शायरी और गजल™

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कहानियाँ हीं सही सब मुबालग़े ही सही
अगर वो ख़्वाब है ताबीर कर के देखते हैं
 
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अब उसके शहर में ठहरें कि कूच कर जायेँ
फ़राज़ आओ सितारे सफ़र के देखते हैं
 
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अभी कुछ और करिश्मे ग़ज़ल के देखते हैं
फ़राज़ अब ज़रा लहजा बदल के देखते हैं
 
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जुदाइयां तो मुक़द्दर हैं फिर भी जाने सफ़र
कुछ और दूर ज़रा साथ चलके देखते हैं
 
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रह-ए-वफ़ा में हरीफ़-ए-खुराम कोई तो हो
सो अपने आप से आगे निकल के देखते हैं
 
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तू सामने है तो फिर क्यों यकीं नहीं आता
यह बार बार जो आँखों को मल के देखते हैं
 
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ये कौन लोग हैं मौजूद तेरी महफिल में
जो लालचों से तुझे, मुझे जल के देखते हैं
 
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यह कुर्ब क्या है कि यकजाँ हुए न दूर रहे
हज़ार इक ही कालिब में ढल के देखते हैं
 
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न तुझको मात हुई न मुझको मात हुई
सो अबके दोनों ही चालें बदल के देखते हैं
 
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यह कौन है सर-ए-साहिल कि डूबने वाले
समन्दरों की तहों से उछल के देखते हैं
 

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