शायरी और गजल™

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अभी तलक तो न कुंदन हुए न राख हुए
हम अपनी आग में हर रोज़ जल के देखते हैं
 
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बहुत दिनों से नहीं है कुछ उसकी ख़ैर ख़बर
चलो फ़राज़ को ऐ यार चल के देखते हैं
 
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ये तबियत है तो ख़ुद आज़ार बन जायेंगे हम
चारागर रोयेंगे और ग़मख़्वार बन जायेंगे हम
 
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हम सर-ए-चाक-ए-वफ़ा हैं और तेरा दस्त-ए-हुनर
जो बना देगा हमें ऐ यार बन जायेंगे हम
 
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क्या ख़बर थी ऐ निगार-ए-शेर तेरे इश्क़ में
दिलबरान-ए-शहर के दिलदार बन जायेंगे हम
 
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सख़्त जान हैं पर हमारी उस्तवारी पर न जा
ऐसे टूटेंगे तेरा इक़रार बन जायेंगे हम
 
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और कुछ दिन बैठने दो कू-ए-जानाँ में हमें
रफ़्ता रफ़्ता साया-ए-दीवार बन जायेंगे हम
 
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इस क़दर आसाँ न होगी हर किसी से दोस्ती
आश्नाई में तेरा मयार बन जायेंगे हम
 
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मीर-ओ-ग़ालिब क्या के बन पाये नहीं फ़ैज़-ओ-फ़िराक़
ज़म ये था रूमी-ओ-अतार बन जायेंगे हम
 
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देखने में शाख़-ए-गुल लगते हैं लेकिन देखना
दस्त-ए-गुलचीं के लिये तलवार बन जायेंगे हम
 

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