भाग 16
उस दिन के बाद चंदू और सुमन के चुदाई का सिलसिला सुरु हो चूका था, चंदू जैसे मौका मिलता वैसे कभी दोपहर में तो कभी रात को आके सुमन की चूत और गांड चोद देता, सुमन हर 4 5 वे दिन मिलने वाली चुदाई की वजह से बहुत खुश थी, लेकिन उनकी ये चोरी कभी ना कभी तो पकडी जाने ही वाली थी, और हुआ भी ऐसे ही,
एक रात करीब 1 बजे माधवी मोबाइल में वीडियो देख के चूत में उंगली कर रही थी, जब उसका काम हुआ तो वो बाथरूम जाने के लिए बाहर गयी, जब वो अपना काम निपटा के बाहर आयी तो उसने देखा की सुमन पीछे का दरवाजा खोल के किसी को अंदर ले रही थी, माधवी ने देखा की वो कोई चंदू था, माधवी को यकीं नहीं हो रहा था अपनी आँखों पे, वो थोडा छुपके देखने लगी, चंदू और सुमन जल्दी जल्दी सुमन के कमरे में चले गये, माधवी का दिल बहुत जोरो से धड़कने लगा, वो क्या करे उसे कुछ समझ नहीं रहा था,
वो अपने कमरे में जाके सोचने लगी की वो क्या करे, बाबा को बता दे, नहीं बाबा को बता दिया तो वो बुआ को बहुत पिटेंगे, उसने बहुत सोचने के बाद ये तय किया की वो खुद सुमन से बात करेगी, और वैसे भी वो नेट पे सेक्स से रिलेटेड इतनी बाते पढ़ने और देखने के बाद वो इतनी समझदार तो हो गयी थी की ये बात वो समझ गयी की सुमन ऐसा क्यू कर रही है,
वो रूम में इधर से उधर घूम रही थी, वो सोच रही थी की वो दोनों क्या कर रहे होंगे, जाके देखु या नहीं, ऐसे ही आधा घंटा गुजर गया, आखिर माधवी से रहा नहीं गया, वो धीरे धीरे सुमन के कमरे की और चली गयी, कमरे का दरवाजा थोडा खुल्ला था, उसने अंदर देखा तो सुमन और चंदू वहा नहीं थे, सुमन का बेटा सो रहा था, माधवी को पता चल गया की वो दोनों छत की तरफ होंगे क्यू की ऊपर जाने वाली सीढिया सुमन के कमरे के बाजु में थी, वो बिना आवाज किये सीढ़ियों की तरफ बढ़ने लगी, छत पे खुलने वाले दरवाजे के पास आके वो रुक गयी, उसने देखा की सुमन निचे पैर ऊपर करके लेटी हुई है और चंदू उसकी चूत में लंड डाल के उसे चोद रहा
माधवी ये देख के पसीना पसीना हो गयी, दोनों नंगे थे, चांदनी रात होने की वजह से उसे सब साफ दिखाई दे रहा था, वो दोनों पूरी तरह से चुदाई के आंनद में खोये हुए थे, उनका बिलकुल भी ध्यान नहीं था , माधवी पहली बार सचमुच की चुदाई देख रही थी, और ये मोबाइल पे से कही ज्यादा हॉट थी, उसने थोड़ी देर पहले ही अपनी चूत को उंगली से रगड़ पानी निकाला था, पर सामने का सिन देख के उसका हाथ अपने आप ही अपनी चूत पे चला गया
उपर से उनकी बाते आग में घी डालने का काम कर रही थी,
सुमन :- अह्ह्ह्ह्ह चंदू उफ्फ्फ ये तेरा छत पे आके चुदाई करने का आईडिया कमाल का है, उफ्फ्फ्फ्फ़ बहुत मजा आ रहा है ऐसे खुले में लंड लेने के,
चंदू :- अह्ह्ह्ह हा ऐसे मौसम में खुले में चुदाई का मजा ही कुछ और होता है,
सुमन :- अह्ह्ह्ह स्सस्सधीरे कर जालिम उफ्फ्फ्फ़ तेरा इतना लंबा लंड है सीधे पेट के अंदर धक्के लगते है,
चंदू :- अह्ह्ह्ह साली अभी तक नखरे करती है...कितनी बार चोद चूका हु..अभी तक पूरी खुल गयी है तेरी चूत स्सस्सस्स
सुमन :- अह्ह्ह्ह उम्म्म्म ऐसे ही बोल रही हु रे उफ्फ्फ्फ्फ़ चोद अह्ह्ह और तेज अह्ह्ह्ह्ह स्स्स्स्स् उम्म्म्म्म्म अह्ह्ह्ह्ह
चंदू :- अह्ह्ह्ह अब तू ऊपर से आजा स्स्स्स्स्
चंदू निचे लेट जाता है, सुमन उसके ऊपर आके अपनी चूत में उसका लंड लेके अपनी गांड ऊपर निचे हिलाके लंड को अंदर बाहर करने लगती
ये वो पल था जब माधवी चंदू का पूरा लंड देखती है, चंदू का लंड देख के माधवी के चूत में पानी बाढ़ सी आ जाती है, उसका लंड सुमन की चूत के रस से भीगा हुआ था, इस वजह से वो उसके ऊपर चांदनी पड़ने से वो चमक रहा था, उसका लंड देख माधवी और भी उत्तेजित हो जाती है,
और अब सुमन की चूत में अंदर बाहर हो रहा लंड देख के तो पागल सी हो जाती है, उसके पाँव थर थर कापने लगे थे, वो पसीना पसीना हो चुकी थी, उससे अब वो सब देखा नहीं जा रहा था, ऊपर से चूत भी बहुत गीली हो गयी थी, वो वह से चुपचाप निकल गयी और अपने कमरे जाके बेड पर लेट गयी, वो बहुत गरम हो चुकी थी, उसकी आँखों के सामने चूत में अंदर बाहर हो रहा लंड ही घूम रहा था, असली चुदाई क्या होती है वो आज पहली बार देख रही थी, सागर और प्रियंका को भी उसने देखा था मगर ये कुछ ज्यादा ही था, वो वापस से अपनी चूत सहलाने लगी, और तब तक सहलाती रही जबतक वो शांत नहीं हुई, *
दूसरे दिन उसे सुमन से बात करनी थी मगर मौका ही नहीं मिला, वो स्कूल चली गयी, शाम को जब वो वापस लौटी तो उसे मौका मिल ही गया,
वो सुमन को अपने कमरे में लेके गयी और उसे पूछने लगी, जब माधवी ने उसे बताया की कल रात को उसने चंदू को और उसे चुदाई करते देख लिया है तो उसके पैरो तले जमीन खिसक गयी, उसके चेहरे का रंग सफ़ेद पड़ गया, वो बहुत घबरा गयी, वो माधवी से हाथ जोड़ के बिनती करने लगी की जसवंत को कुछ ना बताय, जब माधवी ने उसकी हालात देखी तो उसे उसपे दया आने लगी,
माधवी :- ठीक है बुआ मैं नहीं बताउंगी किसीको लेकिन आपको ऐसा करने की क्या जरुरत थी,
सुमन :- तो क्या करती मैं तुम्हारे फूफा साल में एक बार घर आते है, मेरी भावनाओ को कण्ट्रोल करना मुश्किल हो गया था, ऐसे में चंदू ने मेरी भावनाओ को भड़का दिया तो मैं फिसल गयी और फिर फिसलती चली गयी, तू ही बता ...तू भी तो अब जवान हो गयी है...तुझे भी लगता होगा की कोई प्यार करने वाला हो...
माधवी :- न..नहीं..मु..मुझे ऐसा कुछ नहीं लगता..
सुमन :- मुझे पता है मैं भी तुम्हारि उम्र से गुजर चुकी हु...
माधवी :- वो सब छोडो..लेकिन क्या अब भी चंदू चाचा के साथ ये सब ऐसे ही सुरु रखने वाली हो,
सुमन :- देख माधवी अगर तू इसमें मेरा साथ दोगी तो तुम्हारा बहुत अहसान होगा मुझपे,
माधवी :- बुआ आप ये कैसी बाते कर रहे हो,
सुमन :- देख माधवी मैं यहाँ अब कुछ महीने ही हु..उसके बाद तो मैं चली जाउंगी तब तक मुझे थोडा सुख मिल रहा है..तो प्लीज तू किसी को मत बताना...
माधवी :- लेकिन बुआ ये गलत है..
सुमन :- मैं अब सही गलत के बारे में सोचना नहीं चाहती.....
माधवी :- लेकिन मैं कैसे आप का साथ दू,
सुमन :- बस किसी को मत बताना....बाकि मैं संभाल लुंगी..
माधवी :- बुआ देखो मैं ये किसी को नहीं बताउंगी लेकिन फिर भी आपसे एक बात कहना चाहती हु की अगर बाबा को पता चल गया तो वो आपको जान से मार देंगे..बाकि आपकी मर्जी,
माधवी को अपने दिल के किसी कोने में लग रहा था की सुमन अपने जिस्म के हाथो मजबूर है..इसीलिए उसने उससे किसी को नहीं बताने को वादा किया था,
माधवी ने जब ये बात प्रियंका को बताई तो प्रियंका को भी पहले झटका लगा, लेकिन एक औरत अपने जिस्म की प्यास के आगे कैसे मजबूर हो जाती है ये वो भलीभांति जानती थी इसलिए उसने माधवी कहा की सुमन बुआ को जो करना है करने दो, माधवी को जब प्रियंका के तरफ से भी ऐसा जवाब मिला तो वो भी सुमन बुआ के इस फैसले के प्रति थोड़ी सहज हो गयी, और सुमन के साथ उसका व्यवहार पहले जैसा हो गया ...या शायद अब उनके रिश्ते में एक खुलापन आ गया था, अब वो एक दूसरे से खुलके मजाक करने लगे थे, माधवी को भी सुमन से उसकी चुदाई के किस्से सुनने मिलने लगे थे, कुल मिला के सुमन अब खुलके मजे कर रही थी,
लेकिन यहाँ प्रभा की गाडी किसी पैसेंजर ट्रेन की तरह चल रही थी, कभी लगता की रफ़्तार पकड़ चुकी है तो कभी एक ही जगह पे घण्टो खड़ी है,
ऐसे तो सागर और प्रभा के बिच की दुरिया काफी कम हो गयी थी, लेकिन प्रभा के इस जिद्द की वजह से की पहला कदम सागर बढ़ाये उन दोनों में अब तक कुछ हो नहीं पाया था, भले ही अब वो एक दूसरे को ग्रीन सिग्नल पे सग्नल दिए जा रहे थे पर बात नहीं बन रही थी, प्रभा हमेशा उसे उसे छूने को उकसाती रहती और जब उसका लंड खड़ा हो जाता तो उसे छु भी लेती लेकिन सागर इस असमंजस में रहता कि ये जानबुज के था या गलती से...इसलिए ओ आगे नहीं बढ़ रहा था,
लेकिन वो प्रभा को छूने का या उसके जिस्म को देखने का एक मौका भी नहीं छोड़ता, कभी प्रभा की कमर को छु लेता तो कभी उसकी चुचियो...कभी कभी उसकी गांड को...प्रभा कों सब समझ आ जाता लेकिन वो ऐसे दिखाती की कुछ हुआ ही नहीं, दोनों के ""कुछ हुआ ही नहीं"" वाले व्यवहार की वजह से ही उनकी सेक्स एक्सप्रेस स्टेशन पे ही खड़ी थी,
ऐसे ही एक डेढ़ महीना गुजर गया था, प्रभा को अब कण्ट्रोल नहीं हो रहा था, और ऊपर से रोज रोज के एक दूसरे को छूने से उसकिं प्यास अब बहुत ज्यादा बढ़ चुकी थी, उसने अब ये तय कर लिया था की वो अब ऐसा कुछ बड़ा करेगी जिससे सागर उसेपे चढ़ने से खुद को रोक ही नहीं पाये,
एक दिन शाम को सागर जब कॉलेज से लौटा तो उसने देखा की प्रभा हॉल में सोफे पे बैठी है और उसने अपने दोनों हाथो की उंगलियो में कुछ क्रीम लगा रखी है, सागर ये देख के थोडा चिंतित हो जाता है,
सागर :- क्या हुआ माँ, ये उंगिलियो में क्रीम क्यू लगा राखी है,
प्रभा :- अरे कुछ नहीं वो दूध गरम करने रखा था वो उबाल रहा था जल्दी जल्दी में उसका बर्तन उठा लिया उससे उंगलिया जल गयी,
सागर :- तो चलो डॉ को दिखा आते है,
प्रभा :- मैं जाके आ गयी...बहुत जलन हो रही थी...डॉ ने ये क्रीम दी है और बोला है की 24 घंटे तक कोई काम नहीं करना...नहीं तो जलन बढ़ जायेगी क्यू की बहुत अंदर तक जल गयी है,
सागर :- ओह्ह माँ...आप भी न थोडा ध्यान से उठाती...कोई कपडा ले लेती...
प्रभा :- अरे जल्दी जल्दी में हो गया...सॉरी बेटा आज मैं खाना नहीं बना पाऊँगी...
सागर :- कोई बात नहीं...मैं बाहर से ले आऊंगा...
प्रभा :- हा यही ठीक रहेगा...
सागर रात को खाना बाहर से ले आया, उसने अपने हाथो से प्रभा को खाना खिलाया...वो प्रभा का बहुत अच्छेसे ख्याल रख रहा था, प्रभा भी दर्द और जलन का ऐसा नाटक कर रही थी की सागर को शक भी नहीं हुआ,
जब सोने का समय आया तो प्रभा ने सागर को आवाज दी....
सागर प्रभा के रूम में जाता है...
सागर :- हा क्या हुआ माँ,
प्रभा :- वो थोडा काम था...लेकिन कैसे कहु बड़ा अजीब सा लग रहा है...
सागर :- बोलो क्या काम है, अजीब की क्या बात है, अब मेरे अलावा यहॉ कोई नहीं जो आपका काम कर सके...
प्रभा :- वो ..मैं..नहीं ठीक है जाओ तुम...
सागर :- अरे माँ बोलो भी...अब इतना भी क्या,
प्रभा :- वो..क्या है की..मुझे ..वो..मेरी ब्रा निकालनी है मुझे उसके बगैर नींद नहीं आएगी...और मुझे डॉ ने मना किया है तो...ऐसा बोल के प्रभा निचे देखने लगती है,
सागर ये सुनके थोडा चौक जाता है लेकिन प्रभा की हालत ही कुछ ऐसी थी की वो मज़बूरी में उसे ऐसा बोल रही थी, सागर को भी ये थोडा अजीब लग रहा था,
सागर :- माँ मैं कैसे, सो जाओ ना आज के दिन...
प्रभा :- अरे मैं एक घंटे से सोने की कोशिस कर रही हु...पर आदत नहीं है ना..
सागर :- मैं बाजू वाली आंटी को ले आता हु...
प्रभा :- अरे नहीं पागल टाइम देख कितना हुआ है...ठीक है रहने दे...मैं सोने की कोशिस करती हु...जा तू सो जा...मुझे नींद आयी तो ठीक नहीं तो क्या कर सकते है,
सागर :- अरे नहीं माँ...मैं कर देता हु,
मन ही मन सागर भी खुश हो रहा था लेकिन थोडा नाटक कर रहा था, प्रभा की मदत के बहाने से आज उसे मौका मिल, रहा था, आज तक जिन चुचियो को वो सिर्फ दूर से देख रहा था आज नजदीक से देखने का मौका मिलने वाला था, सिर्फ देखने का ही नही थोडा बहुत छूने का भी,
सागर :- हा बोलो माँ क्या करू,
प्रभा :- ये साडी का पल्लू हटा दे..
सागर प्रभा के कहे अनुसार साडी का पल्लू हटा दिया, उसने देखे की प्रभा की बड़ी बड़ी चुचिया ब्लाउज में कसी हुई थी, उसकी उभरी हुई चुचियो को देख सागर की आँखे फटी की फटी रह गयी, उसका लंड धीरे धीरे हरकत में आने लगा था,
प्रभा ने उसकी और देखा उसे अपनी चुचियो इस तरह देखते हुए देख उसे अपना प्लान पूरा होता नजर आने लगा था,
प्रभा :- क्या हुआ, सागर,
सागर :- कुछ नहीं..कुछ नहीं...सागर थोडा हड़बड़ाता हुआ बोला,
प्रभा :- तो फिर बटन खोल दे ना...प्रभा ने मस्ती भरी अदा से कहा,
सागर ने ब्लाउज का ऊपर का बटन को उंगली से पकड़ा और खोलने लगा, प्रभा का ब्लाउज डीप नेक का था, उसका ऊपर का बटन बिलकुल उसके चुचियो की बिच की दरार जहा सुरु होती है वाही पे था, सागर की उंगलियो का कुछ हिस्सा वहा छु गया, प्रभा के पुरे शरीर में सुरसुरी सी दौड़ गयी, सागर का हाल भी कुछ ऐसा ही था, उसने पहले भी बहुत बार प्रभा की चुचियो को छुआ था मगर ये पहली बार था की वो उसका स्किन टू स्किन हुआ था, उसके हाथ कापने लगे थे, उसकी नजरे लगातार ब्लाउज से दिखती प्रभा की चुचियो पे थी, प्रभा ये सब देख रही थी, सागर ने ऊपर का बटन खोल दिया था, फिर बिच का बटन खोलने लगा, लेकिन इस बार बटन खोलने के लिए *उसने अपने दोनों हाथ पुरे इस्तमाल, किये, उसने अपनी हथेलिया पूरी तरह से प्रभा की चुचियो से चिपका दी थी,
ये देख प्रभा की आह निकल गयी लेकिन उसने उसे दबा लिया, जैसे ही उसने आखरी बटन खोला और ब्लाउज को अलग किया उसकी आँखों के सामने प्रभा की आधी नंगी चुचिया थी, प्रभा की सफ़ेद रंग की ब्रा बहुत ही सेक्सी थी, ब्रा ने सिर्फ अब प्रभा के निप्प्ल्स और निचला हिस्सा ढका हुआ था, गोरी गोरी और एकदम कसी हुई चुचिया देख के सागर के होश उड़ गये, उसकी नजरे एक पल के लिए भी वो उनसे हटा नहीं पा रहा था, उसे इस, बात का भी ध्यान नहीं था की प्रभा उसे देख रही थी, उसका लंड अब अपने असली अवतार में आ गया था, प्रभा उसे देख रही थी और खुश हो रही थी,
प्रभा :- क्या हुआ सागर, *
सागर :- हा..क्या,
सागर चौकते हुए प्रभा की तरफ देख के बोला,
प्रभा :- पीछे से ब्रा खोल दे और मेरे हाथो से निकाल दे फिर टॉवल लपेट देना...मैं ऐसे ही टॉवल लपेट के सो जाउंगी,
सागर :- ठीक है....
सागर प्रभा के पीछे गया और उसने ब्रा के हुक खोल दिए, प्रभा गोरी चिकनी नंगी पीठ देख सागर हैरान था, उसकी स्किन किसी 22 25 साल की लड़की की तरह चमक रही थी, सागर ने टॉवल लिया और लपेट दिया, *जब वो टॉवल का आखरी हिस्सा दबाने के लिए प्रभा के सामने आया तो प्रभा ने *अपनी चुचिया ऊपर की और उठाते हुए उसे इशारे से कहा की यहाँ दबा दे,
सागर ने वो हिस्सा बिलकुल चुचियो के बिच वाली दरार में फसा दिया, फसाते वक़्त उसने जीतना हो सके उतना अंदर तक हाथ डालके *चुचियो को छुआ, प्रभा अब मदमस्त हो चुकी थी, उसकी चूत में पानी के फवारे छूटने लगे थे,
प्रभा :- ये ब्रा को निचे खीच ले...
सागर ने देखा ब्रा की स्ट्रिप निचे लटक रही थी उसने वो झटके से खीच ली, और उसने वो ब्रा साइड में रख दी,
सागर :- माँ तुमने फिर से ब्लाउज क्यू नहीं पहना,
प्रभा :- ठीक है ना मैं अब सो जाउंगी ऐसे ही...प्रभा जानती थी सागर ऐसे क्यू पूछ रहा है...वो ब्लाउज पहनाते हुए फिर से उसकी चुचियो को छूना चाहता है, लेकिन प्रभा के दिमाग में कुछ और ही था,
सागर :- ठीक है माँ...अब तुम सो जाओ...
प्रभा :- सागर एक और काम है...
सागर ये सुनके रुक गया और ख़ुशी खशी पूछने लगा....
सागर :- हा बोलो...
प्रभा :- वो मुझे न बहुत देर से बाथरूम जाना था...
सागर :- तो चलो मैं दरवाजा खोल देता हु...
प्रभा :- बात वो नहीं है...मैंने अंदर निक्कर पहनी है, अगर पहनी नहीं होती तो कोई प्रॉब्लम नहीं थी, क्या तुम उसे उतार दोगे,
उफ्फ्फ्फ्फ़ सागर को ये सुनके चक्कर सा आने लगा, उसकी माँ उसे उसे खुद ही उसकी निक्कर उतारने को कह रही थी, सागर ने खुद को संभाला,
सागर :- ठीक है माँ जैसा आप कहो...
सागर निचे *घुटनो पे बैठ गया और साडी के अंदर हाथ डालने लगा, प्रभा की चिकनी सुडोल जांघो के ऊपर से हाथ घुमाते हुए उसकी निक्कर तलाशने लगा, प्रभा ने आज जानबुज के पतली स्ट्रिप वाली पॅंटी पहनी थी, सागर का हाथ उसकी जांघ और गांड के करीब घूम रहा था, प्रभा ये सब सहन नहीं कर पा रही थी, वो अपना निचला होठ दातो में दबा के आँखे बंद कर अपनी सिसकिया दबा रही थी,
सागर भी मजे ले रहा था, उसने सोचा की कही प्रभा को शक ना हो जाय की वो जानबुज के उसकी जान्घो को सहला रहा है तो उसने आखिर निक्कर को पकड़ के निचे करने लगा और फिर प्रभा के पैरो से निकाल लिया, और बाजू में रख दी,
प्रभा :- थैंक यू..और सॉरी मैं तुम्हे ये सब करने को कह रही हु,
सागर :- माँ हम दोनों ही तो है यहाँ एकदूसरे का ख्याल रखने के लिए, आप बेझिझक मुझसे कह सकती हो,
सागर ने बाथरूम का दरवाजा खोला और प्रभा अंदर चली गयी, सागर वापस बेड के पास आया उसने प्रभा की निक्कर उठाई और देखने लगा, उसने देखा की प्रभा की पॅंटी चूत वाली जगह बहुत गीली थी, उसने उसे हाथ लगाया वो चिपचिपा सा पानी था,
सागर :- (मन में) उफ्फ्फ ये तो माँ की चूत का रस है, उफ्फ्फ्फ़ तो क्या माँ मेरे छूने से उत्तेजित हो गयी थी, देखु तो सही कैसी टेस्ट है...उम्म्म स्मेल तो बहुत अच्छी आ रही है...स्स्स्स्स् अह्ह्ह ...वो उसे जुबान से चाटने लगा...उम्म्म बहुत मस्त है यार अह्ह्ह्ह्ह मेरा लंड तो धड़ धड़ उड़ने लगा है अह्ह्ह्ह्ह वो अपना लंड मसलने लगा,
प्रभा बाथरूम का दरवाजा थोडा खोल के देख रही थी, उसे अपनी निकर को चाटते हुए देख उसे ऐसा लगा जैसे वो उसकी चूत चाट रहा था,
प्रभा ने सोचा अब सागर पूरी तरह से उत्तेजित हो चूका है अब वो उसे जल्द ही चोद देगा, लोहा अब बहुत गरम हो चूका है अब बस आखरी हतोडा मारने की देरी है,
*प्रभा ने अपने पेटीकोट का नाड़ा खोल दिया और दरवाजा को खटखटाया, सागर ने झट से पैंटी रख दी और दरवाजा खोल दिया, *
सागर :- ठीक है माँ अब आप सो जाओ मैं जाता हु,
प्रभा :- ठीक है...अगर कुछ लगा तो मैं फ़ोन करुँगी,
सागर :- ठीक है...
सागर अभी रूम के दरवाजे तक पहुंचा था की प्रभा ने उसे फिर से आवाज दे के रोक लिया,
प्रभा :- अरे सुन ना..एक और काम कर दे...
सागर पलट के वापस आया,
सागर :- हो बोलो...
प्रभा :- ये साडी निकाल दे ना...बड़ा अजीब लग रहा है ये टॉवल और साडी...
सागर :- ठीक है माँ...
सागर प्रभा के पास जाता है और निचे बैठ जाता है, जहा प्रभा ने साडी बाँध रखी थी वह हाथ अंदर डाला और साडी निकालने लगा, प्रभा ने साडी एकदम *नाभि के निचे चूत से थोडा ऊपर बाँध रखी थी, सागर ने जब हाथ अंदर डाला तो उसके हाथ को प्रभा के चूत के बाल लग रहे थे,
सागर ने जैसे ही साडी खोली वैसे ही प्रभा का पेटीकोट भी निचे गिर गया और सागर के आँखों के सामने उसके माँ की नंगी चूत आ जाती है जो सिर्फ कुछ इंच ही उससे दूर थी, एकदम गोरी चूत थी उसके माँ की, उसपे छोटे छोटे बाल थे, प्रभा ने कुछ दिनों पहले ही शेव किये थे, वो उस खूबसूरत चूत को देखता ही रह गया, प्रभा भी थोड़ी देर वैसे ही खड़ी होके सागर के रिएक्शन का इंतजार कर रही थी, फिर वो पलट गयी,
प्रभा :- उफ्फ्फ्फ़ पागल ये क्या किया तूने पेटीकोट खोलने नहीं बोला था,
सागर :- वो..मैं..मैं...मैंने नहीं खोला....वो तो अपने आप गिर गया...
प्रभा :- ठीक है अब वापस उठा के बांध दे...
सागर साडी को अलग करके पेटीकोट ऊपर चढाने लगा, प्रभा के पल्टनेसे उसकी गांड सागर की तरफ हो गयी थी, सागर प्रभा की वो मांसल चिकनी गांड देख के पागल सा हो रहा था, उसे एक पल, के लिए लगा की उसे छूले ...चुमले...लेकिन बड़ी मुश्किल से उसने अपने आप को रोक रखा था,
प्रभा चाहती थी की वो उसे छुए इसीलिए उसने ये सब किया था लेकिन सागर की हिम्मत नहीं हो पा रही थी,
सागर ने पेटीकोट फिरसे प्रभा की कमर तक बाँध दिया और बिनकुछ बोले कमरे से निकल गया,
*सागर अपने कमरे में जाके बेड पे लेट गया, उसका लंड हद से ज्यादा फुफनकार रहा था, उसने अपना लंड बाहर निकाला और जो हुआ जो देखा उसके बारे में सोच सोच के मुठ मारने लगा, थोड़ी देर में झड़ गया, लेकिन उसका लंड अभी भी खड़ा ही था,
इधर प्रभा सागर के ऐसे चले जाने से दुखी थी, उसे लगा था की सागर आज उसकी चुदाई जरूर कर देगा मगर ऐसा हो नहीं पाया......