Incest पूरे घर की रंडी

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हमारे कमरे का दरवाजा बाहर से बंद देख सभी आश्चर्य में थे केवल एक अमित जीजा को छोड़कर… उसकी कुटिल मुस्कान भी बता रही थी कि ऐसी हरकत उसी ने की है।



उसकी कुटिल मुस्कान देखकर मेरा गुस्सा और बढ़ता ही जा रहा था, लेकिन रितेश की वजह से मैं कुछ भी न बोल सकी।



मैं इधर वाशरूम में फ्रेश होने के लिये जा ही रही थी कि अमित जल्दी से बेड रूम में घुस गया, वही दूध का गिलास ले आया जिसको हम दोनों ही नहीं पी सके थे।



दूध के गिलास को लिये हुए अमित उसी कुटिल मुस्कान के साथ बोला- अरे तुम दोनों ने एक दूसरे को दूध नहीं पिलाया।



रितेश लपक कर गिलास को पकड़ने की कोशिश करने लगा पर सफल न हो सका। बल्कि रितेश बोला भी- जीजा जी, दूसरे से बिना पूछे उसके सामान को हाथ नहीं लगाना चाहिए।



पर अमित ने बेशर्मी से जवाब दिया- रात में ही मैंने कह दिया था कि तुम दोनों ने नहीं पिया तो मैं पी लूँगा।



मेरे सब्र का बांध टूट रहा था कि मेरे ससुर जी बोल उठे- बेटा, किसी का दूध इस तरह से नहीं पिया करते। पर तब तक अमित गिलास को मुंह से लगा कर दूध पीने लगा।



अब मेरे सब्र का बांध टूट गया तो मैंने भी उसी अंदाज में जवाब दिया- जीजा जी, बच कर भी रहा करो, कहीं ऐसा न हो गलती से कोई आप को दूध की जगह कुछ और पिला दे।



लेकिन अमित बेशर्म तो बेशर्म, तुरन्त ही बोल उठा- तुम्हारी जैसी खूबसूरत हो तो वो कुछ भी पिला दे, मैं हँसते-हँसते पी जाऊँगा।



गिलास से मलाई को उँगलियों में लेते हुए बोला और ऐसी मलाई मिले तो उसे भी चट कर जाऊँगा।



सभी उसकी बातों पर हँस रहे थे लेकिन मैं मन ही मन गुस्से में बड़बड़ाने लगी ‘मौका लगा मादरचोद तो तुझे अपनी अपनी पेशाब न पिलाई तो मेरा नाम भी आकांक्षा नहीं। तब पता लगेगा कि मैं क्या चीज हूँ।’



लेकिन मैं उस मादरचोद से बहस करना नहीं चाहती थी, मैं बाथरूम में जाकर नहाने धोने लगी।



नहाने के बाद मैंने रितेश के कहने पर सलवार सूट पहन लिया और रसोई में आकर रितेश की मम्मी के साथ काम में हाथ बंटाने लगी।



फिर धीरे-धीरे रितेश सहित सभी नहा धोकर तैयार हो गये, सभी ने नाश्ता किया। नाश्ता करने के बाद एक बार फिर मैं रसोई में मम्मी के साथ काम में हाथ बंटाने लगी।



पर रितेश का मन नहीं लग रहा था वो कई बार इशारा करके बुला चुका था, पर मैं लिहाज के मारे रसोई से न निकल सकी और रितेश झुंझलाकर रसोई में आया और मम्मी की नजर बचा कर मेरी गांड को कस कर दबा दिया।

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मम्मी रितेश की हरकत को तो न देख सकी पर समझ तो गई थी कि रितेश क्यों आया है।



मम्मी ने मेरी ननद को बुलाया और उसे डाँटते हुए बोली- अभी अभी इसकी शादी हुई है और तुम आराम कर रही हो और उससे पूरा काम कराये जा रही हो? चल मेरे काम में हाथ बँटा!



और मेरे सिर पर हाथ फेरते हुए बोली- जा तू थोड़ा आराम कर ले।



लेकिन मैं शर्म के मारे नहीं जा रही थी। बार बार कहने पर मैं अपने कमरे मैं आ गई और अन्दर से दरवाजा बन्द कर दिया।



रितेश बिस्तर पर चादर ओढ़े लेटा हुआ था, मुझे देखते ही उसने अपने ऊपर से चादर हटाई तो उसका लंड राड की तरह एकदम सीधा तना हुआ था।



मैंने भी जल्दी से अपने कपड़े उतारे और सीधा जाकर उसके लंड पर बैठ गई और जब तक उछलती रही जब तक कि हम दोनों खलास नहीं हो गये।

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खलास होने के बाद मैं रितेश के ऊपर लेट गई। दो मिनट बाद रितेश का लंड मुरझा कर मेरी चूत से बाहर आ चुका था। लेकिन मुझे ऐसा लग रहा था कि मानो मेरी चूत की खुजली मिटी नहीं थी।



एक तो यह था कि आज मैं और रितेश मियाँ-बीवी थे और दूसरा कल रात जो हमारे और रितेश के बीच हुआ विशेषकर वो पेशाब वाली बात उसकी वजह से मुझे रितेश पर बहुत प्यार आ रहा था और मैंने मन ही मन ये प्रण कर लिया था कि जिस समय रितेश मेरे जिस छेद की डिमांड करेगा मैं खुशी-खुशी अपने उस छेद को उसके हवाले कर दूँगी।



मैं मन ही मन ये सोच रही थी और खुश हो रही थी जिसकी वजह से मेरी मुस्कुराहट बढ़ती जा रही थी। तभी रितेश ने मुझे झकझोरा और मैं ख्याली दुनिया से बाहर आई तो रितेश पूछने लगा- कहाँ खो गई थी?



मैंने उसके कान को हल्के से काटते हुए कहा- जानू, मेरी चूत की खुजली अभी शान्त नहीं हुई है।



तो वो मेरे बालों में हाथों को फेरते हुए बोला- जानू मेरा लंड तुम्हारी चूत के लिये ही बना है, जब चाहो तुम इसको अपनी चूत में ले सकती हो। पर इस समय ये भी थक कर मुरझा गया है।



मेरी चूत का रस उसके लंड पर और उसके लंड का रस मेरे चूत के अन्दर था। पर मैं इस सब को भुलाकर 69 की पोजिशन में आ गई और अपनी चूत को रितेश के मुँह में रख दिया और रितेश के लंड को चूसने लगी। मैं अपने ही माल को चाट रही थी और रितेश अपने माल को चाट रहा था।

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थोड़ी देर ऐसे करते ही रहने से रितेश का लंड खड़ा हो गया और फिर मैं उतर कर घोड़ी बन गई और रितेश को पीछे से चूत चोदने के लिये बोली।

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हम दोनों बिना आवाज किये चुदाई का खेल खेल रहे थे और हम लोग काफी मस्ती में आ गये थे।
 
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रितेश अपनी पूरी ताकत से मेरी ड्रिलिंग कर रहा था और मेरी चूची को कस कर दबा रहा था। मैं सिसिया रही थी लेकिन मेरी कोशिश भी यही थी कि आवाज बाहर न जाये।



काफी देर तक धक्के मारने के बाद अन्त में रितेश ने अपना माल मेरे अन्दर छोड़ दिया।

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चुदाई खत्म होते ही रितेश ने मेरी सलवार से मेरी चूत और अपने लंड को साफ किया और फिर मेरी सलवार को सूंघने लगा और उसके बाद सलवार को मेरी तरफ हवा में उड़ा दिया।



तब तक मैं कुर्ती पहन चुकी थी, मैंने अपनी उड़ती हुई सलवार को हवा में ही लपक लिया और सूंघने लगी। क्या मस्त खुशबू मेरी और रितेश के प्यार की थी।

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तभी बाहर से कुन्डी पीटने की आवाज आने लगी, मैंने जल्दी से सलवार पहनी, तब तक रितेश ने भी अपने कपड़े पहन लिये और हम दोनों ही बाहर आ गये।



सामने अमित ही खड़ा था। एक बार उसने फिर द्विअर्थी अंदाज में बोला- अगर तुम दोनों ने कबड्डी का खेल खेल लिया हो तो चलो खाना खा लो।



मैं शर्मा के रसोई में आ गई, जबकि रितेश सफाई दे रहा था और बाकी लोग उसकी खींच रहे थे।



अमित की इस हरकत से मुझे काफी गुस्सा आ रहा था पर बोल मैं कुछ सकती नहीं थी। एक तो मैं नई शादीशुदा थी तो मर्यादा भंग नहीं कर सकती थी दूसरा अमित इस घर का दमाद था और इधर तीन चार दिन से जो मैं देख रही थी, उसके रौब के आगे किसी की कुछ नहीं चलती थी।



लेकिन मुझे अपने ऊपर विश्वास था कि एक दिन अमित को मैं सबक सिखा दूंगी। पर सवाल ये उठता था कि अमित को सबक सिखाऊँगी कब… क्योंकि मेरा घर संयुक्त है और हर समय घर में कोई न कोई बना ही रहता है।



इसी सोच विचार में 10-12 दिन बीत गये। चूंकि अमित पुलिस में है तो उसने हमारी शादी के समय से ही अपना ट्रांसफर लखनऊ में करवा लिया था और तभी से अमित और उसकी बीवी नमिता यानि की मेरी ननद जिसका भी जिस्म काफी तराशा हुआ था और वो मेरी कद काठी की ही थी, हमारे घर में ही रह रहे थे और अमित और नमिता का कमरा भी ऊपर ही था।



दोस्तो, दिल से कहूँ… मैं अमित की डील-डौल देखकर खुद ही चाहती थी कि मैं उसके नीचे लेट जाऊँ और अमित जैसा चाहे मुझे रौंदे और मैं उफ भी नहीं करती। पर उस रात वाली हरकत जिसके कारण मुझे और रितेश को एक-दूसरे का मूत पीना पड़ा, रह रह कर मैं वही सोचती और फिर मेरा गुस्सा अमित पर और बढ़ता जाता।



पता ही नहीं चला कि कैसे सब छुट्टियाँ हँसी मजाक और छींटाकशी में बीत गई। मैं और रितेश अपने कमरे में नंगे ही रहते थे और अगर किसी काम से हममे से किसी को अगर बाहर जाना भी होता तो रितेश लोअर और टी-शर्ट डाल लेता था और मैं जल्दी से साड़ी,पेटीकोट और ब्लाउज पहन लेती थी।



सोमवार का दिन आया जब हम दोनों को ऑफिस जाना हुआ तो घर के सभी सदस्यों ने मुझे और रितेश को तैयार होने का पहला अवसर दिया ताकि हम दोनों समय से ऑफिस पहुँच सकें।



पहले रितेश नहाने के लिये गया जबकि मैं, मेरी सास और ननद तीनों लोग जल्दी-जल्दी नाश्ते की तैयारी करने लगे।



रितेश नहाने के बाद नीचे तौलिया लपेट कर अपने कमरे में चला गया, जैसे ही वो निकला, मैं भी नहाने चली गई और नहा धोकर मैं भी जल्दी से अपने कमरे में आ गई।



रितेश तौलिये में ही बैठा हुआ था। जैसे ही मैं अपने कमरे का दरवाजा बंद करके मुड़ी रितेश ने मुझे पीछे से कसकर पकड़ लिया और गाल को चूमते हुए बोला- आज शादी के बाद पहला दिन है ऑफिस जाने का… कुछ हो जाये?



मैं उससे झिड़कते हुई बोली- यार, आज काफी दिनों के बाद ऑफिस जा रहे हैं, कुछ तो शर्म करो।



रितेश मेरी बात काटते हुए बोला- जान, पहली बात तो यह कि मैं तो बहुत बेशर्म हो चुका हूँ और दूसरी तुम्हारी खुमारी अभी तक मेरे दिमाग से उतरी नहीं है और ऑफिस में मैं सारा दिन तुम्हें और तुम्हारी चूत गांड के बारे में सोचता रहूँगा। मेरा लंड खड़ा रहेगा और फिर मेरा काम में मन भी नहीं लगेगा और शायद तुम्हें भी ऐसा ही कुछ लग रहा होगा तो मेरा लंड तुम्हारी चूत की गर्मी को शांत करने को तैयार है और तुम मेरे लंड की अकड़ निकाल दो।



इतना कहने के साथ ही रितेश ने अपनी तौलिया को उतार कर फेंक दिया और कुर्सी के ऊपर बैठ गया।



उसका लंड पहले से ही तना हुआ था, तने लंड को देखकर मैंने भी झटपट अपने घर वाले कपड़े उतारे और रितेश के लंड को चूसने लगी। करीब चार-पाँच मिनट तक चुसने के बाद रितेश ने अपना माल मेरे मुह पर छोड दीया।

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रितेश जल्दी जल्दी तैयार होकर नीचे चला गया और मैं आराम से तैयार होने लगी। फिर नाश्ता वगैरह करने के बाद जिसको जिसको ऑफिस जाना था, वे सभी ऑफिस के लिये रवाना हो गये।



इसी तरह तीन चार दिन बीत गये थे। दिन में ऑफिस निकलने से पहले चुदाई का एक राउंड चलता था और फिर रात को। चूँकि नई-नई शादी का माहौल था तो खूब मजा भी आ रहा था।
 
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लेकिन ऑफिस के चौथे दिन ही रितेश को ऑफिस से फरमान आ गया कि उसे देहरादून के ऑफिस में जाना है और एक नये प्रोजेक्ट पर काम करना है और इस कारण उसे हफ्ते भर वहां रहना पड़ सकता है।



घर के सभी लोग मुझे भी रितेश के साथ जाने के लिये कहने लगे लेकिन मेरी सभी छुट्टियाँ खत्म हो चुकी थी और छुट्टी नहीं मिल रही थी तो रितेश को अकेले ही देहरादून जाना था।



मैं उसके जाने के तैयारी करने लगी। तभी रितेश मेरे पास आकर बैठ गया और बोला- सॉरी यार मुझे तुम्हें अकेले छोड़कर जाना पड़ेगा।



‘कोई बात नहीं यार… अगर मुझे खुजली होगी तो केले से काम चला लूंगी।’

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रितेश मेरे पुट्ठे पर हाथ मारता हुआ बोला- यार, तीन चार जवान केले मेरे घर पर ही हैं। मैं सबकी नजर को अच्छी तरह से देखता हूँ, जिसको भी मौका मिलेगा वो तुम्हारी चूत में गोते तुरन्त ही लगा लेगा। खास कर मेरा जीजा अमित।



रितेश की बात सुनकर मुझे झटका लगा, क्योंकि इन चार-पाँच दिनों में मुझे अमित की बिल्कुल भी याद नहीं रही, पर जैसे ही रितेश ने अमित की बात छेड़ी, मेरे चहेरे पर मुस्कान आ गई और मैंने रितेश को कहा- अमित के केले को ही अपनी चूत में लूँगी क्योंकि मुझे उसे अपनी चूत का मूत पिलाना है।



जैसा कि मेरे और रितेश के बीच कोई परदा नहीं था तो हम दोनों ने तय किया कि एक दूसरे को रोज मोबाईल पर दिन भर की बातें बतायेंगे।



खैर रितेश देहरादून के लिये निकल गया, लेकिन मेरे दिमाग में अमित को रिझाने का तरीका नजर नहीं आ रहा था।



इसी उधेड़ बुन में बैठे हुए रात का निवाला अपने मुँह में डाल रही थी कि अमित ने एक बार फिर फ़िकरा कस दिया, बोलने लगा- अगर रितेश के बिना मन नहीं लग रहा है तो उसे वापिस बुला लेते हैं। कहकर हँसने लगा।



तभी ससुर जी ने मुझसे बड़े प्यार से कहा- बेटी, अब तुम इस घर की हो और तुम्हें किसी भी प्रकार की पर्दे की जरूरत नहीं है। मुझे और तुम्हारी सास को छोड़कर इस घर में तुमसे बड़ा कोई नहीं है जिससे तुम्हें परदा करना पड़े, इसलिये मैं और तुम्हारी सास का मानना यह है कि तुम भी नमिता की तरह गाउन पहन कर घर में रह सकती हो।



मैंने संकोचवश कह दिया- नहीं बाबूजी मैं ऐसे ही कमर्फटेबल हूँ।



इस पर मेरी सास बोल उठी- नहीं बेटा, तुम नमिता की तरह गाउन पहन सकती हो।



‘ठीक है माँ जी, जब रितेश आ जायेंगे तो मैं उनसे गाऊन मंगवा लूँगी और फिर पहन लिया करूँगी।’



‘तभी बड़ी तेजी से नमिता दौड़ते हुए ऊपर गई और एक गाउन लेकर आ गई और बोली- भाभी, मेरी और तुम्हारी कद काठी एक जैसी है, तुम इसे पहनकर आ जाओ, तब तक मैं मां और बाबूजी को खाना खिला देती हूँ और फिर हम लोग साथ में खाना खायेंगे।



मैं गाउन लेकर ऊपर आ गई, लेकिन यह क्या… मेरे पास तो पैन्टी ब्रा भी नहीं थी क्योंकि रितेश की जिद के कारण मैंने काफी दिनों पहले से ही पैन्टी ब्रा पहना छोड़ दी थी। तभी मेरे दिमाग में एक खुराफ़ात आ गई और मैं बिना पैन्टी ब्रा के ही गाउन पहन कर आ गई।

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कमरे में इस समय मैं, नमिता और अमित ही थे। बाकी के दोनों देवर भी खाना खाकर जा चुके थे और अब मेरे पास वो हथियार था जिससे अमित को मेरे काबू में आना ही था।



मैं नमिता की नजर बचा कर बीच बीच में अपने को झुका लेती और अमित को अपने चूचियों के दर्शन करा देती।


अमित के चेहरे से निकलते हुए पसीने का मतलब समझ कर मुझे खूब मजा आता।



मैं फिर से झुककर बैठ गई और जैसे ही अमित की नजर मेरे जिस्म के अन्दर पड़ी तो वो अचानक बहुत तेज खांसने लगा और नमिता अमित के लिये पानी लेने बड़े ही तेजी से रसोई की तरफ भागी। और मुझे एक पल का मौका मिल गया और मैंने अमित से कहा- और अमित जी, कौन सा दूध पीयोगे, मेरा या जो आ रही है उसका?



मैं कह कर शांत हो कर सीधी बैठ गई और खाना खाने लगी।


अमित के पास अब इतना मौका नहीं था कि वो मेरी बात का उत्तर दे सके।
 
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खाना खाने के बाद हम तीनों ऊपर आ गये। अमित ने सीढ़ियों के दरवाजे को अन्दर से बन्द कर दिया।



उसके बाद मैं नमिता को गुड नाईट विश करके अपने कमरे में आ गई और अमित नमिता अपने कमरे में घुस गये।



रितेश के बिना यह रात मेरी लिये बिल्कुल बेकार थी इसलिये मुझे नींद नहीं आ रही थी। तो मैं खिड़की के पास जाकर खड़ी हो गई तो देखा कि अमित केवल अंडरवियर में छत पर सिगरेट पी रहा था।



अमित को देखते ही मैंने अपने कमरे में हल्की सी रोशनी कर दी और गाउन के बंधन को खोलकर खिड़की की तरफ मुँह करके लेट गई और खिड़की की तरफ देखने लगी।



कुछ ही देर में मुझे एक साया मेरी खिड़की की तरफ आता हुआ दिखाई दिया। मैंने झटपट अपनी आँखों को इस तरह से बन्द कर लिया कि मैं हल्का हल्का बाहर की तरफ देख सकूँ।



तभी मेरी नजर खिड़की पर गई जहां पर अमित मुझे देखने की कोशिश कर रहा था। लेकिन उसे शायद यह लगा कि मैं सो गई हूँ और वो मुड़ कर जाने वाला ही था कि मैं तुरन्त ही सीधी हो गई और एक तेज अंगड़ाई लेते हुए अपने स्तन को खुजलाने लगी।

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मेरी इस हरकत से अमित एक बार फिर मेरी खिड़की की तरफ मुड़ा और मुझे देखने की कोशिश करने लगा और मैंने अंगड़ाई लेते हुए गाउन को पूरा खोल दिया एक तरह से पूर्ण रूप से नंगी हो गई थी और स्तन के साथ-साथ में उसकी उत्तेजना को बढ़ाने के लिये अपने जांघ के आस-पास और चूत को भी खुजला रही थी।

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मैं थोड़ी देर तक उसी नंगी अवस्था में पड़ी रही और अमित मुझे घूर घूर कर देखे जा रहा था। अब मुझे और तरसाना था तो मैंने तय किया कि केवल मेरी चूत के दर्शन मेरे जीजाजी को नहीं होना चाहियें, मैं पलट गई और अपने चूतड़ों का भी भरपूर दर्शन अपने जीजाजी को कराने लगी।

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कुछ देर बाद मुझे लगा कि कमरे के साये का आकार छोटा और दूर जाता हुआ प्रतीत हो रहा था। मैं पलटी तो देखा कि अमित अपने कमरे के अन्दर जा चुका था।



अब मेरी बारी थी, मैंने तुरन्त अपना गाऊन पहना और दबे पांव अमित के कमरे की तरफ बढ़ी। अमित के कमरे से मध्यम रोशनी बाहर आ रही थी। मैं अन्दर देखने की कोशिश करने लगी, लेकिन मैं ठीक से देख नहीं पा रही थी।



लेकिन बहुत कोशिश करने के बाद मुझे खिड़की के पास एक ऐसी जगह दिखाई पड़ी जहां से मैं बड़े आराम से नमिता के कमरे के अन्दर के हिस्से को देख सकती थी।



अमित मुझे देखने के बाद काफी उत्तेजित हो चुका था इसलिये उसने अपने सब कपड़े उतार लिये थे जबकि नमिता चादर लपेटे हुए थी और अमित उसकी चादर को खींच रहा था।



नमिता थोड़े गुस्से में थी, वो अमित को लगातार झिड़के जा रही थी, जिसका असर अमित पर कुछ नहीं हो रहा था, वो बस एक ही रट लगाये जा रहा था कि मुझे तुमसे प्यार करना है।



काफी बहाने बनाने के बाद जब नमिता की नहीं चली तो वो बोली- मैं चड्डी उतार देती हूँ, तुम अपना अंदर डाल लो।



‘नहीं… तुम अपने पूरे कपड़े उतारो।’



नमिता चिल्लाते हुए बोली- मैं तेज तेज शोर मचाऊँगी, कम से कम भाभी तो आ ही जायेगी।



अमित अब शांत पड़ गया था, उसने नमिता की पैन्टी उतारी और अपना लंड उसकी चूत में डाल दिया और कुछ ही धक्के लगाने के बाद अमित ढीला पड़ गया और फिर नंगा ही नमिता के बगल में लेट गया।



नमिता भी करवट बदल कर सो गई। पता नहीं अमित जल्दी क्यों खलास हो गया लेकिन जिस वजह से मैं अमित के कमरे की खिड़की से झांक रही थी, वो बात पूरी नहीं हुई। मतलब मेरी चूत ने पानी नहीं छोड़ा था। मैं आकर अपने कमरे में सो गई।



कहानी जारी रहेगी।
 
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रात में ननदोई जी को अपने नंगे बदन के नजारे दिखा कर सुबह मैं उससे रोज की तरह नोर्मल ही मिली, जिससे उसे यह पता नहीं चल पाये कि मैंने जानबूझ कर उसे अपने चूत और गांड के दर्शन कराये हैं।



लेकिन मेरे मन में रह रह कर रात वाली बात खटक रही थी और जिस तरह से नमिता अमित के साथ व्यव्हार कर रही थी वो मुझे अच्छा नहीं लगा और मुझे लगा कि नमिता के लिये सेक्स केवल एक मजबूरी वाला काम है और उसे निबटाना है।



इसलिये मैंने निश्चय कर लिया कि आज कैसे भी मौका देखकर नमिता को कुछ सेक्स ज्ञान दे दूँ नहीं तो दोनों की आगे की जिन्दगी में सब कुछ खत्म हो सकता है।



मैं बाथरूम के पास खड़े होकर विचार कर रही थी कि मेरी नजर अमित पर पड़ी जो कि बाथरूम की ही तरफ बढ़ रहा था लेकिन उसकी नजर मेरे पर नहीं थी।



मैं झटपट अमित को तरसाने और अपने मजे के लिये बाथरुम में घुस गई और सिटकनी को ऐसे लगाया कि वो एक झटके से खुल जाये।



हुआ भी वैसे ही… अमित एक झटके से दरवाजा खोलकर अन्दर आ गया और अपने लोअर से अपना लंड निकाल चुका था।



मैं हड़बड़ाहट में इस तरह उठ खड़ी हुई कि उसे भी मेरे चूत के दर्शन एक बार फिर हो जाये।

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खैर एक नजर से अमित ने मेरी चूत देखते हुए सॉरी बोलकर अपने लंड को लोअर के अन्दर करके बाहर चला गया।



मैंने बड़े ही इत्मेनान से बाथरुम का दरवाजा बंद किया और* नमिता को सेक्स का पाठ कैसे पढ़ाया जाये, यह सोचने लगी।



सोचते सोचते एक युक्ति आ ही गई और में बीना नहाए ही बाहर निकली तो थोड़ी दूर पर अमित खड़ा था। उसकी नजर नीची थी, मैंने भी अपनी नजरें झुका ली जैसे कि शर्म के कारण मैं उससे नजर नहीं मिला पा रही हूँ।



मेरे ससुराल में दोनों देवर के कारण सभी को छः बजे उठना ही पड़ता है और एक तरह से सबकी आदत भी है क्योंकि मेरे ससुर एक आर्मी मैन थे तो घर में थोड़ा सा डिस्पिलीन मेनटेन था।



दोनों देवर नहा धोकर कॉलेज जाने के लिये तैयार होने लगे।


मैं अपनी सास के साथ रसोई के काम में हाथ बंटाने लगी।


दोनों नाश्ता करने के बाद अपने कॉलेज निकल गये और उधर अमित भी अपनी यूनीफार्म पहन कर जाने के लिये तैयार हुए तो नमिता ने पूछ लिया कि आज इतनी जल्दी कैसे?



एक बार अमित ने मेरी तरफ देखा और फिर नजर नीचे हुए कहने लगा कि उसको किसी जरूरी केस के लिये जल्दी निकलना है और जल्दी-जल्दी नाश्ता करने के बाद अमित भी निकल गया।



अब घर में मैं, सास, ननद और ससुर जी थे। मेरे ऑफिस की टाईमिंग दस बजे की थी और मेरे पास लगभग तीन घंटे का समय था तो मैंने नमिता को पाठ पढ़ाने का निर्णय लिया और नमिता के कमरे में अपने कपड़े लेकर पहुँची, उससे बोली- मेरी पीठ में खुजली बहुत हो रही है, मैं नहाने जा रही हूँ तुम आकर मेरी पीठ में साबुन रगड़ दो और मेरी पीठ साफ कर दो तो ये थोड़ी खुजली खत्म हो जायेगी।



नमिता तैयार हो गई और मेरे साथ चलने लगी तो मैंने उससे बोला- तुम भी अपने कपड़े ले लो, मेरे बाद तुम भी नहा लेना फिर दोनों मिलकर साथ नाश्ता कर लेंगी और उसके बाद मैं भी अपने ऑफिस चली जाऊँगी।



नमिता मेरी बात मानते हुए अपने कपड़े लेकर मेरे साथ चल पड़ी।



मैं बाथरूम में पहुँची और तुरन्त गाउन कपड़े उतार दिये, चूंकि मैं अन्दर पैन्टी-ब्रा नहीं पहनी थी, मुझे एकदम से नंगी देखकर नमिता बोली- भाभी, तुम तो बहुत बेशर्म हो।



‘क्यो क्या हुआ?’ मैंने पूछा।



तो नमिता बोली- मैं तुम्हारे साथ हूँ और तुमने अपना गाऊन एकदम से उतार दिया… और अन्दर तुमने ब्रा और पैन्टी भी नहीं पहनी हुई है।



मैंने उसे हल्के से झिड़कते हुए कहा- तुम मर्द नहीं हो जिससे मैं शर्माऊँ। तुम भी तो एक औरत हो तो तुमसे क्या शर्माना? दूसरी बात रात को मुझे नींद नहीं आ रही थी, बहुत बैचेनी हो रही थी तो मैंने अपने ब्रा और पैन्टी उतार दिये थे और सुबह मैं पहनना भूल गई थी।



अब मैं नमिता को क्या बताती कि मैं ब्रा और पैन्टी का यूज बहुत कम करती हूँ।



तभी नमिता फिर बोली- अरे हम दोनों ऊपर थे, इसका ख्याल तो करना चाहिये था ना? अच्छा हुआ हम लोगों की नींद नहीं खुली।



एक बार फिर मैंने उसके गालों को सहलाते हुए उसे बताया- मैंने अन्दर से अच्छी तरह से सब खिड़की दरवाजा बन्द कर लिए थे। कहते कहते मैंने शॉवर चला दिया, इससे हम दोनों भीगने लग गये।

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‘भाभी, यह क्या कर रही हो?’



मैंने उसे चुप कराते हुए कहा- चिल्लाओगी तो पापा या मम्मी यहाँ आ सकते हैं। चलो कोई बात नहीं, अब भीग गई हो तो अपने कपड़े उतार लो। मैं उससे अलग होकर शॉवर के नीचे नहाते हुए बोली।



मैं जानबूझ कर नमिता के सामने अपने अंगों से खेल रही थी लेकिन नमिता अपनी जगह खड़े होकर केवल मुझे निहार रही थी।



उसको इस तरह देखकर मेरा गुस्सा बढ़ने लगा था कि तभी नमिता को न जाने क्या सूझा कि उसने अपनी सलवार और कुर्ते को उतार दिया। नीचे वो हरे रंग की पैन्टी और ब्रा पहने हुए थी।
 
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पास आते हुए बोली- भाभी, तुम घूमो, मैं तुम्हारी कमर पर साबुन लगा देती हूँ।

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मैं घूम गई और नमिता साबुन लगाने लगी। मेरे बिना कहे उसने मेरी पीठ के साथ-साथ वो मेरी टांगों, मेरे पीछे के उभारों में, आगे मेरी छातियों में और नीचे चूत और जांघ के आस पास नमिता ने सब जगह साबुन लगाया, खासतौर से वो मेरी चिकनी चूत को तो बड़े प्यार से साबुन लगा रही थी।



फिर धीरे से बोली- भाभी, तुम्हारे यहाँ बाल नहीं हैं, क्यों?



मैंने झटपट उत्तर दिया- तुम्हारे भईया को पसंन्द नहीं है।



‘उनको इससे क्या लेना देना?’



‘क्यों नहीं? मेरी ये जगह (मैंने अंगों के नाम न लेने में भलाई समझी, मैं चाहती थी कि पहले वो अच्छी तरह से मेरी बातों को समझने लगे) उन्ही के लिये तो है। वो बड़े रात में बड़े प्यार से इस जगह को चूमते हैं, इसमें अपनी जीभ फिराते हैं और फिर इसमें अपने लिंग को डालकर मुझे मजा देते हैं।’



‘हम लोग इस जगह से पेशाब करते हैं, तो भी वो अपनी जीभ यहाँ चलाते हैं?’



‘हाँ, मैं भी तो उनके लिंग को चूसती हूँ।’



‘छीःईईई ईईईई!’



‘क्या हुआ?’ मैं उसे अपने से चिपकाते हुए बोली और फिर मैंने उससे साबुन लेकर उसकी ब्रा के हुक को खोला और साबुन लगाने लगी।

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साबुन लगाते हुए मैं जब उसकी जांघ और चूत पर साबुन लगाने के लिए उसकी पैन्टी उतारने लगी तो उसने अपनी दोनों टांगों को सिकोड़ लिया और मुझसे साबुन मांगने लगी।



मुझे एक बार फिर उसे समझाना पड़ा तो फिर वो तैयार हो गई। जब मैंने उसकी पैन्टी उतारी तो उसकी चूत के बाल काफी घने थे, ऐसा लग रहा था कि जब से वो जवान हुई है तब से उसने अपनी चूत के बालों की सफाई नहीं की है।



मैंने पूछा- ये क्यों?



तो नमिता ने जवाब दिया- मुझे अच्छा नहीं लगता है।



‘क्यों, अमित ने नहीं बोला इसे साफ करने को?’



‘बोलते तो हैं लेकिन मैं नहीं करती।’



मैंने साबुन लगाते हुए नमिता से कहा- पति पत्नी के सफल जीवन में सेक्स बहुत बड़ा रोल निभाता है, सेक्स से प्यार करो और पति को भी प्यार करो। नहीं तो कब दूसरी सौत आ जायेगी पता ही नहीं चलेगा… और फिर तुम्हारे रोने से कुछ भी नहीं होगा।



बात करते हुए मैं नमिता के पीछे गई और उसके गर्दन को चूमने लगी, साथ ही उसकी चूचियों से खेलने लगी।

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‘भाभी, ये क्या कर रही हो?’



‘कुछ नहीं… चुपचाप केवल जो मैं कर रही हूँ उसको महसूस करो।’



मेरे हाथ धीरे से बढ़ते हुए उसकी चूत से खेलने लगे और नमिता केवल सिकुड़ती जा रही थी और साथ ही सिसकारियाँ भी निकलती जा रही थी।



जब मैंने देखा कि नमिता अब मेरी किसी हरकत का विरोध नहीं करेगी तो मैं नीचे उसके चूत पर अपने होंठों को रख दिया। उसकी चूत वास्तव में काफी गर्म थी।

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मैं नमिता की चूत में अपने जीभ चला रही थी, नमिता बोले जा रही थी- भाभी, मत करो प्लीज, मुझे कुछ हो रहा है!



लेकिन मैंने उसकी बातों को अनसुना कर दिया। उसकी चूत चूसने के कारण नमिता के पैर कांपने लगे थे और फिर वो भी वक्त आया था कि उसके अन्दर की गर्मी मेरे मुँह के अन्दर थी।



उसके रस के स्वाद को लेने के बाद मैं उठी और नहाने लगी।


नमिता मेरे पीछे आई और मुझे कस कर पकड़ते हुए बोली- भाभी, मैं भी वही करना चाहती हूँ जो आप ने मेरे साथ किया है।



मेरे मुंह से तुरन्त निकला- नीचे बैठो और करो, मैंने कब मना किया है।



नमिता नीचे घुटनों के बल बैठ गई और मेरी चूत पर अपने मुंह को लगा लिया। चूंकि उसे चूत चाटने का तो कोई अनुभव नहीं था, फिर भी वो चूत चाट रही थी।

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मैं नमिता के साथ काफी देर से खेल रही थी तो मेरे अन्दर का माल भी बाहर आने को तैयार था, अगर नमिता मेरी चूत न चाटती तो मैं नहा कर कमरे में जाकर उंगली करके अपने माल को बाहर निकालती। नमिता मेरी चूत चाटे जा रही थी और एक क्षण ऐसा भी आया कि नमिता के मुंह में मैं खलास हो गई।



जैसे ही मेरा नमकीन पानी नमिता के मुंह में गया, वो मुंह बनाते हुए बोली- ये क्या भाभी, ये क्या किया आपने?



‘मैंने क्या किया?’



‘मेरे मुंह में आपने पेशाब कर दिया!’



‘नहीं, यह पेशाब नहीं है, इसको रज बोलते हैं। मेरे मुंह में भी तुमने यही किया था।’

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फिर हम दोनों नंगी नहाने लगी और थोड़ी देर बाद मैं ऑफिस के लिये तैयार होकर आ गई।
 
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जैसे ही हम लोग नाश्ते के लिये बैठे वैसे ही अमित आ गया, अमित को देखकर नमिता अमित के लिये भी नाश्ता लेने चली गई।



नमिता के जाते ही अमित घुटने के बल नीचे बैठ गया और मुझसे बोला- भाभी, मैं आपके खुले हुस्न का दीदार करना चाहता हूँ, एक बार अपने हुस्न के दीदार करा दो, फिर ये अमित आपका गुलाम हो जायेगा।



तभी नमिता नाश्ता लाते हुए दिखाई पड़ी तो मैंने अमित को सीधे बैठने के लिये कहा। नाश्ता करने के बाद मैं ऑफिस जाने लगी तो नमिता अमित से मुझको ऑफिस ड्रॉप करने के लिये बोली, अमित की तो मानो मन की मुराद पूरी हो गई, वो सहर्ष तैयार हो गया।



फिर मेरा भी मना करने का सवाल ही नहीं उठता था, मैं अमित के साथ चल पड़ी। रास्ते में एक रेस्टोरेन्ट पर अमित ने अपनी गाड़ी रोकी और मुझसे दस मिनट उसके साथ रहने के लिये रिक्वेस्ट करने लगा। मेरे पास ऑफिस पहुँचने का भरपूर टाईम था तो मैं उसके साथ रेस्टोरेन्ट चली गई।



वहां पर अमित एक बार फिर रिक्वेस्ट करने लगा तो मैंने कहा- ठीक है, आज रात मेरा दरवाजा तुम्हारे लिये खुला रहेगा, लेकिन एक शर्त है कि तुम मेरी कोई बात काटोगे नहीं।



‘नहीं भाभी… बिल्कुल नही!’ निःसंकोच अमित ने मेरा हाथ चूमा और बोला- भाभी, आज से आपका यह जीजा आपका गुलाम ही रहेगा।



‘वो तो ठीक है लेकिन आज रात के बाद फिर कभी नहीं कहोगे और ना ही मुझे ब्लैक मेल करोगे।’



‘बिल्कुल नहीं भाभी… ये बन्दा आज से आपका गुलाम है, जब आप चाहोगी तब ये गुलाम सदा आपकी सेवा में रहेगा।’



इसके बाद अमित ने मुझे मेरे ऑफिस ड्रॉप कर दिया। ऑफिस पहुँचे एक घण्टा भी नहीं हुआ था कि नमिता का फोन आ गया, फोन पर ही वो बोलने लगी- भाभी, आज मेरा मन लग नहीं रहा है, मुझे आपसे बहुत सी बातें करनी है।



मैं समझ चुकी थी कि वो मुझसे किस टॉपिक पर बात करना चाहती है तो मैंने बॉस से परमिशन ले ली। मेरा बॉस जो एक 40 वर्षीय था उसने मुझे इस शर्त पर परमिशन दे दी कि अगर उसे कोई ऑफिस का काम पड़ेगा तो मुजे फिर ओवर टाईम करना पड़ेगा, मैंने भी एक मुस्कुराहट के साथ हाँ मैं अपने सर को हिला दिया।



मैं घर आ गई। जैसे ही मैंने दरवाजे की घण्टी बजाई, वैसे ही नमिता ने दरवाजा खोल दिया। मुझे ऐसा लगा कि वो मेरे इंतजार में ही वहाँ खड़ी थी।



खैर जैसे मैं अन्दर घुसी वो मेरे से लिपट गई और मुझे थैंक्यू बोलने लगी। फिर उसने मुझसे धीरे से कहा कि उसने माँ और बाबूजी को खाना खिला कर सुला दिया है। मैं समझ गई और सीधा उसके साथ ऊपर चली आई। कमरे में आकर मैंने उससे पूछा कि वो मुझसे क्या पूछना चाह रही है?



तो वो बोली- भाभी, आप और भईया रात में एक-दूसरे के साथ क्या करते हो, मुझे वो जानना है।



मैं बोली- मैं तुम्हे बता तो दूँगी, लेकिन तुम बुरा मान जाओगी और फिर सबको बता दोगी।



‘नहीं, मैं नहीं बताऊँगी!’



‘रात में मैं और तुम्हारे भईया सेक्स करते समय बहुत गंदी-गंदी बातें करते हैं।’



‘भाभी, क्या-क्या बातें? मुझे सब बताओ।’



‘ठीक है, मैं सब बता दूँगी, पर एक वादा करो, एक तो तुम अपने बाल साफ करवाओ और दूसरा आज रात फिर अमित को अपने हुस्न के जलवे दिखाकर उसे चौंका दो।’



नमिता बड़ी ही सहजता से बोली- भाभी, बाल मुझे साफ करना नहीं आता, अगर तुम्हें आता है तो तुम मेरे बाल साफ कर दो… और रही अमित की बात तो आज की रात अमित भी कभी नहीं भूलेगा।



‘तो ठीक है, तुम अपने कपड़े उतार कर जमीन पर लेट जाओ।’

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मैंने भी अपने कपड़े उतार लिए और वीट की ट्यूब निकाल ली और अपने कमरे के सभी खिड़की और दरवाजे को अच्छे से बन्द कर दिए।



नमिता अब तक बिना किसी संकोच के अपने कपड़े उतार कर जमीन पर लेट गई थी। मैं नमिता की चूत के बाल कैंची से काटने लगी तो नमिता बोली- भाभी, बताओ न कि तुम और भईया क्या क्या करते हो?



‘मैं और तुम्हारे भईया कमरे में पहुँचते ही नंगे हो जाते हैं और फिर हम लोग दिन भर की बातें करते हुए एक दूसरे के जिस्म से खेलने लगते हैं।



रितेश मेरे पीछे अपने हाथ को लाकर मेरी चूची की गोलाइयों को अपनी हथेलियों में दबाने की कोशिश करता है या फिर मेरे निप्पलों को अपनी चुटकियों में मसलने का कोशिश करता है, जबकि मैं उसके जांघ को सहलाती हूँ और उसके लंड के सुपारे पर अपने नाखूनों से कुरेदती हूँ।



हम लोग बातें करते-करते गर्म होने लगते हैं। फिर रितेश मेरे निप्पल को अपने मुंह में भर कर एक बच्चे की तरह उसको पीता है।

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जब तक रितेश मेरे निप्पल को छोड़ नहीं देता तब तक मैं उसके बालों को सहलाती हूँ या फिर मैं उसके निप्पल को अपने नाखूनों का करतब दिखाती हूँ।



जब वो निप्पल पीना बंद कर देता है तो मैं उसको सीधा लेटा कर उसके जिस्म के एक-एक हिस्से को चाटते हुए उसके लंड को अपने मुंह में भर लेती हूँ और उसको लॉलीपॉप की तरह चूसती हूँ।’

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बातें करते हुए मैंने उसकी चूत और उसके आस पास की जगह में अच्छी तरह से वीट लगा दी।



‘तो आप भईया का अपने मुंह में ले लेती हो।’
 
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‘लंड बोलो यार!’ मैंने नमिता को समझाते हुए कहा- मेरा और रितेश का मानना है कि जब सेक्स करो तो निःसंकोच करो, उससे फिर सेक्स का अलग तरह का मजा आता है।



‘ठीक बाबा… लंड! अब आगे बताओ?’



‘जब मैं रितेश के लंड को चूस रही होती हूँ तो रितेश मेरी तरफ अपनी मुंह की लार टपकाते हुए देखता है तो मैं फिर घूम कर उसके मुंह की तरफ अपनी चूत को कर देती हूँ, फिर मैं रितेश के लंड को चूसती हूँ और रितेश मेरी चूत को चाटता है। बीच-बीच में हम दोनों एक दूसरे की गांड को भी चाटते हैं, खूब मजा आता है।



उसके बाद जब चाटा-चाटी का प्रोग्राम खत्म होता है तो रितेश मेरी चूत में अपने लंड को डालता है और कई पोजिशन से चोदता है। कभी वो मेरे ऊपर चढ़ जाता है तो कभी मुझे घोड़ी बना कर चोदता है तो कभी मेरे चूत में अपना लंड डाले ही मुझे अपनी गोद में उठा लेता है और मैं उसके गोद में ही उछलती हूँ।

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जब रितेश थक जाता है तो जैसे तुम लेटी हो वो भी लेट जाता और फिर मैं उसके लंड के ऊपर चढ़ जाती हूँ और खूब उछलती हूँ।

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फिर जब हम लोग चूत चुदाई के अन्तिम चरण में पहुंचते हैं तो एक बार फिर उसका लंड मेरे मुंह में और मेरी चूत उसके मुंह के पास होते हैं और फिर हम दोनों ही एक-दूसरे का पानी पीते हैं।’

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मैंने नमिता को देखा, पता नहीं वो क्या सोच रही थी, मैंने उसे झकझोरते हुए पूछा- क्या सोच रही है?



तो वो बोली- भाई कभी अपना पानी आपकी चूत के अन्दर नहीं डालते हैं?



नमिता भी अब खुलने लगी थी।



'बिल्कुल डालते हैं लेकिन कभी कभी, नहीं तो अकसर करके हम दोनों एक दूसरे का पानी पी लेते हैं।'



नमिता फिर कुछ सोचने लगी, मैं समझ गई कि वो क्या सोच रही है।



मैं नमिता से फिर बोली- इसलिये मैं कहती हूँ कि सेक्स निःसंकोच करना चाहिये।



बातों बातों में उसकी चूत साफ और चिकनी हो चुकी थी। मैंने नमिता के हाथ को उसकी चूत पर रख दिया। नमिता अपने चूत को सहला रही थी। फिर वो मुझे थैंक्यू कहने लगी।

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फिर हम दोनों ने मिलकर कमरे की सफाई की।



उसके बाद मैंने नमिता को शीशे के सामने खड़ा कर दिया और खुद उसके पीछे खड़ी हो गई। नमिता अपनी चिकनी चूत को देखते हुए बोली- वाह भाभी, आपने मेरी चूत की तो शक्ल ही बदल दी।



नमिता की जो चूत अब तक घने बालों के बीच छिपी हुई थी, उसकी शक्ल एक गुलाबी चूत की हो चुकी थी। अब नमिता भी अपनी चूत को देखकर इतरा रही थी।



मैंने नमिता से कहा- नमिता, आज रात तुम अमित को सरप्राईज कर दो।



नमिता बोली- हाँ भाभी, आज रात अमित को बहुत खुश कर दूँगी।



मैं उससे बातें करते करते उसकी चूची के साथ खेल रही थी जबकि नमिता आंखें बन्द किये हुए मदहोशी के साथ केवल अपनी चूत को सहलाने का आनंद ले रही थी।



मैं नमिता को उसी मदहोशी में अपने बेड पर ले आई और उसको लेटा कर उसके मुँह पर बैठ गई और अपनी चूत को उसके मुंह से रगड़ने लगी।


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तभी मुझे अहसास हुआ कि नमिता की जीभ मेरे चूत के हर हिस्से की सैर कर रही है।



मैं भी 69 की अवस्था में हो गई और उसके चूत का रसपान करने लगी। नमिता भी एक एक्सपर्ट की तरह कभी अपनी जीभ मेरे चूत के अन्दर करती तो कभी अपनी उंगली को मेरे अन्दर डालती।

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कुछ देर बाद ही मैं और नमिता दोनों ही स्खलन की तरफ बढ़ रहे थे क्योंकि मेरी उंगली में उसका रस लग रहा था जिसे मैं चाट लेती और वो भी अपनी उंगली से मेरे रस को निकाल रही थी।



तभी नमिता बोली- वाह भाभी, आपके अन्दर का रस बहुत मजा दे रहा है।



थोड़ी देर ऐसा करते रहने के बाद हम दोनों ढीली पड़ गई।


फिर दोनों एक दूसरी के जिस्म से चिपक गई।



लगभग दो बजे सास ससुर की आवाज आई तो मैं और नमिता दोनों ही हाथ मुंह धोकर खाने नीचे चले गये।



कहानी जारी रहेगी।
 
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ऑफिस पहुँचने पर पता चला कि मेरा बॉस मेरा ही इंतजार कर रहा है। वैसे भी बाॅस के व्यवहार से इतना तो मालूम चल गया था कि मेरा बॉस मुझे लाईन मारता है और शायद इसलिये वो मुझे हर जगह सपोर्ट करता है और जो भी कोई नया प्रोजेक्ट आता था, उसका इंचार्ज़ वो मुझे ही बनाता था, लेकिन इसके बदले में उसने अभी तक कोई नजायज डिमांड नहीं की थी।



पर आज जैसे ही उसके केबिन पहुंची, उसने मुझे अपनी बांहों में जकड़ लिया, मैंने बॉस को लगभग धकियाते हुए अपने से अलग किया और इस उद्दण्डता की वजह पूछी तो बोला- आकांक्षा, जब से तुम इस ऑफिस में आई हो, मैंने सब को नेग्लेक्ट करते हुए हर प्रोजेक्ट का इंचार्ज़ तुम्हें बनाया है और उसके बदले में मैंने तुमसे कभी कुछ मांगा नहीं है, लेकिन आज एक ऐसा प्रोजेक्ट है जिसमें तुम्हारी प्रोगरेस के साथ-साथ मॉनेटिरी लाभ भी है। तुम्हें अगले महीने इस प्रोजेक्ट के सिलसिले में कोलकाता जाना है। यदि तुम हाँ कहो तो मैं आगे बात करूँ।



मुझे कोई ऐतराज नहीं था लेकिन जब बॉस ने उस प्रोजेक्ट के बदले में दूसरे दिन ओवर टाईम करने को कहा तो मैंने सोचने का वक्त लिया। मैं ऑफिस का काम निपटा कर घर पहुंची, घर पर सभी लोग आ चुके थे और मेरा इंतजार कर रहे थे।



सबके साथ चाय नाश्ता होते होते रितेश का फोन आ गया तो मैं रितेश से बात करने के लिये अपने कमरे में आ गई और बॉस के ऑफर के बारे में बताया, तो रितेश छूटते ही पूछ बैठा कि बॉस देखने में कैसा है।



बॉस का जब मैंने रितेश को फिगर बताया तो रितेश मुझे सजेशन देते हुए बोला कि कोलकाता जाना चाहो तो जा सकती हो। इसका मतलब था कि रितेश ने मुझे परमिशन दे दी थी कि बॉस के लंड का मैं मजा ले सकती हूँ। उसके बाद मेरे रितेश के बीच में इधर-उधर की बातें होती रही कि तभी नमिता ने मुझे पुकारा तो मुझे रात वाली बात याद आ गई तो मैंने रितेश को बाकी बाते दूसरे दिन बताने के लिए कही और फोन काट दिया।



जैसे ही मेरी और रितेश की बात खत्म हुई, नमिता मेरे कमरे में आ गई और रात को जो कुछ भी उसके और अमित के बीच हुआ था वो बड़े उत्साह के साथ बता रही थी, लेकिन मेरा दिमाग आज रात को होने वाले लाईव सेक्स पर ही था।



इतना तो मैं अब समझ गई कि नमिता से मैं जो कहूँगी वो थोड़ा बहुत न नुकुर करने के बाद मान जायेगी। मैं इसी बात मैं विचार मग्न थी कि नमिता ने मुझे झकझोरा और मैं क्या सोच रही हूँ उसको बताने के लिये कह रही थी।



मैं उसे जानबूझ कर टाल रही थी। लेकिन जब मुझे नमिता बहुत जोर देकर पूछने लगी तो मैंने नमिता से कहा- बता तो मैं दूँगी, लेकिन सुनने के बाद तुम मुझे गलत नहीं समझोगी और उसको मानोगी।



जब मैं समझ गई कि नमिता मेरी बात को नहीं काटेगी तो मैंने उससे पूछा कि क्या वो शरमायेगी अगर मैं कहूँ कि आज रात अमित मेरे सामने तुम्हारी चूत और गांड की चुदाई करे?



मेरी बात सुनते ही नमिता की आँखें आश्चर्य से फैल गई और बोली- भाभी, आप यह क्या कह रही हो?



तो मैं उसे समझाने लगी, वो बार-बार मना किये जा रही थी और मैं बार-बार अपनी बात कह जा रही थी।



तब नमिता हारकर बोली- ठीक है भाभी, अगर अमित तैयार हो जायेगा तो मैं भी तैयार हूँ।



‘अगर तू तैयार है तो मैं जीजू को मना लूँगी।’



तभी नमिता कुछ याद करते हुए बोली- अगर अमित तुम्हें भी चोदने के लिये बोला तो?



अब नमिता भी खुल कर बोलने लगी थी, तो मैंने भी उसी तरह बोला कि अगर तू कहेगी तो वो मेरी चूत में लंड डाल पायेगा नहीं तो नहीं।



‘तो ठीक है!’ नमिता बोली।



मेरा काम पूरा हो चुका था। अमित तो वैसे भी तैयार था तो मैंने मौका देखकर अमित को इशारा कर दिया। अब हम तीनों रात होने का इंतजार करने लगे। जैसे तैसे घर का काम खत्म हुआ, केवल हम दोनों के अलावा, घर के सभी लोग, अमित भी खाना खाकर ऊपर जा चुका था।



काम करने के साथ-साथ मैं पूरा ध्यान नमिता पर था और मुझे ऐसा लग रहा था कि वो बहुत घबरा रही है। मैं नमिता को एक बार फिर सेक्स पर ज्ञान देने के लिये बोली- देखो नमिता, कोई जोर जबरदस्ती नहीं है, न मन हो तो मत करो।



‘नहीं भाभी, ऐसी कोई बात नहीं है, पर थोड़ा अजीब जरूर लग रहा है।’



‘देखो नमिता, सब संकोच, डर निकालो और मजा लो। अमित को लगे उसकी बीवी भी क्या गजब माल है। और आज अपनी चूत के मजे के साथ अपनी गांड चुदाई के भी मजे लेना।’



मैं उसके साथ साथ काम भी निपटा रही थी और उसे आज रात जो होना है उसके लिये उसे मैं तैयार करने में लगी थी।



चूंकि दील्ली में टोनी और मीना के घर पर जो मेरे साथ हुआ था, उसने मेरे जीवन को बदल दिया था और अब मैं हर पल सेक्स का मजा लेना चाह रही थी और मुझे कोई फर्क नहीं पड़ रहा था कि उस सेक्स का मजा लेने में मेरे साथ कुछ गलत भी हो सकता था।



उसको समझाते-समझाते मेरे दिमाग में एक और शरारत सूझी।
 

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