शायरी और गजल™

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खुद-ब-खुद नींद-सी आंखों में घुली जाती है,
महकी-महकी है शब-ए-गम तेरे बालों की तरह।।
 
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खुद-ब-खुद नींद-सी आंखों में घुली जाती है,
महकी-महकी है शब-ए-गम तेरे बालों की तरह।।
 
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तेरे बिन, रात के हाथों पे ये तारों के अयाग,
खूबसूरत हैं मगर जहर के प्यालों की तरह।।
 
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और क्या उसमें जियादा कोई नर्मी बरतूं,
दिल के जख्मों को छुआ है तेरे गालों की तरह।।
 
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गुनगुनाते हुए और आ कभी उन सीनों में,
तेरी खातिर जो महकते हैं शिवालों की तरह।।
 
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तेरी ज़ुल्फ़ें तिरी आँखें तिरे अबरू तिरे लब,
अब भी मशहूर हैं दुनिया में मिसालों की तरह।।
 
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हम से मायूस न हो ऐ शब-ए-दौराँ कि अभी,
दिल में कुछ दर्द चमकते हैं उजालों की तरह।।
 
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मुझसे नजरे तो मिलाओ कि हजारों चेहरे,
मेरी आंखों में सुलगते हैं सवालों की तरह।।
 
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और तो मुझ को मिला क्या मिरी मेहनत का सिला,
चंद सिक्के हैं मिरे हाथ में छालों की तरह।।
 
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जुस्तजू ने किसी मंजिल पे ठहरने न दिया,
हम भटकते रहें आवारा ख्यालों की तरह।।
 

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