शायरी और गजल™

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बेबसी तेरी इनायत है कि हम भी आजकल
अपने आँसू अपने दामन पर बहाने लग गये
 
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उँगलियाँ थामे हुए बच्चे चले इस्कूल को
सुबह होते ही परिन्दे चहचहाने लग गये
 
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कर्फ़्यू में और क्या करते मदद एक लाश की,
बस अगरबती की सूरत हम सिरहाने लग गये।
 
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इन्तेज़मात नये सिरे से सम्भाले जायें।
जितने कमज़र्फ़ हैं महफ़िल से निकाले जायें।।
 
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मेरा घर आग की लपटों में छुपा है लेकिन,
जब मज़ा है तेरे आँगन में उजाले जायें।।
 
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ग़म सलामत है तो पीते ही रहेंगे लेकिन,
पहले मैख़ाने की हालत सम्भाले जायें।।
 
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ख़ाली वक़्तों में कहीं बैठ के रोलें यारो,
फ़ुर्सतें हैं तो समन्दर ही खगांले जायें।।
 
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ख़ाक में यूँ न मिला ज़ब्त की तौहीन न कर,
ये वो आँसू हैं जो दुनिया को बहा ले जायें।।
 
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हम भी प्यासे हैं ये एहसास तो हो साक़ी को,
ख़ाली शीशे ही हवाओं में उछाले जायें।।
 
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आओ शहर में नये दोस्त बनायें "राहत"
आस्तीनों में चलो साँप ही पाले जायें।।
 

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