Fantasy Dark Love (Completed)

Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Update - 05
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सुबह अपने समय पर ही मैं गजराज शेठ के मोटर गैराज पर पहुंचा। हालांकि मेरा मन आज यहाँ आने का बिलकुल भी नहीं था लेकिन ये सोच कर आ गया था कि खाली बैठ कर भी क्या करुंगा? घर में रहूंगा तो मेघा के ही ख़यालों में खोया रहूंगा और ये सोच सोच कर कुछ ज़्यादा ही दुखी होऊंगा कि पिछली रात उस झरने के मिल जाने के बावजूद मैं मेघा के उस मकान तक नहीं जा पाया था। जब भी ये ख़याल आता था तो दिल में दर्द भरी टीस उभर आती थी। काश! कुछ देर के लिए ही सही मेरी किस्मत मुझ पर मेहरबान हो गई होती तो मैं जी भर के मेघा का दीदार कर लेता।

अपने ज़हन से इन ख़यालों को झटक कर मैं अपने काम पर लग गया। गैराज में और भी लोग थे लेकिन उनसे मुझे कोई मतलब नहीं होता था। हालांकि ज़रूरत पड़ने पर वो खुद ही मुझसे बात कर लेते थे और मैं भी हाँ हूं में जवाब दे कर काम कर देता था। पिछले दिन गजराज शेठ ने मुझे किसी मनोचिकित्सक के पास ले जाने की बात कही थी लेकिन मेरी ज़रा भी इच्छा नहीं थी कि मैं उसके साथ किसी डॉक्टर के पास जाऊं। गैराज में मौजूद लोग आपस में बातें कर रहे थे और उनकी बातों से ही मुझे पता चला कि गजराज शेठ कहीं बाहर गया हुआ है। उसके न रहने पर गैराज का सारा कार्यभार उसका छोटा भाई जयराज सम्हालता था। जयराज पैंतीस के ऊपर की उम्र का तंदुरुस्त आदमी था किन्तु स्वभाव गजराज शेठ से बिलकुल उलट था। वो गैराज में काम करने वाले लोगों से ज़्यादा मतलब नहीं रखता था बल्कि अपने बड़े भाई के न रहने पर कार ले कर चला जाता था। वो निहायत ही अय्यास किस्म का इंसान था। शादी शुदा होते हुए भी वो बाहर मुँह मारता रहता था।

सारा दिन मैं गैराज में काम करता रहा और शाम होने से पहले ही मैं अपना काम पूरा कर के गैराज से चल पड़ा। रास्ते में एक जगह मैंने ढाबे पर खाना खाया और फिर सीधा जंगल की तरफ चल पड़ा। मैं अपने साथ एक छोटा सा बैग लिए रहता था जिसमें पीने के लिए पानी की एक बोतल और एक बड़ी सी टोर्च होती थी। ठण्ड के मौसम में यहाँ इतनी ज़्यादा ठण्ड और कोहरा होता था कि इंसान की हड्डियों तक में ठण्ड पहुंच जाती थी।

शहर के एक तरफ ऊँचे ऊँचे पर्वत शिखर थे तो दूसरी तरफ घना जंगल। ऊँचे ऊँचे पर्वत शिखरों में बर्फ की सफेदी छा जाती थी जो दिन में बहुत ही खूबसूरत दिखती थी। दूर उन पहाड़ों के नीचे भी कच्चे पक्के मकान बना रखे थे लोग। उस तरफ ठण्ड यहाँ से ज़्यादा होती थी। रात में तो घरों की छत पर भी बर्फ की सफेदी चढ़ जाती थी। यहाँ तक कि पीने का पानी भी जम कर बर्फ में तब्दील हो जाता था।

शाम हुई नहीं थी लेकिन कोहरे की वजह से ऐसा प्रतीत होता था जैसे शाम ढल चुकी हो। आसमान में सूर्य को देखे हुए जाने कितने ही दिन बीत गए थे। इन दो सालों में मैं इतना चल चुका था कि अब इस तरह पैदल भटकने में मुझे थकान का एहसास तक नहीं होता था। मन में मेघा का दीदार करने की हसरत लिए मैं हर रोज़ जंगल की तरफ जाता था और देर रात तक घने जंगल में अकेला ही भटकता रहता था।

पिछले दो सालों से मेरी एक दिनचर्या सी बन गई थी। शाम को जब मैं मेघा की खोज में जंगल की तरफ जाता था तो रास्ते में उस जगह पर ज़रूर रुकता था जहां पर दो साल पहले मेघा को बचाने के चक्कर में मैं खुद ही मोटर साइकिल से गिर कर गंभीर रूप से घायल हो गया था। उस वक़्त तो यही लगा था कि पहले क्या कम दुःख दर्द झेल रहा था जो अब ये हादसा भी हो गया मेरे साथ लेकिन बेहोश होने के बाद जब मुझे होश आया था और मेघा जैसी बेहद हसीन लड़की पर मेरी नज़र पड़ी थी तो अपनी वीरान पड़ी ज़िन्दगी के सारे दर्द और सारे गिले शिकवे भूल गया था।

मेघा को देख कर ऐसा प्रतीत हुआ था जैसे अनंत रेगिस्तान में भटकते हुए किसी इंसान को कोई इंसान नहीं बल्कि फरिश्ता मिल गया हो। दिल से बस एक ही आवाज़ आई थी कि अगर ये लड़की मुझे हासिल हो जाए तो मेरे सारे दुःख दर्द मिट जाएं। उस वक़्त मैं भले ही उसे देख कर अवाक रह गया था लेकिन मेरा दिल तो मेघा को देखते ही उसके प्रति अपने अंदर मोहब्बत के अंकुर को जन्म दे चुका था। उसके बाद जब मेरा दिल चीख चीख मुझसे मेघा के प्रति अपनी मोहब्बत की दुहाई देने लगा तो मैं भी उसकी गुहार को दबा नहीं सका। मैं भला कैसे अपने दिल के जज़्बातों को दबा देता जबकि मुझे भी यही लगता था कि मेघा ही वो लड़की है जिसके आ जाने से मेरी ज़िन्दगी संवर सकती थी और मुझे जीने का एक खूबसूरत मकसद मिल जाता।

दो साल पहले इस सड़क के दोनों तरफ हल्की हल्की झाड़ियां थी किन्तु आज झाड़ियां नहीं थी बल्कि दोनों तरफ पथरीली ज़मीन दिख रही थी। सड़क के किनारे कुछ दूरी पर वो पत्थर आज भी मौजूद था जिस पर मेरा सिर टकराया था और मैं बेहोशी की गर्त में डूबता चला गया था। फ़र्क सिर्फ इतना ही था कि वो पत्थर पहले सड़क के किनारे ही झाड़ियों के पास मौजूद था किन्तु आज उसे सड़क से थोड़ा दूर कर दिया गया था। पथरीली ज़मीन पर पड़ा वो अकेला पत्थर मेरे लिए बहुत मायने रखता था। भले ही उसने दो साल पहले मुझे ज़ख़्मी किया था किन्तु उसी की वजह से मुझे मेघा मिली थी और मेघा के साथ एक हप्ते रहने का सुख मिला था।

"कहां चली गई थी तुम?" शाम को जब मेघा मेरे पास वापस आई तो मैंने उससे पूछा था____"सारा दिन इस डरावने कमरे में मैं अकेला रहा। मुझे लगा तुम किसी काम से ग‌ई होगी और जल्दी ही वापस आ जाओगी लेकिन सुबह की गई तुम शाम को आई हो। क्या मैं जान सकता हूं कि सारा दिन कहां थी तुम?"

"तुम्हें इस बात से कोई मतलब नहीं होना चाहिए ध्रुव।" उसने सपाट लहजे में कहा था_____"तुम यहाँ पर सिर्फ इस लिए हो क्योंकि मेरी वजह से तुम घायल हुए हो और मैं चाहती हूं कि तुम जल्द से जल्द ठीक हो जाओ ताकि मैं तुम्हें तुम्हारे घर सही सलामत पहुंचा सकूं। उसके बाद हम दोनों एक दूसरे के लिए अजनबी हो जाएंगे।"

"मतलब जब तक मैं पूरी तरह से ठीक नहीं हो जाऊंगा तब तक मैं यहीं पर रहूंगा?" मैं जाने क्यों मन ही मन उसकी बात से खुश हो गया था____"ये तो बहुत अच्छी बात है मेरे लिए।"

"क्या मतलब??" मेघा ने उलझन पूर्ण भाव से मेरी तरफ देखा था।
"मतलब ये कि जब तक मैं पूरी तरह ठीक नहीं हो जाऊंगा।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा था____"तब तक तुम मुझे अपने इस कमरे में ही रखोगी जो कि मेरे लिए अच्छी बात ही होगी। मैं ऊपर वाले से अब यही दुआ करुंगा कि दुनियां की कोई भी दवा मेरे ज़ख्मों का इलाज़ न कर पाए।"

"तुम्हारा दिमाग़ ख़राब हो गया है क्या?" मेघा के चेहरे पर हैरानी के भाव उभर आए थे, बोली____"भला ऐसी दुआ तुम कैसे कर सकते हो?"
"तुम नहीं समझोगी मेघा।" मैंने उसी मुस्कान के साथ कहा था____"ये दिल का मामला होता ही ऐसा है। किसी की मोहब्बत में गिरफ्तार हुआ इंसान अपने सनम के लिए ऐसी ही ख़्वाहिशें करता है और ऐसी ही दुआएं करता है। साधारण इंसान भले ही इसे मूर्खता या पागलपन कहे लेकिन जो इश्क़ के मर्म को समझता है वही जानता है कि ये कितना खूबसूरत एहसास होता है।"

"तुम फिर से वही राग अलापने लगे?" मेघा ने शख़्त भाव से कहा____"तुम मेरी नरमी का नाजायज़ फ़ायदा उठा रहे हो जोकि सरासर ग़लत है।"
"अगर तुम्हें लगता है कि मुझे ऐसा नहीं करना चाहिए।" मैंने उसकी तरफ अपलक देखते हुए कहा था____"तो इसके लिए तुम मुझे बड़े शौक से सज़ा दे सकती हो। तुम्हारे हाथों से सजा पा कर मुझे ख़ुशी ही महसूस होगी।"

मेरी बातें सुन कर मेघा के चेहरे पर बेबसी के भाव उभर आए थे। मैं अपनी आँखों में उसके प्रति बेपनाह मोहब्बत लिए उसी की तरफ देखे जा रहा था। उसकी बेबसी देख कर मेरे होठों पर उभरी मुस्कान और भी बढ़ गई थी किन्तु अचानक ही मुझे झटका सा लगा। एकाएक दिल में दर्द सा उठा। दिल ने तड़प कर मुझसे कहा कि मैं अपनी मोहब्बत को किसी बात के लिए बेबस कैसे कर सकता हूं? ऐसा करना तो मोहब्बत की तौहीन होती है।

"मुझे माफ़ कर दो मेघा।" दिल की आवाज़ सुनने के बाद मैंने खेद भरे भाव से कहा____"मैं भूल गया था कि हम जिससे मोहब्बत करते हैं उसे किसी बात के लिए मजबूर या बेबस नहीं कर सकते, क्योंकि ऐसा करना मोहब्बत की तौहीन करना कहलाता है।"

मेरी बात सुन कर मेघा के चेहरे के भाव बड़ी तेज़ी से बदले। एक बार फिर से उसने मेरी तरफ हैरानी से देखा। कुछ कहने के लिए उसके होठ कांपे तो ज़रूर लेकिन होठों से कोई अल्फ़ाज़ ख़ारिज न हो सका था। शायद उसे समझ ही नहीं आया था कि वो क्या कहे?

"तुम मुझे जल्द से जल्द ठीक कर के मुझे मेरे घर भेज देना चाहती हो न?" मैंने गंभीर भाव से कहा था____"तो ठीक है, मैं भी अब यही दुआ करता हूं कि मैं जल्द से जल्द ठीक हो जाऊं। तुम्हें मेरी वजह से इतना परेशान होना पड़ रहा है इसका मुझे बेहद खेद है।"

"अब ये क्या कह रहे हो तुम?" मेघा चकित भाव से बोल पड़ी थी____"अभी तक तो यही चाह रहे थे न कि तुम्हें यहीं रहना पड़े?"
"सब कुछ हमारे चाहने से कहां होता है मेघा?" मैंने फीकी सी मुस्कान के साथ कहा था____"असल में मैं ये बात भूल गया था कि मोहब्बत वो चीज़ नहीं है जो बदले में किसी से कर ली जाती है बल्कि वो तो एक एहसास है जो किसी ख़ास को देख कर ही दिल में अचानक से पैदा हो जाता है। ये सच है कि तुम्हें देख कर मेरे अंदर ऐसा ही एहसास पैदा हो चुका है लेकिन ये ज़रूरी थोड़े न है कि मुझे देख कर तुम्हारे दिल में भी ऐसा ही एहसास पैदा हो जाए। इस लिए अब से मैं तुम्हें किसी बात के लिए न तो मजबूर करुंगा और न ही बेबस करुंगा।"

"पता नहीं क्या क्या बोलते रहते हो तुम।" मेघा ने उखड़े हुए लहजे में कहा था_____"अच्छा ये सब छोड़ो, मैं तुम्हारे लिए एक ख़ास दवा लेने गई थी। बड़ी मुश्किल से मिली है ये। इस दवा का लेप लगाने से तुम्हारे ज़ख्म जल्दी ही ठीक हो जाएंगे।"

मेघा के हाथ में एक नीले रंग की कांच की शीशी थी जिसकी निचली सतह पर पीतल की धातु की नक्काशी की हुई परत चढ़ी हुई थी और शीशी के ढक्कन पर भी वैसी ही धातु की नक्काशी की हुई परत चढ़ी हुई थी। मैंने इसके पहले कभी ऐसी कोई शीशी नहीं देखी थी। मेघा उसे लिए मेरे क़रीब आई और बिस्तर के किनारे पर बैठ गई। उसे अपने इतने क़रीब बैठे देखा तो मेरी नज़रें उसके खूबसूरत चेहरे पर जम सी गईं और मुझे ऐसा प्रतीत हुआ जैसे मैं फिर से उसके सम्मोहन में फँसता जा रहा हूं। मन में बस एक ही ख़याल उभरा कि ऊपर वाले ने उसे कितनी खूबसूरती से बनाया था। राजकुमारियों जैसी पोशाक और गले में सोने की जंजीर जिसमें एक गाढ़े नीले रंग का ऐसा नगीना था जो चारो तरफ से सोने की बेहतरीन नक्काशी के साथ फंसा हुआ था।

"अब ऐसे आँखें फाड़े क्यों देख रहे हो मुझे?" मेघा की आवाज़ मेरे कानों में पड़ी तो मैं एकदम से चौंका और हड़बड़ा कर उसके चेहरे से अपनी नज़रें हटा ली। थोड़ी शर्मिंदगी भी हुई किन्तु अब भला मैं कर भी क्या सकता था? वो थी ही ऐसी कि उसे क़रीब से देखने पर हर बार मैं उसके सम्मोहन में खो जाता था।

"अच्छा एक बात बताओ।" मेघा ने मेरे माथे पर अपने हाथ से तेल जैसा कुछ लगाते हुए अचानक से कहा तो मैंने एक बार फिर उसकी तरफ देखा, जबकि उसने आगे कहा____"क्या सच में मोहब्बत इतनी अजीब सी चीज़ होती है?"

"क्या मतलब?" मैं उसके मुख से ये सुन कर चौंक गया था, फिर खुद को सम्हाल कर बोला____"मेरा मतलब कि तुम्हारे कहने का मतलब क्या है?"

"पिछले चार दिनों से मैं तुम्हारे मुँह से यही सुन रही थी कि तुम मुझसे बेहद प्रेम करते हो।" मेघा अपनी मधुर आवाज़ में कह रही थी____"और मुझे तुम्हारी ऐसी बातें सुन कर गुस्सा भी आता था लेकिन आज अचानक से तुम ये कहने लगे कि अब तुम मुझे किसी बात के लिए मजबूर नहीं करोगे। मुझे समझ नहीं आया कि एक ही पल में तुम दूसरी तरह की अजीब बातें क्यों करने लगे थे?"

"अब ये सब तुम क्यों पूछ रही हो?" मैं अंदर ही अंदर उसकी ये बातें सुन कर हैरान था और इसी लिए ये सवाल पूछा था____"मैं तो अब वही करने को तैयार हूं जो तुम चाहती हो, फिर ये सब पूछने का क्या मतलब है?"

"तुम बताना नहीं चाहते तो कोई बात नहीं।" मेघा ने बेड से उठते हुए कहा था____"अच्छा अब तुम कुछ देर आराम करो और हाँ यहाँ से बाहर जाने का सोचना भी मत।"

"क्या अब नहीं आओगी तुम?" मैं उसे जाता देख एकदम से मायूस हो गया था____"क्या मेरी वजह से तुम यहाँ पर नहीं रूकती हो? देखो, अगर तुम ये समझती हो कि मैं तुम्हें अपनी बातों से परेशान करुंगा तो मैं वादा करता हूं कि अब से मैं तुमसे किसी भी बारे में कोई बात नहीं करुंगा। तुम यहाँ पर बेफिक्र हो कर रुक सकती हो।"

"मुझे तुमसे कोई समस्या नहीं है ध्रुव।" मेघा ने पलट कर कहा था____"लेकिन मैं यहाँ नहीं रह सकती क्योंकि मुझे बहुत से काम करने होते हैं। बाकी तुम्हें यहां पर किसी बात की कोई परेशानी नहीं होगी। अच्छा अब सुबह मुलाक़ात होगी।"

कहने के साथ ही मेघा दरवाज़ा खोल कर किसी झोंके की तरह निकल गई। मैं बंद हो चुके दरवाज़े को मायूस सा देखता रह गया था। पिछले चार दिन से यही हो रहा था। मेघा मेरे पास या तो सुबह आती थी या फिर शाम को। सुबह वो मेरे लिए खाना और दवा ले के आती थी। कुछ देर रुकने के बाद वो चली जाती थी। सारा दिन मैं अकेला ही उस कमरे में रहता था। शाम को भी ऐसा ही होता था। मेघा मेरे लिए खाना और दवा ले कर आती और अपने हाथों से मेरे ज़ख्मों पर दवा लगा कर वो चली जाती थी। उसके बाद रात भर मैं फिर से अकेला ही उस कमरे में रह जाता था। मैं हर रोज़ मेघा से रुकने के लिए कहता था और हर रोज़ वो मुझसे यही सब कह कर चली जाती थी। मैं अक्सर सोचता था कि आख़िर वो मेरे पास ज़्यादा समय तक रूकती क्यों नहीं है? वो ऐसा क्या काम करती थी जिसके लिए उसे रात में भी जाना पड़ता था?

किसी वाहन के हॉर्न बजने से मैं मेघा के ख़यालों से बाहर आया। शाम का धुंधलका छाने लगा था। हालांकि कोहरे की वजह से शाम जैसा ही लगता था किन्तु कोहरा होने के बावजूद ये आभास हो ही जाता था कि शाम कब हुई है। ख़ैर मैं गहरी सांस ले कर आगे की तरफ बढ़ चला।

मन में जाने कितने ही ख़याल बुनते हुए, दिल में जज़्बातों के जाने कितने ही तूफ़ान समेटे हुए। मैं बढ़ता ही चला जा रहा था एक ऐसे सफ़र पर जिसका मुझे अंदाज़ा तो था लेकिन मंज़िल कब मिलेगी इसका पता न था। उसने तो मना किया था कि मुझे खोजने की कोशिश मत करना और शुरुआत में मैंने भी यही कोशिश की थी लेकिन जब उसकी यादों ने सताना शुरू किया तो मजबूरन मुझे उसकी खोज में घर से निकलना ही पड़ा। उसे कैसे समझाता कि कहने में और करने में कितना फ़र्क होता है? उसे कैसे समझाता कि जिसके दिल पर गुज़रती है उसके अलावा दूसरा कोई भी उसके दर्द को महसूस नहीं कर सकता?

चलते चलते अचानक मैं रुक गया। नज़र बाएं तरफ कोहरे की धुंध में डूबे जंगल की तरफ पड़ी तो दिल में ये सोच कर एक मीठी सी लहर दौड़ गई कि शायद आज वो मुझे मिल ही जाए, जिसके दीदार के लिए मैं पिछले दो सालों से दर दर भटक रहा हूं। शायद आज ऊपर वाले को मुझ पर तरस आ जाए और वो मुझे मेरी मोहब्बत से मिला दे। ये मेरा दिल ही जानता था कि उससे मिलने के लिए और उसे एक बार देख लेने के लिए मैं कितना तड़प रहा था। कोहरे की धुंध में डूबे जंगल की तरफ देखा तो दिल की धड़कनें थोड़ी सी तेज़ हो ग‌ईं। दिल के जज़्बात तेज़ी से मचलने लगे। मैंने बड़ी मुश्किल से उन्हें शांत किया और पक्की सड़क से उतर कर जंगल की तरफ जाने वाली पगडण्डी पर चलने लगा।

शाम पूरी तरह घिर चुकी थी। आस पास दूर दूर तक कोई नज़र नहीं आ रहा था। फ़िज़ा में ऐसा सन्नाटा छाया हुआ था जैसे प्रलय के बाद एकदम से सब कुछ शांत हो गया हो। हालांकि ठण्ड का आभास ज़रूर हो रहा था जो मेरे जिस्म को बुरी तरह कंपा देने के लिए काफी था किन्तु ये ठंड ऐसी नहीं थी जो मेरे इरादों और हौसलों को परास्त कर दे। मैं तो जैसे हर चीज़ को चीरता हुआ आगे ही बढ़ता चला जा रहा था। बैग से मैंने टोर्च निकाल कर हाथ में ले ली थी और अब उसी के प्रकाश में आगे बढ़ रहा था। कुछ ही देर में मैं जंगल में दाखिल हो गया। जंगल की ज़मीन पर पड़े सूखे पत्ते मेरे चलने से ऐसी आवाज़ें करने लगे थे जो किसी भी साधारण इंसान की रूह को थर्रा देने के लिए काफी थे।

जाने कितनी ही देर तक मैं जंगल में चलता रहा। घने कोहरे की वजह से ठीक से कुछ दिखाई नहीं दे रहा था लेकिन फिर भी मैं अंदाज़वश चलता ही जा रहा था। पिछले दिन जब मैं यहाँ आया था तो एक जगह मुझे एकदम से रुक जाना पड़ा था क्योंकि मैंने पास ही कहीं से झरने में पानी के बहने की आवाज़ सुनी थी। आज भी मैं पूरी तरह से चौकन्ना हो कर उसी पानी के बहने की आवाज़ को सुनने की कोशिश में लगा हुआ था लेकिन फिलहाल कहीं से ऐसी आवाज़ सुनाई देती प्रतीत नहीं हो रही थी। कभी कभी सोचा करता था कि पिछले दो साल से मैं इस जंगल में हर रोज़ आता हूं लेकिन ना तो कभी वो झरना नज़र आया और ना ही झरने के आस पास बना वो पुराना सा मकान। ऐसा भी नहीं था कि इस जंगल का कोई अन्त ही नहीं था, फिर भला ऐसा कैसे हो सकता था कि मुझे दो में से कोई भी चीज़ इन दो सालों में नज़र ही न आए?

अभी मैं ये सब सोच ही रहा था कि तभी किसी आवाज़ पर मैं अपनी जगह पर रुक गया। दिल की धड़कनें एकदम से बढ़ ग‌ईं। मैंने पूरी एकाग्रता से सुनने की कोशिश की तो कुछ ही पलों में मेरे चेहरे पर ख़ुशी के भाव उभर आए। मेरे दाहिने तरफ से पिछली रात की तरह ही झरने में पानी के बहने की आवाज़ सुनाई दी। उस आवाज़ से साफ़ लग रहा था जैसे उँचाई से गिरता हुआ पानी नीचे तेज़ आवाज़ के साथ गिर रहा है। मैं बड़ी तेज़ी से दाए तरफ पलटा। टोर्च की रौशनी उस तरफ डाली किन्तु धुंध की वजह से दूर का कुछ नज़र नहीं आया। मैं तेज़ी से उस तरफ बढ़ चला। एक बार फिर से मेरे दिल के जज़्बात भड़क उठे थे। दिलो दिमाग़ मेघा को देखने के लिए बेकरार हो उठा था। जल्दी ही मैं झरने के पास आ गया।

ये वही झरना था जिसे मैंने कल देखा था। पानी के गिरने की ऐसी ही आवाज़ मुझे तब सुनाई देती थी जब मैं मेघा के उस पुराने से मकान के कमरे में रह रहा था। मेघा मुझे कमरे से बाहर जाने के लिए शख़्ती से मना कर देती थी इस लिए मैं ये देख ही न सका था कि ये झरना उस मकान से कितनी दूरी पर है या किस दिशा की तरफ है? दिशा...??? ज़हन में दिशा की बात आते ही मैं बुरी तरह चौंका। हाँ दिशा, दिशा की ही तो बात है। मेरे ज़हन में बड़ी तेज़ी से दिशा के बारे में जाने कितने ही सवाल उठ खड़े हुए। मैंने सोचा संभव है कि मेघा का मकान इस झरने के उस पार हो। इस पार तो मैंने दूर दूर तक देख लिया था, ये अलग बात है कि किसी चमत्कारिक ढंग से मैं हर बार झरने के पास ही आ जाता था।

आज से पहले मेरे ज़हन में ये विचार ही नहीं आया था कि मेघा का वो मकान झरने के आर या पार भी हो सकता है। हालांकि कल से पहले मुझे ये झरना भी नहीं मिला था। उस हिसाब से अगर देखा जाए तो संभव है कि मैंने इन दो सालों में झरने के पार भी देखा हो। झरना भले ही नज़र न आया था लेकिन इन दो सालों में मैंने पूरा जंगल छान मारा था। अपने मन में उठे इस ख़याल के बारे में जब मैंने विचार किया तो मुझे कल वाली घटना याद आई कि कैसे मैं हर बार घूम फिर कर झरने के पास ही आ जाता था तो संभव है कि मेघा के मकान का मामला भी झरने जैसा ही हो।

मैं तेज़ी से टोर्च के प्रकाश में एक तरफ को बढ़ चला। पिछली रात मैं झरने के किनारे किनारे चलते हुए मुख्य सड़क पर पहुंच गया था इस लिए आज मैं विपरीत दिशा की तरफ झरने के किनारे किनारे चलने लगा था। हर आठ दस क़दम के अंतराल में मैं एक बार टोर्च के प्रकाश को झरने की तरफ फोकस कर देता था। ऐसा इस लिए कि पिछली रात की तरह कहीं ऐसा न हो कि ये झरना अचानक से गायब हो जाए। मैं झरने के उस तरफ बढ़ रहा था जिधर उँचाई से पानी नीचे की तरफ गिर रहा था। किनारे किनारे चलने से पानी की तेज़ आवाज़ मेरे कानों में साफ़ सुनाई दे रही थी।

काफी देर तक मैं यूं ही चलता रहा। अचानक से मैंने महसूस किया कि झरने के किनारे किनारे मैं इतनी देर से चल रहा हूं लेकिन ना तो अभी तक मैं झरने के मुख्य छोर तक पहुंचा हूं और ना ही झरने में उँचाई से पानी गिरने की आवाज़ में कोई फ़र्क आया है। पानी गिरने की तेज़ आवाज़ वैसी ही सुनाई दे रही थी जैसे तब दे रही थी जब मैं कुछ समय पहले झरने के पास खड़ा था। इस विचार के उठते ही मैं ये सोच कर चौंका कि इसका मतलब मैं अभी भी उसी जगह पर खड़ा हूं जहां पहले खड़ा था लेकिन ऐसा कैसे हो सकता है? मुझे अच्छी तरह याद है कि मुझे चलते हुए काफी समय गुज़र गया था और टोर्च की रौशनी में मैं आगे ही बढ़ता जा रहा था तो फिर ऐसा कैसे हो सकता है कि मैं पहली जगह पर ही मौजूद हूं?

जाने ये कैसा मायाजाल था जो मुझे इस तरह से भटका रहा था? ये सोचते ही मैं निराशा और हताशा से भर गया। दिल में बड़ा तेज़ दर्द उठा जिसने मेरी आँखों से आंसू छलका दिए। नहीं नहीं, हे! ऊपर वाले मेरा ऐसा इम्तिहान मत ले। मुझे मेरी मेघा से मिला दे वरना मैं उसकी याद में तड़प कर मर जाऊंगा।

मैं वहीं झरने के किनारे घुटनों के बल गिर पड़ा और फूट फूट कर रोने लगा। मेरा जी चाहा कि हलक फाड़ कर मेघा का नाम ले कर चिल्लाऊं और उससे कहूं कि क्यों वो मुझ पर तरस नहीं खाती है? आख़िर क्यों वो मेरी चाहत का इस तरह से इम्तिहान ले रही है? माना कि वो मुझसे प्रेम नहीं करती लेकिन मेरे दिल की ख़ुशी के लिए सिर्फ एक बार अपनी सूरत तो दिखा दे मुझे। उसके बाद तो मैं वैसे भी उसकी जुदाई का ग़म बरदास्त नहीं कर पाऊंगा और मेरे जिस्म से मेरे प्राण चले जाएंगे।

जाने कितनी ही देर तक मैं यही सब सोच सोच कर रोता रहा। एकाएक मेरा रोना रुक गया। अगले ही पल मैं चौंका क्योंकि मेरे कानों में झरने के पानी बहने की कोई आवाज़ सुनाई नहीं दे रही थी। मैंने जल्दी से टोर्च उठा कर झरने की तरफ रौशनी की। मैं ये देख कर बुत सा बन गया कि उस तरफ अब कोई झरना नहीं था बल्कि घने पेड़ थे और उनके बीच कोहरे की गहरी धुंध। मुझे बड़ा तेज़ झटका लगा और मैं वहीं पर चक्कर खा कर लुढ़क गया।

दौरे-हयात में कोई मुस्तकबिल भी नहीं।
ऐसे रास्ते में हूं जिसकी मंज़िल भी नहीं।।

मैं उसकी याद में हर रोज़ जीता मरता हूं,
जिसके सीने में धड़कता दिल भी नहीं।।

जाने क्यों उसकी जुस्तजू में भटकता हूं,
वो एक शख़्स जो मुझे हासिल भी नहीं।।

हाल-ए-दिल अपना कहूं तो किससे कहूं,
मेरा हमदर्द मेरा कोई आदिल भी नहीं।।

वो सितमगर है लेकिन अज़ीज़ है मुझको,
मेरा दिल उसके जैसा संगदिल भी नहीं।।

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Bᴇ Cᴏɴғɪᴅᴇɴᴛ...☜ 😎
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Roman me na jaise ye comment maine kiya kyuki devnagri sab readers nai padh pate(subham bhai is point par dhyan dena ) baad me hinglish me likhna
Ab jab koi new story likhuga to roman me likhuga bhai. Baaki jise padhna hota hai wo devnagri me bhi padhte hain aur jise nahi padhna hota wo roman me likhi hui story bhi nahi padhte. Yaha logo ko sirf ghapaghap wali story chahiye. :dazed:
 

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