमपे जो नशा चढ़ा हुआ हैं उसपे ये कॉकटेल कितना हावी होता हैं।"


"आप दोनों भाइयों ने दिन दोपहरी में ही पीने का मन बना लिया।"

दलाल…बड़े दिनों बाद दोनों भाई मिले हैं तो बस जाम से जाम टकराकर जश्न मना रहें हैं। अब भला जश्न मनाने में किया दिन किया रात देखना।

"बड़े दिनों बाद मिले हों इसलिए दिन में पीने से नहीं रोक रहीं हूं लेकिन ध्यान रखना नशीले पेय का नशा ज्यादा न चढ़े वरना मैं हावी हों जाऊंगी।"

दलाल की भाभी चखना देने आई थीं। चखने के साथ हड़काके चली गई। इसके बाद दलाल कॉकटेल बनता रहा और दोनों भाई पीने लगे। तीन तीन पैग अन्दर जानें के बाद नशा अपना असर दिखने लगा और मन में छुपी बाते बाहर आने लगा।

दलाल… दादा भाई मेरे हृदय में हमेशा एक टीस सी उठती रहती हैं। इतना बडा महल होते हुए मुझे एक छोटे से घर में रहना पड़ता हैं। बडा भाई होते हुए दुनिया के सामने अपना रिश्ता उजागर नहीं कर सकतें ऐसा कितने दिनों तक ओर करना पड़ेगा।

"इस बात की टीस तो मेरे ह्रदय में भी उठता रहता हैं लेकिन क्या करें राज परिवार से बदला जो लेना हैं अगर ऐसा न करना होता तो पिता जी हम दोनों भाईयों को एक दूसरे से दूर रखकर दुनिया से पहचान छुपाकर न पाला होता और हमारी एक मात्र बहन को दूसरे के हाथों सौंप न दिया होता।"

दलाल…सुकन्या हमारी बहन नहीं हैं। भले ही उसके रगों में हमारा ही खून दौड़ रहा हों लेकिन उसकी सोच हमारी जैसी नहीं हैं। जिसने उसे पाला है उसने अपनी सोच उसके मन में डाली हैं।

"इसमें उसकी गलती नहीं है। सुकन्या की तरह तुझे भी कोई दुसरा पालता तब तेरी सोच भी शायद बदला हुआ होता बस पिता जी से इतनी गलती हों गई कि उन्होंने सुकन्या से सानिध्य बनाए नहीं रखा। अब तू ही बता उम्र के एक पड़ाव पे आकर सहसा पाता चले कि जिसने तुझे पाला वास्तव में वे तेरे जन्मदाता मां बाप नहीं हैं फिर तू क्या करता।"

दलाल…अलग तो मैं भी रहा बस फर्क इतना हैं कि मुझे किसी दूसरे ने नहीं पाला ऐसे में मेरी सोच भी बादल सकता था ? इस पे आप क्या कहेंगे?

"हां बदल सकता था लेकिन पिता जी ने तेरी सोच बदलने नहीं दिया। समय रहते तुझे बता दिया कि राज परिवार से हमारी दुश्मनी हैं और कारण भी बता दिया। अगर सुकन्या को भी बता दिया जाता तब वो भी हमारी तरह ही होती। उसे तो आज भी पाता नहीं हैं बस हमने उसे अंधेरे में रखकर अपना काम निकलवाना चाहा।"

दलाल…जो भी हो मैं बस इतना जानता हूं सुकन्या हमारे दुश्मन परिवार से है इसलिए वो भी हमारा दुश्मन हुआ। जब तक सुकन्या हमारा काम करती रहीं तब तक हमारा उससे रिश्ता था अब वो हमारा कोई भी काम नहीं कर रहीं हैं तो हमें उससे कोई रिश्ता रखने की आवश्कता नहीं हैं।

"हां बिल्कुल ऐसा ही होगा दुश्मन परिवार में विहायी हैं तो वो भी हमारा दुश्मन ही हुआ। उसके साथ भी वैसा ही होगा जैसा बाकियों के साथ होगा। अब हमें उससे कोई वास्ता नहीं रखना अगर किसी से वास्ता रखना ही हैं तो वह रावण होगा क्योंकि हम उसकी सहायता से अपना बदला भी लेंगे और राजमहल के छुपे राज का भी पाता लगाएंगे।"

दलाल…राजमहल का राज न जानें कौन सा वो राज हैं? जिसके पीछे आप समय खफा रहें हों। जानना चाहा तब भी नहीं बताया ज्यादा कहा तब आप कहेंगे जिद्द न कर फ़िर भी इतना कहूंगा कि जीतना आप जानते हैं उसका कुछ हिस्सा मुझे बता दीजिए अगर वह राज राजमहल से जुड़ा हैं। तो हों सकता हैं रावण उस बारे में कुछ जानता हों और मैं उससे कुछ अहम जानकारियां निकाल पाऊं।

"मुझे लगता हैं राजेंद्र और रावण में से कोई शायद ही उस राज के बारे में जानता हों क्योंकि दरिद्र, बाला, शकील, भानू और भद्रा इन सभी को मैंने उसी राज की जानकारी निकलने के लिए राजेंद्र के पास भेजा था। चारों ने बहुत सावधानी से बहुत प्रयास किया लेकिन कोई जानकारी नहीं निकाल पाया। अंतः रावण के हाथों उन चारों को मरवाना पड़ा वरना वे सभी कभी न कभी उगल ही देते कि मैं राजमहल के किसी छुपे राज को जानना चाहता हूं।"


दलाल…हा हा हा दादा भाई अपने मुझे भी अंधेरे में रखा और रावण तो शुरू से अंधेरे में हैं। हमने उससे अपना काम निकलवाया खुद का बचाव किया और रावण सोचता हैं उन चारों को मारकर खुद का बचाव किया। क्यों न राजमहल के छुपे राज का पर्दा रावण के हाथों उठवाया जाएं क्योंकि जो राज वर्षों से छुपा कर रखा गया उस पे चर्चा भी खुलेआम नहीं किया जायेगा इसलिए मुझे लगता हैं रावण भी उस राज के बारे में जानता होगा बस खुलेआम कोई चर्चा नहीं करता होगा।

"कह तो तू सही रहा हैं लेकिन इसमें खतरा भी बहुत हैं अगर रावण जानता होगा तब कहीं हमारी ही जान पे न बन आए।,

दलाल…हमारी जान को कोई खतरा नहीं होगा इसका उत्तरदायत्व मैं लेता हूं। आप मुझे बस वो राज क्या हैं और अब तक आपको कितनी जानकारी मिला हैं फिर मैं सोचूंगा की रावण को कौन सा चूरन दिया जाएं जिससे हमारा काम हों जाएं।

"हा हा हा चूरन! तूने महामूर्ख रावण को इतना चूरन दिया ओर अधिक चूरन दिया तो उसका हाजमा ठीक होने के जगह कहीं खराब न हों जाएं।"

दलाल…हा हा हा होता हैं तो होने दो वो महामूर्ख सिर्फ ओर सिर्फ़ मेरा दिया चूरन खाने के लिए पैदा हुआ हैं। चूरन खायेगा ओर कहेगा मैं रावण हूं रावण कलियुग का रावण।

हा हा हा एक बार फिर से दोनों भाई तीव्र स्वर में दानवीय हसीं हंसने लग गए। बीतते पल के साथ हंसी तीव्र ओर तीव्र होता जा रहा था। जो सम्पूर्ण महल में प्रतिध्वनि प्रभाव छोड़ रहा था। जी भर हंसने के बाद अंतः दोनों भाईयों की दानविय हंसी को विराम लगा और दलाल का भाई बोलना शुरू किया।

"दलाल तुझे याद तो होगा आज से लगभग छः, साढ़े छः साल पूर्व रावण और राजेन्द्र के पिताश्री अगेंद्रा राना पे आत्मघाती हमला करवाया था।"

दलाल…हां याद हैं ओर यह भी याद है अगेंद्रा राना उस आत्मघाती हमले में बच गया था लेकिन उसके लगभग दो ढाई साल बाद एक दुर्घटना में मारा गया।

अगेंद्रा राना के एक दुर्घटना में मृत्यु की बात सुनते ही दलाल के भाई के लवों पे रहस्यमई मुस्कान आ गया जो आगाह कर रहा था कि उस दुर्घटना से जुड़ा कोई तो राज है जो दलाल का भाई जानता हैं।

"हां बच तो गया था लेकिन कभी तूने विचार किया कि उस आत्मघाती हमले में अगेंद्रा राना कैसे बचा, क्यों बचा, किसने बचाया था?"

दलाल…अगेंद्रा राना कोई साधारण व्यक्ति नहीं था। जहां भी आता जाता था अंगरक्षकों का एक पूर्ण जत्था साथ लिए जाता था ऐसे में हमारे भेजे हमलावरों से कोई चूक हुआ होगा।

"चूक नहीं हुआ था बल्कि हमारे भेजे हमलावरो ने अगेंद्रा राना के सभी अंगरक्षकों को मार दिया था बस अगेंद्रा राना ही बचा था उस पे हमला कर पाते तभी कहीं से कुछ स्वेत वस्त्र धारी लोग आए और चुटकियों में सभी हमलावरों का सफाया करके अगेंद्रा राना को बचाकर ले गए। ये बातें हमारे ही एक आदमी ने बताया जो किसी तरह छिपकर अपनी जान बचाने में सफल रहा सिर्फ़ जानकारी ही नहीं बल्कि एक यन्त्र भी मुझे दिया जिस पे प्रशांति निलयम् लिखा था।"

दलाल…स्वेत वस्त्र धारी लोग और प्रशांति निलयम् अब किया बदला लेने के लिए इनसे भी निपटना पड़ेगा।

"शायद हां लेकिन उसके बारे में जानकारी भी तो होना चहिए पर विडंबना ये है कि हमें न स्वेत वस्त्र धारियों के बारे में कुछ पाता हैं न ही उस यन्त्र के बारे में, पिछले पांच साल में न जानें कहा कहा घुमा कितने जानें माने उपकरण विशेषज्ञों से मिला पर फायदा कुछ नहीं हुआ। सभी बस एक ही बात कह रहें थे कि ये कोई यन्त्र नहीं बल्कि किसी संस्था का प्रतीक हैं और उस पे लिखा नाम उस संस्था का नाम हैं।"

दलाल…हां तो वे लोग सही कह रहें होंगे। वो विशेषज्ञ हैं और उनकी सोध गलत कैसे हों सकता हैं।

"मैं भी उनकी सोध को गलत कहा कह रहा हूं लेकिन मैं हार नहीं मानने वाला इसलिए मैंने उस प्रशांति निलयम् नमक यंत्र या फ़िर किसी संस्था की प्रतीक पर सोध के लिए अपना एक गुट लगा रखा हैं। सोध जब तक चलता है चलने दो लेकिन हमें उन स्वेत वस्त्र धारियों के बारे में पाता लगाना हैं। अगर किसी तरह छल बल या कौशल से उन स्वेत वस्त्र धारियों के संस्था को हथिया लिया जाएं तब हमसे शक्तिशाली कोई नहीं होगा।"

दलाल…ठीक हैं फिर रावण के लिए कोई चूरन तैयार करता हूं और उसके पेट में छुपी इस प्रशांति निलयम् नामक राज उगलवा लेता हूं।

एक बार फिर दोनों भाईयों की दानविय हंसी ने सम्पूर्ण महल को दहला दिया पर इस बार उनकी हंसी ज्यादा देर नहीं चली क्योंकि दलाल की भाभी ने आकर दोनों को हड़का दिया। सिर्फ हड़काया ही नहीं अपितु घरेलू वार को ही बंद कर दिया।

आगे जारी रहेगा….
Mast update sir dekhte game kiske taraf jata hai
 
Will Change With Time
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Update - 64


अगले दिन दोपहर का समय हों रहा था। राजमहल की सभी महिला सदस्यों में किसी विषय पर गहन मंत्रणा हों रहीं थीं। लेकिन मंत्रणा के बीच बीच में पुष्पा महारानी कुछ ऐसा कह देती जिसे सुनकर बाकी महिलाएं हंस हंसकर लोटपोट हों जाती। जिस कारण मंत्रणा में कुछ क्षण का विराम लग जाता एक बार फिर शुरू होता फिर वहीं अंजाम होंता। इतना हंसे इतना हंसे कि सभी के पेट में दर्द हों गया लेकिन हसीं हैं की रूकने का नाम नहीं ले रहें थे। मंत्रणा और हंसी का खेल चल ही रहा था कि उसी वक्त राजमहल के बाहर से किसी कार के हॉर्न की आवाज आई जिसे सुनते ही सुरभि बोलीं…बहू जरा जाकर देखो तो कौन आया है?

पुष्पा…मां बाहर जाकर देखने की जरूरत ही क्या हैं? जो भी आए हैं उन्हें भीतर तो आना ही हैं। भीतर आने दो फ़िर देख लेंगे।

सुरभि…फ़िर भी बहू को जाकर देखना चहिए। जाओ बहू जाकर देखो शायद तुम्हारे लिए आश्चर्यचकित कर देने वाला कुछ हों।

कमला…मुझे जीतना आश्चर्यचकित करना था आपने कल खरीदारी करते समय ही कर दिया था। अब ओर क्या बच गया जो मुझे आश्चर्यचकित कर दे।

सुरभि…कुछ ऐसा जिसकी तुमने उम्मीद न कि हों।

"उम्मीद न की हों।" इतना दौहराकर कमला अपने मस्तिष्क में जोर देने लग गईं। तब सुरभि बोलीं…बहू मानसिक खींचतान करने से अच्छा जाकर देख लो।

"ठीक हैं मम्मी जी" बोलकर कमला बाहर की ओर चल दिया लेकिन कमला का मस्तिष्क अब भी उसी बात में उलझा हुआ था। उन्हीं उलझनों को सुलझाते हुए कमला दो चार कदम चली ही थी कि द्वार से भीतर आ रहें शख्स को देखकर कमला की कदम जहां थीं वहीं ठहर गईं। ललाट पे आश्चर्य का भाव तो था ही साथ ही अन्तर मन में भावनाओ का ज्वार भी आ चुका था। एक बार पलटकर सुरभि को देखा जिसके मुखड़े पर तैर रहीं मुस्कान बता रहीं थीं कि मैंने बिल्कुल सही कहा था तुम्हारी उम्मीद से पारे कुछ हैं और इशारे से कह दिया जाओ आगे बढ़ो।

एक बार फ़िर से द्वार की ओर कमला पलटी अबकी बार एक और चेहरा दिखा दोनों साथ में खड़े मुस्कुरा रहें थे। यह देख कमला की आंखों के पोर भींग गईं। बस "मां पापा" ये दो शब्द मुंह से निकला और कमला जितनी तेज भाग सकती थी उतनी तेजी से दौड़कर दोनों के पास पहुंचकर रूक गईं। इसलिए रूकी क्योंकि कमला तह नहीं कर पा रही थीं कि पहले किससे लिपटे मन तो उसका दोनों से लिपटने का कर रहा था। मगर एक ही वक्त में दोनों से लिपटे तो लिपटे कैसे? शायद महेश और मनोरमा बेटी की उलझन समझ गए होंगे। इसलिए दोनों ने एक हाथ से एक दूसरे का हाथ थामे रहें और खाली हाथों को सामने की ओर फैला दिया। बस कमला को ओर किया चहिए अपनी दोनों बाहें फैलाकर मां बाप से एक साथ लिपट गई। प्रतिक्रिया स्वरूप महेश और मनोरमा के हाथ बेटी के सिर पे पहुंच गए। सिर को सहलाते हुए अपना प्यार लूटने लग गए।

मां बाप के प्यार का अहसास पाते ही कमला की रूलाई फूट पड़ी। नही रोते, नहीं रोते कहकर बेटी को सांत्वना दे रहे थे। मगर कई दिनों बाद बेटी से मिलने की तड़प या कहूं ललक दोनों मां बाप के ह्रदय में भी ज्वार ला दिया था। उनकी आंखों ने बगावत का बिगुल फुक दिया और हृदय में उठ रहीं भावनाओ का ज्वार नीर बनकर बह निकला।

रोती हुई कमला ने अल्प विराम लिया खुद को मां बाप से थोड़ा सा अलग किया "आप दोनों आ रहें थे तो मुझसे झूठ क्यों बोला" बोलते हुए मां बाप के आंसू को पोंछा और फिर से लिपट गईं। बेटी की इस व्यवहार ने दोनों के लवों पे मुस्कान ला दिया। आंखों में नीर लवों पे मुस्कान वाला यह दृश्य हृदय को गुदगुदा देने वाला बन गया।

मां बाप बेटी के मिलन की यह दृश्य देखकर सुरभि और सुकन्या को अपने वैवाहिक जीवन के शुरुवाती दिन याद आ गए शायद यहीं एक वजह रहा हों जिस कारण सुकन्या के आंखों में सिर्फ़ आंसू था वहीं सुरभि की आंखों में हल्की नमी और लवों पे खिला सा मुस्कान और महारानी पुष्पा की भाव तो निराली थीं। लवों पे मुस्कान आंखों में नमी और ठोढ़ी पे उंगली टिकाएं विचार की मुद्रा बनाई हुई थीं।

"हमारी प्यारी सखी रोना धोना हों गया हों, मां बाप से मिल लिए हों तो हमसे भी मिल ले हम भी साथ आए हैं।" ये कहने वाली चंचल और शालू थीं जो अभी तक पीछे खड़ी देख रहीं थीं। इन आवाजों को सुनते ही कमला थोड़ा सा उचकी और मां बाप के कन्धे से पीछे देखने लगीं।

चंचल…अंकल आंटी बेटी से मिल लिए हों तो थोड़ा रस्ता दीजिए हमे भी अपनी सखी से मिलने दीजिए

महेश और मनोरमा तुरंत किनारे हट गए फ़िर कमला दोनों सखियों से बड़े उत्साह से मिली फिर सभी के साथ आगे को बढ़ गईं। औपचारिक परिचय होने के बाद सुरभि बोलीं…समधी जी समधन जी मुझे आपसे बहुत शिकायत है। हमने आपको इसलिए नहीं बुलाया की आते ही हमारी बहू को रुला दो (फ़िर कुछ कदम चलके कमला के पास गईं और उसके सिर सहलाते हुए बोलीं) बहू हमें तुम्हारी खुशी से चहकता मुखड़ा देखना था इसलिए तो समधी जी और समधन जी की आने की बाते तुमसे छुपाए रखा लेकिन तुमने तो हमें अपना रोना धोना दिखा दिया। अब रोए सो रोए आगे बिल्कुल नहीं रोना।

कमला सिर्फ हां में सिर हिला दिया और मनोरमा बोलीं…समधन जी भला कौन मां बाप अपने बेटी को रूलाना चाहेगा मगर यह भी सच है की बेटी अब कभी कभी अपने मां बाप से मिल पाएगी और जब मिलेगी शुरू शूरू में रोना आ ही जायेगी।

सुरभि…समझ सकती हूं मैं भी किसी की बेटी हूं और उस दौर से गुजर भी चुकी हूं। अच्छा बाकी बाते बाद में होगी अभी आप लोग थोड़ी विश्राम ले लो। बहू जाओ इनको अतिथि कक्ष में ले जाओ तब तक मैं इनके जल पान की व्यवस्था करवाती हूं। (फिर धीरा को आवाज देकर बोलीं) धीरा अतिथियों के लिए जल पान की व्यवस्था करो और किसी को भेज कर इनके सामानों को अतिथि कक्ष में रखवा दो।

"रानी मां किसी को भेजने की जरूरत नहीं हैं हम लेकर आ गए।" एक नौजवान दो बैग हाथ में लिए भीतर आते हुए बोला उसके पिछे पिछे तीन नौजवान ओर दोनों हाथों में एक एक बैग उठाए भीतर हा रहें थे। अतिथि चार और साथ लाए बैग आठ यह देख सुरभि के लवों पे मुस्कान तैर गई। मुस्कुराने की वजह क्या थी यह तो सुरभि ही जानें।

महल बहुत बड़ी जगह में बना हुआ था जिसके एक हिस्से में परिवार के सदस्य रहते थे तो दूसरे हिस्से में अतिथि कक्ष बना हुआ था। एक कमरे के सामने आते ही पुष्पा बोलीं…भाभी आप अंकल आंटी को उनका कमरा दिखाइए और आपके सहेलियों को उनके कमरे तक मैं छोड़ आती हूं।

कमरे का द्वार खोलकर कमला मां बाप के साथ भीतर चली गईं। शालू और चंचल को साथ लिए पुष्पा आगे बड़ गईं। एक ओर कमरे के पास पहुंच कर द्वार खोलते हुए पुष्पा बोलीं…आप दोनों को अलग अलग कमरा चहिए की एक ही कमरे में रह लेंगे।

चंचल…एक ही कमरा चलेगा क्यों शालू?

शालू…बिल्कुल चलेगा हम दोनों लड़कियां हैं और सोने पे सुहागा हम दोनों सखियां भी हैं तो अलग अलग कमरा क्यों लेना।

एक ही कमरे में रहने की सहमति होते ही तीनों कमरे में प्रवेश कर गए। कमरे में कहा किया हैं इसकी जानकारी देने के बाद पुष्पा बोलीं…किसी भी चीज की जरूरत हों तो बेझिझक कह दीजिएगा।

चंचल…कुछ भी

पुष्पा…हां कुछ भी मांग लेना

"खंभा मिल सकता है।" हाथों के सहारे दिखते हुए चंचल बोलीं

पुष्पा…हाआ आप दोनों पीते हों।

चंचल…कभी कभी लिटल लिटल डकार लेते हैं।

पुष्पा…लिटल लिटल क्यों ज्यादा ज्यादा पियो किसने रोका हैं।

शालू…ज्यादा ज्यादा करके कहीं ओवर फ्लो न हों जाएं।

पुष्पा…ओवर फ्लो हुआ तो कोई बात नहीं उसे भी रोकने की व्यवस्था कर दूंगी।

चंचल…वाहा पुष्पा जी आप तो पहुंची हुई चीज मालूम पड़ती हों कहीं आप भी छुप छुपकर लिटल लिटल डकार तो नहीं लेती।

पुष्पा…न न आप गलत रूट पे गाड़ी चला दिया मैं तो बस इसलिए हां बोला क्योंकि आप राजामहल के अतिथि हों। अतिथियों के इच्छाओं का ख्याल रखना हमारे लिए सर्वोपरि हैं।

शालू…अरे महारानी जी ज्यादा लोड न लो नहीं तो वजन तले दब जाओगी। चंचल तो सिर्फ़ मसखरी कर रहीं थीं हम तो उस बला को छूते भी नहीं पीना तो दूर की बात हैं।

पुष्पा…थैंक गॉड बचा लिया नहीं तो आप दोनों की खाम्बे का जुगाड करते करते मेरी महारानी की पदवी छीन जाती।

पुष्पा ने अभिनय का ऐसा नमूना दिखाया की शालू और चंचल हंस हंस के लोट पोट हों गईं। हस्ते हुए चंचल बोलीं…महारानी जी आपके बारे में कमला से सिर्फ सुना था आज देख भी लिया कमाल हों आप।

पुष्पा…सुना तो आप दोनों के बारे में भी हैं भाभी कह रहीं थीं उनकी दो खास सखियां है जो नंबर एक चांट हैं।

दोनों एक साथ "क्या चांट बोला" इतना कहकर कमरे से बाहर कि ओर दो चार कदम बढ़ाया ही था कि पुष्पा बोलीं…अरे आप दोनों कहा चले

"कमला से निपटने जा रहें हैं। ससुराल हैं तो क्या हुआ हमारी गलत प्रचार करेंगी। कुछ भी हां…" दोनों ने साथ में बोला

पुष्पा…अरे बाबा रूको तो भाभी मां बाप से बतियाने में मस्त हैं। जब तक भाभी बतियाती है तब तक आप दोनों विश्राम करके तरोताजा हों लीजिए फ़िर अच्छे से भाभी से निपट लेना।

"ये भी ठीक हैं" इतना बोलकर दोनों वापस मुड़ी फिर शालू बोलीं…महारानी जी हम तीनों हम उम्र हैं इसलिए संबोधन में औपचारिकता ठीक नहीं लग रहीं।

पुष्पा…मुझे कोई दिक्कत नहीं हैं बल्कि मुझे तो अच्छा लगेगा बस इतना ध्यान रखिएगा मेरा नाम पुष्पा हैं महारानी नहीं।

महारानी कहने को लेकर तीनों में छोटा सा वादविवाद हुआ। शालू और चंचल ने अपनी अपनी दलीलें पेश की और पुष्पा उन दलीलों को सिरे से नकार दिया। अंतः शालू और चंचल झुक गए पुष्पा की बातों पे सहमति जाता दी फिर तय ये हुआ कि तीनों एक दूसरे का नाम लेकर संबोधन करेंगे फ़िर पुष्पा उनके कमरे से बाहर निकल गईं। मन बनाया कमला के पास जानें का, कमला मां बाप के साथ थी तो उस ओर मुड़ गईं लेकिन जाते जाते कुछ सोचकर वापस पलट गई और अपने कमरे में चली गईं। कमरे में विराजित टेलीफोन के साथ थोड़ी दुष्टता की और किसी को फोन लगा दी। एक रिंग दो रिंग तीन रिंग पर मजाल जो कोई फोन रिसीव कर ले "ये अंतिम बार हैं अगर फोन रिसीव नहीं की तो खुशखबरी सुनने से वंचित रह जाओगे।" इतना बोलीं और फिर से फोन लगा दी, फोन की रिंग अंतिम पड़ाव पे थीं। कभी भी कट सकता था लेकिन भला हों उस मानव का जिसने फोन कटने से पहले ही रिसीव कर लिया।

पुष्पा…रमन भईया कहा थे कब से फोन लगा रहीं थीं। खामाखा अपने महारानी को परेशान कर दिया आप जानते है न आपको इस गलती की सजा मिल सकता हैं।

रमन…माफ करना बहन जी, नहीं नहीं महारानी जी मैं बाहर लॉन में था इसलिए पाता नहीं चला कि फोन बज रहा हैं। वो तो भला हों छोटू का जो उसने बता दिया वरना आज अच्छा खासा नाप जाता।

पुष्पा…लॉन में कर किया रहें थे। कहीं पहाड़ी वादी का लुप्त लेते हुए अपनी मासुका शालू को याद तो नहीं कर रहें थे?

पुष्पा द्वारा पुछा गया यह सवाल रमन के मुंह पे ताला लगा दिया। फोन के दूसरी ओर से आवाजे आनी बंद हों गईं। मतलब साफ था पुष्पा का अनजाने में चलाई गई तीर ठीक निशाने को भेद गई। बस फिर क्या पुष्पा चढ़ बैठी एक ही सवाल बार बार दौहराकर रमन के मस्तिष्क के सारे पुर्जे ढीला कर दी। अंतः हार मानकर रमन बोला…मेरी बहना कितनी प्यारी हैं। एक क्षण में अंदाज लगा लिया उसका भाई किसे याद कर रहा था। हां रे तूने सही कहा मैं शालू को ही याद कर रहा था।

पुष्पा…शालू को इतना ही याद कर रहे थे तो मिलने चले जाओ किसी ने रोका थोड़ी न है।

रमन…रोका तो नहीं पर जाऊ कैसे उसे बता ही नहीं पाया कि मुझे उससे प्यार हों गया हैं।

पुष्पा…हां ये भी सही कह रहे हों। मैं कुछ कर सकती हूं लेकिन मुझे…।

"हां हां तू जो मांगेगी दिलवा दूंगा बस बता दे।" पुष्पा की बात कटकर रमन बोला

पुष्पा…ठीक हैं फिर आप अभी के अभी राजमहल आ जाओ।

रमन…बस तू फोन रख मैं उड़ते हुए पहुंच जाऊंगा।

पुष्पा…न न उड़के आने की जरूरत नहीं हैं। धीरे धीरे और सावधानी से कार चलाते हुए आना।

रमन…जैसी आपकी आज्ञा महारानी जी।

उतावला रमन शालू से मिलने के लिए इतना व्याकुल था कि तुरंत ही फोन रख दिया मगर उस व्याकुल प्राणी को ये नहीं पाता की उसे शालू से मिलने कहीं जानें की जरूरत ही नहीं हैं वो तो राजमहल में अतिथि बनकर आ चुकी हैं। बस उसे आने की देर हैं भेंट होने में वक्त नहीं लगेगा। खैर रमन के फ़ोन रखते हैं पुष्पा बोलीं…बावले भईया स्वांग ऐसे कर रहें हैं जैसे जाने की व्यवस्था कर दिया तब मिलते ही बोल देंगे। बोला तो कुछ जायेगा नहीं फट्टू जो ठहरे लगता हैं मुझे ही कुछ करना पड़ेगा चल रे पुष्पा दूसरी भाभी घर लाने की कोई तिगड़म भिड़ा।

बस इतना ही बोलकर पुष्पा मंद मंद मुस्कुराने लगीं और मस्तिष्क में जोर देकर शालू और रमन की टांका भिड़ने का रस्ता निकलने लगीं।

उधर जब कमला मां बाप को लिए कमरे के भीतर गई। भीतर जाते ही कमला का तेवर बदल गईं। दोनों को खींचते हुए लेजाकर विस्तार पे बैठा दिया फिर तेज कदमों से वापस आकर द्वार बंद कर दिया। महेश और मनोरमा बेटी के तेवर देखकर एक दूसरे को इशारे में पूछने लगे कि कमरे में आते ही इसके तेवर क्यों बदल गईं। लेकिन उत्तर दोनों में से किसी को ज्ञात न था। इसलिए आगे किया होगा ये देखने के आलावा कोई चारा न था।

कमरे में ही सजावट के लिए रखी हुई फूलदान को उठा लिया और मां बाप के सामने पहुंचकर फूलदान को हाथ पे मरते हुए बोलीं…उम्हू तो बोलो आप दोनों ने न आने की झूठी सूचना मुझे क्यों दी जबकि आप दोनों आ रहें थे।

"कमला" शब्दों में चासनी घोलकर मनोरमा बोलीं।

कमला…मस्का नहीं मुझे सिर्फ़ सच सुनना हैं। (फूलदान मां की ओर करके बोलीं) आप बोलेंगे (फिर बाप की और फूलदान करके बोलीं) कि आप बोलेंगे।

"कमला (महेश ने खुद और मनोरमा के बीच की खाली जगह पे थपथपाते हुए आगे बोलीं) यह आ हमारे पास बैठ।

कमला…पापा बोला न मस्का नहीं, मुझे सिर्फ़ सच सुनना हैं। आप सच बताने में देर करेंगी तब मुझे गुस्सा आ जाएगा। गुस्से को शांत करने के लिए मुझे तोड़ फोड़ करना पड़ेगा। क्या आप चाहते हैं मैं गुस्से में तोड़ फोड़ करू।

मनोरमा…ये क्या बचपना है तेरी शादी हों गई फिर भी तेरी बचपना नहीं गईं।

कमला…क्या आई क्या गईं ये नहीं पुछा मैंने जो पुछा सच सच बता रहे हो की तोड़ फोड़ शुरू करूं।

बातों को खत्म करते ही कमला ने फूलदान के सिर वाले हिस्से को पकड़ा फिर मां बाप को इशारे में बोलीं छोड़ दूं। कहीं सच में कमला फूलदान न तोड़ दे। इसलिए मनोरमा फूलदान को कमला के हाथ से झपट लिया और महेश खींचकर कमला को पास बैठा दिया फिर बोला…हम तो तुम्हें बताना चाहते थे लेकिन राजेंद्र बाबू का कहना था वो तुम्हारे चेहरे पे खुशी देखना चाहते हैं। इसलिए हम तुम्हें बताए बिना अचानक आ पहुंचे।

कमला…मम्मी जी और पापा जी मुझसे बहुत स्नेह करते हैं। हमेशा ध्यान रखते हैं कि मैं कैसे खुश रहूं। सिर्फ़ इतना ही नहीं कल हम सभी शॉपिंग करने गए थे। वस्त्र हों गहने हों या जिस भी समान को देखकर मैंने बस इतना कहा कि देखो ये कितना अच्छा लग रहा हैं। बस मम्मी जी ने उसे मेरे लिए खरीद लिया ये नहीं देखा की उसकी कीमत कितनी है। आप लोगों ने क्या किया अपने आने की खबर मुझसे छुपा ली जबकि जितनी बार मैंने बात की प्रत्येक बार पुछा मिन्नते भी किया लेकिन आप दोनों ने एक बार भी मुझे नहीं बताए की आप लोग आ रहें हों। उस घर से विदा होते ही क्या मैं आप दोनों के लिए इतनी पराई हों गईं कि इतनी मिन्नते करने के बाद भी आप दोनों का ह्रदय नहीं पिघला अरे आप दोनों बस इतना ही कह देते की हम आ रहें हैं बस तेरा ससुर नहीं चाहते हैं कि हमारे आने की भनक तुझे लगे। तब मैं ऐसा अभिनय करती कि उन्हें भी भनक नहीं लगने देती। आप दोनों के आने की खबर मुझे पहले से पता हैं।

बेटी की बातों ने मनोरमा ओर महेश को आभास करा दिया कि जिसे खुश देखने के लिए उन सभी ने मिलकर इतना तम झाम किया वो धारा का धारा रह गया। बेटी खुश होने के जगह व्यथित हों गई। इसलिए मनोरमा और महेश ने एक साथ कमला को खुद से लिपटा लिया और एक साथ एक ही स्वर में बोलीं…हम मानते है हमसे गलती हों गई लेकिन अब आगे से हम ऐसी गलती नहीं करेंगे। हमेशा ध्यान रखना तू हमारे ले न कल पराई थी न आज।

कमला…ध्यान रखना ऐसी गलती दुबारा नहीं होनी चाहिए।

मनोरमा…हा हम ध्यान रखेंगे लेकिन तू भी ध्यान रखना यह भी गुस्से में तोड़ फोड़ न कर देना।

कमला… वो तो बस आप दोनों को डराना के लिया किया था वरना मैं क्यों अपना घर तोड़ने लगी जिसे मैंने अभी अभी सजना शुरू किया।

मनोरमा…ओ जी हमारी बेटी तो बहुत समझदार हों गईं हैं।

कमला…ये कोई नई बात नहीं हैं। मैं समझदार पहले से ही थी। क्या आप जानते नहीं थे?

गीले सिकबे जो थी वो दूर हो गई और माहौल में बदलाव आ गया। मां बाप बेटी तीनों बातों में इतना माझ गए की उन्हें ध्यान ही नहीं रहा। वो कमरे में विश्राम करने आए थे। जल पान का बुलावा आया तब कहीं जाकर उन्हें ध्यान आया कि उन्हें कमरे में क्यों भेजा गया था। बरहाल बारी बारी मनोरमा और महेश हाथ मुंह धोकर आए फिर तीनों साथ में जलपान के लिए चले गए।

आगे जारी रहेगा….
 
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Update 64 post kar diya hai. Next update 15 December ke baad hi post kar pahunga kyuki is bich cousin (चचेरी) sister ki marriage hai. Usi me busy rahunga haan agar is bich time nikalkar likh paya tab post kar dunga lekin iski ummid kam hi ha.
Theek hai tab tak isko padhegen hum bhai aap shadi kar lo tab tak :dost:
 

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