शायरी और गजल™

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प्यारेे वतन के सदके हर दिल से उठें ऐसे,
नफ़रत भी बदल जाए बस प्यार मुहब्बत में।।
 
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ये मज़हबों की रंजिश, ये जातियों के झगड़े,
छँट जाएँ ग़र्दिशें सब गुलजार मुहब्बत में।।
 
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आए ग़मों से खुश्बू खुसियों की सदा लेकर,
हर दर्द बने खुशदिल इजहार मुहब्बत में।।
 
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नाहक़ न पिसे गुर्बत अमीर सोहरतों में,
हर दिल से फ़र्ज़ का हो इकरार मुहब्बत में।।
 
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दरिया-ए-वतन में हों मौज़े-अमन रवाँ यूँ,
साहिल भी नज़र आए रू-दार मुहब्बत में।।
 
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हर दिल अज़ीज जैसे गुल सा खिलें चमन में,
बहरें ये नेकियाँ यूँ हर बार मुहब्बत में।।
 
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आये थे आप क्यूँ भला महफ़िल में बेनक़ाब,
तब से सुकूँ न मिल सका शामो सहर मुझे।।
 
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नज़दीकियों के बीच बहुत दूरियां मिलीं,
करना पड़ा है उम्र भर लम्बा सफर मुझे।।
 
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पत्ते भी साथ छोड़ के जाते खिंजां में हैं,
रोता हुआ ये दर्द बताया शज़र मुझे।।
 

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