शायरी और गजल™

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मुहमोड़ कर वो चल दिये आया बुरा जो वक्त,
जो कह रहे थे गर्व से अपना जिग़र मुझे।।
 
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मुहमोड़ कर वो चल दिये आया बुरा जो वक्त,
जो कह रहे थे गर्व से अपना जिग़र मुझे।।
 
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ये कहां की दोस्ती है कि बने हैं दोस्त नासेह,
कोई चारासाज़ होता, कोई ग़मगुसार होता।।
 
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रग-ए-संग से टपकता वो लहू कि फिर न थमता,
जिसे ग़म समझ रहे हो ये अगर शरार होता।।
 
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ग़म अगर्चे जां-गुसिल है, पर कहां बचे कि दिल है,
ग़म-ए-इश्क़ गर न होता, ग़म-ए-रोज़गार होता।।
 

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