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सवारी की आवाज सुनकर राज ने टैक्सी रोक दी और हाथ बढ़ाकर पिछली खिड़की खोल दी। एक स्वस्थ सांवले रंग का युवक टैक्सी में सवार होता हुआ अपने साथियों से बोला, “आओ यारो बैठो...तुम भी क्या याद करोगे।”
राज ने सिगरेट निकालकर सुलगाई। इतनी देर में दो साथी उस युवक के साथ बैठ गए और तीसरा राज के साथ अगली सीट पर चला आया। सांवले रंग के युवक ने राज के कंधे पर हाथ मारकर कहा, “चलो बादशाहो...रीगल बार चलो...”
टैक्सी चल पड़ी। युवक बड़ा प्रसन्न दीख रहा था।
अगली सीट पर बैठे मित्र ने पीछे मुड़कर सांवले युवक से पूछा, “कौन सी मिलेगी आज?”
“जो यार लोग चाहें...” सांवले युवक ने खुले हृदय से उत्तर दिया, “आज हम बहुत खुश हैं...सबको अपनी-अपनी पसन्द की पिलाएंगे...फिर वहां से जुहू चलेंगे...आज वहां बढ़िया ‘माल’ मिलेगा।”
“अवश्य चलेंगे...” पीछे से एक साथी उछलकर बोला, “आज तुम खुश हो तो हम सब तुम्हारी खुशी में सम्मिलित हैं...”
“अरे खुश क्यों न होंगे...” तीसरे ने चहककर कहा, “हमारा एक साथी उन्नति कर रहा है...हमारे लिए खुशी और गौरव की बात है।”
“वास्तव में इससे बढ़कर और खुशी की बात क्या हो सकती है...बल्कि यह तो मान का स्थान है कि हमारा एक मित्र अपने बूते पर अपने साहस और परिश्रम से एक साधारण मिस्त्री से इतनी बड़ी फैक्ट्री का मालिक बन बैठा है और अब उसने नया प्लान बना डाला है तो स्टेट बैंक ने डेढ़ लाख रुपया देना तय किया है इसके लिए।”
“रीगल बार के लिए...” राजा बहुत धीरे व्यंग्यभरे स्वर में बड़बड़ाया।
“क्या...?” राज के साथ अपनी सीट पर बैठे व्यक्ति ने चौंककर पूछा।
“मैं पूछा रहा था रीगल बार ही चलना है?”
“और कोई इससे अच्छी बार हो तो वहां ले चलो।” पीछे बैठा सांवला युवक बोला। वह अत्यधिक प्रसन्न मुद्रा में था।
“दूसरी बार बहुत दूर है।” एक ने कहा, “फिर यहां से जुहू के लिए टैक्सी ही नहीं मिलेगी।”
“चिन्ता मत करो यारो!” युवक बोला, “छः महीने तक यह टैक्सी इत्यादि का झगड़ा भी समाप्त हो जाएगा...मैंने एम्बेसेडर अभी से बुक करा दी है...हां...शान से घूमा करेंगे...”
“डेढ़ लाख रुपया...जिन्दाबाद...” राज बड़बड़ाया।
“क्या कह रहे हो?” साथ बैठे व्यक्ति ने राज से पूछा।
“कुछ नहीं...” राज ने गम्भीर होकर उत्तर दिया।
“अरे यारो! जीवन में और रखा ही क्या है?” सांवला युवक प्रसन्न मुद्रा में बोला, “खाओ पियो...और ऐश करो...”
“और मित्रों को ऐश कराओ...” राज फिर बड़बड़ाया, “फिर टैक्सी-ड्राइवर बन जाओ।”
“तुमने फिर कुछ कहा?” साथ बैठे व्यक्ति ने कुछ क्रोध प्रकट करते हुए राज से पूछा।
“नहीं साहब...”
रीगल बार के सामने टैक्सी रुक गई। मित्र-मंडली टैक्सी में से उतरी। सांवले स्वस्थ युवक ने किराया दिया और साथियों के कंधों पर हाथ रखकर बोला, “चलो...यारो...”
“मेरी जेब खाली होने के लिए व्याकुल है...” राज ने मुस्कराते हुए व्यंग्य कसा।
मंडली में से केवल एक साथी ने यह वाक्य सुना और राज को घूर कर देखा। राज बड़े सन्तोष से सिगरेट का कश ले रहा था। वह व्यक्ति पलट कर दूसरे साथियों के संग बार की ओर बढ़ गया। इसी समय बार में से अनिल, कुमुद, धर्मचन्द और फकीरचन्द निकलते दिखाई दिए...वे लोग नशे में लड़खड़ा रहे थे। धर्मचन्द ने टैक्सी देखकर पुकारा, “टैक्सी...”
राज ने चुपचाप हाथ बढ़ा कर पिछली खिड़की खोल दी। अनिल को संभाले हुए धर्मचन्द और कुमुद पिछली सीट पर बैठ गए और फकीरचन्द लड़खड़ाता हुआ अगली सीट पर आन विराजा। उनमें से किसी ने भी राज को नहीं देखा था। राज ने कोट के कालर खड़े कर लिए और टोपी को और आगे माथे पर झुका लिया। टैक्सी चल पड़ी फकीरचन्द ने लड़खड़ाती हुई जबान में बताया कि उन्हें कहां जाना है। अचानक अनिल ऊंचे स्वर में रोने लगा। धर्मचन्द ने घबराकर कहा, “अरे अरे...क्या कर रहे हो? मैं पहले ही कह रहा था इतनी मत पियो...”
“मैं क्या करूं...एक क्षण भी तो मेरे मन को चैन नहीं पड़ता।”
“अरे! ऐसी हरजाई औरत के लिए रोते हो?” फकीरचन्द ने बुरा-सा मुंह बनाकर कहा, “क्या तुम्हें मालूम नहीं कि वह तुमसे पहले भी कितने पूंजीपतियों, सेठों से प्रेम की पींगें बढ़ा चुकी है...यह तो उसका धंधा है।”
राज ने हल्की-सी सांस ली। उसके होंठों पर एक शांतिमयी मुस्कराहट रेंग गई। वह जानता था कि बातचीत का विषय संध्या थी। अनिल ने कहा, “अरे, मुझे उस हरजाई का दुख थोड़े है...मुझे तो चिन्ता उन दस हजार रुपयों की है जो उसे अपने डैडी की तिजोरी से निकालकर दिए थे जो उन्होंने एक सौदे के लिए रखे थे...पचास हजार थे...दस हजार मैं निकाल लाया था...यदि सौदे के समय पूरे पचास हजार न मिले तो डैडी की सारी साख मंडी में समाप्त हो जाएगी। मेरे डैडी बहुत सख्त हैं...वह मुझे झट-फारखती दे देंगे। और फिर पूरी धन-सम्पत्ति का अधिकारी मेरा छोटा भाई रह जाएगा। वह वैसे ही मुझसे जलता है, क्योंकि उसे पढ़ना पड़ रहा है और मैं ऐश करता हूं।”
“अरे, तो आंखें बन्द करके देने की आवश्यकता ही क्या थी।” कुमुद ने क्रोध से कहा।
“मुझे क्या मालूम था कि वह नीच केवल अभिनय कर रही है...उसने कुछ इस ढंग से प्यार जताया था कि मैं समझा अब वह मुझे चाहने लगी है....और शीघ्र ही हमारी मंगनी हो जाएगी...मैं क्या जानता था कि जिस दिन मुझसे पैसे लेगी उसके दूसरे ही दिन सन्तोष के साथ दिखाई देने लगेगी...मुझे लिफ्ट तक नहीं दी उस दिन....मेरे पास कोई प्रमाण भी नहीं है कि मैंने उसे दस हजार रुपये दिए हैं।”
“छोड़ो यार नरक में झोंको,” धर्मचन्द बोला, “मिट्टी की हंडिया टूटी कुत्ते की जात मालूम हो गई...हम तुम्हारे दोस्त हैं, ऐसे तुम्हें कंगाल थोड़े ही होने देंगे...पांच हजार मैं दे दूंगा, शेष पांच हजार फकीरचन्द और कुमुद मिलकर पूरा कर देंगे..किन्तु, अब तुम ऐसी मूर्खता छोड़ो....जैसा कि तुम्हारे डैडी कहते हैं फौरन पूरा कारोबार अपने हाथ में ले लो...तुम्हारे छोटे भाई की शिक्षा पूर्ण हो रही है...यदि डैडी ने उसे कारोबार का प्रबंधक बना दिया तो टापते रह जाओगे।”
“ठीक कहते हो तुम लोग....आजकल किसी का क्या भरोसा। मैं कल ही डैडी के सामने गम्भीर हो जाऊंगा।”
राज के होंठों पर मुस्कराहट फैल गई। उन लोगों की मंजिल आ गई थी इसलिए राज ने टैक्सी रोक दी।
राज ने सिगरेट निकालकर सुलगाई। इतनी देर में दो साथी उस युवक के साथ बैठ गए और तीसरा राज के साथ अगली सीट पर चला आया। सांवले रंग के युवक ने राज के कंधे पर हाथ मारकर कहा, “चलो बादशाहो...रीगल बार चलो...”
टैक्सी चल पड़ी। युवक बड़ा प्रसन्न दीख रहा था।
अगली सीट पर बैठे मित्र ने पीछे मुड़कर सांवले युवक से पूछा, “कौन सी मिलेगी आज?”
“जो यार लोग चाहें...” सांवले युवक ने खुले हृदय से उत्तर दिया, “आज हम बहुत खुश हैं...सबको अपनी-अपनी पसन्द की पिलाएंगे...फिर वहां से जुहू चलेंगे...आज वहां बढ़िया ‘माल’ मिलेगा।”
“अवश्य चलेंगे...” पीछे से एक साथी उछलकर बोला, “आज तुम खुश हो तो हम सब तुम्हारी खुशी में सम्मिलित हैं...”
“अरे खुश क्यों न होंगे...” तीसरे ने चहककर कहा, “हमारा एक साथी उन्नति कर रहा है...हमारे लिए खुशी और गौरव की बात है।”
“वास्तव में इससे बढ़कर और खुशी की बात क्या हो सकती है...बल्कि यह तो मान का स्थान है कि हमारा एक मित्र अपने बूते पर अपने साहस और परिश्रम से एक साधारण मिस्त्री से इतनी बड़ी फैक्ट्री का मालिक बन बैठा है और अब उसने नया प्लान बना डाला है तो स्टेट बैंक ने डेढ़ लाख रुपया देना तय किया है इसके लिए।”
“रीगल बार के लिए...” राजा बहुत धीरे व्यंग्यभरे स्वर में बड़बड़ाया।
“क्या...?” राज के साथ अपनी सीट पर बैठे व्यक्ति ने चौंककर पूछा।
“मैं पूछा रहा था रीगल बार ही चलना है?”
“और कोई इससे अच्छी बार हो तो वहां ले चलो।” पीछे बैठा सांवला युवक बोला। वह अत्यधिक प्रसन्न मुद्रा में था।
“दूसरी बार बहुत दूर है।” एक ने कहा, “फिर यहां से जुहू के लिए टैक्सी ही नहीं मिलेगी।”
“चिन्ता मत करो यारो!” युवक बोला, “छः महीने तक यह टैक्सी इत्यादि का झगड़ा भी समाप्त हो जाएगा...मैंने एम्बेसेडर अभी से बुक करा दी है...हां...शान से घूमा करेंगे...”
“डेढ़ लाख रुपया...जिन्दाबाद...” राज बड़बड़ाया।
“क्या कह रहे हो?” साथ बैठे व्यक्ति ने राज से पूछा।
“कुछ नहीं...” राज ने गम्भीर होकर उत्तर दिया।
“अरे यारो! जीवन में और रखा ही क्या है?” सांवला युवक प्रसन्न मुद्रा में बोला, “खाओ पियो...और ऐश करो...”
“और मित्रों को ऐश कराओ...” राज फिर बड़बड़ाया, “फिर टैक्सी-ड्राइवर बन जाओ।”
“तुमने फिर कुछ कहा?” साथ बैठे व्यक्ति ने कुछ क्रोध प्रकट करते हुए राज से पूछा।
“नहीं साहब...”
रीगल बार के सामने टैक्सी रुक गई। मित्र-मंडली टैक्सी में से उतरी। सांवले स्वस्थ युवक ने किराया दिया और साथियों के कंधों पर हाथ रखकर बोला, “चलो...यारो...”
“मेरी जेब खाली होने के लिए व्याकुल है...” राज ने मुस्कराते हुए व्यंग्य कसा।
मंडली में से केवल एक साथी ने यह वाक्य सुना और राज को घूर कर देखा। राज बड़े सन्तोष से सिगरेट का कश ले रहा था। वह व्यक्ति पलट कर दूसरे साथियों के संग बार की ओर बढ़ गया। इसी समय बार में से अनिल, कुमुद, धर्मचन्द और फकीरचन्द निकलते दिखाई दिए...वे लोग नशे में लड़खड़ा रहे थे। धर्मचन्द ने टैक्सी देखकर पुकारा, “टैक्सी...”
राज ने चुपचाप हाथ बढ़ा कर पिछली खिड़की खोल दी। अनिल को संभाले हुए धर्मचन्द और कुमुद पिछली सीट पर बैठ गए और फकीरचन्द लड़खड़ाता हुआ अगली सीट पर आन विराजा। उनमें से किसी ने भी राज को नहीं देखा था। राज ने कोट के कालर खड़े कर लिए और टोपी को और आगे माथे पर झुका लिया। टैक्सी चल पड़ी फकीरचन्द ने लड़खड़ाती हुई जबान में बताया कि उन्हें कहां जाना है। अचानक अनिल ऊंचे स्वर में रोने लगा। धर्मचन्द ने घबराकर कहा, “अरे अरे...क्या कर रहे हो? मैं पहले ही कह रहा था इतनी मत पियो...”
“मैं क्या करूं...एक क्षण भी तो मेरे मन को चैन नहीं पड़ता।”
“अरे! ऐसी हरजाई औरत के लिए रोते हो?” फकीरचन्द ने बुरा-सा मुंह बनाकर कहा, “क्या तुम्हें मालूम नहीं कि वह तुमसे पहले भी कितने पूंजीपतियों, सेठों से प्रेम की पींगें बढ़ा चुकी है...यह तो उसका धंधा है।”
राज ने हल्की-सी सांस ली। उसके होंठों पर एक शांतिमयी मुस्कराहट रेंग गई। वह जानता था कि बातचीत का विषय संध्या थी। अनिल ने कहा, “अरे, मुझे उस हरजाई का दुख थोड़े है...मुझे तो चिन्ता उन दस हजार रुपयों की है जो उसे अपने डैडी की तिजोरी से निकालकर दिए थे जो उन्होंने एक सौदे के लिए रखे थे...पचास हजार थे...दस हजार मैं निकाल लाया था...यदि सौदे के समय पूरे पचास हजार न मिले तो डैडी की सारी साख मंडी में समाप्त हो जाएगी। मेरे डैडी बहुत सख्त हैं...वह मुझे झट-फारखती दे देंगे। और फिर पूरी धन-सम्पत्ति का अधिकारी मेरा छोटा भाई रह जाएगा। वह वैसे ही मुझसे जलता है, क्योंकि उसे पढ़ना पड़ रहा है और मैं ऐश करता हूं।”
“अरे, तो आंखें बन्द करके देने की आवश्यकता ही क्या थी।” कुमुद ने क्रोध से कहा।
“मुझे क्या मालूम था कि वह नीच केवल अभिनय कर रही है...उसने कुछ इस ढंग से प्यार जताया था कि मैं समझा अब वह मुझे चाहने लगी है....और शीघ्र ही हमारी मंगनी हो जाएगी...मैं क्या जानता था कि जिस दिन मुझसे पैसे लेगी उसके दूसरे ही दिन सन्तोष के साथ दिखाई देने लगेगी...मुझे लिफ्ट तक नहीं दी उस दिन....मेरे पास कोई प्रमाण भी नहीं है कि मैंने उसे दस हजार रुपये दिए हैं।”
“छोड़ो यार नरक में झोंको,” धर्मचन्द बोला, “मिट्टी की हंडिया टूटी कुत्ते की जात मालूम हो गई...हम तुम्हारे दोस्त हैं, ऐसे तुम्हें कंगाल थोड़े ही होने देंगे...पांच हजार मैं दे दूंगा, शेष पांच हजार फकीरचन्द और कुमुद मिलकर पूरा कर देंगे..किन्तु, अब तुम ऐसी मूर्खता छोड़ो....जैसा कि तुम्हारे डैडी कहते हैं फौरन पूरा कारोबार अपने हाथ में ले लो...तुम्हारे छोटे भाई की शिक्षा पूर्ण हो रही है...यदि डैडी ने उसे कारोबार का प्रबंधक बना दिया तो टापते रह जाओगे।”
“ठीक कहते हो तुम लोग....आजकल किसी का क्या भरोसा। मैं कल ही डैडी के सामने गम्भीर हो जाऊंगा।”
राज के होंठों पर मुस्कराहट फैल गई। उन लोगों की मंजिल आ गई थी इसलिए राज ने टैक्सी रोक दी।