Romance Shrishti - Ajab Duniya Ki Gazab Reet Re (Complete)

Will Change With Time
Moderator
9,435
17,273
143
भाग - 11


सभी के पूछने पर भी साक्षी ने उस शख्स के बारे मे कुछ नहीं बताया। बार बार पुछा गया प्रत्येक बार सिर्फ नहीं का प्रतिउत्तर आया। अंतः सभी ने इस मुद्दे को टालकर बातों की दिशा बादल दिया। बातों बातों में यह दिन बीत गया और सभी अपने अपने घरों को लौट गए।

अगले दिन सभी समय से दफ्तर आ गए मगर राघव कुछ देर से आया। जब वो आया उस वक्त उसका चेहरा उतरा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी बात से उसको गहरा धक्का लगा हों।

किसी तरह चेहरे के भव को छुपाए बिना किसी से बात किए दफ्तर के निजी कमरे में चला गया। राघव के इस रवैया से जो जो उसे अपने दफ्तर के निजी कमरे तक आने के रास्ते में मिले सभी के सभी हैरत में पड़ गए क्योंकि राघव दफ्तर आते ही दफ्तर के निजी कमरे में जाते वक्त रास्ते में जो जो मिलता था सभी का हल चल पूछते हुए जाता था। मगर आज ऐसा नहीं किया जिस कारण सभी हैरत में रह गए।

दफ्तर के निजी कमरे में राघव गुमसुम सा बैठा कुछ सोच रहा था और पेपर वेट को गुमा रहा था। उसी वक्त एक शख्स कमरे में प्रवेश किया ओर बोला... राघव बेटा।

शख्स की आवाज सुनते ही राघव की निगाह उस शख्स की ओर गया। "पाप" बस ये लव्ज निकला फिर आंखो से सैलाव की तरह झर झर आसूं बह निकला। राघव को यूं आसूं बहाता देख वो शख्स तुंरत राघव के पास पहुंचे और गले से लगा लिया फ़िर बोला... राघव तू चंद्रेश तिवारी का बेटा है तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप का मालिक हैं फ़िर भी चंद बातों से इतना आहत हों गया कि आंसुओ का सैलाब ला दिया। देख अपने बाप को जिसे बडी बडी अंधी भी डिगा नहीं पाया तू उस अडिग चंद्रेश तिवारी का बेटा होकर रो रहा हैं।

"पापा मैं आपकी तरह मजबूत नहीं हूं न ही मैं कोई पत्थर हूं। एक साधारण मानव हूं जिसे कांटा चुभने पर दर्द होता हैं। जब वो कांटा अपनो के दिए तंज का हों तब और ज्यादा चुभता हैं।" सुबकते हुए राघव ने अपनी व्यथा सुना दिया।

"नहीं रोते तू तो बचपन में चोट लगने पर भी नहीं रोता था फिर अब क्यों?"

" क्यों? सौतेले का तंज खुले चोट से ज्यादा दर्द देता हैं जो मूझसे सहन नहीं होता हैं। मैं तो उन्हें सौतेला नहीं मानता फिर क्यों मां और अरमान मुझे सौतेला बेटा, सौतेला भाई कहकर ताने देते रहते हैं। आज भी मां ने सिर्फ इसलिए ताने दिया क्योंकि मैने अरमान को जयपुर भेज दिया। आप ही बताइए मैं अकेला क्या क्या करूं उसकी भी तो कुछ ज़िम्मेदारी बनता हैं।"

तिवारी... सब मेरी ही करनी का फल हैं जो तुझे भोगना पड़ रहा हैं। मैं उस वक्त तेरे भले का न सोचा होता तो आज तुझे यूं तंज न सुनना पड़ता मगर तू फिक्र न कर जल्दी ही मैं इसका कुछ समाधान निकल लूंगा।

राघव... पापा आप मां का कहना मन लिजिए जायदाद का 60 प्रतिशत हिस्सा उनके और अरमान के नाम कर दीजिए बाकी का बचा हुआ मेरे और आपके नाम कर लिजिए शायद इसी बहाने मुझे मां की ममता ओर प्यार का छाव मिल जाएं जिसके लिए अपने उनसे शादी किया था।

तिवारी... क्या किया जा सकता है मैं इस पर विचार करके देखता हूं। अब तू चल कैंटीन से कुछ खा ले।

राघव जानें को तैयार नहीं हो रहा था तब तिवारी जी राघव को सुरसुरी करते हुए बोला... जब तक तू नाश्ता करने जाने को तैयार नहीं होता तब तक मैं तुझे सुरसुरी करता रहूंगा। अब तू सोच कब तक यूं सुरसुरी करना सह सकता हैं।

"पापा छोड़िए न ये घर नही दफ्तर हैं।" खिलखिलाते हुए राघव बोल।

तिवारी... दफ्तर है तो क्या हुआ जब तक तू नाश्ता करने को तैयार नहीं होता तब तक मैं नहीं रूकने वाला।

ज्यादा देर राघव सुरसुरी सह नहीं पाया अंतः हर मानकर नाश्ता करने चल दिया।

अब कुछ बाते जान लेते हैं जिससे पाठक बंधु भ्रमित न हों। चंद्रेश तिवारी अपना सफर एक छोटा सा भवन निर्माता से शुरू किया था जो समय के साथ एक नामी कंस्ट्रक्शन ग्रुप में बादल गया। चंद्रेश तिवारी का छोटा सा हसता खेलता सुखी परिवार हुआ करता था। सहसा एक दुर्घटना में उनकी पत्नी चल बसी राघव उस वक्त सिर्फ पांच साल का था।

तिवारी के सामने अब दुविधा ये थीं कि काम देखे की अपने पांच साल के बेटे को काम से मुंह मोड़ नहीं सकता था और बेटे से भी मुंह नहीं मोड़ सकता था। दोस्तों और रिश्तेदारों ने दुसरी शादी करने की सलाह दिया पहले तो नकार दिया फ़िर बहुत समझने के बाद मन लिया ये सोचकर राघव को एक मां का प्यार और देखभाल करने वाला मिल जायेगा।

तब एक रिश्तेदार के जरिए बरखा से मिला जो तलक सुदा थी साथ ही एक बेटा भी था। तिवारी ठहरे भले मानुष उन्हें उन पर दया आ गई तब उन्होंने सोचा राघव को मां और अरमान को बाप का छाव मिल जायेगा। यहीं तिवारी से गलती हों गया। शादी के बाद अरमान को बाप का प्यार मिलता रहा लेकिन राघव मां की ममता के लिए तरसता रहा।

तिवारी के सामने बरखा मेरा बेटा मेरा बेटा करती रहती। तिवारी के बहार जाते ही राघव के साथ बुरा सलूक करना शुरू कर देता साथ ही डराकर रखती थीं कि अगर पापा को बताया तो उसे इस घर से बहार कर देगा विचारा घर से दूर जानें की बात से ही सहम जाता था और तिवारी से कुछ नहीं कहता था।

धीरे धीरे समय बीता गया और राघव साल दर साल बड़ा होता गया मगर उसकी यातनाओं में रत्ती भर भी कमी नहीं आया इससे परेशान होकर उच्च शिक्षा के लिए बहार चला गया और जब तब भवन इंजीनियर नहीं बन गया तब तक घर नहीं लौटा।

राघव छुट्टियों में भी घर नहीं आता था। सहसा तिवारी के मन में शंका घर कर गया कि जो घर से दूर जाना नहीं चाहता था वो घर से जाते ही घर आने को राजी क्यों नहीं हो रहा हैं। बरखा से कारण जानना चाहा मगर उसने भी गोल मोल जवाब दे दिया।

बरखा की जवाब से तिवारी को संतुष्टि नहीं मिला तो राघव के पास पहुंच गया। बहुत कहने के बाद आखिरकर राघव ने सच्चाई बता ही दिया। सच्चाई जानकार तिवारी को बहुत गुस्सा आया उसका मन किया बरखा को तलाक दे दे पर मां की गलती की सजा बेटे को नहीं देना चहता था। इसलिए तलक देने का विचार त्याग दिया।

इन्हीं दिनों तिवारी का लगाव बरखा से खत्म हों गया था लेकिन अरमान से पूर्ववत बना रहा। वहां राघव पढाई पर ध्यान दे रहा था और यहां अरमान बाप के पैसे को मौज मस्ती में लूटा रहा था। कई बार तिवारी ने टोका मगर इसका नतीजा बरखा के साथ तू तू मैं मैं हों जाता था।

राघव अपनी पढ़ाई खत्म करके घर लौट आया और बाप को रिटायरमेंट देकर सभी ज़िम्मेदारी अपने कंधे ले लिया फिर अपने कार्य कुशलता से बाप का काम और नाम को ऊंचाई पर ले जानें लग गया।

अरमान कभी मन होता तो राघव का हाथ बटा देता वरना मौज मस्ती में लगा रहता। अरमान की करस्तानी से परेशान होकर कभी कभी राघव टोक देता और तिवारी तो पल पल टोकते ही रहते थे इसका नतीजा ये आया की ग्रह कलेश बड़ गया।

रोज रोज के कलेश से परेशान होकर तिवारी ने दोनों मां बेटे को सबक सिखाने के लिए चल अचल संपूर्ण संपत्ति का 30 30 प्रतिशत हिस्सा राघव और खुद के नाम कर लिया और बाकी बचे हिस्से का 20 20 प्रतिशत हिस्सा बरखा और अरमान के नाम कर दिया।

यहां बात अरमान और बरखा को पसंद नहीं आया इसलिए दोनों मां बेटे खुलकर सामने आ गए और राघव को तिवारी के सामने ताने देने लग गए तिवाड़ी कुछ कहता तो उससे भी लड़ पड़ते थे। इन्हीं वजह से परेशान होकर बरखा को तलक देकर और कुछ हर्जाना भरकर इस मामले को रफा दफा कर देने की बात सोचा मगर ये भी नहीं कर पाया ये सोचकर कि कहीं समाज के ठेकेदार ये न कहें कि जब जरूरत थी तब बरखा से शादी कर लिया अब जरूरत खत्म हो गया तो बरखा और उसके बेटे को बेसहारा छोड़ दिया। अंतः मजबूर होकर तिवाड़ी ख़ुद के किए एक फैसले पर पछताते हुए इस रिश्ते के बोझ को ढो रहा हैं और राघव खाने से ज्यादा ताने सुनकर दिन काट रहा हैं।

नाश्ता करते वक्त तिवारी ने बेटे को एक बार फिर से समझाया फ़िर थोडा हसाया जिससे राघव का मुड़ सही हों गया। नाश्ते के बाद बेटे को दफ्तर के निजी कमरे में छोड़कर चला गया। बाप के जाते ही राघव ने एक फोन करके किसी को बुलाया।

जारी रहेगा….
 
Will Change With Time
Moderator
9,435
17,273
143
भाग - 12

फोन करके राघव ने साक्षी को श्रृष्टि सहित सभी साथियों के साथ दफ्तर के निजी कमरे में बुलाया था। कुछ ही वक्त में द्वार पर आहट हुआ और भीतर आने की अनुमति मांगा गया।

भीतर आने की अनुमति मिलते ही सभी एक एक करके भीतर आ गए। हैलो हाय की औपचारिकता के बाद राघव बोला... कल आधे दिन की छुट्टी का लुप्त लिया जा रहा था। हंसी ठहाके एक दूसरे की टांग खींचना एक दूसरे की लव लाईफ के बारे में जानना बड़ा मस्ती….।

"उफ्फ ये किया बोला दिया। जो नहीं बोलना था वहीं बोल गया। अब क्या करूं अब तो सभी को शंका हों जायेगा कि मैं उन्हें छुप छुप कर काम करते हुए देखता हूं। दूसरे शायद इस घटना को सामान्यतः ले जो अक्षर होता रहता हैं लेकिन श्रृष्टि, उसे अगर थोडी बहुत शंका हुई भी होगी कि मैं उसे छुप छुप कर देखता हूं जो कि सच हैं। अब तो उसकी शंका यकीन में बादल जायेगा। हे प्रभु ये कैसा अनर्थ मूझसे हों गया कोई रास्ता दिखा" सहसा राघव को आभास हुआ कि जो नहीं बोलना था। वहीं बोल गया। तो अपने वाक्य को अधूरा छोड़कर मन ही मन ख़ुद से बाते करने लग गया।

ठीक उसी वक्त राघव की अधूरी बाते सुनकर साक्षी, श्रृष्टि सहित बाकी साथियों के अलग अलग प्रतिक्रिया थी। जहां दूसरे साथीगण इस घटना को सामान्यतः ले रहें थे। वहीं साक्षी के मन का चोर द्वार खुल गया और मन ही मन बोलीं... अगर सर छुप छुप कर हम पर नज़र रख रहे थे तो कहीं उन्हे पाता न चल जाएं मेरे ही कारण श्रृष्टि को दिए समय से प्रोजेक्ट पूरा नहीं हों पाया। तब क्या होगा?

ठीक उसी वक्त श्रृष्टि का मन कुछ अलग ही कह रहा था। "ऊम्ह तो मेरी शंका सही निकला सर मुझे छुप छुप कर देखते हैं। नहीं नहीं मुझे क्यों देखने लगे, हों सकता है सर छुपकर ये देखते हो हम काम कर रहें हैं कि नहीं पर जब भी मैं सर के सामने आती हूं तब टकटकी लगाएं मुझे ही देखते रहते हैं। इस बात को भी नकारा नहीं जा सकता। तो क्या सर छुप कर मुझे ही देखते हैं। ओ हो मैं ये किस उलझन में फांस गई।"

जहां श्रृष्टि, साक्षी और राघव अपने अपने विचारो में उलझे हुए थे। ठीक उसी वक्त दूसरे साथियों में से एक बोला... खाली समय था तो उसका सदुपयोग करते हुए मस्ती मजाक और एक दूसरे की टांग खींच रहें थे। अगर अपने देख ही लिया था तो आप भी कुछ वक्त के लिए हमारे साथ मिल जाते इससे आपका मानसिक तनाव थोडा बहुत कम हों जाता।

इन आवाजों के कानों को छूते ही राघव विचार मुक्त हुआ और बोला...क क क्या बोला।

"सर लगता है आपका ध्यान कहीं ओर था। मैं तो बस इतना ही कह रहा था कि जब अपने देख ही लिया था तो आप भी हमारे साथ थोडा मस्ती मजाक कर लेते ही ही ही...।

"मैंने सोचा तो कई बार फिर ये सोचकर रूक जाता हूं कहीं आप लोग मेरे मस्ती मजाक करने का गलत मतलब न निकल ले और काम धाम छोड़कर मस्ती में लगे रहें। ऐसा हुआ तो मेरा नुकसान हों जायेगा।" एक निगाह श्रृष्टि पर डाला फ़िर मुस्कुराते हुए राघव ने अपनी बाते कह दिया।

"सर कभी कभी काम गारो के साथ थोड़ी बहुत मस्ती मजाक कर लेना चाहिए इससे दफ्तर का माहौल सही बना रहता हैं।" राघव के मुस्कान का जवाब मुस्कान से देते हुए श्रृष्टि बोलीं।

राघव... कह तो सही रहें हों खैर छोड़ो इन बातों पर बाद में सोचेंगे अभी (प्रोजेक्टर पर एक वीडियो प्ले करते हुए आगे बोला) अभी इस वीडियो को ध्यान से देखो।

जब तक वीडियो चलता रहा तब तक सभी ध्यान से देखते रहें। वीडियो खत्म होते ही राघव बोला... ये हमारा नया कंस्ट्रक्शन साइड हैं। इस पर एक आलीशान बहुमंजिला इमारत बनाना हैं। जिसके बाहरी आवरण की खूबसूरती मन मोह लेने वाली होना चाहिए उतना ही खूबसूरत और आकर्षक भीतरी भाग होना चाहिए। इसलिए क्लाइंट का कहना हैं पहले मानचित्र बनाकर उसकी रूप रेखा 3D मॉडल के जरिए दिखाया जाएं अगर उन्हें पसंद आया तब ही कंस्ट्रक्शन शुरू किया जा सकता हैं। अब आप सभी अपने अपने हुनर को प्रदर्शित करे और एक बेहतरीन मॉड्यूल तैयार करें और हां एक बात का ध्यान रखना यहां प्रॉजेक्ट हमारी और हमारी कम्पनी की साख का सवाल है इसलिए कोई भी चूक नहीं होना चाहिए।

सभी एक साथ एक ही स्वर में "सर हम पूरा ध्यान रखेंगे" बोले फिर राघव आगे बोला... हां तो अब कुछ जरुरी बाते इस प्रॉजेक्ट का प्रॉजेक्ट हेड श्रृष्टि को बनाया जाता है ये खास उपहार मेरे ओर से श्रृष्टि और साक्षी के लिए है। साथ ही दुसरे के लिए भी हैं।

ऐसा खास उपहार साक्षी को मिलेगा ऐसा कभी उसने सोचा नहीं था। जो प्रॉजेक्ट हेड हुआ करती थी सहसा एक नई लड़की जिसको आए हुए अभी महीना भर भी नहीं हुआ। प्रोजेक्ट हेड बाना दिया जाता है। यह बात साक्षी को हजम नहीं हुआ और अंदर ही अंदर खीजते हुए बोलीं...श्रृष्टि तूने मेरा अहौदा मूझसे छीन लिया। बात चाहें कम्पनी की साख की हो मुझे फर्क नहीं पड़ता अब बात मेरी साख पर आ गई है? अब देख मैं तेरे साथ क्या करती हूं?

यहां साक्षी, श्रृष्टि से खीज गई वहीं श्रृष्टि इस बात से बहुत खुश हुई। होना भी चाहिए जहां लोगों को काम करते करते वर्षों बीत जाते हैं फिर भी प्रॉजेक्ट हेड नहीं बन पाते है वहीं मात्र कुछ ही दिनों में उसे एक ऐसे प्रोजेक्ट का हेड बाना दिया गया। जिसका ताल्लुक कम्पनी के साख से हैं। बरहाल श्रृष्टि खुश, साक्षी खीजी हुई इससे उलट दूसरे साथी श्रृष्टि को बधाई देने लग गए। जिसे श्रृष्टि सहस्र स्वीकार कर रहीं थीं। खैर बधाई देने के बाद एक साथी बोला…सर श्रृष्टि मैम के साथ बस कुछ ही दिन काम करके हम सभी इतना तो जान ही गए हैं कि श्रृष्टि मैम हुनर के मामले में बहुत धनी है। इतने बड़े प्रोजेक्ट पर इनके साथ काम करने का हमें सौभाग्य प्राप्त हुआ। शायद हमारे लिए इससे बड़ा दुसरा कोई उपहार हों नहीं सकता था? सर किसी और का मै नहीं कह सकता मगर अपनी बात दावे से कहता हूं। इस प्रॉजेक्ट पर श्रृष्टि मैम के साथ जी जान से काम करेगें और हमारी कम्पनी के साख पर दाग नहीं लगने देगें। इसी बहाने श्रृष्टि मैम से उनके हुनर के कुछ गुर भी सीख लूंगा। शायद भविष्य में उनसे सीखे गुर मेरे कुछ काम आ जाए और किसी प्रोजेक्ट का मै भी हेड बन जाऊं।

सहयोगी की ये बातें जहां श्रृष्टि के हृदय में हर्ष का भाव उत्पान कर रही थीं। वहीं साक्षी के मन में सिर्फ और सिर्फ़ बैर पैदा कर रहा था और राघव एक नज़र श्रृष्टि की और मुस्कुराते हुए देखा फ़िर साक्षी की ओर देखकर बोला... कह तो तुम ठीक रहें हों। सीखने की जज्बा हमारे अंदर उम्र के अखरी पड़ाव तक जिंदा रहना चाहिए। तुम्हारी सोच मेरी नज़र में तारीफो के काबिल हैं। मगर (एक अल्प विराम लिया फ़िर साक्षी से निगाह हटाकर आगे बोला) मगर कुछ लोग सीखने की इस जज्बा को दावा लेते हैं शायद ऐसा वो अकड़ के चलते करते होंगे कि मुझे जीतना सीखना था सिख चुका अब ओर सीखकर क्या फायदा खैर छोड़ो बाते बहुत हुआ अब जाओ ओर काम पर लग जाओ। साक्षी तुम कुछ देर रूककर जाना तुमसे कुछ बात करना हैं।

राघव की बाते सभी को सामान्य लगा और कुछ ज्ञान वर्धक भी मगर साक्षी को राघव की बाते चुभन का अहसास करा गई और रूकने की बात सुनकर एक अनजाना सा डर मन में घर कर गया जिसका नतीजा साक्षी के हाव भव बदल गए। इन सभी से अंजान श्रृष्टि बोलीं... सर इतना बड़ा प्रोजेक्ट है ऊपर से कंपनी की साख का सवाल हैं। कोई चूक न रह जाएं इसलिए मैं सोच रहीं थीं। एक बार साइड का दौरा कर आते तो ठीक होता आगर दूर है तो कोई बात नहीं हम मैनेज कर लेंगे।

"हा सर एक बार साइड का दौरा हो जाता तो अच्छा होता। अच्छा किया जो श्रृष्टि मैम ने याद दिला दिया वरना हम तो भूल ही गए थे।"एक सहयोगी बोला

राघव…ठीक है फिर कल को चलते हैं। अपने अपने सभी जरूरी यन्त्र जांच लेना अगर किसी में कोई कमी हैं तो ठीक करवा दूंगा।

इसके बाद सभी एक एक कर चलते बने जैसे ही साक्षी अपने जगह खड़ी हुई। राघव तुंरत बोला...साक्षी तुम कहा जा रहीं हों तुम्हें रूकने को कहा था न।

इतना सुनते ही साक्षी वापस बैठ गई और सभी के जानें के बाद राघव द्वार की ओर बड़ गया।

जारी रहेगा...
 
Will Change With Time
Moderator
9,435
17,273
143
भाग - 13

राघव एक एक कदम द्वार की ओर बढ़ा रहा था। राघव के बढ़ते कदम के साथ साक्षी को एक अनजाना सा डर खाए जा रही थीं। सर क्या कहना चाहते है? क्यों सर ने मुझे रूकने को कहा? कहीं सर को मेरे करनी का पता तो नहीं चल गया? ऐसा हुआ तो पाता नहीं आज मेरा क्या होगा? नाना प्रकार के ख्याल साक्षी के मन में चल रहा था।

कब राघव द्वार बन्द करके उसके पास आकर खड़ा हों गया सखी को भान भी नहीं हुआ। मंद मंद मुस्कान से मुस्कुराते हुए राघव ने साक्षी के कंधे पर हाथ रख दिया। सहसा स्पर्श का आभास होते ही "क क कौन हैं? कौन हैं? कहते हुए साक्षी ख्यालों से मुक्ति पाई।

"अरे क्या हुआ मैं हूं राघव, तुम ठीक तो हों न"

"सर मै ठीक हूं" बिचरगी सा राघव की ओर देखते हुए साक्षी बोलीं।

राघव अपने कुर्सी पर बैठकर मुद्दे पर आते हुए बोला…हां तो साक्षी तुम्हें ये खास तौफा कैसा लगा?

साक्षी... ये कैसा खास तौफ़ा हुआ। कल को आई एक लड़की को मेरा ओहदा दे दिया और आप पूछ रहें हों ये खाश तौफ़ा कैसा लगा?

राघव...कल आए या आज इससे फर्क नहीं पड़ता। फर्क पड़ता है तो बस इस बात से कि वो कितना काबिल हैं। काबिलियत के दाम पर ही किसी को उसका ओहदा मिलता है। समझ रहीं हों न मैं कहना क्या चहता हूं?

साक्षी... हां हां सर समझ रहीं हूं। आप सीधे सीधे मेरे काबिलियत पर उंगली उठा रहें हो और कहा रहे हो। मुझमें काबिलियत नहीं हैं इसलिए मुझे इस प्रोजेक्ट का प्रॉजेक्ट हेड नहीं बनाया। जबकि एक वक्त था आप मेरे काबिलियत की तारीफ़ करते नहीं थकते थे फिर सहसा ऐसा किया हो गया जो मेरी काबिलियत आपके नजरों से ओजल हों गईं और कल आई श्रृष्टि की काबिलियत मूझसे ज्यादा हों गई।

राघव…ओ हों साक्षी तुम्हारा ये दिमागी फितूर और अहम कि मूझसे ज्यादा काबिल कोई और नहीं हैं। तुम्हारे काबिलियत का भक्षण करता जा रहा हैं फिर भी तुम सहसा मेरे ऐसा करने के पीछे कारण क्या रहा जाना चाहती हों? तो सुनो वो कारण तुम खुद ही हो।

"तुम खुद ही हों" सुनते ही साक्षी हैरान सा राघव को देखती रहीं। एक भी लवज उसके मुंह से नहीं निकला मानो उसके जुबान को लकवा मार गया हों। यू साक्षी के चुप्पी साद लेने से राघव मुस्कुरा दिया फिर बोला...क्या हुआ साक्षी तुम्हें सांप क्यों सुंग गया। चलो आगे का मै खुद ही बता देता हूं जिससे शायद तुम्हारी चुप्पी टूट जाए। बीते लंबे वक्त से तुम क्या कर रहीं हों इसका पता मुझे नहीं चलेगा अगर तुम ऐसा सोचती हो तो ये तुम गलत सोचती हैं। मैं अभी जब से श्रृष्टि आई है तब की नहीं उससे भी आगे की बात कर रहा हूं। मन तो किया तुम्हे धक्का मार कर निकल दूं मगर ये सोचकर चुप रहा कि तुम अरमान की दोस्त हों और अरमान के साथ मेरे रिश्ते की फजियात हुईं पड़ी थी मैं उस फजियत को और बढ़ाना नही चाहता था सिर्फ इसलिए चुप रहा। मगर अब मेरा ओर अरमान का रिश्ता उस मुकाम पर पहुंच चुका हैं कि वो कभी सुधार नहीं सकता इसलिए सोचा तुम्हें तुम्हारी करनी का अहसास दिला दूं।

इतना बोलकर राघव चुप्पी सद लिया बस मंद मंद रहस्यमई मुस्कान से मुस्कुराने लग गया और साक्षी मानो जम सी गई। उसके बदन में रक्त प्रवाह रूक सा गया हो। सांस रोके, बिना हिले डुले, बिना पलकों को मीचे बस एक टक राघव को देखती रहीं। ये देखकर राघव बोला... अरे तुम्हारी तो सांसे रूक गई, पलके झपकाना भूल गईं। चलो चलो पलके झपका लो चांद सांसे ले लो नहीं तो तुम्हारा दाम घुट जायेगा। दम घुटने से तुम्हें कुछ हों गया तो मेरी फजीहत होगी सो अलग साथ ही मेरा एक काबिल आर्किटेक्चर कम हों जायेगा। मैं ऐसा बिल्कुल भी नहीं चाहता हूं।

आज साक्षी को राघव संभालने का एक भी मौका दिए बिना सदमे पर सदमे दिए जा रहा था और साक्षी दम सादे सुनती जा रहीं थीं। साक्षी का ऐसा हाल देखकर राघव कुछ कदम आगे बढ़कर द्वार से बहार चला गया।

साक्षी बैठी बस देखती रहीं। कुछ ही वक्त में राघव एक गिलास पानी साथ लिए लौट आया और साक्षी को देते हुए बोला... शायद तुम्हारा गला सुख गया होगा लो पानी पीकर गला तार कर लो इससे तुम्हें आगे की सुनने का हौसला मिलेगा।

साक्षी पानी का गिलास ले तो लिया मगर आगे की ओर सुनने की बात से ठहर सी गई और राघव की ओर चातक निगाह से देखने लग गई। जैसे पूछ रहीं हों इतना तो सूना दिया अब ओर किया बाकी रह गया।

राघव आज आर पार के मूड में था। जैसे कसाई दो घुट पानी पिलाने के बाद एक झटके में शीश को धड़ से अलग कर देता हैं। ऐसा ही कुछ करने का शायद राघव मन बाना चुका था तभी तो हाथ में पकड़ी पानी का गिलास खुद से साक्षी के मुंह से लगा दिया ओर इशारे से पीने को कहा तो साक्षी बिल्कुल आज्ञाकारी शिष्या की तरह घुट घुट करके पानी पी लिया फ़िर राघव की ओर ऐसे देखा जैसे पूछ रहीं हो अब इस गिलास का किया करूं। "ये भी मुझे बताना होगा" इतना कहकर गिलास साक्षी के हाथ से लेकर मेज पर रख दिया और जाकर अपने कुर्सी पर बैठ गया।

साक्षी बस बिचारगी सा मुंह बनाए देखती रहीं ये देख राघव बोला... ओ साक्षी ऐसे न देखो मुझे तुमसे प्यार हों जाएं। उफ्फ तुम भी तो यहीं चहती थी कि मैं तुमसे प्यार करने लग जाऊं जिसके लिए तुमने न जानें कौन कौन से पैंतरा अजमाया अपने जिस्म की नुमाइश करने से भी बाज नहीं आए। अब तुम सोच रहीं होगी मुझे कैसे पाता चला, अरे नादान लड़की मैं भी इसी दुनिया का हूं किसी दुसरी दुनिया से नहीं आया हूं। लोगों की फितरत समझता हूं। दस साल, पूरे दस साल घर से बहार रहा उस वक्त ऐसे अंगित लोगों से मिला जो तुम्हारी तरह बचकानी हरकते करके बैठें बिठाए सफलता की बुलंदी पर पहुंचना चाहते हैं मगर तुम शायद भूल गई थीं जैसे पानी का गिलास भाले ही कोई मुंह से लगा दे लेकिन खुद से पीकर ही सुदा शांत किया जा सकता हैं। वैसे ही सफलता की बुलंदी पर पहुंचने में भले ही कोई मदद कर दे मगर पहुंचना खुद को पड़ता है। क्यों मैंने सही कहा न?

राघव एक के बाद एक साक्षी का भांडा फोड़ता जा रहा था और शब्द इतने तीखे की साक्षी सहन नहीं कर पा रही थी। मगर राघव रूकने का नाम नहीं ले रहा था। बस बोलता ही जा रहा था।

राघव...तुम्हें बूरा लग रहा होगा जबकि मैं तुम्हारा किया तुम्हें बता रहा हूं। जरा सोचो श्रृष्टि को कितना बुरा लगा होगा जब बिना गलती के सिर्फ़ तुम्हारी वजह से उसे सुनना पड़ा एक बार नहीं दो दो बार अब….।

"बस कीजिए सर मुझे ओर कितना जलील करेंगे। मुझे समझ आ गया मैंने जो भी किया सिर्फ़ खुद को फायदा पहुंचने के लिए किया था।" इतना बोलकर साक्षी रो पड़ीं।

साक्षी का अपराध बोध उस पर हावी हो चुका था। इसलिए सिर झुकाए दोनो हाथों से चेहरा छुपाए सुबक सुबक कर रोने लगीं ये देखकर राघव साक्षी के पास आया और उसके कंधे पर हाथ रखकर बोला...साक्षी मैं बस तुम्हें अपराध बोध करवाना चाहता था। जिसका बोध तुम्हें हों चुका है। अब जब तुम अपराध बोध से ग्रस्त हों ही चुके हों तो मैं तुम्हें एक ओर मौका देता हूं। तुम श्रृष्टि से बिना बैर रखे उसके साथ मिलकर अपने हुनर का परचम लहराओ श्रृष्टि में कितनी हुनर है ये मैं बहुत पहले से जानता हूं न तुम हुनर में उससे कम हो न ही वो तुमसे कम हैं।

श्रृष्टि को पहले से जानने की इस धमाके ने सहसा साक्षी को ऐसा झटका लगा जिसका नतीजा ये हुआ साक्षी रोना भूलकर अचंभित सा राघव को ताकने लग गई। ये देखकर राघव बोला... इतना हैरान होने की जरुरत नहीं हैं। सच में मैं तुम्हें एक और मौका देना चाहता हूं।

अभी तक जो सिर्फ़ दम सादे सुन रहीं थी सहसा लगे एक झटके ने साक्षी के लकवा ग्रस्त जुबान में खून का दौरा बड़ा दिया और साक्षी बोलीं... सर आप श्रृष्टि को कब से जानते हों।

राघव... ओ तो तुम्हें इस बात का झटका लगा कि मैं श्रृष्टि को कब से जनता हूं जबकि मैं सोच रहा था कि इतना कुछ करने के बाद मैं तुम्हें दुसरा मौका क्यों दे रहा हूं। देखो साक्षी मैं श्रृष्टि को कैसे और क्यों जनता हूं ये जानना तुम्हारे लिए जरूरी नहीं हैं।

साक्षी... पर...।

राघव... पर बार कुछ नहीं अब तुम जाओ और चाहो तो आज की छुट्टी ले लो इससे तुम्हारा मानसिक संतुलन जो हिला हुआ है। वो ठीक हों जायेगा फ़िर कल से नए जोश और जुनून से नए प्रोजेक्ट के काम पर लग जाना।

माना करने के बावजूद भी साक्षी जानना चाहिए मगर राघव ने कुछ नहीं बताया। अंतः तरह तरह के विचार मन में लिए साक्षी चली गई। उसके जाते ही राघव ने एक फोन किया और बोला... एक गरमा गरम कॉफी भेजो और थोडा जल्दी भेजना।

कॉफी का ऑर्डर देकर एक बार फिर से पूर्ववत बैठ गया बस अंतर ये था आज टांगे नहीं हिला रहा था न ही लवों पर रहस्यमई मुस्कान था। बल्कि शांत भाव से बैठा हुआ। सहज भाव से मंद मंद मुस्करा रहा था।

जारी रहेगा...
 
Will Change With Time
Moderator
9,435
17,273
143
भाग - 14

साक्षी वापस तो आ गईं मगर उसका मन उथल पुथल से अब भी भरा हुआ था। कभी वो ये सोचती कि राघव सर श्रृष्टि को कब से और कैसे जानते हैं? जानते हैं तो क्या साक्षात्कार वाले दिन जो मैंने सोचा था क्या वो सच हैं? अगर सच हैं तो दोनों का क्या रिश्ता हैं?

कुछ देर राघव ओर श्रृष्टि को लेकर सोचता रहा फिर सहसा उसे राघव की बताई बाते मस्तिष्क के किसी कोने में गूंजती हुई सुनाई दिया और अपने किए कर्मो को याद करके अपराध बोध से घिर गईं।

साक्षी की यह दशा श्रृष्टि सहित दूसरे साथियों के निगाह में आ गया। सभी ये सोच रहें थे कि नए प्रोजैक्ट का हेड न बनाए जानें से परेशान हैं। इस पर श्रृष्टि और दूसरे साथी बात करना चाहा पर साक्षी उनसे बात करने को कतई राज़ी नहीं हुआ। बार बार जोर देने पर अंतः स्वस्थ खबर होने का बहाना बनाकर घर को चल दिया।

जबकि साक्षी को किसी तरह का कोई बहाना बनाने की जरूरत ही नहीं थीं। क्योंकि राघव उसे पहले ही छुट्टी लेने को कह ही चुका था।

साक्षी के जाते ही श्रृष्टि सहित बाकि सभी कुछ पल ठहर सा गए फिर अपने काम में लग गए।

शाम को जब श्रृष्टि घर लौटाकर आई। बेटी का हंसता मुस्कुराता खिला हुआ चेहरा देखकर माताश्री बोलीं... क्या बात आज मेरी बेटी के चेहरे पर थकान का नामोनिशान नहीं हैं। लगता है आज उतना काम नहीं करना पड़ा।

"थका हुआ तो हूं पर आज जो खुशी मुझे मिला है उसके आगे थकान कहीं टिकता ही नहीं, पाता है मां आज हमे नया प्रोजेक्ट मिला हैं और उसका हेड मुझे बनाया गया हैं।" खुशी का इजहार करते हुए बोलीं और मां के गले लग गईं।

"बधाई हों बेटी ऐसे ही अपने काबिलियत का परचम लहराते रहना" पीठ थपथपाते हुए माताश्री बोलीं।

श्रृष्टि सिर्फ हां में जवाब दिया और मां से लिपटी रही कुछ देर बाद अलग होकर माताश्री बोली... आज इस खुशी के मौके पर मैं वो सभी खाना बनूंगी जिसे मेरी बेटी खान पसंद करती हैं।

श्रृष्टि... मां सिर्फ़ मेरी नहीं समीक्षा के पसंद का खाना भी बना लेना मैं आज उसे भी खाने पर बुलाने वाली हूं।

"हां हां बुला ले उसके बिना तो तेरी खुशी अधूरी हैं।"

इतना बोलकर माताश्री रसोई घर को चली गई और श्रृष्टि ने कॉल करके समीक्षा को खाने की दावत दे दिया फिर मां के साथ हाथ बटाने लग गईं।

रात्रि करीब साढ़े आठ के करीब द्वार पर किसी के आने का संकेत मिला तो श्रृष्टि ने जाकर द्वार खोला "ये नादान लडकी घर आएं मेहमान से कोई इतनी देर प्रतीक्षा करवाता हैं भाला" इतना बोलकर समीक्षा ने श्रृष्टि से किनारा करते हुए अंदर आ गईं।

"आहा आंटी आज किस खुशी में इतनी लजीज और सुगंध युक्त भोजन के महक से घर को महकाया जा रहा हैं।"गहरी स्वास भीतर खींचने के बाद समीक्षा बोलीं

"ये तू अपने दोस्त से पूछ वहीं बता देगी।" श्रृष्टि की और इशारा करते हुए माताश्री बोलीं

माताश्री का जवाब सुनाकर समीक्षा पलटी तो श्रृष्टि उसे, उसके पीछे खड़ी मिली। श्रृष्टि के दोनों कंधो पर हाथ टिका कर बोलीं... उमहू तो महोतरमा जी जरा अपना मुंह खोलिए और इस दावत का राज क्या है बोलिए।

"आज हमे नया प्रोजेक्ट दिया गया हैं जिसका हेड मैं हूं इसी...।"

"सत्यानाश… लगता है कम्पनी मालिक को अपने कंपनी से मोह भांग हों गया इसलिए इस डॉफर को प्रोजेक्ट हेड बाना दिया ही ही ही..।" श्रृष्टि की बातों को बीच में कांटकर समीक्षा बोलीं फ़िर श्रृष्टि के माथे पर उंगली रखकर हल्का सा धक्का दिया और दौड़ लगा दी।

"मैं डॉफर हूं, डॉफर रूक तुझे अभी बताती हूं।" इतना बोलकर श्रृष्टि भी उसके पीछे भग्गी लगा दी। समीक्षा डायनिंग मेज का चक्कर लगाकर माताश्री के पीछे छिप गई और बोलीं...आंटी बचाओ देखो डॉफर को डॉफर बोला तो कितना चीड़ गई ही ही ही...।

श्रृष्टि समझ गई समीक्षा मस्ती कर रही थी फ़िर भी दिखावा करते हुए मेज पर इधर उधर देखने लग गई। ये देखकर समीक्षा बोलीं... ये डॉफर मेज पर क्या ढूंढ रहीं हैं?

"चक्कू ढूंढ रहीं हूं चक्कू, लो मिल गया चक्कू हा हा हा" इतना बोलकर चक्कु हाथ में लेकर पलटी तो समीक्षा बोलीं... आंटी देखो इस डॉफर को ऐसे खुशी के मौके पर केक काटा जाता हैं मगर इस डॉफर की सोच भी डॉफर जैसी हैं दोस्त की गर्दन कटकर खुशी मनाएगा ही ही ही।

"किसने कहा मैं तेरी गर्दन काटूंगी मैं तो तेरी जीभ काटूंगी जिससे की तू मुझे डॉफर न बोल पाए हा हा हा।" चक्कू घूमते हुए श्रृष्टि बोला ये देखकर माताश्री किनारे होकर रसोई को चल दिया।

"आंटी अब आप कहा चली आप ही तो मेरी ढाल थी।"

"तुम दोनों दोस्तों के बीच मेरा क्या काम आपस में निपटा लो ही ही ही।"

मौका पाते ही श्रृष्टि ने समीक्षा को पकड़ लिया और धकेलते हुए सोफे तक ले गईं फिर समीक्षा को बिठाकर उसके गोद में चढ़ बैठी और चक्कू घूमते हुए बोलीं... अब बोल क्या बोल रहीं थी।

"तू चक्कू दिखाकर डराएगी तो क्या मैं डर जाऊंगी। तू तो डॉफर हैं और डॉफर ही रहेगी, डॉफर कहीं की ( फिर श्रृष्टि की माथे पर उंगली लगाकर धक्का देते हुए बोलीं) हटना न मेरी जांघें टूट गई कितना भरी हो गई है थोडा बर्जीश वर्जीश किया कर ।"

"तुम दोनों अपनी ये नौटंकी बंद करो ओर इधर आओ।" सहसा माताश्री एक केक मेज पर रखते हुए बोलीं।

"वाहा आंटी सही टाइम पर एंट्री मारी हैं नहीं तो ये डॉफर आज मेरी जीभ ही काट देती (फ़िर श्रृष्टि से बोलीं) ये डॉफर ये जीभ बीभ काटने का प्रोग्राम कैंसल कर और केक काटने का प्रोग्राम फिक्स कर।"

"समीक्षा" चिखते हुए श्रृष्टि बोलीं, तो समीक्षा उसके गालों पर हाथ फेरकर हाथ को चूमते हुए बोलीं...मुआआ क्यों छिड़ती है मेरी जान।

इतना सुनते ही श्रृष्टि मुस्कुराते हुए समीक्षा की गोद से उतर गई और समीक्षा उठकर माताश्री की और जाते हुए बोलीं…आंटी देखो इसे बस प्यार से जान बोल दो सारा गुस्सा गायब। आंटी मेरे को न एक शंका हो रहीं हैं कहीं इसने अपने बॉस को जान बोलकर प्रोजेक्ट हेड का तमगा हतीया तो नहीं लिया।

"समीक्षा तू कुछ ज्यादा नहीं बोल रहीं हैं अब तो पक्का तेरी जीभ काट दूंगी।" इतना बोलकर श्रृष्टि तेजी से दो चार कदम बडी ही थी की सहसा उसके कदम रूक गए और कुछ सोचकर मुस्करा दिया फ़िर सिर झटक दिया और समीक्षा के पास जाकर बोलीं…अब बोल क्या बोल रहीं थीं?

समीक्षा... मैं तो बस इतना बोल रहीं थी जल्दी से केक काट बहुत जोरों की भूख लगी हैं।

समीक्षा रूक रूक कर बोलीं जिससे श्रृष्टि मुस्कुरा दिया फिर केक कांटकर खुद को मिली उपलब्धि की खुशी मनाई और खान पीना करके समीक्षा अपने घर और श्रृष्टि अपने घर सपनों की हंसी वादियों में खो गईं।

जारी रहेगा...
 
Will Change With Time
Moderator
9,435
17,273
143
भाग - 15

अगले दिन सभी दफ्तर में मौजूद थे अगर कोई नहीं था तो वो थी साक्षी, राघव दफ्तर आते ही शिग्रता से कुछ काम निपटाया फ़िर श्रृष्टि और उसके साथियों के पास पहुंच गया।

राघव…हां तो सभी जानें के लिए तैयार हों।

श्रृष्टि... सर तैयार तो है पर साक्षी मैम अभी तक नहीं आई।

राघव... उसका msg आया था उसकी तबीयत खबर हैं इसलिए आज नहीं आ पाएगी (फ़िर मन में बोला) लगता हैं कल की बातों का ज्यादा ही असर पड़ गया।

श्रृष्टि... ओ ऐसा किया हम तो कुछ ओर ही सोच बैठें थे।

राघव... जो भी सोचा हो उसे यहीं पर विराम दो और चलने की तैयारी करो हमे देर हों रहा हैं।

"जी हा" कहकर सभी अपने अपने जरूरी यन्त्र लेकर दफ्तर से बहार आए। दूसरे साथियों के पास अपने अपने कार थे तो वो उसी ओर चल दिए और श्रृष्टि अपने स्कूटी लेने जा रहीं थीं कि राघव रोकते हुए बोला...श्रृष्टि आप कहा चली आप मेरे साथ मेरे कार से चलिए।

श्रृष्टि... पर सर मेरे पास मेरी स्कूटी है।

राघव...हा जानता हूं आपके पास स्कूटी है। आप उसे यहीं छोड़ दीजिए ओर मेरे साथ चलिए क्योंकि हमे दो चार किलोमीटर नहीं शहर के दूसरे छोर लगभग तीस किलोमीटर दूर जाना हैं।

"ऐसा है तो मैं उनके साथ उनके कार में चलती हूं।" असहज होते हुए बोलीं

राघव... क्यों? मेरे साथ चलने में क्या बुराई हैं? मैं कोई भूखा भेड़िया नहीं हूं जो आपको खा जाऊंगा।

श्रृष्टि... मैंने ऐसा तो नहीं कहा।

राघव... भले ही नहीं कहा मगर आपके हाव भव कुछ ऐसा ही दर्शा रहीं हैं। यकीन मानिए मैं कोई अधोमुखी नहीं हूं आपकी तरह एक साधारण इंसान हूं। इसलिए ओर बाते न बढ़ाकर मेरे साथ चलिए।

राघव के इतना बोलते ही श्रृष्टि न चाहते हुए भी राघव के पीछे पीछे चल दिया तो राघव बोला...आप यहीं रूकिए मैं कार लेकर आता हूं।

श्रृष्टि वहीं रूक गईं और तरह तरह की बाते उसके मन मस्तिष्क में चलने लग गईं। मैं सर के साथ उन्हीं के कार में जाकर क्या सही कर रहीं हूं? किसी ने ध्यान दिया तो तरह तरह की बाते बनाने लग जायेंगे। ऐसा हुआ तो मैं इन सब बातों का कैसे सामना करूंगी। उफ्फ मैने चलने को हां क्यों कहा? मुझे हां कहना ही नहीं चाहिए था अब क्या करूं?

श्रृष्टि खुद की विचारों में खोई थी कि सहसा हॉर्न की आवाज ने उसके विचारों से उसे मुक्त करवाया। सामने राघव कार लिए खड़ा था। उसके बैठने को कहने पर एक बार फिर श्रृष्टि सोच में पड गई कि बैठे तो बैठें कहा आगे बैठे कि पीछे सहसा न जानें उसके मस्तिष्क में किया खिला जो पीछे का दरवाजा खोलकर बैठने जा ही रहीं थी की राघव बोला...अरे डाॅफर पीछे क्यों बैठ रहीं हो आगे का सीट खाली है वह बैठो न खामखा मुझे अपना ड्राइवर बनाने पे क्यों तुली हों।

डाॅफर सुनते ही श्रृष्टि राघव को खा जाने वाली नजरों से ऐसे देखने लगीं मानो अभी के अभी राघव को बिना पानी के सबूत निगल जायेगी। ये देख राघव बोला... सॉरी सॉरी श्रृष्टि गलती हों गया। अब मुझे ऐसे न घूरो जल्दी से बैठो हमे देर हों रहा है ओर हा पीछे मत बैठना आगे की सीट पर बैठना (फिर मन में बोला) ओ लगता हैं कुछ ज्यादा ही नाराज हो गई है। होना भी चाहिए डाॅफर सुनते ही किसी भी खूबसूरत लडकी को गुस्सा आ ही जाएगा।

श्रृष्टि बस घूरते हुए घूमकर सामने की सीट पर बैठ गई फिर "भाडाम" से कार का दरवाजा बन्द कर दिया। ये देखकर राघव बोला... अरे अरे नाराज हों तो मुझ पर निकालो कार का द्वार तोड़ने पे क्यों तुली हो इसे कुछ हुआ तो मेरा बापू दुसरा नहीं दिलाएगा हा हा हा।

श्रृष्टि…एकदम गोबर जोक था जब जोक सुनाना नहीं आता। तो सुनते क्यों हों?

इतना बोलकर श्रृष्टि मुंह फूला कर बैठ गई। इन लड़कियों के नखरे भी अजब गजब है कल दोस्त डाॅफर डाॅफर बोल रहीं थीं तो बहनजी मस्त, मस्ती कर रही थी और आज बॉस ने डाॅफर क्या बोल दिया बहनजी रूठ गई हैं।

खैर कार अपने गंतव्य को चल दिया और कार में गुप सन्नाटा था। न राघव कुछ बोल रहा था न ही श्रृष्टि कुछ बोल रहीं थी। लम्बा वक्त यूं सन्नाटे में बीत गया। सहसा राघव सन्नाटे को भंग करते हुए बोला... श्रृष्टि आप न भोली सूरत वाली एक खूबसूरत लडकी हों।

ये सुनते ही श्रृष्टि हल्का सा मुस्कुरा दिया और निगाहे फेरकर राघव की ओर देखा मगर राघव उसकी और न देखकर सामने की और देख रहा था। एक बार फिर कुछ पल का सन्नाटा छा गया इस बार की सन्नाटा को भंग करते हुए श्रृष्टि बोलीं...सर किसी रूठी लडकी को माने का ये पैंतरा पुराना हों चुका हैं कोई और तरीका हों तो अजमा सकते हैं।

राघव... पुराना भले ही हो मगर कारगर हैं तुम सिर्फ़... तुम बोल सकता हूं न।

श्रृष्टि…सर ये आप और तुम की औपचारिकता छोड़िए जो मन करें बो बोलिए।

"मेरा मन तो जानेमन बोलने को कर रहा है।" धीरे से बोला ताकि श्रृष्टि सुन न ले।

श्रृष्टि... सर क्या बोला जरा ऊंचा बोलेंगे मुझे कम सुनाई देता हैं।

राघव... तुम्हें और कम क्यों झूठ बोल रहीं हों। तुम तो हल्की सी आहट भी सुन लेती हों।

श्रृष्टि…अच्छा... ये आप कैसे कह सकते हों। (सहसा कुछ याद आया जिसे सोचकर श्रृष्टि मन ही मन बोलीं) ऊम्म तो आपका इशारा उस दिन की बात पर हैं चलो मेरा भ्रम तो दूर हुआ अब बस ये जानना हैं कि आपके मन में चल किया रहा हैं।

इतने में राघव ने कार को रोक दिया फिर बोला... श्रृष्टि हम पहुंच चुके हैं।

श्रृष्टि ने आगे देखा तो सामने एक बड़ा सा खाली जमीन है जिसे देखकर श्रृष्टि बोलीं... सर हम बडी जल्दी पहुंच गए।

राघव... बातों बातों में पाता ही नहीं चला जरा अपने हाथ में बंधी घड़ी को देखो फ़िर पाता चल जायेगा हम कितने समय तक सफर करते रहें।

घड़ी देखने के बाद श्रृष्टि को पता चला लगभग एक घंटे का सफर करने के बाद वो लोग यहां तक पहुंचे खैर और देर करना व्यर्थ समझकर श्रृष्टि लपककर गाड़ी से उतरी, जेठ की झुलसा देने वाली सूरज की तपन देह को छूते ही श्रृष्टि बोलीं... धूप कितनी तेज हैं।

राघव... धूप तो तेज है लेकिन अब किया ही क्या जा सकता हैं तुम पहले कहती तो मैं एक छाता ले आता।

श्रृष्टि... अच्छा मेरे कहने भर से आप छाता ले आते।

राघव... तुम कह कर तो देखती नहीं लेकर आता फ़िर कहती।

श्रृष्टि मुस्कुराकर देखा और मन में बोलीं... आज मुझे हो क्या रहा हैं सर से ऐसे क्यों बात कर रही हूं। सर भी ओर दिनों से ज्यादा फ्रैंकली बात कर रहें हैं। उनके दिमाग में चल किया रहा हैं।

यहां श्रृष्टि खुद से बातें करने में मस्त थीं वहां राघव भी कुछ ऐसा ही बात मन में बोला रहा था। "आज मुझे क्या हों गया जो में श्रृष्टि से ऐसे बात कर रहा हूं। पहले तो उसे डाॅफर बोल दिया फिर खुद को उसका ड्राइवर बोल दिया वो पीछे बैठ रहीं थी तो इसमें कौन सी बुराई थीं। मगर मैंने लागभग विनती करते हुए उसे आगे बैठने को कहा इतना तो ठीक हैं वो मेरे साथ आना नहीं चाहती थी फिर भी उसे लगभग जबरदस्ती मेरे साथ बैठने को मजबूर कर दिया। मैं ऐसा क्यों कर रहा हूं क्यों...।

"सर यहां कब तक खड़े रहना हैं धूप बहुत तेज़ है हमे जल्दी से काम निपटाकर चलना चाहिए।" सहसा एक आवाज राघव के कानों को छुआ तो उसकी तंद्रा भंग हुआ, सामने देखा तो उसके साथ आए साथियों में से एक खड़ा था जो उससे कुछ बोला था मगर राघव विचारो में खोए होने के कारण सुन नहीं पाया तब उसने क्या बोला ये पुछा तो जवाब में "सर आप को हो क्या गया है? अच्छे भले दिखते हो फ़िर भी कहीं खोए खोए से लगते हों। मैं तो बस इतना ही कह रहा था धूप बहुत तेज़ है जल्दी से हमे काम निपटाकर चलना चाहिए।

राघव... ठीक कह रहे हों।

इतना बोलकर एक नज़र श्रृष्टि की ओर देखा तो उसे दिखा श्रृष्टि उसी की ओर देखकर मंद मंद मुस्करा रहीं थीं। ये देखकर राघव भी हल्का सा मुस्कुरा दिया।

राघव को मुस्कुराते देखकर श्रृष्टि निगाह ऐसे फेर लिया जैसे दर्शाना चाहती हों उसने कुछ नहीं देखा। बरहाल जमीन की पैमाईश और बाकि जरुरी काम शुरू किया गया। तेज धूप और उमस अपना प्रभाव उन सभी पर छोड़ रहा था। इसलिए कुछ देर काम करते फिर कार में आकर एसी के ठंडक का मजा लेकर फिर से काम करने लग गए। काम खत्म करते करते लगभग तीन साढ़े तीन बज गए। थक तो गए ही थे साथ ही सभी को भूख भी बड़ी जोरों का लगा था। तो लौटते वक्त सभी को एक रेस्टोरेंट में ले जाकर सभी को उनके पसंद का खान खिलाया फ़िर दुनिया भर की बाते करते हुए दफ्तर लौट आएं।

जारी रहेगा…..
 
Will Change With Time
Moderator
9,435
17,273
143
भाग - 16

अगला दिन सब कुछ सामान्य रहा बस राघव का व्यवहार और साक्षी का न आना सामान्य नहीं रहा। राघव दोपहर के बाद का बहुत सारा वक्त श्रृष्टि सहित बाकि के साथियों के साथ बिताया।

जहां सभी काम में लगे रहे वहीं राघव काम में हाथ तो बांटा ही रहा था मगर कभी कभी रूक सा जाता और श्रृष्टि को मग्न होकर काम करते हुए देखता रहता यदाकदा दोनों की निगाहे आपस में टकरा जाते तो राघव निगाहे ऐसे फेर लेता जैसे वो कुछ देख ही नहीं रहा हों और श्रृष्टि बस मुस्कुरा देती।

ऐसा अगले कई दिनों तक चला। इन्हीं दिनों राघव लांच भी उन्हीं के साथ करने लगा। श्रृष्टि के मन में जो थोड़ी बहुत शंका बचा था वो खत्म हों गया। शंका खत्म होने से श्रृष्टि का राघव को देखने का नजरिया भी बदल गया। अब वो भी खुलकर तो नहीं मगर सभी से नज़रे बचाकर राघव को बीच बीच में देख लेता और जब कभी नज़रे टकरा जाती तो खुलकर मुस्कुरा देती।

नैनों का टकराव और छुप छुपकर ताकाझाकी हों रहा था इसका मतलब ये नहीं की काम से परहेज किया जा रहा हों। काम उसी रफ़्तार से किया जा रहा था।

बीते कई दिनों से जो भी हों रहा था वो शुरू शुरू में असामान्य घटाना था मगर अब सामान्य हों चुका था किंतु बीते दिनों की एक घटाना अभी तक असामान्य बाना हुआ था। जिस दिन राघव ने साक्षी को उसके मनसा या काहू उसके करस्तानी बताया था उस दिन से अब तक एक भी दिन साक्षी दफ्तर नहीं आई थीं।

यहां बात श्रृष्टि सहित बाकि साथियों को खटक रहा था। इसलिए आज लांच के दौरान एक सहयोगी ने उस मुद्दे को छेड़ा... श्रृष्टि मैम पिछले कुछ दिनों से साक्षी मैम दफ्तर नहीं आ रही हैं। पूछने पर कहती हैं तबीयत खबर हैं लेकिन मुझे लगता हैं सच्चाई कुछ ओर ही हैं।

"हां श्रृष्टि मैम जिस दिन आपको प्रोजेक्ट हेड बनाया गया था उस दिन भी साक्षी मैम कुछ अजीब व्यवहार कर रहीं थीं मुझे लगता हैं साक्षी मैम को ये बात पसंद नहीं आई इसलिए दफ्तर नहीं आ रहीं हैं।" दूसरे साथी ने कहा।

श्रृष्टि… गौर तो मैंने भी किया था। मगर तुम जो कह रहें हों मुझे लगता हैं सच्चाई ये नहीं है। ऐसा भी तो हों सकता है सच में साक्षी मैम की तबीयत खराब हों इसलिए नहीं आ रहीं हों।

"मैम हम लोग साक्षी मैम के साथ लम्बे समय से काम कर रहे हैं। उन्होंने कभी इतना लंबा छुट्टी नहीं लिया अगर लिया भी तो दो या तीन दिन इससे ज्यादा कभी नहीं लिया फिर सहसा क्या हो गया जो इतनी लम्बी छुट्टी पर चली गई है। मुझे आपके प्रोजेक्ट हेड बनने के अलावा कोई और कारण नज़र ही नहीं आ रहा है।" एक साथी ने बोला

साथी की बातों ने श्रृष्टि को सोचने पर मजबूर कर दिया। अलग अलग तथ्य पर विचार विमर्श करने के बाद मन ही मन एक फैंसला लिया और जल्दी से लांच खत्म करके राघव के पास पहुंच गईं। कुछ औपचारिता के बाद श्रृष्टि बोलीं... सर आज आप हमारे साथ लांच करने नहीं आए।

राघव... आज लांच नहीं लाया था इसलिए...।

"मतलब अपने आज लांच नहीं किया।" राघव की बातों को बीच में कांटकर श्रृष्टि बोलीं।

राघव... अरे नहीं नहीं लॉन्च किया हैं बहार से मंगवाया था इसलिए तुम सभी के साथ लांच नहीं किया।

श्रृष्टि... बहार से मंगवाया था तो क्या हुआ आ जाते हम आपका लॉन्च हड़प थोड़ी न लेते। खैर छोड़िए इन बातों को मैं आपसे कुछ जरूरी बातें करने आई थी।

राघव... तो करो न मैंने कब रोका हैं और तुम ये आप की औपचारिकता कब बंद कर रहें हों। मैंने तुम्हें कहा था न, तुम मेरे लिए आप संबोधन इस्तेमाल नहीं करोगे।

श्रृष्टि...जब सभी आपको आप कहकर संबोधित करते हैं तो मेरे कहने में बुराई क्या हैं।

राघव... बराई है श्रृष्टि, क्योंकि तुम सबसे खाश हों ( फिर मन में बोला) तुम क्यों नहीं समझती तुम मेरे लिए कितना खाश हों इतने इशारे करने के बाद भी रहे डॉफर के डॉफर ही।

श्रृष्टि... खाश बाश मैं कुछ नहीं जानती। दूसरो की तरह मैं भी आपको आप से ही संबोधित करूंगी। आपको बूरा लगता हैं तो लगें। (फ़िर मन में बोलीं) सर जानती हूं मैं आप के लिए कितनी खाश हूं या यूं काहू एक कामगार से बढ़कर कुछ ओर ही हूं। लेकिन मैं ऐसा हरगिज नहीं होने देना चहती हूं।

राघव... तुम मानने से रहीं इसलिए तुम्हारा जैसे मन करे वैसे ही संबोधित करो मगर ध्यान रखना एक दिन मैं अपनी बात तुमसे मनवा कर रहूंगा।

श्रृष्टि... मैं भी देखती हूं आप कैसे मनवाते है। खैर छोड़िए इन बातों को जो मैं कहने आई थीं वो सुनिए...।

राघव... हां तो सुनाओ न मैं भी सुनने के लिए ही बैठा हूं।

इस बात पर श्रृष्टि मुस्कुरा दिया फिर बोला... सर मैंने फैसला लिया हैं कि आप इस प्रोजेक्ट का हेड साक्षी मैम को बना दीजिए।

"अच्छा क्या मैं जान सकता हूं तुमने ये फैसला क्यों लिया एक वाजिब वजह बता दो।"सहज भव से मुस्कुराते हुए राघव बोला

श्रृष्टि... सर वजह ये हैं की जिस दिन से आपने मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाया हैं उसके बाद से ही साक्षी मैम छुट्टी पर हैं। इसलिए मुझे लगता है, साक्षी मैम को मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाना पसंद नहीं आया।

राघव... जरूरी तो नहीं कि यहीं वजह रहीं हों कुछ ओर भी कारण हों सकता हैं।

श्रृष्टि... सर आप ये भलीभांति जानते हों साक्षी मैम कभी भी इतना लम्बा छुट्टी नहीं लिया हैं फ़िर इतनी लंबी छुट्टी लेने का ओर क्या करण हों सकता हैं। मुझे तो बस यहीं एक कारण दिख रहा हैं जो प्रत्यक्ष सामने है।

राघव... ओ श्रृष्टि तुम काम के मामले में जितनी तेज तर्रार हों उतनी ही भोली, कुछ ओर मामले में हों। अब देखो न तुम ही कहती हो जो प्रत्यक्ष दिख रहा है सच उसके उलट होता हैं। इस मामले में भी जो दिख रहा है सच वो नहीं हैं। अब तुम सच जानने की बात मत कह देना क्योंकि ये सच मैं किसी को नहीं बताने वाला हूं।

श्रृष्टि... ठीक हैं मैं सच नहीं जानना चाहूंगी मगर मुझे साक्षी मैम का यूं नदारद रहना बिल्कुल अच्छा नहीं लग रहा।

राघव... वो क्यों भाला?

श्रृष्टि... सर साक्षी मैम यहां लंबे समय से काम कर रहीं हैं और जीतना भी वक्त मैं उनके साथ काम किया है उतने वक्त में, मैं इतना तो समझ ही गई हूं साक्षी मैम काबिलियत के बहुत धनी है। मुझे तो लगता हैं वो मूझसे भी ज्यादा काबिल है इसलिए इस प्रोजेक्ट में उनका साथ रहना इस प्रोजेक्ट के लिए बहुत फायदेमंद होगा।

"ठीक हैं मैं कुछ करता हूं" मुस्कुराते हुए राघव बोला

श्रृष्टि... जो करना हैं जल्दी से कीजिए अच्छा अब मैं चलती हूं।

श्रृष्टि जाने की अनुमति मांगा तो राघव उसे रोकते हुए बोला... श्रृष्टि इस इतवार को तुम खाली हों।

"आप क्यों पूछ रहें हों" जानकारी लेने के भव से बोलीं

राघव... अगर खाली हों तो इस इतवार को लांच या फ़िर शाम की चाय पर चल सकती हों।

श्रृष्टि... उम्हू तो आप मुझे डेट पर ले जाना चाहते हैं। क्या मैं जान सकती हूं क्यों?

राघव…शायद डेट ही हों मगर क्यों ले जाना चाहता हूं ये जब चलोगी तब पाता चलेगा।

श्रृष्टि... सॉरी सर मै इस इतवार को बिल्कुल भी खाली नहीं हूं वो क्या है न मुझे मां के साथ कहीं जाना हैं ओर शायद लौटने में देर हों जाए इसलिए आपसे वादा नहीं कर सकतीं हूं।

राघव... कोई बात नही फ़िर कभी चल देगें।

इसके बाद श्रृष्टि विदा लेकर चल दिया जाते वक्त मन ही मन बोलीं... सर मै जानती हूं आप मुझे डेट पर क्यों ले जाना चाहते हों पर मैं आपके साथ एक कामगार के अलावा कोई ओर रिश्ता जोड़ना नहीं चाहता। सॉरी सर मैंने आपसे झूठ बोला मगर मैं भी क्या करूं मैं मजबूर जो हूं।

मन ही मन इतना बोलकर आंखो के कोर पर छलक आई आंसू के बूंदों को पोंछते हुए चली गई और यहां राघव श्रृष्टि के जाते ही खुद से बोलीं... ओ श्रृष्टि तुम साक्षी से कितनी अलग हों यही बात मैंने साक्षी या किसी ओर से बोला होता तो कितना भी जरुरी काम होता सब छोड़कर मेरे साथ चल देती मगर तुम... ओहो श्रृष्टि तुम कब मेरे दिल की भावना को समझोगी कितनी बार दर्शा चुका हूं कि मै तुम्हें पसंद करता हूं और शायद प्यार भी करने लगा हूं।

मन ही मन खुद से बातें करने के बाद मुस्कुरा दिया फिर कुछ याद आते ही किसी को फ़ोन किया, एक बार नहीं कहीं बार फ़ोन किया मगर कोई रेस्पॉन्स ही नहीं मिला तो थक हरकर मोबाइल रख दिया ओर अपने काम में लग गया।

लगभग दो दिन का वक्त ओर बिता था की साक्षी दफ्तर आ पूछी उसे देखकर श्रृष्टि सहित सभी साथी गण उसका हलचल लेने लग गए और इतने दिन न आने का कारण पूछने लग गए। तबीयत खबर होने की पुरानी बात बताकर टल दिया। वे भी ज्यादा सवाल जब न करके जो साक्षी ने बताया मान लेना ही बेहतर समझा।

जैसे ही राघव के दफ़्तर पहुंचने का पाता चला सभी को राघव से मिलने जानें की बात कहकर चल दिया और कुछ औपचारिक बाते करने के बाद एक लेटर राघव के मेज पर थापक से रख दिया।

जारी रहेगा...
 
Will Change With Time
Moderator
9,435
17,273
143
भाग - 17

अपने सामने रखा लेटर पर सरसरी निगाह फेरकर राघव बोला... ये क्या है साक्षी, एक तो इतने दिनों बाद लौटी हों और आते ही लेटर थमा रहीं हों। कहीं ये लव लेटर तो नहीं, ऐसा हैं तो इसे अपने पास रख लो ये मेरे किसी काम का नहीं।

साक्षी... ये आपके काम का ही हैं। ये लव लेटर नहीं मेरा इस्तीफा हैं।

"क्या" चौकते हुए राघव बोला और लेटर उठकर पढ़ने लग गया। लेटर का कुछ हिस्सा पढ़कर राघव बोला...साक्षी ये क्या पागलपंती हैं। मैं तो तुमसे इस्तीफा नहीं मांगा फ़िर इस्तीफा क्यों दे रहीं हों।

साक्षी... जो भी मैंने किया और जो भी यह हुआ। मैं समझती हूं उसके बाद मेरा यहां काम कर पाना संभवतः मुश्किल हैं। सिर्फ़ इसी कारण से मैं इस्तीफा दे रही हूं।

"जो भी क्या (सरसरी निगाह साक्षी पर फेरा फिर राघव आगे बोला) जो भी तुमने किया वो तो समझ आया मगर जो भी हुआ उससे तुम्हारा क्या मतलब हैं? कहीं तुम्हें श्रृष्टि को प्रोजेक्ट हेड बाना देना बूरा तो नहीं लग गया।

राघव के सवाल का कोई जबाव साक्षी नहीं दिया बस चुप्पी सादे खड़ी रहीं। साक्षी का यूं चुप्पी साद लेना इशारा कर रहा था कि राघव का तीर सही ठिकाने पर लगा हैं। इसलिए राघव बोला...साक्षी तुम काबिलियत के मामले में भले ही श्रृष्टि से कम नहीं हों मगर एक मामले में तुम उसके आस पास भी नहीं भटकती हों वो है उसकी सोच, उसकी सोच आव्वाल दर्जे की हैं। बीते दो दिन हुए वो मेरे पास आई थीं और कह रही थीं कि मैं तुम्हें प्रोजेक्ट हेड बना दूं।

साक्षी...सर क्यों झूठ बोल रहें हों। इतने कम वक्त में कोई प्रोजेक्ट हेड बन जाएं और खुद ही आकर किसी ओर को, जिसे पछाड़कर प्रोजेक्ट हेड बनी हों। दुबारा उसे प्रोजेक्ट हेड बनाने को कहें ये मैं मान ही नहीं सकती।

राघव...साक्षी तुम और तुम्हारी सोच तुम मानो या न मानों यहीं सच हैं। हों सकता है तुम्हें बूरा लगे मगर यहीं सच हैं कि तुम सिर्फ़ अपने भाले की ही सोचती हो जबकि तुम कई वर्षों से हमारी कम्पनी में काम कर रहीं हों और श्रृष्टि उसको आए अभी एक ही महीना हुआ हैं लेकिन वो खुद से ज्यादा हमारी कम्पनी के भाले की सोच रहीं हैं। उसका कहना हैं कि तुम उससे ज्यादा काबिल हों इसलिए मैं तुम्हें उसके जगह प्रोजेक्ट हेड बाना दू। उसका यह भी कहना हैं इससे प्रोजेक्ट को फायदा होगा। अब तुम ही सोचो प्रोजेक्ट को फायदा मतलब सीधा सीधा कम्पनी को फायदा होगा। इस पर तुम्हारा क्या कहना हैं?

साक्षी अभी कुछ भी कह पाती उसे पहले ही "सर मै भीतर आ सकती हूं।" आवाजा आई। आवाज सुनते ही राघव समझ गया। आवाज देने वाली कौन है? इसलिए साक्षी को चुप रहने का इशारा करके बोला... श्रृष्टि कोई जरूरी काम था?

"हां सर" श्रृष्टि बोलीं

राघव... ठीक हैं आ जाओ

श्रृष्टि भीतर आते ही कुछ औपचारिक बाते किया फिर असल मुद्दे पर आते हुए बोलीं... सर अब जब साक्षी मैम आ ही गई हैं तो आप उन्हें मेरे जगह प्रोजेक्ट हेड बाना दिजिए (फ़िर साक्षी से मुखातिब होकर बोलीं) साक्षी मैम मैं इतना तो समझ ही गई हूं कि मुझे प्रोजेक्ट हेड बाना देना आपको बूरा लगा हैं। आप काबिल हो और काफी वक्त से हमारी कम्पनी से जुड़ी हों सहसा नई नई आई किसी लडकी को प्रोजेक्ट हेड बाना दिया जाए तो बूरा लगना स्वाभाविक हैं।

श्रृष्टि की बातो ने साक्षी को अचंभित सा कर दिया। उसके मन में पनपी सभी शंका को एक पल में ही धराशाई कर दिए। सहसा श्रृष्टि की निगाह राघव के सामने रखी लेटर पर पड़ा। जिसे उठकर कुछ ही हिस्सा पढ़ते ही बोलीं...उम्हा तो आप इस्तीफा देने आई थीं। मगर अब आपको इस्तीफा देने की जरूरत नहीं हैं क्योंकि आज से आप इस प्रोजेक्ट की हेड होंगी। क्यों सर मै सही बोल रहीं हूं न।

राघव…तुमने तो झट से अपना फैंसला सुना दिया। कुछ फैंसला मुझे ही करने दो आखिर मैं इस कम्पनी का हेड हूं।

"ठीक है। उम्मीद करूंगी आपका फैंसला साक्षी मैम के हक में हों। (साक्षी से मुखातिब होकर बोलीं) साक्षी मैम बहुत छुट्टी मार ली अब चलकर कुछ काम धाम कर ले।

साक्षी... तुम चलो मैं सर से कुछ जरुरी बात करके आती हूं।

"जल्दी आना" बोलकर श्रृष्टि चली गई। उसके जाते ही कुछ देर रूकी फ़िर साक्षी बोलीं... सर ये कैसा पीस है और इसे कहा से ढूंढ लाए।

राघव…अनमोल पीस हैं। खुद से आई हैं जो सिर्फ़ और सिर्फ़ मेरा हैं।

"सिर्फ़ मेरा है" सुनते ही साक्षी की आंखे बडी बडी और मुंह खुला का खुला रहा गया ये देख राघव बोला...जब से श्रृष्टि आई हैं तब से साक्षी तुम्हारी ग्रह दशा बिगड़ गई हैं। सिर्फ़ सदमे पे सदमा मिल रहीं हैं।

साक्षी... सर ये सदमा मुझे तब तक मिलता रहेगा जब तक आप ये नहीं बता देते कि आप श्रृष्टि से कब-कैसे मिले और "मेरी हैं" से आपका क्या मतलब हैं।

राघव... मतलब तुम्हें सदमा लगने से बचाना हैं तो श्रृष्टि से मिलने की बात बताना जरूरी हैं।

साक्षी... हां सर बता दिजिए नहीं तो पाता चला किसी दिन आपके दिए सदमे से मैं चल बसी और आपका एक आर्किटेक हमेशा हमेशा के लिए काम हों जाएं।

राघव... हमेशा हमेशा से मतलब तुम...।

"हां सर श्रृष्टि की बातों ने मुझे ये सोचने पर मजबुर कर दिया कि मेरी सोच कितनी गलत हैं। इसलिए चंद पलों में ही मैने फैंसला ले लिया कि मैं अब यह कम्पनी तब तक छोड़कर नहीं जाऊंगी जब तक आप खुद से मुझे निकाल नहीं देती और इस प्रॉजेक्ट पर श्रृष्टि को हेड मानकर ही काम करूंगी।" राघव की बातों को कांटकार साक्षी बोलीं

राघव…अच्छा किया जो तुमने अपना फैंसला बादल दिया। अब तुम खुद ही श्रृष्टि को बताओगी की वो ही इस प्रोजेक्ट की हेड रहेगी।

"हां हां बता दूंगी अब आप अपना कथा पुराण शुरू कीजिए।" साक्षी मुस्कुराते हुए बोलीं।


राघव... ये बात तब की है जब हमारी कम्पनी और DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप पार्टनरशिप में एक बड़े प्रोजेक्ट पर काम कर रहें थे।

"सर ये तो दो तीन साल पुरानी बात हैं। राघव की बातों को बीच में कांटकर बोलीं

राघव... हां, ये उस वक्त की बात हैं। हालाकि श्रृष्टि ओर मेरा ज्यादा आमना सामना नहीं हुआ। याद कदा ही उससे मिला हूं वो भी कंसट्रक्शन साईड पर मगर उसकी चर्चा बहुत सूना था जिससे मैं बहुत प्रभावित हुआ। दरअसल हुआ ये था हमारी क्लाइंट बड़ा अजीब था। बीच कंस्ट्रक्शन ही अलग अलग मांग रख देता था। तुम तो जानती हो बीच कंस्ट्रक्शन में मांग रख दी जाए तो उसे पूरा करने में आर्किटेक के पसीने छूट जाते हैं। उस वक्त भी उस प्रॉजेक्ट से जुड़े सभी आर्किटेक्ट के पसीने छूटे हुए थे। मगर एक श्रृष्टि ही थी जो अपने सूज बुझ और कार्य कुशलता के दाम पर बिना नीव को कोई नुकसान पहुंचाए क्लाइंट के एक के बाद एक मांग को पूरा करता गया। इससे प्रभावित होकर DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप के मालिक श्रीमान दिनेश नैनवाल जी से श्रृष्टि के साथ एक पर्सनल मीटिंग करवाने की मांग रखा। मगर दिनेश नैनवाल जी मान ही नहीं रहे थे। बहुत मन मनुवाल के बाद राज़ी हुए इस शर्त पर कि उस मीटिंग में वो भी मौजूद रहेंगे। मेरे मन में कोई गलत विचार नहीं था तो मैंने भी हां कर दिया। हमारी मीटिंग हो पाती उससे पहले ही सूचना मिला कि श्रृष्टि ने नौकरी छोड़ दिया।

"क्या..ये लडकी भी पागल हैं। इतना नाम हों रहा था फ़िर भी नौकरी छोड़ दिया।" चौकते हुए बीच में साक्षी बोल पड़ी।

राघव... पागल नहीं इतना तो मैं दावे से कह सकता हू।

साक्षी... वो कैसे?

राघव... वो ऐसे कि जब मुझे पाता चला श्रृष्टि ने वहां से नौकरी छोड़ दिया तो मैंने सोचा क्यों न मैं अपनी कम्पनी की तरफ से उसे जॉब ऑफर करू मगर इसके लिए उससे संपर्क करना जरूरी था। जो कि मुझे DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप से ही मिल सकता था। श्रृष्टि का कोई संपर्क सूत्र तो मिला नहीं मगर मुझे ये पाता चल गया की दिनेश नैनवाल जी के बेटे ने श्रृष्टि के साथ बहुत गलत सलूक किया था जिस कारण उसने नौकरी छोड़ दिया था। ये बात पता चलते ही मैंने भी उनसे पार्टनरशिप तोड़ लिया। भाला मैं कैसे उन लोगो के साथ पार्टनरशिप आगे बड़ा सकता था जिनके यहां काम गारो की बिल्कुल भी इज्जत न किया जाता हों और उसके साथ गलत सलूक करने वाला खुद मालिक हों। मुझे यहां भी लगा हों सकता हैं इस बात की आंच मुझ तक भी पहुंच जाए। मैं कतई ये नहीं चहता था कि कोई भी ऐसी बात जिससे मेरे कम्पनी जिसे मेरे बाप ने बहुत मेहनत से खड़ा किया उसके और मेरे बाप के साख पर कोई दाग लगे। खैर ये बात आई गई हो गई और एक काबिल आर्किटेक मेरे हाथ से निकल जानें का अफ़सोस होने लगा। मगर किस्मत को शायद कुछ ओर ही मंजूर था सहसा एक दिन श्रृष्टि से मेरी भेट यहां हुआ और उसके बाद का तुम जानती ही हों।

जारी रहेगा…..
 
Will Change With Time
Moderator
9,435
17,273
143
भाग - 18

राघव ने वह सभी बाते बता दिया। जिसके कारण वो श्रृष्टि से और उसकी काबिलियत से परिचित था। सभी बाते सुनने के बाद साक्षी बोलीं... माना पड़ेगा सर आप इस मामले में बहुत शक्त हों कि कोई आप पर, आपके पिता पर या फ़िर कम्पनी पर उंगली न उठा पाए साथ ही इस बात का भी ध्यान रखते थे किसी के साथ गलत सलूक न हों।

राघव…हां इसलिए जब तुम नुमाइश करके मेरे साथ गलत सलूक करती थी तब मैं तुम्हें टोकता था मगर तुम थीं कि सुनती ही नहीं थीं। सुनती भी कैसे तुम्हारे दिमाग में फितूर जो भरा हुआ था।

साक्षी... सर आप फ़िर से मुझे जलील करने लग गए।

राघव...इसमें जलील किया करना मैं तो वहीं कह रहा हूं। जो सच हैं।

साक्षी... हां हां कह लो अभी मौका आपके हाथ में हैं जिस दिन मेरे हाथ मौका आया एक एक बात का गिन गिन के बदला लूंगी ही ही ही।

राघव...वो मौका तुम्हें कभी नहीं मिलने वाला हा हा हा।

साक्षी... वो तो वक्त ही बताएगा अब आप "मेरी है" से आपका क्या मतलब है। कहीं आप….।

"हा साक्षी तुम जो कहना चहती हो वो सच है मैं श्रृष्टि को पसंद करता हूं और शायद प्यार भी करने लगा हूं। मगर वो निर्दय मेरी भावनाओं को समझकर भी अंजान बनी रहती हैं।" साक्षी की बातो को बीच में कांटकर खेद जताते हुए राघव बोला।

साक्षी...चलो अच्छा किया जो मुझे बता दिया अब तो मैं आपकी एक एक बातों का गिन गिन कर बदला लूंगी।

राघव...मतलब तुम फ़िर से...।

"नही नही मैं वैसा कुछ नहीं करने वाली बस आप दोनों के प्रेम कहानी का आपने ढंग से कुछ लुप्त लेने वाली हूं ही ही ही।" राघव की बातों को बीच में कांटकर बोलीं

राघव... क्या ही ही ही... मदद करने के जगह तुम्हें लुप्त लेने की पड़ी हैं।

साक्षी...ऐसा तो मैं करके रहूंगी आखिरकार लाइन में सबसे पहले मैं लगीं थी मगर मेरा रास्ता श्रृष्टि नाम की बिल्ली ने कांट दिया इसका बदला लेकर रहूंगी।

राघव...साक्षी मैं तुमसे हाथ जोड़कर विनती करता हूं कुछ भी ऐसा न करना जिससे की श्रृष्टि की नजरों में मैं गिर जाऊं देखो तुम्हे बदला लेना है मूझसे लो।

साक्षी...देखे देखो जमाने वाले देखो राघव तिवारी, तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप के मालिक कैसे हाथ जोड़े विनती कर रहा हैं। चलो ठीक है आपकी विनती मन लेता हूं ओर कोशिश करूंगी आप दोनों की प्रेम नैया जल्दी से पर लग जाएं।

राघव... चलो अच्छा है जो तुम मदद करने को मन गई।

साक्षी...हा हा ठीक हैं अब ज्यादा मक्खन न लगाओ। अच्छा मैं श्रृष्टि को बुलाकर लती हूं और आपके सामने उसे कह दूंगी कि वो ही प्रोजेक्ट हेड बनी रहीं।

इतना बोलकर बिना राघव की सुने साक्षी चली गईं और कुछ ही देर में श्रृष्टि के साथ वापस आ गईं। आते ही श्रृष्टि बोलीं... सर अपने किस लिए बुलाए।

इतना सुनते ही राघव समझ गया साक्षी उसके कंधे का सहरा लेकर बंदूक चलाना चहती है तो राघव मुस्कुराते हुए बोला...श्रृष्टि तुमसे साक्षी कुछ कहना चहती हैं। इसलिए बुलाया था।

श्रृष्टि... साक्षी मैम आप को कुछ कहना था तो वहीं कह देती यहां बुलाने की जरूरत ही क्या थीं?

साक्षी...श्रृष्टि मैं चहती हूं तुम इस प्रोजेक्ट का हेड बनी रहो।

श्रृष्टि...पर मैम आप मूझसे ज्यादा काबिल हो और बहुत पुराना भी फिर मैं कैसे।

साक्षी... श्रृष्टि तुम कितनी काबिल हों ये राघव सर बहुत पहले से जानते हैं और आज मैं भी जान गईं।

"बहुत पहले लेकिन कब से, इनसे मिले हुए मात्र एक महीना हों रहा हैं।" अनभिज्ञता जाहिर करते हुए श्रृष्टि बोलीं

साक्षी...DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में जब तुम काम करती थी तब से।

श्रृष्टि... मतलब की आप वोही राघव हो जो DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ने के बाद मूझसे मिलाना चाहते थे।

राघव... हां

श्रृष्टि... क्या, जिस कारण मैं DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप छोड़ा था आज वहीं कारण मेरा पीछा करते करते मुझ तक पहुंच गई। छी मेरी किस्मत भी कितनी बुरी हैं। मां ने बार बार कहा था मैं आगे नौकरी न करू मगर मैं उनकी एक भी नहीं मना जिसका नतीजा आज मेरे सामने वहीं लोग आ गए जिनसे पीछा छुड़ाना चाहती थीं।

"श्रृष्टि तुम गलत समझ रहीं हों राघव सर दिनेश नैनवाल जी के बेटे जैसा नहीं हैं। ये मूझसे बेहतर कोई नहीं जानता हैं। श्रृष्टि मेरी बात ध्यान से सुनो (श्रृष्टि का बाजू पकड़े खुद की ओर मोड़ा फ़िर आगे बोलीं)सर को जब पाता चला वहां दिनेश नैनवाल जी के बेटे ने तुम्हारे साथ गलत सलूक किया था। जिस कारण तुमने नौकरी छोड़ दी थीं। तब इन्होंने उनसे पॉर्टनरशिप तोड़ लिया सिर्फ़ ये सोचकर की उनके वजह से उन पर और हमारे कम्पनी पर कोई उंगली न उठाए। ये तुम भी जानती हो बीच कंस्ट्रक्शन पॉर्टनरशिप तोड़ने पर कितना हर्जाना भरना पड़ता हैं। अब भी तुम्हें लगे की सर उन जैसा हैं तो तुम गलत ख्याल अपने जेहन में पाल रखी हो।" एक सांस में साक्षी ने अपनी बात कह दी।

जिसे सुनकर श्रृष्टि अचंभित सा राघव को देखने लग गई तो राघव बोला...श्रृष्टि तुम्हें डरने की जरूरत नहीं हैं मै उन जैसा नहीं हूं और न ही उन जैसा बर्ताब करने वाले किसी भी बंदे को काम पर रखा हूं।

इतना सुनते ही सहसा श्रृष्टि की आंखे छलक आई और हाथ जोड़कर बोलीं...सर मुझे माफ़ कर देना मैं सच्चाई जानें बिना न जानें आपको क्या क्या बोल दिया और न जानें क्या क्या सोच बैठी। प्लीज़ सर मुझे माफ़ कर देना।

राघव बैठे बैठे साक्षी को इशारा किया तो साक्षी श्रृष्टि को सहारा दिया फिर राघव बोला...श्रृष्टि मैं तुम्हारी बातों का बूरा नहीं मना क्योंकि तुमने जो भी कहा अंजाने में कहा इसलिए तुम माफी न मांगो।

इतना सुनने के बाद श्रृष्टि एक बार फिर राघव को देखा तो राघव मुस्कुरा दिया देखा देखी श्रृष्टि भी मुस्कुरा दिया। कुछ देर की चुप्पी छाई रहीं फिर चुप्पी तोड़ते हुए राघव बोला... श्रृष्टि अब तो तुम इस प्रोजेक्ट के हेड बनी रहना चाहोगी और जैसे कार्य कुशलता का परिचय DN कंस्ट्रक्शन ग्रुप में दिया था वैसे ही कार्य कुशलता का परिचय हमारी कम्पनी और इस प्रॉजेक्ट के लिए भी देना।

श्रृष्टि... सर अपने मुझ पर भरोशा किया हैं तो मैं आपकी भरोसा टूटने नहीं दूंगी। (फिर कुछ सोचकर आगे बोलीं) सर क्या ऐसा नहीं हों सकता कि एक ही प्रोजेक्ट में दो हेड हों।

राघव... मतलब तुम साक्षी को भी अपने साथ साथ इस प्रोजेक्ट का हेड बनना चहती हों (फिर साक्षी से मुखताबी होकर बोला) साक्षी मैंने तुमसे कहा था न श्रृष्टि की सोच आव्वाल दर्जे की है देखो प्रमाण तुम्हारे सामने है।

इतना सुनकर साक्षी ने श्रृष्टि को गले से लगा लिया फ़िर बोलीं... श्रृष्टि जिस मां ने तुम्हें जन्म दिया वो मां बहुत भाग्य शाली है। मैं एक बार उस मां से मिलना चहती हूं और पूछना चहती हूं कि क्या खाकर तुम्हें जन्म दिया जो खुद के बारे मे सोचने से पहले दूसरे के बारे मे सोचती हैं।

एक बार फ़िर से चुप्पी छा गई। कुछ देर बाद चुप्पी तोड़ते हुए श्रृष्टि बोलीं...किसी दिन समय निकालकर घर आना मिलवा दूंगी फ़िर पूछ लेना जो पूछना हों।

राघव... अच्छा सिर्फ़ साक्षी को अपनी मां से मिलबाओगी मुझे नहीं, भाई मैने क्या गुनाह कर दिया जो मूझसे बैर कर रही हों।

"आपको तो बिल्कुल भी नहीं मिलबाना है। क्योंकि अपने मूझसे बाते छुपाया जब आप मुझे पहचान गए थे तो पहले ही बता क्यों नही दिया।" रूठने का दिखावा करते हुए श्रृष्टि बोलीं।

"हा श्रृष्टि बिलकुल भी मत बुलाना।" साथ देते हुए साक्षी बोलीं।

कुछ देर ओर बाते हुआ फिर दोनों राघव से विदा लेकर चले गए। दोनों के जाते ही राघव ने तुरंत ही फोन करके एक कॉफी का ऑर्डर दे दिया और शांत चित्त मन से कुर्सी के पुस्त से सिर टिका लिया। सहसा उसके आंखो के पोर से आंसु के कुछ बंदे बह निकला जिसे पोंछकर राघव बोला...श्रृष्टि तुम कितना भाग्य शाली हों जो कोई भी तुम्हारी मां से मिलना चाहें तो तुम खुशी खुशी उन्हें अपनी मां से मिलवा सकती हों और मैं कितना अभागा हूं कि मेरे पास ऐसा कोई शख्स नहीं हैं जिसे मां बोलकर मिलवा सकूं। एक सौतेली मां हैं जिसकी आंखों में मैं हमेशा खटकती रहती हूं उन जैसी महिला से मैं कभी किसी को मिलवा ही नहीं सकता। हे प्रभु मुझे किस जन्म के गुनाह की सजा दे रहा हैं। बस एक विनती है अगले जन्म में मुझे ऐसे मां के कोख से जन्म देना जो जीवन भर मेरे साथ रहें, अपने आंचल के छाव तले मेरे जीवन के एक एक पल को संवारे।

इतने में किसी ने भीतर आने की अनुमति मंगा। झट से राघव ने आंखो को पोछा चहरे के भव को बदला फ़िर आए हुए शख्स को भीतर आने की अनुमति दी। भीतर आए शख्स से राघव को कॉफी दिया फ़िर चला गया।

जारी रहेगा….
 
LEGEND NEVER DIES................................
Moderator
17,457
29,376
173
भाग -1

श्रृष्टि कितना खूबसूरत नाम हैं। जितनी खूबसूरत नाम हैं उतना ही खूबसूरत इसकी आभा हैं। जिसमें पूरा जग समाहित हैं। न जानें कितने अजीबों गरीब प्राणिया इसमें अपना डेरा जमाए हुए हैं। उन्हीं अजीबो गरीब प्राणियों में इंसान ही एक मात्र ऐसा प्राणी हैं। जिसकी प्रवृति को समझ पाना बड़ा ही दुष्कर हैं। कब किसके साथ कैसा व्यवहार कर दे यह भी कह पाना दुष्कर हैं। कोई तरक्की की सीढ़ी चढ़ने के लिए रिश्तों को ताक पर रख देता है। तो कोई विपरीत परिस्थिति में भी रिश्तों की नाजुक डोर टूटने नहीं देता हैं। वहीं कुछ ऐसे भी होते हैं कोई रिश्ता न होते हुए भी ऐसा कुछ कर जाता हैं जिसके लिए लोग उन्हे उम्र भार याद रखते हैं। हैं न बड़ा अजीब श्रृष्टि हमारी। बहुत हुई बाते अब मुद्दे पर आता हूं और कहानी की सफर शुरू करता हूं…..

श्रृष्टि, ओ श्रृष्टि! सुन रहीं हैं कि नहीं, बेटा जल्दी से बाहर आ।

एक व्यस्क महिला रसोई की द्वार पर खड़ी होकर श्रृष्टि नाम की एक शख़्स को आवाज दे रहीं हैं। बुलाने के अंदाज और संबोधन के तरीके से जान पड़ता हैं। व्यस्क महिला का श्रृष्टि से कोई खास रिश्ता हैं।

आवाजे अत्यधिक उच्च स्वर में दिया गया था किन्तु इसका नतीजा ये रहा कि श्रृष्टि ने न कोई आहट किया और न ही बाहर निकलकर आई, इसलिए महिला खुद से बोलीं... इस लडकी का मै क्या करू, एक बार बुलाने से सुनती ही नहीं!

इतना बोलकर कुछ कदम आगे बढ गई और कमरे का दरवाजा खटखटाते हुए बोलीं... श्रृष्टि, ओ श्रृष्टि सो रहीं है क्या?

"नहीं मां" की एक आवाज़ अंदर से आई, तब महिला फ़िर से बोलीं...बहार आ बेटा कुछ काम हैं।

एक या दो मिनट का वक्त बीता ही होगा कि कमरे का दरवाजा खुला, दुनिया भर की मसूमिया और भोलापन चहरे पर लिए, मंद मंद मुस्कान लवों पर सजाएं श्रृष्टि बोली... बोलों मां, क्या काम हैं?

"पहले तू ये बता, कर क्या रहीं थीं? कितनी आवाजे दिया मगर तू है कि सुन ही नहीं रहीं थी" इतना बोलकर महिला ने एक हल्का सा चपत श्रृष्टि के सिर पर मार दिया।

"ओ मेरी भोली मां (प्यार का भाव शब्दों में मिश्रित कर श्रृष्टि आगे बोलीं) कल मुझे साक्षात्कार के लिए जाना है उसकी तैयारी कर रही थीं। आप ये अच्छे से जानती हों जब मैं काम में ध्यान लगाती हूं फ़िर मुझे कुछ सुनाई नहीं देता हैं।"

"अब उन कामों को अल्प विराम दे और बाजार से रसोई की कुछ जरूरी सामान लेकर आ।"

"ठीक है मैं तैयार होकर आती हूं।"

इतना बोलकर श्रृष्टि पलटकर अंदर को चल दिया और महिला किचन की और चल पड़ी। श्रृष्टि बाजार जानें की तैयारी कर ही रहीं थी कि उसके मोबाइल ने बजकर श्रृष्टि का ध्यान अपनी ओर आकर्षित किया, "कौन है" बस इतना ही बोलकर श्रृष्टि ने मोबाइल उठा लिया और स्क्रीन पर दिख रहीं नाम को देखकर हल्का सा मुस्कुराई फिर कॉल रिसीव करते हुए बोलीं... बोल समीक्षा कैसे याद किया।

समीक्षा...यार मुझे न कुछ शॉपिंग करने जाना था। तू खाली हैं तो मेरे साथ चल देती , तो अच्छा होता।"

श्रृष्टि...मैं भी कुछ काम से बजार ही जा रहीं थीं तो लगें हाथ तेरा भी काम करवा दूंगी, मेरा मतलब है तेरा शॉपिंग भी करवा दूंगी। तू घर आ जा तब तक मैं तैयार हों लेती हूं।"

श्रृष्टि से सहमति पाते ही "अभी आई" बोलकर समीक्षा ने कॉल कट कर दिया और श्रृष्टि तैयार होकर मां के पास पहुंचकर बजार से आने वाली सामानों की लिस्ट लिया फ़िर बोलीं…मां, वो समीक्षा भी आ रही है उसे शॉपिंग करनी हैं। तो हो सकता हैं कुछ वक्त लग जाय, इससे आपको दिक्कत तो नहीं होगी।"

"नहीं" बस इतना ही बोल पाई कि बहार से हॉर्न की आवाज़ आई। जिसे सुनकर श्रृष्टि बोलीं... लगता हैं समीक्षा आ गई है। मैं चलती हूं। बाय मां।

कुछ ही वक्त में दोनों सहेली दुपहिया पर सवार हों, हवा से बातें करते हुए बजार में पहुंच गईं। दोनों इस वक्त शहर के सबसे मशहूर शॉपिंग माल के गेट से भीतर पार्किंग में जा ही रहीं थीं कि एक चमचती कार दोनों के स्कूटी से बिल्कुल सटती हुई आगे को बढ़ गईं। जिसका नतीजा ये हुआ की समीक्षा का बैलेंस बिगड़ गया, किसी तरह गिरने से खुद को बचाकर समीक्षा बोलीं... अरे ओ आंख के अंधे, अमीर बाप के बिगड़े हुए औलाद दिन में ही चढ़ा लिया जो दिखना बंद हों गया।

श्रृष्टि...अरे छोड़ न यार जानें दे।

समीक्षा...क्या जानें दे, उसके पास चमचमाती कार हैं। इसका मतलब हमारी दुपिया का कोई वैल्यू ही नहीं मन कर रहा हैं पत्थर मारकर उसके चमचमाती कार का नक्शा ही बिगड़ दूं।

श्रृष्टि...अरे होते हैं कुछ लोग जिन्हें पैसे कि कुछ ज्यादा ही घमंड होता हैं। तू खुद ही देख उसके पास लाखों की कार हैं उसके आगे हमारी इस दूपिया की क्या वैल्यू?

"एक तो उस कमीने ने दिमाग की दही कर दिया। अब तू उसमें चीनी डालकर लस्सी बनाने पे तुली हैं।" तुनककर समीक्षा बोलीं तो श्रृष्टि मुस्कुराते हुए जवाब दिया...उसमें से एक गिलास निकलकर पी ले और गुस्से को ठंडा कर लें ही ही ही...।

"श्रृष्टि" और ज्यादा तुनक कर समीक्षा बोलीं तो श्रृष्टि फिर से मुस्कुराते हुए बोलीं...अरे अरे गुस्सा थूक दे और चलकर वहीं करते है जो हम करने आएं हैं।

समीक्षा को थोड़ा और समझा बुझा कर मॉल के भीतर लेकर जानें लगीं कि मुख्य दरवाजे से भीतर जाते वक्त एक हाथ श्रृष्टि के जिस्म को छू कर गुजर गया। श्रृष्टि को लगा शायद अंजाने में किसी का हाथ छू गया होगा। इसलिए ज्यादा तुल नहीं दिया। इसका मतलब ये नहीं की उसे बुरा नहीं लगा। बूरा लगा मगर वो उस शख्स को देख ही नहीं पाई जिसका हाथ श्रृष्टि के जिस्म को छूकर निकल गया। सिर्फ और सिर्फ़ इसी कारण श्रृष्टि ने मामले को यही दावा देना बेहतर समझा। बरहाल दोनों सहेली आगे को बढ़ गई और अपने काम को अंजाम देने लग गई।

लड़कियों का भी क्या ही कहना? इनको शॉपिंग करने में ढेरों वक्त चाहिए होता है। देखेगी बीस और खरीदेगी एक दो, ऐसे ही करते हुए दोनों आगे बढ़ती गई। कहीं कुछ पसंद आया तो खरीद लिया वरना आगे चल दिया। ऐसे ही एक सेक्शन में कुछ ज्यादा ही भिड़ था और उन्हीं भीड़ में समीक्षा अपने लिए कपडे देख रहीं थीं और श्रृष्टि उसकी हेल्प करने में लगीं हुई थीं।

तभी श्रृष्टि को लगा कोई उसके जिस्म को छूकर निकल गया। पलटकर पिछे देखा तो उसे अपने पिछे कई चहरे दिखा। अब दुस्वारी ये थीं कि उन चेहरों को देखकर कैसे पहचाने, उनमें से किसने उसके जिस्म को छुआ, जब पहचान ही नहीं पाई तो कोई प्रतिक्रिया देना निरर्थक था। इसलिए वापस पलटकर समीक्षा की मदद करने लग गईं।

कुछ ही वक्त बीता था की एक बार फ़िर से किसी का हाथ उसके जिस्म को छु गया। इस बार श्रृष्टि को गुस्सा आ गया। गुस्से में तमतमती चेहरा लिए पीछे पलटी तो देखा उसके पीछे कोई नहीं था। गुस्सा तो बहुत आई मगर किसी को न देखकर अपने गुस्से को दावा गई और पलटकर उखड़ी मुड़ से समीक्षा को जल्दी करने को बोलीं, कुछ ही वक्त में समीक्षा की शॉपिंग पूरा हुआ फिर ग्रोचारी स्टोरी से मां के दिए लिस्ट के मुताबिक किचन का सामान लेकर दोनों बिल देने पहुंच गई। समीक्षा अपना बिल बनवा ही रहीं थीं कि अचानक "चटकक्क" के साथ "बेशर्मी की एक हद होती हैं" की तेज आवाज़ वहां मौजुद सभी के कान के पर्दों को हिलाकर रख दिया।


जारी रहेगा...
:congrats: for new रचना,
 

Top