अपडेट 81
रत्ना ने देवा के खड़े लंड पर जो धोखा की थी उस बात से देवा थोड़ा परेशान था मगर वो हिम्मत नहीं हारा था। वो ये समझ रहा था की नीलम की वजह से शायद रत्ना ने उसे और कुछ करने नहीं दिया।
सुबह सुबह देवा तैयार होकर अपने खेत देखने चला जाता है वो अपने खेतों में काम कर रहा था की उसे पदमा आती दिखाई देती है।
जब पदमा देवा के पास पहुँचती है तो देवा को उसे देख हंसी आ जाती है।
पदमा;हंस क्यों रहे हो।कुछ लगा हुआ है क्या मुझे।
देवा;नहीं नहीं बस तुम्हारा पेट देख कर हंसी आ गई। ऐसा लग रहा है जैस तूम एक नहीं दो तीन बच्चे पैदा करोगी।
पदमा;हरामी सब तेरी वजह से हुआ है मेरा हाल ये।
इतना बड़ा पेट लेकर घुमना पड़ता है मुझे पहले ही अच्छी थी ।
देवा;वैसे कौन सा महीना चल रहा है काकी।
पदमा;अरे बाप तू है तो तुझे पता होना चाहिए ना।
आखरी महिना चल रहा है।
हाँ तुझे क्या पता रहेगा कितने दिन से तो शक्ल नहीं दिखाया कम्बखत तूने मुझे।
देवा;पदमा का हाथ पकड़ के अपने पास बैठा लेता है और उसके पेट पर हाथ फेरते हुए बड़े प्यार से कहता है।
मेरी जान तू तो वो औरत है जिसने मुझे सारे सुख दिया सबसे पहले।
मै बहुत भाग्यशाली हूँ जो तेरी जैसी औरत मेरी ज़िन्दगी में आई।
पदमा की ऑंखें भर आती है।
नही नहीं ऐसा मत कहो भाग्यशाली तो मै हूँ देवा। सच कहूं माँ बनने की ख़ुशी क्या होती है जैसे मुझे पता नहीं थी।
तुमने मुझे माँ बना कर मुझ पर बहुत बड़ा उपकार किया है।
देवा;पदमा के होठो को चूम लेता है
वैसे तू आई क्यों थी इतनी सुबह सुबह।
पदमा;देख मै तेरी बातों में बताना भुल गई।
बडी मालकिन ने तुझे याद की थी कल। मै रात में आ नहीं सकी इसलिए सुबह आ गई।
तू शाम ढले हवेली चले जाना पता नहीं क्या काम है मालकिन को।
ये कहते हुए पदमा वहां से चली जाती है और देवा सोच में पड़ जाता है की आखिर रुक्मणी को अब क्या काम आ गया है उससे।
वो अपने काम में फिर से लग जाता है।
और जब दोपहर होती है तो खाना खाने के लिए घर चला आता है।
जब वो घर में दाखिल होता है तो उसे कोई भी नज़र नहीं आता न नीलम और न रत्ना। वो रत्न को ढूँढ़ते ढूँढ़ते उसके रूम में चला जाता है।
रत्ना;उस वक़्त नहा कर अभी अभी बाथरूम से बाहर निकली थी।
देवा की ऑंखें उसे ऐसे रूप में देख चकम जाती है।
वो दबे पांव चलता हुआ रत्ना के पीछे जाकर खड़ा हो जाता है और उसे अपनी बाहों में कस लेता है।
रत्ना;कौंन।
ओह देवा क्या कर रहा है छोड मुझे। पागल तो नहीं हो गया है ना तु।
देवा;हाँ माँ मै पागल हो गया हूँ तेरे प्यार में। कब तक इस प्यासे को तड़पाएगी मेरी माँ।दे दे न मुझे एक बार।
रत्ना;आह मै कहती हूँ छोड मुझे। रात में भी तूने जो हरकत की वो ठीक नहीं आहह क्या कर रहा है देवा।
देवा;अपने मज़बूत पंजो से रत्ना के बड़े बड़े ब्रैस्ट को मसलने लगता है और रत्ना जल बिन मछली की तरह तडपने लगती है।
देवा;मुझे एक बार दे दे माँ सच कहता हूँ।
मेरी दिवानी न बना दिया तो देवा नाम नहीं मेंरा।
वह अपने जोश में क्या क्या बड़बड़ाये जा रहा था उसे भी पता नहीं था।
रत्ना;देवा मै तेरी माँ हूँ बेटा। तू जो चाहता है वो मै तुझे नहीं दे सकती न उन्हह।
देवा;रत्ना की एक नहीं सुनता और उसे बिस्तर पर गिरा देता है।
देखो माँ जल्दी से मेरी बन जाओ और जो मै मंगलसुत्र तुम्हारे लिए लाया हूँ उसे पहन लो।
रत्ना;नहीं पहनूंगी कभी नहीं छोड दे मुझे अखरी बार कह देती हूँ।
देवा;रत्ना के तेवर देख अपना अखरी हथियार इस्तेमाल करता है।
वो रत्न को पूरी तरह अपने नीचे दबा देता है जिसे उसका खड़ा लंड सीधा रत्ना की जांघो में चुभता हुआ चूत पर जा रुकता है।
वो रत्ना के दोनों ब्रैस्ट को सहलता हुआ एक निप्पल को अपने मुँह में खीच लेता है गलप्प गलप्प गलप्प्प गलप्पप्प।
चुत पर लंड का धक्का और ब्रैस्ट की चुसाई से रत्ना थोडी ढीली पड़ जाती है और बस धीरे धीरे देवा को धकेलने लगती है।
रत्ना;देख छोड दे ना रे हां क्या करता है बेटा । आहह गांव वाले क्या सोचेंगे हमारे बारे में उहंन आह्ह।
देवा;मुझे किसी की परवाह नहीं गलप्प्प गलप्प गलप्प गलप्प्प।
देवा का लंड अपनी माँ की चूत की खुशबु से इतना खड़ा हो चूका था की वो उसके पायजामे में चीखने लगता है।
जैसे ही देवा अपने पयजामे का नाडा खोल कर अपना हथियार बाहर निकालता है । रत्ना उसका इरादा समझ जाती है और उसे धक्का देकर पीछे ढकेल देती है और झट से खडी हो जाती है।
देवा;माँ ये क्या है।
रत्ना: एक तरफ तुम मुझसे इतना प्यार करने की बात करता है और दूसरी तरफ ऐसे जबरदस्ती......।
रत्ना;देवा की तरफ पीठ करके खडी हो जाती है।
देख देवा तू जो करना चाहता है वो नहीं हो सकता।
देवा;मगर क्यों बोलो मुझे। क्या मै अपनी माँ को ख़ुशी नहीं दे सकता। क्या तुम मेरे नाम का मंगल सूत्र नहीं पहन सकती।
रत्ना;नहीं पहन सकती।
देवा;तुम्हें पहनना होगा और मै तुम्हें पहनाकर रहूँगा चाहे कुछ भी करना पड़े मुझे।
रत्ना;एक औरत एक पति के होते हुए दूसरे के नाम का मंगलसूत्र नहीं पहन सकती।
देवा;क्या मतलब माँ।
रत्ना;देवा के तरफ घूमते ही...
तेरे बापू मरे नहीं है वो लापता हुए है।
जब तक मुझे ये पता नहीं चल जाता की वो ज़िंदा है या नहीं मै उनकी जगह किसी को नहीं दे सकती।
और आइन्दा अगर तुमने मेरे साथ ज़बर्दस्ती करने की कोशिश भी की न तो याद रखना। मै तुमसे कभी बात नहीं करुँगी।
रत्ना की बात सुनकर देवा खड़ा हो जाता है
और उसका खड़ा लंड बैठ जाता है।
वो रत्ना के एकदम पास आकर खड़ा हो जाता है।
मै यही सुनना चाहता था की मेरी माँ मुझे कैसे मिलेगी।
माँ तूने अपने दिल की बात बता कर बहुत अच्छा की।
मै भी बापू के बारे में जानना चाहता हूँ आखिर उन्हें हुआ क्या है कहाँ है वो और मै जानता हूँ मुझे उनके बारे में कौन बता सकता है।
तू चिंता मत कर माँ मै बापू के बारे में तुझे सब कुछ बता दूँगा।
बस तुझे एक वादा करना होगा तुझे बापू के बारे में सब पता चलने के बाद तुम्हें मेरी हर बात माननी होगी।
रत्ना;अपनी गर्दन मोड़ कर दिल में सोचने लगती है।
हाँ ज़ालिम जानती हूँ तेरी इच्छा।
अगर मै नहीं मानी तो....।
देवा; पीछे से रत्ना को जकड लेता है
और उसकी गर्दन पर चूम लेता है।
मुझे पता है ये खूबसूरत जिस्म एक दिन मेरे नीचे होगा और उस दिन मै दुनिया का सबसे खुशनसीब इंसान होऊंगा।
रत्ना;चल हट बेशर्म कहीं का।
रत्ना और कुछ नहीं कहती बस मुस्कुराते हुए वहां से बाहर निकल जाती है।
देवा भी मुस्कुरा देता है ये सोचते हुए की वो अपनी रत्ना को पूरी पाकर रहेगा बस उसे पता चल जाए की उसके बापू का क्या हुआ है।
शाम होते होते देवा खाना खाकर हवेली चला जाता है वो सीधा रुक्मणी के रूम में चला जाता है।
उसे हैरत भी होती है की इतनी बडी हवेली में कोई भी नज़र नहीं आ रहा।
रुक्मणी और रानी बिस्तर पर बैठी बातें ही कर रही थी जब देवा वहां पहुँचता है।
देवा;को देख दोनों बिस्तर से खड़ी हो जाती है और रानी दरवाज़ा बंद करके देवा का हाथ पकड़ के पीछे वाले रूम में ले आती है। उसके पीछे पीछे रुक्मणी भी चली आती है।
रुक्मणी;बडी देर लगा दिया देवा।
देवा;वो खेत में ज़्यादा काम था न। पदमा काकी कह रही थी आपने मुझे याद किया था।
रुक्मणी;तू बैठ तो सही तुझे किसी ने देखा तो नहीं न यहाँ आते हुए।
देवा;नहीं किसी ने नहीं। कोई भी नहीं है बाहर तो....
रानी;देखा माँ दोनों वहीँ गए होंगे।
रुक्मणी;हाँ वो छिनाल का आखरी दिन है यहाँ अब।
देवा को कुछ समझ नहीं आ रहा था की वो दोनों क्या बातें कर रही है।
बात क्या है मालकिन।
रुक्मणी;देवा मेरा एक काम करेगा।
देवा;एक क्या मालकिन आप जो कहो वो मै करुन्गा।
रुक्मणी;देवा का हाथ पकड़ कर उसे अपने साथ हवेली के पीछे बने रूम की तरफ ले जाती है।
आवाज़ मत करना चुपचाप चलते रह।
रानी भी दबे पांव उन दोनों के पीछे चलने लगती है।
उधर शालु के घर में पप्पू को तो जैसे सब कुछ मिल गया था।
नुतन और नीलम रत्ना के घर आई हुई थी।
और पप्पू अपनी बहन रश्मि के साथ बैठा घर में बातें कर रहा था।
रश्मी;क्यों भाई कैसे रही सुहागरात।
पप्पू; क्या तू भी कुछ भी पूछती है अच्छी ही रही।
रश्मी;एक बात बता। तुम ज़्यादा चले या नूतन भाभी।
पप्पू;तुझे क्या लगता है।
शालु;मेरा बेटा किसी से काम थोड़े न है।
शालु भी कमर मटकाती हुए उन दोनों के पास चली आती है।
पप्पू;देखो ना माँ रश्मि कैसी बातें कर रही है
रश्मी;उई हुई शर्मा तो ऐसे रहा है जैसे नई नवेली दुल्हन हो ज़रा मै भी तो देखूं रात भर इसकी घिसाये हुई भी है या नही
वो पप्पू को गिरा देती है और उसके पेंट को खोल कर नीचे सरका देती है।
पल भर में पप्पू का लंड रश्मि के हाथ में आ जाता है।
पप्पू;आहह रश्मी नूतन और नीलम आ जाएँगी ना।
रश्मी;देख रही हूँ बस गलप्प गलपप गलल्प।
पप्पू;माँ आहह रोको न इसे आह्ह्ह।
रश्मी;देखो माँ कैसे खड़ा हो रहा है तुझे देख कर
शालु;भी पप्पू का चप्पो देखने के लिए झुकती है और दोनों माँ बेटी किसी रण्डियों के तरह पप्पू के लंड पर झपट पडती है।
एक एक करके दोनों माँ बेटी अपने मुँह में पप्पू का लंड लेकर चुसने लगती है।
रश्मी;गलप्प गलप्प इससे अब भी नूतन की चूत की महक आ रही है।
शालु;मुझे भी चाटने दे मेरे बेटे का गलप्प गलपप
पप्पू;की हालत ख़राब होने लगती है। रात में नूतन के साथ क्या हुआ ये सिर्फ पप्पू और नूतन जानती थी मगर इस वक़्त जो पप्पू के छोटे से लंड के साथ ये दोनों कर रही थी वो पप्पू के लिए बर्दाश्त करना मुश्किल था।
उसे ज़्यादा देर भी नहीं लगती और पप्पु चीखता हुआ रश्मि के मुँह में अपना चिपचिपा पानी छोड कर निढाल हो जाता है।
रश्मी;बेचैन से पप्पू को देखने लगती है।
माँ मुझे नहीं लगता भाई रात भर टीका भी होगा।
शालु;उसे चुप रहने के लिए कहती है उसने बाहर से आती आवाज़ सुन ली थी।
वो पप्पू को कपडे पहनने के लिए कहती है और खुद बाहर निकल आती है।
वो जैसे ही बाहर आती है सामने नूतन और नीलम को देख पहले घबरा जाती है मगर दोनों के चेहरे से लग रहा था की वो अभी अभी आये है।
शालु खुद को सँभाल कर किचन में चली जाती है।