Erotica संघर्ष

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संघर्ष--24

पंडित जी ने धन्नो की बात सुनने के बाद बोले "क्यों पहली शादी मे क्या बात हो गयी थी...?" इस सवाल को सुन कर धन्नो ने एक गहरी साँस लेते हुए अब पंडित जी की ओर मुँह करके आराम से बैठ गयी और बोली "क्या अपना दुख सुनाउ पंडित जी आप तो दुनिया देख ही रहे हैं...लोगो को दूसरों की खुशी और चैन पसंद नही है और मेरे गाओं के लोग तो और ही जलने और ईर्ष्या करने वाले हो गये हैं. ...मेरी बेटी की बहुत बढ़िया शादी कुच्छ साल पहले हुई थी की गाओं के कुच्छ बदमाशों ने पता नही कौन सी चाल चली की मेरी बेटी की पूरी जिंदगी ही चौपट हो गयी..और आज आप देख ही रहे हैं की उसकी दूसरी शादी की समस्या मेरे सामने खड़ा है." इतना सुन कर पंडित जी ने अपने माथे पर कुच्छ सिकुड़न लाते हुए पुच्छे "तुमने अपनी बेटी की शादी जब किया तो इसमे गाओं वाले भला क्या कर सकते हैं जिससे तुम्हारी बेटी का रिश्ता खराब हो जाय...? शादी के बाद लड़की ससुराल गयी फिर गाओं वाले क्या कर सकते हैं...?" पंडित जी के इस बात को सुनकर धन्नो लगभग गाओं वालों पर गुस्साते हुए बोली "पंडित जी आप यही तो नही जानते हैं ..साँप का एक मुँह होता है लेकिन मेरे गाओं मे जो साँप हर गली मे घूम रहे हैं उनके कई मुँह हैं...और जिसे डॅन्स लिए वह बर्बाद ही हो जाता है...यदि आप मेरे गाओं मे रहते तब आपको कुच्छ बताने की ज़रूरत नही पड़ती और या तो आप गाओं मे रहते या तो गाओं छ्चोड़कर भाग जाते....." फिर बात को आगे बढ़ाते हुए धन्नो ने पंडित जी से अब काफ़ी खुल कर बात करने लगी "मेरे गाओं मे हर तरफ अवेर ही आवारे ही हैं...किसी को कोई काम तो है नही और एक शराब की दुकान भी खुल गयी है ..उनका स्वर्ग ...और जिसके पास कुच्छ पैसे हैं वो नशे मे धुत इधेर उधर मदराते रहते हैं...ऐसे मे इन आवारों से क्या उम्मीद कोई कर सकता है....ये कमीने हमेशा मौके की तलाश मे ही रहते हैं की क्या बुढही क्या जवान क्या कुँवारी क्या शादी शुदा..कोई यदि अकेले दीख जाए तो उल्टी सीधी बाते बोलना शुरू कर देते हैं और इन आवारों से सभी शरीफ औरतें बच कर ही रहती हैं ...आख़िर इज़्ज़त तो सबको प्यारी है...मैं भी इसी घबराहट मे अपने मुसामी की शादी जल्दी ही करवा दी लेकिन जिस दिन मेरी बेटी की बारात आई उसी दिन गाओं के किसी आवारे ने किसी बाराती से मेरी सीधी सादी बेटी के बारे मे कुच्छ अफवाह फैला दी और जब कुच्छ दिन बाद जैसे ही यह बात उसके दूल्हे को पता चला तबसे मेरी बेटी से सब झगड़ा करने लगे...क्या बताउ पंडित जी मेरी बेटी की सास बहुत ही हरामी थी जो रोज मेरी बेटी को गंदी गंदी गाली देती थी...आख़िर कुच्छ ही दिन बीते थे की मेरी बेटी से भी बर्दाश्त नही हुआ और उसने भी अपने सास को जबाव मे खूब गालिया देने लगी और बात जब मार पीट तक पहुँच गयी ...और मेरी भी बेटी ने उनके इस अत्याचार का जबाव देते हुए अपनी सास का बॉल पकड़ कर खूब पीटा और दूसरे ही दिन सुबह ही सौच के बहाने निकली और यहाँ से दस कोस दूर अपने ससुराल से पैदल ही भाग आई...और मेरी बेटी ने मुझे सब कुच्छ बताया तो मैने यही कहा की जो कुच्छ किया बढ़िया किया..." पंडित जी धन्नो की बात को ध्यान से सुन रहे थे और धन्नो ने अपनी बात आगे कही "और क्या करूँ पंडित जी जब उन्होने ने मेरी जवान बेटी के चरित्रा को खराब बताते हुए गाली दी और मारपीट करने लगे तो मेरी बेटी आख़िर कब तक बर्दाश्त करती....और इसकी सास तो बहुत हरजाई थी पंडित जी...मुझे तो बाद मे पता चला की इसकी सास उस गाओं की एक नंबर की .....अब मैं क्या बताउ मुझे बताने मे भी लाज लगती है...मुझे पता ही नही था की वो सब इतने खराब हैं नही तो मैं उनके यहाँ अपनी बेटी की शादी ही नही करती " धन्नो इतना बोलते हुए अपनी नज़ारे पंडित जी की ओर से हटाते हुए नीचे झुका ली. पंडित जी भी समझ गये की धन्नो अपनी समधन को क्या कहना चाहती थी. धन्नो की बातें सावित्री भी काफ़ी ध्यान से सुन रही थी. पंडित जी भी धन्नो की ओर देखते हुए आगे बोले "तो उस बाराती से तुम्हारे गाओं वाले ने कौन सी बात कह दी कि रिश्ता ही टूट गया?" पंडित जी के इस सवाल को सुनकर धन्नो समझ गयी की पंडित जी कुच्छ और जानना चाहते हैं. और कुच्छ सोचते हुए अपनी नज़रें पंडित जी की ओर नही की और फिर बोलना सुरू कर दी "अब जो कुच्छ भी उस कमीने ने कहा पंडित जी नतीजा तो सामने आ ही गया...रिश्ता टूट ही गया...शादी के पहले जब मेरी बेटी मुसम्मि जवान हुई तभी से गाओं के कुत्ते उसके पीच्चे पड़ने लगे. मेरी बेटी बेचारी बहुत ही सीधी है पंडित जी मानो एक दम गई की तरह...वो बेचारी क्या करती इन कामीनो का..किसी भी तरह अपनी इज़्ज़त को शादी तक बचा कर रखी उन हाआमजादों से.. सच कहती हूँ पंडित जी कोई भी आवारा मेरी बेटी को च्छू भी नही सका...और वहीं पर गाँव की दूसरी लड़कियाँ तो उन कामीनो से.........क्या कहूँ लाज लगती है कहते हुए भी....बस इन अवारों को इसी बात का बदला लेना था की बड़े ही इज़्ज़त और शान से मेरी बेटी शादी करके अपने ससुराल जा रही है और उन्हे यह बर्दाश्त नही हुया तो क्या करते ..उस बाराती से मेरी बेटी के बारे मे झूठी बात बोल दी की जिस मुसम्मि को सब कुँवारी और आनच्छुई लोग समझ रहे हो उस मुसम्मि का रस गाओं के बड़े बुढहे सब ...........
 
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अरे क्या कहूँ मुँह से कहने लायक नही है जो उस कमीने ने उस बाराती से कहा....मेरा जी करता है की यदि पता चल जाय की किसने ऐसा कहा तो मैं आज उसका खून पी जाउ." धन्नो ने लगभग दाँत पीसते हुए कहा और फिर सावित्री की ओर देखते हुए आगे बोली "धात हाई राम मैं क्या बोले जा रही हूँ बेचारी ये बेटी भी क्या सोचेगी की मैं कितनी बेशर्म हो गयी हूँ जो इसके सामने ही पंडित जी से ऐसी बात कर रही हूँ...लेकिन क्या करूँ गुस्सा आ जाता है तो रोक नही पाती...." धन्नो के बातों की हक़ीकत बगल मे बैठी सावित्री भलीभाती जानती थी. सावित्री मन मे सोच रही थी की धन्नो तो खुद ही एक चुदैल है और उसकी बेटी के बारे मे भी गाओं मे खूब चर्चा चलती थी. शादी के कई साल पहले से ही उसे लगभग हर उम्र के लोग चोद चुके थे. पूरा गाओं धन्नो और मुसम्मि के बारे मे खूब अच्च्ची तरीके से जानते थे की दोनो किसी से कम नही. सावित्री के दिमाग़ मे यही बात चल रही थी की दोनो कितना मज़ा लेती हैं और जब दूसरों से बात करती हैं तो कितनी शरीफ बनती हैं.

पंडित जी ने धन्नो की बात सुनकर बोले "जाने दो जिसने तुम्हारी बेटी के उपर कीचड़ उच्छलने का काम किया उसकी मा बहन खूद ही रोज़ कीचड़ मे नहाएँगी और सारा जमाना देखेगा."

इतना सुनकर धन्नो बोली "हाँ पंडित जी मैं तो भगवान पर भरोसा करती हूँ..जिसने भी मेरी बेटी के जिंदगी से खिलवाड़ किया उसके जीवन को भगवान खूद ही बिगाड़ देगा.....मैं इसी बात से संतोष करती हूँ....आख़िर इन आवारों का कोई क्या कर सकता है जो लड़ाई मार पीट के लिए हमेशा ही तैयार रहते हैं...इनसे झगड़ा करना ठीक नही होता ...इसीलिए तो गाओं की शरीफ से शरीफ औरतें भी इन कमीनो की गंदी बातों का जबाव नही देती बल्कि सुनकर चुप रहती हैं.." पंडित जी बात आगे बढ़ाते हुए बोले "क्या करोगी जमाना बहुत खराब हो गया है...वैसे समझदारी इसी मे है की इन अवारों से बच कर अपनी बेटी की दूसरी शादी जल्दी से कर दो नही तो गाओं के माहौल मे ऐसी जवान लड़की का रहना ठीक नही है...शादी के बाद ससुराल चली जाएगी तो तुम्हारी सारी चिंता दूर हो जाएगी. अब शादी मे देर मत करो..." इस धन्नो ने जबाव दिया "हाँ पंडित जी घर मे जवान लड़की का रहना मानो सिने पर पत्थर रखा हो....लेकिन संतोष इसी बात से होती है की मेरी बेटी बिल्कुल मेरी तरह ही सीधी साधी और शरीफ है ...बेचारी घर से बाहर मुझसे पूछे बिना नही जाती है और केवल अपने सहेलिओं के ही यहा घूमने जाती है...और जब भी मैं कहती की कहाँ जा रही हो तो मेरी बेटी कहती है की मा घर मे बैठे बैठे मन नही लगता तो सोचती हूँ की गाओं मे सहेलिओं के यहाँ तो घूम लूँ...और मैं समझाती हूँ की ज़्यादे इधेर उधेर घूमना ठीक नही है तो बेचारी बोलती है की मा मेरी चिंता मत करो मैं अपनी इज़्ज़त का पूरा ख्याल करती हूँ और इस गाओं के माहौल को मैं खूब जानती हूँ मेरी चिंता आप मत किया करो...क्या बताउ पंडित जी जब मेरी बेटी कहती है की वह गाओं के माहौल को अच्छी तरह से जानती है तो मुझे भी लाज़ लग जाती है की बेचारी क्या जानती होगी गाओं के बारे मे. क्या बताउ पंडित जी मेरी बेटी का क्या दोष की वह घर मे ही हमेशा क़ैद रहे और यही सोच कर मैं उसे घूमने से ज़्यादा मना नही कर पाती...लेकिन बेटी जवान है तो मन मे डर तो बना ही रहता है. जैसे कभी कभी अपने सहेलिओं के घर देर रात तक रुक जाती है तो मेरा मन घबरा जाता है और खोजते जाती हूँ तो मेरे उपर ही हँसती है और कहती है की मैं कोई छोटा बच्चा हूँ क्या जो खो जाउन्गि..." पंडित जी भी धन्नो की इस बात पर मुस्कुरा दिए लेकिन आगे बोले "धन्नो तुम उसे रात मे कहीं घूमने मत दिया करो क्योंकि रात मे कहीं भी आना जाना औरतों और लड़कियो के लिए ठीक नही होता." धन्नो पंडित जी की इस बात से सहमत होते हुए बोली "हाँ पंडित जी आप सही कहते हैं...इसी चिंता मे तो मैं रात दिन सो नही पाती...वैसे मेरी लड़की की कोई ग़लती नही है क्योंकि वह बेचारी कभी भी अकेली कहीं नही जाती बल्कि उसकी कुच्छ सहेलियाँ हैं जो कहीं भी रात मे घूमने जाना होता है तो चुपचाप मेरी बेटी को फुसूलाकर ले कर चली जाती हैं और मेरी बेटी समझिए एक दम भोलीभाली है और उनसबके साथ मुझसे बिना बताए ही चली जाती है...उन सहेलिओं की आदत कुच्छ खराब है जैसे यदि गाओं मे या कहीं अगल बगल कोई रात मे किसी शादी विवाह या किसी मेला के मौके पर कोई नाच गाना का कार्यक्रम होता है तो वे मेरी बेटी को धीरे से फुसला कर ले कर चली जाती हैं और पूरी रात कार्यक्रम देखने के बाद ही आती हैं........मैं कितना रोकू अपनी बेटी को वह मानती ही नही है और मेरे बिगड़ने पर की रात मे जाते समय क्यों नही मेरे से पुछ्ति है तो कहती है की कार्यक्रम देखने ही तो गयी थी और इसमे क्या बुराई है. मैं क्या करूँ पंडित जी उसकी सहेलिया उसे काफ़ी समझा देती हैं की मा से पुच्छना बेकार है और पुच्छने पर मा जाने ही नही देगी तो बिना पुच्छे ही चली जाती है. इसी वजह से तो मैं सोचती हूँ की जल्दी ही शादी कर दूं ताकि उसकी सहेलिओं क़ा भी साथ छूट जाए. आप यह समझ लीजिए की यदि कहीं भी कोई रात का नाच गाने का या कोई कार्यक्रम होता है तो वो सब तो रात भर मेरी बेटी के साथ कार्यक्रम देखती हैं और मुझे पूरी रात नींद नही आती है जब तक की भोर होते होते मेरी बेटी घर नही आ जाती. भगवान जल्दी इसकी शादी करा दे की मेरी मुसीबत ख़त्म हो जाए." इतनी बात सुनकर पंडित जी बोले "वैसे नाच गाने का प्रोग्राम देखना कोई बुरी बात नही है ..यह तो देखने के लिए ही होता है लेकिन रात के अंधेरे मे कहीं अकेले मे आना जाना ठीक नही होते है लड़कियो औरतों के लिए..और यदि सहेलिओं के साथ देखने जाती है तो जाने दिया करो उसकी उम्र है नाच गाना देखने का.." फिर धन्नो ने जबाव दिया "हाँ पंडित जी मैं भी यही सोचती हूँ की शादी के टूट जाने से वैसे ही उसका मन दुखी रहता है तो क्यो ना बेचारी इधेर उधेर घूम कर ही अपना मन बहला ले...आख़िर घर मे अकेले कब तक बैठी रहेगी...यही सोच कर मैं भी ज़्यादे कुच्छ नही बोलती उसे..और जवान लड़की को बार बार डांटना भी तो ठीक नही होता. ..और मेरी मुसम्मि भी कुच्छ गुसैल किस्म की है सो कहीं मुझसे झगने लगे इस बात का भी डर लगता है...आख़िर कौन जवान लड़की से झगड़ा करे..यही सब सोच कर चाहती हूँ की जल्दी उसकी शादी हो जाए तो रात या दिन के घूमने का चक्कर तो ख़त्म हो जाएगा और मेरी चिंता भी दूर हो जाएगी." पंडित जी बोले "हाँ तो जल्दी से शादी कर डालो अपनी बेटी की नही तो तुम्हारे गाओं का माहौल बहुत ही खराब हो गया है....शादी मे देरी करना यानी बेटी कभी भी कोई ग़लत कदम उठा सकती है और फिर बदनामी से बचना मुस्किल हो जाएगा." इतना कहते हुए पंडित जी अपने सामने बैठी हुई धन्नो के पूरे शरीर पर एक नज़र डाली तो देखा की धन्नो भले ही सारी का पल्लू अपने सर पर रखी थी लेकिन सारी पतले होने के नाते उसका मांसल शरीर की बनावट सॉफ नज़र आ रही थी.
 
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संघर्ष--25

धन्नो ने अपनी साड़ी से अपनी दोनो छातिओ को ढँक तो रखी थी लेकिन सारी के पतले होने के कारण उसकी ब्लॉज़ मे दोनो बड़ी बड़ी चुचियाँ का आकार सॉफ समझ मे आ रहा था. पंडित जी की नज़रों को पढ़ते हुए धन्नो ने एक शरीफ औरत की तरह वैसे ही बैठी रही और अपनी नज़रे दूसरी ओर फेर ली जिससे पंडित जी अब अपनी आँखो से उसके शरीर को ठीक तरीके से तौलने लगे. फिर पंडित जी की बात का जबाव देते हुए धन्नो ने पंडित जी से बिना नज़रें मिलाए ही बोली "मुस्किल तो बहुत हो जाएगा बेटी की शादी करना पंडित जी ..क्योंकि सारा गाओं ही मेरे पीछे पड़ा है .....मुझे और मेरी बेटी को बदनाम करने के लिए...क्योंकि सीधे साधे को तो सभी परेशान करतें हैं ....सबको मालूम है की मा बेटी किसी का क्या बिगाड़ लेंगी.......... सो जो मन मे आया झूठ या सच बोलने मे देरी नही करते हैं....अब आप ही बताइए की गाओं की ही करतूत पर मेरी बेटी की शादी टूटी और अब गाओं वाले कहते हैं की मेरी बेटी ही ठीक नही है और इधेर उधेर घूम घूम कर ......हरामी सब और क्या कह सकतें है मेरी बेटी के बारे मे जब वो कुत्ते मेरे उपर भी कलंक लगाते देर नही करते और यहाँ तक बोलते हैं कि मुझे नये उम्र के लड़के पसंद............भगवान इंसबको एक दिन ज़रूर सज़ा देगा जो मुझे भी बदनाम करने मे लगे रहते हैं.......मन तो करता है की गाओं को ही छोड़ कर कहीं और चली जाउ..."

इतना सुनकर पंडित जी ने अपने धोती के उपर से ही लंगोट मे उठते हुए तनाव को एक हाथ से हल्के से मसल दिए जो धन्नो ने अपनी तिर्छि नज़र से देख ली और फिर धोती पर से हाथ हटाते हुए बोले "अरे धन्नो तुम इतनी सी बात को लेकर गाओं छोड़ने की सोच रही हो...ये सब तो होता रहता है........ और जिन लोंगो की खूद की इज़्ज़त नही होती वो ही दूसरे शरीफ लोंगो को बदनाम करते हैं...और जो भी तुमको और तुम्हारी बेटी को बदनाम करते हैं उन सालों का खूद का तो इज़्ज़त होगा ही नही और उन सबकी मा बहनो की आग सारा गाओं मिलकर बुझाता होगा..." पंडित जी के मुँह से लगभग गालियाँ देते हुए ऐसी बात सुनकर धन्नो एकदम लज़ा सी गयी अगले पल अपने हाथ से सारी का पल्लू पकड़ कर मुँह को ढँकते हुए धीरे से हंसते हुए लाज़ भरी मुँह से सावित्री के आँखों मे देखते हुए बोली "हाई राम कैसी बात बोलते हैं बड़ी लाज़ लगती है सुनकर........लेकिन ये सब हरामी ऐसी ही गाली लायक हैं ही जो दूसरों की इज़्ज़त को मिट्टी मे मिलाते रहते हैं...." और इतना कह कर धन्नो सावित्री की ओर देख कर अपनी हँसी रोकने की कोशिस करने लगी. पंडित जी धन्नो का जबाव सुनते ही उन्हे विश्वास हो गया की धन्नो खूब खेली खाई औरत है. और मस्ती की एक लहर पंडित जी के बदन मे उठने लगी और फिर हल्की मुस्कुराहट से बोले "मैं सच कहता हूँ धन्नो ...ये झूठे बदनाम करने वाले कमीने अपनी मा बहनो को नही देखते की दिन और रात हमेशा कुतिया की तरह पूरा गाओं घूमती रहती हैं और पूरा माहौल ही गंदा करने पर लगी रहती हैं..." धन्नो किसी तरह अपनी मुँह को पल्लू मे ढाकी हुई हँसी को रोकते हुए आगे बोली "क्या बताउ पंडित जी मेरे गाओं मे तो कुच्छ औरतें और लड़कियाँ इतनी बेशर्म हो गयी हैं कि उनकी करतूत सुनकर शरीर लाज़ से पानी पानी हो जाता है...आप समझिए की इनका करतूत अपने मुँह से किसी से बताने लायक नही है...." धन्नो इतना कह कर पंडित जी के बालिश्ट शरीर पर तिरछि नज़र से देखते हुए आगे बोली "मानो अब लाज़ और डर तो ख़त्म ही हो गया है इन गाओं की कुत्तिओ के अंदर से..बस रात दिन मज़ा लेने के चक्केर मे अपने साथ साथ अपनी बेटिओं को भी लेकर पूरे गाओं का चक्केर लगाती हैं की कोई तो उनके जाल मे ....मुझे तो इन सबकी ऐसी हरकत देखकर बड़ी ही लाज़ लगती है की आप से क्या कहूँ...ऐसे माहौल मे तो रहना ही बेकार है और मैं चाहती हूँ की अपनी बेटी की शादी कर के जल्दी ससुराल भेंज दूं नही तो इस गाओं का गंदा हवा कही उसे भी लग गया तो मैं तो उजड़ ही जाउन्गि.....

.क्योंकि मेरे पास बस एक इज़्ज़त ही है जिसे मैं बचा के रखी हूँ.." पंडित जी इस बात का जबाव देते हुए बोले "धन्नो तुम शादी की चिंता मत करो भगवान चाहेगा तो तेरी बेटी की शादी बहुत जल्द ही हो जाएगी...बस उपर वाले पर भरोसा करते हुए अपना प्रयास जारी रखो. ..अब मेरे खाना खाने और आराम करने का समय हो गया है और मैं चलता हूँ अंदर वाले कमरे मे और तुम दोनो बातें करो.." इतना कह कर पंडित जी अपनी जगह से उठे और दुकान का बाहरी दरवाज़ा बंद करके दुकान के अंदर वाले कमरे मे चले गये.

दुकान वाले हिस्से मे अब धन्नो और सावित्री चटाई पर बैठी ही थी की पंडित जी के अंदर वाले हिस्से मे जाते ही धन्नो चटाई पर लेट गयी और सावित्री से बोली "तुम भी आराम कर लो..आओ मेरे बगल मे लेट जाओ.." सावित्री चटाई पर बैठी हुई यही सोच रही थी कि धन्नो आज की दोपहर को दुकान पर ही रहेगी तो पंडित जी के साथ कैसे मज़ा लेगी. शायद इस बात को सोच कर सावित्री को धन्नो के उपर गुस्सा भी लग रहा था. वह यही बार बार सोच रही थी की आख़िर धन्नो पंडित जी से इतनी ज़्यादे बातें क्यों कर रही है और दुकान पर क्यों रुक गयी. लेकिन धन्नो चटाई पर लेटी हुई सावित्री के मन की बात समझ रही थी की उसके रुकने की वजह से आज पंडित जी के लंड का मज़ा सावित्री नही ले पाएगी शायद इसी वजह से कुच्छ अंदर ही अंदर गुस्सा कर रही होगी.

धन्नो के दुकान मे रुकने के वजह से सावित्री से भी बातें करने का मौका मिल गया था और वह सावित्री को अपने करीब लाना चाहती थी जो की बात चीत से ही हो सकती थी. यही सोच कर धन्नो ने फिर सावित्री से कहा "पंडित जी तो अंदर चले गये तुम अब आओ और आराम कर लो............की आराम नही करना चाहती हो..शायद तुम जवान लड़कियो को तो थकान होती ही नही चाहे जितना भी मेहनत कर लो..क्यों ?" इतना सुनकर सावित्री चटाई के एक किनारे बैठी हुई बस मुस्कुरा दी और धन्नो की बात का जबाव देते हुए बोली "नही चाची ठीक है...आप आराम करो..मैं बैठी ही ठीक हूँ" फिर धन्नो ने सावित्री की ओर देखते हुए पंडित जी के बारे मे धीरे से पुछि "खाना खाने के बाद कितनी देर तक पंडित जी आराम करते हैं..और तुम कहाँ आराम करती हो?" सावित्री भी काफ़ी धीरे से बोली "यही कोई एक या दो घंटे और फिर दुकान खुल जाती है" लेकिन सावित्री ने दूसरे सवाल का जबाव देना पसंद नही की और इस वजह से चुप रही लेकिन धन्नो ने फिर पुचछा "जब वे आराम करते हैं तो तुम क्या करती हो?" इस सवाल को सुनकर सावित्री एक दम घबरा सी गयी और कुच्छ पल बाद जबाव मे बोली "मैं भी इसी चटाई पर यहीं लेट जाती हूँ" इतना कह कर सावित्री धन्नो के सवालों से पीचछा छुड़ाई ही थी की धन्नो ने दूसरा सवाल फिर रखते बोली "लेकिन पंडित जी के जागने से पहले ही जाग जाती हो या वो आ कर तुम्हे जगाते हैं.? " सावित्री इस सवाल के पुच्छने के पीछे धन्नो चाची की सोच पर गौर करती हुई कुच्छ परेशान सी हुई और बोली "अरे नही चाची वी क्या मुझे जगाएँगे...मैं सोती ही कहा हूँ दिन मे बस ऐसे ही चटाई पर लेट कर दोफर गुज़ार लेती हूँ.." इतना सुन कर धन्नो कुच्छ सलाह देती हुई बोली "हाँ बेटी बाहरी मर्दों से बहुत ही दूरी बना कर रहना चाहिए..इसी मे इज़्ज़त है..बस अपने काम से काम ..आज का जमाना बहुत खराब हो गया है.............. और वैसे ही मर्दों की नियत तो औरतों के उपर हमेशा गंदी ही रहती है बस मौका मिला नही की ..अपने मतलब के चक्केर मे पड़ जातें हैं ...अब रोज़ दोपहर मे तुम यहाँ अकेली ही रहती हो..लेकिन पंडित जी तो बड़े ही भले आदमी हैं इस लिए कोई चिंता की बात नही है ..और इनकी जगह कोई दूसरा आदमी होता तो ज़रूर दोपहर मे तुम्हे अकेले पा कर परेशान करता.." सावित्री चटाई के एक किनारे बैठ कर अपनी नज़रें झुकाए धन्नो की बातें चुप चाप सुन रही थी.
 
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तुम्हारा मन भी बहाल जाएगा..नही तो गाओं मे तो कहीं आने जाने लायक नही है औरतों के लिए... हर जगह आवारे कमीने घूमते रहते हैं जिन्हे बस शराब और औरतों के अलावा कुच्छ दिखाई ही नही देता. "

धन्नो चटाई पर लेटी हुई सावित्री के चेहरे के भाव को ध्यान से देखती हुई अब बात चीत मे कुच्छ गर्मी डालने के नियत से आगे बोली "लेकिन ये गाओं वाले कुत्ते तुम्हारे कस्बे मे काम पर आने जाने को भी अपनी नज़र से देखते हैं बेटी..मैने किसी से सुना की वी सब तुम्हारे साथ पंडित जी का नाम जोड़ कर हँसी उड़ाते हैं..मैने तो बेटी वहीं पर कह दिया की जो भी इस तरह की बात करे भगवान उसे मौत दे दे...सावित्री को तो सारा गाओं जानता है की बेचारी कितनी सीधी और शरीफ है...भला कोई दूसरी लड़की रहती तो कोई कुच्छ शक़ भी करे लेकिन सावित्री तो एक दम दूध की धोइ है..." धन्नो इस बात को बोलने के साथ अपनी नज़रों से सावित्री के चेहरे के भाव को तौलने का काम भी जारी रखा. इस तरह का चरित्रा. पर हमले की आशंका को भाँपते हुए सावित्री के चेहरे पर परेशानी और घबराहट सॉफ दिखने लगा. साथ ही सावित्री ने धन्नो के तरफ अपनी नज़रें करते हुए काफ़ी धीरे से और डरी हुई हाल मे पुछि "कौन ऐसी बात कह रहा था..आ" धन्नो हमले को अब थोड़ा धीरे धीरे करने की नियत से बोली "अरे तुम इसकी चिंता मत करो ..गाओं है तो ऐसी वैसी बातें तो औरतों के बारे मे होती ही रहती है...मर्दों का काम ही होता है औरतों को कुच्छ ना तो कुच्छ बोलते रहना ..इसका यह मतलब थोड़ी है की जो मर्द कह देंगे वह सही है...लेकिन मेरे गाओं की कुच्छ कुतिआ है जो बदनाम करने के नियत से झूठे ही दोष लगाती रहती हैं बेटी...बस इन्ही हरजाओं से सजग रहना है..ये सब अपने तो कई मर्दों के नीचे............. और शरीफ औरों को झूठे ही बदनाम करने के फिराक मे रहती हैं." फिर भी सावित्री की बेचैनी कम नही हुई और आगे बोली "लेकिन चाची मेरे बारे मे आख़िर कोई क्यों ऐसी बात बोलेगा?" धन्नो ने सावित्री के . और बेचैनी को कम करने के नियत से कही "अरे तुम तो इतना घबरा जा रही हो मानो कोई पहाड़ टूट कर गिर पड़ा हो...बेटी तुम ये मत भूलो की एक औरत का जन्म मिला है तुम्हे ......और ...औरत को पूरी जिंदगी बहुत कुच्छ बर्दाश्त करना पड़ता है..इतना घबराने से कुच्छ नही होगा...गाओं मे हर औरत और लड़की के बारे मे कुच्छ ना तो कुच्छ अफवाह उड़ती रहती है...झूठे ही सही..हम औरतों का काम है एक कान से सुनो तो दूसरे कान से निकाल देना..." धन्नो की इन बातों को सावित्री काफ़ी ध्यान से सुन रही थी और तभी अंदर वाले कमरे से पंडित जी के नाक बजने की . आने लगी और अब पंडित जी काफ़ी नीद मे सो रहे थे.

फिर धन्नो ने बात आगे बढ़ाते हुए काफ़ी धीमी आवाज़ मे लगभग फुसूस्सते हुए बोली "देख .मेरा गाओं ऐसा है की चाहे तुम शरीफ रहो या बदमाश ..बदनाम तो हर हाल मे होना है क्योंकि ये आवारों और कमीनो का गाओं है....किसी हाल मे यहाँ बदनामी से बचना मुस्किल है...चाहे कोई मज़ा ले चाहे शरीफ रहे ..ये कुत्ते सबको एक ही नज़र से देखते हैं ...तो समझो की तुम चाहे लाख शरीफ क्यों ना रहो तुम्हे छिनाल बनाते देर नही लगाते..."

फिर धन्नो बात लंबी करते बोली "ऐसी बात भी नही है कि वो सब हमेसा झूठ ही बोलते है सावित्री ...मेरे गाओं मे बहुत सारी छिनार किस्म की भी औरतें हैं जो गाओं मे बहुत मज़ा लेती हैं....तुम तो अभी बच्ची हो क्या जानोगी इन सब की कहानियाँ की क्या क्या गुल खिलाती हैं ये सब कुट्तिया...कभी कभी तो इनके करतूतों को सुनकर मैं यही सोचती हूँ कि ये सब औरत के नाम को ही बदनाम कर रही हैं...बेटी अब तुम्हे मैं कैसे अपने मुँह से बताउ ...तुमको बताने मे मुझे खूद ही लाज़ लगती है..की कैसे कैसे गाओं की बहुत सी औरतें और तुम्हारी उम्र की लड़कियाँ उपर से तो काफ़ी इज़्ज़त से रहती हैं लेकिन चोरी च्छूपे कितने मर्दों का ...छी बेटी क्या कहूँ मेरे को भी अच्च्छा नही लगता तुमसे इस तरह की बात करना .....लेकिन सच तो सच ही होता है...और यही सोच कर तुमसे बताना चाहती हूँ की अब तुम भी जवान हो गयी हो इसलिए ज़रूरी भी है की दुनिया की सच्चाई को जानो और समझो ताकि कहीं तुम्हारे भोलेपन के वजह से तुम्हे कोई धोखा ना हो जाय."

धन्नो के इस तरह की बातों से सावित्री के अंदर बेचैनी के साथ साथ कुच्छ उत्सुकता भी पैदा होने लगी की आगे धन्नो चाची क्या बताती है जो की वह अभी तक नही जानती थी. शायद ऐसी सोच आने के बाद सावित्री भी अब चुप हो कर मानो अपने कान को धन्नो चाची के बातों को सुनने के लिए खोल रखी हो. धन्नो चाची सावित्री के जवान मन को समझ गयी थी की अब सावित्री के अंदर समाज की गंदी सच्चईओं को जानने की लालच पैदा होने लगी है और अगले पल चटाई पर धीरे से उठकर बैठ गयी ताकि सावित्री के और करीब आ करके बातें आगे बढ़ाए और वहीं सावित्री लाज़ और डर से अपनी सिर को झुकाए हुए अपनी नज़रे दुकान के फर्श पर गढ़ा चुकी हो मानो उपर से वह धन्नो चाची की बात नही सुनना चाहती हो.
 
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फिर धन्नो ने पंडित जी को नीद मे सो जाने और सावित्री को अकेली पाते ही गर्म बातों का लहर और तेज करते हुए धीमी आवाज़ मे आगे बोली "तुम्हे क्या बताउ बेटी ...मुझे डर लगता है की तुम मेरी बात को कहीं ग़लत मत समझ लेना...तुम्हारे उम्र की लड़कियाँ तो इस गाओं मे तूफान मचा दी हैं...और तुम हो एकदम अनाड़ी ...और गाँव के कुच्छ औरतें तो यहाँ तक कहती है की तुम्हारी मुनिया तो पान भी नही खाई होगी..." सावित्री को यह बात समझ नही आई तो तुरंत पुछि "कौन मुनिया और कैसा पान ?" धन्नो चाची इतना सुनकर सावित्री के कान मे काफ़ी धीरे से हंसते हुए बोली "अरे हरजाई तुम इतना भी नही जानती ..मुनिया का मतलब तुम्हारी बुर से है और पान खाने का मतलब बर जब पहली बार चुदति है तो सील टूटने के कारण खून पूरे बुर पर लग जाता है जिसे दूसरी भाषा मे मुनिया का पान खाना कहते हैं...तू तो कुच्छ नही जानती है...या किसी का बाँस खा चुकी है और मुझे उल्लू बना रही है" धन्नो की ऐसी बात सुनते ही सावित्री को मानो चक्कर आ गया. वह कभी नही सोची थी कि धन्नो चाची उससे इस तरह से बात करेगी. उसका मन और शरीर दोनो सनसनाहट से भर गया. सावित्री के अंदर अब इतनी हिम्मत नही थी की धन्नो के नज़र से अपनी नज़र मिला सके. उसकी नज़रें अब केवल फर्श को देख रही थी. उसके मुँह से अब आवाज़ निकालने की ताक़त लगभग ख़त्म हो चुकी थी. धन्नो अब समझ गयी की उसका हथोदा अब सावित्री के मन पर असर कर दिया है. और इसी वजह से सावित्री के मुँह से किसी भी तरह की बात का निकलना बंद हो गया था. धन्नो अपनी बात को आगे बढ़ाते हुए सावित्री के कान के पास काफ़ी धीरे से फुसफुससाई "तुम्हे आज मैं बता दूं की जबसे तुम कस्बे मे इस दुकान पर काम करने आना सुरू कर दी हो तबसे ही गाओं के कई नौजवान तो नौजवान यहाँ तक की बुड्ढे भी तेरी छाति और गांद देखकर तुम्हे पेलने के चक्कर मे पड़े हैं..और मैं तो तुम्हे खुल कर बता दूं कि काफ़ी संभाल कर रश्ते मे आया जाया कर नही तो कहीं सुनसान मे पा कर तुम्हे पटक कर इतनी चुदाइ कर देंगे की ...तुम्हारी मुनिया की शक्ल ही खराब हो जाएगी."

धन्नो फिर आगे बोली "तुम्हारे जैसे जवान लड़की को तो गाओं के मर्दों के नियत और हरकत के बारे मे पूरी जानकारी होनी चाहिए..और तू है की दुनिया की सच्चाई से बेख़बर....मेरी बात का बुरा मत मानना ..मैं जो सच है वही बता रही हूँ....तेरी उम्र अब बच्चों की नही है अब तुम एक मर्द के लिए पूरी तरह जवान है...." सावित्री धन्नो के इन बातों को सुनकर एक दम चुप चाप वैसी ही बैठी थी. सावित्री धन्नो की इन बातों को सुनकर डर गयी की गाओं के मर्द उसके चक्कर मे पड़े हैं और धन्नो के मुँह से ख़ूले और अश्लील शब्दों के प्रयोग से बहुत ही लाज़ लग रही थी.

धन्नो फिर लगभग फुसफुससाई "तुम्हे भले ही कुच्छ पता ना हो लेकिन गाओं के मर्द तेरी जवानी की कीमत खूब अच्छि तरीके से जानते हैं...तभी तो तेरे बारे मे चर्चा करते हैं..और तुम्हे खाने के सपने बुनते हैं..." आगे फिर फुसफुससते बोली "तेरी जगह तो कोई दूसरी लड़की रहती तो अब तक गाओं मे लाठी और भला चलवा दी होती...अरे तेरी तकदीर बहुत अच्छि है जो भगवान ने इतना बढ़िया बदन दे रखा है..तभी तो गाओं के सभी मर्द आजकल तेरे लिए सपने देख रहे हैं..ये सब तो उपर वाले की मेहेरबानी है." धन्नो के इस तरह के तारीफ से सावित्री को कुच्छ समझ नही आ रहा था की आख़िर धन्नो इस तरह की बाते क्यों कर रही है. लेकिन सावित्री जब यह सुनी की गाओं के मर्द उसके बारे मे बातें करते हैं तो उसे अंदर ही अंदर एक संतोष और उत्सुकता भी जाग उठी. धन्नो अब सावित्री के मन मे मस्ती का बीज बोना सुरू कर दी थी. सावित्री ना चाहते हुए भी इस तरह की बातें सुनना चाहती थी. फिर धन्नो ने रंगीन बातों का सिलसिला आगे बढ़ाते हुए बोली "तुम थोड़ा गाओं के बारे मे भी जानने की कोशिस किया कर..तेरी उम्र की लौंडिया तो अब तक पता नही कितने मर्दों को खा कर मस्त हो गयी हैं और रोज़ किसी ना किसी के डंडे से मार खाए बगैर सोती नही हैं..और तू है की लाज़ से ही मरी जा रही है" फिर कुच्छ धीमी हँसी के साथ आगे बोली "अरे हरजाई मैने थोड़ी सी हँसी मज़ाक क्या कर दी की तेरी गले की आवाज़ ही सुख गयी..तू कुच्छ बोलेगी की ऐसे ही गूँग की तरह बैठी रहेगी..और मैं अकेले ही पागल की तरह बकती रहूंगी.." और इतना कहने के साथ धन्नो एक हाथ से सावित्री की पीठ पर हाथ घुमाई तो सावित्री अपनी नज़रें फर्श पर धँसाते हुए ही हल्की सी मुस्कुराइ. जिसे देख कर धन्नो खुश हो गयी. फिर भी धन्नो के गंदे शब्दों के इस्तेमाल के वजह से बुरी तरह शर्मा चुकी सावित्री कुच्छ बोलना नही चाहती थी. फिर धन्नो ने धीरे से कान के पास कही "कुच्छ बोलॉगी नही तो मैं चली जाउन्गि.." धन्नो के इस नाराज़ होने वाली बात को सुनते ही सावित्री ना चाहते हुए भी जबाव दी "क्या बोलूं..आप जो कह रहीं हैं मैं सुन रही हूँ.." और इसके आगे सावित्री के पास कुच्छ भी बोलने की हिम्मत ख़त्म हो गयी थी. फिर धन्नो ने सावित्री से पुछि "पंडित जी रात को अपने घर नही जाते क्या?" इस सवाल का जबाव देते हुए सावित्री धीरे से बोली "कभी कभी जाते होंगे..मैं बहुत कुच्छ नही जानती ..और शाम को ही मैं अपने घर चली जाती हूँ तो मैं भला क्या बताउ ." सावित्री धन्नो से इतना बोलकर सोचने लगी की धन्नो अब उससे नाराज़ नही होगी. लेकिन धन्नो ने धीरे से फिर बोली "हो सकता है कही इधेर उधेर किसी की मुनिया से काम चला लेता होगा.." फिर अपने मुँह को हाथ से ढँक कर हंसते हुए काफ़ी धीमी आवाज़ मे सावित्री के कान मे बोली "कहीं तेरी मुनिया........हाई राम मुझे तो बहुत ही हँसी आ रही है..ऐसी बात सोचते हुए...." सावित्री धन्नो की बात सुनते ही एकदम से सन्न हो गयी. उसे लगा की कोई बिजली का तेज झटका लग गया हो. उसे समझ मे नही आ रहा था की अब क्या करे. सावित्री का मन एकदम से घबरा उठा था. उसे ऐसा लग रहा था की धन्नो चाची जो भी कह रही थी सच कह रही थी. उसे जो डर लग रहा था वह बात सच होने के वजह से था. एक दिन पहले ही पंडिताइन के साथ हुई घटना भी सावित्री के देमाग मे छा उठी. सावित्री को ऐसा लग रहा था की उसे चक्केर आ रहा था. वह अब संभाल कर कुच्छ बोलना चाह रही थी लेकिन अब उसके पास इतना ताक़त नही रह गयी थी. सावित्री को ऐसा महसूस हो रहा था मानो ये बात केवल धन्नो चाची नही बल्कि पूरा गाओं ही एक साथ कह रहा हो. धन्नो अपनी धीमी धीमी हँसी पर काबू पाते हुए आगे बोली "इसमे घबराने की कोई बात नही है...बाहर काम करने निकली हो तो इतना मज़ाक तो तुम्हे सुनना पड़ेगा..चाहे तुम्हारी मुनिया की पिटाई होती हो या नही..." और फिर हँसने लगी. सावित्री एक दम शांत हो गयी थी और धन्नो की इतनी गंदी बात बोल कर हँसना उसे बहुत ही खराब लग रहा था. धन्नो ने जब देखा की सावित्री फिर से चिंता मे पड़ गयी है तब बोली "अरे तुम किसी बात की चिंता मत कर ..तू तो मेरी बेटी की तरह है और एक सहेली की तरह भी है...मैं ऐसी बात किसी से कहूँगी थोड़े..औरतों की कोई भी ऐसी वैसी बातें हमेशा च्छूपा. कर रखी जाती है..जानती हो औरतों का इज़्ज़त परदा होता है..जबतक पर्दे से धकि है औरत का इज़्ज़त होती है और जैसे ही परदा हटता है औरत बे-इज़्ज़त हो जाती है..पर्दे के आड़ मे चाहे जो कुछ खा पी लो कोई चिंता की बात नही होती..बस बात च्छूपना ही चाहिए..हर कीमत पर...और यदि तेरी मुनिया किसी का स्वाद ले ली तो मैं भला क्यूँ किसी से कहूँगी...अरे मैं तो ऐसी औरत हूँ की यदि ज़रूरत पड़ी तो तेरी मुनिया के लिए ऐसा इंतज़ाम करवा दूँगी की तेरी मुनिया भी खुश हो जाएगी और दुनिया भी जान नही पाएगी ...यानी मुझे मुनिया और दुनिया दोनो का ख्याल रहता है...कोई चिंता मत करना..बस तुम मुझे एक सहेली भी समझ लेना बेटी..ठीक" धन्नो ने इतना कह कर अस्वासन दे डाली जिससे सावित्री का डर तो कुच्छ कम हुआ लेकिन उसकी मुनिया या बुर के लिए किसी लंड का इनज़ाम की बात सावित्री को एकदम से चौंका दी और उसके मन मे एक रंगीन लहर भी दौड़ पड़ी. सावित्री पता नही क्यूँ ना चाहते हुए भी अंदर अंदर खुश हो गयी. लंड के इंतज़ाम के नाम से उसके पूरे बदन मे एक आग सी लगने लगी थी. इसी वजह से उसकी साँसे अब कुच्छ तेज होने लगी थी और उसके बुर मे भी मानो चिंतियाँ रेंगने लगी थी. सावित्री बैठे ही बैठे अपनी दोनो जांघों को आपस मे सताने लगी. धन्नो समझ गयी की लंड के नाम पर सावित्री की बुर मस्ताने लगी होगी. और अब लोहा गरम देख कर धन्नो हथोदा चलते हुए बोली "मेरे गाओं की लक्ष्मी भी बहुत पहले इसी दुकान पर काम करती थी.और उसने अपनी एक सहेली से ये बताया था की पंडित जी का औज़ार बहुत दमदार है...क्योंकि लक्ष्मी की मुनिया को पंडित जी ने कई साल पीटा था..लेकिन जबसे लक्ष्मी को गाओं के कुच्छ नये उम्र के लड़कों का साथ मिला तबसे लक्ष्मी ने पंडित जी के दुकान को छ्होर ही दी. लक्ष्मी भी उपर से बहुत शरीफ दीखती है लेकिन उसकी सच्चाई तो मुझे मालूम है ..उसकी मुनिया भी नये उम्र के लुंडों के लिए मुँह खोले रहती है."
 
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संघर्ष--27

धन्नो के इस तगड़े प्रहार का असर सावित्री की मन और दिमाग़ दोनो पर एक साथ पड़ा. वह सोचने लगी की पंडित जी ने पहले ही उसे बता दिया था की लक्ष्मी का दूसरा लड़का उनके शरीर से पैदा है. फिर भी लक्ष्मी को सावित्री की मा सीता और खूद सावित्री भी काफ़ी शरीफ मानती थी लेकिन अब सावित्री को महसूस होने लगा की जैसा वह सोचती थी वैसी दुनिया नही है और लक्ष्मी भी दूध की धोइ नही है. धन्नो की बातें उसे सही और वास्तविक लगने लगी. सावित्री मानो और अधिक सुनने की इच्च्छा से चुप चाप बैठी रही. धन्नो अंदर ही अंदर खुश हो गयी थी. उसे पता था की जवान लड़की के लिए इतनी गर्म और रंगीन बात उसे बेशरामी के रश्ते पर ले जाने के लिए

ठीक थी. सावित्री भी अब धन्नो की बात को सुनने के लिए बेताव होती जा रही थी लेकिन अभी भी उसे बहुत ही लाज़ लग रही थी इस वजह से अपनी नज़रें झुकाए चुपचाप बैठी थी. फिर धन्नो ने धीरे से आगे बोली "नये उम्र का लंड तो औरतों को काफ़ी जवान और ताज़ा रखता है और इसी लिए तो लक्ष्मी आज कल गाओं मे कुच्छ नये उम्र के लड़कों के पानी से अपनी मुनिया को रोज़ नहलाती है..वो भी धीरे धीरे बहुत मज़ा ले रही है..लेकिन ये बात गाओं के अंदर केवल मैं और कुच्छ उसकी सहेलियाँ ही जानती हैं...और दूसरों को जानने की क्या ज़रूरत भी है..बदनामी किसी को पसंद थोड़ी है..वो भी तो बेचारी एक औरत ही है..बस काम हो जाए और शोर भी ना मचे यही तो हर औरत चाहती ही" धन्नो ने इतना कह कर सावित्री के तेज सांस पर गौर करते हुए बात आगे बढ़ाई "वैसे लक्ष्मी काम ही ऐसा करती है की .साँप भी मर जाए और लाठी भी ना टूटेबहुत ही चलाँकि से और होशियारीसे अपनी मुनिया को लड़कों का पानीपिलाती है...मुझे तो उसके दिमाग़ पर काफ़ी अस्चर्य भी होता है...बहुत ही चालाक और समझदारी से रहती है..अब ये ही समझ की तेरी मा सीता उसकी बहुत करीबी सहेली है और उसे खूद ही नही पता की लक्ष्मी वास्तव मे कितनी चुदैल है..और तेरी मा उसे एक शरीफ औरत समझती है. लेकिन सच पुछो तो मेरे विचार मे वह एक शरीफ है भी...बहुत सावधानी से चुदति है...क्योंकि उसकी इस करतूत मे उसकी कुच्छ सहेलियाँ मदद करती हैं और इसी कारण उसके उपर कोई शक नही करता...और होता भी यही है यदि कोई एक औरत किसी दूसरे औरत का मदद लेते हुए मज़ा लेती है तो बदनामी का ख़तरा बहुत ही कम होता है...और आज कल तो इसी मे समझदारी भी है..." सावित्री इस बात को सुनकर फिर एक अलग सोच मे पड़ गयी की धन्नो उससे ऐसी बात कह कर क्या समझना चाह रही थी. सावित्री के दिमाग़ मे धन्नो द्वारा लंड का इंतज़ाम और फिर एक औरत की मदद से मज़ा लूटने का प्लान बताने के पीछे का मतलब समझ आने लगा. अब वह बहुत ही मस्त हो गयी थी. मानो धन्नो उसे स्वर्ग के रश्ते के बारे मे बता रही हो. सावित्री ने महसूस किया की उसकी बुर कुच्छ चिपचिपा सी गयी थी. फिर आगे धन्नो ने सावित्री के कान के पास धीरे से कुच्छ गंभीरता के साथ फुसफुससाई "मेरी इन बातों को किसी से कहना मत...समझी की नही ..." धन्नो ने सावित्री के कंधे पर एक हाथ रख कर मानो उससे हामी भरवाना चाहती थी लेकिन सावित्री अपनी आँखे एकदम फर्श पर टिकाए बैठी रह गयी. वह हाँ कहना चाहती थी लेकिन उसके पास अब अंदर से ताक़त नही लग रही थी क्योंकि वह इतनी गंदी और खुली हुई बात किसी से नही की थी. और चुप बैठी देख धन्नो ने उसके कंधे को उसी हाथ से लगभग हिलाते हुए फिर बोली "अरे पगली मेरी इन बातों को किसी से कहेगी तो लोग क्या सोचेंगे की मैं इस उम्र मे एक जवान लड़की को बिगाड़ रही हूँ...ये सब किसी से कहना मत ...क्यों कुच्छ बोलती क्यों नही..." दुबारा धन्नो की कोशिस से सावित्री का हिम्मत कुच्छ बढ़ा और काफ़ी धीरे से अपनी नज़रें झुकाए हुए ही फुसफुसा "नही कहूँगी" इतना सुनकर धन्नो ने सावित्री के कंधे पर से हाथ हटा ली और फिर बोली "हां बेटी तुम अब समझदार हो गयी हो और तुझे मालूम ही है की कौन सी बात किससे करनी चाहिए किससे नहीं....और आज से तुम मेरी एक बहुत ही अच्छी सहेली भी है और वो इसलिए की सहेली के रूप मे तुम हमसे खूल कर बात कर सकोगी और मैं ही एक सहेली के रूप मे जब तेरा मन करेगा तब उस चीज़ का इंतज़ाम भी धीरे से करवा दूँगी...तेरी मुनिया की भी ज़रूरत पूरी हो जाएगी और दुनिया को पता भी नही चलेगा..." इतना कह कर धन्नो हँसने लगी और सावित्री के पीठ पर धीरे एक थप्पड़ भी जड़ दी और सावित्री ऐसी बात दुबारा सुनने के बाद मुस्कुराना चाह रही थी लेकिन आ रही मुस्कुराहट को रोकते हुए बोली "धात्त्त...छ्चीए आप ये सब मुझसे मत कहा करें..मुझे कुच्छ नही चाहिए..." धन्नो ने जब सावित्री के मुँह से ऐसी बात सुनी तो उसे बहुत खुशी हुई और उसे लगा की आज की मेहनत रंग ला दी थी. फिर हँसते हुए बोली "हाँ तुम्हे नया या पुराना कोई औज़ार नही चाहिए ..मैं जानती हूँ क्यों नही चाहिए ...आज कल पंडित जी तो खूद ही तुम्हारी मुनिया का ख्याल रख रहे हैं और इस बुड्ढे के शरीर की ताक़त अपनी चड्डी मे भी पोत कर घूम रही हो...और उपर से यह बूढ़ा तुम्हे दवा भी खिला रहा है.....अरे बेटी यह मत भूलो की मैं भी एक समय तेरी तरह जवान थी और ...अब तुमसे क्या छुपाना मेरी भी मुनिया को रस पिलाने वाले बहुत थे...और झूठ क्या बोलूं...मेरी मुनिया भी खूब रस पिया करती थी..." अब तक का यह सबसे जबर्दाश्त हमला होते ही सावित्री एकदम से कांप सी गयी और दूसरे पल उसकी बुर के रेशे रेशे मे एक अजीब सी मस्ती की सनसनाहट दौड़ गयी. सावित्री को मानो साँप सूंघ गया था. अब उसे विश्वास हो गया था की उस दिन घर के पीच्छवाड़े पेशाब करते समय चड्डी पर लगे चुदाई के रस और सलवार पहनते समय समीज़ की जेब से गिरे दवा के पत्ते को देखकर धन्नो चाची सब माजरा समझ चुकी थी. और शायद इसी वजह धन्नो के व्यवहार मे बदलाव आ गया था.
 
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लेकिन धन्नो के इस अस्वासन से काफ़ी राहत मिली की वह किसी से कुच्छ नही कहेगी और वह अपनी जवानी के समय की मुनिया के रस वाली बात खूद ही बता कर यह भी स्पष्ट कर दी थी कि धन्नो का सावित्री के उपर भी बहुत विश्वास है. अब धन्नो ने पूरे हथियार सावित्री के उपर चला दी थी और सावित्री वैसे ही एक मूर्ति की तरह जस की तस बैठी थी. चेहरे पर एक लाज़ डर और पसीने उभर आए थे. साथ साथ उसके बदन मे एक मस्ती की लहर भी तेज हो गयी थी. धन्नो चाची उसे अपना असली रूप दिखा चुकी थी.

धन्नो का काम लगभग पूरा हो चुका था. वह सावित्री के साथ जिस तरह का संबंध बनाना चाह रही थी अब बनती दीख रही थी. सावित्री की चुप्पी इस बात को प्रमाणित कर रहा था की अब धन्नो के किसी बात का विरोध नही करना चाह रही थी. फिर धन्नो ने पीठ पर हाथ रखते धीरे से फुसफुससाई "कल मेरी बेटी को देखने के लिए लड़के वाले आ रहे हैं ..शगुन चाचा के घर ..और मैं सोचती हूँ की तुम भी दुकान के बहाने मेरे साथ शगुन चाचा के यहाँ चलती तो बहुत अच्च्छा होता..." इतना कह कर धन्नो चाची सावित्री के चहरे पर देखते हुए उसके जबाव का इंतज़ार करने लगी. सावित्री के समझ मे नही आ रहा था की आख़िर कैसे दुकान का काम छोड़ कर अपनी मा को बिना बताए वह ऐसा कर सकती है. इसी लिए चुप रही. फिर धन्नो ने थोड़ा ज़ोर लगा कर सावित्री से कुच्छ अनुरोध के अंदाज मे बोली "तुझे किसी तरह की कोई परेशानी नही होगी..मैं पंडित जी से बात कर लूँगी की कल मेरी बेटी मुसम्मि को देखने आ रहे हैं और इस कारण वह दुकान पर नही आएगी और मेरे साथ शगुन चाचा के घर जाएगी..बोल बेटी..." इतना सुनकर सावित्री की परेशानिया बढ़ गयीं और धीरे से बोली "लेकिन मेरी मा मुझे आपके साथ कहीं नही जाने देगी.." धन्नो तुरंत बोली "जब तुम दुकान के लिए आओगी तब मैं खूद तुम्हे गाओं के बाहर मिल लूँगी और फिर मेरे साथ शगुन चाचा के घर चलना..और शाम को जिस समय दुकान से घर जाती हो ठीक उसी समय मैं तुम्हे गाँव के बाहर तक छ्चोड़ दूँगी...तो मा को कैसे मालूम होगा?..." धन्नो के समझाने से सावित्री चुप रही और फिर कुच्छ नही बोली. अब दुकान के अंदर वाले हिस्से मे चौकी पर सो रहे पंडित जी का नाक का बजना बंद हो गया था. सावित्री और धन्नो दोनो को यह शक हो गया था की पंडित जी अब जाग गये हैं. धन्नो सावित्री से पुछि "पेशाब कहाँ करती हो...चलो पेशाब तो कर लिया जाय नही तो पंडित जी जाग जाएँगे ..." सावित्री ने अंदर एक शौचालय के होने का इशारा किए तो धन्नो ने तपाक से बोली "जल्दी चलो ...मुझे ज़ोर से लगी है और तुम भी कर लो." इतना कहते हुए धन्नो चटाई पर से उठ कर एक शरीफ औरत की तरह अपने सारी का पल्लू अपने सर पर रखी और फिर सावित्री भी उठी और अपने दुपट्टे को ठीक कर ली. धन्नो पर्दे को हटा कर अंदर झाँकी तो पंडित जी चौकी पर सोए हुए थे और उनके पैर के तरफ शौचालय का दरवाज़ा था जो की खुला हुआ था. धन्नो को पर्दे के बगल से केवल पंडित जी का सर ही दिखाई दे रहा था. लेकिन नाक ना बजने के वजह से धन्नो और सावित्री दोनो ही यह सोच रही थी की पंडित जी जागे हो सकते हैं. और ऐसे मे जब दोनो शौचालय के तरफ जाएँगी तब पंडित जी जागे होने की स्थिति मे बिना सर को इधेर उधर किए सोए सोए आराम से देख सकते हैं. सावित्री इस बात को सोच कर डर रही थी. लेकिन तभी धन्नो ने पर्दे को एक तरफ करते हुए अपने कदम अंदर वाले कमरे मे रखते हुए फुसफुसा "अभी पंडित जी नीद मे हैं चल जल्दी पेशाब कर लूँ नही तो जाग जाएँगे तो मुझे बहुत लाज़ लगेगी उनके सामने शौचालय मे जाना...और सुन शौचालय के दरवाज़े को बंद करना ठीक नही होगा नही तो दरवाज़े के पल्ले की चर्चराहट या सिटकिनी के खटकने की आवाज़ से पंडित जी जाग जाएँगे...बस चल धीरे से बैठ कर मूत लिया जाय..." धन्नो के ठीक पीछे खड़ी सावित्री का कलेजा धक धक कर रहा था. वह सोच रही थी की कहीं पंडित जी जागे होंगे तो पेशाब करते हुए दोनो को देख लेंगे. धन्नो क्कुहह दबे कदमो से अंदर वाले कमरे मे चौकी के बगल से शौचालय के दरवाज़े के पास पहुँच गयी. लेकिन जैसे ही पीछे देखी तो सावित्री अभी भी पर्दे के पास खड़ी थी. क्योंकि सावित्री को अंदाज़ा था की पंडित जी का नाक बाज़ना बंद हो गया है और अब वे जागे होंगे ऐसे मे शौचालय का दरवाज़ा बिना बंद किए पेशाब करने का मतलब पंडित जी देख सकते हैं. धन्नो ने पर्दे के पास खड़ी सावित्री को शौचालय के दरवाज़े के पास बुलाने के लिए धीमी आवाज़ मे बोली "अरी जल्दी आ और यही धीरे से पेशाब कर लिया जाय....नही तो पंडित जी कभी भी जाग सकते हैं..जल्दी आ......" धन्नो ने इतना बोलते हुए अपनी तिरछि नज़रों से पंडित जी के आँख के. बंद पलकों को देखते हुए यह भाँप चुकी पंडित जी पूरी तरह से जाग चुके हैं लेकिन पेशाब करने की बात उनके कान मे पड़ गयी है इस वजह से जान बुझ कर अपनी पॅल्को को ऐसे बंद कर लिए हैं की देखने पर मानो सो रहे हों और पलकों को बहुत थोड़ा सा खोल कर दोनो के पेशाब करते हुए देख सकते हैं. पंडित जी के कान मे जब ये बात सुनाई दी की धन्नो शौचालय के दरवाज़े को बंद नही करना चाहती है क्योंकि उसे इस बात का डर है की दरवाज़ा बंद करने पर दरवाज़े के चर्चराहट और सिटकिनी के खटकने के वजह से उनकी नीद खुल सकती है तो पंडित जी अंदर ही अंदर मस्त हो उठे और सोने का नाटक कर अपने आँख के पलकों को इतनी बारीकी से सुई की नोक के बराबर फैला कर देखने लगे. धन्नो के दबाव के चलते सावित्री भी धीरे धीरे दबे पाँव शौचालय के पास खड़ी धन्नो के पास आकर खड़ी हो गयी. उसे यह विश्वास था की पंडित जी जागे होंगे लेकिन उसकी हिम्मत नही थी की वह सोए हुए पंडित जी के चेहरे पर अपनी नज़र दौड़ा सके इस वजह से अपनी नज़रे फर्श पर झुका कर खड़ी हो गयी. तभी धन्नो ने अपना मुँह शौचालय के अंदर की ओर करते हुए ठीक शौचालय के दरवाज़े पर ही खड़ी हो गयी और वह ना तो शौचालय के अंदर घुसी ना ही शौचालय के बाहर ही रही बल्कि ठीक दरवाज़े के बीचोबीच ही खड़ी हो कर जैसे ही अपने सारी और पेटिकोट कमर तक उठाई उसका सुडौल चौड़ा और बड़ा बड़ा दोनो चूतड़ जो आपस मे सटे हुए थे और एक गहरी दरार बना रहे थे एक दम नंगा हो गया और नतीज़ा की पंडित जी अपनी आँखो के पलकों को काफ़ी हल्के खुले होने के कारण सब कुच्छ देख रहे थे. धन्नो का चूतदों की बनावट बहुत ही आकर्षक थी. दोनो चूतर कुछ साँवले रंग के साथ साथ मांसल और 43 साल की उम्र मे काफ़ी भरा पूरा था. दोनो चूतदों की गोलाइयाँ इतनी मांसल और कसी हुई थी और जब धन्नो एक पल के लिए खड़ी थी तो ऐसे लग रहा था मानो चूतड़ के दोनो हिस्से आपस मे ऐसे सटे हों की उन्हे

जगह नही मिल रही हो और दोनो बड़े बड़े हिस्से एक दूसरे को धकेल रहे हों. धन्नो के चूतड़ के दोनो हिस्सों के बीच का बना हुआ दरार काफ़ी गहरा और खड़ी होने की स्थिति मे काफ़ी सांकरा भी लग रहा था. धन्नो ने सारी और पेटिकोट को कमर तक उठा कर लगभग पीठ पर ही रख लेने के वजह से कमर के पास का कटाव भी दीख जा रहा था. पंडित जी इतना देख कर मस्त हो गये. धन्नो के एक पल के ही इस नज़ारे ने पंडित जी को मानो धन्नो का दीवाना बना दिया हो. तभी दूसरे पल धन्नो एक झटके से पेशाब करने के लिए बैठ गयी. पंडित जी का मुँह शौचालय के दरवाज़े की ओर होने की वजह से वह बैठी हुई धन्नो को अपनी भरपूर नज़र से देख रहे थे. सावित्री एक पल के लिए सोची की वह धन्नो के पीछे ही जा कर खड़ी हो जाए जिससे पंडित जी उसे देख ना सकें. लेकिन उसकी हिम्मत नही हुई. सावित्री को जैसे ही महसूस हुया की धन्नो चाची के नंगे चूतदों को पंडित जी देख रहें हैं वह पूरी तरह सनसना गयी. उसे ऐसा लगा मानो उसकी बुर मे कुच्छ चुलबुलाहट सी होने लगी है. जैसे ही धन्नो बैठी की उसके दोनो गोल गोल चूतड़ हल्के से फैल से गये मानो वो आपस मे एक दूसरे से हल्की दूरी बना लिए हों और इस वजह से दोनो चूतदों के बीच का काफ़ी गहरा और सांकरा दरार फैल गया और कमर के पास से उठने वाली दोनो चूतदों के बीच वाली लकीर अब एक दम सॉफ सॉफ दीखने लगी. धन्नो ने जब अपनी सारी और पेटिकोट को दोनो हाथों से कमर के उपर करते हुए जैसे ही झटके से पेशाब करने बैठी की उसके सर पर रखा सारी का पल्लू सरक कर पीठ पर आ गया और नंगे चूतदों के साथ साथ उसके पीठ के तरफ जा रही सिर के बॉल की चोटी भी पंडित जी को दीखने लगी. धन्नो के पीठ का ज़्यादा हिस्सा पेटिकोट से ही ढक सा गया था क्योंकि धन्नो ने बैठते समय सारी और पेटिकोट को कमर के उपर उठाते हुए अपनी पीठ पर ही लहराते हुए रख सी ली थी. धन्नो यह जान रही थी की पंडित जी के उपर इस हमले का बहुत ही गरम असर पड़ गया होगा जो उस पहलवान और मजबूत शरीर के मर्द को फँसाने के लिए काफ़ी था. दूसरी तरफ बगल मे खड़ी सावित्री के भी बेशर्म और अश्लीलता का मज़ा देने के लिए काफ़ी था. धन्नो जानती थी की सावित्री काफ़ी सीधी और शरीफ है और उसे बेशर्म और रंगीन बनाने के लिए इस तरह की हरकत बहुत ही मज़ेदार और ज़रूरी है. धन्नो जैसी चुदैल किस्म की औरतें दूसरी नयी उम्र की लड़कियो को अपनी जैसे छिनाल बनाने की आदत सी होती है और इसमे उन्हे बहुत मज़ा भी आता है जो किसी चुदाइ से कम नही होता है. इस तरह धन्नो सावित्री को यह दीखाना चाह रही थी की कोई भी ऐसी अश्लील हरकत के लिए हिम्मत की भी ज़रूरत होती है साथ साथ रिस्क लेने की आदत भी होनी चाहिए. अब तक सावित्री को यही पता था की किसी दूसरे मर्द को अपने शरीर के अंद्रूणी हिस्से को दिखाना बेहद शर्मनाक और बे-इज़्ज़त वाली बात होती है लेकिन धन्नो की कोशिस थी की सावित्री को महसूस हो सके की इस तरह के हरकत करने मे कितना मज़ा आता है जो अब तक वह नही जानती थी. इधेर धन्नो के मन मे जब यह बात आई की पंडित जी उसके चूतड़ ज़रूर देख रहे होंगे और इतना सोचते ही वह भी एक मस्ती की लहर से सराबोर हो गयी. धन्नो बैठे ही बैठे जैसे ही अपनी नज़र बगल मे खड़ी सावित्री पर डाली तो देखी की वह अपनी नज़रें एक दम फर्श पर गढ़ा ली है और उसके चेहरे पर पसीना उभर आया था. जो शायद लाज़ के वजह से थी. तभी पेशाब करने बैठी हुई धन्नो ने सावित्री की ओर देखते हुए काफ़ी धीरे से फुसफुसा "देख कहीं जाग ना जाएँ..." धन्नो के इस बात पर सावित्री की नज़रें अचानक सामने चौकी पर लेटे हुए और शौचालय की ओर मुँह किए पंडित जी के चेहरे पर चली गयी और जैसे ही देखी की उनकी आँख की पलकें बंद होने के बावजूद कुच्छ हरकत कर रही थीं और इतना देखते ही एक डर लाज़ से पूरी तरह हिल उठी सावित्री वापस अपनी नज़रे फर्श पर गढ़ा ली. धन्नो ने सावित्री के नज़रों के गौर से देखी की पंडित जी के चेहरे पर से इतनी झटके से हट कर वापस झुक गयी तो मतलब सॉफ था की पंडित जी जागे और देख रहे हैं जो अब सावित्री को भी मालूम चल गया था. धन्नो ने आगे बिना कुछ बोले अपने नज़रों को सावित्री के चहरे पर से हटा ली और काफ़ी इतमीनान के साथ मुतना सुरू कर दी. दोपहर के समय दुकान के अंदर वाले हिस्से मे एक दम सन्नाटा था और धन्नो के पेशाब के मोटी धार का फर्श पर टकराने की एक तेज आवाज़ शांत कमरे मे गूंजने लगी. पंडित जी अब धन्नो के चूतड़ को देखने के साथ साथ धन्नो के मुतने की तेज आवाज़ कान मे पड़ते ही एकदम मस्त हो गये और उनकी धोती के अंदर लंगोट मे कुच्छ कसाव होने लगा. एक पल के लिए उन्होने सावित्री के लाज़ से पानी पानी हुए चहरे को देखा जो एकदम से लाल हो गया था और माथे और चेहरे पर पसीना उभर आया था.
 
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संघर्ष--28

धन्नो के बुर से निकला मूत शौचालय के फर्श पर फैल कर अंदर की ओर बहने लगा. पेशाब ख़त्म होने के बाद धन्नो जैसे ही खड़ी हुई की उसकी दोनो चूतड़ फिर आपस मे सॅट गये और दरार फिर काफ़ी गहरी हो गयी और दोनो गोलाईयो के बीच वाली लकीर अब दीखाई नही दे पा रही थी. पंडित जी ने जब धन्नो के मोटे मोटे दोनो जांघों को देखा तो उसकी बनावट और भराव के वजह से धन्नो को चोदने की तीव्र इच्च्छा जाग उठी. तभी धन्नो ने अपनी सारी और पेटिकोट को कमर और पीठ से नीचे गिरा दी और सब कुच्छ धक गया. धन्नो अपनी जगह से हट कर बगल मे खड़ी सावित्री को बोली "चल जल्दी से यहीं बैठ कर मूत ले..." सावित्री जो की धन्नो की गंदी और अश्लील बातों और पंडित जी को चोरी और चलाँकि से गांद दीखाने की घटना से एकदम गर्म और उत्तेजित भी हो चुकी थी. उसकी बुर बहुत गर्म हो गयी थी. पता नही क्यों धन्नो चाची का पंडित जी को गांद दिखाना उसे बहुत अच्च्छा लगा था. जैसे ही उसने धन्नो चाची ने उससे कहा की वहीं मुताना है वह समझ गयी की उसकी भी गांद पंडित जी देख लेंगे और वह भी धन्नो चाची के सामने. इतनी बात मन मे आते ही वह एकदम से सनसना कर मस्त सी हो गयी. पता नही क्यों उसे ऐसा करने मे जहाँ डर और लाज़ लग रही थी वहीं अंदर ही अंदर कुच्छ आनंद भी मिल रही थी. धन्नो चाची ने उसे फिर मूतने के लिए बोली "अरे जल्दी मूत नही तो जाग जाएँगे तो बहुत गड़बड़ हो जाएगी..." सावित्री समझ रही थी कि पंडित जी जागे हुए हैं. इसी वजह से उसके पैर अपनी जगह से हिल नही पा रहे थे. उसकी नज़रें झुकी हुई थी. धन्नो समझ गयी की सावित्री अब जान चुकी है की पंडित जी जागे हैं और इसी लिए मूत नही रही है. लेकिन वह सावित्री को मुताने पर बाध्या. करना चाह रही थी की उसके अंदर भी निर्लज्जता का समावेश हो जाय. यही सोचते हुए धन्नो ने तुरंत सावित्री के बाँह को पकड़ कर शौचालय के दरवाजे पर खींच लाई और बोली "जल्दी मूत ले..देर मत कर..चल मैं तेरे पीछे खड़ी हूँ ..यदि जाग जाएँगे तो भी नही देख पाएँगे. ." सावित्री ठीक शौचालय के दरवाजे के बीच जहाँ धन्नो ने पेशाब की थी वही खड़ी हो गयी. उसके काँपते हुए हाथ सलवार के नाडे को खोलने की कोशिस कर रहे थे. जैसे ही नाडे की गाँठ खुली की उसने अपने कमर के हिस्से मे सलवार को ढीली की और फिर चड्डी को नीचे सरकाने की कोशिस करने लगी. चड्डी काफ़ी कसी होने के वजह से सावित्री के बड़े बड़े चूतदों पर से नीचे नही सरक पा रही थी.

धन्नो जो ठीक सावित्री के पीछे ही खड़ी थी जब देखी की चड्डी काफ़ी कसी होने के वजह से सावित्री के बड़े बड़े चूतदों पर से नीचे नही सरक पा रही है तब धीरे से फुसफुसा " हाई राम इतना बड़ा चूतड़ है तुम्हारा ..और कपड़े के उपर से तो मालूम ही नही चलता की अंदर दो बड़े बड़े तरबूज़ रखी हो..तेरी चड्डी फट ना जाए..ला मैं पीछे का सरका देती हूँ..." इतना कह कर धन्नो सावित्री के पीछे से थोड़ी बगल हो गयी और अब पंडित जी को सावित्री का पूरा पीच्छवाड़ा दीखने लगा. धन्नो ने काफ़ी चलाँकि से पंडित जी से बिना नज़र मिलाए तेज़ी से अपनी पल्लू को सर के उपर रखते हुए पल्लू के एक हिस्से को खींच कर अपने मुँह मे दाँतों दबा ली और अब उसका शरीर लगभग पूरी तरह से ढक गया था मानो वह बहुत ही शरीफ और लज़ाधुर औरत हो. दूसरे ही पल बिना देर किए झट से सावित्री के समीज़ वाले हिस्से को एक हाथ से उसके कमर के उपर उठाई तो पंडित जी को सावित्री के दोनो बड़े बड़े चूतड़ उसकी कसी हुई चड्डी मे दीखने लगे. धन्नो के एक हाथ जहाँ समीज़ को उसके कमर के उपर उठा रखी थी वहीं दूसरे हाथ की उंगलियाँ तेज़ी से सावित्री की कसी हुई चड्डी को दोनो चूतदों पर से नीचे खिसकाने लगी. सलवार का नाडा ढीला होने के बाद सलवार सावित्री की भारिपुरी जांघों मे जा कर रुक गया था क्योंकि सावित्री ने एक हाथ से सलवार के नाडे को पकड़ी थी और दूसरी हाथ से अपनी चड्डी को नीचे सरकाने की कोशिस कर रही थी. धन्नो के एक निहायत शरीफ औरत की तरह सारी मे खूद को ढक लेने और अपने सर पर पल्लू रखते हुए मुँह पर भी पल्लू के हिस्से डाल कर मानो एक नई नवेली और लज़ाधुर दुल्हन की तरह पल्लू के कोने को अपने दाँतों से दबा लेने के बाद सावित्री की चूतड़ पर से समीज़ को उपर उठा कर चड्डी को जल्दी जल्दी सरकाना पंडित जी को बहुत अजीब लगने के साथ साथ कुच्छ ऐसा लग रहा था की धन्नो खूद तो शरीफ बन कर एक जवान लड़की के शरीर को किसी दूसरे मर्द के सामने नंगा कर रही थी और धन्नो की इस आडया ने पंडित जी को घायल कर दिया. पंडित जी धन्नो की हाथ की हरकत को काफ़ी गौर से अपनी पलकों के बीच से देख रहे थे जो चड्डी को सरकाने के लिए कोशिस कर रही थी. आख़िर किसी तरह सावित्री की कसी हुई चड्डी दोनो चूतदों से नीचे एक झटके के साथ सरक गयी और दोनो चूतड़ एक दम आज़ाद हो कर अपनी पूरी गोलायओं मे बाहर निकल कर मानो लटकते हुए हिलने लगे. तभी धन्नो ने धीरे से फुसफुसा "तेरी भी चूतड़ तेरी मा की तरह ही काफ़ी बड़े बड़े हैं ...इसी वजह से चड्डी फँस जा रही है...जब इतनी परेशानी होती है तो सलवार के नीचे चड्डी मत पहना कर..इतना बड़ा गांद किसी चड्डी मे भला कैसे आएगी..." इतना कह कर धन्नो धीरे से हंस पड़ी और चड्डी वाले हाथ खाली होते ही अपने पल्लू को फिर से ऐसे ठीक करने लगी की पंडित जी उसके शरीर के किसी हिस्से ना देख संकें मानो वह कोई दुल्हन हो. लेकिन सावित्री की हालत एकदम बुरी थी. जिस पल चड्डी दोनो गोलायओं से नीचे एक झटके से सर्की उसी पल उसे ऐसा लगा मानो मूत देगी. वह जान रही थी की पंडित जी काफ़ी चलाँकि से सब कुच्छ देख रहें हैं. अब उसे धन्नो के उपर भी शक हो गया की धन्नो को भी अब यह मालूम हो गया है की पंडित जी उन दोनो की इस करतूतों को देख रहें हैं. लेकिन उसे यह सब कुच्छ बहुत ही नशा और मस्त करने वाला लग रहा था. उसका कलेजा धक धक कर रहा था और बुर मे एक सनसनाहट हो रही थी. लेकिन उसे एक अजीब आनंद मिल रहा था और शायद इसी लिए काफ़ी लाज़ और डर के बावजूद सावित्री को ऐसा करना अब ठीक लग रहा था.

दूसरे पल सावित्री पेशाब करने बैठ गयी और बैठते ही समीज़ के पीछे वाला हिस्सा पीठ पर से सरक कर दोनो गोल गोल चूतदों को ढक लिया. इतना देखते ही धन्नो ने तुरंत समीज़ के उस पीछे वाले हिस्से को अपने हाथ से उठा कर वापस पीठ पर रख दी जिससे सावित्री का चूतड़ फिर एकदम नंगा हो गया और पंडित जी उसे अपने भरपूर नज़रों से देखने लगे. सावित्री की बुर से पेशाब की धार निकल कर फर्श पर गिरने लगी और एक धीमी आवाज़ उठने लगी. सावित्री जान बूझ कर काफ़ी धीमी धार निकाल रही थी ताकि कमरे मे पेशाब करने की आवाज़ ना गूँजे. धन्नो सावित्री के पीछे के बजाय बगल मे खड़ी हो गयी थी और उसकी नज़रें सावित्री के नंगे गांद पर ही थी. तभी धन्नो ने पंडित जी के चेहरे के तरफ अपनी नज़र दौड़ाई और एक हाथ से अपनी सारी के उपर से ही बुर वाले हिस्से को खुजुला दी मानो वह पंडित जी को इशारा कर रही हो. लेकिन पंडित जी अपने आँखों को बहुत ही चलाँकि से बहुत थोड़ा सा खोल रखे थे. फिर भी पंडित जी धन्नो को समझ गये की काफ़ी खेली खाई औरत है. और धन्नो के अपने सारी के उपर से ही बुर खुजुलाने की हरकत का जबाव देते हुए काफ़ी धीरे से अपने एक हाथ को अपनी धोती मे डाल कर लंगोट के बगल से कुच्छ कसाव ले रहे लंड को बाहर निकाल दिए और लंड धोती के बगल से एकदम बाहर आ गया और धीरे धीरे खड़ा होने लगा.
 
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लेकिन पंडित जी अपने लंड को बाहर निकालने के बावजूद अपनी आखों को काफ़ी थोड़ा सा ही खोल रखा था मानो सो रहे हों. अभी भी सावित्री मूत ही रही थी की धन्नो की नज़रें दुबारा जैसे ही पंडित जी के तरफ पड़ी तो उसके होश ही उड़ गये. वह समझ गयी की पंडित जी उसकी करतूत का जबाव दे दिया है. अब पंडित जी का गोरा और मोटा लंड एक दम खड़ा था और मानो सुपाड़ा कमरे की छत की ओर देख रहा था. धन्नो के शरीर मे बिजली दौड़ गयी. उसने दुबारा अपनी नज़र को लंड पर दौड़ाई तो गोरे और मोटे लंड को देखते ही उसकी मुँह से पानी निकल आया. तभी इस घटना से बेख़बर सावित्री पेशाब कर के उठी और चड्डी उपर सरकाने लगी. धन्नो ने अपने काँपते हाथों से सावित्री की चड्डी को उपर सरकाते हुए धीरे से बोली "अरे जल्दी कर हर्जाइ...बड़ा गड़बड़ हो गया...हाई राम...भाग यहाँ से .." इतना सुनते ही सावित्री ने सोचा की कहीं पंडित जी जागने के बाद उठ कर बैठ ना गये हों और जैसे ही उसकी घबराई आँखें चौकी के तरफ पड़ी तो देखी की पंडित जी अभी भी आँखें मूंद कर लेटे हुए हैं. लेकिन दूसरे पल जैसे ही उसकी नज़र धोती के बाहर निकल कर खड़े हुए लंड पर पड़ी वह सर से पाँव तक काँप उठी और अपने सलवार के नाडे को जल्दी जल्दी बाँधने लगी. धन्नो मानो लाज़ के कारण अपने मुँह को भी लगभग ढक रखा था और सावित्री के बाँह को पकड़ कर एक झटका देते हुए बोली "जल्दी भाग उधेर..मैं मूत को पानी से बहा कर आती हूँ.." सावित्री तुरंत वहाँ से बिना देर किए दुकान वाले हिस्से मे आकर चटाई पर खड़ी हो गयी और हाँफने लगी. उसे समझ मे नही आ रहा था कि ये सब क्या हो रहा है. धन्नो ने तुरंत बगल मे एक बाल्टी मे रखे पानी को लोटे मे ले कर शौचालय के फर्श पर पड़े मूत को बहाने लगी. धन्नो कमर से काफ़ी नीचे झुक कर पानी से मूत बहा रही थी. इस वजह से धन्नो का बड़ा चूतड़ सारी मे एक दम बाहर निकल आया था. पंडित जी चौकी पर उठ कर बैठ गये. और जैसे ही पानी से मूत बहाकर धन्नो पीछे मूडी तो देखी की पंडित जी चौकी पर बैठे हैं और उनका लंड एक दम खड़ा है. इतना देखते ही लाज़ के मारे अपने दोनो हाथों से अपने मुँह को ढँक ली और धीरे धीरे दुकान वाले हिस्से की ओर जाने लगी जहाँ सावित्री पहले ही पहुँच गयी थी. धन्नो जैसे ही कुच्छ कदम बढ़ायी ही थी की पंडित जी ने चौकी पर से लगभग कूद पड़े और धन्नो के बाँह को पकड़ना चाहा. धन्नो पहले से ही सजग थी और वह भी तेज़ी से अपने बाँह को छुड़ाते हुए भागते हुए दुकान के हिस्से के पहले लगे हुए दरवाजे के पर्दे के पास ही पहुँची थी की पंडित जी धन्नो की कमर मे हाथ डालते हुए कस के जाकड़ लिया. धन्नो अब छूटने की कोशिस करती लेकिन कोई बस नही चल पा रहा था. पंडित जी धन्नो के कमर को जब जकड़ा तो उन्हे महसूस हुआ की धन्नो का चूतड़ काफ़ी भारी है और चुचियाँ भी बड़ी बड़ी हैं जिस वजह से धन्नो का पंडित जी के पकड़ से च्छुटना इतना आसान नही था. पंडित जी धन्नो को खींच कर चौकी पर लाने लगे तभी धन्नो ने छूटने की कोशिस के साथ कुच्छ काँपति आवाज़ मे गिड़गिदाई "अरे...पंडित जीइ...ये क्या कर रहे हैं...कुच्छ तो लाज़ कीजिए...मेरा धर्म मत लूटीए...मैं वैसी औरत नही हूँ जैसी आप समझ रहे हैं...मुझे जाने दीजिए.." धन्नो की काँपति आवाज़ सावित्री को सुनाई पड़ा तो वह एक दम सिहर उठी लेकिन उसकी हिम्मत नही पड़ी कि वह पर्दे के पीछे देखे की क्या हो रहा. है. वह चटाई पर एकदम शांत खड़ी हो कर अंदर हो रहे हलचल को भाँपने की कोशिस कर रही थी. धन्नो का कोई बस नही चल रहा था. धन्नो के गिड़गिदाने का कोई असर नही पड़ रहा था. पंडित जी बिना कुच्छ जबाब दिए धन्नो को घसीट कर चौकी पर ले आए और चौकी पर लिटाने लगे " धन्नो जैसे ही चौकी पर लगभग लेटी ही थी की पंडित जी उसके उपर चाड. गये. दूसरे ही पल धन्नो ने हाथ जोड़ कर बोली "मेरी भी इज़्ज़त है ...मेरे साथ ये सब मत करिए..सावित्री क्या सोचेगी ...मुझे बर्बाद मत करिए...पंडित जी मैं आपके हाथ जोड़ती हूँ..." और इतना कह कर जैसे ही अपनी चेहरे को दोनो हाथों से च्छुपाने की कोशिस की वैसे ही पंडित जी ने अपने धोती को खोलकर चौकी से नीचे गिरा दिए. ढीली लंगोट भी दूसरे पल शरीर से दूर हो गया. अब पूरी तरह नंगे पंडित जी का लंड लहरा रहा था. धन्नो के शरीर पर पंडित जी अपने पूरे शरीर का वजन रखते हुए सारी को ब्लाउज के उपर से हटा कर चुचियो को मीसना सुरू कर दिए. चुचिओ का आकार सावित्री की चुचिओ से कुच्छ बड़ा ही था. वैसे ही धन्नो 43 साल की हो गयी थी. धन्नो ने अब कोई ज़्यादा विरोध नही किया और अपने मुँह को दोनो हाथों से च्छुपाए रखा. इतना देख कर पंडित जी धन्नो के शरीर पर से उतर कर एक तरफ हो गये और धन्नो के कमर से सारी की गाँठ को छुड़ाने लगे. तभी धन्नो की एक हाथ फिर पंडित जी के हाथ को पकड़ ली और धन्नो फिर बोली "पंडित जी मैं अपने इज़्ज़त की भीख माँग रही हूँ...इज़्ज़त से बढ़कर कुच्छ नही है.मेरे लिए..ऊहह" लेकिन पंडित जी ताक़त लगाते हुए सारी के गाँठ को कमर से बाहर निकाल दिए. कमर से सारी जैसे ही ढीली हुई पंडित जी के हाथ तेज़ी से सारी को खोलते हुए चौकी के नीचे गिराने लगे. आख़िर धन्नो के शरीर को इधेर उधेर करते हुए पंडित जी ने पूरे सारी को उसके शरीर से अलग कर ही लिए और चौकी के नीचे गिरा दिए. अब धन्नो केवल पेटिकोट और ब्लाउज मे थी. दूसरे पल पंडित जी ब्लाउज को खोलने लगे तो फिर धन्नो गिड़गिदाई "अभी भी कुच्छ नही बिगड़ा है मेरा पंडित जी...रहम कीजिए ...है ..रामम.." लेकिन ब्लाउज के ख़ूलते ही धन्नो की दोनो बड़ी बड़ी चुचियाँ एक काले रंग की पुरानी ब्रा मे कसी हुई मिली. पंडित जी बिना समय गवाए ब्लाउज को शरीर से अलग कर ही लिए और लेटी हुई धन्नो के पीठ मे हाथ घुसा कर जैसे ही ब्रा की हुक खोला की काफ़ी कसी हुई ब्रा एक झटके से अलग हो कर दोनो चुचिओ के उपर से हट गयी. पंडित जी ने तुरंत जैसे ही अपने हाथ दोनो चुचिओ पर रखने की कोशिस की वैसे ही धन्नो ने उनके दोनो हाथ को पकड़ने लगी और फिर गिड़गिदाई "अरे मैं किसे मुँह दिखाउन्गि ...जब मेरा सब लूट जाएगा...मुझे मत लुटीए..." लेकिन पंडित जी के शक्तिशाली हाथ को काबू मे रखना धन्नो के बस की बात नही थी और दोनो हाथ दोनो चुचिओ को मसल्ने लगे.
 
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संघर्ष--29

पंडित जी दोनो चुचिओ को मीसते हुए धन्नो के मांसल और भरे हुए शरीर का जायज़ा लेने लगे. धन्नो जब पंडित जी दोनो हाथों को अपनी चुचों पर से हटा नही पाई तो लाज़ दीखाते हुए अपनी दोनो हाथों से चेहरे को ढक ली. लेकिन पंडित जी अगले पल अपने एक हाथ से उसके हाथ को चेहरे पर से हटाते हुए अपने मुँह धन्नो के मुँह पर टीकाने लगे. इतना देख कर धन्नो अपने सर को इधेर उधेर घुमाने लगी और पंडित जी के लिए धन्नो के मुँह पर अपने मुँह को भिड़ना मुश्किल होने लगा. इतना देख कर पंडित जी उसके चुचिओ पर से हाथ हटा कर तुरंत अपने एक हाथ से धन्नो के सर को कस कर पकड़ लिए और दूसरे हाथ से उसके गाल और जबड़े को कस कर दबाया तो धन्नो का मुँह खूल सा गया और पंडित जी तुरंत अपने मुँह को उसके मुँह पर सटा दिया और धन्नो के खुले हुए मुँह मे ढेर सारा थूक धकेलते हुए अपने जीभ को धन्नो के मुँह मे घुसेड कर मानो आगे पीछे कर के उसके मुँह को जीभ से ही पेलने लगे. धन्नो का पूरा बदन झनझणा उठा. दूसरे पल धन्नो के ओठों को भी चूसने लगे. और अब हाथ फिर से चुचिओ पर अपना काम करने लगे. धन्नो की सिसकारियाँ दुकान वाले हिस्से मे खड़ी सावित्री को सॉफ सुनाई दे रहा था. सावित्री का कलेजा धक धक कर रहा था. थोड़ी देर तक ऐसे ही धन्नो के होंठो को कस कस कर चुसते हुए पंडित जी ने दोनो चुचिओ को खूब मीसा और नतीज़ा यह हुआ की पेटिकोट के अंदर गुदाज बुर की फांकों मे लार का रिसाव सुरू हो गया. सिसकिओं को सुन सुन कर सावित्री की भी बुर मे मस्ती छाने लगी. लेकिन वह जैसे की तैसे दुकान वाले हिस्से मे खड़ी थी और अंदर क्या हो रहा होगा यही सोच कर सिहर जा रही थी.

तभी पंडित जी ने धन्नो के पेटिकोट के उपर से ही उसके जांघों को पकड़ कर मसल्ने लगे. धन्नो समझ गयी की पंडित जी अब उसके शरीर के अंतिम चीर को भी हरने जा रहे हैं. और अगले पल जैसे ही उनके हाथ धन्नो के पेटिकोट के नाडे को खोलने के लिए बढ़े ही थे की वह उठ कर बैठ गयी और मानो सावित्री को सुनाते हुए फिर से गिड़गिदाने का नाटक सुरू कर दी "मान जाइए ...आप जो कहिए मैं करूँगी लेकिन मेरी पेटिकोट को मत खोलिए.. उपर की इज़्ज़त पर तो हाथ फेर ही दिए हैं लेकिन पेटिकोट वाली मेरी अस्मत को मत लूटीए...मैं मोसाम्मि के पापा के सामने कैसे जाउन्गि...क्या मुँह दिखाउन्गि...ये तो उन्ही की अमानत है......अरी मान जाइए मेरा धर्म इस पेटिकोट मे है...ऊ राम..." लेकिन पंडित जी के हाथ तबतक अपना काम कर चुका था और धन्नो की बात ख़त्म होते ही पेटीकोत कमर मे ढीला हो चुका था. धन्नो इतना देखते ही एक हाथ से ढीले हुए पेटिकोट को पकड़ कर चौकी से नीचे कूद गयी. पंडित जी भी तुरंत चौकी से उतरकर धन्नो के पकड़ना चाहा लेकिन तबतक धन्नो भाग कर दुकान वाले हिस्से मे खड़ी सावित्री के पीछे खड़ी हो कर अपने पेटिकोट के खुले हुए नाडे को बाँधने की कोशिस कर ही रही थी कि तब तक पंडित जी भी आ गये और जैसे ही धन्नो को पकड़ना चाहा की धन्नो सावित्री के पीछे जा कर सावित्री को कस कर पकड़ ली और सावित्री से गिड़गिदाई "अरे बेटी ...मेरी इज़्ज़त बचा लो ....अपने पंडित जी को रोको ...ये मेरे साथ क्या कर रहे हैं...." सावित्री ऐसा नज़ारा देखते ही मानो बेहोश होने की नौबत आ गयी. और लंड खड़ा किए हुए पंडित जी भी अगले पल धन्नो के पीछे आ गये और पेटिकोट के नाडे को दुबारा खींच दिया और दूसरे पल ही धन्नो का पेटिकोट दुकान के फर्श पर गिर गया. सावित्री पंडित जी के साथ साथ धन्नो चाची को भी एकदम नंगी देख कर एक झटके से धन्नो से अलग हुई दुकान के भीतर वाले कमरे मे भाग गयी. फिर एकदम नंगी हो चुकी धन्नो भी उसके पीछे पीछी भागती हुई फिर सावित्री के पीछे जा उसे कस कर पकड़ ली मानो अब उसे छ्होरना नही चाहती हो. दूसरे पल लपलपाते हुए लंड के साथ पंडित जी भी आ गये. सावित्री की नज़र जैसे ही पंडित जी खड़े और तननाए लंड पर पड़ी तो वा एक दम सनसना गयी और अपनी नज़रे कमरे के फर्श पर टीका ली. अगले पल पंडित जी धन्नो के पीछे आने की जैसे ही कोशिस किए धन्नो फिर सावित्री को उनके आगे धकेलते हुए बोली "अरे सावित्री मना कर अपने पंडित जी .को ...तू कुच्छ बोलती क्यूँ नही..कुच्छ करती क्यों नही...मेरी इज़्ज़त लूटने वाली है...अरे हरजाई कुच्छ तो कर....बचा ले मेरी इज़्ज़त....." सावित्री को जैसे धन्नो ने पंडित जी के सामने धकेलते हुए खूद को बचाने लगी तो सावित्री के ठीक सामने पंडित जी का तननाया हुया लंड आ गया जिसके मुँह से हल्की लार निकलने जैसा लग रहा था और सुपादे के उपर वाली चमड़ी पीछे हो जाने से सूपड़ा भी एक दम लाल टमाटर की तरह चमक रहा था. सावित्री को लगा की पंडित जी कहीं उसे ही ना पेल दें. सावित्री भले अपने समीज़ और सलवार और दुपट्टे मे थी लेकिन इतना सब होने के वजह से उसकी भी बुर चड्डी मे कुच्छ गीली हो गयी थी. धन्नो सावित्री का आड़ लेने के लिए उसे पकड़ कर इधेर उधेर होती रही लेकिन पंडित जी भी आख़िर धन्नो के कमर को उसके पीछे जा कर कस कर पकड़ ही लिया और अब धन्नो अपने चूतड़ को कही हिला नही पा रही थी. सावित्री ने जैसे ही देखा एकदम नगी हो चुकी धन्नो चाची को पंडित जी अपने बस मे कर लिए हैं वह समझ गयी अब पंडित जी धन्नो चाची चोदना सुरू करेंगे. सावित्री को ऐसा लगा मानो उसकी बुर काफ़ी गीली हो गयी है और उसकी चड्डी भी भीग सी गयी हो. और सावित्री अब धन्नो से जैसे ही अलग होने की कोशिस की वैसे धन्नो ने सावित्री के पीछे से उसके गले मे अपनी दोनो बाँहे डाल कर अपने सर को सावित्री के कंधे पर रखते हुए काफ़ी ज़ोर से पकड़ ली और अब सावित्री चाह कर भी धन्नो से अलग नही हो पा रही थी और विवश हो कर अपनी दोनो हाथों से अपने मुँह को च्छूपा ली. इधेर पंडित जी भी धन्नो के कमर को कस कर पकड़ लिए थे और धन्नो के सावित्री के कंधे पर कुच्छ झुकी होने के वजह से धन्नो का चूतड़ कुच्छ बाहर निकल गया था और पंडित जी का तन्नाया हुआ लंड अब धन्नो की दोनो चूतदों के दरार के तरफ जा रहा था जिसे धन्नो महसूस कर रही थी. पंडित जी के एक हाथ तो कमर को कस कर पकड़े थे लेकिन दूसरा हाथ जैसे ही लंड को धन्नो के पीछे से उसकी गीली हो चुकी बुर पर सताते हुए एक ज़ोर दार धक्का मारा तो धक्का जोरदार होने की वजह से ऐसा लगा की धन्नो आगे की ओर गिर पड़ेगी और सावित्री के आगे होने की वजह से वह धन्नो के साथ साथ सावित्री भी बुरी तरह हिल गयी और एक कदम आगे की ओर खिसक गयी और लंड के बुर मे धँसते ही धन्नो ने काफ़ी अश्लीलता भरे आवाज़ मे सावित्री के कान के पास चीख उठी "..आआआआआआआआआआ ररीए माआई रे बाआअप्प रे बाप फट गया.... फट गया ................फ..अट गाइ रे बुरिया फट फाया ...फट गया रे ऊवू रे बाप फाड़ दिया रे फाड़ दिया ......अरे मुसाममी के पापा को कैसा मुँह देखाउन्गा मुझे तो छोड़ दिया रे......श्श्सश्..........अरे. ..बाप हो.....मार ....डाला ...बुर मे घूवस गया रे ..हरजाइइ...तेरे पंडित ने ...चोद दिया मेरी ...बुर....उउउहहारे अरे हरजाई रंडी....तेरे पंडित ने मुझे चोद दिया..रे ...आरे बाप रे बाप मैं किसे मुँह दिखाउन्गि....आजज्ज तो लूट लिया रे.....मैं नही जानती थी ....आज मेरी बुर ....फट जाएगी.....ऊवू रे मा रे बाप ...मेरी बुर मे घूस ही गया..रे..मैं तो बर्बाद हो गयी...रे.अयाया " पंडित जी का लंड का आधा हिस्सा बुर मे घुस चुका था.
 

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