Fantasy Dark Love (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Update - 11
(Last Update)
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मेघा वैम्पायर थी और उसने अपनी असलियत मुझे पहले ही बता दी थी लेकिन उसकी असलियत जानने के बाद भी मेरे प्रेम में कोई फ़र्क नहीं आया था। उसने मुझे बताया कि वो उस पुराने मकान में मेरे पास ज़्यादा देर तक इसी लिए नहीं रहती थी क्योंकि मेरे पास ज़्यादा देर रहने से वो खुद पर काबू नहीं रख सकती थी। मैं क्योकि इंसान था इस लिए मेरा खून उसकी कमज़ोरी बन सकता था जिसके लिए वो मुझे चोट पहुंचाने पर बिवस हो सकती थी। यही वजह थी कि वो उस मकान में मुझे खाना देने और दवा लगाने के लिए ही आती थी और जल्द से जल्द वहां से निकल जाती थी। उसे भी मुझसे प्रेम हो गया था लेकिन उसकी बिवसता यही थी कि पिशाच होने के नाते वो मेरे पास ज़्यादा देर तक रुक नहीं सकती थी। इंसानी खून पीने के लिए वो मजबूर हो जाती जो कि वो किसी भी कीमत पर नहीं चाहती थी।

मेघा ने जब अपनी असलियत बताई थी तब मैंने उससे कहा था कि वो मुझे भी अपने जैसा बना दे लेकिन उसने ऐसा करने से साफ़ इंकार कर दिया था। उसका कहना था कि पिशाच बन कर जीना एक बहुत बड़ा अभिशाप है जिसकी मुक्ति नहीं हो सकती। उसे मेरे प्रेम में तड़पना तो मंजूर था लेकिन मुझे अभिशाप से भरा हुआ जीवन देना मंजूर नहीं था। ख़ैर उसने ये सब तो बताया था किन्तु इसके पीछे की असल वजह ये नहीं बताई था कि मेरे खून से उसके पिता को नया जीवन मिल सकता है। मेरे प्रति प्रेम की ये उसकी प्रबल भावना ही थी जिसके चलते उसने अपने पिता को मेरे द्वारा नया जीवन देने के बजाय मेरी सलामती को ज़्यादा महत्वा दिया था।

इत्तेफ़ाक से जब मैं यहाँ पहुंचा तब मुझे इन सारी बातों का रूद्र और वीर के द्वारा ही पता चला था। मुझे ये सोच कर गर्व तो हुआ कि मेघा ने अपने पिता की बजाय मुझे अहमियत दी लेकिन अब ये मेरा फ़र्ज़ था कि मैं अपनी मेघा के लिए वो करूं जिससे उसके माथे पर ये कलंक न लगे कि उसने अपने जन्म देने वाले पिता को महत्वा न दे कर एक इंसान को ज़्यादा महत्वा दिया।

रुद्र और वीर को ज़रा भी उम्मीद नहीं थी कि मैं इतनी आसानी से इस कार्य के लिए मान जाऊंगा और अपना बलिदान इस तरह सहजता से देने को तैयार हो जाऊंगा। मेघा अभी भी मेरे लिए दुखी थी लेकिन मैंने उसे समझा दिया था कि अगर नियति में हमारा मिलन लिखा होगा तो उसे खुद नियति भी रोक नहीं पाएगी।

महल के अंदर मौजूद वो एक अलग ही स्थान था जहां पर एक बड़े से ताबूत में वैम्पायर यानि पिशाचों के पितामह अनंत का निर्जीव शरीर रखा हुआ था। रूद्र के अनुसार पितामह अनंत का शरीर पिछले सौ सालों से उस ताबूत में रखा हुआ था। शुरुआत में जब मेरी नज़र ताबूत के अंदर पड़े उस शरीर पर पड़ी तो डर के मारे मेरी चीख निकलते निकलते रह गई थी। मैं कल्पना भी नहीं कर सकता था कि पिशाच दिखने में ऐसे होते होंगे। रूद्र और मेघा दोनों आपस में भाई बहन थे और उन दोनों के पिता अनंत थे। अनंत पिशाचों के पितामह थे। वीर नाम का वैम्पायर रूद्र का दोस्त था। इनके जैसे और भी पिशाच यहाँ थे लेकिन इस वक़्त वो सब इंसानों की तरह साधारण रूप में दिख रहे थे।

मुझे महल के अंदर एक ऐसे कमरे में ले जाया गया था जहां पर कमरे के बीचो बीच एक बड़ा सा चबूतरा बना हुआ था। उस कमरे में चारो तरफ अनगिनत मोमबत्तियां जल रहीं थी। उस चबूतरे के बगल से वो ताबूत भी रख दिया गया था जिसमें पिशाचों के पितामह अनंत का शरीर रखा हुआ था। ताबूत का ढक्कन हटा कर ताबूत के किनारों पर ढेर सारी मोमबत्तियां रख कर जला दी गईं थी। मुझे ऊपर से नंगा कर के उस चबूतरे में लेटा दिया गया था और साथ ही मेरे दोनों हाथ और दोनों पैरों को मजबूत रस्सी से बाँध दिया गया था। मैं अंदर से बेहद ही घबराया हुआ था लेकिन अपनी मेघा और अपने प्रेम के लिए खुद का बलिदान देने को तैयार था। चबूतरे के चारो तरफ कमरे में काले कपड़े पहने बहुत सारे पिशाच खड़े थे। रूद्र और वीर मेरे पास ही आँखें बंद किए खड़े थे। उन दोनों के होठ हिल रहे थे, ऐसा लगता था जैसे कोई मंत्र पढ़ रहे हों। मेरे एक तरफ मेघा खड़ी थी जिसका चेहरा इस वक़्त बेहद सपाट था। शायद उसने अपने जज़्बातों को बड़ी मुश्किल से काबू किया हुआ था।

रूद्र और वीर ने आंखें खोल कर एक बार मेरी तरफ देखा उसके बाद उसने दूसरी तरफ देख कर कुछ इशारा सा किया, परिणामस्वरूप कुछ ही देर में दो वैम्पायर एक ट्राली लिए आते दिखे। उस ट्राली में कई सारी चीज़ें रखी हुईं थी। ट्राली के दो सिरों में राड लगी हुई थी जो ऊपर एक अलग राड में जुड़ी हुई थी। ऊपर की उस राड के दोनों छोर पर कुंडे बने हुए थे जिनमें पतले से किन्तु पारदर्शी क‌ई पाइप लटक रहे थे। ट्राली में कांच के बड़े बड़े बोतल रखे हुए थे और उसके बगल से लोहे के कुछ ऐसे इंस्ट्रूमेंट्स जिन्हें मैंने कभी नहीं देखा था।

"तुम तैयार हो न लड़के?" सहसा रूद्र ने मेरे क़रीब आते हुए कहा____"क्योंकि अब जो कुछ भी होगा वो तुम्हारे लिए बेहद ही असहनीय होगा।"

"मुझे परवाह नहीं रूद्र जी।" मैंने अपनी घबराहट को काबू करते हुए कहा____"आप अपना काम कीजिए लेकिन उससे पहले मुझे मेरी एक ख़्वाहिश पूरी कर लेने दीजिए।"

"कैसी ख़्वाहिश?" रूद्र के माथे पर सलवटें उभरीं।
"मुझे अपनी मेघा को एक बार और देखना है।" मैंने कहा____"अपनी आँखों में अपनी मेघा का चेहरा बसा कर इस दुनियां से जाना चाहता हूं।"

"ठीक है।" रूद्र ने कुछ देर तक मेरी तरफ देखते रहने के बाद कहा और एक तरफ हट गया। उसके साथ वीर भी हट गया। उन दोनों के हटते ही मेघा मेरी आँखों के सामने आ कर मेरे पास ही खड़ी हो गई। उसका चेहरा ही बता रहा था कि वो इस वक़्त अपने दिल के जज़्बातों को काबू करने की बहुत ही जद्दो जहद कर रही थी। उसकी आँखों में आंसू तैर रहे थे।

"क्या ऐसे दुखी हो कर विदा करोगी मुझे?" मैंने उसकी तरफ देखते हुए फीकी मुस्कान के साथ कहा तो मेघा खुद को सम्हाल न पाई और तड़प कर मेरे सीने में अपना चेहरा छुपा कर रोने लगी।

"ऐसा मत करो ध्रुव" मेघा ने रोते हुए कहा____"मुझे इस तरह छोड़ कर मत जाओ। मैं इसी लिए तुम्हारे प्रेम को स्वीकार नहीं कर रही थी क्योंकि मैं पहले से जानती थी कि मेरे पिता को फिर से जीवन मिलने की क्या शर्त है। मैंने एक बार भैया की बातें सुन ली थी और इसी लिए हर बार तुम्हारे प्रेम को ठुकरा रही थी ताकि तुम अपने दिल से मेरा ख़याल निकाल दो।"

"अब इन सब बातों का समय नहीं है मेघा।" मैंने जैसे उसे समझाते हुए कहा____"अब तो बस हंसते हंसते खुद को फ़ना कर देने का वक़्त है। मैं बेहद खुश हूं कि ऊपर वाले ने मुझे तुमसे मिलाया। हाँ, इस बात का थोड़ा दुःख ज़रूर है कि तुम्हारा साथ मेरी किस्मत में बहुत थोड़ा सा लिखा उसने लेकिन कोई बात नहीं, जीवन में इंसान को भला कहां सब कुछ मिल जाया करता है? ख़ैर छोड़ ये सब बातें और मुझे अपनी वैसी ही मोहिनी सूरत दिखाओ जैसे दो साल पहले मैंने देखी थी। बिलकुल वैसा ही चाँद की तरह चमकता हुआ चेहरा और वही मुस्कान।"

"नहीं, ये मुझसे नहीं होगा।" मेघा ने तड़प कर कहा____"ऐसे हाल में मैं मुस्कुरा भी कैसे सकती हूं ध्रुव जबकि मैं उस महान शख़्स को हमेशा के लिए खो देने वाली हूं जिसने मुझ जैसी पिशाचनी से प्रेम किया और मुझे प्रेम करना सिखाया?"

"मैं हमेशा तुम्हारे दिल में ही रहूंगा मेघा।" मैंने कहा____"तुम्हारे दिल से तो नहीं जा रहा न मैं? फिर क्यों दुखी होती हो? इस वक़्त मैं बस यही चाहता हूं कि मेरी मेघा मुझे मुस्कुराते हुए विदा करे और सच्चे मन से अपने पिता को पुनः प्राप्त करने की हसरत रखे।"

मेघा ने मेरे सीने से अपना चेहरा उठा कर मेरी तरफ देखा। नीली गहरी आँखों में तड़प और आंसू के अलावा कुछ न था। दूध की तरह गोरा चेहरा सुर्ख पड़ा हुआ था। मेरे दोनों हाथ बँधे हुए थे इस लिए मैं उसके सुन्दर चेहरे को अपनी हथेलियों में नहीं ले सकता था।

"तुम्हें मेरी क़सम है मेघा।" मैंने उसकी आँखों में देखते हुए कहा____"तुम सच्चे मन से वही करो जो इस वक़्त ज़रूरी है और हाँ मुझे अपनी मनमोहक मुस्कान के साथ ही विदा करो। मैं तुम्हारे मुस्कुराते हुए चेहरे को अपनी आँखों में बसा कर इस दुनिया से जाना चाहता हूं। क्या तुम मेरी ये आख़िरी हसरत पूरी नहीं करोगी?"

मेरी बातें सुन कर मेघा ने अपनी आँखें बंद कर ली। जैसे ही पलकें बंद हुईं तो आंसू की धार बाह कर उसके दोनों गालों को नहला ग‌ई। चेहरे के भाव बदले और कुछ ही पलों में उसने पलकें उठा कर मेरी तरफ देखा। अपनी आस्तीन से उसने अपने आंसू पोंछे और मेरी तरफ देखते हुए बस हल्के से मुस्कुराने की कोशिश की। वो जैसे ही मुस्कुराई तो ऐसा लगा जैसे सब कुछ मिल गया हो मुझे। दिल का ज़र्रा ज़र्रा ख़ुशी से भर गया। मेरे होठों पर भी मुस्कान उभर आई। तभी जाने उसे क्या हुआ कि वो झुकी और मेरे होठों पर अपने होंठ रख दिए। वक़्त जैसे एकदम से ठहर गया। मैं किसी और ही दुनिया में पहुंच गया किन्तु जल्दी ही वापस आया। मेघा ने मेरे चेहरे को एक बार प्यार से सहलाया और फिर एक तरफ चली गई।

मेघा के जाने के बाद रूद्र और वीर के कहने पर दो पिशाच ट्राली ले कर मेरे पास आए। रूद्र ने मुझे बताया कि आगे अब जो होगा उसमें मुझे बेहद तकलीफ़ होगी इस लिए मैं उस तकलीफ़ को सहने के लिए तैयार हो जाऊं। मैं अंदर से बेहद डरा हुआ था किन्तु अब भला डरने से क्या हो सकता था? ये सब तो मैंने खुद ही ख़ुशी से चुना था। कुछ ही देर में दो पिशाच मेरे दाएं बाएं आ कर खड़े हुए। उन दोनों के हाथ में बड़ी सी सुई थी और सुई के पीछे पतला किन्तु पारदर्शी पाईप। वीर के इशारे पर दो चार पिशाच मेरे पास आए और मुझे शख़्ती से पकड़ लिया। उनके ऐसा करते ही मेरी धड़कनें तेज़ चलने लगीं। ऐसा लगा जैसे मुझे बकरा समझ कर हलाल करने वाले थे वो। हालांकि एक तरह से मैं बकरा ही तो था।

एक साथ दोनों तरफ से मेरे हाथ में बड़ी बड़ी दो सुईयां चुभा दी ग‌ईं। मैं दर्द के मारे पूरी शक्ति से चिल्लाया। हालांकि दर्द को बर्दास्त करने की मैंने बहुत कोशिश की थी लेकिन दर्द मेरी सोच से कहीं ज़्यादा असहनीय था। दो सुईयां हाथ में चुभाने के बाद पहले वाले दो पिशाच वापस पलटे और कुछ देर बाद फिर से वापस आए और इस बार वो दो बड़ी बड़ी सुईयां मेरे सीने में चुभा दिया। मैं एक बार फिर से हलक फाड़ कर चिल्लाया। मेरी चीखों से समूचा हाल दहल उठा। कुछ देर बाद धीरे धीरे दर्द कम होने लगा तो मैंने राहत की लम्बी साँसें ली।

मुझे आँखों के सामने अँधेरा छाता हुआ महसूस होने लगा था। मेरे जिस्म में चार जगह सुईयां लगी हुईं थी। उन सुईयों के पीछे लगे पाइप में मेरा खून बड़ी तेज़ी से मेरे जिस्म से निकल कर पाईप के आख़िरी उस छोर पर जा रहा था जहां पर कांच के चार बॉटल रखे हुए थे। वो चारो बॉटल ट्राली के नीचे रखे हुए थे। प्रतिपल मेरी आँखों के सामने अँधेरा गहराता जा रहा था और मैं रफ्ता रफ्ता मौत की गहरी नींद में डूबता चला जा रहा था। एक वक़्त ऐसा भी आया जब मैंने महसूस किया जैसे सब कुछ ख़त्म हो गया है और अब पूरी कायनात में शान्ति छा गई है।

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हर तरफ काला स्याह अँधेरा था। एक ऐसा अँधेरा जिसका कोई अंत नहीं जान पड़ता था। मुझे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे मैं उस अँधेरे में ऊपर की तरफ बड़ी तेज़ी से उड़ता चला जा रहा था। हालांकि मैं अपना वजूद महसूस नहीं कर पा रहा था किन्तु इतना ज़रूर आभास हो रहा था जैसे मैं अनंत अँधेरे में कहीं तो ज़रूर हूं। पता नहीं कब तक मैं यूं ही अँधेरे में ऊपर की तरफ उड़ता हुआ महसूस करता रहा। मैं अंदर से बेहद घबराया हुआ था और अपने हाथ पैर चलाना चाहता था किन्तु ऐसा लगता था जैसे मेरा समूचा जिस्म निष्क्रिय हो गया हो। एकाएक अँधेरे में मुझे एक छोटा सा बिंदु टिमटिमाता हुआ दिखा। मैंने चारो तरफ गर्दन घुमा कर देखने की कोशिश की किन्तु सब ब्यर्थ। मैं निरंतर उस बिंदु की तरफ ही बढ़ता चला जा रहा था।

मैंने महसूस किया कि वो बिंदु प्रतिपल अपना आकार बड़ा कर रहा था। मेरे लिए ये हैरानी की बात थी किन्तु मैं कुछ भी कर पाने में असमर्थ था। अनंत अँधेरे में दिखा वो छोटा सा बिंदु जैसे जैसे बड़ा होता जा रहा था वैसे वैसे अनंत अँधेरा कम होता जा रहा था। मैं एक तरफ जहां अँधेरे के कम होने पर ख़ुशी महसूस करने लगा था वहीं उस टिमटिमाते हुए बिंदु को प्रतिपल बड़ा होते देख घबराहट से भी भरता जा रहा था। मुझे समझ नहीं आ रहा था कि आख़िर ये सब क्या था और मैं ये कहां पहुंच गया हूं?

एक वक़्त ऐसा आया जब छोटा सा दिखने वाला बिंदु इतना बड़ा हो गया कि उसकी तेज़ रोशनी से मेरी आँखें चौंधियां गईं और मैंने झट से अपनी आँखें बंद कर ली। ऐसा लगा जैसे पलक झपकते ही अनंत अँधेरा उस तेज़ प्रकाश से कहीं विलुप्त हो गया हो। उस बिंदु का प्रकाश इतना तेज़ था कि बंद पलकों के बावजूद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरी आँखों के बल्ब फ्यूज हो जाएंगे।

"आँखें खोलो ध्रुव।" अनंत सन्नाटे में एक ऐसी आवाज़ गूँजी जिसने मेरी रूह को थर्रा कर रख दिया। डर के मारे मैं बुरी तरह कांपने लगा था किन्तु उस आवाज़ का असर ऐसा था कि मैंने किसी सम्मोहन में फंसे इंसान की तरह झट से अपनी आँखें खोल दी।

आंखें खुली तो तेज़ रोशनी को मैं देख न सका इस लिए फ़ौरन ही अपनी आँखें फिर से बंद कर ली। कुछ पलों बाद मैंने बहुत ही आहिस्ता से अपनी पलकों को खोला तो इस बार मुझे रोशनी का तेज़ थोड़ा कम महसूस हुआ।

"हम तुम्हारे पवित्र प्रेम और प्रेम में दिए हुए बलिदान से बेहद प्रसन्न हुए ध्रुव।" उस तेज़ प्रकाश से फिर आवाज़ गूंजी____"इस लिए हमारा आशीर्वाद है कि तुम्हारा ये बलिदान ब्यर्थ नहीं जाएगा। हम तुम्हें वापस तुम्हारी प्रेमिका के पास भेज रहे हैं। तुम धरती पर मेघा के साथ सौ वर्ष तक रहोगे। सौ वर्ष बाद तुम दोनों को हमारी कृपा से मुक्ति मिल जाएगी।"

उस तेज़ प्रकाश से निकली इस बात को सुन कर मैं बेहद खुश हो गया। मैंने उस प्रकाश को हाथ जोड़ कर प्रणाम किया। प्रणाम करने के बाद जैसे ही मैंने सिर उठा कर उस प्रकाश की तरफ देखा तो चौंक गया क्योंकि अब वहां कोई प्रकाश नहीं था बल्कि हर तरफ वैसा ही अँधेरा था जैसे पहले था। तभी मैंने महसूस किया जैसे मैं नीचे की तरफ बड़ी तेज़ी से जा रहा हूं। एक बार फिर से मेरे अंदर तेज़ घबराहट भर गई। मैं अपने हाथ पाँव चलाना चाहता था किन्तु मैं सब ब्यर्थ। ऐसा लगा जैसे मेरे जिस्म का हर अंग निष्क्रिय हो गया हो। मैं बड़ी तेज़ी से नीचे आ रहा था। अनंत अँधेरे में मुझे कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

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"आपको तो नया जीवन मिल गया पिता जी।" मेघा रोते हुए कह रही थी_____"लेकिन अब मुझे यहाँ नहीं रहना। मुझे इस जीवन से मुक्ति दे दीजिए ताकि मैं भी अपने ध्रुव के पास चली जाऊं। उसने मेरे प्रेम में आपके ख़ातिर खुद का बलिदान दे दिया। उसने आपको फिर से जीवन देने के लिए अपना अमूल्य जीवन बलिदान कर दिया पिता जी। मुझे ख़ुशी है कि आपको फिर से नया जीवन मिल गया। आप अनंत काल तक जिएं और शान से यहाँ राज कीजिए लेकिन मुझे मुक्ति दे दीजिए। मुझे अपने ध्रुव के पास जाना है, उसे मेरी और मेरे प्यार की ज़रूरत है पिता जी। आप नहीं जानते उसने मेरी सिर्फ एक झलक पाने के लिए कितने दुःख सहे थे। उसने ये जान कर भी मुझसे टूट कर प्रेम किया कि मैं कोई इंसान नहीं बल्कि एक पिशाचनी हूं। आज उसने उसी प्रेम के लिए अपना बलिदान दे दिया। ऐसे महान इंसान के बिना मैं एक पल भी इस दुनिया में जीना नहीं चाहती। कृपया मुझे मुक्ति दे दीजिए पिता जी।"

"हमें माफ़ कर दो बेटी।" सम्राट अनंत ने मेघा के क़रीब आते हुए कहा_____"किन्तु हम ये नहीं कर सकते। हम अपने ही हाथों से अपनी बेटी का गला नहीं घोंट सकते। काश! हमें इस बात का सौ साल पहले एहसास हुआ होता तो उस समय हम रूद्र को ऐसा करने को कहते ही नहीं। ये तो अब तुम्हें इस हाल में देख कर हमें एहसास हो रहा है कि अपने स्वार्थ में हमने अपनी बेटी की ख़ुशी छीन ली।"

"मैं आपको इसके लिए कसूरवार नहीं ठहराऊंगी पिता जी।" मेघा ने दुखी भाव से कहा____"बल्कि अगर आप मुझे मुक्ति दे कर मेरे ध्रुव के पास भेज दें तो मुझे ख़ुशी ही होगी।"

"हमें तुम्हारे दुःख का अंदाज़ा है बेटी।" सम्राट अनंत ने कहा____"लेकिन तुम हमारी बिवसता को समझो। भला कोई पिता अपने ही हाथों से कैसे अपनी बेटी की जान ले ले सकता है?"

"पिता जी ठीक कह रहे हैं मेघा।" रूद्र ने मेघा के पास ही बैठते हुए कहा_____"दुसरी बात तुम भूल रही हो कि हम कौन हैं। हम पिशाच हैं मेघा और हमें इस तरह से मुक्ति नहीं मिलती। देखो, मैं भी तो सृष्टि के बिना जी ही रहा हूं न? क्या मैं नहीं चाहता कि मुझे भी मुक्ति मिल जाए और मैं अपनी सृष्टि के पास पहुंच जाऊं? मैंने बहुत कोशिश की लेकिन ऐसा नहीं हो पाया। हम पिशाचों की यही किस्मत है मेघा।"

"जो भी हो लेकिन मैं अपने ध्रुव के बिना एक पल भी इस दुनिया में नहीं रहना चाहती।" मेघा उठी और भागते हुए उस चबूतरे के पास आई जिस चबूतरे में मैं लेटा हुआ था। मैं अभी भी वैसे ही उस चबूतरे में बंधा आँखें बंद किए पड़ा हुआ था। मेघा भाग कर मेरे पास आई और मुझे झिंझोड़ते हुए बोली_____"मुझे भी अपने पास बुला लो ध्रुव। मैं तुम्हारे बिना यहाँ नहीं रहना चाहती। तुम तो मुझे दुखी और बेबस नहीं कर सकते न क्योंकि तुमने ही कहा था कि ऐसा करना प्रेम की तौहीन करना कहलाता है। फिर तुम खुद ही ऐसा कैसे कर सकते हो? वापस आ जाओ मेरे ध्रुव, तुम्हारी मेघा तुम्हें पुकार रही है। मुझे यहाँ इस तरह अकेले छोड़ कर मत जाओ।"

कहने के साथ ही मेघा मुझसे लिपट कर रोने लगी। रूद्र, वीर और खुद सम्राट अनंत भी उसके पास आ गए थे। मेघा को इस तरह मेरे निर्जीव पड़े शरीर से लिपटे रोता देख उनके चेहरे पर भी दुःख के भाव उभर आए किन्तु वो कुछ नहीं कर सकते थे। उधर मेघा बार बार मुझे झकझोर रही थी और साथ ही रो रो कर मुझसे जाने क्या क्या कहती जा रही थी। एकाएक मेरे जिस्म को झटका लगा और मैं लम्बी सांस ले कर जाग उठा।

मेरी आँखें खुल चुकी थी। मैं तेज़ तेज़ साँसें ले रहा था और बीच बीच में ख़ास भी रहा था। ये सब देख वहां मौजूद सब के सब बुरी तरह उछल पड़े। रूद्र, वीर और सम्राट अनंत भाग कर मेरे क़रीब आए। मेघा जल्दी से मुझसे से अलग हुई और मुझे जीवित देख कर उसकी आँखों से ख़ुशी के आंसू छलक पड़े। वो मेरा नाम लेते हुए फिर से मुझसे लिपट गई। सब के सब आश्चर्य चकित थे। किसी को भी यकीन नहीं हो रहा था कि मैं इस तरह ज़िंदा हो जाऊंगा।

"मैं जानती थी कि तुम मुझे इस तरह छोड़ कर कहीं नहीं जा सकते।" मेघा ख़ुशी के मारे मेरे चेहरे को चूमती हुई बोलती जा रही थी____"मैं जानती थी कि तुम अपनी मेघा को दुःख तकलीफ़ नहीं दे सकते।" सहसा वो पलटी और सम्राट अनंत की तरफ देखते हुए बोली____"पिटा जी मेरा ध्रुव वापस आ गया। वो अपनी मेघा के पास वापस आ गया पिता जी, देखिए न।"

साम्राट अनंत अपनी बेटी की बात सुन कर इस तरह चौंका जैसे अभी तक वो किसी और ही दुनिया में खोया हुआ था। वो ब्याकुल भाव से बोला_____"हां बेटी देख लिया हमने। हमने देख लिया कि तुम दोनों के प्रेम को ऊपर वाले ने भी स्वीकार कर लिया है। अगर ऐसा न होता तो तुम्हारा ध्रुव वापस नहीं लौटता।"

जल्द ही सम्राट अनंत के हुकुम पर मुझे बन्धनों से मुक्त कर के उस चबूतरे से उतारा गया। हाल में मौजूद सारे पिशाच मुझे ज़िंदा देख कर चकित थे। मैं खुद भी हैरान था कि ये सब कैसे हुआ? मेरे जिस्म में ना तो कोई ज़ख्म नज़र आ रहा था और ना ही मुझे कोई कमज़ोरी महसूस हो रही थी।

मेघा की ख़ुशी का कोई ठिकाना नहीं था। सम्राट अनंत ने मुझे अच्छे से नहलाने के लिए कहा तो मेघा खुद मुझे ले कर चल दी। वो मुझे छोड़ ही नहीं रही थी। मुझे शुरुआत में कुछ समझ नहीं आ रहा था किन्तु फिर ये सोच कर खुश हो गया कि जैसे भी हुआ हो लेकिन मैं ज़िंदा हो गया था और अब अपनी मेघा के साथ था। मेघा मुझे अपने कमरे में ले गई और वहीं गुशलखाने में वो अपने हाथों से मुझे नहलाने को बोली। मैं उसका ये प्यार देख कर खुश था किन्तु गुशलखाने में उसके सामने नंगा हो कर नहाने में मुझे बेहद शर्म आ रही थी। आख़िर मेरे बहुत ज़ोर देने पर मेघा ने मुझे अकेला छोड़ा।

मैं मेघा के कमरे से नहा धो कर तथा अच्छे कपड़े पहन कर बाहर निकला। मेघा मुझे ले कर सम्राट के दरबार में आई। दरबार में रूद्र और वीर के साथ साथ बाकी और भी कई पिशाच मौजूद थे। वहां पर मेरे बारे में ही बातें चल रही थी और साथ ही साथ इस बारे में भी कि सम्राट के पुनः वापस आने के बाद अब यहाँ पर एक बहुत बड़ा उत्सव मनाया जाएगा जिसमें हर जगह के पिशाच शामिल होंगे।

"आओ बैठो बेटा।" सम्राट अनंत ने अपने क़रीब ही रखी एक कुर्सी पर मुझे बैठने का इशारा किया तो मैं जा कर बैठ गया। मेरे बगल वाली कुर्सी पर मेघा बैठ गई। मेरे लिए ये सब बहुत ही अजीब था और बहुत ही ज़्यादा असहज भी।

"तुम्हारा बहुत बहुत शुक्रिया बेटा कि तुमने हमें नया जीवन देने के लिए ख़ुशी ख़ुशी अपना बलिदान दिया।" सम्राट अनंत ने प्रेम भाव से कहा_____"लेकिन हम सबके लिए ये बहुत ही ज़्यादा आश्चर्यचकित कर देने वाली बात है कि तुम वापस ज़िंदा कैसे हो गए? हम ये भी अच्छी तरह जानते हैं कि तुम कोई ऐसी चीज़ नहीं हो जिसमें कोई दैवीय शक्तियां हों इस लिए तुम्हारे ज़िंदा होने वाली बात संभव हो ही नहीं सकती।"

"मैं खुद इस बात से हैरान हूं।" मैंने खुद को नियंत्रित करते हुए कहा____"लेकिन हाँ इस बात से बेहद खुश हूं कि ऊपर वाले की कृपा से मैं फिर से अपनी मेघा के पास आ गया।"

"शायद इन दोनों के प्रेम को ऊपर वाले ने स्वीकार कर लिया होगा।" रूद्र ने कुछ सोचते हुए कहा____"आप तो जानते ही हैं कि प्रेम में बहुत बड़ी ताक़त होती है और उसका असर भी बहुत होता है।"
"हां यही हो सकता है।" वीर ने सिर हिलाया।

"वैसे पिता जी हम सब ये जानना चाहते हैं कि आपको पुनः जीवन मिलने की ऐसी शर्त क्यों थी?" रूद्र ने संतुलित लहजे में कहा____"सौ साल पहले आपने मुझे इस बारे में ज़्यादा कुछ नहीं बताया था। इस लिए हम सब अभी भी इस बात को जानने के लिए उत्सुक हैं कि आख़िर ऐसा क्या हुआ था जिसके चलते आप मुर्दा हो ग‌ए और आपके मुर्दा शरीर को ताबूत में रखना पड़ा? इतना ही नहीं बल्कि आपको पुनः जीवित करने के लिए इस तरह की शर्त का क्या रहस्य था? कृपया हम सबको इस रहस्य के बारे में बताइए पिता जी।"

"ऐसा एक श्राप की वजह से सब हुआ।" सम्राट अनंत ने गंभीरता से कहा____"सौ साल पहले की बात है। एक बार हम अपनी दुनिया से निकल कर इंसानी दुनिया में एक ऐसी जगह पहुंच गए जहां पर सिद्ध ऋषि मुनि लोग रहते थे। हालांकि हमें ये पता नहीं था कि वो जगह सिद्ध ऋषि मुनियों की थी। रात का समय था और आसमान में पूरा चमकता हुआ चाँद था। चाँद की रौशनी में हमने देखा एक सुन्दर झरने पर एक लड़की पत्थर पर बैठी हुई थी। पत्थर के चारो तरफ झरने का पानी था और उसके दाहिने तरफ कुछ दूरी पर उँचाई से झरने का पानी गिर रहा था। हमें ये देख कर थोड़ा अजीब लगा कि रात के वक़्त ऐसी जगह पर वो लड़की इस तरह अकेली क्यों बैठी हुई थी। ख़ैर हम बड़ी सावधानी से उसके पास पहुंचे। उस लड़की के गोरे जिस्म पर सिर्फ़ साड़ी ही थी जो कि गेरुए रंग की थी और उसके जिस्म पर इस तरह लिपटी हुई थी जो सिर्फ़ उसके गुप्तांगों को ही ढँके थी, बाकी उसका जिस्म बेपर्दा था और चाँद की रौशनी में चमक रहा था। सिर के बालों को उसने सुगन्धित फूलों की माला के द्वारा जूड़े के रूप में बाँध रखा था। हम जब उसके क़रीब पहुंचे तो देखा वो झरने के पानी में अपने दोनों पैर डाले घास के एक तिनके द्वारा पानी से खेल रही थी। उसे हमारे आने का ज़रा भी आभास नहीं हुआ था। इधर हम बेहद खुश थे कि आज शिकार के रूप में हमें एक लड़की इस तरह अकेली मिल गई थी। हम उसके और क़रीब पहुंचे तो जैसे उसे कुछ आभास हुआ। उसने पलट कर पीछे देखा तो किसी अंजान आदमी को देख कर वो दर गई। हमारी नज़र पहले तो उसके डरे हुए चेहरे पर पड़ी किन्तु जल्दी ही उसके खुले हुए गले पर जा पड़ी। हमारी आँखों को उसके गले में चमकती उछलती नश और सुर्ख खून दिखने लगा जिसकी वजह से हम पर प्यास तारी हो गई और हम फ़ौरन ही उस पर झपट पड़े। वो हलक फाड़ कर चिल्लाई किन्तु तब तक हमने उसके गले पर अपने दोनों दाँत पेवस्त कर दिए थे। वो बुरी तरह चीख रही थी और हमसे छूटने के लिए छटपटा रही थी। उसकी चीख का ही प्रभाव था कि कुछ ही पलों में वहां पर एक सिद्ध ऋषि जैसा इंसान भागता हुआ आया। उसकी तेज़ आवाज़ सुन कर हमने उस लड़की को छोड़ कर उसकी तरफ देखा। हमारे मुख में उस लड़की का खून लगा हुआ था और कुछ खून हमारे मुख से बह रहा था। उधर वो लड़की एकदम बेजान सी हमारी बाहों में झूल रही थी। ज़ाहिर था वो मर चुकी थी। उस लड़की की ऐसी हालत देख कर उस ऋषि का चेहरा गुस्से से भर गया और उसने हमें श्राप दिया।"

"नीच पिशाच" उस ऋषि ने गुस्से से कहा था____"तुमने जिस लड़की का खून पी कर उसकी जान ली है वो मेरी प्रियतमा है। यहाँ पर वो मेरी प्रतीक्षा कर रही थी। मेरी निर्दोष प्रियतमा को इस तरह मारने वाले नीच पिशाच मैं तुझे श्राप देता हूं कि तू जल्द ही मुर्दे में तब्दील हो जाएगा किन्तु तुझे इस योनि से कभी मुक्ति नहीं मिलेगी।"

हम सब ख़ामोशी से सम्राट अनंत की बातें सुन रहे थे। उधर वो इतना कहने के बाद ख़ामोश हो गए थे। हमें लगा वो आगे कुछ बोलेंगे लेकिन जब काफी देर गुज़र जाने पर भी वो कुछ न बोले तो रूद्र से रहा न गया।

"फिर क्या हुआ पिता जी?" रूद्र ने उत्सुकता से पूछा_____"उस ऋषि ने आपको जब ऐसा श्राप दिया तब आपने क्या किया था?"

"शायद उस लड़की के शुद्ध रक्त का ही प्रभाव था कि हम एकदम से शांत पड़ गए थे।" सम्राट अनंत ने बताना शुरू किया____"उस ऋषि का श्राप सुन कर हमारे अंदर डर और घबराहट भर गई। हमें अपनी ग़लती का एहसास हुआ तो हम उस ऋषि के पास जा कर उसके पैरो में गिर गए और उससे अपने द्वारा किए गए उस जघन्य अपराध के लिए माफ़ी मांगने लगे। आख़िर हमारी प्रार्थना से द्रवित हो कर उस ऋषि ने शांत भाव से कहा____'मेरा श्राप तो टल नहीं सकता लेकिन क्योंकि तुझे अपनी ग़लती का एहसास हो गया है इस लिए हम अपने श्राप को एक निश्चित अवधि में परिवर्तित कर सकते हैं। सौ साल बाद जब तेरी बेटी को किसी इंसान से प्रेम होगा तो उस इंसान के खून द्वारा ही तेरा मुर्दा शरीर फिर से सजीव हो जाएगा, लेकिन...'

"लेकिन क्या ऋषिवर?" हम उस ऋषि के लेकिन कहने पर आशंकित हो उठे थे।
"लेकिन ये कि उस इंसान का खून तभी अपना असर दिखाएगा जब वो इंसान अपनी ख़ुशी से तुझे जीवन देने के लिए अपना बलिदान देगा।" ऋषि ने कहा_____"अगर इस कार्य में तेरी बेटी और तेरी बेटी के उस प्रेमी की रज़ामंदी नहीं होगी तो उसके खून का कोई असर नहीं होगा।"

"मेरे मुर्दा शरीर को फिर से सजीव करने की ये कैसी शर्त है ऋषिवर?" हमने हताश भाव से कहा था____"आप अच्छी तरह जानते हैं कि हम पिशाच किसी इंसान से प्रेम करने का सोच भी नहीं सकते बल्कि किसी इंसान को देखते ही हम उसका खून पीने के लिए मजबूर हो जाते हैं। ऐसे में मेरी बेटी भला कैसे किसी इंसान से प्रेम करने का सोचेगी? जब ऐसा होगा ही नहीं तो मेरा मुर्दा शरीर कैसे फिर से सजीव हो सकेगा?"

"हमारा कथन कभी झूठा नहीं हो सकता।" उस ऋषि ने कहा____"अब तू जा क्योंकि तेरे पास अब ज़्यादा समय नहीं है।"

इतना कह कर वो ऋषि पलटा और एक तरफ को चला गया। उसके जाते ही हम चौंके क्योंकि हमारे पीछे अचानक ही हमें आग जलती हुई प्रतीत हुई थी। हमने तेज़ी से पलट कर पीछे देखा। जिस लड़की का हमने खून पिया था और उसकी जान ली थी उसका शरीर आग में जल रहा था। हमारे देखते ही देखते वो लड़की जल गई और जब आग समाप्त हुई तो पत्थर में कुछ नहीं था। उस लड़की के जले हुए शरीर की राख तक नहीं थी उस पत्थर पर। हमारे लिए ये बड़े ही आश्चर्य की बात थी किन्तु फिर ख़याल आया कि हमारे पास ज़्यादा वक़्त नहीं है इस लिए हम जल्दी ही वहां से अपनी दुनिया में लौट आए और फिर हमने तुम्हें ये बताया कि कैसे हमारा मुर्दा शरीर फिर से सजीव होगा।"

"तो ये कहानी थी आपके मुर्दा हो जाने की।" रूद्र ने लम्बी सांस खींचते हुए कहा_____"अब समझ आया कि उस समय आपके पास ज़्यादा समय नहीं था और इसी लिए आप सारी बातें मुझे नहीं बता सकते थे। सिर्फ़ वही बताया जो ज़रूरी था।"

"मुझे आपसे कुछ कहना है पिता जी।" सहसा मेघा ने ये कहा तो सबने उसकी तरफ देखा, जबकि सम्राट अनंत ने कहा____"हां कहो बेटी, क्या कहना चाहती हो तुम?"

"मैं अपने ध्रुव के साथ यहाँ से कहीं दूर जाना चाहती हूं।" मेघा ने सपाट लहजे में कहा____"एक ऐसी जगह जहां पर मेरे और मेरे ध्रुव के अलावा तीसरा कोई न हो।"

"तुम अपने ध्रुव के साथ यहाँ भी तो रह सकती हो बेटी।" सम्राट अनंत ने कहा____"हम तुम्हें वचन देते हैं कि यहाँ पर तुम्हारे ध्रुव को किसी से कोई भी ख़तरा नहीं होगा। जिस इंसान ने हमें एक नया जीवन दिया है हम खुद कभी ये नहीं चाहेंगे कि उस पर किसी तरह की कोई बात आए।"

"मुझे यकीन है कि यहाँ पर मेरे ध्रुव को किसी से कभी कोई ख़तरा नहीं होगा।" मेघा ने कहा____"लेकिन इसके बावजूद मैं यहाँ से जाना चाहती हूं पिता जी। कृपया मुझे अपने ध्रुव के साथ अपनी एक अलग दुनिया बसाने की इजाज़त दे दीजिए। मैं अब अपने ध्रुव के साथ एक साधारण इंसान की तरह रहना चाहती हूं।"

"अगर तुमने ऐसा सोच ही लिया है तो ठीक है।" सम्राट अनंत ने कहा____"हम तुम्हें जाने की इजाज़त देते हैं लेकिन अगर कभी हमें तुम्हारी याद आई तो हमसे मिलने ज़रूर आना। अपने इस अभागे पिता को भूल मत जाना बेटी।"

साम्राट अनंत की बातें सुन कर मेघा के चेहरे पर ख़ुशी के भाव उभर आए। वो कुर्सी से उठी और अपने पिता की तरफ बढ़ी तो सम्राट अनंत भी अपने सिंघासन से उठ कर खड़े हो ग‌ए। मेघा जब उनके क़रीब पहुंची तो उन्होंने उसे अपने गले से लगा लिया। कुछ देर बाद मेघा उनसे अलग हुई और रुद्र की तरफ देखा।

"मुझे तुझ पर नाज़ है मेरी बहन।" रूद्र ने मेघा के चेहरे को प्यार से सहला कर कहा____"और खुश भी हूं कि तुझे तेरा प्रेम हासिल हो गया। अपने ध्रुव के साथ हमेशा खुश रहना और उसे भी खुश रखना। जब भी मेरी ज़रूरत पड़े तो अपने इस भैया को याद कर लेना। मैं पलक झपके ही तेरे सामने हाज़िर हो जाऊंगा।"

मेघा सबसे विदा ले रही थी। ऐसा लग रहा था जैसे वो सच में ससुराल जा रही हो। रूद्र और वीर मुझसे भी गले मिले। वीर के लिए मैं अभी भी एक अजूबा जैसा था। ख़ैर मैं और मेघा महल से निकल कर अपनी एक अलग दुनिया बसाने चल दिए।

मेघा को हमेशा के लिए पा कर मैं बेहद खुश हो गया था। मेघा मुझसे कहीं ज़्यादा खुश थी। वो पिशाचनी थी किन्तु उसके बर्ताव से कहीं भी ऐसा नहीं लग रहा था कि वो असल में क्या थी, बल्कि वो तो किसी साधारण इंसान की तरह ही बर्ताव कर रही थी। मुझसे किसी छोटी सी बच्ची की तरह चिपकी हुई थी और मारे ख़ुशी के जाने क्या क्या कहती जा रही थी।

हम दोनों एक ऐसी जगह पहुंचे जिस जगह को देख कर मैं एकदम से चकित रह गया था। ये वही जगह थी जिसे मैंने सपने में देखा था। चारो तरफ दूर दूर तक प्रकिति की खूबसूरती का नज़ारा दिख रहा था। वही हरी भरी खूबसूरत वादियां, वही चारो तरफ दिख रहे पहाड़, एक तरफ दूर उँचाई से बहता हुआ वही जल प्रवाह जो नीचे जा कर एक खूबसूरत नदी का रूप लिए हुए था। हरी भरी ज़मीन पर जगह जगह उगे हुए वही रंग बिरंगे फूल जो मन को मोहित कर रहे थे। ये सब देख कर मुझे ऐसा लगा जैसे मैं एक बार फिर से सपना देखने लगा हूं। इस एहसास के साथ ही मेरी धड़कनें बढ़ गईं और मेरे अंदर घबराहट सी भरने लगी। मैंने जल्दी से मेघा की तरफ देखा। वो वैसे ही मुझसे चिपकी हुई खूबसूरत वादियों को देख रही थी।

"कितनी खूबसूरत जगह है न ध्रुव?" मेघा ने मेरी तरफ देखते हुए हल्की मुस्कान के साथ कहा____"ऐसा लगता है जैसे ये जगह प्रकृति ने हमारे लिए ही बनाई है। हम यहीं पर अपने प्रेम की खूबसूरत दुनिया बसाएंगे। तुम क्या कहते हो इस बारे में?"

"मेरी तो खूबसूरत दुनिया तुम ही हो मेघा।" मैंने उसके चेहरे को अपनी हथेलियों में भर कर कहा____"जहां मेरी मेघा होगी वहीं मेरा सब कुछ होगा।"
"ओह! ध्रुव।" मेघा एकदम से मेरे सीने से लगते हुए बोली____"इतना प्रेम मत करो मुझसे कि मैं ख़ुशी के मारे बावरी हो जाऊंगा।"

"प्रेम तो वही है न।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा____"जिसमें इंसान बावरा हो जाए।"
"अच्छा।" मेघा मेरे सीने से लगी हुई ही मानो मासूमियत से बोली___"अगर ऐसा है तो मुझे भी तुम्हारे प्रेम में बावरी होना है।"

"वो तो तुम पहले से ही हो।" मैंने उसके बालों पर हाथ फेरते हुए कहा____"और इस बात को ऊपर वाला भी जानता है। ख़ैर छोडो इस बात को, चलो हम यहीं पर अपने प्रेम का खूबसूरत अशियाना बनाते हैं।"

"ठीक है।" मेघा मुझसे अलग हो कर बोली____"हम यहाँ पर एक छोटा सा घर बनाएंगे। हम दोनों यहाँ पर साधारण इंसानों की तरह प्रेम से रहेंगे। हम दोनों यहाँ की ज़मीन को खेती करने लायक बनाएंगे और फसल ऊगा कर उसी से अपना गुज़ारा करेंगे।"

मेघा की ये बातें सुन कर मैं मन ही मन चौंका। उसे मेरे मन की बातें कैसे पता थीं? यही तो मैं भी चाहता था और ऐसा ही तो मैंने सपने में देखा था। क्या सच में हमारे प्रेम के तार इस तरह एक दूसरे से जुड़ चुके थे कि हम दोनों एक दूसरे के मन की बातें भी जान सकते थे?

ज़िन्दगी में बहार आ गई थी। दुःख दर्द के वो बुरे दिन गायब हो गए थे। ये कोई सपना नहीं था बल्कि एक ऐसी हक़ीक़त थी जिसे मैं पूरे होशो हवास में अपनी खुली आँखों से देख रहा था और दिल से महसूस भी कर रहा था। जिसकी तलाश में मैं पिछले दो सालों से दर दर भटक रहा था वो अब मेरी आँखों के सामने थी और मेरे पास थी। जिसके लिए मैं दो सालों से तड़प रहा था वो अपने प्रेम के द्वारा मेरे हर दुःख दर्द मिटाती जा रही थी। हम दोनों बेहद खुश थे। हम दोनों ने मिल कर अपनी मेहनत से एक छोटा सा घर बना लिया था और अब ज़मीन को खेती करने लायक बना रहे थे। हम दोनों ख़ुशी ख़ुशी हर काम कर रहे थे। हमारा प्रेम हर पल बढ़ता ही जा रहा था।

मैं अच्छी तरह जानता था कि मैं मेघा से शादी करके उसे अपनी पत्नी नहीं बना सकता था और ना ही उसके द्वारा बच्चे पैदा कर सकता था। वो एक वैम्पायर लड़की थी और मैं एक साधारण इंसान। हम दोनों का कोई मेल नहीं था लेकिन सिर्फ़ एक ही चीज़ ऐसी थी जिसने हम दोनों को आपस में जोड़ रखा था और वो था हम दोनों का अटूट प्रेम। मुझे इसके अलावा और कुछ भी नहीं चाहिए था। मेघा के साथ हमारे प्रेम की ये अलग दुनिया बहुत ही खूबसूरत लग रही थी और मैं चाहता था कि प्रेम की इस दुनिया का कभी अंत न हो।

कभी कभी ये ख़याल आ जाता था कि क्या मैं सच में मर कर ज़िंदा हुआ था? ज़हन में कभी कभी धुंधला सा एक ऐसा मंज़र उभर आता था, जिसमें अनंत अंधेरा होता था और उस अनंत अंधेरे में एक छोटा सा प्रकाश पुंज टिमटिमाता हुआ दिखता था। कानों में रहस्यमई एक ऐसी आवाज़ गूंज उठती थी जो मुझसे कुछ कहती हुई प्रतीत होती थी और मैं अक्सर उसे समझने की कोशिश करता था। ये कोशिश आज भी जारी है और मेघा के साथ हमारे प्रेम की दुनिया आज भी आबाद है। हम दोनों को ही यकीन है कि एक दिन ऊपर वाला हमें इस लायक ज़रूर बनाएगा जब हम हर तरह से एक हो जाएंगे।


दुवा करो के मोहब्बत यूं ही बनी रहे।
मेरे ख़ुदा तेरी रहमत यूं ही बनी रहे।।

अब न आए कोई ग़म इस ज़िन्दगी में,
बहारे-गुल की इनायत यूं ही बनी रहे।।

जिसको चाहा उसे पा लिया आख़िर,
ख़ुदा करे ये अमानत यूं ही बनी रहे।।

हमारे दरमियां अब कभी फांसले न हों,
हमारे दरमियां कुर्बत यूं ही बनी रहे।।

जैसे अब तक एतबार रहा तुझ पर,
उसी तरह ये सदाक़त यूं ही बनी रहे।।

✮✮✮
__________________________
✮✮✮ The End ✮✮✮

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Eaten Alive
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Hello Dosto :hi:
Ek Short Story Le kar Aapki Adaalat Me Haazir Hua Hu. Iske Pahle Maine Ek Short Story ✧Double Game✧ Likhi Thi Jise Aap Sabne Padha. Ab Ek Aur Short Story Aapke Saamne Haazir Karne Ja Raha Hu. Fantasy Prefix Par Adhaarit Ye Story Ek Love Story Hai. Ummid Hai Aap Sabhi Ko Pasand Aayegi. Aapka Sabhi Sath Aur Sahyog Aniwaarya Hai. Story Ke Sambandh Me Apna Feedback Zarur Dena. :declare:

Dhanyawaad..!!

:thank-you2:


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Dark Love

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Dark Love

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Written By ~

TheBlackBlood
Aaj se balki abhi se reading suru...
Waise jitna main jaanti hun us hisaap se kahani shubham aka TheBlackBlood ji ki hai aur most importantly genre fantasy hai to samajh jana chahiye readers ko kahani mein jarur kuch paranormal activities aur supernatural powers ke sath sath dard se bhara romance ka tadka bhi hoga...dard se bhara isliye... kyunki lekhak bada maja aata hai kirdaaro ki aisi ki taisi karke :D
 
Eaten Alive
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Update 1

love the problems are never enough...
In love you have to bow your head...
You have to laugh when in pain..
Why do people add poison in their life
Those who go down the steps of love.. They neither drown nor float :popcorn:
By Naina
kaafi dilchasp lekin dard se bharpoor suruvaat huyi hai kahani ki....

dhruv jo is kahani ka nayak hai, wo aksar dukhi aatma banke bhatakta rehta hai, specially ghanghor jungle mein bina dare bina hichkichaye....
Kyunki ushe taalash hai apni chaaht, apne pyar ki ..jise dilo jaan se mohabbat ki usne.... megha , jo uski berang aur andhkaar jindagi mein ek incident ya accident ke chalte ek diya banke aayi thi roushni bikhadne... jo kuch din uske sath reh ke phir jaane kaha chali gayi dhruv ka phir se tanha chhodke....
aise dhruv ki jindagi mein kayi gum aur dukh hai, lekin megha ka yun jaana jaise sabse bada jhatka tha uske liye...
Megha ke yun achanak ushe chhod jaane ke baad wo is kadar bechain ho gaya ki ab megha ke mana karne ke baad bhi pichle do saal se ushe dhundhne ki koshish kar raha hai... lekin aaj tak mili nahi...

pyar karo, lekin usse jo jinda hai ya jo aapke saamne hai...
usse nahi jo murda hoke jinda dikhayi de rahi hai, :👻 :D
btw is dhruv ka akal ghas chadhne gaya tha kya...
megha starting se hi kehti aa rahi thi ki wo pehli dafa insaan ke sath waqt bita payi hai..
us dhruvo ko ushi waqt samajh jana chahiye tha ki saamne jo ladki hai wo koi insaan hai nahi 👻 :roflol:
Stupidity ki bhi had hoti hai yaar wo baar baar samjhane pe bhi samajhne ki koshish nahi kar raha tha dhruv...
Bichari megha bhi kya karti... isliye ant sab kuch saaf saaf bata di,,jishe sun dhruv upar se niche daaye baayen sab jagah se hil gaya...
Maybe megha vampire ho ya phir koi chudail ya koi dayan :dazed:

Khair..... SOCHNE WALI BAAT YE HAI KI sachhayi jaanne ke baad dhruva aaj bhi megha ko dhundh raha hai har raat...
Waise us jungle mein uski paas se itni speed mein koun bhag ke gaya tha.... Koi jaanwar ya koi bhoot 👻

jo bhi ho lekin main to yahi kahungi ki ab bhi waqt hai , megha ko dhundne ki koshish chhod de to hi behtar hai dhruv ke liye....


Shaandar update, shaandar lekhni shaandar shabdon ka chayan aur sath hi dilkash kirdaaro ki bhumika bhi...

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Update 2
jab kisise pyar kare dilo jaan se agar wo achanak kho jaaye to shayad Dhruv jaisa hi haalat hoti hai .. megha ke khayalo mein is kadar khoya rehta hai ki baaki duniya se jaise koi matlab hi nahi,uski ajeeb se behavior ko leke log uske pith piche ulti sidhi bate karte rehte hai..
Waise ek baat to tay hai ki megha koi insaan nahi hai...
Lekin wo koun hai ye baat megha aur ab sirf dhruv hi jaanta hai..btw uska sach jaan kar bhi dhruv ko koi lena dena nahi tha ushe to sacha wala pyaar ho gaya tha..lekin aakhir megha ka raaz kya hai?

Waise dhruv kaafi talented hai jiski wajah se garaj ka malik use job par se chaah kar bhi nikal nahi sakta ..isliye uske badle dhruv ko har roj thoda bahot suna deta hai...par har ki tarah dhruv ignore karke bas ek hi jagah focos karta hai...ki megha kaha hogi..

Waise TheBlackBlood ji ju ko Kya lagta hai ...dhruv ki is sachi mohabbat ka kya anjaam hoga? :D
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Update 3

Jaise ki maine ye baat pehle bhi jikar ki thi ki..... pyar jinda logo se kiya jaaye to hi behtar hai insaan ke liye :D

Megha dwara kahi gayi sabhi baaton pe kabhi achhe se gaur kya hi nahi dhruv ne...
megha ka sach ....aur us sach ko janne ke baad bhi uske sath jeena chahta tha dhruv....lekin megha ko katayi manjur na thi coz ye dhruv ke liye khatarnaak sabit ho sakta tha
...maybe jaan bhi jaa sakti thi dhruv ki...lekin dhruv thehra uske pyar mein duba .ushe insab parinaamo se koi matlab nahi tha ushe bas megha ke sath jeena chaahta tha..ab megha bhi kare bhi to kya kare ....

Dhruv ke sath kuch galat na ho jaaye,, issi dar aur fikar ke chalte wo Dhruv se door ho gayi... Par haan nischit hi uska ye faisla khud uske jazbaaton ko bhi jhanjhor dene waala raha hoga......kyunki kahi na kahi uske dil mein bhi ek soft corner bana chuka tha dhruv ne...
usse dur hote waqt wo kaafi duvidha mein rahi hogi.... Lekin dhruv sahi salamat rahe isliye wo door huyi usse...
lekin ek wo dhruv uski kahi gayi baaton ko nazarandaaj kar bas ushe talaashne mein laga hai.... Majnu kahi ka :buttkick:
pyar andha hota hai... ye baat sabit kar di dhruv ne... :D

Well.... are kya baat hai ...dhruv ne us jharne ko bhi dhundh liya jiski aawaaz us ghar pe rehte waqt sunayi deta tha usko...
Jharne yun mil jaane pe jaise ek alag hi josh aa gaya ho usme... ek ummeed kiran bhi jaagi hai....
Ab to Lagta us ghar ko bhi dhundh nikalega wo....
waise ek baat tay hai ki ye dhruv kaafi dhith hai... aur uske dhithpan aur zidd ko dekh yahi lage ki jab tak megha nahi mil jaati tab tak wo chain se nahi baithne wala ....

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Update 4

Har baar dhruv flashback mein chala jaata hai.... Baar baar Megha ke sath bitaye wo saat din ke yaadon mein kho jaata hai....jaise aaj bhi wohi us waqt pe jee raha ho....
I think...dhruv jab jab megha ke khayaalo me gum hota hai tab tab wo yahi sochta hua dikhaai deta hai ki megha se wo kaise mila aur uske sath uski kya kya baatein huyi. Uski yaadein ...matlab ye flashback tabhi khatam hoga jab us saat din ka vivran pura hoga....

Jaisa ki megha ne ye baat baar baar kahi thi dhruv ko ki megha ke piche usko dhundhte huye mat aana...
Shayad aise kehne ki ek aur wajah yeh bhi thi ki dhruv ushe chaahkar bhi dhundh nahi paayega... chaahe laakhon baar koshish kar le...
Wo jharna to mil gaya lekin jab wo aage ki khoj bin ke liye kadam badhaya to ghum phir ke ushi jagah par khud ko paya...
megha ki sachhayi jaane ke baad hi ushe ehsaas ho jaana chahiye tha ki agar wo ushe dhundhne jaaye bhi to anjaani shakti dhruv ko aage badhne se jarur rokegi... Jaise ab is jungle mein mein ushe rok rahi hai taaki megha ko taalash na paaye wo...

Ye ek tarah se uske liye ishara hai ki wo megha ke piche naa aaye... waise kahi ye ishara warning mein tabdeel na ho jaaye uske liye ....

Lekin dhruv haar nahi maanne wala... :D

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Update 5
Naya din, nayi suruvaat sabke liye... Lekin dhruv ke liye aaj bhi jaise wohi waqt hai jo aaj bhi ruka hua hai... subha leke shaam phir raat tak... wo ye sochkar uthta hai ki aaj koi na koi surag mil jaani hai... lekin dhak ke teen paat, raat hote hote saari umeedon pe pani phir jaata ho.... Koshish to jaari hai apne pyar ko pane ki.
Waise pyaar Kiya to dono ne hi ek duje se .. Us saat din mein jo baatein aur activities huyi thi indono ke bich ushe padhkar yahi lage ki suru mein Megha Dhruv se door rehna chahti thi... Wo nahi chahti thi ki koyi uske liye apne aap ko dukh de... Par pyaar kahaan kisi ke kaaboo mein hota hai...par shayad kismat ko inka saath hona manzoor na tha ......aur isiliye megha ke gayab hone ke baad usko talaashte huye aaj Dhruv iss mushkilon ke bhanwar mein fasa hua hai.
Lekin dhruv us reality se anjaan hai ki jab tak megha aur dhruv ke bich mein jo aanjani taakat deewaar banke khada hai... wo taakat jab tak nahi chaahega tab tak ye dono kabhi ek nahi sakte...
Maybe wo taakat isliye bich mein aa raha hai, kyunki shayad unki mayavi duniya mein ke bhi kuch kathor niyam ho... jishe koi tod nahi sakta... yahan tak ki insaani duniya wale bhi nahi...
ek tilism hai shayad wo jharna...shayad aas paas ke sabhi jagah bhi... Aur Itna tay hai ki waha insaan ka pravesh nishedh hai...
isliye dhruv baar baar disha bhatak raha hai....
Ye lo... ye dhruv to rote rote behosh ho gaya :D lagta hai is tarah se baar baar nakaami se kuch zyada hi peeda ho rahi ho uske dil ko..
Btw ek baat to tay hai ki agar megha na mili ushe ya Megha ushe uski haalat se bahar nikaalne naa aayi to jaane uski kismat usse kahaan le jaayengi ye to koyi nahi jaanta...

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Waise TheBlackBlood ji bahot gajal shayeri add kar rahe har update mein...
To padhiye ye shayari meri taraf se...
Ek to bhatakti jindagi
Kahi ruk kar dhruv ko pyar sametne nahi deti...
Dusri.. Jindagi ki kadwahat...
Jo Megha aur dhruv mein har baar dooriyaan paida kar deti... :D
 
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