शायरी और गजल™

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लुत्फ़ उठाना है अगर मंज़ूर उस के नाज़ का,
पहले उस का नाज़ उठाना कोई हम से सीख जाए।।
 
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जो सिखाया अपनी क़िस्मत ने वगरना उस को ग़ैर,
क्या सिखाएगा सिखाना कोई हम से सीख जाए।।
 
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देख कर क़ातिल को भर लाए ख़राश-ए-दिल में ख़ूँ,
सच तो ये है मुस्कुराना कोई हम से सीख जाए।।
 
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तीर ओ पैकाँ दिल में जितने थे दिए हम ने निकाल,
अपने हाथों घर लुटाना कोई हम से सीख जाए।।
 
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कह दो क़ासिद से के जाए कुछ बहाने से वहाँ,
गर नहीं आता बहाना कोई हम से सीख जाए।।
 
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ख़त में लिखवा कर उन्हें भेजा तो मतला दर्द का,
दर्द-ए-दिल अपना जताना कोई हम से सीख जाए।।
 
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जब कहा मरता हूँ वो बोले मेरा सर काट कर,
झूट को सच कर दिखाना कोई हम से सीख जाए।।
 
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वाँ हिले अबरू यहाँ फेरी गले पे हम ने तेग़,
बात का ईमा से पाना कोई हम से सीख जाए।।
 
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तेग़ तो ओछी पड़ी थी गिर पड़े हम आप से,
दिल को क़ातिल के बढ़ाना कोई हम से सीख जाए।।
 
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ज़ख़्म को सीते हैं सब पर सोज़न-ए-अलमास से,
चाक सीने के सिलाना कोई हम से सीख जाए।।
 

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