Incest पूरे घर की रंडी

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‘सॉरी भाभी, मैं आपके नंगे जिस्म में इतना खो गया था कि मुझे याद नहीं रहा कि मैंने अभी तक अपने कपड़े नहीं उतारे।’


फिर वो तुरन्त ही खड़ा हुआ और अपने पूरे कपड़े उतार दिये।



क्या लंबा लंड था उसका… बिल्कुल टाईट। वो लंड नहीं ऐसा लग रहा था कि कोई ड्रिलिंग मशीन हो। मैं तुरन्त खड़ी हो गई और उसके लंड को हाथ में लेकर बोली- जब तुम्हारे पास इतना बढ़िया औजार था तो अभी तक मुझसे इसको छिपाया क्यों?



कह कर मैंने अपनी जीभ उसके सुपारे के अग्र भाग में लगा दी। उसके लंड से भी रस की एक दो बूंद टपक रही थी जो अब मेरे जीभ का स्वाद बढ़ा रही थी।



मैं भी अब उसके लंड को अपने मुंह में रखकर चूसने लगी।


बड़ा ही कड़क लंड था उसका… अब सूरज ज्यादा उत्तेजित हो रहा था।


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उसने मेरा सिर कस कर पकड़ा और मेरे मुंह को ही चोदने लगा। उसका लंड बार बार मेरे गले के अन्दर तक धंस रहा था, जिसकी वजह से बीच-बीच में मुझे ऐसा लगता था कि लंड अगर मेरे मुंह से नहीं निकला तो मैं मर जाऊँगी।



थोड़ी देर तक मेरे मुंह को चोदने के बाद सूरज ने एक बार फिर मुझे गोद में उठाया और पास पड़ी हुई डायनिंग टेबिल पर लेटा दिया। उसके बाद सूरज ने मेरे दोनों पैरों को हवा में फैलाते हुए उसे एक दूसरे से दूर करते हुए अपने लंड को मेरी चूत के मुहाने में सेट किया और एक तेज झटका दिया।


गप्प से उसका लंड मेरी चूत के अन्दर जाकर फिट हो गया।


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सूरज हवा में ही मेरे दोनों टांगो को पकड़े हुए ही अब मुझे चोदे जा रहा था और मैं इस समय एक ब्लू फिल्म की हिरोइन की तरह चुद रही थी।



इस पोजिशन में चोदने के बाद उसने मुझे अपनी गोद में उठा कर ही मुझे चोदने लगा।


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मैं डिस्चार्ज हो चुकी थी, लेकिन वो मुझे चोदे ही जा रहा था।



एक बार फिर सूरज ने मुझे डायनिंग टेबिल पर लेटा दिया और बोलने लगा- भाभी, मेरा निकलने वाला है, जल्दी बोलो कहाँ निकालूँ?



मैं तुरन्त बोली- मेरे मुंह में!



मेरे इतना कहने पर सूरज मुझसे अलग हो गया और मैं उठ गई और सूरज के लंड को अपने मुंह में लेकर उसके निकलते हुए रस को पीने लगी।



सूरज ‘आ… ओ… आ…’ करके अपने लंड को हिलाये जा रहा था।



उसने भी अपना लंड मेरे मुंह से तब तक नहीं निकाला जब तक कि उसके रस का एक एक बूंद मेरे गले से नहीं उतर गई।


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उसके बाद सूरज ने मेरी बगल में हाथ लगा कर मुझे उठाया और डायनिंग टेबल पर बैठा दिया और फिर मेरी टांगों को फैलाते हुए उसने अपने मुंह को मेरी चूत के मुहाने में रख दिया और मेरे अन्दर से निकलते हुए रस को चाटने लगा।


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उसके बाद मैं और सूरज दोनों ही एक दूसरे के होंठों के एक बार फिर चूमने लग थे।



बॉस के घर के बॉलकनी में एक आराम चेयर रखी हुई थी सूरज उसे लेकर अन्दर आ गया और उसमे बैठकर अपनी दोनों टांगों को फैला कर मुझे अपने ऊपर बैठा लिया। हम दोनों के एक-एक अंग चिपके हुए थे, उसके दोनों हाथ मेरे पेट को कसे हुए थे और उसके होंठ मेरे गर्दन को पुचकार रहे थे।


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थोड़ी देर हम दोनों ऐसे ही शांत पड़े रहे, फिर सूरज ही बोला- भाभी, कई लड़कियों के चूत को मेरे इस लंड ने चोदा है पर जितना मजा आज आया है, वो मजा मुझे पहले कभी नहीं मिला है।



‘अच्छा तो मेरे देवर को लड़कियाँ अपनी चूत देने के लिये तैयार रहती हैं।’ कहकर मैं हँसने लगी और सूरज ने मेरी निप्पल को कस कर मसल दिया।



मेरे मुंह से केवल ‘उईईई ईईईई…’ ही निकल पाया और अब सूरज हंस रहा था।



कहानी जारी रहेगी।
 
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बॉस के फ़्लैट में अपने देवर(सूरज) से चूत चुदवाने के बाद मैंने उससे कहा- देवर जी, अपनी पहली चुदाई की कहानी सुनाओ।



सूरज बोला- मेरी पहली चुदाई कोई खास नहीं थी लेकिन उसको भूल भी नहीं सकता। आप सुनो भाभी...



जब मैं एडमिशन के बाद पहले दिन कॉलेज गया तो क्लास की सभी सीटें भरी हुई थी। मेरे साथ रागिनी नाम की एक लड़की थी जो देखने में ठीक ठाक ही थी, वो बहुत ज्यादा हाई-फाई नहीं दिख रही थी।


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हम दोनों को ही क्लास में बैठने की जगह नहीं मिल रही थी कि तभी प्रोफेसर आ गये और जब उन्होंने हमें इस तरह देखा तो चपरासी से कह कर एक बेंच सबसे पीछे लगा दी।



बेंच की लम्बाई बहुत ज्यादा नहीं थी, हम दोनों ही उस बेंच पर बैठ गये लेकिन मेरा मन अपनी स्टडी में नहीं लग रहा था, कारण मेरा जिस्म और रागिनी का जिस्म एक दूसरे से सट रहा था।



शायद उसका भी मन नहीं लग रहा था क्योंकि बार-बार वो मेरी तरफ बड़े ही नर्वस होकर देख रही थी। नर्वस तो मैं भी था लेकिन मैंने अपनी नर्वसनेस को शो नहीं किया। किसी तरह मेरा पहला दिन बीता।



दूसरे दिन मैं कॉलेज जल्दी इस उम्मीद से पहुँच गया कि मैं अपनी कोई दूसरी जगह को अरेंज कर लूंगा लेकिन दूसरे लड़के लड़कियों ने न तो मुझे और न ही रागिनी को किसी दूसरी सीट पर नहीं बैठने दिया।



क्लास में जितने भी प्रोफसर आये, सभी से हम दोनों ने रिक्वेस्ट की पर हम दोनों के मजाक उड़ने के सिवा कुछ नहीं हुआ, विवश होकर हम दोनों को फिर उसी सीट पर बैठना ही पड़ा।



अब धीरे-धीरे हम दोनों के लिये वही सीट फिक्स हो गई।क्लास के शेष लड़के और लड़कियाँ हम दोनों का मजाक उड़ाते और भद्दे कमेन्टस पास करते।



मैं(आकांक्षा) बीच में ही बोल पड़ी- कमेन्टस, कैसे कमेन्टस?



‘यही कि अबे लड़की मिली है तो पटा कर मजा ले!’



खैर अब हम दोनों ही झिझक छोड़ कर पढ़ाई पर ध्यान देने लगे और अच्छे दोस्त हो गये। हम लोग एक दूसरे से हंसी मजाक भी करने लगे। मजाक करते-करते या बात करते-करते कभी मेरा हाथ उसकी जांघ पर चला जाता तो कभी उसका हाथ मेरी जांघ पर होता।



रागिनी भी मुझे कभी चूतिया तो कभी गांडू कहकर बुलाने लगी। एक दिन वो मुझे किसी बात पर पता नहीं क्या हुआ था, शायद रागिनी मुझसे कई दिन से नोटस मांग रही थी, लेकिन मैं उसे वो नोटस नहीं दे पा रहा था कि एक दिन रागिनी मुझे बोली- अबे साले गांडू, कभी तो कोई काम कर लिया कर, इतने दिन से मैं तुझसे नोटस मांग रही हूँ और तू गांडू है कि दे नहीं रहा है।



इस बार मैं बोल उठा- बोल ले तू साली मुझे जितना गांडू… पर एक दिन तेरी गांड मैं ही मारूँगा।



मेरी इस बात को सुनकर उसने थोड़ा सा मुंह बनाया और चली गई।



कहानी बताते बताते सूरज मेरे जिस्म को सहलाता जा रहा था। खास तौर पर उसके दोनों हाथ मेरे चूचियों को ऐसे दबा रहे थे मानो ये आम हों और इनमें से रस निकल रहा हो!


और तो और सूरज के नाखून मेरे निप्पल को मसल रहे थे।


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मैंने फिर पूछा- फिर क्या हुआ?



तो सूरज बोला- भाभी, दो-तीन दिन तक रागिनी कॉलेज नहीं आई तो मुझे भी लगा कि कही वो मेरी बात का बुरा नहीं मान गई।



पर चौथे दिन जब वो कॉलेज आई तो पहले की अपेक्षा वो काफी सेक्सी लग रही थी। हालाँकि कपड़े उसने वही सलवार सूट पहना हुआ था पर कायदे से मेकअप करके आई थी।


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सीट पर आकर मेरे पास खड़ी हो गई और थोड़ा झुकती हुई बोली- और गांडू, क्या हाल है?



मैं(आकांक्षा) बीच में बोली- रागिनी ने तुम्हारा निक नेम गांडू तो नहीं रख दिया था?



‘भाभी आप भी?’



‘अच्छा ठीक है, अब आगे बताओ?’



‘हाँ तो मैंने उसके इस बात का रिसपॉन्स नहीं दिया तो वो थोड़ा और पास आई और बोली- है न तू गांडू का गांडू… उस दिन गांड मारने की बोल रहा था और आज मुझसे बात भी नहीं कर रहा है।



मैंने उसकी गांड में चुटी काट दी तो आउच करके पीछे हट गई और फिर बगल में मेरे पास बैठ गई।



थोड़ी देर तक तो हम दोनों की बात नहीं हुई, फिर हार कर मैंने ही पूछा तो बोली- यार, वास्तव में उस दिन मैं बुरा मान गई थी, इसलिये मैं घर चली गई। इसी दौरान मुझे मेरी एक दूर की रिश्तेदार की शादी में जाना पड़ा।



चूंकि मैं पहली बार अपनी उस बहन के पास गई थी तो वो हर वक्त मुझे अपने साथ ही रखती थी। यहां तक कि रात में मैं उसके साथ उसके कमरे में सोती थी। परसो आधी रात को अचानक कुछ फुसफुसाहट से मेरी नींद खुली तो मेरी वो बहन फोन पर बातें कर रही थी और बोल रही थी ‘मत परेशान हो मेरे राजा, शादी के बाद तेरे ही पास आ रही हूँ, तेरे लौड़े की जम के सेवा करूँगी। अभी अपने लंड को शान्त रख।’
 
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इसी तरह गन्दे शब्दों को वो बोल रही थी कि बीच में वो बोल पड़ी ‘अबे गांडू, मार लेना मेरी गांड… अब फोन रखो। मुझे नींद आ रही है।’



फिर दोनों की बाते खतम हो गई और वो मेरे ऊपर अपनी टांग चढ़ा कर सो गई लेकिन उसकी बात ‘अबे गांडू, मार लेना मेरी गांड’ ही मेरे कानों में सुनाई पड़ रही थी।



मुझे लगा कि जब ये इस तरह खुल के बात कर सकती है तो मैं तो तुमको अक्सर कहती रहती हूँ। मैं जोर से हँसा। उसके साथ साथ सभी मुझे देखने लगे।



मैंने धीरे से रागिनी से कहा- लगता है कि तुम्हारे पूरे घर में गांडू बोलने की आदत है?



पता नहीं मुझे क्या हो गया था कि मैं उसे छेड़ना चाह रहा था इसलिये मैंने उसकी जांघों को सहलाना शुरू कर दिया।


एक-दो मिनट उसको अहसास नहीं हुआ।



फिर मैं(आकांक्षा) और सूरज दोनों बिस्तर पर पहुँच गये। सूरज बिस्तर पर लेट गया और बोला- भाभी, मेरे लंड को अपनी चूत के अन्दर लेकर मेरे ऊपर लेट जाओ।



मैंने उसके कहे अनुसार उसके लंड को अपनी चूत के अन्दर कर लिया और उसके ऊपर लेट गई।


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सूरज एक बार फिर मेरी पीठ सहलाते सहलाते अपनी आगे की कहानी बताने लगा:



रागिनी होंठों के चबाये जा रही थी और अपने दोनों पैरों को जितना सिकोड़ सकती थी, सिकोड़ने की कोशिश कर रही थी।



उस दिन पहली बार मुझे पीछे की सीट पर बैठने का फायदा मिला, कुछ देर मैं उसकी जांघ को सहलाता रहा, फिर धीरे से उसकी चूत के ऊपर हाथ ले जाने लगा तो उसने मेरा हाथ पकड़ लिया और बोली- सूरज, यह तुमने क्या किया?



‘क्या हुआ?’



वो बोली- पता नहीं मेरे अन्दर से क्या निकल रहा है कि मेरी पैन्टी गीली हो गई है।


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‘भाभी, आप तो जानती हो कि लड़कों की आदत शुरू से ही खराब होती है, मैंने उसके हाथ को पकड़ा और जल्दी से उसकी चूत के ऊपर अपनी उंगली लगा दी। वास्तव में उसकी सलवार भी गीली थी।’



मैंने अपनी उंगली का दवाब उसकी चूत पर और दिया इससे उसका पानी मेरी उंगली पर आ गया और उसके रस से गीली हुई मेरी उंगली को मैंने अपनी जीभ से लगा लिया।



रागिनी ने जब मुझे ऐसा करते हुए देखा तो बोली- छीः छीः, यह क्या कर रहे हो? यह गन्दा है।



मैंने उसकी तरफ देखा और बोला- मुझे तो इसका स्वाद बड़ा ही अच्छा लग रहा है।



फिर उससे बोला- देखो, मेरी वजह से तुम्हारी पैन्टी गीली हुई है। तो ऐसा करो कि अपनी पैन्टी मुझे दे दो तो मैं उसे कल धोकर ला दूंगा।



‘नहीं दूंगी, मैं खुद धो लूंगी।’



मैं उससे मजे लेने के लिये बोला- अगर नहीं दोगी तो मैं खड़ा होकर चिल्ला दूंगा कि रागिनी ने पेशाब कर दिया है। अब देख लो?



उसने मुझे एक तेज चुटकी काटी और बोली- ठीक है, थोड़ी देर बाद।



लेकिन मुझे तो तुरन्त ही चाहिये थी ताकि मैं उसके रस को सूंघ सकूँ और मजा ले सकूँ। फिर मैं रागिनी को धौंस देते हुए बोला कि मुझे अभी तुरन्त ही चाहिये।



दाँत पीसते हुये वो अपना बैग लेकर गई और थोड़ी देर बाद वापस आई और बैग से अपनी पैन्टी निकाल कर मुझे देती हुई बोली- लो।



मैंने उसकी पैन्टी ली और जहां पर उसका रस लगा था उसको अपने नाक के पास ले गया, सूंघने लगा।


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वो मेरा हाथ दबाते हुए धीरे से बोली- सूरज, यह क्या कर रहे हो।



मैंने कहा- मैं अपनी दोस्त के रस की महक ले रहा हूँ। कहकर उस हिस्से को मैंने अपने मुंह के अंदर भर लिया।



मैं(आकांक्षा) बोली- यार सूरज तुम तो शुरू से ही बहुत ही चोदू किस्म के इंसान हो।



‘हाँ भाभी, लेकिन तुम्हारे जैसी चुद्दक्ड़ रांड नहीं देखी। क्योंकि तुम जान जाती हो कि कब और कैसे मजा दिया जाये।’



‘अच्छा फिर क्या हुआ?



बस मैंने उसकी चड्डी को खूब अच्छे से चाट कर साफ किया और फिर उसके बाद मैं अपना लंड बाहर निकालने लगा तो रागिनी बोली- सूरज तुम बहुत बेशर्म होते जा रहे हो।



मैं बिना कुछ बोले लंड को मुठ मारने लगा और कुछ ही देर में मैंने अपना पूरा माल उसकी पैन्टी में गिरा दिया, जबकि इतनी देर में रागिनी इस बात को लेकर डर रही थी कि कहीं कोई आकर मेरी यह हरकत न देख ले।



मेरा जितना वीर्य उसकी पैन्टी में गिर सकता था उतना गिरा बाकी का मैंने उसकी ही पैन्टी से साफ किया और उसकी और पैन्टी बढ़ाते हुए कहा- अब तुम्हारी बारी!



वो बोली- छीः मैं ये नहीं करूँगी।



मैं समझ गया कि यह सीधे से मानने वाली नहीं है तो एक बार उसको फिर ब्लैक मेल किया कि अगर नहीं करोगी तो मैं खड़े होकर तुम्हारी पैन्टी सबको दिखा दूंगा।
 
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तीन बार मैं सूरज से चुद चुकी थी और हम दोनों को भी घड़ी इशारा दे रही थी कि समय खत्म हो चुका है। हमने अपने कपड़े पहने और रास्ते में अपने बॉस को चाभी देकर धन्यवाद दिया।



बॉस साला हरामी का हरामी ही रहा, विदा करने से पहले मेरी गांड में उंगली करने के साथ-साथ चिकोटी भी काट लिया।



उसके बाद मैं जब घर पहुंची तो नमिता ने डॉक्टर की जानकारी ली तो मैंने सूरज की तरफ देखते हुए नमिता के कान में बताया कि डॉक्टर ने अच्छे से चेकअप किया और मेरी चूत के अन्दर उंगली करके बोली कि यह सूख रही है, पति से ही इसका इलाज संभव है। कहकर मैं अपने कमरे में चली गई कपड़े बदले और फिर लेटे ही लेटे रितेश का इंतजार करने लगी।



नमिता ने मुझे खाना मेरे ही कमरे में दे दिया था। लगभग एक घंट बाद ही रितेश आ गया, पूरे घर वालों को हाल चाल देने के बाद हम दोनों ने एकांत पाया और फिर हम दोनों अपने कमरे में आ गये।



जब तक रितेश घर पर नहीं था तो मैंने अपने कमरे के पर्दे को इस तरह से सेट किया था कि जो चाहे मेरे कमरे में झांक कर अंदर हो रहे खेल का नजारा लेकर मस्त हो सकता था।



कमरे के अंदर आते ही रितेश और मैं एक दूसरे की बाँहों में बहुत देर तक रहे। यही हम दोनों का प्यार था कि हम दोनों ने एक दूसरे से कुछ नहीं छिपाते हैं, खुल कर एक दूसरे से बातें करते हैं, किसने किसके साथ कब सेक्स किया है, ये हम दोनों को पूरा पूरा पता था।



बहुत देर तक मैं उसकी बाँहों में और वो मेरी बाँहों में था। चूंकि अब हम दोनों को दो-तीन घंटे की पूरी छूट थी तो मैं और रितेश अपने बेड पर एक दूसरे से चिपक के बैठे हुए थे।



मैं ज्यादा उत्सुक थी कि सुहाना ने अपने पति के साथ की हुई रतिक्रिया के बारे में क्या बताया। लेकिन रितेश के पास अभी तक सुहाना का फोन नहीं आया था, इसलिये उसको भी कोई जानकारी नहीं थी।



फिर मेरे पूछने पर कि सुहाना के साथ कैसा बीता तो वो बोला कि मजा तो आ रहा था लेकिन जब उसके गांड का बाजा बज चुका था तो वो चली गई और बोली कि मेरा गिफ्ट उधार है और अगर कभी मिले तो मुझे वो गिफ्ट पूरा करेगी।



मेरी उंगलियाँ रितेश की छाती के बालों से खेल रही थी जबकि रितेश मेरी बांहों को सहला रहा था।



तभी रितेश ने पूछा- आज तुम्हारी तबीयत खराब थी?



तो मैं सूरज की पूरी कहानी सुनाने लगी ताकि रितेश को समझ में आ जाये कि मेरी तबीयत क्यों खराब हुई।



अचानक रितेश को याद आया कि उसके जीजा के साथ मैंने क्या किया तो मुझे रोकते हुए बोला- तुमने जीजाजी को अपने पानी का भरपूर मजा दिया।



‘हाँ दिया तो… लेकिन वो मेरा गुस्सा था। उस रात को तुम्हारे बिना मुझे नींद नहीं आ रही थी तो मैं छत पर चुपचाप टहल रही थी कि अचानक मैंने नमिता और अमित की लड़ाई की आवाज सुनी तो देखा कि अमित चाह रहा था कि नमिता उसके साथ सेक्स करे जबकि नमिता तैयार नहीं थी। तभी मुझे समझ में आ गया कि अमित इसलिये हर जगह हाथ पाँव मारने की कोशिश करता है।’



‘फिर तुमने क्या किया?’ रितेश ने पूछा।



‘कुछ नहीं… नमिता को रास्ते पर ले आई। दोनों खूब मजा करते है। एक बार तो हम तीनों ने मजा भी साथ ही साथ लिया।’



रितेश मेर निप्पल को दबाते हुए बोला- तुम खूब मजे कर रही थी मेरे पीछे?



थोड़ा सा भाव मारते हुये मैं बोली- अगर तुम्हें न पसंद हो तो मैं नहीं करूंगी।



‘अरे नहीं यार, मैं तो मजाक कर रहा था।’



उसके बाद मैंने अपने, नमिता और अमित के बीच हुई कहानी को एक बार फिर रितेश को बताया। रितेश को कहानी सुनाने के बाद मैं बोली- यार, चल आज रात हम दोनों ही अमित और नमिता की चुदाई देखते हैं।



‘यह क्या कह रही हो?’



‘तो क्या हुआ, वो भी तो तुम्हारे बारे में अब सब जानती है।’



‘अच्छा, चल रात की रात देखते हैं, अब मेरा लंड तन रहा है।’



तो मैं बड़ी ही स्टाईल से खड़ी हुई और रितेश के सामने खड़ी हुई और अपने गाउन को ऊपर करते हुये बोली- ये छेद दूँ तुम्हारे इस लंड को?


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फिर मैं पीछे घूम कर अपनी गांड को दिखाते हुये बोली- या तुम्हारे लंड को इस छेद की जरूरत है या फिर मेरा मुंह?


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रितेश छुटते ही बोला- मुँह!! आओ दोनों एक दूसरे का पहले पानी निकालें, फिर तुम मुझे सूरज के बारे में बताना!



हम दोनों ही 69 की अवस्था में आ गये, रितेश अपने मुंह से मेरे चूत की सेवा कर रहा था और मैं उसके लंड की सेवा कर रही थी। कुछ देर बाद ही हम दोनों का पानी एक दूसरे के मुंह में था।


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उसके बाद मैं फिर रितेश के बगल में बैठ गई। हाँ, बीच बीच में मेरी नजर खिड़की की तरफ उठ जाती थी। मैं लंड चूस के उठी ही थी कि मुझे लगा कि किसी की परछाई है जो कमरे के अंदर झांक रही थी।
 
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मैंने तुरंत अपने गाउन को उतारा और पूर्ण रूप से नंगी होकर थोड़ा सा खिड़की के और करीब आ गई और रितेश से भी पूरे कपड़े उतार कर मेरी बुर को एक बार और चाटते हुये कहानी सुनने को कहा।

रितेश को भला क्या ऐतराज हो सकता था, वो भी तुरंत अपने कपड़े उतार कर मेरे पास आ गया और नीचे बैठ कर अपनी जीभ मेरी बुर में लगा दी।

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मैं तिरछी नजर से खिड़की पर देखते हुए रितेश को अपनी और सूरज की कहानी थोड़ा ऊँची आवाज में सुनाने लगी ताकि जो बाहर खड़ा है, उसे भी खुली खिड़की का मजा आये।

मैंने रितेश को अपने और सूरज की चुदाई के बारे में शुरू से कहानी सुनानी शुरू की कि कैसे मुझे पता लगा कि उसके अंदर मेरे लिये क्या है और उसने मुझे कब कब और कहाँ कहाँ नंगी देखा।

मैं रितेश को कहानी सुना रही थी पर मेरी नजर बाहर ही थी और जो मैंने देखा वो मुझे मेरे मन मुताबिक ही लगा। वो मेरा सबसे छोटा देवर रोहन ही था जिसको मेरा चस्का लग गया था।

इधर मेरी कहानी खत्म हुई, उधर रितेश कि चटाई खत्म हुई।
रितेश खड़ा हुआ तो उसका लंड मेरी चूत चूसाई और चटाई और ऊपर से मेरे और सूरज की कहानी सुनने के बाद काफी टाईट हो चुका था।

वो मुझे अपना लंड दिखाते हुए बोला- जान, तेरी चूत का तो काम हो चुका है, अब मेरे लंड का क्या होगा?

मैं बोली- मेरी जान, चिंता क्यों कर रहे हो, तुम्हारी यह प्यारी रंडी दुल्हन कब काम आयेगी। चलो आ जाओ, अपने लंड महराज को मेरी गांड की सैर करा दो।

मैं रितेश के और करीब आ गई, उसके कान में बोली कि बाहर उसका सबसे छोटा भाई काफी देर से हम लोगों को देखकर अपना लंड हिला रहा है, लेकिन उसका पानी नहीं निकला है।

बात काटते हुए रितेश बोला- तो मेरी प्यारी रंडी बीवी अपने शौहर को छोड़ कर उसका पानी निकालने जायेगी?

‘नहीं यार!’ मैं बोली

तुम मेरी गांड इस तरह मारो कि रोहन को मेरी गांड और लंड की चुदाई पूरी दिखे पर उसे ऐसा नहीं लगे कि हम उसे देख रहे हैं।

रितेश मेरी बात समझ गया, मैं और रितेश खिड़की के और करीब आ गये। हमारी पीठ खिड़की की ही तरफ थी, लेकिन मेरी समझ से मेरी गांड चुदाई बाहर से पूरी तरीके से देखी जा सकती थी।

अब मैं झुक चुकी थी और रितेश मेरे पीछे थोड़ा सा इस तरह से हट कर खड़ा होकर मेरे गांड की उठान को इस प्रकार फैलाया था कि अंदर का छेद बाहर खड़े रोहन को अच्छे से दिखे।

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उसके बाद मुझे मेरी गांड पर कुछ गीलापन सा लगा, रितेश अपने थूक से मेरी गांड को तीन-चार बार गीली कर चुका था।
तभी गप्प से उसका लंड मेरी गांड में घुस गया… चीख के साथ मेरे मुंह से गाली भी निकली- माआआदरचोद… मेरी गांड में अपने गधे जैसा लंड को प्यार से नहीं डाल सकता क्या?

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उधर रितेश ने भी वैसा ही जवाब दिया- हाँ बहन की लौड़ी, तेरी गांड है या गुफा? मेरा लंड एक ही बार में पूरा का पूरा अंदर चला गया। चल बता बुर चोदी कितनों से अपनी गांड मरवाई है?

‘अरे मेरे गांडू राजा, ऐसा अपनी प्यारी रंडी के लिये मत बोलो, मेरी चूत के अंदर किसी का भी लंड सैर कर सकता है, पर मेरी गांड में केवल तेरा ही लंड सैर करता है।’

इस तरह हम लोग गाली गलौच वाली भाषा का प्रयोग करके चुदाई का मजा भी ले रहे थे। बाहर खड़े रोहन का तो मुझे पता नहीं लेकिन रितेश की स्पीड बढ़ गई और कुछ देर बाद रितेश का माल मेरी गांड में था।

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मैं धीरे से पर्दे के पीछे गई और देखने लगी कि रोहन क्या कर रहा है। बाहर का नजारा कुछ अलग ही था, रोहन मदहोश होकर अपने लंड को फेंट रहा था और थोड़ी देर बाद उसकी मलाई उसके हाथ में थी। रोहन ने अपनी जीभ इस तरह अपनी मलाई में लगाई मानो कि वो नमक चाट रहा हो।

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एक दो-बार ऐसा करने के बाद वो अपनी मलाई ही पूरी चाट गया कि तभी रितेश का मोबाईल बजने लगा और रोहन अपनी मदहोशी से बाहर आया।

उधर रितेश थोड़ी उँची आवाज में बोला- आकांक्षा, मेरा मोबाईल बज रहा है।

मैं भी थोड़ी ऊँची आवाज में बोली- आई।

ताकि रोहन को यह समझ में आ जाये कि कोई भी उसे देख सकता है। और मेरी बात भी सही हुई, रोहन ने तुरंत अपना लोअर पहना और नीचे भाग गया।

रितेश ने मोबाईल उठा लिया, मैं भी रितेश के पास बैठ गई, रितेश ने मोबाईल को स्पीकर में कर दिया, उधर से कोई लडकी बोली -हैलो!

रितेश- हैलो!

लडकी- कौन बोल रहा है?

रितेश- मैं रितेश!

रितेश ने अपना पूरा परिचय दिया। पूरा परिचय लेने के बाद लडकी को तस्सली हो गई कि उसकी बात रितेश से ही हो रही है तो वो बोली- रितेश मैं सुहाना बोल रही हूँ।
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रितेश- ओह, हाँ मैम बोलिये, बंदे को कैसे याद किया।



सुहाना- मुझे तुम सुहाना ही बोलो।



रितेश- ओके सुहाना, कल रात मैं तुम्हारे फोन का इंतजार ही कर रहा था, जब नहीं आया तो सोचा कि बिजी होगी इसलिये मैंने डिस्टर्ब नहीं किया।



सुहाना- हाँ, रात मैं ज्यादा थक गई थी और फिर सुबह ऑफिस में ही बिजी थी। अब जा कर थोड़ा फ्री हुई हूँ तो तुमको फोन लगा लिया। बाई दी वे तुम क्या कर रहे हो?



रितेश ने मेरी तरफ देखा, मेरी चूत को अपनी दूसरी हथेली से कस कर भींच दिया और हौले से मुस्कुराते हुए कहा- काफी दिनों बाद मैं अपनी वाईफ से मिला तो उसकी गांड मार रहा था।



सुहाना- तो क्या वाईफ भी तुम्हारे साथ बैठी है?



रितेश ने इस जगह पर थोड़ा सा झूठ बोला- नहीं, वो अंदर अपनी गांड साफ करने गई है।



रितेश की यह बात सुनकर सुहाना बोली- रितेश, तुमको गांड मारने में बड़ा मजा आता है? तुमने मेरी भी गांड चोदी और इस समय अपनी वाईफ की गांड चोद दी?



रितेश- क्या करूँ सुहाना, आकांक्षा ने ही मुझे ये गांड मारने की आदत डलवाई है।



मेरा सिर रितेश के सीने पर था, दोनों की बाते सुनते-सुनते मैं उसके निप्पल के साथ भी खेल रही थी।


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सुहाना- इसका मतलब तुम्हारी वाईफ को भी वाईल्ड सेक्स पसंद है?



रितेश- क्यों नहीं, मेरी वाईफ है ही ऐसी! जो एक बार उसको देख भर ले तो उसके चूत और गांड के पीछे अपना लंड लिये हुए दौड़ता रहे।



सुहाना- इसका मतलब अगर तुम्हारी परमिशन उसे मिल जाये तो वो किसी के साथ भी सेक्स कर सकती है?



रितेश- क्या सुहाना जी, सेक्स नहीं इसको चुदना बोलते है और इसमे परमिशन की क्या बात है। उसका छेद है, जिसे देना चाहे वो दे सकती है।



सुहाना- इसका मतलब तुम चाहते हो कि आकांक्षा किसी के साथ भी चुदे?



रितेश- मैं चाहता नहीं, जानता हूँ कि वो कब किससे चुदी है।मेरी आकांक्षा है, मुझसे कुछ नहीं छिपाती है और वो भी जानती है कि मैं किसकी चूत में अपना लंड डालता हूँ।



सुहाना- वाव! क्या जोड़ी है तुम दोनों की!



रितेश- हाँ सुहाना! हम दोनों का मानना है कि जिसको जहाँ भी मौका मिले वो एन्जॉय करे। अब बतायें कि क्या हुआ था रात को?



सुहाना- अपनी वाईफ को भी बुला लो, वो भी मेरी कल रात वाली कहानी सुने!



मैं सुहाना की बात सुनने के बाद बोली- हाय सुहाना जी, कैसी हैं आप?



सुहाना- मैं ठीक हूँ, तुम कैसी हो। तुम्हारा पति तो कमाल का है, क्या चुदाई करता है।



मै- हाँ! अभी-अभी उसने मेरे गांड का भी बाजा बजाया है।



सुहाना- वाआओ… तुम भी खुले शब्दों का प्रयोग करती हो।



मै- तो क्या हुआ, सेक्स करना है तो खुले दिल से करो।



रितेश- हाँ, अब आप सुनाओ अपना किस्सा!



सुहाना- कल रात जब मैं तुम्हारे पास से अपनी गांड मरवा कर घर गई तो देखा मेरा हबी आशीष मेरा इंतजार कर रहा था।उसने तुरंत ही मेरे लिये कॉफी बना कर दी और मेरे कंधे को दबाने लगा। मेरे मना करने के बाद भी वो दबाता रहा और बोल रहा था कि तुम बहुत थक गई हो और तुमको इससे रिलेक्स मिलेगा।



वास्तव मैं मुझे बहुत ही अच्छा लग रहा था और सोच रही थी कि जब मैं एक गैर मर्द के साथ खुल कर सेक्स कर सकती हूँ तो अपने पति के साथ क्यों नहीं।



कल से पहले मुझे पता नहीं क्यों उसके साथ सेक्स केवल तब तक अच्छा लगता था जब तक कि उसका पानी मेरी चूत के अंदर न चला जाये।



रितेश- तो क्या वो जल्दी झर जाता था?



सुहाना- नहीं, आशीष का बस चले तो वो पूरी रात चोदे तो भी उसका स्टेमिना कम न हो।



रितेश- फिर आपको मजा क्यों नहीं आता था?



सुहाना- मुझे समझ में कभी नहीं आया। लेकिन मैं उसके साथ पहले कभी नहीं खुल पाई।



मैं- फिर कल क्या हुआ आप दोनों के बीच?



सुहाना- कल जब मैं तुम्हारे पास से वापस पहुँची तो तय कर लिया था कि आज आशीष जो भी मेरे साथ करेगा, उसमें मैं उसका पूरा साथ दूंगी।



फिर मैंने कॉफी पी और उसके बाद मैं बाथरूम में नहाने चली गई। आज मैं आशीष के लिये अपने दिल से शर्म निकालने जा रही थी। इसलिये मैंने बाथरूम का दरवाजा इस प्रकार बंद किया कि आशीष आसानी से अन्दर देख सके।



मैं शॉवर के नीचे नग्न खड़े होकर शॉवर ले रही थी और एक मेलोडी सॉन्ग गुन गुना रही थी कि मेरी पीठ पर आशीष का हाथ महसूस हुआ। वो मेरी पीठ पर साबुन मल रहा था।



मैं नादान बनते हुए उसकी तरफ घूमी। अरे तुम? देखा तो आशीष एकदम नंगा था और उसके हाथ में साबुन था।


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आशीष बोला- यार सॉरी, दरवाजा खुला था और तुमको साक्षात काम देवी के रूप में देखा तो खुद को रोक नहीं पाया। आज मुझे मत रोकना आज मुझे तुमको अच्छे से देख लेने दो।


कहते ही वो मुझे चुमते हुए नीचे मेरी चूत के पास अपनी जीभ निकाल दी और शॉवर का पानी जो मेरे जिस्म के एक-एक हिस्से पर गिरते हुए मेरी चूत से टपक रहा था, उस एक-एक बूँद को वो अपने जीभ में ले रहा था।



उस दिन मुझे लगा कि हर आदमी खुल कर सेक्स करना चाहता है, वो चाहता है कि उसकी बीवी या पार्टनर अगर उसके साथ बिस्तर में हो तो पूरी रंडी की तरह हो।



रितेश- फिर क्या हुआ सुहाना?



सुहाना- आशीष ने मेरी दोनों जांघों को पकड़ लिया और फिर अपनी जीभ को मेरी चूत के ऊपर चलाने लगा।



एक तरफ पानी मेरे जिस्म को ठण्डा करने की कोशिश कर रहा था तो दूसरी तरफ आशीष की यह हरकत मुझमें एक उत्तेजना पैदा कर रही थी और मुझे ऐसा लग रहा था कि मैं आशीष को ही समूचा अपनी चूत के अन्दर डाल लूँ।


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सुहाना की यह बात सुनकर हम दोनों ही हँसने लगे।



फिर रितेश बोला- फिर आगे क्या हुआ सुहाना?



सुहाना- मैं मस्त होकर आशीष से अपनी चूत चटवा रही थी। वो बार-बार मेरी पुतिया को अपने दाँतों से दबाता, जिससे मेरे मुँह से सिसकारी निकल जाती। वो मेरी चूत चाटने में बहुत मस्त हो गया। उसके इस चूत चटाई से मैं अपना पानी छोड़ चुकी थी, लेकिन पता नहीं क्यों मैं नहीं चाहती थी कि मेरा पानी उसके मुंह में जाये। मुझे अच्छा नहीं लग रहा था।



मैं- फिर आगे क्या हुआ सुहाना जी?



सुहाना- मैंने बहुत कोशिश की कि आशीष का मुंह मेरी चूत से हट जाये लेकिन आज आशीष को मेरी भी परवाह नहीं थी और जब तक उसने एक-एक बूंद मेरी चूत की चाट नहीं ली तब तक उसने मुझे छोड़ा नहीं। जिस तरह से आशीष मेरी चूत चाट रहा था तो मैं सोच रही थी कि मैं भी आशीष के लंड को अपने मुंह में ले लूँ और उसको भी मजा दूं।



पर आशीष मुझे अच्छे से नहलाने लगा और उसके बाद मुझे अच्छे से पौंछा और खुद भी नहाने के बाद अपने जिस्म को सुखा कर वो मेरे पास आया।



मैं कॉम्ब कर रही थी कि उसने मुझसे कंघी ली और मेरे बालों को कंघी करने लगा। फिर उसने मुझे पाउडर लगाया और सेन्ट को मुझ पर अच्छे से छिड़क रहा था। बॉडी लोशन लेकर फ़िर मेरे पीछे आ गया और लोशन कभी मेरी चूचियों में लगा कर मालिश करता तो कभी नाभि के आस-पास, तो कभी मेरी चूत के ऊपर उस लोशन से मॉलिश करता। उसका लंड मेरी गांड में चुभ रहा था।


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लोशन लगाते हुए आशीष मुझसे बोला- सुहाना, क्या आज तुम मेरी बात मानोगी?



मैंने भी कहा- हाँ हाँ, बोलो?



आशीष ने मुझे पीछे से कस कर हग किया और बोला- सुहाना, आज तुम मेरे साथ खुल कर मजा लो।



मैंने थोड़ा सा उसे चिढ़ाते हुए कहा- इतनी देर से मैं और कर क्या रही थी।



रितेश- फिर क्या हुआ?



सुहाना- आशीष थोड़ा सा मेरी चिरोरी करते हुए बोला ‘सुहाना मेरा लंड तुम्हारे होंठों का प्यासा है, आज इसकी प्यास बुझा दो। मैं उसकी तरफ घूमी और उसकी आँखों में आँखें डाल कर बोली ‘मुझसे ये मत कहो प्लीज, मुझे ये अच्छा नहीं लगता।’



मेरा मन भी कर रहा था कि मैं आशीष के लंड का पानी निकाल कर उसके स्वाद को चखूँ, लेकिन मैं थोड़ा उसे और तड़पना चाहती थी।



आशीष मेरी पीठ को सहलाते हुए अपने घुटने के बल पर बैठ कर एक फिल्मी हीरो की तरह उसने मेरे दोनों हाथों को पकड़ा और मुझे मनाने लगा, बोलने लगा ‘आज पहली बार इस हुस्न का आनंद ले रहा हूँ।’



पता नहीं क्या-क्या आशीष मेरी हुस्न के तारीफ में कसीदे पढ़े जा रहा था। मुझे लगा कि क्यों सुहाना तुमने इतना सब कुछ मिस किया। मैं झुकी और आशीष से बोली ‘अब से मैं तुम्हारे लिये वो सब करूँगी जो तुम्हें अच्छा लगे।’



कहकर मैंने उसको खड़ा किया और खुद थोड़ा इस तरह झुककर आशीष के लंड को मुंह में लिया कि आशीष जब मेरी गांड दीखे तो उसे और मजा आये।


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मैं आशीष के लंड को चूसे जा रही थी और वो मेरी गांड को सहला रहा था और आशीष के मुंह से ‘आह ओह… आह ओह…’ ही निकल रहा था, बोल रहा था ‘जानेमन, बहुत मजा आ रहा है। बस ऐसे ही चूसो। आह, चूसो, चूसो और चूसो बहुत मजा आ रहा है।’
 
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मेरा मुंह उसके लंड को चूसते चूसते दर्द करने लगा था। फिर थोड़ी देर बाद ही खुद आशीष ने मेरे मुंह से अपना लंड निकाला और मेरे पीछे आकर मुझे उसी पोजिशन में रहने के लिये कहा और फिर एक बार वो मेरी चूत को गीला करने लगा।



जब उसके हिसाब से मेरी चूत गीली हो गई तो उसने अपना लंड को मेरी चूत के अंदर बड़े धीरे से डाला। उसका लंड मेरे चूत के अन्दर थोड़ा ही गया था।


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फिर उसने अपने लंड को निकाला और फिर उसी प्यार से अपने लंड को मेरी चूत के अंदर डाला। इस तरह उसने तीन चार बार किया, तब जाकर उसके लंबे लड़ को मैं अपने अन्दर महसूस कर पाई।



उसके बाद वो मुझे कभी धीरे-धीरे पेलता तो कभी-कभी तेजी से पेलता। फिर एक वक्त आया जब आशीष के मुंह से निकलने लगा ‘बहुत मजा आया आज, अब मैं निकलने वाला हूँ।’



बस इतना सुनते ही मेरे मन में आज आशीष का पानी पीने का मन हुआ तो मैंने आशीष को रूकने के लिये कहा और जल्दी से उसके लंड को अपने मुंह ले लेकर चूसने लगी।



आशीष मुझे मना कर रहा था ‘नहीं सुहाना, मेरा पानी तुम्हारे मुंह गिरेगा, अपना मुंह हटाओ।’



पर मैंने भी उसकी बात को अनसुना कर दिया और जितनी देर में वो अपना लंड मेरे मुंह से निकालने की कोशिश करता, उतनी देर में उसका पानी मेरे मुंह के अन्दर छूट गया और उसके वीर्य मेरा पूरा मुंह भर गया।


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मैं अपना मज़ा लेते हुए उसके वीर्य के रस का एक-एक बूंद चट कर गई, आशीष बोलता ही रहा ‘यह क्या कर रही हो? मत करो ऐसा!’ पता नहीं क्या-क्या!



फिर मैं खड़ी हुई और एक रंडी की तरह मैंने कस कर उसके होंठों को चूसना शूरू कर दिय। आशीष ने मुझे गोद में उठाया और ले जाकर मुझे बिस्तर में पटक दिया और फिर मेरे बगल में लेटते हुए बोला ‘मैं मना कर रहा था तो भी तुम नहीं मानी?’



कहते हुए एक उंगली से मेरी जिस्म के पोर-पोर को वो गिटार के तार की भांति मुझे बजा रहा था। कभी उसकी उंगली मेरी चूचियों की गहराई के बीच होते हुए नाभि तक पहुँचती तो कभी मेरी भगनासा को छेड़ती तो कभी मेरी चूत के फांको के बीच होकर अंदर खाई में जाती।



मैं उसके इस हरकत का आनंद लेते हुए बोली- तुम ही तो कह रहे थे आज तुम्हें इस खेल को खुल कर खेलना है।



आशीष बोला- वो तो ठीक है। लेकिन!!!



मैंने कहा- लेकिन क्या? तुम भी तो मेरा रस के एक-एक बूंद को जब तक नहीं पी गये तब तक तुमने भी अपना मुंह कहाँ हटाया था।



मेरे इतना कहते ही वो मेरे होंठो पर अपनी उंगलियाँ चलाने लगा और फिर अपनी एक टांग को मेरे ऊपर चढ़ाते हुए मेरे होंठों को चूसने लगा।



आज मुझे उसका इस तरह से मेरे ऊपर टांग चढ़ाना भी बहुत अच्छा लग रहा था। होंठ चूसने के बाद उसने मुझे पलट दिया और फिर फ्रिज से आईस क्यूब एक कटोरे में ले आया और दो-तीन आईस क्यूब मेरी पीठ में थोड़ी थोड़ी दूर रखता हुआ उसे अपने मुंह में रखता और फिर मेरी पीठ में रखता।



मेरे साथ बहुत कुछ नया हो रहा था, मैं बेड में लगे हुए शीशे से आशीष की इन सब प्यारी हरकतों को देख कर आनन्दित हो रही थी।



तभी आशीष मेरी पीठ पर लेट गया और मुझसे कान में बोला- जानू, आज तुम बहुत मस्त लग रही हो!



मैंने भी उत्तर दिया- तुम्हारा खेल मुझे बहुत पसंद आ रहा है।



वो खुश होते हुए बोला- पक्का पसंद आ रहा है?



‘हुम्म सच में!’ मैं बोली।



फिर आशीष बोला- और मजा लोगी?



मैं- हाँ।



आशीष- तो अपनी गांड की फांकों को अपने हाथों से फैलाओ।



मैंने आशीष के कहे अनुसार अपनी गांड के पुट्ठे को पकड़ा और उसे फैला दिया, आशीष बोला-वाऊऊउ क्या मस्त गांड है।


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कहकर उसने उंगली को गांड के छेद के अन्दर डाल दी, फिर उसने कटोरे से आईस उठाई और थोड़ी ऊँचाई से उस आईस क्यूब को ठीक मेरी गांड के छेद की सीध में लगा दिया और जब उस आईस की एक-एक ठंडी बूंद मेरी गांड की छेद में पड़ रही थी तो मैं अंदर तक हिल जा रही थी। 10-15 बूंद उस आईस से सीधा मेरी गांड में गिरी। उसके बाद वो उस आईस को मेरी गांड में रगड़ने लगा।


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आशीष को बहुत दिन बाद इस तरह बिना किसी तनाव के मेरे साथ सेक्स करने का मौका मिला था और वो उस मौके के हर एक पल के आनंद का मजा लूट रहा था। वैसे भी मजा मुझे भी आ रहा था।
 
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फिर मुझे मेरी गांड में कुछ रेंगता हुआ महसूस हुआ। मैंने शीशे से देखा तो आशीष की जीभ मेरी गांड के छेद को चाट रही थी और फिर अचानक आशीष ने मेरे पुट्ठे को पकड़ा और जोर से कहा- सुहाना, आज तुमको एक और नया मजा मैं देने जा रहा हूँ!


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इतना कहने के साथ ही एक झटके में वो अपना लंड मेरी गांड के अन्दर पेल चुका था।


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मैं चीख उठी और हिलडुल कर मैं उसके लंड को गांड से बाहर निकालना चाहती थी, पर वो मेरे ऊपर पूरी तरह से लेट गया और मुझे हिलने का मौका बिल्कुल नहीं दिया।


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एक उसका लंड जो अचानक मेरे गांड के अन्दर जा चुका था, उसकी जलन हो रही थी और ऊपर से आशीष का वजन मेरे ऊपर था, सांस घुटती सी लग रही थी।



कुछ देर बाद आशीष मेरे ऊपर से उठा और फिर धीरे-धीरे मेरी गांड की चुदाई करने लगा। मुझे भी मजा आ रहा था, लंड के वजह से गांड काफी ढीली पड़ चुकी थी।


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अब आशीष मुझे घोड़ी बना कर कभी मेरी बुर चोदता तो कभी मेरी गांड की चुदाई करता।


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काफी देर तक आशीष मेरी गांड और बुर के छेदों की चुदाई करता रहा और फिर अन्त में वो मेरी गांड के अन्दर ही झड़ गया।


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उसके बाद हम दोनों एक-दूसरे से चिपक कर सो गये। आज सुबह जैसे ही उठा उसने मेरी चुदाई शुरू कर दी। फिर दोनों ही तैयार होकर ऑफिस के लिये निकल पड़े।



सुहाना की बात खत्म होते ही हम दोनों साथ-साथ बोल पड़े- मुबारक हो गांड और चूत दोनों के मजे साथ-साथ लेने के!



कहानी जारी रहेगी।
 
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सुहाना की बात पर हम दोनों ने उसे गांड और चूत दोनों के मजे साथ साथ लेने पर बधाई दी। सुहाना हँसने लगी।



फिर रितेश बोला- मेरा गिफ्ट?



सुहाना बोली- उसको मैं भूली नहीं हूँ।



तभी मैं बोल पड़ी- सुहाना, अगर आप चाहे तो मैं-रितेश और टोनी और मीना एक कपल दील्ली के हैं, हम लोग स्वैपिंग करते हैं।



सुहाना बोल पड़ी- ये स्वैपिंग क्या होता है?



तो मैंने सुहाना को बताया कि इस खेल में कपल्स होते हैं, एक मर्द दूसरे की बीवी को उसके सामने ही चोदता है यानि की अदला बदली कर के।



सुहाना- इसका मतलब तुम भी रितेश के सामने दूसरे मर्द से चुदवाती हो?



मैं- हाँ, शुरू शुरू में अच्छा नहीं लगा पर अब मजा आता है। अगर तुम चाहो तो तुम भी आशीष के साथ मेरे ग्रुप में शामिल हो सकती हो, बहुत मजा आयेगा।



‘चलो देखते हैं, मुझे तो ये बड़ा डेयरिंग खेल लग रहा है, पता नहीं आशीष मानेगा या नहीं!’



फिर बाकी इधर उधर की बात होने लगी और फिर सुहाना ने यह कहकर फोन काट दिया कि एक दो दिन में वो फोन करेगी।



सुहाना की कहानी सुनकर हम दोनों काफी उत्तेजित हो चुके थे तो फोन कटते ही रितेश ने मुझे पटक दिया, मेरी चूत में अपना लंड डाल दिया और तेज तेज चोदने लगा।


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थोड़ी देर बाद वो मेरे मुहँ में डिस्चार्ज हो गया और मेरे ऊपर लेट गया। रितेश हाँफ रहा था।


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हम दोनों का कोटा पूरा हो चुका था, अब मुझे इंतजार था कि रात में रितेश के साथ उसकी बहन की चुदाई को देख कर आनंद लेने का।



फिर मुझे ऑफिस वाला प्रोपोजल याद आया तो रितेश ने कहा- मैं अपने ऑफिस में जाकर बात करता हूँ। अगर छुट्टी मिल जायेगी तो हम दोनों कलकत्ता में हनीमून मनायेंगे।



उसके बाद हम दोनों ने अपने कपड़े पहने और नीचे आ गये।


रितेश घर के बाकी सदस्यों के साथ बात कर रहा था जबकि मैं और नमिता शाम के खाने की तैयारी में लग गये थे।



चूंकि घर के सभी सदस्य बड़े से छोटे तक चाहते थे कि मैं घर में गाउन ही पहन कर रहूँ तो फिर मैंने भी मन में ठान लिया था कि अब मैं घर में मटकते हुए चलूँगी ताकि सबको मेरी मटकती हुई गांड का भी मजा मिले।


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हम लोग खाना बना ही रहे थे कि अचानक बाबूजी ने सबको बुलाया और करीब 20-22 रिश्तेदारो के आने की खबर दी जो मुझसे मिलने कल ही आ रहे हैं और मुझसे पूछने लगे कि दो दिन रहेंगे, तुम्हें कोई ऐतराज तो नहीं है। मैं न भी कैसे करती।



रितेश मेरे पास आया और बोला- लो दो दिन के लिये फिर मुश्किल हो गई तो आज रात तैयार हो जा, तेरी खूब गांड और चूत चोदूँगा। मुझे भी क्या चाहिए था, रितेश का लंड ही तो चाहिये था।



खाना खाते खाते यह तय हुआ कि जितनी लेडीज आयेंगी वो ऊपर मेरे और नमिता के कमरे में रहेंगी और जेन्टस हॉल में तथा सुरज और रोहन के कमरे में रहेंगे।



चूंकि सासू मां ने पहले से ही मना कर दिया कि कोई भी उनके कमरे में नहीं रहेगा तो बस उनसे यही कहा गया कि यदि मेहमानों की संख्या अधिक हुई तो मैं और नमिता ही उनके कमरे में रात को सोयेंगे। सासू मां इस बात पर मान गई।



हम लोग खा-पीकर एक बार फिर सब अपने अपने कमरे में चले गये। कमरे में पहुँचते ही मैंने हल्की सी रोशनी की ताकि देखने वाले देख सकें।



मैं जैसे ही अपना गाउन उतराने लगी तो देखा कि रितेश नंगा खड़ा है, मुझे देखकर मुस्कुराते हुए कहा- यार अपना कमरा अपना ही होता है, कोई रोक टोक नहीं।



मैंने अपना गाउन उतारा और रितेश की बांहो में अपने को समेट लिया। तभी मुझे हल्की सी आवाज दरवाजे के बंद होने की आई, इसका मतलब था कि अमित और नमिता दोनों ऊपर आ गये हैं और उन्होंने ही दरवाजा बंद किया है।



उसी समय मैंने रितेश से थोड़ी उँची आवाज में कहा- रितेश, आज 69 की पोजिशन करके तुम मेरी चूत चाटो और मैं तुम्हारे लंड को चूसूँ, लेकिन खड़े वाली 69 की पोजिशन!



चूंकि रितेश भी काफी हृष्ट-पुष्ट था तो वो तैयार हो गया। मेरी नजर खिड़की पर ही थी जहाँ पर नमिता और अमित दोनों खड़े होकर हमे देख रहे थे।



रितेश ने मुझे उठाया और हवा में ही मुझे उल्टा कर दिया, मेरा मुंह उसके लंड पर आ गया। अब हमारी पोजिशन काफी रोचक थी और शायद बाहर से देखने वालों के लिये भी।


मैं रितेश के लंड को चूस रही थी, रितेश मेरी चूत का रसास्वादन कर रहा था। काफी थ्रिल था।


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