सुषमा ने पाठ दोहराते हुए एक लम्बी जम्हाई ली और बोली‒“कुछ समझ में आया....बेबी!”
सुषमा ने यह कहकर दृष्टि उठाई तो बेबी मेज पर रखी हुई कापी पर सिर रखे गहरी सांसें ले रही थी।
“अरे....यह तो सो गई....बेबी....ऐ बेबी....”
सुषमा से चौंककर पलटते हुए देखा और फिर मुस्कराकर उठती हुई बोली, “मैंने सोचा था कल सप्लिमेंट्री का पहला पेपर है आज जरा पाठ पूरे करा दूं किन्तु, यह तो एक पाठ भी पूरा न कर सकी।”
“ग्यारह बजने वाले हैं ना....” शंकर ने मुस्कराकर कहा।
“ग्यारह....” सुषमा चौंककर उठती हुई बोली, “उफ! बहुत देर हो गई....भैया शायद आ गए होंगे....कमरे की चाबी मेरे पास है अच्छा मैं चलती हूं।”
फिर सुषमा ने उठते-उठते बेबी की ओर देखा.....उसके भोले-भाले चेहरे पर सोते में भी एक मुस्कराहट थी। सुषमा ने मुस्कराकर बेबी के बालों पर हाथ फेरा, फिर उसे गोद में उठाकर बिस्तर पर लिटा दिया और उसे चादर ओढ़ाते हुए बोली, “बहुत कमजोर हो गई है बेचारी....दोहरा परिश्रम करना पड़ता है ना....शंकरजी....! आप इसके स्वास्थ्य का ध्यान रखा करें....”
“स्वास्थ्य का ध्यान....” शंकर फीकी-सी मुस्कराहट के साथ बोला, “मैं तो बहुत ध्यान रखता हूं....घर में किस चीज की कमी है? हजारो रुपये महीने की आमदनी है और खाने वाले केवल दो ही है....किन्तु केवल खाने-पीने से ही स्वास्थ्य थोड़े बनता है सुषमा देवी।” बच्चों को उचित देखभाल की भी आवश्यकता होती है....आज पांच वर्ष हो गए इसकी मां को मरे हुए....जब यह केवल चार ही वर्ष की थी तब से सिर पर मां की छाया नहीं पड़ी। मुझे दिन भर काम पर गैरेज में रहना पड़ता है....घर पर नौकरानी ही होती है, न जाने कैसे खिलाती पिलाती है....मुझे स्वयं निरन्तर यही चिन्ता रहती है, किन्तु समझ में नहीं आता क्या करूं?
शंकर सुषमा के मुंह की ओर देख रहा था। सुषमा ने सिर पर साड़ी का आंचल ठीक किया और बोली, “आप ठीक ही कहते हैं शंकरजी! मां के बिना बच्चों का जीवन ऐसे ही होता है जैसे तपती धूप में नन्हे कोमल पौधे....”
“किन्तु मैं इसकी मां को भगवान के घर से वापस नहीं ला सकता। स्वयं भी सोचता हूं कि बेबी को एक मां की छाया की आवश्यकता है, यदि ब्याह करूंगा भी तो ऐसी औरत से जो बेबी को प्यार करे!”
“यह भी आप ठीक कहते हैं....” सुषमा ने ठंडी सांस लेकर कहा, “यदि सौतेली मां से भी स्नेह न मिला तो बेचारी का जीवन नष्ट हो जाएगा....”
यह कहकर सुषमा दवात का ढक्कन बन्द करके द्वार की ओर बढ़ी। शंकर ने कहा, “जबसे तुमने बेबी को पढ़ाना आरम्भ किया है वह तुमसे हिलमिल गई है....दिन भर तुम्हारी ही बातें करती है....”
“बच्चे तो प्यार के ही भूखे होते हैं शंकरजी! मैं जब भी बेबी को देखती हूं मुझे अपना बचपन याद आ जाता है....यही विवशता और भोलापन होता है हर बे-मां के बच्चे के चेहरे पर...”
“यही तो मैं भी सोचता हूं....जितना बेबी तुम्हें चाहती है उतना ही तुम भी उसे प्यार करती हो....तुम मां की ममता का मूल्य जानती हो....तुम उसे भरपूर ममता दे सकती हो....”
“जी....” सुषमा ने चौंककर शंकर की ओर देखा।
“मेरा मतलब है....कल तुमने तनख्वाह मांगी थी....यह तुम्हारे पैसे रखे हैं...”
शंकर ने जेब में से दस-दस के पांच नोट निकालते हुए सुषमा की ओर बढ़ा दिए। सुषमा मुस्कराहट के साथ बोली, “कल शाम मैंने अपना वेतन मांगा था....आपने पचास रुपये दे दिए थे...”
“ओह....मुझे याद ही नहीं रहा....मैं जानता हूं तुम्हारे भैया की क्या आय है....किसी समय भी आवश्यकता पड़ सकती है....इन्हें अगले महीने की पेशगी समझकर रख लो....”
“धन्यवाद! शंकरजी! यदि पेशगी की आवश्यकता पड़ गई तो भैया कुछ अधिक समय तक टैक्सी चला लिया करेंगे।”
“फिर भी आवश्यकता तो किसी समय भी पड़ सकती है....अभी चार पांच दिन पहले की ही तो बात है तुम्हारे भैया की टैक्सी का एक्सिडेन्ट हो गया था.....ढाई तीन सौ रुपये मरम्मत में लग गए थे....रख लो समय पर काम आएंगे।”
सुषमा ध्यान से शंकर का चेहरा देखती रही....शंकर की आंखों का पीला प्रकाश धीरे-धीरे लाल रंग में परिवर्तित होता जा रहा था। उसने कुछ रुककर धीरे से कहा, “बहुत देर हो रही है शंकरजी! भैया मेरी प्रतीक्षा कर रहे होंगे....मैं जा रही हूं...”
सुषमा ने द्वार की ओर बढ़ने के लिए पहला पग उठाया ही था कि शंकर दोनों बांहें फैलाकर उसका रास्ता रोककर खड़ा हो गया। सुषमा ध्यानपूर्वक उसके चेहरे पर उत्पन्न भावों का निरीक्षण करती बड़बड़ाई “शंकरजी....”
“बहुत धैर्य कर चुका हूं सुषमा...” शंकर कंपकंपाती हुई आवाज में बोला, “कई दिनों से साहस बटोर रहा था कि तुमसे मन की बात कह दूं....जबसे तुमने बेबी के हृदय में प्यार का पौधा लगाया है, चुपके-चुपके दबे पांव तुम मेरे हृदय में भी उतरती चली आई हो, तुम्हें घर में देखता हूं तो कभी-कभार यों अनुभव होता है कि बेबी की मां घर में चल-फिर रही है....कई रातें बिस्तर पर करवटें बदलते-बदलते तुम्हारे ही विषय में सोचते हुए गुजर जाती हैं....आंख लग जाने पर स्वप्न में भी तुम बेबी की मां के रूप में ही आती हो....अब और सहन करना मेरे वश में नहीं सुषमा....बिल्कुल नहीं....मैं तुम्हारे आगे हाथ जोड़ता हूं....मेरी बेबी को एक मां दे दो....मेरे हृदय की दहकती हुई ज्वाला पर अपने शीतल भीगे होंठों का अमृत जल छिड़क दो....”
सुषमा के होंठों पर सन्तोषमय मुस्कराहट फैल गई। उसने धीरे से कहा, “मुझे बेबी से अत्यधिक प्यार है शंकरजी....इसी कारण मेरे मन में आपके लिए भी सहानुभूति है, क्योंकि आप बेबी के पिता हैं....मां के बाद उस अबोध का एकमात्र सहारा है....आप मेरे भैया को भी बहुत निकट से जानते हैं....उन्होंने जिन परिस्थितियों में एक मां और एक बाप बनकर मुझे पाला है....उन परिस्थितियों ने उन्हें कितना विद्रोही बना दिया है....मैं इसीलिए भैया से आपकी शिकायत न करूंगी कि कहीं कल आपकी बेबी को भी बाप की छाया से वंचित न होना पड़े....”
शंकर की सांसें और तेज हो गई थीं और उसकी आंखों से चिंगारियां निकलने लगीं। सुषमा ने उससे बचकर द्वार से निकलने का प्रयत्न किया किन्तु शंकर ने झपटकर उसे बांहों में दबोच लिया और हांफता हुआ बोला, “आज की रात मेरी है सुषमा....आज की रात मेरी है....कल सुबह तुम स्वयं रो-रोकर भैया से कहोगी कि वह तुम्हारे फेरे शंकर के साथ करवा दें....मैं उस समय भी तुम्हें अपनी पत्नी बनाना स्वीकार कर लूंगा.....क्योंकि मैं किसी दशा में भी तुम्हें छोड़ नहीं सकता....मुझे तुम्हारे शरीर, अंग प्रत्यंग में पदमा दिखाई दे रही है....तुम सुषमा नही हो पदमा..... हो मेरी पदमा.....”
“छोड़ दीजिए शंकरजी!” सुषमा कांपते स्वर में विनयपूर्वक बोली “भगवान के लिए मुझे छोड़ दीजिए...”
“यह असम्भव है....अब मुझसे तुम्हें कोई नहीं छुड़ा सकता....मैं जानता हूं कि तुम शोर नहीं मचाओगी....यदि तुमने शोर मचाया तो बात तुम्हारे भैया के कानों तक भी अवश्य ही पहुंचेगी....तुम्हारा भैया यदि आवेश में आकर मेरे प्राण भी ले लेगा तो वह भी फांसी के तख्ते पर लटकेगा....और तुम....तुम अपने भाई को अपने सामने फांसी लगते नहीं देख सकतीं....”
“हां, हां, मैं शोर नहीं मचाऊंगी,” सुषमा बिलबिला कर बोली “मुझे भैया के जीवन से अधिक अपनी इज्जत प्यारी है....रास्ते वाले क्या जानेंगे कि मैं लुट गई या बच गई किन्तु ऊपर भगवान भी तो है शंकरजी उसके कठोर दण्ड से बचिए....भगवान के लिए मुझे जाने दीजिए...”
किन्तु, शंकर तो पागल सा हो रहा था....वासना ने उसे अंधा कर रखा था....उसने बलपूर्वक सुषमा को बिस्तर की ओर खींचने का प्रयत्न किया....उसी समय सुषमा ने पूरी शक्ति से स्वयं को शंकर के चंगुल से छुड़ाना चाहा.....इस खींचातानी में सुषमा का ब्लाउज मसक कर पीठ से हट गया किन्तु यह तो वासना का चढ़ा हुआ भूत था जिसने उसे इतना बल भी दे दिया था। उसका सांस अत्यधिक फूला हुआ था और उसकी टांगें कांप रही थीं। सुषमा के दोनों हाथ स्वतन्त्र थे.....एक हाथ से वह अपने मुंह पर से शंकर का हाथ हटाने का प्रयत्न कर रही थी और दूसरे हाथ से शंकर की पीठ पर घूंसे मारे जा रही थी।
शंकर को एक छाया सी दिखाई दी। शंकर ठिठककर रुक गया। किन्तु, दूसरे ही क्षण उसने सन्तोष की सांस ली....वह छाया लड़खड़ाती हुई उसके पास से बिना कोई ध्यान दिए निकलने लगी‒शंकर ने सोचा कोई बेसुध शराबी होगा....उससे क्या भय है....किन्तु, ज्योंही वह लड़खड़ाता हुआ व्यक्ति उनके पास से निकलने लगा सुषमा ने हाथ बढ़ाकर जोर से उसका हाथ पकड़ लिया। वह व्यक्ति लड़खड़ा कर उसकी ओर मुड़ गया। घबराहट में शंकर की पकड़ ढीली पड़ गई। सुषमा एक बार पूरे बल से मचली और शंकर के कंधे से कूद गई। उसने उस व्यक्ति का हाथ अब भी नहीं छोड़ा था। धरती पर पैर पड़ते ही वह उस राह चलते व्यक्ति से चिपट गई और हांफती हुई बोली, “बचाओ....भगवान के लिए मुझे बचाओ।”
“आं....” वह आगंतुक आंखें फाड़कर देखता हुआ बोला, “कौन.....कौन है?”
दूसरे ही क्षण शंकर ने उस व्यक्ति को एक घूंसा मारा और वह लड़खड़ा कर पीछे हटा। सुषमा उसके साथ ही घिसटती चली गई। वह एक सहमी हुई फाख्ता के समान थर-थर कांप रही थी....वह व्यक्ति अब और अधिक आंखें फाड़कर शंकर को देख रहा था। शंकर ने इस बार सुषमा का हाथ पकड़ कर खींचने का प्रयत्न किया....किन्तु सुषमा ने उस व्यक्ति की कमीज गले से थाम ली और वह दूर तक उसके साथ खिंचता चला आया और फिर उसने एकाएक सुषमा का हाथ पकड़ कर जोर से झटका दिया। सुषमा का हाथ शंकर की पकड़ से स्वतंत्र हो गया। शंकर भन्ना कर फिर सुषमा की ओर झपटा। इस बार उस व्यक्ति ने हाथ घुमाकर शंकर की कनपटी पर मारा और शंकर का पूरा शरीर झनझना उठा। वह न केवल हड़बड़ा कर पीछे हटा बल्कि ठोकर खाकर पीठ के बल गिर पड़ा। वह व्यक्ति यों हाथ फैलाए हुए शंकर पर झुका हुआ झूम रहा था जैसे उस पर प्रहार करने वाला हो। इसी समय शंकर के कानों से एक आवाज टकराई, “सुषमा....”
यह सुषमा के भाई चन्दर की आवाज थी। शंकर के शरीर में सन्नाटा-सा दौड़ गया। दूसरे ही क्षण वह फुर्ती से उठा और तीर के समान अपने मकान की ओर भागता चला गया। सुषमा के मस्तिष्क का सन्नाटा धीरे-धीरे गहरा होता जा रहा था। इसी सन्नाटे में उसने चन्दर की आवाज सुनी थी....और फिर उसे अनुभव हुआ कि वह अब बिल्कुल सुरक्षित है....उसका मस्तिष्क तरंग में बेसुध सा झकोले खाने लगा।
चन्दर ने परछाइयों को हिलते हुए देखा था। धुंधली रोशनी में वह केवल सुषमा की झलक ही पहचान सका था....उसके पांव में स्फूर्ति आ गई थी...वह भागता हुआ उनके पास पहुंचा...और... एकाएक उसके मस्तिष्क को एक तीव्र धक्का लगा। सुषमा एक अनजाने व्यक्ति की बांहों में बेसुध पड़ी हुई थी....उसका ब्लाउज पीछे से फटा हुआ था, बाल बिखरे हुए थे और साड़ी का आंचल सड़क पर पड़ा था। वह व्यक्ति आंखें फाड़फाड़कर सुषमा को ध्यानपूर्वक देखता हुआ कह रहा था, “मैं....मैं तुम से प्यार करता हूं संध्या....मैं तुमसे प्यार करता हूं....तुम.....तुम....बेवफा नहीं हो सकतीं....सब....सब कमीने हैं.....मैं.....मैं सबको जान से मार दूंगा....”
और अचानक उस व्यक्ति की आंखें क्रोध की तीव्रता से फट गईं और वह बड़े कठोर भाव से सुषमा को देखने लगा....उसने दोनों हाथों से सुषमा की गर्दन पकड़ ली‒
चन्दर को सहसा ऐसा अनुभव हुआ जैसे उसके पूरे शरीर में एक ज्वालामुखी फूट पड़ा हो....उसका समस्त शरीर क्रोध की अधिकता से आग उगलने लगा था....उसने दोनों हाथों की मुट्ठियां कसकर बन्द कर लीं और आगे बढ़कर झटके से उस व्यक्ति को हाथ से पकड़ करे खींचा। सुषमा एक निराश्रित स्तंभ के समान उस व्यक्ति की बांहों से छूटकर एक ओर जा गिरी....वह व्यक्ति झटके से एक पग पीछे हट गया और आंखें फाड़-फाड़कर चन्दर को देखने लगा। चन्दर ने दांत भींचकर कहा, “तुम हो बाबूजी। अभी पिछला भी कुछ शेष तुमसे चुकाना है....टैक्सी की मरम्मत में ढाई सौ रुपये लगे थे....किन्तु तुम्हारी मरम्मत तो अब भगवान भी न कर सकेगा....वह टैक्सी का मुआमला था....तुम दारू पिए हुए थे सो क्षमा किया जा सकता था....किन्तु; दारू पीकर एक शरीफ लड़की को तुम टैक्सी समझो....यह अपराध तो कदापि क्षमा नहीं किया जा सकता।”
“भाग जाओ....” वह व्यक्ति लड़खड़ाता हुआ बोला, “तुम सब कमीने हो....नीच हो....”
अचानक चन्दर का भरपूर घूंसा उस व्यक्ति की कनपटी पर पड़ा और वह लड़खड़ा कर पीछे हटता हुआ आंखें फाड़-फाड़ कर चन्दर की ओर देखने लगा। चन्दर ने उछल कर अब उस व्यक्ति के पेट में पांव से ठोकर मारने का प्रयत्न किया किन्तु, दूसरे ही क्षण चन्दर की टांग को खींचकर एक ओर झटका दिया और चन्दर मुंह के बल जा गिरा। जितने समय में चन्दर उठकर उसका सामना करता वह व्यक्ति स्वयं ही औंधे मुंह सड़क पर जा गिरा।
सुषमा अब तक कुछ सुधि में आ चुकी थी। उसने अपने आप को संभाला और आंखें फाड़कर देखा। उसकी दृष्टि चन्दर पर पड़ी। पहले उसे चन्दर का धुंधला-धुंधला प्रतिबिम्ब सा दिखाई दिया और फिर उसका चेहरा स्पष्ट दिखाई देने लगा। वह बड़े खूंखार ढंग से चाकू लिए उस व्यक्ति की ओर बढ़ रहा था। अचानक सुषमा चीखती हुई उठ बैठी, “भैया...!
और फिर वह झपटकर हवा की सी फुर्ती से चन्दर और उस व्यक्ति के मध्य आती हुई बोली, “क्या कर रहे हो भैया....क्या कर रहे हो?”
“सामने से हट जा सुषमा! मैं इस कुत्ते का सिर धड़ से अलग कर दूंगा...”
“किस अपराध में इसे मारोगे भैया?” सुषमा हांफती हुई बोली “इस अपराध में कि उसने तुम्हारी बहिन का सतीत्व एक कुत्ते से बचाया है।”
“इसने? इसने बचाया है तुम्हें?”
“हां भैया....यदि समय पर यह व्यक्ति देवता बनकर न पहुंच जाता तो...तो...” कहते कहते सुषमा ने दोनों हाथों से अपना चेहरा छिपा लिया।
“कौन था? कौन था वह दुष्ट मैं उसकी बोटियां करके फेंक दूंगा।”
“वह....” सुषमा ने झट कहा, “पता नहीं कौन था? मैं शंकर जी के यहां से निकलकर यहां पहुंची ही थी कि उसे कुत्ते ने पीछे आकर मुझे दबोच लिया था।”
“किधर गया वह भाग कर?”
“मैं तो बेहोश हो गई थी....न जाने किधर गया....अब तक पता नहीं कहां पहुंचकर छिप गया होगा।”
“खैर....तू देखकर पहचान तो लेगी?”
“अंधेरा था गली में भैया। इसलिए शायद ही पहचान सकूं....”
चन्दर सुषमा को कुछ देर ध्यानपूर्वक देखता रहा....! फिर हल्की-सी सांस लेकर बोला, “अच्छी बात है....चल घर...”
“किन....किन्तु भैया...” सुषमा ने सड़क पर पड़े उस व्यक्ति की ओर देखकर करुणामय स्वर में कहा, “इस गरीब को क्या यों ही पड़ा रहने दोगे?”
“मेरे यहां शराबियों के लिए कोई स्थान नहीं है।” चन्दर ने कठोर स्वर में उत्तर दिया।
“शराबी! किन्तु? भैया, इसके मुंह से तो शराब की दुर्गन्ध नहीं आ रही...”
चन्दन ने ध्यान से उस व्यक्ति की ओर देखा, फिर उसके पास बैठकर झुककर उसका मुंह सूंघकर बोला, “अरे....सच ही यह शराब तो नहीं पिए है....” फिर उसका हाथ थामते हुए चौंककर बोला, “अरे.....इसे तो बहुत सख्त बुखार है....फुंक रहा है इसका पूरा शरीर आग के समान....”
“सूरत भी तो देखा कैसी हो रही है भैया! यह किसी भारी कष्ट में पड़ा दिखाई देता है...”
“और अब हमें भी अपने साथ किसी कष्ट में डालेगा।” चन्दर झुककर उसे बांहों पर उठाते हुए बड़बड़ाया।
“मेरे भगवान! भार तो देखो....पहलवान है, पूरा पहलवान....”