Erotica बदनसीब फुलवा; एक बेकसूर रण्डी

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सुबह 7 बजे चीखती चिल्लाती फुलवा को सिपाही कालू घसीटते हुए तहखाने में ले गया था। तब से शाम के 5 बजे तक पूरी जेल फुलवा की चीखों से गूंज रही थी।


फुलवा के साथ कालू और बाकी सिपाहियों ने वह सब कुछ किया जो उन्होंने सबसे बुरे और छटे हुए बदमाश के साथ किया था। आखिरकार कालू को छोड़ बाकी सारे सिपाही और कैदी भी मान गए को फुलवा ने कुछ भी नहीं लिया था।


कालू ने फुलवा को नंगा कर टायर में लटकाया। उसके बाद पहले थप्पड़, फिर मुक्के, फिर लात और आखिर में अपने पट्टे से पीटा। फुलवा की चमड़ी छिल गई पर वह चिल्लाती रही की उसने कुछ नहीं किया था।


जब कालू ने बैटरी की तारों को लाया तब तो विधायकजी के गुंडे भी दंग रह गए। कालू ने फुलवा के दूध से भरे मम्मों की चुचियों पर फाइल की पिन लगाई तो फुलवा की चीखों के साथ दूध की धाराएं बह गई। बाकी के सिपाहियों ने कालू को रोकने की कोशिश की पर कालू को तो मज़ा आ रहा था।


कालू ने फुलवा की चुचियों को बैटरी की तारें लगाई और घायल जानवर की चीखों से पूरी जेल गूंज उठी। 3 सेकंड की बिजली के बाद कालू ने फुलवा को SD कार्ड का पता पूछा पर पसीने से लथपथ दूध छलकाती फुलवा अब भी खुद को बेकसूर बताती रही।


शाम के 5 बजे जब SP प्रेमचंद के जूते की चरचराहट तहखाने में हुई तब कालू और फुलवा पसीने से भीगे अपनी बात पर अड़े हुए थे।


सिपाही कालू, "बता SD कार्ड कहां है?"


फुलवा बैटरी की बिजली से तड़पकर, "मैं बेकसूर हूं!!…"


SP प्रेमचंद मुस्कुराया।


SP प्रेमचंद, "तेरी वफादारी की कदर करता हूं। पर सिपाही और अफसर में क्या फर्क होता है यह सीखने का मौका तुझे आज मिलेगा!"


फुलवा को टायर में से उतार कर एक लोहे की चारपाई पर बांध दिया गया। सिपाही कालू बैटरी की तारें ले आया पर SP प्रेमचंद ने उसे दूर होने को कहा।


SP प्रेमचंद, "तो, तू दर्द के लिए तयार है। पर दर्द कई तरह का होता है। क्या तू वो दर्द भी सेह लेगी?"


SP प्रेमचंद ने अपने कपड़े उतारते हुए सिपाही कालू को देखा।


SP प्रेमचंद, "कालू, मैं जानता हूं कि तू इसे चोदना चाहता है। चल चढ़ जा और इसकी गांड़ मार!"


कालू ने SP प्रेमचंद को सलाम किया और अपनी पैंट उतार कर बेड पर चढ़ गया। कालू ने फुलवा के घुटनों को बेड के सिरहाने से बांध दिया जिस से उसकी गांड़ पूरी तरह खुल गई।


फुलवा सहमी आंखों से देखती रही और कालू ने अपने सूखे लौड़े को फुलवा की गांड़ में पेल दिया। फुलवा गांड़ मराने की आदि हो चुकी थी और सूखे लौड़े को भी बिना ज्यादा तकलीफ के ले पाई।


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कालू तेजी से फुलवा की गांड़ पेलने लगा और फुलवा अपनी गांड़ को ढीला छोड़ अपनी गांड़ को छिलने से बचा रही थी।


प्रेमचंद, "मैने कालू को इस काम के लिए चुना क्योंकि इसे औरत को चोदना आता है पर उसे खुश करना नही आता। औरत दर्द से चीखे तो यह उसी से खुश हो जाता है।"


कालू तेज धक्के लगाता फुलवा की गांड़ मारता रहा पर जैसे प्रेमचंद ने कहा था वैसे इस गांड़ मराई में फुलवा को मज़ा नही आ रहा था। फुलवा दर्द से कराहती प्रेमचंद को बता रही थी की उसने कुछ नहीं किया।


प्रेमचंद, "तेरी हिम्मत की दाद देनी पड़ेगी! इस तरह पिछले बारह घंटे दर्द सहते हुए भी तुम अपने झूठ पर अड़ी हुई हो! अफसोस, अब तुम्हारा पाला मुझ से पड़ा है।"


प्रेमचंद ने फुलवा की चूत को सहलाना शुरु किया। प्रेमचंद की उंगलियां किसी सितार की तारों की तरह फुलवा की जवानी की तारों को बजाने लगी। फुलवा की 20 वर्ष की जवानी दर्द तो सह गई पर यौवन से हारने लगी। फुलवा की चूत में से यौन रसों का बहाव बढ़ कर बहने लगा।


फुलवा के यौन रसों से चूत में से बाहर बहते हुए उसकी गांड़ को पेलते कालू के लौड़े को चिकनाहट दी। कालू को फुलवा की गांड़ मारने में सहूलियत होने वाली और फुलवा का बदन कांपने लगा। फुलवा झड़ने की कगार पर पहुंची ही थी जब प्रेमचंद ने अपने हाथ को पीछे खींच लिया।


फुलवा ने एक कुंठा भरी आह भरते हुए अपना विरोध प्रदर्शन किया।


प्रेमचंद ने फुलवा के कान में, "मज़ा टूटना अच्छा नहीं है ना? मज़ा चाहिए तो बता की, SD card कहां है?"


फुलवा अपनी जवानी के हाथों मजबूर रो पड़ी और प्रेमचंद ने हंसते हुए फुलवा की चूत को सहलाना शुरू किया। अबकी बार फुलवा जब वापस झड़ने की कगार पर पहुंची तब कालू भी झड़ने के लिए तेज़ धक्के लगा रहा था। प्रेमचंद ने कालू को खींच कर फुलवा की गांड़ में से बाहर निकाल लिया और फुलवा को वापस तड़पता छोड़ दिया।


प्रेमचंद, "बोल, कालू से गांड़ मराएगी?"


फुलवा रोते हुए, "हां!…"


प्रेमचंद, "मुझसे गांड़ मराएगी?"


फुलवा रोते हुए, "हां!!…"


प्रेमचंद, "sd card कहां है?"


फुलवा बस रोती रही।


प्रेमचंद, "कालू, इसके हाथ पैर छोड़ और इसकी गांड़ को अपने लौड़े पर बिठा!"


कालू ने फुलवा को बेड से छुड़ाया और खुद बेड पर लेट गया। फुलवा में अब भागने की ताकत नहीं बची थी। कालू ने फुलवा को अपने ऊपर खींच लिया और उसकी खुली हुई गांड़ को अपने सुपाड़े पर लगाया। कालू ने फुलवा को अपने लौड़े पर बिठाया और फुलवा आह भरते हुए उसके लौड़े को अपनी गांड़ में भर कर बैठ गई।


प्रेमचंद ने फुलवा और कालू के पैरों को फैलाया तो कालू भी डर गया। प्रेमचंद ने अपने सुपाड़े को कालू के लौड़े की जड़ पर लगाया और फुलवा की गांड़ में अपना लौड़ा भरने लगा।


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फुलवा की गांड़ फट गई और वह आहें भरती कालू के ऊपर गिर गई। प्रेमचंद को अपने लौड़े पर रगड़ता महसूस कर कालू चुपचाप पड़ा रहा। प्रेमचंद की गोटियां कालू की गोटियों से भिड़ गईं और दोनों लौड़े अपनी जड़ तक फुलवा की गांड़ में समा गए।


प्रेमचंद ने फुलवा के सर को पीछे से पकड़ कर उसे उठाया और फुलवा की गांड़ तेजी से मारने लगा। कालू भी नीचे से अपनी कमर हिलाकर फुलवा की गांड़ के मजे ले रहा था।


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प्रेमचंद, "फुलवा, तेरा बदन जल रहा है। तेरी जवानी झड़ने को तरस रही है। बोल, SD CARD कहां है?"


फुलवा बेचारी सिर्फ अपने सर को हिलाकर चुप रही। उसकी गांड़ सच में फट गई थी और उसकी जवानी की आग उसके पूरे बदन को जला रही थी।


प्रेमचंद को पता था की फुलवा की हालत क्या है। प्रेमचंद ने कालू को फूला के घुटनों को पकड़ने को कहा। अपने अंगूठे से फुलवा की चूत के ऊपर उभरे यौन मोती को सहलाते हुए प्रेमचंद ने फुलवा को दुबारा झड़ने की कगार पर खड़ा कर दिया।


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फुलवा, "मालिक, गरीब को ऐसे ना तपाओ! मुझ पर रहम करो! मेरा बदन जल रहा है! मुझे राहत दो हुजूर!!"


प्रेमचंद, "ठीक है, पर पहले बता की SD card कहां है?"


फुलवा का बदन अकड़ने लगा और प्रेमचंद ने अपने अंगूठे को हटाकर फुलवा को वापस अतृप्त छोड़ दिया।


फुलवा रोने लगी पर अब प्रेमचंद ने कालू के साथ मिलकर फुलवा की बेरहम गांड़ मराई शुरू कर दी। फुलवा अबकी बार सिर्फ दोहरी गांड़ मराई से झड़ने को आई और चिल्लाते हुए गिड़गिड़ाने लगी।


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फुलवा, "मारो!!…
मेरी गांड़ मारी!!…
एक साथ मेरी गांड़ मारी!!…
झुंड में मेरी गांड़ मारो!!…
रुकना मत मालिक!!…
रुकना मत!!…"


प्रेमचंद ने अपने स्खलन पर काबू रखते हुए, "SD CARD कहां है?"


फुलवा झड़ते हुए चीखने लगी, "मैं उसे खा गई!!…
मैं उसे खा गई हुजूर!!…
कार्ड मेरे पेट में है!!…"


फुलवा इतनी बुरी तरह उत्तेजित हो कर झड़ गई की उसकी चूत में से यौन रसों का फव्वारा मर्द के स्खलन की तरह उड़ गया। प्रेमचंद ने फुलवा के स्खलन में नहाते हुए अपने वीर्य की पिचकारी फुलवा की गांड़ में छोड़ दी। कालू भी प्रेमचंद की गर्मी महसूस कर अपनी गर्मी को छोड़ देते हुए बेड पर गिर गया।


प्रेमचंद ने अपने लौड़े को फुलवा की गांड़ में से बाहर निकाल लिया।


प्रेमचंद, "तुझे लगा की तूने सोनी को बचाया है! पर तूने तो सोनी को और बुरी तरह फंसाया है! मैं अभी सोनी को SUSPEND कर रहा हूं और दो दिन बाद जब तू sd card के टुकड़े शौच से निकाल देगी तब तेरे सामने उसे कैदी को जेल से भगाने और औरत से धंधा कराने के लिए तेरे साथ जेल में लाऊंगा। (कालू को) कल सुबह जब इसकी टटी निकले तो इसे उस में से sd card के टुकड़े निकालने को कहो!"


फुलवा को रात भर गीले बाथरूम में ठंडे पानी के नीचे रखा गया। सुबह फुलवा को फर्श पर शौच करने को मजबूर किया गया और फिर उसे उसमें से sd card के टुकड़े निकालने पड़े। पेट के अंदर sd card के ऊपर का छपा हुआ मिट गया था पर sd card के टुकड़ों को पहचानना मुश्किल नहीं था।


फुलवा को भगौड़ी कैदी कहकर तहखाने में बंद रखा गया जब की सोनी के खिलाफ जांच शुरू की गई।
 
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तहखाने में बंद फुलवा के लिए एक घंटा एक दिन की तरह था। उसकी सांसों की आवाज तहखाने की खामोशी में गूंजती उसे सता रही थी।


तीन दिन बाद उसे वापस ऊपर जेल में लाया गया। फुलवा को यह देख कर अचरज हुआ कि जेल के बड़े गुंडे भी उस से इज्जत से पेश आ रहे थे। जब फुलवा ने इस बात की वजह पूछी तो उसे बताया गया कि 12 घंटों का टॉर्चर सहने के बाद मुंह खोलने से उसने यहां का कीर्तिमान बनाया था।


इंक्वायरी के लिए 2 SSP और IG आए थे। इसी वजह से फुलवा को तहखाने से निकालकर आम कैदियों में लाया गया था।


सिपाही सोनी ने अपने सर को उठाए रखा था। सोनी की हिम्मत फुलवा को बता रही थी वह सुंदर को सब सच बता चुकी थी और सुंदर ने उसे अपना साथ दिया था। इंक्वायरी SP प्रेमचंद के ऑफिस में ही हो रही थी। प्रेमचंद ने अपने मोहरे सही जगह पर लगाए थे और सोनी के पास कोई सबूत नहीं था।


सोनी ने गवाह के तौर पर फुलवा को बुलाया और फुलवा को कालू SP प्रेमचंद के ऑफिस में ले गया।


IG, "कैदी फुलवा, क्या आप को सिपाही सोनी जेल के बाहर छोड़ आई थी?"


फुलवा, "जी साहब।"


IG, "क्या वहां से तुम्हें जबरदस्ती वैश्य व्यवसाय में डाला गया?"


फुलवा, "नहीं साहब। वह मैंने 500 रुपए और सुबह की रिहाई के लिए अपनी मर्जी से किया।"


IG, "तुम जानती हो कि इस बात के लिए तुम्हारी सज़ा बढ़ सकती है?"


फुलवा, "उम्र कैद की सज़ा हुई है साहब। और क्या बढ़ाओगे? यहां रोज हमारी इज्जत लूटी जाती है। एक बार अपने मर्जी से किया तो सज़ा दोगे?"


SP प्रेमचंद, "ये एक डकैत है! ये सिपाही सोनी से रिश्वत लेकर झूठ बोल रही है!"


फुलवा हंसकर, "हां, और मैं रिश्वत लेकर यहां अपने लिए महल बनाने वाली हूं और नौकर रखने वाली हूं! सही बात है ना?"


फुलवा का जवाब सुनकर सब लोग हैरान थे। किसीने यह सोचा भी नही था की कोई कैदी SSP और IG के सामने ऐसी बात करेगा।


फुलवा, "साहब मैं कैद में हूं मतलब कानून के चक्कर काट चुकी हूं! और क्योंकि जेल में हूं तो जेल के बारे में भी जानती हूं। पर क्या आप में से कोई जेल में रह चुका है?"


SSP फुलवा को डांटने लगे पर IG ने उन्हें रोका।


IG, "मैं 4 साल तक जेलर रह चुका हूं। अपनी बात कहो!"


फुलवा, "मैं यहां नहीं थी पर मुझे यकीन है कि अब तक सिपाही सोनी ने बताया होगा कि SP प्रेमचंद यहां सब पर जुल्म करता है और उसी ने मुझे बाहर ले जाने की गैरकानूनी अनुमति दी थी। जब की SP प्रेमचंद ने साबित किया होगा की उसकी चालाकी से मेरा बाहर जाना पकड़ा गया। सिपाही सोनी के पास कोई सबूत नहीं पर SP प्रेमचंद के पास सबूत के साथ विधायकजी की सिफारिश भी है। क्या मैं गलत हूं?"


IG ने अपने सर को हिलाकर उसे सही कहा।


फुलवा, "क्या सिपाही सोनी ने यह भी बताया की मेरे बाहर जाने के बाद SP प्रेमचंद ने सिपाही सोनी को मजबूर किया और उस के साथ दुष्कर्म करते हुए उस बात की रिकॉर्डिंग की? उस रिकॉर्डिंग को इस्तमाल कर SP प्रेमचंद सिपाही सोनी को, क्या था वो? जबरदस्ती वैश्या व्यवसाय में डालने की कोशिश की।"


SSP, "यह कानूनन इंक्वायरी है और यहां सबूत लगते हैं। क्या तुम्हारे पास इस बात का सबूत है?"


फुलवा, "SP प्रेमचंद ने वह रिकॉर्डिंग एक SD CARD पर की थी जो उसने सिपाही सोनी को दिखाया। सिपाही सोनी ने मुझे उस कार्ड के बारे में बताया और अगले दिन मैंने उसे चुराया।"


SP प्रेमचंद, "अगर यह बात सच है तो वह SD CARD दिखाओ!"


फुलवा, "SD CARD चुराते हुए मैं पकड़ी गई। मैंने एक SD CARD के टुकड़े किए और उसे निगल गई। SP प्रेमचंद के आदेश पर मुझे पूरे दिन मारा गया, बिजली के झटके दिए गए। आखिर में खुद SP प्रेमचंद ने मुझे बेरहमी से अनैसर्गिक तरीके से चोदते हुए यह बात मुझसे उगलवाई।"


SP प्रेमचंद, "तो यह भी एक कहानी है क्योंकि इसका कोई सबूत नहीं!"


फुलवा मुस्कुराई और SP प्रेमचंद के पेट में जैसे पिघले लोहे का गोला जमा हो गया।


IG की ओर देखते हुए फुलवा, "आप जेलर थे। जेल की एक ऐसी जगह बताइए जहां जेलर तलाशी नही लेगा!"


IG मुस्कुराया। उसे इस जवान लड़की की होशियारी और हिम्मत भा गई।


IG, "SP प्रेमचंद सावधान! (SP प्रेमचंद खड़ा हो गया और IG उसकी ओर बढ़ते हुए) कैदी फुलवा ने कहा कि वह एक SD CARD को तोड़ कर निगल गई। न की उस SD CARD को!"


SP प्रेमचंद की टोपी अपने हाथ में लेते हुए 2 SSP से, "हमारी वर्दी की टोपी में पसीना सोखने के लिए अंदर एक कपड़े की पट्टी होती है। AC में उसे सब भूल जाते हैं और कोई हाथ नहीं लगाता। (पट्टी में हाथ घुमाकर वहां से SD CARD निकालते हुए) नियम अनुसार हम लोग इंक्वायरी के दौरान इस जेल में मौजूद सारे सबूत तलाश कर सकते हैं और उन्हें देख कर कौन गुनहगार है यह तय कर सकते हैं।"


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2 SSP ने हां कहा और SD CARD को तीनों ने कंप्यूटर पर चलाया।


वहां की रिकॉर्डिंग में साफ दिख रहा था कैसे प्रेमचंद ने सोनी की मजबूरी का फायदा उठाया। साथ ही प्रेमचंद ने सोनी को इस्तमाल करते हुए अपने बाकी कई गुनाहों की कबूली भी दी थी।


SSP और IG को इंक्वायरी ख़त्म करने में सिर्फ 4 घंटे लगे। इंक्वायरी के अंत में SP प्रेमचंद को गिरफ्तार कर लिया गया तो सिपाही सोनी को सिर्फ 1 प्रमोशन कम कर 6 महीने का प्रोबेशन दिया गया।


कालू ने विधायकजी को इंक्वायरी में हुए वाकिए की खबर दी और SP प्रेमचंद की गाड़ी का रास्ते में एक्सीडेंट हो गया। सिपाही कालू का दूसरे जेल में तबादला हो गया और वह उसी शाम चला गया।


नया जेलर अगले ही दिन जेल पहुंचा।


जेलर SP किरन उसूलों की इतनी पक्की औरत थी कि उसे कोई विधायक अपने इलाके में बर्दास्त नही कर सकता था और वह एक बुरे जेल से दूसरे बदतर जेल में भेजी जाती। SP किरन ने आते ही फुलवा और सिपाही सोनी को बुलाया।


SP किरन ने सिपाही सोनी को सलाह दी कि वह 6 महीने बाद अपना रिकॉर्ड सही कर इस्तीफा दे क्योंकि अब उसकी तरक्की होना लगभग नामुमकिन था। सोनी मान गई और SP किरन को सैल्यूट कर चली गई।


SP किरन, "कैदी फुलवा, तुमने एक बुरे अफसर का पर्दाफाश करने के लिए काफी दर्द और बेइज्जती सही। बदले में तुम क्या चाहती हो?"


फुलवा, "मेमसहब, मैं बस सोनी को मेरी तरह बरबाद होने से बचाना चाहती थी। वह बच गई, मुझे और क्या चाहिए?"


SP किरन मुस्कुराकर, "SP आधिकारी और IG साहब पुराने दोस्त हैं। तुम अब समझ गई होगी की एक सिपाही की इंक्वायरी के लिए खुद IG क्यों आए! खैर तुम्हारी हिम्मत और सूझबूझ से दोनों प्रभावित हैं। उन्होंने यह किस्सा अपने दोस्त जस्टिस माथुर को बताया और तुम्हारे लिए कुछ अच्छी खबर है। उम्र कैद का कैदी पूरी जिंदगी कैद में रहता है पर अच्छे बर्ताव के लिए उसकी सज़ा सीमित की जा सकती है। तुम्हें 14 साल के बाद रिहा कर दिया जायेगा। तुम 18 की थी जब गिरफ्तार हुई थी और 32 की होते हुए रिहा हो जाओगी। अगले 12 सालों में अपने वक्त का सही इस्तमाल करो और बाहर जाकर एक खुशहाल जीवन बिताओ।"


फुलवा शरमाते हुए, "मेरे भाई शेखर ने पढ़ना लिखना सीखा था। क्या मैं लिखना पढ़ना सीख सकती हूं?"


SP किरन मुस्कुराते हुए, "अरे फुलवा, अगर तुमने अगले 12 साल पढ़ाई में लगा दिए तो तुम मुझसे भी ज्यादा पढ़ी लिखी बनोगी। मैं अपने हर जेल में स्कूल शुरू करती हूं। तुम्हारा दाखला जेल की स्कूल में करा देती हूं। कोई बात हो तो बिना डरे मुझे जरूर बताना।"


फुलवा ने SP किरन को दिल से शुक्रिया कहा और खुशी खुशी अपने कमरे में चली गई।


अगले 12 साल फुलवा के लिए वह सब कुछ थे जो उसे बचपन में नही मिला। सही पोषण और शिक्षा के साथ ही दोस्तों का साथ और बाहर की दुनिया को धीरे धीरे पहचानने का मौका। फुलवा SP अधिकारी को खत लिख कर चिराग के बारे में पूछती पर खुद चिराग से दूरी बनाए रखती।


12 सालों में फुलवा ने न केवल पढ़ाई की पर SP किरन की मदद से जेल में से कैंटीन भी चलाया। आगे SP किरन को बढ़ौतरी मिली पर फुलवा की तरक्की होती रही।


फुलवा की सजा में सिर्फ एक साल बाकी था जब सिपाही कालू उसके जेल में लौटा। हालांकि अब वह फुलवा से दूरी रखता था पर फुलवा फिर भी उस से डरती थी।


शनिवार शाम को फुलवा को जेलर ने अपने ऑफिस में बुलाया।


जेलर, "कैदी फुलवा, आप की सजा कल खत्म होनी है। लेकिन रविवार को कागजी कार्रवाई नहीं होती और मैं किसी को एक दिन ज्यादा जेल में नहीं रखता। तो…"


जेलर ने मुस्कुराकर एक कागज फुलवा को देते हुए, "फुलवा, आप आजाद हो! आपकी जिंदगी खुशी भरी हो और आप को दुबारा सलाखें नजर ना आएं!"


फुलवा ने खुशी से अपने हाथ जोड़े और अपनी रिहाई की पर्ची लेकर बाहर दफ्तर में गई। फुलवा को उसके पुराने कपड़े, जेल में कमाए पैसों का चेक और जप्त गाड़ी की पर्ची दी गई।


फुलवा ने सब से विदा ली और जेल के बाहर कदम रखा।


इस से पहले कि फुलवा अपनी आजादी की सांस ले पाती सिपाही कालू ने फुलवा को अपनी गाड़ी में खींच लिया।


सिपाही कालू, "मैंने इस मौके के लिए 14 साल इंतजार किया है। चुप चाप मेरे साथ चल वरना तुझे मार कर ऐसे जगह दफना दूंगा की तेरे भाई भी तुझे ढूंढ नहीं पाएंगे!"


कालू ने अपनी गाड़ी को तेजी से चलाया। फुलवा ने देखा की एक बड़ी गाड़ी जेल की तरफ जा रही थी।


फुलवा ने सोचा की कोई अमीर आदमी उसके साथ रिहा होकर अब अपने घर जाएगा पर वह तो अपने घर से निकलकर नरक जा रही थी।
 
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कालू फुलवा को उन्ही बदनाम गलियों में ले गया जो उसे उसके बापू ने दिखाई थी। फुलवा ने देखा कि Peter uncle का घर पिछले 14 सालों में खाली पड़ा डरावना दिख रहा था।


कालू फुलवा को अंदर खींच लाया और दरवाजा बंद किया। जो कमरा किसी अच्छे घर का हिस्सा लगता था आज वह धूल, मिट्टी से ढंक कर खराब हो गया था।


कालू ने एक लालटेन जला दी और फुलवा को जमीन पर बिठाया।


कालू, "तेरे भाइयों ने कोर्ट में कहा की उन्होंने स्मगलिंग का माल जलाकर ट्रक को पुर्जों में बेचा। पर मैने पूछताछ कर पता लगाया की शेखर ने वह माल भी बेचा था। जब मुझे उन तीनों को मारने का हुकुम हुआ तब मैं जानता था कि वह अपनी बहन को उस खजाने का ठिकाना जरूर बताएंगे। इसी लिए मैंने उन्हें बता दिया कि मैं उन्हें मारने वाला हूं। जब उन्होंने तुझ से बात की तब मैंने छुप कर सब कुछ सुन लिया।"


गुस्से से कमरे में चक्कर लगाते हुए कालू, "पिछले 12 साल मैने तेरे भाइयों की हर हरकत हर ठिकाने को ढूंढा, तेरे बाप की हर हरकत हर ठिकाने को तलाशा पर कुछ नहीं मिला। तेरे बाप ने तेरे गांव से तुझे चुराया वहां अब एक दुकान है। मैने वहां की पूरी तलाशी ली पर कुछ नहीं! तेरे बाप ने तुझे यहां पर बेचा तेरा बाप तो मिला पर खजाना कहां है?"


कालू ने फुलवा को खींच कर अलमारी के सामने लाया और अलमारी खोली।


अलमारी के अंदर एक कंकाल पड़ा था। कंकाल के कपड़े देख कर फुलवा उसे पहचान गई।


फुलवा, "लड़कियां आती जाती रहती है लेकिन Peter uncle यहीं रहेगा।"


कालू, "क्या?"


फुलवा, "ये बापू नही, Peter uncle है जिसने मेरे बदन को इस बस्ती में बेचा।"


कालू ने फर्श पर पड़े समान की लात मारी, "मैंने इस घर को खोदते हुए 3 साल बीता दिए! तेरे बाप ने तुझे पहला धोखा यहां नहीं दिया था! बता तेरे बाप ने तुझे कहां पहला धोखा दिया था?"


फुलवा, "अगर मैंने तुम्हे पता बता दिया तो तुम मुझे मार डालोगे। मुझे पैसा नहीं चाहिए। पर मैं तुम्हें पता बता कर मरना नहीं चाहती।"


कालू गुस्से से फुलवा की ओर बढ़ा। फुलवा ने एक और बेरहम रात जीने की तयारी कर ली।
 
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कालू फुलवा को खींच कर उसे उसी कमरे में ले गया जहां उसकी इज्जत बार बार लूटी गई थी। फुलवा के बिस्तर को चूहों ने कुतरकर सिर्फ लोहे की चारपाई बना दी थी।



कालू ने फुलवा को चारपाई से बांध दिया।



कालू, "प्रेमचंद ने जब कहा की मुझे औरतों को मजा देना नही आता तब मुझे गुस्सा आया था। पर जब तू उसके लौड़े पर झड़कर अपना राज़ बोल गई तब मुझे उसकी बातों की सच्चाई समझ आ गई।"



कालू ने एक गोली जेब में से निकाली और फुलवा के मुंह में ठूंस दी। कालू की जबरदस्ती से फुलवा को वह गोली निगलनी पड़ी।



कालू, "पिछले 12 सालों में कई तरक्कियां हुई हैं जिनमें ड्रग्स भी शामिल है। ये गोली ECSTASY की है। इस से तुम्हें हर चीज ज्यादा और बेहतर महसूस होगी। सेक्स की इच्छा तेज़ हो जायेगी और वह पूरी करने के लिए तुम कोई भी कीमत चुकाओगी!"



फुलवा ने अपनी आंखें बंद की और अपने बदन और मन की लड़ाई के लिए तैयार हो गई।



कालू ने फुलवा के हाथों और पैरों को बेड के कोनों से बांध दिया। फुलवा का बदन गरमाते हुए सांसे तेज होती रही जब कालू ने फुलवा के कपड़े उतारे। कच्ची उम्र में कैद गई फुलवा के कपड़े अब उसके भरे हुए बदन को वैसे भी जकड़ रहे थे।



फुलवा के मम्मो ने खुल कर सांस ली और फुलवा सहम गई। पिछले बारह साल उसने किसी कुंवारी की तरह बिताए थे और अब उसे कालू की वहशी भूख से डर लग रहा था। कालू ने फुलवा को नंगा कर दिया और उसकी खुली हुई पंखुड़ियों को सहलाने लगा।



फुलवा, "कालू, मैं तुम्हें सब सच बताने को तैयार हूं! मैने सारा पैसा लखनऊ के एक सेठ को संभालने को दिया था। उसे मेरा नाम बता दो तो वह कुछ तो जरूर लौटा देगा! बस अब मुझे छोड़ दो!"



कालू हंस पड़ा, "साली रण्डी!! तुझे लगता है कि मैं तुझ पर यकीन करूंगा? तुझ जैसे लोग किसी पर भरोसा नहीं करते। और मुझे पता है कि तू पिछले बारह सालों में कभी बाहर नहीं आई! लेकिन तेरी इस गलती की सजा मैं जरूर दूंगा!"



फुलवा रोने लगी पर कालू एक 8 इंच लम्बा और तीन इंच मोटा स्टील का लौड़ा लेकर आया। कालू ने उस पर थूंका और अपनी उंगलियों से उसे चमकाने लगा। कालू ने फिर फुलवा की कई सालों से अनचूई जवानी की पंखुड़ियों को फैलाया और उस लौड़े से फुलवा की चूत को सहलाने लगा।



कालू, "चाहता तो था की इसे सुखा ही पेल दूं। पर अब मैं सिख चुका हूं की दर्द का मजा कब आता है।"



कालू ने फुलवा की चूत में बनती चिकनाहट को उसकी चूत में से बाहर निकलता महसूस किया और 8 इंच लंबे 3 इंच मोटे स्टील लौड़े को फुलवा की चूत में डालने लगा। फुलवा ने आह भरते हुए 12 साल बाद अपनी जवानी की गूंफा में गुसपेटिए को दाखिल होता महसूस किया। फुलवा अपने सर को हिलाकर मना कर रही थी पर ड्रग्स की नशा उसे कमर उठाने को मजबूर कर रही थी।



कालू ने पूरे लौड़े को फुलवा की गर्मी में पेल दिया और फुलवा ने एक थरथराती आह भरी।



कालू, "बता माल कहां है?"



फुलवा, "मैंने सच कहा था! पैसे लखनऊ के एक सेठ के पास हैं!"



कालू ने गंदी मुस्कुराहट से फुलवा को देखा और एक और लंबा स्टील का लौड़ा निकाला। यह 10 इंच लम्बा 3 इंच मोटा था और इसका छोर मुड़ा हुआ था।



कालू, "अच्छा हुआ की तूने सच नहीं कहा वरना इसे लाना जाया हो जाता!"



कालू ने फुलवा की चूत में से चिकने हुए लौड़े को बाहर निकाला और वहां इस नए लौड़े को अंदर डाल दिया। फुलवा को इस नए लौड़े का छोर अपनी बच्चेदानी के मुंह पर दबा महसूस हो रहा था। फुलवा की आह चीख में बदल गई जब उसे पहले लौड़े को अपनी गांड़ पर दबते पाया।



फुलवा, "नहीं!!… नहीं!!… न… ई… ई… आह!!!…"



कालू, "तुझ जैसी रण्डी का एक से क्या होगा? तू तो 3 भाइयों की बीवी थी। अब मैं तुझ से वापस पूछूंगा और तू सही जवाब देगी!"



फुलवा ने वापस सच बताने की कोशिश की पर कालू ने लंबे लौड़े के बाहरी हिस्से पर बना एक हिस्सा घुमाया। फुलवा चीख पड़ी।



चूत में घुसा लौड़ा झनझनाते हुए हल्का इलेक्ट्रिक शॉक लगाते हुए उसकी बच्चेदानी से योनीमुख तक अजीब दर्दनाक उत्तेजना से तड़पाने लगा। इस से पहले कि फुलवा अपने आप को संभाल लेती कालू ने उसकी गांड़ में धंसे लौड़े को भी शुरू किया।



दोनो नकली लौड़े झनझनाते हुए एक दूसरे पर फुलवा के अंदर की पतली त्वचा पर से रगड़ते हुए फुलवा को बेरहमी से तड़पा रहे थे। फुलवा का बदन जलने लगा और वह तेजी से झड़ने की कगार पर पहुंच गई।



फुलवा की आंखें बंद हो गई थी और वह अपनी जवानी को दुबारा जागते हुए महसूस कर रही थी। फुलवा ने झड़ने की कगार पर से अपनेआप को झोंक देने के लिए अपना मुंह खोला और एक दर्द भरी चीख निकल गई।



फुलवा का बदन दर्द से तड़प कर यौन उत्तेजना से दूर हो गया। फुलवा ने अपनी आंखें खोल कर देखा तो कालू मुस्कुराता हुआ एक मोटी लाल मोमबत्ती जलाकर खड़ा था। फुलवा की दहिनी चूची पर गरम मोम ठंडा होते हुए पपड़ी की तरह जमा हो रहा था।



फुलवा, "ये… ये क्या…?"



कालू, "हारामी रण्डी, मैं तुझे इतनी आसानी से झड़ने दूं तो माल क्या तेरा बाप देगा?"



फुलवा सिसककर गिड़गिड़ाने लगी पर न अपने बदन को और न कालू को रोक पाई। कालू हर बार फुलवा को झड़ने की कगार तक आने देता और ठीक पहले फुलवा के बदन के किसी नाजुक हिस्से पर पिघला हुआ मोम उड़ेलकर उसे रोक देता। फुलवा की उत्तेजना अब जल्द और ज्यादा जोर से छूटने की कोशिश कर रही थी पर मोमबत्ती भी अब ज्यादा तेजी से जलती ज्यादा मोम पिघला रही थी।



फुलवा ने पूरे 23 मिनट तक यह अजीब तड़पना सहा पर हर कोई आखिर में टूटता है। मोम ने फुलवा की चुचियों और मम्मों के साथ उसके गले और नाभि को भी भर दिया था। जब आखरी बार मोम को फुलवा के फूले हुए यौन मोती पर गिराया गया तब फुलवा चीख कर टूट गई।



फुलवा, "राज नर्तकी की हवेली!!!…"



कालू ने मोमबत्ती को नीचे रख दिया।



कालू, "कहां?"



फुलवा रोते हुए, "बापू ने रात को राज नर्तकी की हवेली में मेरी गांड़ मारी थी!…"



कालू, "कहां है यह हवेली?"



फुलवा (झड़ते हुए), "लखनऊ के बाहर सुनसान इलाके में!!…"



फुलवा तड़पकर झड़ने लगी और कालू ने फुलवा को छुड़ाते हुए उसे फर्श पर लिटा दिया।



फुलवा, "तुम्हें जो चाहिए वह तुम्हें मिल गया!! अब मुझे छोड़ दो! मुझे बक्श दो!"



कालू ने अपनी कलाई पर घड़ी को देखा और मुस्कुराया।



कालू, "अगर तूने सच कहा है तो तू मेरे खिलाफ शिकायत कर सकती है और अगर झूट बोला है तो मुझे तेरी जरूरत पड़ेगी। इसी वजह से मैं तुझे ना जीने दूंगा और ना ही मरने।"



कालू ने फुलवा की कलाइयों को बांध कर उसके सर से कमर तक एक बोरी में बंद कर दिया। कमर के नीचे से नंगी फुलवा को कालू बाहर ले आया और उसे एक गाड़ी में चढ़ा दिया। बोरी में से फुलवा सांस ले सकती थी और उसे एहसास हो रहा था की उसके साथ उसी की तरह कई और औरतें भी बंधी हुई थी।



थोड़ी ही देर में दरवाजा बंद करने की आवाज सुनाई दी और जानवरों की तरह फुलवा को किसी अनजान जगह की ओर रवाना किया गया।
 
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औरतें सिसक रही थी। फुलवा के दोनो पैरों को नंगे पैर महसूस हो रहे थे। गाड़ी शायद हाईवे पर पुलिस को चकमा देने के लिए जंगल के ऊबड़ खाबड़ रास्ते से जा रही थी।


काफी देर तक दौड़ लगाने के बाद गाड़ी रुक गई। गाड़ी किसी वीराने में रुकी हुई थी क्योंकि हवा और जंगली जानवरों के अलावा कोई आवाज नहीं था। पीछे से दरवाजा खुला और दो मर्दों की आवाजें आई।


एक, "तुझे यकीन है कि ऐसा करने से कुछ नहीं होगा?"


दो, "अरे ये पेशेवर रंडियां है जो नए बाजार जा रही हैं। तुझे यहां सील बंद माल नहीं मिलेगा पर माल सौ टका पक्का है।"


दोनों गाड़ी में पीछे से चढ़ गए और दरवाजा बंद कर दिया गया। पैंट की चैन खुलने की आवाज हुई और कुछ पैकेट खोलने की भी आवाज हुई।


अचानक किसी लड़की की आह निकल गई और अगले ही पल कोई लड़की चीख पड़ी।


दो, "भेनचौद!! सीधे गांड़ मत मार! पहले जरा चूत चोद ताकि जंगल में कोई फॉरेस्ट गार्ड सुन ना ले।"


एक, "आह!!…
सुन लिया तो उसे भी चोदने देंगे! अपना क्या जाता है?"

दो, "उंह!!…
ऊंह!!…
अपना…
वक्त जाता…
है!…
उधर पूछ…
लिया तो…
सबको देरी…
की वजह…
क्या बतायेगा?…"


एक, "हां!!…
ये भी सही है!!…"

दोनो कुछ देर तक और चोदते रहे और फिर आहें भरते हुए झड़ गए। कंडोम उतारते हुए दोनों शेखी बघारने लगे।


एक, "आज मैने पहली बार गांड़ मारी है!"


दो, "हर तीन महीने में एक बार ऐसी गाड़ी जाती है। इस धंधे में पैसे तो मिलेंगे पर हर तीन महीने में ऐसा फोकट का मौका भी मिलेगा!"


दोनो मर्द बातें करते हुए वापस आगे चले गए और दो बेबस सिसकती आवाजें छोड़ पीछे सन्नाटा छा गया।
गाड़ी दुबारा दौड़ने लगी और पूरी रात बीत गई। सुबह गाड़ी रुक गई और दरवाजा खोल का जानवरों की तरह उनकी गिनती की गई।


आदमी, "सलीम, सलमाबाई को बताओ की एक ज्यादा आ गई है!"


कुछ देर बात जवाब आया, "आ गई है तो हमारी है! चूत और गांड़ है तो धंधा भी कर ही लेगी! उतार सब को!"


सभी औरतों को उतारा गया। गलियों में से नंगे बदन घुमाते हुए आखिर में एक कमरे में ला कर उनके बोरे उतारे गए।


पान खाती एक मोटी औरत ने सभी लड़कियों को देखा और फिर एक आदमी के हाथ में लाए थूंकदान में थूंका।


औरत, "मेरा नाम सलमाबाई है। यहां धंधा करते हुए अब मैं यहां की मालकिन बनी हूं! अगर किसी ने भागने की कोशिश की तो (मुस्कुराकर) मैं तुम्हें अपना नाम दुबारा बताऊंगी। पर उसके बाद तुम दुबारा कुछ देख या सुन नही पाओगी।"


सभी के रोंगटे खड़े हो गए।


सलमाबाई, "तुम सारी पुरानी रंडियां हो और अब तुम्हारे लिए ज्यादा पैसा नही मिलने वाला। पर मेरे पास सस्ते ग्राहक भी है जिन्हे बस 50 रुपए की चूत चाहिए। तुम सब आज रात 8 बजे से नीचे के बड़े हाल की चटाइयों पर लेट जाना और सुबह 6 बजे तक लेटे रहना। (हंसकर) सोना चाहो तो सो सकती हो। इन ग्राहकों को कोई फर्क नहीं पड़ता!"


सलमाबाई सब को देखते हुए आगे बढ़ते हुए बताती रही, "सुबह 6 बजे चाय मिलेगी। फिर अपनी चूत और गांड़ धो लेना। सुबह 8 बजे नाश्ता और दोपहर 2 बजे खाना मिलेगा। सबको कोठे के कामों में हाथ बंटाना होगा! अगर किसीने कामचोरी की तो उसकी गांड़ मैं खुद मरूंगी और फिर पूरी रात हर ग्राहक से उसकी गांड़ मरवाऊंगी!"


फुलवा का चेहरा देखकर सलमाबाई, "कुछ साल पहले आती तो 500 वाले कमरे में सुलाती!"


सलमाबाई आगे बढ़ते हुए, "शाम को 7 बजे हल्का खाना होगा और रात को 8 बजे कोठे के दरवाजे खुलेंगे।"
 
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फुलवा की बेजान आंखों ने काली की सहमी हुई आंखों में देखा।


फुलवा, "पिछले पांच साल मैं चुधती हुई चूत से ज्यादा कुछ नहीं थी। हर रात मुझे दसियो मर्द को लेना पड़ता। समझ लो कि अगर मैं 100 साल जी गई तो भी मेरी हर रात से मेरे ऊपर चढ़े मर्द ज्यादा होंगे।"


सहमी हुई काली अपने भविष्य की ऐसी झलक देख कर सिसक उठी। काली को देख फुलवा की ममता जाग गई।


फुलवा ने काली के हाथों को अपने हाथों में पकड़ कर, "मुझ मनहूस को छोड़। अब हमें नीलाम किया जाएगा तब किसी सेठ को पटाने की कोशिश कर। याद रख! मर्द के लिए औरत की झिल्ली उसकी सबसे कीमती चीज होती है! तो जल्द से जल्द उस से चुधवा ले! एक बार तू चुध गई तो तेरी कीमत काफी कम हो जायेगी और मुमकिन है कि वह तुझे दुबारा ना बेचे!"


गाड़ी रुक गई और सहमी हुई काली ने फुलवा को गले लगाकर विदा ली। सारी औरतों को एक मैदान में बने मंच के पीछे बांध कर रखा गया। मंच पर से बोली लगाने वाले उनके बारे में बता रहे थे।


मंच पर से, "आज हमारे कदरदानों के लिए पेश है एक बेहतरीन नजराना!! 8 अनछुई कुंवारियां जिन्हे सख्त हाथ से जीतना पड़ेगा। ये लड़कियां काम के लिए निकली थी और अब आप की रातें रंगीन करने के काम आएंगी!!"


मंच पर 8 रोती रही लड़कियों की नुमाईश की गई। सारी लड़कियां रो रही थी और उन्हें लूटने के लिए उतावले दर्शक तालियां और सीटियां बजा रहे थे।


मंच पर से, "आगे आप की खिदमत में पेश हैं 3 घरेलू औरतें। हालांकि ये कुंवारियां नहीं है पर इन्हें किसी भी तरह से पेशेवर नहीं बनाया गया। इन्हें अपने घर ले जाओ और काम के साथ अपने बेटों को जवानी के सबक सिखाओ!!"


3 औरतों को खींच कर मंच पर लाया गया। यह औरतें शायद काम की तलाश में निकली थी। चाबुक की फटकार हुई और इन घरेलू औरतों को मंच पर अपनी कमर हिलानी पड़ी। दर्शकों में से जवान लड़के तालियां और सीटियां बजाने लगे।


मंच पर से, "कलकत्ते की बदनाम गलियों में से आई हैं 2 रंडियां! इन्हें कम समझने की गलती ना करना!! इन आदमखोर औरतों को हर रात कम से कम 20 लौड़े लेने की आदत है! किसी भी कोठे पर सबसे ज्यादा कमाने की सबसे सस्ती रंडियां ये रही!"


मंच पर फुलवा और दूसरी रण्डी को लाया गया। दोनों को अपना जिस्म बेचने और बिकने की आदत हो गई थी तो दोनों ने नाचना शुरू किया। इस मंच पर उनका नाच देखने के लिए भीड़ आगे आई। दोनों रंडियों ने नाचते हुए अपने बदन की खूब नुमाइश की। फुलवा ने अपने ऊपर एक तीखी नजर को महसूस किया। फुलवा ने नाचते हुए उसे देखा तो वह कोई जवान लड़का दिखा।


दोनों रंडियों को मंच से उतारा गया और आगे की नीलामी के बारे में बताने लगे।


मंच पर से, "मेहरबान कदरदान सबसे आखिर में है हमारा नगीना! ये है बंगाल की काली!! ये बिलकुल अनछुई कुंवारी है पर खुशी खुशी खुद को बेच रही है! इसे ले जाओ और बंगाल की असली गरमी चखो!!"


काली ने एक गहरी सांस ली और मंच पर चढ़ कर मुस्कुराते हुए हाथ जोड़े। काली ने नाचना बस शुरू किया था जब अचानक जिस्म के मेले में भगदड़ मच गई।


मंच पर नीलामी करने वाले और औरतों को बेचने वाले लोग सब को वहीं पर छोड़ कर भागने लगे। दर्शकों में से आवाज आई की यहां पुलिस की रेड पड़ने वाली है। छुपी Recording हो रही है। सारी औरतों ने मौका साधा और भागने लगीं।


फुलवा ने देखा तो मंच पर काली अब भी नचाते हुए किसी 35 की उम्र के आदमी से अपना सौदा कर रही थी। फुलवा के बगल की रण्डी चीखी। उस रण्डी को 5 मर्दों के परिवार ने अपने कंधे पर डाला और भाग खड़े हो गए।


फुलवा को दबोचने के लिए कई हाथ बढ़े पर अचानक किसी ने एक पैनी कट्यार से उसे पीछे से दबोच लिया। फुलवा ने मुड़कर अपने नए मालिक को देखा।


यह वही जवान लड़का था जो उसे नाचते हुए घूर रहा था। लेकिन अब उसकी आंखों में वह आग थी जिसे देख बाकी सारे फुलवा को उसके साथ छोड़ भाग गए। लड़के ने फुलवा का हाथ पकड़ लिया और दोनों वहां से भागने लगे।


कुछ देर भागने के बाद फुलवा थक गई। लड़के ने भी भागना बंद किया पर खींचना जारी रखा। गाड़ी का हॉर्न बजा और फुलवा ने गाड़ी में देखा। गाड़ी में बैठी काली ने अपना हाथ उठाकर फुलवा से विदा ली।


फुलवा, "क्या हम थोड़ा रुक सकते हैं? मैं थक गई हूं।"


लड़का, "तुम्हारा नाम क्या है?"


फुलवा हंसकर, "जो चाहे बुलाओ! मेरी चूत और गांड़ नाम सुनकर नहीं खुलती। आप बहुत जवान लगते हैं। पहली बार औरत का मजा लेने के लिए मुझे लिया है ना? आप ही बताओ किस नाम से चोदना चाहते हो? मास्टरनी, भाभी, चाची, बुआ या सीधे मां के नाम से?"


लड़के की गरम आंखों में दर्द छलक आया, "मुझे अपना नाम बताइए। वही नाम जो आप को आप की मां ने दिया था!"


फुलवा से लड़के का दर्द बर्दाश्त नहीं हुआ (चुपके से), "एक जमाने में मैं फुलवा थी।"


लड़के की आंखों में आंसू भर आए।


लड़का, "मेरा नाम पूछिए!"


फुलवा ने उसकी आंखों में देखा और रोने लगी, "नहीं!!…
नहीं!!…
नहीं!!…"


लड़के ने रोती हुई फुलवा को गले लगाकर, "मां!!…"
 
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कोई मां नहीं चाहती कि उसकी औलाद उसे बुरा समझे पर यहां तो चिराग ने फुलवा को जिस्म के बाजार से बाहर लाया था। जब चिराग फुलवा को खींच कर ले जाने लगा तो फुलवा बिना किसी विरोध के उसके साथ जाने लगी।


रास्ते के मोड़ पर फुलवा ने बापू की गाड़ी को देखा।


फुलवा, "यह गाड़ी? तुम्हारे पास?"


चिराग, "अधिकारी सर ने मुझे बचपन से आप के बारे में बताया था। जब आप सजा खत्म होने पर मुझे लेने नहीं आईं तो मैं बहुत उदास हुआ। सर ने आप के बारे में पता लगाया।


कोई कालू सिपाही आप को जेल से ही अगवा कर चुका था। सर ने बहुत कोशिश की पर आप का कोई पता नहीं चला। कुछ दिन बाद एक डकैत ने कुबूल किया की वह राज नर्तकी की हवेली में खजाना ढूंढने गया था जब वहां सिपाही कालू भी पहुंचा। हाथापाई में सिपाही कालू मारा गया और फिर कोई भी उस जगह पर नहीं गया। सर की मदद से आप ने जेल में कमाए पैसों के साथ यह गाड़ी मुझे अपनी विरासत कह कर दी गई।"


फुलवा ने गाड़ी में बैठते हुए अंदर देखा। यह बात साफ थी की चिराग इसी गाड़ी में जी रहा था।


फुलवा, "चिराग, तुम गाड़ी में रहते हो? क्यों?"


चिराग, "आज क्या है, मां?"


फुलवा अपनी आंखे बंद कर, "मैं नहीं जानती बेटा। मैं पूरी जिंदगी एक कैद से दूसरे कैद में रही हूं। मुझे नहीं पता की आज क्या है।"


चिराग बात समझ कर मुस्कुराया, "आज मेरा 18 वा जन्मदिन है। मैने यह कभी नहीं माना की आप मर गईं हो। जब भी मुझे पता चलता की कहीं रंडियां बिक रही हैं तो मैं वहां आप को ढूंढता।"


फुलवा, "लेकिन अधिकारी साहब ने इसकी इजाज़त कैसे दी?"


चिराग, "अधिकारी सर 2 साल पहले गुजर गए। उन्होंने अपनी पूरी जायदाद हिजड़ों को पढ़ाने और उनकी सशक्तिकरण में काम करने वाली संस्था को दे दी। मुझे मेरी विरासत आप से मिली!"


फुलवा रोने लगी।


फुलवा ने चिराग को गले लगाकर, "मुझे माफ करना बेटा! मेरी बदनसीबी ने तुझे भी सड़क पर लाया। इस गरीबी के श्राप से तुझे भी भुगतना पड़ा!"


चिराग, "मां!!… उस बारे में…"


फुलवा, "हां!!… उस बारे में हमें कुछ करना होगा! क्या तुम मेरे साथ लखनऊ आओगे?"


चिराग, "लखनऊ?"


फुलवा, "हां, वहां तेरे बापू ने हमारे लिए विरासत छोड़ी थी!"


चिराग, "मेरे बापू ने? किसने? आप तो…"


फुलवा मुस्कुराकर, "रण्डी थी? हां पर तुम्हारा बापू मेरा बड़ा भाई था! मतलब तीन में से एक लेकिन फिर भी तुम उन की औलाद हो।"


उस रात मां बेटे ने सोने के बजाय जाग कर गाड़ी चलाते हुए बातें की। सुबह होते हुए गाड़ी लखनऊ पहुंची। फुलवा के कहने पर चिराग उसे लक्ष्मी एंपोरियम ले गया।


लखनऊ का बाजार 17 सालों में पूरी तरह बदल गया था पर लक्ष्मी एंपोरियम बिलकुल वैसा ही था। फुलवा और चिराग अपने मैले पुराने कपड़ों में जब वहां पहुंचे तो दरबान ने उन्हें रोक दिया।


फुलवा ने अपना नाम बताया और कहा की वह धनदास से मिलने आई है तो दरबान ने उन्हें अजीब नजर से देखते हुए अंदर सोफे पर बिठाया। फुलवा का नाम सुनकर एक कपड़े के दस्ताने पहना नौकर उन दोनों के लिए पानी के ग्लास लाया। पानी पीने के बाद नौकर ग्लास ले गया और दोनों को धनदास के कमरे में लाया गया।


फुलवा ने अंदर बैठे आदमी को देखा और चौंक गई।


फुलवा, "आप कौन हैं? आप धनदास नहीं हो!"


आदमी मुस्कुराया, "नहीं फुलवाजी। मैं धनदास नहीं हूं। धनदास आप से मिलने के कुछ ही देर बाद मर गया।"


फुलवा चौंक कर बैठ गई।


फुलवा चुपके से, "मर गया। वो बोले थे की रुकेंगे…"


आदमी, "क्या मतलब? धनदास ने क्या बोला था?"


फुलवा, "धनदासजी आप की जगह पर बैठे थे। बहुत उदास थे। उन्होंने कहा की वह आखरी सौदा ईमानदारी से करेंगे! जब मैंने उन से कहा की वह मेरे आखरी गवाह है और वह खुद को संभालें तो वह बहुत ज्यादा उदास हुए। कहने लगे कि आखरी सांस तक मेरा इंतजार करेंगे।"


फुलवा ने आदमी को देखा तो उसके चेहरे पर अजीब खुशी दिख रही थी।


फुलवा ने उठ कर हाथ जोड़ते हुए, "मैं चलती हूं। आप को तकलीफ देने के लिए माफी चाहती हूं!"


आदमी, "रुकिए! आप और कुछ पूछना नहीं चाहती? हिसाब नहीं मांगना चाहती?"


फुलवा, "जिसे अपनों ने लूटा हो वह दूसरों से क्या शिकवा करे?"


एक नौकर ने पर्ची लेकर अंदर आया और वह कागज आदमी को देकर रुक गया।


आदमी पर्ची पढ़ कर, "मेरी आज की सारी अपॉइंटमेंट रद्द कर दो और धनदास की गाड़ी बाहर लाओ। मेरे घर पर बता देना की मैं धनदास की गाड़ी लेकर जा रहा हूं।"


नौकर चला गया और आदमी ने फुलवा को बैठने को कहा। फुलवा का हाथ अपने हाथ में लेकर आदमी ने फुलवा की हथेली को सहलाया। फुलवा ने अपने हाथ को खींच लिया और आदमी हंस पड़ा।


आदमी, "मेरा नाम मोहन है और मैं लक्ष्मी एंपोरियम का मालिक हूं। आप हैं फुलवा और यह आप का बेटा चिराग!"


चिराग, "आप को मेरा नाम कैसे पता?"


मोहन, "हम आप दोनों को पिछले कई सालों से ढूंढ रहे थे। नीचे आप को पानी पिलाते हुए आप की उंगलियों के निशान लिए गए और अब उनके मिलान होने पर मैं आप को धनदास के बारे में बता सकता हूं।"


मोहन फुलवा और चिराग को बाहर ले जाते हुए अपने नौकरों को सूचनाएं दे रहा था। आखिर में तीनों बाहर निकले और एक सफेद गाड़ी में बैठे।


मोहन के बगल में चिराग बैठा और फुलवा पीछे बैठ गई।


मोहन, "आप को पहले धनदास का इतिहास बता दूं फिर आप को पता चल जायेगा की आप के साथ जो हुआ वह क्यों और कैसे हुआ!"
 

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