Fantasy Dark Love (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Update - 06
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ठण्ड लगने की वजह से मुझे होश आया। पलकें खुलीं तो कोहरे की धुंध में मैंने दूर दूर तक देखने की कोशिश की। मेरे पास ही कहीं पर रौशनी का आभास हुआ तो मैं चौंका। पहले तो कुछ समझ न आया कि मैं कहां हूं और किस हाल में हूं किन्तु कुछ पलों में जैसे ही ज़हन सक्रिय हुआ तो मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ। नज़र पीछे की तरफ पड़ी तो देखा मेरी टोर्च ज़मीन पर पड़ी हुई थी। उसी टोर्च की रौशनी का मुझे आभास हुआ था। ठण्ड ज़ोरों की लग रही थी इस लिए उठ कर मैंने अपने कपड़ों को ब्यवस्थित किया जिससे ठण्ड का प्रभाव थोड़ा कम हो गया।

मैंने जब बेहोश होने से पूर्व का घटनाक्रम याद किया तो एक बार फिर से दिल में दर्द जाग उठा। ज़हन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। ज़ाहिर है वो सभी ख़याल मुझे कोई खुशियां नहीं दे रहे थे इस लिए मैंने बड़ी मुश्किल से उन ख़यालों को अपने ज़हन से निकाला और ज़मीन पर पड़ी टोर्च को उठा कर खड़ा हो गया। पलट कर उस दिशा की तरफ देखा जहां बेहोश होने से पूर्व मैंने उस झरने को देखा था। मेरे अलावा दुनियां का कोई भी इंसान इस बात का यकीन नहीं कर सकता था कि मैंने अपनी खुली आँखों से इस जंगल में दो दो बार एक ऐसे झरने को देखा था जो किसी मायाजाल से कम नहीं था।

मेरा दिल तो बहुत उदास और बहुत दुखी था जिसकी वजह से अब कुछ भी करने की हसरत नहीं थी किन्तु जाने क्यों मैं उसी तरफ चल पड़ा जिस तरफ मैंने झरने को देखा था। वही कच्ची ज़मीन, वही पेड़ पौधे और ज़मीन पर पड़े सूखे हुए पत्ते। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि जिस जगह पर मैं चल रहा हूं यहीं पर कुछ समय पहले एक अच्छा ख़ासा झरना था। क्या हो अगर वो झरना फिर से प्रकट हो जाए? ज़ाहिर है मैं सीधा उसके पानी में डूबता चला जाऊंगा और ऐसी ठण्ड में मेरे सलामत होने की कोई उम्मीद भी नहीं होगी। इस ख़याल ने मेरे जिस्म में झुरझुरी सी पैदा की किन्तु मैं रुका नहीं बल्कि आगे बढ़ता ही चला गया। टोर्च की रौशनी कोहरे को भेदने में नाकाम थी लेकिन मुझे रोक देने की ताकत उस कोहरे में तो हर्गिज़ नहीं थी।

"क्या बात है, तुम इतने गुमसुम से क्यों दिख रहे हो?" अगली सुबह मेघा आई और जब काफी देर गुज़र जाने पर भी मैंने कुछ न बोला था तो उसने पूछा था____"कुछ हुआ है क्या? कहीं तुम मेरे मना करने के बाद भी इस कमरे से बाहर तो नहीं चले गए थे?"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा था____'पहले तुम्हें मेरे बोलने पर समस्या थी और अब जबकि मैं चुप हूं तो तुम पूछ रही हो कि मैं गुमसुम क्यों हूं?"

"इसमें अजीब क्या है?" उसने एक पीतल की थाली में खाने को सजा कर मेरे पास लाते हुए कहा था____"यहां पर तुम मेरे मेहमान हो और मेरी वजह से ज़ख़्मी भी हुए हो इस लिए ये मेरा फ़र्ज़ है कि मेरी वजह से तुम्हें फिर से कोई तकलीफ़ न हो। हालांकि तुम पहले ऐसे इंसान हो जिसके बारे में मैं ऐसा सोचती हूं और इतना कुछ कर रही हूं वरना मेरी फितरत में किसी इंसान के लिए ऐसा कुछ करना है ही नहीं।"

"तो फिर मत करो मेरे लिए ये सब।" मैंने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा था____"अगर तुम्हारी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं तो फिर मेरे लिए भी तुम्हें ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है। मैं अगर तुम्हारी वजह से ज़ख़्मी हुआ भी था तो तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ कर चुप चाप चली जाती। मुझे तुमसे इसके लिए कोई शिकायत नहीं होती बल्कि मैं ये समझ लेता कि ज़िन्दगी जहां इतने दुःख दे रही है तो एक ये अदना सा दुःख और सही।"

"मैं नहीं जानती कि तुम ये सब क्या और क्यों कह रहे हो।" मेघा ने मुझे हल्के से खींच कर बेड की पिछली पुष्त पर टिकाते हुए कहा____"लेकिन तुम्हें उस हालत में छोड़ कर नहीं जा सकती थी। उस दिन जब मैं तुम्हें यहाँ लाई थी तो मैं खुद हैरान थी कि मैंने ऐसा क्यों किया। काफी सोचने के बाद भी मुझे कुछ समझ नहीं आया था। तुम तो बेहोश थे लेकिन मैं अपने अंदर चल रहे द्वन्द से जूझ रही थी। उसके बाद न चाहते हुए भी मैं वो सब करती चली गई जो मेरी फितरत में है ही नहीं। जब तुम्हें होश आया और तुमसे बातें हुईं तो एक अलग ही एहसास हुआ मुझे जिसके बाद मैंने तुम्हारे ज़ख्मों का इलाज़ करना शुरू कर दिया। मैं आज भी नहीं जानती कि मैंने किसी इंसान के लिए इतना कुछ कैसे किया और अब भी क्यों कर रही हूं?"

"तुम बार बार ऐसा क्यों कहती हो कि तुम्हारी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं?" मैंने वो सवाल किया जो मेरे मन में कई दिनों से उभर रहा था____"क्या तुम्हें मर्दों से कोई समस्या है या तुम उनसे नफ़रत करती हो?"

"ये सब ना ही जानो तो तुम्हारे लिए बेहतर होगा।" मेघा पीछे से आ कर मेरे पास ही बेड के किनारे पर बैठते हुए बोली थी____"चलो अब जल्दी से खाना खा लो। उसके बाद मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा दूंगी।"

"चलो मान लिया मैंने कि तुम्हें हम मर्दों से नफ़रत है जिसकी वजह से तुम किसी भी इंसान से किसी भी तरह का ताल्लुक नहीं रखती।" मैंने पीतल की थाली में रखे खाने की तरफ देखते हुए कहा____"लेकिन ये भी सच है कि तुमने मेरे लिए इतना कुछ किया। क्या तुमने ये समझने की कोशिश नहीं की कि ऐसा क्यों किया होगा तुमने? अगर तुम्हारी फितरत में ऐसा करना है ही नहीं तो फिर क्यों ऐसा किया तुमने?"

"मैं ये सब फ़ालतू की बातें नहीं सोचना चाहती।" मेघा ने सपाट लहजे में कहा था किन्तु उसके चेहरे के भाव कुछ अलग ही नज़र आ रहे थे जिन्हें देखते हुए मैंने कहा____"ठीक है, लेकिन मैं बता सकता हूं कि तुमने ऐसा क्यों किया?"

"क्या??" मेघा ने एक झटके से गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा था____"मेरा मतलब है कि तुम भला कैसे बता सकते हो?"
"क्यों नहीं बता सकता?" मैंने थाली से नज़र हटा कर उसकी तरफ देखा____"आख़िर ऊपर वाले ने थोड़ा बहुत बुद्धि विवेक मुझे भी दिया है।"
"कहना क्या चाहते हो?" मेघा ने मेरी तरफ उलझन भरे भाव से देखते हुए कहा था।

"यही कि जो बात किसी इंसान की समझ से बाहर होती है।" मैंने जैसे दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था____"ज़रूरी नहीं कि उसका कोई मतलब ही न हो। सच तो ये है कि दुनियां में जो भी होता है वो सब उस ऊपर वाले की इच्छा से ही होता है। मैं नहीं जानता कि तुम इंसानों के प्रति ऐसे ख़याल क्यों रखती हो लेकिन इसके बावजूद अगर तुम्हें ये सब करना पड़ रहा है तो ज़ाहिर है कि इसमें नियति का कोई न कोई खेल ज़रूर है। इस सबके बारे में हम दोनों में से किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि ऐसा कुछ होगा लेकिन फिर भी ये सब हुआ तो ज़ाहिर है कि इसके पीछे कोई ऐसी वजह ज़रूर है जिसे हम दोनों को ही समझने की ज़रूरत है। हालांकि मैंने तो समझ लिया है लेकिन तुम्हें शायद देर से समझ आए।"

"तुमने ऐसा क्या समझ लिया है?" मेघा ने आँखें सिकोड़ते हुए पूछा था____"और ऐसा क्या है जो तुम्हारे हिसाब से मुझे देर से समझ में आएगा?"
"एक ऐसी चीज़ जो किसी के भी दिल में किसी के भी प्रति खूबसूरत एहसास जगा देती है।" मैंने कहा था____"उस एहसास को ये दुनिया प्रेम का नाम देती है। मैं बता ही चुका हूं कि तुम्हारे प्रति मेरे दिल में बेपनाह प्रेम का सागर अपना वजूद बना चुका है जबकि तुम्हें इसके बारे में शायद देर से पता चले। तुम खुद सोचो कि अचानक से हम दोनों एक दूसरे को क्यों मिल गए और इस वक़्त एक दूसरे के इतने क़रीब क्यों हैं? हम दोनों को भले ही ये नज़र आता हो कि इसकी वजह वो हादसा है लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वो हादसा भी इसी लिए हुआ हो ताकि हम दोनों को एक दूसरे के क़रीब रहने का मौका मिले और एक दिन हम दोनों एक हो जाएं?"

"पता नहीं तुम इंसान कैसी कैसी कल्पनाएं करते रहते हो।" मेघा ने हैरान नज़रों से मुझे देखते हुए कहा था____"अच्छा अब तुम चुप चाप खाना खाओ। तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा कर मुझे यहाँ से जाना भी है।"

"अभी और कितना वक़्त लगेगा मेरे इन ज़ख्मों को ठीक होने में?" मैंने थाली से एक निवाला अपने मुँह में डालने के बाद कहा था____"क्या कोई ऐसी दवा नहीं है जो एक पल में मेरे ज़ख्मों को ठीक कर दे?"

"ऐसी दवा तो है।" मेघा ने कहीं खोए हुए भाव से कहा था____"लेकिन वो दवा तुम्हारे लिए ठीक नहीं है।"
"ये क्या बात हुई भला?" मैंने हैरानी से मेघा की तरफ देखा था_____"ऐसी दवा तो है लेकिन मेरे लिए ठीक नहीं है इसका क्या मतलब हुआ?"

"तुम बाल की खाल निकालने पर क्यों तुल जाते हो?" मेघा ने नाराज़गी भरे भाव से कहा था____"चुप चाप खाना खाओ अब।"
"जो हुकुम।" मैंने अदब से सिर नवा कर कहा और चुप चाप खाना खाने लगा। उधर मेघा बेड से उठ कर तथा थोड़ी दूर जा कर जाने क्या करने लगी थी। मेरी तरफ उसकी पीठ थी इस लिए मैं देख नहीं सकता था।

पिछले पांच दिनों से मैं इस जगह पर रह रहा था। मेघा के ना रहने पर मैं अकेला पता नहीं क्या क्या सोचता रहता था। मुझे किसी भी चीज़ की समस्या नहीं थी यहाँ लेकिन जाने क्यों दिल यही चाहता था कि मेघा हर पल मेरे पास ही रहे। वो जब चली जाती थी तो मैं शाम या फिर सुबह होने का बड़ी शिद्दत से इंतज़ार करता था। रात तो को देर से ही सही लेकिन आँख लग जाती थी जिससे जल्द ही सुबह हो जाती थी लेकिन दिन बड़ी मुश्किल से गुज़रता था। अब तक मैंने मेघा से अपने दिल का हर हाल बयां कर दिया था और यही उम्मीद करता था कि उसके दिल में भी मेरे लिए वही एहसास पैदा हो जाए जैसे एहसास उसके प्रति मेरे दिल में फल फूल रहे थे। जैसे जैसे दिन गुज़र रहे थे और जैसे जैसे मुझे ये एहसास हो रहा था कि मेरी चाहत फ़िज़ूल है वैसे वैसे मेरी हालत बिगड़ती जा रही थी। अक्सर ये ख़याल मेरी धड़कनों को जाम कर देता था कि क्या होगा जब मेरे ठीक हो जाने पर मेघा मुझे मेरे घर पहुंचा देगी? मैं कैसे उसके बिना ज़िन्दगी में कोई ख़ुशी खोज पाऊंगा?

अचानक किसी पत्थर से मेरा पाँव टकरा गया जिससे एकदम से मैं वर्तमान में आ गया। ज़मीन पर पड़े पत्थर से मेरा पाँव ज़्यादा तेज़ी से नहीं टकराया था इस लिए मैं सिर्फ लड़खड़ा कर ही रह गया था। ख़ैर वर्तमान में आया तो मुझे आभास हुआ कि मैं चलते चलते पता नहीं कहां आ गया हूं मैं। मैंने ठिठक कर टोर्च की रौशनी दूर दूर तक डाली। कोहरे की वजह से दूर का कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। ज़हन में ख़याल उभरा कि ऐसे कब तक चलता रहूंगा मैं? इस तरफ ठण्ड कुछ ज़्यादा ही महसूस हो रही थी। कुछ देर अपनी जगह पर खड़ा मैं इधर उधर यूं ही देखता रहा उसके बाद अपने बाएं तरफ चल दिया।

मैं एक बार फिर से मेघा के ख़यालों में खोने ही वाला था कि तभी मैं चौंका। मेरे कानों में फिर से झरने में बहते पानी की आवाज़ सुनाई देने लगी थी। इस एक रात में ये दूसरी बार था जब झरने का वजूद मुझे नज़र आया था और इस बार मैं झरने के दूसरी तरफ मौजूद था। ये जान कर अंदर से मुझे जाने क्यों एक ख़ुशी सी महसूस हुई। दिल की धड़कनें ये सोच कर थोड़ी तेज़ हो गईं कि क्या इस तरफ सच में कहीं पर मेघा का वो पुराना सा मकान होगा? इस ख़याल के साथ ही मेरे जिस्म में एक नई जान सी आ गई और मैं तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला गया।

मुझे पूरा यकीन था कि झरने के आस पास ही कहीं पर वो मकान था जिसमें मैं एक हप्ते रहा था। इसके पहले मैं इस तरफ का पूरा जंगल छान मारा था किन्तु तब में और अब बहुत फ़र्क हो गया था। पहले मुझे इस झरने का कोई वजूद नहीं दिखा था और आज दो दो बार ये झरना मेरी आँखों के सामने आ चुका था जो मेरे लिए किसी रहस्य से कम नहीं था। शुरू में ज़रूर मैं इस झरने की माया से चकित था लेकिन फिर ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी कि ये भी मेघा की तरह ही रहस्यमी है।

"क्या हुआ।" शाम को जब मेघा वापस आई थी तो वो एकदम ख़ामोश थी। उसके चेहरे के भाव कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे थे। इसके पहले वो एकदम खिली खिली सी लगती थी। जब काफी देर गुज़र जाने पर भी उसने कोई बात नहीं की थी तो मैं उससे पूछ बैठा था____"इतनी शांत और चुप सी क्यों हो मेघा? तुम्हारे चेहरे के भाव ऐसे हैं जैसे कोई गंभीर बात है। मुझे बताओ कि आख़िर बात क्या है? क्या मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हो गई है? अगर ऐसा है तो तुम्हें मेरे लिए ये सब करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं अब पहले से काफी ठीक हूं और मैं खुद अपने से अपना ख़याल रख सकता हूं।"

"तुम ग़लत समझ रहे हो ध्रुव।" मेघा ने थाली में मेरे लिए खाना सजाते हुए कहा था____"मुझे तुम्हारी वजह से कोई परेशानी नहीं है।"
"तो फिर ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से तुम्हारा चाँद की तरह खिला रहने वाला चेहरा इस वक़्त बेनूर सा नज़र आ रहा है?"

"तो तुम्हें मेरा चेहरा चाँद की तरह खिला हुआ नज़र आता था?" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए पहली बार हल्के से मुस्कुरा कर कहा था____"ये तारीफ़ थी या मुझे यूं ही आसमान में चढ़ा रहे थे?"

"बात को मत बदलो।" मैंने उससे नज़रें चुराते हुए कहा____"मैंने जो पूछा है उसका जवाब दो। आख़िर ऐसी क्या वजह थी कि तुम इतना गंभीर नज़र आ रही थी?"
"आज सारा दिन तुम्हारे द्वारा कही गई बातों के बारे में सोचती रही थी मैं।" मेघा ने थोड़े गंभीर भाव से कहना शुरू किया था____"जीवन में पहली बार मैंने किसी के द्वारा प्रेम के सम्बन्ध में ऐसी बातें सुनी थी। सुबह तुम्हारी बातें मुझे बहुत अजीब सी लग रहीं थी। मन में अजीब अजीब से ख़याल उभर रहे थे। यहाँ से जाने के बाद मैंने जब अकेले में तुम्हारी बातों पर विचार किया तो मुझे बहुत कुछ ऐसा महसूस हुआ जिसने मुझे एकदम से गंभीर बना दिया।"

"ऐसा क्या महसूस हुआ तुम्हें जिसकी वजह से तुम एकदम से इतना गंभीर हो गई?" मैं धड़कते हुए दिल से एक ही सांस में पूछ बैठा था।
"वही जो नहीं महसूस करना चाहिए था मुझे।" मेघा ने अजीब भाव से कहा____"कम से कम किसी इंसान के लिए तो हर्गिज़ नहीं।"

"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि ये तुम क्या कह रही हो?" मैं सच में उसकी बातें सुन कर उलझन में पड़ गया था____"साफ़ साफ़ बताओ न कि बात क्या है?"
"मैं इस बारे में अब और कोई बात नहीं करना चाहती।" मेघा ने मेरे सामने बेड पर थाली रखते हुए कहा था____"तुम जल्दी से खाना खा लो ताकि मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा सकूं।"

मेघा की बातें सुन कर मैं एकदम से कुछ बोल न सका था, बल्कि मन में विचारों का तूफ़ान लिए बस उसकी तरफ देखता रह गया था। उसके चेहरे से भी ये ज़ाहिर हो रहा था कि वो किसी बात से परेशान है। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर वो किस बात से इतना परेशान और गंभीर दिखने लगी थी। मेरे सामने पीतल की थाली में खाना रखा हुआ था किन्तु उसे खाने का ज़रा भी मन नहीं कर रहा था।

"क्या हुआ?" मुझे खाता न देख मेघा ने पूछा____"तुम खा क्यों नहीं रहे?"
"मुझे भूख नहीं है।" मैंने उसकी तरफ बड़ी मासूमियत से देखते हुए कहा था, जिस पर वो कुछ पलों तक ख़ामोशी से मेरे चेहरे को देखती रही उसके बाद बोली____"ठीक है, बाद में खा लेना। चलो अब मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा देती हूं।"

मेघा की ये बात सुन कर मुझे बड़ी मायूसी हुई। मुझे एक पल को यही लगा था कि शायद वो खुद ये कहे कि चलो मैं खिला देती हूं लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। हालांकि मुझे सच में भूख नहीं थी। इस वक़्त उसे परेशान देख कर मुझे बहुत बुरा महसूस हो रहा था। मैं चाहता था कि उसका चेहरा वैसे ही खिल जाए जैसे हर रोज़ खिला रहता था।

मेघा ने थाली को उठा कर एक तरफ रखा और मेरे ज़ख्मों पर दवा लगाने लगी। न वो कुछ बोल रही थी और ना ही मैं। हालांकि हम दोनों के ज़हन में विचारों तूफ़ान चालू था। ये अलग बात है कि मुझे ये नहीं पता था कि उसके अंदर किस तरह के विचारों का तूफ़ान चालू था? कुछ ही देर में जब दवा लग गई तो मेघा ने वहीं पास में ही रखे घड़े के पानी से अपना हाथ धो कर साफ़ किया और फिर मेरी तरफ पलटी।

"मुझे यकीन है कि कल या परसों तक तुम्हारे ज़ख्म भर जाएंगे और तुम पूरी तरह ठीक हो जाओगे।" मेघा दरवाज़े के पास खड़ी कह रही थी____"उसके बाद मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा दूंगी।"

"ठीक है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा था____"लेकिन अगर कभी तुम्हें देखने का मेरा दिल किया तो क्या तुम मुझसे नहीं मिलोगी?"
"बिल्कुल नहीं।" मेघा ने दो टूक लहजे में कहा था____"तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर पहुंचा देना ही मेरा मकसद है, उसके बाद हम दोनों ही एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"

"तुमने तो ये बात बड़ी आसानी से कह दी।" मैंने अपने अंदर बुरी तरह मचल उठे जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से काबू करते हुए कहा था____"लेकिन तुम्हें ये अंदाज़ा भी नहीं है कि यहाँ से जाने के बाद मेरी क्या हालत होगी। तुम्हारा दिल पत्थर का हो सकता है लेकिन मेरा नहीं। मेरे दिल के हर कोने में तुम्हारे प्रति मोहब्बत के ऐसे जज़्बात भर चुके हैं जो तुमसे जुदा होने के बाद मुझे चैन से जीने नहीं देंगे। ख़ैर कोई बात नहीं, मैं तो पैदा ही हुआ था जीवन में दुःख दर्द सहने के लिए। बचपन से ही मेरा कोई अपना नहीं था। बचपन से अब तक मैंने कैसे कैसे दुःख झेले हैं ये या तो मैं जानता हूं या फिर ऊपर बैठा सबका भगवान। न उसे कभी मेरी हालत पर तरस आया और ना ही तुम्हें आएगा लेकिन इसमें तुम्हारी ग़लती नहीं है मेघा बल्कि मेरे दिल की है। वो एक ऐसी लड़की से प्रेम कर बैठा है जो कभी उसकी हो ही नहीं सकती।"

"अपना ख़याल रखना।" मैं चुप हुआ तो मेघा ने बस इतना ही कहा और दरवाज़ा खोल कर किसी हवा के झोंके की तरह बाहर निकल गई। उसके जाने के बाद एकदम से मुझे झटका लगा। ज़हन में ख़याल उभरा कि ये मैंने क्या क्या कह दिया उससे। मुझे उससे ये सब नहीं कहना चाहिए था। मुझे अपने जज़्बातों पर काबू रखना चाहिए था। भला इसमें उसका क्या कुसूर?

मेघा जा चुकी थी और मैं बंद हो चुके दरवाज़े पर निगाहें जमाए किसी शून्य में डूबता चला गया था। कानों में किसी भी चीज़ की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। ज़हन पूरी तरह से निष्क्रिय हो चुका था लेकिन आंसू का एक कतरा मानो इस स्थिति में भी क्षण भर के लिए जीवित था। वो मेरी आँख से निकल कर नीचे गिरा और फ़ना हो गया।

कोई उम्मीद कोई ख़्वाहिश कोई आरज़ू क्यों हो।
वो नसीबों में नहीं मेरे, उसकी जुस्तजू क्यों हो।।

उम्र गुज़री है मेरी ख़िजां के साए में अब तलक,
फिर आसपास मेरे सितमगर की खुशबू क्यों हो।।

इससे अच्छा है किसी रोज़ मौत आ जाए मुझे,
इश्क़-ए-रुसवाई का आलम कू-ब-कू क्यों हो।।

कितना अच्छा हो अगर सब कुछ भूल जाऊं मैं,
खुद अपने ही आपसे हर वक़्त गुफ्तगू क्यों हो।।

मुझे भी उसकी तरह सुकूं से नींद आए कभी,
बंद पलकों में कोई चेहरा मेरे रूबरू क्यों हो।।

मेरे ख़ुदा तू इस अज़ाब से रिहा कर दे मुझे,
सरे-बाज़ार ये दिले-बीमार बे-आबरू क्यों हो।।

✮✮✮
 
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Ab jab koi new story likhuga to roman me likhuga bhai. Baaki jise padhna hota hai wo devnagri me bhi padhte hain aur jise nahi padhna hota wo roman me likhi hui story bhi nahi padhte. Yaha logo ko sirf ghapaghap wali story chahiye. :dazed:
Nai bhai baat ye hai ki jo log bahar se hain jaise dusre desh se unko devnagri na aati hai wo log ye bolte hain ki padh nai sakte pichle 15 shaal se dekh raha hun mai ye sab filhaal roman story Jada sahi rahti hai aur ek baat padhte bahut log hain bhai comment na karte hain
 
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ठण्ड लगने की वजह से मुझे होश आया। पलकें खुलीं तो कोहरे की धुंध में मैंने दूर दूर तक देखने की कोशिश की। मेरे पास ही कहीं पर रौशनी का आभास हुआ तो मैं चौंका। पहले तो कुछ समझ न आया कि मैं कहां हूं और किस हाल में हूं किन्तु कुछ पलों में जैसे ही ज़हन सक्रिय हुआ तो मुझे अपनी हालत का एहसास हुआ। नज़र पीछे की तरफ पड़ी तो देखा मेरी टोर्च ज़मीन पर पड़ी हुई थी। उसी टोर्च की रौशनी का मुझे आभास हुआ था। ठण्ड ज़ोरों की लग रही थी इस लिए उठ कर मैंने अपने कपड़ों को ब्यवस्थित किया जिससे ठण्ड का प्रभाव थोड़ा कम हो गया।

मैंने जब बेहोश होने से पूर्व का घटनाक्रम याद किया तो एक बार फिर से दिल में दर्द जाग उठा। ज़हन में तरह तरह के ख़याल उभरने लगे। ज़ाहिर है वो सभी ख़याल मुझे कोई खुशियां नहीं दे रहे थे इस लिए मैंने बड़ी मुश्किल से उन ख़यालों को अपने ज़हन से निकाला और ज़मीन पर पड़ी टोर्च को उठा कर खड़ा हो गया। पलट कर उस दिशा की तरफ देखा जहां बेहोश होने से पूर्व मैंने उस झरने को देखा था। मेरे अलावा दुनियां का कोई भी इंसान इस बात का यकीन नहीं कर सकता था कि मैंने अपनी खुली आँखों से इस जंगल में दो दो बार एक ऐसे झरने को देखा था जो किसी मायाजाल से कम नहीं था।

मेरा दिल तो बहुत उदास और बहुत दुखी था जिसकी वजह से अब कुछ भी करने की हसरत नहीं थी किन्तु जाने क्यों मैं उसी तरफ चल पड़ा जिस तरफ मैंने झरने को देखा था। वही कच्ची ज़मीन, वही पेड़ पौधे और ज़मीन पर पड़े सूखे हुए पत्ते। मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि जिस जगह पर मैं चल रहा हूं यहीं पर कुछ समय पहले एक अच्छा ख़ासा झरना था। क्या हो अगर वो झरना फिर से प्रकट हो जाए? ज़ाहिर है मैं सीधा उसके पानी में डूबता चला जाऊंगा और ऐसी ठण्ड में मेरे सलामत होने की कोई उम्मीद भी नहीं होगी। इस ख़याल ने मेरे जिस्म में झुरझुरी सी पैदा की किन्तु मैं रुका नहीं बल्कि आगे बढ़ता ही चला गया। टोर्च की रौशनी कोहरे को भेदने में नाकाम थी लेकिन मुझे रोक देने की ताकत उस कोहरे में तो हर्गिज़ नहीं थी।

"क्या बात है, तुम इतने गुमसुम से क्यों दिख रहे हो?" अगली सुबह मेघा आई और जब काफी देर गुज़र जाने पर भी मैंने कुछ न बोला था तो उसने पूछा था____"कुछ हुआ है क्या? कहीं तुम मेरे मना करने के बाद भी इस कमरे से बाहर तो नहीं चले गए थे?"

"बड़ी अजीब बात है।" मैंने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा था____'पहले तुम्हें मेरे बोलने पर समस्या थी और अब जबकि मैं चुप हूं तो तुम पूछ रही हो कि मैं गुमसुम क्यों हूं?"

"इसमें अजीब क्या है?" उसने एक पीतल की थाली में खाने को सजा कर मेरे पास लाते हुए कहा था____"यहां पर तुम मेरे मेहमान हो और मेरी वजह से ज़ख़्मी भी हुए हो इस लिए ये मेरा फ़र्ज़ है कि मेरी वजह से तुम्हें फिर से कोई तकलीफ़ न हो। हालांकि तुम पहले ऐसे इंसान हो जिसके बारे में मैं ऐसा सोचती हूं और इतना कुछ कर रही हूं वरना मेरी फितरत में किसी इंसान के लिए ऐसा कुछ करना है ही नहीं।"

"तो फिर मत करो मेरे लिए ये सब।" मैंने उसके चेहरे की तरफ देखते हुए कहा था____"अगर तुम्हारी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं तो फिर मेरे लिए भी तुम्हें ऐसा करने की ज़रूरत नहीं है। मैं अगर तुम्हारी वजह से ज़ख़्मी हुआ भी था तो तुम मुझे मेरे हाल पर छोड़ कर चुप चाप चली जाती। मुझे तुमसे इसके लिए कोई शिकायत नहीं होती बल्कि मैं ये समझ लेता कि ज़िन्दगी जहां इतने दुःख दे रही है तो एक ये अदना सा दुःख और सही।"

"मैं नहीं जानती कि तुम ये सब क्या और क्यों कह रहे हो।" मेघा ने मुझे हल्के से खींच कर बेड की पिछली पुष्त पर टिकाते हुए कहा____"लेकिन तुम्हें उस हालत में छोड़ कर नहीं जा सकती थी। उस दिन जब मैं तुम्हें यहाँ लाई थी तो मैं खुद हैरान थी कि मैंने ऐसा क्यों किया। काफी सोचने के बाद भी मुझे कुछ समझ नहीं आया था। तुम तो बेहोश थे लेकिन मैं अपने अंदर चल रहे द्वन्द से जूझ रही थी। उसके बाद न चाहते हुए भी मैं वो सब करती चली गई जो मेरी फितरत में है ही नहीं। जब तुम्हें होश आया और तुमसे बातें हुईं तो एक अलग ही एहसास हुआ मुझे जिसके बाद मैंने तुम्हारे ज़ख्मों का इलाज़ करना शुरू कर दिया। मैं आज भी नहीं जानती कि मैंने किसी इंसान के लिए इतना कुछ कैसे किया और अब भी क्यों कर रही हूं?"

"तुम बार बार ऐसा क्यों कहती हो कि तुम्हारी फितरत में किसी इंसान के लिए ये सब करना है ही नहीं?" मैंने वो सवाल किया जो मेरे मन में कई दिनों से उभर रहा था____"क्या तुम्हें मर्दों से कोई समस्या है या तुम उनसे नफ़रत करती हो?"

"ये सब ना ही जानो तो तुम्हारे लिए बेहतर होगा।" मेघा पीछे से आ कर मेरे पास ही बेड के किनारे पर बैठते हुए बोली थी____"चलो अब जल्दी से खाना खा लो। उसके बाद मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा दूंगी।"

"चलो मान लिया मैंने कि तुम्हें हम मर्दों से नफ़रत है जिसकी वजह से तुम किसी भी इंसान से किसी भी तरह का ताल्लुक नहीं रखती।" मैंने पीतल की थाली में रखे खाने की तरफ देखते हुए कहा____"लेकिन ये भी सच है कि तुमने मेरे लिए इतना कुछ किया। क्या तुमने ये समझने की कोशिश नहीं की कि ऐसा क्यों किया होगा तुमने? अगर तुम्हारी फितरत में ऐसा करना है ही नहीं तो फिर क्यों ऐसा किया तुमने?"

"मैं ये सब फ़ालतू की बातें नहीं सोचना चाहती।" मेघा ने सपाट लहजे में कहा था किन्तु उसके चेहरे के भाव कुछ अलग ही नज़र आ रहे थे जिन्हें देखते हुए मैंने कहा____"ठीक है, लेकिन मैं बता सकता हूं कि तुमने ऐसा क्यों किया?"

"क्या??" मेघा ने एक झटके से गर्दन घुमा कर मेरी तरफ देखा था____"मेरा मतलब है कि तुम भला कैसे बता सकते हो?"
"क्यों नहीं बता सकता?" मैंने थाली से नज़र हटा कर उसकी तरफ देखा____"आख़िर ऊपर वाले ने थोड़ा बहुत बुद्धि विवेक मुझे भी दिया है।"
"कहना क्या चाहते हो?" मेघा ने मेरी तरफ उलझन भरे भाव से देखते हुए कहा था।

"यही कि जो बात किसी इंसान की समझ से बाहर होती है।" मैंने जैसे दार्शनिकों वाले अंदाज़ में कहा था____"ज़रूरी नहीं कि उसका कोई मतलब ही न हो। सच तो ये है कि दुनियां में जो भी होता है वो सब उस ऊपर वाले की इच्छा से ही होता है। मैं नहीं जानता कि तुम इंसानों के प्रति ऐसे ख़याल क्यों रखती हो लेकिन इसके बावजूद अगर तुम्हें ये सब करना पड़ रहा है तो ज़ाहिर है कि इसमें नियति का कोई न कोई खेल ज़रूर है। इस सबके बारे में हम दोनों में से किसी ने भी कल्पना नहीं की थी कि ऐसा कुछ होगा लेकिन फिर भी ये सब हुआ तो ज़ाहिर है कि इसके पीछे कोई ऐसी वजह ज़रूर है जिसे हम दोनों को ही समझने की ज़रूरत है। हालांकि मैंने तो समझ लिया है लेकिन तुम्हें शायद देर से समझ आए।"

"तुमने ऐसा क्या समझ लिया है?" मेघा ने आँखें सिकोड़ते हुए पूछा था____"और ऐसा क्या है जो तुम्हारे हिसाब से मुझे देर से समझ में आएगा?"
"एक ऐसी चीज़ जो किसी के भी दिल में किसी के भी प्रति खूबसूरत एहसास जगा देती है।" मैंने कहा था____"उस एहसास को ये दुनिया प्रेम का नाम देती है। मैं बता ही चुका हूं कि तुम्हारे प्रति मेरे दिल में बेपनाह प्रेम का सागर अपना वजूद बना चुका है जबकि तुम्हें इसके बारे में शायद देर से पता चले। तुम खुद सोचो कि अचानक से हम दोनों एक दूसरे को क्यों मिल गए और इस वक़्त एक दूसरे के इतने क़रीब क्यों हैं? हम दोनों को भले ही ये नज़र आता हो कि इसकी वजह वो हादसा है लेकिन क्या ऐसा नहीं हो सकता कि वो हादसा भी इसी लिए हुआ हो ताकि हम दोनों को एक दूसरे के क़रीब रहने का मौका मिले और एक दिन हम दोनों एक हो जाएं?"

"पता नहीं तुम इंसान कैसी कैसी कल्पनाएं करते रहते हो।" मेघा ने हैरान नज़रों से मुझे देखते हुए कहा था____"अच्छा अब तुम चुप चाप खाना खाओ। तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा कर मुझे यहाँ से जाना भी है।"

"अभी और कितना वक़्त लगेगा मेरे इन ज़ख्मों को ठीक होने में?" मैंने थाली से एक निवाला अपने मुँह में डालने के बाद कहा था____"क्या कोई ऐसी दवा नहीं है जो एक पल में मेरे ज़ख्मों को ठीक कर दे?"

"ऐसी दवा तो है।" मेघा ने कहीं खोए हुए भाव से कहा था____"लेकिन वो दवा तुम्हारे लिए ठीक नहीं है।"
"ये क्या बात हुई भला?" मैंने हैरानी से मेघा की तरफ देखा था_____"ऐसी दवा तो है लेकिन मेरे लिए ठीक नहीं है इसका क्या मतलब हुआ?"

"तुम बाल की खाल निकालने पर क्यों तुल जाते हो?" मेघा ने नाराज़गी भरे भाव से कहा था____"चुप चाप खाना खाओ अब।"
"जो हुकुम।" मैंने अदब से सिर नवा कर कहा और चुप चाप खाना खाने लगा। उधर मेघा बेड से उठ कर तथा थोड़ी दूर जा कर जाने क्या करने लगी थी। मेरी तरफ उसकी पीठ थी इस लिए मैं देख नहीं सकता था।

पिछले पांच दिनों से मैं इस जगह पर रह रहा था। मेघा के ना रहने पर मैं अकेला पता नहीं क्या क्या सोचता रहता था। मुझे किसी भी चीज़ की समस्या नहीं थी यहाँ लेकिन जाने क्यों दिल यही चाहता था कि मेघा हर पल मेरे पास ही रहे। वो जब चली जाती थी तो मैं शाम या फिर सुबह होने का बड़ी शिद्दत से इंतज़ार करता था। रात तो को देर से ही सही लेकिन आँख लग जाती थी जिससे जल्द ही सुबह हो जाती थी लेकिन दिन बड़ी मुश्किल से गुज़रता था। अब तक मैंने मेघा से अपने दिल का हर हाल बयां कर दिया था और यही उम्मीद करता था कि उसके दिल में भी मेरे लिए वही एहसास पैदा हो जाए जैसे एहसास उसके प्रति मेरे दिल में फल फूल रहे थे। जैसे जैसे दिन गुज़र रहे थे और जैसे जैसे मुझे ये एहसास हो रहा था कि मेरी चाहत फ़िज़ूल है वैसे वैसे मेरी हालत बिगड़ती जा रही थी। अक्सर ये ख़याल मेरी धड़कनों को जाम कर देता था कि क्या होगा जब मेरे ठीक हो जाने पर मेघा मुझे मेरे घर पहुंचा देगी? मैं कैसे उसके बिना ज़िन्दगी में कोई ख़ुशी खोज पाऊंगा?

अचानक किसी पत्थर से मेरा पाँव टकरा गया जिससे एकदम से मैं वर्तमान में आ गया। ज़मीन पर पड़े पत्थर से मेरा पाँव ज़्यादा तेज़ी से नहीं टकराया था इस लिए मैं सिर्फ लड़खड़ा कर ही रह गया था। ख़ैर वर्तमान में आया तो मुझे आभास हुआ कि मैं चलते चलते पता नहीं कहां आ गया हूं मैं। मैंने ठिठक कर टोर्च की रौशनी दूर दूर तक डाली। कोहरे की वजह से दूर का कुछ भी नज़र नहीं आ रहा था। ज़हन में ख़याल उभरा कि ऐसे कब तक चलता रहूंगा मैं? इस तरफ ठण्ड कुछ ज़्यादा ही महसूस हो रही थी। कुछ देर अपनी जगह पर खड़ा मैं इधर उधर यूं ही देखता रहा उसके बाद अपने बाएं तरफ चल दिया।

मैं एक बार फिर से मेघा के ख़यालों में खोने ही वाला था कि तभी मैं चौंका। मेरे कानों में फिर से झरने में बहते पानी की आवाज़ सुनाई देने लगी थी। इस एक रात में ये दूसरी बार था जब झरने का वजूद मुझे नज़र आया था और इस बार मैं झरने के दूसरी तरफ मौजूद था। ये जान कर अंदर से मुझे जाने क्यों एक ख़ुशी सी महसूस हुई। दिल की धड़कनें ये सोच कर थोड़ी तेज़ हो गईं कि क्या इस तरफ सच में कहीं पर मेघा का वो पुराना सा मकान होगा? इस ख़याल के साथ ही मेरे जिस्म में एक नई जान सी आ गई और मैं तेज़ी से एक तरफ को बढ़ता चला गया।

मुझे पूरा यकीन था कि झरने के आस पास ही कहीं पर वो मकान था जिसमें मैं एक हप्ते रहा था। इसके पहले मैं इस तरफ का पूरा जंगल छान मारा था किन्तु तब में और अब बहुत फ़र्क हो गया था। पहले मुझे इस झरने का कोई वजूद नहीं दिखा था और आज दो दो बार ये झरना मेरी आँखों के सामने आ चुका था जो मेरे लिए किसी रहस्य से कम नहीं था। शुरू में ज़रूर मैं इस झरने की माया से चकित था लेकिन फिर ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई थी कि ये भी मेघा की तरह ही रहस्यमी है।

"क्या हुआ।" शाम को जब मेघा वापस आई थी तो वो एकदम ख़ामोश थी। उसके चेहरे के भाव कुछ अलग ही कहानी बयां कर रहे थे। इसके पहले वो एकदम खिली खिली सी लगती थी। जब काफी देर गुज़र जाने पर भी उसने कोई बात नहीं की थी तो मैं उससे पूछ बैठा था____"इतनी शांत और चुप सी क्यों हो मेघा? तुम्हारे चेहरे के भाव ऐसे हैं जैसे कोई गंभीर बात है। मुझे बताओ कि आख़िर बात क्या है? क्या मेरी वजह से तुम्हें कोई परेशानी हो गई है? अगर ऐसा है तो तुम्हें मेरे लिए ये सब करने की कोई ज़रूरत नहीं है। मैं अब पहले से काफी ठीक हूं और मैं खुद अपने से अपना ख़याल रख सकता हूं।"

"तुम ग़लत समझ रहे हो ध्रुव।" मेघा ने थाली में मेरे लिए खाना सजाते हुए कहा था____"मुझे तुम्हारी वजह से कोई परेशानी नहीं है।"
"तो फिर ऐसी क्या बात है जिसकी वजह से तुम्हारा चाँद की तरह खिला रहने वाला चेहरा इस वक़्त बेनूर सा नज़र आ रहा है?"

"तो तुम्हें मेरा चेहरा चाँद की तरह खिला हुआ नज़र आता था?" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए पहली बार हल्के से मुस्कुरा कर कहा था____"ये तारीफ़ थी या मुझे यूं ही आसमान में चढ़ा रहे थे?"

"बात को मत बदलो।" मैंने उससे नज़रें चुराते हुए कहा____"मैंने जो पूछा है उसका जवाब दो। आख़िर ऐसी क्या वजह थी कि तुम इतना गंभीर नज़र आ रही थी?"
"आज सारा दिन तुम्हारे द्वारा कही गई बातों के बारे में सोचती रही थी मैं।" मेघा ने थोड़े गंभीर भाव से कहना शुरू किया था____"जीवन में पहली बार मैंने किसी के द्वारा प्रेम के सम्बन्ध में ऐसी बातें सुनी थी। सुबह तुम्हारी बातें मुझे बहुत अजीब सी लग रहीं थी। मन में अजीब अजीब से ख़याल उभर रहे थे। यहाँ से जाने के बाद मैंने जब अकेले में तुम्हारी बातों पर विचार किया तो मुझे बहुत कुछ ऐसा महसूस हुआ जिसने मुझे एकदम से गंभीर बना दिया।"

"ऐसा क्या महसूस हुआ तुम्हें जिसकी वजह से तुम एकदम से इतना गंभीर हो गई?" मैं धड़कते हुए दिल से एक ही सांस में पूछ बैठा था।
"वही जो नहीं महसूस करना चाहिए था मुझे।" मेघा ने अजीब भाव से कहा____"कम से कम किसी इंसान के लिए तो हर्गिज़ नहीं।"

"मुझे समझ में नहीं आ रहा कि ये तुम क्या कह रही हो?" मैं सच में उसकी बातें सुन कर उलझन में पड़ गया था____"साफ़ साफ़ बताओ न कि बात क्या है?"
"मैं इस बारे में अब और कोई बात नहीं करना चाहती।" मेघा ने मेरे सामने बेड पर थाली रखते हुए कहा था____"तुम जल्दी से खाना खा लो ताकि मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा सकूं।"

मेघा की बातें सुन कर मैं एकदम से कुछ बोल न सका था, बल्कि मन में विचारों का तूफ़ान लिए बस उसकी तरफ देखता रह गया था। उसके चेहरे से भी ये ज़ाहिर हो रहा था कि वो किसी बात से परेशान है। मैं समझ नहीं पा रहा था कि आख़िर वो किस बात से इतना परेशान और गंभीर दिखने लगी थी। मेरे सामने पीतल की थाली में खाना रखा हुआ था किन्तु उसे खाने का ज़रा भी मन नहीं कर रहा था।

"क्या हुआ?" मुझे खाता न देख मेघा ने पूछा____"तुम खा क्यों नहीं रहे?"
"मुझे भूख नहीं है।" मैंने उसकी तरफ बड़ी मासूमियत से देखते हुए कहा था, जिस पर वो कुछ पलों तक ख़ामोशी से मेरे चेहरे को देखती रही उसके बाद बोली____"ठीक है, बाद में खा लेना। चलो अब मैं तुम्हारे ज़ख्मों पर दवा लगा देती हूं।"

मेघा की ये बात सुन कर मुझे बड़ी मायूसी हुई। मुझे एक पल को यही लगा था कि शायद वो खुद ये कहे कि चलो मैं खिला देती हूं लेकिन ऐसा नहीं हुआ था। हालांकि मुझे सच में भूख नहीं थी। इस वक़्त उसे परेशान देख कर मुझे बहुत बुरा महसूस हो रहा था। मैं चाहता था कि उसका चेहरा वैसे ही खिल जाए जैसे हर रोज़ खिला रहता था।

मेघा ने थाली को उठा कर एक तरफ रखा और मेरे ज़ख्मों पर दवा लगाने लगी। न वो कुछ बोल रही थी और ना ही मैं। हालांकि हम दोनों के ज़हन में विचारों तूफ़ान चालू था। ये अलग बात है कि मुझे ये नहीं पता था कि उसके अंदर किस तरह के विचारों का तूफ़ान चालू था? कुछ ही देर में जब दवा लग गई तो मेघा ने वहीं पास में ही रखे घड़े के पानी से अपना हाथ धो कर साफ़ किया और फिर मेरी तरफ पलटी।

"मुझे यकीन है कि कल या परसों तक तुम्हारे ज़ख्म भर जाएंगे और तुम पूरी तरह ठीक हो जाओगे।" मेघा दरवाज़े के पास खड़ी कह रही थी____"उसके बाद मैं तुम्हें तुम्हारे घर पहुंचा दूंगी।"

"ठीक है।" मैंने उसकी तरफ देखते हुए कहा था____"लेकिन अगर कभी तुम्हें देखने का मेरा दिल किया तो क्या तुम मुझसे नहीं मिलोगी?"
"बिल्कुल नहीं।" मेघा ने दो टूक लहजे में कहा था____"तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर पहुंचा देना ही मेरा मकसद है, उसके बाद हम दोनों ही एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"

"तुमने तो ये बात बड़ी आसानी से कह दी।" मैंने अपने अंदर बुरी तरह मचल उठे जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से काबू करते हुए कहा था____"लेकिन तुम्हें ये अंदाज़ा भी नहीं है कि यहाँ से जाने के बाद मेरी क्या हालत होगी। तुम्हारा दिल पत्थर का हो सकता है लेकिन मेरा नहीं। मेरे दिल के हर कोने में तुम्हारे प्रति मोहब्बत के ऐसे जज़्बात भर चुके हैं जो तुमसे जुदा होने के बाद मुझे चैन से जीने नहीं देंगे। ख़ैर कोई बात नहीं, मैं तो पैदा ही हुआ था जीवन में दुःख दर्द सहने के लिए। बचपन से ही मेरा कोई अपना नहीं था। बचपन से अब तक मैंने कैसे कैसे दुःख झेले हैं ये या तो मैं जानता हूं या फिर ऊपर बैठा सबका भगवान। न उसे कभी मेरी हालत पर तरस आया और ना ही तुम्हें आएगा लेकिन इसमें तुम्हारी ग़लती नहीं है मेघा बल्कि मेरे दिल की है। वो एक ऐसी लड़की से प्रेम कर बैठा है जो कभी उसकी हो ही नहीं सकती।"

"अपना ख़याल रखना।" मैं चुप हुआ तो मेघा ने बस इतना ही कहा और दरवाज़ा खोल कर किसी हवा के झोंके की तरह बाहर निकल गई। उसके जाने के बाद एकदम से मुझे झटका लगा। ज़हन में ख़याल उभरा कि ये मैंने क्या क्या कह दिया उससे। मुझे उससे ये सब नहीं कहना चाहिए था। मुझे अपने जज़्बातों पर काबू रखना चाहिए था। भला इसमें उसका क्या कुसूर?

मेघा जा चुकी थी और मैं बंद हो चुके दरवाज़े पर निगाहें जमाए किसी शून्य में डूबता चला गया था। कानों में किसी भी चीज़ की आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। ज़हन पूरी तरह से निष्क्रिय हो चुका था लेकिन आंसू का एक कतरा मानो इस स्थिति में भी क्षण भर के लिए जीवित था। वो मेरी आँख से निकल कर नीचे गिरा और फ़ना हो गया।


कोई उम्मीद कोई ख़्वाहिश कोई आरज़ू क्यों हो।
वो नसीबों में नहीं मेरे, उसकी जुस्तजू क्यों हो।।

उम्र गुज़री है मेरी ख़िजां के साए में अब तलक,
फिर आसपास मेरे सितमगर की खुशबू क्यों हो।।

इससे अच्छा है किसी रोज़ मौत आ जाए मुझे,
इश्क़-ए-रुसवाई का आलम कू-ब-कू क्यों हो।।

कितना अच्छा हो अगर सब कुछ भूल जाऊं मैं,
खुद अपने ही आपसे हर वक़्त गुफ्तगू क्यों हो।।

मुझे भी उसकी तरह सुकूं से नींद आए कभी,
बंद पलकों में कोई चेहरा मेरे रूबरू क्यों हो।।

मेरे ख़ुदा तू इस अज़ाब से रिहा कर दे मुझे,
सरे-बाज़ार ये दिले-बीमार बे-आबरू क्यों हो।।


✮✮✮
Mast update last me sayri ne to chaar Chand laga diye
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Nai bhai baat ye hai ki jo log bahar se hain jaise dusre desh se unko devnagri na aati hai wo log ye bolte hain ki padh nai sakte pichle 15 shaal se dekh raha hun mai ye sab filhaal roman story Jada sahi rahti hai aur ek baat padhte bahut log hain bhai comment na karte hain
Isi liye nahi likhta :D
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Update - 07
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मैं अभी मेघा के ख़यालों में ही था कि तभी टोर्च की रौशनी कोहरे की धुंध को भेदता हुए जिस चीज़ पर पड़ी उस पर नज़र पड़ते ही मैं एकदम से रुक गया। उस चीज़ पर मेरी नज़रें जैसे जम सी गईं थी। मेरे दिल को पहले तो एक झटका लगा और फिर जैसे वो धड़कना भूल गया। समूचा जिस्म मानो पलक झपकते ही क्रियाहीन हो गया, किन्तु जल्द ही मैं इस स्थिति से उबरा।

मेरी आँखों के सामने क़रीब चार क़दम की दूरी पर वो मकान मौजूद था जिसमें मैं दो साल पहले मेघा के साथ रहा था। चारो तरफ से कोहरे की धुंध में घिरा वो पुराना सा मकान बिल्कुल वैसा ही था जैसे दो साल पहले मैंने देखा था। मेरी जगह कोई दूसरा होता तो इस बियाबान जंगल में इस वक़्त ऐसे भयावह मकान को देख कर बेहोश हो जाता लेकिन मैं तो जैसे उस स्थिति में पहुंच था जहां पर इंसान को किसी चीज़ से कोई फ़र्क ही नहीं पडता था।

जैसे ही मेरा ज़हन सक्रिय हुआ तो मेरे अंदर ख़ुशी की ऐसी लहरें उठने लगीं जो मेरे समूचे जिस्म को एक सुखद सा एहसास करने लगीं। उस मकान को देख कर मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी मेघा मुझे मिल गई हो। मेरे दिल के जज़्बात बुरी तरह मचल उठे और मुझसे अपनी जगह पर खड़े न रहा गया। मैं भागते हुए उस मकान के पास पहुंचा और उसकी दीवारों को अपने हाथों से सहलाने लगा। आँखों से अनायास ही आंसू बहने लगे। मेरा दिल कर रहा था कि उस मकान को मेघा समझ कर अपने सीने से लगा लूं और बिलख बिलख कर रोने लगूं। रोते हुए उससे कहूं कि इतने समय तक वो मुझे क्यों अकेला छोड़े हुए थी? क्या उसे मेरी ज़रा भी याद नहीं आती थी? क्या सच में उसका दिल पत्थर की तरह कठोर है कि उसके अंदर मेरे लिए कोई जज़्बात ही नहीं थे?

जाने कितनी ही देर तक मैं मकान की दीवारों को अपने हाथों से सहलाता रहा और साथ ही मन ही मन तरह तरह की बातें करते हुए अपना दुःख दर्द जताता रहा। उसके बाद मैं घूम कर मकान के सामने की तरफ आया। मकान का दरवाज़ा वैसा ही था जैसे दो साल पहले था। लकड़ी के चार पटरे आपस में जुड़े हुए थे जिनके बीच झिर्रियां थी। दरवाज़े की हालत आज भी वैसी ही थी, यानि अगर कोई उसमें थोड़ा सा भी ज़ोर लगा दे तो उसकी लकड़ी टूट टूट कर बिखर जाएगी।

मेरी ख़ुशी का कोई पारावार नहीं था। मेरे दिल की हसरतें जो दम तोड़ने लगीं थी उनमें मानो फिर से जान आ गई थी। मेरा यकीन जो इसके पहले बुरी तरह डगमगाने लगा था वो फिर से ये सोच कर अपनी जगह पर दृढ़ हो गया था कि अब जब ये मकान मिल गया है तो मेघा भी मिल ही जाएगी। मेरा दिल चीख चीख कर मुझसे कहने लगा कि अब और तड़पने की ज़रूरत नहीं है ध्रुव। जिसकी जुदाई में अब तक इतने दुःख और कष्ट सहे थे वो जल्द ही मुझे मिलेगी और अपना प्यार दे कर मेरा हर दुःख दर्द दूर कर देगी।

मेरा मन जाने कैसे कैसे मीठे ख़याल बुनता जा रहा था जिसके असर से मेरा दिल खुशियों से भरता जा रहा था और ये ख़ुशी ऐसी थी जो मेरी आँखों से आंसू बन कर निकलती भी जा रही थी। मैं पागलों की तरह मकान के उस दरवाज़े को अपने हाथों से सहला सहला कर उसे चूम भी लेता था। जब मुझसे और ज़्यादा न रहा गया तो मैंने उस दरवाज़े को अंदर की तरफ ढकेला। दरवाज़ा जिस्म को थर्रा देने वाली आवाज़ के साथ खुलता चला गया। कमरे के अंदर पीले रंग का मध्यम सा प्रकाश फैला हुआ था जो शायद उसी लालटेन के जलने से था जो दो साल पहले मैंने देखी थी। अपनी बढ़ी हुई धड़कनों को बड़ी मुश्किल से काबू करने का प्रयास करते हुए मैं अंदर की तरफ दाखिल हुआ।

दरवाज़े के अंदर दाखिल होते ही मैं उसी कमरे में आ गया जिसमें दो साल पहले मैं रहा था। वो एक बड़ा सा कमरा था जिसके एक कोने में बेड था और एक कोने में मिट्टी का वो घड़ा जिसमें पानी भरा रहता था। एक तरफ की दिवार पर गड़ी कील में लालटेन टंगी हुई थी जिसका पीला प्रकाश पूरे कमरे में फैला हुआ था। बेड से थोड़ा दाएं तरफ एक और दरवाज़ा था जो कि बाथरूम था। बेड पर लगा बिस्तर वैसा ही था जैसा दो साल पहले था, फ़र्क सिर्फ इतना ही था कि उसमें कोई सलवटें नहीं थी जो ये ज़ाहिर करती थीं कि उसमें लेटने या बैठने वाला फिलहाल कोई नहीं था।

कमरे में खड़ा मैं हर चीज़ को बड़े ध्यान से देखते हुए वो सब बातें याद कर रहा था जो मेघा से साथ हुईं थी। मेरे जीवन का वो एक हप्ता मेरे लिए बहुत ही ज़्यादा मायने रखता था। माना कि उस एक हप्ते मेघा के साथ रहने के बाद मैंने एक और दर्द पा लिया था लेकिन ये भी सच था कि कुछ दिन तो उसके साथ ख़ुशी ख़ुशी ही गुज़रे थे। अपनी ज़िन्दगी में मैंने पहले कभी कोई खुशियां नहीं देखी थीं लेकिन मेघा को देखने के बाद और उसके साथ चंद दिन गुज़ारने के बाद जैसे मैंने बहुत कुछ पा लिया था। उसको अपने क़रीब देख कर बहुत कुछ महसूस कर लिया था। आज उसका दर्द भी मुझे एक मीठे आनंद की अनुभूति ही कराता था।

मैं अपनी जगह पर घूम घूम कर हर उस जगह को देख रहा था जहां जहां मेघा मौजूद रहती थी। उन जगहों को देखते ही आँखों के सामने मानो वो चित्र सजीव हो उठते थे। उन सजीब चित्रों को देख कर मेरा दिल एक अलग ही ख़ुशी महसूस करने लगा था। कुछ ही पलों में मैं ये भूल गया कि मैं इस वक़्त कहां हूं और किस हालत में हूं।

"अब तुम्हारे ज़ख्म कैसे हैं ध्रुव?" पूरे दो दिन बाद मेघा आई थी और मुझे देखते ही उसने मुझसे यही पूछा था। मैं दो दिन से भूखा था, सिर्फ मिट्टी के घड़े में रखे पानी को पी कर ही ज़िंदा था। मुझे समझ में नहीं आ रहा था कि मेघा हर रोज़ की तरह मेरे पास मुझे खाना देने और दवा लगाने क्यों नहीं आई थी? आज जब आई तो मैंने उसके चेहरे पर दो दिन पहले जैसी ही गंभीरता छाई हुई देखी थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो किसी बात से बेहद परेशान हो।

"जिस्म के ज़ख्म तो तुम्हारी दवा से ठीक हो जाएंगे मेघा।" उसके सवाल पर मैंने गंभीरता से जवाब देते हुए कहा था____"लेकिन दिल पर लगा ज़ख्म शायद कभी भी ठीक नहीं होगा। ख़ैर छोड़ो, अभी तक कौन सा मैं ऐशो आराम में जी रहा था? आज से पहले भी तो ज़िन्दगी में दुःख दर्द ही थे, तो एक तुम्हारे प्रेम का दर्द और सही। मैं बस ये जानना चाहता हूं कि परसों की गई तुम आज आई हो...ऐसा क्यों भला?"

"क्या करोगे जान कर?" मेघा मुझसे नज़रें हटा कर लकड़ी के उस टेबल की तरफ बढ़ी जो घड़े के पास ही रखा रहता था और उसी टेबल में वो मेरे खाने की थाली सजाती थी। टेबल के पास पहुंच कर उसने बिना मेरी तरफ देखे ही कहा____"इस दुनियां में सबके साथ कुछ न कुछ होता ही रहता है।"

"तुम हर बार पहेलियाँ क्यों बुझाती हो मेघा?" मैंने आहत भाव से कहा था____"अपनी कोई भी बात साफ़ शब्दों में क्यों नहीं कहा करती तुम? आज भी तुम्हारे चेहरे पर वैसी ही गंभीरता है जैसे परसों थी। मैं जानना चाहता हूं कि आख़िर इन दो तीन दिनों में ऐसा क्या हो गया है जिसने तुम्हारे चाँद की तरह खिले हुए चेहरे को इतना बेनूर बना दिया है? तुम अपनी परेशानी मुझे बता सकती हो मेघा। मैं अपने पवित्र प्रेम की क़सम खा कर कहता हूं कि तुम्हारी जो भी परेशानी होगी उसे दूर करने की पूरी कोशिश करुंगा। तुम्हें भले ही मेरी ये बात छोटे मुँह बड़ी बात लगे लेकिन यकीन मानो तुम्हारे चेहरे पर छाई इस गंभीरता को देख कर मेरे दिल को बेहद तकलीफ़ हो रही है। मैं उस शख़्स को एक पल के लिए भी परेशान या दुखी नहीं देख सकता जिससे मैं बेपनाह प्रेम करता हूं।"

"ऐसी बातें मत करो ध्रुव।" मेघा ने एक झटके से मेरी तरफ पलट कर कहा था। उसके चेहरे पर एकदम से ऐसे भाव उभर आए थे जैसे मेरी इन बातों से उसे बेहद तकलीफ़ हुई हो, बोली_____"मैं इस बात से तो बेहद खुश हूं कि कोई इंसान मुझ जैसी लड़की से इतना अगाध प्रेम करता है लेकिन इस बात से बेहद दुखी भी हूं कि मैं तुम्हारे इस पवित्र प्रेम के ना तो लायक हूं और ना ही तुम्हारे प्रेम को स्वीकार कर सकती हूं।"

मेघा ने दुखी भाव से और एक ही सांस में मानो सब कुछ उगल दिया था। उसकी बातें सुन कर मैं बुरी तरह चकित रह गया था। वो तो ख़ामोश हो गई थी लेकिन उसके द्वारा कहा गया एक एक शब्द मेरे कानों में अभी भी गूँज रहा था। मुझे यकीन नहीं हो रहा था कि जो मेघा परसों तक मेरे प्रेम को फ़ालतू की बातें कह रही थी और ऐसी बातों पर नाराज़गी जताती थी आज वही ख़ुद ऐसी बातें कह रही थी। बिजली की तरह मेरे ज़हन में ये ख़याल कौंधा कि क्या सच में मेघा को मेरे प्रेम का एहसास है? अगर है तो फिर वो ऐसा क्यों कह रही है कि वो मेरे प्रेम के लायक नहीं है या वो मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती?

"ये तुम कैसे कह सकती हो कि तुम मेरे लायक नहीं हो?" मैंने मेघा की तरफ गंभीरता से देखते हुए कहा था____"अरे! सच तो ये है कि मैं ख़ुद तुम्हारे लायक नहीं हूं मेघा। तुम तो आसमान का चमकता हुआ वो खूबसूरत चाँद हो जिसे पाने के लिए मुझ जैसा दो कौड़ी का इंसान बेकार ही अपने दिल में हसरत लिए बैठा है। तुम तो ख़्वाबों की परी हो मेघा। तुम्हारे सामने मेरी कोई औक़ात ही नहीं है। मैं तो बस अपने दिल के हाथों मजबूर हो गया हूं क्योंकि वो तुमसे बेपनाह प्रेम करने लगा है और इतना पागल है कि तुम्हें पाने की ख़्वाहिश भी करता है। तुमसे तो मेरी कोई बराबरी ही नहीं है फिर ऐसा क्यों कहती हो कि तुम मेरे प्रेम के लायक नहीं हो?"

"क्योंकि तुम मेरी असलियत नहीं जानते ध्रुव।" मेघा ने अपने जज़्बातों को मानो बड़ी मुश्किल से काबू करते हुए कहा था____"इस संसार में जो कुछ जैसा दिखता है वैसा असल में होता नहीं है। सब कुछ आँखों का भ्रम होता है। हर कोई उसी भ्रम को सच मान कर जीता है और एक दिन मर जाता है।"

"मैं कुछ समझा नहीं" मैंने उलझन भरे भाव से कहा____"आख़िर तुम कहना क्या चाहती जो?"
"इससे ज़्यादा खुल कर और कुछ नहीं कह सकती ध्रुव।" मेघा ने पीतल की थाली में खाने को सजाते हुए कहा____"मैं बस ये चाहती हूं कि जल्द से जल्द तुम ठीक हो जाओ ताकि मैं तुम्हें सही सलामत तुम्हारे घर भेज दूं।"

"आख़िर चल क्या रहा है तुम्हारे अंदर?" मैंने शंकित भाव से कहा था____"मुझे साफ़ साफ़ बताओ मेघा। मेरा दिल चीख चीख कर मुझसे कह रहा है कि तुम मुझसे बहुत कुछ छुपा रही हो। मेरा दिल ये भी चीख चीख कर कहता है कि इस वक़्त तुम भी उसी तरह अंदर से दुखी हो जैसे मैं हूं। अगर हम दोनों का एक जैसा ही हाल है तो हमारे एक होने में समस्या क्या है? मैं क़सम खा कर कहता हूं कि तुम्हारी जो भी समस्या होगी उसे मैं अपनी जान दे कर भी दूर करुंगा। उसके बाद हम दोनों इसी जंगल में अपनी एक अलग दुनियां बसाएंगे। हमारे पवित्र प्रेम की दुनियां, जिसमें हम होंगे और समंदर से भी गहरा हमारा प्रेम होगा।"

"मुझे इस तरह के सपने मत दिखाओ ध्रुव।" मेघा ने लरज़ते स्वर में कहा____"तुम मेरी बिवसता को कभी नहीं समझ सकते। तुम्हें क्या लगता है, मैं दो दिन तुमसे मिलने यहां क्यों नहीं आई? तुम नहीं समझ सकते ध्रुव कि ये दो दिन मैंने किस हाल में गुज़ारे हैं। अपने जीवन में मैं पहले कभी इतनी बेबस और लाचार नहीं हुई थी। तुमसे मुलाक़ात हुई तो जैसे मेरे जीवन में सब कुछ बदल गया लेकिन जब बदली हुई चीज़ों का एहसास हुआ तो समूचा वजूद थर्रा उठा। मैं उस वक़्त नहीं समझी थी किन्तु जब ख़ुद का वैसा हाल हुआ तो समझ आया कि तुम पर क्या गुज़र रही है।"

"इसका मतलब" मैं मारे ख़ुशी के बीच में ही मेघा की बात काट कर बोल पड़ा था____"इसका मतलब तुम भी मुझसे प्रेम करती हो, है ना?"
"नहीं, मैं तुमसे प्रेम नहीं करती।" मेघा ने सहसा शख़्ती अख्तियार करते हुए कहा____"मैं किसी इंसान से प्रेम कर ही नहीं सकती।"

"लेकिन अभी जो कुछ तुम कह रही थी।" मेरी ख़ुशी मानो एक झटके में छू मंतर हो गई थी____"उसका तो यही मतलब हुआ कि तुम भी मुझसे प्रेम करती हो।"
"नहीं ध्रुव।" मेघा ने शख़्ती से अपने सिर को इंकार में हिलाते हुए कहा____"जब मैं तुम्हारे लायक ही नहीं हूं तो भला तुमसे प्रेम कैसे कर सकती हूं?"

"तुम झूठ बोल रही हो।" मैं बुरी तरह खीझ उठा था, दिल को इतना तेज़ दर्द उठा था कि आँखों से आंसू बह चले थे____"क्यों मेघा क्यों? क्यों ऐसा कर रही हो तुम? क्यों मेरे साथ साथ खुद को भी इस तरह सज़ा दे रही हो? आख़िर ऐसी कौन सी मज़बूरी है तुम्हारी जो तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर सकती?"

"चलो खाना खाओ।" मेघा ने थाली को मेरे सामने रखते हुए कहा____"और हां, इसके लिए मुझे माफ़ करना कि मैंने दो दिन से तुम्हें यहाँ भूखा रखा।"
"नहीं खाना मुझे ये खाना।" मैंने बिफरे हुए अंदाज़ से कहा____"ले जाओ इसे और अब मुझे यहाँ भी नहीं रहना है। मैं खुद यहाँ से चला जाऊंगा। तुम्हें मेरे लिए और तकलीफ़ उठाने की ज़रूरत नहीं है।"

"कमाल है।" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए अजीब भाव से कहा था____"अभी तक तो बड़ा कह रहे थे कि मुझसे बेपनाह प्रेम करते हो और अब मुझ पर ही गुस्सा कर रहे हो, वाह! बहुत खूब। तुम्हीं से सुना था कि हम जिससे प्रेम करते हैं उन्हें किसी बात के लिए ना तो मजबूर करते हैं और ना ही बेबस। क्योंकि ऐसा करना प्रेम की तौहीन करना कहलाता है। अगर ये सब सच है तो क्या यही प्रेम है तुम्हारा?"

मेघा की बातों से मेरे तड़पते दिल को झटका सा लगा। किसी हारे हुए जुआरी की तरह मैं बेबस सा देखता रह गया था उसे। सच ही तो कह रही थी वो। प्रेम की परिभाषा और प्रेम के नियम यही तो थे कि खुद चाहे जितनी तकलीफ़ सह लो लेकिन जिससे प्रेम करते हो उसे अपनी तरफ से ज़रा सी भी तकलीफ़ न दो। प्रेम किया है तो हर कीमत पर अपने प्रेमी या प्रेमिका की बातो का मान रखो। उससे किसी भी तरह का शिकवा न करो, बल्कि हर बात को अपने सीने में दबा कर सिर्फ उसको खुशियां देने की कोशिश करो। वाह रे प्रेम, ये कैसा नियम था तेरा?

अपने आंसुओं को पोंछ कर मैंने चुप चाप खाना खाना शुरू कर दिया था। दिल के अंदर तो हलचल मची हुई थी लेकिन सब कुछ जज़्ब कर के मैं एक एक निवाला ज़बरदस्ती अपने हलक के नीचे उतारता जा रहा था। मेघा कुछ देर तक मेरी तरफ ख़ामोशी से देखती रही फिर वो बिना कुछ कहे बेड के किनारे से उठी और पानी के घड़े के पास जा कर खड़ी हो गई। मैंने महसूस किया जैसे उसका दिल भी रो रहा था।

किसी आहट के चलते मैं मेघा के ख़यालों से बाहर आया। मैंने ये सोच कर इधर उधर देखा कि आहट कहां से और किस चीज़ की हुई थी? चारो तरफ घूम घूम कर मैंने देखा किन्तु कहीं पर कुछ ऐसा नज़र न आया जिससे ये पता चल सके कि आहट किस चीज़ की हुई थी। ख़ैर मैं आगे बढ़ा और बेड के पास पहुंचा। लकड़ी का पुराना सा बेड था वो, जिसका सिरहाना काफी ऊँचा था। बेड भले ही पुराना था किन्तु उस पर बिछे हुए बिस्तर के कपड़े ऐसे थे जैसे किसी राजा महाराजाओं के यहाँ होते हैं। कीमती रेशमी कपड़े और वैसी ही मखमली रजाई जिसे ठण्ड से बचने के लिए ओढ़ा जाता था। ये बिछौना दो साल पहले भी था लेकिन हैरानी की बात थी कि पुराना नहीं नज़र आ रहा था।

मैंने झुक कर हल्के हाथों से उस बिस्तर को दोनों हाथों से छुआ और सहलाया। हाथों की उंगलियों में अजीब सा एहसास हुआ जिसने दिल की धड़कनों को सामान्य से थोड़ा ज़्यादा बढ़ा दिया। ये वही बिस्तर था जिस पर मैं एक हप्ते लेटा था और इसी बेड के किनारे पर हर शाम-ओ-सहर मेघा आ कर मेरे पास ही बैठ जाती थी। अचानक ही मेरे दिल ने मुझे एक क्रिया करने पर ज़ोर दिया, जिसे सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई। सच ही कहते हैं कि दिल पागल होता है। वो मुझे बिस्तर पर वैसे ही लेट जाने के लिए ज़ोर दे रहा था जैसे दो साल पहले मैं लेटा रहता था। ऐसा करने से दिल का तात्पर्य यही थी कि शायद ऐसा हो जाए कि अचानक ही दरवाज़ा खुले और मेघा अंदर दाखिल हो कर मेरे पास बेड के किनारे पर ही आ कर बैठ जाए। वो जब मेरे इतने क़रीब बैठ जाएगी तो मैं उसके खूबसूरत चेहरे को देखते हुए उसके सम्मोहन में खो जाऊंगा।

मुझे अपने दिल की ये बात कहीं से भी अनुचित नहीं लगी इस लिए मैं बेड पर वैसे ही लेट गया, जैसा लेटने के लिए वो ज़ोर दे रहा था। सचमुच इस तरह लेटने के बाद मुझे भी ऐसा प्रतीत हुआ कि अभी कमरे का दरवाज़ा खुलेगा और मेघा किसी स्वर्ग से उतरी हुई अप्सरा की तरह प्रकट हो जाएगी। बेड की पिछली पुष्त पर अपनी पीठ टिकाए मैं दरवाज़े की तरफ ही देखने लगा था और ये उम्मीद लगा बैठा था कि सच में मेघा आएगी लेकिन कल्पनाओं में और हकीक़त में तो ज़मीन आसमान का फ़र्क होता है। कहने का मतलब ये कि मैं काफी देर तक वैसे ही बेड पर अधलेटा सा पड़ा दरवाज़े की तरफ देखता रहा लेकिन ना तो दरवाज़ा खुला और ना ही मेघा का आगमन हुआ। एक बार फिर से मैं निराशा और हताशा से भर उठा। दिल एक बार फिर से तड़पने लगा था। उम्मीद का दीपक फिर से बुझने के लिए फड़फड़ाने लगा था। मन ही मन मैंने ऊपर वाले को याद किया। बंद पलकों में मेघा का अक्श उभरा तो मैंने उससे फरियाद की।

इससे पहले के जी तन से जुदा हो जाए।
तेरी सूरत मेरी आँखों को अता हो जाए।।

मैं आ गया हूं वही इश्क़ का दरिया ले कर,
खुदा करे के तुझको भी ये पता हो जाए।।

इतना आसां नहीं तेरी याद में जीना जाना,
वो भी क्या जीना के जीना सज़ा हो जाए।।

रास आएगी तुझे भी ये मोहब्बत ऐ दोस्त,
तू जो आलम-ए-बेबसी से रिहा हो जाए।।

कज़ा के बाद तब ही सुकून आएगा मुझे,
तेरे हाथों से अगर दिल की दवा हो जाए।।

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