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भाग - 11
सभी के पूछने पर भी साक्षी ने उस शख्स के बारे मे कुछ नहीं बताया। बार बार पुछा गया प्रत्येक बार सिर्फ नहीं का प्रतिउत्तर आया। अंतः सभी ने इस मुद्दे को टालकर बातों की दिशा बादल दिया। बातों बातों में यह दिन बीत गया और सभी अपने अपने घरों को लौट गए।
अगले दिन सभी समय से दफ्तर आ गए मगर राघव कुछ देर से आया। जब वो आया उस वक्त उसका चेहरा उतरा हुआ था। ऐसा लग रहा था जैसे किसी बात से उसको गहरा धक्का लगा हों।
किसी तरह चेहरे के भव को छुपाए बिना किसी से बात किए दफ्तर के निजी कमरे में चला गया। राघव के इस रवैया से जो जो उसे अपने दफ्तर के निजी कमरे तक आने के रास्ते में मिले सभी के सभी हैरत में पड़ गए क्योंकि राघव दफ्तर आते ही दफ्तर के निजी कमरे में जाते वक्त रास्ते में जो जो मिलता था सभी का हल चल पूछते हुए जाता था। मगर आज ऐसा नहीं किया जिस कारण सभी हैरत में रह गए।
दफ्तर के निजी कमरे में राघव गुमसुम सा बैठा कुछ सोच रहा था और पेपर वेट को गुमा रहा था। उसी वक्त एक शख्स कमरे में प्रवेश किया ओर बोला... राघव बेटा।
शख्स की आवाज सुनते ही राघव की निगाह उस शख्स की ओर गया। "पाप" बस ये लव्ज निकला फिर आंखो से सैलाव की तरह झर झर आसूं बह निकला। राघव को यूं आसूं बहाता देख वो शख्स तुंरत राघव के पास पहुंचे और गले से लगा लिया फ़िर बोला... राघव तू चंद्रेश तिवारी का बेटा है तिवारी कंस्ट्रक्शन ग्रुप का मालिक हैं फ़िर भी चंद बातों से इतना आहत हों गया कि आंसुओ का सैलाब ला दिया। देख अपने बाप को जिसे बडी बडी अंधी भी डिगा नहीं पाया तू उस अडिग चंद्रेश तिवारी का बेटा होकर रो रहा हैं।
"पापा मैं आपकी तरह मजबूत नहीं हूं न ही मैं कोई पत्थर हूं। एक साधारण मानव हूं जिसे कांटा चुभने पर दर्द होता हैं। जब वो कांटा अपनो के दिए तंज का हों तब और ज्यादा चुभता हैं।" सुबकते हुए राघव ने अपनी व्यथा सुना दिया।
"नहीं रोते तू तो बचपन में चोट लगने पर भी नहीं रोता था फिर अब क्यों?"
" क्यों? सौतेले का तंज खुले चोट से ज्यादा दर्द देता हैं जो मूझसे सहन नहीं होता हैं। मैं तो उन्हें सौतेला नहीं मानता फिर क्यों मां और अरमान मुझे सौतेला बेटा, सौतेला भाई कहकर ताने देते रहते हैं। आज भी मां ने सिर्फ इसलिए ताने दिया क्योंकि मैने अरमान को जयपुर भेज दिया। आप ही बताइए मैं अकेला क्या क्या करूं उसकी भी तो कुछ ज़िम्मेदारी बनता हैं।"
तिवारी... सब मेरी ही करनी का फल हैं जो तुझे भोगना पड़ रहा हैं। मैं उस वक्त तेरे भले का न सोचा होता तो आज तुझे यूं तंज न सुनना पड़ता मगर तू फिक्र न कर जल्दी ही मैं इसका कुछ समाधान निकल लूंगा।
राघव... पापा आप मां का कहना मन लिजिए जायदाद का 60 प्रतिशत हिस्सा उनके और अरमान के नाम कर दीजिए बाकी का बचा हुआ मेरे और आपके नाम कर लिजिए शायद इसी बहाने मुझे मां की ममता ओर प्यार का छाव मिल जाएं जिसके लिए अपने उनसे शादी किया था।
तिवारी... क्या किया जा सकता है मैं इस पर विचार करके देखता हूं। अब तू चल कैंटीन से कुछ खा ले।
राघव जानें को तैयार नहीं हो रहा था तब तिवारी जी राघव को सुरसुरी करते हुए बोला... जब तक तू नाश्ता करने जाने को तैयार नहीं होता तब तक मैं तुझे सुरसुरी करता रहूंगा। अब तू सोच कब तक यूं सुरसुरी करना सह सकता हैं।
"पापा छोड़िए न ये घर नही दफ्तर हैं।" खिलखिलाते हुए राघव बोल।
तिवारी... दफ्तर है तो क्या हुआ जब तक तू नाश्ता करने को तैयार नहीं होता तब तक मैं नहीं रूकने वाला।
ज्यादा देर राघव सुरसुरी सह नहीं पाया अंतः हर मानकर नाश्ता करने चल दिया।
अब कुछ बाते जान लेते हैं जिससे पाठक बंधु भ्रमित न हों। चंद्रेश तिवारी अपना सफर एक छोटा सा भवन निर्माता से शुरू किया था जो समय के साथ एक नामी कंस्ट्रक्शन ग्रुप में बादल गया। चंद्रेश तिवारी का छोटा सा हसता खेलता सुखी परिवार हुआ करता था। सहसा एक दुर्घटना में उनकी पत्नी चल बसी राघव उस वक्त सिर्फ पांच साल का था।
तिवारी के सामने अब दुविधा ये थीं कि काम देखे की अपने पांच साल के बेटे को काम से मुंह मोड़ नहीं सकता था और बेटे से भी मुंह नहीं मोड़ सकता था। दोस्तों और रिश्तेदारों ने दुसरी शादी करने की सलाह दिया पहले तो नकार दिया फ़िर बहुत समझने के बाद मन लिया ये सोचकर राघव को एक मां का प्यार और देखभाल करने वाला मिल जायेगा।
तब एक रिश्तेदार के जरिए बरखा से मिला जो तलक सुदा थी साथ ही एक बेटा भी था। तिवारी ठहरे भले मानुष उन्हें उन पर दया आ गई तब उन्होंने सोचा राघव को मां और अरमान को बाप का छाव मिल जायेगा। यहीं तिवारी से गलती हों गया। शादी के बाद अरमान को बाप का प्यार मिलता रहा लेकिन राघव मां की ममता के लिए तरसता रहा।
तिवारी के सामने बरखा मेरा बेटा मेरा बेटा करती रहती। तिवारी के बहार जाते ही राघव के साथ बुरा सलूक करना शुरू कर देता साथ ही डराकर रखती थीं कि अगर पापा को बताया तो उसे इस घर से बहार कर देगा विचारा घर से दूर जानें की बात से ही सहम जाता था और तिवारी से कुछ नहीं कहता था।
धीरे धीरे समय बीता गया और राघव साल दर साल बड़ा होता गया मगर उसकी यातनाओं में रत्ती भर भी कमी नहीं आया इससे परेशान होकर उच्च शिक्षा के लिए बहार चला गया और जब तब भवन इंजीनियर नहीं बन गया तब तक घर नहीं लौटा।
राघव छुट्टियों में भी घर नहीं आता था। सहसा तिवारी के मन में शंका घर कर गया कि जो घर से दूर जाना नहीं चाहता था वो घर से जाते ही घर आने को राजी क्यों नहीं हो रहा हैं। बरखा से कारण जानना चाहा मगर उसने भी गोल मोल जवाब दे दिया।
बरखा की जवाब से तिवारी को संतुष्टि नहीं मिला तो राघव के पास पहुंच गया। बहुत कहने के बाद आखिरकर राघव ने सच्चाई बता ही दिया। सच्चाई जानकार तिवारी को बहुत गुस्सा आया उसका मन किया बरखा को तलाक दे दे पर मां की गलती की सजा बेटे को नहीं देना चहता था। इसलिए तलक देने का विचार त्याग दिया।
इन्हीं दिनों तिवारी का लगाव बरखा से खत्म हों गया था लेकिन अरमान से पूर्ववत बना रहा। वहां राघव पढाई पर ध्यान दे रहा था और यहां अरमान बाप के पैसे को मौज मस्ती में लूटा रहा था। कई बार तिवारी ने टोका मगर इसका नतीजा बरखा के साथ तू तू मैं मैं हों जाता था।
राघव अपनी पढ़ाई खत्म करके घर लौट आया और बाप को रिटायरमेंट देकर सभी ज़िम्मेदारी अपने कंधे ले लिया फिर अपने कार्य कुशलता से बाप का काम और नाम को ऊंचाई पर ले जानें लग गया।
अरमान कभी मन होता तो राघव का हाथ बटा देता वरना मौज मस्ती में लगा रहता। अरमान की करस्तानी से परेशान होकर कभी कभी राघव टोक देता और तिवारी तो पल पल टोकते ही रहते थे इसका नतीजा ये आया की ग्रह कलेश बड़ गया।
रोज रोज के कलेश से परेशान होकर तिवारी ने दोनों मां बेटे को सबक सिखाने के लिए चल अचल संपूर्ण संपत्ति का 30 30 प्रतिशत हिस्सा राघव और खुद के नाम कर लिया और बाकी बचे हिस्से का 20 20 प्रतिशत हिस्सा बरखा और अरमान के नाम कर दिया।
यहां बात अरमान और बरखा को पसंद नहीं आया इसलिए दोनों मां बेटे खुलकर सामने आ गए और राघव को तिवारी के सामने ताने देने लग गए तिवाड़ी कुछ कहता तो उससे भी लड़ पड़ते थे। इन्हीं वजह से परेशान होकर बरखा को तलक देकर और कुछ हर्जाना भरकर इस मामले को रफा दफा कर देने की बात सोचा मगर ये भी नहीं कर पाया ये सोचकर कि कहीं समाज के ठेकेदार ये न कहें कि जब जरूरत थी तब बरखा से शादी कर लिया अब जरूरत खत्म हो गया तो बरखा और उसके बेटे को बेसहारा छोड़ दिया। अंतः मजबूर होकर तिवाड़ी ख़ुद के किए एक फैसले पर पछताते हुए इस रिश्ते के बोझ को ढो रहा हैं और राघव खाने से ज्यादा ताने सुनकर दिन काट रहा हैं।
नाश्ता करते वक्त तिवारी ने बेटे को एक बार फिर से समझाया फ़िर थोडा हसाया जिससे राघव का मुड़ सही हों गया। नाश्ते के बाद बेटे को दफ्तर के निजी कमरे में छोड़कर चला गया। बाप के जाते ही राघव ने एक फोन करके किसी को बुलाया।
जारी रहेगा….