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धनदास का असली नाम नारायण था। वह गरीब घर में पला बढ़ा और अमीरी के सपने देखते हुए बचपन में ही काम करने लगा।
छोटे नारायण को लक्ष्मी एंपोरियम में झाड़ू पोंछा लगाने का काम मिला। वहां से 21 की उम्र में मैनेजर का सफर नारायण ने लगन और बेरहमी के जोर पर किया। जब लक्ष्मी एंपोरियम के मालिक को दिल का दौरा पड़ा तो उसे अपनी मंद बुद्धि बेटी लक्ष्मी के लिए चिंता होने लगी। 21 वर्ष के नारायण ने 33 वर्ष की मंद बुद्धि लक्ष्मी से मंदिर में शादी कर उसके पिता को खुश कर दिया। लक्ष्मी को समझ नही आता की उसका दोस्त उसे रोज रात को क्यों मारता है पर शादी के नौ महीनों बाद नारायण ने अपने बेटे को उसके नाना की गोद में रखा।
नाना ने खुश होकर अपना धंधा नारायण को दिया और कुछ ही दिनों बाद चल बसे। नारायण ने तुरंत लक्ष्मी को पागलखाने में भर्ती कराया और अपने बेटे को संभालने के लिए एक बांझ औरत को रखा। अब नारायण बिना डरे उस से अपने बेटे के साथ अपनी रात का भी खयाल रखवाता।
नारायण ने मुश्किल में फंसे लोगों से उनका सोना गिरवी रखवाया और सूत बढ़ाकर उसे ऐंठ लिया। इसी धन के लालच में लोगों ने उसका नाम धन का दास धनदास रख दिया।
धनदास इतना लोभी था की उसने अपने बेटे तक को नहीं छोड़ा। जब उसका बेटा 21 साल का हुआ तब वह धनदास के लक्ष्मी एंपोरियम में मैनेजर था और वहीं की कैशियर से प्यार करता था। लेकिन धनदास ने अपनी दौलत बढ़ाने के लिए अपने इकलौते बेटे की शादी मुत्थुस्वामी गोल्ड की वारिस के साथ तय कर दी।
मुत्थुस्वामी गोल्ड की वारिस एक बड़ी ही बदचलन लड़की थी जो कच्ची उम्र से ही बदनाम थी। अब 25 की उम्र में वह 4 माह पेट से थी और पिछले 3 गर्भपात की वजह से इस बार गर्भपात नही करा पाई थी। बाकी के नशे की आदत के साथ यह भी सुनाई दिया था की वह HIV से संक्रमित थी।
जब बेटे ने इन सारी बातों को बताते हुए शादी से इंकार किया तो धनदास ने उसे अंतिम चेतावनी दी। या तो वह इस लड़की से शादी कर अपनी प्रेमिका को अपनी रखैल बनाए या अपने प्रेमिका से शादी कर अपनी जायदाद से हाथ धो बैठे। उस शाम को धनदास के बेटे ने अपनी प्रेमिका से मंदिर में शादी कर ली और धनदास को छोड़ चला गया।
उसी रात धनदास के सर में तेज दर्द होने लगा और उसे अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर ने आधी रात को सोते हुए लोगों को जगाकर धनदास के दिमाग का xray किया।
डॉक्टर ने धनदास को बताया को उसके दिमाग में एक गहरी काली गांठ है। इसे निकालना मुमकिन नहीं है और इसे देख कर लगता है की धनदास अगले 3 महीने में अपने सारे अंग खो कर बड़ी ही दर्दनाक मौत मरेगा।
सुबह हो चुकी थी और डॉक्टर ने और जांच करने को कहा था। पर धनदास अपनी पूरी जिंदगी की कमाई लक्ष्मी एंपोरियम में चला आया। वह अपने ऑफिस में बैठ कर खुदकुशी करने जा रहा था जब अचानक एक भोली भाली लड़की उसे मिलने आई। इस लड़की ने बिना किसी डर के धूर्त धनदास पर भरोसा किया और अपनी पूरी कमाई उसे देकर चली गई।
धनदास नर्क की अग्नि में जलने का मन बना चुका था पर एक अच्छा काम करने की लालसा ने उसे रोक लिया। धनदास ने पूरा सोना बेचने के भाव में खरीद लिया। नौकरों ने यह बात देखी की धनदास अपना सारा पैसा सोने में बदल चुका था।
धनदास फिर वह पैसा लेकर अपने वकील के पास गया। वहां धनदास ने एक साझेदारी कंपनी के कागजात बनाए। उस कंपनी में फुलवा का हिस्सा डेढ़ करोड़ का था तो धनदास का एक रुपए का। धनदास फिर इस कंपनी के कागजात लेकर एक झोंपड़ी के दरवाजे पर पहुंचा।
दरवाजा खोलती नई दुल्हन ने धनदास को देखा और डर कर अपने दूल्हे को पुकारा।
धनदास, "मैं जानता हूं कि अब आप दोनों मेरी शक्ल तक देखना नहीं चाहते। पर सुना है की तुम्हें नौकरी की जरूरत है।"
दूल्हा, "मैं आप के साथ काम नहीं कर सकता! किसी और को ढूंढ लो!"
धनदास, "यह एक नई कंपनी है। इसकी मालकिन तुमसे अभी मिल नही सकती पर वह मालिक है, मैं नहीं। तुम यह कंपनी अपनी मर्जी से चलाओ। बस दिल से काम करो और तरक्की करो!"
दूल्हा शक करते हुए, "बस? कोई चाल नही? कोई हिस्सा नहीं? कोई देखरेख नही?"
धनदास दुल्हन की ओर देख कर, "तुम वफादार हो, ईमानदार हो और उसूलों पर चलने वाले हो। मुझे इस काम के लिए ऐसे ही इंसान की जरूरत है।"
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चिराग, "वह दूल्हा आप हो? धनदास का बेटा जो एक रात पहले घर छोड़ कर अपनी दुल्हन के साथ अलग हो गया था!"
मोहन मुस्कुराया, "हां! हमें विश्वास नहीं हो रहा था कि एक झोपड़ी में रहने वाला आदमी एक कंपनी का CEO है!"
मोहन आगे बताने लगा, "खैर डेढ़ करोड़ कोई ज्यादा बड़ी रकम नहीं है। मैने तुरंत जाकर एक बंद पड़ी पेपर मिल खरीद ली। मैने सोचा की रद्दी कागज से डिस्पोजेबल पेपर ग्लास और थाली एक अच्छा छोटा धंधा होगा। कंपनी को नाम देना था तो धनदास ने फुलवा के बारे में जानकारी इकट्ठा की। तभी हमें पता चला की उसका एक बेटा है जिसका नाम चिराग है। मैंने पेपर मिल का नाम नहीं बदला पर पेपर को नाम दिया Chirag Paper Products।"
चिराग चौंक गया। मोहन मुस्कुराया और फुलवा ने चिराग को चौंकने की वजह पूछी।
चिराग, "Chirag paper products एक काफी बड़ी कंपनी है।"
चिराग और फुलवा चौंक कर मोहन को देख रहे थे पर मोहन मुस्कुरा रहा था।
मोहन, "चिराग पेपर प्रोडक्ट्स को बेचने की बस शुरुवात हुई थी की सरकार ने प्लास्टिक ग्लास और थाली पर रोक लगा दी। बस इतना समझ लो की हमने इतनी बड़ी ऑर्डर का सपना भी नहीं देखा था।"
फुलवा और चिराग मुंह खुला छोड़ देखते रह गए पर मोहन मुस्कुराता रहा।
मोहन, "मैं एक नाकामयाब CEO होता अगर मैं इतने पर ही रुक जाता। अपनी कामयाबी को बेवक्त लोगों की नजरों में आने से रोकने के लिए मैंने एक होल्डिंग कंपनी बनाई जिस के जरिए मैंने बाकी कई और कंपनियां बनाई। और हां मैं काफी कामयाब रहा!"
चिराग, "कितने कामयाब हुए आप?"
मोहन फक्र से, "होल्डिंग कंपनी का नाम C कॉर्प है।"
चिराग दंग रह गया और फुलवा को कुछ समझ नहीं आया।
मोहन फुलवा को समझते हुए, "C कॉर्प इस देश की सबसे तेजी से बढ़ती कंपनी है। हम इसकी कामयाबी में आप को हिस्सा बनने के लिए तरस रहे थे। आप जब जेल से रिहा हुईं तब मैं इसी गाड़ी में आप को लेने आया था पर आप को कोई और अगवा कर चुका था।"
फुलवा, "मैंने इस गाड़ी को देखा था!"
मोहन, "चिराग, मेरी आप पर भी नज़र थी। आप के स्कूल के नंबर से मुझे बहुत उम्मीदें थी। पर अधिकारी साहब के अचानक गुजर जाने के बाद आप गायब हो गए! इसी वजह से आप दोनों को ऐसे देख कर मुझे आप दोनों पर शक करना पड़ा। आप नहीं जानते की पिछले 17 सालों में कितने लोगों ने फुलवा बनने की कोशिश की है। फुलवा जी मैंने आप की हथेली को सहलाया पर तब मैं आखिरी बार तसल्ली कर रहा था की आप ने नकली उंगलियों के निशान वाला दस्ताना नही पहना।"
मोहन ने गाड़ी एक अच्छे से घर के सामने रोकी।
मोहन, "अगर आप दोनों बुरा न मानो तो कुछ दिनों के लिए हम आप की पहचान को राज़ रखना चाहते हैं। चिराग, मैं इस कंपनी को तुम्हें सौंपने से पहले तुम्हें उसके लिए तयार करना चाहता हूं। यह कंपनी मेरी पहली औलाद है और अगर तुम इसे चलाने के लायक नही निकले तो मैं तुम्हें एक अच्छी आमदनी के साथ कोने में बिठाने से परहेज नहीं करूंगा।"
फुलवा घर में आते हुए, "मोहनजी आप ने नही बताया की आप के पिता कब गुजर गए।"
अंदर से रौबदार आवाज आई, "कौन कहता है की मैं मर गया? मैंने एक चुड़ैल से कर्जा लिया है, चुकाए बगैर नहीं मरूंगा!"