Erotica संघर्ष

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सावित्री किसी ढंग से खड़ी हो पा रही थी क्योंकि धन्नो चाची उसके पीछे की ओर से झुकी हुई थी और पंडित जी धन्नो की बुर पीछे से चोद रहे थे. पंडित जी दुबारा धक्के धन्नो की बुर मे मारना सुरू कर दिए और धन्नो फिर सिसकारना सुरू कर दी. धन्नो की बुर गीली हो जाने की वजह से पंडित जी लंड काफ़ी आसानी से बुर मे घुसने लगा. धन्नो की अश्लील सिसकारीओं का असर सावित्री के उपर पड़ने लगा. सावित्री अपने जीवन मे कभी नही सोची थी की इस उम्र की अधेड़ औरत इतनी गंदी तरह से बोलती हुई चुदेगि. और पंडित जी समझ गये थे की धन्नो काफ़ी चुदी पीटी औरत है और वह सावित्री को अपने अश्लीलता को दिखा कर मज़ा लेना चाह रही है. पंडित जी ने जब लंड को किसी पिस्टन की तरह धन्नो की बुर मे अंदर बाहर करने लगे तब धन्नो को काफ़ी मज़ा आने लगा. फिर धन्नो ने देखा की सावित्री भी हर धक्के के साथ हिल रही थी मानो पंडित जी उसी को चोद रहे हों. सावित्री भी काफ़ी चुपचाप धन्नो के चुदाइ का मज़ा ले रही थी. उसकी बुर मे भी चुनचुनाहट सुरू हो गयी थी. अब धन्नो ने यह समझ गयी की सावित्री की भी बुर अब लंड की माँग कर रही होगी तो इज़्ज़त के लिए गिड़गिदाने की बजाय अपने इज़्ज़त को खूब लुटाने के लिए बोलना सुरू कर दी "सी सी ऊ ऊ ऊ अरे अब तो बहुत मज़ा आ रहा है...और ज़ोर से आ आ आ आ आ आ ह ज़ोर ज़ोर ज़ोर्से ज़ोर से चोदिए ऊ ओह ....." पंडित जी इतना सुन कर धक्के की स्पीड बढ़ा दिए और सावित्री ने जब धन्नो के मुँह से ऐसी बात सुनी तो उसकी चूछुना रही बुर मे आग लग गयी. अब वह अपनी जगह पर अकड़ कर खड़ी हो गयी और एक लंबी सांस खींची. धन्नो समझ गयी अब सावित्री को इस अश्लीलता और बेशर्मी का सीधा असर पड़ने लगा है. फिर धन्नो ने एक बार फिर पीछे की ओर से चोद रहे पंडित जी से बोली "अरे और ज़ोर से चोदिए...चोदिए...मेरी बुर को..अब क्या बचा है मेरे पास जब मुझे लूट ही लिए तो चोद कर अपनी रखैल बना लीजिए..पेल कर फाड़ दीजिए मेरी बुर को ....ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ................................इतना मज़ा आ रहा है की क्या बताउ....हाई राम जी करता है की रोज़ आ कर चुदाउ ...ओह ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊवू ऊवू ......अरे कस कर चोदिए की मैं बर्बाद हो जाउ...मेरे राजा..मेरे करेजा ....चोदिए ...आप तो एक दम किसी जवान लड़के की तरह चोद रहे हैं मेरी बुर को....." पंडित जी इतना सुन कर धक्के मारते हुए तपाक से बोल पड़े "कितने लड़के चोदे हैं इस बुर को...?" धन्नो ने सावित्री के शरीर को पकड़ कर झुकी स्थिति मे कुच्छ सोच कर जबाव दे डाली "अरे के बताउ अब कया छुपाउ आपसे आप तो मेरे गाओं की हालत जानते ही हैं आख़िर कैसे कोई बच सकता ही मेरे गाओं के .....ओहो ओह ओह ओह ऊ ऊ ओह अरे किस किस को बताउ जिसने मेरी......अरे लड़को से करवाने मे तो और भी मज़ा आता है....जवान लड़को की बात कुच्छ और ही होती है....ऊ ऊ ऊ ऊ ऊ ऊवू ......मेरे गाओं मे तो शायद ही कोई औरत बची हो इन........ऊ ऊ ऊ ऊ .....अरे बाप रे बाप ....खूब डालिए अंदर " पंडित जी को सावित्री के सामने ही लड़कों की तारीफ कुच्छ ठीक नही लगी तो कुच्छ धक्को मे तेज़ी लाते हुए बोले "अभी तो मादर्चोद शरीफ बन रही थी और अब बता रही है की तेरी बुर पर काईओं ने चढ़ाई कर ली है.....तेरी बेटी की बुर चोदु साली रंडी.....लड़के साले क्या मेरी तरह चोदेन्गे रे...जो मैं चोद दूँगा....लड़कों की तारीफ करती है और वो भी मेरे सामने......वी साले शराब और नशा कर ते हैं ....उनके लंड मे ताक़त ही कहा होती है की बुर चोदेन्गे....मादार चोद...तेरी बेटी को चोद कर रंडी बना दूं साली ....चल इस चौकी पर चिट लेट फिर देख मैं तेरी इस भोसड़ी को कैसे चोद्ता हूँ..." इतना कहते ही पंडित जी कुच्छ गुस्साए हुए धन्नो के बुर से लंड को बाहर खींच लिए और भीगा हुआ लंड बाहर आ कर चमकने लगा. धन्नो अब सावित्री के कंधे के उपर से हटते हुए चौकी पर चढ़ गयी और फिर चित लेट गयी. पंडित जी पास मे खड़ी सावित्री की बाँह को पकड़ कर अपनी ओर खींचते हुए बोले "देख जब मैं इसकी बुर मे लंड घुसाउन्गा तब तुम पीछे बैठ कर इसकी बुर को अपने दोनो हाथों से कस कर फैलाना ताकि लंड को गहराई तक पेल सकूँ." सावित्री इतना सुन कर सन्न रह गयी. वैसे सावित्री भी तुरंत चुदना चाह रही थी. सावित्री वहीं खड़ी हो कर अपनी नज़रें झुका ली. तभी पंडित जी भी चौकी पर चढ़ कर धन्नो के दोनो घुटनो को मोड़ कर थोड़ा जांघों को चौड़ा कर दिए. धन्नो की बुर फैल गयी. लेकिन तभी पंडित जी ने सावित्री को कहा "तू पीछे बैठ कर अपने दोनो हाथो से इस चुदैल की बुर की फांकों को ऐसा फैलाओ की इसकी बुर की गहराई को चोद दूं." सावित्री ने अपने काँपते हाथों से धन्नो के बुर के दोनो फांको को कस फैलाया तो बुर का मुँह खूल गया. धन्नो सावित्री से बोली "अरे कस के फैलाना ...ताकि पंडित जी का पूरा लंड एक ही धक्के मे ऐसा घूस जाए मानो मेरे गाओं के आवारे मुझे चोद रहे हों...फैला मेरी बुर को मेरी बेटी रानी ऊ" सावित्री के फैलाए हुए धन्नो के बुर मे पंडित जी ने लंड को एक ही झटके मे इतनी तेज़ी से पेला की लंड बुर के गहराई मे घुस गया और दूसरे पल पंडित जी काफ़ी तेज़ी से पेलने लगे और सावित्री के हाथों से फैली हुई बुर की चुदाई काफ़ी तेज होने लगी. सावित्री के हाथ पर पंडित जी के दोनो अनदुए टकराने लगे. सावित्री की नज़रें पंडित जी के मोटे और गोरे लंड पर टिक गयी जो धन्नो की बुर मे आ जा रहा था और लंड पर काफ़ी सारा चुदाई का रस लगने लगा था. सावित्री की बुर भी चिपचिपा गयी थी. सावित्री का मन कर रहा था की वह धन्नो की बुर मे चुदाई कर रहे लंड को अपनी बुर मे डाल ले. बुर की आग ने सावित्री के अंदर की लाज़ और शार्म को एकदम से ख़त्म ही कर दिया था जो की धन्नो चाहती थी की सावित्री एक चरित्रहीं औरत बन जाए तो फिर उसकी सहेली की तरह गाओं मे घूम घूम कर नये उम्र के लड़कों को फाँस कर दोनो मज़ा ले सकें. धन्नो की बुर को इतनी कस कस कर चोद रहे थे की पूरी चौकी हिल रही थी मानो टूट जाए. कमरे मे चुदाइ और धन्नो की सिसकारीओं की आवाज़ गूँज उठी. सावित्री का मनमे एक दम चुदाई हो चुकी थी. सावित्री भी यही चाह रही थी पंडित जी उसे भी वही पर लेटा कर चोद दें. अब सावित्री लज़ाना नही चाह रही थी क्योंकि उसकी बुर मे लंड की ज़रूरत एक दम तेज हो गयी थी. धन्नो ने भी चुदते हुए फिर से अशीलता सुरू कर दी "चोदिए ऊ ऊवू ऊ ऊवू ऊ ह ऊओ हू रे ऊऊ मई ऊऊ रे बाप ...कैसे घूस रहा है ...अरे बड़ा मज़ा आ रहा है ऐसे लग रहा की कोई लड़का मुझे चोद रहाआ है अरे बेटी सावित्री...देख रे हरजाई मेरी बुर मे कैसे लंड जा रहा है....तेरी भी बुर .....अब पनिया गयी होगी रे.....देख मेरी बुर मे इस बुढ्ढे का लंड कैसे जा रहा है...ऊ ऊ ऊवू तू भी ऐसे ही चुदाना रे बढ़ा मज़ा आता है ...ऊओहू हूओ ऊओहू ऊ ऊ ऊवू ऊवू ऊवू ऊवू ऊओहूओ स्सो ओहो अरे इस गंदे काम मे इतना मज़ा आता है की क्या बताउ से हरजाई ...तू भी मेरी तरह चुदैल बन ....तेरी भी बुर ऐसी ही चुदेगि....ऊ..." और पंडित जी ने इतने तेज चोदना सुरू कर दिया की पूरी चौकी ऐसे हिलने लगी मानो अगले पल टूट ही जाएगी. तभी धन्नो काफ़ी तेज चीखी "म्‍म्म्मममममममममम ससस्स व्व न कककककककककककककक ऊऊऊऊऊऊओह अरे कमीने चोद मेरी बुर और मेरी बेटी की भी चोद मेरी मुसम्मि को भी चोद.....चोद कर बना डाल रंडी....मैं तो झड़ी आऊऊह ओ हू " और इतना कहने के साथ धन्नो झड़ने लगी और तभी पंडित जी भी पूरे लंड को उसकी बुर मे चॅंप कर वीर्य की तेज धार को उदेलना सुरू कर दिए और पीछे बैठी सावित्री अपने हाथ को खींच ली और समझ गयी की पंडित जी धन्नो चाची की बुर मे झाड़ रहे हैं और एक हाथ से अपनी बुर को सलवार के उपर से ही भींच ली.
 

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