Erotica संघर्ष

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संघर्ष--20

इधेर सावित्री अपने घर के अंदर आने के बाद एक दम से घबरा चुकी थी. वैसे घर के अंदर कोई नही था. मा सीता कहीं काम से गयी थी और छोटा भाई कहीं अगल बगल गया था. सावित्री के मन मे यही डर समा गया था कि धन्नो चाची को कहीं शक ना हो जाय नही तो गाँव मे ये बात फैल जाएगी. वैसे धन्नो चाची का घर सावित्री के बगल मे ही था लेकिन उसकी मा सीता का धन्नो चाची के चालचलन के वजह से आपस मे बात चीत नही होती थी. कुच्छ दिन पहले कुच्छ ऐसी ही बात को लेकर झगड़ा भी हुआ था. वैसे धन्नो चाची अधेड़ उम्र की हो चुकी थी और गाओं के चुदैल औरतों मे उसका नाम आता था. धन्नो का पति कहीं बाहर जा कर कमाता ख़ाता था. कुच्छ शराबी किस्म का भी था. और जो कुछ पैसा बचाता धन्नो को भेज देता था. धन्नो भी गाओं मे कई मर्दों से फँस चुकी थी और लगभग हर उम्र के लोग चोद्ते थे. धन्नो की एक लड़की थी जिसकी उम्र 22 साल के करीब थी. जिसका नाम मुसम्मि था. मुसम्मि की शादी करीब चार साल पहले हुआ था लेकिन शादी के पहले ही कई साल तक चुदैल धन्नो की बेटी मुसम्मि को गाओं के आवारों और धन्नो के कुच्छ चोदु यारों ने इतनी जोरदार चुदाइ कर दी की मुसम्मि भी एक अच्छी ख़ासी चुदैल निकल गयी और शादी के कुच्छ महीनो के बाद ही ससुराल से भाग आई और फिर से गाओं के कई लुंडों के बीच मज़ा लेने लगी. इसी कारण से सावित्री की मा सीता धन्नो और उसके परिवार से काफ़ी दूरी बनाकर रहती थी. वैसे सावित्री कभी कभार अपनी मा के गैरमौज़ूदगी मे मुसम्मि से कुच्छ इधेर उधेर की बाते कर लेती थी. लेकिन आम तौर पर दोनो परिवार आपस मे कोई बात चीत नही करते थे.

इस तरह के दो परिवार के झगड़े और तनाव भरे माहौल मे सावित्री का डर और ज़्यादा हो गया की कहीं धन्नो चाची पूरे गाओं मे शोर ना मचा दे नही तो वह बर्बाद हो जाएगी. सावित्री को ऐसा लगने लगा कि उसकी पूरी इज़्ज़त अब धन्नो चाची के हाथ मे ही है. उसे यह भी डर था कि यह बात यदि उसकी मा सीता तक पहुँचेगी तब क्या होगा.

घबराई हालत मे सावित्री अपने घर के अंदर इधेर उधेर टहल रही थी और साँसे तेज चल रही थी. अब अंधेरा शुरू होने लगा थे की उसकी मा और भाई दोनो आते हुए नज़र आए. तभी सावित्री तेज़ी से दवा के पत्ते को घर के कोने मे कुछ रखे सामानो के बीच च्छूपा दी. लेकिन उसके दिमाग़ मे धन्नो चाची का ही चेहरा घूम रहा था. उसके मन मे यह भी था की यदि धन्नो चाची मिले तो वह उसका पैर पकड़ कर रो लेगी की उसकी इज़्ज़त उसके हाथ मे है और अपनी बेटी समझ कर जो भी देखी या समझी है उसे राज ही रहने दे. लेकिन दोनो परिवारों के बीच किसी तरह की बात चीत ना होने के वजह से ऐसे भी कोशिस मुश्किल लग रही थी.

यह सब सोच ही रही थी कि उसकी मा घर के अंदर गयी और मा बेटी दोनो घर के कामकाज मे लग गयी. लेकिन उसका मन काफ़ी बेचैन था. सावित्री को ऐसा लगता मानो थोड़ी देर मे उसकी ये सब बातें पूरा गाओं ही जान जाएगा और ऐसी सोच उसकी पसीना निकाल देती थी.

सावित्री के मन मे बहुत सारी बातें एक साथ दौड़ने लगीं और आखीर एक हाल उसे समझ मे आया जो काफ़ी डरावना भी था. यह कि सावित्री धन्नो चाची का पैर पकड़ कर गिड़गिडाए की उसे वह बचा ले. लेकिन इसमे यह दिक्कत थी कि ऐसी बात जल्दी से जल्दी धन्नो चाची से कहा जाय ताकि धन्नो चाची किसी से कह ना दे. और दूसरी बात यह की ऐसी बात अकेले मे ही कहना ठीक होगा. तीसरी बात की यह की सावित्री की विनती धन्नो चाची मान ले.

यही सब सोच ही रही थी कि उसके दिमाग़ मे एक आशा की लहर दौड़ गयी. उसे मन मे एक बढ़िया तज़ुर्बा आया की जब धन्नो चाची रात मे दुबारा पेशाब करने अपने घर के पीच्छवाड़े जाएगी तब वह उसका पैर पकड़ कर गिड़गिदा लेगी. उसे विश्वाश था कि धन्नो चाची उसकी विनती सुन लेंगी और उन्होने जो भी देखा उसे किसी से नही कहेंगी. दूसरी तरफ सावित्री यह भी देख रही थी की धन्नो चाची कहीं गाओं मे तो नही जा रहीं नही तो बात जल्दी ही खुल जाएगी. इसी वजह से सावित्री के नज़रें चोरी से धन्नो चाची के घर के तरफ लगी रहती थी.

लेकिन काफ़ी देर तक धन्नो चाची अपने घर से बाहर कही नही गयी तब सावित्री को काफ़ी राहत हुई. फिर भी डर तो बना ही था की धन्नो चाची किसी ना तो किसी से तो कह ही डालेगी और बदनामी शुरू हो जाएगी. यही सब सोच सोच कर सावित्री का मन बहुत ही भयभीत हो रहा था. सावित्री की मा और भाई दोनो रात का खाना खा कर सोने की तैयारी मे थे. अब करीब रात के दस बजने वाले थे. और दिन भर की थके होने के वजह से सभी को तेज नीद लग रही थी और तीनो बिस्तर बार लेट कर सोने लगे लेकिन सावित्री लेटी हुई यही सोच रही थी कि कब उसकी मा और भाई सो जाए कि वह घर के पीच्छवाड़े जा कर धन्नो चाची का इंतज़ार करे और मिलते ही पैर पकड़ कर इज़्ज़त की भीख माँग ले.

थोड़ी देर बाद सीता को गहरी नीद लग गयी और भाई भी सो गया. तब धीरे से सावित्री बिस्तर से निकल कर बहुत धीरे से सिटाकनी और दरवाज़ा खोल कर बाहर आई और फिर दरवाज़े के पल्ले को वैसे ही आपस मे सटा दी. पैर दबा दबा कर अपने घर के पीच्छवाड़े जा कर पेशाब की और फिर धन्नो चाची का इंतज़ार करने लगी. अब रात के ईगयरह बजने वाले था और पूरा गाओं सो चुका था. चारो तरफ अंधेरा ही अंधेरा था. सावित्री के घर के ठीक पीच्छवाड़े एक बड़ा बगीचा था जिसमे एकदम सन्नाटा पसरा हुआ था और अंधेरे मे कुच्छ भी नही दीखाई दे रहा था. फिर भी सावित्री धन्नो चाची का इंतज़ार करने लगी की वह अपने घर के पीच्छवाड़े मूतने तो आएगी. लेकिन काफ़ी देर हो गया और धन्नो चाची मुताने नही आई. इससे सावित्री की परेशानी बढ़ती चली गयी. सावित्री अब बेचैन होने लगी. अंधेरे मे करीब भी दीखाई नही दे रहा था. बस कुच्छ फीट की दूरी तक ही देखा जा सकता था वह भी सॉफ सॉफ नही. सावित्री के नज़रें धन्नो चाची के घर के पीछे ही लगी थी. तभी उसे याद आया कि कहीं उसकी मा जाग ना जाय नही तो उसे बिस्तर मे नही पाएगी तब उसे रात मे ही खोजने आएगी और यदि घर के पीच्छवाड़े खड़ी देखेगी तो क्या जबाव देगी. ऐसा सोच कर सावित्री वापस अपने घर के दरवाज़े को हल्का सा खोलकर अंदर का जयजा लेने लगी और उसकी मा और भाई दोनो ही बहुत गहरी नीद मे सो रहे थे मानो इतनी जल्दी उठने वाले नही थे. सावित्री दुबारा दवाज़े के पल्ले को आपस मे धीरे से चिपका दी और फिर अपने घर के पीच्छवाड़े धन्नो चाची का इंतज़ार करने लगी. वह रात मे धन्नो चाची के घर भी जाने की सोच तो रही थी लेकिन धन्नो चाची के घर उसके अलावा उसकी बेटी मुसम्मि भी थी और ऐसे मे जाना ठीक नही था. वैसे सावित्री ने सोचा की अब इतनी रात को धन्नो चाची तो सो गयी होगी क्योंकि वह पेशाब करने तो सोने के पहले ही आई होगी. अब तो काफ़ी देर हो गयी है. लेकिन बात फैलने का भय इतना ज़्यादा था की सावित्री धन्नो चाची का इंतज़ार करना ही बेहतर समझी. और अपने घर के पीच्छवाड़े इतेर उधेर टहलने लगी और धन्नो चाची का इंतज़ार करने लगी. लेकिन जब घंटों बीत गये लेकिन धन्नो चाची पेशाब करने घर के पीचवाड़े नही आई और सावित्री भी काफ़ी थॅकी होने के नाते वापस घर मे चली गयी और सो गयी.

सुबह उसकी मा ने सावित्री को जगाया. काफ़ी गहरे नीद मे सोने के बाद जब सावित्री उठी तब थकान मीट चुकी थी और अब काफ़ी हल्की भी महसूस कर रही थी. जब उसे पीच्छली दिन वाली घटना याद आई तब फिर से परेशान हो उठी. लेकिन काफ़ी बेबस थी. इस वजह से सुबह के काम मे व्यस्त हो गयी और दुकान जाने की तैयारी मे भी लग गयी.

इधेर धन्नो ने जब दवा के पत्ते और चड्डी पर लगे दाग को देखकर यह समझ गयी की सावित्री को भी अब मर्द की कीमत समझ मे आ गयी है. तब उसके मन मे जलन के बजाय एक रंगीन आशा की लहर दौड़ गयी. धन्नो यह जानती है की 18 साल के करीब सावित्री की मांसल और गद्राइ जवानी को पाने के लिए हर उम्र के लंड पीचछा करेंगे. और अब मर्द का स्वाद पा जाने के बाद सावित्री को भी मर्दो की ऐसी हरकत बहुत बुरा नही लगेगी लेकिन सीधी साधी और लज़धुर स्वभाव के वजह से शायद उतना मज़ा नही लूट पाएगी. और ऐसे मे यदि धन्नो खूद उससे दोस्ती कर ले तो सावित्री के पीछे पड़ने वाले मर्दों मे से कई को धन्नो अपने लिए फँसने का मौका भी मिल जाएगा. और 44 साल के उम्र मे भी धन्नो को कई नये उम्र के लड़को से चुड़ाने का मौका मिल जाएगा. यही सोच कर धन्नो का मन खुश और रंगीन हो गया. शायद इसी वजह से धन्नो सावित्री की चड्डी के दाग और दवा के पत्ते वाली बात किसी से कहना उचित नही समझी और सावित्री से एक अच्छा संबंध बनाने के ज़रूरत महसूस की.

सावित्री अपने घर के काम मे व्यस्त थी क्योंकि अब दुकान जाने का भी समय नज़दीक आ रहा था. लेकिन पीच्छली दिन वाली बात को सोचकर घबरा सी जाती और धन्नो चाची के घर के तरफ देखने लगी और अचानक धन्नो चाची को देखी जो की सावित्री के तरफ देखते हुए हल्की सी मुस्कुरा दी. ऐसा देखते ही सावित्री के होश उड़ गये. जबाव मे उसने अपनी नज़रें झुका ली और धन्नो चाची अपने घर के काम मे लग गयी. सावित्री भी अपने घर के अंदर आ कर दुकान जाने के लिए कपड़े बदलने लगी. वैसे सुबह ही सावित्री नहा धो ली थी और वीर्य और चुदाई रस लगे चड्डी को भी सॉफ कर दी थी.

सावित्री तैयार हो कर दुकान के तरफ चल दी. उसके मान मे धन्नो चाची का मुस्कुराना कुच्छ अजीब सा लग रहा था. वैसे दोनो घरों के बीच आपस मे कोई बात चीत नही होती थी और सावित्री कभी कभार अपनी मा के अनुपस्थिति मे धन्नो की बेटी मुसम्मि जिसको सावित्री दीदी कहती , से बात कर लेती वह भी थोडा बहुत. लेकिन धन्नो चाची से कोई बात नही होती और आज सावित्री के ओर देख कर मुस्कुराना सावित्री को कुच्छ हैरत मे डाल दिया था. सावित्री कस्बे की ओर चलते हुए धन्नो चाची के मुस्कुराने के भाव को समझने की कोशिस कर रही थी. उसे लगा मानो वह एक दोस्ताना मुस्कुराहट थी और शायद धन्नो चाची सावित्री को चिडना नही बल्कि दोस्ती करना चाहती हों. ऐसा महसूस होते ही सावित्री को काफ़ी राहत सी महसूस हुई. कुच्छ देर बाद खंडहर आ गया और हर दिन की तरह आज भी कुछ आवारे खंदार के इर्द गिर्द मद्रा रहे थे. सावित्री को अंदेशा था की उसको अकेले देख कर ज़रूर कोई अश्लील बात बोलेंगे. मन मे ऐसा सोच कर थोड़ा डर ज़रूर लगता था लेकिन लुक्ष्मी चाची ने जैसा बताया था की ये आवारे बस गंदी बात बोलते भर हैं और इससे ज़्यादा कुच्छ करेंगे नही, बस इनका जबाव देना ठीक नही होता और चुपचाप अपने रश्ते पर चलते रहना ही ठीक होता है. यही सोच कर सावित्री अपना मन मजबूत करते हुए रश्ते पर चल रही थी. उसे ऐसा लगा की आवारे ज़रूर कुच्छ ना तो कुच्छ ज़रूर बोलेंगे. तभी सावित्री ने देखा की एक आवारे ने आगे वाले रश्ते पर अपनी लूँगी से लंड निकाल कर खंडहर की दीवार पर मूत रहा था और उसका काला लंड लगभग खग खड़ा ही था. उस आवारे की नज़र कुच्छ दूर पर खड़े एक दूसरे आवारे पर थी और दोनो एक दूसरे को देख कर मुस्कुरा रहे थे. वी दोनो देख रहे थे की रश्ते पर चल रही सावित्री को मुतता हुआ लंड दीख ही जाएगा. सावित्री का मन घबराहट से भर गया. वह जिस रश्ते पर चल रही थी उसी रश्ते के एक किनारे पर खड़ा होकर लूँगी ले लंड निकाल पर मूत रहा था. लंड अपनी पूरी लूंबाई तक बाहर निकला हुआ था. सावित्री एक पल के लिए सोची की आख़िर कैसे उस रश्ते पर आगे जाए. और आख़िर डर के मारे वह रुक गयी और अपनी नज़रें झुकाते हुए दूसरी ओर मूड कर खड़ी हो गयी और सोची की थोड़ी देर मे जब वह आवारा मूत कर रश्ते के किनारे से हट जाएगा तब वह जाएगी. कुछ पल इंतजार के बाद फिर थोड़ी से पलट कर देखी तो दोनो आवारे वहाँ नही थे और खंडहर के अंदर हंसते हुए चले गये. फिर सावित्री चलना शुरू कर दी. रश्ते के एक किनारे जहाँ वह आवारा पेशाब किया था, सावित्री की नज़र अनायास ही चली गयी तो देखा की उसके पेशाब से खंडहर की दीवार के साथ साथ रश्ते का किनारा भी भीग चुका था. अभी नज़र हटाई ही नही थी की उसके कान मे खंडहर के अंदर से एक आवारे की आवाज़ आई "बड़ा मज़ा आएगा रानी....बस एक बार गाड़ी लड़ जाने दो....किसी को कुच्छ भी नही पता चलेगा...हम लोग इज़्ज़त का भी ख़याल रखते है...कोई परेशानी नही होगी सब मेरे पर छोड़ देना" यह कहते ही दोनो लगभग हंस दिए और खंडहर मे काफ़ी अंदर की ओर चले गये. सावित्री अब कुच्छ तेज कदमों से दुकान पर पहुँची. उसे कुच्छ पसीना हो गया था लेकिन उन आवारों की बात से झनझणा उठी सावित्री की बुर मे भी एक हल्की सी चुनचुनी उठ गयी थी और उसके कान मे गाड़ी लड़ जाने वाली बात अच्छी तरह समझ आ रही थी. वी आवारे चोदने का इशारा कर रहे थे. शायद इसी वजह से जवान सावित्री की बुर कुछ पनिया भी गयी थी.
 
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संघर्ष--21

दुकान पर पहुचने के बाद सावित्री काफ़ी राहत महसूस की. मन मे उन आवारों को गलियाँ भी दी. और फिर दुकान मे बैठ कर रोज़ की तरह कुच्छ बेच्वाली भी की. फिर दोपहर हो गया और दुकान को पंडित जी बंद कर के पीछे वाले कमरे मे आ गये और सावित्री भी अपनी चटाई ले कर दुकान वाले हिस्से मे चली गयी. दोपहर होते ही सावित्री के बुर मे खुजली होने लगी. चटाई मे लेटे लेटे अपनी सलवार के उपर से ही बुर को सहलाया और खुजलाया. मन मस्ती से भर गया. रात मे ज़्यादे ना सो पाने के वजह से उसे भी नीद लग गयी. पंडित जी करीब एक घंटे आराम करने के बाद उठे और पेशाब करने के बाद सावित्री को हल्की आवाज़ दी लेकिन सावित्री को नीद मे होने के वजह से सोई रह गयी. दुबारा पंडित जी ने तेज आवाज़ लगाई तब सावित्री की नीद खुली और हड़बड़ा कर उठी और अपने दुपट्टे को अपनी चुचिओ पर ठीक करते हुए दुकान के अंदर वाले हिस्से मे आई तो देखी की पंडित जी चौकी पर बैठे उसे घूर रहे थे. पंडित जी ने कहा "रात मे सोई नही थी क्या...जा मूत कर आ " सावित्री कुच्छ पल वैसे ही खड़ी रही फिर पेशाब करने चली गयी. सवत्री की बुर मे भी खुजली अब तेज हो गयी थी. लंड का स्वाद मिल जाने की वजह से अब उसे चुड़ाने की इच्छा काफ़ी ज़्यादा हो गयी थी.

पेशाब करने के बाद सावित्री चटाई को पिच्छले दिन की तरह चौकी के बगल मे बिच्छा दी और खड़ी हो कर नज़रें झुका ली. पंडित जी ने उसकी ओर देखते हुए मुस्कुराया और बोले "आज मैं तुमको चटाई पर नही बल्कि अपनी चौकी पर चोदुन्गा....अब तेरे साथ मैं कोई उँछ नीच या बड़े छ्होटे का भेदभाव नही करूँगा...." फिर आगे बोले "अरे मैं क्या बड़े बड़े महात्मा तुम्हारी जवानी के सामने घुटने टेक देंगे....सच सावित्री तुम बहुत गरम हो" इतना कह कर सावित्री को अपने चौकी पर लगे बिस्तर पर आने का इशारा किया. सावित्री के कान मे ऐसी बात पड़ते ही उसे विश्वास नही हो रहा था. उसकी बुर मे खुजली अब धीरे धीरे तेज हो रही थी लेकिन पंडित जी से इतना सम्मान पा कर उसका मन झूम उठा. उसे फिर याद आया की उसकी बुर की कितनी कीमत है. पंडित जी सावित्री का बाँह पकड़ कर चौकी पर खेंच लिए और सावित्री भी चौकी पर चढ़ कर बैठ गयी अगले पल पंडित जी सावित्री को लेटा कर उसके उपर चढ़ गये और अपने नीचे दबा दिया. धोती के उपर से ही लंड का दबाव सावित्री के सलवार पर पड़ने लगा और पंडित जी समीज़ के उपर से ही सावित्री की बड़ी बड़ी चुचिओ से खेलने लगे.

थोड़ी देर मे दोनो एकदम नंगे हो गये और पंडित जी रोज़ की तरह सावित्री की झांतों से भरी बुर को जम कर चटा और सावित्री भी उनके लंड को मन लगाकर चूसी. सावित्री चुदने के लिए काफ़ी बेताब थी. वह बार बार पंडित जी के लंड को बुर मे लेने के लिए इशारा कर रही थी. पंडित जी भी सही मौका देख कर लंड को बुर के मुँह पर लगाकर चॅंप दिया और लंड करीब आधा अंदर घूसा ही था की दुकान के दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी. पंडित जी के कान मे दोपहर के समय दुकान पर किसी के दस्तक की आवाज़ सुनते ही चौंक से गये और लंड को सावित्री के बुर मे डाले वैसे ही पड़े रहे. तभी दुबारा दरवाज़ा खटखटाने की आवाज़ आई.

पंडित जी को बहुत गुस्सा आया और लंड को सावित्री के बुर से खींच कर बाहर निकाले तो सावित्री को भी अच्छा नही लगा. अचानक दोपहर मे किसी के आ जाने से सावित्री भी डर सी गयी और चौकी पर से उतर कर अपने कपड़े पहनने के लिए लपकी तो पंडित जी ने सावित्री से काफ़ी धीरे से कहा "कपड़े मत पहन ऐसे ही रह मैं उसको दुकान के बाहर से ही वापस कर दूँगा लगता है कोई परिचित ग्राहक है. उसके जाते ही मज़ा लिया जाएगा" पंडित जी एक तौलिया लपेट कर दुकान वाले हिस्से मे आ गये और बीच के पर्दे को ठीक कर दिया ताकि दुकान का दरवाज़ा खुलने पर दुकान के अंदर वाले हिस्से मे दिखाई ना दे जिसमे चौकी पर सावित्री एकदम नंगी ही बैठ कर पंडित जी को दुकान के दवाज़े के ओर जाते हुए देख कर समझने की कोशिस कर रही थी कि आख़िर दोपहर मे कौन आ गया है. और इतना करने मे पंडित जी का खड़ा लंड अब सिकुड़ने लगा था और तौलिया के उपर से अब मालूम नही दे रहा था.

पंडित जी यही सोच कर एक तौलिया लपेटे हुए दुकान के दरवाजे को धीरे से खोलकर देखना चाहा कि बाहर कौन दस्तक दे रहा है. लेकिन उनकी नज़र उस इंसान पर पड़ते ही पंडित जी को मानो लकवा मार दिया. वो और कोई नही बल्कि पंडित जी की धर्मपत्नी थी जो बड़ी बड़ी आँखे निकाल कर पंडित जी को खा जाने की नियत से घूर रही थी. पंडित जी के गले से एक भी शब्द निकल नही पाया और पंडिताइन ने पंडित जी को लगभग धकेलते हुए काफ़ी तेज़ी से दुकान के अंदर आई और अगले पल दुकान के अंदर वाले कमरे जिसमे सावित्री एकदम ही नंगी बैठ कर पर्दे की ओर ही देख रही थी कि आख़िर कौन आया है. पंडिताइन ने पर्दे को हटाते ही सावित्री को एकदम नंगे देख उनका गुस्सा आसमान पर चढ़ गया. इधेर एक दम से अवाक हो चुके पंडित जी ने दुकान का दरवाज़ा बंद कर के तुरंत पंडिताइन के पीछे पीछे अंदर वाले हिस्से मे आ गये पंडिताइन को देखते ही सावित्री को साँप सूंघ गया. पंडिताइन करीब 43 साल की एक गोरे रंग की करीब छोटे कद की औरत थी. और उन्हे मालूम था कि उनका पति भोला पंडित मौका देख कर बाहरी औरतों से बहुत मज़ा लूटते हैं. और नई लड़की के दुकान पर आने की खबर उन्हे लग चुकी थी और इसी चक्कर मे वह ठीक दोपहर के समय दुकान पर आ धमकी थी.

सावित्री पंडिताइन को देखते ही चौकी पर से कूद कर चटाई पर पड़े अपने कपड़ों की ओर लपकी लेकिन पंडिताईएन उन कपड़ों पर ही पैर रख कर खड़ी थी और कपड़े ना मिल पाने के वजह से सावित्री ने एक हाथ से अपनी दोनो चुचियाँ और दूसरे हाथ से अपनी झांतों से भरी बुर को धक लिया और आँखें झुका कर खड़ी हो गयी. कमरे मे एकदम सन्नाटा था पंडित जी भी कुच्छ नही बोल रहे थे. पंडिताइन गुस्से के वजह से आँखें निकाल कर कभी सावित्री के नंगे शरीर को देखती तो कभी पंडित जी की ओर देखती और हाँफ भी रही थी. अगले पल पंडिताइन चिल्ला पड़ी "तू कभी नही सुधरेगा.....रे....कुत्ता...मेरी को पूरी जिंदगी बर्बाद कर दू हरामी कहीं का.......हे भगवान मेरी तकदीर मे यही सब देखने को लिखा है....इस कुत्ते से कब नीज़ात मिलेगा भगवान..." इतना कह कर पंडिताइन रो पड़ी और और अपने दोनो हाथों से अपने चेहरे को ढक ली. कमरे मे पंडित जी और सावित्री दोनो एक दम शांत अपनी अपनी जगह पर खड़े थे.
 
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कमरे मे केवल पंडिताइन के रोने की आवाज़ आ रही थी पंडिताइन ने फिर कुच्छ सोचा और रोना कम करते हुए सावित्री के नंगे शरीर पर आँखे लाल लाल कर के देखी और सावित्री से पुच्हीं "अरी रंडी हरजाई बुर्चोदि तेरा क्या नाम है रे जो लंड के लिए यहाँ डेरा डाल ली है....किस रंडी की बुर से पैदा हुई है तू भोसड़ी कही की....तेरी बुर मे कीड़ा पड़ जाए जो तू इन बुढ्ढो का लंड लील रही है....बोल..." अब पंडिताईएन की आवाज़ तेज होने लगी और उनका शरीर भी गुस्से से काँपने लगा. सावित्री को मानो बिजली मार दी है और शरीर मे जान ही ना रह गयी हो. पंडिताईएन की आवाज़ और गाली कान मे पड़ते ही सावित्री एक दम से कांप गयी. पंडित जी भी अपनी पत्नी के ठीक पीछे चुपचाप खड़े थे और उन्हे भी अब कुच्छ बोलने की हिम्मत नही रह गयी थी. जब पंडिताइन ने गंदी गलिओं की बौच्हर कर दी तब सावित्री की घबराहट और बढ़ गयी लेकिन दूसरे पल पंडिताईएन ने सावित्री के मुँह पर एक जोरदार चॅटा जड़ दी. चाँते की आवाज़ पूरे कमरे मे गूँज उठी. सावित्री चाते का दर्द को कम करने के लिए चुचिओ पर का हाथ गाल पर ले जा कर सहलाने लगी. लेकिन पंडित जी ने कुच्छ भी नही बोले बल्कि पंडिताईएन का आक्रामक तेवर देखकर वो भी डर से गये. पंडिताइन ने अपने साड़ी के पल्लू को अपने कंधे से घुमाकर कमर मे खोस ली मानो कोई काम करने जा रही हों. सावित्री ऐसा देख कर समझ गयी कि पंडिताइन अब उसे बहुत मार मारेंगी. और वो भी डर के वजह से रोने लगी. फिर भी पंडितानी का आक्रामक तेवर मे कोई बदलाव नही आया और सावित्री पर टूट पड़ी. सावित्री के काले और लंबे बॉल को पकड़ कर काफ़ी ज़ोर से हिलाया की सावित्री दर्द के मारे चिल्ला उठी "आरी एम्मी म्‍मैइ बाअप हो राम रे माई......" और पंडिताइन ने थप्पाड़ों को बरसात कर दी. सावित्री एक दम नगी होने के वजह से थप्पड़ काफ़ी तेज लग रहे थे. और पंडिताइन ने गुस्से मे सावित्री के बॉल को इतनी ज़ोर से झकझोरा की नंगी सावित्री का पैर फिसला और चटाई पर गिर पड़ी. संयोग ठीक था की कहीं चोट नही आई लेकिन गिरने के बाद सावित्री का काला और बड़ा चूतड़ पंडिताइन के सामने दिखा और पंडिताइन ने उन दोनो चूतदों पर लातों से हमला बोल दिया. चूतड़ काफ़ी मांसल होने के नाते सावित्री को कोई बहुत चोट नही महसूस हो रही थी. और काले काले चूतदों पर लातों को मारते हुए पंडिताइन ने गुस्से मे गलियाँ बकने लेगीं "साली रंडी ...भैंस की तरह चूतड़ ली है और मोटा लंड खोजते इस दुकान तक आ पहुँची... तेरे को और कहीं लंड नही मिला रे हरजाई जो तू मेरा घर बर्बाद करने आ गई....तेरे को दुनिया मे लंड ही नही मिला ......भगवान तेरी बुर मे कितना आग लगा दी है रे जो तू इन बुढ्ढों को भी नहीं बक्ष रही है....तेरी बुर मे गधे का लंड पेल्वा दूं....बुर्चोदि..."

पंडिताइन से पीटते हुए सावित्री ने पाड़ित जी की ओर देखी जो चुपचाप खड़े थे और अपनी नज़रे दूसरी ओर फेर लिए. सावित्री समझ गयी की पंडित जी अपनी पत्नी से डर गये हैं और उसकी पिटाई ख़त्म ही नही होगी और सावित्री भी पीटते और गाली सुनते हुए काफ़ी गुस्से से भर गयी और अब बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया. तभी सावित्री के चूतादो वाला लात अब पीठ और चुचिओ पर पड़ने लगा. जो की सावित्री के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल हो गया और पंडिताइन जिस लात से चटाई मे गिर पड़ी सावित्री को मार रहीं थी, उसे सावित्री ने अपने हाथ से कस कर पकड़ कर अपनी ओर खींच दिया और पंडिताइन लड़खड़ा कर फर्श पर गिर पड़ी और वापस उठ कर सावित्री पर हमला करना चाहीँ की सावित्री पंडिताइन के उपर चढ़ गयी और उनके बॉल पकड़ ली और जबाव मे पंडिताइन ने भी सावित्री के बॉल पकड़ कर नोचने लगी. अब दोनो एक दूसरे से लगभग लिपट कर बाजने लगे और सावित्री का एकदम नंगा और मांसल गड्राया शरीर अब पंडिताइन पर भारी पड़ने लगी थी. सावित्री पंडिताईएन को मारना नही चाहती थी लेकिन जब वह पंडिताइन के उपर से हटना चाहती की पंडिताइन को मौका मिलता और सावित्री को मारना शुरू कर देती. सावित्री मार खाते ही फिर पंडिताईएन को फर्श पर पटकते हुए दबोच लेती और जबाव मे वह भी थप्पड़ चला देती. अब सावित्री खुल कर पंडिताईएन से बाजने लगी और अपने जीवन मे पहली बार किसी को पीट रही थी. आख़िर जब सावित्री डर को मन से निकाल कर खुल कर पंडिताईएन से भिड़ गयी तब 43 साल की पंडिताइन 18 साल की मांसल और मोटी ताजी सावित्री के पिटाई से मैदान छोड़ कर भागने लगी. लेकिन सावित्री को ज्योन्ी अपनी ताक़त का अहसास हुआ की वह एक शेरनी की तरह पंडिताइन पर टूट पड़ी. पंडित जी सावित्री को पंडिताइन पर भारी पड़ते देख अंदर ही अंदर काफ़ी खुश हो गये और खुद दुकान वाले हिस्से मे आकर पर्दे के आड़ से पंडिताइन को पीटते देखने लगे. सावित्री ने देखा की पंडित जी अब पर्दे की आड़ से पंडिताइन को पीटता देख रहे हैं तब समझ गयी की उनको ये देखना पसंद है और पंडिताइन पर पिटाई और तेज कर दी. कभी बॉल नोचती तो कभी पंडिताइन की कमर और चूतदों पर लात से मारती. और सावित्री उच्छल उछल कर पंडिताइन को मारती तब उसकी दोनो चुचियाँ और काले काले चूतड़ खूब हिलते जो पंडित जी पर्दे के आड़ से देख कर मस्त हो जाते. जवान और मांसल सावित्री से पंडिताइन का पिटना पंडित जी को पसंद था. वह चाहते थे कि इसकी पिटाई से पंडिताइन का बढ़ा हुआ हिम्मत पस्त हो जाए. वैसे वह खुद पंडिताइन से सीधे झगड़ा करना नही चाहते थे इसी कारण वह सावित्री को मना नही कर रहे थे. सावित्री की आँखें लाल हो चुकी थी पंडिताइन को लगा कि सावित्री अब जान ले लेगी तब गिड़गिडाना सुरू कर दी "आरे तुम मेरी बेटी की तरह हो ....अरे मत मारो...मैं मार जाउन्गि ...इसमे तो पंडित जी का ही कसूर है...मुझे जाने दो...मैं अब यहाँ से जा रही हूँ ....मुझे जाने दो.."

सावित्री का भी गुस्सा अब काफ़ी तेज हो गया था और गलिया दे डाली "अब तू बेटी कह रही हो बुर चोदि ...हरजाई ...मैं अब डरने वाली नही"

फिर पंडिताइन का बॉल पकड़ कर खड़ा कर दी और दुकान के तरफ धकेलते हुए सावित्री बोली "भाग जा यहाँ से रंडी ..नहीं तो मैं जान ले लूँगी" पंडिताइन ज्योन्हि दुकान वाले हिस्से मे जाने लगी कि सावित्री ने एक लात पंडिताइन के कमर पे मारी और पंडिताइन दुकान मे ही पंडित जी के सामने गिर पड़ी लेकिन पंडित जी कुच्छ सोचते की उसके पहले ही पंडिताइन अपने ही उठ खड़ी हुई और तेज़ी से दुकान का दरवाज़ा खोली और सीधे अपने घर की ओर भाग खड़ी हुई.

पंडित जी ने देखा की पंडिताइन का हिम्मत अब जबाव दे गया था और वह आँखों से ओझल हो चुकी थी. उन्होने दुकान का दरवाज़ा बंद किया और अंदर वाले हिस्से मे आए तो देखा की सावित्री लगभग हाँफ रही थी और अपने कपड़े पहनने जा रही थी. पंडित जी ने सावित्री का हाथ पकड़ते हुए कहा "अरे तुम तो बहुत बहादुर निकली...किस चक्की का आटा खाती है ....मैं जिस औरत से पूरी जिंदगी डरता रहा उसे तुमने सेकोंडों मे धूल चटा कर भगा दिया....साली मधेर्चोद को...बहुत अच्छा किया तुमने...बहुत क़ानून बोलती है...सारा क़ानून उसकी गांद मे चला गया" सावित्री ने कुच्छ सोचकर बोली "वो भी तो मुझे कितना मार मारी आप तो बस देख रहे थे उसे मना नही किया?" सावित्री के इस बात को सुनकर पंडित जी बोले "अरे अपनी पत्नी से बड़े बड़े लोग डरते हैं...मैं क्या चीज़ हूँ..लेकिन तुमने जो कुच्छ किया मैं बहुत खुश हूँ...." और पंडित जी आगे बढ़ कर सावित्री के नंगे बदन से लिपट गये. फिर बोले "पंडिताइन ने तुम्हे थप्पड़ और लात से पिटा तो मैं क्यों पीच्चे रहूं मैं भी तो तुम्हे पिटूँगा...." इतना सुन कर सावित्री सन्न रह गयी. लेकिन पंडित जी ने आगे बोला "अरे मैं तुम्हारी पिटाई आज इस मोटे लंड से करूँगा "
 
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संघर्ष--22

पंडित जी ने तौलिया को कमर से अलग कर सावित्री को गोद मे लेते हुए चौकी पर आ गये. उनका लंड सिकुड चुका था. उन्होने सावित्री के साँवले और कुच्छ मुन्हान्सो से भरे गाल को चूमना सुरू कर दिया. हाथों से चुचिओ को भी मीज़ना सुरू कर दिया और थोड़ी देर मे दोनो गरम हो गये. फिर पंडित जी ने सावित्री को घोड़ी बनाकर खूब मन से चोदा. अंत मे वीर्य को बुर के अंदर ही धकेल दिया. और पिच्छले दिन की तरह फिर सावित्री की चड्डी मे लंड को पोंच्छा और सावित्री को उसी चड्डी को पहनना पड़ा. सावित्री इस बात का विरोध करना चाहती थी लेकिन चुप ही रहना उचित समझी.

दोनो तृप्त हो गये तब पंडित जी और सावित्री कपड़े पहन कर दुकान वाले हिस्से मे आ गये. पंडित जी ने सावित्री से बोला "दवा को खाती हो की नही" सावित्री ने कहा "खाती हूँ" फिर पंडित जी बोले "ठीक है...लेकिन आज जो कुच्छ भी पंडिताइन और तुम्हारे बीच हुआ उसे किसी से कहना मत...यह मेरी इज़्ज़त की बात है...तुमने उसे पीट कर बहुत अच्छा किया...उसका भी रुआब अब ठीकाने लग गया.." सावित्री भी चुपचाप सुन रही थी लेकिन कुच्छ बोली नही.

सावित्री अंधेरा होने से पहले ही घर चल दी. आज राषते मे खंडहर के पास दो आवारों की गंदी बातें मन मे याद आ गयी. सावित्री को कुच्छ डर सा लगने लगा. पंडिताइन से मार पीट होने के वजह से उसके शरीर मे दर्द भी महसूस हो रहा था. तभी खंडहर से पहले ही उसकी नज़र धन्नो चाची पर पड़ी जो रश्ते पर ही खड़ी हो कर मानो उसी का इंतज़ार कर रही हो. सावित्री का कलेजा हिल सा गया. लेकिन सुबह जिस तरह से धन्नो चाची ने सावित्री को देख कर मुस्कुराया था मानो दोस्ती करना चाहती हों. सावित्री जैसे ही धन्नो चाची के करीब आई वैसे ही धन्नो ने मुस्कुराते हुए बोली "अरे सावित्री कहाँ से आ रही हो?" सावित्री भी धन्नो चाची के पास खड़ी हो गयी और जबाव मे बोली "इसी कस्बे से आ रही हूँ...पंडित जी के दुकान पर काम करती हूँ." धन्नो चाची ने बात आगे बढ़ाते हुए कहा "बहुत खुशी हुई जो तुमने अपनी मा की ज़िम्मेदारीओं मे हाथ बटाना शुरू कर दिया..क्या कहूँ तुम्हारी मा तो मुझे देख कर बहुत जलती है इसी लिए मैं तुमसे भी चाहते हुए बात नही कर पाती.." फिर आगे बोली "मैने देखा की तुम आ रही हो तो सोची की चलो यहाँ तुमसे हाल चाल ले लूँ. घर तो बगल मे है लेकिन तुम्हारी मा के गुस्से के डर से तुमसे बात करना ठीक नही लगता." सावित्री ने कुच्छ नही बोली लेकिन उसके दीमाग मे यह बात घूमने लगी की धन्नो चाची ने चड्डी के उपर वीर्य के दाग और दवा के पत्ते को तो देख ही चुकी थी इस लिए कहीं इस बारे मे ना पुच्छे. कुच्छ घबराए मन से सावित्री धन्नो चाची के सामने ही खड़ी थी लेकिन नज़रें जेमीन पर झुकी हुई थी. फिर धन्नो ने सावित्री के एक कंधे पर हाथ रखते हुए बोली "तुम भी अपनी मा की तरह हमसे नही बोलॉगी क्या?'" और इतना कह कर धन्नो हँसने लगी इस पर सावित्री भी मुस्कुरा दी और जबाव मे बोली "क्यों नही....ज़रूर बोलूँगी ....हा लेकिन मा के सामने तो बोलना ठीक नही होगा...तुम तो मा को अच्छी तरह जानती हो चाची" इस पर धन्नो चाची एक दम खुश हो गयी मानो उसका काम बनाने लगा हो. "सावित्री तुम एकदम मेरी बेटी की तरह हो..सच तुम्हारी यह बात सुनकर मुझे ऐसा लग रहा है मानो मेरी एक नही बल्कि दो दो बेटी है ..एक मुसम्मि और एक तुम." इतना बोलने के बाद धन्नो ने सुनसान रश्ते पर सावित्री को प्यार से गले लगा लिया. धन्नो ने सावित्री को पहली बार अपने बाहों मे लेते समझ गयी की चुचियाँ काफ़ी बड़ी बड़ी और शरीर एकदम भरा पूरा है. धन्नो सावित्री को जल्दी ही करीब आते देख मन ही मन खुश होने लगी. उसका काम अब काफ़ी तेज़ी से बनने लगा था. वह जानती थी की सावित्री के गदराई जवानी लूटने के चक्कर मे पड़ने वाले नये उम्र के आवारों से अपनी भी बुर की आग बुझवाने का मौका मिल सकेगा. धन्नो नये उम्र के लड़कों से चुदने की काफ़ी शौकीन थी. लेकिन उसकी खुद की उम्र 43 होने के वजह से नये उम्र के लड़कों को फाँसना इतना आसान नही होता. धन्नो को मालूम था की ऐसे मे किसी भी जवान लड़की को आगे कर देने पर लड़के मद्राने लगते और थोड़ी बहुत मशक्कत के बाद अपनी भी बुर मे नया लंड नसीब हो जाता.

धन्नो कुच्छ बात आगे बढ़ाते हुए बोली "चलो घर की ओर भी चला जाय नही तो यही रात हो जाएगी और ये रश्ते मे पड़ने वाला खंडहर तो मानो औरतों के इज़्ज़त का दुश्मन ही है.." दोनो चलने लगे और अंधेरा अब छाने ही लगा था. फिर धन्नो बोली "चिंता मत कर गाओं आते ही हम दोनो अलग अलग हो जाएँगे...तेरी मा को ऐसा कुच्छ भी मालून नही होगा जिससे तुम दाँत खाओ" इस पर सावित्री को कुच्छ राहत हुई लेकिन फिर भी बोली "कोई बात नही है चाची" फिर रश्ते मे चलते हुए धन्नो बोली "चलो तुम तो बहुत ही अच्छे विचार वाली हो..वैसे तेरी मा भी बहुत अच्छी है लेकिन ये गाओं के लोगों ने उससे मेरे और मेरी बेटी के बारे मे पता नही क्या क्या अफवाह उड़ा दी शायद इसी वजह से वह मुझसे दूर रहना चाहती और...और एक दूसरे के पड़ोसी होते हुए भी कोई किसी से बात नही करता" सावित्री चुपचाप रश्ते पर चलती रही और मन मे वही चड्डी और दवा का पत्ता घूम रहा था. धन्नो ने सावित्री को कुच्छ फुसलाते हुए बोलना जारी रखा "बेटी..तुम तो जानती हो की गाओं मे कितने गंदे बेशरम किस्म के लोग रहते हैं...वे किसी के बारे मे कुच्छ भी बोल देते हैं और दूसरों की खिल्ली उड़ाने मे कोई देरी नही करते...इन्ही कुत्तों के वजह से तुम्हारी मा को मेरे बारे मे ग़लतफहमी हो गयी और इन सबके कारण ही मेरी बेटी मुसम्मि की शादी भी टूट गयी..ससुराल भी छ्छूट गया...पता नही ये सब बदमाश क्या चाहते हैं." सावित्री इन सब बातों को चुपचाप सुन रही थी. लेकिन उसका मान यही सोच रहा था की आख़िर पीच्छले दिन ही धन्नो चाची ने सावित्री की दाग लगी चड्डी और दवा के पत्ते को देखी और दूसरे दिन ही मिलकर बातें भी करने लगी. सावित्री का मन आशानकों से भर उठा. उसे डर लग रहा था कि आख़िर धन्नो चाची क्यों उसके करीब आ रही है. पहले तो कभी भी ऐसा नही हुआ की धन्नो चाची उसमे कोई रूचि रखी हो. यही सब सोच रही थी की रश्ते पर चलते हुए धन्नो ने बात जारी रखी "जानती हो ये गाओं के बदमाश किसी को भी इज़्ज़त से रहना नही पसंद करते और झूठे ही बदनाम करने लगते हैं...सच पुछो तो ये गाओं बहुत गंदा हो गया है..यहा रहने का मतलब बस बदनामी और कुच्छ नही.." सावित्री इन सब बातों को काफ़ी ध्यान से सुन रही थी और उसका कलेजा धक धक कर रहा था. धन्नो रश्ते पर आगे आगे चल रही थी और सावित्री उसके पीछे पीछे. सावित्री के कुच्छ ना बोलने पर धन्नो रुक गयी और सावित्री की ओर देखते हुए पकुहही "अरी कुच्छ बोल नही रही ....क्या मेरी बातें सही नही हैं क्या....क्यों कुच्छ बोलो तो ..सही" इस पर सावित्री कुच्छ घबरा गयी लेकिन जबाव दी "ठीक कहती हो चाची ...लेकिन मैं ये सब बातें नही जानती हूँ..." इतना सुनकर धन्नो फिर रश्ते पर चलने लगी और बोली "अरे तो जानना चाहिए...तुम एक लड़की हो और तुम्हारा धर्म है की तुम इन आवारों से अपनी इज़्ज़त को बचा के रखना और यदि इनके मंसूबों को नही जानोगी तब तुम्हारे साथ धोखा हो जाएगे और बाद मे खोई इज़्ज़त वापस नही आती..समझी बेटी" धन्नो बात बढ़ाते बोली "लड़कियो की इज़्ज़त ऐसे जाती है जैसे कोई मोटा साँप किसी बिल मे घूस्ता है...जैसे मोटा साँप चाहे जितना भी मोटा क्यों ना हो और बिल चाहे जितना ही छ्होटा या संकरा क्यों ना हो, मौका मिलते ही मोटा साँप संकरे या छ्होटे बिल मे घूस्ते देर नही लगती..वैसे ही इन बदमाशों को नही जानोगी तो किसी दिन मौका देख कर अपनी मनमानी कर देंगे और फिर टूटे हुए इज़्ज़त के दरवाजे के अलावा कुच्छ नही बचेगे...बुरा मत मानना तुम्हे अपनी बेटी समझ कर बता रही हूँ" इस तरह के उदाहरण को सुन कर सावित्री कुच्छ सनसना गयी लेकिन कुच्छ बोली नही.
 
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धन्नो ने अपनी बात लंबी करती हुई बोली "मैने मुसम्मि को भी सुरू से ही काफ़ी दाँत फटकार कर और समझा बुझा कर रखा और समय पर शादी भी कर दी लेकिन ये गाओं वाले शायद हम लोंगो की इज़्ज़त से काफ़ी जलन होने लगी और ये कुत्ते पता नही कौन सी अफवाहों की चाल चली की तलाक़ करवा ही दिया... सच कहती हूँ बेटी इस गाओं से मुझे बहुत घृणा है.." सावित्री धन्नो की इन बातों से मन ही मन राज़ी नही थी क्योंकि उसे भी मालूम था की धन्नो और उसकी बेटी मुसम्मि दोनो ही शुरू से ही चुदैल किस्म की थी और मुसम्मि तो शादी के कई साल पहले से ही गाओं के पता नही कितने मर्दों से चुद चुकी थी. लेकिन धन्नो चाची की इन बातों के हा मे हाँ मिलाना ही ठीक था. और जबाव मे सावित्री ने कहा "सच कहती हो चाची मेरी मा भी यही कहती है की गाओं मे गंदे लोग ज़्यादा रहते हैं" इस पर धन्नो रश्ते पर चलते हुए बातें और मन से करने लगी. आगे बोली "तेरी मा ठीक कहती है बेटी क्योंकि वो बेचारी तो इस गाओं के करतूतों को खूब अच्छी तरह से देखा है..जब तुम्हारा बाप मार गया उस समय तुम्हारी परिवार के मुसीबत के घड़ी मे गाओं के चौधरी काफ़ी साथ दिया और इसी वजह से तुमाहरी मा उनके यहाँ बर्तन और झाड़ू का काम पकड़ लिया.." इतना कह कर धन्नो चाची चुपचाप रश्ते पर चल रही थीं और कुच्छ पल कुच्छ भी ना बोलने पर सावित्री आगे की बात जानने की ललक से पुचछा "फिर क्या हुआ चाची?" तब धन्नो बोली "लेकिन बेटी ये राज की बात है इस लिए किसी से चर्चा मत करना...समझी !" इतना सुन कर सावित्री सहम गयी और काफ़ी धीरे से बोली "हुम्म" फिर धन्नो ने काफ़ी धीरे धीरे चलते हुए सावित्री को बताने लगी "उस समय तुम्हारी मा सीता एकदम जवान और गदराई हुई थी और ...कुच्छ दिन ही बीते थे कि ...चौधरी ने एक दिन मौका पा कर तुम्हारी मा को ग़लत रश्ते पर खींच लिया..तुम्हारी मा की भी कोई ग़लती नही थी क्योंकि वह बेचारी का भी तो खून गरम ही था शायद इस लिए वह भी बेचारी मौका पाते ही चौधरी को अपनी गड्राई जवानी से खूब मनमानी करने देती. आख़िर बेटी तेरी मा विधवा ज़रूर थी लेकिन जवानी एक तूफान की तरह होती है जब अपने जोश पर आती है तो सब कुच्छ उड़ा ले जाती है. तुम्हारी मा कई साल तक चौधरी के शरीर की ताक़त निचोड़ती रही लेकिन पता नही कैसे गाओं के कुच्छ कुत्तों को इसकी भनक लग गयी और इस कारण बेचारी सीता की हिम्मत नही हुई की चौधरी के घर बर्तन झाड़ू का काम करने जाए. उसकी जगह दूसरी कोई औरत होती तो गाओं के इन अवारों और बदमाशों से बिल्कुल ही नही डरती और आज भी रोज़ चौधरी के नीचे दबी होती" इतना सुनते ही सावित्री को मानो मौत मिल गयी हो. उसे अपनी मा के बारे मे ऐसा सुनना बिल्कुल ही पसंद नही था. लेकिन ऐसी बात सुनकर गुस्से के साथ साथ उसके मन मे एक अज़ीब तरह की मस्ती भी छाने लगी. तभी धन्नो ने खंडहर के एक दीवाल के पास खड़ी हो कर सावित्री से बोली "रुक बेटी थोड़ा पेशाब कर लूँ" इतना कह कर धन्नो चाची ने रश्ते के किनारे खंडहर के दीवाल के पास ही अपने साड़ी और पेटिकोट को कमर तक उठा कर बैठ गयी और उसके हल्के गोरे रंग के बड़े बड़े चूतड़ सावित्री के तरफ था. सावित्री घबराहट मे खंडहर के पास खड़ी खड़ी चारो ओर देखने लगी की कहीं कोई आ तो नही रहा है. तभी उसकी नज़र एक 48-50 साल के आदमी पर पड़ी जो धोती कुर्ता पहने साइकल से आ रहा था. सावित्री ने घबराहट मे बोली "चाची एक आदमी आ रहा है..जल्दी करो.." धन्नो चाची का मुँह ठीक खंडहर के दीवार के ओर था इस लिए वह रश्ते पर आ रहे आदमी को देख नही पा रही थी. उनका चूतड़ एकदम रश्ते की ओर था और सावित्री उनके चूतड़ के तरफ ही खड़ी थी और कभी साइकल से तेज़ी से आ रहे उस अधेड़ उम्र के आदमी को देख रही तो कभी पेशाब कर रही धन्नो चाची के दोनो नागे चूतदों को देख रही थी. धन्नो ने सोचा की जब वो पेशाब करने बैठी थी तब तो कोई इर्द गिर्द दिखा नही था और जैसा की सावित्री ने बताया की कोई आदमी आ रहा है तो किसी के करीब भी आने मे कुच्छ समय लगेगा और तब तक वह पेशाब कर लेगी और यही सोच कर वह उठाने के बजाय पेशाब करती रही. लेकिन साइकल पर आदमी होने से काफ़ी तेज़ी से करीब आ गया और सावित्री धीरे से चिल्ला उठी "चाची जल्दी करो...आ गया..." और अभी पेशाब ख़त्म ही हुई थी की साइकल की चर्चराहट धन्नो के कान मे पड़ी लेकिन तब तक देर हो चुकी थी और साइकल पर बैठा आदमी धन्नो के दोनो नंगे चूतदों के ठीक पीछे से गुजरने लगा और उसकी आँखे दोनो मांसल चूतदों पर पड़ ही गया और अगले पल धन्नो हड़बड़ाहट मे उठी और अपनी साड़ी और पेटिकोट को नीचे गिराते हुए दोनो नंगे चूतादो और जांघों को ढकने लगी जो की उस आदमी ने अपने दोनो आँखों से भरपूर तरीके से देखा और फिर बाद मे सावित्री को भी देखा और सावित्री उस आदमी के नज़रों को ही देख रही थी जो धन्नो चाची के नंगे चूतदों पर चिपक गये थे. सावित्री की नज़रें जैसे ही उस आदमी से मिली सावित्री ने तुरंत अपनी नज़रें हटा ली लेकिन तब तक काफ़ी देर हो चुकी थी और उस आदमी ने सावित्री को देखते हुए मुस्कुरा दिया और उसी रफ़्तार से साइकल चलाते हुए शाम के हो रहे अंधेरे मे आँखों से ओझल हो गया. धन्नो चाची ने उस आदमी को तो देख नही पाई क्योंकि जब उठ कर खड़ी हुई और मूडी तब तक केवल उस आदमी का पीठ ही दिखाई दे रहा था और ना ही उस आदमी ने धन्नो चाची के चेहरे को देख पाया. फिर भी धन्नो चाची यह समझ गयीं की उस आदमी ने उनका दोनो मांसल बड़े बड़े चूतदों को देख लिया है. और शायद यही सोच कर धन्नो चाची ने सावित्री को एक हल्का सा थप्पड़ गाल पर मारते हुए हंस पड़ी और बोली "अरी हरजाई तू तो मेरी पिच्छड़ी उस बुड्ढे को दिखवा ही दी...तुम्हे बताना चाहिए था ना की वो हरामी साइकल से आ रहा है तो मैं पहले ही उठ जाती..मैं सोची पैदल होगा तबतक तो पेशाब कर लूँगी....धोखा हो गया..." और सावित्री भी मुस्कुरा दी. आगे बोली "पेशाब करना है तो कर ले ...." सावित्री को हल्की पेशाब लगी थी लेकिन वह पेशाब वहाँ और धन्नो के सामने नही करना चाहती थी और बोली "नही" और फिर दोनो रश्ते पर चलने लगे.
 
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संघर्ष--23

गतान्क से आगे.................

धीरे धीरे धन्डहर पार होने लगा. धन्नो चाची अपनी बात आगे बढ़ती हुई बोली "देख तू मेरी बात का बुरा मत मानना ...मैं जो भी कहती हूँ खूल कर कहती हूँ. तेरी मा सच मे बहुत ही अच्छी औरत है लेकिन ये गाओं वाले बस अफवाह फैला कर दूसरों को बेइज़्ज़त करना ज़्यादे पसंद करतें हैं." फिर आगे बोली "तेरी मा और चौधरी के बीच जो कुच्छ भी हुआ वह तेरी मा के शरीर की ज़रूरत भी थी...इस लिए इसमे कोई बहुत बुरी बात नही है. और वैसे भी बीते दीनो को याद करने से कोई फ़ायदा नही होता" यह सुनकर सावित्री ने कुछ भी नही बोली लेकिन धन्नो अपनी बात जारी रखते हुए कही "इस गाओं मे औरतों की जिंदगी बहुत ही बेकार है ..बस किसी तरह एक एक दिन काट जाए यही बहुत बड़ी बात है." फिर बोली "दूसरों को क्या कहूँ मैं तो खूद इस गाँव के गंदे लोगों से बहुत परेशान हो चुकी हूँ..देख ना तेरे सामने ही मेरी जवान बेटी की शादी तोड़ कर गाँव के कुच्छ बदमाश मेरी खिल्ली उड़ाते हैं लेकिन मेरी बेटी भी दूध के धोइ है बिल्कुल मेरी तरह. मुसम्मि बेचारी किसी के तरफ भी नज़र उठा कर नही देखती लेकिन उसके भी नाम को लोग इज़्ज़त से नही देखना चाहते और उसके बारे मे भी काफ़ी उल्टी सीधी बातें करतें हैं." धन्नो की इस बात से सावित्री बिल्कुल ही राज़ी नही थी और जानती थी की मा बेटी दोनो कितनी चुदैल हैं. चलते चलते गाओं काफ़ी नज़दीक आने लगा तभी सावित्री ने देखा कि साइकल वाला आदमी वापस आ रहा था. देखते ही सावित्री चौंक गयी. धन्नो से बोली "वो..आदमी आ रहा है...चाची " चाची ने पलट कर पीछे देखा तो एक अधेड़ उम्र का आदमी साइकल तेज़ी से चलाता हुआ आ रहा था. धन्नो उसके चेहरे को देखते ही उसे पहचान गयी और वो आदमी भी धन्नो को देखते ही साइकल रोक कर खड़ा हो गया. धन्नो ने तुरंत उस आदमी का पैर छ्छू ली और फिर बोली "अरे सगुण चाचा आप इधेर कैसे?" उस अधेड़ उम्र के आदमी ने मुस्कुराता हुआ बोला "बस ऐसे ही थोड़ा कस्बे की ओर कुच्छ काम था इस वजह से इधेर आना हुआ, चलो इसी बहाने तुमसे मुलाकात हो गयी" सावित्री एकदम से सन्न हो कर सबकुच्छ देख और सुन रही थी. धन्नो चाची ने जब उस आदमी का पैर छ्छू कर बात करने लगी तब सावित्री समझ गयी की ये आदमी कोई परिचित है. फिर उस आदमी ने धन्नो से पुचछा "अरे अपनी बेटी की दुबारा शादी के बारे मे कुच्छ सोची की नही " इस पर धन्नो ने जबाव दी "अरे सगुण चाचा , मोसाम्मि की शादी को आप को ही करानी है. मैं क्या करूँ इस गाओं मे तो मानो जीना दूभर हो गया है. उसकी शादी कितनी मेहनत से की थी लेकिन गाओं के कुच्छ कमीनो ने उसकी शादी को तुड़वा कर ही दम लिया. " इस पर उस आदमी ने कुच्छ चुपचाप रहा फिर बोला "अरे तो हाथ पे हाथ रख के बैठी रहेगी तब कैसे होगा शादी....कुच्छ दौड़ना और लड़का खोजना पड़ेगा तब तो जा कर कहीं शादी हो पाएगी..." धन्नो ने कहा "हां ठीक कहते हैं, फिर भी कोई लड़का बताइए जो आपकी जानकारी मे हो." इस पर उस आदमी ने कहा "अरे लड़के तो बहुत है लेकिन सब के सब तो कुँवारी ही खोजते हैं और किसी को जैसे ही पता चलता है की लड़की की एक बार शादी हो चुकी है साले भाग खड़े होते है. वैसे चलो मैं कोशिस करूँगा तुम्हारे लिए धन्नो." धन्नो काफ़ी खुश हो गयी. लेकिन सावित्री के दिमाग़ मे यही बात थी की यही वो आदमी था जो की कुच्छ देर पहले धन्नो चाची को पेशाब करते हुए दोनो चूतदों को खूब देखा और उसे देख कर मुस्कुराया भी था. तभी उस आदमी ने धन्नो के बगल मे खड़ी हो कर बातें सुन रही सावित्री की ओर इशारा कर के पुचछा "धन्नो ये कौन लड़की है?" धन्नो ने जबाव दी "मेरे पड़ोस मे रहने वाली सीता जो विधवा हो गयी थी उसी की लड़की है" तब उस आदमी ने फिर कहा "ये भी तो शादी लायक हो गयी है" धन्नो ने कहा "हा क्यो नही . आज कल तो लड़कियाँ जहाँ जवान हुई वहीं शादी के लायक उनका शरीर होते देर नही लगती और आप तो जानते ही हैं की मेरे इस गाओं मे जवान लड़की को घर मे रखना कितना मुश्किल काम होता है" इस बात को सुनकर उस आदमी ने फिर कहा "हा धन्नो तुम सच कहती हो अब तो जमाना ही बहुत खराब हो गया है. वैसे इसकी शादी मे कोई परेशानी आए तो मुझे बताना मैं इसकी शादी एक अच्छे लड़के से करवा दूँगा.." इतना कह कर उस आदमी ने सावित्री को नीचे से उपर तक आँखों से तौलने लगे फिर धन्नो ने कहा "अरे सगुण चाचा इसकी मालकिन तो इसकी मा सीता है मैं इसमे कुच्छ नही बोल सकती ...वैसे भी सीता हमसे नाराज़ ही रहती है...संयोग था की आज रश्ते मे सावित्री मुझसे मिल गयी सो हम दोनो बातें करते घर को ओर जा ही रहे थे की आप भी मिल गये" इतना सुनकर सगुण चाचा ने हंसते हुए बोले "तुम औरतों को तो मौका मिला नही की झगड़ा होते देर नही लगती..चलो ठीक है ये भी तो आख़िर तेरी बेटी की तरह ही है...चलो मैं एक दिन आ कर इसकी मा से मिल लूँगा ...वो मुझे जानती है." सावित्री ये सुन कर कुच्छ खुश तो हुई लेकिन उसे समझ नही आ रहा था की आख़िर उसकी मा इस आदमी को कैसे जानती है.

फिर सावित्री उस आदमी की ओर कुच्छ चकित अवस्था मे हो कर देख रही थी की उस आदमी ने सावित्री के गाल को प्यार से मीज़ता हुआ कहा "अरे बेटी तुम मुझे नही जानती ...मेरा नाम सगुण है और मुझे लोग प्यार से सगुण चाचा कहते हैं और मैं एक सामाजिक आदमी हूँ और शादी विवाह कराता हूँ इस लिए मुझे बहुत लोग जानते हैं.. तुम अपनी मा से मेरे बारे मे पुच्छना..." सावित्री के गाल के मीज़ने के अंदाज उसे ठीक नही लगा और उसका पूरा शरीर झनझणा उठा. उसके बाद सगुण ने धन्नो से कहा "वैसे परसों तुम चाहो तो मैं एक लड़के वाले लेकर आउन्गा और तुम उन्हे लड़की दीखा देना बोलो कैसा रहेगा " इस पर धन्नो ने कुच्छ सोचते कहा "मैं तो तैयार हूँ सगुण चाचा लेकिन लड़की दिखाने का काम गाओं मे अपने घर पर नही होगा नही तो इन अवारों को जैसे पता चला की ये फिर काम बिगाड़ने पर लग जाएँगें..और नतीजा फिर वही होगा" इस पर सगुण चाचा ने पुचछा "तो तुम्ही बताओ कहाँ पर लड़की को देखना चाहती हो वहीं पर मैं लड़के के बाप को लेकर आउन्गा"
 
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धन्नो ने कहा "मैं तो सोचती हूँ की आप के ही घर पर लड़की को दीखा दिया जाय" इस पर सगुण मे कहा "ठीक रहेगा तो चलो परसों दोपहर के 12 बजे मैं लड़के के बाप को लेकर आउन्गा. लड़का बाहर मे नौकरी करता है और उसकी उम्र करीब 27 के आस पास होगी और वैसे भी तो दूसरी शादी मे मन चाहा लड़का मुस्किल होता है मिलना बोलो यदि पसंद है तब तुम परसों दोफर के 12 बजे तक मेरे घर पर आ जाना" "ठीक है सगुण चाचा" धन्नो ने जबाव दिया और आगे पुछि "आप के घर पे कौन कौन है " इसपर सगुण ने कहा " इस समय तो वो मयके गयी है और मेरे एक बेटा अपने बहू और बच्चो को लेकर बाहर ही रहता है ...मेरा घर एक दम खाली है ..तुम्हे कोई परेशानी नही होगी सही समय तक बेटी मुसम्मि को ले कर आ जाना " इतना कह कर सगुण ने अपनी साइकल पर बैठा और अपने घर के ओर चल दिया. फिर सावित्री और धन्नो अपने गाओं के ओर चलने लगी और अब एक दम से अंधेरा होना सुरू हो गया था. फिर भी सावित्री इस आदमी के बारे मे जानना चाहती थी इस वजह से पुछि "कौन था चाची " इस पर धन्नो ने कहा "अरे बहुत सामाजिक आदमी हैं..सगुण चाचा .इन्होने ने बहुत सारी शादियाँ कराई हैं और मुसम्मि की भी यही शादी कराए थे. तेरी मा भी इन्हे जानती है. चलो परसों मैं भी मुसम्मि को लड़कों वालों को दिखवा कर शादी पक्की करवा लेना चाहती हूँ. ....अच्छा ए बता की जब मैं पेशाब कर रही थी तब ये ही साइकल से गुज़रे थे क्या?" इस पर सावित्री एक दम चुप रही और हल्की सी मुकुरा दी . धन्नो ने सावित्री की ओर देखकर हंसते हुए गलियाँ देती बोली "अरे कुत्ति कहीं की तू तो आज मेरी गांद को सगुण चाचा को दीखवा ही दी ...है राम क्या सोचेंगे मेरे बारे मे की कैसी औरत है सड़क पर गांद खोलकर मुतती है...." इस पर सावित्री ने कुच्छ नही बोली. लेकिन उसके मन मे यही था की उस समय जिस अंदाज मे सावित्री को देख कर मुस्कुराए उससे लगता था की सगुण एक रंगीन किस्म के आदमी भी थे. और दूसरी बार जब गाल को मीसा तब भी उनकी नियत बहुत अच्छी नही लगी. धन्नो ने सावित्री से कहा "देखो कल मैं तुम्हारे दुकान पर आउन्गि कुच्छ समान तो लेना ही पड़ेगा जब लड़की को दिखवाना है." सावित्री ने धन्नो से कहा " ठीक है चाची आना"

उसके बाद दोनो गाओं मे घुसने से पहले ही एक दूसरे से अलग अलग हो गयीं ताकि सावित्री की मा को ऐसा कुच्छ भी ना मालूम हो जिससे वो सावित्री पर गुस्सा करे.

सावित्री घर पहुँचने के बाद तुरंत पेशाब करने घर के पीच्छवाड़े गयी और पेशाब की और फिर वापस घर के काम मे लग गयी. रश्ते मे धन्नो चाची ने जो भी बात उसकी मा सीता के बारे मे बताई थी वह सावित्री के दिमाग़ मे घूम रहा था. लेकिन जब मुसम्मि के शादी की बात याद आते ही उसका भी मन लालच से भर गया की उसकी भी शादी जल्दी हो जाती तो बहुत अच्छी होती. लेकिन सावित्री अपनी ग़रीबी को भी भली भाँति जानती थी. लेकिन पता नही क्यूँ सगुण चाचा के नाम से कुच्छ आशा की किरण दिखाई दे रही थी. अंदर ही अंदर शादी की इच्छा प्रबल होती जा रही थी. सावित्री यही सोच रही थी की आख़िर वो कैसे अपनी मा या किसी से खूद के शादी के बारे मे कहे. वैसे आज जो कुच्छ भी दुकान मे पंडिताइन के साथ हुआ वह सावित्री के मन मे एक दर्द की तरह याद आ रहा था. लेकिन सावित्री को जब जब ये बात याद आती की कैसे उसने पंडिताइन को खूब पीटा तब उसका मनोबल काफ़ी उँचा हो जाता. शायद उसे अपनी ताक़त का असली अहसास होने लगा था.

दूसरे दिन जब सावित्री दुकान पर चलने की तैयारी की तभी खंडहर के पास आवारों की याद आते ही मन घबरा गया. लेकिन पता नही क्यूँ उनकी गंदी बाते सावित्री को फिर से सुनने की इच्च्छा हो रही थी. उन अवारों की गंदी हरकत अब अच्च्छा लग रहा था. रश्ते पर चलते चलते खंडहर आ गया और सावित्री की नज़रें इधेर उधेर शायद उन आवारों को ही तलाशने लगी थी. तभी पीछले दिन वाले दोनो आवारा खंडहर के एक दीवाल के पास बैठे नज़र आ गये. सावित्री को काफ़ी डर लगने लगा था. उसे ऐसा लग रहा था की आज भी वी दोनो ज़रूर कुछ अश्लील बात बोलेंगे. आख़िर जैसे ही सावित्री उस खंडहर के पास रश्ते पर बैठे हुए दोनो अवारों के पास से गुज़री ही थी की दोनो उसे ही घूर रहे थे और मुस्कुरा रहे थे. अचानक एक ने बोला "हम पर भी तो कुच्छ दया करो मेरी जान....हम लोग एक अच्छे इंसान हैं ..तुम जैसे चाहो वैसे हम दोनो पेश आएँगे...बस एक बार हमे भी अपना रस पीला दो..." सावित्री बिना कुच्छ बोले रश्ते पर चलती रही तभी उसे लगा की दोनो बदमाश उसके पीछे पीछे चल रहे हों. सावित्री के अंदर हिम्मत नही थी की वो पीछे पलट कर देखे. लेकिन जब दूसरे बदमाश की आवाज़ उसके कान मे टकराई तो उसे लगा की दोनो ठीक उसके पीछे ही चल रहे हों. दूसरे ने कहा "रानी ...हम दोनो रात मे 12 बजे के करीब तुम्हारे घर के पीछे वाले बगीचे मे आ कर हल्की सी सिटी मारेंगे और तुम धीरे से आ जाना....ज़रूर आना ...कोई ख़तरा नही है..हम दोनो पक्के खिलाड़ी है..
 
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एक बार हम दोनो से खेल लॉगी तो जिंदगी भर याद रखोगी...भूलना मत रानी." फिर दूसरे ने कहा "किसी को कहीं से भनक तक नही लगेगी ....तुम्हारी इज़्ज़त की चिंता भी है ..याद रखना आज रात 12 बजे तुम्हारे घर के पीच्छवाड़े वाले बगीचे मे." इतना कह कर दोनो आवारे खंडहर के अंदर को ओर चले गये. सावित्री इन बातों को सुन कर एक दम डर गयी और कुच्छ तेज़ी से दुकान की ओर चलने लगी. उसके मन मे जब यह बात याद आती की रात को दोनो उसे बगीचे मे क्यों बुला रहे थे तो मन घबराने के साथ साथ कुच्छ मस्त हो कर सनसना जाता था. सावित्री को उन अवारों की बातों पर काफ़ी गुस्सा तो आता ही था लेकिन पता नही क्यूँ उनकी बातें सुनकर मस्ती भी छाने लगती थी.

पिच्छले दिन की पंडिताइन के साथ मार पीट की घटना के वजह से पंडित जी अपनी दुकान मे बैठे बैठे यही सोच रहे थे की कहीं सावित्री दुकान पर आएगी या नही. लेकिन थोड़ी देर बाद सावित्री आती हुई नज़र आई तो पंडित जी की आँखे चमक उठीं. पंडित जी को अब विश्वाश हो गया की सावित्री को लंड का स्वाद पसंद आ गया है और अब चुड़ाने के लिए हमेशा तैयार रहेगी.

सावित्री दुकान मे बैठी बैठी यही सोच रही थी की धन्नो चाची पता नही कब आएगी. उसे इस बात का भी डर था की जब दोपहर को दोनो दुकान बंद कर के मज़ा लेंगे तभी यदि आ धमकी तब बहुत गड़बड़ हो जाएगा. दुकान बंद करने से थोड़ी देर पहले ही धन्नो चाची दुकान पर आई. उनको देखते ही सावित्री स्टूल पर से उठकर खड़ी हो गयी और धन्नो को दुकान के अंदर बुलाई.पंडित जी को समझ मे आ गया की ये औरत सावित्री की कोई परिचित है. धन्नो ने सावित्री से कहा "क्या बताउ बेटी ..बहुत देर हो गयी..मैं एक बार सोची की तेरे साथ ही आ गयी होती लेकिन घर क़ा काम इतना ज़्यादा होता है की दोपहर हो जाती है" धन्नो ने पंडित जी को तिरछि नज़र से देखी और फिर सावित्री से बोली "बेटी तुमने बहुत बढ़िया काम किया जो इस दुकान पर नौकरी पकड़ ली. अब हम लोग भी किसी समान के लिए बेहिचक यहाँ आ जाएँगे" इतना सुनकर पंडित जी ने कहा "अरे क्यों नही हम लोग तो ग्राहकों के सेवा के लिए ही यहाँ बैठे हैं....सावित्री तुम इन्हे बैठाओ तो सही बेचारी दोपहर को उतना दूर पैदल आई हैं" इस पर सावित्री ने स्टूल हटा कर दुकान के अंदर ही चटाई बिच्छा कर धन्नो चाची के साथ खूद भी बैठ कर बातें करने लगी. पंडित जी दुकान मे अपने कुर्सी पर बैठे धन्नो को देखने लगे और उन दोनो के बातों को सुनने लगे. 44 साल की धन्नो ने जो साड़ी पहनी थी वह कुच्छ पतली थी जिस वजह से पंडित जी को साड़ी के अंदर का पेटीकोत बहुत सॉफ दीख जा रहा था. वैसे धन्नो ने अपने सर के उपर भी सारी का पल्लू रखी थी और लाज़ दिखाने के लिए उसने पंडित जी की ओर अपनी पीठ कर रखी थी जो साड़ी से पूरी तरह से ढाकी थी. पंडित जी की नज़रें धन्नो के पतली और झलकने वाले सारी के अंदर दीख रहा पेटिकोट पर ही थी. पंडित जी इस बात को महसूस करने लगे की ये औरत कुच्छ रंगीन मिज़ाज की है क्योंकि जितनी पतली सारी पहनी थी उससे यही पता चल रहा था की वह अपनी शरीर को दूसरों को दीखाने की शौकीन है. तभी पंडित जी ने सावित्री से कहा "तुम दोनो आपस मे ही बात करोगे की मुझसे भी परिचय कराओगि" इस पर सावित्री ने धन्नो की ओर देखते हुए मुस्कुराते बोली "ये मेरे बगल मे रहने वाली धन्नो चाची हैं" और आगे फिर धन्नो ने अपना मुँह पंडित जी की ओर करते हुए बोली "पंडित जी मैं आज कल बहुत परेशान हूँ..मेरी एक बेटी है जिसकी शादी करनी है और उसी सिलसिले मे मैं आपके दुकान से कुच्छ शृंगार का समान लेने आई हूँ. कल उसे लड़के वाले देखने वाले हैं इस वजह से तैयारी कर रही हूँ" इतना सुन कर पंडित जी ने धन्नो के तरफ देखते हुए बोला "तुम सही कहती हो लड़कियो की शादी तो आज कल बड़ा ही कठिन काम हो गया है...हर जगह पैसा और दहेज...और कही कोई कमी रह गयी तो समझो लड़की को ससुराल वाले जला कर मारने मे थोड़ी भी देर नही लगाते" धन्नो पंडित जी की बात सुनकर कुच्छ हामी मे सर हिलाते आगे बोली "क्या बताउ पंडित जी मेरी बेटी के ये दूसरी शादी होगी...इस वजह से तो परेशानी बहुत है और मुझे चिंता ही खाए जा रही है की आख़िर कैसे बेटी की दूसरी शादी ठीक करूँ...भगवान की मर्ज़ी से कल ही लड़के वाले लड़की देखेंगे...तो सोचती हूँ की कहीं कोई कमी ना रह जाए लड़की दिखाने मे"
 

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