Fantasy Dark Love (Completed)

Respect All, Trust few!!!
Councillor
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Hello Dosto :hi:
Ek Short Story Le kar Aapki Adaalat Me Haazir Hua Hu. Iske Pahle Maine Ek Short Story ✧Double Game✧ Likhi Thi Jise Aap Sabne Padha. Ab Ek Aur Short Story Aapke Saamne Haazir Karne Ja Raha Hu. Fantasy Prefix Par Adhaarit Ye Story Ek Love Story Hai. Ummid Hai Aap Sabhi Ko Pasand Aayegi. Aapka Sabhi Sath Aur Sahyog Aniwaarya Hai. Story Ke Sambandh Me Apna Feedback Zarur Dena. :declare:

Dhanyawaad..!!

:thank-you2:


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Dark Love

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Dark Love

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Written By ~

TheBlackBlood
:congrats: TheBlackBlood for your story wese kya ye story aapki autobiography hai kyuki aapka aur stpry ka naam ek hi hai.
Wese jab aapne aapki adaalat likha toh meri mind mai rajat sharma ki voice click hue and ek baat kahna chahungi ki ye posters awesome hai.
Ju koe graphic designer ho kya ?

Aur ye ki kahani interesting lag rahi hai read kar ke rebo dungi
And good choice ki aap short story likh rahe ho baaki aaj kal ke writers(inclunding me) kahani start to kar dete hai but complete nahi karte.
Short story mujhe pasand hai
Umeed hai ye story meti one of the fav. Story banegi
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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:congrats: TheBlackBlood for your story wese kya ye story aapki autobiography hai kyuki aapka aur stpry ka naam ek hi hai.
Wese jab aapne aapki adaalat likha toh meri mind mai rajat sharma ki voice click hue and ek baat kahna chahungi ki ye posters awesome hai.
Ju koe graphic designer ho kya ?
Ye meri autobiography nahi hai mohtarma, ye bas ek kalpanik story hai. :D
Aur ye ki kahani interesting lag rahi hai read kar ke rebo dungi
And good choice ki aap short story likh rahe ho baaki aaj kal ke writers(inclunding me) kahani start to kar dete hai but complete nahi karte.
Short story mujhe pasand hai
Umeed hai ye story meti one of the fav. Story banegi
Aisi baat nahi hai, main bhi un writer me se hi hu jo story complete nahi karte. Meri bhi do teen stories incomplete hain. Halaaki un stories par jald hi rukh karuga lekin abhi short story par hi man laga hua hai. Khair shukriya aur ju ke review ka intzaar rahega :hug2:
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Update - 08
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जाने वो कौन सी जगह थी? ऐसी जगह को मैंने पहले कभी नहीं देखा था। ऊँचे ऊँचे पर्वत शिखरों के ऊपर छाई हुई कोहरे की हल्की धुंध शाम जैसा माहौल बनाए हुए थी। उन्हीं के बीच बर्फ़ की सफ़ेद चादर यदा कदा दिखाई दे रही थी। चारो तरफ तो ऊँचे ऊँचे पहाड़ थे किन्तु उनके बीच नीचे बल्कि बहुत ही गहराई में कुछ ऐसा नज़र आ रहा था जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। नीचे गहराई में और बर्फ़ की चादर से घिरे पहाड़ों से सटे बड़े बड़े ऐसे महल बने हुए थे जिनके ऊपर भी बर्फ़ की चादर चढ़ी हुई दिख रही थी। उन महलों के झरोखों से पीले रंग का प्रकाश दिख रहा था। ज़ाहिर था कि महलों के अंदर या तो लालटेनें जल रहीं थी फिर मशालें। चारो तरफ के पहाड़ों से सटे उन महलों के बीच काफी लम्बा गोल घेरा बना हुआ था जिसका फर्श पक्का था और उस फर्श पर खूबसूरत नक्काशी की हुई थी। मैं हैरत से फटी अपनी आँखों से एकटक उस मंज़र को देखे जा रहा था।

मैं जिस जगह पर खड़ा था वो समतल ज़मीन तो थी लेकिन नीचे दिख रहे उन महलों से काफी उँचाई पर थी। मेरे पीछे दूर दूर तक समतल ज़मीन थी जिस पर बर्फ़ की हल्की चादर बिछी हुई थी। एक तरफ विशाल जंगल दिख रहा था। मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि ऐसी जगह पर आख़िर मैं पहुंच कैसे गया था? मुझे अपना पिछला कुछ भी याद नहीं था। सिर्फ इतना ही याद था कि मैं अपनी मेघा को खोज रहा था।

समय तो दिन का ही था लेकिन आसमान में कोहरे की गहरी धुंध छाई हुई थी इस लिए सूरज नहीं दिख रहा था। हालांकि ज़मीन पर पड़ी बर्फ़ की चादर की वजह से सब कुछ साफ़ नज़र आ रहा था। मैं मूर्खों की तरह कभी अपने पीछे दूर दूर तक खाली पड़ी ज़मीन को देखता तो कभी जंगल को तो कभी सामने नीचे की तरफ नज़र आ रहे उन अजीब से महलों को। फ़िज़ा में अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था।

मैं अपनी जगह पर अभी खड़ा ही था कि सहसा मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि हो सकता है कि मेघा नीचे नज़र आ रहे उन महलों में हो। उसके जिस्म पर राजकुमारियों जैसा लिबाश रहता था जो यही ज़ाहिर करता था कि वो कोई मामूली लड़की नहीं थी। अभी मैं सोच ही रहा था कि तभी बिजली की तरह मेरे ज़हन में मेघा की बात कौंधी जो उसने अपने बारे में मुझे बताया था। मेघा की असलियत का ख़याल आते ही पहले तो मेरे जिस्म में झुरझुरी हुई उसके बाद मैंने गहरी सांस ली।

नीचे नज़र आ रहे महलों की तरफ मैंने फिर से नज़र डाली और वहां पहुंचने का रास्ता खोजने लगा। जल्दी ही मुझे रास्ता नज़र आ गया जो कि महलों के बीच बने विशाल गोले के सामने की तरफ था किन्तु वहां पर यहाँ से सीधा नहीं जाया जा सकता था। मैं बाएं तरफ घूमा और सीधा चल दिया। मेरा अनुमान था कि दूर दूर तक नज़र आ रही समतल ज़मीन में ही कहीं से उन महलों की तरफ जाने का रास्ता होगा। मेरे ज़हन में तो जाने कितने ही ख़याल उभर रहे थे लेकिन फ़िज़ा में एकदम से ख़ामोशी छाई हुई थी। सामने नज़र आ रही ज़मीन में बर्फ़ की हल्की चादर बिछी हुई थी लेकिन कहीं पर भी ऐसा निशान नहीं था जो ये साबित करे कि यहाँ से कोई जीव गया हो या आया हो। ख़ैर मैं बढ़ता ही चला जा रहा था।

काफी देर चलने के बाद मैंने देखा कि आगे की तरफ ज़मीन ढलान में है। पहली बार मैंने फ़िज़ा में एक अजीब सा शोर होता सुना। शोर की तरफ जब मैंने ध्यान दिया तो मेरी नज़र सामने क़रीब दो सौ मीटर उँचाई में नज़र आ रहे एक जल प्रवाह पर पड़ी। ऊंचाई से पानी नीचे गिर रहा था और नीचे वही पानी एक नदी का रूप अख्तियार कर के बह रहा था। नदी के बीच और आस पास छोटी बड़ी चट्टानें नज़र आ रही थी। ज़मीन पर बिछी बर्फ़ की चादर उस नदी के किनारे तक फैली हुई थी। मैं चलते हुए नदी के पास आ गया।

नदी का पानी बेहद ही साफ़ था जिसके नीचे मौजूद छोटे बड़े पत्थर साफ़ दिख रहे थे। जो चट्टानें थोड़ी बड़ी थी उनसे टकरा कर नदी का पानी अलग ही नज़ारे के साथ बह रहा था। नदी को बड़ी ही आसानी से पार किया जा सकता था क्योंकि बड़े बड़े पत्थर और चट्टानों का सिखर पानी से ऊँचा था। हालांकि नदी की गहराई मुश्किल से घुटनों तक या फिर उससे थोड़ा ज़्यादा थी। जहां मैं खड़ा हो गया था वहां से बाएं तरफ क़रीब सौ मीटर की दूरी पर वो जल प्रवाह गिरता हुआ नज़र आ रहा था। कुछ देर अपनी जगह पर खड़ा मैं चारो तरफ देखता रहा उसके बाद नदी को पार करने का सोचा और आगे बढ़ चला।

बड़े बड़े पत्थरों पर पाँव रख कर मैंने नदी को पार किया और दूसरी तरफ पहुंच गया। इस तरफ आया तो देखा आगे की तरफ की ज़मीन अब उठान पर थी। मैं बढ़ता ही चला गया। थोड़ा ऊपर आया तो देखा इस तरफ पेड़ पौधे थे जिनके बीच से दो पगडंडियां जा रहीं थी। उन पगडंडियों को देख कर यही लगता था जैसे कोई वाहन उनमें से आता जाता है। पगडंडियां पेड़ों के बीच से ही थीं और आगे जाने कहां तक चली गईं थी। मैं मन ही मन ऊपर वाले को याद कर के उसी पगडण्डी पर बढ़ चला।

क़रीब आधे घंटे बाद उस पगडण्डी पर चलते हुए मैं उस छोर पर आया जहां पर शुरू में मैंने महल बने हुए देखे थे। सामने एक तरफ अजीब सा पहाड़ था जिसके बगल से वो पगडण्डी जा रही थी। पगडण्डी का रास्ता ही बता रहा था कि रास्ता ऊँचे पर्वत शिखर को काट कर बनाया गया रहा होगा। बर्फ़ की चादर इधर भी थी। मैं जब कुछ और पास पहुंचा तो ये देख कर चौंका कि जिन्हें अब तक मैं पहाड़ समझ रहा था असल में वो पहाड़ नहीं बल्कि मिट्टी में दबी बहुत ही विशाल पत्थर की चट्टानें थी जिनका रंग काला था। पगडण्डी वाला रास्ता दो चट्टानों के बीच से गुज़र रहा था। वो दोनों चट्टानें अपने सिर के भाग से आपस में जुडी हुईं थी।

मैं पगडण्डी में आगे बढ़ा और कुछ ही समय में उस जगह पर पहुंच गया जहां पर महल बने हुए थे। आस पास कोई नहीं दिख रहा था। फ़िज़ा में बड़ा ही अजीब सा सन्नाटा कायम था। एक मैं ही अकेला था जो ऐसी जगह पर भटक रहा था। मन में एक भय पैदा हो गया था और दिल की धड़कनें तेज़ हो ग‌ईं थी। मैं चलते हुए उसी गोले पर आ गया जिसे मैंने शुरू में उँचाई से देखा था। गोलाकार फर्श पर रुक कर मैं महलों के उन झरोखों की तरफ देखने लगा जहां से पीला प्रकाश दिख रहा था। मैं चकित आँखों से महलों की बनावट और उनमें मौजूद शानदार नक्काशी को देखे जा रहा था। महलों की दीवारें बेहद पुरानी सी नज़र आ रहीं थी। बड़े बड़े परकोटे और ऊपर बड़े बड़े गुंबद। काले पत्थरों की दीवारें और मोटे मोटे खम्भे। बड़ा ही रहस्यमय नज़ारा था। सहसा मेरी नज़र महल के एक बड़े से दरवाज़े पर पड़ी। दरवाज़ा बंद था किन्तु जाने क्या सोच कर मैं उस दरवाज़े की तरफ बढ़ चला। ऐसा लगा जैसे कोई अज्ञात शक्ति मुझे अपनी तरफ खींच रही थी।

दरवाज़े के पास पहुंच कर मैं रुका। कुछ देर जाने क्या सोचता रहा और फिर दोनों हाथों को बढ़ा कर उस विशाल दरवाज़े को अंदर की तरफ ज़ोर दे कर ढकेला। दरवाज़ा भयानक आवाज़ करता हुआ अंदर की तरफ खुलता चला गया। अंदर नीम अँधेरा नज़र आया मुझे। अभी मैं अंदर दाखिल होने के बारे में सोच ही रहा था कि तभी जैसे क़यामत आ गई।

अंदर की तरफ इतना तेज़ शोर हुआ कि मेरे कानों के पर्दे फट गए से प्रतीत हुए। मैंने जल्दी से हड़बड़ा कर अपने कानों को हाथों से ढँक लिया। मुझे समझ न आया कि अचानक से ये कैसा शोर होने लगा था। ऐसा लगा था जैसे अंदर कोई भारी और वजनी चीज़ कहीं से टकरा कर गिरी थी। शोर धीमा हुआ तो मैंने अपने कानों से हाथ हटाए और आगे की तरफ बढ़ चला। मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था। ज़हन में हज़ारो तरह के विचार उभरने लगे थे।

अंदर आया तो एक बड़ा सा गोलाकार हाल नज़र आया। हाल के बहुत ऊपर छत पर एक विशाल झूमर लटक रहा था। चारो तरफ की दीवारों में बड़े बड़े मशाल जल रहे थे जिसकी रौशनी हर तरफ फैली हुई थी। सामने की तरफ बेहद चौड़ी सीढ़ियां थी जो ऊपर की तरफ जा कर दोनों तरफ की बालकनी की ओर मुड़ गईं थी। अभी मैं सीढ़ियों की तरफ देख ही रहा था कि तभी किसी नारी कंठ से निकली भयानक चीख को सुन कर मैं दहल गया। एकाएक वहां की फ़िज़ा में गहमा गहमी महसूस हुई और अगले ही पल मेरे बाएं तरफ ऊपर के माले से कोई तेज़ी से आया और हाल में बड़ी तेज़ आवाज़ के साथ गिरा। मैं छिटक कर उससे दूर हट गया था।

हाल में गिरने वाला शख़्स दो तीन पलटियां खाया था और फिर रुक गया था। उसके जिस्म पर काले रंग के किन्तु चमकीले कपड़े थे। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि तभी मेरी नज़र उसके नीचे से निकल रहे गाढ़े काले रंग के तरल पदार्थ पर पड़ी। ऐसा लगा जैसे वो उसके जिस्म के किसी हिस्से से निकल रहा था और अब हाल में फैलता जा रहा था। मुझसे मात्र दो तीन क़दम की दूरी पर ही था वो इस लिए मैं हिम्मत कर के उसकी तरफ बढ़ा। चेहरे की तरफ आ कर मैं रुक गया और उसे ध्यान से देखने लगा। लम्बे लम्बे बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे जिससे मुझे उसका चेहरा नहीं दिख रहा था लेकिन इतना मैं समझ गया कि वो कोई लड़की थी।

जिस्म पर चुस्त काले लेदर के कपड़े। पैरों में काले रंग के ही लांग बूट जो उसके घुटनों तक दे। दोनों हाथों की दो दो उंगलियों में ऐसी अँगूठियां जिनमें काले और नीले रंग का पत्थर जड़ा हुआ था। उंगलियों के नाख़ून भी काले रंग के थे और थोड़ा बड़े हुए थे। हाथ ज़रूर उसका दूध की तरह गोरा दिख रहा था। कुछ पलों तक मैं उसे ऐसे ही निहारता रहा उसके बाद सहसा मैं झुका और एक हाथ से उसके चेहरे पर बिखरे बालों को बहुत ही सावधानी से हटाया। मेरा दिल इस वक़्त धाड़ धाड़ कर के बज रहा था।

चेहरे पर से जैसे ही बाल हटे तो मेरी नज़र उस लड़की के चेहरे पर पड़ी और मैं ये देख कर उछल पड़ा कि वो मेघा थी। मैं उस चेहरे को पलक झपकते ही पहचान गया था? भला मैं उस चेहरे को भूल भी कैसे सकता था जिसे मैं टूट टूट कर चाहता था और जिसके ख़यालों में मैं हर वक़्त खोया ही रहता था। मैंने झपट कर मेघा को सीधा किया तो ये देख कर मेरे हलक से चीख निकल गई कि उसके पेट पर बड़ा सा खंज़र घुसा हुआ था। वहीं से काले रंग का वो तरल पदार्थ निकल कर हाल के फर्श पर फैलता जा रहा था। इसका मतलब वो काला पदार्थ मेघा का खून था।

एक पल में ही मेरी हालत ख़राब हो गई। अपनी मेघा को इस हालत में देख कर मैं तड़प उठा और झपट कर उसे अपने सीने से लगा लिया। मेरी आँखों से ये सोच कर आंसू बहने लगे कि जिस मेघा को मैं इतना चाहता था और जिसकी खोज में मैं दर दर भटक रहा था वो मर चुकी है। दिल में बड़ा तेज़ दर्द उठा जो मेरी सहन शक्ति से बाहर हो गया और मैं मेघा का नाम ले कर पूरी शक्ति से चिल्लाया।

मैं एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठा था। मेरी आँखें खुल चुकीं थी। ठण्ड के मौसम में भी मैं पसीने से भींगा हुआ था। विचित्र सी हालत में मैं मूर्खों की तरफ बेड पर बैठा इधर उधर देखने लगा था। न वो महल दिख रहे थे, न ही वो बड़ा सा हाल और ना ही उस हाल में मेघा। खुली आंखों में बस कमरे की वो दीवारें दिख रहीं थी जो काले पत्थरों की थीं। एक तरफ की दीवार में गड़ी कील पर लालटेन टंगी हुई थी। एक तरफ मिट्टी का घड़ा रखा हुआ था और उसी घड़े के पास एक टेबल था। दूसरी तरफ लकड़ी का दरवाज़ा। मुझे एकदम से झटका लगा। मनो मस्तिष्क में जैसे विस्फोट सा हुआ और पलक झपकते ही ज़हन में ख़याल उभरा______'इसका मतलब मैं अभी तक ख़्वाब देख रहा था।'

✮✮✮

वो यकीनन ख़्वाब ही था और दुनिया भले ही ये कहे कि ख़्वाबों का सच से कोई वास्ता नहीं होता लेकिन दिल को भला कौन समझाए? वो तो यही समझ रहा था कि उसकी मेघा मर चुकी है। किसी ज़ालिम ने उसे बेदर्दी से मार डाला है। ये ऐसा एहसास था जो मेरे ज़हन को भी यही स्वीकार करने पर ज़ोर दे रहा था जिसकी वजह से मैं बेहद दुखी हो गया था। मैं बार बार ऊपर वाले से मेघा को सही सलामत रखने की दुआ करता जा रहा था। मेरी हालत पागलों जैसी हो गई थी। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। बस दहाड़ें मार मार कर रोने का मन कर रहा था। चारो तरफ मेघा को खोजते हुए चीख चीख कर उसको पुकारने का मन कर रहा था।

मैं झटके से बेड से उठा था और भागते हुए कमरे से बाहर आया था। बाहर पेड़ पौधों के अलावा कुछ नज़र न आया। कोहरे की धुंध उतनी नहीं थी जैसे तब थी जब मैं यहाँ आया था। दिन जैसा जान पड़ता था। जंगल की ज़मीन पर सूझे पत्ते बिखरे हुए थे। मैं तेज़ी से एक तरफ को भाग चला। आँखों से बहते आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। ज़हन में बस एक ही ख़याल बार बार मुझे तड़पा देता था कि मेरी मेघा मर चुकी है। अगले ही पल मैं अपने इस ख़याल पर बिफरे हुए अंदाज़ में मन ही मन कह उठता कि ऐसे कैसे मर जाएगी वो? अभी तो मुझे उसकी सूरत देखनी है। अभी तो मुझे उसको अपने सीने से लगाना है ताकि मेरे दिल को शान्ति मिल जाए। वो इस तरह मुझे तड़पता छोड़ कर कैसे चली जाएगी?

यकीनन रात गुज़र गई थी और अब दिन का समय था। वातावरण में कोहरे की धुंध अब कुछ कम थी जिसकी वजह से आगे बढ़ने में मुझे न तो टोर्च की ज़रूरत थी और ना ही कोई परेशानी थी। मैं अपनी नाक के सीध भागता ही चला जा रहा था। मेरे ज़हन में ख़्वाब में दिखने वाले वो महल उभर रहे थे और अब मुझे हर कीमत पर उन महलों में पहुंचना था। मुझे यकीन सा हो गया था कि मेरी मेघा वहीं है और इस वक़्त उसे मेरी शख़्त ज़रूरत है।

"क्या हुआ, तुम इतने चुप क्यों हो?" मेरे ज़ख्म ठीक होने के बाद मेघा मुझे मेरे घर छोड़ने जा रही थी। मैं और वो पैदल ही जंगल में चल रहे थे। मैं अंदर से बेहद उदास और बेहद ही दुखी था। दुखी इस लिए क्योंकि आज के बाद मेघा से कभी मुलाक़ात नहीं होनी थी। उसके अनुसार हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे। रास्ते में जब मैं कुछ नहीं बोल रहा था तो मेघा ने मुझसे यही कहा था_____"देखो, हम दोनों के लिए बेहतर यही है कि हम अपनी अपनी दुनिया में खो जाएं। हमारा मिलना तो बस इत्तेफ़ाक़ की बात थी ध्रुव। मैं खुश हूं कि मुझे एक ऐसा इंसान मिला जिसने मुझे अपने खूबसूरत प्रेम का एहसास कराया। भले ही ये एहसास जीवन भर मुझे दर्द देता रहे लेकिन यकीन मानो इसका मुझे ज़रा भी रंज नहीं होगा। मैं तुम्हारे भगवान से दुआ करती हूं कि वो तुम्हें हमेशा खुश रखे।"

"जिन्हें प्रेम का रोग लग जाता है न।" मैंने मेघा की तरफ देखते हुए फीकी मुस्कान के साथ कहा था____"वो ऐसे बदनसीब बन जाते हैं कि फिर उनको किसी की दुआ भी नहीं लगती। उनका तो बस अपने प्रेमी या अपनी प्रेमिका की यादों में तड़पते रहने का मुकद्दर ही बन जाता है। मैं तो तुम्हारी असलियत जानने के बाद भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूं और अभी भी यही चाहता हूं कि हम दोनों एक साथ रहें लेकिन तुम जाने क्यों ऐसा नहीं चाहती?"

"तुमने एक बार कहा था न कि प्रेम को हासिल कर लेना ही प्रेम नहीं कहलाता।" मेघा ने कहा____"बल्कि प्रेम के लिए त्याग और बलिदान करना भी प्रेम कहलाता है। असल में प्रेम की महानता भी वही है जिसमें त्याग और बलिदान किया जाए। तुम्हारी इन बातों ने मुझे समझा दिया था कि मुझे क्या करना चाहिए। मैं अपनी ख़ुशी के लिए भला वो काम कैसे कर सकती थी जो तुम्हारे जीवन को संकट में डाल दे? प्रेम के नियम सिर्फ तुम पर ही तो लागू नहीं होते थे बल्कि वो तो हर उस शख़्स पर लागू होंगे जो किसी से प्रेम करता हो।"

"तुमसे जुदा होने के बाद मैं कौन सा ख़ुशी से जी सकूंगा?" मैंने कहा था____"इससे अच्छा तो यही था कि साथ रह कर हर उस चीज़ का सामना करते जो हमारे लिए परेशानी बन कर आती। अगर साथ में जी नहीं सकते थे तो कम से कम साथ में मर तो सकते ही थे।"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने सहसा रुक कर और मेरे चेहरे को अपने एक हाथ से सहला कर कहा था____"जब अंजाम अच्छे से पता हो तो जान बूझ कर वैसी ग़लती क्यों की जाए? मैं ये हर्गिज़ बरदास्त नहीं कर सकूंगी कि मेरी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए। इसी लिए तो तुम्हारी तरह जीवन भर तड़पना मंज़ूर कर लिया है मैंने। सोचा था कि तुमसे ये सब नहीं बताऊंगी ताकि तुम मेरा ख़याल अपने दिल से निकाल कर जीवन में आगे बढ़ जाओ लेकिन तुमने मजबूर कर दिया मुझे।"

"तुम बेवजह ही ये सब सोच रही हो मेघा।" मैंने पहली बार मेघा के चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच लिया था____"प्रेम करने वाले किसी अंजाम की परवाह नहीं करते बल्कि वो तो हर हाल में प्रेम करते हैं और अगर साथ जी नहीं सकते तो साथ में मर कर दुनिया में अमर हो जाते हैं।"

"तुम्हारी बातें मुझे कमजोर बनाने लगती हैं ध्रुव।" मेघा ने मेरी हथेलियों से अपना चेहरा छुड़ा कर कहा था____"तुम मेरी बिवसता को क्यों नहीं समझते? ये सब इतना आसान नहीं है जितना तुम समझते हो।"

"ठीक है।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा था____"मैं तुम्हें किसी चीज़ के लिए बिवस करने का सोच भी नहीं सकता। मैं तो बस सम्भावनाओं से अवगत करा रहा था। अगर तुम इसके बावजूद यही चाहती हो तो ठीक है।"

मेरी बात सुन कर मेघा अपलक मुझे देखने लगी थी। शायद वो समझने की कोशिश कर रही थी कि उसकी बातों से मुझे बुरा लगा है या मुझे ठेस पहुंची है। कुछ पल देखने के बाद वो आगे बढ़ चली तो मैं भी आगे बढ़ चला।

"एक वादा करो मुझसे।" कुछ देर की ख़ामोशी के बाद मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए गंभीरता से कहा_____"आज के बाद खुद को कभी दुखी नहीं रखोगे और ना ही मुझे खोजने की कोशिश करोगे।"

"मेरी जान मांग लो।" मेरी आँखों में आंसू तैरने लगे थे____"लेकिन ऐसा वादा नहीं कर सकता जो मेरे अख्तियार में ही नहीं है।"
"अगर तुम खुद को दुखी रखोगे तो मैं भी ख़ुशी से जी नहीं पाऊंगी।" मेघा ने भारी गले से कहा था_____"बस ये समझ लो कि जैसा हाल तुम्हारा होगा वैसा ही हाल यहाँ मेरा भी होगा।"

"इसका तो एक ही उपाय है फिर।" मैंने रुक कर उससे कहा था____"और वो ये कि मेरे दिलो दिमाग़ से अपनी यादें मिटा दो। जब तुम्हारे बारे में मुझे कुछ याद ही नहीं रहेगा तो फिर भला कैसे मैं ऐसे हाल से गुज़रुंगा?"

"हां ये कर सकती हूं मैं।" मेघा ने अजीब भाव से कहा था।
"लेकिन मेरी एक शर्त है।" मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा था____"मेरे दिलो दिमाग़ से अपनी यादें मिटाने के बाद तुम्हें भी अपने दिलो दिमाग़ से मेरी सब यादें मिटानी होंगी।"

"नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं करुंगी।" मेघा एकदम से दुखी लहजे से बोल पड़ी थी____"तुम्हारे प्रेम की खूबसूरत यादें और उसका एहसास मैं मरते दम तक सम्हाल के रखना चाहती हूं।"

"तो फिर मेरे साथ ही ये नाइंसाफ़ी क्यों?" मैंने मेघा के दोनों कन्धों पर अपने हाथ रख कर कहा था____"मुझे तिल तिल कर मरना मंजूर है लेकिन तुम्हारी यादों को अपने दिलो दिमाग़ से मिटाना मंजूर नहीं है। मेरे पास तुम्हारी इन यादों के अलावा कोई भी अनमोल दौलत नहीं है। क्या तुम मुझसे मेरी ये दौलत छीन लेना चाहती हो?"

"नहीं नहीं, मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती।" मेघा ने बुरी तरह तड़प कर कहा और झपट कर मेरे सीने से लिपट गई। ये पहली बार था जब वो मेरे सीने से लिपटी थी। उसके यूं लिपट जाने पर मेरे दिल को बड़ा सुकून मिला। अपने दोनों हाथ आगे कर के मैंने भी उसे अपने सीने में भींच लिया। ऐसा लगा जैसे सब कुछ मिल गया हो मुझे। मन ही मन ऊपर वाले से फ़रियाद की कि इस वक़्त को अब यहीं पर ठहर जाने दो।

अभी एक मिनट भी नहीं हुआ था कि अचानक मेघा मुझसे अलग हो कर दूर खड़ी हो गई। उसके यूं अलग हो जाने पर मुझे पहले तो हैरानी हुई किन्तु फिर अनायास ही मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई और साथ ही दिल तड़प कर रह गया।

मेघा की साँसें थोड़ी भारी हो गईं थी। कुछ पलों के लिए उसका गोरा चेहरा अजीब सा दिखा किन्तु फिर सामान्य हो गया। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद वो पगडण्डी पर चलने लगी तो मैं भी उसके बगल से चलने लगा। जल्द ही हम दोनों जंगल से निकल कर मुख्य सड़क पर आ ग‌ए। सुबह अभी हुई नहीं थी किन्तु चांदनी थी इस लिए कोहरे की धुंध में भी हल्का उजाला सा प्रतीत होता था। मैं अभी मुख्य सड़क के दोनों तरफ बारी बारी से देख ही रहा था कि तभी मेघा पर नज़र पड़ते ही मैं चौंका। वो मेरी मोटर साइकिल के साथ खड़ी थी।

"ये तुम्हारे पास कहां से आ गई?" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पूछा था।
"उस दिन जब हादसा हुआ था और तुम बेहोश हो गए थे।" मेघा कह रही थी____"तो मैंने इसे सड़क से दूर ला कर यहाँ झाड़ियों में छुपा दिया था। अब यहाँ से तुम्हें इसी मोटर साइकिल से जाना होगा।"

"तो क्या तुम मेरे साथ नहीं चलोगी?" मैंने धड़कते दिल से पूछा____"तुमने तो कहा था कि मुझे सही सलामत मेरे घर तक पहुचाओगी।"
"मैं तुम्हारे घर तक नहीं जा सकती ध्रुव।" मेघा ने गंभीरता से कहा था____"यहां से अब तुम्हें किसी भी तरह का ख़तरा नहीं है। इस लिए तुम इस मोटर साइकिल के द्वारा आराम से अपने घर जा सकते हो।"

"क्या सच में तुम ऐसा ही चाहती हो मेघा?" मैंने आख़िरी उम्मीद से कहा था_____"एक बार फिर से सोच लो। ग़मे-इश्क़ वो अज़ाब है जो हम दोनों को चैन से जीने नहीं देगा। मुझे किसी बात की परवाह नहीं है, परवाह है तो सिर्फ हमारे प्रेम की। मैं तुम्हारे लिए हर कीमत देने को तैयार हूं।"

"काश! ऐसा संभव होता ध्रुव।" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए लरज़ते स्वर में कहा था____"काश! मेरे लिए ये सब इतना आसान होता और काश मेरे पास ऐसी मजबूरियां न होती। ख़ैर, हमेशा खुश रहना ध्रुव। मेरे लिए अपना जीवन बर्बाद मत करना। अच्छा अब तुम जाओ, मैं भी जा रही हूं....अलविदा।"

शायद उसे पता था कि उसके ऐसा कहने पर मैं फिर से कुछ ऐसा कहूंगा जिससे वो जज़्बातों में बह कर कमज़ोर पड़ जाएगी। इसी लिए उसने इतना कहा और फिर बिना मेरी कोई बात सुने वो तेज़ी से जंगल की तरफ लगभग भागते हुए चली गई। मैं ठगा सा उसे देखता रह गया था। ऐसा लगा जैसे उसके चले जाने से मेरी दुनिया ही उजड़ गई हो। जी चाहा कि मैं भी उसके पीछे भाग जाऊं और अगले ही पल मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर उसके पीछे दौड़ भी पड़ा। मैं जितना तेज़ दौड़ सकता था उतना तेज़ दौड़ता हुआ जंगल की तरफ भागा। कुछ ही देर में मैं जंगल में दाखिल हो गया। मैंने चारो तरफ दूर दूर तक नज़र घुमाई लेकिन मेघा कहीं नज़र न आई। मैंने पूरी शक्ति से चिल्ला चिल्ला कर उसे पुकारा भी लेकिन कोई फ़ायदा न हुआ। ज़हन में बस एक ही ख़याल उभरा कि मेरी मेघा हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर जा चुकी है। इस एहसास के साथ ही मानो सारा आसमान मेरे सिर पर आ गिरा और मैं वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल गिर कर ज़ार ज़ार रो पड़ा।


चला गया मेरे दिल को उदासियां दे कर।
मैं हार गया उसे इश्क़ की दुहाइयां दे कर।।

दिल की दुनिया अब कहां आबाद होगी,
चला गया इक तूफ़ां उसे वीनाइयां दे कर।।

वो भी न ले गया दर्द-ए-दिले-शिफ़ा कोई,
मुझे भी न गया दिल की दवाईयां दे कर।।

क्या कहूं उसको के जिसने ऐसे मरहले में,
दर्द से भर दिया दामन जुदाईयां दे कर।।

जिस तरह मुझको गया है छोड़ कर कोई,
यूं न जाए कोई किसी को तन्हाइयां दे कर।।

✮✮✮
 
N

Naveen Maurya

Update - 08
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जाने वो कौन सी जगह थी? ऐसी जगह को मैंने पहले कभी नहीं देखा था। ऊँचे ऊँचे पर्वत शिखरों के ऊपर छाई हुई कोहरे की हल्की धुंध शाम जैसा माहौल बनाए हुए थी। उन्हीं के बीच बर्फ़ की सफ़ेद चादर यदा कदा दिखाई दे रही थी। चारो तरफ तो ऊँचे ऊँचे पहाड़ थे किन्तु उनके बीच नीचे बल्कि बहुत ही गहराई में कुछ ऐसा नज़र आ रहा था जिसकी मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था। नीचे गहराई में और बर्फ़ की चादर से घिरे पहाड़ों से सटे बड़े बड़े ऐसे महल बने हुए थे जिनके ऊपर भी बर्फ़ की चादर चढ़ी हुई दिख रही थी। उन महलों के झरोखों से पीले रंग का प्रकाश दिख रहा था। ज़ाहिर था कि महलों के अंदर या तो लालटेनें जल रहीं थी फिर मशालें। चारो तरफ के पहाड़ों से सटे उन महलों के बीच काफी लम्बा गोल घेरा बना हुआ था जिसका फर्श पक्का था और उस फर्श पर खूबसूरत नक्काशी की हुई थी। मैं हैरत से फटी अपनी आँखों से एकटक उस मंज़र को देखे जा रहा था।

मैं जिस जगह पर खड़ा था वो समतल ज़मीन तो थी लेकिन नीचे दिख रहे उन महलों से काफी उँचाई पर थी। मेरे पीछे दूर दूर तक समतल ज़मीन थी जिस पर बर्फ़ की हल्की चादर बिछी हुई थी। एक तरफ विशाल जंगल दिख रहा था। मैं समझने की कोशिश कर रहा था कि ऐसी जगह पर आख़िर मैं पहुंच कैसे गया था? मुझे अपना पिछला कुछ भी याद नहीं था। सिर्फ इतना ही याद था कि मैं अपनी मेघा को खोज रहा था।

समय तो दिन का ही था लेकिन आसमान में कोहरे की गहरी धुंध छाई हुई थी इस लिए सूरज नहीं दिख रहा था। हालांकि ज़मीन पर पड़ी बर्फ़ की चादर की वजह से सब कुछ साफ़ नज़र आ रहा था। मैं मूर्खों की तरह कभी अपने पीछे दूर दूर तक खाली पड़ी ज़मीन को देखता तो कभी जंगल को तो कभी सामने नीचे की तरफ नज़र आ रहे उन अजीब से महलों को। फ़िज़ा में अजीब सा सन्नाटा छाया हुआ था।

मैं अपनी जगह पर अभी खड़ा ही था कि सहसा मेरे ज़हन में ख़याल उभरा कि हो सकता है कि मेघा नीचे नज़र आ रहे उन महलों में हो। उसके जिस्म पर राजकुमारियों जैसा लिबाश रहता था जो यही ज़ाहिर करता था कि वो कोई मामूली लड़की नहीं थी। अभी मैं सोच ही रहा था कि तभी बिजली की तरह मेरे ज़हन में मेघा की बात कौंधी जो उसने अपने बारे में मुझे बताया था। मेघा की असलियत का ख़याल आते ही पहले तो मेरे जिस्म में झुरझुरी हुई उसके बाद मैंने गहरी सांस ली।

नीचे नज़र आ रहे महलों की तरफ मैंने फिर से नज़र डाली और वहां पहुंचने का रास्ता खोजने लगा। जल्दी ही मुझे रास्ता नज़र आ गया जो कि महलों के बीच बने विशाल गोले के सामने की तरफ था किन्तु वहां पर यहाँ से सीधा नहीं जाया जा सकता था। मैं बाएं तरफ घूमा और सीधा चल दिया। मेरा अनुमान था कि दूर दूर तक नज़र आ रही समतल ज़मीन में ही कहीं से उन महलों की तरफ जाने का रास्ता होगा। मेरे ज़हन में तो जाने कितने ही ख़याल उभर रहे थे लेकिन फ़िज़ा में एकदम से ख़ामोशी छाई हुई थी। सामने नज़र आ रही ज़मीन में बर्फ़ की हल्की चादर बिछी हुई थी लेकिन कहीं पर भी ऐसा निशान नहीं था जो ये साबित करे कि यहाँ से कोई जीव गया हो या आया हो। ख़ैर मैं बढ़ता ही चला जा रहा था।

काफी देर चलने के बाद मैंने देखा कि आगे की तरफ ज़मीन ढलान में है। पहली बार मैंने फ़िज़ा में एक अजीब सा शोर होता सुना। शोर की तरफ जब मैंने ध्यान दिया तो मेरी नज़र सामने क़रीब दो सौ मीटर उँचाई में नज़र आ रहे एक जल प्रवाह पर पड़ी। ऊंचाई से पानी नीचे गिर रहा था और नीचे वही पानी एक नदी का रूप अख्तियार कर के बह रहा था। नदी के बीच और आस पास छोटी बड़ी चट्टानें नज़र आ रही थी। ज़मीन पर बिछी बर्फ़ की चादर उस नदी के किनारे तक फैली हुई थी। मैं चलते हुए नदी के पास आ गया।

नदी का पानी बेहद ही साफ़ था जिसके नीचे मौजूद छोटे बड़े पत्थर साफ़ दिख रहे थे। जो चट्टानें थोड़ी बड़ी थी उनसे टकरा कर नदी का पानी अलग ही नज़ारे के साथ बह रहा था। नदी को बड़ी ही आसानी से पार किया जा सकता था क्योंकि बड़े बड़े पत्थर और चट्टानों का सिखर पानी से ऊँचा था। हालांकि नदी की गहराई मुश्किल से घुटनों तक या फिर उससे थोड़ा ज़्यादा थी। जहां मैं खड़ा हो गया था वहां से बाएं तरफ क़रीब सौ मीटर की दूरी पर वो जल प्रवाह गिरता हुआ नज़र आ रहा था। कुछ देर अपनी जगह पर खड़ा मैं चारो तरफ देखता रहा उसके बाद नदी को पार करने का सोचा और आगे बढ़ चला।

बड़े बड़े पत्थरों पर पाँव रख कर मैंने नदी को पार किया और दूसरी तरफ पहुंच गया। इस तरफ आया तो देखा आगे की तरफ की ज़मीन अब उठान पर थी। मैं बढ़ता ही चला गया। थोड़ा ऊपर आया तो देखा इस तरफ पेड़ पौधे थे जिनके बीच से दो पगडंडियां जा रहीं थी। उन पगडंडियों को देख कर यही लगता था जैसे कोई वाहन उनमें से आता जाता है। पगडंडियां पेड़ों के बीच से ही थीं और आगे जाने कहां तक चली गईं थी। मैं मन ही मन ऊपर वाले को याद कर के उसी पगडण्डी पर बढ़ चला।

क़रीब आधे घंटे बाद उस पगडण्डी पर चलते हुए मैं उस छोर पर आया जहां पर शुरू में मैंने महल बने हुए देखे थे। सामने एक तरफ अजीब सा पहाड़ था जिसके बगल से वो पगडण्डी जा रही थी। पगडण्डी का रास्ता ही बता रहा था कि रास्ता ऊँचे पर्वत शिखर को काट कर बनाया गया रहा होगा। बर्फ़ की चादर इधर भी थी। मैं जब कुछ और पास पहुंचा तो ये देख कर चौंका कि जिन्हें अब तक मैं पहाड़ समझ रहा था असल में वो पहाड़ नहीं बल्कि मिट्टी में दबी बहुत ही विशाल पत्थर की चट्टानें थी जिनका रंग काला था। पगडण्डी वाला रास्ता दो चट्टानों के बीच से गुज़र रहा था। वो दोनों चट्टानें अपने सिर के भाग से आपस में जुडी हुईं थी।

मैं पगडण्डी में आगे बढ़ा और कुछ ही समय में उस जगह पर पहुंच गया जहां पर महल बने हुए थे। आस पास कोई नहीं दिख रहा था। फ़िज़ा में बड़ा ही अजीब सा सन्नाटा कायम था। एक मैं ही अकेला था जो ऐसी जगह पर भटक रहा था। मन में एक भय पैदा हो गया था और दिल की धड़कनें तेज़ हो ग‌ईं थी। मैं चलते हुए उसी गोले पर आ गया जिसे मैंने शुरू में उँचाई से देखा था। गोलाकार फर्श पर रुक कर मैं महलों के उन झरोखों की तरफ देखने लगा जहां से पीला प्रकाश दिख रहा था। मैं चकित आँखों से महलों की बनावट और उनमें मौजूद शानदार नक्काशी को देखे जा रहा था। महलों की दीवारें बेहद पुरानी सी नज़र आ रहीं थी। बड़े बड़े परकोटे और ऊपर बड़े बड़े गुंबद। काले पत्थरों की दीवारें और मोटे मोटे खम्भे। बड़ा ही रहस्यमय नज़ारा था। सहसा मेरी नज़र महल के एक बड़े से दरवाज़े पर पड़ी। दरवाज़ा बंद था किन्तु जाने क्या सोच कर मैं उस दरवाज़े की तरफ बढ़ चला। ऐसा लगा जैसे कोई अज्ञात शक्ति मुझे अपनी तरफ खींच रही थी।

दरवाज़े के पास पहुंच कर मैं रुका। कुछ देर जाने क्या सोचता रहा और फिर दोनों हाथों को बढ़ा कर उस विशाल दरवाज़े को अंदर की तरफ ज़ोर दे कर ढकेला। दरवाज़ा भयानक आवाज़ करता हुआ अंदर की तरफ खुलता चला गया। अंदर नीम अँधेरा नज़र आया मुझे। अभी मैं अंदर दाखिल होने के बारे में सोच ही रहा था कि तभी जैसे क़यामत आ गई।

अंदर की तरफ इतना तेज़ शोर हुआ कि मेरे कानों के पर्दे फट गए से प्रतीत हुए। मैंने जल्दी से हड़बड़ा कर अपने कानों को हाथों से ढँक लिया। मुझे समझ न आया कि अचानक से ये कैसा शोर होने लगा था। ऐसा लगा था जैसे अंदर कोई भारी और वजनी चीज़ कहीं से टकरा कर गिरी थी। शोर धीमा हुआ तो मैंने अपने कानों से हाथ हटाए और आगे की तरफ बढ़ चला। मेरा दिल बुरी तरह धड़क रहा था। ज़हन में हज़ारो तरह के विचार उभरने लगे थे।

अंदर आया तो एक बड़ा सा गोलाकार हाल नज़र आया। हाल के बहुत ऊपर छत पर एक विशाल झूमर लटक रहा था। चारो तरफ की दीवारों में बड़े बड़े मशाल जल रहे थे जिसकी रौशनी हर तरफ फैली हुई थी। सामने की तरफ बेहद चौड़ी सीढ़ियां थी जो ऊपर की तरफ जा कर दोनों तरफ की बालकनी की ओर मुड़ गईं थी। अभी मैं सीढ़ियों की तरफ देख ही रहा था कि तभी किसी नारी कंठ से निकली भयानक चीख को सुन कर मैं दहल गया। एकाएक वहां की फ़िज़ा में गहमा गहमी महसूस हुई और अगले ही पल मेरे बाएं तरफ ऊपर के माले से कोई तेज़ी से आया और हाल में बड़ी तेज़ आवाज़ के साथ गिरा। मैं छिटक कर उससे दूर हट गया था।

हाल में गिरने वाला शख़्स दो तीन पलटियां खाया था और फिर रुक गया था। उसके जिस्म पर काले रंग के किन्तु चमकीले कपड़े थे। अभी मैं उसे देख ही रहा था कि तभी मेरी नज़र उसके नीचे से निकल रहे गाढ़े काले रंग के तरल पदार्थ पर पड़ी। ऐसा लगा जैसे वो उसके जिस्म के किसी हिस्से से निकल रहा था और अब हाल में फैलता जा रहा था। मुझसे मात्र दो तीन क़दम की दूरी पर ही था वो इस लिए मैं हिम्मत कर के उसकी तरफ बढ़ा। चेहरे की तरफ आ कर मैं रुक गया और उसे ध्यान से देखने लगा। लम्बे लम्बे बाल उसके चेहरे पर बिखरे हुए थे जिससे मुझे उसका चेहरा नहीं दिख रहा था लेकिन इतना मैं समझ गया कि वो कोई लड़की थी।

जिस्म पर चुस्त काले लेदर के कपड़े। पैरों में काले रंग के ही लांग बूट जो उसके घुटनों तक दे। दोनों हाथों की दो दो उंगलियों में ऐसी अँगूठियां जिनमें काले और नीले रंग का पत्थर जड़ा हुआ था। उंगलियों के नाख़ून भी काले रंग के थे और थोड़ा बड़े हुए थे। हाथ ज़रूर उसका दूध की तरह गोरा दिख रहा था। कुछ पलों तक मैं उसे ऐसे ही निहारता रहा उसके बाद सहसा मैं झुका और एक हाथ से उसके चेहरे पर बिखरे बालों को बहुत ही सावधानी से हटाया। मेरा दिल इस वक़्त धाड़ धाड़ कर के बज रहा था।

चेहरे पर से जैसे ही बाल हटे तो मेरी नज़र उस लड़की के चेहरे पर पड़ी और मैं ये देख कर उछल पड़ा कि वो मेघा थी। मैं उस चेहरे को पलक झपकते ही पहचान गया था? भला मैं उस चेहरे को भूल भी कैसे सकता था जिसे मैं टूट टूट कर चाहता था और जिसके ख़यालों में मैं हर वक़्त खोया ही रहता था। मैंने झपट कर मेघा को सीधा किया तो ये देख कर मेरे हलक से चीख निकल गई कि उसके पेट पर बड़ा सा खंज़र घुसा हुआ था। वहीं से काले रंग का वो तरल पदार्थ निकल कर हाल के फर्श पर फैलता जा रहा था। इसका मतलब वो काला पदार्थ मेघा का खून था।

एक पल में ही मेरी हालत ख़राब हो गई। अपनी मेघा को इस हालत में देख कर मैं तड़प उठा और झपट कर उसे अपने सीने से लगा लिया। मेरी आँखों से ये सोच कर आंसू बहने लगे कि जिस मेघा को मैं इतना चाहता था और जिसकी खोज में मैं दर दर भटक रहा था वो मर चुकी है। दिल में बड़ा तेज़ दर्द उठा जो मेरी सहन शक्ति से बाहर हो गया और मैं मेघा का नाम ले कर पूरी शक्ति से चिल्लाया।

मैं एकदम से हड़बड़ा कर उठ बैठा था। मेरी आँखें खुल चुकीं थी। ठण्ड के मौसम में भी मैं पसीने से भींगा हुआ था। विचित्र सी हालत में मैं मूर्खों की तरफ बेड पर बैठा इधर उधर देखने लगा था। न वो महल दिख रहे थे, न ही वो बड़ा सा हाल और ना ही उस हाल में मेघा। खुली आंखों में बस कमरे की वो दीवारें दिख रहीं थी जो काले पत्थरों की थीं। एक तरफ की दीवार में गड़ी कील पर लालटेन टंगी हुई थी। एक तरफ मिट्टी का घड़ा रखा हुआ था और उसी घड़े के पास एक टेबल था। दूसरी तरफ लकड़ी का दरवाज़ा। मुझे एकदम से झटका लगा। मनो मस्तिष्क में जैसे विस्फोट सा हुआ और पलक झपकते ही ज़हन में ख़याल उभरा______'इसका मतलब मैं अभी तक ख़्वाब देख रहा था।'

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वो यकीनन ख़्वाब ही था और दुनिया भले ही ये कहे कि ख़्वाबों का सच से कोई वास्ता नहीं होता लेकिन दिल को भला कौन समझाए? वो तो यही समझ रहा था कि उसकी मेघा मर चुकी है। किसी ज़ालिम ने उसे बेदर्दी से मार डाला है। ये ऐसा एहसास था जो मेरे ज़हन को भी यही स्वीकार करने पर ज़ोर दे रहा था जिसकी वजह से मैं बेहद दुखी हो गया था। मैं बार बार ऊपर वाले से मेघा को सही सलामत रखने की दुआ करता जा रहा था। मेरी हालत पागलों जैसी हो गई थी। मुझे कुछ भी अच्छा नहीं लग रहा था। बस दहाड़ें मार मार कर रोने का मन कर रहा था। चारो तरफ मेघा को खोजते हुए चीख चीख कर उसको पुकारने का मन कर रहा था।

मैं झटके से बेड से उठा था और भागते हुए कमरे से बाहर आया था। बाहर पेड़ पौधों के अलावा कुछ नज़र न आया। कोहरे की धुंध उतनी नहीं थी जैसे तब थी जब मैं यहाँ आया था। दिन जैसा जान पड़ता था। जंगल की ज़मीन पर सूझे पत्ते बिखरे हुए थे। मैं तेज़ी से एक तरफ को भाग चला। आँखों से बहते आंसू रुकने का नाम ही नहीं ले रहे थे। ज़हन में बस एक ही ख़याल बार बार मुझे तड़पा देता था कि मेरी मेघा मर चुकी है। अगले ही पल मैं अपने इस ख़याल पर बिफरे हुए अंदाज़ में मन ही मन कह उठता कि ऐसे कैसे मर जाएगी वो? अभी तो मुझे उसकी सूरत देखनी है। अभी तो मुझे उसको अपने सीने से लगाना है ताकि मेरे दिल को शान्ति मिल जाए। वो इस तरह मुझे तड़पता छोड़ कर कैसे चली जाएगी?

यकीनन रात गुज़र गई थी और अब दिन का समय था। वातावरण में कोहरे की धुंध अब कुछ कम थी जिसकी वजह से आगे बढ़ने में मुझे न तो टोर्च की ज़रूरत थी और ना ही कोई परेशानी थी। मैं अपनी नाक के सीध भागता ही चला जा रहा था। मेरे ज़हन में ख़्वाब में दिखने वाले वो महल उभर रहे थे और अब मुझे हर कीमत पर उन महलों में पहुंचना था। मुझे यकीन सा हो गया था कि मेरी मेघा वहीं है और इस वक़्त उसे मेरी शख़्त ज़रूरत है।

"क्या हुआ, तुम इतने चुप क्यों हो?" मेरे ज़ख्म ठीक होने के बाद मेघा मुझे मेरे घर छोड़ने जा रही थी। मैं और वो पैदल ही जंगल में चल रहे थे। मैं अंदर से बेहद उदास और बेहद ही दुखी था। दुखी इस लिए क्योंकि आज के बाद मेघा से कभी मुलाक़ात नहीं होनी थी। उसके अनुसार हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे। रास्ते में जब मैं कुछ नहीं बोल रहा था तो मेघा ने मुझसे यही कहा था_____"देखो, हम दोनों के लिए बेहतर यही है कि हम अपनी अपनी दुनिया में खो जाएं। हमारा मिलना तो बस इत्तेफ़ाक़ की बात थी ध्रुव। मैं खुश हूं कि मुझे एक ऐसा इंसान मिला जिसने मुझे अपने खूबसूरत प्रेम का एहसास कराया। भले ही ये एहसास जीवन भर मुझे दर्द देता रहे लेकिन यकीन मानो इसका मुझे ज़रा भी रंज नहीं होगा। मैं तुम्हारे भगवान से दुआ करती हूं कि वो तुम्हें हमेशा खुश रखे।"

"जिन्हें प्रेम का रोग लग जाता है न।" मैंने मेघा की तरफ देखते हुए फीकी मुस्कान के साथ कहा था____"वो ऐसे बदनसीब बन जाते हैं कि फिर उनको किसी की दुआ भी नहीं लगती। उनका तो बस अपने प्रेमी या अपनी प्रेमिका की यादों में तड़पते रहने का मुकद्दर ही बन जाता है। मैं तो तुम्हारी असलियत जानने के बाद भी तुमसे उतना ही प्रेम करता हूं और अभी भी यही चाहता हूं कि हम दोनों एक साथ रहें लेकिन तुम जाने क्यों ऐसा नहीं चाहती?"

"तुमने एक बार कहा था न कि प्रेम को हासिल कर लेना ही प्रेम नहीं कहलाता।" मेघा ने कहा____"बल्कि प्रेम के लिए त्याग और बलिदान करना भी प्रेम कहलाता है। असल में प्रेम की महानता भी वही है जिसमें त्याग और बलिदान किया जाए। तुम्हारी इन बातों ने मुझे समझा दिया था कि मुझे क्या करना चाहिए। मैं अपनी ख़ुशी के लिए भला वो काम कैसे कर सकती थी जो तुम्हारे जीवन को संकट में डाल दे? प्रेम के नियम सिर्फ तुम पर ही तो लागू नहीं होते थे बल्कि वो तो हर उस शख़्स पर लागू होंगे जो किसी से प्रेम करता हो।"

"तुमसे जुदा होने के बाद मैं कौन सा ख़ुशी से जी सकूंगा?" मैंने कहा था____"इससे अच्छा तो यही था कि साथ रह कर हर उस चीज़ का सामना करते जो हमारे लिए परेशानी बन कर आती। अगर साथ में जी नहीं सकते थे तो कम से कम साथ में मर तो सकते ही थे।"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने सहसा रुक कर और मेरे चेहरे को अपने एक हाथ से सहला कर कहा था____"जब अंजाम अच्छे से पता हो तो जान बूझ कर वैसी ग़लती क्यों की जाए? मैं ये हर्गिज़ बरदास्त नहीं कर सकूंगी कि मेरी वजह से तुम्हें कुछ हो जाए। इसी लिए तो तुम्हारी तरह जीवन भर तड़पना मंज़ूर कर लिया है मैंने। सोचा था कि तुमसे ये सब नहीं बताऊंगी ताकि तुम मेरा ख़याल अपने दिल से निकाल कर जीवन में आगे बढ़ जाओ लेकिन तुमने मजबूर कर दिया मुझे।"

"तुम बेवजह ही ये सब सोच रही हो मेघा।" मैंने पहली बार मेघा के चेहरे को अपनी हथेलियों के बीच लिया था____"प्रेम करने वाले किसी अंजाम की परवाह नहीं करते बल्कि वो तो हर हाल में प्रेम करते हैं और अगर साथ जी नहीं सकते तो साथ में मर कर दुनिया में अमर हो जाते हैं।"

"तुम्हारी बातें मुझे कमजोर बनाने लगती हैं ध्रुव।" मेघा ने मेरी हथेलियों से अपना चेहरा छुड़ा कर कहा था____"तुम मेरी बिवसता को क्यों नहीं समझते? ये सब इतना आसान नहीं है जितना तुम समझते हो।"

"ठीक है।" मैंने गहरी सांस ले कर कहा था____"मैं तुम्हें किसी चीज़ के लिए बिवस करने का सोच भी नहीं सकता। मैं तो बस सम्भावनाओं से अवगत करा रहा था। अगर तुम इसके बावजूद यही चाहती हो तो ठीक है।"

मेरी बात सुन कर मेघा अपलक मुझे देखने लगी थी। शायद वो समझने की कोशिश कर रही थी कि उसकी बातों से मुझे बुरा लगा है या मुझे ठेस पहुंची है। कुछ पल देखने के बाद वो आगे बढ़ चली तो मैं भी आगे बढ़ चला।

"एक वादा करो मुझसे।" कुछ देर की ख़ामोशी के बाद मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए गंभीरता से कहा_____"आज के बाद खुद को कभी दुखी नहीं रखोगे और ना ही मुझे खोजने की कोशिश करोगे।"

"मेरी जान मांग लो।" मेरी आँखों में आंसू तैरने लगे थे____"लेकिन ऐसा वादा नहीं कर सकता जो मेरे अख्तियार में ही नहीं है।"
"अगर तुम खुद को दुखी रखोगे तो मैं भी ख़ुशी से जी नहीं पाऊंगी।" मेघा ने भारी गले से कहा था_____"बस ये समझ लो कि जैसा हाल तुम्हारा होगा वैसा ही हाल यहाँ मेरा भी होगा।"

"इसका तो एक ही उपाय है फिर।" मैंने रुक कर उससे कहा था____"और वो ये कि मेरे दिलो दिमाग़ से अपनी यादें मिटा दो। जब तुम्हारे बारे में मुझे कुछ याद ही नहीं रहेगा तो फिर भला कैसे मैं ऐसे हाल से गुज़रुंगा?"

"हां ये कर सकती हूं मैं।" मेघा ने अजीब भाव से कहा था।
"लेकिन मेरी एक शर्त है।" मैंने उसकी आँखों में झांकते हुए कहा था____"मेरे दिलो दिमाग़ से अपनी यादें मिटाने के बाद तुम्हें भी अपने दिलो दिमाग़ से मेरी सब यादें मिटानी होंगी।"

"नहीं नहीं, मैं ऐसा नहीं करुंगी।" मेघा एकदम से दुखी लहजे से बोल पड़ी थी____"तुम्हारे प्रेम की खूबसूरत यादें और उसका एहसास मैं मरते दम तक सम्हाल के रखना चाहती हूं।"

"तो फिर मेरे साथ ही ये नाइंसाफ़ी क्यों?" मैंने मेघा के दोनों कन्धों पर अपने हाथ रख कर कहा था____"मुझे तिल तिल कर मरना मंजूर है लेकिन तुम्हारी यादों को अपने दिलो दिमाग़ से मिटाना मंजूर नहीं है। मेरे पास तुम्हारी इन यादों के अलावा कोई भी अनमोल दौलत नहीं है। क्या तुम मुझसे मेरी ये दौलत छीन लेना चाहती हो?"

"नहीं नहीं, मैं ऐसा सोच भी नहीं सकती।" मेघा ने बुरी तरह तड़प कर कहा और झपट कर मेरे सीने से लिपट गई। ये पहली बार था जब वो मेरे सीने से लिपटी थी। उसके यूं लिपट जाने पर मेरे दिल को बड़ा सुकून मिला। अपने दोनों हाथ आगे कर के मैंने भी उसे अपने सीने में भींच लिया। ऐसा लगा जैसे सब कुछ मिल गया हो मुझे। मन ही मन ऊपर वाले से फ़रियाद की कि इस वक़्त को अब यहीं पर ठहर जाने दो।

अभी एक मिनट भी नहीं हुआ था कि अचानक मेघा मुझसे अलग हो कर दूर खड़ी हो गई। उसके यूं अलग हो जाने पर मुझे पहले तो हैरानी हुई किन्तु फिर अनायास ही मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई और साथ ही दिल तड़प कर रह गया।

मेघा की साँसें थोड़ी भारी हो गईं थी। कुछ पलों के लिए उसका गोरा चेहरा अजीब सा दिखा किन्तु फिर सामान्य हो गया। कुछ देर की ख़ामोशी के बाद वो पगडण्डी पर चलने लगी तो मैं भी उसके बगल से चलने लगा। जल्द ही हम दोनों जंगल से निकल कर मुख्य सड़क पर आ ग‌ए। सुबह अभी हुई नहीं थी किन्तु चांदनी थी इस लिए कोहरे की धुंध में भी हल्का उजाला सा प्रतीत होता था। मैं अभी मुख्य सड़क के दोनों तरफ बारी बारी से देख ही रहा था कि तभी मेघा पर नज़र पड़ते ही मैं चौंका। वो मेरी मोटर साइकिल के साथ खड़ी थी।

"ये तुम्हारे पास कहां से आ गई?" मैंने हैरानी से उसकी तरफ देखते हुए पूछा था।
"उस दिन जब हादसा हुआ था और तुम बेहोश हो गए थे।" मेघा कह रही थी____"तो मैंने इसे सड़क से दूर ला कर यहाँ झाड़ियों में छुपा दिया था। अब यहाँ से तुम्हें इसी मोटर साइकिल से जाना होगा।"

"तो क्या तुम मेरे साथ नहीं चलोगी?" मैंने धड़कते दिल से पूछा____"तुमने तो कहा था कि मुझे सही सलामत मेरे घर तक पहुचाओगी।"
"मैं तुम्हारे घर तक नहीं जा सकती ध्रुव।" मेघा ने गंभीरता से कहा था____"यहां से अब तुम्हें किसी भी तरह का ख़तरा नहीं है। इस लिए तुम इस मोटर साइकिल के द्वारा आराम से अपने घर जा सकते हो।"

"क्या सच में तुम ऐसा ही चाहती हो मेघा?" मैंने आख़िरी उम्मीद से कहा था_____"एक बार फिर से सोच लो। ग़मे-इश्क़ वो अज़ाब है जो हम दोनों को चैन से जीने नहीं देगा। मुझे किसी बात की परवाह नहीं है, परवाह है तो सिर्फ हमारे प्रेम की। मैं तुम्हारे लिए हर कीमत देने को तैयार हूं।"

"काश! ऐसा संभव होता ध्रुव।" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए लरज़ते स्वर में कहा था____"काश! मेरे लिए ये सब इतना आसान होता और काश मेरे पास ऐसी मजबूरियां न होती। ख़ैर, हमेशा खुश रहना ध्रुव। मेरे लिए अपना जीवन बर्बाद मत करना। अच्छा अब तुम जाओ, मैं भी जा रही हूं....अलविदा।"

शायद उसे पता था कि उसके ऐसा कहने पर मैं फिर से कुछ ऐसा कहूंगा जिससे वो जज़्बातों में बह कर कमज़ोर पड़ जाएगी। इसी लिए उसने इतना कहा और फिर बिना मेरी कोई बात सुने वो तेज़ी से जंगल की तरफ लगभग भागते हुए चली गई। मैं ठगा सा उसे देखता रह गया था। ऐसा लगा जैसे उसके चले जाने से मेरी दुनिया ही उजड़ गई हो। जी चाहा कि मैं भी उसके पीछे भाग जाऊं और अगले ही पल मैं अपने दिल के हाथों मजबूर हो कर उसके पीछे दौड़ भी पड़ा। मैं जितना तेज़ दौड़ सकता था उतना तेज़ दौड़ता हुआ जंगल की तरफ भागा। कुछ ही देर में मैं जंगल में दाखिल हो गया। मैंने चारो तरफ दूर दूर तक नज़र घुमाई लेकिन मेघा कहीं नज़र न आई। मैंने पूरी शक्ति से चिल्ला चिल्ला कर उसे पुकारा भी लेकिन कोई फ़ायदा न हुआ। ज़हन में बस एक ही ख़याल उभरा कि मेरी मेघा हमेशा के लिए मुझे छोड़ कर जा चुकी है। इस एहसास के साथ ही मानो सारा आसमान मेरे सिर पर आ गिरा और मैं वहीं ज़मीन पर घुटनों के बल गिर कर ज़ार ज़ार रो पड़ा।


चला गया मेरे दिल को उदासियां दे कर।
मैं हार गया उसे इश्क़ की दुहाइयां दे कर।।

दिल की दुनिया अब कहां आबाद होगी,
चला गया इक तूफ़ां उसे वीनाइयां दे कर।।

वो भी न ले गया दर्द-ए-दिले-शिफ़ा कोई,
मुझे भी न गया दिल की दवाईयां दे कर।।

क्या कहूं उसको के जिसने ऐसे मरहले में,
दर्द से भर दिया दामन जुदाईयां दे कर।।

जिस तरह मुझको गया है छोड़ कर कोई,
यूं न जाए कोई किसी को तन्हाइयां दे कर।।


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:bow3:
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Update - 09
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मैं बेतहाशा भागता ही चला जा रहा था। दिलो दिमाग़ में आंधी तूफ़ान मचा हुआ था। रह रह कर आँखों के सामने मेघा का चेहरा उभर आता और ज़हन में उसके ख़याल जिसकी वजह से मेरी आँखों से आंसू छलक पड़ते थे। मुझे नहीं पता कि मैं कब तक यूं ही भागता रहा। रुका तब जब एकाएक मैं जंगल से बाहर आ गया।

जंगल के बाहर आ कर रुक गया था मैं। बुरी तरह हांफ रहा था, ऐसा लगता था जैसे साँसें मेरे काबू में ही न आएंगी। वही हाल दिल की धड़कनों का भी था। मैं घुटनों के बल वहीं गिर कर अपनी साँसों को नियंत्रित करने लगा। नज़र दूर दूर तक फैले हुए खाली मैदान पर घूमने लगी थी। कोहरे की धुंध ज़्यादा नहीं थी क्योंकि सूर्य का हल्का प्रकाश धुंध से छंट कर ज़मीन पर आ रहा था। मेरे पीछे तरफ विशाल जंगल था जिसकी चौड़ाई का कोई अंत नहीं दिख रहा था जबकि सामने तरफ खाली मैदान था। खाली मैदान में हरी हरी घांस तो थी लेकिन कहीं कहीं बर्फ़ की ऐसी चादर भी पड़ी हुई दिख रही थी जो उस खाली मैदान की सुंदरता को चार चाँद लगा रही थी।

मेरी नज़र चारो तरफ घूमते हुए एक जगह जा कर ठहर गई। मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे सामने कुछ दूरी पर ज़मीन का किनारा था और उसके आगे ज़मीन नहीं थी। मेरी साँसें अब काफी हद तक नियंत्रित हो गईं थी इस लिए मैं फ़ौरन ही उठा और ज़मीन के उस छोर की तरफ तेज़ी बढ़ता चला गया। जैसे जैसे मैं क़रीब पहुंच रहा था वैसे वैसे उधर का मंज़र साफ़ होता जा रहा था। कुछ समय बाद जब मैं उस छोर पर पहुंचा तो देखा सच में उस जगह पर ज़मीन ख़त्म थी। हालांकि ज़मीन तो आगे भी थी लेकिन इधर की तरह समतल नहीं थी बल्कि एकदम से गहराई पर थी। मैं किनारे पर खड़ा बिल्कुल अपने नीचे देखने लगा था और अगले ही पल मैं ये देख कर चौंका कि नीचे गहराई में वैसे ही महल बने हुए थे जिन्हें मैंने ख़्वाब में देखा था। उन महलों को देखते ही मुझे ये सोच कर झटका सा लगा कि अगर इन महलों का वजूद सच है तो फिर ख़्वाब में मैंने जो कुछ देखा था वो भी सच ही होगा। इस एहसास ने मेरी आत्मा तक को झकझोर कर रख दिया। मैं ये सोच कर तड़पने लगा कि मेरी मेघा सच में मर चुकी है। पलक झपकते ही मेरी हालत ख़राब हो गई और मैं एक बार फिर से फूट फूट कर रोने लगा।

अचानक ही मुझे झटका लगा और मेरे चेहरे पर बेहद ही शख़्त भाव उभर आए। ज़हन में ख़याल उभरा कि अगर मेरी मेघा ही नहीं रही तो अब मैं भी जी कर क्या करुंगा? एक वही तो थी जिसके लिए जीने का मकसद मिला था मुझे और अब जब वही नहीं रही तो मैं किसके लिए और क्यों ज़िंदा रहूं? जहां मेरी मेघा है मुझे भी वहां जल्दी से पहुंच जाना चाहिए। इस ख़याल के साथ ही मैं उस गहरी खाई में छलांग लगाने के लिए तैयार हो गया। असहनीय पीड़ा से मेरी आँखें आंसू बहाए जा रहीं थी। मैंने आँखें बंद कर के मेघा को याद किया और उससे कहने लगा_____'मैं आ रहा हूं मेघा। अब तुम्हें मेरे बिना दुःख दर्द सहने की कोई ज़रूरत नहीं है। तुम्हारा ध्रुव तुम्हारे पास आ रहा है। अब दुनिया की कोई भी ताक़त हमें एक होने से नहीं रोक पाएगी। मैं आ रहा हूं मेघा। मैं अब तुम्हारी जुदाई का दर्द नहीं सह सकता।'

अभी मैं मन ही मन ये सब मेघा से कह ही रहा था कि तभी ज़हन में एक सवाल उभर आया____किसने मेरी मेघा को इतनी बेदर्दी से मारा होगा? जिसने भी मेरी मेघा की जान ली है उसे इस दुनिया में जीने का कोई अधिकार नहीं है। मेरे दिल को तब तक सुकून नहीं मिलेगा जब तक मैं अपनी मेघा के हत्यारे को मार नहीं डालूंगा।

ज़हन में उभरे इन ख़यालों के साथ ही मेरा चेहरा पत्थर की तरह शख़्त हो गया और मुट्ठिया कस ग‌ईं। मैंने जान देने का इरादा मुल्तवी किया और अपने बाएं तरफ मुड़ कर चल दिया। मुझे अच्छी तरह पता था कि अब मुझे कहां जाना है और किस तरह से जाना है। गहराई में दिखे वो महल इस बात का सबूत थे कि मेरा ख़्वाब भी सच ही था। यानि मेरी मेघा उन्हीं महलों के अंदर हाल में बेजान सी पड़ी होगी।

मुझसे रहा न गया तो मैं एकदम से दौड़ते हुए आगे बढ़ने लगा। मेरा दिल कर रहा था कि मैं कितना जल्दी उन महलों में पहुंच जाऊं और मेघा को अपने कलेजे से लगा कर उसे अपने अंदर समा लूं। जिस किसी ने भी उसकी हत्या की है उसे ऐसी भयानक मौत दूं कि ऊपर वाले का भी कलेजा दहल जाए।

मुझे अपनी हालत का ज़रा भी एहसास नहीं था। भागते भागते मेरे पाँव जवाब देने लगे थे और मेरी साँसें उखड़ने लगीं थी लेकिन मैं इसके बावजूद दौड़ता ही चला जा रहा था। आँखों के सामने ख़्वाब में देखा हुआ बस एक वही मंज़र उभर आता था जिसमें मैं मेघा को अपने सीने से लगाए रो रहा था और पूरी शक्ति से चीखते हुए उसका नाम ले कर उसे पुकार रहा था। तभी किसी पत्थर से मेरा पैर टकराया और मैं किसी फुटबॉल की तरफ उछल कर हवा में तैरते हुए ज़मीन पर पेट के बल गिरा। आगे ढलान थी जिसकी वजह से मैं फिसलता हुआ बड़ी तेज़ी से जा कर किसी बड़े पत्थर से टकरा गया। चोट बड़ी तेज़ लगी थी जिसके चलते आँखों के सामने पलक झपकते ही अँधेरा छा गया और मैं वहीं पर अचेत होता चला गया।

✮✮✮

"ये हम कहां आ गए हैं मेघा?" मैंने चारो तरफ दूर दूर तक दिख रही खूबसूरत वादियों और रंग बिरंगे फूलों को देखते हुए मेघा से पूछा____"ये कौन सी जगह है?"

"क्या तुम्हें यहाँ अच्छा नहीं लग रहा ध्रुव?" मेघा ने मुस्कुराते हुए मेरी तरफ देख कर कहा___"क्या तुम्हें इस सबको देख कर कुछ महसूस नहीं हो रहा?"

"अच्छा तो बहुत लग रहा है मेघा।" मैंने एक बार फिर से चारो तरफ के खूबसूरत नज़ारे को देखते हुए कहा____"और ये भी मन करता है कि यहाँ से अब हम कहीं न जाएं लेकिन मुझे अब भी समझ में नहीं आ रहा कि तुम मुझे यहाँ क्यों ले कर आई हो? आख़िर ये कौन सी जगह है?"

"तुम भी न ध्रुव बड़े ही बुद्धू हो।" मेघा ने बड़ी शेखी से मुस्कुराते हुए कहा____"अरे! बाबा कुछ तो समझो कि ये कौन सी जगह हो सकती है।"

"तुम हमेशा यूं पहेलियों में बात क्यों किया करती हो?" मैंने बुरा सा मुँह बना के कहा____"तुम जानती हो न कि मुझे पहेलियों वाली बातें कभी समझ में नहीं आती हैं। अब साफ़ साफ़ बताओ न कि ये कौन सी जगह है और तुम मुझे यहाँ क्यों ले कर आई हो?"

"अरे! बुद्धू राम इतना भी नहीं समझे कि ये कौन सी जगह हो सकती है।" मेघा ने प्यार से मेरे दाएं गाल को हल्के से खींच कर कहा_____"अरे! ये वो जगह है जहां पर हम अपने पवित्र प्रेम की दुनिया बसाएंगे। क्या तुम्हें इस जगह को देख कर नहीं लगता कि यहीं पर हमें अपने प्रेम का संसार बसाना चाहिए?"

"क्या??? सच में???" मैं मेघा की बातें सुन कर ख़ुशी से झूम उठा____"ओह! मेघा क्या सच में ऐसा हो सकता है?"
"तुम न सच में बुद्धू हो।" मेघा ने खिलखिला कर हंसने के बाद कहा____"अरे! मेरे भोले सनम हम सच में यहीं पर अपने प्रेम की दुनिया बसाएंगे। इसी लिए तो मैं तुम्हें इस खूबसूरत जगह पर लाई हूं। तुम्हारी तरह मैं भी तो यही चाहती हूं कि हमारे प्रेम की एक ऐसी दुनिया हो जहां पर हमारे सिवा दूसरा कोई न हो। हमारे प्रेम की उस दुनिया में ना तो कोई दुःख हो और ना ही कोई परेशानी हो। हर जगह एक ऐसा मंज़र हो जो हम दोनों को सिर्फ और सिर्फ खुशियां दे और हम दोनों उन खुशियों में डूबे रहें।"

मेघा की ये खूबसूरत बातें सुन कर मैं मंत्रमुग्ध हो गया। मेरा जी चाहा कि जिन होठों से उसने ऐसी खूबसूरत बातें की थी उन्हें चूम लूं। मेरा मन मयूर एकदम से मचल उठा। मैं आगे बढ़ा और मेघा के चेहरे को अपनी दोनों हथेलियों के बीच ले कर हल्के से उसके गुलाब की पंखुड़ियों जैसे होठों पर अपने होठ रख दिए। मेरे ऐसा करते ही मेघा एकदम से शांत पड़ गई। ऐसा लगा जैसे प्रकृति की हर चीज़ अपनी जगह पर रुक गई हो। मेघा के होठों को चूमने का एक अलग ही सुखद एहसास हो रहा था और यकीनन वो भी ऐसा ही एहसास कर रही थी।

हम दोनों एक झटके से अलग हुए। ऐसा लगा जैसे किसी ने हमें अंजानी दुनिया से ला कर हक़ीक़त की दुनिया में पटक दिया हो। हम दोनों की नज़र एक दूसरे से मिली तो हम दोनों ही शरमा ग‌ए। मेघा का गोरा चेहरा एकदम से सुर्ख पड़ गया था और उसके होठों पर शर्मो हया में घुली मुस्कान थिरकने लगी थी।

"तुम बहुत गंदे हो।" मेघा ने शरमा कर किन्तु उसी थिरकती मुस्कान के साथ कहा____"कोई ऐसा भी करता है क्या?"
"कोई क्या करता है इससे मुझे कोई मतलब नहीं है मेघा।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा_____"मुझे तो बस इस बात से मतलब है कि मेरे कुछ करने से मेरी मेघा पर बुरा असर न पड़े। तुम्हारी खूबसूरत बातें सुन कर मेरा दिल इतना ज़्यादा ख़ुशी से झूम उठा था कि वो पलक झपकते ही जज़्बातों में बह गया।"

"अच्छा जी।" मेघा मुस्कुराते हुए मेरे पास आई____"बड़ा जल्दी तुम्हारा दिल जज़्बातों में बह गया। अब अगर मैं भी बह जाऊं तो?"
"तो क्या? शौक से बह जाओ।" मैंने उसकी नीली गहरी आँखों में झांकते हुए मुस्कुरा कर कहा____"हम दोनों अपने प्रेम में बह ही तो जाना चाहते हैं।"

"हां, लेकिन उससे पहले हमें कुछ ज़रूरी काम भी करने हैं मेरे भोले सनम।" मेघा ने मेरे चेहरे को प्यार से सहलाते हुए कहा____"हमे अपने लिए इस खूबसूरत जगह पर एक अच्छा सा घर बनाना है। क्या हम बिना घर के यहाँ रहेंगे?"

"ये खूबसूरत वादियां हमारा घर ही तो है।" मैंने चारो तरफ देखते हुए कहा_____"अब और क्या चाहिए?"
"फिर भी लोक मर्यादा के लिए कोई ऐसा घर तो होना ही चाहिए जिसे सच मुच का घर कहा जा सके।" मेघा ने कहा____"और जिसके अंदर हम लोक मर्यादा के अनुसार अपना जीवन गुज़ारें।"

"ठीक है।" मैंने कहा____"अगर तुम ऐसा सोचती हो तो ऐसा ही करते हैं।"
"ये हुई न बात।" मेघा ने मुस्कुरा कर कहा_____"अब आओ उस तरफ चलते हैं। उस तरफ यहाँ से ऊँचा स्थान है। मुझे लगता है वहीं पर हमें अपने प्रेम का आशियाना बनाना चाहिए।"

मैंने मेघा की बात पर हाँ में सिर हिलाया और उसके पीछे चल पड़ा। चारो तरफ खूबसूरत वादियां थी। हरी भरी ज़मीन और सुन्दर सुन्दर पेड़ पौधे। जहां तक नज़र जाती थी वहां तक हरी हरी घांस थी। चारो तरफ पहाड़ थे। एक तरफ कोई सुन्दर नदी बहती दिख रही थी। दाहिने तरफ उँचाई से गिरता हुआ झरने का खूबसूरत जल प्रवाह। हरी हरी घांस के बीच रंग बिरंगे फूल ऐसा नज़ारा पेश कर रहे थे कि बस देखते ही रहने का मन करे। इसके पहले न तो मैंने कभी ऐसा खूबसूरत नज़ारा देखा था और ना ही इतना खुश हुआ था। आँखों के सामने ऐसी खूबसूरती को देख कर मैं अपने नसीब पर गर्व करने लगा था। कुछ पल के लिए ज़हन में ये ख़याल भी आ जाता था कि कहीं ये सब कोई ख़्वाब तो नहीं? अगर ये ख़्वाब ही था तो मैं ऊपर वाले से दुआ करना चाहूंगा कि वो मुझे ऐसे ख़्वाब में ही जीने दे।

"ये जगह ठीक रहेगी न ध्रुव?" ऊंचाई पर पहुंचते ही मेघा ने मेरी तरफ पलट कर पूछा_____"यहां से दूर दूर तक प्रकृति की खूबसूरती दिख रही है।"

"प्रकृति की सबसे बड़ी खूबसूरती तो तुम हो मेघा।" मैंने सहसा गंभीर भाव से कहा____"मुझे यकीन ही नहीं हो रहा कि मुझे तुम मिल गई हो और अब मैं तुम्हारे साथ अपना जीवन जीने वाला हूं। मुझे सच सच बताओ मेघा कहीं ये कोई ख़्वाब तो नहीं है? देखो, मुझे अपने नसीब पर ज़रा भी भरोसा नहीं है। बचपन से ले कर अब तक मैंने सिर्फ और सिर्फ दुःख दर्द ही सहे हैं और अपने नसीब से हमेशा ही मेरा छत्तीस का आंकड़ा रहा है। इस लिए मुझे सच सच बताओ क्या मैं कोई ख़्वाब देख रहा हूं?"

"नहीं मेरे ध्रुव।" मेघा ने तड़प कर मुझे अपने सीने से लगा लिया_____"ये कोई ख़्वाब नहीं है, बल्कि ये वो हक़ीक़त है जिसे तुम अपनी खुली आँखों से देख रहे हो। तुम सोच भी कैसे सकते हो कि मैं अपने ध्रुव के साथ ऐसा मज़ाक करुँगी?"

"हां, मैं जानता हूं।" मैंने दुखी भाव से कहा____"मुझे मेरी मेघा पर पूर्ण भरोसा है कि वो मुझे इस तरह का कोई दुःख नहीं देगी लेकिन....।"
"लेकिन क्या ध्रुव?" मेघा ने मेरे सिर के बालों पर हाथ फेरते हुए पूछा।

"लेकिन अगर ये सच में कोई ख़्वाब ही है तो मेरी तुमसे प्रार्थना है कि इसे ख़्वाब ही रहने देना।" मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े____"मुझे नींद से मत जगाना। मैंने तुम्हें पाने के लिए बहुत दुःख सहे हैं। अब मैं तुम्हें किसी भी कीमत पर खोना नहीं चाहता। अब अगर तुम मुझसे जुदा हुई तो तुम्हारी क़सम मैं एक पल भी जी नहीं पाऊंगा।"

"तो क्या मैं तुम्हारे बिना जी पाऊंगी?" मेघा ने मुझे और भी ज़ोरों से अपने सीने में भींच लिया, फिर भारी गले से बोली_____"नहीं मेरे ध्रुव, मैं भी अब तुम्हारे बिना जी नहीं पाऊंगी। इसी लिए तो सब कुछ छोड़ कर तुम्हारे पास आ गई हूं। मेरा अब इस दुनिया में तुम्हारे अलावा किसी से कोई रिश्ता नहीं रहा। मेरा मन करता है कि मैं अपने ध्रुव को हर वो ख़ुशी दूं जिसके लिए अब तक वो तरसता रहा है।"

"क्या तुम सच कह रही हो?" मैं एकदम से उससे अलग हो कर बोल पड़ा____"इसका मतलब ये सच में कोई ख़्वाब नहीं है, है ना?"
"हां ध्रुव।" मेघा ने मेरे चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर प्यार से कहा____"ये कोई ख़्वाब नहीं है। तुम्हारी ये मेघा सच में तुम्हारे सामने है और अब तुम्हें छोड़ कर कहीं नहीं जाएगी।"

मेघा की बात सुन कर मैं किसी छोटे बच्चे की तरह खुश हो गया। मैंने देखा मेघा की आँखों से आंसू बहे थे इस लिए मैंने जल्दी से अपना हाथ बढ़ा कर उसके आंसू पोंछे। मेघा ने भी अपने हाथों से मेरे आंसू पोंछे। मैं अब ये सोच कर मुतमईन हो गया कि अब ये कोई ख़्वाब नहीं है बल्कि सच में मेघा मेरे साथ ही है।

हम दोनों जब सामान्य हो गए तो मेघा मेरा हाथ पकड़ कर पास ही पड़े एक पत्थर पर बैठा दिया, जबकि वो पलटी और आँखें बंद कर के अपने दोनों हाथों को हवा में उठा लिया। उसकी दोनों हथेलियां सामने की तरफ थीं। मुझे पहले तो कुछ समझ न आया किन्तु अगले कुछ ही पलों में मैं ये देख कर आश्चर्य चकित रह गया कि मेघा की दोनों हथेलियों के बीच से गाढ़े सफ़ेद रंग का धुआँ निकलने लगा जो आगे की तरफ ज़मीन पर जा कर टकराने लगा। कुछ ही पलों में ज़मीन पर बहुत ज़्यादा धुआँ एकत्रित हो कर ऊपर की तरफ उठने लगा। दो मिनट के अंदर ही जब वो इकठ्ठा हुआ धुआँ ग़ायब हुआ तो मेरी आँखों के सामने एक बेहद ही सुन्दर महल बना हुआ नज़र आया। वो महल ना ही ज़्यादा छोटा था और ना ही ज़्यादा बड़ा।

"देखो ध्रुव।" मेघा की आवाज़ पर मेरी तन्द्रा टूटी तो मैंने चौंक कर उसकी तरफ देखा, जबकि उसने मुस्कुराते हुए कहा_____"ये है हमारे प्रेम का आशियाना। कैसा लगा तुम्हें?"

"बहुत ही सुन्दर है।" मैंने महल की तरफ देखते हुए कहा____"मैं तो ऐसे महल के बारे में कल्पना भी नहीं कर सकता था लेकिन....।"
"लेकिन क्या ध्रुव?" मेघा के चेहरे पर शंकित भाव उभरे____"क्या अभी कोई कमी है इस महल में?"

"नहीं, कमी तो कोई नहीं है।" मैंने कहा____"लेकिन मैं ये सोच रहा था कि हम किसी महल में नहीं बल्कि किसी साधारण से दिखने वाले घर में रहते।"

"तुम अगर ऐसा चाहते हो तो मैं इसकी जगह पर साधारण सा दिखने वाला घर ही बना दूंगी।" मेघा ने कहा_____"लेकिन मैंने महल इस लिए बनाया क्योंकि मैं चाहती हूं कि मेरे ध्रुव को हर वो सुख मिले जैसे सुख की उसने कल्पना भी न की हो। तुम मेरे सब कुछ हो और मैं चाहती हूं कि तुम किसी राजा महाराजा की तरह मेरे दिल के साथ साथ इस महल में भी मेरे साथ राज करो।"

"तुम्हारी ख़ुशी के लिए मैं इस तरह भी रहने को तैयार हूं मेघा।" मैंने कहा_____"लेकिन मेरी ख़्वाहिश ये थी कि हम अपनी मेहनत से कोई साधारण सा घर बनाएं और साधारण इंसान की तरह ही यहाँ पर रहते हुए अपना जीवन बसर करें। मैं यहाँ की ज़मीन पर मेहनत कर के खेती करूं और तुम घर के अंदर घर के काम करो, बिल्कुल किसी साधारण इंसानों की तरह।"

"तुम सच में बहुत अच्छे हो ध्रुव।" मेघा ने मेरे चेहरे को सहलाते हुए कहा____"और मुझे बहुत ख़ुशी हुई तुम्हारी ये बातें सुन कर। मैं भी तुम्हारे साथ वैसे ही रहना चाहती हूं जैसे कोई साधारण औरत अपने पति के साथ रहती है। ओह! ध्रुव तुमने ये सब कह कर मेरे मन में एक अलग ही ख़ुशी भर दी है। मैं भी साधारण इंसान की तरह तुम्हारे साथ जीवन गुज़ारना चाहती हूं।"

"तो फिर इस महल को गायब कर दो मेघा।" मैंने कहा_____"और कोई साधारण सा लकड़ी का बना हुआ घर बना दो। उसके बाद हम अपनी मेहनत से यहाँ की ज़मीन को खेती करने लायक बनाएंगे। उस ज़मीन से हम फसल उगाएंगे और उसी से अपना जीवन गुज़ारेंगे।"

"जैसी मेरे ध्रुव की इच्छा।" मेघा ने कहा और पलट कर उसने फिर से अपने दोनों हाथ हवा में लहराए जिससे उसकी दोनों हथेलियों से गाढ़ा सफ़ेद धुआँ निकलने लगा। उस धुएं ने पूरे महल को ढँक दिया और जब धुआँ गायब हुआ तो महल की जगह लकड़ी का बिल्कुल वैसा ही घर नज़र आया जैसे घर की मैंने इच्छा ज़ाहिर की थी।

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बाद मुद्दत के बहार आई है ज़िन्दगी में।
मर न जाऊं कहीं ऐ दोस्त इस खुशी में।।

छुपा ले मुझको आंखों में आंसू की तरह,
बड़े अज़ाब सहे दिल ने तेरी बेरुखी में।‌।

दुवा करो के फिर कोई ग़म पास न आए,
बहुत हुआ जीना मरना इस ज़िन्दगी में।।

याद आए तो कांप उठता है बदन ऐ दोस्त
ऐसे गुज़री है शब-ए-फ़िराक़ बेखुदी में।।

अब कोई शिकवा कोई ग़म नहीं मेरे ख़ुदा,
विसाले-यार हुआ मुझको तेरी बंदगी में।।

✮✮✮
 
Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Update - 10
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किसी चीज़ के द्वारा मुझे तेज़ दर्द हुआ तो एक झटके से मेरी आँखें खुल ग‌ईं। पहले तो मुझे कुछ समझ न आया किन्तु कुछ समय बाद जब ज़हन सक्रिय हुआ तो मुझे तीव्र झटका लगा। मेरी आँखों के सामने एक अलग ही मंज़र नज़र आ रहा था। मैंने चारो तरफ नज़र घुमा घुमा कर देखा और खुद की हालत का जब मुझे एहसास हुआ तो मेरे पैरों तले से ज़मीन गायब हो गई। हालांकि ज़मीन तो पहले ही गायब थी क्योंकि मैं ज़मीन पर था ही नहीं। मेरा पूरा जिस्म मोटी मोटी ज़ंजीरों में बंधा हुआ था और मैं ज़मीन से ऊपर हवा में सीधा लटक रहा था। मेरे सामने मेरी ही तरह ज़ंजीरों में बंधी मेघा लटक रही थी। उसकी हालत मेरी ही तरह ख़राब थी। उसे इस हालत में देख कर मेरा दिल मेरी आत्मा तक थरथरा उठी। इस वक़्त उसकी आँखें बंद थीं और उसका सिर नीचे की तरफ झुका हुआ था। जिस्म पर वही राजकुमारियों जैसा लिबास था जैसा मैंने दो साल पहले उसे पहने देखा था।

खुद को और अपनी जान से भी ज़्यादा प्यारी मेघा को इस हाल में देख कर मैं स्तब्ध रह गया था। कहां इसके पहले मैं उसके साथ किन्हीं खूबसूरत वादियो में हमारे प्रेम की दुनिया बसाने जा रहा था और कहां इस वक़्त मैं और वो ज़ंजीरों में बँधे लटक रहे थे। ये वही हाल था जिसे मैंने सपने में देखा था और जहां पर मैं मरी हुई मेघा को अपने कलेजे से छुपकाए चीख रहा था। मुझे इस एहसास के साथ ही झटका लगा कि एक बार फिर से मैं सपने में चला गया था। वो सपना ही तो था जिसमें मेघा मुझे किन्हीं खूबसूरत वादियों में ले गई थी और हम दोनों वहां पर अपने पवित्र प्रेम की दुनिया बसाने वाले थे। आँखों के सामने वो खूबसूरत मंज़र उजागर हुआ तो दिल तड़प कर रह गया और आँखों से आंसू छलक पड़े। आँखें बंद कर के मैंने मन ही मन ऊपर वाले से कहा कि मेरे साथ इस तरह का मज़ाक क्यों? आख़िर किस गुनाह की सज़ा मिल रही है मुझे? क्यों मेरी किस्मत को इस तरह से लिखा है कि मुझे अपनी ज़िन्दगी में कभी एक पल के लिए भी ख़ुशी नहीं मिल सकती? मेघा नाम की एक लड़की मिली जिसके प्रति दिल में बेपनाह मोहब्बत भर दी और अब उसकी जुदाई के दर्द में मुझे तिल तिल कर तड़पा रहे हो...आख़िर क्यों?

जाने कितनी ही देर लगी मुझे इस सदमे से उबरने में। आँखें खोल कर मैंने सामने मेघा की तरफ देखा। वो वैसे ही नीचे की तरफ सिर झुकाए ज़ंजीरों में बंधी लटक रही थी। जिस्म पर मौजूद राजकुमारियों जैसा लिबास जगह जगह से फटा हुआ और मैला नज़र आ रहा था। ज़ाहिर था उसके साथ किसी ने बहुत ज़्यादा अत्याचार किया था। अचानक ही मेरे ज़हन में एक ख़याल बिजली की तरह कौंधा। सपने में तो मेघा के पेट में बड़ा सा खंज़र घुसा हुआ था और उसके पेट से काले रंग का खून निकल रहा था। मैंने मेघा के पेट की तरफ नज़र डाली और ये देख कर चौंका कि उसके पेट में ना तो कोई खंज़र घुसा हुआ था और ना ही काले रंग का खून निकल रहा था। सपने में उसने लेदर के काले कपड़े पहन रखे थे जो कि चुस्त दुरुस्त थे किन्तु इस वक़्त उसके जिस्म पर वो कपड़े नहीं थे। इसका मतलब सपने में मैंने जो कुछ देखा था वो सब सिर्फ़ सपना ही था जो कि सच नहीं था।

मन ही मन ये सोच कर मेरे होठों पर फीकी सी मुस्कान उभर आई कि भला कहीं सपने भी सच होते हैं? ये सोच कर जहां एक तरफ मुझे ये जान कर ख़ुशी हुई कि मेघा जीवित है वहीं ये सोच कर तकलीफ़ भी हुई कि जिन खूबसूरत वादियों में मैं मेघा के साथ अपने प्रेम का संसार बसाने वाला था वो सब महज एक सपना था। इस एहसास के चलते दिल को तकलीफ़ तो हुई लेकिन वो तकलीफ़ इस सच से बहुत मामूली साबित हुई कि मेघा जीवित है। अब सवाल ये था कि वो और मैं इस हालत में कैसे थे? आख़िर किसने हम दोनों को इस हाल में पहुंचाया?

मैंने हाल में चारो तरफ निगाह दौड़ाई। चारो तरफ की दीवारों में बने कुंडे पर बड़े बड़े मशाल जलते हुए दिख रहे थे। हाल के ऊपर वैसा ही बड़ा सा झूमर लटक रहा था जैसा मैंने सपने में देखा था। एक तरफ बाहर जाने के लिए बड़ा सा गलियारा था और दूसरी तरफ ऊपर के फ्लोर में जाने के लिए चौड़ी सीढ़ियां जो ऊपर दोनों तरफ की बालकनी में मुड़ जाती थीं। मैंने चारो तरफ निगाह घुमाई लेकिन मेरे और मेघा के अलावा तीसरा कोई नज़र नहीं आया। ज़हन में सवालों का भण्डार लगता जा रहा था लेकिन जवाब देने वाला कोई न था। ऐसी हालत में दिलो दिमाग़ में एक भय भी भरता जा रहा था। दिल की धड़कनें कभी थम जातीं तो कभी अनायास ही तेज़ हो जाती थीं। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि ये सब क्या था और क्यों था? ज़हन में ये विचार भी उभर आता कि कहीं मैं फिर से कोई सपना तो नहीं देखने लगा हूं?

मेघा को उस हाल में देख कर मेरा दिल बुरी तरह ब्यथित हो रहा था। मेरा जी कर रहा था कि मैं ज़ंजीरों को तोड़ कर मेघा के पास पहुंच जाऊं और उसे ज़ंजीरों से निकाल कर अपने कलेजे से लगा लूं लेकिन ये सब करना मेरे अख़्तियार में नहीं था। मुझसे रहा न गया तो मैं पूरी शक्ति से हलक फाड़ कर चिल्लाया। मेरी चीख का मेघा पर तो कोई असर न हुआ लेकिन फ़िज़ा में अचानक ही हलचल महसूस हुई। कुछ ही देर में ऊपर के माले में कई ऐसे लोग नज़र आए जिन्हें देख कर मेरे जिस्म का रोयां रोयां डर से थर्रा गया।

"तो होश आ गया तुम्हें?" उनमें से एक ने अपनी भारी आवाज़ में कहा____"बहुत खूब। मैं तुम्हारे होश में आने का ही इंतज़ार कर रहा था लड़के।"

"कौन हो तुम?" मैं अंदर से तो बेहद डर गया था लेकिन हिम्मत कर के पूंछ ही लिया____"और मुझे यहाँ पर इस तरह ज़ंजीरों में बाँध कर क्यों लटकाया हुआ है? आख़िर क्या चाहते हो मुझसे?"

"तुम्हारा खून।" वो मुस्कुराते हुए अजीब अंदाज़ में बोला_____"तुम्हारा खून चाहिए मुझे।"
"खू...खून???" उसकी बात सुन कर मेरी आवाज़ लड़खड़ा गई थी।

"हां लड़के, तुमने बिल्कुल ठीक सुना।" वो सीढ़ियों से नीचे की तरफ उतरते हुए बोला_____"लेकिन सिर्फ़ तुम्हारे खून से ही काम नहीं होगा इस लिए तुम्हारे खून में उसके खून को भी शामिल करना होगा जो तुम्हारे सामने तुम्हारी ही तरह ज़ंजीरों में बंधी लटक रही है।"

"ये..ये क्या कह रहे हो तुम?" मैं उसकी बात सुन कर बुरी तरह हकला गया था____"नहीं नहीं, तुम मेरी मेघा के साथ कुछ भी उल्टा सीधा नहीं कर सकते। तुम्हें खून ही चाहिए न तो मेरे जिस्म का एक एक बूँद खून ले लो। बस मेरी मेघा को छोड़ दो, मैं उसे इस हाल में नहीं देख सकता।"

"देखा वीर।" उस शख़्स ने ऊपर बालकनी में खड़े एक दूसरे आदमी की तरफ देखते हुए मुस्कुरा कर कहा____"मैंने कहा था न कि ये मेरी बहन के प्रेम में कुछ भी करने को तैयार हो जाएगा।"

"हां रुद्र।" वीर नामक उस शख़्स ने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"तुम्हारा कहना बिल्कुल सही था लेकिन सिर्फ़ इसके तैयार होने बस से क्या होगा। उसके लिए तो मेघा का तैयार होना भी ज़रूरी है और तुम अच्छी तरह जानते हो कि वो इसके लिए किसी भी कीमत पर राज़ी नहीं हो रही है। पिछले दो साल से हमारी कोशिश नाकाम ही होती रही है।"

"लेकिन अब ऐसा नहीं होगा वीर।" रूद्र ने शख़्त भाव से मेरी तरफ देखते हुए कहा____"क्योंकि इतना तो तुम भी जानते हो कि प्रेम में जहां बेपनाह ताक़त होती है वहीं बेपनाह निर्बलता भी होती है। अभी तक हम इस लिए नाकाम होते रहे थे क्योंकि ये हमारे हाथ नहीं लगा था। पिछले दो साल से मेरी ये बहन इसके चारो तरफ सुरक्षा कवच बनाए हुए थी लेकिन अब हम इसके सुरक्षा घेरे को तोड़ने में कामयाब हो चुके हैं। पहले मेरी बहन ये सोच कर बेफ़िक्र थी कि हम इसके प्रेमी को कोई चोट नहीं पहुंचा सकते किन्तु अब ऐसा नहीं है। अब ये अपने प्रेमी के लिए हर वो काम करने को तैयार होगी जो करने के लिए हम इससे कहेंगे।"

"बात तो ठीक है रुद्र।" वीर ने मेघा की तरफ निगाह डालते हुए शख़्त भाव से कहा____"लेकिन अपने पिता की जगह इस मामूली इंसान को इसने जो सबसे ज़्यादा एहमियत दी ये ठीक नहीं किया इसने। हमारे प्रेम का नाजायज़ फ़ायदा उठाया है इसने।"

"शान्त हो जाओ दोस्त।" रूद्र ने मुस्कुराते हुए कहा____"मैं भी जानता हूं कि इसने ये सब कर के ठीक नहीं किया है क्योंकि किसी इंसान से प्रेम करना हमारा काम नहीं है बल्कि हमारा काम तो इंसानों का खून पीना है, ताकि हम अनंत काल तक जीवित रह सकें। मेरी बहन ने जो किया वो प्रेम में मजबूर हो कर किया। तुम नहीं समझोगे वीर, प्रेम किसी भी प्राणी को बदल देने की क्षमता रखता है। एक बार मेरे साथ भी ऐसा हो चुका है और इसी लिए मैं इस बात को समझता हूं। यही वजह है कि मैंने इन दो सालों में कभी भी अपनी इस बहन को उस तरह से मजबूर नहीं किया जैसे कि इन हालातों में करना चाहिए था। दूसरी महत्वपूर्ण बात ये भी है कि हम नियति के हाथों मजबूर थे। मेरे पिता को फिर से जीवित करने का बस यही एक रास्ता था। मुझे आज तक समझ नहीं आया कि आख़िर उनके जीवित होने की यही एक शर्त क्यों है?"

रुद्र और वीर आपस में बातें कर रहे थे और मैं चकित भाव से तथा ख़ामोशी से उनकी बातें सुन रहा था। उनकी बातों से मुझे भी ये पता चल रहा था कि मेघा ने इन दो सालों में मेरे लिए क्या किया था और क्यों उसने मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं किया था? मैं इस सबके बारे में पूरा सच जानना चाहता था इस लिए मैं ख़ामोशी से उन दोनों की बातें सुनता जा रहा था।

"मैंने भी इसी लिए आज तक मेघा के साथ कभी वैसा शख़्त बर्ताव नहीं किया।" वीर ने कहा____"क्योंकि वो तुम्हारी बहन है। तुम मेरे दोस्त हो और इस नाते वो मेरी भी बहन है लेकिन तुम्हारी तरह मैं भी इस बात को नहीं समझ पा रहा हूं कि आख़िर तुम्हारे पिता को जीवित करने की ऐसी शर्त क्यों है? आख़िर ऐसा क्यों है कि बाहरी दुनिया के किसी मामूली इंसान से उनकी खुद की बेटी का प्रेम सम्बन्ध बने और उस प्रेम सम्बन्ध के चलते ही उस इंसान के खून द्वारा हमारे पितामह अनंत का शरीर पुनः जीवित हो?"

"इस रहस्य को तो पिता जी ही बता सकते हैं।" रूद्र ने कहा____"मुझे तो उन्होंने अपने अंतिम समय में बस यही बताया था कि उनके पुनः जीवित होने की यही एक मात्र शर्त है। मैं उनसे इसके बारे में पूछना चाहता था लेकिन उनके पास समय ही नहीं था। आज इस बात को गुज़रे हुए क़रीब सौ साल गुज़र गए हैं। उन्होंने ये भी कहा था कि इस बारे में मेघा को पता नहीं चलना चाहिए। उनका कहना था कि एक दिन ऐसा ज़रूर आएगा जब मेघा को बाहरी दुनिया का कोई ऐसा इंसान मिलेगा जिसे वो मारेगी नहीं बल्कि वो उसे अपने साथ ले आएगी और फिर उसे उस इंसान से प्रेम हो जाएगा। हम मेघा को इस बारे में तभी बताएँगे जब वो उस इंसान से प्रेम करने लगे। मेघा और उसके प्रेमी की रज़ामंदी से ही सारी प्रक्रिया होगी। अगर उन दोनों की रज़ामंदी नहीं होगी तो उस इंसान के खून का कोई असर नहीं होगा।"

"बड़ी विचित्र बात है।" वीर सीढ़ियों की तरफ बढ़ता हुआ बोला_____"पितामह को ये सारी बातें पहले से ही कैसे पता थीं कि आने वाले समय में ऐसा ही होगा? ज़रूर इस बारे में भी कोई रहस्य होगा।"

"वो सब छोड़ो।" रूद्र ने कहा____"हमे अब ये सोचना है कि इनके साथ क्या किया जाए?"
"करना क्या है।" वीर ने मेरी तरफ देखते हुए कहा____"मेघा को तो हमने इसके लिए बहुत मनाया जिसका नतीजा ये निकला कि वो इस सबके लिए तैयार ही नहीं हुई। अब हमें इस लड़के के द्वारा ही मेघा को मजबूर करना होगा।"

"क्या करने वाले हो तुम लोग मेरी मेघा के साथ?" मैं घबरा कर एकदम से बोल पड़ा था।
"हमारी बातें तो तुमने सुन ही ली होंगी।" रूद्र ने गहरी मुस्कान के साथ कहा_____"हमारा मकसद भी यही था कि तुम हमारे द्वारा ये जान लो कि तुम और मेघा यहाँ पर किस हाल में हो और किस लिए हो? अब ये तुम पर है कि अपने प्रेम के लिए खुद का बलिदान करते हो या नहीं?"

"क्या मतलब है तुम्हारा?" मैं घबराहट के मारे उलझ सा गया था_____"आख़िर किस तरह का बलिदान चाहते हो मुझसे?"
"ज़रूर बताएँगे लड़के।" रूद्र ने मेरी तरफ बढ़ते हुए कहा____"लेकिन उसके अहले ये तो बताओ कि क्या तुम्हें मेरी बहन मेघा की असलियत के बारे में पता है? क्या उसने तुम्हें बताया है कि वो असल में कौन है?"

"हां, मुझे उसकी असलियत के बारे में पता है।" मैंने हिम्मत कर के कहा____"मेरे ज़ोर देने पर उसने मुझे अपने बारे में सब कुछ बताया था।"

"अच्छा।" वो ब्यंगात्मक भाव से मुस्कुराया____"यानि उसकी असलियत जान लेने के बाद भी तुम उससे प्रेम करते हो?"
"मेरा प्रेम किसी ब्यक्ति विशेष के किसी सच या झूठ से ना तो बदल सकता है और ना ही मिट सकता है।" मैंने बड़े गर्व से कहा____"मेघा से मैं सच्चे दिल से प्रेम करता हूं। उसकी असलियत से मुझे ना पहले कोई फ़र्क पड़ा था और ना ही आगे कभी कोई फ़र्क पड़ेगा।"

"कमाल है।" वीर मेरी तरफ देखते हुए मुस्कुराया_____"अगर ऐसा है तो फिर तुम अपने प्रेम के लिए कुछ भी कर सकते हो...है ना?"
"बिल्कुल।" मैं अंदर ही अंदर उसकी बात सुन कर थोड़ा घबरा गया था लेकिन फिर एकदम से निडर हो कर बोल पड़ा था_____"मैं उसके लिए कुछ भी कर जाऊंगा लेकिन सिर्फ़ इसी शर्त पर कि तुम लोग मेरी मेघा के साथ कुछ भी बुरा नहीं करोगे।"

"भाई रुद्र।" वीर ने पलट कर रूद्र से कहा____"पहली बार ऐसा इंसान देखा है जो इतना भोला है और इतना सच्चा भी है। क्या सच में प्रेम ऐसा होता है कि उसके लिए कोई इंसान कुछ भी करने को तैयार हो जाए?"

"तुम्हें आज तक किसी से प्रेम नहीं हुआ वीर इसी लिए तुम्हें प्रेम के क्रिया कलापों पर हैरानी और अविश्वास हो रहा है।" रूद्र ने कहा____"जबकि सच यही है कि अगर प्रेम सच्चा हो तो प्रेम करने वाला अपने प्रेमी के लिए कुछ भी कर जाता है।"

"अगर ऐसी बात है तो इससे कहो कि ये अपने प्रेम के लिए खुद को बलिदान करे।" वीर ने शख़्त लहजे में कहा_____"इसे अपने प्रेम की ख़ातिर मेघा को इस बात के लिए राज़ी करना होगा कि वो भी इसके साथ ख़ुशी ख़ुशी हमारे पितामह अनंत को शर्तों के अनुसार अपने प्रेमी का खून दे कर जीवित करे।"

"नहीं.....।" पूरे हाल में एक चीख गूँज उठी। मेरे साथ साथ वीर और रूद्र ने भी चौंक कर आवाज़ की तरफ देखा था। वो मेघा की चीख थी। शायद अब तक वो अचेत अवस्था में थी। ज़ंजीरों में बंधी वो बुरी तरह छटपटा रही थी।

"मेघा....।" उसे इस तरह छटपटाते देख मेरा दिल तड़प उठा और मैं ज़ोर से चिल्लाया_____"तुम ठीक तो हो न मेघा? मुझे लगा मैंने अपनी मेघा को हमेशा के लिए खो दिया है। भगवान का लाख लाख शुक्र है कि तुम जीवित हो।"

"तुम्हें यहाँ नहीं आना चाहिए था ध्रुव।" मेघा ने दुखी भाव से कहा_____"ये लोग तुम्हें मार डालेंगे।"
"तुम्हारे बिना तो मैं वैसे भी जीना नहीं चाहता मेघा।" मैंने तड़प कर कहा____"दिल में बस एक बार तुम्हें देख लेने की हसरत थी, इसी लिए अब तक जीवित हूं। तुम्हें देख लेने के बाद अब अगर मौत भी आती है तो हंसते हंसते उसे स्वीकार कर लूंगा।"

"ऐसा मत कहो ध्रुव।" मेघा की आँखों से आंसू छलक पड़े____"और मुझे इसके लिए माफ़ कर दो कि मेरी वजह से तुम्हें अब तक इतने दुःख सहने पड़े। मुझे इसके लिए भी माफ़ कर दो कि मैंने तुम्हारे पवित्र प्रेम को स्वीकार नहीं किया लेकिन ध्रुव, मैंने ऐसा इसी लिए नहीं किया था क्योंकि मैं तुम्हें किसी भी तरह के संकट में नहीं डालना चाहती थी।"

"हां, मैं जानता हूं मेघा।" मैंने लरज़ते हुए स्वर में कहा_____"मैं शुरू से ही जानता था कि तुम भी मुझसे बेहद प्रेम करती हो। वो तो तुम्हारी कोई मज़बूरी ही थी जिसकी वजह से तुम मेरे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रही थी लेकिन मेघा, तुम अपने इस ध्रुव को समझ ही नहीं पाई और ना ही प्रेम के मर्म को ठीक से समझा है। मैंने तुमसे कहा था ना कि प्रेम करने वाले किसी भी अंजाम की परवाह नहीं करते थे बल्कि वो तो हर हाल में प्रेम करते हैं। अगर साथ में जी नहीं सकते तो साथ में मर कर दुनिया में अमर हो जाते हैं।"

"मुझे माफ़ कर दो मेरे ध्रुव।" मेघा ने रोते हुए कहा_____"मैं बस यही चाहती थी कि भले ही मुझे अनंत काल तक तुम्हारे विरह में तड़पना पड़े लेकिन वो काम नहीं करुँगी जिससे तुम्हारा जीवन एक अभिशाप बन जाए।"

"मुझे किसी अभिशाप की परवाह नहीं है मेघा।" मैंने कहा____"मैंने तो दो साल पहले भी तुमसे कहा था कि मुझे अपने जैसा बना लो। कम से कम उस सूरत में तुम्हारे साथ रहने का सुख तो मिलेगा मुझे।"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने कहा____"मेरे जैसा बन कर ऐसा जीवन जीना बहुत बड़ा अभिशाप है जिसमें न इंसानियत होती है और ना ही मुक्ति का कोई रास्ता। तुम इंसान हो और तुम्हारे अंदर हर वो अच्छाईयां हैं जो तुम्हें मुक्ति के रास्ते तक आसानी से ले जाएंगी लेकिन मेरे जैसी पिशाचनी अनंत काल तक इस अभिशाप को लिए भटकती रहने का दुर्भाग्य बनाए रहेगी। मैं इस बात से तो बेहद खुश हूं कि कोई इंसान मुझ जैसी पिशाचनी से इतना प्रेम करता है और साथ ही मुझे भी प्रेम करना सिखाया लेकिन इस बात से दुखी भी हूं कि मैं तुम्हारे लायक नहीं हूं। तुम्हारे ईश्वर से बस यही प्रार्थना करती हूं कि किसी तरह वो मुझे इस जीवन से मुक्ति दे दें और अगले जन्म में मुझे तुमसे मिला दें।"

"नियति में जो होना लिखा होगा वो तो होगा ही मेघा।" मैंने अपने मचलते हुए जज़्बातों को काबू करते हुए कहा____"लेकिन तुम्हारे साथ मुझे अभिशाप से भरा हुआ जीवन जीना भी स्वीकार है। मुझे अपना बना लो मेघा, मुझे अपने प्रेम से वंचित न करो।"

"ये दोनों तो अपने प्रेम का राग अलापे जा रहे हैं रुद्र।" सहसा वीर ऊँचे स्वर में बोल पड़ा_____"मेरा तो मन करता है कि इस लड़के का अभी खून पी जाऊं।"
"गुस्सा मत हो दोस्त।" रूद्र ने कहा____"मत भूलो कि ये हमारे लिए क्या एहमियत रखता है। अगर तुमने इसका खून पी कर इसे मार दिया तो हम अपने पितामह को फिर से कैसे जीवित कर सकेंगे?"

कहने के साथ ही वो मेघा की तरफ पलटा और फिर उससे बोला____"तुमसे ज़्यादा समझदार तो ये इंसान है मेघा और एक तुम हो जो अपने ही पिता को जीवन नहीं देना चाहती। कैसी बेटी हो तुम जो अपने पिता को जीवन देने की जगह इस इंसान के जीवन को बचा रही हो?"

"मैं अपने प्रेम को स्वार्थी नहीं बनाना चाहती भईया।" मेघा ने दुखी भाव से कहा____"ऐसा करने से मुझे यही लगेगा जैसे मैंने अपने पिता को जीवन प्रदान करने के लिए एक इंसान को अपने प्रेम के जाल में फंसाया है। ऐसा करने से मेरा प्रेम पवित्र नहीं कहलाएगा। अपने स्वार्थ के लिए मैं किसी इंसान को इस तरह स्तेमाल नहीं करना चाहती।"

"कमाल है।" रूद्र हँसा_____"पिछले सौ सालों से इंसानों का खून पी कर खुशियां मना रही थी, तब किसी इंसान के प्रति तुम्हारे मन में ऐसे ख़याल नहीं आए थे? आज एक इंसान से प्रेम क्या हो गया तुम्हारी तो सोच ही बदल गई...वाह! बहुत खूब। क्या तुमने कभी इन इंसानों के धर्म ग्रंथों में लिखी बातें नहीं पढ़ी जिनमें ये लिखा होता है कि माता पिता से बढ़ कर संसार में दूसरा कोई नहीं होता। क्या तुमने ये उपदेश नहीं पढ़ा कि जो प्राणी अपने माता पिता के लिए अपना सुख दुःख यहाँ तक कि अपनी मुक्ति का भी बलिदान कर देता है उसको ऊपर बैठा विधाता भी सलाम करता है?"

"तुम्हारे भैया सही कह रहे हैं मेघा।" मैंने मेघा के कुछ बोलने से पहले ही कहा____"मुझे तो इस बारे में पहले तुमने बताया ही नहीं था वरना मैं उसी समय तुमसे यही कहता कि तुम्हें सबसे पहले अपने पिता के बारे में ही सोचना चाहिए। मुझे भी ख़ुशी होती कि मेरा ये तुच्छ जीवन किसी के काम आया। मेरा यकीन करो मेघा, मैं तुम्हारे पिता को पुनः जीवन देने के लिए ख़ुशी ख़ुशी अपना बलिदान देने को तैयार हूं। अब समझ आया मुझे कि हम दोनों का मिलना महज कोई इत्तेफ़ाक़ नहीं था बल्कि विधाता की ऐसी लीला थी जिसे हम दोनों ही समझ नहीं पाए। इस बात से ये भी समझ आता है कि ऊपर वाला यही चाहता था कि हम दोनों को एक दूसरे से प्रेम हो ताकि हमारे द्वारा तुम्हारे पिता को फिर से जीवन मिल सके। अब जब ऊपर वाला यही चाहता है तो भला हम कौन होते हैं उसकी मर्ज़ी को ठुकराने वाले? मेरा जीवन तो वैसे भी बेमतलब था और जीने का कोई ख़ास मकसद नहीं था। ये बहुत ही अच्छा हुआ कि मेरा ये बेमतलब सा जीवन किसी ख़ास चीज़ के लिए काम आने वाला है। तुम अपने मन से ये बात निकाल दो कि तुम्हारे ऐसा करने से तुम्हारा प्रेम पवित्र नहीं रहेगा। मुझे ख़ुशी है कि तुमने मेरी सलामती के लिए इतना कुछ सोचा और इतने दुःख सहे लेकिन अब मैं खुद कहता हूं कि तुम्हें अपने पिता के लिए ख़ुशी ख़ुशी वो काम करना चाहिए जिसके लिए विधाता ने ये सारा खेल रचा है।"

"तुम कितने अच्छे हो ध्रुव।" मेघा की आँखें छलक पड़ीं____"कितनी आसानी से तुमने ये सब कह दिया। तुम सच में महान हो। मेरे पिता के लिए खुद को बलिदान कर देना चाहते हो, ऐसा इस संसार में कौन कर सकता है भला?"

"अब ये सब छोड़ो।" मैंने हल्की मुस्कान के साथ कहा____"और चलो हम दोनों मिल कर तुम्हारे पिता को नया जीवन देते हैं।"
"इस लड़के ने तो मुझे आश्चर्य चकित कर दिया रुद्र।" वीर ने अपनी हैरत से फटी आँखों से मेरी तरफ देखते हुए कहा_____"यकीन नहीं होता कि कोई इंसान ऐसा करने के बारे में सोच सकता है।"

"काश! मुझे ये सब पहले पता चल गया होता।" मैंने मेघा की तरफ देखते हुए कहा____"तुम्हें मुझसे ये सब बताना चाहिए था मेघा। क्या तुम्हें मुझ पर इतना भी एतबार नहीं था?"

"नहीं ध्रुव।" मेघा ने आहत भाव से कहा____"तुम पर तो खुद से ज़्यादा एतबार है मुझे। मैं जानती थी कि तुम मेरे लिए कुछ भी कर जाओगे लेकिन मैं तुम्हारे जीवन को अभिशाप नहीं बनाना चाहती थी और ना ही स्वार्थी बनना चाहती थी।"

"तो अब क्या इरादा है मेघा?" सहसा रूद्र मेघा से कह उठा____"अब तो ये लड़का खुद ही तुमसे कह रहा है कि ये हमारे पिता के लिए कुछ भी करेगा। इस लिए क्या अब भी तुम इसके लिए राज़ी नहीं होगी?"

"वो अब इसके लिए इंकार नहीं करेगी रूद्र जी।" मैंने रूद्र से कहा____"आप हम दोनों को इन ज़ंजीरों से मुक्त कर दीजिए। मैं आपको वचन देता हूं कि मैं और मेघा दोनों साथ मिल कर सच्चे दिल से आपके पिता के लिए वो सब करेंगे जिसके द्वारा उन्हें फिर से जीवन मिल जाए।"

मैंने देखा वीर अभी भी मुझे चकित भाव से देखे जा रहा था। शायद वो अभी भी समझने की कोशिश कर रहा था कि क्या सच में कोई इंसान इतनी सहजता से इतना कुछ करने की बात कह सकता है? उधर मेरे कहने के बाद रूद्र ने फ़ौरन ही हम दोनों को ज़ंजीरों से मुक्त करने का आदेश दे दिया। उसका आदेश होते ही ऊपर बालकनी में मौजूद कई सारे उनके जैसे ही लोग काम पर लग ग‌ए। वो सबके सब पिशाच ही थे। ये अलग बात है कि इस वक़्त वो सब साधारण इंसानों जैसे नज़र आ रहे थे।

कुछ ही समय में मैं और मेघा ज़ंजीरों से मुक्त हो ग‌ए। हाल के फर्श पर जब हम दोनों आए तो दोनों ही एक दूसरे की तरफ तेज़ी से दौड़ पड़े और एक दूसरे से लिपट ग‌ए। ऐसा लगा जैसे आत्मा तृप्त हो गई हो। मेरी आँखों से आंसू छलक पड़े थे। मेरा जी चाह रहा था कि अब क़यामत तक मैं इसी तरह मेघा से लिपटा रहूं। ज़ाहिर है यही हाल मेघा का भी रहा होगा।

कुछ देर के लिए ही सही किन्तु उसे पा लिया था मैंने। उसको अपने सीने से लगा लिया था मैंने। मेरे दिल को कभी न मिटने वाला सुकून मिल गया था। जिसके दीदार के लिए दो सालों से तड़प रहा था आज उसे देख कर आंखें तृप्त हो ग‌ईं थी। मैं इस खुशी में सब कुछ भूल गया था। मैं भूल गया था कि मेघा से ये मेरी आख़िरी मुलाक़ात थी। मैं भूल गया था कि इस मुलाक़ात के बाद फ़ौरन ही मुझे उसके पिता को फिर से जीवन देने के लिए अपना बलिदान देना है। मैंने कभी इस बात का तसव्वुर भी नहीं किया था कि एक दिन ऐसा भी आएगा जब मुझे अपने प्रेम के लिए खुशी खुशी इस तरह से खुद को कुर्बान करना होगा।‌ मुझे इस बात का ज़रा भी रंज़ नहीं था बल्कि मैं तो बेहद खुश था कि मेरा बेमतलब और बोझ बना हुआ जीवन मेरी मेघा के किसी काम आ गया था।

कुछ पल ही सही तेरा साथ नसीब हुआ।
हां मगर ऐसा मिलना कुछ अजीब हुआ।।

तू सलामत रहे सदा चांद तारों की तरह,
मैं खुश हूं के तेरे जैसा कोई हबीब हुआ।।

राह-ए-उल्फ़त न रास आई हमें ऐ दोस्त,
क्या करें के अपना ही ख़ुदा रक़ीब हुआ।।

साथ ही जाएगा ग़म-ए-हिज़्र-ए-यार मेरे,
जहां में कोई ग़मे-दिल का न‌ तबीब हुआ।।

ये तो अच्छा है किसी के काम आया मगर,
यही सोच के हैरां हूं, कैसे मैं नजीब हुआ।।

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