Adultery चन्डीमल हलवाई की दो बीवियाँ और नौकर (सम्पूर्ण)

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पड़ोस की कुछ भाभियाँ खबर सुनते ही बेला के घर आ पहुँची और बिंदिया को आगे वाले कमरे में ले जाकर उससे छेड़छाड़ करने लगीं। बेला अपनी बेटी के उदास चेहरे को देख कर समझ गई थी, कुछ ना कुछ गड़बड़ है, कहीं लड़के में तो कोई कमी नहीं… ये सोच कर बेला भी परेशान हो गई।
शाम को सोनू ऊपर कमरे में बैठा हुआ था और बोर हो रहा था, क्योंकि नीचे रजनी और जया पड़ोस की कुछ औरतों के साथ बातें कर रही थी.. सोनू रजनी को ये बोल कर घर से बाहर निकल गया कि वो थोड़ी देर घूमने के लिए जा रहा है।
आज तो सुबह से बहुत ठंड थी, सुबह से ही सूरज नहीं निकला था और शाम होते ही कोहरा छाने लगा था।
सोनू घर से निकल कर खेतों की तरफ बढ़ने लगा, रास्ते में कुछ लोग खेतों से लौट रहे थे। सोनू अपनी मस्ती में आगे बढ़ता जा रहा था। थोड़ी देर में ही सोनू गाँव से निकल कर काफ़ी आगे आ चुका था, तभी उसे अपने आगे चलते हुए एक बंजारन नज़र आई.. उसने काले रंग का लहंगा पहना हुआ था और ऊपर एक सफ़ेद रंग का कुर्ता पहना हुआ था।
सर्दी की वजह से उसने अपने ऊपर एक कंबल सा ओढ़ रखा था। अपने पीछे से आती क़दमों की आहट सुन कर उस बंजारन ने पीछे मुड़ कर सोनू की तरफ देखा और अपने ख्यालों में खोए हुए सोनू ने जब उसकी तरफ देखा, तो दोनों की नजरें आपस में जा टकराईं।
एक पल के लिए उस बंजारन के होंठों पर मुस्कान फ़ैल गई और फिर से आगे देखते हुए चलने लगी। कोहरा और गहराता जा रहा था, तभी हल्की-हल्की बारिश भी शुरू हो गई।
सोनू को ध्यान आया कि वो चलते हुए.. बहुत आगे निकल आया है और अगर बारिश तेज हो गई, तो वो इतनी ठंड में गीला हो जाएगा। उसके आगे चल रही बंजारन भी बारिश शुरू होते ही तेज़ी से चलने लगी और सोनू भी तेज़ी से चलने लगा।
वो बंजारन एक पेड़ के नीचे जाकर रुक गई। सर छुपाने के लिए और कोई जगह ना देख कर सोनू भी उसी पेड़ के नीचे जाकर खड़ा हो गया। बारिश अब तेज हो चुकी थी और वो घना पेड़ भी उनको बारिश के पानी से बचा नहीं पा रहा था। दोनों थोड़ा सा भीग गए थे। वो बंजारन कनखियों से बार-बार सोनू की तरफ देख रही थी।
"तुम यहाँ के तो नहीं लगते.. किसी के घर पर मेहमान बन कर आए हो?" उस बंजारन ने सोनू से पूछा।
सोनू ने एकदम चौंकते हुए कहा- जी.. जी.. हाँ..।
फिर अचानक से उस बंजारन की नज़र थोड़ी दूरी पर बने एक कमरे की तरफ पड़ी। दूर से देखने पर ही वो ख़स्ता हालत में लग रहा था। बंजारन ने उस तरफ इशारा करते हुए कहा- वहाँ पर एक कमरा है, शायद वहाँ कोई हो..।"
ये कह कर वो बंजारन तेज़ी से चलते हुए, उस कमरे की तरफ जाने लगी। उसने अपने ऊपर ओढ़े हुए कंबल को उतार कर अपनी बाँहों में छुपा लिया, ताकि वो गीला ना हो। सोनू भी उसके पीछे हो लिया।
जब दोनों उस कमरे के पास पहुँचे, तो उस कमरे पर एक बड़ा सा ताला लगा हुआ था.. जो कि जंग खाया हुआ था.. जिससे पता चजया था कि उस कमरे में बरसों से कोई नहीं रह रहा है। जिसे देख कर वो बंजारन थोड़ा परेशान हो गई.. बारिश तेज होती जा रही थी।
उस कमरे के पीछे बहुत से पेड़ लगे हुए थे। उसने सोचा यहाँ पर भीगने से अच्छा है कि वो पीछे पेड़ों के नीचे जाकर खड़ी हो जाए और वे दोनों कमरे के पीछे के तरफ पेड़ों की तरफ आ गए। सर्दी अब बहुत ज्यादा बढ़ गई थी। काले बादलों ने अंधेरा सा कर दिया था। जबकि अभी शाम के 5 ही बजे थे।
तभी सोनू को कमरे के पीछे एक खिड़की दिखाई दी, जो टूटी हुई थी।
"ये देखो.. जहाँ से अन्दर जाया जा सकता है।" सोनू ने खुश होते हुए कहा। खिड़की ज्यादा उँची नहीं थी, महज 3 फुट उँची खिड़की से आसानी से अन्दर घुसा जा सकता था।
 
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सोनू जल्दी से उस खिड़की को लाँघ कर कमरे में आ गया। उसके पीछे वो बंजारन भी आ गई। सोनू ने उसका हाथ पकड़ कर नीचे उतरने में मदद की।
"क्या नाम है तुम्हारा..?" बंजारन ने सोनू की तरफ देखते हुए पूछा।
सोनू- मेरा नाम सोनू है और तुम्हारा..?
बंजारन- मेरा नाम रजिया है।
रजिया की उम्र लगभग 32 साल की थी। उसका बदन एकदम मस्त था। दिन भर काम करने के कारण उसका बदन एकदम गठीला था। उसकी चूचियां ज्यादा बड़ी नहीं थीं, उसकी दोनों चूचियां आसानी से हाथों में समा सकती थीं.. पर एकदम कसी हुई और ठोस थीं।
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सर्दी के कारण दोनों काँप रहे थे। कमरे में अन्दर आने के बाद रजिया ने एक बार खिड़की से बाहर झाँका.. तो देखा, अब बारिश बहुत तेज हो चुकी थी।
आसमान में देखने से ऐसा लग रहा था कि बारिश जल्दी रुकने वाली नहीं है। उसने अपने ऊपर कंबल ओढ़ लिया.. कमरे में एक तरफ सूखी हुई घास का ढेर लगा हुआ था। सोनू वहाँ पर जाकर बैठ गया, रजिया भी उसके पास आकर बैठ गई।
"लगता है आज बहुत देर तक बारिश होगी..।" रजिया ने बाहर की तरफ झाँकते हुए कहा।
सोनू ने काँपते हुए कहा- हाँ.. लगता तो ऐसा ही है।
रजिया- पर तुम इस समय यहाँ क्या कर रहे थे?
सोनू- दरअसल मैं एक गाँव में सेठ के घर पर नौकर हूँ और उनकी पत्नी के साथ उनके मायके यहाँ पर आया था.. घर पर मन नहीं लग रहा था, तो सोचा थोड़ा घूम लेता हूँ..और आप क्या कर रही हैं इधर.. आपका घर कहाँ पर है?
रजिया- अब क्या बताएं बाबू.. हम बंज़ारों का कहाँ कोई घर होता है… हम तो बस अपनी भैंसों के साथ एक गाँव से दूसरे गाँव भटकते रहते हैं। एक गाँव के बाहर 3-4 महीने तक ठहरते हैं और फिर किसी और जगह जाकर अपना डेरा डाल देते हैं। थोड़ी दूर जाने पर हमारा कबीला है..वहाँ पर हमने कुछ झोपड़ियाँ बनाई हुई हैं..फिलहाल तो वहीं रुके हुए हैं।
सोनू- तो आपको आपके घर वाले ढूँढ़ रहे होंगे.. बहुत देर हो चुकी है ना..।
रजिया- नहीं बाबू ऐसी बात नहीं है.. हमारा काम ही घूमना.. कई बार तो मुझे भी ऐसे बाहर रात काटनी पड़ी है.. कभी-कभी ऐसे जगह पर डेरा डालते हैं कि पानी ढूँढने के लिए दिन-दिन भर बाहर घूमना पड़ता है।
बातों-बातों में रजिया का ध्यान सोनू की तरफ गया। जो सर्दी के कारण बहुत काँप रहा था। रजिया की शादी बहुत छोटी उम्र में हो गई थी और उसके दो बेटे सोनू की उम्र के ही थे। रजिया को उस पर दया आ गई।
रजिया ने एक तरफ से कम्बल खोलते हुए कहा- अरे तुम तो बहुत काँप रहे हो बाबू.. मेरे पास इस कंबल में आ जाओ.. अगर तुम्हें ठीक लगे तो..।
सोनू को बहुत ठंड लग रही थी, उसने एक बार रजिया की तरफ देखा और फिर उस कंबल की ओर, जो थोड़ा सा मैला था.. पर ठंड से बचाने के लिए उसके पास और कोई चारा नहीं था। सोनू खिसक कर रजिया के पास आ गया।
अभी रजिया की नज़र अचानक कमरे में पड़ी.. सूखी हुई लकड़ियों पर पड़ी और उसने उठ कर कंबल सोनू को दे दिया और लकड़ियों को अपने पास कमरे के बीच में रख दिया.. फिर अपने कुर्ते की जेब से माचिस निकाल कर आग जलाने लगी।
आग जल गई.. रजिया ने राहत की साँस ली। बाहर अब अंधेरा बढ़ रहा था और बारिश पूरे ज़ोर से हो रही थी। आग जलाने के बाद वो सोनू के पास आकर बैठ गई और ऊपर कंबल ओढ़ लिया। कंबल ज्यादा बड़ा नहीं था.. दोनों के पीठ और कंधे तो ढक गए थे, पर सामने वाला हिस्सा खुला था.. जो सामने से उनको ढक नहीं पा रहा था।
बाहर से आती तेज और सर्द हवा से वो दोनों और काँप उठते, भले ही आग से थोड़ी गरमी मिल रही थी, पर सर्दी इतनी अधिक थी कि आग की तपिश ना के बराबर थी।
रजिया ने सर्दी से ठिठुरते हुए कहा- ये कंबल थोड़ा छोटा है ना..।
सोनू- ये ऐसे हम दोनों के ऊपर नहीं आएगा। आप इसे ओढ़ लो.. मैं ठीक हूँ।
रजिया- ना बाबू.. सर्दी बहुत है। तबियत खराब हो जाएगी तुम्हारी..।
सोनू खड़ा हो गया और खिड़की के से बाहर देखने लगा.. बाहर देख कर ऐसा लग रहा था कि आज तो मानो आसामान फट पड़ेगा.. वो निराश होकर वापिस आग के पास आकर बैठ गया।
"अरे बाबू कह रही हूँ ना… कंबल के अन्दर आ जाओ ठंड बहुत है.. बारिश बंद होने दो.. फिर चले जाना..।"
सोनू- तुम मुझे बाबू क्यों कह रही हो..?मैं तो एक मामूली सा नौकर हूँ।
रजिया ने हंसते हुए कहा- अरे.. वो हमारे घर में बाबू प्यार से बच्चों को कहते हैं.. चल इधर आ जा नहीं तो ठंड लग जाएगी।
सोनू- पर ये बहुत छोटा है, हम दोनों को ठीक से ढक भी नहीं सकता।
रजिया- अरे तो कौन सा सारी उम्र यहाँ पड़े रहना है… बारिश बंद होते चले तो जाना है।
सोनू खड़ा हुआ.. रजिया के ठीक पीछे जाकर बैठ गया। सोनू रजिया के पीछे जहाँ घास पर बैठा था.. वो ढेर रजिया के बैठने वाली जगह से कुछ उँची थी। वो अपने टाँगों को घुटनों से मोड़ कर बैठ गया। उसके दोनों घुटने रजिया के बगलों को छू रहे थे।
"लाओ कंबल दो.." सोनू ने पीछे सैट होकर बैठते हुए कहा।
रजिया कुछ समझ नहीं पाई और उसने कंबल सोनू को दे दिया.. सोनू ने अपने ऊपर कंबल ओढ़ कर आगे की तरफ बढ़ाया और रजिया को पकड़ा दिया और फिर थोड़ा सा आगे खिसका। जिससे सोनू का बदन रजिया के पीठ से एकदम सट गया.. एक पल के लिए किसी अंज़ान और जवान लड़के के बदन का स्पर्श पाकर रजिया का पूरा बदन सिहर गया।
वो थोड़ी हिचकी और आगे को सरकी, पर ठीक उसके आगे आग जल रही थी।रजिया ने सोचा अभी इस बच्चे से क्या शरमाना और कंबल को आगे से बंद कर दिया.. दोनों एकटक इसी हालत में बाहर खिड़की के ओर झाँक रहे थे कि कब बारिश बंद हो।
सोनू एक मस्त और गदराए हुए बदन की औरत के इतने करीब होते हुए भी उसका ध्यान घर की तरफ था कि रजनी चिंता कर रही होगी।
अनजाने में ही सोनू का हाथ रजिया की कमर पर जा लगा और उसने अपना हाथ वहीं रख दिया। सोनू से अनजाने में हुई इस हरकत ने रजिया के बदन को झिंझोड़ कर रख दिया। सोनू के गरम हाथ के स्पर्श को अपनी कमर पर महसूस करके उसके पूरे बदन में मदहोशी छाने लगी और उसके बदन ने एक झटका खाया.. जिसे सोनू ने भी महसूस किया।
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सोनू ने झट से अपना हाथ रजिया की कमर से हटा लिया। इतने में बाहर जोरों से बदल गरजे। जिसकी आवाज़ सुन कर रजिया एकदम सहम गई और पीछे को हो गई। उसकी पीठ अब पूरी तरह से सोनू की छाती से चिपक गई थी।
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इससे सोनू का लण्ड अब उसके पजामे में फूलने लगा और वो तन कर रजिया की कमर के नीचे चुभने लगा। जिससे महसूस करके रजिया एकदम से चौंक गई। रजिया के जिस्म की गरमी को महसूस करके सोनू भी अपना आपा खोने लगा और रजिया को जब उसका लण्ड अपनी कमर में चुभता सा महसूस हुआ.. तो उसने इस तरह बैठे रहना ठीक नहीं समझा और खड़ी होने लगी.. पर इससे पहले कि रजिया खड़ी होती..
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सोनू ने अपना एक हाथ आगे ले जाकर रजिया की मांसल जांघ पर रख दिया। रजिया के पूरे बदन में करेंट सा दौड़ गया। उसने चौंकते हुए पीछे मुड़ कर सोनू की तरफ देखा और दोनों की नजरें आपस में जा टकराईं।

वक़्त मानो कुछ पलों के लिए थम गया हो, सोनू ने अपने हाथ से उसकी जांघ को मसलना चालू कर दिया,
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जिससे रजिया का हाथ फ़ौरन सोनू के हाथ के ऊपर आ गया और उसके हाथ को अपनी जांघ के ऊपर रेंगने से रोकने की कोशिश करने लगी। वो अब भी सोनू की आँखों में देख रही थी..
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जैसे कह रही हो… ना बाबू ऐसा मत करो…। इससे पहले कि रजिया कुछ और कर पाती.. सोनू ने अपना दूसरा हाथ आगे ले जाकर रजिया के बाईं चूची को दबोच लिया। रजिया की चूचियां ज्यादा बड़ी नहीं थीं। उसकी चूची लगभग सोनू के हाथ में समा गई थीं। "अई.. ये.. क्या कर रहे हो बाबू हटो..।" रजिया ने हड़बड़ाते हुए कहा।
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पर सोनू तो जैसे अपने होश में ही नहीं था.. वो एक हाथ से रजिया की चूची दबाए हुए था और दूसरे हाथ से उसकी जांघ को सहला रहा था। रजिया ना चाहते हुए भी मदहोश हुई जा रही थी।
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वो, "बस ना करो बाबू.." बड़बड़ाए जा रही थी।
तभी रजिया की मानो जैसे सांस हलक में अटक गई हो…उसकी चूत में तेज सरसराहट हुई और उसने अपनी दोनों जाँघों को भींच लिया।
क्योंकि सोनू ने अपना हाथ सरका कर उसकी चूत पर रख कर सहलाना शुरू कर दिया था।
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रजिया एकदम से हड़बड़ा गई और उठ कर खड़ी हो गई। उसने एक बार सोनू की तरफ देखा। उसकी साँसें चढ़ी हुई थीं और उसकी चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थीं। जिसे सोनू अपनी खा जाने वाली नजरों से देख रहा था।रजिया ने नजरें नीचे झुका लीं और खिड़की पास जाकर खड़ी होकर बाहर देखने लगी। उसकी साँसें अभी भी तेज चल रही थीं। तभी उसको सोनू के क़दमों की आहट अपने पास आती हुई महसूस हुई, रजिया का दिल जोरों से धड़कने लगा। सोनू रजिया के पीछे जाकर खड़ा हो गया, रजिया ने आगे सरकने की कोशिश की.. पर आगे जगह नहीं थी।
सोनू ने आगे बढ़ कर रजिया की गर्दन पर अपने दहकते होंठों को रख दिया। रजिया के मुँह से मस्ती भरी 'आह' निकल गई।
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उसकी आँखें मस्ती में धीरे-धीरे बंद होने लगीं। सोनू के हाथ फिर से उसके खुली हुई जाँघों के ऊपर आ गए और वो उसके बदन को सहलाने लगा। रजिया के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
सोनू का खड़ा लण्ड रजिया के लहँगे के ऊपर उसकी गाण्ड के छेद पर दस्तक देने लगा। जिसे महसूस करके रजिया का पूरा बदन मस्ती में कांपने लगा। उसकी चूत की फाँकें फड़फड़ाने लगीं।
रजिया ने सोनू को पीछे धकेला और तेजी से चलते हुए फिर उसी घास के ढेर के पास आ गई और झुक कर वहाँ पड़े कम्बल को बिछा दिया। सोनू खिड़की पास खड़ा हैरान सा रजिया की तरफ देख रहा था।
कंबल बिछाने के बाद रजिया उस पर खड़ी हो गई। उसने एक बार सोनू की ओर देखा और फिर अपने नज़रें नीचे कर लीं और अपने कुर्ते को पकड़ कर एक झटके से अपने बदन से अलग कर फेंक दिया, उसने नीचे कुछ नहीं पहना हुआ था।
आग की रोशनी में उसका नंगा जिस्म चमक उठा.. उसकी चूचियां एकदम कसी हुई और तनी हुई थीं। दो बच्चे पैदा करने के बाद भी उसकी चूचियां ज़रा भी ढीली नहीं पड़ी थीं।
फिर उसने एक बार सोनू की तरफ देखा और कम्बल पर लेट गई। सोनू ये सब देख कर एकदम से पागल हो गया.. उसने अपना पजामा उतार कर एक तरफ फेंक दिया और रजिया की तरफ बढ़ा।
सोनू का 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लण्ड देख रजिया के दिल के धड़कनें बढ़ गईं.. उसने अपने लहँगे को अपनी कमर से ऊपर उठा लिया। उसकी झांटों से भरी चूत सोनू की आँखों के सामने आ गई।
सोनू सीधा जाकर रजिया की टांगों के बीच में बैठ गया। लण्ड को अपनी चूत में लेने के चाहत के कारण रजिया की टाँगें खुद ब खुद फ़ैल गईं।
सोनू ने उसकी जाँघों को घुटनों से मोड़ कर अपने लण्ड के सुपारे को रजिया की चूत के छेद पर टिका दिया। रजिया की चूत ने सोनू के गरम लण्ड के सुपारे को महसूस करते ही पानी बहाना शुरू कर दिया। सोनू ने एक बार रजिया की मदहोशी भरी आँखों में देखा। जैसे वो लौड़ा घुसेड़ने की उससे इजाज़त लेना चाह रहा हो।
रजिया ने काँपती हुई आवाज़ में कहा- आह.. बाबू रुक क्यों गए.. चोदो ना मुझे.. चोद नाअ साले..।
सोनू ने मुस्कुराते हुए एक ज़ोरदार धक्का मारा। सोनू का आधे से ज्यादा लण्ड उसकी चूत में पेवस्त हो गया।
"आह्ह.. ओह्ह तू तो बड़ा चोदू है…रेई.. पहली चोट में ही हिला कर रख दिया..आह…।"
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सोनू ने एक और जोरदार ठाप मारी और उसका पूरा लण्ड रजिया की चूत में समा गया। मस्ती में रजिया की टाँगें और उँची हो गईं और वो सोनू की पीठ पर अपनी बाँहों को कस कर अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछाल कर सोनू का लण्ड लेने लगी। रजिया की चूत पूरी पनिया गई थी.. जिससे सोनू का लण्ड चिकना होकर तेज़ी से उसकी चूत में अन्दर-बाहर हो रहा था।
रजिया ने मस्ती में अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालते हुए कहा- आह ह.. छोड़ बाबू मुझे..अए आह.. बहुत मोटा लौड़ा है तेरा..अ ह.. पूरा अन्दर तक.. जा रहा है.. ओह हाआँ चोद मुझे ऐसे ही..ईए माआ मर..गइई..।
सोनू ने हाँफते हुए कहा- आह्ह.. आह यकीन नहीं होता तूने इस चूत से दो बच्चों को बाहर निकाला है साली.. बहुत कसी है तेरी चूत ओह..।
रजिया- हाआँ… तो फाड़ दे..ईए ना मेरी ..भोसड़ी को आह्ह..।
सोनू झुक कर रजिया की एक चूची को मुँह में भर लिया और उसकी चूची को ज़ोर-ज़ोर से चूसते हुए पूरी रफ़्तार के साथ धक्के लगाने लगा। रजिया भी मस्ती में अपनी चूत को ऊपर की तरफ उछाल कर सोनू का लण्ड अपनी चूत की गहराईयों में पूरा ले रही थी।
सोनू तेज़ी से धक्के लगाते हुए झड़ने के करीब पहुँच गया था।
"आह.. साली देख अब मेरा लण्ड पानी छोड़ने वाला है..।"
"आ..ह.. तो निकाल ना साले.. मेरी चूत में निकाल दे.. बरसों से प्यासी है.. मेरी बुर आह.. निकाल साले..।"

सोनू के लण्ड ने रजिया की चूत की चूत में वीर्य की बौछार कर दी.. रजिया भी आँखें बंद करके सोनू के लण्ड से निकाल रहे गरम वीर्य को महसूस करके झड़ने लगी।
 
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सोनू ने झट से अपना हाथ रजिया की कमर से हटा लिया। इतने में बाहर जोरों से बदल गरजे। जिसकी आवाज़ सुन कर रजिया एकदम सहम गई और पीछे को हो गई। उसकी पीठ अब पूरी तरह से सोनू की छाती से चिपक गई थी।
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इससे सोनू का लण्ड अब उसके पजामे में फूलने लगा और वो तन कर रजिया की कमर के नीचे चुभने लगा। जिससे महसूस करके रजिया एकदम से चौंक गई। रजिया के जिस्म की गरमी को महसूस करके सोनू भी अपना आपा खोने लगा और रजिया को जब उसका लण्ड अपनी कमर में चुभता सा महसूस हुआ.. तो उसने इस तरह बैठे रहना ठीक नहीं समझा और खड़ी होने लगी.. पर इससे पहले कि रजिया खड़ी होती..
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सोनू ने अपना एक हाथ आगे ले जाकर रजिया की मांसल जांघ पर रख दिया। रजिया के पूरे बदन में करेंट सा दौड़ गया। उसने चौंकते हुए पीछे मुड़ कर सोनू की तरफ देखा और दोनों की नजरें आपस में जा टकराईं।
वक़्त मानो कुछ पलों के लिए थम गया हो, सोनू ने अपने हाथ से उसकी जांघ को मसलना चालू कर दिया,
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जिससे रजिया का हाथ फ़ौरन सोनू के हाथ के ऊपर आ गया और उसके हाथ को अपनी जांघ के ऊपर रेंगने से रोकने की कोशिश करने लगी। वो अब भी सोनू की आँखों में देख रही थी..
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जैसे कह रही हो… ना बाबू ऐसा मत करो…। इससे पहले कि रजिया कुछ और कर पाती.. सोनू ने अपना दूसरा हाथ आगे ले जाकर रजिया के बाईं चूची को दबोच लिया। रजिया की चूचियां ज्यादा बड़ी नहीं थीं। उसकी चूची लगभग सोनू के हाथ में समा गई थीं। "अई.. ये.. क्या कर रहे हो बाबू हटो..।" रजिया ने हड़बड़ाते हुए कहा।
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पर सोनू तो जैसे अपने होश में ही नहीं था.. वो एक हाथ से रजिया की चूची दबाए हुए था और दूसरे हाथ से उसकी जांघ को सहला रहा था। रजिया ना चाहते हुए भी मदहोश हुई जा रही थी।
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वो, "बस ना करो बाबू.." बड़बड़ाए जा रही थी।
तभी रजिया की मानो जैसे सांस हलक में अटक गई हो…उसकी चूत में तेज सरसराहट हुई और उसने अपनी दोनों जाँघों को भींच लिया।
क्योंकि सोनू ने अपना हाथ सरका कर उसकी चूत पर रख कर सहलाना शुरू कर दिया था।
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रजिया एकदम से हड़बड़ा गई और उठ कर खड़ी हो गई। उसने एक बार सोनू की तरफ देखा। उसकी साँसें चढ़ी हुई थीं और उसकी चूचियां ऊपर-नीचे हो रही थीं। जिसे सोनू अपनी खा जाने वाली नजरों से देख रहा था।रजिया ने नजरें नीचे झुका लीं और खिड़की पास जाकर खड़ी होकर बाहर देखने लगी। उसकी साँसें अभी भी तेज चल रही थीं। तभी उसको सोनू के क़दमों की आहट अपने पास आती हुई महसूस हुई, रजिया का दिल जोरों से धड़कने लगा। सोनू रजिया के पीछे जाकर खड़ा हो गया, रजिया ने आगे सरकने की कोशिश की.. पर आगे जगह नहीं थी।
सोनू ने आगे बढ़ कर रजिया की गर्दन पर अपने दहकते होंठों को रख दिया। रजिया के मुँह से मस्ती भरी 'आह' निकल गई।
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उसकी आँखें मस्ती में धीरे-धीरे बंद होने लगीं। सोनू के हाथ फिर से उसके खुली हुई जाँघों के ऊपर आ गए और वो उसके बदन को सहलाने लगा। रजिया के पूरे बदन में मस्ती की लहर दौड़ गई।
सोनू का खड़ा लण्ड रजिया के लहँगे के ऊपर उसकी गाण्ड के छेद पर दस्तक देने लगा। जिसे महसूस करके रजिया का पूरा बदन मस्ती में कांपने लगा। उसकी चूत की फाँकें फड़फड़ाने लगीं।
रजिया ने सोनू को पीछे धकेला और तेजी से चलते हुए फिर उसी घास के ढेर के पास आ गई और झुक कर वहाँ पड़े कम्बल को बिछा दिया। सोनू खिड़की पास खड़ा हैरान सा रजिया की तरफ देख रहा था।
कंबल बिछाने के बाद रजिया उस पर खड़ी हो गई। उसने एक बार सोनू की ओर देखा और फिर अपने नज़रें नीचे कर लीं और अपने कुर्ते को पकड़ कर एक झटके से अपने बदन से अलग कर फेंक दिया, उसने नीचे कुछ नहीं पहना हुआ था।
आग की रोशनी में उसका नंगा जिस्म चमक उठा.. उसकी चूचियां एकदम कसी हुई और तनी हुई थीं। दो बच्चे पैदा करने के बाद भी उसकी चूचियां ज़रा भी ढीली नहीं पड़ी थीं।
फिर उसने एक बार सोनू की तरफ देखा और कम्बल पर लेट गई। सोनू ये सब देख कर एकदम से पागल हो गया.. उसने अपना पजामा उतार कर एक तरफ फेंक दिया और रजिया की तरफ बढ़ा।
सोनू का 8 इंच लंबा और 3 इंच मोटा लण्ड देख रजिया के दिल के धड़कनें बढ़ गईं.. उसने अपने लहँगे को अपनी कमर से ऊपर उठा लिया। उसकी झांटों से भरी चूत सोनू की आँखों के सामने आ गई।
सोनू सीधा जाकर रजिया की टांगों के बीच में बैठ गया। लण्ड को अपनी चूत में लेने के चाहत के कारण रजिया की टाँगें खुद ब खुद फ़ैल गईं।
सोनू ने उसकी जाँघों को घुटनों से मोड़ कर अपने लण्ड के सुपारे को रजिया की चूत के छेद पर टिका दिया। रजिया की चूत ने सोनू के गरम लण्ड के सुपारे को महसूस करते ही पानी बहाना शुरू कर दिया। सोनू ने एक बार रजिया की मदहोशी भरी आँखों में देखा। जैसे वो लौड़ा घुसेड़ने की उससे इजाज़त लेना चाह रहा हो।
रजिया ने काँपती हुई आवाज़ में कहा- आह.. बाबू रुक क्यों गए.. चोदो ना मुझे.. चोद नाअ साले..।
सोनू ने मुस्कुराते हुए एक ज़ोरदार धक्का मारा। सोनू का आधे से ज्यादा लण्ड उसकी चूत में पेवस्त हो गया।
"आह्ह.. ओह्ह तू तो बड़ा चोदू है…रेई.. पहली चोट में ही हिला कर रख दिया..आह…।"
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सोनू ने एक और जोरदार ठाप मारी और उसका पूरा लण्ड रजिया की चूत में समा गया। मस्ती में रजिया की टाँगें और उँची हो गईं और वो सोनू की पीठ पर अपनी बाँहों को कस कर अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछाल कर सोनू का लण्ड लेने लगी। रजिया की चूत पूरी पनिया गई थी.. जिससे सोनू का लण्ड चिकना होकर तेज़ी से उसकी चूत में अन्दर-बाहर हो रहा था।
रजिया ने मस्ती में अपनी गाण्ड को ऊपर की ओर उछालते हुए कहा- आह ह.. छोड़ बाबू मुझे..अए आह.. बहुत मोटा लौड़ा है तेरा..अ ह.. पूरा अन्दर तक.. जा रहा है.. ओह हाआँ चोद मुझे ऐसे ही..ईए माआ मर..गइई..।
सोनू ने हाँफते हुए कहा- आह्ह.. आह यकीन नहीं होता तूने इस चूत से दो बच्चों को बाहर निकाला है साली.. बहुत कसी है तेरी चूत ओह..।
रजिया- हाआँ… तो फाड़ दे..ईए ना मेरी ..भोसड़ी को आह्ह..।
सोनू झुक कर रजिया की एक चूची को मुँह में भर लिया और उसकी चूची को ज़ोर-ज़ोर से चूसते हुए पूरी रफ़्तार के साथ धक्के लगाने लगा। रजिया भी मस्ती में अपनी चूत को ऊपर की तरफ उछाल कर सोनू का लण्ड अपनी चूत की गहराईयों में पूरा ले रही थी।
सोनू तेज़ी से धक्के लगाते हुए झड़ने के करीब पहुँच गया था।
"आह.. साली देख अब मेरा लण्ड पानी छोड़ने वाला है..।"
"आ..ह.. तो निकाल ना साले.. मेरी चूत में निकाल दे.. बरसों से प्यासी है.. मेरी बुर आह.. निकाल साले..।"
सोनू के लण्ड ने रजिया की चूत की चूत में वीर्य की बौछार कर दी.. रजिया भी आँखें बंद करके सोनू के लण्ड से निकाल रहे गरम वीर्य को महसूस करके झड़ने लगी
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थोड़ी देर बाद सोनू रजिया के ऊपर से उठ गया और अपना पजामा पहनने लगा। रजिया भी खड़ी हो गई और अपनी जाँघों को फैला कर अपनी चूत को देखने लगी। सोनू का वीर्य उसकी चूत से निकल कर उसकी जाँघों को भिगो रहा था। रजिया ने एक नज़र सोनू की तरफ डाली और जैसे ही सोनू ने उसकी तरफ देखा, उसने शरमा कर नजरें झुका लीं।
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रजिया ने शरमाते हुए कहा- छोरे.. तेरे लण्ड ने सच में मेरी चूत की तबियत खुश कर दी
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.. कितने दिन और है यहाँ पर…?
सोनू- शायद 3-4 दिन..।
रजिया- फिर मिलोगे मुझे….? मेरी चूत अब तेरा लण्ड खाए बिना नहीं मानेगी।
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सोनू- कोशिश करूँगा.. अगर वक्त निकाल पाया तो..।
रजिया ने बाहर देखा.. बारिश अभी भी हो रही थी, पर अब सिर्फ़ बूँदा-बांदी थी।
रजिया- अब तू घर जा सकता है.. बारिश भी धीमी पड़ गई है।
सोनू- हाँ.. वो तो देख रहा हूँ।
उसके बाद दोनों अपने-अपने ठिकानों की तरफ चल पड़े। जब सोनू घर पहुँचा तो रजनी उसके लिए बहुत परेशान थी। सोनू ने उससे बताया कि वो बारिश की वजह से रुक गया था। रजनी ने उससे ऊपर जाने के लिए कहा और खुद चाय बना कर सोनू के लिए ऊपर कमरे में ले आई। चाय पीते हुए दोनों आपस में बातें करने लगे।
दूसरी तरफ बेला के घर पर आसपास की औरतें बिंदिया से मिल कर अपने-अपने घर जा चुकी थीं। अब बेला रात के खाने की तैयारी कर रही थी। उसका मन अपनी बेटी के उदास चेहरे को देख कर बहुत दु:खी था और वो अपनी बेटी के दु:ख का कारण जानना चाहती थी।
शाम को रघु अपने ससुर के साथ घूमने के लिए बाहर चला गया.. मौका देख कर बेला अपनी बेटी बिंदिया के पास जाकर बैठ गई और उसके चेहरे को अपने हाथों में लेकर ऊपर उठा कर उसकी आँखों में देखते हुए बोली।
बेला- क्या बात है बेटी.. मैं देख रही हूँ… जब तू आई है.. तेरा चेहरा लटका हुआ है। जरूर कोई बात हुई है तेरे मायके में.. सच-सच बता।
बिंदिया ने अपनी माँ की बात सुन कर घबराते हुए कहा- नहीं माँ.. ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, मैं बहुत खुश हूँ.. तुम बेकार ही परेशान हो रही हो।
बेला- देख बेटा… मैं तेरी माँ हूँ और तुम मुझसे कुछ नहीं छुपा सकतीं… बता ना क्या बात है…?
बिंदिया- वो माँ वो….।
बिंदिया को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि जो उसके साथ हुआ.. वो अपनी माँ को बताए या नहीं कहे।
बेला- हाँ.. बोल बेटा, मुझसे डर नहीं.. आख़िर मैं तेरी माँ हूँ.. तू अगर अपना दुख-सुख मुझसे नहीं कहेगी तो किससे कहेगी..?
बिंदिया- वो माँ कल रात को….।
बेला- हाँ.. बोल बेटा क्या हुआ कल रात को..?
बिंदिया- वो माँ कल रात को कुछ नहीं हुआ.. वो नाराज़ होकर कमरे से बाहर चले गए।
बेला ने परेशान होते हुए कहा- क्यों क्या हुआ.. कहीं दामाद जी में तो कोई कमी…।
बिंदिया ने अपनी माँ को बीच में टोकते हुए कहा- नहीं माँ… दरअसल मैं कल रात दर्द सहन नहीं कर पाई और वो मुझसे नाराज़ होकर कमरे से बाहर चले गए।
बेला- ओह्ह.. अच्छा देख बेटा, पहली बार हर औरत को ये दर्द तो सहना पड़ता है.. इसके सिवा और कोई चारा भी नहीं… बाद में तुम्हें ठीक लगने लगेगा।
बिंदिया- माँ तुम समझ नहीं रही हो..।
बेला- तो फिर खुल कर बता ना.. क्या हुआ।
बिंदिया- वो माँ अब कैसे बोलूँ….।
बेला- देख बेटा जब लड़की बड़ी हो जाती है। तो वो अपनी माँ की सहेली बन जाती है… तू मुझसे किसी भी तरह की बात कर सकती है.. बोल ना क्या बात है।
बिंदिया- वो माँ उनका 'वो' बहुत बड़ा है।
बेला बिंदिया की बात सुन कर थोड़ा शर्मा गई और नीचे ज़मीन की ओर देखते हुए बोली- तू किस्मत वाली है बेटी.. ऐसा पति नसीब से मिजया है… थोड़ा सबर रख कर काम लेना, सब ठीक हो जाएगा।
ये कह कर बेला बाहर आ गई और खाना तैयार करने लगी.. खाना बनाते हुए उसके दिमाग़ में अपनी बेटी की कही बातें घूम रही थीं।
"क्या जो बिंदिया कह रही थी, वो सच है…? क्या रघु का सच मैं इतना बड़ा लण्ड है
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कि बिंदिया सुहागरात को उसका लण्ड झेल नहीं पाई। फिर उसने अपने सर को झटक दिया कि ये मैं क्या सोच रही हूँ..वो मेरे सग़ी बेटी का सुहाग है.. मुझे उसके बारे में ऐसा नहीं सोचना चाहिए।"
रात ढल चुकी थी और बेला अपने पति और दामाद रघु को खाना परोस रही थी.. उसका ध्यान बार-बार रघु के पजामे की तरफ जा रहा था.. यहाँ से रघु का पजामा थोड़ा फूला हुआ था। वो चाह कर भी वहाँ देखने से अपने आप को रोक नहीं पा रही थी और ये बात रघु जान चुका था कि उसकी सास उसके लण्ड की तरफ चाहत भरी नज़रों से देख रही है।
बेला का पति तो बाहर से शराब पी कर नशे में टुन्न होकर आया था और उसकी पत्नी की नजरें कहाँ पर है, वो इस बारे में सोच भी नहीं सकता था।
जब बेला खाना परोसते हुए.. रघु के आगे झुकी, तो उसका आँचल उसके कंधों से खिसक गया और उसकी चूचियों की घाटी रघु की आँखों के सामने तैर गई।
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बेला ने शरमाते हुए अपना पल्लू ठीक किया और रघु की आँखों में देख कर मुस्कुराते हुए बाहर चली गई।
बेला को थोड़ा सा अजीब सा भी लग रहा था कि उसका दामाद उसकी चूचियों को खा जाने वाली नज़रों से देख रहा था.. ये सोच कर उसके होंठों पर मुस्कान फ़ैलती जा रही थी।
खाना खाने के बाद बेला का पति बाहर वाले कमरे में जाकर सो गया। बेला ने अपनी बेटी-दामाद और अपने लिए अन्दर वाले कमरे में नीचे बिस्तर लगा दिया। तीनों नीचे बिछे बिस्तरों पर लेट गए।
बिंदिया अपनी माँ और पति रघु दोनों के बीच मैं सो रही थी और काफ़ी देर तीनों ऐसे ही लेटे हुए थे। नींद तीनों की आँखों से कोसों दूर थी और सब के मन में अलग ही कसमकस थी।
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रघु का लण्ड ये सोच कर तना हुआ था कि उसकी सास जैसे गदराई हुई औरत उसके लण्ड की तरफ कैसे हसरत भरी नज़रों से देख रही थी। दूसरी ओर बिंदिया अपने साथ हुए इस अन्याय के बारे में सोच रही थी कि अब उसकी जिंदगी कैसे गुज़रेगी
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और तीसरी तरफ बेला की चूत ये सोच-सोच कर पानी बहा रही थी कि उसकी बेटी की चूत कितनी किस्मत वाली है कि उसके पति का लण्ड इतना बड़ा है।
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ये सोचते हुए उसके दिमाग़ में रघु के लण्ड के एक छवि सी बन गई थी और उसकी चूत कामरस छोड़ते हुए भट्टी सी दहक रही थी।
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