अपडेट 98
और सन्दूक ख़ुलते ही..........
रत्ना रुक्मणी रानी और देवा के होश उड़ जाते है।
जो सामने था वो देख बड़े से बड़े कलेजे वाला आदमी भी चक्कर खा कर ज़मीन पर गिर जाए।
रत्ना को चक्कर आने लगता है वो बस गिरने वाली थी की देवा उसे सँभाल लेता है।
सन्दूक में तीन कंकाल थे।
कुछ कपडे और उन कंकालो के हाथों पैरों के हड्डियों में कुछ गहने।
वक्त की मार ने बदन पर से सारा माँस तो निकाल दिया था बस हड्ड़ियाँ रह गई थी।
ऐसे नज़ारा उन चारों की ऑंखों ने न कभी देखा था न कभी सुना था।
रुक्मणी; जोर से चीख़ पड़ती है माँ आआआआआआआआ।
रानी;माँ क्या हुआ संभालो अपने आप को।
रुक्मणी;ज़ोर ज़ोर से रोने लगती है।
ये मेरी माँ के कंगन है और ये मेरी माँ का बाज़ू बंद है
मारने वाले ने हाथों पैरों में से कंगन नहीं उतारे थे
शायद वो जल्दी में रहा होगा।
अगर उन तीनो में से एक कंकाल रुक्मणी के माँ का था तो बाकि के दो कंकाल किसके थे।
देवा;बड़ी हिम्मत करके एक एक करके तीनो कंकालो को बाहर ज़मीन पर लिटा देता है।
सन्दूक लोहे का होने की वजह से हाड़ियाँ अब तक सही सलामत थी और चीख चीख कर अपनी दास्तान सुना रही थी।
रुक्मणी;की चीखें सुनकर आस पास के खेतों से लोग भी वहां जमा होने लगते है और देखते ही देखते सारा गांव वहां जमा हो जाता है।
जब देवा सन्दूक के अंदर से बाकी के कपडे और कुछ चाँदी के गहने बाहर निकालता है तो रत्ना की आँखें फटी की फटी रह जाती है।
वो भाग कर उन गहनो में से एक हाथ में पहनने का कड़ा उठा लेती है।
देवा;का बाप इसी तरह का कड़ा अपने हाथ में पहनता था।
रत्ना;समझ चुकी थी के वो दुसरा कंकाल किसका है।
देवा;अपनी माँ को देख रहा था और रत्ना की आँखों से आँसू की लड़ी बहने लगती है।
वो फूट फूट कर रोने लगती है।
दोनो औरतें इतनी बिखर चुकी थी की उन्हें सँभालना बेहद मुश्किल था।
देवा;माँ बस भी करो रो क्यों रही है।
रत्ना;देवा मेरे बच्चे ये कड़ा तेरे बापू पहना करते थे।
ये तेरे बापू है तेरे बापु।
आह्ह्ह्ह्ह ओह्ह्ह्हह्ह माँ आआआआआ...
ये सब देखने से पहले मै मर क्यों नहीं गई।
वो जो अब तक अपने आप को सुहागन समझ कर हाथों में चूडियां पहना करती थी मांग में कभी कभी अपने पति का सिन्दूर लगाया करती थी।
अपने दोनों हाथों को ज़मीन पर पटकने लगती है और हाथों में की कांच की चूडियों को पटक पटक कर तोड़ देती है।
हर कोई खुसुर पुसुर करने लगता है वहां सरपंच भी आ जाते है।
उन गांव वालों में से एक बूढा आदमी तीनो कंकालो को देख कर बताता है की इन में से एक औरत है और दो मरद है।
पुरा गांव वहां उमड जाता है।
रुक्मणी समझ जाती है के अगर उन में से एक उसकी माँ है तो दुसरा उसके पिता जी का कंकाल है।
वो दोनों एक साथ तीर्थ यात्रा पर गए थे मगर वापस लौट कर नहीं आये थे।
मगर उन दोनों को देवा के बाप के साथ किसी ने यहाँ मार कर उनकी लाशें दबा दिया था।
पुरे गांव में मातम सा छा जाता है।
जब ये खबर देवा के मामा मामी के घर पहुँचती है की देवा के बापू की लाश मिली है तो कोमल और देवकी का परिवार भी देवा के गांव भागे चले आते है।
हर कोई रत्ना और उसके परिवार को इस मुश्किल घडी में सहारा देने उनके घर पहुँच जाता है।
सरपँच और गांव वाले जल्द से जल्द तीनो लाशों का अन्तिम संस्कार की तैयारियों में लग जाते है।
दूसरी तरफ रुक्मणी का भी बुरा हाल था।
वो ये समझ रही थी की उसके माँ और बापू तीर्थ यात्रा के दौरान मारे जा चुके है मगर इस तरह उनकी लाशें मिलेंगी उसने कभी सोची नहीं थी।
रात शुरू होने लगती है और गांव वाले अन्तिम संस्कार की सभी तैयारी करके देवा के घर पहुँचते है।
देवा;अपने घर में ज़मीन पर बैठा था।
उसका दिमाग बिलकुल खाली था।
उसे अपने बापू की शक्ल भी ठीक तरह से याद नहीं थी।
मगर आज जो उसने देखा था वो देख वो अंदर ही अंदर टूट चूका था।
ममता और रत्ना का रो रो कर बुरा हाल था।
शालु नीलम दोनों माँ बेटी रत्ना और ममता को सँभाल रही थी मगर उन्हें सँभालते सँभलते वो दोनों भी रो पडती थी।
सरपँच;देवा बेटा तुम बहुत बहादुर बच्चे हो बेटा।
तुम्हे इस मुश्किल घडी में खुद को भी और अपनी माँ बहन को भी संभालना होगा।
अगर तुम इस तरह सदमें में चले जाओंगे तो कैसे चलेगा बेटा।
देखो मेरी तरफ।
अपने बापू की आत्मा को परमात्मा के पास जाने दो बेटा उन का अन्तिम संस्कार कर दो।
चलो शाबाश।
सरपँच एक भला आदमी था।
वो देवा को दिलासा देकर उसे सँभालते हुए शमशान भूमि तक ले जाता है।
पुरे रास्ते देवा एक ज़िंदा लाश की तरह लड़खड़ाते हुए चलता है।
वो बस एक बार अपने बापू से मिलना चाहता था।
एक बार अपने बाप के गले लगना चाहता था।
एक बार जी भर कर अपने बापू से लिपट कर रो लेना चाहता था।
मगर आज जब उसकी अपने बापू से मुलाकात हुई तो ऐसे की दिल के सारे अरमाँ आंसुओं में बह निकले थे।
सभी गांव वाले शमशान भूमि में जमा थे।
हर की आँख में आँसू थे।
हर किसी के दिल में उनकी मौत का सच जानने की तड़प थी।
मगर जिसके दिल में ये तड़प सबसे ज़्यादा थी वो चुपचाप खड़ा था।
रत्ना;अपने आँसू पोंछ कर देवा के पास आती है।
देवा;अपनी माँ के तरफ देखता है।
रत्ना;जा देवा अपने बापू को आग दे।
मगर एक बात की कसम खा ले अभी की जिस किसी ने भी तेरे बापू के साथ ये किया है तू उसे भी एक दिन इसी तरह अर्थी पर लिटा के दम लेगा।
रत्ना की आवाज़ में दर्द था। गुस्सा था।
एक जूनून था और इन्साफ की गुहार थी अपने बेटे से की अगर तूने अपने बाप के कातिल को सजा नहीं दिया तो तू मेरी औलाद नही।
देवा;अपनी माँ के सर पर हाथ रख देता है।
मै कसम खाता हूँ माँ तेरे सर की।
आज मै अपने पिता को आग दे रहा हूँ।
बहुत जल्द उनका कातिल भी यहाँ इसी तरह अर्थी पर लेटा होगा।
एक बेटे ने अपने माँ के सर पर
अपने बाप की लाश के सामने कसम खाया था।
जैसे जैसे आग उस चिता से लिपटी चलि जाती है वैसे वैसे देवा के अंदर की आग भी सुलगती चली जाती है।
गुस्सा और जूनून अपने चरम पर पहुँच जाता है।
रुक्मणी देवा और रत्ना तीनो जानते थी की इस के पीछे कौन है।
सभी गांव वाले चिता को आग देकर धीरे-धीरे लौट जाते हैं लेकिन देवा वहीं से बैठा रहता है। तब उसकी मां रत्ना बाद में उसे घर चलने के लिए बोलती है।
रत्ना: कब तक बैठा रहेगा बेटा चल हम लोग घर चलते हैं।
देवा: तुम घर जाओ मैं थोड़ी देर रुक के आता हूं कुछ देर मै अकेले रहना चाहता हूं।
यह सुनकर रत्ना अपने घर लौट आती है ।
तभी देवा को फिर से वो तीनों लोग दिखने लगते है अब देवा को समझ में आने लगा कि वो तीनों कौन है।चूँकि पहली बार सिर्फ एक अधेड़ आदमी मिला था उसने भी अपना चेहरा ढक रखा था और उस दिन वे तीनो एक साथ रात में ही मिले थे और देवा उनका चेहरा ठीक से नहीं देख पाया था। आज भी रात हो चुकी है इसलिए देवा को साफ़ नही दिख रहे है और पिछली बार की तरह तीनों ने अपना चेहरा भी ढका हुआ है।
देवा:आप लोग अपना चेहरा क्यों हमेशा मुझसे छुपाये रहते है और सिर्फ मुझे दिखाई देते है क्यों।
देवा का बाप:बेटे हमारे पास अब इंसानो की तरह शरीर
नही है इसलिए हम सभी को दिखाई नहीं देते है । हमारा चेहरा भी सड़ गल चूका है तुम देख नहीं पाओगे।
तुम्हारे साथ हमारा गहरा रिश्ता है इसलिए तुम सिर्फ हमारी परछाई देख रहे हो।
एक देवा का बाप था और बाकि दोनों रुक्मिणी के माता पिता थे।
देवा के पिता बोलते हैं बेटे हमारी आत्मा बहुत दिन से भटक रही थी। आज हमें इस योनि से मुक्ति मिल गई है।
अब हमें ईश्वर के पास जाना ही होगा क्योंकि हमारा बुलावा आ चुका है बड़ी मुश्किल से हमने इतनी देर तक सिर्फ इसलिए इंतजार किया ताकि हम तुमसे अकेले में मिल सके।
देवा: बापू मैं जानना चाहता हूं कि आप लोगों का यह हाल किसने और कैसे किया था क्या हमें बता सकते हैं
आप लोग।
देवा का बाप: बेटे हम ज्यादा कुछ तो नहीं बता सकते लेकिन हमको जिस आदमी ने मारा उसका नाम है हिम्मत राव क्योंकि इससे ज्यादा हम नहीं बता सकते हमें यहाँ ज्यादा देर रुकने का इजाजत नहीं है। हमें जल्द से जल्द जाना होगा।
देवा: मैं आप तीनों से ये वादा करता हूँ की हिम्मत राव की उसके किये की सजा जरूर मिलेगी।
फिर तीनों देवा से आंसू भरी बिदाई लेते हैं और धीरे-धीरे आकाश की तरफ जाकर अदृश्य हो जाते है।
थोड़ी देर के बाद देवा उदास मन से घर लौट आता है।
रत्ना उसका इंतज़ार कर रही थी।
हिम्मत राव को भी यी बात पता लग गई थी की देवा ने अपने बाप की लाश ढूंढ़ लिया है और साथ में रुक्मणी को भी अपने माँ बाप की बारे में पता चल गया है।
वो जिस बिल में छुप कर बैठा था अब उसका वहां छुपना खतरे से खाली नहीं था क्यूंकि बहुत जल्द देवा उसे ढूँढ़ते हुए वहां पहुंचने वाला था।
इससे पहले की देवा उस तक पहुंचे हिम्मत वहां से निकल जाता है।
हिम्मत भी देवा का सामना करना चाहता था मगर इस बार आर पार की लड़ाई के लिये।
एक तरफ बाप के कातिल की तलाश थी तो दूसरी तरफ बेटे को भी बाप के पास भेजने की सोच।
सुबह तक अस्थियाँ भी ठण्डी हो जाती है मगर जो आग अंदर जल रही थी वो इतनी आसानी से नहीं बुझने वाली थी।