Incest हाय रे ज़ालिम................

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अपडेट 82

रानी और रुक्मणी देवा को लेकर हवेली के पीछे बने एक छोटे से रूम की तरफ जा रही थी।
देवा को उस वक़्त तक कुछ भी समझ नहीं आ रहा था की ये दोनों औरतें आखिर उससे चाहती क्या है।
रुक्मणी;रूम की खिडकी के पास आकर रुक जाती है और ईशारे से देवा और रानी को चुप रहने के लिए कहती है।
रानी; धीरे से खिडकी को थोड़ा सा धकेलती है और अंदर का नज़ारा देख उसका खून गरम हो जाता है।
वो देवा को वहां बुला लेती है और रुक्मणी भी पीछे से अंदर देखने लगती है।
लाईट की धीमी रौशनी में साफ़ नज़र आ रहा था की रूम के अंदर क्या शुरु है।
देवा;रुक्मणी की तरफ देखती है उसकी ऑंखों में वो चमक साफ़ दिखाई दे रही थी
जो एक मरद की ऑंखों में आ जाती है जब वो ऐसा नज़ारा देखता है और पास में दो जवान औरतें खड़ी हुई हो तब तो हालत और भी ख़राब हो जाती है।
अंदर का नज़ारा देवा के लिए नया नहीं था वो इस बात से पहले से वाकिफ़ था।
मगर वो उस वक़्त ऐसा दिखा रहा था जैसे पहली मर्तबा देख रहा हो।
रुक्मणी;चलो यहाँ से।
और तीनो फिर से हवेली में चले जाते है।
देवा;मुझे तो यक़ीन नहीं हो रहा मालकिन।
रुक्मणी;अपनी ऑंखों देखी पर भी तुझे यक़ीन नहीं आ रहा।
देवा;नहीं मेरे कहने का मतलब है की मालिक और वो औरत जिसे वो अपने दोस्त के बीवी कहते है वो दोनों ऐसा भी कर सकते है। मैंने तो सपने में भी नहीं सोचा था।
रुक्मणी;वो सब बातें बाद में करेंगे पहले एक काम कर।
वो धीरे धीरे अपनी बात देवा को समझा देती है और देवा रुक्मणी की बात सुनकर हवेली से तेज़ क़दमों के साथ बाहर निकल जाता है।
गांव के तीन सरपंच थे।
उन में से एक हिम्मत राव भी था।
देवा;सीधा दोनों सरपंच के घर चला जाता है और उन्हें और कुछ गांव वालों को लेकर उन्हें सीधा हवेली के पीछे वाले रूम की खिडके के पास ले जाता है।
और एक एक करके सभी को अंदर का नज़ारा दिखा देता है।

देवा;अब कहिये अगर गांव का सरपंच ही ऐसी हरकतें करेंगे तो हमारी बहु बेटियों की इज़्ज़त की रक्षा कौन करेंगा। बोलिये
सरपंच;चलो मेरे साथ।
वो सब की सब टोली उस रूम पर धावा बोल देती है और देवा एक लात में दरवाज़ा खोल देता है।
अंदर हिम्मत और बिंदिया।
दोनों एक दूसरे से नंगे बदन चिपके हुए थे
अचानक हुए इस हमले से वो दोनों बुरी तरह डर जाते है।
हिम्मत अपने सामने खड़े गांव वालो और दोनों सरपंच को देख बौखला जाता है।
वो जल्दी से खड़ा हो जाता है और पास में पड़ी हुए अपनी लुंगी पहनने लगता है।
सरपँच;हम सब देख चुके है हिम्मत राव जी अब आपकी चोरी पकड़ी जा चुकी है।
इस औरत को आप अपने दोस्त के बीवी बता कर यहाँ रख रहे थे और अब इसी के साथ रास रीला मनाये जा रहे है। क्या असर पड़ेंगा हमारे बेटियों पर बोलिये।
हिम्मत;सरपंच जी वो मुझसे बहुत बड़ी भूल हो गई।
सरपँच;भूल नहीं पाप हुआ है आपसे।
और इस पाप का प्राश्चित भी आपको करना होगा।
हिम्मत;क्या मतलब।
सरपँच;मतलब तो आपको कल पंचायत में पता चल ही जायेगा
पहले आज अभी इसी वक़्त आप अपनी इस औरत को वहां छोड आये जहाँ से आप इसे लाए हैं वरना ये काम हमे करना होगा और पूरा गांव यहाँ बुलाना होगा।
हिम्मत;को कुछ सुझ नहीं रहा था हाथ पैर काँप रहे थे उसके। यही हाल बिंदिया का भी था।
सबसे पीछे खड़ा देवा मुस्कुरा रहा था।
और उसकी मुस्कान हिम्मत ने देख लिया था।
हिम्मत; मैं अभी इसे इसके गांव छोड आता हूँ।
मगर गांव वालों के सामने कुछ मत कहना आप लोग। आपलोग जो कहेंगे मुझे मंज़ूर होगी वो सजा।
सरपँच;कल सुबह १० बजे पंचायत आ जाना।
ये कहकर दोनों सरपंच और देवा वहां से बाहर निकल जाते है।
बिंदिया; ये क्या हो गया जी।
हिम्मत;अरे करम जली जल्दी जल्दी कपडे पहन ले
तूझे तेरे घर छोड आता हूँ।
और मुझे पता है ये किसकी हरकत है साला अपने आखरी दिनों में भी मुझे परेशान कर रहा है।
बिंदिया;कौंन।
हिम्मत;देवा। वही है इस सबके पीछे। चल चल जल्दी कर।
दोनो कपडे पहनकर कार में बैठ कर बिंदिया के गांव की तरफ चले जाते है और उन दोनों के जाने के बाद दोनों सरपंच देवा का शुक्रिया अदा करके अपने घर लौट जाते है।
ये कहते हुए की इस गांव को एक जवान सरपंच मिलने वाला है।

देवा;हवेली के अंदर पहुँच के रुक्मणी और रानी को पूरी बात बताता है।
उसकी बात सुनकर दोनों झूम उठते है और रुक्मणी रानी के सामने देवा की छाती से चिपक जाती है।
वो ख़ुशी में देवा की गर्दन पर चुमने लगती है।
पास में खड़ी रानी भी हंसने लगती है।
दोनो औरतों के ज़िन्दगी का सबसे बड़ा कांटा देवा ने एक झटके में हटा दिया था।
मगर वो दोनों ये नहीं जानती थी की इस बात से देवा की जान को कितना बड़ा खतरा हो गया था।


हिम्मत अपनी बेइज़्ज़ती बर्दाश्त करने वालों में से नहीं था।
जब रुक्मणी को होश आता है की रानी भी वहां खड़ी है तो वो शरमा जाती है और चाये बनाने के बहाने से किचन में चली जाती है।
देवा; मैं अभी आया।
वो भी रुक्मणी के पीछे पीछे किचन में चला जाता है और पीछे से रुक्मणी को अपनी बाहों में जकड लेता है।
रुक्मणी;आह्ह्ह्ह।
देवा क्या कर रहे हो छोड़ो मुझे।
देवा;नहीं छोड़ूँगा जब तक मुझे मेरा इनाम नहीं मिल जाता।
रुक्मणी :क्या कैसा इनाम रे।
देवा; अच्छा कैसा इनाम। तुम्हारे एक कहने पर सब कुछ कर दिया और अब पूछती हो कैसा इनाम।
रुक्मणी;बोलो क्या चाहिए तुम्हें।
देवा;रुक्मणी को घुमा कर अपनी तरफ कर देता है।
रुक्मणी के सुड़ौल कड़क ब्रैस्ट देवा की छाती से रगडने लगते है
रुक्मणी;अपनी साँसों को किसी तरहं सँभाल रही थी वो देवा के सामने पिघलने लगते थी और इस बात से देवा भी बा खूबी वाकिफ़ था।
देवा;अपने दोनों हाथों में रुक्मणी का चेहरा थाम लेता है
मेरी तरफ देखो मालकिन।
रुक्मणी;हमम....
देवा; धीरे से अपने होठो को रुक्मणी के कान के पास लाकर कुछ फुसफुसाता है और उसकी बात सुनकर रुक्मणी के पैर काँपने लगते है।
आंखेँ फटी की फटी रह जाती है।
देवा ने बडी आसानी से उससे इतनी बड़ी बात कह दिया था जिसकी उम्मीद उसे उस वक़्त तो बिलकुल भी नहीं थी।
रुक्मणी;ना में सर हिलाती है।
देवा;फिर से रुक्मणी की ऑंखों में झाँकने लगता है।
मुझे पता है तुम अपनी बात से पीछे नहीं हटोगी।
रुक्मणी;मगर देवा। समझो ना।
देवा;मुझे मेरा इनाम चाहिए अभी और इसी वक़्त।

रुक्मणी;नज़रें झुकाये ज़मीन की तरफ देखने लगती है।
उसके हाथों में पसीना आने लगता है और दिल तेज़ रफ़्तार से धड़कने लगता है।
देवा;रुक्मणी के काँधे पर हाथ रख कर उसे नीचे बैठा देता है और रुक्मणी नीचे बैठती चलि जाती है।
देवा;रुक्मणि का आँचल हटा देता है और दोनों हाथों से रुक्मणी के ब्लाउज के सामने के बटन खोल देता है
उस वक़्त अंदर रुक्मणी ने कुछ नहीं पहनी थी।
सफेद मख़मली वो कपास के गोले देवा की ऑंखों के सामने लटकने लगते है जिसे देख देवा का लंड पहले सलामी देने लगता है।
देवा;अपने लंड को पकड़ कर रुक्मणी के ब्रैस्ट पर मारने लगता है।
मेरे लंड को अपने मुँह में लेकर मुझे मेरा इनाम दे दो मालकिन ।
रुक्मणी;काँपते हाथों से देवा के लंड को पकड़ लीती है
ज़िन्दगी में जिसे इतने शिदत से उसने चाही थी आज वो हसीं तरीन चीज उसके ऑंखों के सामने थी वो काँपते हाथों से उस खूबसूरत लंड को पकड़ कर अपने होठो से लगने को बेताब थी।
देवा;जल्दी करो मालकिन आह्ह्ह।
जल्दी करो।
रुक्मणी;धीरे से देवा के लंड के सामने की चमड़ी को ऊपर सरका देती है और चमकता हुआ देवा का लंड का सुपाडा सामने आ जाता है जिस पर मोती सा एक पानी का कतरा चमकने लगता है।
उस मोती को रुक्मणी अपने होठो में जज़्ब कर लेती है और देखते ही देखते लंड को चुमते हुए अपने हलक के अंदर तक उतार लेती है।
वो नशा जो सर चढ़ कर बोलता है। आज रुक्मणी की जिस्म में आग भड़कने के लिए काफी था।
अपने देवा के लंड की खुशबु उसे अंदर ही अंदर मदहोश किये जा रही थी। वो दिवानी सी हो गई थी उसे पकड और अपनी दिवानगी की इन्तहा वो देवा के लंड को मरोड़ मरोड़ कर चुसते हुए उसे दिखा रही थी।
देवा सुलग उठा था।
आज तक कई औरतों लडकीयों की चुदाई करने वाला देवा के लंड में अकडन सी होने लगती है और वो रुक्मणी के बाल पकड़ कर अपने लंड को आगे पीछे करने लगता है।
रुक्मणी;गलप्प अहह गलप्प गलप्पप्प।
मेरे देवा गलप्प गलप्प
वो दिल ही दिल में सोचने लगती है।
मेरे देवा आहह गलप्प मुझे ये दे दो गलप्प गलप्प्प गप्पप्प।
हमेशा के लिए गलप्प गलप्प्प।
मुझे दासी बना लो अपनी देवा गलप्प गलप्प्प।
रानी;माँ कहाँ हो माँ
रानी किचन के दरवाज़े के पास आकर ख़ड़ी हो जाती है और रुक्मणी के मुँह में देवा का लंड देख सहम सी जाती है।वो कुछ नहीं कहती और अपने रूम में चलि जाती है।

रुक्मणी;उससे अपने मुँह से निकालना तो बिलकुल भी नहीं चाहती थी।
और देवा उसे रुक्मणी के दूसरे सुराख़ में जल्द से जल्द घुसाना चाहता था मगर वो वक़्त शायद अभी नहीं आया था।
रुक्मणी;अपने दिल को सँभालते हुए खड़ी हो जाती है और रानी के रूम की तरफ चलि जाती है।
देवा;ये तो जैसे गाण्ड में किसी ने ऊँगली करके भाग गया हो ऐसा लगता है।
इस खड़े लंड के दर्द से देवा को बहुत ग़ुस्सा आता था।
एक बार जब उसका लंड खड़ा हो जाता तो उसे चूत या गाण्ड चाहिए ही चाहिए होती थी और रुक्मणी की हरकत उसे तिलमिला देती है।
वो अपने लंड को किसी तरह अपने पेंट में डाल कर हवेली से बाहर निकल जाता है। ये सोचते हुए की पप्पू की गाण्ड या शालु की चूत ही मिल जाये तो दर्द से आराम मिले। मगर शायद उसकी किस्मत आज कुछ खास नहीं थी।
न पप्पू था और न शालु नज़र आ रही थी। शालु के घर में अँधेरा था।


वो उस वक़्त जाकर कोई हंगमा नहीं करना चाहता था।
देवा; लंड को सहलाते हुए अपने घर चला आता है और सीधा अपने रूम में आकर बिस्तर पर लेट जाता है। अपने कपडे निकाल कर वो अपने लंड को सहलाने लगता है मगर उसके पथरीले हाथ में लंड को और दर्द होने लगता है।
रत्ना;उसे घर में घुसता देख चुकी थी उसे ये बात अजीब भी लगी थी की बिना बोले चाले वो सीधा अपने रूम में क्यों चला गया।
इधर रानी बिस्तर पर लेटी हुई थी। जब रुक्मणी वहां आती है अपनी रानी को बिस्तर पर आधी नंगी पड़ी देख वो मुसकरा देती है और उसकी ऑंखों में देखते हुए अपने सारे कपडे निकाल देती है और रानी के ऊपर चढ जाती है।
रानी;माँ वो देवा क्या कर रहा था ।
रुक्मणी;अपने होठो से रानी के गाल को चुमते हुए अपने दो उँगलियों से रानी की चूत को सहलाने लगती है।
वो मुझे कुछ नहीं कर रहा था मै उसका लंड चूस रही थी जैसे तू चुसा करती थी पहले।
रानी;माँ ऐसा मत करो न आह्ह्ह्ह।
रुक्मणी;क्यूँ दर्द होता है।
रानी;नहीं माँ आग बढ़ जाती है।
रुक्मणी;कहाँ बिटिया।
रानी;यहाँ मेरी चूत में माँ।

रुक्मणी;रानी के होठो को चुमते हुए नीचे झुकती चली जाती है और रानी की चूत पर पहुँच कर अपनी ज़ुबान से रानी की चूत को चुमते हुए खाने लगती है।
यहाँ।
रानी; हाँ माँ....
इसे कुछ करो न माँ
मै मर रही हूँ इस आग में आह्ह्ह्ह।
रुक्मणी;अपनी दो उँगलियों को मुँह में डालकर गीला करती है और फिर उन गीली उँगलियों को रानी की चूत में घूस्सा देती है।
रानी;माँ आह्ह्ह्ह धीरे से करो ना.....
रानी को मीठा मीठा दर्द होने लगता है।
दोनों माँ बेटी एक दूसरे के जिस्म की आग शांत करने लग जाती है।

और इधर देवा को जानलेवा दर्द सताने लगता है उसके लंड में खिंचाव से उसके लंड की नसे मोटी हो चुकी थी। उसे कोई नरम चीज़ चाहिए थी जो उसे आराम दे।

वो दर्द से चीखने लगता है और उसकी चीख रत्ना सुन लेती है।
वो भागते हुए देवा के रूम में चली आती है और सामने देवा को नंगा पड़ा कराहता देख घबरा जाती है।
रत्ना;क्या हुआ रे तू ऐसा क्यों पड़ा है कुछ काटा क्या तुझे।
देवा;माँ मुझे यहाँ बहुत दर्द हो रहा है। मै मर रहा हूँ माँ कुछ करो अह्ह्ह।
रत्ना: मैं वैध को बुलवा भेजती हूँ।
देवा;उसके आने तक मै बचूँगा नहीं आह्ह्ह्ह।
रत्ना;घबरा कर देवा का लंड अपने कोमल हाथों में थाम लेती है।
गरम फौलादी लंड जैसे ही रत्ना के हाथों में आता है देवा का चिखना बंद हो जाता है और वो फटी फटी ऑंखों से रत्ना को देखने लगता है।
रत्ना;समझ जाती है की देवा को क्या हुआ है।
हकीकत में देवा अपने बापू पर गया था।
कभी कभी देवा के बापू को भी लंड में खींचाव से दर्द होता था। उस वक़्त रत्ना ही उस दर्द का इलाज करती थी।
रत्ना;रूम में अँधेरा कर देती है और धीरे से देवा के लंड को पकड़ के सहलाने लगती है।
देवा;आहें भरने लगता है उसका दर्द कम तो नहीं हुआ था मगर अब वो बढ़ नहीं रहा था।
देवा को कुछ गीला गीला अपने लंड पर महसूस होता है
वो सर उठा कर देखता है और देखता ही रह जाता है
रत्ना;उसके लंड पर झुक जाती है और अपने मुँह में देवा के लंड को लेकर चूसने लगती है गल्पप गप्प्प गलप्पप्प।
देवा; माँ
आह आह आह्ह्ह्ह्ह्ह्ह्ह....
रत्ना;अपना काम शुरु रखती है वो किसी तरह अपने जज़्बात को एक तरफ रख कर अपने देवा के दर्द को कम करने की पूरी कोशिश करती है।
पहली बार अपनी माँ के गरम मुँह का स्वाद चख कर देवा का लंड भी निहाल हो जाता है और अपनी पहली धार अपनी माँ के मुंह के नाम कर देता है। इतनी जल्दी कभी देवा नहीं झडा था। शायद ये अपनी सगी माँ की चूत से निकलने वाली खुशबु का असर था की देवा अपना गरम लावा रत्ना के मुँह में उंडेल देता है।
वो थोडी देर बाद जब ऑंखें खोल कर देखता है तो रत्ना को वहां नहीं पाता।
रत्ना;अपने रूम में जाकर रूम अंदर से बंद कर लेती है
देवा का पानी अब भी उसके मुँह में था वो उसे थूकना चाहती थी मगर ऐसा नहीं करती और उस गाढ़े गाढ़े पानी को रत्ना ऑखें बंद करके पी जाती है। पानी हलक में उतारते ही उसकी चूत में कोई चिंगारी फ़ेंक देता है जिसे बुझाते बुझाते अपनी चूत को रगडते रगडते रत्ना बिस्तर पर लेट जाती है।
 

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