Erotica बदनसीब फुलवा; एक बेकसूर रण्डी

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धनदास का असली नाम नारायण था। वह गरीब घर में पला बढ़ा और अमीरी के सपने देखते हुए बचपन में ही काम करने लगा।


छोटे नारायण को लक्ष्मी एंपोरियम में झाड़ू पोंछा लगाने का काम मिला। वहां से 21 की उम्र में मैनेजर का सफर नारायण ने लगन और बेरहमी के जोर पर किया। जब लक्ष्मी एंपोरियम के मालिक को दिल का दौरा पड़ा तो उसे अपनी मंद बुद्धि बेटी लक्ष्मी के लिए चिंता होने लगी। 21 वर्ष के नारायण ने 33 वर्ष की मंद बुद्धि लक्ष्मी से मंदिर में शादी कर उसके पिता को खुश कर दिया। लक्ष्मी को समझ नही आता की उसका दोस्त उसे रोज रात को क्यों मारता है पर शादी के नौ महीनों बाद नारायण ने अपने बेटे को उसके नाना की गोद में रखा।


नाना ने खुश होकर अपना धंधा नारायण को दिया और कुछ ही दिनों बाद चल बसे। नारायण ने तुरंत लक्ष्मी को पागलखाने में भर्ती कराया और अपने बेटे को संभालने के लिए एक बांझ औरत को रखा। अब नारायण बिना डरे उस से अपने बेटे के साथ अपनी रात का भी खयाल रखवाता।


नारायण ने मुश्किल में फंसे लोगों से उनका सोना गिरवी रखवाया और सूत बढ़ाकर उसे ऐंठ लिया। इसी धन के लालच में लोगों ने उसका नाम धन का दास धनदास रख दिया।


धनदास इतना लोभी था की उसने अपने बेटे तक को नहीं छोड़ा। जब उसका बेटा 21 साल का हुआ तब वह धनदास के लक्ष्मी एंपोरियम में मैनेजर था और वहीं की कैशियर से प्यार करता था। लेकिन धनदास ने अपनी दौलत बढ़ाने के लिए अपने इकलौते बेटे की शादी मुत्थुस्वामी गोल्ड की वारिस के साथ तय कर दी।


मुत्थुस्वामी गोल्ड की वारिस एक बड़ी ही बदचलन लड़की थी जो कच्ची उम्र से ही बदनाम थी। अब 25 की उम्र में वह 4 माह पेट से थी और पिछले 3 गर्भपात की वजह से इस बार गर्भपात नही करा पाई थी। बाकी के नशे की आदत के साथ यह भी सुनाई दिया था की वह HIV से संक्रमित थी।


जब बेटे ने इन सारी बातों को बताते हुए शादी से इंकार किया तो धनदास ने उसे अंतिम चेतावनी दी। या तो वह इस लड़की से शादी कर अपनी प्रेमिका को अपनी रखैल बनाए या अपने प्रेमिका से शादी कर अपनी जायदाद से हाथ धो बैठे। उस शाम को धनदास के बेटे ने अपनी प्रेमिका से मंदिर में शादी कर ली और धनदास को छोड़ चला गया।


उसी रात धनदास के सर में तेज दर्द होने लगा और उसे अस्पताल ले जाया गया। डॉक्टर ने आधी रात को सोते हुए लोगों को जगाकर धनदास के दिमाग का xray किया।


डॉक्टर ने धनदास को बताया को उसके दिमाग में एक गहरी काली गांठ है। इसे निकालना मुमकिन नहीं है और इसे देख कर लगता है की धनदास अगले 3 महीने में अपने सारे अंग खो कर बड़ी ही दर्दनाक मौत मरेगा।


सुबह हो चुकी थी और डॉक्टर ने और जांच करने को कहा था। पर धनदास अपनी पूरी जिंदगी की कमाई लक्ष्मी एंपोरियम में चला आया। वह अपने ऑफिस में बैठ कर खुदकुशी करने जा रहा था जब अचानक एक भोली भाली लड़की उसे मिलने आई। इस लड़की ने बिना किसी डर के धूर्त धनदास पर भरोसा किया और अपनी पूरी कमाई उसे देकर चली गई।


धनदास नर्क की अग्नि में जलने का मन बना चुका था पर एक अच्छा काम करने की लालसा ने उसे रोक लिया। धनदास ने पूरा सोना बेचने के भाव में खरीद लिया। नौकरों ने यह बात देखी की धनदास अपना सारा पैसा सोने में बदल चुका था।


धनदास फिर वह पैसा लेकर अपने वकील के पास गया। वहां धनदास ने एक साझेदारी कंपनी के कागजात बनाए। उस कंपनी में फुलवा का हिस्सा डेढ़ करोड़ का था तो धनदास का एक रुपए का। धनदास फिर इस कंपनी के कागजात लेकर एक झोंपड़ी के दरवाजे पर पहुंचा।


दरवाजा खोलती नई दुल्हन ने धनदास को देखा और डर कर अपने दूल्हे को पुकारा।


धनदास, "मैं जानता हूं कि अब आप दोनों मेरी शक्ल तक देखना नहीं चाहते। पर सुना है की तुम्हें नौकरी की जरूरत है।"


दूल्हा, "मैं आप के साथ काम नहीं कर सकता! किसी और को ढूंढ लो!"


धनदास, "यह एक नई कंपनी है। इसकी मालकिन तुमसे अभी मिल नही सकती पर वह मालिक है, मैं नहीं। तुम यह कंपनी अपनी मर्जी से चलाओ। बस दिल से काम करो और तरक्की करो!"


दूल्हा शक करते हुए, "बस? कोई चाल नही? कोई हिस्सा नहीं? कोई देखरेख नही?"


धनदास दुल्हन की ओर देख कर, "तुम वफादार हो, ईमानदार हो और उसूलों पर चलने वाले हो। मुझे इस काम के लिए ऐसे ही इंसान की जरूरत है।"

**************

चिराग, "वह दूल्हा आप हो? धनदास का बेटा जो एक रात पहले घर छोड़ कर अपनी दुल्हन के साथ अलग हो गया था!"


मोहन मुस्कुराया, "हां! हमें विश्वास नहीं हो रहा था कि एक झोपड़ी में रहने वाला आदमी एक कंपनी का CEO है!"


मोहन आगे बताने लगा, "खैर डेढ़ करोड़ कोई ज्यादा बड़ी रकम नहीं है। मैने तुरंत जाकर एक बंद पड़ी पेपर मिल खरीद ली। मैने सोचा की रद्दी कागज से डिस्पोजेबल पेपर ग्लास और थाली एक अच्छा छोटा धंधा होगा। कंपनी को नाम देना था तो धनदास ने फुलवा के बारे में जानकारी इकट्ठा की। तभी हमें पता चला की उसका एक बेटा है जिसका नाम चिराग है। मैंने पेपर मिल का नाम नहीं बदला पर पेपर को नाम दिया Chirag Paper Products।"


चिराग चौंक गया। मोहन मुस्कुराया और फुलवा ने चिराग को चौंकने की वजह पूछी।


चिराग, "Chirag paper products एक काफी बड़ी कंपनी है।"


चिराग और फुलवा चौंक कर मोहन को देख रहे थे पर मोहन मुस्कुरा रहा था।


मोहन, "चिराग पेपर प्रोडक्ट्स को बेचने की बस शुरुवात हुई थी की सरकार ने प्लास्टिक ग्लास और थाली पर रोक लगा दी। बस इतना समझ लो की हमने इतनी बड़ी ऑर्डर का सपना भी नहीं देखा था।"


फुलवा और चिराग मुंह खुला छोड़ देखते रह गए पर मोहन मुस्कुराता रहा।


मोहन, "मैं एक नाकामयाब CEO होता अगर मैं इतने पर ही रुक जाता। अपनी कामयाबी को बेवक्त लोगों की नजरों में आने से रोकने के लिए मैंने एक होल्डिंग कंपनी बनाई जिस के जरिए मैंने बाकी कई और कंपनियां बनाई। और हां मैं काफी कामयाब रहा!"


चिराग, "कितने कामयाब हुए आप?"


मोहन फक्र से, "होल्डिंग कंपनी का नाम C कॉर्प है।"


चिराग दंग रह गया और फुलवा को कुछ समझ नहीं आया।


मोहन फुलवा को समझते हुए, "C कॉर्प इस देश की सबसे तेजी से बढ़ती कंपनी है। हम इसकी कामयाबी में आप को हिस्सा बनने के लिए तरस रहे थे। आप जब जेल से रिहा हुईं तब मैं इसी गाड़ी में आप को लेने आया था पर आप को कोई और अगवा कर चुका था।"


फुलवा, "मैंने इस गाड़ी को देखा था!"


मोहन, "चिराग, मेरी आप पर भी नज़र थी। आप के स्कूल के नंबर से मुझे बहुत उम्मीदें थी। पर अधिकारी साहब के अचानक गुजर जाने के बाद आप गायब हो गए! इसी वजह से आप दोनों को ऐसे देख कर मुझे आप दोनों पर शक करना पड़ा। आप नहीं जानते की पिछले 17 सालों में कितने लोगों ने फुलवा बनने की कोशिश की है। फुलवा जी मैंने आप की हथेली को सहलाया पर तब मैं आखिरी बार तसल्ली कर रहा था की आप ने नकली उंगलियों के निशान वाला दस्ताना नही पहना।"


मोहन ने गाड़ी एक अच्छे से घर के सामने रोकी।


मोहन, "अगर आप दोनों बुरा न मानो तो कुछ दिनों के लिए हम आप की पहचान को राज़ रखना चाहते हैं। चिराग, मैं इस कंपनी को तुम्हें सौंपने से पहले तुम्हें उसके लिए तयार करना चाहता हूं। यह कंपनी मेरी पहली औलाद है और अगर तुम इसे चलाने के लायक नही निकले तो मैं तुम्हें एक अच्छी आमदनी के साथ कोने में बिठाने से परहेज नहीं करूंगा।"


फुलवा घर में आते हुए, "मोहनजी आप ने नही बताया की आप के पिता कब गुजर गए।"


अंदर से रौबदार आवाज आई, "कौन कहता है की मैं मर गया? मैंने एक चुड़ैल से कर्जा लिया है, चुकाए बगैर नहीं मरूंगा!"
 
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धनदास हॉल में आया और फुलवा ने दौड़ कर उसे गले लगाया।


फुलवा रोते हुए धनदास को शुक्रिया अदा कर रही थी जब धनदास ने उसे रोका।


धनदास, "बेटी, मैं धनदास नहीं रहा। अब मैं नारायण हूं! और तुम ने धनदास को मार कर नारायण को बचाया।"


फुलवा, "मैंने? कैसे?"


नारायण, "जब तुम मुझे मिलने आई तब मैं खुदकुशी का मन बना चुका था। लेकिन जब तुमने मुझे अपना आखरी गवाह बनाया तब मैने तय किया कि मैं जीते जी नरक यातना सह लूंगा पर तुम्हें धोखा नहीं दूंगा।"


नारायण ने मुस्कुराकर सबको सोफे पर बिठाया।


नारायण, "जब मैंने अपना सारा पैसा सोने में बदल दिया तो यह बात फैल गई। सबको लगा की मुझे कोई छुपी हुई जानकारी मिली है। उस एक दिन में हमारा साल भर का सोना बिक गया।"


नारायण बैठ कर, "सब लोग मुझे फोन कर रहे थे और उन में मेरा डॉक्टर भी था। आखिर में वह रात को मुझे मिलने आया और बोला की xray machine में खराबी के कारण वह गांठ दिखी थी। मुझे बस मोहन के जाने से सर में दर्द था!"


नारायण उस दिन को याद कर हंसने लगा।


नारायण, "पर मेरे लिए उस दिन धनदास ने खुदकुशी कर ली थी और मैं मोहन के लिए नारायण बनना चाहता था।"


मोहन, "सुधरना इतना आसान नहीं था पर इन्होंने कर दिया।"


नारायण, "जिंदगी भर की आदतें आसानी से नहीं छूटती पर मैंने छोड़ी। लोगों को मदद की, लोगों की गालियां खा कर उनसे माफी मांगी!"


फुलवा, "अब लक्ष्मी एंपोरियम अपने बेटे को देकर यहां मेरा इंतजार कर रहे थे?"


नारायण, "अरे लक्ष्मी एंपोरियम तो मैने तुम्हारे लिए रखा है। मोहन C कॉर्प बना रहा था तब मैं इस देश का सबसे बड़ा सोने का व्यापारी बन गया। आज लक्ष्मी mining Australia और दक्षिण अमरीका में सोने की खदान चलाती है। जो पैसा पीछा करने पर भी धनदास को हासिल नहीं हुआ वह नारायण को बैठे बिठाए मिलता गया।"


मोहन के कंधे पर हाथ रख कर नारायण, "अब मैं सब इसे देकर अपने पापों का प्रायश्चित करता हूं। जब मोहन ने बताया की वह मेरी गाड़ी लेकर बाहर जा रहा है, मुझे पता चल गया कि तुम अपने घर आने को तैयार हो।"


नारायण, "यह तुम्हारा घर है! दो बेडरूम, भरा हुआ रसोईघर, बढ़िया हॉल और घर की चारों ओर एक छोटा सा बगीचा। तुम दोनों इस से काफी बड़ा घर ले सकते हो पर फिलहाल यहीं पर रहो! लोगों को हम बताएंगे कि आप दोनो पिछले 20 सालों से विदेश में थे और अब अपने देश लौटे हो!"


मोहन, "जैसा मैंने कहा था, चिराग तुम ने स्कूल में अच्छे नंबर लाए थे पर स्कूल छोड़ने के बाद तुम्हारा कोई पता नहीं था। इस कंपनी को मैं किसी ऐसे के हवाले नहीं करूंगा जो अपना दिमाग नहीं चला सकता!"


अगर मोहन चिराग को डराना चाहता था तो उसका पासा उल्टा पड़ गया। अब चिराग ने मुस्कुराते हुए अपनी गंदी सी पोटली में से एक बेहतरीन लैपटॉप निकाला।


चिराग, "मां, जब आप ने गरीबी के श्राप की बात की तब मैंने आप को कुछ बताने की कोशिश की थी पर आप ने मेरी बात काट दी। अगर मैं रंडियों की नीलामी में जाता था तो वहां आप को देख कर खरीदना पड़ता। आप के जेल में कमाए पैसों को मैं शेयर बाजार में पिछले कुछ सालों से लगा कर घुमा रहा हूं। मोहन जी बस इतना समझ लीजिए की अगर C कॉर्प एक फैमिली कंपनी नहीं होती तो मैं उसका शेयर होल्डर होता। अगर धनदासजी ने मां को धोखा दिया होता तो भी वह हम अपनी बाकी जिंदगी आराम से जी सकते हैं!"


मोहन और नारायण चिराग का पोर्टफोलियो देख कर उसकी तारीफ कर रहे थे जब फुलवा चकरा कर देख रही थी।


फुलवा, "जरा रुको!! यह सब झूठ है! यह मेरा वहम है! मैं पागल हो गई हूं!!"


चिराग, "क्या हुआ मां!!"


फुलवा, "कल सुबह मैं एक कोठे से नीलाम हो रही रण्डी थी। फिर दोपहर को मुझे आजादी मिली, शाम को मेरा बिछड़ा हुआ बेटा मिला! आज सुबह मुझे पता चलता है कि मैं करोड़ों की संपत्ति की मालकिन हूं क्योंकि मेरे नसीब ने मुझे कैद में रखते हुए धनवान बनाया। इतना अगर कम है तो मेरा 18 साल का बेटा अपने आप में धनवान है! क्या यह सच हो सकता है? नही!!… नही!!…"


चिराग ने फुलवा को गले लगाया।


चिराग, "मां, जब आप ने मुझे गंदे कपड़ों में गाड़ी में रहते हुए देखा तो आप को मुझ पर भरोसा था न? तो अब बस मेरे पास पैसे थोड़े ज्यादा हैं। लड़का तो मैं वही हूं!"


फुलवा को इस बात पर विश्वास हुआ और उसने चिराग की बाहों में समाते हुए अपने सर को हिलाकर हां कहा।


चिराग, "और आप को धनदास पर भरोसा था की वह आप को आप के पैसे लौटाएगा! इसी लिए आप को गरीबी के बारे में सोचते ही इनकी याद आई। अब इन्होंने 17 सालों में आप की अमानत को इस्तमाल कर उसके पीछे 1 शून्य जोड़ दिया है! (मोहन ने मुस्कुराते हुए इशारे से दो शून्य लगाने की बात मानी) तो इसमें बुरा क्या है?"


फुलवा चुपके से, "मुझे डर लग रहा है कि मेरी आंखें खुलेंगी और मैं कोठे पर किसी से चुधा रही हूंगी!"


नारायण, "बेटा ऐसा समझ लो की पिछले जन्म के पाप का हिसाब हो गया है और अब भविष्य में अपने अच्छे कर्मों के फल मिलने हैं!"


मोहन, "अब आप दोनों आराम कर लो। चिराग, कल सुबह 8 बजे मेरे घर हाजिर होना! तुम मेरे नए असिस्टेंट हो! मेरे साथ धंधा करना सीखो। तुम्हारा दाखला मैनेजमेंट कॉलेज में करा देता हूं। साथ साथ डिग्री भी ले लो। अगर मैं तुम पर भरोसा कर पाया तो शायद 10 साल बाद मेरी जगह ले सकते हो! शायद…"


नारायण ने बताया की बगल का बड़ा बंगला उनका घर था और कुछ दिनों तक खाना वहीं से आएगा। नारायण और फुलवा ने एक दूसरे का एहसान माना और नारायण मोहन के साथ अपने घर चला गया।


फुलवा ने अपने कमरे में देखा। वहां एक बड़ा बिस्तर था और बगल की अलमारी में ढेर सारे कपड़े थे। फुलवा के कमरे में ही नहाने का कमरा भी था। फुलवा ने नहाकर नए कपड़े पहने और बिस्तर पर लेट गई।


अचानक फुलवा का दिल भर आया और वह रोने लगी।


चिराग फुलवा के बगल में बैठ गया और उसकी पीठ पर हाथ घुमाकर रोने की वजह पूछने लगा।


फुलवा, "18 साल की थी जब बापू ने मेरी गांड़ मारी थी। उस मनहूस रात के बाद आज पहली बार मैं अकेली सोऊंगी!"


इसी तरह फुलवा सिसक सिसक कर सो गई और चिराग अपनी मां के बदन पर चादर डाल कर अपने कमरे में चला गया।
 
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चिराग ने रात भर फुलवा के कमरे से सिसकियां और आहें भरने की आवाज़ें सुनी। चिराग ने फुलवा को वक्त देकर नए हालत से जुड़ने का मौका देना सही समझा।


सुबह 6 बजे चिराग उठ कर बाहर आया तो फुलवा किचन की मेज से लगी कुर्सी पर बैठ कर चाय पी रही थी। फुलवा का भरा हुआ बदन satin की महीन परत ओढ़े अपना हर उठाव हर कसाव दिखा रहा था। चिराग अपने इन विचारों को रोक कर गले की खराश की आवाज कर अपने आने की खबर फुलवा को देने में कामयाब हुआ।


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फुलवा मुस्कुराकर, "अरे बेटा, तुम उठ गए! आओ बैठो मैंने हमारे लिए चाय बनाई है।"


फुलवा ने अपनी कुर्सी पर चिराग को बिठाया और चाय गरम करने के लिए बर्तन गैस पर रखा। Satin gown के आगे का हिस्सा खुल गया और फुलवा के गले से नाभि तक का हिस्सा साफ दिखने लगा।


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चिराग का गला सुख गया और उसके मुंह से कुछ अजीब आवाज निकली।


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फुलवा अपने गाउन को सीधे करते हुए, "माफ करना बेटा! मुझे परिवार के साथ रहने का तजुर्बा नही!"


चिराग ने बात बदलते हुए, "मैं समझ सकता हूं! हम बिलकुल अलग तरह से जिए हैं। आप बताओ की आप कैसे रहती थीं?"


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फुलवा ने चाय को कप में भरते हुए, "वैसे तो हम सब औरतें ही थी। इस लिए हम सब सिर्फ ब्लाउज और साया पहनती थी। रात 8 बजे का पहला ग्राहक हमारा ब्लाउज खोल कर साया उठाता। फिर सुबह 6 बजे हम ब्लाउज बंद कर साया गिरा देती। आम तौर पर बीस से पच्चीस ग्राहक मिलते थे। अगर किसी रात धंधा कम हुआ तो हमें सिर्फ दस ग्राहक मिलते। खास मौकों पर एक रात में चालीस से पैतालीस ग्राहक मिलते ही थे।"


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चिराग, "दस से चालीस ग्राहक कितनी औरतों के लिए?"


फुलवा अपने सर को झुकाकर, "हर एक को!"


चिराग ने फुलवा के हाथ पर हाथ रखा और उसे धीरज बंधाया।


फुलवा ने पतली मुस्कुराहट से, "तो सुबह हम में कुछ करने की ताकत नहीं होती। सुबह 6 बजे कोठे का दरवाजा बंद होने के बाद हमें चाय मिलती। फिर हम सब एक साथ नहाती और सब को काम मिलते। नाश्ता बना, खाना पकाना, साफ सफाई करना।"


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फुलवा ने नीचे की अलमारी में से कुछ बिस्कुट निकाले और उन्हे एक छोटी थाली में रखा। झुकते हुए फुलवा की गदराई गांड़ के मोहक दर्शन से चिराग की जवानी तड़प उठी।


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फुलवा चिराग के सामने बैठ कर चाय बिस्कुट खाते हुए, "दिन भर के कामों के बाद शाम को हमें हल्का खाना मिलता। ग्राहकों को मोटी रंडियां पसंद नहीं आती। फिर हम सब नहाकर अपने बदन पर सुगंध लगाती और चटाई पर लेट जाती। रात को 8 बजे कोठे का दरवाजा खुलता और रंडीखाने में नया दिन शुरू होता।"


फुलवा ने चिराग को देख कर बहादुरी से मुस्कुराया, "मेरी बात छोड़ो, अपनी बताओ!"


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चिराग, "अधिकारी सर ने मुझे कड़े अनुशासन में पला और बढ़ाया। रोज सुबह 5 बजे उठने के बाद एक घंटे की कसरत, फिर नाश्ता। नहा धोकर सुबह 7 बजे स्कूल जाना। स्कूल से लौटने के बाद स्कूल की पढ़ाई, घर की पढ़ाई। अधिकारी सर ने मुझे घर के काम भी करना सिखाया ताकि मैं किसी औरत का बोझ ना बनूं!"


फुलवा ने मुस्कुराकर चिराग के हाथ पर अपना हाथ रखा।


चिराग, "रात को 10 बजे बत्ती बंद कर सोना जरूरी था। अधिकारी सर के जाने के बाद भी मैने यही दिनचर्या रखी। बस अब स्कूल की जगह मैं सुबह 9 बजे से 4 बजे तक लैपटॉप पर काम करता हूं।"


फुलवा, "मेरा बेटा कितना अच्छा है!!"


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फुलवा ने चिराग की बाजू को छू लिया और अचानक अपना हाथ पीछे खींच लिया।


फुलवा बात बदलते हुए, "चलो, तुम्हें 8 बजे तयार होकर मोहनजी से मिलना है! ऐसा ना हो की मां की बुरी संगत में एक दिन में बिगड़ जाओ!"


चिराग ने फुलवा का हाथ पकड़ कर उसे रोका।


चिराग, "मां, आप कोई बुरी संगत नहीं हो! आप मजबूर थी!!"


चिराग नाश्ता कर नहाने चला गया। फिर तयार होकर, फुलवा के पैर छू कर पौने आठ बजे मोहनजी से मिलने घर से चला गया। फुलवा अकेली बैठी तो उसका मन कई दिशाओं में भागने लगा।


फुलवा सोचने लगी की औरतें अपने खाली समय में क्या करती होंगी? क्या वह बार बार वही सफाई करती होंगी या आते जाते हर मर्द से चुधवाती होंगी?


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दरवाजे पर दस्तक हुई और फुलवा जैसे सपने में से जाग गई।


दरवाजे में एक बेहद खूबसूरत औरत खड़ी थी। फुलवा ने उसे अंदर बुलाते हुए अपने कपड़े ठीक किए।


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औरत, "जी, मेरा नाम सत्या है और मैं मोहनजी की पत्नी हूं। कल आप के आने की खबर मिली तो सोचा की आप से मिल लूं।"


फुलवा समझ गई कि यह औरत डरी हुई थी। उसे डर था की उसका प्यार उस से ऊब कर किसी पेशेवर औरत की बाहों में ना चला जाए। फुलवा ने सत्या की तारीफ करते हुए उसका डर भगाया और उस से दोस्ती भी की।



सत्या ने बताया की अमीर औरतें (अब फुलवा भी उनमें से एक थी) अपना वक्त काटने के लिए किट्टी पार्टी करती हैं जहां खाने के साथ शराब और जवान लड़के भी होते हैं। फुलवा ने इस सुझाव को सिरे से खारिज करते हुए कहा कि वह अपने जिस्म की बिक्री से सिख कर अब दूसरे का जिस्म खरीदने जैसे घटिया हरकत नही कर सकती।


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सत्या मुस्कुराई और बोली कि फिर फुलवा अपना वक्त समाज सेवा में लगाए। फुलवा इस बात पर सहमत हुई और दोनों नई सहेलियों ने कई घंटों तक बातें की।


सत्या ने फुलवा को नए फैशन के कपड़े पहनना, सही तरीके से खाना, चलना और बोलना सिखाया। फुलवा ने सत्या को मर्दों के बदन के वह राज़ बताए की सत्या का चेहरे शर्म से लाल और धड़कनें तेज हो गई।


शाम को जब चिराग घर लौट रहा था तब उसके मन में एक अजीब कशमकश थी। उसे मोहन के साथ अच्छा काम करने नाज़ था और अपनी बरसों बाद मिली मां को सब बताने की चाह भी थी। लेकिन साथ ही उसे अपनी मां को देख कर अपने अंदर बनते आकर्षण से डर लग रहा था। चिराग को डर था की वह गलती से अपनी मां को उसकी अतीत की यादों से जोड़ कर अपने से दूर कर देगा।


चिराग ने घर के आंगन में देखा और देखता रह गया। फुलवा पीले रंग की साड़ी पहन कर बागीचे के पौधों को देख रही थी। राह चलते दो लोग फुलवा को देख उसे अलग अलग बातों में अपनी ओर आकर्षित करने की कोशिश कर रहे थे।


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फुलवा नीचे पड़ा एक फूल उठाने के लिए झुकी और दोनों की आंखें मानो बाहर निकल आईं। चिराग के अंदर से एक जंगली जानवर गुर्राया और वह आगे बढ़ा।


फुलवा, "ओह, वो देखो! मेरा बेटा आ गया!"


दोनों मर्दों ने स्कूली बच्चे के लिए नीचे देखा और उन्हें चिराग के पैर नजर आए।


चिराग ने हक्क जताते हुए फुलवा को गले लगाकर, "मां, आप को ऐसे मेरा इंतजार करने की कोई जरूरत नहीं थी। अब मैं स्कूल में नहीं, काम करने जाता हूं!"


फुलवा मुस्कुराकर, "बेटा ये अच्छे लोग मुझे बता रहे थे की यहां अच्छी फिल्में कहां लगती हैं। क्यों न हम इस हफ्ते एक फिल्म देख कर आएं?"


चिराग को अपनी मां की होशियारी पर हंसी और गुस्सा आ रहा था। हंसी इस लिए की उसने दोनों लट्टू मर्दों को सफाई से घुमाकर फेंक दिया। गुस्सा इस लिए की कहीं अंदर से एक मर्दाना जानवर अपनी मादा को बांटने के खिलाफ था।


चिराग ने फुलवा की हंसी से खिलखिलाती हुई आंखें देखी और उसके अंदर से एक गुर्राती हुई आवाज आई,

"मेरी!!!…"
 
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चिराग ने मन ही मन खुद को थप्पड़ मारा और फुलवा के कंधे पर हाथ रखकर घर के अंदर चला गया।


चिराग, "मां, आप ने अजनबियों से ऐसे बात करना अच्छा नहीं है। लोग आप के बारे में बुरा सोचेंगे!"


फुलवा चिराग के हाथ के नीचे सिहर उठी। फुलवा चिराग से दूर हो कर उसकी ओर मुंह किए खड़ी हो गई।


फुलवा मुस्कुराकर, "मैं जानती हूं कि मर्दों को मुझ में क्या दिखता है और मुझ से क्या चाहिए। पर आज वह दोनों मुझे 50 रुपए की रण्डी नही पर एक अच्छे घर की इज्जतदार औरत समझ रहे थे। (सर झुकाकर चुपके से) मेरे साथ ऐसा कभी नहीं हुआ!"


चिराग, "मां, आप से ज्यादा अच्छी कोई नहीं! पर मुझे लगता है कि आप को यहां अकेले रहने में तकलीफ होगी। क्यों न आप के लिए हम कुछ नया ढूंढें?"


फुलवा ने चिराग का कान पकड़ कर खींचा और चिराग दर्द से आह भरने लगा।


फुलवा, "मेरे बेटे हो, बाप बनने की कोशिश मत करना! मैं आज़ाद हूं! सलाखों से भी और मर्दों से भी! (चिराग का कान छोड़ कर) वैसे तुम्हें बता दूं मैंने जेल में मैनेजमेंट की पढ़ाई की थी। वही जो तुम अब करने जा रहे हो! और आज मैंने अपनी नई सहेली के साथ नया काम ढूंढ लिया है!"


चिराग ने अपना कान मलते हुए फुलवा की नई सहेली के बारे में कुछ बुरा कहने के बजाय उस सहेली का नाम पूछा।


फुलवा मुस्कुराकर चिराग को सोफे पर धक्का देकर बिठाते हुए, "मोहनजी की बीवी सत्या! हम दोनों मिलकर एक सेवाभावी संस्था बनाएंगी जो यौन पीड़ित लड़कियों और औरतों को अपने पैरों पर खड़ा करेगी!"


चिराग सोचकर, "यह तो बहुत अच्छी बात है! आज मोहनजी ने पूरे दफ्तर में मेरी पहचान कराई और काम के बारे में बताया।"


मां बेटे ने काफी देर तक बातें की और रात का खाना खाने के बाद छज्जे पर से अपने नए घर को देखते हुए बैठ गए।


चिराग, "मां, आज मोहनजी ने लक्ष्मी एंपोरियम तोड़ कर वहां नया और बड़ा शोरूम बनाने का फैसला लिया। आपकी गाड़ी अब भी बाहर खड़ी है। उस गाड़ी के बारे में कुछ सोचा है?"


फुलवा दूर अतीत में देखती, "उस गाड़ी में मेरी कई यादें कैद है! मेरे बापू ने मुझे उस में भगाया। मेरी गांड़ मारने के बाद उसी में बिठाकर मुझे पीटर अंकल के पास ले गया। लेकिन उसी गाड़ी में तुम्हारे बापू, मेरे भाइयों ने मुझे पीटर अंकल से बचाया। उसी गाड़ी में मैं तीन महीनों तक तीन भाइयों की सुहागन थी। (चिराग के बालों में उंगलियां घुमाकर) उसी गाड़ी में किसी सड़क किनारे तुम मेरे पेट में आए। उसी गाड़ी में मेरे प्यारे भाइयों की आखरी यादें हैं!"


चिराग मुस्कुराकर, "मैं कल शाम को वह गाड़ी यहां लाता हूं। मां मुझे बापू के बारे में बताओ!!…"


चिराग का सर अपनी गोद में लेकर उसके बालों में उंगलियां फेरते हुए फुलवा अपने भाइयों की सारी यादें बताने लगी। उस रात शेखर, बबलू और बंटी जिंदा थे, अपने बेटे के करीब थे।


रात को सोते हुए चिराग को फुलवा के कमरे से सिसकियां लेने की आवाज सुनाई दी। कुछ देर बाद आवाज बदलने लगी। चिराग को पता था कि वह गलत कर रहा था पर वह खुद को रोक नहीं पाया।


चिराग ने चुपके से अपने कमरे का दरवाजा खोला और फुलवा के कमरे के दरवाजे के बाहर घुटनों पर बैठ गया। फिर चिराग ने चुपके से फुलवा का दरवाजा खोल कर अंदर झांका।


फुलवा (खुद से), "नहीं!!… मैं ऐसा नहीं करूंगी!!… मैं सुधर गई हूं!!…"


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आखिर में फुलवा ने चादर उड़ा दी और छत को देखते हुए तेज सांसे लेने लगी। फुलवा का बायां हाथ धीरे से उसके बाएं मम्मे की ओर बढ़ा और फुलवा का मम्मा दबोच लिया।


फुलवा ने चौंक कर आह भरी। फुलवा अपने दाएं हाथ को मम्मा दबाते हुए देख रही थी जब उसके बाएं हाथ में उसकी पैंटी के अंदर हाथ डाला।


फुलवा की आह निकल गई।


फुलवा बुदबुदाने लगी, "नहीं!!…
नहीं!!…
आखरी बार!!…
फिर नहीं!!…"


चिराग देखात रह गया। ऐसे लग रहा था मानो फुलवा खुद अपना बलात्कार कर रही थी।


फुलवा का नाइट शर्ट निकाल दिया गया। फुलवा की पैंटी उड़ा दी गई। फुलवा ने अपने हाथों को बड़ी मुश्किल से अपने बदन पर से हटाया और अपने तकिए को दबोच लिया।


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चिराग का गला सुख गया। वह तेज सांसे ले रहा था। चिराग के माथे पर पसीना जमा हो रहा था। चिराग ने अपना हाथ अपनी पैंट में डाला। उसका मूसल इतना कभी फूला नहीं था। चिराग ने अपने धड़कते गरम लोहे को मुट्ठी में पकड़ लिया और अपनी मां को देखता रहा।


फुलवा की कमर उठकर उसके घुटने फैल रहे थे। फुलवा अपने सर को झटककर एक अदृश्य बलात्कारी से लड़ रही थी।


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फुलवा, "नहीं!!…
नहीं!!…
मैं आज़ाद हूं!!…
अब मुझे नहीं करना चाहिए!!…
आह!!…"


फुलवा ने अपने तकिए को खींच का उठाया और अपने गीली रसभरी पंखुड़ियों पर उसे दबाकर घुटनों से पकड़ा। चिराग की आह निकलते हुए उसने पकड़ी।


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फुलवा रो रही थी पर उसकी कमर तकिए पर अपने आप को घिस रही थी। फुलवा से अपने सर को हिलाते हुए पथराई आंखों से दरवाजे की ओर देखा। चिराग को अपनी मां की आंखों में यौन उत्तेजना की भड़की हुई आग के साथ पछतावे के आंसू दिख रहे थे। चिराग की गोटियां भर कर ऐंठने लगी।


फुलवा ने सिसकी ली और तकिए को गुस्से में उड़ा दिया गया। फुलवा ने दाहिने हाथ से बिस्तर को पकड़ा पर बाएं हाथ की दो उंगलियों ने उसकी यौन पंखुड़ियों के बीच में गोता लगा कर उन्हें फैला दिया।


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चिराग को पहली बार औरत के गुप्तांग के दर्शन हुए और वह बोझल सांसे लेता देखता रहा।


फुलवा सिसक रही थी पर उसके बाएं हाथ की उंगलियां उसकी जवानी को भड़काती उसकी चूत के दाने को सहला रही थी। फुलवा के दाहिने हाथ ने बिस्तर को छोड़ा और फुलवा के बालों को खींचता उसके गले को छूता उसके भरे हुए मम्मे को दबाने लगा।


फुलवा सिसकती हुई बेबसी से बुदबुदाने लगी, "बस एक बार!!…
आखरी बार!!…
और नहीं!!…
और नहीं!!…"


चिराग ने अपना माथा दरवाजे की दीवार से लगा कर अपने आप को अपना लौड़ा हिलाने से रोका। चिराग का लौड़ा उसकी हथेली में फूल कर फटने की कगार पर था। चिराग की गोटियां उसे बता रही थी की गरम लावा उबल रहा है और ज्वालामुखी एक बार हिलाने की प्रतीक्षा में है।


फुलवा का दायां हाथ उसके मम्मे को दबाते हुए उसकी उभरी हुई सुर्ख लाल चूची को निचोड़ रहा था। फुलवा अपने आप से मिन्नतें कर रही थी और अपने आप से बचने की कोशिश कर रही थी।


फुलवा के बाएं हाथ की दो उंगलियों ने उसकी चूत को अंदर से सहलाना शुरू कर दिया। दोनों उंगलियां अपनी जड़ तक फुलवा की चूत में समाती और फिर नाखूनों तक बाहर आ जाती। बाएं अंगूठे ने फुलवा के यौन मोती को दबाकर सहलाते हुए उसे झड़ने की कगार पर लाया।


फुलवा की तेज सांसे और बुदबुदाती मिन्नतों से चिराग को पता चल गया की उसकी मादा झड़ने वाली है। चिराग यौन उत्तेजना से मंत्रमुग्ध हो कर अपनी मां का उसी के हाथों बलात्कार देख रहा था।


अचानक दायां हाथ फुलवा की चूत पर आया और बाएं हाथ को हटाना पड़ा। चिराग को यकीन था की उसकी मां की निराशा भरी आह में उसकी भी छोटी सी आह समा गई थी।


फुलवा के दाएं हाथ की उंगलियों ने उसकी गीली रसीली पंखुड़ियों को छेड़ना शुरू किया तो बाएं हाथ की उंगलियां चुपकेसे फुलवा की गांड़ को छेड़ने लगी। फुलवा ने तड़पकर उत्तेजना भरी आह भरी और चिराग फटी आंखों से देखता रहा।


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फुलवा के दाहिने हाथ की तीन उंगलियों ने एक साथ उसके यौन रसों से भरे कुंए में गोता लगाया और फुलवा की चीख निकल गई। दाएं अंगूठे ने फुलवा के यौन मोती को बुरी तरह हिलाते हुए उत्तेजना की शिखर पर फुलवा को लाया।


फुलवा तेज सांसे लेती अधर में लटकी हुई थी जब बाएं हाथ को दो उंगलियों ने फुलवा की गांड़ में हमला किया।


फुलवा का बदन उठकर कमान की तरह बन गया। फुलवा का बदन अकड़ते हुए उसकी चूत में से यौन रसों का फव्वारा उड़ गया। फुलवा के घुटी हुई चीखों में चिराग को दबी हुई आह छुप गई।


फुलवा का बदन थरथराकर बिस्तर पर गिर गया और चिराग दरवाजे के बाहर जमीन पर बैठ गया। चिराग की पैंट अंदर से पूरी तरह भीग चुकी थी। चिराग ने कांपते हुए हाथ को बाहर निकाला। गाढ़े वीर्य से पोता हुआ हाथ देख कर चिराग दंग रह गया।


चिराग पहले भी हिला चुका था पर वह कभी इतना ज्यादा और इतना गाढ़ा घोल उड़ाता नहीं था। चिराग को डर लगने लगा कि उसका वीर्य अगर फर्श पर टपक गया तो फुलवा को उसके यहां होने की भनक लग जायेगी।


चिराग ने दौड़कर अपनी पैंट बाथरूम में उतार दी और खुद को धो कर सुखा लिया। नई पैंट पहन कर वह बिस्तर की ओर बढ़ा तो फुलवा की सिसकी ने उसे दुबारा फुलवा की ओर खींचा।


चिराग ने घुटनों पर बैठ कर अंदर झांका तो फुलवा की उंगलियां उसे दुबारा सता रही थी।


फुलवा, "नहीं!!…
नहीं!!…
और नहीं!!…
अब और नहीं!!…
बस!!…
बस!!…
बस…
आह!!…
आह!!…
ऊंह!!…
आंह!!…"


चिराग चुपके से अपने बिस्तर पर लेट गया और रात भर अपनी मां की आहें सुनकर अपने फौलादी मीनार को देखता रहा।
 
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अगले दिन सुबह 5 बजे उठकर चिराग कसरत करने बाहर चला गया। 5 किलोमीटर की दौड़ लगाकर और बाकी की कसरत कर जब वह 6 बजे घर लौटा तो फुलवा जाग गई थी। फुलवा ने शैतानी मुस्कान देते हुए उसे चाय बिस्कुट दिए।


चिराग नींद पूरी न होने से कुछ चिढ़ा हुआ था पर वह ज्यादा गुस्सा अपने आप पर था। चिराग अपनी मां के बारे में गंदे विचार लाने के लिए खुद को कोस रहा था।


फुलवा नटखट मुस्कान से, "तो कल की रात कुछ खास हुआ?"


चिराग की उंगलियों में से बिस्कुट नीचे चाय में गिर गया। चिराग का चेहरा लाल हो गया और वह अपनी आंखें झुकाए बैठा रहा।


फुलवा, "अब इतने शर्मीले मत बनो! हमें अगर एक साथ रहना है तो यह बातें होंगी। इस में शरमाने की क्या बात है?"


चिराग हकलाते हुए, "आप… कैसे… कब…"


फुलवा ने हंसकर चिराग के बालों में उंगलियां फेरते हुए उसका माथा चूमा।


फुलवा, "मेरा बेटा जवान हो गया है! पर यह बातें अब हमें खुल कर बोलनी चाहिए। देखो जब मैने तुम्हें अधिकारी साहब के हवाले किया था तब तुम बस एक साल के थे। तो कुछ हद्द तक हम पहली बार तुम्हारे जवान होने के बाद ही मिले हैं। हमें दोस्त होना चाहिए! एक दूसरे जी जरूरतें समझकर एक दूसरे को अपनाना चाहिए, साथ देना चाहिए! वादा?"


चिराग, "आप गुस्सा नहीं हो?"


फुलवा हंस पड़ी।


फुलवा, "अरे अब तुम्हें याद दिलाऊं की मैंने क्या क्या किया है? यह हमारे शरीर की नैसर्गिक जरूरतें हैं! वैसे भी इस बात पर किसी का कोई जोर होता है क्या?"


चिराग, "पर यह गलत है! आप कह सकती हो की पाप है!"


फुलवा ने चिराग को अपनी बाहों में भर लिया।


फुलवा, "तुम जैसा अच्छा लड़का जिसे अपने सपनों में देखे वह सच में खुशकिस्मत है!"


चिराग ने चौंक कर, "सपनों में…"


फुलवा हंसते हुए, "बस अगली बार अपनी पैंट सूखने से पहले पानी में डाल देना। कितना ज्यादा…"


अब की बार फुलवा के चेहरे पर लाली छा गई।


चिराग ने सोचा की यही सही मौका है अपनी मां को कल रात के बारे में पूछने का।


चिराग, "मां, अगर हमें दोस्तों के जैसे जीना है तो दोस्ती दोनों तरफ से होती है। अगर मैं आप से सच कहूं तो आप को भी मुझ से सच छुपाना नहीं है।"


फुलवा हिचकिचाते हुए, "हां! दोस्ती ऐसे ही होती है!"


चिराग ने गहरी सांस ली और फुलवा का हाथ अपने हाथों में लेकर उसकी आंखों में देखा।


चिराग, "मां, आप रोज रात को सिसकियां लेती हो और आहें भरती हो! पूरी रात भर आप की आहे निकलती रहती हैं!"


फुलवा ने डरकर चिराग के हाथों में अपने हाथ को देखा।


फुलवा, "कल रात?… "


चिराग, "मैंने आप की कश्मकश देखी! रात भर आप की आवाज सुनी! उसी वजह से…"


फुलवा ने अपने हाथ को चिराग के हाथ से छुड़ा लिया। फुलवा ने अपने बदन पर अपना गाउन कस कर लपेट लिया और किचन के दूसरे कोने में खड़ी हो गई।


चिराग ने आगे बढ़कर फुलवा के कंधों को पकड़ा तो वह अपने आप को छुड़ाने कि कोशिश करने लगी।


चिराग, "मैंने सच कहा है दोस्त!"


फुलवा हिचकिचाते हुए, "किसका नाम…?"


चिराग, "किसी का नाम नहीं था! बस आहें और सिसकियां!"


फुलवा ने अपनी हथेली से अपने आंसू पोंचकर, "मैं मुंबई देखना चाहती थी। मैं मुंबई जा रही हूं! तुम मोहनजी के साथ धंधा सीख लो। हम बातें करेंगे, हम…"


चिराग, "अभी वादा किया और अभी तोड़ दिया?"


फुलवा, "तुम नहीं समझोगे!!"


चिराग, "एक दूसरे को समझकर अपनाना और साथ देना क्या था? बचपन में ना दिया हुआ लॉलीपॉप? बात करो मां! बताओ मुझे!"


फुलवा रोते हुए जमीन पर बैठ गई तो चिराग भी उसके साथ बैठ गया।


फुलवा, "जब भी मैं कुछ भी करती हूं मैं उस से चुधवाने का सोचती हूं! खीरा, बैंगन, मूली, बेलन, कुछ भी और सब कुछ! हर मर्द को देख कर मुझे घिन आती है पर मेरा बदन चुधने को तड़पता है! मैं सिर्फ तुम्हें और कुछ हद्द तक नारायणजी को छूना बर्दाश्त कर सकती हूं पर हर वक्त मेरे दिमाग में चुधाई करने के अलग अलग तरीके आते रहते हैं!"


फुलवा ने आंसू भरी आंखों से चिराग को देखकर, "मुझे जाने दो! मैं पागल हो गई हूं!"


चिराग, "मां, क्या आप मुझे वापस छोड़ना चाहती हैं? क्या मैं वापस दूसरों के रहम के सहारे जिऊंगा? क्या यही है तुम्हारी ममता?"


फुलवा टूटकर रोते हुए, "मुझ में कोई ममता नहीं है!…
बस हवस है!…
मैं रात को तुम्हारे बारे में सोच रही थी!!…
मैं गंदी हूं!!…
मैं पापी हूं!!…
तुम्हें मुझ से खतरा है!!…"


चिराग, "नहीं मां! मुझे तुम से खतरा नहीं है! जिंदगी भर आप को मर्दों ने धोखा दिया है! मैं अकेला हूं जिस पर आप भरोसा कर सकती हो! इसी लिए आप मेरे बारे में सोचती हो!"


चिराग ने फुलवा का चेहरा उठाया और उसकी आंखों में देख कर,
"आप बीमार हो और हम साथ मिलकर इसका इलाज करेंगे! ठीक है?"


फुलवा ने अपने सर को हिलाकर हां कहा और चिराग उसे शांत करा कर काम के लिए चला गया।


शाम को चिराग फुलवा की गाड़ी लेकर आया तो फुलवा घर में गुमसुम बैठी थी। चिराग ने जब बताया कि वह एक अच्छे मानसौपाचार विशेषज्ञ के पास उसे ले जायेगा तो फुलवा ने कुछ नहीं कहा। फुलवा और चिराग को नारायण और मोहन के लिए अपनी सच्चाई छुपानी थी इस लिए उन्होंने तय किया की वह फुलवा की पूरी सच्चाई बताएंगे पर चिराग को उसे बाजार से भगाने वाला लड़का बताएंगे।


डॉक्टर एक बुजुर्ग और शांत औरत थी जिस ने फुलवा की पूरी कहानी सुन कर उसे उसकी हिम्मत के लिए सराहा। चिराग को अलग से बुलाया गया और उसे फुलवा से मुलाकात और बाद की बातें पूछी। डॉक्टर की खास दिलचस्पी इस बात में थी की जब फुलवा को हर मर्द से घिन होती है तब भी वह चिराग को अपना मानती है।


डॉक्टर ने दोनों को अपने सामने बिठाया और उन्हें समझाने लगी।


डॉक्टर, "फुलवाजी को जो बीमारी है उसे पहले Nymphomania और अब sex addiction कहते हैं। इसकी शुरुवात अक्सर कम उम्र में हुए यौन शौषण की वजह से होती है और इस में नैराश्य के साथ ही हर बार सेक्स के बारे में सोचना यहां तक कि अंधाधुन सेक्स करना भी शामिल है। यह भी किसी नशे की लत लगने जैसा है। इसे अचानक छोड़ नहीं सकते। फूलवाजी को हम सिर्फ दवा से ठीक नहीं कर सकते। मैं नींद की दवा दे रही हूं पर साथ ही चिरागजी के साथ की जरूरत होगी।"


चिराग ने फुलवा के हाथ पर अपना हाथ रख कर उसे धीरज बंधाया और डॉक्टर मुस्कुराई।


डॉक्टर, "सबसे पहले आप को आपस में सेक्स के बारे में बात करने से हिचकिचाना नहीं है। अक्सर इस बीमारी में लोग बात नहीं करते और गलत चुनाव कर बैठते हैं। हमें बात कर सही गलत का फैसला मिलकर करना होगा! सेक्स की इच्छा होना आम है पर फूलवाजी को यह इच्छा बहुत ज्यादा होती है। इसी वजह से फूलवाजी को बाहर के लोगों से मेलजोल बढ़ाते हुए अपनी शारीरिक जरूरतों के लिए हस्तमैथुन करने के बजाय चिरागजी पर निर्भर रहना होगा।"


फुलवा के मुंह से आह निकल गई।


डॉक्टर मुस्कुराकर, "बस कुछ महीनों के लिए! तब तक आप ने अपने पसंद के दोस्त भी बना लिए होंगे और आप की बीमारी भी ठीक हो गई होगी।"


डॉक्टर से दवा लेकर मां बेटा घर लौटे तो फुलवा रोने लगी।


फुलवा, "मैं यह नही कर सकती! तुम मेरा अपना खून हो!"


चिराग, "मां, इस बारे में ज्यादा मत सोचिए।"


फुलवा, "मेरे बापू ने मेरी गांड़ मारी थी पर वह मुझे अपनी बेटी नहीं मानता था! (चिराग ने फुलवा को चुप करने की कोशिश की) और भैय्या! पहली बार तीनों ने मुझे अंधेरे में चोदा था! मुझे लगा कि वे पीटर अंकल के ग्राहक थे! मुझे पता नहीं था!"


चिराग, "मां, आप को सलाह दी गई है। अगर आप को शुरुवात करनी है तो बात करने से शुरुवात करो। बाकी की सलाह अगर जरूरत पड़ी तो देखेंगे!"


फुलवा गुमसुम सी बैठी खाना खा कर सोने की तयारी करने लगी। फुलवा ने सोने से पहले हिचकिचाते हुए चिराग को पुकारा।


चिराग ने फुलवा के बेडरूम में झांक कर देखा तो फुलवा ने बिस्तर के सिरहाने दो रस्सियां बंधी हुई थी।


फुलवा, "मैं अपनी आदत तोड़ने के लिए कुछ भी करूंगी! मुझे ठीक होना ही पड़ेगा! मेरे हाथ बांध दो! मैं नींद की गोली ले चुकी हूं और जल्द ही सो जाऊंगी!"


चिराग ने अपनी मां का माथा चूमा और उसकी कलाइयों को बांध दिया। फिर अपनी मां पर चादर डाल कर अपने कमरे में चला गया।


चिराग समझ नहीं पा रहा था कि उसे मां के ठीक होने से अच्छा लगेगा या बुरा। एक मन फुलवा को मां के रूप में पा कर खुश था तो कहीं से छुपा हुआ जानवर फुलवा को मादा के रूप में हासिल करना चाहता था।


चिराग ने अपनी आंखें बंद की और सोने की कोशिश करने लगा। चिराग के सपने में पीली साड़ी पहनी फुलवा आई जिसने उसे बेटा कहकर गले लगाया। चिराग भी अपनी मां से लिपट गया। फुलवा ने चिराग के बालों में उंगलियां फेरते हुए उसका माथा चूमा और उसे बेटा कह कर पुकारा। चिराग में मुस्कुराते हुए फुलवा की आंखों में देखा। फुलवा की आंखें उत्तेजना से लाल हो गई थी।


फुलवा उसे बेटा कहकर पुकारते हुए आहें भर रही थी। चिराग ने फुलवा को रोकने के लिए हाथ बढ़ाए पर उसके हाथों में ताकत नहीं थी। चिराग के मुंह से मां की आह निकल गई। फुलवा ने उसे उत्तेजना वश बेटा पुकारते हुए उसके कपड़े उतार दिए। फुलवा ने मुस्कुराते हुए अपने बेटे की आंखों में देखा और अपने सुर्ख लाल होठों पर गुलाबी जीभ घूमते हुए उसे बेटा पुकारा।


फुलवा के कोमल हाथों ने चिराग का धड़कता फौलाद पकड़ लिया था। चिराग फुलवा को रोकना चाहता था पर उसके गले से बस "मां!!…" की आह निकली। फुलवा ने चिराग की आंखों में देख कर बेटा कहकर आह भरते हुए अपने होठों को उसके मोटे सुपाड़े पर लगाया।


चिराग आह भरते हुए, "मां!!…"


चिराग उठ कर बैठ गया। चिराग का गला सुख गया था और उसका दिल तेजी से धड़क रहा था। इस से पहले कि वह अपने आप को कोस पाता उसके कानों में फुलवा की आह आई।


फुलवा आह भरते हुए, "बेटा!!… चिराग… बेटा!!…"


चिराग ने फुलवा के कमरे के दरवाजे में खड़े होकर अंदर देखा। फुलवा अपने बंधे हुए हाथों से जूझती तड़प रही थी। उसका बदन पसीने से लथपथ हो गया था। फुलवा का नाइट शर्ट उसके भरे हुए मम्मों पर चिपककर उनकी उभरी हुई चूचियों को प्रदर्शित कर रहा था। फुलवा के बदन पर से चादर उड़ गई थी और उसके नंगे पैर उन के जोड़ को ढकने वाली पैंटी से आजादी की लड़ाई लड़ रहे थे।


फुलवा की यौन ज्वर से जलती आंखों ने चिराग को देखा और उनमें आंसू भर आए।


फुलवा गिड़गिड़ाते हुए, "चिराग बेटा!!…
मुझ पर रहम करो!!…
मेरा बदन जल रहा है!!…
मुझे…
मुझे…
(चुपके से) चोदो?…"
 
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चिराग ने अपनी मां की खस्ता हालत देखी और उसके अंदर का जानवर दहाड़ा। चिराग ने अपने यौवन पर काबू रखते हुए फुलवा के सिरहाने बैठकर फुलवा के माथे पर से पसीना पोंछा।


चिराग शांत स्वर में, "मां, आज तक हर मर्द ने आप की मजबूरी का फायदा उठाया है! अगर मैं भी यही करूं तो आप का मुझ पर से भी विश्वास उड़ जाएगा। इसी लिए मैंने यह तय किया है कि मैं आप को नहीं चोदूंगा! इस हालत में तो बिलकुल नहीं!!"


फुलवा गिड़गिड़ाते हुए, "रहम करो मुझ पर!!…
मैं…
मैं बस…
सोना चाहती हूं!!…"


चिराग ने मुस्कुराकर फुलवा के माथे को चूमा। फुलवा ने निराशा भरी आह भरी।


चिराग ने नीचे सरकते हुए फुलवा की आंखों को चूमा और फुलवा ने लालसा भरी आह भरी।


चिराग ने फुलवा की नाक के छोर को चूमा और फुलवा सिसक उठी।


चिराग के होंठ फुलवा के होठों से एक सांस की दूरी पर रुक गए और फुलवा के होंठों ने कांपते हुए खुल कर चिराग को न्योता दिया। अफसोस कि चिराग उन्हें अनछुआ छोड़ कर फुलवा की ठोड़ी को चूम कर नीचे सरका।


चिराग ने फुलवा के गले को चूमते हुए वहां पर जमा पसीने को अपनी जीभ से चाट लिया। फुलवा का बदन सिहर कर कांप उठा।


चिराग ने तेजी से उठते हुए मम्मों और उनकी उभरी हुई चूचियों को भीगे हुए नाइट शर्ट में से देख कर भी नजरंदाज किया पर शर्ट के खुले हिस्से में से दिखती भीगी हुई नाभी को गहराई से चूमते हुए फुलवा की बेचैनी कई गुना बढ़ाई।


चिराग की उंगलियों ने आखिरकार फुलवा की पैंटी को कमर में से पकड़ा और फुलवा के जलते हुए बदन को उम्मीद का सहारा मिला।


फुलवा ने अपने पैरों को बेड पर दबाते हुए अपनी कमर उठाई। चिराग ने अपनी मां की पसीने और यौन रसों से भीग कर चिपकी हुई पैंटी को नीचे उतारना शुरू किया। पैंटी फुलवा के कूल्हों पर से छिल कर उतारी गई थी जब चिराग ने फुलवा की चूत के ऊपर के फूले हुए हिस्से को चूम कर हल्के से काट लिया।


फुलवा यौन उत्तेजना से तड़पकर चीख पड़ी और बिस्तर पर गिर गई। फुलवा के पैर हवा में उठ गए। चिराग ने फुलवा के घुटनों को अपने कंधों पर मोड़कर फुलवा की पैंटी उतार दी।


अपनी मां की नंगी बुर में से टपकते यौन रस को देख कर चिराग के मुंह में पानी आ गया। चिराग ने सहजवृत्ति की बात मान ली और अपने होठों को फुलवा के यौन होठों पर ले गया।


फुलवा आने वाले सुख, चैन और राहत के लिए बेकरार हो कर सिसकने लगी। चिराग ने अपनी उंगलियों से पहले स्त्री अंग को फैलाकर देखा और उसे निहारते हुए अपनी पहली चूत के नजदीक दर्शन किए।


फुलवा, "बेटा!!…
चिराग!!…
मत तड़पा मेरी जान!!…
ले मुझे!!…
इस्तमाल कर!!…
जो चाहे कर!!…"


चिराग ने अपनी नाक से अपनी मां की खारी चिपचिपी सुगंध को सूंघा। चिराग की सांसों को अपनी चूत पर महसूस कर फुलवा तड़प उठी। फुलवा ने अपने घुटनों को मोड़कर अपनी कमर को उठाया।


चिराग का मुंह उसकी मां की रसीली बुर पर दब गया। फुलवा के मुंह से दर्द भरी यौन उत्तेजना की आह निकल गई। यह चिराग के जीवन की पहली चुम्मी थी जो वह अपनी मां के यौन होठों से चिपक कर ले रहा था।


चिराग ने अपनी मां की गंध को सूंघते हुए अपनी जवानी को बेकाबू होते पाया। चिराग की हथेलियों ने अपनी मां की जांघों को उनके कमर के जोड़ पर कस कर पकड़ा और अपने होठों को इस्तमाल कर फुलवा की भड़की हुई जवानी को चूमने लगा। फुलवा की आहें निकल कर कमरे में गूंजने लगी।


फुलवा ने अपने सर को हिलाते हुए अपने बेटे को अपना यौन खजाना सौंप दिया। चिराग ने सहजज्ञान से फुलवा के यौन होठों को चूसते हुए अपनी जीभ को बाहर निकाला।


चिराग की जीभ फुलवा की धधकती ज्वाला में गई और वह चीख उठी। फुलवा की चूत में से यौन रसों का फव्वारा फूट पड़ा। चिराग के गले में फुलवा के रसों का सैलाब उमड़ पड़ा। चिराग बिना झिझक अपनी मां का यह यौन रस उसके दूध की तरह पीते हुए अपने मुंह को चलाते हुए अपनी जीभ को आगे पीछे करता रहा।


फुलवा की आंखें घूम गई और वह बेसुध होकर कांपते हुए झड़ने लगी। फुलवा के अकड़ते शरीर ने चिराग को अपनी मां की चूत पर और जोर से दबाया। चिराग की जीभ और गहराई तक पहुंच कर फुलवा की अंतरात्मा तक को झकझोरने लगी। फुलवा का यौन उत्तेजना का भूखा बदन टूटते हुए अपने प्रेमी बेटे को यौन रसों का दूध पिलाता रहा।


फुलवा लगातार 3 मिनट तक झड़ने के बाद, उसकी चूत में जमा यौन रस चिराग को पिलाकर खत्म हो गए। फुलवा का बदन ढीला पड़ गया और वह बिस्तर पर गिर गई।


चिराग ने अपनी मां की धीमी गहरी सांसे सुनी और समझ गया कि अब उसकी मां शांत हो चुकी है। चिराग ने अपनी मां के पैरों को अपने कंधों पर से उतारा।


फुलवा बिस्तर पर लेट कर आधी खुली आंखों से देख रही थी। फुलवा के नंगे पैर बिस्तर पर फैले हुए थे। उसके बेटे ने उसके पैरों के बीच में से उठकर अपनी मां को लगभग बेहोश पाया।


चिराग ने इधर उधर देखा और फिर जल्दी से अपनी पैंट उतार दी। चिराग ने अपनी नाइट पैंट से अपना यौन रस से भीगा चेहरा पोंछा। चिराग का 7 इंच लम्बा और तीन इंच मोटा खंबा जमीन से समांतर खड़ा फुलवा की कोख की ओर इशारा किए हुए था।


चिराग ने फुलवा को देख एक गहरी सांस ली और धावा बोल दिया। चिराग बेसुध फुलवा की खुली टांगों के बीच में से चढ़ते हुए फुलवा के बदन पर चढ़ गया। चिराग अपनी कोहनियों को फुलवा की बगल के नीचे रख कर उन पर अपना वजन दिए हुए था। चिराग का धड़कता फौलादी लौड़ा फुलवा की गीली पंखुड़ियों के बीच में सटा हुआ था।


चिराग ने जब अपने दाहिने हाथ को उठाया तो फुलवा समझ गई कि आगे क्या होने वाला है। फुलवा ने अपनी आंखें बंद कर गहरी सांस ली।


चिराग ने फुलवा के हाथ खोले और उसके ऊपर से उतर गया। फिर चिराग ने अपनी मां के अध नंगे बदन को दुबारा चादर से ढका।


चिराग ने फुलवा के माथे को चूमते हुए, "शुभ रात्री मां!!"


फुलवा ने अपनी आधी खुली आंखों से चिराग का प्यासा लौड़ा अपने कमरे में से बाहर जाते हुए देखा और मुस्कुराई।


फुलवा को अपने बेटे पर नाज़ था।
 
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चिराग रात को अपने अच्छे बर्ताव की सज़ा भुगत रहा था। उसके नाक में मां की गंध थी और जुबान पर मां का स्वाद। चिराग का मूसल उसे छत दिखाते हुए नरक की ओर दौड़ने की सलाह दे रहा था।


चिराग खुद को समझा चुका था कि अगर वह 37 साल की फुलवा को अपनी मां ना माने तो भी नशे से जुंझती औरत को उसकी लत के सहारे इस्तमाल करना मुसीबत को बुलाना था।


सुबह जब मां उठ कर शांत मन से सोचती तो वह चिराग पर दुबारा कभी भरोसा नहीं करती। जल्द ही चिराग जिंदगी की एक और सच्चाई सीख गया।


दिल की अच्छाई ठंडे बिस्तर में बेकार लगती है!


चिराग बड़ी मुश्किल से सो पाया और सबेरे 5 बजे उसकी दिली तमन्ना उसे दिखने लगी। चिराग को लगा की वह एक नवयुवक का सुहाना सपना देख रहा था। चिराग जानता था कि वह एक सपना है पर वह उठना नही चाहता था!


चिराग ने देखा कि उसके कमरे का दरवाजा खुला और उसकी मां ने अंदर झांक कर देखा। नींद से बिखरी हुई जुल्फें नटखट आंखों को घेरे हुई थी। फुलवा ने चिराग की नींद से बोझल आंखों में देखा और मुस्कुराई।


फुलवा, "मेरा बेटा बहुत अच्छा है। एक अच्छे लड़के को उसके अच्छे काम का इनाम मिलना चाहिए!"


फुलवा ने कमरे में आकर दरवाजा अपने पीछे बंद कर दिया। फुलवा अब भी नाइट शर्ट में थी और उसने अब भी पैंटी नहीं पहनी थी। फुलवा इठलाते हुए चिराग के पैरों के नीचे बेड पर बैठ गई।


फुलवा, "कल रात जब मैंने तुम्हें चोदने को कहा और तुमने मना किया तब मुझे बहुत बुरा लगा। सोचो तो!"


फुलवा ने अपनी दो दाहिनी उंगलियों को चिराग के नंगे बाएं पैर पर चलाते हुए अपनी बात जारी रखी।


फुलवा, "वहां मैं थी! बिस्तर में बंधी हुई बेबस औरत जो अपनी जिस्म की आग में झुलस रही थी और तुम एक नौजवान मर्द जो किसी भी औरत को ललचा जाए। फिर भी तुम ने मुझे चोदने से मना कर दिया।"


फुलवा की उंगलियां चिराग की जांघों से एक कदम की दूरी पर रुक गई। चिराग ने अपनी तेज सांसों में देखते हुए अपने सूखे गले को गटक लिया।


फुलवा, "पर तुमने फिर मुझे चूमते हुए सताया और मेरे बदन की आग भड़काई। (फुलवा की उंगलियां वापस चलने लगी पर अब नाखून गड़ाने से वह चुभ रही थी।) मुझे लगा कि मैं तुम्हें मार दूंगी!"


फुलवा अपनी उंगलियों को चिराग के पैरों पर चलते रखने के लिए ऊपर उठी। इस से फुलवा के नाइट शर्ट और गले में अंतर बन गया और चिराग को अपनी मां के फूले हुए मम्मे साफ दिखने लगे। फुलवा ने धीरे धीरे ऊपर सरकते हुए अपनी उंगलियों को चलाना जारी रखा।


फुलवा, "लेकिन मेरे प्यारे बेटे ने मुझे जलता हुआ नहीं छोड़ा। उसने अपने धड़कते हुए नौजवान मूसल के दर्द को सहते हुए धीरज रखा। जब तुमने मेरी पैंटी उतारी तब मैं राहत के लिए तड़प रही थी। तुमने मेरी चूत को छू लिया तो लगा जैसे मैं मर जाऊंगी!…"


फुलवा की उंगलियां अब चिराग की भरी हुई गोटियों से एक कदम दूर थी। चिराग ने अपनी सांस रोक कर देखा। वह नहीं जानता था कि वह अपनी मां की उंगलियों को रोकना चाहता था या चलाना।


फुलवा (उंगलियों को चलाते हुए), "तुम ने मुझे चूमा, चाटा, चूसा और अपनी मीठी जीभ से चोदा भी! (फुलवा की उंगलियां अब चिराग के लौड़े की जड़ पर थी) तुमने मुझे मेरी जिंदगी की सबसे मजेदार रातों में से एक दी। सच में, रण्डी की रातें भूखी होती हैं मजेदार नहीं!"


फुलवा की उंगलियां अब चिराग की फौलादी मीनार चढ़ने लगी। चिराग बस देख सकता था।


फुलवा, "झड़कर बेहाल मैं बेसुध होकर पड़ी थी जब मैंने तुम्हें अपने ऊपर चढ़ते देखा। तुमने मेरे ऊपर लेटते हुए अपने लौड़े का सुपाड़ा मेरी चूत के मुंह पर लगाया! मैं जानती थी कि कोई नौजवान एक खुली गरम चूत को देख कर रुक नही सकता! (फुलवा ने अपनी हथेली में चिराग का धड़कता लौड़ा पकड़ लिया) मैंने चुधने की तयारी कर ली! उस समय पर अगर तुम मुझे चोद देते तो मैं तुम्हें रोक नहीं पाती! (फुलवा ने अपनी हथेली में चिराग का मूसल दबाया और चिराग की आह निकल गई) पर आज सुबह मैं तुमसे आंख मिलाकर बात भी नहीं कर पाती!"


फुलवा ने मुस्कुराते हुए अपनी उंगलियों को थोड़ा ढीला किया और चिराग का लौड़ा फुलवा की हथेली में जोर जोर से धड़कने लगा। फुलवा ने चिराग की आंखों में देखते हुए अपने सर को झुकाया और अपनी बंद उंगलियों में से बाहर निकले चिराग के लौड़े से एक सांस की दूरी पर रुक गई।


फुलवा, "एक अच्छी मां अपने बेटे को अच्छे काम का इनाम जरूर देती है। अब मैं नींद की गोली खा कर तड़प रही भूखी औरत नहीं हूं। अब मैं जो भी करूंगी वह अपनी मर्जी से करूंगी!"


फुलवा ने अपना मूंह खोला और अपनी जीभ के छोर से चिराग के लौड़े पर बने छोटे से छेद को चाट लिया। चिराग के मुंह से आह निकल गई और उसके लौड़े में से 2 मोटी पारदर्शी बूंदे उसी छेद मे से बाहर आ गई।


फुलवा ने चिराग की आंखों में देखते हुए मुस्कुराकर अपनी जीभ से उन दो बूंदों को चिराग के सुपाड़े पर फैलाया। चिराग ने बिस्तर के सिरहाने को पकड़ कर आह भरी।


चिराग, "मां!!…"


फुलवा ने मुस्कुराकर जवाब में अपनी हथेली को ऊपर उठा कर नीचे किया और अपने होठों से चिराग के सुपाड़े को पकड़ लिया।


चिराग के पसीने छूट गए और वह तेज सांसे लेते हुए आहें भरने लगा।


फुलवा ने अपनी आंखों को चिराग के चेहरे पर रखते हुए अपनी हथेली को ऊपर नीचे करना जारी रखा। फुलवा ने साथ ही अपने होठों से चिराग के सुपाड़े को चूसते हुए अपनी जीभ से सुपाड़े के चमकीले हिस्से को चमकाना जारी रखा।


चिराग आहें भरते हुए, "मां!!…
मां!!…
आह…
मां!!…"


फुलवा चिराग की हालत देख कर मुस्कुराई और उसने अपने सर को अपनी हथेली के साथ ऊपर नीचे करना शुरू कर दिया। फुलवा के होंठ अब चिराग के लौड़े के ऊपरी हिस्से को गरम रसों से धोते हुए उसके बदन को जला रहे थे। फुलवा की जीभ भी अब पूरे सुपाड़े को चमकाते हुए सुपाड़े के चमड़े के बीच में जा कर चिराग को सिहरने को मजबूर कर रही थी।


चिराग नही चाहता था कि वह इस सपने से जागे पर उसने अपने हाथों को नीचे जाते हुए देखा। उसके हाथों ने उसकी मां की बिखरी हुई जुल्फें को संवारकर पीछे किया। अब चिराग अपनी मां को अपना लौड़ा चूसते हुए देख सकता था और उसकी मां भी उसे बिना किसी अड़चन के देख सकती थी।


चिराग आह भरते हुए, "मां!!…
मां!!…
मा…
आ…
आ…
आह!!…
आह!!!…"


फुलवा ने अपने बेटे के बदलते स्वर को समझा और अपनी हथेली को निकालकर अपने मुंह को नीचे करते हुए पूरी तरह चूसना शुरू किया।


चिराग के सुपाड़े ने जब फुलवा के गले को छू लिया तब चिराग को लगा कि वह मर जाएगा। फुलवा ने गहरी सांस लेकर अपने सर और झुका कर अपने होठों को चिराग के लौड़े के जड़ पर लगाया तो चिराग का सुपाड़ा उसकी मां के गले में समा गया।


चिराग ने सोचा की वह मर चुका है और उसे कोई गम नहीं था। चिराग ने अपनी मां के सर को अपने लौड़े पर दबाए रखते हुए कांपना शुरू किया।


चिराग की गोटियों ने खुद को निचोड़ लिया था और उसका लौड़ा फटने वाला था। चिराग सपने में भी अपनी मां को तकलीफ नहीं दे सकता था और उसने अपने हाथों को हटाया।


चिराग चीख पड़ा, "मां!!…
मां!!…
मेरा हो रहा है!…
मां!!…
मा…
आ…
आह!!!…
आह!!…"


फुलवा ने अपने सर को हिलने नही दिया और चिराग के गाढ़े माल का सैलाब सीधे उसकी मां के पेट में जमा हो गया। फुलवा ने कुछ पलों बाद अपने सर को थोड़ा ऊपर उठाया जिस से वह अपने बेटे के जवान रस का स्वाद चख पाए।


चिराग ने अपनी आंखें बंद कर ली और पीछे लेट गया।


चिराग ने सोचा कि अगर उसकी मां ने उसकी चीख को सुना होगा तो वह अंदर आकर उसके बेटे को वीर्य से सना हुआ देखेगी। चिराग ने सोचा कि अब उसे जागना होगा ताकि वह वक्त रहते दरवाजा बंद कर ले।


चिराग ने गहरी सांस लेकर अपनी आंखें खोली तो उसकी मां उसे देख कर मुस्कुरा रही थी।


फुलवा (अपने होठों को चाटते हुए), "मुझे नहीं लगता की अधिकारी सर इस खेल को कसरत मानते। (चिराग के कान के नीचे दांत लगाकर) क्यों न तुम कसरत कर आओ तब तक मैं नहा लेती हूं!"


फुलवा चिराग के बिस्तर से कूद कर उतर गई और इठलाते हुए बाहर चली गई। चिराग ने खौफ भरी नजरों से अपने गीले लौड़े और साफ बिस्तर को देखा।


फुलवा (अंदर झांक कर), "जल्दी जाओ!! (होठों पर जीभ घुमाकर) ये स्वादिष्ट था पर पूरा नाश्ता नहीं था! नाश्ता किचन में होगा बिस्तर में नहीं!"


फुलवा अपने बेटे को आंख मार कर चली गई। चिराग ने अपनी आंखें मली और वापस हर तरफ देखा। चिराग को आखिर कार विश्वास करना पड़ा।


चिराग हैरानी से, "यह सपना नहीं था!!…
मैंने…
मां को…"


चिराग ने जल्दबाजी में कपड़े पहने और दौड़ कर अपने विचारों को समझने के लिए बाहर चला गया।
 
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चिराग पसीने में भीग हुआ था पर शायद यह पसीना इस वजह से था की अब उसे मां से बात करनी होगी। चिराग को डर सता रहा था कि अब उसकी मां उसे अपने नशे के तौर पर इस्तमाल कर सुधरने के बजाय गलत राह पर चलेगी। उसे कुछ कड़े फैसले लेने होंगे।


चिराग ने ठान लिया को वह अपनी मां को शारीरिक संबंध बनाने देगा लेकिन दवा की तरह तय मात्रा में। चिराग ने अपनी बात को अपने आप से कहा और सोचा की इस से बेतुकी बात कभी किसी ने नहीं की होगी।


चिराग ने अपने घर में डरते हुए कदम रखा मानो उसकी मां उस पर झपटने को बैठी हो। चिराग को किचन में से गुनगुनाने की आवाज आई और वह नाश्ता बनने के डर के साथ अंदर आ गया।


फुलवा ने मुस्कुराते हुए चिराग के सामने दूध का ग्लास, 2 उबले अंडे और कुछ छोटी मीठी रोटी जैसी चीजें रखी। चिराग अपनी मां को देखते हुए बैठ गया और दूध को पीने लगा।


फुलवा, "तुम रोज कसरत करते हो, पर मां तुम्हें चाय बिस्कुट खिलाती हूं। इसी लिए मैंने अब से तुम्हारे लिए पोषक नाश्ता बनाने का फैसला लिया है। कल डॉक्टर बोली थी कि एक तंदुरुस्त शरीर में ही तंदुरुस्त मन रहता है इसलिए मैं भी कसरत शुरू करने वाली हूं!"


चिराग ने अपनी मां को किसी आम मां जैसा पा कर अपनी बेवकूफी भरे विचारों को छुपने के लिए अपने मुंह में अंडा ठूस लिया। फुलवा ने आज satin का ललचाता गाउन पहनने के बजाय एक टॉप और ट्रैक पैंट पहनी थी। नहाने के बाद फुलवा के बाल चोटी में बंधे हुए थे।


फुलवा, "वह गोल मीठी रोटी जैसी चीज पैनकेक है! मैने जेल का कैंटीन चलाते हुए अनेक पदार्थ बनाने सीखे थे। इसमें गेंहू के आटे के साथ दूध, चीनी, केला और अंडा होता है।"


चिराग चुपचाप अपने प्लेट में परोस दिया खाकर बैठ गया। फुलवा ने मुस्कुराते हुए चिराग के बगल में बैठ कर खुद भी नाश्ता कर लिया। नाश्ता होने के बाद फुलवा ने दोनों की प्लेट उठाई और धोने के लिए रखी। केले के छिलके कचरे में डालने के लिए फुलवा झुकी और उसकी मस्तानी गांड़ को देख कर चिराग के मुंह में पानी आ गया।


फुलवा ने चिराग का हाथ अपने हाथ में लेकर किचन की मेज पर बैठ कर बात करना शुरू किया।


फुलवा, "चिराग मैं समझ सकती हूं कि तुम हमारे रिश्ते के बारे में असमझस में हो। मैं तुम्हें बताना चाहती हूं कि तुम मेरे बेटे हो और हमेशा मेरे बेटे रहोगे! जब मैंने तुम्हें अपने अंदर महसूस किया तब भी मैं तुमसे प्यार करती थी, जब मैने तुम्हें जेल में से बाहर भेजने के लिए अपने से तोड़ा तब भी मैं तुमसे प्यार करती थी और हमेशा करती रहूंगी।"


चिराग मुस्कुराया और फुलवा को कुछ साहस हुआ।


फुलवा, "तुम्हारी मदद से ही मैं समझ पाई की मैं बीमार हूं। इस बीमारी में से ठीक होने में मुझे वक्त लगेगा और तब तक शायद हमारे संबंध मां बेटे की हद्द से परे रहें। अगर तुम ऐसे संबंध नहीं रखना चाहते तो मुझे बता दो! मुझे बुरा लगेगा पर मैं वादा करती हूं कि मैं तुम पर गुस्सा नहीं होने वाली।"


चिराग, "मां, मैं जानता और समझता हूं कि आप सिर्फ मुझ पर भरोसा क्यों करती हैं। मैं इस भरोसे को कभी टूटने नहीं दूंगा। बस वो बात ऐसी है कि…"


फुलवा, "अब शरमाओ मत! बोल दो!"


चिराग, "मुझे डर है कि आप मेरा सहारा लेकर ठीक होने के बजाय अपनी बीमारी को अपनाने की ओर बढ़ गई तो मुश्किल होगी।"


फुलवा, "कल रात को जब तुम्हारा सुपाड़ा मेरी चूत पर दबा तब मेरा भरोसा लगभग टूट गया था। पर मेरा बदन फिर भी तुम्हें चाहता था। तुम्हारे जाने के बाद मुझे तड़पे बगैर गहरी नींद आ गई। सबेरे मेरी आंख खुली और मुझे सोचने का मौका मिला।"


फुलवा ने चिराग को पकड़ कर उठाया और उसे उसके कमरे की ओर ले गई।


फुलवा, "इस बीमारी को तोड़ने के लिए मुझे भूख मिटानी होगी पर चाहत पर काबू रखना होगा। धीरे धीरे भूख चाहत में बदल जायेगी और काबू में भी आ जायेगी। पर अपनी उंगलियों या किसी चीज के साथ करना मेरी चाहत को भूख बना देता है।"


फुलवा ने चिराग को बाथरूम में धक्का देकर भेज दिया।


फुलवा, "मेरा मन चाह रहा है कि मैं तुम्हारे साथ अंदर आऊं और हम दोनों गंदे हो जाएं! पर तुम नहा कर बाहर आ जाओ और हम आगे के फैसले मिल कर लेंगे। ठीक है?"


चिराग नहाकर तयार हो गया और बाहर आ गया।


फुलवा ने उसे एक हिम्मत भरी मुस्कान देते हुए चिराग को बाहर जाते हुए गले लगाया और चिराग काम के लिए मोहनजी के घर गया। मोहनजी चिराग से दो दिन में काफी प्रभावित हो रहे थे।


चिराग ने सिर्फ दो दिन में उनके पूरे कंपनी की व्यवस्था, लोग, उनके ओहदे, उनके कार्यक्षेत्र के साथ ही कंपनी के कमजोर पहलुओं को भी पहचान लिया था। मोहन ने चुपके से अपने पिता से बात की और एक जोखिम भरा फैसला लिया। मोहन ने चिराग को अपनी आखरी मीटिंग बनाते हुए उसे एक खास जिम्मेदारी देने का वादा किया।


चिराग शाम के 5 बजे मोहनजी के साथ मीटिंग के लिए तयार हो रहा था जब उसे सत्याजी का डरा हुआ कॉल आया। सत्या ने बताया कि वह फुलवा के साथ उनके डॉक्टर के पास आई है और डॉक्टर ने चिराग को बुलाया है।


चिराग को मोहन अपनी गाड़ी में ले कर डॉक्टर के पास निकला तो चिराग ने डरते हुए अपनी मां की बीमारी और डॉक्टर को बताया हुआ झूठ मोहन को बताया।


मोहन, "चिराग मैं समझ सकता हूं की लगभग पूरी जवानी कैद में गुजारने के बाद तुमरी मां को मानसिक बीमारी होना लाजमी है। मैं यह भी समझ सकता हूं कि तुम इकलौते मर्द हो जिस पर फूलवाजी भरोसा करें। लेकिन मैं तुम दोनों का शुक्रगुजार हूं कि तुम दोनों ने मेरे एक कहने पर अपना रिश्ता छुपाया और अब मुझ से सच कह कर मुझ पर भरोसा किया। तुम जाओ, मैं सत्या को समझा दूंगा!"


डॉक्टर ने फुलवा से बात कर ली थी और चिराग को तुरंत अंदर बुलाया गया। डॉक्टर ने चिराग से कल रात के बारे में पूछा तो उसने सब सच बताया। डॉक्टर ने फिर फुलवा को वापस अंदर बुलाया और दोनों से बात करने लगी।


डॉक्टर मुस्कुराकर, "आप जैसे पेशेंट मिलते रहें तो मेरा काम बेहद आसान हो जाएगा। फुलवा आपने मेरा सुझाव मान कर अपने आप को राहत दिलाने की कोशिश बंद कर दी। इस से न केवल आप की बीमारी बढ़ने का खतरा टला पर आप भूख और चाह में फरक कर पाईं। चिरागजी आप ने रात को भूख से तड़पती हुई फुलवा की मदद कर उन्हें तब शांत किया जब उन्हें इसकी जरूरत थी। फूलवाजी ने आज सुबह आप को राहत दिलाकर खुद राहत न लेना ही बताता है कि वह अपनी बीमारी को पहचानती है।"


चिराग जानता था कि इतनी तारीफ के बाद लेकिन जरूर आएगा।


डॉक्टर, "लेकिन… यह बीमारी का इलाज है कोई प्रतियोगिता नही। आज सुबह फूलवाजी ने अपनी भूख दबाकर जब चिराग को ऑफिस जाने दिया तो वह भूख उन्हें अंदर से खाने लगी। फूलवाजी ने अपनी सहेली के साथ कसरत कर अपनी भूख को नजरंदाज करने की कोशिश की तो वह और बढ़ती गई।"


डॉक्टर ने चिराग को देख कर, "कोई भी नशा कम करने के लिए उस पर नियंत्रण लाना पहला कदम होता है। पर ऐसे एक दिन में आप पूरा नियंत्रण नहीं पा सकते। चिरागजी आप जवान हो और फूलवाजी सिर्फ आप के स्पर्श को बर्दाश्त कर सकती हैं। इस वजह से आप को फूलवाजी के खातिर कुछ (हंस कर) सख्त रुख अपनाना होगा। मुझे पता है कि यह थोड़ा अटपटा लगेगा पर फूलवाजी दिन में 20 से 30 बार चुधाई से 2 बार चाटे जाने तक पहुंचने के लिए तयार नहीं है।"


फुलवा शरम से लाल हो गई और चिराग का मुंह खुला रह गया।


डॉक्टर समझाते हुए, "आम तौर पर ऐसी हालत में हम उस व्यक्ति को rehab में भेज देते हैं जहां उन्हें 2 या 3 मर्द के ही संपर्क में रखा जाता है। जब पेशेंट को 2- 3 मर्दों में संतुष्ट होने की आदत हो जाए तब उन्हे सिर्फ उनके 1 साथी के साथ रखा जाता है। और आखरी चरण में पेशेंट अपने आप पर काबू पाना सीख लेते हैं। समझ लीजिए 20 मर्दों से वापस आना अनसुना नहीं है पर इसे ठीक होने में 2 से 3 सालों तक समय लगता है! हमें आप के लिए उपचार में कुछ खास बदलाव करने होंगे जो अच्छे भी है और बुरे भी।"


फुलवा, "खास बदलाव?"


डॉक्टर, "आप डरिए मत! देखिए आप 37 साल की हैं। यह उम्र औरत की sexual peak की होती है। इस दौरान औरत यौन संबंधों को ज्यादा तीव्रता और ज्यादा देर तक महसूस करती है। इसी वजह से आप की भूख आप पर हावी हो रही है। लेकिन अच्छी बात यह है कि आप के पास एक जवान मर्द है जो आप की संतुष्ट रखते हुए आप को धीरे धीरे आपकी मर्द से होती घिन पर काबू पाने में मदद कर सकता है।"


फुलवा चुपके से, "डॉक्टर मुझे इस से घिन नही आती क्योंकि यह मेरा बेटा है। मैं इसके साथ… कैसे?…"


डॉक्टर, "मैं कल ही आप दोनों का रिश्ता समझ गई थी। पर फूलवाजी क्या आप किसी rehab center में भर्ती होकर 3 अनजान मर्दों के संग रह सकती हैं? (फुलवा सिहर उठी) तो इसे इलाज समझ कर भूल जाओ! में आप दोनों को कुछ सुझाव दूंगी।"


डॉक्टर ने चिराग की आंखों में देखते हुए, "फूलवाजी को मां बोलना बंद मत करना। इस से उन्हें तुम्हारे साथ लैंगिक संबंध तोड़ने की इच्छा बनी रहेगी। मैं जानती हूं कि आप ने नई नौकरी शुरू की है पर अगर हो सके तो 3 दिन छूटी पर जाइए, अपनी मां को समझिए, उसकी भूख को समझिए, इस से आप उनकी भूख को समय रहते शांत करना सीखेंगे और फिर धीरे धीरे हम फूलवाजी को बाकी मर्दों से मिलाते हुए उनकी घिन कम करेंगे। जैसे फूलवाजी ठीक होने लगेंगी उनकी भूख कम हो जाएगी और दूसरों के साथ मिलकर अपने लिए साथी चुन लेंगी।"


चिराग ने अपनी मां के हाथ पर अपना हाथ रख कर उसे सहारा दिया। दोनों डॉक्टर से इजाजत लेकर बाहर आ गए।


मोहन और सत्या मां बेटे को लेकर उनके घर पहुंचे। सत्या को फुलवा की पूरी कहानी मोहन ने पहले ही समझा दी थी और अब उसके मन में फुलवा के लिए सहानभूति के अलावा कोई बुरी भावना नहीं थी।


फुलवा को उसके बेडरूम में लेकर सत्या चली गई और मोहन को चिराग से बात करने का मौका मिला।


मोहन, "चिराग, मैं नहीं जानता था कि फूलवाजी को ऐसी बीमारी है। मैंने तुम्हें आज शाम को बुलाया था ताकि मैं तुम्हें एक छोटे सौदे के लिए मुंबई भेजना चाहता था। सोचा 2 3 दिन मुंबई में रहकर सौदा करके लौट आओगे तो तुम्हें भी थोड़ा धंधा करने का तजुर्बा होगा। अब कैसे करें?"


चिराग का दिमाग तेज़ी से दौड़ा।


चिराग, "मोहनजी, मुंबई में क्या काम है?"


मोहन ने समझाया की चिराग पेपर प्रोडक्ट्स के लिए नई डाइज चाहिए थी पर dye बनाने वाली कंपनी का मालिक बेहद शातिर आदमी था जो हर बार ठगता था। मोहन चाहता था कि इस बार चिराग उस से ठगने का अनुभव ले।


चिराग ने मोहन को बताया की अगर उसे फुलवा को साथ ले जाने दिया तो वह अपना काम अब भी करेगा और मोहन को फक्र महसूस होने जैसा सौदा करेगा। मोहन ने मुस्कुराते हुए कहा कि वह मोहन जितना ठग गया तो भी उसने बाजी मार ली।


चिराग ने अपनी मां को बताया कि वह अपनी बैग भर ले क्योंकि चिराग उसे मुंबई के लिए रवाना कर रहा है। फुलवा ने बिना किसी सवाल के अपना थोड़ा समान समेटा और हॉल में आ गई।


हॉल में चिराग भी अपनी बैग ले आया था और उसने बताया की वह भी मुंबई देखना चाहता है। फुलवा समझ नहीं पा रही थी कि चिराग उसे मुंबई में छोड़ने जा रहा है या घुमाने?


चिराग ने बताया की मोहन ने दोनों के टिकट निकाले थे और उन्हें तुरंत निकालना होगा। मां बेटे ने मोहन की गाड़ी में बैठ कर ट्रेन में कितना वक्त गुजरेगा इसका हिसाब लगाना शुरू किया।


जब गाड़ी रुकी तो वह जगह ट्रेन स्टेशन नहीं थी। चिराग ने लिफाफे के अंदर देखा और हवाई जहाज के 2 टिकट निकले। फुलवा छोटी बच्ची की तरह चीख पड़ी।


फुलवा, "हम उड़ने वाले हैं!!"
 
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लखनऊ से मुंबई हवाई जहाज से सफर 4 घंटों में पूरा हो गया और दोनों चिराग के लिए बुक किए होटल के कमरे में पहुंचे। अबकी बार दरबान ने उनका स्वागत किया और दोनों को उनके कमरे तक पहुंचाया गया।


चिराग ने जब उस बेलबॉय को सामान लाने के लिए 100 रुपए दिए तो फुलवा उसे देख कर चौंक गई। चिराग और फुलवा ने अपने कमरे में आ कर समान देखा तो वहां सिर्फ एक बड़ा बिस्तर पाया।


फुलवा शरमा कर कोने में बैठ गई पर चिराग ने सीधे बाथरूम में जाकर नहाते हुए सोने की तयारी कर ली। चिराग ने तौलिया लपेटे बाहर आ कर फुलवा को नहाने के लिए कहा और खुद फोन पर किसी से अंग्रेजी में बात करने लगा। फुलवा ने उस शीशे से भरे कमरे मे नहाते हुए अपने आप को देखा।


फुलवा का चेहरे जो किसी जमाने में बेहद खूबसूरत था अब मुरझाया और थका हुआ लग रहा था। फुलवा के मम्मे अब पहले जैसे सक्त और नुकीले नहीं थे पर गोल और नरम होने के साथ ही थोड़े नीचे की ओर झुके हुए थे। फुलवा का पेट थोड़ा फूला हुआ था और वहां काफी चर्बी लग रही थी। फुलवा की चूत कई सालों तक लगातार चूधने से पाव रोटी की तरह फूल कर भरी हुई दिख रही थी। फुलवा की गांड़ भरी हुई थी जो बेहद मोटी लग रही थी। फुलवा की जांघें भी मोटी लग रही थी और उसके घुटने, एडियां और पैर बिलकुल खास नही थे।


अपने बदन से असंतुष्ट होकर फुलवा ने गद्दे जैसे नरम तौलिए के robe को पहना और अपने बदन को छुपने के लिए उसका मोटा रस्सा कस कर बांध लिया। फुलवा ने बाथरूम में से बाहर कदम रखा तो वहां एक नौकर खाने को परोस रहा था। नौकर फुलवा को देख कर फटी आंखों से देखता रहा।


चिराग मुस्कुराकर, "आओ मां, खाना लग गया है। आज बस रोटी और पनीर की सब्जी मंगाई है। कल कुछ अच्छा नीचे रेस्टोरेंट में देखेंगे। मीठे के लिए रबड़ी भी मंगाई है!"


फुलवा असहज महसूस कर मुस्कुराते हुए बेड के किनारे बैठ गई। चिराग ने नौकर को खाना परोसने के लिए सौ रुपए दिए और प्लेट कल सुबह ले जाने को कहा। नौकर एक छुपी हुई नजर से फुलवा का भरा हुआ बदन देख कर भागा।



चिराग और फुलवा ने खाना खाया तब दोनों इधर उधर की बातें कर रहे थे। फुलवा को मुंबई के बारे में सिर्फ दो बातें मर्दों से सुनने को मिली थी। यहां की औरतें बेहद खूबसूरत थी और यहां की रंडियां बेहद महंगी!


चिराग ने अपनी मां को मुंबई में बाजार, शेयर बाजार, हीरा बाजार के साथ यहां की खूबसूरत जगहों के बारे में बताया। चिराग भी कभी मुंबई नहीं आया था पर उसे अधिकारी सर ने यहां के बारे में काफी कुछ बताया था।


खाना खाने के बाद फुलवा ने एक चादर को फर्श पर बिछाते हुए वहां सोने की तयारी की।


चिराग, "मां, नीचे क्यों सो रही हो? हम दोनों यहां सो सकते हैं! तुम्हें अकेले सोना है क्या?"


फुलवा की आंखों में आंसू भर आए। उसने सिर्फ अपने सर को हिलाकर मना करते हुए नीचे सोने के लिए घुटनों पर बैठ गई। चिराग ने फुलवा के सामने खड़े होकर उसे रोका और अपनी मजबूत बाहों में पकड़ कर उसे उठाया।


चिराग, "मां, हमें आपस में बात करनी है! बताओ मुझे! क्या हुआ?"


फुलवा सिसकने लगी। उसकी झुकी हुई पलकों में से आंसू टपकने लगे। हर आंसू फर्श पर गिरते हुए चिराग के दिल पर तेज़ाब छिड़कता।



चिराग ने अपनी मां को जबरदस्ती अपनी आंखों में देखने को मजबूर किया।


चिराग, "मां!!…?"


फुलवा, "मैं समझ गई हूं! मैं जानती हूं! मैं तुम्हें तकलीफ नहीं देना चाहती! (सिहरते हुए) मैं rehab में रहने को तयार हूं!"


चिराग उस आखरी वाक्य से समझ गया कि मां के परेशान होने का कारण क्या है।


चिराग, "मां, क्या आप को लगता है कि मैं आप को खुश करने के काबिल नहीं हूं?"


चिराग ने बात को उल्टा घुमाकर कहा और फुलवा को अपने डर को बोलना पड़ा।



फुलवा, "मैंने खुद को देखा!… मैं मोटी हूं!!… भद्दी थकी हुई दिखती हूं!!… मेरे अंग से तुम्हें तकलीफ होती है!!… इसी लिए तुमने कल रात…"


चिराग, "मां कल रात के बारे में जानना चाहती हो तो मुझे पूछ लेती! मैं कल रात को तुम्हें तड़पता देख रहा था। तुम अपने आपे में नहीं थी! तुम भूख से तड़प रही थी। उस समय अगर मैं तुम्हारे साथ कुछ करता तो मैं साबित कर देता की हर मर्द आप।से एक ही चीज की उम्मीद रखता है।"


फुलवा, "आज सुबह मुझे तुम पर जबरदस्ती करनी पड़ी!"


चिराग हंस पड़ा, "आज सुबह मैं आखिर तक उसे सपना समझ रहा था! एक ऐसा हसीन सपना जिस में, मैं कुछ करके जाग जाने का खतरा था!"


फुलवा, "मैने देखा वह नौकर मुझे कैसे देख रहा था। जैसे तुम्हारे साथ मुझे देख कर वह चौंक गया हो!"


चिराग ने फुलवा को बेड के किनारे पर बिठाया।


चिराग, "यह बात बिलकुल सच है! वह सोच रहा होगा की यह आदमी अपनी मां को लाने की बात करते हुए एक हसीना के साथ रात गुजारने की फिरात में है!"


फुलवा शरमा कर, "झूठ मत बोलो!!…"


चिराग हंसकर, "अब तो आप सीधे सीधे अपनी तारीफ मांग रही हो! (फुलवा ने अपने सर को हिलाकर मना किया) चलो सच बता देता हूं!"


फुलवा की खुली जुल्फों में अपनी उंगलियां फेर कर उन्हे चेहरे से दूर करते हुए, "आप के चेहरे पर सालों का दर्द सहने पर भी उम्मीद की मासूमियत दिखती है! यहां आने वाली लगभग हर औरत किसी न किसी डॉक्टर से अपने चेहरे को बदलवा चुकी है पर आप का चेहरा ईश्वर का हाथ दिखाता है!"


चिराग ने फुलवा के माथे को चूमा और फुलवा ने अपनी भूख को महसूस करते हुए अपने चेहरे को उठाया।


चिराग, "आप के होंठ सालों से हंसी दबाकर झुर्रियां रोक हुए नही है बल्कि दर्द में भी मुस्कुराकर जिंदगी से भरे हुए हैं!"


चिराग ने फुलवा के होंठों को चूम लिया। फुलवा ने अपने होठों को बंद रखने की कोशिश की पर जब उसे चिराग की जीभ अपने होठों पर महसूस हुई तो एक आह से उसके होंठ खुल गए। चिराग की मर्दाना जीभ झिझकती शरमाती फुलवा की जीभ से टकराई और दोनो को जैसे बिजली की तार छू गई।


चिराग ने बड़े धैर्य से अपने होठों को दूर किया और फुलवा की निराशा भरी आह निकल गई।


चिराग ने अपने सर को झुकाया और फुलवा के गले को चूमते रहे robe में की खुली जगह से उसके सीने की हड्डी को चूमा। फुलवा ने आह भरते हुए अनजाने में चिराग को अपने सीने पर दबाया। फुलवा को पता भी नहीं चला कब चिराग ने उसके robe की गांठ खोल कर फुलवा के पूरे बदन को खोल दिया।


Robe खुला और फुलवा की चौंक कर घुटि हुई चीख निकल गई।


चिराग ने फुलवा के नीचे की ओर मुड़ते हुए मम्मों को नीचे से चूमा और फुलवा बेड पर पीठ के बल गिर गई।


चिराग ने फुलवा के ऊपर उठते हुए, "मां मैं दुबारा आप से पीना चाहता हूं!"


फुलवा ने अपने जलते हुए बदन में से बहते रसों का स्त्रोत खोलते हुए अपनी जांघों को फैलाया। चिराग ने फुलवा के ऊपर लेटते हुए उसके सीने को चूमते हुए अपने घुटनों को फुलवा के फैले हुए घुटनों के बीच रखा। फुलवा ने अपनी आंखें बंद की जब चिराग ने अपने हाथों को उसके मम्मों पर से हटाया। फुलवा ने अपने मन की आंखों में देखा की चिराग ने अपनी पैंट को उतार कर अपने लौड़े को पकड़ लिया था। चिराग के सुपाड़े ने फुलवा की चूत को छूने के बजाय उसकी बाईं चूची पर कुछ बेहद ठंडा लगा।


फुलवा ने चीख कर अपनी आंखें खोली तो देखा कि चिराग एक चम्मच उसकी चूची पर से उठा रहा था। चिराग ने नटखट मुस्कान देते हुए अपने सर को उसकी बाईं चूची पर लाते हुए चूची को चारों ओर से अपनी जीभ से चाटना शुरु किया।


फुलवा को याद आया की उन्होंने रबड़ी खाई नहीं थी। अब चिराग ने फुलवा की चूची को ठंडी रबड़ी में ढक कर उसे अपनी गरम जीभ से चाटना शुरू किया था। चिराग अपनी मां की चूची पर से दूध पी रहा था। मां का वात्सल्य काम ज्वर के साथ मिलते हुए उसकी आग को भड़का रहा था।


चिराग ने फुलवा की एक चूची को उसे दूध पिलाने की याद दिलाने के बाद दूसरी चूची को भी याद दिलाना शुरू किया। चिराग अपनी मां की आहों को सुनता उसकी चूचियों को निचोड़कर पीते हुए मुस्कुरा रहा था। चिराग के अंदर से एक मर्द जानवर अपनी मादा को उसे पाने को उतावला होते पाकर गुर्रा कर खुश हो रहा था।


चिराग ने आखिर कार रबड़ी को पूरी तरह खत्म कर नीचे सरका। चिराग ने अपनी मां के फूले हुए पेट को चूमते हुए उसकी नाभी को चूमा। फुलवा को एहसास हुआ कि चिराग उसे दुबारा चाट कर आराम दिलाना चाहता है। डॉक्टर और अपनी भूख की बात मानते हुए फुलवा ने चिराग के ऊपर से अपने पैर को घुमाते हुए पेट के बल लेट गई।


फुलवा मिन्नत करते हुए, "ऐसे नही!!…"


चिराग मुस्कुराया और फुलवा के भरे हुए उभरे नितंब को चूमते हुए अपने दांतों से हल्के काटने लगा। फुलवा बेबसी से आहें भरती चादर को मुट्ठियों में पकड़ कर अपनी जलन में जलती रही। चिराग ने अपनी हथेलियों में फुलवा के फूले हुए चूतड़ों को पकड़ कर खोला तो उन दोनों के बीच दब कर छुपा हुआ भूरा संकरा छेद नज़र आया। यह छेद कांपता हुआ मानो चिराग को मदद की गुहार लगा रहा था।


चिराग ने अपने दिमाग को बंद कर अपने लौड़े की बात सुनी और उस सिहरते हुए भूरे छेद को चाट कर मनाने लगा। फुलवा तकिए में रो पड़ी और उसकी कमर उठ गई।


चिराग ने अपने नाक और मुंह को फैले हुए चूतड़ों की खाई में धकेलते हुए उस संकरे भूरे छेद को चाटते हुए अपनी जीभ से सहलाया। फुलवा के पैर इस हमले से फैल गए और चिराग की उंगलियों को फुलवा की गरम बहती जवानी का स्त्रोत मिला। चिराग ने अपने भूरे दोस्त को प्यार से चाटते हुए अपनी उंगलियों से गरम पानी की यौन गंगोत्री को सहलाया और फुलवा की चूत में बाढ़ आ गई। फुलवा कांपते हुए चीख पड़ी और तकिए पर गिर गई।


चिराग भी उठ कर अपनी मां के बगल में लेट गया।


चिराग, "मां, आप को अब यकीन हो गया है कि मुझे आप के बदन से कोई शिकायत नहीं?"


फुलवा ने शरमाकर, "दरअसल तुम ने अब भी मुझे सिर्फ चाटा है। इस से सिर्फ यह साबित होता है कि तुम मुझे अधूरी भूख मिटाते हुए रख सकते हो! क्या तुम मेरी पूरी भूख सच में मिटाना चाहते हो?"


चिराग ने फुलवा के robe का रस्सा उठाकर दिखाते हुए, "क्या आप को मुझ पर भरोसा है?"
 
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फुलवा ने अपनी पूरी जिंदगी बंधी हुई बिताई थी। उसे आज तक लगभग हर बार किसी न किसी तरह से बांध कर ही लूटा गया था। चिराग ने भी उसे पहली बार राहत दिलाते हुए उसके हाथों को बंधा हुआ देखा था। क्या यह सोचना गलत था की वह भी फुलवा को अपने किसी ख्वाब की तरह इस्तमाल करना चाहता है?


फुलवा को जल्द ही तय करना था की वह अपने बेटे पर भरोसा करते हुए बेबसी अपनाए या अपनी आजादी को चुन कर अपने बेटे के दिल को ठेस पहुंचाए। फुलवा को बेबसी का डर और बेटे की इच्छा के बीच चुनना पड़ा और उसने झूठी मुस्कान के साथ अपने हाथों को बांधने के लिए आगे किया।


चिराग ने अपनी मां की आंखों में देखते हुए उस नरम रस्से को उसके हाथों में रखा और अपने हाथों को बिस्तर के सिरहाने से लगाया। फुलवा चौंक कर देखती रही।


चिराग, "मां, आप मेरी जिंदगी की इकलौती मंजिल हो, मेरा इकलौता सपना और अब मेरी इकलौती प्रेमिका। मुझे सिखाइए की मैं आप को कैसे खुश रख सकता हूं।"


फुलवा को अचानक एहसास हुआ कि उसका बेटा उसे क्या दे रहा था। उसका बेटा अपने आप को उसके लिए ढालना चाहता था। फुलवा अचानक शिकार से शिकारी बन चुकी थी।


फुलवा ने चिराग की बाईं कलाई को बांध कर रस्सा बेड के सिरहाने में घुमाकर उसकी दाईं कलाई को बांध दिया। चिराग ने मुस्कुराकर अपनी उंगलियों को एक दूसरे में फंसाया तो फुलवा ने चिराग को दोनों कलाइयां एक साथ बांध दी। चिराग ने इस दौरान फुलवा की चूची चूसने की कोशिश की तो फुलवा ने उसे रोक कर उसे हल्का चाटा मारा।


फुलवा, "आज का पहला सबक; जब तक औरत इजाजत नहीं देती तब तक उसे छूना नही!"


फुलवा ने फिर चिराग के ऊपर से नीचे सरकते हुए जानबूझ कर अपनी चूचियां उसके सीने पर से घुमाई। चिराग ने आह भरी और फुलवा का बदन एक अनोखी ताकत से झूम उठा।


फुलवा ने अपनी मुट्ठियों में चिराग का तौलिया पकड़ कर खींच लिया। चिराग का लौड़ा खुल कर सांस लेते हुए झूम उठा। चिराग का 7 इंच लम्बा 3 इंच मोटा खंबा देख कर 4 दिन की भूखी चूत रो पड़ी। फुलवा की चूत में से जवानी के गरम आंसू बहने लगे। फुलवा ने बड़ी मुश्किल से अपने आप को रोका और चिराग का लौड़ा अपनी हथेली में दुबारा पकड़ा।


चिराग ने तड़प कर आह भरी और फुलवा मुस्कुराई। फुलवा अपनी पूरी जवानी पेशेवर रण्डी बन कर कुछ खास बातें सीख चुकी थी। फुलवा ने पहले यह पहचान लिया की उसका बेटा जवानी की पहली किश्त आजमाते हुए अपनी चरम पर है। ऐसी हालत में लड़के अक्सर दिन में 5 बार भी औरत को भरने के काबिल होते हैं।


फुलवा ने चिराग के लौड़े को छेड़े बगैर हिलाना शुरू किया। बेचारा लड़का था तो कुंवारा ही! आज सुबह से उसकी गोटियों में जमा माल जल्द ही उबलने लगा। चिराग अपनी मां को उत्तेजित करते हुए खुद भी अपने स्खलन के छोर पर पहुंच चुका था।


चिराग ने आहें भरते हुए अपनी मां को आगाह करने की कोशिश की जब फुलवा ने अपने दाएं अंगूठे से चिराग के लौड़े के नीचे जड़ पर से फूली हुई नब्ज़ को कस कर दबाया। चिराग का लौड़ा तेजी से धड़कने लगा पर उसमें से कुछ भी बाहर नहीं निकला।


चिराग आह भरते हुए बिस्तर पर गिर गया और गहरी सांसे लेने लगा।


फुलवा चिढ़ाते हुए, "मज़ा आया? मुझे भी ऐसा ही अधूरा मजा बर्दाश्त करना पड़ा था। अब मैं तुम्हें भी शुभ रात्री कहकर सोती हूं!"


चिराग ने एक सिसकती हुई आह भरते हुए अपनी आंखें बंद की। फुलवा अपने अच्छे बेटे को देख कर मुस्कुराई और वासना से भरी चाल में चिराग के दोनों ओर अपने हाथ और घुटनों पर उसके ऊपर सरकी।


फुलवा ने चिराग के बाल अपने बाएं हाथ में पकड़ कर उसकी नाक से अपनी नाक लगाकर उसकी आंखों में देखा। फुलवा की कमर चिराग के लौड़े पर थी जिस से चिराग का तड़पता लौड़ा फुलवा के टपकते रसों से भीग रहा था।


फुलवा चिराग की आंखों में देख कर, "क्या तू अपनी मां को चोद कर उसकी भूख मिटाने के लिए अपने लौड़े की कुर्बानी देने को तैयार है?"


चिराग का लौड़ा धड़क उठा और उसके सुपाड़े की नोक पर गीली यौन होठों की चुम्मी लगी।


चिराग तड़पकर घूटी हुई आह भरते हुए, "हां मां…"


फुलवा को इस तड़पने में मज़ा आ रहा था।


फुलवा ने चिराग के बाल खींचे और उसकी आंखों में देख कर, "तू मादरचोद बनेगा?"


चिराग लगभग रोते हुए, "हां मां!!…
हां!!…"


फुलवा, "बोल तू क्या बनेगा?"


चिराग, "मादरचो…
आ…
आ…
आह!!…"


फुलवा ने अपनी कमर को झुकाया और अपनी 4 दिन की भूखी चूत को नया लौड़ा खिलाया। चिराग का लौड़ा धीरे धीरे अपनी जवानी की भट्टी में लेते हुए फुलवा दोनों को तड़पाने का मज़ा ले रही थी। आखिर कार जब फुलवा चिराग की गोद में पूरी तरह बैठ गई तो वह बस बुदबुदाता हुआ तड़पता लड़का बन कर रह गया।


फुलवा को शरारत सूझी और उसने अपनी चूत को चिराग के लौड़े पर दबाते हुए अपने पेट की मांसपेशियों को भींच लिया। इस से फुलवा की चूत में जमा यौन रसों में चिराग का लौड़ा गर्मी से निचोड़ा गया।


चिराग अपनी मां का नाम लेते हुए लगभग रोने लगा। फुलवा को अचानक अपनी कोख में तेजी से फैलती गरमी का एहसास हुआ। फुलवा ने चिराग को देखा और वह अपनी नजरें चुराता रोने लगा।


चिराग सच में कुंवारा था और फुलवा की अनुभवी चूत ने अपने बेटे को निचोड़ लिया था।
 

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