शायरी और गजल™

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पूछे मुल्ला से जिसे करना हो सजदा सहव का,
सीखे गर अपना भुलाना कोई हम से सीख जाए।।
 
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क्या हुआ ऐ 'ज़ौक़' हैं जूँ मर्दुमुक हम रू-सियाह,
लेकिन आँखों में समाना कोई हम से सीख जाए।।
 
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रक्खी न जिंदगी ने मेरी मुफलिसी की शर्म,
चादर बना के राह में फैला गई मुझे।।
 
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कागज़ का चाँद रख दिया दुनिया ने हाथ में,
पहले सफर की रात ही रास आ गई मुझे।।
 

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